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मृगतृष्णा : शादी के बाद कैसा हो गया सुमि का रवैया

गली में पहरा देते चौकीदार के डंडे की खटखट और सन्नाटे को चीरती हुई राघव के खर्राटों की आवाज के बीच कब रात का तीसरा प्रहर भी सरक गया, पता ही न चला. पलपल उधेड़बुन में डूबा दिमाग और आने वाले कल होने वाली संभावनाओं से आशंकित मन पर काबू रखना मेरे लिए संभव नहीं हो पा रहा था. मैं लाख कोशिश करती, फिर भी 2 दिनों पहले वाला प्रसंग आंखों के सामने उभर ही आता था. उन तल्ख तेजाबी बहसों और तर्ककुतर्क के पैने, कंटीले झाड़ की चुभन से खुद को मुक्त करने का प्रयास करती तो एक ही प्रश्न मेरे सामने अपना विकराल रूप धारण कर के खड़ा हो जाता, ‘क्या खूनी रिश्तों के तारतार होने का सिलसिला उम्र के किसी भी पड़ाव पर शुरू हो सकता है?’

कभी न बोलने वाली वसुधा भाभी, तभी तो गेहुंएं सांप की तरह फुंफकारती हुई बोली थीं, ‘सुमि, अब और बरदाश्त नहीं कर सकती. इस बार आई हो तो मां, बाऊजी को समझा कर जाओ. उन्हें रहना है तो ठीक से रहें, वरना कोई और ठिकाना ढूंढ़ लें.’

‘कोई और ठिकाना? बाऊजी के पास तो न प्लौट है न ही कोई फ्लैट. बैंक में भी मुट्ठीभर रकम होगी. बस, इतनी जिस से 1-2 महीने पैंशन न मिलने पर भी गुजरबसर हो सके. कहां जाएंगे बेचारे?’ भाभी के शब्द सुन कर कुछ क्षणों के लिए जैसे रक्तप्रवाह थम सा गया था. जिस बहू का आंचल कितनी ही व्यस्तताओं के बावजूद कभी सिर से सरका न हो, जिस ने ससुर से तो क्या, घर के किसी भी सदस्य से खुल कर बात न की हो, वह यों अचानक अपनी ननद से मुंहजोरी करने का दुसाहस भी कर सकती है?

मैं पलट कर भाभी के प्रश्न का मुंहतोड़ जवाब देने ही वाली थी कि मां ने बीचबचाव सा किया था, ‘बहू, ठीक ढंग से तुम्हारा क्या मतलब है?’

‘मकान का पिछला हिस्सा खाली कर के इन्हें हमारे साथ रहना होगा,’ भाभी ने अपना फैसला सुनाया.

‘उस हिस्से का क्या करोगे?’ अपनी ऊंची आवाज से मैं ने भाभी के स्वर को दबाने की पुरजोर कोशिश की तो जोरजोर से चप्पल फटकारते हुए वे कमरे से बाहर चली गईं.

मैं ने एक नजर विवेक भैया पर डाली कि शायद पत्नी की ऐसी हरकत उन्हें शर्मनाक लगी हो. पर वह मेरा कोरा भ्रम था. भैया की आवाज तो भाभी से भी बुलंद थी, ‘किराए पर देंगे और क्या करेंगे? इस मकान को बनवाने के लिए बैंक से इतना कर्जा लिया है, उसे भी तो उतारना है. कोई पुरखों की जमीनजायदाद तो है नहीं.’

‘किराए पर ही देना है तो हम से किराया ले लो. मैं अपना चौका ऊपर ही समेट लूंगी,’ अपने घुटनों को सहलाती हुई मां, बेटे के मोह में इस कदर फंसी हुई थीं कि  इस बात की तह तक पहुंच ही नहीं पा रही थीं कि उन्हें घर से बेघर करने में भाभी को भैया का पूरा साथ मिला हुआ है. पथराए से बाऊजी चुपचाप पलंग के एक कोने पर बैठे बेमकसद एक ही तरफ देख रहे थे.

‘कुल मिला कर 2 हजार रुपए तो पैंशन के मिलते हैं. उतना तो आप का निजी खर्चा है. मकान के उस हिस्से से तो 3 हजार रुपए की उगाही होगी,’ भैया ने भाभी की आवाज में आवाज मिलाई तो बाऊजी अपने बेटे का चेहरा देखते रह गए थे. उन का पूरा शरीर कांप रहा था.

‘जब पूत ही कपूत बन जाए तो उस पराए घर की बेटी को क्या कहा जा सकता है?’ फुसफुसाती हुई मां की आवाज भीग गई. वे रोतरोते भी बाऊजी से उलझ पड़ीं, ‘इसलिए तो तुम से कहती थी, चार पैसे बुढ़ापे के लिए संभाल कर रखो. पर तुम ने कब सुनी मेरी? अब देख लिया, अपनी औलाद भी किस तरह मुंह फेरती है.’

मैं मां की बात और नहीं सुन पाई थी. पूरा माहौल तनावभरा हो गया था. अगले दिन चुपचाप अपने घर लौट आई थी. अब वहां कहनेसुनने के लिए बचा ही क्या था. अब तो सारे रिश्ते ही झूठे लग रहे थे.

शाम को मैं चौके में चाय बनाने के लिए घुस गई थी. मन, मस्तिष्क जैसे बस में ही नहीं थे. काफी समय बीत जाने के बाद भी जब चाय नहीं बन पाई तो राघव खुद ही चौके में आ गए थे, एक प्याली मुझे दे कर दूसरी प्याली हाथ में ले कर अम्मा के पास जा कर अखबार खोल कर बैठ गए. सुबह के कुछ घंटे अम्मा के साथ बिताना उन की आदत में है. इसीलिए तो मैं ने उन्हें श्रवण कुमार का नाम दिया था.

चौके से बाहर निकल कर मैं कुछ काम निबटाने के लिए यहांवहां घूम रही थी. पर मन तनाव की गिरफ्त में था. भाभी के बरताव का डंक मेरे मन में बुरी तरह चुभा हुआ था. भाभी तो पराए घर की है, पर भैया को क्या हुआ? वे तो सब की इज्जत करते थे, फिर यह बदलाव क्यों आया? न जाने कब आंखों के आगे अंधेरा छा गया और मैं गश खा कर गिर पड़ी. आंख खुली तो अम्मा मेरी पेशानी सहला रही थीं. बदहवास से राघव मेरी आंखों पर पानी के छींटे डाल रहे थे.

‘क्या बात है सुमि, कुछ परेशान दिख रही हो?’ इन्होंने पूछा.

‘नहीं, कुछ भी तो नहीं,’ चालाकी से मैं ने अपना दुख छिपाने की नाकाम सी कोशिश की. पर पूरे शरीर का तो खून ही जैसे किसी ने निचोड़ लिया था.

राघव आश्वस्त नहीं हुए थे, ‘देखो सुमि, सुख बांटने से बढ़ता है, दुख बांटने से कम होता है. हम तुम्हारे अपने ही तो हैं…कुछ कहती क्यों नहीं?’

मैं सोचने लगी कि राघव जैसे लोग कितने सुखी रहते हैं. बिना किसी गिलेशिवे के जिंदगी में आए उतारचढ़ावों को स्वीकार करते चले जाते हैं. लेकिन हमारे जैसे लोग हर रिश्ते को कसौटी पर ही परखते रह जाते हैं. जिंदगी में जो पाया है, उस से संतुष्ट नहीं होते. कुछ और पाने की लालसा में जो कुछ पाया है, उसे भी खो देते हैं.

अपराधबोध मन पर हावी हो उठा था. राघव के कसे हुए तेवरों में दोस्ती की परछाईं थी. फिर भी विश्वास करने को जी नहीं चाह रहा था.

अपने अभिभावकों के पक्षधर बने रहने वाले राघव को भला मेरे मायके वालों से क्यों सहानुभूति होने लगी. आज भी यदि अम्मा और मुझे एक ही तुला पर रख कर तोला जाए तो शायद राघव की नजरों में अम्मा का ही पलड़ा भारी होगा.

एक नजर अम्मा को देखा था. कहते हैं, औरत ही औरत की पीड़ा को समझ सकती है. पर उन आंखों में भी जो भाव थे, उन्हें अपनेपन की संज्ञा देना गलत था.

मौकेबेमौके अम्मा कितनी बार तो सुना चुकी थीं, ‘अपने मायके का दुख डंक की तरह चुभता है.’

‘जाके पैर न फटी बिवाई, वह क्या जाने पीर पराई’ की दुहाई समयसमय पर देने वाली अम्मा इस समय मेरे मर्म पर निशाना लगाने से नहीं चूकेंगी, इतना तो इस घर में इतने बरसों से रहतेरहते जान ही गईर् थी. शादी के बाद हर 2 दिनों में मेरे मायके में संदेश भिजवाने वाली अम्मा की नजरें मेरे ही मां, बाऊजी में खोट निकालेंगी.

प्याज के छिलकों की तरह अतीत के दृश्य परतदरपरत मेरी आंखों के सामने खुलते चले गए थे. जब भी अम्मा, पिताजी इकट्ठे बैठते, अम्मा आंखें नम कर लेतीं, ‘संस्कार बड़ों से मिलते हैं. मैं तो पहले ही कहती थी, किसी अच्छे परिवार से नाता जोड़ो. मेरा राघव एकलौता बेटा है, उस की तो गृहस्थी ही नहीं बसी.’

‘ऐसी बात नहीं है,’ पिताजी भीगे स्वर में कहते, ‘बहू के मायके वाले तो बहुत अच्छे हैं. रमेश चंद्र प्रोफैसर थे. शीला बहन तो परायों को भी अपना बनाने वालों में हैं. भाई कितना मिलनसार है…और भाभी अमीर खानदान की एकलौती वारिस है, पर घमंड तो छू तक नहीं गया. हां, बहू का स्वभाव विचित्र है. संवेदनशीलता, भावुकता नाम को भी नहीं. मैं तो हीरा समझ कर लाया था. अब यह कांच का टुकड़ा निकली तो जख्म तो बरदाश्त करने ही पड़ेंगे.’

पिताजी मेरे मायके का जुगराफिया खींचतेखींचते जब मुझे कोसते तो अम्मा के जख्मों की कुरेदन और बढ़ जाती. वे मेरे मातापिता को बुलवा भेजतीं. शिकायतों की फेहरिस्त काफी लंबी होती थी. जैसे, मुझे बड़ों का सम्मान करना नहीं आता, पति को कुछ समझती नहीं, कोई काम करीने से कर नहीं सकती, ‘बेहद नकचढ़ी है आप की बेटी,’ कहतेकहते अम्मा बहस का सारांश पेश करतीं. मां सजायाफ्ता मुजरिम की तरह गरदन लटका कर मेरा एकएक गुनाह कुबूल करती जातीं. बाऊजी कभी उन के आरोपों का खंडन करना चाहते भी, तो मां आंख के इशारे से रोक देतीं. समधियाने में तर्कवितर्क करना उन्हें जरा नहीं भाता था. फिर राघव तो उन के दामाद थे. उन्हें कुछ बुरा न लगे, इसलिए वे चुप ही रहना पसंद करती थीं. बेचारी मां को देख कर ससुराल के लोगों पर गुस्सा आता और मां पर दया. निम्नमध्यवर्गीय परिवार में 2 बच्चों की मां से अधिक निरीह जीव शायद और कोई नहीं होता.

इधर मेरे मातापिता के घर से बाहर निकलते ही माहौल बिलकुल बदल जाता. अम्मा, पिताजी किसी न किसी बहाने से घर के बाहर निकल जाते थे, ताकि हम दोनों पतिपत्नी आपस में बातचीत कर के ‘इस मसले’ को हल कर सकें. पर मुझे तो उस समय राघव की शक्ल से भी चिढ़ हो जाती थी. उन्हीं के सामने मेरे मातापिता की बेइज्जती होती रहती, पर वे मेरे पक्ष में एक भी शब्द कहने के बजाय उपदेश ही देते रहते.

अम्मा घर लौट कर बड़े प्यार से एक थाली में छप्पनभोग परोस कर मुझे समझातीं, ‘बहू, कमरे में जा, राघव अकेला बैठा है, खुद भी खा, उसे भी खिला.’

‘मेमने की खाल में भेडि़या,’ मैं मन ही मन बुदबुदाती. इसी को तो तिरिया चरित्तर कहते हैं. मन में दबा गुस्सा मुंह पर आ ही जाता था और मैं चिढ़ कर जवाब देती थी, ‘कोई नन्हे बालक हैं, जो मुंह में निवाला दूंगी? अपने लाड़ले की खुद ही देखभाल कीजिए.’

कमरे में जाने के बजाय मैं घर से निकल पड़ती और सामने वाले पार्क में जा कर बैठ जाती. कालोनी के लोग अकसर पार्क में चलहकदमी करते रहते थे. मेरी पनीली आंखें और उतरा हुआ चेहरा देख कर आसपास खड़े लोगों में जिज्ञासा पैदा हो जाती थी. वे तरहतरह की अटकलें लगाते. कोई कुछ कहता, कोई कुछ पूछता.

मैं घर में घटने वाले छोटे से छोटे प्रसंग का बढ़चढ़ कर बयान करती. ससुराल पक्ष के हर सदस्य को खूब बदनाम करती. घर लौटने का मन न करता था. ऐसा लगता, सभी मेरे दुश्मन हैं. यहां तक कि मां, बाऊजी भी दुश्मन लगते थे. इन लोगों को कुछ कहने के बजाय वे यों मुंह लटका कर चले जाते हैं जैसे बेटी दे कर कोई बहुत बड़ा गुनाह किया हो.

2-4 दिन शांति से बीतते और फिर वही किस्सा शुरू हो जाता. गलती राघव की थी, उस के अभिभावकों की थी या मेरी, नहीं जानती, पर पेशी के लिए मेरे मांबाऊजी को ही आना पड़ता था. कुछ ही समय में मां तंग आ गई थीं. तब विवेक भैया ही आ कर मुझे ले जाते थे.

मायके में भी मेरे लिए उपदेशों की कमी नहीं थी, ‘राघव एकलौता बेटा है, सर्वगुण संपन्न. न देवर न कोई ननद, जमीनजायदाद का एकलौता वारिस है. तू थोड़ा झुक कर चले तो घर खुशियों से भर जाए.’

‘मां, अगर तुम चाहती हो कि बेजबान गाय की तरह खूंटे से बंधी जुगाली करती रहूं तो तुम गलत समझती हो.’

यहांवहां डोलती भाभी, मेरे मुख से निकले हर शब्द को चुपचाप सुन रही होगी, इस ओर कभी ध्यान ही नहीं गया, क्योंकि उन के हावभाव देख कर जरा भी एहसास नहीं होता था कि मेरे शब्दों ने उन पर कोई प्रभाव भी छोड़ा होगा. मां अकेले में मुझे समझातीं, ‘पगली, समझौता करना औरत की जरूरत है. अपनी भाभी को देख, लाखों का दहेज लाई है. हम ने तो तुझे 4 चूडि़यों और लाल जोड़े में ही विदा कर दिया था.’

तब मैं दांत पीस कर रह जाती, ‘कैसी मां है, बेटी के प्रति जरा भी सहानुभूति नहीं.’

मां जातीं तो बाऊजी मेरे पास आ कर बैठ जाते. मेरे सिर पर हाथ रख कर कहते, ‘चिंता मत कर सुमि, मैं जब तक जिंदा हूं, तेरा कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता. न जाने कैसे लोगों से पाला पड़ा है. लोग बहू को बेटी की तरह रखते हैं, और ये लोग…’

बाऊजी के शब्दों से ऐसा लगता था जैसे डूबते को एक सहारा मिला हो. ‘कोई तो है, जो मेरा अपना है,’ सोचते हुए मैं समर्पित भाव से चौके में जा कर बाऊजी की पसंद के पकवान बना कर उन्हें आग्रहपूर्वक खिलाती. राघव की कमाई से जोड़ी हुई रकम से मैं भाभी के साथ बाजार जा कर उन के लिए कोई अच्छा सा उपहार ले आती थी. बाऊजी तब मुझे खूब दुलारते, ‘कितना अंतर है बेटी और बेटे में? सुमि मुझे कितना मान देती है.’

अप्रत्यक्ष रूप से दिया गया वह उपालंभ भैयाभाभी हम सब से नजरें चुराते हुए यों झेलते थे, जैसे उन्होंने कोई कठोर अपराध किया हो. मुझे लगता, मां भी बाऊजी की तरह ही क्यों नहीं सोचतीं? वे तो मेरी जननी हैं, उन्हें तो बेटी के प्रति और भी संवेदनशील होना चाहिए था.

अपरिपक्वता की दहलीज पर कुलांचें भरता मन सोच ही नहीं पाया कि मां की भी तब अपनी मजबूरी रही होगी. महंगाई के जमाने में पति की सीमित आमदनी में से 2 बच्चों की परवरिश करना कोई हंसीखेल तो था नहीं. घर के खर्चों में से इतना बचता ही कहां था, जो अपनी बीए पास बेटी के लिए दहेज की रकम जुटा पातीं. एकएक पैसा सोचसमझ कर खर्च करने वाली मां कभीकभी एक रूमाल और चप्पल लेने के लिए भी तरसा देती थीं.

फैशनेबल पोशाकों में लिपटी हुई अपनी सहपाठिनों को देख कर मेरा मन तड़पता तो जरूर था, पर कर कुछ भी नहीं पाता था. अभावों के शिलाखंड तले दबाकुचला बचपन धीरेधीरे सरकता चला गया और मुझे यौवन की सौगात थमा गया. बचपन में मिले अभावों ने मेरे मन में कुंठा की जगह ऊंची इच्छाओं को जन्म देना शुरू कर दिया था.

मैं बेहद महत्त्वाकांक्षी हो उठी थी. कल्पनाओं के संसार में मैं ने रेशमी परिधानों से सजेसंवरे ऐसे धनवान पति की छवि को संजोया था, जिस के पास देशीविदेशी डिगरियों के अंबार हों, नौकरों की फौज हो, आलीशान बंगला हो, गाडि़यां हों. सास के रूप में ऐसी चुस्तदुरुस्त महिला की कल्पना की थी जो क्लबों में जाती हो, किटी पार्टियों में रुचि लेती हो. सिगार के कश लेते हुए ससुर पार्टियों में ही बिजी रहते हों.

कुल मिला कर मैं ने बेहद संभ्रांत ससुराल की कल्पना की थी. कहते हैं, जीवन में जब कुछ भी नहीं  मिलता, तो बहुत कुछ पाने की लालसा मन में इतनी तेज हो उठती है कि इंसान अपनी औकात, अपनी सीमाओं तक को भूल जाता है. तभी तो साधारण से व्यक्तित्व वाले बीए पास राघव, जिन के पास ओहदे के नाम पर लोअर डिवीजन क्लर्क के लेबल के अलावा कुछ भी न था, मुझे जरा भी आकर्षित नहीं कर पाए थे. उस पर उन का एकलौता होना मुझे इस बात के लिए हमेशा आशंकित करता रहा था कि हो न हो, इन लोगों की उम्मीदें मुझ से बहुत अधिक होंगी.

मेरे विरोध के बावजूद मां, बाऊजी ने इस रिश्ते के लिए हामी भर दी और मैं राघव की दुलहन बन कर इस घर में आ गई. यों कमी इस घर में भी कोई न थी. शिक्षित परिवार न सही, जमीनजायदाद सबकुछ था, यहां तक कि मुंहदिखाई की रस्म पर पिताजी ने गाड़ी की चाबी मुझे दे दी थी. पर मेरा मन परेशान था. हीरे, चांदी की चकाचौंध और सोने, नगीने की खनक तो राघव के पिता की दी हुई है, उस का अपना क्या है? वेतन भी इतना कि ऐशोआराम के साधन तो दूर की बात, मेरे लिए अपनी जरूरतें पूरी करना भी मुश्किल था.

मैं हर समय चिढ़तीकुढ़ती रहती. सासससुर को बेइज्जत करना और पति की अनदेखी करना मेरी दिनचर्या में शामिल हो गया था. शुरू में तो राघव कुछ नहीं कहते थे, पर जब पानी सिर से ऊपर चढ़ने लगा तो फट पड़े थे, ‘तुम कोई महारानी हो, जो हमेशा लेटी रहो और मां सेवा करती रहें?’

‘क्या मतलब?’ मैं तन गई थी.

‘मतलब यह कि घर की बहू हो, घर के कामकाज में मां की मदद करो.’

‘क्यों, क्या मेरे आने से पहले तुम्हारी मां काम नहीं करती थीं?’ मैं ने ‘महाभारत’ शुरू होने की पूर्वसूचना सी दी थी.

‘तब और अब में फर्क है. जब कोई सामने होता है तो उम्मीद होती ही है.’

‘मेरी मां तो मेरी भाभी से जरा भी उम्मीद नहीं करतीं. तुम्हारे घर के रिवाज इतने विचित्र क्यों हैं?’

‘तुम्हारी भाभी नौकरी करती है, आर्थिक रूप से तुम्हारे परिवार की सहायता करती है,’ राघव ने गुस्से से मेरी ओर देखा तो मैं समझ गई कि काम तो मुझे करना ही पड़ेगा, पर इतनी जल्दी मैं झुकने को तैयार न थी. खामोश नदी में पत्थर फेंकना मुझे भी आता था. मैं मुस्तैदी से काम में जुट गई. सास चाय बनातीं, मैं चीनी उड़ेल देती. पिताजी या राघव मीनमेख निकालते तो मैं अम्मा का नाम लगा देती.

एक दिन मैं ने सब्जी को इतने छोटेछोटे टुकड़ों में काट दिया कि अम्मा परेशान हो उठीं. फिर तो आरोपप्रत्यारोप का सिलसिला शुरू हो गया. मैं ने हर आरोप का मुंहतोड़ जवाब दिया. घात लगा कर हर समय आक्रमण की तैयारी में मैं लगी रहती. क्या मजाल जो कोई थोड़ी सी भी चूंचपड़ कर ले.

राघव को बुरा तो लगता था, पर मेरे अशिष्ट स्वभाव को देख कर चुप हो जाते थे. जल्द ही सास समझ गईं कि एक म्यान में दो तलवारें नहीं रह सकतीं. सासससुर दोनों ने खुद को एक कमरे में समेट लिया. घर में अब मेरा एकछत्र राज था. अपनी मरजी से पकाती, घूमतीफिरती. घर में खूब मित्रमंडली जमती थी. कुल मिला कर आनंद ही आनंद था.

अपने रणक्षेत्र में विजयपताका फहरा कर मैं ने भाभी को फोन किया. मजे लेले कर खूब किस्से सुनाए. भाभी तब तो चुपचाप सुनती रही थीं, पर जब मैं मां के पास गई तो उन्होंने जरूर कुरेदा था, ‘क्या बात है सुमि, बहुत खुश दिखाई दे रही हो?’

‘भाभी, घर का हर आदमी अब मेरे इशारों पर नाचता है. क्या मजाल जो कोई उफ भी कर जाए.’

‘घर का खर्चा भी तुम्हारे ही हाथ में होगा?’ उन की जिज्ञासा और बढ़ गईर् थी.

‘ससुरजी पूरी पैंशन मेरे हाथ पर रख देते हैं. तुम तो जानती ही हो, राघव की तनख्वाह तो इतनी कम है कि राशन का खर्चा भी नहीं निकल सकता.’

अपनी पूरी तनख्वाह मां की हथेली पर रखने वाली भाभी के मन में ईर्ष्या के बीज अंकुरित हो चुके हैं, मैं तब भला कहां जान पाईर् थी.

‘भाभी, बस एक ही बात खटकती है,’ मैं ने मुंह लटका लिया.

‘वह क्या?’

‘राघव की मुंहबोली बहन जबतब आ टपकती है.’

‘अपने सगेसंबंधी भी कभी बुरे लगते हैं, उन से तो घर भराभरा लगता है,’ अपने सुखी संसार पर कलह के बादलों का पूर्वानुमान होते देख मां ने जैसे मुझे आगाह किया था, पर सीख तो उसी को दी जाती है जो सीखना चाहे. मैं तो सिखाना चाहती थी.

‘घर तो भरा रहता है, पर आवभगत भी तो करनी पड़ती है. खर्चा होता है सो अलग.’

मां जैसे सकते में आ गई थीं. हर सगेसंबंधी का आदरसत्कार करने वाली मां को बेटी के कथन में पराएपन की बू आ रही थी. अपना मत व्यक्त कर के मैं तो लौट आई थी.

मेरे विवाह को 3 वर्ष हो गए थे. घर में नया मेहमान आने वाला था. सभी खुश थे. अम्मा (राघव की मां) मेरी खूब देखभाल करती थीं. जीजान से वे नन्हे शिशु के आगमन की तैयारियों में जुटी हुई थीं. किस समय किस चीज की जरूरत होगी, इसी उधेड़बुन में उन का पूरा समय निकल जाता था.

‘कहीं ऐसा न हो, मेरे करीब आ कर वे मेरे साम्राज्य में हस्तक्षेप करना शुरू कर दें,’ आशंका के बादल मेरे मन के इर्दगिर्द मंडराने लगे थे. एक दिन मैं ने उन्हें साफ शब्दों में कह दिया, ‘अम्मा, आप ज्यादा परेशान न हों, प्रसव मैं अपनी मां के घर पर करूंगी.’

‘पहली जचगी, वह भी मायके में?’ वे चौंकी थीं.

‘जी हां, क्योंकि आप से ज्यादा मुझे अपनी मां पर भरोसा है,’ बहुत दिनों बाद मैं ने खाली प्याले में तूफान उठाया था. सहसा सामने खड़े राघव का पौरुष जाग गया था. उन्होंने खींच कर एक तमाचा मेरे गाल पर जड़ दिया था, ‘इस घर में तुम ने नागफनी रोपी है. पूरे घर को नरक बना कर रख दिया. अब तो इस घर की दीवारें भी काटने को दौड़ती हैं.’

‘मेरा अपमान करने की तुम्हारी जुर्रत कैसे हुई. अब मैं एक पल भी यहां नहीं रुकूंगी.’

मैं ने बैग में कपड़े ठूंसे और मां के पास चली आई. वैसे भी 8वां महीना चल रहा था, आना तो था ही. मुझे किसी ने रोका नहीं था और अगर कोई रोकता भी तो मैं रुकने वाली नहीं थी.

मां के ड्राइंगरूम में काफी हलचल थी. भाभी के मातापिता बेटी की ‘गोद भराई’ की रस्म पर रंगीन टीवी और फ्रिज लाए थे. छोटेछोटे कई उपहारों से कमरा भरा हुआ था. घर के सभी सदस्य समधियों की सेवा में बिछे हुए थे.

मां ने उड़ती सी नजर मुझ पर डाली थी. उन की अनुभवी आंखों को यह समझते जरा भी देर न लगी कि मेरे घर में जरूर कुछ न कुछ घटना घटी है. पर पाहुनों के सामने पूछतीं कैसे? अपने साथ मेरी ससुराल भी तो बदनाम होती, जो उन की जैसी समझदार महिला को कतई मंजूर न था.

मेहमान चले गए तो मां व बाऊजी मेरे पास आ कर बैठ गए. भैया के कमरे से छन कर आ रही रोशनी से साफ था कि वे लोग अभी तक सोए नहीं है. मां धीरेधीरे मुझे कुरेदती रहीं और मैं सब कुछ उगलती चली गई, ‘मां, तुम नहीं जानती, वे कैसेकैसे संबोधन मुझे देते हैं…उन्होंने मुझे ‘नागफनी’ कहा है,’ मैं रोंआसी हो उठी थी.

‘ठीक ही तो कहा है, गलत क्या, कहा है?’ भैया की गुस्से से भरी आवाज थी. आपे से बाहर हो कर न जाने कब से वे दरवाजे पर खड़े हुए मेरी और मां की बातें सुन रहे थे. मां कभी मेरा मुंह देखतीं कभी भैया का.

‘सुमि, आखिर भावनाओं का भी कुछ मोल होता है. राघव एकलौते हैं… न जाने कैसीकैसी उम्मीदें रखते हैं लोग अपने बेटे और बहू से, पर तू तो कहीं भी खरी नहीं उतरी. तुझे तो खामोश नदी में पत्थर फेंकना ही आता है.’

मां भैया को चुप करवाना चाहती थीं, पर उन का गुस्सा सारी सीमाएं पार कर चुका था, ‘इस लड़की को सबकुछ तो मिला…पैसा, प्यार, मान, इज्जत…इसी में सबकुछ पचाने की सामर्थ्य नहीं है. जब सबकुछ मिल जाए तो उस की अवमानना, उस के तिरस्कार में ही सुख मिलता है,’ कहते हुए भैया उठे और कमरे से बाहर निकल गए.

उस के बाद भैयाभाभी की बातचीत काफी देर तक चलती रही. इधर मां मुझे पूरी रात समझाती रहीं कि मैं अपना फैसला बदल लूं. एक तो खर्च का अतिरिक्त भार वहन करने की क्षमता उन में नहीं थी. जो कुछ करना था, भैयाभाभी को ही करना था. दूसरे, बढ़े हुए काम का बोझ उठाने की हिम्मत भी उन के कमजोर शरीर में नहीं थीं. भैयाभाभी के बदले हुए तेवरों में उन्हें आने वाले तूफान की संभावना साफ दिखाई दे रही थी.

पर मैं टस से मस न हुई. राघव की मां से कुछ भी अपने लिए करवाने का मतलब था अपने ही पांव पर कुल्हाड़ी मारना. दूसरे ही दिन राघव के पिता का फोन आया था, ‘बच्चे हैं…नोकझोंक तो आपस में चलती ही रहती है. बहू से कहिए, सामान बांध ले और घर लौट आए.’

पर मैं तो विष की बेल बनी हुई थी. न जाना था, न ही गई. पूरा दिन आराम करती, न हिलती, न डुलती. मां की भी उम्र हो चली थी, कितना कर पातीं? भाभी पूरा दिन दफ्तर में काम करतीं और लौट कर मां का हाथ बंटातीं. मैं भाभी को सुना कर मां का पक्ष लेती, ‘मां बेचारी कितना काम करती हैं. एक मेरी सास हैं, राजरानी की तरह पलंग पर बैठी रहती है.’

मां से सहानुभूति जताते हुए मेरी आंखों से आंसुओं की अविरल धारा फूट पड़ती थी. मां मुझे दुलारती रहतीं, पर इस बीच भाभी मैदान छोड़ कर चली जाती थीं. काफी दिनों तक उन का मूड उखड़ा रहता था.

नन्हें अभिनव के आगमन पर सभी मौजूद थे. उसे देखते ही राघव की मां निहाल हो उठी थीं, ‘हूबहू राघव की तसवीर है. वैसे ही नाकनक्श, उतना ही उन्नत मस्तक, वही गेहुंआं रंग.’

‘सूरत चाहे राघव से मिले, पर सीरत मुझ से ही मिलनी चाहिए,’ मैं ने बेवकूफीभरा उत्तर दिया और अपने गंदे तरीके पर राघव की नाराजगी की प्रतीक्षा करने लगी. पर उन्होंने कुछ नहीं कहा था.

पोते को दुलारने के लिए बढ़े अम्मा के हाथ खुदबखुद पीछे हट गए थे. मैं मन ही मन विजयपताका लहरा कर मुसकरा रही थी. 2 महीने तक मां और भाभी मेरी सेवा करती रहीं. राघव की मां खूब सारे मेवे, पंजीरी और फल भिजवाती रही थीं, पर मैं किसी भी चीज को हाथ न लगाती थी.

एक दिन मां के हाथ की बनी हुई खीर खा रही थी कि भाभी ने करारी चोट की. ‘दीदी, तुम्हारी सास ने इतने प्रेम से कलेवा भेजा है, उस का भी तो भोग लगाओ.’

‘अपनी समझ अपने ही पास रखो तो बेहतर होगा. मेरे घर के मामलों में ज्यादा हस्तक्षेप न करो.’

‘तुम्हारा घर…’ मुंह बिचकाते हुए भाभी कमरा छोड़ कर चली गईं तो मैं कट कर रह गई. आखिरकार मैं अपशब्दों पर उतर आईर् थी.

उन्हीं दिनों भैयाभाभी ने दफ्तर से कर्जा ले कर मेरी ही ससुराल के पास मकान खरीद लिया था. 4 कमरों के इस मकान में आने से पहले ही मां ने यह फैसला ले लिया था कि मां और बाऊजी, पिछवाड़े के हिस्से में रहेंगे. यह मशवरा उन्हें मैं ने ही दिया था और भैया मान भी गए थे.

नए मकान में आने की तैयारी जोरशोर से चल रही थी. उठापटक और परेशानी से बचने के लिए मैं ससुराल लौट आई थी.

घर लौटी तो खुशी के बादल छा गए थे. सास ने भावावेश में आ कर अभिनव को गोद में ले लिया और लगीं उस का मुंह चूमने.

‘नन्हा, फूल सा बालक, कहीं कोई संक्रमण हो गया तो?’ मैं ने उसे अपनी गोद में समेट लिया और साथ ही सुना भी दिया, ‘बच्चे की देखभाल मैं खुद करूंगी. आप सब को चिंता करने की जरूरत नहीं है.’

पिताजी अब कुछ भी नहीं कहते थे, जैसे समझ गए थे कि बहू के सामने कुछ भी कहना पत्थर पर सिर पटकने जैसा ही है. पासपड़ोस के लोग अम्माजी से सवाल करते कि बहू मायके से क्या लाई है तो मैं बढ़चढ़ कर मायके की समृद्धि और दरियादली का गुणगान करती. भाभी के मायके से आई हुई चूडि़यां मां ने मुझे उपहारस्वरूप दी थीं. बाकी सब के लिए उपहार मैं राघव की कमाई से बचाई हुई रकम से ही ले आई थी. सास की एक सहेली ने उलटपलट कर चूडि़यां देखीं, फिर प्रतिक्रिया दी, ‘मोटे कंगन होते तो ठीक रहता, मजबूती भी बनी रहती.’

मैं उस दिन खूब रोई थी, ‘आप लोग दहेज के लालची हैं. कोई और बहू होती तो थाने की राह दिखा देती.’

उस दिन के बाद से मैं ने उन लोगों को अभिनव को छूने न दिया. कोई परेशानी होती तो रिकशा करती और मां के पास पहुंच जाती. मायका तो अब कुछ ही गज के फासले पर था.

राघव के पिता का स्वास्थ्य अब गिरने लगा था. घर का वातारण देख कर वे अंदर ही अंदर घुलने लगे थे. डाक्टर ने दिल का रोग बताया था. जिस वृक्ष की जड़ें खोखली हो गई हों वह कब तक अंधड़ों का मुकाबला कर सकता है? और एक रात ससुरजी सोए तो उठे ही नहीं. पूरे घर का वातावरण ही बदल गया. शोक में डूबी अम्मा का रहासहा दर्प भी जाता रहा. साम्राज्य तो उन का पहले ही छिन गया था.

राघव ने मुझे विश्वास में ले कर सलाह दी ‘अम्मा बहुत अकेलापन महसूस करती हैं, कुछ देर अभिनव को उन के पास छोड़ दिया करो.’

दुख का माहौल था. तब कुछ भी कहना ठीक न जान पड़ा था, पर मैं ने मन ही मन एक फैसला ले लिया था, ‘अभिनव को अम्मा से दूर ही रखूंगी.’

मायके के पड़ोस वाले स्कूल में अभिनव का दाखिला करवा दिया. स्कूल बंद होने के बाद बाऊजी अभिनव को अपने घर ले जाते थे. मां उसे नहलाधुला कर होमवर्क करवातीं और सुला देतीं. शाम को मैं जा कर उसे ले आती थी. एक तो सैर हो जाती थी, दूसरे, इसी बहाने से मैं मां से भी मिल लेती थी. बाऊजी की देखरेख में अभिनव तो कक्षा में प्रथम आने लगा था, पर मां इस अतिरिक्त कार्यभार से टूट सी गई थीं. एकाध बार दबे शब्दों में उन्होंने कहा भी था, ‘शतांक को भी देखना पड़ता है. बहू तो नौकरी करती है.’

पर मैं अभिनव को अपने घर के वातावरण से दूर ही रखना चाहती थी.

धीरेधीरे भाभी ने उलाहने देने शुरू कर दिए थे, ‘पहले बेटी घर पर अधिकार जमाए रखती थी, अब नाती भी आ जाता है. मेरा शतांक बीमार हो या स्वस्थ रहे, पढ़े न पढ़े, इन्हें तो कोई फर्क ही नहीं पड़ता है. एक को सिर पर चढ़ाया हुआ है, दूसरा जैसे पैरों की धूल है.’

भाभी ने साफ तौर पर अभिनव की तुलना शतांक से कर के जैसे सब का अपमान करने की हिम्मत जुटा ली थी. अपने सामने अपने ही मातापिता की झुकी हुई गरदन देखने की पीड़ा कितनी असहनीय होती है, उस दिन मैं ने पहली बार जाना था.

फिर भी हिम्मत जुटा कर कहा था मैं ने, ‘घर तो मेरे बाऊजी और मां का है. हम तो आएंगे ही.’

‘भूल कर रही हो, यह घर मेरे और तुम्हारे भैया के अथक परिश्रम से बना है. तुम्हारे सासससुर की तरह किसी ने हमें उपहार में नहीं दिया. यह अलग बात है कि तुम्हारी तरह नातेरिश्तेदारों से संबंध तोड़ कर नहीं बैठे हैं. यही गनीमत समझो.’

वसुधा भाभी के शब्दों ने बारूद के ढेर में चिनगारी लगाने का काम किया था. उस दिन के बाद से स्थिति बिगड़ती चली गई. कभी मांबाऊजी का अपमान होता, कभी मेरा और कभी अभिनव का. ऐसे माहौल में मांबाऊजी पिछवाड़े का हिस्सा छोड़ कर भैयाभाभी के साथ समायोजन कैसे स्थापित कर सकते थे? अपने पास इतने साधन नहीं थे कि अलग से गृहस्थी बसा सकें. कहां जाएंगे मांबाऊजी, यही प्रश्न मन को बारबार कटोचता है.

आत्मविवेचन करती हूं तो मां की मौन आंखों के बोलते प्रश्नों का जवाब ढूंढ़ नहीं पाती. कभी लगता है, शायद मैं ही दोषी हूं, अपनी ससुराल और पति से दूर भाग कर मायके में सुख ढूंढ़ने की कोशिश करती रही. पर सुख पाना तो दूर, मां व बाऊजी को ही दरदर भटकने को मजबूर कर दिया.

‘कितनी सुखी हैं राघव की मां? संस्कारी बेटा है, सिर पर छत है और पिताजी की छोड़ी हुई संपदा, जिसे जब तक जीएंगी, भोगेंगी. सिर्फ मेरी ही स्थिति परकटे पक्षी सी हो गई है, जिस में उड़ने की तमन्ना तो है, पर पंख ही नहीं हैं. कहां ढूंढ़ूं इन पंखों को? मायके की देहरी पर या ससुराल के आंगन में?’ यही सोचतेसोचते आंखें एक बार फिर नम हो आई हैं. द्य

बनते बिगड़ते शब्दार्थ : इस पर जाएंगे तो सिर चकरा जाएगा

कभी गौर कीजिए भाषा भी कैसेकैसे नाजुक दौर से गुजरती है. हमारा अनुभव तो यह है कि हमारी बदलतीबिगड़ती सोच भाषा को हमेशा नया रूप देती चलती है. इस विषय को विवाद का बिंदु न बना कर जरा सा चिंतनमंथन करें तो बड़े रोचक अनुभव मिलते हैं. बड़े आनंद का एहसास होता है कि जैसेजैसे हम विकसित हो कर सभ्य बनते जा रहे हैं, भाषा को भी हम उसी रूप में समृद्ध व गतिशील बनाते जा रहे हैं. उस की दिशा चाहे कैसी भी हो, यह महत्त्व की बात नहीं. दैनिक जीवन के अनुभवों पर गौर कीजिए, शायद आप हमारी बात से सहमत हो जाएं.

एक जमाना था जब ‘गुरु’ शब्द आदरसम्मानज्ञान की मिसाल माना जाता था. भाषाई विकास और सूडो इंटलैक्चुअलिज्म के थपेड़ों की मार सहसह कर यह शब्द अब क्या रूपअर्थ अख्तियार कर बैठा है. किसी शख्स की शातिरबाजी, या नकारात्मक पहुंच को जताना हो तो कितने धड़ल्ले से इस शब्द का प्रयोग किया जाता है. ‘बड़े गुरु हैं जनाब,’ ऐसा जुमला सुन कर कैसा महसूस होता है, आप अंदाज लगा सकते हैं. मैं पेशे से शिक्षक हूं. इसलिए ‘गुरु’ संबोधन के सकारात्मक और नकारात्मक दोनों रूपों से रोजाना दोचार होता रहता हूं. परंतु हमारी बात है सोलह आने सच.

‘दादा’ शब्द हमारे पारिवारिक रिश्तों, स्नेह संबंधों में दादा या बड़े भाई के रूप में प्रयोग किया जाता है. आज का ‘दादा’ अपने मूल अर्थ से हट कर ‘बाहुबली’ का पर्याय बन गया है. इसी तरह ‘भाई’ शब्द का भी यही हाल है. युग में स्नेह संबंधों की जगह इस शब्द ने भी प्रोफैशनल क्रिमिनल या अंडरवर्ल्ड सरगना का रूप धारण कर लिया है. मायानगरी मुंबई में तो ‘भाई’ लोगों की जमात का रुतबारसूख अच्छेअच्छों की बोलती बंद कर देता है. जो लोग ‘भाई’ लोगों से पीडि़त हैं, जरा उन के दिल से पूछिए कि यह शब्द कैसा अनुभव देता है उन्हें.

‘चीज’, ‘माल’, ‘आइटम’ जैसे बहुप्रचलित शब्द भी अपने नए अवतरण में समाज में प्रसिद्ध हो चुके हैं. हम कायल हैं लोगों की ऐसी संवेदनशील साहित्यिक सोच से. आदर्शरूप में ‘यत्र नार्यरतु पूज्यंते रमन्ते तत्र देवता:’ का राग आलापने वाले समाज में स्त्री के लिए ऐसे आधुनिक सम्माननीय संबोधन अलौकिक अनुभव देते हैं. सुंदर बाला दिखी नहीं, कि युवा पीढ़ी बड़े गर्व के साथ अपनी मित्रमंडली में उसे ‘चीज’, ‘माल’, ‘आइटम’ जैसे संबोधनों से पुकारने लगती है. सिर पीट लेने का मन करता है जब किसी सुंदर कन्या के लिए ‘फ्लैट’ शब्द भी सुनते हैं. जरा सोचिए, भला क्या संबंध हो सकता है इन दोनों में.

नारी को खुलेआम उपभोग की वस्तु कहने की हिम्मत चाहे न जुटा पाएं लेकिन अपने आचारव्यवहार से अपने अवचेतन मन में दबी भावना का प्रकटीकरण जुमलों से कर कुछ तो सत्य स्वीकार कर लेते हैं- ‘क्या चीज है,’ ‘क्या माल है?’ ‘यूनीक आइटम है, भाई.’ अब तो फिल्मी जगत ने भी इस भाषा को अपना लिया है और भाषा की भावअभिव्यंजना में चारचांद लगा दिए हैं.

‘बम’ और ‘फुलझड़ी’ जैसे शब्द सुनने के लिए अब दीवाली का इंतजार नहीं करना पड़ता. आतिशबाजी की यह सुंदर, नायाब शब्दावली भी आजकल महिला जगत के लिए प्रयोग की जाती है. कम उम्र की हसीन बाला को ‘फुलझड़ी’ और ‘सम थिंग हौट’ का एहसास कराने वाली ‘शक्ति’ के लिए ‘बम’ शब्द को नए रूप में गढ़ लिया गया है. इसे कहते हैं सांस्कृतिक संक्रमण. पहले  के पुरातनपंथी, आदर्शवादी, पारंपरिक लबादे को एक झटके में लात मार कर पूरी तरह पाश्चात्यवादी, उपभोगवादी, सिविलाइज्ड कल्चर को अपना लेना हम सब के लिए शायद बड़े गौरव व सम्मान की बात है. इसी क्रम में ‘धमाका’ शब्द को भी रखा जा सकता है.

‘कलाकार’ शब्द भी शायद अब नए रूप में है. शब्दकोश में इस शब्द का अर्थ चाहे जो कुछ भी मिले लेकिन अब यह ऐसे शख्स को प्रतिध्वनित करता है जो बड़ा पहुंचा हुआ है. जुगाड़ करने और अपना उल्लू सीधा करने में जिसे महारत हासिल है, वो जनाब ससम्मान ‘कलाकार’ कहे जाने लगे हैं. ललित कलाओं की किसी विधा से चाहे उन का कोई प्रत्यक्षअप्रत्यक्ष संबंध न हो किंतु ‘कलाकार’ की पदवी लूटने में वो भी किसी से पीछे नहीं.

‘नेताजी’ शब्द भी इस बदलते दौर में पीछे नहीं है. मुखिया, सरदार, नेतृत्व करने वाले के सम्मान से इतर अब यह शब्द बहुआयामी रूप धारण कर चुका है और इस की महिमा का बखान करना हमारी लेखनी की शक्ति से बाहर है. इस के अनंत रूपों को बयान करना आसान नहीं. शायद यही कारण है कि आजकल ज्यादातर लोग इसे नापसंद भी करने लगे हैं. ‘छद्मवेशी’ रूप को आम आदमी आज भी पसंद नहीं करता है, इसलिए जनमानस में ये जनाब भी अपना मूलस्वरूप खो बैठे हैं.

‘चमचा’ अब घर की रसोई के बरतनभांडों से निकल कर पूरी सृष्टि में चहलकदमी करने लगा है. सत्तासुख भोगने और मजे

उड़ाने वाले इस शब्दविशेषज्ञ का रूपसौंदर्य बताना हम बेकार समझते हैं. कारण, ‘चमचों’ के बिना आज समाज लकवाग्रस्त है, इसलिए इस कला के माहिर मुरीदों को भी हम ने अज्ञेय की श्रेणी में रख छोड़ा है.

‘चायपानी’ व ‘मीठावीठा’ जैसे शब्द आजकल लोकाचार की शिष्टता के पर्याय हैं. रिश्वतखोरी, घूस जैसी असभ्य शब्दावली के स्थान पर ‘चायपानी’ सांस्कृतिक और साहित्यिक पहलू के प्रति ज्यादा सटीक है. अब चूंकि भ्रष्टाचार को हम ने ‘शिष्टाचार’ के रूप में अपना लिया है, इसलिए ऐसे आदरणीय शब्दों के चलन से ज्यादा गुरेज की संभावना ही नहीं है.

थोड़ी बात अर्थ जगत की हो जाए. ‘रकम’, ‘खोखा’, ‘पेटी’ जैसे शब्दों से अब किसी को आश्चर्य नहीं होता. ‘रकम’ अब नोटोंमुद्रा की संख्यामात्रा के अलावा मानवीय व्यक्तित्व के अबूझ पहलुओं को भी जाहिर करने लगा है. ‘बड़ी ऊंची रकम है वह तो,’ यह जुमला किसी लेनदेन की क्रिया को जाहिर नहीं करता बल्कि किसी पहुंचे हुए शख्स में अंतर्निहित गुणों को पेश करने लगा है. एक लाख की रकम अब ‘पेटी’, तो एक करोड़ रुपयों को ‘खोखा’ कहा जाने लगा है. अब इतना नासमझ शायद ही कोई हो जो इन के मूल अर्थ में भटक कर अपना काम बिगड़वा ले.

‘खतरनाक’ जैसे शब्द भी आजकल पौजिटिव रूप में नजर आते हैं. ‘क्या खतरनाक बैटिंग है विराट कोहली की?’ ‘बेहोश’ शब्द का नया प्रयोग देखिए – ‘एक बार उस का फिगर देख लिया तो बेहोश हो जाओगे.’ ‘खाना इतना लाजवाब बना है कि खाओगे तो बेहोश हो जाओगे.’

अब हम ने आप के लिए एक विषय दे दिया है. शब्दकोश से उलझते रहिए. इस सूची को और लंबा करते रहिए. मानसिक कवायद का यह बेहतरीन तरीका है. हम ने एसएमएस की भाषा को इस लेख का विषय नहीं बनाया है, अगर आप पैनी नजर दौड़ाएं तो बखूबी समझ लेंगे कि भाषा नए दौर से गुजर रही है. शब्दसंक्षेप की नई कला ने हिंदीइंग्लिश को हमेशा नए मोड़ पर ला खड़ा किया है. लेकिन हमारी उम्मीद है कि यदि यही हाल रहा तो शब्दकोश को फिर संशोधित करने की जरूरत शीघ्र ही पड़ने वाली है, जिस में ऐसे शब्दों को उन के मूल और प्रचलित अर्थों में शुद्ध ढंग से पेश किया जा सके.

दुश्मनी की अनकही कहानी : सलमान खान की क्यों जान लेना चाहता है लौरेंस बिश्नोई

बौलीवुड के सुपरस्टार सलमान खान (Salman Khan) आज किसी पहचान के मुहताज नहीं हैं. सलमान ने अपने काम से अपनी एक ऐसी पहचान बनाई है कि देशविदेश में उन के कई चाहने वाले हैं.

सलमान द्वारा बींग ह्यूमन नाम (Being Human) का एक ट्रस्ट भी चलाया जाता है जहां वे कई लोगों की मदद करते हैं. अकसर हम ने कई ऐक्टरों से सलमान खान की तारीफ सुनी है और सब ने बताया भी है कि वे अच्छे ऐक्टर होने के साथसाथ अच्छे इंसान भी हैं.

मगर जो इंसान लोगों की मदद करता हो, उसे जेल में बैठा कुख्यात गैंगस्टर लौरेंस बिश्नोई (Lawrence Bishnoi) आखिर क्यों मारना चाहता है?

बढ़ता कुनबा

इन दिनों लौरेंस बिश्नोई काफी सुर्खियों में बना हुआ है. वह गुजरात के साबरमती जेल में बैठ कर अपना पूरा गैंग चला रहा है. लौरेंस बिश्नोई के गैंग में 700 से भी ज्यादा शार्प शूटर्स हैं जिन्हें वह जब चाहे तब आदेश दे कर किसी को भी मारने के लिए कह देता है.

29 मई, 2022 को लौरेंस बिश्नोई ने अपने शूटर्स द्वारा फेमस पंजाबी सिंगर सिद्धू मूसेवाला (Siddhu Moose Wala) की हत्या करवाई थी क्योंकि उस का कहना था कि सिद्धू मूसेवाला का हाथ विक्की मिद्दूखेड़ा (Vicky Middukhera) की हत्या में था जिसे लौरेंस अपना भाई मानता था.

खुलेआम हत्या

लौरेंस बिश्नाई के शूटर्स लोगों की हत्या कर खुलेआम सोशल मीडिया पर पोस्ट करते हैं और क्राइम की पूरी जिम्मेदारी लेते हैं.

हैरानी की बात यह है कि लौरेंस बिश्नोई लगभग 10-11 सालों से जेल के अंदर है लेकिन जेल के अंदर बैठेबैठे उस का गैंग भी बढ़ रहा है और वह सब चीजें कर रहा है जो भी वह चाहता है.

कुछ समय पहले लौरेंस बिश्नोई ने सलमान खान को धमकी दी थी कि वह उस के समाज से माफी मांग ले नहीं तो वह सलमान खान को मार देगा.

क्या है मामला

दरअसल, फिल्म ‘हम साथ साथ हैं’ (Hum sath sath hain) के दौरान सलमान खान के ऊपर काले हिरण को मारने के आरोप लगे थे जिस कारण बिश्नोई समाज सलमान से काफी नाखुश हैं.

बिश्नोई समाज में हिरण को काफी माना जाता है तो ऐसे में सलमान खान ने जब काले हिरण का शिकार किया तब से लौरेंस ने मन ही मन ठान लिया था कि वे सलमान खान से बदला लेगा.

हाल ही में हुई बाबा सिद्दीकी (Baba Siddique) की हत्या के पीछे भी लौरेंस बिश्नोई का हाथ बताया जा रहा है जिस के चलते सलमान खान की सिक्यौरिटी और भी ज्यादा बढ़ा दी गई है.

जैसेजैसे लौरेंस बिश्नोई अपनी हर मनचाही घटना को अंजाम दे रहा है ऐसे में जेल प्रशासन को उस के खिलाफ सख्त काररवाई करनी चाहिए और यह सब बंद करवाना चाहिए क्योंकि लोगों की जान अगर ऐसे ही जाती रहेगी तो लोग सरकार या पुलिस से क्या ही उम्मीद रखेंगे.

डूबते को वीकैंड का सहारा : प्यारी महबूबा सरीखा है वीकैंड

मैं बचपन से प्रतिभाशाली रहा हूं. अभिभावकों और गुरुजनों द्वारा कूटकूट कर मेरे अंदर प्रतिभा भरी गई थी जो इतने गहरे में चली गई है कि जरूरत पड़ने पर कभी बाहर ही नहीं आ पाई. यही कारण रहा कि मैं अपनी प्रतिभा का दोहन नहीं कर पाया.

बड़ेबुजुर्ग कहते हैं जो लोग अपनी प्रतिभा का दोहन नहीं कर पाते वे दूसरों की क्षमताओं के अवैध खनन में लग जाते हैं. बिना देरी किए मैं ने बड़ों की इस सलाह को एक कान से सुन कर (दूसरा कान बंद कर), मन में बैठा कर, अमल करने की ठान ली और इसी के दुष्परिणामों के चलते एक प्रतिष्ठान में फाइवडेज वर्किंग की नौकरी मेरे गले पड़ गई.

वीकैंड, हर वीक कर्मचारी को हर वीक संबल का कंबल दान करता है जिस में वे वीकडेज से मिले जख्मों को छिपा कर उन पर दवादारू का छिड़काव कर सकता है. मैं हर वीकैंड को यादगार और शानदार बनाने की कोशिश करता हूं, लेकिन इस से पहले कि मैं कुछ बना पाऊं, वीकैंड मुझे ही बना कर चलता बनता है. वीकैंड जाने के बाद ही मुझे पता चलता है कि न तो मैं वीकैंड पर योग कर पाया और न ही इस का कोई सदुपयोग.

मैं लोकतांत्रिक देश का जिम्मेदार मतदाता और नागरिक हूं, इसलिए मैं चुनी हुई सरकार को एहसास दिलाना चाहता हूं कि मैं हर कदम पर उस के साथ हूं, इसी कारण हर शुक्रवार की शाम को उसी तरह बेफिक्र हो जाता हूं जिस तरीके से सरकारें पूरे 5 साल तक बेफिक्र रहती हैं.

वीकैंड भारतीय रेलवे की तरह डिरेल होतेहोते देरी से पहुंचता है. लेकिन इस की भरपाई करने के लिए जल्दी से विदा भी ले लेता है. इन की विदाई मेरे लिए घर से बेटी की विदाई की तरह मार्मिक और धार्मिक होती है. हर रविवार की रात को मेरा मन भावविभोर हो कर गाने लगता है, ‘‘अभी न जाओ छोड़ कर कि दिल अभी भरा नहीं…’’ हर शुक्रवार की शाम को मैं वीकैंड का हल्ला इसलिए भी मचाता हूं ताकि सोशल मीडिया पर मेरी सक्रियता देख कर मुझे बेरोजगार समझने वाले लोगों को मैं करारा जवाब दे सकूं.

जिस तरह से राजनीतिक दल चुनाव से पहले अपनेअपने दल का चुनावी घोषणापत्र लाते हैं उसी तर्ज पर मैं भी हर सोमवार को अगले वीकैंड पर किए जाने वाले कार्यों की सूची रिहा कर देता हूं ताकि मुझ से किसी काम की उम्मीद रखने वाले अल्पसंख्यक लोगों की उम्मीद को अगले वीकैंड तक जिंदा रख सकूं.

वीकैंड आने पर काम को मैं अगले वीकैंड तक उसी तरह से शिफ्ट कर देता हूं जैसे मरीज को आईसीयू से नौर्मल वार्ड में शिफ्ट किया जाता है. इस तरीके से आगे से आगे शिफ्ट करने से कई काम खुदबखुद आत्महत्या कर लेते हैं और आखिर में बहुत कम काम आप के करकमलों के हत्थे चढ़ते हैं. इस से आगे के वीकैंड्स के लिए कोई काम नहीं करने के लिए आप अपनेआप को तरोताजा व फ्रैश रख सकते हैं.

वीकैंड का इंतजार 11 मुल्क ही नहीं, बल्कि हर मुल्क का कामकाजी आदमी करता है. लेकिन वीकैंड को पकड़ कर रखना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है. जब मेरी नईनई नौकरी लगी थी तो कई वीकैंड्स देख चुके एक सीनियर टाइप कलीग ने चैन से सोना है तो जाग जाओ वाले अंदाज में मुझे बताया था, ‘वीकैंड केवल एक मायाजाल है, इस के चक्कर में कभी मत फंसना. यह तुम को कभी संतुष्ट नहीं कर पाएगा. अगर वाकई तुम वीकैंड एंजौय करना चाहते हो तो इस प्रकृतिजनित वीकैंड के भरोसे मत रहना, बल्कि वीकडेज के दौरान औफिस से बंक मार कर खुद अपने वीकैंड क्रिएट करना. यह क्रिएटिविटी तुम को अपने काम में भी मदद करेगी.’

आज जब वीकडेज के दौरान काम के बोझ से मेरी हालत अर्थव्यवस्था से भी पतली हो जाती है तो उन सीनियर की दी हुई सीख याद कर मेरी चीख निकल जाती है. लेकिन फिर भी वीकैंड का आना किसी बाढ़ग्रस्त इलाके में मुख्यमंत्री का हवाई सर्वेक्षण कर ऊपर से फूड पैकेट व राहत सामग्री गिराने जैसी राहत देता है.

नौकरी से रिटायरमैंट अगर पूर्णविराम है, तो वीकैंड अर्द्धविराम है, लेकिन यह अर्द्धविराम आप को काम करने के लिए फिर से तैयार करता है, तरोताजा करता है, यानी मुझ जैसे डूबने वालों के लिए सहारा बनता है.

6 मजेदार टिप्स :बढाएं सैक्स टाइमिंग

अकसर ऐसा देखा गया है कि महिलाओं की तुलना में पुरुष सैक्स के दौरान चरमसुख तक आसानी से पहुंच जाते हैं यानी पुरुषों को और्गैज्म तक पहुंचने में ज्यादा समय नहीं लगता. ऐसे में फीमेल पार्टनर को संतुष्टि नहीं मिलती है. एक पुरुष के लिए यह बात काफी शर्मनाक बात होती है कि वह अपने पार्टनर को सैक्स में आनंद नहीं दे पा रहा. प्रीमैच्योर इजैक्यूलेशन इन दिनों काफी नौर्मल है और ज्यादातर लोग इस से जूझ रहे हैं पर वे शर्म के मारे किसी को नहीं बता पाते और इसे अपने मन में ही रखते हैं.

महिलाओं को भी इस बात का खास ध्यान रखना चाहिए कि अगर अपने मेल पार्टनर से वे संतुष्ट नहीं हो पा रही हैं तो ऐसे में उन्हें कोई और रास्ता तलाश करने की बजाए अपने पार्टनर की मदद करनी चाहिए.

आज हम आप को बताएंगे कुछ ऐसे कमाल के टिप्स जिस से आप लंबे समय तक सैक्स कर अपने पार्टनर को संतुष्ट कर पाएंगे.

ज्यादा से ज्यादा करें फोरप्ले

लंबे समय तक सैक्स करने में फोरप्ले काफी लाभदायत साबित होता है. इस में आप को सैक्स से पहले और सैक्स के दौरान अपने पार्टनर के साथ जम कर रोमांस करना है और अपने हाथों और मुंह का इस्तेमाल कर अपने पार्टनर के हर पार्ट को इस तरह से सहलाना है कि आप का पार्टनर आप का दीवाना बन जाए.

अगर सैक्स के दौरान आप को लगता है कि आप अपना स्पर्म लूज करने वाले हैं तो ऐसे में आप को सैक्स से थोड़ा ब्रेक ले कर दोबारा से फोरप्ले करना चाहिए.

कंडोम का करें इस्तेमाल

अगर आप को लगता है कि आप समय से पहले ही अपना स्पर्म लूज कर देते हैं तो ऐसे में आप को कंडोम का इस्तेमाल करना चाहिए. बाजार में कई तरह के कंडोम्स आते हैं लेकिन आप को ध्यान रखना है कि आप को थिक कंडोम लेना है क्योंकि कंडोम जितना पतला होगा जल्दी क्लाइमैक्स तक पहुंचेंगे.

दरअसल, हमारी स्किन काफी सैंसिटिव होती है और सैक्स के दौरान इसी सैंसिटिव स्किन की वजह से यह फील होने लगता है कि हम अपना स्पर्म लूज करने वाले हैं तो ऐसे में कंडोम के जरीए लंबे समय तक सैक्स का मजा लिया जा सकता है.

सैक्स के दौरान बातचीत करें

लंबे समय तक सैक्स करने के लिए सैक्स के दौरान बीचबीच में अपने पार्टनर के साथ बात भी करनी चाहिए और उन की आंखों में आंखें डाल कर उन की तारीफ करनी चाहिए.

सैक्स करते समय सिर्फ सैक्स पर ही फोकस नहीं करना चाहिए बल्कि सैक्स की टाइमिंग बढ़ाने के लिए सैक्स के बीच में ब्रैक भी लेने चाहिए और इन ब्रैक्स में अपने पार्टनर के साथ भरपूर रोमांस का आनंद उठाना चाहिए और फिर से सैक्स करना चाहिए. ऐसा करने से पार्टनर खुद को सैटिस्फाइड फील करेगा.

फिजिकल ऐक्टिविटी है जरूरी

सैक्स के दौरान हमारा स्टैमिना काफी काम आता है. हमारा स्टैमिना जितना अच्छा होता हम उतना ज्यादा सैक्स कर पाएंगे और जल्दी थकेंगे नहीं, तो ऐसे में आप को अपनी डेली रूटीन में फिजिकल ऐक्टिविटीज पर जरूर ध्यान देना चाहिए और जितना हो सके अपना स्टैमिना बढ़ाना चाहिए.

जल्दी थकने के कारण हम अपने स्पर्म को रोक नहीं पाते और समय से पहले ही क्लाइमैक्स तक पहुंच जाते हैं और फिर खुद को वीक फील करने लगते हैं जिस से कि हमारा पार्टनर हम से सैटिस्फाइड नहीं हो पाता.

डाइट का भी रहें खयाल

जैसे हमें अपने शरीर को स्वस्थ रखने के लिए अच्छा खाने की जरूरत होती है ठीक वैसे ही अच्छे सैक्स के लिए भी अच्छी डाइट की जरूरत होती है. हमें ज्यादा से ज्यादा हरी सब्जियां खानी चाहिए और अच्छी मात्रा में प्रोटीन लेना चाहिए जिस से कि हमारा शरीर स्वास्थ रहे और सैक्स के दौरान हम जल्दी न थकें.

खराब डाइट के कारण भी हमारा शरीर थका हुआ सा फील करने लगता है जिस से कि हम ठीक से सैक्स नहीं कर पाते. हमें बाहर का फास्ट फूड जितना कम हो सके उतना कम खाना चाहिए.

शराब का सेवन बिल्कुल न करें

कई बार देखा गया है कि पुरुष शराब पी कर सैक्स करते हैं जोकि बिलकुल गलत है. शराब पीने से हमारा माइंड काफी स्लो हो जाता है और कई बार हम शराब के नशे की वजह से ठीक से सैक्स नहीं कर पाते जिस से कि हमारे पार्टनर को काफी बुरा लगता है.

अधिक शराब का सेवन करने के कारण कई बार हमारा अंग ठीक से काम नहीं करता न ही हम खुद सैटिस्फाइड हो पाते हैं और न ही अपने पार्टनर को संतुष्ट कर पाते हैं. ऐसे में सैक्स के दौरान या सैक्स से पहले शराब का सेवन बिलकुल न करें.

अगर शादी कर के अपनी गृहस्थी बना रहे हो तो खुद से जीना सीखें

“ये तेरा घर ये मेरा घर, हमारी हसरतों का घर” घरोंदा फिल्म के इस गीत में वाकई घर की हसरतें झलकती हैं और जब खुद अपने दम पर अपना घरोंदा बसाया जाता है तो उस की ख़ुशी ही अलग होती है. वैसे भी शादी चाहे वह लव हो या अरेंज हो, आप को किसी की तरफ देखने की जरुरत नहीं है. जो करना है आप खुद से ही करें. आप को ये अहसास होना चाहिए जैसे बच्चा एकएक कदम कर के चलना सीखता है वैसे ही मैरिड लाइफ में आप को धीरेधीरे एकएक चीज जोड़नी है. चाहे किराए पर लेना पड़े लेकिन अपने बजट में घर लें और उसे खुद ही सजाएं. अगर आप के मातापिता का घर बहुत बड़ा है तो क्या हुआ आप तो यही छोटा घर अफोर्ड कर सकते हैं, तो कोई बात नहीं. अपनी ज़िंदगी यहां से शुरू करें.

शादी के बाद अपनी गृहस्थी खुद चलाएं

अपने पार्टनर के साथ नई लाइफ शुरू की है, तो कम सहूलियतों के चलते घबराना कैसा. ये आप का घरोंदा है, आप की गृहस्थी है इसे खुशीखुशी अपने हिसाब से चलना सखिए.

अपने सपने बुनें

आपने यह तो सुना ही होगा कि सपने पूरे करने के लिए इन्हें पहले देखना पड़ता है. इसलिए अपने साथी के साथ मिल कर भविष्य के लिए सपने बुनें. आप अपने घर के लिए क्याक्या सामान लेना चाहते हैं, अपनी जौब में आने वाले सालों में खुद को कहां देखना चाहते हैं, बिजनेस करते हैं तो उसे कितनी ऊंचाइयों पर ले जाने का सपना है. ये सब बातें अपने पार्टनर के साथ मिल कर करें तो साथ में कुछ प्लानिंग भी करें कि कौन सा काम कब करना है और कब तक पूरा करना है.

घर को अपने बजट के अनुसार चलाएं

शादी से पहले आपने जो कुछ भी किया हो वह अलग बात है लेकिन अब आप बैचलर नहीं हो इसलिए जब बात घर को चलाने की आती है, तो पार्टनर्स के साथ मिल कर सब से पहले घर का बजट तय करना चाहिए. बिना प्लान के किसी भी तरह से खर्च करने पर अंत में आप को पैसों की समस्या का सामना करना पड़ता है. इसलिए तय करें कि हर महीने किस चीज पर कितना पैसा खर्च किया जाएगा.

छोटीछोटी बचत करें

शादी के बाद जहां खर्चना अच्छा लगता है वहां पर छोटीछोटी बचत करने का भी अपना अलग ही मज़ा है. जो भी कमाई है उस का कुछ हिस्सा बचा कर रखें क्योंकि अब आप पहले की तरह अपने मातापिता से खर्चा नहीं मांगेगे.

अपनी लड़ाई को खुद ही सुलझाना सीखें

नएनए शादी में दो लोगों को एक साथ एडजस्ट करना थोड़ा मुश्किल हो जाता है. जहां पहले सब कुछ आप का अपना अकेले का था वहीं हर चीज पार्टनर के साथ शेयर करनी पड़ती है. जोइंट फैमिली में लड़ाई को सुलझाना आसान आता है क्योंकि सब यही सोच कर ऊंची आवाज में एकदूसरे पर आप नहीं चिल्लाते और अगर ऐसा होता भी है बहुत से लोग आप की लड़ाई को समझाबुझा के ख़तम करा देते हैं. लेकिन यहां आप अकेले हैं इसलिए समझदारी से चलें. सब से पहले लड़ाई हो तो भी एकदूसरे का सम्मान करना न छोड़ें और अपशब्द न बोलें. साथ ही बोलचाल बंद न करें और रात को झगड़ा सुलझा कर ही सोने का रूल बनाएं फिर चाहे सौरी दोनों में से कोई भी बोलना पड़े.

घर का हर डिसीजन दोनों की सहमति से लिया जाए

शादी के बंधन में बंधने के बाद हर इंसान को अपने पार्टनर के साथ मिल कर सभी फैसले लेने होते हैं. ऐसा करने से ही जीवन लंबे समय तक खुशहाल होता है. भले ही आप हमेशा से अपने मर्जी के मालिक रहे हों, लेकिन जीवनसाथी के आ जाने के बाद इस रवैये को जारी नहीं रखा जा सकता है.

कोई इमेरजैंसी है तो उसे खुद मैनेज करना सीखें

मुसीबत के आने का कोई वक्त मुक़र्रर नहीं होता, लेकिन उस से निपटने के लिए जरूर आप की तैयारी पूरी होनी चाहिए. जैसे कि फाइनेंसियली आप के हर वक्त इमेरजेंसी अमाउंट होना चाहिए. साथ ही आप को अपने औफिस या आसपड़ोस में ऐसे संबंध बना कर रखने चाहिए कि एक आवाज पर लोग मदद के लिए आ जाएं.

अपनी जरूरतें खुद पूरी करें

अपनी जरूरते पूरी करने के लिए किसी का मुंह न देखें. हर छोटी बड़ी बात में मातापिता को तंग न करें, आज हमें इस की जरुरत है आज उस की, ऐसा करना गलत है. ये आप की गृहस्थी है इस की जरूरतें आप की अपनी है उन की कोई जिम्मेदारी नहीं है.

घर का एकएक सामान खुद खरीदें

अपने पार्टनर के साथ मार्किट जा कर खुद एकएक सामान चुन कर खरीदने का मज़ा ही अलग है. जब कोई नया फर्नीचर या कोई अन्य चीज घर आती है जो आपने खुद मेहनत से रिसर्च कर के खरीदी हो तो उसे यूज़ करते समय चीज से लगाव अलग ही नजर आता है जब आप सोफे पर बैठे हों तो साथी बोले अरे गंदे पैर ऊपर मत रखो अभी नया है सोफ. इस से आपदोनों ही चीज की केयर करोगे, दोनों को ही लगाव होगा. जब कोई भी नए चीज खरीद कर अपने घर सामन बढ़ाएंगे तो उस से एक संतुष्टि मिलेगी कि ये हमारी अपनी मेहनत से लाई गए चीज है.

घर के काम मिलजुल कर पूरे करें

माना आपने पहले घर संभालने वाले ये सब काम नहीं किए होंगे. अब तक मातापिता ही अब काम देख रहे होंगे लेकिन अब खुद करने की आदत डालें. घर के कामकाज के लिए मेड आदि रखें. दोनों साथ में काम करें और एक काम के बहाने एकदूसरे के साथ वक्त भी बिताएं.

मैरिज एकदूसरे पर औनरशिप नहीं पार्ट्नरशिप है

“अरे ये क्या पहन रखा है? तुम्हें पता है न कि मुझे तुम्हारा साड़ी पहनना पसंद नहीं है.”

“मैं ने तुम्हें आधे घंटे पहले फोन किया था तुम ने कौल पिक क्यों नहीं की? आधे घंटे बाद रिप्लाई क्यों किया?”

रेस्टोरेंट में आप का मन गोलगप्पे का है लेकिन सामने वाला चाहता है कि चाट खानी चाहिए.

“तुम अपने किस फ्रैंड से बात कर रहे थे? मुझे वह बिल्कुल पसंद नहीं.

तुम्हारा बौस तुम्हें औफिस में लेट क्यों रोकता है?”

ये बातचीत उन दो लोगों के बीच की हैं जो कुछ समय बाद शादी करने का सोच रहे हैं.

आप को देखने में ये कुछ छोटी बातें लग सकती हैं लेकिन क्या आप को नहीं लगता ये छोटी बातें आगे चल कर बहुत बड़ी बन जाएंगी?

ऊपर की बातचीत से क्या आप को भी नहीं लगा रहा कि ये दोनों एकदूसरे को कंट्रोल करने या एकदूसरे का मालिक बनने की कोशिश कर रहे हैं?

शादी का फैसला किसी की भी जिंदगी का सब से बड़ा फैसला माना जाता है. अगर आज आपने अपने लिए सही पार्टनर चूज नहीं किया तो आप की और आप के पार्टनर की जिंदगी खराब हो सकती है. आज हम आप को कुछ ऐसे सवालों के बारे में बताने जा रहे हैं, जिन्हें पूछने के बाद आप को शादी करने का फैसला लेने में मदद मिल सकती है. अगर आपने शादी से पहले अपने पार्टनर से इन टौपिक्स पर बात नहीं की, तो आगे चल कर आप के रिश्ते में दरार भी पैदा हो सकती है.

एकदूसरे को जाननेसमझने का ये प्रोसेस शादी से पहले शुरू हो जाना चाहिए फिर चाहे आप लव मैरिज कर रहे हों या अरेंज मैरिज.

दरअसल, हजबैंडवाइफ ज़िंदगी की गाड़ी के दो पहिए होते हैं. दोनों को ही साथ मिल कर एकदूसरे के साथ चलना होता है ऐसे में अगर दोनों मे से कोई भी ये सोचे कि वो सामने वाले को बेड़ियों में जकड़ सकता है, कंट्रोल कर सकता है, डोमिनेट कर सकता है, उस का मालिक बन सकता है तो ये पूरी तरह से ग़लत है. एकदूसरे पर बातबात पर रोकटोक करने से आप सिर्फ और सिर्फ अपना नुकसान करेंगे और अपने रिश्ते का बरबादी के कगार पर ले आएंगे.

अगर अपनी आने वाली मैरिड लाइफ में नहीं चाहते कलेश तो शादी से पहले ही अपने पार्टनर से जरूर डिस्कस कर लें ये सवाल और उसे अच्छी तरह से टेस्ट कर लें कि उस से आप को शादी करनी भी है या नहीं ?

जानिए कि आप का होने वाला लाइफ पार्टनर आप का सही में पार्टनर होगा या फिर आप का औनर?

दोनों में से कोई किसी को नहीं करेगा कंट्रोल करने की कोशिश

अगर आप चाहते हैं कि आप की आने वाली मैरिड लाइफ अच्छे से चलती रहे तो शादी करने से पहले यह क्लियर कर लें कि कोई भी एकदूसरे को कंट्रोल नहीं करेगा. दोनों की अपनी इच्छाएं, अपनी पसंद, अपने सपने हैं. दोनों एकदूसरे की इच्छाओं, सपनों का सम्मान करेगा. ताकि दोनों का रिश्ता खुल कर सांस ले सके और रिश्ते में घुटन न हो.

दोनों पार्टनर की हो सकती है अपनीअपनी राय

दोनों को इस बात का ख्याल रखना होगा कि किसी भी बात या समस्या पर दोनों की अपनी राय हो सकती है. ऐसे में किसी की भी कही गई किसी भी बात को इग्नोर करने की बजाए सामने वाले की बात को भी ध्यान से सुनना और उस की बात को सम्मान देना होगा.

दोनों पार्टनर की होगी अपनी चौइस

आप अगर अपने पार्टनर के कपड़ों को ले कर रोकटोक करते हैं तो ये आप के रिश्ते की एक बड़ी गलती साबित हो सकती है. आप के पार्टनर को कैसे कपड़े पहनने हैं इसे सिर्फ उन्हें ही डिसाइड करने दें ताकि उन्हें आप के साथ कभी घुटन न महसूस हो और उस ऐसा न लगे कि उस की अपनी कोई चौइस या लाइफ नहीं है. अगर दोनों में से किसी का बिहेवियर है ऐसा, तो समझ जाएं कि आप को कंट्रोल करने या आप का औनर बनने की कोशिश कर रहा है और आगे चल कर आप का रिश्ता सरवाइव नहीं कर पाएगा.

खुद को सही दूसरे को गलत ठहराने की आदत तो नहीं

“तुम ने फलां कंपनी के शेयर में इन्वेस्ट क्यों किया? तुम्हें समझ नहीं है, तो क्यों करती या करते हो”

हर बात में कमियां निकालने की आदत

“तुम ने बेडशीट सही से नहीं बिछाई, कितनी सिलवटें हैं, तुम्हें गाड़ी सही से नहीं चलानी आती, ये कैसी सफाई की है सब कुछ तो गंदा पड़ा है, ये कैसा खाना बनाया है.”

कंट्रोलिंग नेचर वाले पार्टनर की एक बहुत ही खराब आदत होती है कि वह सामने वाले के हर एक काम में कोई न कोई कमियां निकालता रहता है और उस पर सही से काम करने का प्रेशर बनाता रहता है और सामने वाले को किसी काम के काबिल नहीं समझता.

कड़ी नजर रखने की आदत

अगर आप का होने वाला पार्टनर आप कब कहां जा रहे हो, किस के साथ जा रहे हो. बारबार फोन कर के आप के हर एक पल पर नजर रखे हुए है तो ये आप के रिश्ते के लिए सही बात नहीं. ये उन के आप को कंट्रोल करने की निशानी है.

एकदूसरे का सम्मान

अगर आप का होने वाला पार्टनर आप के फाइनेंशियल स्टेटस, पढ़ाईलिखाई, गुण या फिर नौकरी में आप के दोस्तों, जानने वालों के सामने आप को नीचा या छोटा दिखाता है इस का मतलब है कि वह आप का सम्मान नहीं करता और आगे चल कर वह आप पर हावी होने की कोशिश करेगा.

मैरिड लाइफ में दो अलगअलग नेचर के लोग साथ आते हैं ऐसे में दोनों तरफ से सहयोग एक दूसरे की रिस्पेक्ट ही हैप्पी मैरिड लाइफ का मूल मंत्र है लेकिन कई बार एक पार्टनर का नेचर दूसरे को कंट्रोल करने की होती है जो रिश्ते के लिए बिल्कुल सही नहीं होता. कोई भी एक पार्टनर अपने रिश्ते में दूसरे को दबा कर रखना चाहे तो रिलेशनशिप को ज्यादा दिनों तक चला पाना मुश्किल हो जाता है या फिर रिश्ते में घुटघुट कर जीना पड़ता है. अगर दोनों में से किसी का भी है कंट्रोल करने का नेचर है तो समझ जाएं कि सामने वाला आप को अपनी मुट्ठी में रखने की कोशिश कर रहा है और आगे भी करेगा.

अगर आप शादी के बाद अपने पार्टनर के साथ शांति से जीना चाहते हैं, तो शादी करने से पहले अपने पार्टनर से कुछ मुद्दों को ले कर बातचीत जरूर कर लेनी चाहिए-

एकदूसरे के कैरियर गोल्स के बारे में जरूर जानें

आप का पार्टनर आप के कैरियर को ले कर कितना सपोर्टिव है आप के लिए ये जानना भी बेहद जरूरी है. क्योंकि अगर आप का कैरियर उस के लिए महत्व नहीं रखता तो आगे चल कर वह आप पर डोमिनेट करेगा और आप को अपने कैरियर के लिए कौम्परोमाइज करना पड़ना सकता है.

अकेले रहेंगे या फैमिली के साथ

शादी से पहले न केवल अपने पार्टनर के परिवार के बारे में बल्कि उन के साथ आप के पार्टनर की बौन्डिंग के बारे में जानना भी बेहद जरूरी है. शादी के बाद क्या आप का पार्टनर अपने परिवार के साथ ही रहना चाहता है या फिर वो नए घर में मूव औन करना चाहता है. इस तरह के सवालों को ले कर शादी से पहले ही बात कर लेनी चाहिए वरना आगे चल कर इस की वजह से दोनों एक बीच मनमुटाव हो सकता है.

फैमिली प्लानिंग के बारे में भी क्लियर कर लें

अगर आप शादी के बाद दोनों पार्टनर में से कोई एक जल्दी पेरैंट नहीं बनना चाहता इस बारे में भी पहले से ही डिस्कस कर लें क्योंकि शादी के बाद इस के बारे में दोनों की सोच न मिलने की वजह से दोनों के बीच में कलेश पैदा हो सकता है. इसलिए बेहतर यही है कि आप दोनों इस मुद्दे को ले कर शादी से पहले ही बातचीत कर लें.

कुल मिला कर शादी के बाद सब कुछ नया होता है इसलिए शादी करने से पहले आप को यह बात अच्छे से समझ लेनी होगी कि न आप अपनी मर्जी के मालिक नहीं हो सकते हैं न आप अपने पार्टनर पर अपनी मर्जी चला सकते हैं.

हत्या और नशे के कारोबार से जुड़ते बेरोजगार युवा

भाड़े पर हत्या, अपहरण से ले कर नशे की बड़ीबड़ी खेप इधर से उधर पहुंचाने वाले युवा देश के लिए बहुत बड़ी चुनौती बनते जा रहे हैं. चंद रुपयों के लालच में वे बहुत आसानी से अपराधी समूहों को जौइन कर रहे हैं. देश की युवा शक्ति को रोजगार से जोड़ कर सही दिशा देने में नाकाम मोदी सरकार की अग्निवीर योजना भी देश की सुरक्षा के लिए खतरनाक स्थितियां पैदा करेगी, इस में कोई दोराय नहीं.

मुंबई में बाबा सिद्दीकी की हाई प्रोफाइल हत्या के बाद लौरेंस बिश्नोई का नाम फिर चर्चा में है. देशविदेश में पहले भी हो चुकी कई हत्याओं में लौरेंस बिश्नोई का नाम आया है. अब कहा जा रहा है कि बाबा सिद्दीकी की हत्या भी उसी के गैंग ने की है.

लम्बे समय से लौरेंस बिश्नोई फिल्म स्टार सलमान खान को मारने की फिराक में है, ऐसा पुलिस का कहना है और लौरेंस के कुछ वीडियो भी सोशल मीडिया पर हैं जिस में वह ऐसा कहते सुना जा रहा है. सिद्धू मूसेवाला की हत्या में पुलिस उस की संलिप्तता मानती है तो वहीं सुखदेव सिंह गोगामेड़ी की हत्या का जिम्मेदार भी लौरेंस को माना जाता है.

यही नहीं कनाडा सरकार ने आरोप लगाया है कि भारत के गृहमंत्री अमित शाह के इशारे पर खालिस्तान समर्थक हरदीप सिंह निज्जर की हत्या भी लौरेंस गैंग ने की है. कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने कनाडाई नागरिकों की टार्गेट किलिंग का आरोप भारत पर मढ़ा है जिस के चलते दोनों देशों के बीच इस कदर खटास आ गई है कि दोनों देशों ने अपनेअपने राजदूतों को देश वापस बुला लिया है.

आखिर कौन है लौरेंस बिश्नोई?

पंजाब के फिरोजपुर जिले के धत्तरांवाली गांव का रहने वाला और पंजाब यूनिवर्सिटी से एलएलबी की डिग्री प्राप्त सतविंदर सिंह उर्फ़ लौरेंस बिश्नोई की उम्र अभी मात्र 31 साल है और दिलचस्प बात यह है कि वह पिछले 12 साल से जेल में है. यानी मात्र 19 साल की उम्र में वह जेल चला गया था. फिर उस ने ग्रेजुएशन और एलएलबी कब और कैसे की? वह दिल्ली की तिहाड़ जेल में रहा. राजस्थान की जोधपुर जेल में रहा.

आजकल लौरेंस गुजरात की जेल में बंद है. पुलिस कहती है कि वह जेल में रह कर अपना गैंग चला रहा है. उस के गैंग में 700 से अधिक क्रिमिनल्स हैं. जो उस के इशारे पर कभी भी कहीं भी किसी का भी गेम बजा देते हैं. क्या जेल प्रशासन और हमारी खुफिया एजेंसियां क्या छुट्टी पर हैं? अगर नहीं, तो फिर कैसे जेल की ऊंची और मजबूत दीवारों में कैद रहते हुए लौरेंस बिश्नोई ने इतना विशाल गैंग खड़ा कर लिया? गोल्डी बरार नाम के अपराधी के संपर्क में वह कब और कैसे आया, जिस को उस के गैंग का लेफ्टिनेंट कमांडर कहा जाता है और जो कई साल से विदेश में है. क्या जेल में रहते हुए किसी से संपर्क करना, किसी की सुपारी लेना, गैंग के सदस्यों से बातचीत करना इतना आसान है? आखिर लारेंस बिश्नोई जेल में बैठ कर कैसे ये सब कर रहा है? गुजरात की जेल में रहने के बावजूद लौरेंस बिश्नोई इतना शक्तिशाली कैसे है? मोदी सरकार लौरेंस बिश्नोई को अन्य मामलों में जांच के लिए गुजरात से बाहर अन्य जेलों में ले जाने के हर प्रयास का विरोध क्यों कर रही है? बिश्नोई जेल में रहते हुए कथित तौर पर भारत और विदेश में हत्याएं और जबरन वसूली कैसे कर सकता है? लौरेंस बिश्नोई को कौन बचा रहा है और किस के आदेश पर वह काम कर रहा है? क्या लौरेंस बिश्नोई जेल में बंद अपराधी है या मोदी सरकार उसे सक्रिय रूप से इस्तेमाल कर रही है? क्या एक गैंगस्टर को जानबूझ कर खुली छूट दी जा रही है? सवाल सैकड़ों हैं.

राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) जिस के सर्वेसर्वा अजीत डोभाल हैं, के मुताबिक लौरेंस गैंग न सिर्फ 700 शूटरों के साथ काम करता है बल्कि गैंग समय के साथ बड़ा होता जा रहा है. इस के औपरेशन जिस तरह 11 राज्यों में फैले हुए हैं, उस से लगता है कि ये गिरोह भी डी कंपनी यानि दाऊद इब्राहिम की राह पर चल रहा है. गौरतलब है कि 90 के दशक में दाऊद इब्राहिम को भी बड़ा डोन अजीत डोभाल ने ही साबित किया था और दाऊद के खिलाफ उन के पास भारत से ले कर पाकिस्तान तक तमाम सबूत भी मौजूद थे, बावजूद इस के दाऊद इब्राहिम कभी उन के शिकंजे में नहीं आया. अब दाऊद की तरह लौरेंस का नाम खूब चर्चा में है. लेकिन यह पुलिस और खुफिया एजेंसियों के लिए डूब मरने की बात है कि एक क्रिमिनल 12 साल से आप की निगरानी में जेल में बंद है फिर भी वह इतनी आसानी से बड़ीबड़ी वारदातों को अंजाम दे रहा है.

कभी सलमान खान को धमकी तो कभी उस पर गोली चलवाना, कभी सिद्धू मूसेवाला की हत्या… कभी कनाडा में औपरेशन तो कभी इंग्लैंड में क्राइम. हर बार ऐसे कांडों के बाद लौरेंस बिश्नोई का नाम लिया जाता है तो हैरानी ही होती है कि वो जेल में बैठ कर कैसे ये सब कैसे कर रहा है? कहीं ऐसा तो नहीं कि उस के कंधे पर बन्दूक धर कर कोई और इन तमाम सनसनीखेज कांडों को अंजाम दे रहा है?

दाऊद इब्राहिम भारतीय जांच एजेंसियां कहती हैं कि उस ने ड्रग तस्करी, लक्षित हत्याओं, जबरन वसूली रैकेट के जरिए अपने नेटवर्क का विस्तार किया था. बाद में पाकिस्तानी आतंकवादियों के साथ मिल कर उस ने डी-कंपनी बनाई. ठीक उसी तरह लौरेंस बिश्नोई ने भी अपना गिरोह बनाया और छोटेमोटे अपराधों से शुरुआत कर वह जल्दी ही उत्तर भारत के अपराध जगत पर छा गया.

लौरेंस बिश्नोई के निकट सहयोगी के रूप में गोल्डी बरार का नाम लिया जाता है. कहते हैं गोल्डी बरार इस गिरोह में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. वह कनाडा या विदेश में कहीं बैठ कर लौरेंस बिश्नोई के मुख्य लेफ्टिनेंट का काम करता है. उस की भागीदारी कई हाई-प्रोफाइल आपराधिक गतिविधियों और बिश्नोई के साथ रही है.

एएनआई के मुताबिक लौरेंस बिश्नोई गिरोह पहले पंजाब तक ही सीमित था लेकिन अपने करीबी सहयोगी गोल्डी बरार की मदद से लौरेंस बिश्नोई ने हरियाणा, दिल्ली और राजस्थान के गिरोहों के साथ गठजोड़ कर के एक बड़ा नेटवर्क तैयार कर लिया. ये गिरोह पंजाब, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, महाराष्ट्र, दिल्ली, राजस्थान और झारखंड सहित पूरे उत्तर भारत में फैल चुका है. मुंबई में सरेआम बाबा सिद्दीकी को गोली मारने के आरोप में पकड़े गए दो शूटर यूपी के बहराइच जिले के एक गांव के हैं, जो अपनी रोजी कमाने के लिए पुणे गए थे. ऐसे लाखों बेरोजगार युवा देश में हैं जिन्हे चंद पैसे का लालच दे कर अपराध की काली दुनिया में घसीट लिया जाता है.

बात करते हैं बाबा सिद्दीकी की, जिन की 12 अक्टूबर की देर रात मुंबई के बांद्रा इलाके में गोली मार कर हत्या कर दी गई. और पुलिस के मुताबिक़ इस हत्या की जिम्मेदारी लौरेंस गैंग ने ली है. बाबा जियाउद्दीन सिद्दीकी भारत के महाराष्ट्र में बांद्रा वेस्ट विधानसभा सीट के विधायक थे. बाबा ने युवावस्था में कांग्रेस ज्वाइन की थी. मुंबई कांग्रेस के एक प्रमुख अल्पसंख्यक चेहरे, सिद्दीकी ने कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन के सत्ता में रहने के दौरान मंत्री के रूप में भी कार्य किया था. वह 1999, 2004 और 2009 में लगातार 3 बार विधायक रहे और उन्होंने 2004 से 2008 के बीच मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख के अधीन खाद्य और नागरिक आपूर्ति और श्रम राज्य मंत्री के रूप में भी काम किया.

सिद्दीकी ने 1992 से 1997 के बीच लगातार दो कार्यकालों के लिए नगर निगम पार्षद के रूप में भी काम किया था. अपनी मृत्यु से पहले, उन्होंने मुंबई क्षेत्रीय कांग्रेस समिति के अध्यक्ष और वरिष्ठ उपाध्यक्ष और महाराष्ट्र प्रदेश कांग्रेस समिति के संसदीय बोर्ड के रूप में कार्य किया. 8 फरवरी 2024 को, उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया और 12 फरवरी 2024 को वे अजीत पवार के नेतृत्व वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए.

सिद्दीकी का संबंध अंडरवर्ल्ड गैंग से माना जाता है. कहते हैं वह दाऊद के करीबी थे. इसी के साथ वह कई फिल्म अभिनेताओं के भी करीबी मित्र थे जिस में सुनील दत्त का नाम भी शामिल है. 2005 में सुनील दत्त की मौत के बाद भी सिद्दीकी उन के घर पर आते रहे. राजनीति में वे प्रिया दत्त के गुरु थे, लेकिन बाद में उन्होंने संजय दत्त को छोड़ कर बाकी दत्त परिवार से खुद को अलग कर लिया. फिल्म अभिनेता सलमान खान और बाबा सिद्दीकी दो दशकों से भी ज़्यादा समय से करीबी दोस्त थे. बौलीवुड के ‘सुल्तान’ हमेशा सिद्दीकी की सालाना इफ्तार पार्टियों में शामिल होते थे. वे हर मुश्किल समय में एकदूसरे के साथ खड़े रहते थे. अनेक फ़िल्मी हस्तियों के घर पर बाबा का उठनाबैठना था.

राजनीति में रहते और अंडरवर्ल्ड से नजदीकियों के चलते बाबा सिद्दीकी ने अथाह दौलत इकट्ठा कर ली. इंफोर्समेंट डायरैक्टर (ईडी) ने साल 2018 में बाबा सिद्दीकी की 462 करोड़ रुपये की संपत्ति को अटैच किया था. यह संपत्ति बांद्रा वेस्ट में स्थित थी और इसे धन शोधन निरोधक अधिनियम के तहत जब्त किया गया था. एजेंसी यह जांच कर रही थी कि क्या बाबा सिद्दीकी ने 2000 से 2004 तक महाराष्ट्र हाउसिंग और एरिया डेवलपमेंट अथौरिटी के चेयरमैन के रूप में अपनी पद का गलत इस्तेमाल कर पिरामिड डेवेलपर्स को बांद्रा में विकसित हो रहे स्लम रिहैबिलिटेशन अथौरिटी प्रोजैक्ट में मदद की थी. इस कथित घोटाले की राशि 2,000 करोड़ रुपये बताई गई थी.

कयास लगाए जा रहे हैं कि स्लम रिहैबिलिटेशन अथौरिटी रिडेवलपमेंट का मामला भी बाबा सिद्दीकी की हत्या की वजह हो सकती है, क्योंकि कुछ रोज पहले से इस मामले में बाबा सिद्दीकी के बेटे जीशान सिद्दीकी, जो खुद एक राजनेता हैं, इस का विरोध कर रहे थे. ईडी इस मामले में बाबा सिद्दीकी की गिरफ्तारी की तैयारी में भी थी कि तभी बाबा की हत्या हो गई.

अगर बाबा सिद्दीकी को ईडी अरेस्ट करती तो जाहिर है स्लम घोटाले से ही नहीं बल्कि बौलीवुड और अंडरवर्ल्ड के बीच कई रिश्तों से भी पर्दा उठता. कई राज बाहर आते. रौ के पूर्व अधिकारी एनके सूद का कहना है कि बाबा सिद्दीकी अंडरवर्ल्ड और बौलीवुड के बीच मध्यस्थ थे. दाऊद की डी कंपनी से उन के आज भी काफी नजदीकी संबंध थे.

उधर लौरेंस बिश्नोई और डी कंपनी के बीच शत्रुता की कहानी भी बांची जा रही है और कहा जा रहा है कि बिश्नोई गैंग डी कंपनी को ख़त्म कर उस की जगह लेने की फिराक में है और बाबा की हत्या कर उस ने डी कंपनी को चुनौती दी है. ऐसे में लौरेंस बिश्नोई, दाऊद इब्राहिम या 462 करोड़ की प्रौपर्टी… बाबा सिद्दीकी की हत्या के पीछे बड़ा राज छिपा है. बाबा सिद्दीकी की हत्या में जितना दिख रहा है उस से कहीं अधिक इस में पेंच हैं.

इसी बीच देश में कई जगहों पर बहुत बड़ी मात्रा में ड्रग्स पकड़ी गई हैं. इतनी भारी मात्रा में ड्रग्स का देश के भीतर आना और खपाया जाना बहुत बड़ी चिंता को जन्म देता है. ड्रग्स का इस्तेमाल युवा वर्ग करता है. स्कूल, कालेज, औफिसेस से ले कर गांवदेहातों तक युवाओं के बीच ड्रग्स की खपत बढ़ रही है. जाहिर है एक बहुत बड़ी साजिश के तहत देश की युवा शक्ति को कमजोर और जर्जर किया जा रहा है.

जिस दिन बाबा सिद्दीकी की ह्त्या हुई उसी दिन यानी 12 अक्टूबर को दिल्ली पुलिस की स्पैशल ब्रांच और गुजरात पुलिस ने एक साझा अभियान में गुजरात के भरूच जिले के अंकलेश्वर से 518 किलो हेरोइन जब्त की. अंतरराष्ट्रीय बाजार में इस की कीमत 5 हजार करोड़ रुपये आंकी गई.

इस से पहले 10 अक्टूबर को दिल्ली पुलिस ने पश्चिमी दिल्ली के रमेश नगर में एक दुकान से नमकीन के पैकेट में रखी 208 किलो कोकीन बरामद की थी. इस की क़ीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार में करीब दो हजार करोड़ रुपये आंकी गई थी. ये ड्रग्स रमेश नगर की एक पतली गली में स्थित एक दुकान में 20 पैकेटों में रखी थी और आगे डिलीवर की जानी थी.

वहीं, एक अक्टूबर को दिल्ली पुलिस ने महिपालपुर में एक वेयरहाउस से 562 किलो हेरोइन और 40 किलो हाइड्रोपोनिक गांजा बरामद किया था. जो ड्रग्स महिपालपुर से पकड़ी गई हैं वो भारत के बाहर से लाई गई थी. 562 किलो कोकीन के अलावा जो 40 किलो हाइड्रोपोनिक गांजा पकड़ा गया था, वो थाईलैंड से आया था.

स्पैशल सेल के एक अधिकारी के मुताबिक़ एक अक्तूबर और 10 अक्तूबर को दिल्ली के दो अलगअलग इलाक़ों से जो ड्रग्स बरामद की गई, वह एक ही ड्रग्स रैकेट से संबंधित हैं. गुजरात के भरूच में बरामद ड्रग्स भी इसी रैकेट से जुड़ी है.

5 अक्टूबर को गुजरात पुलिस ने नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के साथ मिल कर भोपाल की एक फैक्ट्री से 907 किलो मेफेड्रोन (एमडी) ड्रग्स बरामद की, जिस की कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार में 1814 करोड़ रुपए आंकी गई. क़रीब 5 हजार किलो कच्चा माल भी इस छापेमारी के दौरान बरामद किया गया. ये ड्रग्स भोपाल के बागोड़ा इंडस्ट्रियल एस्टेट में चल रही एक फैक्ट्री से बरामद की गई थी.

देश में जिस बड़े पैमाने पर ड्रग्स पकड़ी जा रही हैं, यह अभूतपूर्व है. इस तरह के बड़ेबड़े ड्रग नेटवर्क भारत में कैसे काम कर रहे हैं? सीमापार से इतनी भारी मात्रा में ड्रग्स की खेप अंदर कैसे आ रही है? बौर्डर सिक्योरिटी फोर्स और खुफिया एजेंसियां क्या कर रही हैं? ड्रग नेटवर्क भारत की सीमा में कैसे ड्रग्स पहुंचाने में कामयाब हो रहे हैं? इस संबंध में अभी तक कोई बड़ा किंगपिन गिरफ्तार क्यों नहीं हुआ?

बड़ी तादाद में ड्रग्स का पकड़ा जाना ये भी बताता है कि भारतीय बाजार में ड्रग्स की मांग बढ़ रही है और इसलिए ही इस की सप्लाई बढ़ी है. अगर डिमांड नहीं बढ़ती तो इतनी बड़ी मात्रा में सप्लाई नहीं होती. इस कारोबार में पैसा भी बहुत है, इसलिए अपराधी इस की तरफ आकर्षित हो रहे हैं. पुलिस की कार्रवाई से पता चलता है कि ड्रग्स तस्करी के नेटवर्क और संगठित हुए हैं. हाल के सालों में ड्रग्स से जुड़े अपराध बहुत तेजी से बढ़े हैं.

गौरतलब है कि लौरेंस बिश्नोई को भी अगस्त 2023 में सीमा पार से ड्रग्स की तस्करी के एक मामले में दिल्ली की तिहाड़ जेल से साबरमती सेंट्रल जेल में स्थानांतरित किया गया था. साफ है कि जो गिरोह आतंक और हत्या का धंधा चला रहे हैं वही ड्रग्स और जिस्मफरोशी का कारोबार भी कर रहे हैं. और यह सब उन के राजनीतिक आकाओं के संरक्षण में फलफूल रहा है.

भारत एक युवा देश है. यहां 18 से 30 आयु वर्ग के लोगों की तादाद सब से ज्यादा है. यह ऊर्जा का बहुत बड़ा और बहुत शक्तिशाली पुंज है. लेकिन मोदी सरकार इस शक्ति को देश के विकास में इस्तेमाल नहीं कर पा रही है. सरकार इन युवाओं को रोजगार नहीं दे पा रही है. असंख्य युवा आज बेरोजगार हैं. जिन्हे थोड़े से पैसे का लालच दे कर बहुत आसानी से बरगलाया जा सकता है. चंद रुपयों के लालच में ये किसी की भी जान ले सकते हैं. ह्त्या, अपहरण, देह व्यापर और नशे के कारोबार को बढ़ाने में यही युवा वर्ग बहुत बड़ी भूमिका निभा रहा है.

लौरेंस बिश्नोई या दाऊद की कथित डी कंपनी ऐसे ही बेरोजगार युवाओं का इस्तेमाल कर रही है. वह इन्हें पैसे और हथियार मुहैया करा रही है. बाबा सिद्दीकी की हत्या में जितने युवा पुलिस की गिरफ्त में आते जा रहे हैं वे सभी गरीब घरों के बेरोजगार हैं जो मजदूरी के इरादे से महानगरों की तरफ गए और बड़ी आसानी से अपराधी गिरोहों के जाल में फंस गए. इन के पास से विदेशी असलहे बरामद हुए हैं.

युवा शक्ति को सही दिशा देने में नाकाम मोदी सरकार की अग्निवीर योजना भी देश की सुरक्षा के लिए खतरनाक स्थितियां पैदा करेगी. 4 साल की नौकरी के बाद इन्हें सेना से निकाल दिया जाएगा. इन के पास कोई नौकरी, कोई पेंशन नहीं होगी. यह एक ऐसी बेरोजगार फौज होगी जिस को हथियार चलाना, गोला बारूद फेंकने में महारत हासिल होगी. ये बेरोजगारों की एक ऐसी फौज होगी जिसे देश की सुरक्षा प्रणाली की पूरी जानकारी होगी. जो यह भी जानती होगी कि सेना किस तरह काम करती है, उस के हथियारों का जखीरा कहांकहां है? उस पर कब कहां और कैसे हमला किया जा सकता है. हमारी सुरक्षा व्यवस्था कहां कहां पर ढीली है. हथियार चलाने में ट्रेंड इस बेरोजगार फौज को अपराधी समूह आसानी से अपनी गैंग में शामिल कर देश विरोधी गतिविधियों में लगा देंगे. यह मादक द्रव्यों के सप्लायर बनेंगे. ये भाड़े पर हत्याएं करेंगे. आका के इशारे पर लोगों का अपहरण करेंगे. ये अपराधी समूहों के शार्प शूटर्स बनेंगे और अपनी दबंगई से देश को थर्राने का काम करेंगे.

मैं ने अपनी फीमेल फ्रैंड को नहाते हुए देख लिया और तब से उस के साथ सैक्स करना चाहता हूं.

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सवाल –

मेरी उम्र 21 साल है और मेरी एक फीमेल बैस्ट फ्रैंड है जो मेरे साथ स्कूल टाइम से है और अब हम दोनों का कालेज भी सेम ही है तो हम दोनों साथ में खूब मौजमस्ती करते हैं. हम दोनों के घर वालों को भी हमारी दोस्ती के बारे में पता है. रोज हम दोनों कालेज साथ जाते हैं और मैं उस को उस के घर से पिक करता हूं. करीब 1 हफ्ता पहले मैं उस के घर के नीचे पहुंचा और उस को कौल किया पर उस ने कौन पिक नहीं किया. उस के घर का गेट खुला हुआ था तो मैं उस के घर के अंदर चला गया. उस के मम्मीपापा दोनों वर्किंग हैं तो उस समय दोनों अपने औफिस गए हुए थे. जैसे ही मैं उस के घर पहुंचा तो वह मुझे कहीं नहीं दिखी. मैं चैक करने बाथरूम गया तो अंदर का नजारा देख कर दंग रह गया. मेरे सामने मेरी बैस्ट फ्रैंड बिना कपड़ों के खड़ी थी और मदहोश हो कर नहा रही थी. मैं ने उस का फिगर देखा और किसी तरह अपनेआप को बड़ी मुश्किल से रोका. मैं बिना कुछ कहे उस के घर के नीचे आ गया और ऐसा बिहेव किया जैसा मैं ऊपर गया ही नहीं था. फिर कुछ मिनटों बाद उस को कौल किया तब उस ने कौल उठा लिया और वह करीब 10-15 मिनट में नीचे आ गई और फिर हम कालेज चले गए. तब से ले कर अब तक मेरे दिमाग में बस उसी के खयाल आ रहे हैं और मेरा उस के साथ संबंध बनाने का मन कर रहा है. मैं क्या करूं?

जवाब –

आप ने अनजाने ही सही जो किया बिलकुल गलत किया. जब आप को पता था कि आप की फ्रैंड के पेरैंट्स वर्किंग हैं तो आप को उन के घर ऐसे नहीं जाना चाहिए था बल्कि थोड़ी देर अपनी फ्रैंड का कौल पिक करने का इंतजार करना चाहिए था. अगर आप अंदर चले भी गए तो ऐसे में आप को उस को आवाज देनी चाहिए थी और फिर उस के बाथरूम में जाना चाहिए था.

जैसाकि आप ने बताया आप दोनों की दोस्ती काफी पुरानी है तो ऐसे में आप को अपने मन में ऐसे विचार बिलकुल नहीं लाने चाहिए क्योंकि समय के साथ एक लड़की का विश्वास बढ़ता चला जाता है और अगर उसे पता चला कि आप ने उसे ऐसी अवस्था में देखा है तो वह आप को कभी माफ नहीं कर पाएगी.

आप को सोचना चाहिए कि वह आप की बैस्ट फ्रैंड है और उस के घर वाले भी आप के ऊपर भरोसा करते हैं तो ऐसे में आप को किसी का भरोसा नहीं तोड़ना चाहिए.

जो कुछ भी आपने देखा उसे भूल जाइए और इस बात का किसी को पता मत लगने दीजिएगा कि कभी आप ने ऐसा कुछ देखा भी था. अगर आप को उस लड़की से प्यार है तो आप सब से पहले अपने प्यार का इजहार कीजिए और उस लड़की को विश्वास दिलाइए कि आप उस से मोहब्बत करते हैं और उस के बाद ही किसी तरह के संबंध बनाने की कोशिश कीजिए.

हां, अगर आप सिर्फ जिस्मानी संबंध बनाने के लिए ऐसा करने वाले हैं तो आप को ऐसा बिलकुल नहीं करना चाहिए क्योंकि आप के कुछ देर के आनंद के लिए किसी की जिंदगी भी खराब हो सकती है तो अगर सच में प्यार है तभी कदम आगे बढ़ाइए वर्ना जैसा चल रहा है वैसे ही चलने दें.

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दुआ मांगो सब ठीक हो जाएगा

वह पेट से थी. कोख में किस का बच्चा पलबढ़ रहा था, ससुराल वाले समझ नहीं पा रहे थे. सब अंदर ही अंदर परेशान हो रहे थे.

पिछले 2 साल से उन का बड़ा बेटा जुबैर अपने बूढ़े मांबाप को 2 कुंआरे भाइयों के हवाले कर अपनी बीवी सुगरा को छोड़ कर खाड़ी देश कमाने गया था. शर्त के मुताबिक उसे लगातार 2 साल नौकरी करनी थी, इसलिए घर आने का सवाल ही नहीं उठता.

इसी बीच जुबैर की बीवी सुगरा कभी मायके तो कभी ससुराल में रह कर समय काट रही थी. 2 साल बाद उस के शौहर का भारत आनाजाना होता रहेगा, यही बात सोच कर वह खुश थी.

सुगरा जब भी मायके आती तो हर जुमेरात शहर के मजार जाती. उस मजार का नाम दूरदूर तक था. कई बार तो वह वहां अकेली आतीजाती थी.

एक शहर से दूसरे शहर में ब्याही गई सुगरा ज्यादा पढ़ीलिखी नहीं थी. उस ने शहर के एक मदरसे में तालीम पाई थी. सिलाईकढ़ाई और पढ़ाई सीखतेसीखते मदरसे के हाफिज से उस की जानपहचान हो गई थी. वह हाफिज से हंसतीबोलती, पर प्यारमुहब्बत से अनजान थी.

मदरसे में पढ़तेपढ़ते सुगरा के अम्मीअब्बू ने रिश्तेदारी में अच्छा रिश्ता पा कर उस की शादी करने की सोची.

‘सुनोजी, रिश्तेदारी में शादी करने से आपस में बुराई होती है. हालांकि वह हमारी खाला का बेटा है. रोजगार की तलाश में है. जल्द लग नौकरी जाएगी,  पर…’ सुगरा की मां ने कहा था.

‘पर क्या?’ सुगरा के अब्बू ने पूछा था.

‘कल को कोई मनमुटाव हो गया या लड़के को लड़की पसंद न आई तो…’ सुगरा की अम्मी बोली थीं.

‘सुना है कि लड़का खाड़ी देश में कमाने जा रहा है. नौकरी वाले लड़के मिलते ही कहां हैं,’ सुगरा के अब्बू ने कहा था.

दोनों परिवारों में बातचीत हुई और उन का निकाह हो गया. पर मदरसे के हाफिज को सुगरा अब भी नहीं भुला पाई थी.

आज मुर्शिद मियां का परिवार जश्न मना रहा था. एक तो उन के बेटे जुबैर की नौकरी खाड़ी देश में लग गई थी, दूसरी उन के घर खूबसूरत सी बहू आ गई.

‘सुगरा, तुम जन्नत की परी जैसी हो. तुम्हारे आने से हमारा घर नूर से जगमगा गया,’ कह कर जुबैर ने सुगरा को अपने सीने से लगा लिया था.

उन दोनों के बीच मुहब्बत की खुशियों ने डेरा जमा लिया था. पूरा परिवार खुश था.

एक महीने का समय कब बीत गया, पता ही नहीं चला. जुबैर खाड़ी देश जाने की तैयारी करने लगा. सुगरा को उदासी ने घेर लिया था. उस के दिल से आह निकलती कि काश, जुबैर उसे छोड़ कर न जाता.

‘सिर्फ 2 साल की ही तो बात है,’ कह कर जुबैर सुगरा को आंसू और प्यार के बीच झूलता छोड़ कर नौकरी करने खाड़ी देश चला गया था.

सुगरा की मायूसी देख उस की सास ने अपने शौहर से कहा था, ‘इन दिनों सुगरा घर से बाहर नहीं निकलती है. बाबा के मजार पर हाजिरी देने के लिए उसे देवर रमजान के साथ भेज दिया करें, ताकि उस का मन बहला रहे.’

वे हंसे और बोले, ‘जुबैर के गम में परेशान हो रही होगी. भेज दिया करो. जमाना बदल रहा है. आजकल के बच्चे घर में कैद हो कर नहीं रहना चाहते,’ अपनी बात रखते हुए सुगरा के ससुर मुर्शिद मियां ने इजाजत दे दी थी.

सुगरा मजार आने लगी थी. उस की खुशी के लिए देवर रमजान उस से हंसताबोलता, मजाक करता था, ताकि वह जुबैर की याद भुला सके.

जुबैर को गए 2 महीने हो गए थे लेकिन सासससुर की खुली छूट के बाद भी सुगरा की जिंदगी में कोई खास बदलाव नहीं आया था.

इसी बीच सुगरा के अब्बू आए और उसे कुछ दिनों के लिए घर ले गए. सुगरा ने अम्मी से आगे पढ़ने की बात कही, ताकि उस का मन लगा रहे और वह तालीम भी हासिल कर सके.

मायके में सुगरा के मामा के लड़के को तालीम देने के लिए बुलाया गया. अब सुगरा घर पर ही पढ़ने लगी थी.

एक दिन मजार पर हाफिज ने सुगरा की खूबसूरती की तारीफ क्या कर दी, उस के दिल में हाफिज के लिए मुहब्बत पैदा हो गई.

शादीशुदा सुगरा जवानी का सुख भोग चुकी थी. वह खुद पर काबू नहीं रख पाई और हाफिज की तरफ झुकने लगी.

‘कल मजार पर मिलते हैं…’ आजमाने के तौर पर हाफिज ने कहा था, ‘शाम 7 बजे.’

यह सुन कर सुगरा शरमा गई.

‘ठीक है,’ सुगरा ने कहा था.

ठीक 7 बजे सुगरा मजार पर पहुंच गई. दुआ मांगने के बाद वह हाफिज के साथ गलियारे में बैठ कर बातें करने लगी.

हाफिज ने सुगरा को बताया कि मजार पर दुआ मांगने से दिल को सुकून मिलता है, मनचाही मुराद मिलती है.

अब वे दोनों रोजाना शाम को मजार पर मिलने लगे थे. उन के बीच के फासले कम होने लगे थे.

तकरीबन 4 महीने का समय बीत गया. एक दिन ससुराल से देवर आया और सुगरा की मां को अपनी अम्मी की तबीयत खराब होने की बात कह कर सुगरा को अपने साथ ले गया.

ससुराल में सुगरा जुबैर की याद में डूबी रहने के बजाय हाफिज की दीवानी हो गई थी. वह उस से मिलने को बेकरार रहने लगी थी.

धीरेधीरे सुगरा की सास ठीक हो गईं. सुगरा अब शहर के मजार पर जा कर हाफिज से मिलने की दुआ मांगती थी.

समय की चाल फिर बदली.

‘मैं कालेज में एक पीरियड में हाजिरी लगा कर आता हूं, तब तक तुम मजार पर रुकना,’ कह कर सुगरा को छोड़ उस का देवर कालेज चला गया.

इसी बीच सुगरा ने फोन पर हाफिज को मजार पर बुलाया. उन की मुलाकात दोबारा शुरू हो गई.

देवर के जाने के बाद मजार के नीचे पहाड़ी पर सुगरा अपनी जवानी की प्यास बुझाती और लौट कर मजार से दूर जा कर बैठ जाती. ससुराल में रह कर हाफिज से अपनी जवानी लुटाती सुगरा की इस हरकत से कोई वाकिफ नहीं था.

शहर की मसजिद में हाफिज को बच्चों को तालीम देने की नौकरी मिल जाने से अब सुगरा और उस के बीच की दूरियां मिट गईं. सुगरा को भी सासससुर से सिलाई सैंटर जा कर सिलाई सीखने की इजाजत मिलने की खुशी थी.

जुबैर को खाड़ी देश गए सालभर से ऊपर हो गया था.

‘तकरीबन 4-5 महीने की बात है,’ उस की अम्मी ने सुगरा से कहा था.

‘हां अम्मी, तब तक वे आ जाएंगे,’ सुगरा बोली थी.

पर सुगरा को अब जुबैर की नहीं हाफिज की जरूरत थी. सुगरा और हाफिज के बीच अब कोई दीवार नहीं थी. हाफिज की मसजिद वाली कोठी में वे बेफिक्री से मिलते थे.

सुगरा भी दिल खोल कर हाफिज के साथ रंगरलियां मनाने लगी थी और नतीजा…

सुगरा की तबीयत अचानक खराब होने पर उस की सास उसे अस्पताल ले कर गईं.

डाक्टर ने बताया, ‘आप की बहू मां बनने वाली है.’

घर लौट कर सास मायूसी के साए में डूब गईं. सोचा कि जब जुबैर डेढ़ साल से सुगरा से नहीं मिला तो फिर बहू के पैर भारी कैसे हो गए?

सुगरा ने जुबैर को फोन पर पूरी बात बताई.

जुबैर ने कहा, ‘दुआ मांगो सब ठीक हो जाएगा.’

जुबैर समझ गया था कि मामला क्या है, पर वह यह भी जानता था कि हल्ला मचाने पर वही बदनाम होगा. उसे अभी कई साल खाड़ी देश में काम करना था. एक बच्चा उस के नाम से रहेगा तो उसे ही अब्बा कहेगा न.

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