भारतीय जनता पार्टी के पास चुनाव जीतने और सत्ता में बने रहने के लिए सिर्फ एक दांव है – हिंदूमुसलिम के बीच नफरत बढ़ाओ. आम जनता के जीवन स्तर को ऊपर उठाने, युवाओं को नौकरी देने, गरीब बच्चों के भोजन, शिक्षा और स्वास्थ्य की दिशा में काम करने, महिलाओं की सुरक्षा, अपराधों में कमी लाने और इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करने जैसे हजारों मुद्दे हैं जिस के लिए जनता सरकार चुनती है, वह चाहती है कि सरकार इन मुद्दों पर काम करे ताकि आम लोगों का जीवन सुगम और सुखी हो, लेकिन भारतीय जनता पार्टी के पास सिर्फ एक ही मुद्दा है – धर्म.
धर्म के नाम पर भाजपा बड़ी आसानी से लोगों को उत्तेजित कर लेती है. धर्म के झांसे में जनता को फंसा कर उसे मूल मुद्दों से भटका देती है. जनता भोली है वह भाजपा की राजनीतिक चालबाजियों को नहीं समझ पाती और राजनीति उसे जैसे हांकती है वह उसी ओर मुड़ जाती है. कभी बीमारी से लड़ने के लिए तालीथाली बजाती है तो कभी धर्म के नाम पर उकसाने पर अपने उस पड़ोसी के सीने में छुरा भोंक आती है, जिस के साथ बरसों से उस का प्रेमपूर्ण मैत्री सम्बन्ध बना हुआ था.
भाजपा हिंदू के दिल में मुसलमान के लिए नफरत के बीज डालती है. कि देखो मुसलमान ढेरों बच्चे पैदा कर रहे हैं, मुसलमानों की आबादी बढ़ रही है. वे तुम्हारा हक, तुम्हारी जमीन, तुम्हारा अनाज खा जाएंगे. वे तुम्हारी औरतों का मंगलसूत्र छीन लेंगे. अगर तुम ने भाजपा के अलावा किसी और को वोट दिया तो वे सत्ता में आते ही तुम्हारे हिस्से का आरक्षण मुसलमानों को दे देगी. मुसलमान आततायी हैं, घुसपैठिये हैं, उस ने तुम्हारे भगवानों को बेघर कर के उन जगहों पर अपनी मस्जिदें बना लीं. जनता उत्तेजित हो जाती है. वह समझने लगती है कि उन की भूख से बड़ा मुद्दा भगवान का है.
चुनावी नैया पार लगाने के लिए भाजपा के पास पहले राम मंदिर का मुद्दा था. इस मुद्दे को उछाल कर कई चुनाव जीते गए. आखिरकार 5 अगस्त 2020 को अयोध्या में रामलला के मंदिर की नींव पड़ गई और 22 जनवरी, 2024 को मंदिर का उदघाटन भी हो गया. मंदिर बनाने के लिए अयोध्या के जनजीवन को तहस नहस कर दिया गया. शहर भर में सौंदर्यीकरण के नाम पर हजारों लोगों के घरदुकानें उजाड़ दीं. भगवान का घर बसाने के लिए जीतेजागते इंसानों को बेघर कर दिया गया. उन के रोटीरोजगार जो बरसों से चल रहे थे, बंद हो गए. जनता ने सहा. लोकसभा चुनाव में अपना गुस्सा भी व्यक्त किया और भाजपा अयोध्या की सीट हार गई.
अब राम मंदिर का मुद्दा खत्म हो गया है. 4 जून को लोकसभा चुनाव का रिजल्ट आने के बाद अब रामलला के बारे में कोई बात भी नहीं रहा है. मगर आगे कई राज्यों के चुनाव होने हैं. खासतौर पर उत्तर प्रदेश का. राज्यों के चुनाव जीतने के लिए भाजपा को मुसलमानों के खिलाफ कुछ नए मुद्दे पैदा करने हैं. एनआरसी और सीएए जैसी परेशान करने वाली चालें जनता के विरोध के चलते कामयाब नहीं हो रही हैं. हालांकि उन को बीचबीच में हवा दी जाती है. उधर जम्मू कश्मीर में धारा 370 हटा कर यह दावा किया जा रहा था कि अब वहां शांति स्थापित होगी, मगर वहां लगातार आतंकी हमले हो रहे हैं. आतंकी जम्मू तक घुस आए हैं. सेना के दो दर्जन से ज्यादा जवान इन हमलों में शहीद हो चुके हैं. इस पर मोदी सरकार की बोलती बंद है. नया बवाल बांग्लादेश में शेख हसीना के तख्तापलट के बाद सामने आ खड़ा हुआ है. बांग्लादेश से पलायन कर रहे लोग हजारों की संख्या में भारतीय बौर्डर पर जमे हैं कि किसी तरह भारत में प्रवेश कर जाएं. अभी तक बांग्लादेशियों और रोहिंगिया मुसलमानों को भारत से बाहर करने की कवायद में जुटी भाजपा सरकार अब इतनी बड़ी तादाद में भारत में घुसने को आतुर बांग्लादेशियों को कैसे रोकेगी, कहांकहां से रोकेगी, यह बड़ा सवाल है. ऐसे में चुनावी मुद्दे के रूप में कोई तो ऐसा मामला चाहिए जिस से उत्तेजना भड़के, ध्रुवीकरण हो. सो नया मुद्दा है – वक्फ की संपत्तियों का.
भाजपा की आंखें वक्फ की संपत्तियों पर आ गड़ी हैं. इस मामले को उछाल कर जहां वह एक तरफ हिंदू वोटरों को यह दिखाने की कोशिश करेगी कि देखो मुसलमानों के पास देश की कितनी जमीन है, वहीं वक्फ बोर्ड में घुसपैठ कर के वह उसे अपने नियंत्रण में लेने की कोशिश में है. जिनजिन जगहों पर वक्फ की संपत्तियों को ले कर किसी तरह का विवाद होगा, उन को विवादित घोषित कर वह अपने हाथ में लेले तो कोई आश्चर्य नहीं.
मोदी सरकार वक्फ बोर्ड अधिनियम 1995 में प्रस्तावित संशोधन ले कर आई है, जिसे वक्फ (संशोधन) विधेयक 2024 के रूप में रखा है. सरकार का कहना है कि वक्फ (संशोधन) विधेयक का उद्देश्य वक्फ बोर्डों में जवाबदेही और पारदर्शिता बढ़ाना है, जिस में महिलाओं को अनिवार्य रूप से शामिल करना भी शामिल है. 8 अगस्त 2024 को अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू ने वक्फ (संशोधन) विधेयक लोकसभा में पेश किया है.
इस में कहा गया है कि ‘इस अधिनियम के लागू होने से पहले या बाद में वक्फ संपत्ति के रूप में पहचानी गई या घोषित की गई कोई भी सरकारी संपत्ति वक्फ संपत्ति नहीं मानी जाएगी. जिला कलैक्टर यह तय करने वाला मध्यस्थ होगा कि कोई संपत्ति वक्फ संपत्ति है या सरकारी भूमि और ये निर्णय अंतिम होगा. एक बार निर्णय लेने के बाद कलैक्टर राजस्व रिकौर्ड में आवश्यक परिवर्तन कर सकता है और राज्य सरकार को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत कर सकता है. विधेयक में यह भी कहा गया है कि कलैक्टर की ओर से राज्य सरकार को अपनी रिपोर्ट पेश करने तक ऐसी संपत्ति को वक्फ संपत्ति नहीं माना जाएगा.
यह बात सच है कि वक्फ संपत्तियों को ले कर देश में काफी झगड़े चल रहे हैं. कहीं वक्फ की संपत्तियों पर नाजायज कब्जे हो गए हैं तो कहीं वक्फ संपत्ति से होने वाली आय में भ्रष्ट लोगों द्वारा बंदरबांट हो रही है. वक्फ की काफी संपत्तियों पर दबंगों, नेताओं और अपराधी तत्वों ने कब्जा कर अपने मकान, मोल, दुकानें आदि बना लीं हैं. वहीं इन संपत्तियों की देखरेख का जिम्मा जिन वक्फ बोर्ड्स का है, उस में भी भ्रष्टाचार अपनी चरम पर है. नतीजा वक्फ की संपत्तियों से जो फायदा गरीब मुसलमानों को पहुंचना चाहिए वह उन्हें नहीं मिल रहा है.
वक्फ के मामलों को मुसलमानों को खुद सुलझाना चाहिए, बिलकुल वैसे ही जैसे सिख अपने धार्मिक मामलों को स्वयं सुलझाते हैं, या हिंदू अपने धार्मिक मामलों को खुद देखते हैं. देश भर के वक्फ बोर्ड्स को एकजुट हो कर यह देखना चाहिए कि उन के घर के मामले घर के अंदर ही कैसे सुलझें. वक्फ बोर्ड्स के पास अपनी जमीनों की हिफाजत के कानून भी हैं और अधिकार भी. मगर मोदी सरकार इस में जबरदस्ती घुसपैठ करना चाहती है. देश भर में कितने मंदिर हैं, उन मंदिरों के पास कितनी जमीनें हैं, कितना धन और सोना चांदी उन के अंदर भरा पड़ा है, रोजाना इन मंदिरों में जितना चढ़ावा चढ़ रहा है, वह कहां जाता है, इन तमाम बातों का खुलासा वह कभी नहीं होने देगी मगर वक्फ की जमीनों को नापने के लिए वह बहुत बेचैन है.
एक समाचार के अनुसार राम मंदिर के भूमि पूजन से अब तक रामलला के मंदिर में भक्तगण 55 अरब रुपये से अधिक धनराशि चढ़ा चुके हैं. यह पैसा कहां जाएगा? इस से गरीब हिंदू के भले के लिए क्या किया जाएगा? क्या कोई स्कूल, अनाथाश्रम, अस्पताल, वृद्धाश्रम इतनी बड़ी धनराशि से खोले जाएंगे? नहीं. ऐसा कुछ नहीं होगा. फिर इतनी बड़ी धनराशि कहां जाएगी? यह सवाल कोई नहीं उठाता. यह सिर्फ एक रामलला के मंदिर के चढ़ावे की बात है. देश भर के मंदिरों में रोजाना चढ़ावे का धन चढ़ रहा है. दक्षिण के मंदिरों में कितना धन और सोना चांदी हीरे जवाहरात भरे पड़े हैं, उस से देश के गरीब हिंदुओं के लिए क्या किया जा रहा रहा है, इस का कोई जवाब सरकार नहीं देगी. मगर मुसलमान के पास कितनी संपत्ति है, उस का क्या हो रहा है इस को जांचनेपरखने की उसे बड़ी जल्दी है. अगर भाजपा की नीयत साफ होती तो वक्फ बोर्ड में सुधार से जुड़े विधेयक में संशोधन किसी भी मुसलमान को मंजूर होता, मगर सवाल भाजपा सरकार की नीयत का है. इसलिए विरोध हो रहा है.
हालांकि मोदी सरकार जानती थी कि विरोध होगा और विपक्षी एकजुटता के आगे संशोधित विधेयक पास होना भी मुश्किल होगा, और वही हुआ भी. लोकसभा में विधेयक आते ही विपक्षी दलों ने एकसुर में इस का विरोध किया. लिहाजा वक्फ बोर्ड में सुधार से जुड़े विधेयक को संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) को भेजने की घोषणा कर दी गई और अगले ही दिन लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने 31 सदस्यीय समिति गठित कर दी. इस में 21 सदस्य लोकसभा और 10 सदस्य राज्यसभा के हैं. इस में इमरान मसूद, मोहम्मद जावेद, मौलाना मोहिबुल्लाह और असदुद्दीन ओवैसी के भी नाम शामिल हैं. समिति को संसद के आने वाले शीतकालीन सत्र के पहले हफ्ते में विधेयक पर अपनी रिपोर्ट के लिए कहा गया है. माना जा रहा है कि संसद का अगला सत्र नवंबर के अंतिम हफ्ते से शुरू होगा. ऐसे में समिति को विधेयक से जुड़े पहलुओं को जांचने और उस से जुड़ी जानकारी जुटाने के लिए करीब साढ़े तीन महीने का समय मिल रहा है.
विधेयक को जेपीसी को भेजने के पीछे भी मोदी सरकार का बड़ा सियासी दांव छिपा है. वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2024 को लोकसभा में तो पेश कर दिया गया, लेकिन राज्यसभा में इसे अगले सत्र में पेश किया जाएगा. संसद का शीतकालीन सत्र नवंबरदिसंबर महीने में होगा. तब तक राज्यसभा का समीकरण सत्ताधारी मोदी सरकार के पक्ष में आ जाएगा. 3 सितंबर को राज्यसभा की 12 सीटों पर होने वाले चुनावों में सत्ताधारी एनडीए के सदस्यों के चुने जाने की उम्मीद है. अगले सत्र में अगर राज्यसभा के 4 नामित सदस्यों की खाली सीटों को भर दिया गया तो सदन में सरकार का हाथ और मजबूत हो जाएगा.
पिछले महीने ही चारों सीटें खाली हुई हैं. यह चार सदस्य आ गए तो सरकार को राज्यसभा में बहुमत पाने के लिए एआईएडीएमके जैसे बाहरी सहयोगियों से मदद मांगने की भी जरूरत नहीं पड़ेगी. अभी एनडीए खेमे में राज्यसभा के कुल 117 सदस्य हैं जबकि बहुमत का आंकड़ा 119 का होता है. इसलिए विधेयक को जेपीसी के पास भेजा गया है, ताकि राज्यसभा में बिल पास करने लायक बहुमत जुटाने का वक़्त मिल जाए.
चलिए अब बात करते हैं वक्फ और वक्फ सम्पत्तियों की जिन पर मोदी सरकार की आंखें गड़ी हुई हैं. भारत सरकार की वक्फ बोर्ड की वेबसाइट के मुताबिक वक्फ शब्द की उत्पत्ति अरब जगत के वकुफा शब्द से हुई है, जिस का मतलब है पकड़ना, बांधना या हिरासत में लेना. इस्लामिक मान्यता के मुताबिक अगर कोई भी शख्स अपने धर्म की वजह से या फिर अल्लाह की खिदमत करने की नीयत से अपनी जमीन या अपनी संपत्ति का दान करता है, तो उसे ही वक्फ कहते हैं. यानी कि इस्लाम में धर्म के आधार पर दान की गई चल या अचल संपत्ति वक्फ है. और जिस ने दान किया है, उसे कहा जाता है वकिफा. लेकिन संपत्ति दान करने की एक शर्त ये होती है कि उस चल या अचल संपत्ति से होने वाली आमदनी को इस्लाम धर्म की सेवा में ही खर्च किया जा सकता है. और इस सेवा के अंतर्गत कई चीजें आती हैं, मसलन मस्जिदें बनवाना, कब्रिस्तान बनवाना, मदरसे बनवाना, अस्पताल बनवाना और अनाथालय बनवाना आदि. अगर कोई गैर इस्लामिक शख्स यानी जो किसी अन्य धर्म का हो, वह भी अपनी संपत्ति को वक्फ करना चाहे तो वो कर सकता है, बशर्ते वो इस्लाम को मान्यता देता हो और उस की वक्फ की गई संपत्ति का मकसद भी इस्लाम की सेवा करना हो.
इस्लाम में वक्फ की शुरुआत कैसे हुई
इस्लाम में वक्फ का कॉन्सेप्ट पैगंबर मुहम्मद साहब के वक्त से माना जाता है. भारत सरकार की वक्फ बोर्ड की वेबसाइट के मुताबिक एक बार खलीफा उमर ने खैबर में एक जमीन का टुकड़ा अपने कब्जे में लिया और पैगंबर मोहम्मद साहब से पूछा कि इस का सब से बेहतर इस्तेमाल किस तरह से किया जा सकता है? तो मुहम्मद साहब ने जवाब दिया कि इस जमीन को कुछ इस हिसाब से इस्तेमाल करो कि यह जमीन इंसानों के काम आए. इसे किसी भी तरह से न तो बेचा जा सके, न ही किसी को तोहफे में दिया जा सके, न ही इस पर किसी तरह से तुम्हारे बच्चों या उन की आने वाली पीढ़ियां काबिज हो सकें.
इस के अलावा एक और मान्यता है कि 570 ईसा पूर्व मदीना में खजूर का एक बड़ा बाग था, जिस में करीब 600 पेड़ थे. उन से होने वाली आमदनी का इस्तेमाल मदीना के गरीब लोगों की मदद के लिए किया जाता था. इसे वक्फ का शुरुआती उदाहरण माना जाता है. मिस्र की अल-अज़हर यूनिवर्सिटी और मोरक्को की अल-कुरायनीन यूनिवर्सिटी वक्फ संपत्ति पर बने सब से पुराने संस्थान माने जाते हैं.
भारत में वक्फ की शुरुआत दिल्ली सल्तनत से मानी जाती है. ऐसा माना जाता है कि दिल्ली सल्तनत में सन 1173 के आसपास सुल्तान मुईजुद्दीन सैम गौर ने मुल्तान की जामा मस्जिद के निर्माण के लिए दो गांव दिए थे. और यहीं से भारत में वक्फ परंपरा की शुरुआत हुई. अंग्रेजी हुकूमत के दौरान वक्फ को खारिज कर दिया गया था. लेकिन आजादी के बाद भारत में बाकायदा कानून बना कर वक्फ परंपरा को बरकरार रखा गया. सब से पहले संसद ने 1954 में कानून बनाया. फिर उस में संशोधन हुआ और 1995 में नरसिम्हा राव सरकार ने कानून में तब्दीली की. और आखिरी बार साल 2013 में मनमोहन सिंह की सरकार में इतनी बड़े बदलाव हुए कि वक्फ बोर्ड के पास अथाह ताकत आ गई और वहीं से परेशानी की शुरुआत हो गई.
वक्फ संपत्तियों की देखरेख का जिम्मा
पूरे देश में फैली वक्फ संपत्तियों की देखरेख की जिम्मेदारी वक्फ बोर्ड की होती है. ये वक्फ बोर्ड भारत की संसद के कानून के तहत बनाया गया है. 1954 में भारतीय संसद ने वक्फ एक्ट 1954 पास किया. इस के तहत वक्फ की गई संपत्तियों की देखरेख की जिम्मेदारी वक्फ बोर्ड के पास आ गई. वक्फ बोर्ड के पास अभी जो संपत्ति है वह इतनी है कि उस में दिल्ली जैसे 3 शहर बन जाएं. यह संपत्तियां भारतपाकिस्तान बंटवारे की वजह से हासिल हुई हैं.
1947 में जब भारतपाकिस्तान का बंटवारा हुआ तो पाकिस्तान जाने वाले मुसलिम लोग अपनी चल संपत्ति तो ले गए, लेकिन अचल संपत्ति यानी कि उन के घर, मकान, खेतखलिहान, दुकान सब यहीं रह गए और तब 1954 में कानून बना कर इस तरह की सभी संपत्तियों को वक्फ बोर्ड के हवाले कर दिया गया. वक्फ बोर्ड बनाने के अगले ही साल यानी कि 1955 में संसद ने एक और कानून बनाया और इस के तहत देश के हर एक राज्य में वक्फ बोर्ड बनाने का अधिकार मिल गया. फिर 1964 में सेंट्रल वक्फ काउंसिल का गठन हुआ, जिस का मकसद राज्यों के वक्फ बोर्ड को सलाहमशविरा देना था. लेकिन भारत में भी इस्लाम को मानने वाले दो बड़े धड़े हैं. एक धड़ा शिया समुदाय का है और दूसरा धड़ा सुन्नी समुदाय का.
तो वक्फ बोर्ड में शिया और सुन्नी के नाम पर भी बंटवारा हुआ और इस्लाम को मानने वाली इन दोनों ही धाराओं के लोगों ने अपनाअपना वक्फ बोर्ड यानी कि शिया वक्फ बोर्ड और सुन्नी वक्फ बोर्ड बना लिया. बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में शिया और सुन्नी के अलगअलग वक्फ बोर्ड हैं.
वक्फ बोर्ड में होता कौनकौन है?
भारत की संसद के बनाए कानून के मुताबिक सेंट्रल वक्फ काउंसिल में सब से ऊपर केंद्र सरकार के अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री होते हैं. और इस लिहाज से अभी देखें तो वक्फ बोर्ड में सब से ऊपर केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू हैं. दूसरे नंबर पर वक्फ के डायरेक्टर होते हैं, जो केंद्र सरकार के जॉइंट सेक्रेटरी लेवल के अधिकारी होते हैं. अभी एस.पी. सिंह तेवतिया वक्फ बोर्ड के डायरैक्टर हैं. इस के अलावा बोर्ड में 8 और सदस्य होते हैं. लेकिन अभी केंद्रीय वक्फ बोर्ड में इन सभी 8 लोगों की जगह खाली है. लिहाजा फैसला लेने के लिए किरण रिजिजू और एस.पी. सिंह तेवतिया फ्री हैं.
राज्यों के वक्फ बोर्ड में कौनकौन होता है?
अलगअलग राज्यों के वक्फ बोर्ड में सब से ऊपर चेयरमैन होता है. उस के अलावा सेक्रेटरी के स्तर का एक आईएएस अधिकारी होता है, जो एक तरह से सीईओ होता है. बाकी संपत्तियों का लेखाजोखा रखने के लिए सर्वे कमिश्नर होता है. बाकी दो सदस्यों को उस राज्य की सरकार मनोनित करती है, जिस में एक मुसलिम सांसद और एक मुसलिम विधायक होता है. बाकी उस बोर्ड का राज्य स्तर पर एक वकील होता है, एक टाउन प्लानर होता है और एक मुसलिम बुद्धिजीवी होता है.
वक्फ बोर्ड की ताकत
वक्फ बोर्ड के पास अथाह ताकत होती है. वक्फ की सारी संपत्ति की देखरेख की जिम्मेदारी बोर्ड की होती है. कितनी आमदनी हुई, उसे कहां खर्च करना है, यह सब वक्फ बोर्ड ही तय करता है. किस की संपत्ति वक्फ को लेनी है, संपत्ति किस को ट्रांसफर करनी है, संपत्ति का इस्तेमाल कैसे करना है, ये सब वक्फ बोर्ड ही तय करता है. अगर एक बार संपत्ति वक्फ बोर्ड के पास आ गई तो उसे वापस नहीं किया जा सकता है. वो संपत्ति हमेशाहमेशा के लिए वक्फ की हो जाती है. और इस को ले कर देश की किसी भी अदालत में कोई मुकदमा दायर नहीं हो सकता है. अगर वक्फ बोर्ड को ये लगता है कि कोई भी संपत्ति इस्लामिक कानूनों के मुताबिक वक्फ की है, तो वह वक्फ की हो जाती है. अगर उस जमीन पर किसी का दावा है, तो दावा किसी अदालत में नहीं बल्कि वक्फ बोर्ड के सामने ही कर सकता है. और अंतिम फैसले का अधिकार भी वक्फ बोर्ड का ही होता है.
अगर हिंदू या किसी गैरइस्लामिक शख्स की ज़मीन पर भी अगर वक्फ अपना दावा करे तो उस शख्स को वक्फ के पास जा कर यह साबित करना होता है कि जमीन उस की है, वक्फ की नहीं. हालांकि वक्फ बोर्ड खुद भी ऐसी ही ज़मीन पर दावा कर सकता है जो 1947 के भारतपाकिस्तान बंटवारे से पहले वक्फ के नाम पर दर्ज हो या फिर 1954 में भारत सरकार की ओर से वक्फ को दे दी गई हो. कुल मिला कर एक लाइन में कहें तो वक्फ बोर्ड एक ऐसा बोर्ड है, जिस में उसके खिलाफ भी अगर कोई बात हो तो उस पर फैसला उसे ही करना होता है, देश की कोई दूसरी अदालत उस मसले पर फैसला नहीं कर सकती है.
मोदी सरकार के नए कानून में क्या बदलाव प्रस्तावित हैं?
मोदी सरकार में अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू ने जो बिल संसद में पेश किया है, उस में वक्फ बोर्ड की असीमित ताकतों को सीमित करने का प्रावधान है. उदाहरण के तौर पर –
– अब वक्फ बोर्ड में सिर्फ मुसलिम ही नहीं गैर मुसलिम भी शामिल हो सकते हैं.
– वक्फ बोर्ड का सीईओ भी गैर मुसलिम हो सकता है.
– अब वक्फ बोर्ड में दो महिला सदस्यों को भी शामिल किया जाएगा.
– वक्फ बोर्ड को किसी संपत्ति पर अपना दावा करने से पहले उस दावे का वेरिफिकेशन करना होगा.
– अभी तक मस्जिद या इस तरह की कोई धार्मिक इमारत बने होने पर वो जमीन वक्फ की हो जाती थी. लेकिन अब मस्जिद बने होने के बावजूद उस जमीन का वेरिफिकेशन करवाना ही होगा.
– भारत सरकार की सीएजी के पास अधिकार होगा कि वो वक्फ बोर्ड का औडिट कर सके.
– वक्फ बोर्ड को अपनी संपत्ति को उस जिले के जिला मजिस्ट्रेट के पास दर्ज करवाना होगा, ताकि संपत्ति के मालिकाना हक की जांच की जा सके.
– वक्फ की संपत्तियों पर दावेदारी के मसले को भारत की अदालत में चुनौती दी जा सकेगी और अंतिम फैसला वक्फ बोर्ड का नहीं, बल्कि अदालत का मान्य होगा.
इस तरह के तमाम ने नियम संशोधित बिल में हैं, जिस के तहत सरकार इस में घुसपैठ करना चाहती है.
विपक्ष का बिल पर एतराज
इस बिल के विरोध में लगभग पूरा विपक्ष एक साथ है. चाहे वो कांग्रेस हो, सपा हो, शरद पवार की एनसीपी हो, ममता बनर्जी की टीएमसी हो या फिर असदुद्दीन ओवैसी की आल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन, सब ने इस बिल का विरोध किया है. और सभी विपक्षी दलों का मानना यही है कि इस बिल के जरिए सरकार वक्फ की संपत्ति पर अपना कब्जा चाहती है.
ओवैसी ने इसे धर्म में हस्तक्षेप बताया है और कहा है कि सरकार मुसलिमों की दुश्मन है. वहीं सपा मुखिया अखिलेश यादव ने वक्फ बोर्ड में गैर मुसलिमों को शामिल करने पर ऐतराज जताया है. डीएमके का कहना है कि बिल मसलिमों को निशाना बनाने के लिए लाया गया है. विपक्ष के और भी तमाम दलों के तर्क कुछ ऐसे ही हैं.
विपक्ष के विरोध को देखते हुए इस बिल को खुद केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने जेपीसी को भेजने का प्रस्ताव रखा है. यानी कि अब इस बिल की खूबियों और खामियों को देखने के लिए एक ज्वाइंट पार्लियामेंट्री कमेटी बनेगी. और उस की सिफारिशों के आधार पर ही तय होगा कि अब इस बिल का भविष्य क्या है.
पहले भारतीय रेलवे, उस के बाद भारतीय सेना और उस के बाद तीसरे नंबर पर देश में अगर किसी एक संस्था के पास सब से ज्यादा जमीन है तो वो है वक्फ बोर्ड. पूरे देश में कुल करीब 9 लाख 40 हजार एकड़ जमीन वक्फ में दर्ज है. इन जमीनों पर यतीमखाने हैं, मदरसे हैं, मुसलिम कब्रिस्तान हैं, मकबरे हैं, मजारें हैं, मस्जिदें हैं, गरीब मुसलमानों के घर हैं, तालाब आदि हैं. अब इस जमीन पर मोदी सरकार की नजर गड़ी हुई है कि किसी तरह धीरेधीरे यह वक्फ के हाथ से निकल कर सरकार के पास आ जाए.
मुकेश अंबानी का घर एंटीलिया वक्फ की जमीन पर बना
मुकेश अंबानी ने एंटीलिया बनाने के लिए साल 2002 में 4,532.39 स्क्वेयर मीटर वाला प्लोट 21.5 करोड़ रुपए में खरीदा था. अंबानी का यह घर साउथ मुंबई के पैडर रोड पर बना है और इसे दुनिया के सब से महंगे मकानों में से एक माना जाता है. यह बहुमंजिला मकान वक्फ बोर्ड की जमीन पर है, पहले यहां बच्चों का यतीमखाना था, अंबानी ने यह कह कर जमीन ली थी कि वह इस पर बहुत बड़ा यतीमखाना बनाएंगे और बना लिया अपना महल.
बात 2002 की है, महाराष्ट्र वक्फ बोर्ड की जमीन को बेचा गया था. इस के खिलाफ अब्दुल मतीन नामक एक टीचर और जर्नलिस्ट ने 2005 में एक पिटीशन भी फाइल की थी. इस बारे में महाराष्ट्र वक्फ बोर्ड की तरफ से बयान भी आया था कि इस मामले में तत्कालीन सीईओ और चेयरमैन शामिल हैं. यह बताता था कि मुकेश अंबानी का घर वक्फ बोर्ड की जमीन पर बना है. मामला अभी भी बौम्बे हाईकोर्ट में है. हाई कोर्ट ने भी माना है कि अंबानी ने जमीन खरीदने में वक्फ बोर्ड की धारा 32(2) का उल्लंघन किया है. कोर्ट कभी भी एंटीलिया को गिराने का फैसला दे सकता है, तो ऐसे में यह सवाल भी उठता है कि क्या मोदी सरकार के खास मुकेश अंबानी के एंटीलिया को बचाने के लिए सरकार आज वक्फ बोर्ड संशोधन बिल ला रही है?
पूर्व में महाराष्ट्र विधानसभा वक्फ बोर्ड द्वारा पेश की गई एक्शन टेकन रिपोर्ट (एटीआर) में भी कहा गया है कि वक्फ बोर्ड ने अंबानी को घर बनाने के लिए नहीं, बल्कि अनाथालय बनाने के लिए जमीन बेचीं थी और अंबानी ने गलत तरीके अपना कर एंटीलिया बना लिया. रिपोर्ट स्वीकार करने के बाद महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा था कि सरकार रिपोर्ट के आधार पर एक्शन लेगी. उन्होंने कहा कि किसी को भी छोड़ा नहीं जाएगा. तब रिलायंस के प्रवक्ता ने इस मामले में केवल इतना कहा था कि वह पहले रिपोर्ट देखेंगे और इस के बाद ही कोई कमेंट करेंगे. तब विधानसभा में पेश एटीआर में कहा गया था कि करीम भाई इब्राहिम ने 1986 में यह जमीन धार्मिक शिक्षा और अनाथालय बनाने के लिए वक्फ बोर्ड को दी थी, लेकिन बोर्ड ने इसे अंबानी को बेच दिया. यह डील शुरू से ही विवादों में आ गई, क्योंकि जिस जमीन को बेचा गया वह वक्फ बोर्ड की थी. विवाद बढ़ने पर रिटायर्ड जज एटीएके शेख को जांच की जिम्मेदारी दी गई और उन से कहा गया कि वह अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपें. मामला अदालत में है और एंटीलिया खतरे में है.