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ब्रेस्ट को ले कर महिलाओं में हैं ये मिथक

मिथ – दोनों स्तनों के साइज में फर्क होना एक मैडिकल समस्या है.

फैक्ट – आमतौर पर महिलाओं के ब्रेस्ट के आकार में मामूली अंतर चिंता का विषय नहीं होता है. दोनों ब्रेस्ट का आकार कभी एकसा नहीं होता बल्कि उन में थोड़ाबहुत अंतर होना सामान्य है. ब्रेस्ट के आकार में अंतर हार्मोनल बदलाव के कारण भी हो सकता है. यह उम्र बढ़ने के साथ होता है. इस स्थिति में एक ब्रेस्ट की ग्रोथ पहले होने लगती है. लेकिन दोनों की ग्रोथ रुकती एक साथ ही. ऐसे में एक ब्रेस्ट छोटी ही रह जाती है. ऐसे में महिलाओं को असहज महसूस होता है. स्तनों के आकार में बदलाव आनुवंशिक कारण की वजह से भी हो सकता है. लेकिन इस का मतलब यह नहीं है कि आप को किसी मैडिकल उपचार की आवश्यकता है.

मिथ – ब्रेस्टफीडिंग की वजह से ब्रेस्ट लूज़ हो कर लटक जाते हैं.

फैक्ट – यही वजह कि कुछ महिलाएं अपने बच्चों को ब्रेस्टफीडिंग करवाने से डरती हैं और उन्हें वे अपना दूध पिलाने के बजाय बोतल का दूध पिलाती हैं जोकि बच्चे के लिए अच्छा नहीं है. जबकि सच यह है कि ब्रेस्ट का आकर प्रेग्नेंसी में महिलाओं का वजन बढ़ने से बढ़ता है न कि दूध पिलाने से. बढ़ती उम्र के साथ त्वचा अपनी इलास्टिसिटी खोने लगती है, जिस की वजह से भी स्किन ढीली पड़ सकती है. ब्रेस्टफीडिंग करना वास्तव में आप के ब्रेस्ट के आकार को सुडौल बनाए रखने में मदद करता है और उन्हें वापस अपने शेप में लाता है, शेप बिगड़ता नहीं है.

मिथ – ब्रेस्ट कैंसर की एक वजह ब्रा भी है.

फैक्ट – ऐसे कोई वैज्ञानिक तथ्य मौजूद नहीं हैं जो ये साबित करें कि टाइट ब्रा या अंडरवायर पहनने से ब्रेस्ट कैंसर हो सकता है. दिल्ली के शालीमार बाग इलाके के मैक्स हौस्पिटल के सीनियर औंकोलौजिस्ट डाक्टर अजय शर्मा ने बताया कि कैंसर और ब्रा का सीधा संबंध नहीं है. आज तक प्रमाण नहीं मिला है. अभी तक डाक्टरों को ऐसा तथ्य नहीं मिला है जिस से कहा जा सके कि अंडरवायर ब्रा रात को पहन कर सोने से स्तन कैंसर हो जाता है. ब्रा के रंग या उस के प्रकार का ब्रेस्ट कैंसर से कोई लेनादेना नहीं है. कहने का मतलब यह है कि पैडेड, अंडरवायर्ड या डार्क रंगों वाली ब्रा से आप की स्किन पर रैशेज हो सकते हैं लेकिन इन का ब्रेस्ट कैंसर से कोई लेनादेना नहीं होता. यहां तक कि इस बात का भी कोई प्रमाण नहीं है कि निप्पल पियर्सिंग से ब्रेस्ट कैंसर होने की संभावना बढ़ जाती है. लेकिन यह भी सच है कि अगर ब्रा अपने साइज की न पहनी जाए या फिर कसी हुई हो तो उस से कई तरह की स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं.

मिथ – प्रेस करने से ब्रैस्ट साइज बढ़ जाता है.

फैक्ट – इस मिथ की वजह से महिलाएं सैक्स का भी पूरा आनंद नहीं ले पातीं और अपने पार्टनर को ब्रेस्ट छूने से रोक देती हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि ऐसा कर के उन की ब्रेस्ट का साइज बढ़ जाता है. यह सिर्फ एक मिथक है. महिला के ब्रेस्ट हार्मोन इंबैलेंस की वजह से बड़े हो सकते हैं लेकिन इस का ब्रेस्ट प्रेस करने से कोई लेनादेना नहीं है. इसलिए अगर आप का पार्टनर आप के ब्रेस्ट प्रेस करना चाहता है तो आप बेफिक्र हो कर उन्हें ऐसा करने दें, क्योंकि ऐसा करने से आप के ब्रेस्ट का आकार नहीं बढ़ता.

मिथ – ब्रेस्टफीडिंग कराना काफी असुविधाजनक होता है.

फैक्ट – ब्रेस्टफीडिंग करने से पेन होता है, यह बात पूरी तरह से सही नहीं है. ब्रेस्टफीडिंग कराने का भी एक तरीका होता है जिसे एकदो बार अपनी डाक्टर से सीख लेने पर कोई परेशानी नहीं होती. कुछ महिलाओं को शुरुआत के कुछ हफ्ते थोड़ा ब्रेस्ट में दर्द हो सकता है लेकिन कुछ ही दिनों में यह ठीक हो जाता है. बल्कि ब्रेस्टफीडिंग न करने से ब्रेस्ट में भारीपन हो जाता है लेकिन ब्रेस्टफीडिंग कराने पर ब्रेस्ट में काफी हलकापन आता है.

मिथ – मालिश करने से छोटे ब्रेस्ट बड़े हो जाते हैं.

फैक्ट – कुछ लोग ऐसा कहते हैं कि मालिश करने से छोटे ब्रेस्ट बड़े हो जाते हैं. लेकिन इस का कोई साइंटिफिक तरीका नहीं है. बहुत सी महिलाएं अपने ब्रेस्ट का आकार बढ़ाने के लिए कई तरह की क्रीम या औषधियों या फिर तेल का प्रयोग करती हैं. लेकिन एक स्टडी के मुताबिक यह पता चलता है कि इन औषधियों से शरीर पर ज्यादा फर्क नहीं पड़ता.

वामपंथी कमला हैरिस के पक्ष में बह रही है अमेरिका की हवा

अमेरिका में राष्ट्रपति जो बाइडन के चुनाव मैदान से हटने की घोषणा के बाद कई डैमोक्रेटिक नेताओं के लिए राष्ट्रपति चुनाव में उम्मीदवार बनने का दरवाजा खुल गया है, लेकिन राष्ट्रपति जो बाइडन ने पार्टी उम्मीदवार के तौर पर देश की उपराष्ट्रपति कमला हैरिस को अपना समर्थन दिया है तथा कई अन्य प्रमुख डैमोक्रेटिक नेता भी उन की उम्मीदवारी के पक्ष में आगे आए हैं. बाइडन ने 2020 में हैरिस को उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार चुनते हुए उन्हें निडर योद्धा कहा था.

कमला हैरिस जनवरी 2021 से अमेरिका में उपराष्ट्रपति के पद पर विराजमान हैं. वे अमेरिका की पहली महिला, पहली अश्वेत और दक्षिण एशियाई मूल की पहली ऐसी नागरिक हैं जो इस पद पर आसीन हैं. 59 वर्षीया हैरिस ने 2 बार कैलिफोर्निया की अटौर्नी जनरल चुने जाने के बाद 2016 में अमेरिकी सीनेट में अपनी सीट जीती थी.

भारत और जमैका से आए अप्रवासियों की बेटी कमला हैरिस ने अपना कैरियर एक अभियोक्ता के रूप में शुरू किया था और लगभग 3 दशक कानून प्रवर्तन में बिताए. उन्होंने स्थानीय अभियोक्ता के रूप में कैरियर की शुरुआत की, फिर 2011 में कैलिफोर्निया अटौर्नी जनरल चुने जाने से पहले सैन फ्रांसिस्को की जिला अटौर्नी बनीं. वर्ष 2003 में उन की जिला अटौर्नी की दौड़ में उन्हें उस वर्ष शहर-व्यापी कार्यालय के लिए दौड़ने वाले किसी भी अन्य उम्मीदवार की तुलना में अधिक वोट मिले थे, जिस में उन्होंने 2 बार के मौजूदा उम्मीदवार को हराया था. हैरिस ने आज तक कभी भी आम चुनाव नहीं हारा है, जिस में 2017 में सीनेट का चुनाव भी शामिल है.

कैलिफोर्निया के औकलैंड में जन्मी उपराष्ट्रपति कमला हैरिस नागरिक अधिकार वकील एवं न्यायविद दिवंगत थरगुड मार्शल को अपना प्रेरणास्रोत मानती हैं और अपने जीवन पर नागरिक अधिकार आंदोलन से जुड़े रहे अपने मातापिता के प्रभाव का अकसर जिक्र करती हैं. लौसएंजिलिस के वकील डगलस एमहौफ कमला हैरिस के पति हैं.

उम्मीद जाहिर की जा रही है कि डैमोक्रेटिक पार्टी की तरफ से कमला हैरिस ही राष्ट्रपति पद की सब से प्रबल उम्मीदवार होंगी. हालांकि डैमोक्रेटिक उम्मीदवार बनने के प्रमुख दावेदारों में कमला हैरिस के अलावा जे बी प्रिट्जकर, ग्रेचेन व्हिटमोर, गेविल न्यूजौम और जोश शापिरो भी शामिल हैं.

इलिनोइस के गवर्नर जे बी प्रिट्जकर अमेरिका में पद पर आसीन सब से अमीर नेता हैं. वे ‘हयात होटल’ के उत्तराधिकारी, पूर्व निजी इक्विटी निवेशक और परोपकारी नेता के तौर पर जाने जाते हैं. उन की कुल संपत्ति 3.4 अरब अमेरिकी डौलर है. उन्हें ‘फ़ोर्ब्स 400’ की सब से अमीर अमेरिकियों की सूची में 250वें स्थान पर रखा गया. इस सूची में मिशिगन की गवर्नर ग्रेचेन व्हिटमोर भी शामिल हैं. वे राज्य विधायिका में डेढ़ दशक तक सेवाएं देने के बाद 2018 में गवर्नर पद के चुनाव में पहली बार जीत हासिल कर डैमोक्रेटिक पार्टी में तेजी से उभरीं. कैलिफोर्निया के गवर्नर गेविन न्यूजौम सैन फ्रांसिस्को के मूल निवासी हैं, जो 1995 में मेयर पद के लिए विली ब्राउन के प्रचार अभियान में स्वयंसेवक के तौर पर राजनीति में शामिल हुए थे.

मेयर ब्राउन ने 2 साल बाद न्यूजौम को सैन फ्रांसिस्को बोर्ड औफ़ सुपरवाइजर्स की एक खाली सीट पर नियुक्त किया और बाद में उन्हें इस सीट पर फिर किया गया. न्यूजौम ने बाद में मेयर पद का चुनाव जीता और 2004 में सैन फ्रांसिस्को क्लर्क को समलैंगिक जोड़ों को विवाह लाइसैंस जारी करने का निर्देश दे कर वे राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में आए. पेंसिल्वेनिया के गवर्नर जोश शापिरो को पार्टी का एक उभरता नेता माना जाता है. उन्होंने गवर्नर पद के चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप द्वारा समर्थित उम्मीदवार को करारी शिकस्त दी थी. वे अटौर्नी जनरल के तौर पर भी सेवाएं दे चुके हैं.

लेकिन इन सभी में कमला हैरिस दौड़ में सब से आगे नजर आ रही हैं. जो बाइडन के बाद रिपब्लिकन नेता डोनाल्ड ट्रंप को मात देने का माद्दा सब से ज्यादा कमला हैरिस में ही है. राष्ट्रपति जो बाइडन को बारबार अनेक मंचों से बूढ़ाबूढ़ा कह कर उन को अपमानित करने और उन का हौसला डिगाने की कोशिश करने वाले डोनाल्ड ट्रंप कमला हैरिस के संबंध में ऐसी बातें नहीं कर पाएंगे क्योंकि वे खुद 78 वर्ष के हैं और कमला की उम्र 59 वर्ष ही है. कहीं ऐसा न हो कि अब उन का दांव उन पर ही उलटा पड़ जाए.

गौरतलब है कि 20 जनवरी, 2021 को अमेरिका में डैमोक्रेट जो बाइडन के राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के साथ पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा पूरे सिस्टम को दक्षिणपंथी उग्र विचारधारा का गुलाम होने से बचा लिया था. एक बददिमाग, बड़बोले, दंभी और खुद को श्रेष्ठ समझने की खुशफहमी पालने वाले गोरे के हाथों बरबाद होने के बजाय देश की कमान जो बाइडेन के हाथों में सौंप कर अमेरिकी जनता ने बता दिया कि उस को शांति, प्रेम, सद्भावना और भाईचारे की ज्यादा जरूरत है. जो बाइडन ने अमेरिका की बागडोर बखूबी संभाली और उन के हर फैसले को उपराष्ट्रपति कमला हैरिस का समर्थन रहा.

बता दें कि जो बाइडन से पहले डोनाल्ड ट्रंप ने राष्ट्रपति रहते हुए अपने 4 साल के कार्यकाल में पूरे सिस्टम पर हावी होने और उस को अपने इशारे पर चलाने की भरसक कोशिश की. दुनिया के ताकतवर लोकतंत्र पर अपनी तानाशाही दिखाने का जनून इस कदर सिर चढ़ा कि जब 2021 के चुनाव हुए तो चुनाव हार जाने के बावजूद ट्रंप अपनी हार स्वीकार करने को तैयार नहीं हुए और लोकतांत्रिक तरीके से संपन्न हुए चुनाव पर धांधली के आरोप लगाते रहे. अपनी जीत मनवाने के लिए उन्होंने अदालतों पर हावी होने और उन को अपने पक्ष में करने की भी कोशिश की. ट्रंप ने जोरजबरदस्ती की. हठ दिखाया. यहां तक कि लोकतंत्रविरोधी तरीके से सत्ता हथियाने का नंगा नाच भी किया.

डोनाल्ड ट्रंप के चुनावप्रचार के घटियापन का आलम यह था कि वे लगातार अमानवीय, अलोकतांत्रिक तरीके से चुनावप्रचार करते हुए हर इलाके के श्वेत गुंडों को बढ़ावा देते रहे. इन्हीं श्वेत गुंडों की फ़ौज ने 6 जनवरी, 2021 को अमेरिकी संसद पर उस वक़्त हमला किया जब वहां इलैक्टोरल कालेज के वोटों की गिनती चल रही थी. डोनाल्ड ट्रंप के लिए शर्म की बात यह है कि जो बदमाश आए थे, वे वहीं व्हाइट हाउस के पास बने हुए डोनाल्ड ट्रंप के होटल में ही ठिकाना बनाए हुए थे. इस बात में कोई दो राय नहीं है कि डोनाल्ड ट्रंप ने दुनिया की नज़र में ही नहीं, बल्कि अमेरिका की बहुत बड़ी आबादी की नजर में भी अपनेआप को बहुत घटिया इंसान साबित कर लिया था. उन की इस करतूत से लोकतंत्र को गहरा झटका लगा था और उस का असर अब भी कायम है. डोनाल्ड ट्रंप के आह्वान पर हुए इस हमले ने अमेरिकी लोकतंत्र के इतिहास में हमेशा के लिए एक काला पन्ना जोड़ दिया.

जो बाइडन के सत्ता में आने से पहले डोनाल्ड ट्रंप ने राष्ट्रपति रहते अपने 4 साल के कार्यकाल में अमेरिकी समाज को श्वेतअश्वेत में बांटने का ही काम किया. हिंसा, उद्दंडता और सांप्रदायिकता को बढ़ावा दिया. उन के समर्थकों में ऐसे बहुत लोग हैं जो अमेरिका में श्वेत लोगों के आधिपत्य के समर्थक हैं. उल्लेखनीय है कि जब अमेरिका में मानवाधिकारों के आंदोलन ने जोर पकड़ा और ब्राउन बोर्ड औफ एजुकेशन द्वारा कानूनी लड़ाइयां लड़ने व ब्राउन के पक्ष में फैसला आने के बाद काले बच्चों को भी स्कूलों में दाखिला देना अनिवार्य कर दिया गया तो संयुक्त राज्य अमेरिका के दक्षिण के राज्यों में श्वेत अधिनायकवादियों के कई गिरोह बन गए थे. उन हथियारबंद बदमाशों के गिरोह को ‘क्लू क्लैक्स क्लान’ के नाम से जाना जाता है.

साठ के दशक में राष्ट्रपति केनेडी और उन के भाई बौब केनेडी ने मानवाधिकारों के लिए बहुत काम किया. तब अमेरिका में महिलाओं और काले लोगों के मताधिकार के कानून बने. उस के बाद क्लू क्लैक्स क्लैन वाले धीरेधीरे तिरोहित हो रहे थे, उन का जोर कम हो रहा था, लेकिन जब रिचर्ड निक्सन राष्ट्रपति चुनाव में रिपब्लिकन पार्टी की ओर से उम्मीदवार बने तो उन्होंने फिर इन क्लू क्लैक्स क्लैन के दबंगों को आगे किया और काले लोगों को औकात दिखाने के नाम पर चुनाव जीत लिया. रिचर्ड निक्सन का जो हश्र हुआ वह दुनिया को मालूम है. वे महाभियोग की चपेट में आए और अपमानित हो कर उन को गद्दी छोड़नी पड़ी. रिचर्ड निक्सन की तरह अमेरिका में एक बार फिर श्वेत अधिनायकवाद का सहारा ले कर डोनाल्ड ट्रंप चुनाव जीतना चाहते थे. उन्होंने अपने पूरे चुनावप्रचार के दौरान काले लोगों पर निशाना साधा और गोरों का ध्रुवीकरण अपने पक्ष में किया. चुनाव के दौरान वो पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के कार्यकाल की निंदा को अपना प्रमुख एजेंडा बनाए रहे और अश्वेत, अफ्रीकी-भारतीय-अमेरिकी कमला हैरिस के खिलाफ भी जहर उगलते रहे.

इस तरह की हिंसक गतिविधियों के जरिए सत्ता पर काबिज होने की चाहत बिलकुल वैसी है जैसी भारत में दक्षिणपंथी विचारधारा की भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेताओं की मनोवृत्ति है. लेकिन देश कोई भी हो, इस तरह की मनोवृत्ति को जनता आखिरकार नकार ही देती है. जनता अमूमन शांति और भाईचारे की समर्थक होती है, चाहे वह किसी भी देश की हो.

अयोध्या में राम मंदिर के प्राणप्रतिष्ठा के भव्य समारोह के बाद भारतीय जनता पार्टी ने लोकसभा चुनाव में ‘अबकी बार 400 पार’ का नारा दिया था. उस वक़्त पूरा देश ही नहीं, दुनिया भी यह मान रही थी कि मोदी हैं तो मुमकिन है और लोकसभा चुनाव में भाजपा 400 से ऊपर सीटें ला कर देश को न सिर्फ कांग्रेस मुक्त कर देगी बल्कि अन्य विपक्षी पार्टियों का भी कोई अस्तित्व नहीं बचेगा. पर 3 महीने भी पूरे नहीं हुए कि जनता ने भाजपा को आसमान से जमीन पर ला दिया. लोकसभा चुनाव का जब रिजल्ट आया तो जनता ने दक्षिणपंथी विचारधारा की भारतीय जनता पार्टी की उम्मीदों पर मनों घड़े पानी उंड़ेल दिया और उस की उछाल मारती आकांक्षाओं को इतने सीमित दायरे में बांध दिया कि उस की अपने बूते सरकार बनाने की कूवत भी नहीं बची.

फ्रांस के आम चुनाव में भी वामपंथी दलों के एलायंस को सब से ज्यादा सीटों पर जीत हासिल हुई है. फ्रांस के चुनाव से एक महीने पहले तक न्यू पॉपुलर फ्रंट (एनएफपी) नामक इस गठबंधन का कोई अस्तित्व नहीं था. चुनाव के ऐलान के बाद सब को चौंकाते हुए कई दलों ने साथ आ कर न्यू पौपुलर फ्रंट (एनएफपी) बनाया और इस एलायंस ने फ्रांस की संसद में सब से ज्यादा सीटें जीतीं.  इस चुनाव में एनएफपी ने राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के मध्यमार्गी गठबंधन को दूसरे और धुर दक्षिणपंथी को तीसरे स्थान पर धकेल दिया. फ़्रांस में एक हफ्ते में वामपंथ ने लोगों का दिल जीत लिया और सत्ता में आ गया. जाहिर है, दुनियाभर के लोग दक्षिणपंथी उग्र, आक्रामकता पूर्ण विचारों से दूर एक सभ्य और शांत वातावरण चाहते हैं.

मेरे पति की सरकारी नौकरी है पर वे मेरे मना करने के बाद भी लोगों से रिश्वत लेते हैं. मुझे क्या करना चाहिए?

सवाल –

मेरे पति सरकारी नौकरी करते हैं और वे कभीकभी लोगों का अटका हुआ सरकारी काम रिश्वत ले कर करवा देते हैं. मुझे बहुत डर लगता है कि कहीं किसी दिन रिश्वत लेने के कारण वे किसी मुसीबत में ना फंस जाएं. उन की सैलेरी अच्छी है और हमारा घर उन की सैलेरी से अच्छा चल जाता है तो जब मैं उन्हें यह सब करने से मना करती हूं तो वे मुझे यह कह कर चुप करवा देते हैं कि सरकारी काम में यह सब करना पड़ता है. मुझे समझ नहीं आता कि मुझे क्या करना चाहिए.

जवाब –

यह बात तो पक्की है कि आज के समय में बिना रिश्वत के कोई काम नहीं होता. हमारा सिस्टम बिना रिश्वत के चल ही नहीं सकता क्योंकि लोगों को रिश्वत लेनेदेने की ऐसी लत लग चुकी है कि बिना पैसे के कोई भी काम करा पाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन हो गया है.

हो सकता है आपके पति भी इस सिस्टम में मजबूर हों क्योंकि रिश्वत का पैसा केवल एक व्यक्ति के पास नहीं जाता बल्कि छोटे पोस्ट से लेकर बड़े पोस्ट पर बैठे हर व्यक्ति को रिश्वत का पैसा चाहिए होता है. जितनी बड़ी पोस्ट उतनी ज्यादा ज़रूरतें और उससे भी ज्यादा रिश्वत.

यह बात आपकी बहुत अच्छी है कि आप को यह पैसा बिल्कुल अच्छा नहीं लगता और आप चाहते हैं कि आप के पति रिश्वत लेना छोड़ दें पर ऐसा भी तो हो सकता है कि उन के ऊपर जो व्यक्ति हो उसके लिए उन्हें रिश्वत लेनी पड़ती हो या किसी के दबाव में आ कर वे रिश्वत लेते हों. अब इसे सही कहो या गलत लेकिन हमारा सिस्टम चलता ही ऐसे है.

आप उन्हें समझा सकते हैं कि वे सिर्फ मजबूरी में ही रिश्वत लेने वाले काम करें क्योंकि गलत तरीके से आया हुआ पैसा हर किसी को नहीं फलता. अगर आपको ज्यादा बुरा लगता है तो आप उन रिश्वत से आए पैसों से गरीबों की भूख मिटा सकती हैं और किसी की मदद के काम में लगा सकते हैं पर कोशिश कीजिए कि उन पैसों को जल्दी से जल्दी खर्च कर दें. बहुत पैसे होते हैं, तो कई बार व्यक्ति गलत संगति में भी पड़ जाता है. बेहतर होगा इस तरह की बुरी आदत से दूर रहें और अपने पति को भी इसके प्रति अलर्ट करती रहें. एक बात याद रखें कि मजबूरी में रिश्वत लेना तो ठीक है लेकिन अपने लालच को कभी भी मजबूरी पर हावी नहीं होने दें.

Monsoon Season : कम बजट में घूम आएं कोई एक दिलकश आईलैंड

मौनसून सीजन अपने साथ साथ लोगों के दिलों में एक नई ताज़गी और एक्साइटमेंट लेकर आता है. बारिश को देख अच्छे अच्छों का दिल ललचा जाता है और हर कोई सोचने पर मजबूर हो जाता है कि बारिश में क्यूं ना अपने फ्रेंड्स, पार्टनर या फिर अपनी फैमिली के साथ किसी अच्छी सी जगह घूमने का प्लैन किया जाएं. ऐसे में हम आपके लिए लेकर आए हैं 5 कमाल के आईलैंड जिसे आप मौनसून सीजन में विजिट कर अपने लाइफ के कुछ हसीन पल यादगार बना सकते हैं. तो चलिए हम आपको बताते हैं कि बारिश में आप कौन कौन से आईलैंड घूम सकते हैं जो कि बिल्कुल एफौरडेबल और मज़ेदार हैं.

वेतनाम (Vietnam)

वेतनाम के नज़ारों के तो क्या ही कहने. अगर आप किसी ऐसी जगह जाना चाहते हैं जहां आपको थोड़ा शांत माहौल मिल सके और आप अच्छे से रिलैक्स हो पाएं तो वेतनाम आपके लिए सकसे बेस्ट औप्शन है. वेतनाम साउथ ईस्ट एशिया का सबसे शांत और कम भीड़-भाड़ वाला इलाका है. मौनसून सीज़न में आप वेतनाम के कैफे, म्यूजियम्स, शानदार मंदिर और यहां तक की उनके हिस्टोरिक मौन्यूमेंट्स का भी मज़ा अठा सकते हैं. आप पूरा वेतनाम आराम से 4 से 5 दिन में कवर सकते हैं जिसका बजट 30 से 50 हज़ार रूपए तक हो सकता है जिसमें आपका होटल और ब्रेकफास्ट इक्लूडिड रहेगा.

गिली आईलैंड (Gili Island)

गिली आईलैंड इंडोनेशिया का सबसे बेस्ट आईलैंड माना जाता है. माउनटेंस के नज़ारों के बीच बना यह आईलैंड आपके लिए अब तक को सकसे बेस्ट एक्सीपिसयंस साबित हो सकता है. अगर आप मौनसून सीजन में स्वीमिंग और पानी का मजा उठाने और बेहतरीन नज़ारे देखने के शौकीन है तो गिली आईलैंड आपको बेहद पसंद आएगा. गिली आईलैंड पर बैठ आप अपने मनपसंद खाने का भी लुत्फ उठा सकते हैं. अगर आप एडवैंचर करने के शौकीन हैं तो गिली आईलैंड पर आप कई सारे वौटर स्पोर्ट्स और एडवैंचर एक्टिविटीज़ कर सकते हैं. गिली आइलैंड में आप 3 दिन आराम से रिलैक्स कर सकते हैं जिसके लिए आपको 40 से 50 हज़ार रूपए तक खर्च करने पड़ सकते हैं.

कोस्टा रीका (Costa-Rica)

कोस्टा रीका सेंट्रल अमेरीका का सबसे बेस्ट और सबसे शांत आईलैंड माना जाता है. यहां के ग्रीन फोरेस्ट को देख आप चाह कर भी इस जगह को कभी भूल नहीं पाएंगे. कोस्टा रीका जाने का सबसे बेस्ट समय मई से सेकर नवंबर तक है क्योंकि इसी बीच यहां बारिश का मौसम रहता है और इस मौसम में यहां की ग्रीनरी और बारिश अच्छे अच्छों को दीवाना बना देती है. कोस्टा रीका में आपको खर्च लगभग 30 से 40 हज़ार रूपए तक आ सकता है.

मैक्सिको (Mexico)

मैक्सिको नोर्थ अमेरिका की सबसे पौपुलर जगहों में से एक है. मैक्सिको का नाम आप सबने एक ना एक बार तो जरूर सुना होगा. मैक्सिको ने नज़ारों के बारे में क्या ही बात करें. मैक्सिको अपने म्यूज़ियम्स और हिस्टौरिक बिल्डिंग्स के लिए जाना जाता है. बारिश के समय मैक्सिको में करने के लिए बहुत ही सीज़े हैं. बारिश के मौसम में आप मैक्सिको में लौंग ड्राइव एक्सपीरियंस कर सकते हैं जिससे कि आप मैक्सिको के माइंड ब्लोइंग व्यूज़ का मज़ा ले सकते हैं. मैक्सिको के मौनसून सीजन का मज़ा लेने के लिए सबसे अच्छा समय मई से अक्टूबर तक है. मैक्सिको में आप 3-4 दिन रुक सकते हैं जिसमें आपका खर्च 50 से 70 हज़ार रूपए तक आ सकता है जिसमें आपका होटल और ब्रेकफास्ट इन्कलूडिड रहेगा.

कैनेरी आईलैंड (Canary Island)

कैनेरी आईलैंड स्पेन का बेहद ही खूबसूरत और बजट-फ्रेंडली आईलैंड है. कैनेरी आईलैंड का हसीन मौसम किसी को भी दीवाना बना सकता है. कैनेरी आईलैंड बहुत ही एफौरडेबल आईलैंड है और यहां आप कार रेंट पर ले कर घूम सकते हैं जिसका रेंट साधारण 7 यूरो प्रतीदिन के आसपास है. यहां पहाड़ों पर बने गांव और बीच के नज़ारे बहुत ही पौपुलर है. स्पेन की ब्यूटी अपने आप में ही काफी चर्चित रही है तो स्पेन के इस खूबसूरत आईलैंड पर आपको जरूर जाना चाहिए. कैनेरी आईलैंड में आप 40 से 50 हज़ार के अंदर अच्छे से एंजौय कर सकते हैं जिसमें आपके वौटर स्पोर्टस और होटल्स भी इंकलूडिड रहेंगे.

और भी हैं नोट छापने की मशीनें

कुदरतउल्लाह ऐसा आदमी था, जिसे कहीं भी पहचाना जा सकता था. लंबे कद और दुबलेपतले शरीर वाले कुदरतउल्लाह की आंखें छोटीछोटी थीं और गालों की हड्डियां उभरी हुईं. उन उभरी हड्डियों के बीच में एक काला मस्सा था, जो किसी तालाब के टापू की तरह उभरा था, लेकिन माथा काफी ऊंचा था. उस की गरदन काफी छोटी, जो लंबे कद पर बड़ी विचित्र लगती थी.

चपटी नाक के नीचे घनी मूछों की वजह से उस का चेहरा आम चेहरों से अलग लगता था. वह हुलिया भी ऐसा बनाए रहता था कि दूर से पहचान में आ जाता था. कुल मिला कर उस का डीलडौल ऐसा था कि उस से मिलने आने वालों को उस के बारे में किसी से पूछने की जरूरत नहीं पड़ती थी. निसार चौधरी भी बिना किसी से कुछ पूछे उस के पास जा पहुंचे थे. कुदरतउल्लाह ने उन्हें नीचे से ऊपर तक देखते हुए पूछा, ‘‘आप की तारीफ?’’

‘‘मुझे निसार चौधरी कहते हैं.’’ निसार ने बिना इजाजत लिए सामने रखी कुरसी खींच कर बैठते हुए कहा, ‘‘आप के बारे में मुझे सब पता है. फरजंद अली ने मुझे सब बता दिया था.’’

‘‘मैं भी आप का ही इंतजार कर रहा था.’’ कुदरतउल्लाह ने अपने पतले होंठों पर मुसकराहट सजाने की नाकाम कोशिश करते हुए कहा, ‘‘फरजंद अली ने मुझे भी आप के बारे में सब बता दिया था.’’

‘‘इधरउधर की बातों में समय बेकार करने के बजाए सीधे काम की बात करनी चाहिए,’’ निसार ने कुदरतउल्लाह से चाय मंगाने का इशारा करते हुए कहा, ‘‘मुझे इस कारोबार में आए अभी 2 साल ही हुए हैं. वैसे तो मेरे पास अभी 4 मशीनें हैं, लेकिन उन में एक ही मशीन ऐसी है, जो ठीकठाक प्रोडेक्शन देती है. मैं ने यह बात फरजंद अली से कही तो उन्होंने आप के बारे में बताया कि आप के यहां तैयार मशीनें और कारखाने में तैयार मशीनों से अच्छा काम करती हैं.’’

‘‘मुझे जानने वालों का यही खयाल है.’’ कुदरतउल्लाह ने कहा, ‘‘इस समय मेरे पास 3 मशीनें हैं, जिन्हें मैं एक साथ बेचना चाहता हूं. जो आदमी तीनों मशीनें एक साथ खरीदेगा मैं उसी को बेचूंगा.’’

‘‘ऐसा क्यों?’’ निसार ने हैरानी से कहा, ‘‘भई मुझे तो 2 ही मशीनें चाहिए.’’

‘‘बाकी बची एक मशीन का मैं क्या करूंगा? दरअसल मैं अपना कारखाना कहीं और शिफ्ट करना चाहता हूं.’’

‘‘क्यों…? लोग बाहर से आ कर यहां कारखाने लगाते हैं और आप यह शहर छोड़ कर कहीं और जा रहे हो. मशीनें तैयार करने के लिए यहां जैसा कच्चा माल शायद कहीं और नहीं मिलेगा?’’

‘‘कच्चा माल तो वाकई यहां बड़ी आसानी से और सस्ता मिल जाता है, लेकिन यहां के कच्चे माल से तैयार की गई मशीनें जल्दी बिकती नहीं. लोग इन्हें कम ही खरीदते हैं. वजह शायद यह है कि यहां की मशीनें उन के दिल में नहीं उतरतीं.’’

‘‘खैर, यह लंबी बहस का विषय है,’’ निसार ने कहा, ‘‘चूंकि मैं पहली बार आप के यहां आया हूं, इसलिए मुझे मालूम नहीं कि आप की मशीनों की कीमत क्या है. अगर आप बताए तो…’’

‘‘कीमत मशीन के हिसाब से होती हैं. इस समय मेरे पास जो मशीनें हैं, उन में से केवल एक 20 हजार रुपए की है, बाकी की 2 मशीनें 50-50 हजार की हैं.’’

‘‘कीमत कुछ ज्यादा नहीं हैं?’’

‘‘ज्यादा नहीं हैं भाई, मैं बहुत कम बता रहा हूं.’’

‘‘इतनी रकम वसूलने में ही सालों लग जाएंगे. उस के बाद फायदे का नंबर आएगा.’’ निसार ने कहा, ‘‘मेरे पास जो मशीनें हैं, वे 10-15 हजार से ज्यादा की नहीं हैं.’’

‘‘इसीलिए तुम ऐसी बात कर रहे हो,’’ कुदरतउल्लाह ने कहा, ‘‘मेरी मशीनें ऐसी हैं, जिन के प्रोडेक्शन पर लोग गर्व करते हैं. 3-4 महीने में ही लाभ देने लगती हैं. मेरे साथ जो कारीगर काम करते हैं, उन्हें मेरी मशीनों का बहुत अच्छा अनुभव है.’’

‘‘मैं ने यह तो नहीं कहा कि तुम्हारी मशीनें फायदा नहीं देंगी.’’ निसार ने दबे लहजे में कहा, ‘‘लेकिन मेरे पास उतनी रकम नहीं हैं, जितनी तुम मांग रहे हो. तीनों मशीनों की कीमत एक लाख 20 हजार रुपए होती है ऊपर से आप तीनों मशीनें एक साथ बेचना चाहते हैं.’’

‘‘इस कारोबार में उधार बिलकुल नहीं चलता. वैसे भी मैं यह शहर ही छोड़ कर जा रहा हूं, इसलिए पैसे भी नकद चाहिए.’’

‘‘क्या तुम मुझे मशीनें दिखा सकते हो?’’

‘‘कारखानों में ले जा कर दिखाना तो मुश्किल है, क्योंकि कारखाना दिखाना हमारे उसूल के खिलाफ है.’’ कुदरतउल्लाह ने कहा, ‘‘मेरे पास मशीनों की तसवीरें हैं, उन्हें देख कर आप को अंदाजा हो जाएगा कि मेरे कारीगरों ने इन पर कितनी मेहनत की हैं.’’

निसार चौधरी कुदरतउल्लाह से तसवीरें ले कर एक एक कर के ध्यान से देखने लगा. वाकई उन मशीनों को तैयार करने में काफी मेहनत की गई थी. निसार ने तसवीरों को उस की ओर बढ़ाते हुए कहा, ‘‘ऐसा नहीं हो सकता कि अभी आप मुझ से 70 हजार रुपए ले लें और बाकी की रकम बाद में.’’

‘‘मेरी एक बात मानोगे?’’ कुदरतउल्लाह ने कहा.

‘‘एक नहीं, आप की 10 बातें मानूंगा.’’ निसार ने खुशदिली से कहा.

‘‘फरजंद अली आप का दोस्त है न?’’

‘‘हां, मेरे उन से बहुत अच्छे संबंध हैं.’’

‘‘तो ऐसा करो कि उधार करने के बजाए बाकी रकम उस से उधार ले कर दे दो.’’

‘‘भाई साहब, वह ऐसे ही रुपए नहीं देता, मोटा ब्याज लेता है. जबकि मैं ब्याज पर रकम ले कर कारोबार करना ठीक नहीं समझता. क्योंकि जो कमाई होगी, वह ब्याज अदा करने में ही चली जाएगी.’’

‘‘फिर तो आप का आना बेकार गया,’’ कुदरतउल्लाह ने कहा.

निसार चौधरी उठने ही वाले थे कि उस ने कुछ सोचते हुए कहा, ‘‘अच्छा, आप एक काम करो, 30 हजार रुपए का इंतजाम कर के एक लाख रुपए में सौदा कर लो. उस के बाद मुझे बता दो कि मशीनें कहां पहुंचानी है.’’

‘‘ठीक है कोशिश करता हूं. इस वक्त मेरे पास 50 हजार रुपए हैं, इन्हें रख लीजिए.’’ निसार ने 5 सौ रुपए की एक गड्डी निकाल कर कुदरतउल्लाह की ओर बढ़ाते हुए कहा, ‘‘बाकी रुपए मैं कल पहुंचा दूंगा.’’

‘‘आप शायद मेरी मजबूरी का फायदा उठाने की कोशिश कर रहे हैं?’’ कुदरतउल्लाह ने गड्डी जेब में रखते हुए कहा, ‘‘वैसे मशीनें कहां पहुंचानी होंगी?’’

‘‘बंदर रोड पर त्रिभुवनलाल जगमल का जो बोर्ड लगा है, उस के सामने वाली गली में मशीनें पहुंचानी हैं.’’ निसार ने कहा, ‘‘बाकी पैसे भी मैं वहीं दे दूंगा.’’

‘‘मशीनें कल रात 11 बजे पहुंच जाएंगी. लेकिन रुपए आप को दिन में देने होंगे. दोटांकी के पास एक शानदार कैफे है. कल दोपहर को मैं वहां पहुंच जाऊंगा. वहीं आ जाना.’’

‘‘क्या आप को मुझ पर विश्वास नहीं है.’’

‘‘यहां विश्वास की बात नहीं है. कारोबार के अपने नियम होते हैं. हमारा कारोबार परचून की दुकान नहीं है कि बेच कर पैसे अदा कर दोगे. इस कारोबार में लेनदेन का अपना अलग नियम है.’’ कुदरतउल्लाह ने एकएक शब्द पर जोर दे कर कहा, ‘‘अभी आप की मशीनें कहां लगी हैं?’’

‘‘मेरी मशीनें अच्छी जगहों पर लगी हैं. बड़ी मुश्किल से उन जगहों को मैं ने पगड़ी की मोटी रकम दे कर हासिल किया था. मुंबई में आजकल जगह की बड़ी कमी है. लोगों ने पहले से ही अच्छी जगहों पर कब्जा जमा रखा है.’’

‘‘मेरे पास अपनी एक जगह भी है, अगर आप वहां अपनी मशीन लगाना चाहें तो…?’’

‘‘उस जगह के भी आप मुंहमांगे दाम लेंगे?’’

‘‘नहीं, ऐसी बात नहीं है,’’ कुदरतउल्लाह ने मुसकराने की कोशिश करते हुए कहा, ‘‘अगर आप चाहें तो मैं उसे किराए पर भी दे सकता हूं. किराया आप मेरे घर पहुंचा दिया करना.’’

‘‘जगह की बात मैं अभी नहीं कर सकता. इस बारे में फरजंद अली से मेरी बात चल रही है. उस के पास भी अच्छी…’’

‘‘अगर फरजंद अली से आप की बात चल रही है तो ठीक है.’’ कुदरतउल्लाह ने निसार की बात काटते हुए कहा, ‘‘चलो, अब चला जाए. सौदा तय हो ही गया है.’’

दोनों कमरे से बाहर आए तो उन का स्वागत ट्रैफिक के शोर ने किया. वे दोनों फुटपाथ पर आ कर खडे हो गए. निसार ने कहा, ‘‘आप  कहां से बस पकड़ोगे?’’

‘‘मुझे तो उस सामने के चौराहे से बस मिल जाएगी.’’ कुदरतउल्लाह ने सामने इशारा करते हुए कहा, ‘‘और आप को?’’

‘‘चलिए पहले आप को बस पर बैठा दूं.’’

‘‘इस की कोई जरूरत नहीं है. मैं चला जाऊंगा.’’ कुदरतउल्लाह ने लालबत्ती की ओर देखते हुए कहा.

‘‘इंसानियत के भी कुछ फर्ज होते हैं जनाब,’’ निसार चौधरी ने गंभीरता से कहा.

फुटपाथ के दाईं ओर एक पतली सी गली के नुक्कड़ पर एक जूस की दुकान के जगमग करते बोर्ड के पास वाले खंभे पर पोलियो से सुरक्षित रखने के संदेश वाला बोर्ड टंगा था. कुदरतउल्लाह उसे ध्यान से पढ़ने लगा, इसलिए उस ने निसार को जवाब में कुछ नहीं कहा. दोनों खामोशी से आगे बढ़ने लगे. जैसे ही वे चौराहे पर पहुंचे तो मसजिद में अजान की आवाज सुनाई दी.

‘‘मेरा खयाल है, कहीं आसपास ही मसजिद है?’’ कुदरतउल्लाह ने निसार की ओर देखते हुए कहा.

‘‘हम लोग जहां जा रहे हैं, उसी चौराहे के दाईं ओर मसजिद है.’’

‘‘तो पहले वहीं चलें…’’

तभी दर्द में डूबी एक आवाज सुनाई दी, ‘‘अल्लाह के नाम पर कुछ दे दे बाबा.’’

‘‘चलो हरी बत्ती हो गई है.’’ चौधरी ने आगे बढ़ते हुए कहा तो कुदरतउल्लाह का ध्यान भंग हुआ.

कुदरतउल्लाह रुक गया. उस के सामने थोड़ी दूर पर 10-11 साल का एक लड़का चौराहे के कोने में गंदे से कपड़े पर लेटा था. उस के दोनों पैर घुटनों से नीचे लकड़ी की तरह सूखे हुए थे. बायां हाथ भी लकड़ी जैसा हो गया था.

उस मासूम का ऊपरी होंठ आधे से अधिक कटा हुआ था, जिस से उस के पीलेपीले दांत नजर आ रहे थे. उस की एक आंख का पपोटा कटा हुआ था, जिस से उस की आंख बड़े भयानक अंदाज में बाहर निकली हुई थी. उसे देख कर घृणा और दया के भाव गड्डमड्ड हो रहे थे.

कुदरतउल्लाह ने उस लड़के की ओर अंगुली से इशारा करते हुए कहा, ‘‘इसे देख रहे हो चौधरी?’’

‘‘हां हां, देख रहा हूं.’’

‘‘यह मेरे कारखाने की तैयार की हुई मशीन हैं.’’ कुदरतउल्लाह ने गर्व से सीना फुलाते हुए कहा, ‘‘यह मशीन पिछले साल मैं ने ही फरजंद अली को बेची थी. यह सुबह से देर रात तक बड़ी आसानी से हजार 2 हजार रुपए छाप लेती है. तुम्हें जो 2 मशीन दे रहा हूं वे भी इस मशीन से किसी भी तरह कम नहीं हैं. अगर तुम उन्हें अच्छी जगह फिट कर दोगे तो वे भी इसी तरह नोट छापेंगी.’’

फेसबुकिया प्यार

आज लाइफ भी फास्ट फूड जैसी बनती जा रही है. इंतजार, मेहनत और सब्र जैसे कहीं गायब होते चले जा रहे हैं. प्रेम भी फास्ट फूड जैसा होता जा रहा है. कहीं किसी किताब में रखा बरसों पुराना सूखा गुलाब, किसी उपन्यास के पन्ने पर सूख चुके आंसुओं के निशान कहीं उस पल को, उस लमहे को न तो पुराना होने देते हैं न ही भूलने देते हैं. कितने खुशनुमा पल होते होंगे वे जब अलसाई दोपहर में किसी की यादों में खोए समय को जीना, किसी घने वृक्ष की छाया में लेटेलेटे बादलों की मदहोशी में अपने को मदहोश कर लेना कितना अच्छा लगता है. नजदीक से ही चिडि़या का फुर्र से उड़ जाना कितना प्यारा एहसास होता है.

फिल्म ‘परदेश’ की नायिका नायक शाहरुख खान से कहती है कि मुझे ऐसा प्यार चाहिए जैसा तुम करते हो. शाहरुख कहता है कि मुझे भी ऐसा ही प्यार चाहिए जिस में शरारत हो, भोलापन हो, मस्ती हो, लेकिन उस में लालच और बनावट न हो. दिखावा, महंगे कपड़े, लिपेपुते चेहरे वाली युवतियां जो कपड़ों की तरह प्रेमी बदलती हैं, जिन के लिए प्रेम एक अराधना हो, एक तड़प हो, एक प्यास हो, एक मीठी कसक हो, एक नाजुक सा समर्पण हो. लेकिन कब तक इंतजार करूं, कहां हो तुम जिस की तलाश है मुझे. मेरे वे सब सपने अधूरे हैं. मैं उन सब सपनों में रंग भरना चाहता हूं.

यात्रा तो मैं ने फिरोजपुर जनता ऐक्सप्रैस से शुरू की थी, बोरीवली और बांद्रा तक, पर फिर तो लोकल ट्रेन से ही मेरा सफर पूरा हुआ.

चर्चगेट से बांद्रा और बोरीवली आतेजाते सफर का आनंद तो न जाने कहां उड़न छू हो गया, बस एक रूटीन सा बनता चला गया. ये सब मेरे जौब लगने के बाद हुआ, उस के पहले ऐसा नहीं था. बांद्रा में मेरा घर है. जब शुरुआती दिन थे तो बड़ा मजा आता था, कभी लोकल ट्रेन में जगह मिल जाती थी तो कभी खड़े हो कर ही सफर पूरा करना पड़ता था. लोकल ट्रेन में युवतियों को घूरने का अपना ही आनंद होता है.

कभीकभी ऐसे वाकेए होते थे, लगता था अफेयर हो रहा है, पर फिर टांयटांय फिस्स. युवती कहीं और बुक है, उस की कहीं और सैटिंग है, इसलिए समझ में नहीं आता कि यह पता कैसे चले कि युवती का कोई लवर नहीं है. बौयफ्रैंड और गर्लफ्रैंड वाली परिपाटी मेरी तो समझ में नहीं आती. इस में लव कहां से टपक पड़ा?

ऐसा ही एक वाकेआ है. एक युवती मुझे हमेशा टकराती थी. मुझे भी हर दिन जब वह नहीं दिखती थी तो उस का इंतजार रहता था. ऐसा कई बार हुआ कि वह नहीं मिली तो मैं दूसरे दिन उस का इंतजार करता रहा.

जब वह मिलती तो एकटक हम दोनों एकदूसरे को देखते रहते. मेरे व्हाट्सऐप पर भी सैकड़ों फ्रैंड थे. बीचबीच में उस युवती से ध्यान हटा कर मैं व्हाट्सऐप पर आए मैसेज पढ़ने में बिजी हो जाता, फिर मैसेज पढ़ने के बाद उस युवती की तरफ ध्यान देता, तो पाता कि वह भी अपने मोबाइल पर बिजी है. मोबाइल पर उस की उंगलियां बड़ी तेजी से चल रही हैं.

यही तो रोना है, वाट लगा दी फेसबुक और व्हाट्सऐप ने. समझ नहीं आता किस के व्हाट्सऐप पर कितने फ्रैंड्स हैं. कितनी देर और कबकब चैटिंग हो रही है. मेरे एक फ्रैंड ने बताया कि उस के 2 हजार फ्रैंड्स हैं. मैं ने बड़े आश्चर्य से उसे देखा और पूछा, ‘‘2 हजार?’’

‘‘हां, 2 हजार, फ्रैंड्स,‘‘ उस ने बड़े गर्व से बताया.’’

मैं ने उस से पूछा, ‘‘2 हजार में से मुलाकात कितनों से होती है?’’

‘‘मुलाकात, कैसी मुलाकात? लाइक करो, शेयर करो, कमैंट्स करो, हो गई मुलाकात. यदि कोई पसंद नहीं है तो उसे डिलीट कर दो या फिर ब्लौक कर दो,’’ कह कर वह जोरजोर से हंसने लगा.

मुझे आज अपने उस दोस्त की याद आई और मैं सोचने लगा कि यह युवती भी या तो मैसेज कर रही है या फिर मैसेज पढ़ कर डिलीट मार रही होगी. मैं भी तो ऐसा ही करता हूं न. आज के युग में, आज के समय के साथ चल रहा हूं, फिर यह दिमागी टैंशन क्यों? क्या चाहता हूं मैं, समझ नहीं आता?

यह दोस्ती यानी फ्रैंडशिप भी क्या चीज हो गई है लाइक करते रहो, कमैंट्स करते रहो, शेयर करो, कभीकभार कोई पट जाए तो फ्रैंडशिप, मिलने के लिए गोते लगाते रहो. कहीं मुलाकात हो गई तो ठीक है नहीं तो डिलीट मारते रहो. इंटरनैट की फ्रैंडशिप फ्रैंडशिप नहीं बल्कि भाजीतरकारी खरीदनेबेचने जैसी हो गई है.

हां, तो मैं बता रहा था कि कभी तो वह युवती बिजी मिलती और कभी मैं बिजी हो जाता. हम दोनों उड़ती नजर एकदूसरे पर डालते और दोनों चर्चगेट पर उतर कर अपनीअपनी राह पकड़ लेते. ये सब तब होता जब लोकल ट्रेन में जगह मिल जाती अन्यथा खड़ेखड़े ही सफर करना पड़ता.

एक दिन मैं हमेशा की तरह लोकल टे्रन में चढ़ा ही था कि मेरी नजरें कहीं कोई टिकने की जगह तलाश रही थीं. दूर तक नजर डाली, लेकिन कहीं कोई चांस नहीं दिखा. नजर जैसे ही नजदीक वाली सीट पर पड़ी वही युवती सीट पर विराजमान थी. मैं ने उसे रिक्वैस्ट भरी नजरों से देखा. एक मधुर मुसकराहट से उस की तरफ देखा. उस ने उस रिक्वैस्ट का सम्मान करते हुए मुझे आंखों से इशारा किया और थोड़ी सी जगह बना दी. अंधा क्या चाहे दो आंखें. मैं तुरंत जा कर उस के साथ बैठ गया.

लोकल ट्रेन ने अपनी स्पीड पकड़ी. मैं ने उस युवती से बातों का सिलसिला जारी रखने की कोशिश में अपना मोबाइल निकाला और बिजी दिखाने की कोशिश करने लगा, लेकिन मुझे लग रहा था कि जैसे शरीर में कान उग आए हों. आखिर मैं ने ही बात शुरू की.

‘‘आप चर्चगेट तक जाएंगी?’’ मैं ने थोड़ा फ्रैंडली होने की कोशिश की.

‘‘हां, चर्चगेट तक. लगभग रोज ही देखते हैं आप,’’ युवती मुसकराते हुए बोली.

‘‘आप?’’ युवती ने सवाल किया.

‘‘चर्चगेट, जौब है वहां,’’ मैं ने अपने हाथ की खूबसूरत घड़ी देखते हुए कहा. इतनी देर में उस के मोबाइल पर लगातार कई मैसेज आ गए और मेरी बातें बीच में ही छोड़ कर वह फोन पर मैसेज देखने में बिजी हो गई.

मैं ने भी अपना मोबाइल निकाला और व्हाट्सऐप में बिजी हो गया. इतनी देर में चर्चगेट आ गया. हम दोनों वहीं उतर गए. उतरतेउतरते मैं ने उस से पूछा, ‘‘आप का नाम?’’

‘‘नीरा,’’ जवाब मिला. फिर वह भीड़ में कहीं गुम हो गई. मेरे नाम में उसे इंट्रैस्ट नहीं था शायद.

कुछ दिन बाद फिर वह मुझे मिली. मैं ने उस से पूछा, ‘‘नीराजी आप, इतने दिन बाद?’’

‘‘नहीं, मैं रैगुलर आ रही हूं,’’ फिर वह पर्स से छोटा सा आईना निकाल कर अपनी लिपस्टिक ठीक करने लगी.

‘‘अरे, मैं ने आप का नाम तो पूछा ही नहीं.’’

‘‘जितेंद्र.’’

‘‘ओह… उस ने अपने होंठों को गोल घुमाया. अगर मैं आप को जीतू कहूं तो,’’ नीरा ने मस्ती भरे स्वर में कहा.

‘‘और मैं आप को नीरू…’’ मैं कहां पीछे हटने वाला था.

‘‘ओके जीतू.’’

‘‘ओके नीरू.’’

फिर क्या था. हमारी मुलाकात लोकल ट्रेन में रोज होने लगी.

हम दोनों अकसर अब शाम को जौब से लौटने के बाद चर्चगेट पर एकदूसरे का इंतजार करने लगे. वहां से साथसाथ ही वापसी के लिए लोकल ट्रेन में बैठते. वह बोरीवली उतरती और मैं दादर.

मुझे एहसास होने लगा था कि मैं उसे चाहने लगा हूं, लेकिन वह भी मुझे चाहती है या नहीं यह कैसे पता चले? इसी कशमकश में रोज उस के साथ बंधता चला जा रहा था. कभीकभी चर्चगेट पर हम दोनों किसी रेस्तरां में जा कर स्नैक्स, कौफी व आइसक्रीम जम कर ऐंजौय करते.

मुझे वह अब अच्छी लगने लगी थी. उस का व्यवहार देख कर मुझे लगता कि वह भी मुझे चाहती है. उस का जीतूजीतू कह कर बोलने का अंदाज मुझे भाने लगा था, लेकिन कभीकभी बीच में बातों के दौरान जब वह व्हाट्सऐप पर बिजी हो जाती, तब मैं खुद को ठगा सा महसूस करता. लगता था कि जैसे जबरदस्ती आ गया हूं, लेकिन मैं कर भी क्या सकता था.

अकसर लोकल ट्रेन में मुझे एक युवती इधरउधर घूमती दिखती थी. उस के बिखरे बाल, कुछकुछ फटेपुराने कपड़े. हम लोग अकसर हर फ्राइडे को नाश्तापार्टी करते थे तो वह युवती भी हमारे आसपास मंडराने लगती थी. हम उसे भी नाश्ता करवा देते थे, तो वह बहुत खुश हो जाती थी.

उस के कपड़े व हावभाव देख कर उस के पागल होने का भ्रम होता था, इसलिए मैं ने उस का नाम ही बावली रख दिया था. उस की बड़ीबड़ी काली आंखें जो अकसर खोईखोई रहती थीं. मासूमियत से भरा सांवला चेहरा, चेहरे पर बालसुलभ चंचलता, उम्र होगी यही कोई 24-25 वर्ष.

पकौडि़यों की सुगंध हो या समोसे की, बावली समोसे और पकौडि़यां ले कर खुश हो कर चली जाती. बावली का ध्यान एक फेरी वाला रखता था, जो अकसर लोकल ट्रेन में बावली के पीछेपीछे घूमता रहता था. उस फेरी वाले को देखते ही बावली खुश हो जाती थी.

खुशी के मारे उस के अंगअंग में बिजली सी दौड़ने लगती थी. खुशी के जो भाव उस की आंखों में देखने को मिलते थे. उन में एक जनून सा दिखता था. एक प्रेम करने वाले की आंखों में ही ऐसा जनून होता है, क्या बावली फेरी वाले से प्रेम करती है?

वह जनून, वह नशा, मुझे कब मिलेगा? प्रेम के इस बावलेपन का न जाने कब से मैं इंतजार कर रहा हूं. क्या पता नीरू मुझे इस बावलेपन के साथ चाहने लगे? यह सोच कर मैं ने सामने बैठी नीरू को देखा पर वह व्हाट्सऐप पर बिजी थी. मैं ने अपनी नजरें फेर लीं.

चर्चगेट आने का अनाउंसमैंट हो चुका था. मैं अपना बैग लिए गेट पर आ गया था. मैं ने देखा कि नीरू भी ठीक मेरे साथ ही आ कर खड़ी हो गई थी.

चर्चगेट आते ही हम दोनों उतर पड़े.

‘‘ओके जीतू, अभी अपनेअपने औफिस चलते हैं शाम को यहीं मिलेंगे.’’

‘‘ओके नीरू,’’ मैं ने कहा.

‘‘बायबाय,’’ कहती हुई नीरू अपनी मंजिल की तरफ चली गई और मैं अपनी मंजिल की तरफ. चलतेचलते मैं सोच रहा था कि अच्छा सा मौका देख कर नीरू को अपने प्यार का इजहार कर ही दूंगा, लेकिन कब? कल शाम को. औफिस के बाद मेरिन ड्राइव का प्रोग्राम बनाता हूं.

औफिस पहुंच कर टेबल पर फैली डाक को समेटा, फिर कंप्यूटर खोल कर ईमेल चैक करने लगा, लेकिन मन था कि नीरू की तरफ ही दौड़ कर पहुंच रहा था. काम में मन नहीं लग रहा था, रहरह कर मन उचट रहा था. जैसेतैसे शाम हुई, मैं ने नीरू को मैसेज किया, ‘‘कल शाम को डिनर हम साथ करेंगे और मेरिन ड्राइव भी चलेंगे.’’

‘‘ओके जीतू,’’ नीरू की स्वीकृति आ गई.

वापसी में नीरू नहीं दिखाई दी. मैं ने उस का इंतजार भी किया, जहां वह अकसर मिलती थी, लेकिन जब वह दिखी नहीं तो मैं लोकल ट्रेन में बैठ गया और सोचने लगा कि हो सकता है वह निकल गई हो या देर से आए. कुछ सोच कर मैं ने मैसेज किया कि तुम कहां पर हो?

‘‘ओह… सौरी जीतू मैं तो घर आ गई.‘‘ नीरू का कुछ देर बाद जवाब आ गया.

‘‘क्या तुम औफिस से जल्दी निकल गई थी?’’ मैं ने मैसेज किया.

‘‘ हां. मेरा एक फं्रैड आ गया था, उस के साथ मैं मौल गई थी और फिर घर आ गई. डौंटवरी हम कल मेरिन ड्राइव पर मिलेंगे. बायबाय,’’ नीरू का मैसेज आ गया.

‘‘ओके नीरू,’’ मैं ने मैसेज पढ़ कर जवाब दे दिया.

फिर वही रूटीन, दूसरे दिन मैं लोकल ट्रेन में खड़ा हो गया, बैठने तक की कहीं जगह नहीं मिली. इसलिए व्हाट्सऐप वगैरा भी देख नहीं पाया. सिर्फ खयालों में वही लोकल ट्रेन में घूमने वाली बावली आ रही थी, उस की आंखों में छाया प्यार का जनून क्या कभी मुझे नसीब होगा. जब कहीं सचाई होती है तो शरीर के पोरपोर से टपकने लगती है. आंखों में उस प्रेम का नशा हमेशा बना रहता है, व्यक्ति भीड़ में भी खुद को अकेला महसूस करता है. वह खोयाखोया रहता है.

आज कहीं बावली दिखी भी नहीं, लेकिन नीरू में रहरह कर मुझे वह बावली दिखने लगती. खयालों के इसी भंवर में उलझताउलझता मैं औफिस पहुंच गया. फाइलों के हर पेज पर मुझे नीरू और बावली की शक्ल दिखती. कभीकभी दोनों चेहरे एक होने लगते तो कभी अलगअलग. कंप्यूटर पर भी मुझे नीरू और बावली  की ही शक्लें दिखतीं. जैसेजैसे शाम नजदीक आ रही थी मेरे दिल की धड़कनों का ग्राफ बढ़ता जा रहा था.

जैसे ही ड्यूटी का समय खत्म होने को आया, मैं ने मैसेज छोड़ दिया, ‘‘नीरू, कहां हो तुम?’’

‘‘मैं चर्चगेट पर हूं,’’ नीरू का मैसेज आया.

फिर क्या था मैं ने जल्दीजल्दी अपने बालों को ठीक किया और चर्चगेट की तरफ चल दिया.

ठीक 10 मिनट बाद मैं नीरू के सामने था. हम दोनों ने एकदूसरे को देखा और टैक्सीस्टैंड की तरफ बढ़ गए. कुछ समय बाद हमारी टैक्सी मैरिन ड्राइव की तरफ जा रही थी. मैं हसरत भरी नजरों से नीरू की तरफ देखने लगा. नीरू ने आज पिंकग्रीन कलर का सूट पहना था. ग्रीन लैगिंग्स, पिंक शौर्ट स्लीवलैस कुरती और ग्रीन दुपट्टा गले में मफलर की तरह लपेट रखा था. कुरती में शरीर के अंदर की झलक साफसाफ दिख रही थी. मैं ने नजरें फेर लीं. मुझे आधुनिक ड्रैस पसंद है, लेकिन भोंड़ापन मैं सहन नहीं कर पाता. जब अफेयर है तो भोंड़ापन चलेगा.

मैरिन ड्राइव पर भीड़ उस दिन बाकी दिनों की अपेक्षा कुछ ज्यादा ही थी, लेकिन मुंबईवासियों के लिए यह आम बात है. हम ने अपनी जगह निश्चित की. हमारे सामने विशाल समुद्र अपनी ताकत पर गुमान करता हुआ हिलौरे भर रहा था. हम दोनों उस शोर में अपनी दोस्ती को प्रेम का रूप देने वाले थे.

समझ में नहीं आ रहा था कि मैं बात कहां से शुरू करूं. इतने में नीरू के मोबाइल पर मैसेज की लाइन लग गई और वह व्हाट्सऐप में बिजी हो गई. मैं ने भी अपना मोबाइल निकाला और फेसबुक देखने लगा, पर दिल नहीं लगा. आखिर मैं ने झल्ला कर फोन बंद कर दिया. सोच लिया कि एक बार तो बात कर ली जाए. मैं ने देखा नीरू अभी भी व्हाट्सऐप पर ही उलझी हुई है.

मैं ने कहा, ‘‘नीरू छोड़ो भी मोबाइल, हम यहां बात करने आए हैं कि मोबाइल व्हाट्सऐप देखने.’’

‘‘ओके जीतू, सिर्फ 2 मैसेज और बचे हैं. बस, फिर में फ्री हूं.’’

मैं ने मन को समझाया कि 5-10 मिनट और सही.

आखिर 10 मिनट बाद नीरू फ्री हुई, ‘‘बोलो न, तुम कुछ बोलना चाहते थे,’’ नीरू ने मोबाइल पर्स में रखा और मुझ से बोली.

‘‘नीरू, देखो, मैं साफसाफ बात करना चाहता हूं, घुमाफिरा कर बात करना मुझे नहीं आता.’’

‘‘बोलो न यार, कह कर नीरू ने मेरा हाथ अपने हाथ में ले लिया.’’

मुझ में थोड़ी हिम्मत आई. मैं ने उस के हाथ को महसूस किया, नौर्मल था, लेकिन मुझे मेरा हाथ बेहद गरम महसूस हो रहा था. दिल में हलकी सी घबराहट भी महसूस कर रहा था.

‘‘देखो, नीरू, हम अच्छे दोस्त हैं, क्या हम लाइफ पार्टनर नहीं बन सकते? एकदूसरे को हम समझते भी हैं. हमारे विचार और पसंद भी काफी मिलतेजुलते हैं, तुम क्या सोचती हो?’’ मैं ने कहा.

वह बड़े ध्यान से मेरा चेहरा देखने लगी. फिर खिलखिला कर जोर से हंस दी. मेरा कलेजा मुंह को आने लगा. मैं खुद को हताश सा महसूस करने लगा.

‘‘क्यों, क्या मैं ने कोई गलत बात कही?’’ मैं ने पूछा.

‘‘नहीं भोलूराम, नहीं. तुम ऐसा कैसे सोच सकते हो?’’ नीरू ने कहा.

‘‘क्या मतलब?’’ मैं ने आश्चर्य से देखा.

‘‘अरे यार, फेसबुक, व्हाट्सऐप पर मेरे लगभग हजार फ्रैंड्स हैं, कई फ्रैंड्स से अकसर मिलती रहती हूं, उस दिन जोे औफिस से जल्दी गई थी वह मेरा फेसबुक फ्रैंड था, जिस के साथ मुझे शौपिंग भी करनी थी और उसी की गाड़ी में चली गई थी. इस में प्रेम वाली बात कहां से आ गई? तुम भी इन्हीं में से एक फ्रैंड हो,’’ नीरू ने बिंदास हो कर कहा.

मेरे पांवों के नीचे की जमीन ने खिसकना शुरू कर दिया था. मैं गूंगा बन गया था.

‘‘और, जीतू, तुम्हारे कितने फ्रैंड्स हैं व्हाट्सऐप पर,’’ नीरू ने मेरा कंधा पकड़ कर झकझोरा.

मुझे कुछ सुनाई नहीं दे रहा था.

‘‘यही कोई 15-20 युवकयुवतियां कुल मिला कर,’’ मैं ने बड़ी मुश्किल से कहा.

‘‘15-20,’’ नीरू ने जो हंसना शुरू किया तो उस की हंसी रुकने का नाम नहीं ले रही थी.

‘‘क्या फायदा इतनी फ्रैंडलिस्ट से. क्या सभी से दोस्ती हो जाती है,’’ मैं ने फिर समझाने की कोशिश की.

‘‘काहे की दोस्ती, कुछ लोगों से मिलतेजुलते रहो, बाकी को मैसेज भेजते रहो,’’ नीरू ने कहा.

‘‘चलें, आप की बात खत्म हो गई हो तो,’’ नीरू ने कहा और पूछा ‘‘डिनर कहां लेंगे?’’

‘‘डिनर, हां याद आया मुझे, डैडी के साथ एक फंक्शन में जाना है, डिनर मैं वहीं करूंगा,’’ मैं ने झूठ बोला.

‘‘क्या बकवास करते हो?’’ नीरू गुस्से से भड़क गई, ‘‘फालतू में टाइम खराब किया.’’

जब मैं घर पहुंचा तो मेरे शरीर में जान तो बची नहीं थी. यह दूसरी युवती थी, जिस ने मेरे दिल को इस कदर तोड़ा था. मुझे संभलने में महीनों लग गए, पर मैं ने व्हाट्सऐप और फेसबुक पर दायरा सीमित कर लिया. कसम खा ली व्हाट्सऐप और फेसबुक पर दोस्ती नहीं करूंगा.       

समय के साथ

रामलाल की सचिवालय में चपरासी की ड्यूटी थी. वह अपने परिवार के साथ मंत्रीजी के बंगले पर ही रहता था. जब वह सरकारी नौकरी में लगा था, तब गांव में उस की 2 बीघा जमीन थी और एक छोटा सा टूटाफूटा घर था, मगर आज 50 बीघा जमीन और 2-2 आलीशान मकान हैं. तीजत्योहार के अलावा शादीब्याह में जब रामलाल अपनी शानदार कार से बीवीबच्चों के साथ गांव में आता है, तब उसे देख कर कोई यह कह नहीं सकता कि वह चपरासी है. उस के बीवीबच्चों के कीमती कपड़ों को देख कर लोग यही समझते हैं कि वे सब किसी बड़े सरकारी अफसर के परिवार वाले हैं.

एक बार रामलाल गांव में अपने फार्महाउस पर था, तभी वहां पर किसी गांव के बड़े सरकारी स्कूल में चपरासी की नौकरी करने वाला उस के गांव का भोलाराम आया. भोलाराम बोला, ‘‘रामलालजी, हम लोग एक ही समय पर सरकारी नौकरी में लगे थे, मगर तुम आज कहां से कहां पहुंच गए और मैं गरीब चपरासी ही रह गया हूं. तुम्हारी इस तरक्की के बारे में मुझे भी कुछ बताओ भाई.’’ ‘‘मेरी तरक्की का राज यही है कि मैं सचिवालय में नौकरी करते हुए समय के साथ चलने लगा था और तुम गांव में ही रह कर अपनी पुरानी दकियानूसी बातों के कारण यह फटेहाल जिंदगी बिता रहे हो…

‘‘मैं ने अपनी दोनों बेटियों को शहर में खूब पढ़ाया लिखाया और तुम ने अपनी बेटियों को घर में ही बिठा रखा है. अगर वे शहर में पढ़तीं, तो आज अच्छी नौकरियां कर रही होतीं. मेरी एक बेटी अब तहसीलदार होने वाली है और दूसरी बेटी कलक्टर,’’ रामलाल ने उसे अपनी तरक्की का राज बताया, तो भोलाराम उस से बोला, ‘‘तो मुझे भी अब अपनी दोनों बेटियों के लिए क्या करना चाहिए?’’

‘‘तुम अपनी दोनों बेटियों को हमारे साथ शहर भेज दो. मेरी दोनों बेटियां उन्हें कुछ ऐसा सिखा देंगी कि उन की और तुम्हारी जिंदगी बन जाएगी. कुछ ही दिनों में वे उन्हें ऐसा बदल देंगी कि उन्हें देख कर तुम यह कह ही नहीं पाओगे कि वे दोनों तुम्हारी ही बेटियां हैं…’’ रामलाल की इन बातों को सुन कर भोलाराम ने अपनी दोनों बेटियों को उन के साथ भेजने की हां कर दी. भोलाराम ने अपने घर जा कर ये सभी बातें अपनी बीवी सावित्री को बताईं, तो वह उस से बोली, ‘‘शहर में जा कर हमारी दोनों बेटियां कहीं शहर की लड़कियों की तरह मौजमस्ती करने न लग जाएं?’’

‘‘मौजमस्ती तो हमारी ये दोनों बेटियां अपने गांव में रहते हुए भी कर रही हैं. कहने को उन की उम्र 16 और 18 साल है, लेकिन अभी से उन में आवारा लड़कों के साथ मजे लेने की आदत पड़ चुकी है.’’

सावित्री बोली, ‘‘तुम अपनी बेटियों के बारे में यह सब क्यों कह रहे हो?’’

‘‘कुछ दिन पहले जब मैं दोपहर में अपने खेतों पर गया था, तब बाजरे के खेतों में हमारी ये दोनों बेटियां उषा और शर्मिला बिलकुल नंगधड़ंग हो कर गांव के 2 लड़कों के साथ वही सब कर रही थीं, जो पति अपनी पत्नी के साथ करता है. मैं ने ये सब बातें तुम्हें इसलिए नहीं बताईं कि सुन कर तुम्हें दुख होगा.’’ सावित्री यह सुन कर दंग रह गई. भोलाराम उस से बोला, ‘‘हमारी दोनों बेटियों को लड़कों के साथ सोने का चसका लग गया है. अगर वे किसी के साथ घर से भाग गईं, तो इस से हमारी गांव में इतनी बदनामी होगी कि हम लोग किसी को मुंह दिखाने नहीं रहेंगे, इसलिए उन्हें रामलाल के साथ शहर भेज देते हैं.’’

सावित्री बोली, ‘‘लेकिन, रामलाल के बारे में हमारी पड़ोसन माला कह रही थी कि वह अपनी लड़कियों को मंत्री अफसरों के अलावा ठेकेदारों के साथ सुलाता है, तभी तो आज वह उन की कमाई से इतना पैसे वाला बना है. जब उस की दोनों बेटियां छोटी थीं, तब वह अपनी बीवी रीना को उन के साथ सुलाता था.’’ ‘‘अपनी बीवी और बेटियों को पराए मर्दों के साथ सुला कर रामलाल ने आज अपनी हैसियत बना ली है. वे सभी लोग आज ऐशो आराम की जिंदगी जी रहे हैं और हम लोग अपनी दकियानूसी बातों के चलते गांव में ऐसी फटेहाल जिंदगी बिता रहे हैं…’’ भोलाराम थोड़ा रुक कर बोला, ‘‘हमें भी अब रामलाल की तरह समय के साथ चलना चाहिए. हमारी दोनों बेटियां गांव के लड़कों को मुफ्त में ही अपनी जवानी के मजे दे रही हैं.

‘अगर ये दोनों शहर में मंत्री अफसरों व ठेकेदारों को मजे देंगी, तो हम लोग भी रामलाल की तरह पैसे वाले हो जाएंगे और फिर उन दोनों की अच्छे घरों में शादियां कर देंगे. आजकल लोग आदमी का किरदार नहीं, बल्कि उस की हैसियत देखते हैं.’’ सावित्री ने अपनी दोनों बेटियों को रामलाल के साथ शहर भेजने का मन बना लिया. शहर भेजने की ये बातें जब उन की दोनों बेटियों ने सुनी, तो वे खुशी से झूम उठीं. सावित्री ने उन दोनों को खुल कर कह दिया, ‘‘यहां पर तुम दोनों बहनें बाजरे के खेतों में चोरीछिपे लड़कों के साथ सोती हो, लेकिन शहर में पैसे कमाओगी. लेकिन जरूरी उपाय करना मत भूलना.’’

दोनों बहनें मन ही मन सोच रही थीं कि बाजरे के खेत में तो किसी के आने के डर से वे पूरे मजे नहीं ले पाती थीं. उन्हें हमेशा यह डर लगा रहता था कि कभी कोई वहां पर आ कर उन्हें देख न ले. शहर में तो एसी लगे कमरे होते हैं, वहां पर किसी के आने का उन्हें डर भी नहीं रहेगा. जब वे दोनों बहनें रामलाल और उस के परिवार के साथ उन की एसी कार में बैठीं, तो एसी की ठंडीठंडी हवा खाते हुए उन्हें कब नींद आ गई, पता नहीं लगा. रामलाल की बेटियों में से एक ने ही उन्हें जगा कर कहा, ‘‘अब शहर आने वाला है. वहां के एक मौल से तुम्हारे लिए कुछ ढंग के कपड़े लेने हैं, जिन्हें पहन कर तुम दोनों बहनें खूबसूरत लगोगी.’’ जब वे लोग शहर पहुंचे, तो एक बड़े से मौल में उन दोनों के लिए ढंग के कपड़े खरीदे गए. वहीं पर उन के बाल सैट करा कर उन्हें वे कपड़े पहनाए गए. आईने में खुद को देख कर वे दोनों बहनें बड़ी इतरा रही थीं.

जब वे दोनों रामलाल के घर आईं, तो मंत्रीजी भी उन्हें देख कर चौंक गए. उन दोनों को नहला कर मैकअप करा कर जब रामलाल की बेटी उन्हें मंत्रीजी के कमरे में छोड़ने गई, तो मंत्रीजी भूखे भेडि़ए की तरह उन पर झपट पड़े थे. कुछ ही देर में मंत्री के साथ भी वही हुआ, जो बाजरे के खेत में उन लड़कों से होता था. मंत्री की तो खुशी की कोई सीमा ही नहीं थी. उन्होंने कुछ दिन बाद दोनों बहनों को एक ठेकेदार से एक लाख रुपए दिलवा दिए. अपनी दोनों बेटियों की एक लाख रुपए की कमाई देख कर भोलाराम तो खुशी से पागल ही हो गया था. भोलाराम ने भी अब समय के साथ चलना सीख लिया था, पर उसे यह नहीं मालूम था कि यह मौज कितने दिन चलेगी. जैसे ही लड़कियों में कुछ बीमारी हुई नहीं या और दूसरी जवान लड़कियां दिखी नहीं कि वे वापस गांव में नजर आएंगी.

बेवफाई

रमइया गरीब घर की लड़की थी. सुदूर बिहार के पश्चिमी चंपारण की एक छोटी सी पिछड़ी बस्ती में पैदा होने के कुछ समय बाद ही उस की मां चल बसीं. बीमार पिता भी दवादारू की कमी में गुजर गए. अनाथ रमइया को दादी ने पालपोस कर बड़ा किया. वे गांव में दाई का काम करती थीं. इस से दादीपोती का गुजारा हो जाया करता था. रमइया जब 7 साल की हुई, तो दादी ने उसे सरकारी स्कूल में पढ़ने भेजा, पर वहां उस का मन नहीं लगा. वह स्कूल से भाग कर घर आ जाया करती थी. दादी ने उसे पढ़ाने की बहुत कोशिश की, पर हठीली पोती को नहीं पढ़ा पाईं. रमइया अब 16 साल की हो गई. चिकने बाल, सांवली रंगत और बड़ीबड़ी पनीली आंखों में एक विद्रोह सा झलकता हुआ.

अब दादी को रातों में नींद नहीं आती थी. रमइया के ब्याह की चिंता हर पल उन के दिलोदिमाग पर हावी रहने लगी. कहां से पैसे आएंगे? कैसे ब्याह होगा? वगैरह. जायदाद के नाम पर सिकहरना नदी के किनारे जमीन के छोटे से टुकड़े पर बनी झोंपड़ी और शादी के वक्त के कुछ चांदी के जेवर और सिक्के… यही थी दादी की जिंदगीभर की जमापूंजी. रातदिन इसी चिंता में घुल कर बुढि़या की कमर ही झुकने लगी. गांवबिरादरी के ही कुछ लोगों ने बुढि़या पर तरस खा कर पड़ोस के गांव के हीरा के साथ रमइया का ब्याह करवा दिया.

हीरा सीधासादा और मेहनती था, जो अपनी मां के साथ दलितों की बस्ती में रहता था. घर में मांबेटे के अलावा एक गाय भी थी, जिस का दूध बेच कर कुछ पैसे आ जाते थे. इस के अलावा फसलों की रोपाईकटाई के समय मांबेटे दूसरे के खेतों में काम किया करते थे. शादी के बाद 3 जनों का पेट भरना मुश्किल होने लगा, तो हीरा गांव के ही कुछ नौजवानों के साथ परदेश चला गया. पंजाब जा कर हीरा खेतों पर काम करने लगा. वहां हर दिन कहीं न कहीं काम मिलता, जिस से रोजाना अच्छी कमाई होने लगी. हीरा जी लगा कर काम करता, जिस से मालिक हीरा से बहुत खुश रहते.

हीरा ने 8 महीने में ही काफी पैसे इकट्ठे कर लिए थे. पंजाब आए साथी जब गांव वापस जाने लगे, तो वह भी वापस आ गया. गांव आने से पहले हीरा ने रमइया और मां के लिए घरेलू इस्तेमाल की कुछ चीजें खरीदीं. अपने लिए उस ने एक मोबाइल फोन खरीदा. घर आ कर हीरा ने बड़े जोश से रमइया को फोन दिखाया और शान से बोला, ‘‘यह देख… इसे मोबाइल फोन कहते हैं. देखने में छोटा है, पर इस के अंदर ऐसे तार लगा दिए हैं कि हजारों मील दूर रह कर एक बटन दबा दो और जितनी भी चाहे बातें कर लो.’’ यह सुन कर रमइया की आंखें चौड़ी हो गईं. उस ने फोन लेने के लिए हीरा की ओर हाथ बढ़ाया.

‘‘अरे, संभाल कर,’’ कह कर हीरा ने रमइया के हाथों में मोबाइल फोन थमाया.

रमइया थोड़ी देर उलटपलट कर फोन को देखती रही, फिर उस ने हीरा से कहा, ‘‘सुनो, हमें साड़ीजेवर कुछ नहीं चाहिए. तुम जाने से पहले हमें यह फोन देते जाना. वहां जा कर अपने लिए दूसरा फोन खरीद लेना. फिर हम दिनरात फोन पर बात करेंगे.’’हीरा पत्नी रमइया के भोलेपन पर जोर से हंस पड़ा. रमइया के सिर पर एक प्यार भरी चपत लगाते हुए वह बोला, ‘‘पगली, बातें मुफ्त में नहीं होतीं. उस में पैसा भरवाना पड़ता है.’’इस तरह हंसतेबतियाते कई महीने गुजर गए. गांव के साथियों के साथ हीरा फिर से वापस काम पर पंजाब जाने की तैयारी करने लगा. इस बार रमइया ज्यादा दुखी नहीं थी.

हीरा के जाने के बाद अब सास की डांट खा कर भी रमइया रोती नहीं थी. वह मां बनने वाली थी और यह खबर वह हीरा को सुनाने के लिए बेचैन थी. वह मोबाइल फोन ले कर किसी कोने में पड़ी रहती और हीरा के फोन के आने का इंतजार करती रहती. हीरा चौथी क्लास तक पढ़ालिखा था, सो उस ने रमइया को मोबाइल फोन की सारी बारीकियां समझा दी थीं. 2 महीने बाद आखिर वह दिन भी आया, जब मोबाइल फोन की घंटी घनघना कर बज उठी. रमइया का दिल बल्लियों उछल पड़ा. थरथराते हाथों से उस ने फोन का बटन दबाया और जीभर कर हीरा से बातें कीं. सास से भी हीरा की बात करवाई गई. जब पैसे खत्म हो गए, तो फोन कट गया. देर तक फोन को गोद में ले कर रमइया बैठी रही. वक्त गुजरता गया. हीरा फिर से गांव वापस आया. वह इस बार भी अपने साथ कपड़े, सामान और पैसे ले कर आया था.

रमइया का पीला चेहरा देख कर हीरा को चिंता हुई. इस बार रमइया में वह चंचलता भी नहीं दिख रही थी. वह बिस्तर पर चुपचाप सी पड़ी रहती. हीरा ने जब इस बारे में मां से बात की, तो मां ने कहा कि ऐसा होता ही है, चिंता की कोई बात नहीं.रमइया के वहां से जाने के बाद मां ने बेटे हीरा को एकांत में बुला कर कहा, ‘‘बेटा, रमइया को इस की दादी के पास छोड़ आ. काम न धाम, यहां दिनभर पड़ी रहती है… दादी बहुत अनुभवी हैं, उन की देखरेख में रहेगी तो सबकुछ ठीक रहेगा. जब तू दो बारा आएगा, तो इस को वहां से ले आना.’’

‘‘ठीक है मां,’’ कहते हुए हीरा ने सहमति में सिर हिला दिया.

तीसरे ही दिन हीरा रमइया को उस की दादी के पास पहुंचा कर अपने गांव लौट आया. अब हीरा को रमइया के बिना घर सूनासूना सा लगता. वह चुपचाप किसी काम में लगा रहता या फोन से खेलता रहता. एक दिन हीरा ने अपने किसी साथी को फोन लगाया. ‘हैलो’ कहते ही उधर से किसी औरत की आवाज सुन कर हीरा हड़बड़ाया और उस ने जल्दी से फोन काट दिया. थोड़ी देर बाद उसी नंबर से हीरा के मोबाइल फोन पर 4 बार मिस्ड काल आईं. हीरा की समझ में नहीं आया कि वह क्या करे… थोड़ी देर बाद उस ने फिर से उसी नंबर पर फोन लगाया. बात हुई… वह नंबर उस के दोस्त का नहीं, बल्कि कोई रौंग नंबर था. जिस औरत ने फोन उठाया था, वह उसी बस्ती से आगे शहर में रहती थी. उस का पति रोजीरोटी के सिलसिले में दिल्ली में रहता था. उस औरत का नाम प्रीति था. उस की आवाज में मिठास थी और बात करने का तरीका दिलचस्प था. रात के 10 बजे से 2 बजे के बीच हीरा के फोन पर 3 बार मिस्ड काल आईं. अब यह रोज का सिलसिला बन गया. हीरा जबजब अपने, रमइया और प्रीति के बारे में सोचता, तो उसे लगता कि कहीं कुछ गलत हो रहा है. ऐसे में सारा दिन उसे खुद को संभालने में लग जाता, पर फिर जब रात होती, प्रीति की मिस्ड काल आती, तो हीरा का दिल फिर से उस मीठी आवाज की चपेट में आ कर रुई की तरह बिखर जाता.

अब उन में हर रोज बात होने लगी, फिर एक दिन मुलाकात तय की गई. शहर के पार्क में शाम के 4 बजे हीरा को आने को कहा गया. जहां हीरा समय से पहले ही पहुंच गया, वहीं प्रीति 15 मिनट देर से आई. गोरा रंग और छरहरे बदन की प्रीति की अदाओं में गजब का खिंचाव था. कुरती और चूड़ीदार पाजामी में वह बेहद खूबसूरत लग रही थी. वह 5वीं जमात तक पढ़ीलिखी थी.  दिन हफ्तों में और हफ्ते महीनों में बदलते चले गए. रमइया एक बेटी की मां बन गई और इधर हीरा के गांव के साथी फिर से काम पर लौटने की तैयारी करने लगे.परदेश जाने से पहले मां ने हीरा से रमइया और बच्ची को देख आने को कहा. हीरा 5-6 दिनों के लिए ससुराल पहुंचा. रमइया का पीला और बीमार चेहरा देख कर हीरा के मन में एक ऊब सी हुई. काली और मरियल सी बच्ची को देख कर उस का मन बै ठ सा गया.हीरा का मन एक दिन में ही ससुराल से भाग जाने को हुआ. खैर, जैसेतैसे उस ने 4 दिन बिताए और 5वें दिन जेल से छूटे कैदी सा घर भाग आया.

पंजाब जाने से पहले हीरा प्रीति से मिला, तो उस की सजधज और चेहरे की ताजगी ने उसे रिरियाती बच्ची और रमइया के पीले चेहरे के आतंक से बाहर निकाल लिया. एक साल गुजर गया. हीरा वहीं रह कर दूसरा रोजगार भी करने लगा. अब वह प्रीति को पैसे भी भेजने लगा था. इधर रमइया की सास से नहीं बनने के चलते वह मायके में ही पड़ी रही. उम्र बढ़ने के साथसाथ रमइया की दादी का शरीर ज्यादा काम करने में नाकाम हो रहा है. अपना और बेटी का पेट भरने के लिए रमइया ने बस्ती से आगे 2-3 घरों में घरेलू काम करना शुरू कर दिया. बच्ची जनने से टूटा जिस्म और उचित खानपान की कमी में वह दिनोंदिन कमजोर और चिड़चिड़ी होने लगी. इधर तकरीबन एक साल से भी ज्यादा समय बाद हीरा जब वापस घर आया, तो आते ही प्रीति से मिलने चल पड़ा. न तो उस ने रमइया की खबर ली, न ही मां ने उसे रमइया को घर लाने को कहा.

अब प्रीति भी उस से मिलने बस्ती की ओर चली आती. कभी बस्ती के बाहर वाले स्कूल में, कभी खेतों के पीछे, तो कभी कहीं और मुलाकातों का सिलसिला जारी रहा. पोती की हालत और अपनी बढ़ती उम्र को देखते हुए रमइया की दादी ने हीरा की मां के पास बहू को लिवा लाने के लिए कई संदेश भिजवाए. आखिर में मां के कहने पर हीरा रमइया को लिवाने ससुराल पहुंचा. ससुराल आ कर रमइया ने देखा कि हीरा या तो घर में नहीं रहता और अगर रहता भी है, तो हमेशा कहीं खोयाखोया सा या फिर अपने मोबाइल फोन के बटनों को दबाता रहता है. पता नहीं, क्या करता रहता है. ऐसे में एक रात रमइया की नींद खुली, तो उसे लगा कि हीरा किसी से बातें कर रहा है. आधी रात बीत चुकी थी. इस वक्त हीरा किस से बातें कर रहा है? बातों का सिलसिला लंबा चला. रमइया दीवार से कान लगा कर सुनने की कोशिश करने लगी, पर उस की समझ में ज्यादा कुछ नहीं आ सका.

दूसरे दिन रमइया मौका पा कर हीरा का फोन ले कर बगल वाले रतन काका के पोते, जो छठी जमात में पढ़ता था, के पास गई और उसे सारे मैसेज पढ़ कर सुनाने को कहा. मैसेज सुन कर रमइया गुस्से से सुलग उठी. वह हीरा के पास पहुंची और उस नंबर के बारे में जानना चाहा. एक पल के लिए हीरा सकपकाया, पर दूसरे ही पल संभल गया. वह बोला, ‘‘अरे पगली, मुझ पर शक करती है. यह तो मेरे साथ काम करने वाले की घरवाली का नंबर है. वह इस दफा घर नहीं आया, इसलिए उस का हालचाल पूछ रही थी.’’ रमइया चुप रही, पर उस के चेहरे पर संतोष के भाव नहीं आए. वह हीरा और उस के मोबाइल फोन पर नजर रखने लगी थी. 2 दिन बाद ही रात को रमइया ने हीरा को प्रीति से फोन पर यह कहते हुए सुन लिया कि कल रविवार है. स्कूल पर आ जाना. 2-3 दिनों के बाद फिर मुझे वापस भी लौटना होगा.

दूसरे दिन हीरा 12 बजे के आसपास घर से निकल गया और स्कूल पर प्रीति के आने का इंतजार करने लगा. थोड़ी ही देर में प्रीति दूर से आती दिखी. कुछ देर तक दोनों खेतों में ही खड़ेखड़े बातें करते रहे, फिर स्कूल के भीतर आ गए. प्रीति थोड़ी बेचैन हो कर बोल उठी, ‘‘ऐसे छिपछिप कर हम आखिर कब तक मिलते रहेंगे हीरा. हमेशा ही डर लगा रहता है. अब मैं तुम्हारे साथ ही रहना चाहती हूं.’’ हीरा प्यार से बोला, ‘‘मैं भी तो यही चाहता हूं. बस, महीनेभर रुक जाओ… दोस्तों के साथ तुम्हें नहीं रख सकता… इस बार जाते ही कोई अलग कमरा लूंगा, फिर आ कर तुम्हें ले जाऊंगा. उस के बाद छिपछिप कर मिलने की कोई जरूरत नहीं होगी.’’

प्रीति ने कहा, ‘‘और तुम जो यहां आ कर 3-3 महीने तक रुकते हो, उस वक्त मैं क्या करूंगी? परदेश में कैसे अकेली रहूंगी और अपना घर कैसे चलाऊंगी?’’ हीरा बोला, ‘‘अरे, 3-3 महीने तो मैं यहां तुम्हारी खातिर पड़ा रहता हूं. जब मेरी प्रीतू मेरे पास होगी, तो मुझे यहां आने की जरूरत ही क्यों पड़ेगी. यहां कभीकभार खर्च के पैसे भेज दिया करूंगा, बाकी जो भी कमाऊंगा, वह सब तुम्हारा.’’ प्रीति ने बड़ी अदा से पूछा, ‘‘अच्छा… तुम कितने पैसे कमा लेते हो कि वहां भी घर चलाओगे, यहां भी भेजोगे?’’

हीरा ने थोड़ा इतरा कर कहा, ‘‘इतना तो कमा ही लेता हूं कि 2 घर आराम से चला लूं,’’ कहते हुए हीरा ने जैकेट उतार कर अपनी दोनों बांहें किसी बौडी बिल्डर के अंदाज में ऊपर उठा कर दिखाईं. प्रीति ने आंखें झुका कर मुंह फेर लिया. हीरा की मजबूत हथेलियों ने प्रीति को कमर से थाम कर अपने करीब कर लिया और उस प्यारे चेहरे से बालों को हटाते हुए आगे झुका. प्रीति ने आंखें बंद कर लीं. उधर टोकरे में गंड़ासा रख और पल्लू से चेहरे को ढक कर रमइया सीधा स्कूल जा पहुंची. गुस्से से जलती आंखों ने दोनों को एकसाथ ही देख लिया. फुफकारती हुई रमइया ने प्रीति के ऊपर गंड़ासा फेंका, जो सीधा जा कर हीरा को लगा. देखते ही देखते पूरी बस्ती में कुहराम मच गया. जैसेतैसे हीरा को अस्पताल पहुंचाया गया. रमइया को पुलिस पकड़ कर ले गई. प्रीति बड़ी मुश्किल से जान बचा कर वहां से भाग निकली. गरदन की नस कट जाने से हीरा की मौत हो गई. सुनवाई के बाद अदालत ने रमइया को उम्रकैद की सजा सुनाई. डेढ़ साल की मरियल सी बच्ची को अनाथ बना कर, पेट में एक बच्चे को साथ ले कर रमइया हमेशा के लिए जेल की सलाखों के पीछे कैद कर दी गई.

कौन जिम्मेदार?

‘‘किशोरीलाल ने खुदकुशी कर ली…’’ किसी ने इतना कहा और चौराहे पर लोगों को चर्चा का यह मुद्दा मिल गया.

‘‘मगर क्यों की…?’’  भीड़ में से सवाल उछला.

‘‘अरे, अगर खुदकुशी नहीं करते, तो क्या घुटघुट कर मर जाते?’’ भीड़ में से ही किसी ने एक और सवाल उछाला.

‘‘आप के कहने का मतलब क्या है?’’ तीसरे आदमी ने सवाल पूछा.

‘‘अरे, किशोरीलाल की पत्नी कमला का संबंध मनमोहन से था. दुखी हो कर खुदकुशी न करते तो वे क्या करते?’’

‘‘अरे, ये भाई साहब ठीक कह रहे हैं. कमला किशोरीलाल की ब्याहता पत्नी जरूर थी, मगर उस के संबंध मनमोहन से थे और जब किशोरीलाल उन्हें रोकते, तब भी कमला मानती नहीं थी,’’ भीड़ में से किसी ने कहा.

चौराहे पर जितने लोग थे, उतनी ही बातें हो रही थीं. मगर इतना जरूर था कि किशोरीलाल की पत्नी कमला का चरित्र खराब था. किशोरीलाल भले ही उस के पति थे, मगर वह मनमोहन की रखैल थी. रातभर मनमोहन को अपने पास रखती थी. बेचारे किशोरीलाल अलग कमरे में पड़ेपड़े घुटते रहते थे. सुबह जब सूरज निकला, तो कमला के रोने की आवाज से आसपास और महल्ले वालों को हैरान कर गया. सब दौड़ेदौड़े घर में पहुंचे, तो देखा कि किशोरीलाल पंखे से लटके हुए थे. यह बात पूरे शहर में फैल गई, क्योंकि यह मामला खुदकुशी का था या कत्ल का, अभी पता नहीं चला था.

इसी बीच किसी ने पुलिस को सूचना दे दी. पुलिस आई और लाश को पोस्टमार्टम के लिए ले गई. यह बात सही थी कि किशोरीलाल और कमला के बीच बनती नहीं थी. कमला किशोरीलाल को दबा कर रखती थी. दोनों के बीच हमेशा झगड़ा होता रहता था. कभीकभी झगड़ा हद पर पहुंच जाता था. यह मनमोहन कौन है? कमला से कैसे मिला? यह सब जानने के लिए कमला और किशोरीलाल की जिंदगी में झांकना होगा. जब कमला के साथ किशोरीलाल की शादी हुई थी, उस समय वे सरकारी अस्पताल में कंपाउंडर थे. किशोरीलाल की कम तनख्वाह से कमला संतुष्ट न थी. उसे अच्छी साडि़यां और अच्छा खाने को चाहिए था. वह उन से नाराज रहा करती थी.

इस तरह शादी के शुरुआती दिनों से ही उन के बीच मनमुटाव होने लगा था. कुछ दिनों के बाद कमला किशोरीलाल से नजरें चुरा कर चोरीछिपे देह धंधा करने लगी. धीरेधीरे उस का यह धंधा चलने लगा. वैसे, कमला ने लोगों को बताया था कि उस ने अगरबत्ती बनाने का घरेलू धंधा शुरू कर दिया है. इसी बीच उन के 2 बेटे हो गए, इसलिए जरूरतें और बढ़ गईं. मगर चोरीछिपे यह धंधा कब तक चल सकता था. एक दिन किशोरीलाल को इस की भनक लग गई. उन्होंने कमला से पूछा, ‘मैं यह क्या सुन रहा हूं?’

‘क्या सुन रहे हो?’ कमला ने भी अकड़ कर कहा.

‘क्या तुम देह बेचने का धंधा कर रही हो?’ किशोरीलाल ने पूछा.

‘तुम्हारी कम तनख्वाह से घर का खर्च पूरा नहीं हो पा रहा था, तो मैं ने यह धंधा अपना लिया है. कौन सा गुनाह कर दिया,’ कमला ने भी साफ बात कह कर अपने अपराध को कबूल कर लिया. यह सुन कर किशोरीलाल को गुस्सा आया. वे कमला को थप्पड़ जड़ते हुए बोले, ‘बेगैरत, देह धंधा करती हो तुम?’ ‘तो पैसे कमा कर लाओ, फिर छोड़ दूंगी यह धंधा. अरे, औरत तो ले आया, मगर उस की हर इच्छा को पूरा नहीं करता है. मैं कैसे भी कमा रही हूं, तेरे से तो नहीं मांग रही हूं,’ कमला भी जवाबी हमला करते हुए बोली और एक झटके से बाहर निकल गई. किशोरीलाल कुछ नहीं कर पाए. इस तरह कई मौकों पर उन दोनों के बीच झगड़ा होता रहता था. इसी बीच शिक्षा विभाग से शिक्षकों की भरती हेतु थोक में नौकरियां निकलीं. कमला ने भी फार्म भर दिया. उसे सहायक टीचर के पद पर एक गांव में नौकरी मिल गई.

चूंकि गांव शहर से दूर था और उस समय आनेजाने के इतने साधन न थे, इसलिए मजबूरी में कमला को गांव में ही रहना पड़ा. गांव में रहने के चलते वह और आजाद हो गई. कमला ने 10-12 साल इसी गांव में गुजारे, फिर एक दिन उस ने अपने शहर के एक स्कूल में ट्रांसफर करवा लिया. मगर उन की लड़ाई अब भी नहीं थमी. बच्चे अब बड़े हो रहे थे. वे भी मम्मीपापा का झगड़ा देख कर मन ही मन दुखी होते थे, मगर उन के झगड़े के बीच न पड़ते थे. जिस स्कूल में कमला पढ़ाती थी, वहीं पर मनमोहन भी थे. उन की पत्नी व बच्चे थे, मगर सभी उज्जैन में थे. मनमोहन यहां अकेले रहा करते थे. कमला और उन के बीच खिंचाव बढ़ा. ज्यादातर जगहों पर वे साथसाथ देखे गए. कई बार वे कमला के घर आते और घंटों बैठे रहते थे. कमला भी धीरेधीरे मनमोहन के जिस्मानी आकर्षण में बंधती चलीगई. ऐसे में किशोरीलाल कमला को कुछ कहते, तो वह अलग होने की धमकी देती, क्योंकि अब वह भी कमाने लगी थी. इसी बात को ले कर उन में झगड़ा बढ़ने लगा.

फिर महल्ले में यह चर्चा चलती रही कि कमला के असली पति किशोरीलाल नहीं मनमोहन हैं. वे किशोरीलाल को समझाते थे कि कमला को रोको. वह कैसा खेल खेल रही है. इस से महल्ले की दूसरी लड़कियों और औरतों पर गलत असर पड़ेगा. मगर वे जितना समझाने की कोशिश करते, कमला उतनी ही शेरनी बनती. जब भी मनमोहन कमला से मिलने घर पर आते, किशोरीलाल सड़कों पर घूमने निकल जाते और उन के जाने का इंतजार करते थे.  पिछली रात को भी वही हुआ. जब रात के 11 बजे किशोरीलाल घूम कर बैडरूम के पास पहुंचे, तो भीतर से खुसुरफुसुर की आवाजें आ रही थीं. वे सुनने के लिए खड़े हो गए. दरवाजे पर उन्होंने झांक कर देखा, तो शर्म के मारे आंखें बंद कर लीं. सुबह किशोरीलाल की पंखे से टंगी लाश मिली. उन्होंने खुद को ही खत्म कर लिया था. घर के आसपास लोग इकट्ठा हो चुके थे. कमला की अब भी रोने की आवाज आ रही थी.

इस मौत का जिम्मेदार कौन था? अब लाश के आने का इंतजार हो रहा था. शवयात्रा की पूरी तैयारी हो चुकी थी. जैसे ही लाश अस्पताल से आएगी, औपचारिकता पूरी कर के श्मशान की ओर बढ़ेगी.

Online गुंडागर्दी : इंस्टाग्राम, यूट्यूब का नया तमाशा

आज के समय में हर कोई अपने सोशल मीडिया चैनल जैसे कि फेसबुक, इंस्टाग्राम, यूट्यूब के फौलोवर्स बढ़ाने के लिए बहुत कुछ कर रहे हैं. कई लोग अपना खुद का कंटेंट बना रहे हैं तो कई दूसरों का कंटेंट कौपी कर अपने चैनल को आगे ले जाने की सोच रहे हैं. ऐसा लोग इसलिए कर रहे हैं क्योंकि अब सबको समझ आ चुका है कि लोगों के बीच जल्दी पौपुलर होने का और खूब पैसा कमाने का एकमात्र तरीका है सोशल मीडिया पर अपने फौलोवर्स बढ़ाओ. फिर चाहे उसके लिए गलत रास्ता ही क्यों न अख्तियार करना पड़े.

ऐसे कई उदाहरण हैं, जिन्होंने अपने कंटेंट से बहुत जल्दी तरक्की हासिल कर ली है जैसे कि चंद्रिका दीक्षित (Chandrika Dixit) जो कि वडा पाव का ठेला लगा कर बिग बौस तक पहुंच गई है और दूसरी तरफ नागपुर के डौली चायवाला (Dolly Chaiwala) नाम के एक व्यक्ति के पास खुद बिल गेट्स (Bill Gates) चाय पीने पहुंच गए. अब इस तरह की चीजें जैसे ही सोशल मीडिया पर आती है तो वायरल हो जाती है और इसे पोस्ट करने वाले के फौलोअर्स भी बढ़ने शुरू हो जाते हैं.

औनलाइन गुंडागर्दी क्या है

औनलाइन गुंडागर्दी एक शब्द आजकल साेशल मीडिया की दुनिया में काफी पौपुलर हो रहा है, पिछले कुछ महीनों में हुई घटनाओं ने इस टर्म को जन्म दिया है. लड़ाई झगड़े के इस नए ट्रैंड की मोडस ओपरेंडी की बात करें, तो इसमें ट्वीटर या इंस्टाग्राम या दूसरे सोशल मीडिया प्लैटफार्म से धमकियां दी जाती है, जिसे धमकी दी जाती है, वह भी उन्हीं प्लैटफार्म्स का यूज कर पलटवार करता है. मतलब फिजिकली आमनेसामने आकर दोदो हाथ करने की बजाय सोशल मीडिया पर इसका माहौल बनाने का काम होता है.

गुंडागर्दी के इस तरीके के कुछ नमूने

ऐसे में कुछ लोग औनलाइन गुंडागर्दी कर अपने फौलोवर्स बढ़ा रहे हैं और इसका सबसे बड़ा एग्जाम्पल है मैक्टर्न (Maxtern) और एल्विश यादव (Elvish Yadav) की लड़ाई. ये दोनों यूट्यूबर सोशल मीडिया के जानेमाने चेहरे हैं, सोशल मीडिया पर एल्विश की पौपुलरिटी का ही नतीजा था कि वे बिग बौस ओटीटी सीजन 2 का हिस्सा बनें. इतना ही नहीं उनके फैन्स ने उनको विनर भी बना दिया और इस सीजन को जीतकर वे ट्रौफी के साथसाथ 25 लाख रुपए भी अपने घर ले गए. लेकिन कुछ समय पहले उनका एक एल्विश और मैक्सटर्न के झगड़े का एक वीडियो वायरल हुआ जिसमें एल्विश 4-5 लड़कों को लेकर मैक्टर्न को मारने आता है पर मैक्टर्न ने पहने से ही वहां कैमरा लगा दिया होता है. एल्विश और मैक्सटर्न की यह लड़ाई खूब चर्चा में रही थी और इस कारण मैक्सटर्न की फैन फौलोइंग अच्छी खासी बढ़ गई थी. लेकिन कुछ समय बाद दोनों ने एकदूसरे से फिर से दोस्ती कर ली थी. ऐसे में सबको यही दिखा कि यह सारा झगड़ा फेक था और मैक्सटर्न को फौलोवर्स बढ़ाने के लिए यह सब प्री-पलैन्ड था.

एक बार फिर एल्विश यादव सुर्खियों में बने हुए हैं और इस बार उनका औनलाइन झगड़ा एजाज़ खान (Ajaz Khan) के साथ हो रहा है. दोनों अपनीअपनी तरफ से वीडियोज़ बना कर एकदूसरे को भला-बुरा बोल रहे हैं. ऐसे में किसी को नहीं पता कि इन दोनों की यह औनलाइन लड़ाई फेक है या इसके पीछे भी वही पुरानी वजह है, फौलोअर्स बढ़ाने की.

औनलाइन गुंडागर्दी के ट्रैंड से नुकसान

आज के टीनएजर्स और यूथ्य खासकर जो सोशल मीडिया पर बेहद एक्टिव हैं, उन को यह बात समझनी चाहिए कि किसी दिन यह औनलाइन गुंडागर्दी उन को बेहद महंगी पड़ सकती हैं. किसी दिन वे सोशल मीडिया और फैन फौलोविंग के चक्कर में सचमुच किसी बड़ी मुसीबत में फस सकते हैं. आपके फोलोवर्स आपका साथ तब तक देंगे जब तक उन्हें लगेगा कि आप सच बोल रहे हैं पर यही सब चीज़ें करके आपके साथ भी कहीं शेर आया वाली कहानी ना हो जाए.

अगर आप को अपने फौलोअर्स बढ़ाने हैं तो आप कुछ ऐसा कंटेंट बनाएं जो कि लोगों को अच्छा लगे और लोग उसे देखना पसंद करें बल्कि ऐसा नहीं कि लोग आपसे नफरत करने लगें और लोगों के मन में आप के लिए नैगेटिविटी आ जाए. कोशिश कीजिए कि ऐसे पब्लिलिटी स्टंट से दूर रहें. इस तरह से बढ़ाएं हुए फौलोअर्स लंबे समय तक टिक नहीं पाएंगे, और आप को अनफौलो कर देंगे

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