“किस की बात कर रहे हो, वह मेरा दर्द कैसे समझेगी? वह पराया खून है, हमेशा पराया ही रहेगा.”

अपनी सास ममता के कमरे के पास से गुजरते हुए रिंकी को ये शब्द सुनाई दे रहे थे जो वे अपने बेटे विवेक से कह रही थीं. हालांकि, विवेक अपनी मां की बातों का विरोध कर रहा था, “तुम हमेशा रिंकी को पराया क्यों समझती हो, मां? वह भी तो इसी घर की सदस्य है. पता नहीं क्यों तुम उस के पीछे पड़ी रहती हो?”

“तुम क्या जानो, मांबेटे के बीच जो सहज रिश्ता होता है, उस की जगह बहू नहीं ले सकती. तुम हमारे अपने खून हो, वह तो पराया खून है. पराए कभी अपने नहीं हो सकते.”

रिंकी का मन हुआ कि वह उन से पूछे कि पिछले चारपांच सालों से उस की निश्च्छल सेवा और प्यार में ऐसी क्या कमी रह गई थी कि वे आज भी उसे पराई ही समझती हैं. लेकिन मजबूर थी, चाह कर भी वह उन के साथ कभी सख्ती नहीं बरत सकी.

ममता को जब भी किसी सलाह की जरूरत होती तो वे अपने तीनों बेटों विवेक, तुषार और नैतिक को बुलातीं. गलती से भी अपनी दोनों बहुओं को उस में शामिल न करतीं. उन के दोनों बेटे शादीशुदा थे और दोनों अलगअलग बैंकों में मैनेजर थे. छोटे बेटे नैतिक की अभी शादी नहीं हुई थी. वह मेरठ से इंजीनियरिंग कर रहा था.

रिंकी का दिल हमेशा अपनी सास के भावनात्मक सहारे और प्यार के लिए तरसता था. लेकिन प्यार के बदले में सास के ताने और कठोर शब्द उस के दिल को चुभते थे. उसे समझ में नहीं आता था कि वह सास से क्या कहे, उन्हें कैसे समझाए? उन के व्यवहार से वह नाराज हो कर मायके चली जाती थी. लेकिन मायके में भी कितने दिन तक रह पाती. बेटियां आज भी बोझ ही समझी जाती हैं. मायके में भी खुशियों का कोई भंडार नहीं था.

जब 10 दस साल की थी तभी उस के पिता की मृत्यु हो गई. इकलौते भाई श्यामसुंदर की शादी हो गई. उस के बाद उसे दादादादी के पास भेज दिया गया क्योंकि भाभी नहीं चाहती थी कि वह उस के साथ रहे. जब थोड़ी और बड़ी हुई तो होस्टल में डाल दी गई. बीए पास करते ही उस की शादी हो गई. मांबाप का प्यार तो उसे कभी मिला ही नहीं.

शादी के बाद उसे अपनी सास का अपने बेटों के प्रति उमड़ता प्यार देख कर बहुत अच्छा लगा. उसे वे अपनी मां के प्यार की प्रतिमूर्ति लगीं और उन का प्यार पाने की हर संभव कोशिश की. लेकिन न जाने क्यों, वे कभी भी उसे अपनी बेटेबेटियों की तरह स्वीकार नहीं कर पाईं. उन्हें केवल अपने खून पर भरोसा था. उन्हें लगता था कि एक मां के दिल का दर्द उस के बेटों से ज़्यादा कोई नहीं समझ सकता. जब भी वे किसी परेशानी में होतीं तो अपने बेटों से ही अपना दर्द साझा करतीं. उन की बहू हमेशा उन के लिए एक अजनबी सी रहती थी, जिस से वे बस काम लेतीं, लेकिन कभी अपने दिल के करीब नहीं आने देतीं.

उन की 3 बेटियां भी थीं जो अलगअलग शहरों में रहती थीं. जब भी वे आतीं, अपनी मां से मीठीमीठी बातें कर के उन से बहुत प्यार जताती थीं.

रिचा अपनी मां की कुछ ज्यादा ही लाडली थी, इसलिए वह उन का दिमाग ज्यादा चाटती, ‘मां, आप की जगह कौन ले सकता है. आप हैं तो हमारा मायका है. आप के बाद हमें इतना प्यार कौन देगा? मैं हमेशा यही चाहती हूं कि आप का प्यार, स्नेह और आशीर्वाद हम बहनों पर हमेशा बना रहे. मैं अपने घर में जरूर रहती हूं, लेकिन हमेशा आप की चिंता करती हूं. तुम कितनी दुबली हो गई हो. अपना खयाल रखना.

आजकल तो बहुएं अपनी सास को घर में रहने दें, यही बड़ी बात है. उन्हें मां मानना तो दूर की बात है आदिआदि.’

इस तरह वह मां के दिल में बहू के प्रति नफरत भर कर चली जाती और रिंकी को मां का खयाल रखने की खूब नसीहत देती. ममता को लगता कि उन की तीनों बेटियां ही उन का सब से ज्यादा खयाल रखती हैं, बहू तो सिर्फ अपना फर्ज निभाती है. इसीलिए वे हर सुखदुख में बहूओं को नजरअंदाज कर बेटियों को तरजीह देतीं.

ममता का अर्थ तो हम सभी जानते हैं, यही न कि एक मां का अपने बच्चों के प्रति स्नेह. पर बहुत सारे लोगों को लगता होगा, प्यार महोब्बत ओर ममता में क्या अंतर है. मैं तो कहूंगा अंतर तो कुछ नहीं,पर जो स्नेह मां अपनी ममता के भाव से जाहिर करती वह दूसरा कोई नहीं कर पाता. प्यार-मोहब्बत तो सब करते है, पिता से ले कर प्रिय या प्रेयसी तक पर इन में वह मां वाला स्नेह नहीं होता.

यह भी सच है कि मां का अपने बच्चों के लिए प्यार अनमोल होता है, खासकर बेटी संग का रिश्ता बहुत खूबसूरत होता है. मां बेटी में अपने बचपन को देखती है. वह अपने सपने बेटेबेटियों के जरिए पूरा करने की चाह रखती है. उम्र बढ़ने के साथ मां और बेटी का रिश्ता सहेलियों जैसा हो जाता है. मां अपने बच्चों को हर खुशी देना चाहती है, तो वहीं बेटी भी मां से अपने दिल की हर बात शेयर करती है. एक बेटी के लिए मां परिवार का वह सदस्य है जो उस के दिल की बात को सुनती है और सब से पहले समझती है. लेकिन ऐसा बहू के साथ नहीं होता, क्योंकि सास के दिल में कहीं न कहीं यह बात जरूर रहती कि यह दूसरे परिवार से आई है.

जब हम बेटी और बहू की बात करते हैं तो रिश्ते का दूसरा छोर मातापिता या सासससुर होते हैं. दोनों छोर एकदूसरे के बिना पूरे नहीं हो सकते. एक बहू वो सब कुछ कर सकती है जो एक बेटी कर सकती है, बस, फर्क इतना है कि बहू को उस घर को वंश देने का मौका मिलता है, जो एक बेटी अपने घर को कभी नहीं दे सकती क्योंकि उस का जन्म किसी और घर का वंश बढ़ाने के लिए होता है.

मदर्स डे,फादर्स डे मनाए जाते हैं. मां का प्यार दिल की गहराई से उतर कर इंटरनैट पर आ गया है. ममता देवी की बेटियां अपनी मां के लिए तरहतरह की तारीफें लिखतीं, ‘आप जैसी मां कहां मिल सकती है. आप का निस्वार्थ प्यार पा कर हम बहनों का जीवन सफल हो गया. आप से बात करने मात्र से ही मेरा सारा कष्ट दूर हो जाता है. मां, सारी दुनिया आप की तरह क्यों नहीं है आदिआदि.’

मां भी उतना ही भावुक हो कर जवाब देतीं.

रिंकी समझ न पाती थी कि वाट्सऐप पर मांबेटी के बीच प्यार दिखाना कितना सच था. हर मां का प्यार निस्वार्थ होता है, चाहे वह बेटी की मां हो या बेटे की या फिर बहू की. मां तो मां होती है, उस की नजर में सभी बच्चे बराबर होते हैं. वैसे भी, प्यार एक एहसास है, जिसे खुशबू की तरह महसूस किया जाता है. इसे सिर्फ मां पर अपना दबदबा दिखाने के लिए नहीं दिखाया जाता. लेकिन वह अपनी दोनों भाभियों के सामने कुछ भी कह कर अपने लिए मुसीबत खड़ी नहीं करना चाहती थी.

धीरेधीरे समय बीतता गया. नैतिक की भी शादी हो गई. उस की पत्नी माया डाक्टर थी. उस ने जल्दी ही अपना घर बसा लिया, क्योंकि उसे अस्पताल जाने में परेशानी होती थी. फिर भी उस की सास ममता को लगता था कि अगर जरूरत पड़ी तो वह उसे यमराज के हाथों से छीन लेगी.

दरअसल इंसानी ज़िंदगी एक इम्तिहान है. कइयों की ज़िंदगी में कई इम्तिहान आते हैं. कई पास होते हैं तो कोई फेल. लेकिन डाक्टरी ऐसा पेशा है जिस में हर दिन हर डाक्टर के लिए एक नहीं, कई इम्तिहान होते हैं. हर मरीज़ डाक्टर के लिए एक इम्तिहान होता है. डाक्टर इम्तिहान में कामयाब है, तो मरीज़ की हालत सुधरेगी और नाकामयाब है, तो मरीज़ की हालत बिगड़ेगी. हर मरीज़ डाक्टर के सामने एक चुनौती पेश करता है जिसे उस को स्वीकार करना पड़ता है.

एक दिन सुबहसुबह ममता देवी बाथरूम में गिर पड़ीं और सिर में चोट लग गई. उन्हें तुरंत अस्पताल में भरती कराया गया. पूरी रात बेहोश पड़ी रहीं. अगले दिन उन्हें होश आया. वे थोड़ाबहुत बोल पाईं, पर उन का बायां हाथ और पैर लकवाग्रस्त हो गया. स्थिति गंभीर थी, घर में सभी को इस की जानकारी दी गई. ममता की तीनों बेटियां भी आ गईं. अपनी बेटियों को देख कर उन का चेहरा खिल उठा. तीनों बहनें कुछ देर वहीं बैठी रहीं.

सब से पहले उन्होंने यह जानने की कोशिश की कि आखिर उस की मां की इस हालत के लिए कौन जिम्मेदार है. वे उस की समीक्षा करते हुए आंसू बहाती रहीं. उन की आलोचना को अनदेखा करते हुए जब रिंकी ने घर की बढ़ती जिम्मेदारियों का हवाला देते हुए कम से कम एक बहन को घर या अस्पताल में रहने के लिए कहा तो कोई भी रुकने को तैयार नहीं हुई. तीनों ने ही किसी जरूरी काम का बहाना बना कर वहां रहने में असमर्थता जताई और मां को जल्दी आने का आश्वासन दे कर चली गईं.

उस दिन ममता की आंखें भर आईं. शायद उस ने सोचा हो कि बेटियों के लिए मृत्युशैया पर पड़ी अपनी मां की देखभाल से ज़्यादा महत्त्वपूर्ण कोई काम हो सकता है क्या? ममता के बीमार दिल पर यह पहला आघात था.

छोटी बहू माया डाक्टर थी, इसलिए आसानी से उन के इलाज की सारी व्यवस्था अच्छे ढंग से कर दी गई. पर उस के पास भी इतना समय नहीं था कि ममता देवी के पास कुछ देर बैठ सके. उन की देखभाल और उन के पास रहने की सारी ज़िम्मेदारी रिंकी पर आ गई थी.

समय के साथ पेरैंट्स बूढ़े हो जाते हैं और उन्हें अपने बच्चों की जरूरत होती है. जिस तरह बचपन में मांबाप अपने बच्चों की परवरिश करते हैं, उसी तरह बच्चों को भी अपने मांबाप को उन के बुढ़ापे में संभालना चाहिए. लेकिन बड़े होने पर ये बच्चे सब भूल जाते हैं.

कुछ दिन अस्पताल में रहने के बाद ममता देवी घर आ गई थीं. रिंकी ने उन की देखभाल में दिनरात एक कर दिया था. ऐक्सरसाइज कराने में वह मदद करती थी जिस से वे तेज़ी से ठीक हो रही थीं. काम इतना बढ़ गया था कि उसे हर पल किसी अपने की ज़रूरत महसूस होती थी. जब भी उस की ननदें ममता से मिलने आती थीं, तो वह उन से कुछ दिन अपनी मां के पास रहने का अनुरोध करती थी, क्योंकि बेटियों के साथ रहने से ममता देवी के जल्दी ठीक होने की संभावना थी. इस से उसे कुछ मदद भी मिल जाती. लेकिन तीनों बहनें कोई न कोई बहाना बना कर चली जाती थीं.

ममता देवी भी चाहती थीं कि ऐसे मुश्किल समय में उन्हें अपनी बेटियों का साथ मिले और वे अपना दर्द उन से साझा कर सकें. एक दिन उन्होंने खुद ही सब से छोटी बेटी से कहा, ‘बेटी, कुछ दिन मेरे पास ही रहो. तुम तीनों बहनों से ज़्यादा मेरे करीब और कौन है जो मेरा दुखदर्द समझ सके?’ यह बोलतेबोलते उन का गला भर आया और वे सिसकियां भरने लगीं.

‘हां मां, क्या यह कहने लायक बात है? एक मां अपनी बेटियों से ज्यादा किसी के करीब नहीं हो सकती. पर क्या करूं मां, बच्चों के स्कूल खुल गए हैं, वरना मैं खुद ही तुम्हारे पास रहने को बेचैन रहती हूं,’ यह कह कर वह घर की जिम्मेदारियां गिनाते हुए चली गई. ममता के बीमार दिल पर यह दूसरा झटका था.

रिंकी को हैरानी हुई कि वह ममता की बेटी नहीं थी, पर इतने दिनों से साथ रहने के कारण वह उस से इतना जुड़ गई थी कि वह उन्हें दर्द में देख नहीं सकती थी और उसे सांत्वना देने की पूरी कोशिश करती थी. ममता अब पूरी तरह से अपनी बहू रिंकी पर निर्भर थी. उन की गंभीर हालत में भी उन के बच्चों के पास उन के लिए समय नहीं था. उन की बहू, जिसे वे हमेशा एक अजनबी की तरह समझती थीं, अब उन लोगों से भी ज्यादा उस का खयाल रख रही थी जिन्हें वे अपना मानती थीं.

रिंकी के प्रयासों से वे धीरेधीरे ठीक हो रही थीं. एक महीने के भीतर ही वे अपने पैरों पर खड़ी होने लगीं और चलने लगीं. आज उन्हें किसी के सहारे की जरूरत नहीं थी. ममता उसी बहू के सहारे जिंदा थीं जिस का वे अकसर तिरस्कार किया करती थीं. कैसा जमाना आ गया है, जिस मांबाप के सहारे बच्चे बड़े होते हैं उसी को अंत में बेसहारा कर देते हैं.

लेखिका – पूनम

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