साल, महीने, सप्ताह और तारीखों में कोई शुभअशुभ के ‘अनिवार्य संबंध’ की खोज करे तब क्या कहिएगा? हम ठहरे निपट मूर्ख, मोटी बुद्धि के. रफ ऐंड टफ सोच के धनी. भला हमें यह कैसे समझ आएगा कि आने वाली या पिछली तारीखों में कौन सी शुभ है या अशुभ? लेकिन अब लगता है हमारी धारणा गलत है. जब पूरी दुनिया कुछ खास तारीखों से जुड़ी शुभअशुभ की संभावना व आशंकाओं से त्रस्त दिखे तो भला हम सही कैसे हो सकते हैं.

विगत वर्षों के अनुभव देखिए.

12-12-12 के जनून को ही ले लीजिए. इस में खास क्या था, हमें समझ नहीं आया. 12 दिसंबर की सुबह से ही जब शुभकामनाओं के एसएमएस आने लगे तो हमें अपनी नादानी पर तरस आया. असल में हमारी बुद्धि पिछड़ी हुई है. हम साक्षात बैकवर्ड यानी आउटडेटेड हो चुके हैं. तभी तो ऐसी अक्षम्य गलतियां कर जाते थे कि अनूठी तारीखों का माहात्म्य समझ ही नहीं आता. सच पूछें तो 12-12-12 के खास दिवस के अनुभव ने हमें चेताया कि भैये, कुछ तो नया, यादगार कर लेना चाहिए था उस दिन.

लोगों में कैसीकैसी दीवानगी थी? कोई बाप बनने को उतावला था तो कोई विवाहसागर में डुबकी लगाने को बेताब. उस दिन किसी की हसरत वाहन के मालिक बनने की थी तो किसी को नए मकानदुकान या प्रौपर्टी की खरीदफरोख्त के मुहूर्त की. ‘समझदार’ दीवानों ने महीनों पहले ही अस्पताल में अपने नवजात मेहमानों के आगमन के लिए बैड, औपरेशन थिएटर बुक करवा लिए थे. अच्छी बात यह रही कि मैडिकल प्रोफैशन ने लोगों की इस भावना का बाकायदा भरपूर साथ निभाया. हां, थोड़ाबहुत अतिरिक्त खर्च हुआ हो तो वह बात अलग थी. कायदे की बात है कि जब सुविधा लेते हैं तो धन तो खर्चना ही पड़ेगा.

विवाह संस्कार संपन्न होने की घटना भी ऐतिहासिक रही. 12-12-17 के दिवस पर समय भी 12:12:12 को चुना गया तो विवाह के अनोखे तौरतरीकों ने भी हमारा दिल खूब लुभाया. हमें तरस आया, काश, हमारा भी विवाह ऐसी ही नायाब तारीख पर होता.

बहरहाल, उस दिन मीडिया द्वारा 12-12-12 के माहात्म्य के ‘नौन स्टौप’ गुणगान से हमें शाम को होश आया कि बहती गंगा में भले ही स्नान न हो पाए, हाथपांव तो धो ही लिए जाएं. लेकिन तब तक समय निकल चुका था, क्या करते? हम ने पत्नीजी से कहा, ‘‘अजी सुनती हो, चलो, अपनीअपनी शादी का ‘नवीनीकरण दिवस’ ही मना डालें?’’ पत्नीजी ने हमें यों घूरा जैसे हम ने कोई अजूबे सरीखी बात कह डाली हो. खैर, डिनर में एक अदद अतिरिक्त सब्जी और रिफाइंड औयल की पूडि़यां बनवा कर हम ने 12-12-12 के अद्भुत दिवस को सैलिब्रेट कर लिया. तभी हमारी गुडि़या ने बंदूक की गोली की तरह सवाल दागा, ‘‘पापा, आप तो इतना लिखते हैं, कालेज में पढ़ाते हैं, आप ही बताइए न, 12-12-12 और 21-12-12 की दीवानगी का राज क्या है?’’

हमारा ‘शाकाहारी नशा’ तुरंत काफूर हो गया. क्या जवाब देते? शाकाहारी नशा मतलब आम आदमी महंगाई में घासफूस से इतर और कुछ अफोर्ड भी तो नहीं कर सकता. बहुत दिनों से सुन रहे थे कि

21-12-12 को भी अद्भुत योग बना था. दुनिया खत्म हो जानी थी उस दिन. इस आशंका की बानगी देखिए, फ्रांस से रूस, अमेरिका सहित एशियाई देशों में लोग इस कदर भयभीत हो गए कि वे जान बचाने के लिए तरहतरह के उपाय करने लगे. सुना था कि फ्रांस में लोग एक पवित्र पहाड़ पर शरण लेने गए तो कुछ जगह लोग बंकरखंदक खुदवा कर अपने को महफूज करने का जीतोड़ प्रयास करने लगे. ऐसे आलम में धर्म के व्यवसाइयों की चांदी होना स्वाभाविक था.

हम इतना जानते हैं ये सब महज अंधविश्वास है. दुखद है लेकिन अपनी उम्र के 45 वसंत के दर्शन कर लेने पर भी आज हमें ऐसी बेसिरपैर की अफवाहों से दोचार होना पड़ता है.

ज्ञानीजन दावा कर रहे थे कि ‘माया सभ्यता’ का कैलेंडर खत्म हो गया. भविष्यवेत्ताओं की भी 21 दिसंबर को दुनिया खत्म हो जाने की भविष्यवाणी थी, इसलिए सब का डरना वाजिब था. लोगों के बीच फैले डर का असर देखिए, अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा को

इस तारीख को ले कर प्रचारित भ्रांतियोंअफवाहों का खंडन करना पड़ा.

खैर, ज्यादा क्या कहें, जब तर्क का स्थान अंधविश्वास ले ले तो फिर बुद्धि के लिए ज्यादा कुछ बचता नहीं है. भेड़चाल से एकदूसरे की सुनसुना कर हम भी उसी धारा में बहकने लगते हैं जहां ऐसे अवसरों को कैश करवाने वाले शातिर हमारी भावनाओं को रुपयों से तोल कर नफेनुकसान की इबारतें लिखते हैं.

हमें एक बात और समझ नहीं आ रही. अगर 12-12-12 तारीख इतनी शुभ और यूनीक थी तो फिर 21-12-12 का अंदेशा विरोधाभास पैदा नहीं करता? मतलब जो इस दिन पैदा हुए या जिन्होंने शादी का लड्डू चखा तो फिर उन के जीवन में तो खुशियां, सुकून, स्थायित्व होना चाहिए था. क्या सिर्फ यह जमात ही 21-12-12 को खुशी मनाती और शेष सब खत्म? गड़बड़झाले में फंसना ही बेकार है.

हमारा सिद्धांत तो सिर्फ सद्कर्म करने का है, फल की चिंता करना बेकार है. हमारे छोटे साहबजादे का इस विषय पर बालसुलभ कमैंट देखिए, ‘‘पापा, अगर 21-12-12 को वास्तव में कोई आकाशीय पिंड पृथ्वी से टकरा कर दुनिया को नष्ट कर देता तो फिर दिसंबर की सर्दी की छुट्टियों से पहले हाफ ईयरली एग्जाम्स कराने की क्या जरूरत थी? क्यों न बच्चों को ऐंजौय करने देते और टैंशन के सब काम 21-12-12 के बाद के लिए लंबित कर देते.’’

सच तो यह है कि 21वीं सदी में प्रवेश के साथ ही ऐसी अजूबी तारीखों के फोबिया ने हमें परेशान कर डाला था. यह अलग बात थी कि हम अपनी नासमझी को स्वीकार कर रहे थे और ज्यादातर लोग इन तारीखों के चक्कर में आज तक फंसे हुए हैं. हमारी पूरी फैमिली भी दुनिया के लेटेस्ट ट्रैंड को देखते हुए इन तारीखों के शुभअशुभ की संभावनाआशंका में पूर्ण श्रद्धासमर्पण किए बैठी है. संभव है गलती हमारी हो जो महत्त्व को ढंग से समझ नहीं पा रहे. लेकिन क्या करें?

हमारे अनुभव हमारी रामकहानी खुद बयां करते हैं. आप एक नजर कुछ अन्य तारीखों पर डाल लीजिए, 10-10-10, 9-2-11, 10-11-12, 7-1-13, 13-1-13, 11-12-13, 31-11-13. विगत या भविष्य की इन खास तारीखों से जुड़े हमारे अनुभवों पर गौर करें. इन के कारण हमारी लाइफ में कैसेकैसे तूफान आए हैं. हमारे एक मित्र, जो भविष्य दर्शन के एक्सपर्ट होने का दावा करते हैं, मिलने हमारे घर आए. अंकों के हिसाब से दूसरों का भविष्य बताने का उन्हें जनून सवार है. चायपानी के बाद उन्होंने हमें कुछ रंगबिरंगे लिफाफों में से एक लिफाफा चुनने को कहा.

असमंजस में हम ने गुलाबी लिफाफा चुन लिया जिस में एक तारीख लिखी थी 7-1-13. हमारे मित्र उसे देखते ही हमें बधाइयां देने लगे, पार्टी की बात भी ठहरा ली गई. कारण, उन के अनुसार

7-1-13 अर्थात इस का अर्थ था ‘साथ एक तेरा.’ इसलिए इस दिन शर्तिया हमारा समय चमकने वाला था. कोई चाहने वाली 7-1-13 पर हम से निश्चित रूप से मिलने वाली थी. लाइफ में ट्विस्ट की संभावना और सुंदर महिला मित्र की कल्पनामात्र से हमारे मन में लड्डू भी फूटने लगे. आगामी सुखद घटना की खुमारी में हमारे पैर जमीं पर नहीं पड़ रहे थे.

भविष्यवाणी पक्की थी, सो, हमें भी पूरा विश्वास था. लेकिन 7-1-13 को हुआ उलटा. दरअसल, कालेज से फ्री हो कर हम इंडिया गेट की तरफ सैर के लिए निकल गए. पूरी उम्मीद थी कि वहां कोई खास दोस्त हमारा इंतजार करती मिलेगी. लेकिन जनाब समय ने धोखा दिया और वहां हमारा पाला पुलिस से पड़ गया. संदिग्ध समझ कर पुलिस हमें पकड़ कर थाने ले गई. दिल्ली का माहौल आजकल वैसे भी गरम है. हम लाख सफाई देते रहे लेकिन वह सर्द रात हमें थाने में बितानी पड़ी. बड़ी मुश्किल से दूसरे दिन छूटे. मिलन तो हुआ लेकिन उस से नहीं जो अपेक्षित था, बल्कि उस से जिस से मिलना शायद ही कोई पसंद करता हो.

9-2-11 की तारीख पर हमारी पत्नीजी का अनुभव देखिए. उस दिन वह घर में अकेली थी. साधु के वेश में एक सज्जन घर आए और बातचीत में उन्होंने पत्नीजी को ऐसा सम्मोहित किया कि वह घर में रखी नकदी, जेवरात को दोगुना कराने के उस सज्जन के झांसे में आ गई. वह तथाकथित साधु महाराज हमारी जमा पूंजी को ले कर ऐसा नौ दो ग्यारह हुआ कि उस तारीख 9-2-11 को वह एकदम सही तरीके से चरितार्थ कर गया.

10-10-10 के पावन दिवस का भी बड़ा हल्ला मचा. जानकार लोगों ने उस के शुभ होने का ऐसा ढिंढोरा पीटा कि हम सपरिवार बेवकूफ बने. सुना था यह दिन कारोबारी व्यवसाय, इन्वैस्टमैंट के लिए बहुत शुभ है. यदि थोड़ा भी निवेश करें तो बड़ा रिटर्न मिलना तय था. इसलिए हम ने कोई कसर नहीं छोड़ी. बैंक से लोन लिया. पत्नीजी को एक गोल्डन नैकलैस दिलवाया, तो बेटे को एक बाइक. हम ने पूरे एक लाख रुपए एक कंपनी में निवेश भी कर दिए. बाद में पता चला कि हम जैसे अनेकानेक लोगों को मूर्ख बना कर वह कंपनी भाग गई और हम ठगी का शिकार हो गए. उस मनहूस दिवस को अब हम आज तक भुगत रहे हैं. बैंक के लोन की किस्त और तंगहाली के आलम में 10-10-10 को कोसने के अलावा अब कर भी क्या सकते हैं.

आप हमें मूर्ख कहेंगे जो बारबार शिकार बन जाते हैं लेकिन क्या करें, आम आदमी की मजबूरी है, बेचारा आसान शिकार जो ठहरा. शौर्टकट से प्रौफिट कमाने का लालच छोड़ भी तो नहीं सकता वह. अब तो हमें भी समझ आ गया कि कुछ लोग जनता की साइकोलौजी का बेजा फायदा उठाने के लिए ही ऐसी अफवाहें फैलाते हैं ताकि उन का उल्लू सीधा होता रहे, ठगी का कारोबार फलताफूलता रहे, धर्म की दुकानें चांदी काटती रहें.

10-11-12 की तारीख के लिए हमारी पड़ोसिन ने पत्नीजी के दिमाग में बिठा दिया कि यह जादुई अंक है जो गुप्त शक्तियों से लबरेज है. इस में कम से ज्यादा की और ‘गमन’ की शक्ति छिपी है. इस दिन काम की शुरुआत हो, तो वारेन्यारे हैं. इसी उम्मीद में पत्नीजी ने ड्राइविंग सीखने का उद्घाटन

10-11-12 को कर डाला. सिर मुंड़ाते ही ओले पड़ना जैसा वाकेआ घटित हो गया. कार चालाने की पहली कोशिश में ही उस ने किसी की नई कार में अपनी कार ठोंक दी. अब आगे मत पूछना कि क्या हुआ होगा. जो भी हुआ वह शुभ तो कतई नहीं था. पुलिस, कचहरी और मुआवजे ने ऐसा सबक सिखाया कि तारीखों में छिपे शुभअशुभ की बातें ही भुला बैठे.

अब कुछ दिनों में और खास तारीखें आने वाली हैं : 19-1-19, 10-9-19, 9-10-19 हमें अभी से भय सताने लगा है कि पता नहीं क्या होगा? संभव है कि भविष्य में ऐसी कोई अफवाह फैल जाए और हमारी तरह फिर कोई शिकार बन जाए. सच पूछें तो हम जानते हैं कि आगामी दशकों में, इसी सदी में अनेकानेक तारीखें अद्भुत अंकीय संयोग पैदा करेंगी लेकिन उन में चमत्कार ढूंढ़ना व्यर्थ है. कारण, उन का कोई वैज्ञानिक आधार या प्रमाण नहीं है.

11-11-18, 11-11-18, 11-12-18, 1-1-19, 10-10-18 जैसी तारीखों को नेल्सन स्कोर (क्रिकेट की भाषा के) समझ कर अंधविश्वास में खुद को जकड़ना कहां की बुद्धिमानी है? ऐसी तारीखें तो हर शताब्दी में आती हैं लेकिन इतिहास गवाह है ऐसा कोई विलक्षण असर कायनात पर तो होता नहीं दिखा. अब समझ अपनीअपनी ही अंधविश्वास में जिए या तर्क की कसौटी पर सोचना शुरू करें.

बहरहाल, कुछ नफानुकसान हो या न हो, लेकिन सर्द मौसम में ऐसी अफवाहों से गरमाहट जरूर महसूस हो रही है.

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