अलीगढ़ के रहने वाले 80 साल के मुनेश कुमार गुप्ता स्वास्थ्य विभाग में सुपरवाइजर के पद से रिटायर हुए थे. रिटायर होने के बाद उन का समय घर में गुजरने लगा. मुनेश चिकित्सा विभाग में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी थे. उन्होंने पत्नी गायत्री देवी के नाम 1981 में मकान बनवाया था. इन की 5 संतानों में 3 बेटियां और 2 बेटे हैं. शादी के बाद बेटियां ससुराल चली गईं.

2005 में मुनेश रिटायर हो गए. रिटायर होने से पहले तक पूरा परिवार एकसाथ रहता था. 2008 में पत्नी गायत्री ने छोटे बेटे को अपना मकान दान कर दिया. बड़े बेटे का हक मारे जाने को ले कर मुनेश कुमार का अपनी पत्नी गायत्री देवी के बीच विवाद शुरू हो गया. जब आपस में कोई सुलहसमझौता नहीं हो पाया तो यह मसला पुलिस से होते हुए फैमली कोर्ट पहुंच गया. दोनों अलगअलग बेटों के साथ रहने लगे.

पत्नी गायत्री ने परिवार न्यायालय में पति के खिलाफ भरणपोषण अधिनियम की धारा 125 के तहत यह दावा किया. याची पति मुनेश कुमार की ओर से अधिवक्ता घनश्याम दास मिश्रा ने दलील दी कि 1981 में पत्नी के नाम पर मकान खरीदा. इस के बाद रिटायर होने के बाद मिले एक लाख रुपए भी 2007 में पत्नी के नाम फिक्स्ड डिपौजिट किए थे. इस के बाद भी वह 2,000 रुपए पत्नी को देता था. तब भी पत्नी गायत्री ने परिवार न्यायालय में दावा कर दिया. जबकि पत्नी खुद छोटे बेटे को दान दिए घर में परचून की दुकान चलाती है. पत्नी और छोटे बेटे ने मुनेश कुमार गुप्ता और बड़े बेटे को घर से निकाल दिया है. याचिकाकर्ता से पैंशन के 35,000 रुपए में से 15,000 रुपए भरणपोषण की मांग की जा रही है, जो अवैधानिक है.

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