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सोने का हिरण : रजनी को आगाह क्यों नहीं कर पा रही थी मोनिका

लिफ्ट से उतरते हुए मोनिका सोच रही थी कि इस बार भी वह रजनी से वे सब नहीं कह पाई जिसे कहने के लिए वह आज दूसरी बार आई थी. 8वीं क्लास से रजनी उस की दोस्त है. तेल चुपड़े बालों की कानों के ऊपर काले रिबन से बंधी चोटियां, कपड़े का बस्ता, बिना प्रैस की स्कूल ड्रैस, सहमी आंखें क्लास में उस के छोटे शहर और मध्यवर्गीय होने की घोषणा कर रहे थे.

मोनिका को आज भी याद है कैसे क्लास की अभिजात्य वर्ग की लड़कियां उस से सवाल पर सवाल करती थीं. कोई उस की चोटी का रिबन खोल देती थी तो कोई उस का बैग कंधे से हटा देती थी. रजनी को तंग कर वे मजा लेती थीं.

ये वे लड़कियां थीं जो रिबन की जगह बड़ेबड़े बैंड लगाती थीं, जिन के सिर क्रीम और शैंपू की खुशबू से महका करते, जो कपड़े के बस्ते की जगह फैशनेबल बैग लाती थीं और पाबंदी होने के बावजूद उन के नाखून नित नई नेलपौलिश से रंगे होते थे. टीचर्स भी जिन्हें डांटनेडपटने के बदले उन से नए फैशन ट्रैंड्स की चर्चा किया करती थीं.

रजनी की सहमी आंखों में सरलता का ऐसा सम्मोहन था कि मोनिका हर बार उस की मदद के लिए आगे बढ़ जाती थी. किशोरावस्था की उन की यह दोस्ती गहराने लगी. देह की पहेलियां, जीवन के अनसुलझे प्रश्न, भविष्य के सपने, महत्त्वाकांक्षाएं आदि पर घंटों बातें होती थीं उन की. समय ऐसे ही सरकता गया और डिग्री के बाद एमबीए की पढ़ाई के लिए मोनिका विदेश चली गई.

लौटने पर पता चला कि बैंक मैनेजर वसंत से विवाह रचा कर रजनी गृहस्थी में रम गई है. यह रजनी का स्वभाव था कि अपने आसपास जो और जितना भी मिला वह उस में खुश रहती थी. उस से आगे बढ़ कर कुछ और अधिक पाने की मृगतृष्णा में वह हाथ आई खुशियों को खोना नहीं चाहती थी. किंतु इस के विपरीत मोनिका अपनी महत्त्वाकांक्षाओं के आकाश की ऊंचाई और विस्तार की सीमा को आगे बढ़ कर स्वयं तय करने में विश्वास करती थी.

मोनिका ने बड़ी आईटी कंपनी जौइन कर ली थी. अब दोनों सखियां कम मिलती थीं पर फोन पर उन की बातों का सिलसिला जारी था. मोनिका कभी अपने मन का गुबार निकालने के लिए तो कभी कोई सलाहमशवरा लेने के लिए रजनी के घर का रुख करती थी.

हर परिस्थिति से तालमेल बैठा कर खुश रहने वाली रजनी अपने 2 बच्चों के साथ पूरी तरह गृहस्थी में रम गई थी. वसंत भी तो उस का पूरा खयाल रखता था. जन्मदिन हो या वर्षगांठ, वह कभी तोहफा देना नहीं भूलता था.

महंगी साडि़यां, परफ्यूम, नैकलैस, जड़ाऊ गहनों के तोहफों को बड़े उत्साह से रजनी मोनिका को दिखाती. घूमनाफिरना, छुट्टी मनाने के लिए नई जगहों में घूमना सब कुछ तो हासिल था रजनी को. हर माने में वह एक सुखी जीवन जी रही थी.

पर उस दिन वसंत को मोनिका ने शौपिंग मौल में किसी और के साथ देखा था. मीडियम हाइट और घुंघराले बालों वाले वसंत को पहचानने में उस की आंखें धोखा नहीं खा सकती थीं. एक झोंके की तरह दोनों उस के पास से निकल गए थे.

‘‘नहीं, ऐसा नहीं हो सकता. जरूर उसे धोखा हुआ है,’’ यह कह कर उस ने इस बात को अपने मन से निकाल दिया था.

इस बात को अभी महीना भर भी नहीं हुआ था कि वसंत उसे कौफी शौप में मिल गया. शौपिंग मौल वाली उसी लड़की के साथ. नजरें टकराने पर कसी हुई कुरती और जींस पहने, छोटे बालों वाली 25-26 वर्षीय युवती का परिचय करवाया, ‘‘यह नीना है, मेरे बैंक में कैशियर…’’

एक ठंडा सा ‘हाय’ उछाल कर मोनिका वहां से खिसक गई. उस के दिमाग में कहीं कुछ खटक गया था पर जमाना तेजी से बढ़ रहा है…एक ही प्रोफैशन के लोग अकसर साथसाथ घूमते हैं. यह सोच उस ने इस बात को भी भुलाना चाहा, पर रजनी का मासूम चेहरा और सरल आंखें उस के सामने आ जातीं.

मोनिका के मन में आया कि वह रजनी से बात करे. फोन भी मिलाया उस ने, पर नंबर मिलते ही लाइन काट दी. उस ने अपने मन को मजबूत किया कि नहीं वह अपने दिमाग में कुलबुलाते वहम के कीड़े को नहीं पालेगी. उसे कुचलना ही होगा वरना वह काला नाग बन खुशियों को न डस ले.

फोन पर रजनी से अब भी बातचीत होती. उस के स्वर में झलकने वाली खुशी से मोनिका अपनेआप को धिक्कारती कि वसंत के लिए उस ने न जाने क्याक्या सोच लिया.

गरमी के दिन थे. औफिस से निकलतेनिकलते आइसक्रीम खाने और समंदर के किनारे टहलने का प्रोग्राम बना. समंदर की ठंडी हवाओं की थपथपाहट से दिन भर की थकान उतर गई. आइसक्रीम का लुत्फ उठाते, गपियाते हुए मोनिका संजना के साथ एक ओर बैठ गई.

संजना को अचानक शरारत सूझी और थोड़ी दूर झाडि़यों के झुरमुट में बैठे जोड़े पर मोबाइल टौर्च से रोशनी फेंकी. मोनिका की आइसक्रीम कोन से पिघल कर उस की कुहनी तक बहने लगी. एकदूजे की बांहों में लिपटे वसंत और नीना का ही था वह जोड़ा.

‘अपनी खास सहेली के घर को वह अपनी आंखों के आगे उजड़ते नहीं देख सकती,’ यह सोच कर औफिस से छुट्टी ले कर वह दूसरे ही दिन रजनी के घर पहुंच गई. वह किचन में रजनी के पास खड़ी अपनी बात कहने का सिरा तलाश रही थी जबकि रजनी बड़े प्यार से वसंत की मनपसंद भिंडी फ्राई, दालमक्खनी, रायता और फुलके तैयार कर रही थी.

मातृत्वसुख और वसंत के प्रेम में पगी रजनी की बातों के आगे मोनिका की बात का सिरा हर बार छूट जाता और आखिर बिना कुछ कहे ही वह उस दिन लौट गई.

आज दूसरी बार भी बिना कुछ बताए रजनी के घर से लौटते हुए वह सोच रही थी कि  वसंत एक पति और पिता की भूमिका बखूबी निभा रहा है. गृहस्थी की लक्ष्मणरेखा के दायरे में मिलने वाले सुख से रजनी खुश और संतुष्ट है. लक्ष्मणरेखा के दूसरी ओर वाले वसंत के बारे में जानना रजनी के लिए सोने के हिरण को पाने जैसा होगा.

मोनिका भलीभांति जानती है कि मरीचिका के पीछे दौड़ कर उसे हासिल करने का साहस रजनी में नहीं और अपनी प्यारी सखी की सरल आंखों और उस के मासूम बच्चों की हंसी को उदासी में बदलने का साहस तो मोनिका में भी नहीं है.

उड़ान : जाहिदा ने आखिर कौन सा फैसला किया

आज फिर जाहिदा को देखने आया लड़का शकील मुंह बना कर बाहर निकल गया. उस के साथ आए उस के मांबाप ने घर लौट कर लड़की पसंद नहीं आने का जवाब भिजवा दिया.

पिछले तकरीबन 5-6 सालों से यही सिलसिला चल रहा था. इस बीच 17 लड़के वालों ने जाहिदा पर ‘नापसंद’ की मुहर लगा दी थी.

लेकिन आज तो जाहिदा का सब्र जवाब दे गया. लड़के वालों के घर से बाहर निकलते ही वह भाग कर अपने कमरे में बिस्तर पर पड़ी कई घंटों तक रोती रही.

जाहिदा की बेवा मां शरीफन उस के लिए काबिल दूल्हा ढूंढ़ढूंढ़ कर थक गई थीं. जो भी लड़का आता जाहिदा का सांवला रंग देख कर उलटे पैर लौट जाता. नौबत यहां तक आ गई थी कि 10वीं जमात फेल और आटोरिकशा चलाने वाले लड़कों तक ने उस से शादी करने से इनकार कर दिया था.

साइकिल रिपेयर करने की दुकान से परिवार पालने वाले जाहिदा के अब्बा नासिर खां की मौत के बाद बेवा हुई शरीफन ने बामुश्किल अपनी 3 बेटियों को पालपोस कर बड़ा किया था. उन्होंने सिलाईकढ़ाई कर के जैसेतैसे 2 बेटियों अंजुम और जरीना की शादी भी की लेकिन सब से बड़ी बेटी जाहिदा का रिश्ता तय करने में उन्हें बहुत मुश्किलें आ रही थीं. उस का सांवला रंग हमेशा रिश्ता होने में आड़े आ जाता था.

हर बार नापसंद किए जाने के बाद जाहिदा को गहरा सदमा लगता और वह घंटों तक रोती रहती.

जाहिदा बचपन से ही पढ़नेलिखने में काफी होशियार थी. उस ने 10वीं जमात से ले कर बीएससी तक का इम्तिहान फर्स्ट डिविजन में पास किया था. उस की अम्मी शरीफन मामूली पढ़ीलिखी घरेलू औरत थीं. लेकिन वक्त की ठोकरों ने उन्हें मजबूत बना दिया था. गुजरे सालों में जाहिदा के रिश्ते में आ रही दिक्कतों की वजह से वे हमेशा फिक्र में डूबी रहती थीं.

कमरे से बेटी जाहिदा की सिसकियों की आ रही आवाज सुन कर शरीफन उस की फूटी किस्मत को कोस रही थीं.

तभी थोड़ी देर बाद अचानक कमरे से जाहिरा की आवाज सुनाई दी, ‘‘अम्मी, इधर आओ. मुझे आप से कुछ बात करनी है.’’

कमरे में झाड़ू लगाती अम्मी ने पूछा, ‘‘अरी बेटी, क्या बात है? थोड़ा रुक, मैं झाड़ू लगा कर आती हूं तेरे पास.’’

बहुत देर तक अम्मी को आते नहीं देख जाहिदा कमरे से धीरेधीरे चल कर उन के सामने आ कर खड़ी हो गई. बड़ी देर तक रोते रहने से उस की आंखें सूजी हुई थीं.

जाहिदा कहने लगी, ‘‘अम्मी, मैं ने फैसला कर लिया है कि मैं तब तक शादी नहीं करूंगी जब तक मैं कोई बड़ा मुकाम हासिल न कर लूं.

‘‘मैं समाज को कुछ बन कर दिखाना चाहती हूं ताकि दकियानूसी सोच में जकड़ी इस कौम को पता चले कि तन की खूबसूरती के सामने काबिलीयत और मन की खूबसूरती में क्या फर्क है…’’

जाहिदा बोले जा रही थी, ‘‘अम्मी, लोग किसी इनसान के सांवले रंग पर उस को बेइज्जत क्यों करते हैं? क्या गोरा रंग होने से ही लड़की में सभी खूबियां आ जाती हैं?’’

फिर आखिर में जाहिरा ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा, ‘‘सुनो अम्मी, अब आप मेरे लिए रिश्ते देखना बंद कर दें. अब मेरी जिंदगी का एक ही मकसद है कि मुझे सरकारी अफसर बन कर दिखाना है. इस की तैयारी के लिए मुझे दिल्ली पढ़ाई करने जाना पड़ेगा.’’

अपने सामने खड़ी बेटी के इस फैसले से परेशान शरीफन ने कहा, ‘‘लेकिन बेटी, तू सोच तो सही कि आखिर मैं इतनी महंगी पढ़ाई के लिए इतने सारे पैसे कहां से लाऊंगी?’’

10-15 दिन तो पैसों के जुगाड़ की उधेड़बुन में गुजर गए लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला. एक दिन अचानक जयपुर सचिवालय में सैक्शन अफसर के पद पर काम कर रहे शरीफन के छोटे भाई शहजाद अली मिलने आए.

शरीफन ने भाई को जाहिदा के फैसले के बारे में बताते हुए उन से मदद करने की गुजारिश की.

भानजी के बुलंद इरादों और लगन की बातें सुन कर शहजाद ने बहन से फौरन कहा, ‘‘आप बिलकुल बेफिक्र हो जाओ. जाहिदा बेटी की पढ़ाई की जिम्मेदारी अब उस के मामा की है. मैं सब संभाल लूंगा. देखना हमारा बेटी हमारे खानदान का नाम रोशन करेगी.’’

इस बीच 5 साल गुजर गए. एक दिन दोपहर बाद शरीफन के घर के सामने लालबत्ती लगी 2 कारों के साथ पुलिस और कई सरकारी जीपें आ कर रुकीं. पहली कार से एक गोराचिट्टा नौजवान उतर कर आगे आया और उस ने झुक कर शरीफन के पैर छू कर नमस्कार किया. तभी पिछली कार से उतर कर जाहिदा ने शरीफन को गले लगा लिया.

जाहिदा बोली, ‘‘अम्मी देखो, आप की बेटी एसडीएम बन गई है. मैं ने अपना मुकाम हासिल कर लिया है. लेकिन अभी मेरी उड़ान बाकी हैं.

‘‘अम्मी, ये हैं आप के दामाद सुरेश. ये यहां के जिला समाज कल्याण अधिकारी हैं,’’ जाहिदा ने पास खड़े अपने पति सुरेश का परिचय कराते हुए कहा.

थोड़ी देर रुक कर जाहिदा ने कहा, ‘‘अम्मी, अभी हमें पास के गांव में दौरे पर जाना है. इजाजत दें. बाद में वक्त निकाल कर मिलने आएंगे.’’

शरीफन दूर जाती गाडि़यों के काफिले को बड़ी देर तक खड़ी देखती रहीं. अपनी बेटी की कामयाबी देख उन की आंखों से खुशी के आंसू छलक पड़े.

प्रेमिका की तलाश : क्या पूरी हुई प्रेम की प्रेमिका की तलाश

प्रेम का कालेज में आखिरी साल था और वह बिलकुल सहीसलामत था. मतलब, वह किसी लड़की के चक्कर में नहीं पड़ा था, इसीलिए उस के मातापिता को उस पर नाज था.

लेकिन सच कहें तो प्रेम को यह मंजूर न था. बात यह थी कि उस के दोस्त अकसर किसी न किसी लड़की के साथ कभी पार्क में, कभी बाजार में तो कभी चर्च के पीछे दिख जाते थे. उन्हें मटरगश्ती करते देख प्रेम को बहुत बुरा लगता था. मन में हीनभावना भर जाती थी, क्योंकि उस की कोई प्रेमिका जो नहीं थी, इसीलिए उसे अपने लिए एक अदद प्रेमिका की शिद्दत से तलाश थी.

एक दिन प्रेम कालेज जा रहा था. अचानक रास्ते में कुछ लड़कियों को उस ने कहीं जाते देखा. उन सब के बीच एक लड़की को देख कर वह अपनी सुधबुध खो बैठा.

तभी वह लड़की तिरछी नजर से प्रेम को देख कर मुसकराई, फिर अपनी सहेलियों के साथ आगे बढ़ गई. उस की इस अदा पर वह निहाल हो गया. उसे लगा, इसी लड़की का उसे इंतजार था.

प्रेम कालेज जा रहा था, लेकिन अब उस का इरादा बदल गया. उस ने उस हसीना का पताठिकाना जानने का निश्चय कर लिया और उस के पीछे चल पड़ा.

उस का पीछा करतेकरते तकरीबन आधा घंटे के बाद प्रेम एक अनजान महल्ले में पहुंचा. एकएक कर उस की सारी सहेलियां उस से अलग होती गईं. आखिर में वह लड़की सड़क से लगे एक खूबसूरत घर में दाखिल हो गई. प्रेम समझ गया कि यही उस का घर है.

उस लड़की के घर का पता जान कर प्रेम बहुत खुश हुआ. उस ने तय किया कि अब धीरेधीरे वह उस हसीना से मेलजोल बढ़ाएगा.

अगले दिन प्रेम कालेज जाने के बजाय उस हसीना के घर के सामने जा पहुंचा. उस का दिल जोरजोर से धड़क रहा था. क्या पता उस का दीदार होगा भी या नहीं? लेकिन वह गूलर के फूल की तरह कहीं दिखी ही नहीं.

प्रेम कभी उस लड़की के घर के सामने किराना की दुकान के पास खड़ा हो जाता तो कभी इधरउधर आनेजाने का नाटक करता ताकि लोग समझें कि वह किसी काम से कहीं आजा रहा है. वह 2 घंटे वहीं मंडराता रहा. लेकिन वह हसीना कहीं नजर नहीं आई. वह निराश हो कर वहां से लौटने लगा.

लेकिन प्रेम कुछ दूर ही चला था कि देखा वह हसीना एक औरत के साथ रिकशे में बैठी कहीं से आ रही थी. हाथ में बड़ेबड़े थैले थे. शायद वे बाजार से लौट रही थीं. वह औरत शायद उस की मां थी.

उसे देख कर प्रेम बहुत खुश हो गया. काली घटा सी जुल्फों के बीच झांकता उस का चांद सा मुखड़ा प्रेम को अजीब सी खुशी दे गया.

‘काश, यह मुझे मिल जाए तो मेरी जिंदगी में बहार आ जाए,’ यह सोच कर प्रेम मुसकराया. अपने घर के सामने गेट पर वह लड़की उस औरत के साथ रिकशे से उतर गई और अपने घर के अंदर चली गई.

प्रेम ने सोचा, ‘अब कालेज चलता हूं…’ लेकिन यह सोच कर कि क्लास अब खत्म हो गई होगी, कालेज जाने के बजाय वह वापस घर लौट आया.

प्रेम अब उस हसीना को पटाने की जुगत भिड़ाने लगा. अगले दिन उस ने काले रंग की शर्ट और जींस पहन ली. भैया का काला चश्मा चुपके से उठा लिया और पापा की मोटरसाइकिल ले कर निकल लिया और सीधे उस हसीना के घर के सामने पहुंच गया.

मोटरसाइकिल किराना की दुकान के पास खड़ी कर प्रेम ने चश्मा आंखों पर लगाया और रितिक रोशन के स्टाइल में खड़ा हो कर इधरउधर देखते हुए मोबाइल फोन पर बिना काल किए किसी से बात करने का नाटक करने लगा ताकि कोई यह न कहे कि वह बिना काम के वहां खड़ा है. लेकिन एक घंटे से ज्यादा समय बीत गया, लेकिन वह लड़की नजर नहीं आई.

तभी पता नहीं कहां से एक कुत्ता आ गया और प्रेम पर भूंकने लगा. उस की आवाज सुन कर कहीं से 2 कुत्ते और दौड़े आए उस पर गुर्राने और भूंकने लगे. प्रेम की सिट्टीपिट्टी गुम हो गई. शायद उन्हें उस का काला लिबास और काला चश्मा पसंद नहीं आया था.

प्रेम डर कर एक तरफ भागा. भागतेभागते वह एक पत्थर से टकरा कर गिर गया और नाक से खून निकलने लगा. उस की पैंट और शर्ट पर धूल लग गई. बाल बिखर गए.

प्रेम की यह हालत देख कर बगल से गुजरने वाले एक राहगीर ने उन कुत्तों को डरा कर भगा दिया, तब जा कर उस की जान में जान आई. लेकिन इस हालत में उस हसीना का दीदार करने की उस की इच्छा नहीं रही. वह घर लौट गया.

अगले दिन जब प्रेम उस हसीना के घर के सामने पहुंचा तो उस की खुशी का ठिकाना न रहा. वह अपने घर के बाहर ही किसी सहेली से बात कर रही थी. प्रेम का मन किया कि अभी जा कर उसे अपना हालेदिल कह सुनाए और अपने प्यार का इजहार कर दे. पर सोचा, ‘जल्दबाजी ठीक नहीं होगी. क्या पता कहीं उस की सैंडिल मेरी मुहब्बत के जोश को ठंडा न कर दे.’

थोड़ी देर बाद वह लड़की सहेली से बात खत्म कर घर के अंदर चली गई.उस के बाद कई दिनों तक प्रेम उस हसीना के घरका चक्कर लगाता रहा. कभी छत पर, कभी गेट पर, कभी कहीं आतेजाते वह दिख जाती.

एक दिन प्रेम ने हिम्मत कर एक चुंबन उस की तरफ उछाल दिया. जवाब में वह मुसकरा दी और तुरंत घर के अंदर चली गई.

प्रेम खुशी से पागल हो गया. लगा, अब वह उस से पट जाएगी, इसीलिए कालेज जाना तकरीबन छोड़ दिया और उस हसीना के घर के सामने 2-3 घंटे मंडराता रहता. जब भी वह लड़की प्रेम को दिखती, वह उस की तरफ चुंबन उछाल देता. वह हर बार मुसकरा देती.

एक दिन प्रेम बहुत देर तक उस के घर के सामने मंडराता रहा लेकिन वह नजर ही नहीं आई और न बाहर निकली. बहुत इंतजार के बाद वह निराश हो कर लौटने लगा.

प्रेम कुछ ही कदम आगे बढ़ा था कि अचानक पीछे से 2-3 लड़कों ने उस पर लातघूंसों की बौछार कर दी. उन में से एक चिल्ला कर कह रहा था, ‘‘लड़की पर लाइन मारता है, आज तेरी इश्कबाजी का नशा उतार दूंगा.’’

प्रेम घबरा गया, ‘‘मैं ने यहां कोई लड़की नहीं देखी है. किस लड़की पर लाइन मारने की बात कह रहे हो तुम?’’

एक मुस्टंडे लड़के ने दुकान के पीछे की तरफ इशारा करते हुए कहा, ‘‘उधर देखो, वहां मेरी बहन खड़ी रहती है और तुम यहां से लाइन मारते हो. 20-25 दिन से तुम्हारी हरकतें बरदाश्त कर रहा हूं. आज के बाद से कभी यहां नजर आए तो तुम्हारी हड्डीपसली एक कर दूंगा.’’

उन लोगों की पिटाई से प्रेम की आंखों के आगे अंधेरा घिर रहा था, फिर भी उस ने कोशिश कर दुकान के पीछे की तरफ देखा. सचमुच वहां एक लड़की नजर आई. वह पहली बार उसे देख रहा था. दुकान के पीछे की तरफ कोई लड़की रहती है, यह इतने दिनों तक उसे पता ही नहीं था. वह तो दुकान के सामने वाले मकान में रहने वाली लड़की के चक्कर में यहां भटक रहा था.

‘‘मुझे छोड़ दो. मैं ने वहां किसी लड़की को पहले नहीं देखा है. लाइन मारने की बात तो दूर है,’’ प्रेम ने गिड़गिड़ाते हुए उन से कहा.

‘‘झूठ मत बोलो…’’ एक लड़के ने प्रेम के सूजे हुए गाल पर जोरदार तमाचा मारते हुए कहा, ‘‘अगर लाइन नहीं मारते हो तो तुम यहां क्या करने आते हो?’’

प्रेम के पास इस सवाल का कोई जवाब नहीं था. पिटाई से बचने के लिए उस ने कहा, ‘‘मुझे माफ कर दो. अब से मैं कभी इधर नहीं आऊंगा.’’

इतना कह कर प्रेम ने मोटरसाइकिल स्टार्ट की और भाग लिया.

‘‘बेटे, तेरा यह हाल किस ने किया?’’ प्रेम घर पहुंचा तो मां उस की हालत देख कर रोने लगीं.

प्रेम ने मां को समझाया, ‘‘तुम्हें अपने शेर जैसे बेटे पर भरोसा नहीं है क्या? तुम्हारे बेटे पर हाथ उठाने की किसी में हिम्मत नहीं है. मोटरसाइकिल सड़क के एक गड्ढे में फंस कर गिर गई, इसीलिए मुझे चोट लग गई.’’

शरीर में दर्द और सूजन के चलते प्रेम कई दिनों तक कहीं नहीं जा सका. उन लोगों ने झूठे आरोप में उसे बहुत मारा था. उस हसीना की भी उसे बहुत याद आती थी. प्रेम ने कान पकड़ लिए कि अब दोबारा उस के महल्ले में कदम नहीं रखेगा. लेकिन ज्योंज्यों वह ठीक हो रहा था उसे देखने और प्यार का इजहार करने की इच्छा फिर जोर मारने लगी.

कुछ दिनों के बाद प्रेम हिम्मत कर के फिर उस हसीना के घर के सामने पहुंच गया. पर यह क्या? उस हसीना के घर के आगे कारों का काफिला लगा था. बहुत सारे लोग इधरउधर मंडरा रहे थे. पास ही एक शामियाना लगा था जिसे अब खोला जा रहा था. शायद यहां कोई शादी थी.

तभी कई औरतें उस हसीना के घर से एक दुलहन को घेरे हुए गाना गाती हुई बाहर निकलीं और एक कार की तरफ बढ़ गईं. सब रो रही थीं. दुलहन भी रो रही थी.

दुलहन को गौर से देखा तो प्रेम के होश उड़ गए. वह तो उस की हसीना थी. वह सपनों के महल सजाता रहा और उस की शादी भी हो गई. यह देख कर वह बहुत निराश हुआ.

तभी प्रेम को खयाल आया कि वह बहुत दिनों से कालेज नहीं गया है, इसीलिए बुझे मन से कालेज के लिए चल पड़ा.

रास्ते में प्रेम ने सोचा, ‘मुझे अपने जीवन को संवारने पर ध्यान देना चाहिए, वरना मैं सपनों के महल सजाता रह जाऊंगा और सब की शादी होती जाएगी. और क्या पता, लड़कियों के चक्कर में मैं कहीं निकम्मा और बेरोजगार रह गया तो शायद सारी जिंदगी कुंआरा भी रहना पड़ सकता है. नहीं, मैं यह नहीं होने दूंगा. कैरियर पर पहले ध्यान दूंगा.’

प्रेम तेज रफ्तार से कालेज चल पड़ा. क्लास शुरू होने में थोड़ी ही देर थी.

उड़ता मध्य प्रदेश : 3D के शिकंजे में युवा – ड्रिंक्स, ड्रग्स और डिप्रेशन

देश का ऐसा कोई शहर नहीं है जहां ड्रग्स का कारोबार फलफूल न रहा हो. भोपाल के चर्चित छापे के ठीक एक हफ्ते पहले दिल्ली पुलिस की स्पैशल सेल ने एक इंटरनैशनल कार्टेल का भांडाफोड़ करते कोई 5 हजार करोड़ कीमत की कोकेन पकड़ी थी. इस मामले के तार दुबई से जुड़े थे जो एक सुरक्षित ड्रग मार्केट है. इस गिरोह के सरगनाओं में से एक दिल्ली के वसंतकुंज में रहने वाला तुषार गोयल नाम का शख्स है जिस के पिता दिल्ली के बड़े पब्लिशरों में से एक हैं. एक दूसरा आरोपी हिमांशु कुमार हिन्द विहार प्रेम नगर किरारी का निवासी है. वैस्टर्न मुंबई का रहने वाला भरत कुमार जैन तीसरा आरोपी है.

अंदाजा है कि ये सब तो मोहरे हैं इन का असल बौस कोई और है और बिलकुल फिल्मों की तरह छिपा हुआ है और जिसे कोई नहीं जानता. खासतौर से वे फुट कर विक्रेता तो कतई नहीं जो ड्रग कारोबार की रीढ़ होते हैं. यही हाल भोपाल के आरोपियों का है. जिन में सन्याल बाने महाराष्ट्र का रहने वाला है. साल 2017 में वह एक किलो ड्रग्स के साथ पकड़ा गया था तब अदालत से उसे 5 साल की सजा हुई थी. छूटने के बाद वह दूसरे आरोपी अमित चतुर्वेदी के सम्पर्क में आया जिस के पिता पुलिस विभाग में सब इंस्पेक्टर हैं. कुछ ही दिनों में लोग आते गए और कारवां बढ़ता गया की तर्ज पर इन से हरीश आंजना और एस के सिंह भी जुड़ गए. फिर यह स्क्रिप्ट लिखी गई कि इस धंधे को किसी ऐसी जगह से औपरेट किया जाए जिस पर किसी को शक न हो. इसलिए इन्होने बंद पड़ी एक फैक्ट्री को किराए पर लिया और ड्रग्स बनाना शुरू कर दिया. माना यह जा रहा है कि इन का बौस भी कोई और है जो कहीं बहुत दूर से गिरोह चला रहा था.

इसी साल जून में शिमला में भी एक बड़ा गिरोह ड्रग स्मगलर्स का पकड़ाया था जो पर्यटकों को ड्रग सप्लाई करता था. किस तेजी से इस पहाड़ी इलाके में टूरिस्ट ड्रग्स के लिए भी आने लगे थे इस का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि लगभग एक साल में पुलिस ने कोई एक हजार ड्रग पेड्लर्स को गिरफ्तार किया है और 800 मामले दर्ज किए हैं. छोटेमोटे छापों का तो जिक्र ही बेमानी है जो बहुत थोड़े से माल के साथ पकड़े जाते हैं जो ड्रग स्मगलिंग चैनल का सब से छोटा किरदार होते हैं और यह नहीं जानते कि दरअसल में उन्हें ड्रग सप्लाई करने वाले कौन हैं और बनाने बाले कौन हैं. इन की हालत सेल्समेनों की तरह होती है जिन का काम माल बेचना भर रहता है जो बड़ा आसान काम है.

क्योंकि वह दौर गया जब ड्रग्स का कारोबार करने वाले अपने कस्टमर ढूंढते थे. दौर अब यह है कि ड्रग्स के ग्राहक ही सप्लायर या रिटेलर को ढूंढते नजर आते हैं और उस का पता और उस के बाद माल उन्हें मिनटों में मिल भी जाता है. 24 वर्षीय स्वाति ( बदला नाम ) ऐसे ही ड्रग एडिक्ट्स में से एक थी जो लम्बे इलाज के बाद अब सामान्य है. अब वह मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग की परीक्षा की तैयारी कर रही है. एक संभ्रांत और सम्पन्न कायस्थ परिवार की यह युवती ज्यादा नहीं 2 साल पहले ही नशे की गिरफ्त में आ गई थी. शुरुआत इंजीनयरिंग कालेज के तीसरे साल से हुई थी जब उस ने कालेज के एक फंक्शन के दौरान थोड़ी सी वोदका पी थी. कुछ देर बाद उसे महसूस हुआ कि जिन्दगी कितनी हसीन है. साथ में चार यार और भी थे जो एकदूसरे का हौसला बढ़ा रहे थे.

वह एक सहेली का फ्लेट था, स्वाति बताती है, “वहां हम लोगों ने वोदका ली और कुछ देर बाद खाने के लिए एमपी नगर के एक रेस्टोरेंट में चले गए. मम्मीपापा को पहले ही फोन पर बता दिया था कि लौटने में देर हो जाएगी इसलिए घर का डर नहीं था.” सहेली ने पहले ही बता दिया था कि इस में गंध न के बराबर आती है और अगर इस के ऊपर खाने के बाद और पहले कोई सुगंधित आइटम खा लिया जाए तो दुनिया के कोई पेरैंट्स चेक नहीं कर सकते कि कुछ उल्टासुलटा लिया है. नशेड़ियों की इस गैंग में स्वाति नई थी इसलिए सभी उस का खास ख्याल रख रहे थे.

उस दिन स्वाति का दिमाग हवा में था लेकिन पांव नहीं लड़खड़ा रहे थे. ऐसा लग नहीं रहा था कि कोई नशा किया है. हां, सब कुछ अच्छाअच्छा जरुर लग रहा था. पिछले कुछ दिनों से पढ़ाई का जो दबाब और उस से उपजी ऊब थी वह अब बिलकुल महसूस नहीं हो रही थी. ऊपर से दोनों सहेलियां और दोस्त हिम्मत बंधा रहे थे कि कुछ नहीं होता यार, यही तो जवानी का असली मजा है. अभी ले लिया तो ले लिया नहीं तो पढ़ाई के बाद नौकरी, गृहस्थी और बच्चों के झंझट में लोग कोल्हू के बैल की तरह बंध जाते हैं. आदमी पैसा कमाने की मशीन और जिम्मेदारियों को ढोने वाला कुली बन कर रह जाता है.

देर रात घर आई और बाहर से ताला खोल कर अपने रूम में जा कर सो गई. बहुत दिनों बाद रात को इतनी गहरी और सुकून की नींद आई. इस के बाद तो यह हर कभी का सिलसिला बन गया और धीरेधीरे वोदका की जगह ड्रग्स ने ले ली. पैसों की कमी थी नहीं क्योंकि पापा का एटीएम कार्ड उस के पास ही रहता था और न ही मम्मीपापा को इस बात का अंदाजा था कि उन की इकलौती बेटी अब उड़ने लगी है. लेकिन कुछ दिनों बाद ही उस के बदलते व्यवहार को मम्मीपापा ने ताड़ लिया.

इधर कभीकभार स्वाति को भी गिल्ट फील होता था कि वह अपने सीधेसाधे पेरैंट्स का भरोसा तोड़ रही है. लेकिन यह गिल्ट कुछ देर ही रहता था और ड्रग्स लेने के बाद दूर हो जाता था. वह सोचने लगती थी कि इस में गलत क्या है, दुनिया भर के कामयाब लोगों के अलावा यह तो आजकल उस की उम्र के लगभग सभी करते हैं.

सीधे तो कुछ नहीं कहा लेकिन मम्मी ने एक दिन इशारा कर ही दिया कि अगर किसी परेशानी या बुरी लत में पड़ गई हो तो बता दो. इस बात को स्वाति ने बजाय समझाइश के आरोप की शक्ल में लिया और उन पर बिफर पड़ी. बात पापा तक पहुंची तो वे खामोश रहे और इधरउधर की बातें कर मुद्दे को फौरी तौर पर चलता कर दिया. वह दिन स्वाति पर बहुत भारी पड़ा क्योंकि पहली बार कोई बड़ा झूठ बोला था और उसे लग रहा था कि वह रंगे हाथों पकड़ी गई है. उस दिन वह घर से बाहर नहीं निकली लेकिन 12 – 14 घंटे में ही पूरे शरीर की नसें जैसे खिंचने लगी थीं, सर में दर्द होने लगा था और एक खास तरह की बैचेनी होने लगी. यह तलब थी जिसे वह ज्यादा देर बर्दाश्त नहीं कर पाई और फ्लेट वाली सहेली को फोन किया तो वह बोली तू घबरा मत मैं कुछ करती हूं.

2 घंटे बाद ही वह सहेली घर आ गई और पेरैंट्स से घुलमिल कर बात करती रही. चूंकि वह पहले भी कई बार घर आ चुकी थी इसलिए किसी को शक नहीं हुआ कि आखिर माजरा क्या है. मम्मीपापा को भी इस वक्त उस का आना अच्छा लगा क्योंकि स्वाति के कमरे में पड़े रहने से वे भी चिंता में पड़ गए थे. माहौल थोड़ा ठीक हुआ तो सहेली उसे घूमाने के बहाने बाहर ले गई और नशे की पुड़िया थमा दी. इसे लेते ही मिनटों में ही स्वाति का मूड ठीक हो गया लेकिन ऐसा ज्यादा दिनों तक नहीं चल पाया और एक दिन राज खुल ही गया. मम्मीपापा दोनों सकते में आ गए क्योंकि बारबार पूछने पर खुद स्वाति ने ही गुस्से में बता दिया था कि हां वह सिगरेट भी पीती है, शराब भी पीती है और ड्रग्स भी लेती है और उस के हिसाब से इस में कुछ गलत नहीं है.

जल्द ही वह गलत सामने भी आ गया जब पापा ने सख्ती दिखाते उस के घर से बाहर निकलने पर पाबंदी लगा दी और फ्रैंड्स का भी घर आना बंद कर दिया लेकिन इस दौरान उन्होंने उसे अकेला नहीं छोड़ा. अब स्वाति की हालत खराब थी. तलब बढ़ती जा रही थी और नशा मिल नहीं रहा था. पापा ने तब बहुत कम शब्दों में उसे समझाया और तुरंत एक परिचित डाक्टर के यहां ले गए, जांच के बाद उन्होंने कुछ दवाइयां दीं जिन से स्वाति को थोड़ा आराम मिला. वे शायद नींद या फिर नशे की ही गोलियां थीं. स्वाति बताती है इस के असर से वह तो सो गई लेकिन मम्मीपापा नहीं सोए.

अगले दिन से ही ट्रीटमेंट शुरू हुआ तो 4- 5 महीने बाद ही वह एकदम नार्मल हो गई. उस की वह मित्र मंडली छू हो गई जिस ने उसे नशा करना सिखाया था. बहुत जल्द ही स्वाति को समझ आ गया कि वह कितनी गहरी खाई में गिरने जा रही थी. इसी दौरान पापा ने एक मनोचिकित्सक से भी उस की काउंसलिंग भी करवाई. अब जब सब कुछ ठीक है और वह प्रतियोगी परीक्षा की तयारी में जुटी है तब गुजरा वक्त उसे किसो हादसे से कम नहीं लगता. मम्मीपापा ने पूरा सहयोग दिया और खुद उस ने भी अपनी तरफ से पूरी कोशिश की तब कहीं जा कर नशे की लत से पीछा छूटा.

बीती 6 अक्तूबर को स्वाति पहले सोशल मीडिया पर और दूसरे दिन अख़बार में यह खबर पढ़ कर वह सिहर उठी कि शहर में ड्रग्स बनाने वाले एक बड़े गिरोह का पर्दाफाश हुआ है जो कोई 2200 करोड़ रुपए की ड्रग्स बगरौदा इलाके की एक बंद फैक्ट्री में ड्रग्स बना कर देश भर में सप्लाई करता था. अपने नशे ली लत के दिनों में उस का सीधा वास्ता किसी ड्रग सप्लायर से नहीं पड़ा था. अलबत्ता नशेड़ियों के सर्किल में रहते यह जरुर उसे पता चला था कि नशे के सामान भोपाल में हर कहीं आसानी से मिल जाते हैं. माता मंदिर के पास भी, एमपी नगर में भी, गुलमोहर, त्रिलंगा, शाहपुरा में भी और अयोध्या नगर से ले कर होशंगावाद रोड पर भी.

स्वाति की नजर में इतने बड़े गिरोह के पकड़े जाने से यह समस्या हल नहीं होने वाली. यह बिलकुल नकली नोट छापने वाले किसी गिरोह के पकड़े जाने के बाद यह सोचने जैसा है कि अब नकली नोट चलन के बाहर हो गए. जिस वक्त बगरोदा की फैक्ट्री पर छापा पद रहा था तब भी भोपाल में ड्रग्स धड़ल्ले से बिकती रही होंगी. अपनी लत और इलाज के दिनों में स्वाति ने ड्रग्स पर काफी कुछ पढ़ा और देखा है जिस से उसे लगता है कि किशोरों और युवाओं में नशे के बढ़ते चलन का बड़ा जिम्मेदार सोशल मीडिया है.

आजकल युवाओं के वक्त का एक बड़ा हिस्सा सोशल मीडिया पर बीतता है. जिस में नशे को प्रोत्साहन देते कंटेंट्स बड़ी आसानी से मिल जाते हैं. ये कंटेंट नशे को एक बुराई के नहीं बल्कि जरूरत और ट्रीटमेंट की शक्ल में परोसते हैं. टीनएज में सोशल मीडिया का दिलोदिमाग पर ज्यादा असर होता है और अच्छेबुरे का फर्क करने की तमीज युवाओं में नहीं होती. यह वह वक्त होता है जब युवा पेरैंट्स से कट रहे होते हैं. एक तरह से वे उसे ही अपना हितेशी मान बैठने की गलती कर लेते हैं. जब सोशल मीडिया पर वे नशे में झूमते लोगों को खुश होता देखते हैं तो उन्हें लगता है कि वे भी इस तरह खुश हो सकते हैं.

कोलंबिया यूनिवर्सिटी में नैशनल सेंटर औन एडिक्शन एंड सब्सटेंस एब्यूज डिपार्टमेंट द्वारा की गई एक स्टडी में यह पाया गया कि जो किशोर नियमित रूप से एक लोकप्रिय साइटआउटलेट का उपयोग करते हैं उन में शराब पीने के लिए ड्रग्स इस्तेमाल करने या तम्बाकू व सिगरेट खरीदने की सम्भावना ज्यादा होती है. इस स्टडी में 2000 किशोरों से उन के ड्रग उपयोग करने और सोशल मीडिया की आदतों के बारे में पूछा गया तो तो 70 फीसदी ने बताया कि वे कभी भी सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते हैं. इस स्टडी से यह निष्कर्ष भी निकला कि सोशल मीडिया का इस्तेमाल युवाओं को डिप्रेशन में ले जाने के अलावा उन की नींद और खानपान को भी डिस्टर्ब करता है.

फेसबुक, इन्स्टाग्राम, व्हाट्सएप और स्नेपचेट जैसे प्लेटफार्म्स का 92 फीसदी युवा दिन में एक बार से ज्यादा इस्तेमाल करते हैं. इन प्लेटफार्म्स पर वे अपने वालों दोस्तों या किसी और खासतौर से किसी सैलिब्रेटी को नशा करते देखते हैं तो उस की तरफ आकर्षित भी होते हैं. यह लगभग वैसा ही है जैसा 70 – 80 के दशक में हिंदी फिल्मों को देख युवाओं को लगता था कि वे हीरो की तरह सिगरेट या शराब का नशा करेंगे तो उन के भी गम गलत होंगे और वे खुद को साबित कर पाएंगे. फर्क इतना है कि तब के युवाओं के पास प्रिंट मीडिया एक बेहतर विकल्प था जो उन्हें इन बुराइयों से आगाह किया करता था.

अब सोशल मीडिया खुद एक खतरनाक नशे के रूप में विकसित हो चुका है जो अच्छा तो कुछ सिखाता नहीं उलटे युवाओं को वास्तविक नशे की तरफ ढकेलने में उन की मदद करता है. बकौल स्वाति नशे के दिनों में वह भी सोशल मीडिया का इस्तेमाल किया करती थी और ऐसे कंटेंट ढूंढती रहती थी जो नशे का समर्थन करते हुए हों.

वह कहती है टीनएज में डिप्रेशन आम है जिस से उबरने तो कोई प्लेटफार्म नहीं बल्कि उस का हल या इलाज नशे को बताने का काम जरुर सोशल मीडिया कर रहा है. वह नशे को मजे और आनंद के तौर पर परोसता है जिस से टेम्परेरी राहत तो मिलती है लेकिन दीर्घकालिक जो नुकसान होते हैं वे भोपाल दिल्ली मुंबई शिमला सहित हर जगह के आरोपियों को पैदा करने बाले होते हैं. इन के पकड़े जाने पर पुलिस भले ही अपनी पीठ थपथपाती रहे लेकिन आम लोग मानते हैं कि अरबोंखरबों के इस धंधे में सफेदपोश नेता भी शामिल रहते हैं. ये गिरोह पकड़े तभी जाते हैं जब पुलिस और नेताओं से इन की डील दरकने लगती है. लिहाजा पुलिस इन्हें आसानी से दबोच लेती है. इससे उसे यह कहने का मौका भी मिल जाता है कि देखो हम हाथ पर हाथ धरे रखे नहीं बैठे हैं.

घर वाले मेरी शादी 15 साल छोटी उम्र की लड़की के साथ कराना चाहते हैं. क्या करूं?

अगर आप भी अपनी समस्या भेजना चाहते हैं, तो इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ें..

सवाल –

मेरी उम्र 40 साल है और मैं एक मल्टीनैशनल कंपनी में जौब करता हूं. मुझे देख कर कोई मेरी उम्र का अंदाजा नहीं लगा सकता क्योंकि मैं नियमित रूप से ऐक्सरसाइज और अपनी डाइट का बहुत ध्यान रखता हूं. मैं ने अभी तक शादी नहीं की क्योंकि मैं चाहता था कि पहले मैं अपना कैरियर बनाऊं और उस के बाद ही शादी करूं. अब मैं अपने कैरियर से काफी संतुष्ट हूं और पेरैंट्स को शादी के लिए हां कहा है. हाल ही में मेरे घर वाले मेरे लिए रिश्ता ले कर आए हैं लेकिन वे जिस लड़की का रिश्ता लाए हैं वह मुझ से उम्र में 15 साल छोटी है. यानि उस लड़की की उम्र अभी 25 साल है. जब उस लड़की ने मुझे देखा तो उस ने शादी के लिए तुरंत हां कर दी. वैसे तो वह लड़की मुझे भी काफी पसंद है लेकिन समझ नहीं आ रहा कि अपने से 15 साल छोटी लड़की के साथ मैं कैसे मैनेज कर पाऊंगा. यह बेमेल शादी तो नहीं होगी?

जवाब –

अगर आप दोनों के बीच प्यार है तो आप दोनों एकदूसरे के साथ अच्छे से शादी का रिश्ता निभा सकते हैं. आप ने अपने कैरियर को ध्यान में रख कर शादी नहीं की लेकिन अपनी लुक्स को बरकरार रखा, यह अच्छा किया क्योंकि 40 की उम्र में लोगों की शादी होना भी मुश्किल हो जाती है लेकिन आप के लिए 25 साल की लड़की का रिश्ता आया है, यह अच्छी बात है.

जैसाकि आप ने बताया कि आप की होने वाली पत्नी आप से उम्र में 25 साल छोटी है तो ऐसे में आप को कुछ बातों का खास खयाल रखना होगा. वैसे तो कहते हैं कि लड़कियों का बचपना कभी नहीं जाता और लड़के अकसर जल्दी मैच्योर हो जाते हैं तो ऐसे में अगर आप को कभी भी लगे कि आप की पत्नी बच्चों जैसी हरकतें कर रही है या फिर बच्चों जैसी जिद कर रही है तो आप को उन्हें समझना होगा और उन की फरमाइशों को कमोबेश पूरा करना होगा.

आप अपने काम को ले कर काफी सीरियस हैं तो अब समय है कि आप अपनी पत्नी के साथ ऐसे लमहे बिताएं जो कि आप ने भी कभी नहीं बिताए. आप अपने प्यार के बीच कभी अपनी या उन की उम्र न आने दें बल्कि अपनी होने वाली पत्नी की रिस्पैक्ट करें. आप ऐसा सोचिए कि आप की पत्नी की जिंदगी अभी शुरू हुई है तो उन को समझिए और जहां जरूरत हो उन्हें भी समझाइए.

अगर आप की पत्नी को सड़क किनारे गोलगप्पे खाना पसंद हो और आप को नहीं, तो फिर भी उन की खातिर आप को हर वह चीज करनी है जिस से आप की पत्नी खुश रहे. जैसे आजकल की लड़कियों को कोरियन और चाइनीज ड्रामा पसंद होता है तो अगर आप की पत्नी को भी ऐसे ही कोई ड्रामा देखना पसंद हो तो आप उन के साथ देखिए जिस से कि आप दोनो को एकदूसरे को समझने में दिक्कत नहीं आएगी. अपनी पत्नी के साथ उन के दोस्त बन कर रहेंगे तो कभी आप की उम्र आप दोनों के बीच में नहीं आएगी. जितना हो सके शादी के बाद अपनी पत्नी के साथ वक्त बिताइए ताकि आप दोनों का रिश्ता और भी मजबूत बन सकें.

व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या इस नम्बर पर 8588843415 भेजें.

हमेशा हमारी यादों में जिंदा रहेंगे रतन टाटा

रतन टाटा एक ऐसी शख्शियत थे जिन के जाने पर आज देश शौक में लील हो गया है. भारत ने एक ऐसे आइकन को खो दिया है, जिन्होंने कौरपोरेट ग्रोथ, राष्ट्र निर्माण और नैतिकता के साथ उत्कृष्टता का मिश्रण किया.

टाटा संस के मानद चेयरमैन रतन नवल टाटा का 86 साल की उम्र में निधन हो गया है. उन्होंने बुधवार देर रात करीब 11 बजे अंतिम सांस ली. वे मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल की इंटेसिव केयर यूनिट (ICU) में भर्ती थे. बढ़ती उम्र के कारण बीमारियों से जूझ रहे थे.

रतन टाटा के बारे में

साल 1937 को रतन टाटा का जन्म हुआ जिन का पालनपोषण उन की दादी नवाजबाई टाटा ने किया था क्योंकि 1948 में उन के मातापिता अलग हो गए थे. रतन टाटा 1991 -2012 तक टाटा ग्रुप के अध्यक्ष पद पर रहे. रत्न टाटा सिर्फ एक बिजनेस लीडर नहीं थे, उन्होंने करुणा के साथ भारत की भावना को मूर्त रूप दिया.

वे एक परोपकारी शख्शियत के रूप में जाने जाते हैं. उन्होंने शिक्षा, चिकित्सा और ग्रामीण विकास के समर्थन में कई ऐसी योजनाओं के हित में कार्य किया. वे करुणामयी और दयालुता से भरे हुए शख्शियत थे. उन्होंने निस्वार्थ भाव से अपना जीवन राष्ट्र के विकास के लिए समर्पित कर दिया. उन्होंने सदैव भारत और उस के लोगों की बेहतरी के लिए कार्य किए. वह एक उत्साह और प्रतिबद्धता से पूर्ण आत्मा थे.

आज जब नैतिकता का स्तर गिर रहा है, उस दौर में भी रतन टाटा ने व्यक्तिगत स्तर पर नैतिक मूल्य, समाज के मानदंडों और मानकों के मुताबिक सही और गलत की भावना को थामे रखा. सही मायनों में रतन टाटा देश के उद्योग का प्रतिनिधित्व करते थे. उन के बारे में सही कहा जाता था वे व्यापारी नहीं बल्कि उद्यमी थे जिन्होंने कुछ इनोवेटिव करने की कोशिश की.

हम सभी को उन से प्रेरणा लेनी चाहिए. यह सार्थक तभी होगा जब उन के भरोसे, उत्कृष्टता और नवीनता के मूल्यों को अपनाते हुए विकसित भारत के लक्ष्य को प्राप्त करें.

घरों में फैलती आपसी रिश्तों में नाराजगी

प्रभात कक्षा 8 में पढ़ता था. घर में उस की मां रीना और पिता राकेश थे. राकेश बिजनैसमैन थे. मां घर में ही रह कर परिवार की देखभाल करती थी. वैसे, रीना ने ग्रेजुएट तक की पढ़ाई की थी. शादी के पहले दो साल तक उस के प्राइवेट स्कूल में छात्रों को पढ़ाने का काम भी किया था. शादी के बाद ससुराल वालों को रीना का नौकरी करना पसंद नहीं था. ऐेसे में उस ने नौकरी छोड़ दी. शादी के बाद के 7-8 साल तो बच्चे को बड़ा करने में लग गए. अब बेटा प्रभात बड़ा हो गया था तो अपने काम कर लेता था. अब वह यह भी नहीं चाहता था कि मां उस के काम करे.

मां जब भी उस का कमरा साफ करती या उस के फेंके सामान सही जगह रखती तो वह कुछ न कुछ बोलती रहती थी. प्रभात को मां का बोलना पंसद नहीं था. ऐसे में वह सोचता था कि मां उस के कमरे में साफसफाई करती ही क्यों है. उस के काम न किया करे. न वो काम करेगी न नसीहत देगी. इस बात को ले कर दोनों के ही मन में एकदूसरे से नाराजगी बढ़ती जा रही थी. दोनों ही एकदूसरे से खुश नहीं रहते थे. रीना भी गुस्से में कई बार सोचती थी कि वह भी यह बेकार के काम नहीं करेगी. नौकरानी ही करेगी. गुस्सा खत्म होने पर फिर वही काम करती थी. मजेदार बात यह कि वह प्रभात से नाराज भी रहती और नातेरिश्तेदारों व दोस्तों के सामने उस की तारीफ भी करती थी.

नाराजगी और तारीफ दोनों मनोभाव के बीच तालमेल बैठाने में रीना तनावग्रस्त हो गई थी. एक दिन प्रभात स्कूल से आने के बाद मोबाइल पर गेम खेल रहा था. मां का कहना था कि वह अपना होमवर्क कर ले. प्रभात ने मां की बात नहीं मानी और मोबाइल खेलने लगा. मां को गुस्सा आ गया, उस ने मोबाइल छीन लिया और होमवर्क की किताबकौपी उसे पकड़ा दी. प्रभात 5-7 मिनट किताब को गुस्से में पलटता रहा. होमवर्क करने में उस का मन नहीं लग रहा था. दूसरी तरफ मां ने मोबाइल ले लिया और सामने बैठ कर दोस्तों से चैट करने लगी. प्रभात उठा, कमरे में इधरउधर टहला, इस के बाद मां की तरफ पलटा. अपने हाथ में ली किताब मां के सिर पर मार दी. मां के हाथ में लिया मोबाइल छिटक कर दूर गिरा और टूट गया.

प्रभात और उस की मां रीना के बीच की यह नाराजगी कोई अकेला उदाहरण नहीं है. परिवार में हर रिश्ते के बीच नाराजगी बढ़ती जा रही है. परिवार के लोग नाराजगी और खुशी के बीच तनाव में जी रहे हैं. शिकायत की सब से बड़ी वजह यह है कि पुरानी पीढ़ी को लगता है कि नई पीढ़ी के लोग उन के जैसे सफल नहीं हो रहे हैं. जिन के बेटेबेटी सफल हो रहे हैं उन को लगता है कि वे घरपरिवार का खयाल नहीं रख रहे हैं. बेटेबेटियों को लगता है कि मांबाप की देखभाल के लिए बारबार औफिस से छुट्टी लेनी पड़ रही है. मल्टीनैशनल कंपनी में नौकरी करने वालों के सामने छुट्टी की बड़ी परेशानी रहती है. काम, मीटिंग और रिजल्टस का वर्कप्रैशर रहता है.

राजनीति की देन है घरों में बढ़ती नाराजगी

हमारे समाज में रोल मौडल का अपना प्रभाव होता है. इस कारण ही बचपन से ही महापुरुषों की कहानियां, उन के विचार सुनाए जाते थे. परिवार उम्मीद करता था कि उस के बच्चे इन्हीं की राह पर चलते आगे बढ़ेंगे. हाल के कुछ सालों में समाज के रोल मौडल नेता बनने लगे हैं. मीडिया और सोशल मीडिया व दूसरे तमाम प्रचार साधनों में नेताओं के इतने गुणगान होते हैं कि घर तक वह पहुंच रहा है. ऐसे में जब जनता यह देखती है कि यह एकदूसरे को पीठपीछे बुराभला कह रहे हैं और जरूरत पड़ने पर उन की तारीफ करने से भी नहीं हिचकते हैं तो वही स्वभाव उस का भी होता जाता है. वह भी नाराजगी और खुशी के बीच का दिखावा करने लगती है.

पहले मीडिया ही प्रचार का एकमात्र साधन था. वह भी खुल कर प्रचार करने से बचता था. प्रचार के पीछे की कहानी भी समझाता था. नेताओं की अपनी विचारधारा होती थी. वे इतनी जल्दी अपनी विचारधारा नहीं बदलते थे. अब लाभ के लिए रातोंरात दल और विचारधारा नेता बदल रहे हैं. उन को देख कर घर के अंदर भी खेमेबंदी और बदलाव दिखने लगे हैं. इस का बुरा भी नहीं माना जाता क्योंकि उन के रौल मौडल यानी आज के नेता भी इसी तरह का व्यवहार करते हैं. राजनीति का प्रभाव घरों में नाराजगी के प्रभाव को बढ़ा रहा है.

संबंधों में तुलना की गलती

घरों में नाराजगी का रिश्ते पर खराब प्रभाव पड़ता है. गलतफहमियों से नाराजगी पैदा होती है. मनोविज्ञानी नेहा आनंद कहती हैं, ‘मेरे क्लीनिक ‘बौधी ट्री’ में एक 20 साल का लड़का रमेश आया. उस ने कहा कि मेरी मां मुझ में और मेरे छोटे भाई के बीच फर्क देखती है. वह बातबात पर मेरी तुलना उस से करती है. उस के कामों को अच्छा और मुझे खराब बताती है. मैं इस से बहुत परेशान हूं. मैं मां से ही नहीं, अपने भाई और पूरे परिवार से नाराज हूं. मुझे इन के बीच रहना अच्छा नहीं लगता. मुझे समझाएं कि क्या करूं?’

नेहा आनंद ने नरेश की बात सुनी और बोली, ‘मुझे तुम्हारे पेरैंट्स से बात करनी है.’ नरेश ने कहा, ‘आप यह मत कहना कि मैं ने आप से कुछ शिकायत की है.’ इस पर नेहा आनंद ने कहा, ‘ठीक है.’ दो दिनों बाद नेहा आनंद ने रमेश के मातापिता को फोन किया. पूरी बात बताई और उन को अपनी क्लीनिक पर बुलाया. वे पतिपत्नी जब आए तो नेहा आनंद ने उन को पूरी बात बताई. यह भी कहा कि आप का बेटा यह भी नहीं चाहता कि मैं आप लोगों को यह बताऊं, इस बात का खयाल आप लोग रखना. इस के बाद नेहा आनंद ने उन पतिपत्नी को बताया कि घर में ही एकदूसरे की तुलना करने से आप रिश्तों को खो बैठेंगे.

नेहा आनंद कहती है, ‘रिश्तों में नाराजगी को ठीक से नहीं पहचानना सरल नहीं होता. नाराजगी अकसर किसी गलत काम के प्रति प्रतिक्रिया होती है, किसी ऐसी चीज के प्रति जिसे दंडात्मक या अपमानजनक माना जाता है. यह उन रिश्तों में भी बढ़ सकती है जिन में चिढ़ाना या मजाक करना तीखा होता है, जहां एक को दूसरे की क्षमता को कम करने की आदत होती है, जब साथी की कम सराहना की जाती है आदि. नाराजगी किसी तरह से धोखा दिए जाने या किसी को हलके में लिए जाने की भावना से भी पैदा हो सकती है. घरों में आर्थिक कारणों से भी नाराजगी पैदा हो सकती है.

‘इस का प्रमुख कारण आपसी बातचीत का न होना है. कई बार लोग सही तरह से समस्या का समाधान नहीं निकाल पाते. ऐसे में नाराजगी दूर होने की जगह वह बढ़ जाती है. यह प्यार की भावना को खत्म कर देती है. इस के समाधान के लिए गुस्से के कारण को समझें, पहचानें और समाधान सोचें. कई बार हम खुद इस को हल करने की कोशिश करते हैं. यह ठीक है पर सावधान रहें कि परेशानी खत्म होने की जगह कहीं बढ़ न जाए. कई बार परेशानी हल करने की दिशा में हो रही बातचीत ही झगड़े में बदल जाती है. ऐसे में जो सोचा होता है वह हो नहीं पाता है. इसलिए अगर किसी काउंसलर के जरिए बातचीत हो तो बेहतर होता है.’

अगर आप अकेले ही बातचीत करना चाहते हैं, तो भी गलत नहीं है. आपस में बात करते समय अपनी भावनाओं को बताएं, सावधान रहें कि दूसरे पर दोष न लगाएं. अगर आप को ऐसा महसूस हो रहा हो कि आप को हलके में लिया जा रहा है या चिढ़ाने या अनदेखा किए जाने से आप कमतर महसूस कर रहे हैं तो अच्छी बातचीत के मोड़ पर आगे की बातचीत बंद कर दें. अगर आप को लगता है कि बिना लड़ाईझगड़े के बात करना असंभव है, तो काउंसलिंग करवाने पर विचार करें. अच्छे सलाहकार से चर्चा करें. ऐसे में आपसी सम्मान बना रहेगा. सलाहकार अच्छी तरह से दोनों को समझा सकता है. अपनी बात कहने में शर्म महसूस नहीं करनी चाहिए. अपनी मैंटल हैल्थ को ठीक रखें.

घरों में आपसी रिश्तों की नाराजगी को हलके में न लें. यह एक गंभीर मैंटल बीमारी है. कई बार घर की बातें शर्म के मारे लोग कह नहीं पाते हैं, जिस वजह से जब वह बात खुलती है तो घर हिल जाता है. ऐसे में नाराजगी को पनपने न दें. अगर यह आगे बढ़ जाए तो काउंसलर से बात करने में देरी न करें, जिस से समय पर बात को बिगड़ने से रोका जा सके. काउंसलर इस में बेहतर भूमिका निभा सकती है. उन के पास जाने में शर्म या संकोच न करें. इस का भी नीम हकीम इलाज न करें. इस से परेशानी बढ़ जाती है.

उसकी गली में : आखिर क्या हुआ उस दिन

बगल वाले कमरे में इंसपेक्टर बलराज एक मुलजिम की जम कर पिटाई कर रहा था. उस की पिटाई से मुलजिम जोरजोर चीख रहा था, ‘‘साहब, मैं ने कुछ नहीं किया. मुझे माफ कर दो, मैं बेकसूर हूं.’’

वह एक शहरी थाना था. वहां मेरे अलावा दूसरा इंसपेक्टर बलराज था. थाने में ही डीएसपी का भी औफिस था. इंसपेक्टर बलराज बेहद सख्त था. गाली उस के मुंह से बातबात में निकलती थी. कई मुलजिम तो डर के मारे झूठे इलाजम को भी अपने  सिर ले लेते थे. लेकिन मुझे वह ‘बाऊजी थानेदार’ कह कर पुकारता था, लेकिन पीठ पीछे मेरा मजाक उड़ाता था.

जिस मुलजिम की वह पिटाई कर रहा था, उस की आवाज आई, ‘‘साहब, बहुत जोर से पेशाब लगा है. मुझे जाने दीजिए.’’ पता नहीं क्यों मुलजिम की आवाज में मुझे एक अजीब सा दर्द महसूस हुआ. सर्दियों के दिन थे, शाम भी होने वाली थी. मैं ने खिड़की पर पड़ी चिक से देखा, 2 सिपाही सहारा दे कर उस मुलजिम को छत पर बने पेशाबखाने ले जा रहे थे. उस की हालत देख कर ही लग रहा था कि उस की जम कर खातिरदारी की गई थी.

पुलिस भाषा में पिटाई को खातिरदारी कहते हैं. मैं खाली बैठा था, टहलता हुआ बाहर चला गया. अचानक मुझे छत पर धमाचौकड़ी की आवाज आती महसूस हुई. ऊपर कौन भाग रहा है, जानने के लिए मैं छत पर चला गया. छत कोई 20 फुट ऊंची थी. ऊपर पहुंच कर मैं ने मुलजिम को मुंडेर की ओर भागते देखा. उसे पकड़ने के चक्कर में एक सिपाही गिर पड़ा था. मैं समझ गया कि मुलजिम पुलिस से छूट कर छत से नीचे छलांग लगाना चाहता है.

मैं तेजी से उस की तरफ दौड़ा. तब तक वह मुंडेर पर पांव रख चुका था, वह छलांग लगाता, उस के पहले ही मैं ने पीछे से उसे पकड़ लिया. नीचे सड़क पर लोगों का आनाजाना चालू था. मैं उसे घसीटता हुआ पीछे ले आया. सड़क के लोग घबरा कर ऊपर देख रहे थे. वह जोरों से चीख रहा था, ‘‘मुझे छोड़ दो, मुझे मर जाने दो.’’

वह जैसे पागल हो रहा था. दोनों सिपाहियों ने मुश्किल से उसे काबू में किया. देखतेदेखते छत और सड़क पर मजमा लग गया. जैसे ही उसे नीचे लाया गया, गुस्से से पागल हो कर इंसपेक्टर बलराज उस पर टूट पड़ा. मुलजिम की मां और बहन थाने में बैठी थीं. वे रोने लगीं. पिटतेपिटते मुलजिम बेहोश हो गया, पर बलराज के हाथ नहीं रुक रहे थे. मैं ने किसी तरह बलराज को रोका.

मुलजिम का नाम विलायत अली था. वह शहर का ही रहने वाला था. उस की मां और बहन हाथ जोड़ कर रोते हुए मुझ से कह रही थीं कि विलायत बेकसूर है. दोनों लोगों के घरों में काम कर के गुजारा करती हैं. बलराज ने उन से 5 सौ रुपए मांगे थे. घर के जेवर, बरतन आदि बेच कर उन्होंने रुपए दे दिए थे. इस के बावजूद भी वह विलायत को नहीं छोड़ रहे. अब वह और पैसे मांग रहे हैं. वे और पैसे कहां से लाएं.

बलराज विलायत अली के खिलाफ फरारी का नया मामला दर्ज कर रहा था, जबकि 20 फुट ऊंची उस बिल्डिंग से किसी मरेकुचे आदमी का कूदना असंभव लगता था. सही में तो जुल्म से घबरा कर खुदकुशी का मामला बनना चाहिए था. मैं सबकुछ देख और समझ रहा था. अगर मैं कुछ कहता तो बलराज और नाराज हो जाता. इसलिए मैं चुप रहा.

विलायत की मां और बहन ने जो बातें बताई थीं, उस से साफ लग रहा था कि उसे जबरदस्ती फंसाया जा रहा था. मुझे यहां आए अभी एक महीना ही हुआ था.

मैं अपने कमरे में पहुंचा तो वहां विलायत की मां बेहोश पड़ी थी, बहन रो रही थी. बहन हाथ जोड़ कर बोली, ‘‘थानेदार साहब, मेरी मां और भाई को उस जालिम से बचा लीजिए. आप जहां कहेंगे, जिस के पास कहेंगे, मैं चली जाऊंगी. बस मेरे भाई पर रहम करें.’’

उस की बात सुन कर मैं चौंका. उस की बातों से लगा, उसे कोई कहीं भेजना चाहता था? वजह साफ थी, लड़की जवान थी. देखने में भी अच्छी थी. मैं ने पूछा, ‘‘किसी ने तुम से कहीं चलने को कहा था क्या?’’

‘‘हां, कल एक सिपाही ने थानेदार के घर जा कर भाई की जमानत की बात करने को कहा था.’’

‘‘क्या तुम उस के यहां गई थी, फिर क्या हुआ?’’

‘‘हां, मैं गई थी उस सिपाही के साथ. मेरी मां भी साथ थी. उस ने हमें बहुत डरायाधमकाया. इस के बाद उस सिपाही की नीयत खराब हो गई. उस ने मां को कोई फार्म लाने के लिए बाहर जाने को कहा तो मैं उस की मंशा समझ कर मां के साथ बाहर चली गई.’’ उस की बात सुन कर मुझे उस पुलिस वाले पर बहुत गुस्सा आया. अब तक उस की बूढ़ी मां होश में आ चुकी थी. मैं ने उन दोनों को तसल्ली दी. इस के बाद मैं एक निर्णय ले कर डीएसपी साहब के पास जा कर बोला, ‘‘जनाब, विलायत का केस मैं हैंडल करना चाहता हूं. बलराज के पास वक्त नहीं है, जिस की वजह से वह इस केस पर ठीक से ध्यान नहीं दे पा रहे हैं.’’

‘‘नवाज, यह कोई खास मामला नहीं है. उसी के पास रहने दो. ऐसा करने से आपस में खटास पैदा हो सकती है.’’

मुझे उन से इस जवाब की उम्मीद नहीं थी. मैं समझ गया कि बलराज मुझ से पहले डीएसपी साहब से मिल कर गया है. मैं कुरसी से उठ ही रहा था कि डीएसपी साहब के फोन की घंटी बज उठी. बीच में उठ कर जाना ठीक नहीं था, इसलिए मैं बैठ गया. करीब 10 मिनट बात होती रही. डीएसपी साहब फोन पर बड़े अदब से बात कर रहे थे. बातचीत से लग रहा था कि फोन शायद एसपी या डीआईजी का था. फोन पर बात खत्म होते ही डीएसपी साहब ने चेहरे का पसीना पोंछने के बाद कहा, ‘‘नवाज खां, यह केस तुम हैंडल करो. बलराज से सारा रिकौर्ड ले लो.’’ उन्होंने कहा कि थाने की छत पर जो तमाशा हुआ, उसे देखने के लिए सड़क पर चल रहे लोग जमा हो गए थे. ट्रैफिक जाम हो गया था. उस भीड़ में किसी मंत्री की गाड़ी थी. उस के पीछे एक जीप में प्रैस वाले थे. उन लोगों ने उस हाथापाई की फोटो खींच ली थी.

इस घटना से मंत्रीजी बेहद नाराज हो गए. उन्होंने सारा मामला खुद देखा था. इस थाने के मारपीट के पहले भी 1-2 मामले उछले थे. उन्होंने ही डीआईजी साहब से कहा है कि इस केस की सख्ती से जांच की जाए और जिस की वजह से यह सब हुआ है, उस के खिलाफ सख्ती से काररवाई की जाए. मैं चलने लगा तो उन्होंने मुझ से इसंपेक्टर बलराज को भेजने को कहा. मैं ने बलराज को उन का मैसेज दे दिया. विलायत अली की हालत काफी खराब थी. मैं ने करीब के क्लीनिक से डाक्टर बुला कर उसे दवा दिलवाई और हल्दी मिला दूध दे कर उसे लौकअप के बजाय कमरे में सुला कर क्वार्टर पर चला आया. उस की निगरानी के लिए एक सिपाही की ड्यूटी लगा दी थी.

अगले दिन सवेरेसवेरे एक सिपाही ने मेरा दरवाजा खटखटाया और खबर दी कि मुलजिम विलायत अली जेल से फरार हो गया है. मैं सोच में पड़ गया. उस की हालत ऐसी नहीं थी कि वह भाग जाता. उसे काफी अंदरूनी चोटें लगी थीं.

यह मामला बड़े अफसरों तक पहुंच चुका था. मैं फटाफट थाने पहुंच गया. मैं सीधे उस कमरे में पहुंचा, जहां विलायत अली को सुलाया गया था. मैं ने देखा, कंबल, बिस्तर सब वैसा ही पड़ा था. कमरे की दीवार में करीब डेढ़ फुट का सुराख था.

जो सिपाही ड्यूटी पर था, उस से बात की तो उस ने बताया कि किसी वक्त उस की आंख लग गई और वह फरार हो गया. एकदम से मुझे खयाल आया कि कहीं बलराज ने ही तो नहीं मुलजिम को फरार करा दिया.

इस की वजह यह थी कि केस मेरे पास आने से उस की बेइज्जती हुई थी. थाने में 4-5 सिपाही उस के पक्के चमचे थे. मैं ने विलायत को लौकअप के बजाय अलग कमरे में सुलाया था. जाहिर है, उस के फरार होने से मेरी ही बदनामी होनी थी. मुलजिम तो दीवार तोड़ कर जा नहीं सकता था. मुझे यकीन हो गया कि उसे भगाने में बलराज की ही साजिश थी. मैं विलायत अली के घर पहुंचा. उस के बूढ़े बाप ने दरवाजा खोला. मुझे देख कर वह कांपने लगा. मांबहन भी बाहर आ गईं. सभी बुरी तरह से डरे हुए थे. मां ने पूछा, ‘‘थानेदार साहब, मेरा पुत्तर तो अच्छा है न?’’

उस की बात का जवाब दिए बिना मैं ने फौरन घर की तलाशी ली. पर विलायत अली वहां नहीं था. मैं ने उस की मां से कहा, ‘‘तेरे पुत्तर को मेरी मेहरबानी रास नहीं आई. वह थाने से फरार हो गया है. सचसच बता दे कि वह कहां छिप सकता है? इसी में उस की खैर है.’’ ‘‘मुझे नहीं मालूम वह कहां है. पर मैं तुम से कुछ नहीं छिपाऊंगी. उस की पूरी कहानी बताए देती हूं. साहब मेरा बेटा विलायत स्कूल के सामने ठेली लगा कर कुल्फी बेचता था. पता नहीं कैसे स्कूल की एक मास्टरनी सुलेखा का दिल उस पर आ गया. कुछ दिन तो यह सब चला, फिर उस मास्टरनी ने सब कुछ भुला कर किसी और से शादी कर ली.

‘‘इस से मेरे बेटे को इतनी ठेस पहुंची कि वह फकीरों की तरह मारामारा फिरने लगा. उस ने अपना कामधंधा सब छोड़ दिया. सुबह को घर से जाता तो शाम को ही घर आता. 4-5 दिन पहले पुलिस उसे चोरी के आरोप में पकड़ ले गई. साहब, मैं दावे से कह सकती हूं कि मेरा बेटा चोरी हरगिज नहीं कर सकता. मुझे तो इस में उस मास्टरनी की ही साजिश लगती है.’’

उस की बात सुन कर मैं बाहर आ गया. मेरा इरादा मास्टरनी के घर जाने का था. मास्टरनी की गली में नुक्कड़ पर पान की दुकान थी. वहीं पर मैं ने जीप रुकवा ली. पान वाला मुझे जानता था. मैं ने उस से विलायत अली और मास्टरनी के बारे में पूछा तो उस ने मास्टरनी के बारे में मुझे ढेर सारी जानकारी दी. मैं पान वाले की दुकान पर खड़ा था, तभी मास्टरनी के घर से एक आदमी साइकिल ले कर निकला. पता चला कि वह उस मास्टरनी का पति नजीर था, जो इनकम टैक्स विभाग में चपरासी था. उस के पीछेपीछे मास्टरनी भी दरवाजे तक आ गई. मैं देख कर हैरान रह गया कि अदने और साधारण से आदमी से खूबसूरती की मल्लिका मास्टरनी ने शादी कैसे कर ली?

और तो और, वह उम्र में भी उस से काफी बड़ा था. उस की पहली बीवी मर चुकी थी. यह मकान उस ने 4-5 महीने पहले ही लिया था. इस से पहले वह एक कमरे में किराए पर रहता था. चपरासी की नौकरी में उस ने इतना आलीशान मकान कैसे खरीद लिया, इस बात की मुझे हैरानी हो रही थी. अभी मैं सोच ही रहा था कि गनपतलाल लपक कर मेरे पास आया. मैं उसे अच्छी तरह से जानता था. उस का अपनी पार्टी में अच्छा रसूख था. हाथ मिला कर वह मुझ से घर चलने का अनुरोध करने लगा. मैं ने उस से कहा कि मैं नजीर के बारे में मालूम करने आया था. इस पर उस ने कहा, ‘‘फिर तो आप मेरे साथ चलिए. उस के बारे में मुझ से ज्यादा कौन बता सकता है.’’

मेरा मकसद विलायत तक पहुंचना था. सोचा कि शायद गनपतलाल से ही उस के बारे में कोई जानकारी मिल जाए, इसलिए मैं उस के साथ उस की कोठी में चला गया. मेरे पूछने पर उस ने बताया, ‘‘नजीर काफी तेज बंदा है. वह मेरे पास अकसर आताजाता रहता है. इनकम टैक्स में चपरासी है, पर उस की काफी पैठ है. शायद उस ने अभी कोई लंबा हाथ मारा है, जो कोठी खरीद ली है. खान साहब, इस की बीवी बड़ी खूबसूरत है. पता नहीं इस ने क्या चक्कर चलाया कि उस ने इस से शादी कर ली.’’ मैं ने पूछा, ‘‘आप इस की बीवी के बारे में कुछ जानते हों तो बताएं.’’

वह कुछ सोचते हुए बोला, ‘‘खान साहब, मैं उस की मां को ही बुलवा लेता हूं. आप जो चाहें, उसी से पूछ लेना.’’ कह कर उस ने अपने एक आदमी को कुछ कह कर भेज दिया. करीब 10 मिनट में उस का आदमी एक बूढ़ी औरत को बुला लाया. वह औरत डरीसहमी थी. उस के माथे पर पट्टी बंधी थी. मैं ने पूछा, ‘‘अम्मा, कल रात एक मुलजिम थाने से फरार हुआ है. मैं ने सुना है कि तुम्हारी बेटी का उस से नाम जोड़ा जाता रहा है.’’

मेरी इस बात से उस का चेहरा उतर गया, वह दुखी हो कर बोली, ‘‘साहब, मेरी बेटी का उस से कोई ताल्लुक नहीं था, वह लड़का ही उस के पीछे पड़ा था. अब शादी के बाद वह बात भी खत्म हो गई,’’

उस की बात से मैं संतुष्ट नहीं था. इसलिए वहां से 12 बजे के करीब मैं थाने आ गया. थाने में सब के मुंह पर हवाइयां उड़ रही थीं. मैं डीएसपी साहब के कमरे में पहुंचा. बलराज मुंह फुलाए एक कोने में खड़ा था. डीएसपी साहब काफी गुस्से में थे. मेरे सैल्यूट के जवाब में बोले, ‘‘क्या रिपोर्ट है नवाज?’’

मैं ने कहा, ‘‘सर, सुबह से उसी कोशिश में लगा हुआ हूं, पर अभी कुछ पता नहीं चला.’’

‘‘नवाज खां, कोशिश नहीं, मुझे रिजल्ट चाहिए और मुलजिम मिलना चाहिए. तुम्हें पता नहीं कि यहां क्या हुआ? आधे घंटे पहले थाने के सामने 2 हजार आदमी जमा हो गए थे. वे मांग कर रहे थे कि पुलिस के जुल्म से जो आदमी मरा है, उस की मौत की जिम्मेदार पुलिस है. मरने वाले की लाश हमें दो.’’ डीएसपी साहब ने गुस्से में कहा.

बलराज तीखे स्वर में बोला, ‘‘यह सब नवाज खान की नरमी की वजह से हुआ.’’

‘‘खामोश रहो,’’ मैं डीएसपी साहब की मौजूदगी में चिल्ला पड़ा, ‘‘यह मेरी नरमी की वजह से नहीं, तुम्हारी सख्ती का नतीजा है. तुम ने उसे जानवरों की तरह मारा. तुम ने उस से पैसे वसूल किए. तुम्हारे मातहत ने उस की मांबहन को तंग किया. सिर्फ तुम्हारी वजह से वह छत से कूद कर खुदकुशी कर रहा था. गनीमत समझो कि टाहम पर पहुंच कर मैं ने उसे बचा लिया, वरना तुम्हारी तो बेल्ट उतर चुकी होती.’’ मेरा गुस्सा देख कर बलराज चुप हो गया. इस बार डीएसपी साहब नरमी से बोले, ‘‘देखो, आपस में अंगुलियां उठाने से कोई फायदा नहीं. यह हमारी इज्जत का सवाल बन गया है. कुछ सियासी लोग मामले को हवा दे रहे हैं. इस वक्त साढ़े 12 बजे हैं. कल सुबह साढ़े 10 बजे तक मुलजिम मिल जाना चाहिए. हमारे पास 22 घंटे हैं. उसे ढूंढ़ कर लाना तुम दोनों की जिम्मेदारी है. इस बारे में जो मदद चाहिए, वह मिलेगी. एसपी साहब भी कौन्टैक्ट में हैं.’’

मैं अपने कमरे में गया. एएसआई विलायत अली के 4 दोस्तों को पकड़ लाया था, पर उन से कोई खास बात मालूम नहीं हो सकी थी. बस यही पता चला कि विलायत स्कूल के सामने कुल्फी बेचता था. मास्टरनी जुलेखा उसी स्कूल में पढ़ाती थी. एक दिन वह स्कूल से निकल कर तांगे में बैठी तो घोड़ा बिदक कर भागा. विलायत अली फौरन तांगे के पीछे भागा. कुछ दूर दौड़ कर वह उस पर चढ़ गया. तांगा एक पुलिया से टकराया और नहर में गिर गया. जुलेखा पानी के तेज बहाव में बहने लगी. बड़ी मुश्किल से विलायत ने उसे बचा कर बाहर निकाला.

इस कोशिश में उसे चोटें भी लगीं. उसे अस्पताल में भरती करना पड़ा. जुलेखा उस की देखरेख के लिए रोज अस्पताल जाती थी. वहीं से यह मुहब्बत शुरू हुई. इस के 4-5 महीने बाद अचानक जुलेखा ने शादी कर ली. शादी के बाद विलायत अली पागल सा हो गया. यह भी पता चला था कि चोरी वाले दिन सेठ अहद का एक नौकर विलायत को उस के घर से बुला कर ले गया था. सेठ अहद ने ही उस पर चोरी का इलजाम लगाया था. थाने में लिखाई गई रिपोर्ट में सेठ अहद ने लिखवाया था कि विलायत उस के घर काम मांगने आया था. सेठ ने चोरी का जो टाइम रिपोर्ट में लिखाया था, उस वक्त वह अपने दोस्तों के साथ पान की दुकान पर था. उस वक्त सुबह के 10 बजे थे.

वक्त बहुत कम था. डीएसपी साहब के दिए टाइम में 2 घंटे बीत चुके थे. मैं ने सेठ अहद और मास्टरनी के पति नजीर से मिलने का फैसला किया. रवाना होते समय मैं ने बलराज से पूछा, ‘‘अगर तुम्हारे दिमाग में कोई प्लान हो तो बताओ, मिल कर काम करते हैं.’’ उस ने तीखे लहजे में कहा, ‘‘नवाज खां, मेरे और तुम्हारे रास्ते अलगअलग हैं. इसलिए तुम अपनी राह जाओ.’’

मैं ने पहले ही 3-4 टीमें बना कर विलायत की तलाश में भेज दी थीं. सेठ अहद की लोहे के सामान बेचने की दुकान थी. 40-45 साल का दुबलापतला आदमी था. पता चला कि वह रंगीनमिजाज था. उस ने दुकान पर एक जवान खूबसूरत लड़की रख रखी थी. मैं ने अहद से पूछताछ की तो उस ने वही बातें बताईं, जो मुझे पहले से पता थीं. कोई काम की बात पता न चलने पर मैं ने उसे शहर न छोड़ने की हिदायत दी. उस पर नजर रखने के लिए मैं ने सादा लिबास में एक सिपाही की ड्यूटी लगा दी. इस के बाद मैं चपरासी नजीर के यहां पहुंचा. दरवाजा उस की खूबसूरत बीवी जुलेखा ने खोला. मुझे देख कर वह सहम गई. मैं ने तेज लहजे में पूछा, ‘‘तेरा शौहर कहां है?’’

‘‘जी…जी, वह अभी औफिस से नहीं आए हैं.’’ मैं ने उसे धमकाते हुए कहा, ‘‘देख लड़की, अगर अपनी खैर चाहती है तो विलायत अली के बारे में सब कुछ सचसच बता दे, वरना तेरा अंजाम बहुत बुरा होगा.’’ मेरी डांट से उस का चेहरा पीला पड़ गया. वह डर गई और चेहरा हाथों से छिपा कर फूटफूट कर रो पड़ी. रोतेरोते ही बोली, ‘‘थानेदार साहब, अगर मैं ने कुछ भी बोल दिया तो वह मुझे जिंदा नहीं छोड़ेगा. जान से मार देगा.’’

मैं गरजा, ‘‘कोई तुझे हाथ नहीं लगा सकता. यह कानूनी मामला है. हम तेरी पूरी मदद करेंगे.’’ मेरी बात पर उस के अंदर जैसे कुछ हिम्मत आई. अपनी बात कहने के लिए मुंह खोलने ही वाली थी कि तभी बाहरी दरवाजे से साइकिल का अगला पहिया अंदर आया और तेज आवाज आई, ‘‘ले साइकिल पकड़, कहां मर गई कमीनी?’’

इस आवाज पर वह डर गई. वह दरवाजे की तरफ जाने को हुई, लेकिन उस के उठने से पहले ही एक सिपाही ने आगे बढ़ कर साइकिल पकड़ ली. यह उस का पति नजीर था. अंदर का हाल देख कर वह हैरान रह गया. मुझे सलाम कर के बोला, ‘‘साहब, यह क्या हो रहा है?’’

मैं ने उस से तेज लहजे में पूछा, ‘‘कितनी तनख्वाह है तेरी?’’

‘‘जी 20 हजार रुपए.’’

‘‘क्या स्मगलिंग करता है, कहां से पैसा कमा कर इतना अच्छा घर खरीदा?’’

‘‘नहीं जनाब, कैसी बातें कर रहे हैं? मैं ईमानदार, शरीफ आदमी हूं.’’

उस ने इतना ही कहा था कि मैं ने एक जोरदार थप्पड़ उस के गाल पर मारा. वह उछल कर साइकिल पर गिरा. उस की कमीज पकड़ कर मैं उसी कमरे में ले गया, जहां उस की बीवी बैठी थी. बीवी के सामने हुई बेइज्जती से वह गुस्से से पगला सा गया. उस ने लपक कर सब्जी काटने वाली छुरी उठा ली और तेजी से घुमा कर मुझ पर वार कर दिया. लेकिन छुरी मेरे पेट से 2 इंच फासले से निकल गई. मैं बच गया. मैं ने लपक कर उस की कलाई थाम ली और एक लात उस के पेट पर मारी. वह धड़ाम से गिरा. इस के बाद एएसआई ने उस पर लातघूंसों की बारिश कर दी. मुझे लगा कि जुलेखा के सिर से शौहर के डर का भूत उतर गया है तो मैं ने कहा, ‘‘देख लड़की, अब किसी से डरने की जरूरत नहीं है. बिना डर के सब कुछ बता दे.’’

‘‘इंसपेक्टर साहब, मुझे और मेरी मां को तो कोई नुकसान नहीं पहुंचेगा?’’

मैं ने उसे भरोसा दिया और मदद का वायदा किया. मैं उसे दूसरे कमरे में ले गया.

वहां उस ने बताया, ‘‘साहब, मुझ पर बड़ा जुल्म हुआ है, मुझे बुरी तरह लूटा गया है. मैं ने यह जुल्म अपनी मां की खातिर बरदाश्त किया. आज से कोई 9 महीने पहले की बात है. मैं स्कूल में पढ़ाती थी. उसी स्कूल का एक कलर्क पता नहीं मुझ से क्यों दुश्मनी रखता था. उस की वजह से मेरी 4-5 माह की तनख्वाह रुकी हुई थी. मेरी एक सहेली ने मुझे नेताजी गनपतलाल से मिलने की सलाह दी. ‘‘मैं उस से मिलने गई. मैं ने सारी विपदा कही. वह मुझ से बहुत अच्छे से मिला और उस ने मेरा काम करवाने का वायदा किया. इसी सिलसिले में मैं उस से मिलती रही. उसी बीच उस की नीयत मुझ पर खराब हो गई. उस ने मुझे इस तरह अपने जाल में फंसाया कि मुझे अपनी बरबादी साफ नजर आने लगी. मैं होशियार हो गई. जब उसे अंदाजा हुआ कि मैं उस के हाथ नहीं आऊंगी तो उस ने पैंतरा बदला. एक दिन उस ने कहा, ‘जुलेखा, मैं तुम से ब्याह करना चाहता हूं.’

‘‘मैं ने तुरंत इनकार कर दिया. उसे ताज्जुब हुआ कि इतने मशहूर और रईस आदमी से मैं ने शादी से इनकार कर दिया. वह गुस्से में पागल हो गया. मुझे धमकी देने लगा कि वह मुझे ऐसी सजा देगा कि मैं उम्र भर तड़पती रहूंगी. शादी से पहले नजीर उस के यहां चमचागिरी करता था. एक बार उस ने मुझ से बेहूदा मजाक किया तो मैं ने उसी समय उसे एक थप्पड़ जड़ दिया. ‘‘इस घटना के कुछ दिनों बाद नजीर मेरी मां के पास मेरा रिश्ता मांगने पहुंचा. मां ने मेरी शादी उस के साथ करने से मना कर दिया. इस के बाद एक औरत मेरी मां के पास नजीर के लिए मेरा रिश्ता मांगने आई. मां ने फिर इनकार कर दिया. इस के बाद दूसरी औरत रिश्ता मांगने आई. मां ने उसे भी डांट कर भगा दिया.

‘‘दूसरे दिन मेरे छोटे भाई को उस के हौस्टल से किसी ने अगवा कर लिया. जब हमें पता चला कि इस के पीछे गनपतलाल का हाथ है तो हम रिपोर्ट दर्ज कराने थाने पहुंचे. लेकिन उस के खिलाफ रिपोर्ट नहीं लिखी गई. हमें डराधमका कर थाने से भगा दिया गया. उसी रात गनपतलाल की तरफ से एक खत मिला, जिस में लिखा था, ‘तुम्हारा भाई वापस हौस्टल पहुंच गया है. ध्यान रखो, अगली बार गायब होगा तो हौस्टल में नहीं, मुरदाखाने में मिलेगा.’

‘‘उस रात मैं और मेरी मां बहुत रोईं. इस के बाद बेबस और मजबूर हो कर मुझे नजीर से शादी करनी पड़ी. तब से मैं बड़ी जिल्लत के साथ जी रही हूं. मेरी मां से भी नजीर बड़ा बुरा व्यवहार करता है. पिछले दिनों उस ने उन्हें कांच का गिलास फेंक कर मारा था.’’ इतना कह कर वह सिसकने लगी. उस की दुखभरी दास्तान सुन कर मेरा भी दिल भर आया. मैं ने पूछा, ‘‘यह कुल्फी वाले विलायत का क्या किस्सा है?’’

जुलेखा बोली, ‘‘साहब, मैं नादान बच्ची नहीं, पढ़ीलिखी समझदार हूं. विलायत से मैं ने कभी शादी के बारे में सोचा तक नहीं था, पर अब मुझे लग रहा है कि वह गनपतलाल व नजीर से बेहतर इंसान था. उस ने जान पर खेल कर मेरी जिंदगी बचाई थी. उस का यह एहसान मैं कभी नहीं भूल सकती. उसे झूठे चोरी के केस में फंसाया गया है. जरूर इस के पीछे इन्हीं लोगों का हाथ होगा.’’ यह एक खास बात थी, जो मैं ने दिमाग में रख ली. विलायत अली के बारे में उसे कुछ खबर नहीं थी. मैं ने नजीर को गिरफ्तार किया और एक सिपाही को जुलेखा की हिफाजत के लिए छोड़ा. जुलेखा के भाई को भी हौस्टल से निकाल कर बहन के पास पहुंचा दिया.

नजीर को ले कर मैं थाने पहुंचा. थाने के गेट पर बहुत से सिपाही खड़े थे. सभी परेशान थे. पूछने पर एक सिपाही ने कहा, ‘‘साहब, बलराज साहब की किसी ने गोली मार कर हत्या कर दी है.’’

एक पल को मेरा दिमाग सुन्न हो गया. नजीर को 2 सिपाहियों के हवाले किया और 2 सिपाहियों के साथ मौकाएवारदात के लिए रवाना हो गया. सिपाही ने मुझे बताया था कि बलराज की लाश एक बोरी में दरिया के किनारे मिली थी. जब मैं वहां पहुंचा तो पुलिस वाले काररवाई कर रहे थे. डीएसपी साहब भी वहीं मौजूद थे. गोली बलराज के हलक में लगी थी. जिस्म पर वर्दी मौजूद थी, पर उस की हालत से लगता था कि उस की किसी से जम कर हाथापाई हुई थी. अचानक मेरे दिमाग में एक खयाल आया. बलराज चंद घंटे पहले जब थाने से निकला था तो वह ऐसे निकला था, जैसे मुलजिम को ले कर ही आएगा. पर उस का तो कत्ल हो गया था.

डीएसपी समेत तमाम अमला ड्यूटी पर था. जैसेजैसे रात बीत रही थी, सब की बेचैनी बढ़ती जा रही थी. विलायत की तलाश में भेजी गई सारी टीमें मुस्तैदी से अपने काम में लगी थीं. बलराज के कत्ल ने मामले को और संगीन बना दिया था. हमारे पास सुबह साढ़े 10 बजे तक का वक्त था.

एसपी साहब की इत्तला के मुताबिक हालात बहुत खराब थे. शहर में काफी तनाव था. खबर मिली कि सुबह को हजारों लोग जुलूस की शक्ल में थाने तक पहुंचेंगे और धरना देंगे. डर यह था कि कहीं भीड़ थाने पर हमला न कर दे. इस खतरे को टालना जरूरी था और उस के लिए एक ही रास्ता था, विलायत अली की बरामदगी. उस वक्त रात के ढाई बजे थे. डीएसपी साहब ने मुझे अपने कमरे में बुलाया. मैं उस वक्त नजीर से पूछताछ कर रहा था. सख्ती करने के बाद उस ने बताया कि उसी के कहने पर ही गनपतलाल और सेठ अहद ने विलायत अली को चोरी के झूठे केस में फंसाया था, लेकिन उसे उस के फरार होने के बारे में कुछ पता नहीं था. जब मैं डीएसपी साहब के कमरे में पहुंचा तो वहां वह सिपाही भी मौजूद था, जिसे मैं ने सेठ अहद की कोठी पर लगाया था. डीएसपी के कहने पर उस ने मेरे सामने अपनी रिपोर्ट दोहराई. उस ने बताया कि शाम 4 बजे बलराज सेठ अहद के घर गया था. फिर दोनों एक कार में बैठ कर कहीं चले गए थे. उस के डेढ़ घंटे बाद बलराज की लाश मिली थी. इस रिपोर्ट में खास बात यह थी कि बलराज ने ही विलायत को फरार कराया था और उस में सेठ अहद भी शामिल था.

डीएसपी से सलाह ले कर मैं सीधा सेठ अहद को गिरफ्तार करने पहुंचा. उस वक्त सुबह हो रही थी. सेठ अहद ने अपनी गिरफ्तारी पर बहुत हंगामा किया, धमकियां भी दीं. उस की कोठी की भी तलाशी ली गई, लेकिन वहां कुछ नहीं मिला. सेठ अहद के थाने पहुंचते ही गनपतलाल और अन्य लोगों के सिफारिशी फोन आने लगे. इतना ही नहीं, 3-4 कारों से कुछ रसूख वाले लोग भी आए. एसपी साहब भी थाने पहुंच गए. रसूखदार लोग सेठ अहद को जमानत पर छोड़ने की सिफारिश कर रहे थे. एसपी साहब ने उन की बात नहीं मानी. सेठ अहद से पूछताछ जारी थी. सुबह साढ़े 8 बज रहे थे, पर उस ने कुछ नहीं बताया था. एकाएक मेरे जेहन में बिजली कौंधी, मैं उछल पड़ा. मैं भागता हुआ एसपी साहब के पास पहुंचा. मैं ने पूछा, ‘‘सर, इस जुलूस का सरगना कौन है? इस विरोध के पीछे कौन है?’’

एसपी साहब बोले, ‘‘वैसे तो 2-4 लोग हैं, पर खास नाम नेता गनपतलाल का है.’’

मैं तुरंत 5-6 सिपाहियों व एक एएसआई को ले कर डीएसपी साहब की जीप से फौरन रवाना हो गया. मैं सीधा गनपतलाल की कोठी पर पहुंचा. उस समय गनपतलाल वहां नहीं था. कोठी की तलाशी लेने पर एक अंधेरे कमरे में विलायत मिल गया. तुरंत उसे कब्जे में ले कर कोठी से निकल आया. ठीक डेढ़ घंटे बाद जब मैं थाने वाली सड़क पर मुड़ा तो ट्रैफिक पुलिस वाले ने बताया कि आगे रास्ता बंद है. एक बड़ा जुलूस थाने की तरफ गया है. मैं ने घड़ी देखी, 11 बजने वाले थे. मुलजिम विलायत अली मेरी जीप में 2 सिपाहियों के बीच पिछली सीट पर बैठा था. रास्ता बदल कर मैं थाने पहुंचा. मैं ने देखा 3-4 हजार लोगों का एक बड़ा हुजूम थाने की तरफ आ रहा था. लेकिन पुलिस ने भीड़ को थाने से करीब 50 गज दूर रोक रखा था. मैं जीप ले कर भीड़ के पास पहुंच गया. भीड़ में सब से आगे मुझे गनपतलाल नजर आया. उस के आसपास नौजवानों ने घेरा बना रखा था. वे जोरजोर से नारे लगा रहे थे. मैं ने डीएसपी साहब से मेगाफोन मांगा. उन दिनों यह नयानया आया था.

मैं ने मेगाफोन पर गनपतलाल का नाम पुकारा. एकदम शांति छा गई. मैं ने पूछा, ‘‘गनपतलाल, आप की डिमांड क्या है?’’

गनपतलाल भड़क कर 2 कदम आगे आया. वह चीख कर बोला, ‘‘आग लगाना चाहते हैं हम इस जुल्म के गढ़ को, जहां विलायत अली जैसे बेगुनाह लोगों की जान ली जाती है.’’ मैं ने एएसआई को इशारा किया. उस ने विलायत अली को थाम कर सारे हुजूम के सामने खड़ा कर दिया. विलायत को जीवित देख कर गनपतलाल का चेहरा एकदम सफेद पड़ा गया. उस की आंखें फटी की फटी रह गईं. भीड़ में कुछ विलायत अली के रिश्तेदार भी थे. उन्होंने आगे बढ़ कर उसे गले लगा लिया और जोर से पूछा, ‘‘विलायत अली, तुम किस की कैद में थे?’’ विलायत के एक रिश्तेदार ने मुझ से मेगाफोन ले कर जोश में कहा, ‘‘इस में पुलिस का कुसूर नहीं है. यह सारा दोष गनपतलाल का है.’’

भीड़ में मौजूद लोग आपस में खुसुरफुसुर करने लगे. मेरी नजर गनपतलाल पर ही जमी थी. अचानक वह लड़खड़ा कर गिर पड़ा. पुलिस वाले तेजी से उस की ओर बढ़े. उसे पुलिस की गाड़ी से अस्पताल भेजा गया, जहां पता चला कि उसे दिल का दौरा पड़ा था. अस्पताल में जब उसे होश आया तो उस से पूछताछ की गई. पता चला कि बलराज ने सेठ अहद और गनपतलाल के साथ मिल कर ही विलायत अली को थाने से फरार कराया था. बलराज के साथ उन दोनों के गहरे संबंध थे. इस तरह उन लोगों ने एक तीर से 2 शिकार किए थे. बलराज को मुझ से बदला लेना था और गनपतलाल को वह आदमी मिल गया था, जिस का वह कत्ल करना चाहता था.

वह उस का कत्ल कर के नजीर की इच्छा पूरी करना चाहता था, ताकि नजीर पर उस की पकड़ मजबूत हो जाए. लेकिन हालात कुछ इस तरह बने कि लोग पुलिस का विरोध करने पर उतर आए. गनपतलाल पुलिस को बदनाम करने का मौका खोना नहीं चाहता था. वह अपनी राजनीति की दुकान चमकाना चाहता था. उसी ने लोगों को भड़काया था कि पुलिस के जुल्म से विलायत मर गया है. विभागीय दबाव बढ़ने पर बलराज ने गनपतलाल से विलायत को छोड़ने के लिए कहा. उस ने उस की बात नहीं मानी. इसी बात पर दोनों में कहासुनी हुई, जो हाथापाई तक जा पहुंची. उसी दौरान बलराज ने रिवौल्वर निकाला. हाथापाई में बलराज से गोली चल गई, जो उसी को लगी.

जुलूस के सामने अगर विलायत को पेश नहीं किया जाता तो हालात बिगड़ सकते थे. जांच में नजीर मुलजिमों का साथी साबित हुआ. उस पर गबन का भी केस बना. अदालत में मामला चला तो उसे 7 सालों की सजा हुई.

सेठ अहद और गनपतलाल को मौत की सजा हुई. बाद में हाईकोर्ट ने उन की सजा को उम्रकैद में बदल दिया. जुलेखा ने केस लड़ कर पति से तलाक ले लिया. बाद में उस ने विलायत अली से निकाह कर लिया. विलायत ने 2 सालों में बहुत तरक्की की. वह बर्फ के एक कारखाने में हिस्सेदार है. जुलेखा उस के साथ खुश है.

प्रहसन : सत्ता की कुरसी पर आखिर कौन बैठा

संपूर्णानंदजी बड़े उत्साह से विधायक दल की बैठक में पहुंचे थे. चुनाव में उन्होंने और उन के अनुयायियों ने जीतोड़ परिश्रम किया था फिर भी वह पूर्णतया आश्वस्त नहीं थे कि उन के जनतांत्रिक दल को बहुमत मिलेगा.

जैसे ही उन के राज्य के चुनाव परिणाम आने लगे, वह सुखद आश्चर्य से भरपूर अद्भुत अनुभूति के सागर में डूबनेउतराने लगे. मुख्यमंत्री की कुरसी उन के पूरे वजूद पर छा गई थी. आंखें मूंदते तो लगता हाथ बढ़ा कर उसे छू लेंगे. स्वप्न में स्वयं को उसी कुरसी पर बैठा पाते. दिन में दिवास्वप्न देखते और अपने घर वालों से भी मुख्यमंत्री की भांति ही व्यवहार करते.

आज विधायक दल की बैठक अपने दल के नेता को चुनने के लिए बुलाई गई थी. संपूर्णानंदजी पूरी तैयारी के साथ पहुंचे थे ताकि विधायक दल के नेता के रूप में चुने जाते ही वह अपने साथियों से विचारविमर्श कर सकें.

वह और उन के साथी राज्य में अपनी पार्टी की जीत का श्रेय उन की योजनाबद्ध तैयारी को ही देते थे. 5 साल में उन्होंने प्रदेश का कोनाकोना छान मारा था. वह हर तबके के लोगों से मिल कर उन की परेशानियों को समझ कर उन्हें दूर करने का प्रयत्न करते और सत्ता में आने पर उन सभी समस्याओं का समाधान करने का आश्वासन भी देते थे.

उन के प्रयत्न रंग लाए और जनतांत्रिक दल सभी की आशा के विपरीत बहुमत से जीता था. हाई कमान ने तुरंत 2 प्रतिनिधियों को राज्य की राजधानी भेज दिया था और उन्होंने आते ही विधायक दल की बैठक बुलाई थी.

संपूर्णानंदजी बड़े उत्साह से उच्च कमान के प्रतिनिधियों, अमन कुमार तथा योगेश राव से मिलने पहुंचे थे. उन्हें आशा ही नहीं विश्वास था कि दोनों प्रतिनिधि उन्हें देखते ही जीत की बधाई देंगे और भावी मुख्यमंत्री के रूप में उन का स्वागत करेंगे.

अतिथिकक्ष में संपूर्णानंदजी के पहुंचते ही उन का कुछ ऐसी बेरुखी से स्वागत हुआ कि वह सन्न रह गए. उन का माथा ठनका. वह राजनीति के पुराने खिलाड़ी थे और लिफाफा देख कर मजमून भांप लेने वाले लोगों में से थे. लोगों की भावभंगिमाओं को देख कर उन के मन की बात जान लेने में उन्हें महारत हासिल थी. वह तुरंत समझ गए कि विधायक दल का नेता चुने जाने की राह इतनी सरल नहीं जितनी वह समझ रहे थे. वही हुआ. बैठक हंगामे के बीच स्थगित हो गई थी.

वह अपने निवास पर पहुंचे तो कैमरों के प्रकाश में उन की आंखें चुंधिया गईं. समाचारपत्रों और टीवी चैनलों के प्रतिनिधि उन्हीं की प्रतीक्षा में बैठे थे.

‘‘चुनाव में आप के दल को बहुमत मिला है पर 3 दिन के बाद भी आप का दल विधायक दल के नेता का चुनाव नहीं कर सका. इस का कोई विशेष कारण?’’ एक संवाददाता ने प्रश्न पूछ ही लिया.

‘‘कोई विशेष कारण नहीं है बंधु. आप प्रेस वालों में धैर्य की बड़ी कमी है. पर प्रतीक्षा में बड़ा आनंद है. थोड़ा धीरज रखिए तो आप पाएंगे कि राज की सभी परतें धीरेधीरे खुलने लगेंगी,’’ संपूर्णानंदजी अपने विशेष अंदाज में बोले थे.

‘‘क्या आप स्वयं को प्रदेश के अगले मुख्यमंत्री के रूप में देखते हैं?’’ एक अन्य रिपोर्टर ने प्रश्न उछाला जिसे उन्होंने बड़ी कुशलता से टाल दिया था.

‘‘अनूप राय ने भी इस पद के लिए अपनी दावेदारी पेश की है. इस बारे में आप क्या कहेंगे?’’

‘‘आप अनूप राय से ही पूछ लीजिए. मैं भला क्या कह सकता हूं.’’

‘‘अनूप राय ही नहीं स्वर्णाजी, अशीम बाबू, जोरावर सिंह सभी अपनीअपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं. सभी के अपने तर्क हैं. सभी अपनी दावेदारी को न्यायसंगत बता रहे हैं,’’ एक अन्य प्रश्न उछाला गया.

‘‘मुझ से तो किसी ने कुछ कहा नहीं अत: मैं इस बारे में अपने विचार प्रकट नहीं कर सकता. मैं तो आप सब को केवल यह याद दिलाना चाहता हूं कि जनतांत्रिक दल एक लोकतांत्रिक दल है. सत्ता का मुकुट उसी मस्तक पर सुशोभित होगा जिस पर उच्च कमान की कृपादृष्टि होगी. साथ ही जो विधायकों द्वारा चुना जाएगा.’’

‘‘फिर इतनी उठापटक क्यों हो रही है? सदन का गठन होने के 3 दिन बाद भी विधायक दल के नेता का चुनाव क्यों नहीं किया जा सका?’’ प्रश्न अब अधिक तीखा था पर संपूर्णानंद भी मंजे हुए राजनीतिक खिलाड़ी थे.

‘‘धैर्य, बंधु धैर्य, ‘सहज पके सो मीठा होय.’ ’’ यह कह कर वह बड़ी सहजता से मुसकराए थे.

घर पहुंचते ही सारी सहजता हवा हो गई थी.

‘‘यह सब चल क्या रहा है?’’ वह अपने मित्र व सहायक त्रिवेणी बाबू से बोले थे.

‘‘तरहतरह की अफवाहें हैं. अब तो स्थिति यह है कि हर विधायक मुख्यमंत्री पद के लिए अपनी दावेदारी पेश कर रहा है.’’

‘‘विधायकों की बात तो समझ में आती है पर उच्च कमान के प्रतिनिधियों को क्या हुआ है? सीधे मुंह बात नहीं की किसी ने.’’

‘‘सदा चुप रहने से बात नहीं बनती. लोग इसे कमजोरी समझ लेते हैं, भाऊ साहब.’’

‘‘कहना क्या चाहते हैं आप?’’

‘‘यही कि हर ऐरेगैरे के पास अपने तर्क हैं. एक आप ही हैं जो मौन साधे बैठे हैं.’’

‘‘मुझे कुछ कहने की जरूरत नहीं है. मेरा कार्य ही मेरी पहचान है. मैं ने अपने लंबे राजनीतिक जीवन में दल व जनता के लिए जितने कार्य किए हैं उन की कोई बराबरी नहीं कर सकता.’’

‘‘यह 21वीं सदी है भाऊजी, अब काम नहीं, धमकियां बोलती हैं. अनूप रायजी ने धमकी दे डाली है कि विधायक दल के नेता के रूप में उन की जाति की बारी है और उस के वह एकमात्र प्रतिनिधि हैं. उन्हें नेता नहीं बनाया गया तो उन की जाति के लोग वोट देना ही छोड़ देंगे.’’

‘‘ठीक है, मेरा भी एक वक्तव्य दे डालिए. मेरी जाति के लोग मेरा समर्थन कर रहे हैं. मुझे न चुने जाने की स्थिति में मेरे समर्थक विधायक विद्रोह कर देंगे, पर क्या लोकतंत्र के नाम पर हमें इस स्तर तक गिरना पड़ेगा?’’

‘‘अनूप रायजी अकेले नहीं हैं भाऊजी. स्वर्णाजी ने स्वयं को महिलाओं की एकमात्र नेता घोषित किया है. उन के अनुसार लोकतंत्र की सफलता के लिए उन का मुख्यमंत्री बनना नितांत आवश्यक है.’’

‘‘अन्य लोगों के क्या समाचार हैं. अपनी उम्मीदवारी के लिए वे क्या तर्क प्रस्तुत कर रहे हैं?’’

‘‘अपनीअपनी ढपली, अपनाअपना राग, किसकिस की सुनेंगे आप. मैं तो बस एक बात जानता हूं कि यह केवल तर्कवितर्क का समय नहीं है. अब तो कुछ कर गुजरने का समय है.’’

‘‘क्या करने की सलाह दे रहे हैं आप?’’

‘‘आप को कुछ करने की आवश्यकता नहीं है. आप तो केवल आज्ञा दे दीजिए. शेष हम सब देख लेंगे. अंदर स्वागत कक्ष में चल कर तो देखिए, आप के समर्थकों में कितना रोष है.’’

स्वागत कक्ष में पहुंचते ही संपूर्णानंदजी दंग रह गए. उन के समर्थक उन के विरोधियों के विरुद्ध नारे लगा रहे थे.

‘‘हम चुप नहीं बैठेंगे. हम आप के विरोधियों की ईंट से ईंट बजा देंगे.’’ समर्थकों के शोर में संपूर्णानंदजी का स्वर डूब गया था. उन्हें देखते ही उन के साथी विधायक उन्हें ले कर दूसरे कक्ष में चले गए थे.

कक्ष के बंद द्वार के पीछे देर तक विचारविमर्श चलता रहा था. बाहर समर्थकों के नारे गूंजते रहे थे.

मीडिया प्रतिनिधि व छायाकार डेरा डाले बैठे थे पर कोई भी यह नहीं जान पाया कि राज्य भर में पोस्टरों और नारों के साथ संपूर्णानंदजी के समर्थक सड़क पर उतर आए थे.

‘‘हम भी खेलेंगे नहीं तो खेल बिगाड़ेंगे की भावना यत्रतत्रसर्वत्र व्याप्त हो गई थी.’’

जब आधी रात को विपिन कुमार और उन के 5 समर्थकों की कारें संपूर्णानंदजी के अहाते में रुकीं तो मीडिया वालों को होश आया. विपिन कुमार और उन के समर्थक अनूप राय की जाति के थे और उन का संपूर्णानंदजी के यहां होना आश्चर्य की बात थी. वे लपक कर विपिन कुमार के पास जा पहुंचे थे.

‘‘आप और यहां? क्या आप प्रदेश की राजनीतिक स्थिति के आधार पर भावी मुख्यमंत्री का नाम बता सकते हैं?’’ एक मीडिया प्रतिनिधि ने पूछ ही लिया था.

‘‘प्रतीक्षा कीजिए श्रीमान. मैं भविष्यवक्ता तो हूं नहीं, जो आप के प्रश्न का उत्तर दे सकूं पर एक आश्वासन अवश्य दे सकता हूं कि सब से अनुभवी और योग्य व्यक्ति ही इस कुरसी पर बैठेगा. हम जाति और धर्म की राजनीति नहीं करते,’’ विपिन कुमार ने नपातुला उत्तर दिया था.

‘‘अर्थात आप संपूर्णानंदजी का समर्थन कर रहे हैं.’’

‘‘मैं ने ऐसा कुछ नहीं कहा. आप कुछ भी सोचनेसमझने के लिए स्वतंत्र हैं,’’ कहते विपिन कुमार मुड़ गए पर सभी मीडिया वाले इसी बात को ले अड़े थे.

‘‘अनूप राय के खेमे में पड़ी फूट के कारण विपिन कुमार अपने साथियों के साथ संपूर्णानंदजी से जा मिले,’’ अगले दिन समाचारपत्रों में सुर्खियों में छपा था.

रात भर विचारविमर्श चलता रहा था. विधानसभा के गणित का विस्तार से आकलन किया गया था और पहली बार लगा कि पलड़ा संपूर्णानंदजी के पक्ष में झुकने लगा है.

अगले दिन सुबह के समय जब सारी सृष्टि सूर्य की सुनहरी किरणों से नहा उठी थी. विपिन कुमार के सेलफोन की घंटी बज उठी थी.

‘‘कितने में बिके? मंत्री पद का आश्वासन तो अवश्य मिला होगा? अगली 7 पीढि़यों के कुशलक्षेम का प्रबंध हुआ या नहीं,’’ फोन के दूसरी ओर से व्यंग्यात्मक स्वर उभरा था.

‘‘कौन हो तुम? यह बेहूदा प्रश्न पूछने का साहस कैसे हुआ तुम्हें?’’ विपिन कुमार आपा खो बैठे थे.

‘‘यह प्रश्न नहीं है. मैं तो तुम्हें याद दिला रहा था कि जयचंद आज भी पृथ्वीराज चौहान की पीठ में छुरा भोंकता है. तुम तो अपनी ही जाति के शत्रु हो गए.’’

‘‘बंद करो अपनी बकवास, तुम होते कौन हो यह सब कहने वाले?’’

‘‘सच बात सुन कर ऐसे ही क्रोध आता है पर मुझे तुम से ऐसी आशा नहीं थी.’’

‘‘पता नहीं कौन बकबक कर रहा है,’’ विपिन कुमार ने झुंझला कर फोन बंद कर दिया था.

संपूर्णानंदजी बिना बताए ही सब समझ गए थे.

‘‘अब कहां जाओगे तुम लोग? मेरे बेटे रोमेश का एक रिसोर्ट है, आप वहीं चले जाओ. नहाधो कर तरोताजा हो जाओ. वहीं आराम कर लेना. रोमेश आप सब को ले जाएगा. वहीं योगेश राव तथा अमन कुमार के आदेश की प्रतीक्षा करो,’’ वह बोले थे.

विपिन कुमार और उन के समर्थक विधायकों के जाते ही संपूर्णानंदजी फिर जोड़तोड़ में डूब गए थे. तभी योगेश राव तथा अमन कुमार का संदेश मिला था. उन्होंने संपूर्णानंदजी को तुरंत मिलने के लिए बुला भेजा था.

संपूर्णानंदजी, योगेश कुमार तथा अमन कुमार आमनेसामने बैठे थे. दोनों ही पक्ष मानो एकदूसरे के मन की थाह लेना चाहते थे.

‘‘प्रदेश की परिस्थिति से आप पूरी तरह परिचित हैं. हम ने सभी पक्षों से बातचीत की है. सोचा था सभी एकमत से आप के नाम का समर्थन करेंगे पर ऐसा संभव नहीं लगता,’’ बात अमन कुमार ने प्रारंभ की थी.

‘‘मेरे लिए क्या आज्ञा है?’’ संपूर्णानंदजी नम्र स्वर में बोले थे.

‘‘उच्च कमान ने सारा भार हमारे कंधों पर छोड़ दिया है. हम चाहते हैं कि आप भी पूर्ण सहयोग करें.’’ योगेश कुमार बोले थे.

‘‘क्या करना होगा मुझे?’’

‘‘हम दोनों को आशा ही नहीं विश्वास है कि चुनाव की स्थिति में आप की ही विजय होगी पर उस स्थिति में दल में दरार पड़ जाएगी.’’

‘‘तो?’’

‘‘हमारी इच्छा है आप निर्विरोध चुने जाएं. यदि आप अनूप राय तथा स्वर्णाजी को उपमुख्यमंत्री बनाएं और कुछ मंत्रीपद भी उन दोनों के समर्थक विधायकों को देने को तैयार हों तो बात बन सकती है,’’ योगेश कुमार बोले थे.

संपूर्णानंदजी चित्रलिखित से बैठे रह गए. समझ में नहीं आ रहा था, रोएं या हंसें.

‘‘तो क्या सोचा आप ने? कहां खो गए आप?’’ अमन कुमार ने प्रश्न किया था.

‘‘मेरे सोचने को बचा ही क्या है? सोचनेसमझने का कार्य तो आप दोनों ने कर ही लिया है,’’ संपूर्णानंदजी हंसे थे.

‘‘अर्थात आप सहमत हैं. हम आज ही विधायक दल की बैठक बुला कर इस समस्या का समाधान कर लेते हैं,’’ योगेश तथा अमन कुमार समवेत स्वर में बोले थे.

‘‘तो मैं चलूं?’’ संपूर्णानंदजी उठ खड़े हुए थे. उन्हें भविष्य साफ नजर आ रहा था.

अपना सारा समय और शक्ति जातिगत, धार्मिक तथा क्षेत्रीय समीकरणों को सुलझाने में ही लगाने पड़ेंगे और जनता? वह बेचारी क्या जाने कि उस के प्रतिनिधियों को कैसेकैसे पापड़ बेलने पड़ते हैं.

अचानक वह बेतहाशा हंसने लगे थे. हंसी प्रतिक्षण बढ़ती ही जा रही थी.

‘‘क्या हुआ भाऊजी?’’ त्रिवेणी बाबू आश्चर्यचकित स्वर में बोले थे.

‘‘कुछ नही,ए क चुटकुला याद आ गया था. वैसे भी जीवन एक प्रहसन ही तो है त्रिवेणी बाबू. है कि नहीं?’’

‘‘जी हां, है तो,’’ त्रिवेणी बाबू ने हां में हां मिलाई थी.

एक गलती ने किया शक्ति कपूर, अमन वर्मा, विजय राज, सलमान का कैरियर बरबाद

हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में कलाकार अपना कैरियर बनाने के लिए जीतोड़ मेहनत करते हैं, लेकिन जब वे कामयाबी की शिखर पर पहुंचते हैं तो कुछ इसे संभाल कर नहीं रख पाते और कामयाबी की चकाचौंध में खो जाते हैं. जानेअनजाने में कुछ गलतियां कर बैठते हैं, जिन से उन का कैरियर पलक झपकते ही बरबाद हो जाता है, जिस का खमियाजा बहुत बड़ा होता है और उस से निकल पाना उन के लिए बहुत मुश्किल होता है.

कई तो उस से निकल जाते हैं जबकि कई गुमनामी की जिंदगी में जीने को बेबस हो जाते हैं. बौलीवुड के कुछ ऐक्टर्स ऐसे हैं जिन्होंने अपनी गलती की वजह से कैरियर को तबाह कर लिया. ये कोई आम नहीं, बल्कि नामचीन हैं और फिल्मों की वजह से काफी चर्चा में रहे हैं. उन्हें दर्शक अपना आइकन मानते रहे हैं. दर्शकों की वजह से वे ऐक्टर से स्टार और फिर सुपरस्टार बन जाते हैं. आइए जानते हैं कि आखिर उन की गलत हरकत का उन के कैरियर व आम दर्शकों पर क्या प्रभाव पड़ा.

शक्ति कपूर

बौलीवुड के चहेते विलेन शक्ति कपूर की कौमेडी को दर्शकों ने काफी पसंद किया. एक छोटी सी गलती ने उन की लाइफ बदल दी. कहा जाता है कि साल 2005 में उन को एक स्टिंग औपरेशन के दौरान कास्टिंग काउच का दोषी पाया गया. स्टिंग औपरेशन में शक्ति कपूर एक स्ट्रगलिंग ऐक्ट्रैस को फिल्म में काम दिलाने के एवज में कोम्प्रोमाइज करने का औफर देते दिखे थे. इस के बाद उन्हें फिल्में मिलना बंद हो गई थीं. इस स्टिंग ने उन के कैरियर को एक तरह से खत्म कर दिया. एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा है कि इंसान को हमेशा कुछ कहते और करते समय सावधान रहना चाहिए, लेकिन अगर वह व्यक्ति सैलिब्रिटी हो, तो उसे बहुत अधिक सतर्क होना पड़ता है.

शाइनी आहूजा

अभिनेता शाइनी आहूजा वो स्टार थे जिन्होंने बिना किसी गौडफादर के इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाई. ‘गैंगस्टर’, ‘लाइफ इन मैट्रो’, ‘भूलभुलैया’, ‘वेलकम बैक’ जैसी फिल्मों में उन्होंने इतनी जबरदस्त ऐक्टिंग की कि लोग उन की अदायगी के दीवाने हो गए. लेकिन उन की एक गलती से उन की जिंदगी में ऐसा तूफ़ान आया जिस से सबकुछ तबाह हो गया.

साल 2009 में शाइनी पर उन की ही नौकरानी ने रेप और धमकाने का आरोप लगाया, जिस के चलते उन्हें 7 साल की जेल भी हुई. इस के बाद शाइनी का कैरियर भी लगभग खत्म ही हो गया है. अब उन्हें एक सफल फिल्म का इंतजार है.

सलमान खान

सलमान खान बौलीवुड के सुपरस्टार हैं. उन्होंने एक से एक बढ़ कर एक हिट फिल्में दी हैं. 28 सितंबर, 2002 को सलमान को हिट एंड रन केस में गिरफ्तार किया गया था. उन पर आरोप था कि ड्रिंक करने के बाद रैश ड्राइविंग कर उन्होंने सड़क किनारे सो रहे एक शख्स को कुचल दिया था, जिस की मौके पर ही मौत हो गई थी और 4 लोग बुरी तरह से जखमी हो गए थे, हालांकि उन पर गैरइरादतन हत्या का मामला दर्ज हुआ था, लेकिन इस की वजह से उन्हें जेल और कई बार कोर्ट जाना पड़ा था. उस दौरान उन्हें फिल्मों और विज्ञापनों से निकाल दिया गया था.

इस से पहले सलमान का नाम काले हिरण को मारने के मामले में आया था. वर्ष 1998 में फिल्म ‘हम साथसाथ हैं’ की शूटिंग के दौरान सलमान और उन के कोस्टार्स पर जोधपुर के कांकाणी गांव के जंगल में काले हिरण का शिकार करने का आरोप लगा था, जिस के लिए उन्हें कई बार जेल जाना पड़ा है, इस से उन का कैरियर पूरी तरह से बरबाद हो गया था. उस से निकल कर फिर से इंडस्ट्री में अपनी साख जमाने में उन्हें काफी समय लगा, क्योंकि जिंदगी के उन पलों में उन्हे कोई भी निर्मातानिर्देशक अपनी फिल्मों में नहीं लेना चाहता था.

सलमान ने एक एक्स्क्लूसिव इंटरव्यू में कहा भी है कि, “मैँ अपने पिता का अच्छा बेटा नहीं बन पाया, क्योंकि मेरी वजह से मेरे पिता को कई सारी परेशानियों का सामना करना पड़ा है और इस बात का मुझे हमेशा दुख रहता है.”

अमन वर्मा

टीवी इंडस्ट्री के बेहतरीन ऐक्टर और हैंडसम हंक अमन वर्मा की एक समय में लड़कियां दीवानी हुआ करती थीं, लेकिन 2005 में हुए एक स्टिंग औपरेशन ने उन का कैरियर भी तबाह कर दिया, जिस में वो कास्टिंग काउच में फंस गए थे.

फरदीन खान

बौलीवुड के दिग्गज अभिनेता फिरोज खान के घर में जन्मे फरदीन खान ने भी बौलीवुड में काफी हाथपैर मारे. फिल्मों में बतौर ऐक्टर उन्होंने अपने कैरियर की शुरुआत की थी. उन्होने ‘प्यार तूने क्या किया’, ‘फिदा’, ‘नो एंट्री’, ‘प्रेम अगन’, ‘देव’, ‘हे बेबी’ और ‘जंगल’ जैसी कई फिल्मों में काम किया, लेकिन आज फरदीन खान बौलीवुड से लगभग गायब हो चुके हैं. माना जाता है कि इस के पीछे खुद फरदीन खान ही हैं. उन्हें ड्रग्स खरीदने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. इन आरोपों में घिरने के बाद फरदीन खान का फिल्मी कैरियर पूरी तरह तबाह हो गया और बौलीवुड में फरदीन वो मुकाम हासिल नहीं कर पाए जो उन के पिता फिरोज खान ने किया था. 14 सालों बाद फरदीन वैब सीरीज ‘हीरामंडी’ में वली मोहम्मद की भूमिका में दिखाई दिए हैं. इस के अलावा अक्षय कुमार के साथ ‘खेल खेल में’ दिखे जिसे दर्शकों ने पसंद किया.

विजय राज

‘रन’ मूवी के कौमेडियन विजय राज से सभी परिचित हैं. विजय ने कई फिल्मों में दमदार भूमिका अदा की, लेकिन एक गलती ने उन के कैरियर को डुबोने का काम किया. साल 2005 में ‘दीवाने हुए पागल’ की दुबई में शूटिंग के दौरान विजय राज पर ड्रग्स लेने का आरोप लगा. इस के बाद उन्हें काम मिलना बंद हो गया और वो उन बौलीवुड ऐक्टर्स की लिस्ट में शामिल हो गए जो गुमनामी की दुनिया में खो गए हैं.

विनोद खन्ना

प्रसिद्ध अभिनेता विनोद खन्ना का एक समय पर बौलीवुड में सिक्का चलता था, लेकिन उन्होंने अपने चलते हुए कैरियर को छोड़ ओशो की शरण में जाने के फैसले से सब खत्म कर लिया. विनोद खन्ना को वापसी के बाद पुराना फेम नहीं मिला.

मी टू के साइड इफैक्ट

यह सही है कि हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में कई बार अभिनेताओं द्वारा गलतियों के बारे में सुना जाता रहा है, लेकिन यह तब अधिक जोर नहीं पकड़ा जितना होना चाहिए था. ‘मी टू’ आंदोलन की शुरुआत 2006 में अमेरिकी सामाजिक कार्यकर्ता तराना बर्क ने की थी. इस आंदोलन को यौनहिंसा से पीड़ित लोगों को सहायता पहुंचाने के लिए शुरू किया गया था, जो बाद में भारत में 15 अक्टूबर, 2017 को आया. तब लगातार एक के बाद एक कलाकारों, निर्मातानिर्देशकों के नाम सामने आते गए, जिन में अभिनेता नाना पाटेकर ‘हाउसफुल 4’ से निकाले गए. उन पर इस मामले की पहली गाज गिरी थी. तनुश्री दत्ता ने फिल्म ‘हौर्न ओके प्लीज’ के गाने की शूटिंग के समय नाना पर गलत तरीके से छूने का आरोप लगाया, तो नाना को ‘हाउसफुल 4’ की शूटिंग से हटा दिया गया.

इस के बाद फैंटम फिल्म कंपनी की एक्स कर्मचारी ने विकास बहल पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया. आरोप के बाद अनुराग कश्यप ने एक ट्वीट में फैंटम फिल्म कंपनी के बंद होने की घोषणा की. फैंटम वही कंपनी थी जिस के फाउंडिंग मैंबर में विकास बहल का भी नाम था.

ऐक्ट्रैस सलोनी चोपड़ा ने निर्मातानिर्देशक साजिद खान पर इंटरव्यू के बहाने घर पर बुला कर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया. असर यह हुआ कि प्रोड्यूसर-डायरैक्टर साजिद खान ने खुद को ‘हाउसफुल 4’ के डायरैक्शन से अलग कर लिया. आज भी वे फिल्म इंडस्ट्री से बाहर हैं.

फिल्म इंडस्ट्री में ऐसे आरोप और प्रत्यारोप का दौर सालों से चला आता रहा है, जिस में कई बार इन की गलती होती है, तो कई बार ये कलाकार बिना गलती के भी इन के जाल में फंस जाते हैं. लीजैंड अभिनेता अमिताभ बच्चन से ले कर शाहरुख खान सभी से किसी न किसी रूप में कुछ न कुछ गलतियां अनजाने में कभी न कभी हो जाया करती हैं या फिर अनचाहे उस के शिकार हो जाते हैं, लेकिन उन्होंने उसे अच्छी तरह संभाला और कैरियर को बचाए रखा, जिस से वे आज भी सब के बीच चर्चित हैं.

इस बारे में मनोवैज्ञानिक राशिदा कपाड़िया कहती हैं कि “फिल्मों के हीरो दर्शकों के रियल लाइफ के भी हीरो होते हैं. उन्होंने क्या पहना, क्या खाया, कैसा उन का लाइफस्टाइल है आदि सबकुछ वे फौलो करते हैं. वे केवल परदे पर ही नहीं, रियल लाइफ में भी उन्हें अपना आदर्श मानते हैं. सो, सैलिब्रिटी को इमोशनल इंटैलीजैंट को सही रखना चाहिए, क्योंकि जिन लोगों का इमोशनल इंटैलीजैंट हायर होता है, वे किसी भी परिस्थिति को आसानी से हैंडल कर लेते हैं, वे सोचसमझ कर बात करते हैं और अपने इमोशन को काबू में रखते हैं.

“हालांकि उन के जीवन में कई प्रकार के स्ट्रैस होते हैं लेकिन इमोशन को मैनेज कर पाने की स्थिति में किसी भी समस्या का समाधान करने में वे समर्थ होते हैं. यह भी सही है कि सैलेब्स हमेशा मीडिया की नजर के सामने होते हैं, इस से उन को कई बार मुश्किलें भी आती हैं. ‘मी टू’ के बाद ऐक्ट्रैस खुल कर बोलने लगी हैं. लेकिन बोलने से कई बार ऐक्ट्रैस को काम करने का मौका भी नहीं मिलता क्योंकि कौम्प्रोमाइज पहले भी होता था और आज भी होता है और जो लड़कियां इस क्षेत्र में आती हैं उन्हें सब पता होता है. इसे वे सहजता से ही लेती हैं. लेकिन कई बार जब उन्हें मनचाहा काम या फेवर नहीं मिलता है तो वे मीडिया के सामने गुस्सा निकालती हैं या होहल्ला करती हैं.

“इस में सैलिब्रिटी को ध्यान रखना है कि वे कभी भी अकेले में कहीं न मिलें, कौफी शौप या आम जगह पर मिलें, होटल रूम में जाने पर प्रौब्लेम आ सकती है. बात जो भी करें, उसे रिकौर्ड करें, जैसा अमिताभ बच्चन करते हैं. ये बातें केवल फिल्म इंडस्ट्री में ही नहीं, आम जीवन में भी होती हैं. मेरे पास ऐसे कई पुरुष आते हैं जो कौम्प्रोमाइज के शिकार हो चुके हैं. लेकिन वे इसे गलत नहीं मानते. ग्लैडरैग्स मैनहंट और मेगामौडल प्रतियोगिता करने वाली महिला की पसंद की मौडल को उन के साथ सोना पड़ता था, यह उस में भाग लेने वाले एक प्रतियोगी ने मुझे बताया था. यंग लड़कों के लिए यह अनिवार्य था. सभी प्रतियोगिताओं में ऐसा होता ही है. अगर आप को उस फील्ड में जा कर सफलता हासिल करनी है तो उसे सहजता से लेना पड़ता है, अन्यथा आप उस में जाएं न.”

ऐसे में इतना कहा जा सकता है कि सैलिब्रिटी को हमेशा अपनी भावनाओं को काबू में रखना जरूरी होता है, उन्हें हमेशा समझना है कि वे दर्शकों के आइकन हैं, वे जितना अपनी कामयाबी को संभालेंगे, उतना ही वे दर्शकों के प्रिय होंगे. सो, उन की एक छोटी सी गलती उन के पूरे कैरियर को समाप्त कर देती है फिर चाहे वह प्रेमप्रसंग की हो या ड्रग एडिक्शन की.

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