रतन टाटा एक ऐसी शख्शियत थे जिन के जाने पर आज देश शौक में लील हो गया है. भारत ने एक ऐसे आइकन को खो दिया है, जिन्होंने कौरपोरेट ग्रोथ, राष्ट्र निर्माण और नैतिकता के साथ उत्कृष्टता का मिश्रण किया.
टाटा संस के मानद चेयरमैन रतन नवल टाटा का 86 साल की उम्र में निधन हो गया है. उन्होंने बुधवार देर रात करीब 11 बजे अंतिम सांस ली. वे मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल की इंटेसिव केयर यूनिट (ICU) में भर्ती थे. बढ़ती उम्र के कारण बीमारियों से जूझ रहे थे.
रतन टाटा के बारे में
साल 1937 को रतन टाटा का जन्म हुआ जिन का पालनपोषण उन की दादी नवाजबाई टाटा ने किया था क्योंकि 1948 में उन के मातापिता अलग हो गए थे. रतन टाटा 1991 -2012 तक टाटा ग्रुप के अध्यक्ष पद पर रहे. रत्न टाटा सिर्फ एक बिजनेस लीडर नहीं थे, उन्होंने करुणा के साथ भारत की भावना को मूर्त रूप दिया.
वे एक परोपकारी शख्शियत के रूप में जाने जाते हैं. उन्होंने शिक्षा, चिकित्सा और ग्रामीण विकास के समर्थन में कई ऐसी योजनाओं के हित में कार्य किया. वे करुणामयी और दयालुता से भरे हुए शख्शियत थे. उन्होंने निस्वार्थ भाव से अपना जीवन राष्ट्र के विकास के लिए समर्पित कर दिया. उन्होंने सदैव भारत और उस के लोगों की बेहतरी के लिए कार्य किए. वह एक उत्साह और प्रतिबद्धता से पूर्ण आत्मा थे.
आज जब नैतिकता का स्तर गिर रहा है, उस दौर में भी रतन टाटा ने व्यक्तिगत स्तर पर नैतिक मूल्य, समाज के मानदंडों और मानकों के मुताबिक सही और गलत की भावना को थामे रखा. सही मायनों में रतन टाटा देश के उद्योग का प्रतिनिधित्व करते थे. उन के बारे में सही कहा जाता था वे व्यापारी नहीं बल्कि उद्यमी थे जिन्होंने कुछ इनोवेटिव करने की कोशिश की.