शहर के व्यस्ततम बाजार से गुजर रहा था. पहले तो इस शहर में लगभग हर वर्ष आता था. धीरेधीरे अंतराल बढ़ता गया. अब एक लंबे अंतराल के बाद आया था. हर गुजरने वाले को बड़े गौर से देख रहा था इस आशा के साथ कि शायद वह भी दिख जाए. अचानक उस पर नजर ठहर गई. वही तो थी जिसे मैं वर्षों से ढूंढ़ रहा था. उस की नजर भी मु झ पर पड़ गई तो वह भी ठिठक गई.

पता नहीं अचानक मु झे क्या हुआ. बिना कुछ देखे मैं उस की ओर लपक लिया. गुजरती हुई एक कार ने उठा के मुझे एक ओर पटक दिया. पता नहीं मु झे क्या हुआ, शायद बेहोश हो गया था. आंखें खोलीं तो देखा, मेरे चारों ओर एक भीड़ थी और एक व्यक्ति मेरे मुंह पर पानी के छींटे मार रहा था. मैं हड़बड़ा कर उठा और चारों ओर देखने लगा. वह मु झे भीड़ के पीछे चिंतित हो देख रही थी.

‘‘मरने का इतना ही शौक है तो किसी रेलगाड़ी के नीचे आ जाओ, मेरी गाड़ी के आगे क्यों कूद गए,’’ एक सूटेडबूटेड व्यक्ति क्रोध में बोल रहा था. वह कार मालिक था. मैं ने उस से हाथ जोड़ कर क्षमा मांगी और वह बुदबुदाता हुआ चला गया और भीड़ भी छंट गई. वह हाथों में भरेभरे 2 थैले लिए वहीं मु झे घूर रही थी. माथे पर चिंता की लकीरें दृष्टिगोचर थीं और आंखों में पानी.

मैं धीमेधीमे कदमों से चलता हुआ उस के समीप गया. चाह कर मेरे मुंह से दो शब्द न निकल सके. शायद, उस की भी यही हालत थी. बस, देखते रहे एकदूसरे को. जब भीड़ के एकदो धक्के लगे तो सचेत हुए.

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