सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर को ले कर साफ कह दिया है कि ‘बिना हमारी अनुमति के कोई भी सरकार पूरे देश में बुलडोजर एक्शन न ले’. फिलहाल यह रोक 1 अक्टूबर तक के लिए लगाई गई है. कोर्ट ने कहा कि बुलडोजर एक्शन देश के कानून को ध्वस्त करने जैसा है. सुप्रीम कोर्ट ने जिस तरह से इस मामले को लिया है उस से साफ है कि आगे भी बुलडोजर पर रोक लगी रहेगी. पहला सवाल यह है कि अब बुलडोजर पर प्रतिबंध लगने के बाद यूपी के बुलडोजर बाबा पहले जैसे लोकप्रिय बने रहेंगे ? दूसरा सवाल अगर बुलडोजर एक्शन इतना बुरा है तो जनता ने इस को पसंद क्यों किया ? बुलडोजर बाबा ने लगातार दूसरी बार विधानसभा का चुनाव कैसे जीता ?
बुलडोजर बाबा की लोकप्रियता बुलडोजर से बनी तो बुलडोजर भी पूरे देश में ही नहीं विदेशों तक में मशहूर हो गया. इतना प्रचार तो बुलडोजर बनाने वाली कंपनी करोड़ों रूपया खर्च कर के भी नहीं पाती. क्या बुलडोजर केवल विध्वंस का प्रतीक है. बुलडोजर जस्टिस इतना लोकप्रिया हो गया कि सुप्रीम कोर्ट को कहना पड़ा कि बुलडोजर का महिमामंडन न किया जाए. बुलडोजर जस्टिस का महिमामंडन बंद होना चाहिए. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि यह निर्देश अवैध निर्माण सार्वजनिक सड़क, फुटपाथ और किसी भी अनधिकृति निर्माण पर लागू नहीं होगा. सवाल उठता है कि अवैध निर्माण गिराने के लिए बुलडोजर का प्रयोग किया जाएगा या नहीं ?
क्या है बुलडोजर ?
एक मषीन जिस का काम निर्माण करना था वह भारत में न्याय का प्रतीक बन गई. इस मषीन का नाम ‘बैकहो लोडर’ है. जो ‘बुलडोजर’ के नाम से लोकप्रिय हो गया है. हाल के कुछ सालों में राजनीति से ले कर कोर्ट और मीडिया में बुलडोजर को नाम प्रयोग तेजी से बढ़ा. यह पीले रंग में देखी जाने वाली मषीन है. शुरुआत में यह पीला नहीं सफेद रंग या लाल रंग की होती थी. जब कंस्ट्रक्शन साइट्स पर जेसीबी मशीन से काम चलता था. तब दूर से मशीन दिखाई नहीं देती थी.
रात में भी इन मशीनों को दूर से नहीं देखा जा सकता था. इस कारण बाद में जेसीबी मशीन का रंग पीला कर दिया जिस के चलते जेसीबी मशीन को दूर देख कर पहचाना जाने लगा. पीले रंग के चलते लोग दूर से समझ सकते हैं कि वहां मशीन खड़ी है, वहां खुदाई या दूसरा निर्णाम काम चल रहा है. इस मशीन का नाम जेसीबी नहीं है. जेसीबी उस कंपनी का नाम है जो यह मशीन बनाती है. इस भारी भरकम मशीन का सही नाम ‘बैकहो लोडर’ है.
1945 में शुरू हुई जेसीबी कंपनी ने 1953 में पहला बैकहो लोडर बनाया था. इस का रंग नीला और लाल था. इस के बाद इस मशीन में बहुत से बदलाव किए गए और 1964 में एक पीले रंग का बैकहो लोडर बनाया गया. यहीं से इन मशीनों का रंग पीला हो गया. जेसीबी ही नहीं, बल्कि ऐसी मशीनें बनाने वाली अन्य कंपनियां भी इन मशीनों का रंग पीला ही रखती हैं. शुरुआत में यह मशीन ट्रैक्टर के साथ जुड़ी होती थीं लेकिन समय के साथ इस के मौडल में बदलाव किए गए.
ब्रिटिश कंपनी जेबीसी एक्सावेटर्स लिमिटेड का मुख्यालय रोसेस्टर स्टाफोर्डशायर में स्थित है. भारी उपकरण बनाने के लिए जानी जाने वाली इस कंपनी के मालिक और फाउंडर ब्रिटिश अरबपति जोसेफ सायरिल बम्फोर्ड थे. 2001 में जोसेफ की मौत हो गई और उन की कंपनी का नाम उन्हीं के नाम पर रखा गया. भारत में भी जेसीबी इंडिया की 6 फैक्ट्री और एक डिजाइन सेंटर है. कंपनी ने भारत में बनी मशीनों का निर्यात 110 से ज्यादा देशों में किया है. विश्व की तीसरी सब से बड़ी निर्माण उपकरण बनाने वाली कंपनी जेसीबी बैकहो लोडर के साथ 300 से ज्यादा तरह की बड़ी मशीनों का निर्माण भी करती है.
इन की बड़ी मशीनों का प्रयोग निर्माण कार्य, खेती, भार उठाना या जमीन खोदना आदि कामों मंव किया जाता है. जेसीबी के अलावा भारत में वोल्वो, महिंद्रा एण्ड महिंद्रा जैसी कई कंस्ट्रक्शन इक्यूपमेंट मैन्युफैक्चरिंग कंपनियां हैं बैकहो लोडर का निर्माण करती हैं. बैकहो लोडर की कीमत 10 लाख रुपए से शुरू होती है जो 40-50 लाख रुपए तक जाती है.
उत्तर प्रदेश से शुरू हुआ यह रोग
बुलडोजर न्याय का एक्शन शुरू करने वाले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपनी ही पार्टी में तमाम विरोध के बाद 2017 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने. अपने बुलडोजर एक्शन से वह देश में दूसरे नम्बर के सब से चर्चित मुख्यमंत्री बन गए. उन का मौडल भाजपा ही नहीं गैर भाजपा शासित राज्यों में प्रयोग होने लगा. बुलडोजर का सब से चर्चित प्रयोग उत्तर प्रदेश के कानपुर में हुआ. जहां अपराधी विकास दुबे ने 9 पुलिस वालों की हत्या कर दी थी. इस के बाद पुलिस ने बुलडोजर जस्टिस करते हुए विकास दुबे का पूरा घर गिरा दिया गया. एनकांउटर में विकास दुबे मारा गया.
माफियाओं के अवैध निर्मार्णो पर बुलडोजर चलने लगा. मुख्तार अंसारी, अतीक अहमद दर्जनों अपराधियों बुलडोजर एक्शन का सामना करना पड़ा. तमाम अपराधियों पर यह बुलडोजर चला. सीएए और एनआरसी का विरोध करने वालों के खिलाफ भी यह कदम उठाया गया. इस के बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का नाम ही ‘बुलडोजर बाबा’ पड़ गया. जनता उन को और उन के बुलडोजर जस्टिस पर मेहरबान हो गई. लोकतंत्र में वोट को लोकप्रियता का पैमाना माना जाता है.
क्यों चर्चित हुआ बुलडोजर एक्शन ?
2022 के विधानसभा चुनाव में योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश के इतिहास में पहले ऐसे मुख्यमंत्री बन कर उभरे जो लगातर दूसरी बार मुख्यमंत्री बनने में सफल रहे. इस जीत का श्रेय उन की कड़क कानून व्यवस्था यानि बुलडोजर को दी गई. तमाम चुनावी रैलियों में बुलडोजर को भी ला कर रखा जाने लगा था. धीरेधीरे उत्तर प्रदेश से चला बुलडोजर देश के दूसरे राज्यों में भी असर करने लगा. मध्य प्रदेश दिल्ली और गुजरात जैसे तमाम राज्यों से होता यह बुलडोजर असम तक पहुंच गया.
सवाल उठता है कि जनता ने बुलडोजर जस्टिस को क्यों पंसद किया. इस का बहुत सीधा सा जवाब है. पिछले कुछ सालों में उत्तर प्रदेश में गुंडागर्दी बढ़ गई थी. अपराधियों को राजनीतिक संरक्षण दे कर उन को विधायक, सांसद बनने के लिए पार्टियों ने टिकट देने शुरू किए. बदले में यह अपराधी माफिया नेताओं और उन पार्टियों को बूथ कैप्चरिंग कर चुनाव जितवाने में मदद करते थे. समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह यादव ने एक संभा में मंच पर माफिया अतीक अहमद के कुत्ते से हाथ मिलाया. ऐसे अपराधियों के भय में गवाह कोर्ट नहीं जाते थे. जो जाता था उस का गोली से मार दिया जाता था. कई वकील और जज भी उन के मुकदमें सुनने से इंकार कर देते थे.
अतीक अहमद ने अपने भाई के खिलाफ विधानसभा का चुनाव लड़ने वाले विधायक बन चुके राजू पाल को सरेबाजार गोली मार कर हत्या कर दी. उस को जब अस्पताल ले जाया जा रहा था तो फिर उस का पीछा कर के दोबारा गोली मारी गई कि कहीं वह जिंदा न बच जाए. इस मामले में कोई गवाही देने को तैयार नहीं था. उमेश पाल ने इस की गवाही देने का साहस दिखाया. कोर्ट ने उमेश पाल को सरकारी सुरक्षा भी दी. इस के बाद भी अतीक अहमद के साथियों ने उमेश पाल और उस के सुरक्षा कर्मियों को गोली मार दी.
जब योगी का बुलडोजर ऐसे लोगों पर चला तो जनता को लगा कि अपराधियों के खिलाफ भी कुछ हो सकता है. इस के पहले भी मायावती ने कुंडा के विधायक रघुराज प्रताप सिंह के खिलाफ पोटा के तहत मुकदमा कायम कर के अपने समर्थकों को खुश करने का काम किया था. रघुराज प्रताप सिंह, रायबरेली के विधायक अखिलेश सिंह के घर जेसीबी चलवाई थी. यह दोनों जेल से तब बाहर आए जब मायावती मुख्यमंत्री मद से हट गई थी. नेता अपनी छवि को मजबूत करने के लिए इस तरह के काम करते हैं. भाजपा नेता कल्याण सिंह जब पहली बार मुख्यमंत्री बने थे तो नकल कानून ले कर आए थे. कक्षा 10 और 12 में नकल करते बच्चों को जेल भेजने का प्रावधान था.
1980 में जब विश्वनाथ प्रताप सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने तो प्रदेश की सब से बड़ी समस्या डकैत थे. डकैती और अपहरण प्रदेश में उद्योग जैसा बन गया था. इस को खत्म करने के लिए सरकार ने डकैती उन्मूलन अभियान चलाया. जिस में डकैतों का एनकाउंटर होने लगा. इस के जवाब में डकैतों ने विश्वनाथ प्रताप सिंह के भाई जस्टिस चन्द्रशेखर प्रताप सिह और उन के 14 साल के बेटे की गोली मार कर हत्या कर दी थी. उस समय चले डकैत उन्मूलन अभियान का असर हुआ की 10 सालों में डकैती की समस्या खत्म हो गई.
कल्याण सिंह जब मुख्यमंत्री बने तो श्रीप्रकाश शुक्ल नामक माफिया गैंग ने उन को जान से मारने की धमकी दी थी. इस के बाद कल्याण सिंह एसटीएफ यानि स्पैशल टास्क फोर्स बनाई. जिस ने 4 माह में श्रीप्रकाश शुक्ला सहित उस के पूरे गिरोह को खत्म कर दिया. उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था किस मुख्यमंत्री के राज में सब से बेहतर रही तो इस सवाल के जवाब में 3 नाम जनता बताती है कल्याण सिंह, मायावती और योगी आदित्यनाथ.
सोशल मीडिया के जमाने में बुलडोजर एक्शन को बड़ी आसानी से बुलडोजर जस्टिस बता दिया गया. 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव प्रचार में योगी आदित्यनाथ ने 58 रैलियों में बुलडोज़र शब्द का इस्तेमाल किया. पार्टी ने इन सभी सीटों पर जीत दर्ज की. योगी के प्रशसंकों ने बुलडोज़र और बुलडोज़र बाबा के नाम का टैटू बनवा लिया.
अब इस बुलडोजर एक्शन पर सुप्रीम रोक लग गई है. बुलडोजर एक्शन को जनता इसलिए पंसद कर रही थी कि इस से न्याय जल्द होते दिखता था. हमारे देश में पुलिस की विवेचना इतनी लचीली है कि अपराधियों के खिलाफ सही सबूत पेश नहीं हो पाते हैं. सबूतों के अभाव में मुकदमें छूट जाते हैं. जनता अपराध और अपराधी के खिलाफ बोलने का साहस नहीं जुटा पाती. डरा धमका कर मुकदमें वापस ले लिए जाते हैं. ऐसे में पूरे देश में त्वरित न्याय की मांग बनी रहती है. बुलडोजर जैसे गैर कानून काम लोकप्रिय हो जाते हैं.
कानून और व्यवस्था दो अलगअलग काम हैं. संविधान ने कोर्ट और पुलिस को दो अलगअलग जिम्मेदारियां दी हैं. अगर पुलिस खुद ही फैसला करने लगेगी तो यह ठीक नहीं होगा. अपराध रोकने के लिए बुलडोजर जैसी नीतियां 18वीं और 17वीं सदी में सही मानी जा सकती थी. 21वीं सदी में इस की बात करना उचित नहीं है. बड़ी मुश्किल से देश के अंदर रूल औफ लौ यानी क़ानून का राज स्थापित हो पाया है. इसे और बेहतर बनाया जाना है. इसे तोड़ा नहीं जा सकता.
खत्म हो जाएगी बुलडोजर बाबा की लोकप्रियता
2022 में माकपा नेता वृंदा करात ने जहांगीरपुरी में बुलडोजर कार्रवाई को चुनौती देने वाली एक रिट याचिका सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की. याचिका में बुलडोजर कार्रवाई रोकने की मांग की गई. इस के साथ ही साथ जमीयत उलेमा ए हिंद ने उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान में आए दिन होने वाली बुलडोजर कार्रवाई पर रोक लगाने की मांग की. सरकार का कहना है कि किसी के अपराधी होने से नहीं उस के अवैध निर्माण करने के कारण यह काम किया गया है. इस को ‘रूल औफ लौ’ कहा.
जमीयत उलेमा ए हिंद की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने जस्टिस बीआर गवई और केवी विश्वनाथन की पीठ से कहा कि ‘2022 में जहांगीरपुरी में हिंसा भड़की थी. हिंसा के बाद कई लोगों के घरों पर बुलडोजर कार्रवाई की गई, इन लोगों पर यह आरोप था कि उन्होंने हिंसा भड़काई थी.’ याचिका में कहा गया कि अल्पसंख्यक समुदाय को निशाना बनाए जाने का आरोप लगाया गया है. याचिका में ‘बुलडोजर जस्टिस’ की प्रवृत्ति पर रोक लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट से अपील की गई थी.
सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर पर रोक लगा दी है. इस का राजनीतिक नफा और नुकसान भी तलाशा जा रहा है. योगी आदित्यनाथ के विरोधी नेताओं को समीक्षकों का मानना है कि योगी की एक मात्र उपलब्धि बुलडोजर रही है. अब इस के रोक के बाद उन की राजनीति खत्म हो जाएगी. जिस से सपा, बसपा और कांग्रेस को चुनाव जितने में मदद मिल सकेगी.
समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने बुलडोजर एक्शन पर रोक लगने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करते कहा कि बुलडोजर का प्रयोग लोगों को डराने और विपक्ष की आवाज दबाने के लिए था. इस के बंद होने से न्याय हो सकेगा.’ कोर्ट के बुलडोजर फैसले पर कांग्रेस नेता प्रमोद तिवारी ने कहा कि ‘जब तक आरोपी का दोश साबित न कर दिया जाए, तब तक वो आरोपी साबित नहीं होता है. एक सस्ती लोकप्रियता के लिए यूपी की बीजेपी सरकार ने बुलडोजर का सहारा लिया.’
बसपा सुप्रीमो मायावती ने सोशल मीडिया प्लेटफौर्म ‘एक्स’ पर पोस्ट किया ‘बुलडोजर विध्वंस कानून का राज का प्रतीक नहीं होने के बावजूद इस के प्रयोग की बढ़ती प्रवृति चिंतनीय है. वैसे बुलडोजर व अन्य किसी मामले में जब आम जनता उस से सहमत नहीं होती है तो फिर केंद्र को आगे आ कर उस पर पूरे देश के लिए एक समान गाइडलाइंस बनाना चाहिए, जो नहीं किए जा रहे हैं. वरना बुलडोजर एक्शन के मामले में माननीय सुप्रीम कोर्ट को इसमें दखल दे कर केंद्र सरकार की जिम्मेदारी को खुद नहीं निभाना पड़ता, जो यह जरूरी था. केंद्र व राज्य सरकारें संविधान व कानूनी राज के अमल होने पर जरूर ध्यान दें.’
अब देखना है कि बुलडोजर पर प्रतिबंध के बाद योगी आदित्यनाथ कैसे चुनाव प्रचार करेंगे. जिस से जनता के बीच उन की छवि बनी रह सके. जैसे ही उन की लोकप्रियता घटेगी भाजपा में ही उन का विरोध शुरू हो जाएगा. इस का प्रभाव भाजपा के चुनाव पर पड़ेगा. भाजपा की खींचतान में विपक्षी कांग्रेस और समाजवार्दी पार्टी 2027 में उत्तर प्रदेश जीतने में सफल हो जाएंगे. उत्तर प्रदेश के बाद 2029 में दिल्ली की कुर्सी भी भाजपा नहीं बचा पाएगी.