Download App

दुआ मांगो सब ठीक हो जाएगा

वह पेट से थी. कोख में किस का बच्चा पलबढ़ रहा था, ससुराल वाले समझ नहीं पा रहे थे. सब अंदर ही अंदर परेशान हो रहे थे.

पिछले 2 साल से उन का बड़ा बेटा जुबैर अपने बूढ़े मांबाप को 2 कुंआरे भाइयों के हवाले कर अपनी बीवी सुगरा को छोड़ कर खाड़ी देश कमाने गया था. शर्त के मुताबिक उसे लगातार 2 साल नौकरी करनी थी, इसलिए घर आने का सवाल ही नहीं उठता.

इसी बीच जुबैर की बीवी सुगरा कभी मायके तो कभी ससुराल में रह कर समय काट रही थी. 2 साल बाद उस के शौहर का भारत आनाजाना होता रहेगा, यही बात सोच कर वह खुश थी.

सुगरा जब भी मायके आती तो हर जुमेरात शहर के मजार जाती. उस मजार का नाम दूरदूर तक था. कई बार तो वह वहां अकेली आतीजाती थी.

एक शहर से दूसरे शहर में ब्याही गई सुगरा ज्यादा पढ़ीलिखी नहीं थी. उस ने शहर के एक मदरसे में तालीम पाई थी. सिलाईकढ़ाई और पढ़ाई सीखतेसीखते मदरसे के हाफिज से उस की जानपहचान हो गई थी. वह हाफिज से हंसतीबोलती, पर प्यारमुहब्बत से अनजान थी.

मदरसे में पढ़तेपढ़ते सुगरा के अम्मीअब्बू ने रिश्तेदारी में अच्छा रिश्ता पा कर उस की शादी करने की सोची.

‘सुनोजी, रिश्तेदारी में शादी करने से आपस में बुराई होती है. हालांकि वह हमारी खाला का बेटा है. रोजगार की तलाश में है. जल्द लग नौकरी जाएगी,  पर…’ सुगरा की मां ने कहा था.

‘पर क्या?’ सुगरा के अब्बू ने पूछा था.

‘कल को कोई मनमुटाव हो गया या लड़के को लड़की पसंद न आई तो…’ सुगरा की अम्मी बोली थीं.

‘सुना है कि लड़का खाड़ी देश में कमाने जा रहा है. नौकरी वाले लड़के मिलते ही कहां हैं,’ सुगरा के अब्बू ने कहा था.

दोनों परिवारों में बातचीत हुई और उन का निकाह हो गया. पर मदरसे के हाफिज को सुगरा अब भी नहीं भुला पाई थी.

आज मुर्शिद मियां का परिवार जश्न मना रहा था. एक तो उन के बेटे जुबैर की नौकरी खाड़ी देश में लग गई थी, दूसरी उन के घर खूबसूरत सी बहू आ गई.

‘सुगरा, तुम जन्नत की परी जैसी हो. तुम्हारे आने से हमारा घर नूर से जगमगा गया,’ कह कर जुबैर ने सुगरा को अपने सीने से लगा लिया था.

उन दोनों के बीच मुहब्बत की खुशियों ने डेरा जमा लिया था. पूरा परिवार खुश था.

एक महीने का समय कब बीत गया, पता ही नहीं चला. जुबैर खाड़ी देश जाने की तैयारी करने लगा. सुगरा को उदासी ने घेर लिया था. उस के दिल से आह निकलती कि काश, जुबैर उसे छोड़ कर न जाता.

‘सिर्फ 2 साल की ही तो बात है,’ कह कर जुबैर सुगरा को आंसू और प्यार के बीच झूलता छोड़ कर नौकरी करने खाड़ी देश चला गया था.

सुगरा की मायूसी देख उस की सास ने अपने शौहर से कहा था, ‘इन दिनों सुगरा घर से बाहर नहीं निकलती है. बाबा के मजार पर हाजिरी देने के लिए उसे देवर रमजान के साथ भेज दिया करें, ताकि उस का मन बहला रहे.’

वे हंसे और बोले, ‘जुबैर के गम में परेशान हो रही होगी. भेज दिया करो. जमाना बदल रहा है. आजकल के बच्चे घर में कैद हो कर नहीं रहना चाहते,’ अपनी बात रखते हुए सुगरा के ससुर मुर्शिद मियां ने इजाजत दे दी थी.

सुगरा मजार आने लगी थी. उस की खुशी के लिए देवर रमजान उस से हंसताबोलता, मजाक करता था, ताकि वह जुबैर की याद भुला सके.

जुबैर को गए 2 महीने हो गए थे लेकिन सासससुर की खुली छूट के बाद भी सुगरा की जिंदगी में कोई खास बदलाव नहीं आया था.

इसी बीच सुगरा के अब्बू आए और उसे कुछ दिनों के लिए घर ले गए. सुगरा ने अम्मी से आगे पढ़ने की बात कही, ताकि उस का मन लगा रहे और वह तालीम भी हासिल कर सके.

मायके में सुगरा के मामा के लड़के को तालीम देने के लिए बुलाया गया. अब सुगरा घर पर ही पढ़ने लगी थी.

एक दिन मजार पर हाफिज ने सुगरा की खूबसूरती की तारीफ क्या कर दी, उस के दिल में हाफिज के लिए मुहब्बत पैदा हो गई.

शादीशुदा सुगरा जवानी का सुख भोग चुकी थी. वह खुद पर काबू नहीं रख पाई और हाफिज की तरफ झुकने लगी.

‘कल मजार पर मिलते हैं…’ आजमाने के तौर पर हाफिज ने कहा था, ‘शाम 7 बजे.’

यह सुन कर सुगरा शरमा गई.

‘ठीक है,’ सुगरा ने कहा था.

ठीक 7 बजे सुगरा मजार पर पहुंच गई. दुआ मांगने के बाद वह हाफिज के साथ गलियारे में बैठ कर बातें करने लगी.

हाफिज ने सुगरा को बताया कि मजार पर दुआ मांगने से दिल को सुकून मिलता है, मनचाही मुराद मिलती है.

अब वे दोनों रोजाना शाम को मजार पर मिलने लगे थे. उन के बीच के फासले कम होने लगे थे.

तकरीबन 4 महीने का समय बीत गया. एक दिन ससुराल से देवर आया और सुगरा की मां को अपनी अम्मी की तबीयत खराब होने की बात कह कर सुगरा को अपने साथ ले गया.

ससुराल में सुगरा जुबैर की याद में डूबी रहने के बजाय हाफिज की दीवानी हो गई थी. वह उस से मिलने को बेकरार रहने लगी थी.

धीरेधीरे सुगरा की सास ठीक हो गईं. सुगरा अब शहर के मजार पर जा कर हाफिज से मिलने की दुआ मांगती थी.

समय की चाल फिर बदली.

‘मैं कालेज में एक पीरियड में हाजिरी लगा कर आता हूं, तब तक तुम मजार पर रुकना,’ कह कर सुगरा को छोड़ उस का देवर कालेज चला गया.

इसी बीच सुगरा ने फोन पर हाफिज को मजार पर बुलाया. उन की मुलाकात दोबारा शुरू हो गई.

देवर के जाने के बाद मजार के नीचे पहाड़ी पर सुगरा अपनी जवानी की प्यास बुझाती और लौट कर मजार से दूर जा कर बैठ जाती. ससुराल में रह कर हाफिज से अपनी जवानी लुटाती सुगरा की इस हरकत से कोई वाकिफ नहीं था.

शहर की मसजिद में हाफिज को बच्चों को तालीम देने की नौकरी मिल जाने से अब सुगरा और उस के बीच की दूरियां मिट गईं. सुगरा को भी सासससुर से सिलाई सैंटर जा कर सिलाई सीखने की इजाजत मिलने की खुशी थी.

जुबैर को खाड़ी देश गए सालभर से ऊपर हो गया था.

‘तकरीबन 4-5 महीने की बात है,’ उस की अम्मी ने सुगरा से कहा था.

‘हां अम्मी, तब तक वे आ जाएंगे,’ सुगरा बोली थी.

पर सुगरा को अब जुबैर की नहीं हाफिज की जरूरत थी. सुगरा और हाफिज के बीच अब कोई दीवार नहीं थी. हाफिज की मसजिद वाली कोठी में वे बेफिक्री से मिलते थे.

सुगरा भी दिल खोल कर हाफिज के साथ रंगरलियां मनाने लगी थी और नतीजा…

सुगरा की तबीयत अचानक खराब होने पर उस की सास उसे अस्पताल ले कर गईं.

डाक्टर ने बताया, ‘आप की बहू मां बनने वाली है.’

घर लौट कर सास मायूसी के साए में डूब गईं. सोचा कि जब जुबैर डेढ़ साल से सुगरा से नहीं मिला तो फिर बहू के पैर भारी कैसे हो गए?

सुगरा ने जुबैर को फोन पर पूरी बात बताई.

जुबैर ने कहा, ‘दुआ मांगो सब ठीक हो जाएगा.’

जुबैर समझ गया था कि मामला क्या है, पर वह यह भी जानता था कि हल्ला मचाने पर वही बदनाम होगा. उसे अभी कई साल खाड़ी देश में काम करना था. एक बच्चा उस के नाम से रहेगा तो उसे ही अब्बा कहेगा न.

गली आगे मुड़ती है : क्या विवाह के प्रति उन का नजरिया बदल सका

रिश्ते बिना बंधन के मजबूत नहीं बनते. यह बात रोली, नयना और संजना शायद समझ नहीं पाई थी. शादी को मात्र एक बोझ, एक जिम्मेदारी मान कर तीनों असंतुष्ट थीं. क्या स्थितियों के आगे विवाह के प्रति उन का यह नजरिया बदल सका?

‘‘पि  छले एक हफ्ते से बहुत थक गई हूं,’’ संजना ने कौफी का आर्डर देते हुए रोली से कहा, ‘‘इतना काम…कभीकभी दिल करता है कि नौकरी छोड़ कर घर बैठ जाऊं.’’

‘‘हां यार, मेरे घर वाले भी शादी करने के लिए जोर डाल रहे हैं,’’ रोली बोली, ‘‘लेकिन नौकरी की व्यस्तता में कुछ सोच नहीं पा रही हूं…नयना का ठीक है. शादी का झंझट ही नहीं पाला, साथ रहो, साथ रहने का मजा लो और शादी के बाद के झंझट से मुक्त रहो.’’

‘‘मुझे तो लिव इन रिलेशन शादी से अधिक भाया है,’’ नयना ने कहा, ‘‘शादी करो, बच्चे पैदा करो, बच्चे पालो और नौकरी को हाशिए पर रख दो. अरे, इतनी मेहनत कर के इंजीनियरिंग की है क्या सिर्फ घर चलाने और बच्चे पालने के लिए?’’

‘‘कैसा चल रहा है तेरा पवन के साथ?’’ रोली ने पूछा.

‘‘बहुत बढि़या, जरूरत पर एक दूसरे का साथ भी है लेकिन बंधन कोई नहीं. मैं तो कहती हूं, तू भी एक अच्छा सा पार्टनर ढूंढ़ ले,’’ नयना बोली.

‘‘कौन कहता है कि शादी बंधन है,’’ संजना कौफी के कप में चम्मच चलाती हुई बोली, ‘‘बस, कामयाब औरत को समय के अनुसार सही साथी तलाश करने की जरूरत है.’’

‘‘हां, जैसे तू ने तलाश किया,’’ नयना खिलखिलाते हुए बोली, ‘‘आई.आई.टी. इंजीनियर और आई.आई.एम. लखनऊ से एम.बी.ए. हो कर एक लेक्चरर से शादी कर ली, इतनी कामयाब बीवी को वह कितने दिन पचा पाएगा.’’

जवाब में संजना मुसकराने लगी, ‘‘क्यों नहीं पचा पाएगा. जब एक पत्नी अपने से कामयाब पति को पचा सकती है तो एक पति अपने से अधिक कामयाब पत्नी को क्यों नहीं पचा सकता है. आज के समय की यही जरूरत है,’’ कह कर कौफी का प्याला मेज पर रख कर संजना उठ खड़ी हुई. साथ ही रोली और नयना भी खिलखिलाते हुए उठीं और अपनी- अपनी राह चल पड़ीं.

तीनों सहेलियां बहुराष्ट्रीय कंपनियों में बड़ेबड़े ओहदों पर थीं. फुरसत के समय तीनों एकदूसरे से मिलती रहती थीं. तीनों सहेलियों की उम्र 32 पार कर चुकी थी. रोली अभी तक अविवाहित थी. नयना एक युवक पवन के साथ लिव इन रिलेशन व्यतीत कर रही थी और संजना ने एक लेक्चरर से 3 साल पहले विवाह किया था. उस का साल भर का एक बेटा भी था. वैसे तो तीनों सहेलियां अपनीअपनी वर्तमान स्थितियों से संतुष्ट थीं लेकिन सबकुछ है पर कुछ कमी सी है की तर्ज पर हर एक को कुछ न कुछ खटकता रहता था.

रोली जब घर पहुंची तो 9 बज रहे थे. मां खाने की मेज पर बैठी उस का इंतजार कर रही थीं. उसे आया देख कर मां बोलीं, ‘‘बेटी, आज बहुत देर कर दी, आ जा, जल्दी से खाना खा ले.’’

9 बजना बड़े शहरों में कोई बहुत अधिक समय नहीं था, पर किसी ने भी उस का खाने के लिए इंतजार करना ठीक नहीं समझा. भाई अगर देर से आएं तो उन के लिए सारा परिवार ठहरता है. आखिर, वह अपनी सारी तनख्वाह इसी घर में तो खर्च करती है.

मां की तरफ बिना देखे रोली अंदर चली गई. बाथरूम से फ्रेश हो कर निकली तो मां प्लेट में खाना डाल रही थीं. उस ने किसी तरह थोड़ा खाना खाया. इस दौरान मां की बातों का वह हां, ना में जवाब देती रही और फिर अपने कमरे में बत्ती बुझा कर लेट गई. दिन भर के काम से शरीर क्लांत था लेकिन हृदय के अंदर समुद्री तूफान था. लंबेचौड़े पलंग ने जैसे उस का अस्तित्व शून्य बना दिया था.

रिश्ते तो कई आते हैं पर तय हो ही नहीं पाते क्योंकि या तो उसे अपनी वर्तमान नौकरी छोड़नी पड़ती या फिर लड़के का रुतबा उस के बराबर का नहीं होता और दोनों ही स्थितियां रोली को स्वीकार नहीं थीं. इसी कारण शादी टलती जा रही थी. वह हमेशा अनिर्णय की स्थिति में रहती थी. उस के संस्कार उसे नयना जैसा जीवन जीने की प्रेरणा नहीं देते थे और उस का रुतबा व स्वाभिमान उसे अपने से कम योग्य लड़के से शादी करने से रोकते थे.

नयना अपने फ्लैट पर पहुंची तो फ्लैट में अंधेरा था. पर्स से चाबी निकाल कर दरवाजा खोला और अंदर आ गई. ‘पवन कहां होगा’ यह सोच कर उस ने पवन के मोबाइल पर फोन लगाया और बोली, ‘‘पवन, कहां हो तुम?’’

‘‘नयना, मैं आज कुछ दोस्तों के साथ एक फार्म हाउस पर हूं. सौरी डार्लिंग, मैं आज रात वापस नहीं आ पाऊंगा. कल रविवार है, कल मिलते हैं,’’ कह कर उस ने फोन रख दिया.

पवन साथ हो या न हो, एक असुरक्षा का भाव जाने क्यों हमेशा उस के जेहन में तैरता रहता है. यों उन का लिव इन रिलेशन अच्छा चल रहा था फिर भी वह अपनेआप को कुछ लुटा हुआ, ठगा हुआ सा महसूस करती थी. विवाह की अहमियत दिल में सिर उठा ही लेती. वैवाहिक संबंधों पर पारिवारिक, सामाजिक व बच्चों का दबाव होता है इसलिए निभाने ही पड़ते हैं लेकिन उन के संबंधों की बुनियाद खोखली है, कभी भी टूट सकते हैं…उस के बाद…यह सोचने से भी नयना घबराती थी.

नयना ने 2 टोस्ट पर मक्खन लगाया, थोड़ा दूध पिया और कपड़े बदल कर बिस्तर पर निढाल सी पड़ गई. पवन लिव इन रिलेशन के लिए तो तैयार है पर विवाह के लिए नहीं. कहता है कि अभी उस ने विवाह के बारे में सोचा नहीं है. सच तो यह है कि पवन यदि विवाह के लिए कहे भी तो शायद वह तैयार न हो पाए. विवाह के बाद की जिम्मेदारियां, बच्चे, घरगृहस्थी, वह कैसे निभा पाएगी. लेकिन जब अपने दिल से पूछती है तो एहसास होता है कि विवाह की अहमियत वह समझती है.

स्थायी संबंध, भावनात्मक और शारीरिक सुरक्षा विवाह से ही मिलती है. लाख उस के पवन के साथ मधुर संबंध हैं लेकिन उसे वह अधिकार तो नहीं जो एक पत्नी का अपने पति पर होता है. यह सबकुछ सोचतेसोचते नयना गुदगुदे तकिए में मुंह गड़ा कर सोने का असफल प्रयास करने लगी.

संजना घर पहुंची तो नितिन बेटे को कंधे से चिपकाए लौन में टहल रहा था. उसे अंदर आते देख कर उस की तरफ चला आया और बोला, ‘‘बहुत देर हो गई.’’

‘‘हां, नयना और रोली के साथ कौफी पीने रुक गई थी.’’

‘‘तो एक फोन तो कर देतीं,’’ नितिन नाराजगी से बोला.

दोनों अंदर आ गए. नितिन बेटे को बिस्तर पर लिटा कर थपकियां देने लगा. वह बाथरूम में चली गई. नहाधो कर निकली तो मेज पर खाना लगा हुआ था.

‘‘चलो, खाना खा लो,’’ संजना बोली तो नितिन मेज पर आ कर बैठ गया.

डोंगे का ढक्कन हटाती हुई संजना बोली, ‘‘कुछ भी कहो, खाना महाराजिन बहुत अच्छा बनाती है.’’

नितिन चुपचाप खाना खाता रहा. संजना उस की नाराजगी समझ रही थी. आज शनिवार की शाम नितिन का आउटिंग का प्रोग्राम रहा होगा, जो उस की वजह से खराब हो गया. एक बार मन किया कि मानमनुहार करे लेकिन वह इतनी थकी हुई थी कि नितिन से उलझने का उस का मन नहीं हुआ.

खाना खत्म कर के उस ने बचा हुआ खाना फ्रिज में रखा और बिस्तर पर आ कर लेट गई. नितिन सो गया था. आंखों को कोहनी से ढके संजना का मन कर रहा था कि वह नितिन को मना ले, लेकिन पता नहीं कौन सी दीवार थी जो उसे उस के साथ सहज होने से रोकती थी.

वैसे नितिन उस का स्वयं का चुनाव था. जब उस के लिए रिश्ते आ रहे थे उस समय उस की बूआ ने अपने रिश्ते के एक लेक्चरर लड़के का रिश्ता उस के लिए सुझाया था. घर में सभी खिलखिला कर हंस पड़े थे. कहां संजना बहुराष्ट्रीय कंपनी में प्रबंधक और कहां लेक्चरर.

तब उस की छोटी बहन मजाक में बोली थी, ‘वैसे दीदी, एक लेक्चरर से आप का आइडियल मैच रहेगा. आखिर पतिपत्नी में से किसी एक को तो घर संभालने की फुरसत होनी ही चाहिए. वरना घर कैसे चलेगा. आप पति बन कर राज करना वह पत्नी बन कर घर संभालेगा.’ और बहन की मजाक में कही हुई बात संजना के जेहन में आ कर अटक गई थी.

पहले तो उस के जैसी योग्य लड़की के लिए रिश्ते मिलने ही मुश्किल हो रहे थे. एक तो इस लड़के की नौकरी स्थानीय थी और दूसरे, आने वाले समय में बच्चे होंगे तो उन की देखभाल करने का उस के पास पर्याप्त समय होगा तो वह अपनी नौकरी पर पूरा ध्यान दे सकती है. यह सोच कर उस का निर्णय पुख्ता हो गया. उस के इस क्रांतिकारी निर्णय में पिता ने उस का साथ दिया था. उन की नजर में आज के समय में पति या पत्नी में से किसी का भी कम या ज्यादा योग्य होना कोई माने नहीं रखता है. और इस तरह से नितिन से उस का विवाह हो गया था.

शुरुआत में तो सब ठीक चला लेकिन धीरेधीरे उन के रिश्तों में ख्ंिचाव आने लगा. उस की तनखाह, ओहदा, उस का दायरा, उस की व्यस्तताएं सभी कुछ नितिन के मुकाबले ऊंचा व अलग था. और यह बात संजना के हावभाव से जाहिर हो जाती थी. नितिन उस के सामने खुद को बौना महसूस करता था. संजना सोच रही थी कि काश, उस ने विवाह करने में जल्दबाजी न की होती तो आज उस की यह स्थिति नहीं होती. उस से तो अच्छा रोली और नयना का जीवन है जो खुश तो हैं. नितिन उस की परेशानियां समझ ही नहीं पाता. वह चाहता है कि पत्नी की तरह मैं उस के अहं को संतुष्ट करूं. यही सोचतेसोचते संजना सो गई.

दूसरे दिन रविवार था. वह देर से सो कर उठी. जब वह उठी तो महाराजिन, धोबन, महरी सब काम कर के जा चुके थे और आया मोनू की मालिश कर रही थी. वह बाहर निकली, किचन में जा कर चाय बनाई. एक कप नितिन को दी और खुद भी बैठ कर चाय पीते हुए अखबार पढ़ने लगी.

तभी उस का फोन बज उठा. उस ने फोन उठाया, नयना थी, ‘‘हैलो नयना…’’ संजना चाय पीते हुए नयना से बात करने लगी.

‘‘संजना, क्या तुम थोड़ी देर के लिए मेरे घर आ सकती हो?’’ नयना की आवाज उदासी में डूबी हुई थी.

‘‘क्यों, क्या हो गया, नयना?’’ संजना चिंतित स्वर में बोली.

‘‘बस, घर पर अकेली हूं, रात भर नींद नहीं आई, बेचैनी सी हो रही है.’’

‘‘मैं अभी आती हूं,’’ कह कर संजना उठ खड़ी हुई. नितिन सबकुछ सुन रहा था. उस का तना हुआ चेहरा और भी तन गया.

वह तैयार हुई और नितिन से ‘अभी आती हूं’ कह कर बाहर निकल गई. नयना के फ्लैट में संजना पहुंची तो वह उस का ही इंतजार कर रही थी. बाहर से ही अस्तव्यस्त घर के दर्शन हो गए. वह अंदर बेडरूम में गई तो देखा नयना सिर पर कपड़ा बांधे बिस्तर पर लेटी हुई थी. कमरे में कुरसियों पर हफ्ते भर के उतारे हुए मैले कपड़ों का ढेर पड़ा हुआ था. कहने को पवन और नयना दोनों ऊंचे ओहदों पर कार्यरत थे पर उन के घर को देख कर जरा भी नहीं लगता था कि यह 2 समान विचारों वाले इनसानों का घर है.

‘‘क्या हुआ, नयना,’’ संजना उस के सिर पर हाथ रखती हुई बोली, ‘‘पवन कहां है?’’

‘‘वह अपने दोस्तों के साथ शहर से दूर किसी फार्म हाउस पर गया हुआ है और मेरी तबीयत रात से ही खराब है. दिल बारबार बेचैन हो उठता है, सिर में तेज दर्द है,’’ इतना बताते हुए नयना की आवाज भर्रा गई.

संजना के दिल में कुछ कसक सा गया. यहां नयना इसलिए दुखी है कि पवन कल से लौटा नहीं और उस के पास नितिन के लिए समय नहीं है.

‘‘तो इस में घबराने की क्या बात है. रात तक पवन लौट आएगा,’’ संजना बोली, ‘‘चल, तुझे डाक्टर को दिखा लाती हूं. उस के  बाद मेरे घर चलना.’’

‘‘बात रात तक आने की नहीं है, संजना,’’ नयना बोली, ‘‘पवन का व्यवहार कुछ बदल रहा है. वह अकसर ही मुझे बिना बताए अपने दोस्तों के साथ चला जाता है. कौन जाने उन दोस्तों में कोई लड़की हो?’’ बोलते- बोलते नयना की रुलाई फूट पड़ी.

‘‘लेकिन तू ने कभी कहा नहीं…’’

‘‘क्या कहती…’’ नयना थोड़ी देर चुप रही, ‘‘वह मेरा पति तो नहीं है जिस पर कोई दबाव डाला जाए. वह अपने फैसले के लिए आजाद है, संजना,’’ और संजना की बांह पकड़ कर नयना बोली, ‘‘तू ने अपने जीवन में सब से सही निर्णय लिया है. तेरे पास सबकुछ है. सुकून भरा घर, बेटा और तुझे मानसम्मान देने वाला पति पर मेरे और पवन के रिश्तों का क्या है, कौन सा आधार है जो वह मुझ से बंधा रहे? आखिर इन रिश्तों का और इस जीवन का क्या भविष्य है? एक उम्र निकल जाएगी तो मैं किस के सहारे जीऊंगी?

‘‘जीवन सिर्फ जवानी की सीधी सड़क ही नहीं है, संजना. इस सीधी, सपाट सड़क के बाद एक संकरी गली भी आती है…अधेड़ावस्था की…और जब यह गली मुड़ती है न…तो एक भयानक खाई आती है…बुढ़ापे की…और जीवन का वही सब से भयानक मोड़ है, तब मैं क्या करूंगी…’’ कह कर नयना रोने लगी.

‘‘नितिन तुझ से कुछ कम योग्य सही लेकिन तेरे जीवन की निश्ंिचतता उसी की वजह से है. उसे खोने का तुझे डर नहीं, घर की तुझे चिंता नहीं…बेटे के लालनपालन में तुझे कोई परेशानी नहीं…’’ रोतेरोते नयना बोली, ‘‘मेरे पास क्या है? पवन का मन होगा तब तक वह मेरे साथ रहेगा, फिर उस के बाद…’’

संजना हतप्रभ सी नयना को देखती रह गई. उस की आंखों में, उस के चेहरे पर असुरक्षा के भाव थे, भविष्य की चिंता थी. लेकिन क्यों? नयना खुद इतने ऊंचे पद पर कार्यरत थी, इस आजाद खयाल जीवन की हिमायती नयना के मन में भी पवन के खो जाने का डर है, जीवन में अकेले रह जाने का डर है. पवन के बाद दूसरा साथी बनाएगी फिर तीसरा…फिर चौथा…और उस के बाद जैसे एक विराट प्रश्नचिह्न संजना के सामने आ कर टंग गया था. वह तो अपनी नौकरी के अलावा कभी किसी बारे में सोचती ही नहीं. बस, नितिन का अपने से कम योग्य होना ही उसे खलता रहता है और इस बात से वह दुखी होती रहती है.

‘‘पवन कहीं नहीं जाएगा, नयना, आ जाएगा रात तक. तुम्हारा भ्रम है यह…’’ वह नयना को दिलासा देती हुई बोली. और दिन भर के लिए उस के पास रुक गई. शाम को जब वह घर पहुंची तो घर पर रोली को अपना इंतजार करते पाया.

‘‘अरे, रोली इस समय तुम कैसे आ गईं.’’

‘‘तुझ से बात करने का मन हो रहा था. सो, आ गई. नितिनजी ने बताया कि तू नयना के घर गई है, आने वाली होगी. मुझे इंतजार करने को कह कर वह कुछ सामान लेने चले गए.’’

एक पल चुप रहने के बाद रोली बोली, ‘‘नितिन बता रहे थे कि नयना की तबीयत कुछ ठीक नहीं है, क्या हुआ है उसे?’’

‘‘कुछ नहीं, वह अपने और पवन के रिश्तों को ले कर कुछ अपसेट सी है,’’ संजना सोफे पर बैठती हुई बोली, ‘‘नयना को पवन पर भरोसा नहीं रहा. उसे लग रहा है कि उस की जिंदगी में कोई और है तभी वह उस से दूर जा रहा है.’’

‘‘लेकिन नयना उस से पूछती क्यों नहीं?’’ रोली रोष में आ कर बोली.

‘‘किस बिना पर, रोली. आखिर लिव इन रिलेशन का यही तो मतलब है कि जब तक बनी तब तक साथ रहे वरना अलग होने में वैवाहिक रिश्तों जैसा कोई झंझट नहीं.’’

‘‘और तू सुना, कैसी है,’’ थोड़ी देर बाद संजना बोली.

‘‘बस, ऐसे ही, कल से बहुत परेशान सी थी. घर में रिश्ते की बात चल रही है. एक अच्छा रिश्ता आया है. सब बातें तो ठीक हैं पर लड़का मुंबई में कार्यरत है? मुझे नौकरी छोड़नी पड़ेगी. इसी बात पर घर में हंगामा मचा हुआ था. पापा चाहते थे कि मुझे चाहे नौकरी छोड़नी पड़े पर मैं उस रिश्ते के लिए हां कर दूं. इसी विवाद से परेशान हो कर मैं थोड़ी देर के लिए तेरे पास आ गई.’’

‘‘तो क्या सोचा है तू ने?’’ संजना बोली.

‘‘सोचा तो था कि मना कर दूंगी,’’ रोली खिसक कर संजना के पास बैठती हुई बोली, ‘‘लेकिन नयना के बारे में जानने के बाद अब सोचती हूं कि हां कर दूं. आज की पीढ़ी अपनी महत्त्वाकांक्षाओं के जाल में उलझी हुई विवाह और विवाह के बाद की जिम्मेदारियों से दूर भाग रही है लेकिन जैसेजैसे उम्र आगे बढ़ती है पीछे मुड़ कर देखने का मन करता है. अगर 10 साल बाद कोई समझौता करना है तो आज क्यों नहीं?’’ पल भर के लिए दोनों सहेलियां चुप हो गईं.

‘‘तू ने सही और समय से निर्णय लिया, संजना. सभी को कुछ न कुछ समझौता तो करना ही पड़ता है. मुझे अपनी नौकरी छोड़नी पड़ रही है और नयना को भविष्य की सुरक्षा, लेकिन तेरे पास सबकुछ है. नितिन तुझ से कुछ कम योग्य सही लेकिन अयोग्य तो नहीं है. पहले लड़कियां इतनी योग्य भी नहीं होती थीं तो उन्हें अपने से अधिक योग्य लड़के मिल जाते थे लेकिन अब जमाना बदल रहा है. लड़कियां इतनी तरक्की कर रही हैं कि यदि अपने से अधिक योग्य लड़के के इंतजार में बैठी रहेंगी तो या तो नौकरी ही कर पाएंगी या शादी ही.

‘‘ऐसे लड़के का चुनाव करना जिस के साथ घरेलू जीवन चल सके, बच्चों की परवरिश हो सके, बड़ेबुजुर्गों की देखभाल हो सके, अपने से लड़का कुछ कम योग्य भी हो तो इस में कुछ भी गलत नहीं है. समय के साथ यह बदलाव आना ही चाहिए. आखिर पहले पत्नी घर देखती थी आज ऊंचे ओहदों पर कार्य कर रही है तो पति के पास घर की देखभाल करने का समय हो तो इस में कुछ गलत है क्या?’’ यह कह कर रोली उठ खड़ी हुई.

संजना जब रोली को बाहर तक छोड़ कर अंदर आई तो ध्यान आया कि नितिन को बाजार गए हुए काफी देर हो गई और अभी तक वह आए नहीं. आज नितिन के लिए संजना के मन में अंदर से चिंता हो रही थी. तभी कौलबेल बज उठी, सामान से लदाफदा नितिन दरवाजे पर खड़ा था.

‘‘अरे, आप इतना सारा सामान ले आए,’’ संजना सामान के कुछ पैकेट उस के हाथ से पकड़ते हुए बोली, ‘‘बहुत देर हो गई, मैं इंतजार कर रही थी.’’

संजना के स्वर की कोमलता से नितिन चौंक गया. बिना कुछ बोले वह अपने हाथ का सामान किचन में रख कर बेडरूम में चला गया. संजना भी उस के पीछेपीछे आ गई.

‘‘नितिन,’’ पीछे से उस के गले में बांहें डालती हुई संजना बोली, ‘‘चलो, आज का डिनर बाहर करेंगे, फिर कोई फिल्म देखेंगे. आया को रोक लेते हैं. वह मुन्ने को देख लेगी.’’

उस के इस प्रस्ताव व हरकत से नितिन हैरत से पलट कर उस की ओर देखने लगा.

‘‘ऐसे क्या देख रहे हो?’’ संजना इठलाती हुई बोली, ‘‘हर समय गुस्से में रहते हो, यह नहीं की कभी बीवी को कहीं घुमा लाओ, फिल्म दिखा लाओ.’’

आम घरेलू औरतों की तरह संजना बोली तो उस की इस हरकत पर नितिन खिलखिला कर हंस पड़ा.

संजना उस के गले में बांहें डाल कर उस से लिपट गई, ‘‘मुझे माफ कर दो, नितिन.’’

‘‘संजना, इस में माफी की क्या बात है? मेरे लिए तुम, तुम्हारी योग्यता, तुम्हारी काम में व्यस्तता, तुम्हारा रुतबा सभी कुछ गर्व का विषय है लेकिन जब तुम मुझे ही अपनी जिंदगी से दरकिनार कर देती हो तो दुख होता है.’’

‘‘अब ऐसा नहीं होगा. मेरे लिए आप से अधिक महत्त्वपूर्ण जीवन में दूसरा कुछ भी नहीं है. आप में और मुझ में कोई फर्क नहीं, हमारा कुछ भी, चाहे वह नौकरी हो या समाज, जिंदगी भर नहीं रहेगा…लेकिन हम दोनों मरते दम तक साथ रहेंगे.’’

मानअभिमान की सारी दीवारें तोड़ कर संजना नितिन से लिपट गई. नितिन ने भी एक पति के आत्मविश्वास से संजना को अपनी बांहों में समेट लिया.

छोटीछोटी बातों प‍र पतिपत्‍नी का बड़ा झगड़ा

हाल के दिनों में शादी टूटने के मामले बहुत अधिक बढ़ बढ़ रहे हैं. वे पति-पत्नी जो हमेशा एक-दूसरे के साथ रहने की कसम खाते हैं, छोटी-छोटी वजहों से अपनी शादी को अलविदा कह रहे हैं.

शादी को सात जन्मों का बंधन माना जाता है. हिंदू धर्म की बात करें तो इस रिश्ते को सबसे पवित्र और अहम माना जाता है . हम सभी को पता है कि जब दो लोग शादी के रिश्ते में जुड़ते हैं तो कुछ चीजें मेल खाती है और कुछ नहीं. ऐसे में विचारों को लेकर थोड़ा मतभेद हो सकता है. लेकिन आजकल छोटी छोटी बातों पर विचार न मिलने से नौबत तलाक तक पहुंच रही है. हाल के दिनों में शादी टूटने के मामले बहुत अधिक बढ़ बढ़ रहे हैं. वे पति-पत्नी जो हमेशा एक-दूसरे के साथ रहने की कसम खाते हैं, छोटी-छोटी वजहों से अपनी शादी को अलविदा कह रहे हैं.आज स्थिति ऐसी हो गई है कि छोटी-छोटी लड़ाई होने पर उसे सुलझाने की जगह बहस की चिंगारी को हवा दी जाती है और फिर बात रिश्ता खत्म करने तक आ जाती है.

छोटी छोटी बातों पर रिश्ता पहुँच रहा है टूटने की कगार पर

आज जहां पसंद का खाना न खिलाने ले जाना , घूमने न ले जाने और शॉपिंग न करवाने जैसी छोटी-छोटी बातों पर लड़ाइयां शुरू हो जाती हैं, वहीं पहले के जमाने में ऐसा नहीं हुआ करता था पहले  रिश्ते  में धैर्य और एक-दूसरे के लिए प्यार हुआ करता था.  पहले लोग किसी भी छोटी बात पर नाराज होकर और मुंह फुलाकर नहीं बैठा करते थे, बल्कि ऐसी बातों को भूल रिश्ते को मजबूत बनाने का प्रयास करते थे लेकिन आज के लोगों में पेशेंस या एक दूसरे के साथ एडजस्ट करने के स्वभाव की बहुत कमी है.

शादी का रिश्ता प्यार ,अपनेपन और विश्वास का रिश्ता है लेकिन आज की मॉडर्न लाइफ में लोगों की लाइफस्टाइल और सोच बदल रही है अब जब तक दोनों एक दूसरे के मन मुताबिक चलते हैं तक तक उनका रिश्ता टिकता है जिस दिन दोनों में से कोई भी एक पार्टनर दूसरे की मर्जी के खिलाफ उस  से अलग जाता है सामने वाले को वह बर्दाश्त नहीं होता और रिश्ता टूटने की कगार पर पहुँच जाता है .

अपने रिश्ते को एक चांस जरूर दें

वर्तमान में कोई किसी के सामने झुकना पसंद नहीं करता है. रिश्तों में अब सहनशीलता खत्म होती  जा रही है. लोगों में अब रिश्ता तोड़ने से पहले अपने रिश्ते को एक चांस देने का सब्र तक नहीं बचा है.  लेकिन ये जल्दबाजी सही नहीं है. कोई भी दो इंसान एक जैसे नहीं हो सकते.  दोनों की आदतें, सोचने और जीने का तरीका अलग हो सकता है.  ऐसे में एक दूसरे में मीन मेख निकालने की बजाय एक दूसरे में खूबियां ढूंढना सही रास्ता है.  किसी को बदलने के बजाय उसे उसी रूप में स्वीकारना चाहिए जैसा वो है.  इससे रिश्ते में अपेक्षाएं कम होती हैं और साथ रहना आसान हो जाता है.

जरूरत से ज्यादा उम्मीदें न रखें

पति-पत्नी में अलगाव की सबसे बड़ी वजह एक दूसरे से जरूरत से ज्यादा उम्मीदें करना है.  दोनों ही जब खुद को सही और साथी को गलत साबित करने की होड़ में लग जाते हैं तो रिश्ते में खटास बढ़ने लगती है.  समझ नहीं आता लोग अन्य रिश्तों में तो आसानी से एडजस्टमेंट कर लेते हैं,लेकिन जब जीवनसाथी की बात आती है तो चाहते हैं कि सामने वाला खुद को हमारे लिए पूरी तरह बदल दे.  ये उम्मीदें पति और पत्नी दोनों की तरफ से हो सकती हैं. और जब उम्मीदें बढ़ जाती हैं कि उन्हें पूरा कर पाना संभव नहीं हो पाता, तो कपल का एक साथ रहना मुश्किल हो जाता है.

जल्दबाजी में फैसला न लें

पति हो या पत्नी, रिश्ता तोड़ने से पहले उन्हें एक बार इस बारे में जरूर सोचना चाहिए कि अगर वो कोशिश करते तो क्या अपने रिश्ते को बचा सकते थे? रिश्ता टूटने में उनका खुद का दोष कितना है.  पार्टनर को दोषी ठहराने से पहले अपने व्यवहार पर ध्यान दें.  कई बार जल्दबाजी में लिए गए फैसले से बाद में पछतावे के सिवाय कुछ हासिल नहीं होता.

शादी निभाना सीखें

शादी का रिश्ता कैसे निभाएं आज यह कोई नहीं सीखा रहा न लड़की के परिवार  वाले न लड़के के परिवार वाले न समाज ,न सोशल मीडिया !
हम हाथ पकड़ कर जैसे एबीसीडी अल्फाबेट सीखते हैं वैसे शादी निभाना क्यों नहीं सीख रहे ? अब लड़कियां गाड़ी चलाना ,अकेले ट्रेवल करना ,हायर एजुकेशन जैसी लर्निंग ले रही हैं लेकिन वैवाहिक जीवन कैसे चलाएं यह कहीं से नहीं सीख रहीं न उन्हें कोई सीखा रहा .
पहले यह जिम्मेदारी पत्रिकाएं निभाती थीं .अब शादी से पहले शादी को कैसे चलाएं यह सीखाने गाइड करने के लिए मैरिज काउंसलर भी हैं लेकिन शादी से पहले वे उनके पास भी नहीं जाते. शादी कैसे चलाएं यह शिक्षा दोनों पार्टनर को मिलनी चाहिए.  पति को भी सीखना चाहिए कि वह पत्नी की इज्जत करे ,उसकी इच्छा का सम्मान करना  सीखे . दोनों का रिश्ता बराबरी का है यह सीखे  . तीन चौथाई पुरुष सोचते हैं कि वह पत्नी को पीट सकते हैं उस पर हाथ उठा सकते हैं इस सोच को बदलने की जरूरत है .

पति पत्नी एक दूसरे को संभाल कर रखें

पति पत्नी दोनों को यह सीखने समझने की जरूरत है कि अगर उन्होंने शादी तोड़ी तो उन्हें बहुत कुछ भुगतना पड़ेगा . पहली बात तो यह है कि इस संबंध में कानूनी व्यवस्था बिल्कुल भी आसान नहीं है.  दूसरा ,अगर सालों बाद किसी तरह अलग हो भी गए तो दूसरा मिलने वाला कोई नहीं है इसलिए पति  पत्नी एक दूसरे को संभाल कर रखें . अदालतों में ही लड़ते लड़ते ज़िंदगी निकल जाए कहीं ऐसा ना हो..

मैं हूं डौन… कुख्यात गैंगस्टर लौरेंस बिश्नोई की कहानी

पहले जहां अपराधी किसी भी क्राइम या घटना को अंजाम देने के बाद छिपतेफिरते थे और चाहते थे कि उन के इस क्राइम के बारे में किसी को पता न चले, वहीं आज एक ऐसा दौर आ चुका है जहां अपराधी क्राइम करने के बाद खुद सोशल मीडिया पर उस क्राइम की जिम्मेदारी लेता है और सरेआम ऐलान करता है कि यह क्राइम हम ने किया है.

यहां बात चल रही है एक ऐसे कुख्यात गैंग्स्टर की जो पिछले कुछ समय से लगातार सुर्खियों में बना हुआ है और जिस ने सोशल मीडिया के जरीए अपनी ऐसी धाक जमा रखी है कि सरकार भी उस का कुछ नहीं कर पा रही.

सिद्धू मूसेवाला की हत्या

लौरेंस बिश्नोई (Lawrence Bishnoi) ने अपनी छवि किसी हीरो से कम नहीं बना रखी. यह तब चर्चा में आया जब 29 मई, 2022 को इस के गैंग के शूटरों ने मशहूर पंजाबी सिंगर सिद्धू मूसेवाला (Siddhu Moose wala) की सरेआल गोलियां मार कर हत्या कर दी थीं. इतना ही नहीं, बल्कि इस घटना को अंजाम देने के बाद लौरेंस की गैंग ने खुद सोशल मीडिया पर इस बात की जानकारी दी थी कि सिंगर सिद्धू मूसेवाला की हत्या उन्होंने ही की है.

खुद को भगत सिंह का फैन मानता है लौरेंस बिश्नोई

लौरेंस बिश्नोई खुद को भगत सिंह (Bhagat Singh) का सब से बड़ा फैन मानता है और अकसर उसे भगत सिंह की टीशर्ट पहने देखा गया है. लौरेंस बिश्नोई जिम का बहुत शौकीन है और जेल के अंदर रह कर भी वह खुद को बहुत फिट रखता है.

आमतौर पर लौरेंस बिश्नोई जेल के अंदर रहते हुए ही अपना गैंग चलाता है और इतना ही नहीं बल्कि हाल ही में इस ने जेल के अंदर से ही एक मीडिया चैनल को इंटरव्यू तक दिया था.

ऐसे में, जेल प्रशासन पर सब से बड़ा सवाल खड़ा होता है कि आखिर लौरेंस बिश्नोई जेल के अंदर बैठेबैठे सबकुछ कैसे कर लेता है और आखिरकार उस के पास अपने गैंग के लोगों से बात करने के लिए फोन कैसे आता है.

सलमान खान को सरेआम धमकी

लौरेंस बिश्नोई ने कुछ समय पहले सरेआम मीडिया से बात करते हुए बौलीवुड सुपरस्टार सलमान खान (Salman Khan) को धमकी दी थी कि वे उसे मारना चाहता है. दरअसल, बिश्नोई समाज में हिरण की पूजा की जाती है और हिरण को काफी सम्मान दिया जाता है और ऐसे में सलमान खान के खिलाफ हिरण का शिकार करने का आरोप भी है जिस के चलते लौरेंस बिश्नोई चाहता है कि सलमान खान उस के समाज से माफी मांगे वर्ना वह उसे भी मार डालेगा.

इस के बाद से ऐक्टर सलमान खान की सिक्योरिटी भी बढ़ा दी गई थी लेकिन फिर भी कुछ समय पहले सलमान खान को डराने के लिए लौरेंस बिश्नोई के कुछ लोगों ने सलमान के मुंबई स्थित घर के बाहर गोलियां भी चलाई थीं.

बाबा सिद्दिकी की हत्या के पीछे लौरेंस बिश्नोई

हाल ही में लौरेंस बिश्नोई के लोगों ने महाराष्ट्र के मशहूर पौलिटिशिन बाबा सिद्दिकी (Baba Siddique) की 12 अक्तूबर, 2024 को गोली मार कर हत्या कर दी और इस का खुलासा भी लौरेंस की गैंग ने खुद सोशल मीडिया पर किया.

बाबा सिद्दिकी के बौलीवुड के लोगों के साथ काफी अच्छे रिश्ते थे. इस घटना के बाद से सलमान खान की सिक्योरिटी को और भी ज्यादा बढ़ा दिया गया.

लौरेंस को जेल में नहीं है कोई भी कमी

लौरेंस बिश्नोई का कहना है कि वह या उन की गैंग में से कोई भी कभी पहल नहीं करते और अगर उन के या उन के किसी अपनों के साथ कुछ गलत होगा तो वे बदला जरूर लेंगे और लौरेंस यह बात सरेआल बोलता है. लौरेंस बिश्नोई को देख कर या उस की बातें सुन कर यह कहना काफी मुश्किल है कि उसे जेल में किसी बात की कोई दिक्कत आ रही है, बल्कि ऐसा लगता है कि जेल ही उस का घर बन चुका है और उसे जेल में हर वह सुविधा मिल रही है जो वह चाहता है, तो फिर इस का जिम्मेदार कौन है?

लौरेंस बिश्नोई को देख जेल प्रशासन और सरकार पर काफी सवाल खड़े हो रहे हैं कि आखिर एक गैंगस्टर की मनमानी कब तक ऐसे ही चलती रहेगी और क्या वह खुद को डौन मानने लगा है?

ईयरफोन का कितना यूज सही

अपने आसपास हम अकसर देखते हैं कि मेट्रो, बस, कैब में कुछ लोग खुद से ही बातें करते हुए चलते हैं. पहली नजर में तो देखने में लगता है कि यह व्यक्ति पागल है जो खुद से ही हंस रहा है लेकिन दूसरे ही पल समझ में आ जाता है कि वह खुद से नहीं बल्कि ईयरफोन लगा कर किसी से बात कर रहा है.

यह अपनेआप में बहुत फनी लगता है. उस व्यक्ति को यह पता भी नहीं होता कि बात करतेकरते उस की आवाज इतनी तेज हो गई है कि उस की प्राइवेसी की बातें उस के साथ गुजरने वाले हर व्यक्ति के कान में पड़ रही है और अनजान लोग मंदमंद मुसकराते हुए आंखों ही आंखों में मानो एकदूसरे से उस व्यक्ति की चुगलियां करते हुए निकल जाते हैं. उस पर कमाल यह कि ईयरफोन लगाए उस व्यक्ति को इस सब की कोई खबर ही नहीं होती कि वह अपने आसपास लोगों में हंसी का पात्र बन रहा होता है.

यह सोशल एटिकेट्स के भी खिलाफ है. अगर कोई बहुत जरुरी बात है और ईयरफोन का इस्तेमाल करना पड़ रहा है तब तो ठीक लेकिन बेवजह हर वक्त इन्हें कानों में ठूसे रखना, सोशली एम्बैरस्मेंट का कारण तो है ही साथ ही सेहत के लिहाज से भी ठीक नहीं है.

बौलीवुड की जानीमानी सिंगर अल्का याग्निक ने अभी हाल ही में सोशल मीडिया के जरिये जानकारी दी कि उन्हें अपने कानों से कुछ भी सुनाई नहीं दे रहा है. उन्होंने अपने सुनने की क्षमता खो दी है. अल्का ने अपने इंस्टाग्राम पोस्ट में लिखा, “मेरे सभी फैंस, दोस्त, फौलोअर्स और वेलविशर्स. कुछ हफ्ते पहले फ्लाइट से उतरने पर मुझे अचानक महसूस हुआ कि मैं सुन नहीं पा रही हूं.” अल्का ने आगे लिखा, “मैं अपने फैंस और यंग साथियों को बहुत लाउड म्यूजिक और हेडफोन के कान्टेक्ट में आने को ले कर वार्न करना चाहूंगीं. एक दिन, मैं अपनी प्रोफैशनल लाइफ की वजह से हैल्थ पर होने वाले नुकसान पर भी बात करूंगीं.”

ये एक अकेली घटना नहीं है बल्कि आएदिन ऐसी घटनाएं सामने आ रही हैं जिस में ईयरफोन के ज्यादा इस्तेमाल की वजह से लोग बहरे हो रहे हैं.

आइए जानें ईयरफोन का अधिक इस्तेमाल कैसे है घातक

आप घर में हैं डाइनिंग टेबल पर खाना खा रहे हैं और तेज आवाज में म्यूजिक सुन रहें हैं और वहां मौजूद बाकी लोग आप से बात करने की कोशिश कर रहें हैं पर आप को कुछ पता नहीं.

घर में 4 मेहमान आए हैं और आप ड्राइंग रूम में ईयरफोन लगा कर बैठे हैं तो फिर वहां बैठे ही क्यों हैं जब आप वहां होने वाली किसी भी कन्वर्सेशन का पार्ट ही नहीं हैं?

कोई आप से कुछ कह रहा है और आप सुन ही नहीं रहे और कई बार कहने पर ईयरफोन भी कुछ इस तरह बंद किया, मानो सामने वाले पर कोई अहसान कर दिया हो क्या यह सही है?

सोचिए पब्लिक प्लेस में किसी को आप की हेल्प की जरूरत है, जैसे कोई आप से रास्ता पूछ रहा है या फिर कुछ और कहना चाहता है लेकिन आप को कुछ सुनाई नहीं दे रहा?

अगर आप बहरे नहीं हो, तो हर वक्त ऐसी मशीन को कानों में क्यों लगाना जो सोशली आप को लोगों से दूर कर रही है? आप का लगातार इस तरह का व्यवहार आप को एंटी सोशल बना देगा और आप को पता भी नहीं चलेगा.

लोग आप से बात करने में हिचकिचाएंगे

कुछ लोगों की आदत होती है कि वे कुछ सुन रहे हों या न सुन रहे हों हर वक्त इसे कानो में लगाए रखते हैं. इस से सामने वाला बात करने से पहले 10 बार सोचता है कि यह बंदा, तो खुद में ही बिजी है इस से क्या बात करना. ऐसे में बहुत सी जरुरी बातों से आप अनजान रह सकते हैं. इस से धीरेधीरे लोग आप को पूछना और बातें शेयर करना कम कर देंगे और सोशल सर्कल लगभग न के बराबर हो जाएगा.

हेडफोन लगा कर किसी से बात करना अपमानजनक

हां, हेडफ़ोन लगा कर किसी से बात करना अपमानजनक हो सकता है. हेडफ़ोन लगा कर किसी से बात करने से, वह व्यक्ति आप को अनदेखा कर सकता है. लड़कियों को यह पसंद होता है कि लड़का पूरे अटेंशन से उन से बात करने का करे. अगर कोई लड़का हेडफोन हटाने के अनुरोध को नहीं मानता तो लड़कियां उस से विमुख हो सकती हैं. उन्हें लगता है कि व्यक्ति उन्हें इग्नोर कर रहा है जबकि सच तो यह है कि उस व्यक्ति को पता ही नहीं होता कि सामने वाला उस से क्या कह रहा है.

क्या आप यह बताना चाहते हैं कि आप को अकेले रहना पसंद है

लोगों को यह बताने का सब से आसान तरीका है कि आप अकेले रहना चाहते हैं. हेडफोन पहनने से या तो आप दूसरे लोगों को सुन नहीं पाएंगे, या वे मान लेंगे कि आप उन्हें नहीं सुन सकते. इस से नुकसान आप का ही है. वह एकदो बार तो आप से बात करना चाहेंगे लेकिन आप के हर बार ऐसा करने पर वे आप को अकेला छोड़ देंगे और लोंग टर्म में देखा जाए तो इस का नुकसान आप को ही होगा.

पहले जो लोग आप से घंटों बात करते थे वे आप को अकेला छोड़ देंगे. शुरू में हो सकता है आप को यह अकेलापन अच्छा लगे लेकिन कुछ समय बाद आप खुद ही अवसाद से घिर जाएंगे क्योंकि आप के पास अपने मन की बात करने के लिए कोई नहीं होगा.

पीठ पीछे नहीं, आप के सामने आप की बुराइयां करेंगे

अगर लोग मान लेते हैं कि आप सुन नहीं सकते या ध्यान नहीं दे रहे हैं, तो वे आप की पीठ पीछे खुल कर बात करने के बजाए आप के मुंह पर आप के सामने ही बात करेंगे और आप को कुछ पता भी नहीं चलेगा. ये बिलकुल ऐसा होगा जैसे कि अपने सुनने की क्षमता आप खो चुके हों और नहीं पता कौन क्या बात कर रहा है. ये स्थिति सही नहीं होती. ऐसे में लोगों की नजरों में अपना सम्मान खोते देर नहीं लगेगी.

घर में भी किसी अनचाही सिचुएशन में फंस सकते हैं

अगर आप घर में हैं और ईयरबड्स लगाए हुए हों और तेज आवाज में गाने सुन रहे हैं तो आप को पता भी नहीं चलेगा कि साथ वाले कमरे में क्या हो रहा है. हो सकता है आप के घर को चोर आ जाए या फिर आप के पेरैंट्स में से किसी को कोई मैडिकल एमरजैंसी हो और वे आप को बुला रहे हों लेकिन न सुन पाने के कारण वे किसी गंभीर दुर्घटना का शिकार भी हो सकते हैं. ऐसे में आप खुद को पूरी जिंदगी माफ नहीं कर पाएंगे.

मैट्रो या लंबे सफर के दौरान ईयरफोन लगाना खतरनाक

यदि आप भी मैट्रो या लंबे सफर के दौरान कानों में ईयरफोन या हेडफोन लगा कर घंटों गाने सुनते हैं तो सतर्क हो जाने की जरूरत है क्योंकि आप की ये आदत आप को खतरे में डाल सकती है. अगर आप के आसपास कोई अप्रत्याशित घटना घट जाती है तो आप अपने ईयरफोन में इतना मस्त होंगे कि आप को पता भी नहीं चलेगा कि क्या हो रहा है. आप को पब्लिक प्लेस में कोई फौलो कर रहा है इस का अहसास भी नहीं होगा जो किसी बड़े खतरे का कारण भी बन सकता है.

दुर्घटना के शिकार होते हैं ईयरबड्स का इस्तेमाल करने वाले

हेडफोन लगा कर रोड क्रौस करना मतलब जान जोखिम में डालना है. आजकल बहुत सारे एक्सीडैंट हुए वे युवा आते हैं जिन का मुख्य कारण यही है कि ईयर फफोन लगाकर गाड़ी चलाते हैं या पैदल चलते हैं जिस कारण वो पीछे से आ रहे वाहन की आवाज नहीं सुन पाते और दुर्घटना के शिकार होते हैं. अगर आप रोड पर चल रहे हैं तो ईयरबड्स का यूज़ बिलकुल न करें अगर ईयरबड्स का यूज़ करना ही है तो किसी पब्लिक ट्रांसपोर्ट का यूज करें ताकि अपने साथ किसी और की जिंदगी को खतरे में न डालें.

हेडफोन लगाने से सुनने की क्षमता पर भी असर पड़ता है

दरअसल, हमारे कान के अंदर कुछ कोशिकाएं होती हैं जो सुनने के काम में हमारी मदद करती हैं. ये कोशिकाएं, आवाज के रूप में सिग्नल को ट्रांसमिट करने का काम करती हैं. इसलिए, जब हम तेज आवाज सुनते हैं तब इन कोशिकाओं पर उस का असर पड़ता है और इसी वजह से हमें सुनने में समस्या का सामना करना पड़ता है.

इन के अधिक प्रयोग से न केवल हमारी सुनने की क्षमता प्रभावित होती है बल्कि कई बार बहरेपन की स्थिति का भी सामना करना पड़ सकता है. साथ ही कानों के सुन्न होने की समस्या, कानों में दर्द रहना, सिर में भारीपन रहना, नींद आने में दिक्कत होना, दिमागी रूप से थकान महसूस करना, कानों में इंफैक्शन होना या कानों में हर समय शोर सुनाई देते रहने की समस्या का सामना करना पड़ सकता है.

ध्यान दें कि आप हेडफोन को ज्यादा देर तक न सुनें. 60 मिनट के लिए 60 प्रतिशत वौल्यूम पर इसे सुनें और फिर अपने कानों को आराम देने के लिए कम से कम 30 मिनट के लिए ब्रेक लें.

कितनी देरी तक करें ईयरबड्स का इस्तेमाल

बहुत लंबे समय तक हेडफोन और ईयरफोन का इस्तेमाल न करें. अगर आप घंटों तक ईयरबड्स का इस्तेमाल करते हैं तो तुरंत ही उन्हें अपने रूटीन में बदलाव कर लेना चाहिए. 60 मिनट से अधिक समय तक ईयरबड्स का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए. इस के अलावा बीचबीच में वौल्यूम को भी कम कर देना चाहिए.

आप शायद नहीं जानते, लेकिन हेडफोन इललैक्ट्रोमैग्नेटिक वेव्स पैदा करता है. इसलिए मीटिंग, म्यूजिक या फिर औनलाइन क्लासेस के लिए भी ज्यादा देर तक इस का इस्तेमाल करेंगे तो दिमाग पर बहुत बुरा असर पड़ेगा. ईयरफोन के साथ भी यही स्थिति बनती है. इसलिए ईयरफोन हो या हेडफोन इस्तेमाल करते समय अपनी सेहत का ख्याल जरूर रखें.

जब भी हेडफोन से सुने तो धीमे सुनें, नहीं तो बहरा होने या ऊंचा सुनने वालों में आप का भी नाम होगा. साथ ही इस का सीमित इस्तेमाल करें जब बहुत जरुरत हो तभी इस का यूज करें, लेकिन इसे अपनी रोजमर्रा की आदत न बनाएं. नहीं तो आप न घर के रहेंगे न घाट के. अपनी सेहत भी खराब करेंगे और सोशलली भी आप अनमैनेर्ड कहलाएंगे.

आखिर क्यों औनलाइन ट्रैप में फंसती हैं लड़कियां

साधारण सी दिखने वाली रोहिणी को सोशल मीडिया पर एक लड़का मिला जिस ने अपनी मीठीमीठी बातों से रोहिणी को असाधारण साबित कर के उसे अपने प्यार के झांसे में फंसा लिया. धीरेधीरे बात पिक्स एक्सचेंज, वीडियो कौल तक पहुंच गई. एकदूसरे को गिफ्ट्स भेजे जाने लगे. दोनों बाहर मिलने लगे. रोहिणी को यह सब बहुत अच्छा लग रहा था लेकिन लड़के के दिमाग में कुछ और ही खिचड़ी पक रही थी. उस का उद्देश्य रोहिणी से पैसे ऐंठना था और जब उस ने देखा कि रोहिणी उस के झांसे में आ चुकी है तो उस ने रोहिणी की चाहत का फायदा उठाया और उस की फोटोज वायरल करने की धमकी दे कर उस को ब्लैकमेल करना शुरू कर दिया.

यहां गलती किस की है? उस लड़के की कि वो फ्रौड है उस ने रोहिणी को ट्रैप में फंसाया या फिर रोहिणी की कि साधारण होते हुए भी खुद को किसी दूसरे की नजरों में असाधारण साबित करने की चाहत में वह बिना किसी जानपहचान के, किसी अनजान लड़के पर विश्वास कर के, घर वालों को बिना बताए इतना आगे बढ़ गई. और इस गलती ने रोहिणी को मुसीबत में डाल दिया और वह उस लड़के के जाल में फंस गई.

2 + 2 = 4 ही होगा, 5 होने की चाहत न रखें

लड़कियों को यह समझने की जरूरत है कि 2 + 2 = 4 ही होगा, 5 की चाहत रखने से निराशा, स्ट्रैस और धोखे के अलावा कुछ हाथ नहीं लगेगा. आप जो हैं खुद को वैसे ही स्वीकार करें. दूसरों से तारीफ या वेलिडेशन या विलासिता की चाह में कुछ भी गलत कर के भले ही थोड़े समय के लिए कुछ अर्जित हो जाए और वह क्षणिक रूप में सुख भी दे दे लेकिन यह तय है कि अंत में वो दुख और परेशानी में ही तब्दील होगा.

औनलाइन प्यार के ट्रैप में फंसती लड़कियां

कुछ दिन पहले रांची के साइबर क्राइम ब्रांच में एक 25 साल की पढ़ीलिखी युवती मैरिज साइट के जरिए एक लड़के द्वारा 7 लाख रुपये ठगने की रिपोर्ट लिखाने आई. युवती ने बताया कि मैरिज साइट पर उसे एक लड़के का प्रोफाइल पसंद आया. फोन नंबर एक्सचेंज हुए और दोनों के बीच बातचीत शुरू हुई. दोनों जल्द ही मिलने भी वाले थे लेकिन इसी बीच लड़के ने बताया कि वह दिल्ली एयरपोर्ट पर पकड़ा गया है और इस बाबत लड़की से 7 लाख रुपए ठग लिए और पैसे लेने के बाद उस ने अपना प्रोफाइल भी डिलीट कर दिया. अब लड़की के पास पछताने के अलावा कुछ नहीं बचा.

औनलाइन प्यार की थोड़े दिनों की चैटिंग और बातचीत में लड़कियां इतनी इमोशनल हो जाती हैं कि लड़कों द्वारा कहीं फंस जाने की बात कहे जाने पर तुरंत विश्वास कर लेती हैं और पैसे का भुगतान कर देती हैं जैसे ही पैसे का भुगतान होता है वह फेक प्रोफाइल दिखना बंद हो जाता है और उस के बाद यह समझ में आता है कि औनलाइन प्यार के चक्कर में वह अपना पैसा गवां बैठी है.

रहें सावधान

आजकल डेटिंग ऐप पर भी लड़कियों के साथ कई तरह के फ्रॉड हो रहे हैं. इसलिए किसी भी डेटिंग ऐप या सोशल मीडिया ऐप पर बहुत सावधान रहने की जरूरत है –

* किसी अनजान लड़के से किसी भी होटल, गेस्ट हाउस या अकेले में बिलकुल न मिलें.

* पब्लिक प्लेस पर भी अचानक टकरा गए किसी अनजान से दोस्ती न करें. उस की औफर की कोई ड्रिंक, चाय, कौफी न पिएं.

* डेटिंग ऐेप पर मिले किसी व्यक्ति का का प्रोफाइल अच्छे से चेक करें. उस के अन्य सोशल मीडिया एप्स चेक करें. उस की कंपनी, काम धंधे के बारे में सारी जानकारी लें. उस के बारे में उस से जुड़ी हर जानकारी जुटा लें.

* डेटिंग ऐप पर मिले व्यक्ति से पहली मुलाकात पब्लिक प्लेस पर ही करें.

* अकेली, सैक्शुअली डिप्राइव्ड, रिलेशनशिप की चाहत रखने वाली बहुत डेसपेरेट लड़कियों के ट्रैप में फंसने के चांस ज्यादा होते हैं. इसलिए अपनी इच्छाओं पर काबू रखें, दुख और अकेलेपन के कारण फ्रौड में न फंसें. अकेलेपन से उबरने का कोई क्रिएटिव तरीका ढूंढें.

काबिलियत के अनुसार जो मिला है उस में खुश रहें

कई बार पढ़ीलिखी, आत्मनिर्भर लड़कियां भी भावनात्मक निर्भरता और जल्दी आगे बढ़ने की चाहत में अपना सबकुछ गंवा बैठती हैं. लड़कियों को यह समझने की जरूरत है कि हर किसी को सब कुछ नहीं मिलता. आप सिर्फ ग्रेजुएट हैं तो उसी के अनुसार आप की नौकरी और सैलरी होगी, अगर आप अपनी काबिलियत से ज्यादा की चाहत रखेंगे तो कुछ हासिल नहीं होगा बल्कि जो है उसे भी गंवा देंगे.

अपनी क्षमताओं और काबिलियत के अनुसार अपनी चाहतों की लिस्ट बनाएं. अपनी काबिलियत के अनुसार जो मिल रहा है उस में सेटिस्फाइड रहें. जब कोई भी अपनी काबिलियत से ज्यादा की चाहत रखता है तो उस के गलत राह में या धोखे में फंसने के चांसेज उतने ज्यादा बढ़ जाते हैं. काबिलियत के अनुसार जो मिला है उस में खुश रहें.

औनलाइन औफर्स का लुत्फ उठाएं पर झांसे में न आएं

दीवाली का त्योहार नजदीक आने के साथसाथ सभी ई-कौमर्स वेबसाइट्स भारी डिस्काउंट और कैशबैक के साथ स्पैशल औफर्स दे रही हैं और यूथ इस मौके को हाथ से जाने नहीं देना चाहता और दीवाली पर अपने मनपसंद कपड़े, इलैक्ट्रानिक गैजेट्स की शौपिंग करने में पीछे नहीं रहना चाहता लेकिन यूथ को शौपिंग करते समय अपने पैसे बचाने के लिए भी स्मार्ट शौपिंग करनी होगी.

औफर्स को समझें झांसे में न आएं

दीवाली पर औफर के झांसे में न आएं क्योंकि कई बार डिस्काउंट के चक्कर में बिना जरूरत के सामान की भी शौपिंग हो जाती है और बाद में बजट बिगड़ने पर पछतावा होता है.

शौपिंग करते समय अलर्ट रहें

• सोशल मीडिया पर दिखाए गए किसी भी विज्ञापन पर आंख बंद कर के भरोसा न करें. अगर सोशल मीडिया पर दिखाए गए विज्ञापन में कोई प्रोडक्ट आप को पसंद आ रहा है तो उसे अमेजन या फ्लिपकार्ट जैसी भरोसेमंद साइट पर चेक करें और वहां से शौपिंग करें.

• किसी भी प्रोडक्ट का सिर्फ रिव्यू पढ़ कर क्वालिटी का अंदाजा न लगाएं क्योंकि कुछ प्रोडक्ट पर फेक रिव्यू भी होते हैं यानी उन्हें पैसे दे कर रिव्यू करवाया जाता है.

• किसी भी प्रोडक्ट को खरीदने से पहले चेक कर लें कि वह रिटर्न होगा कि नहीं क्योंकि उन प्रोडक्ट के खराब या घटिया होने के चांस ज्यादा होते हैं जिन में रिटर्न का औप्शन नहीं होता.

शौपिंग की करें प्लानिंग

• त्योहारों के समय ऐसे योजना बनाएं कि आप का पैसा उन्हीं प्रोडक्टस पर खर्च हो जिन की आप को जरूरत हो जिस से आप की जेब हल्की न हो.

• सब से पहले जो खरीदना है, उस की लिस्ट बनाएं, जिस और जितने सामान की जरूरत हो, उतनी ही खरीदारी करें. शौपिंग लिस्ट बनाने से आप बेवजह की खरीदारी से बच जाएंगे और आप के पैसे व समय दोनों की बचत होगी.

• किसी प्रोडक्ट की अलगअलग ब्रैंड की कीमतों से तुलना करें. जैसे कई बार देखा है वेस्ट्साइड ब्रैंड के सेम कुर्ते सेट या सेम ब्रैंड के फोन की कीमत अमेजन, फ्लिप और मिंत्रा पर अलग होती है तो जहां प्रोडक्ट की कीमत कम हो वहां से शौपिंग करें. साथ में एक बार ब्रैंड की साईट पर भी चेक करें.

• त्योहारों पर अपनी हर शौपिंग का हिसाब जरूर रखें. इस से फिजूलखर्ची पर लगाम लगेगी और त्योहारों के समय भी पैसे बचाए जा सकेंगे.

• किसी भी होम एप्लाइंसेज और इलैक्ट्रानिक सामान खरीदने से पहले क्या वाकई आप को उस प्रोडक्ट की जरूरत है यह समझें और सिर्फ सेल या डिस्काउंट के चक्कर में अपने बजट को न बिगाड़ें.

दीवाली पर औनलाइन शौपिंग के समय निम्न सावधानियां बरतें –

• त्योहारों के समय साइबर ठग ज्यादा एक्टिव होते हैं और औनलाइन शौपिंग स्कैम का खतरा बढ़ जाता है. त्योहार के समय स्कैमर्स फेक औनलाइन वेबसाइट या ऐप बना कर फेमस ब्रैंड के कपड़े, जूते या इलैक्ट्रानिक आइटम्स बेहद कम कीमतों पर बेचते हैं. इस तरह की वेबसाइट या ऐप का इंटरफेस अन्य शौपिंग वेबसाइट के जैसा होता है. जब कोई इन से सामान खरीदता है तो उस में खराब क्वालिटी का प्रोडक्ट डिलीवर कर दिया जाता है. इस तरह की वेबसाइट शिकायत के बाद प्रोडक्ट को रिफंड भी नहीं करती हैं.

• कोई भी सामान खरीदने से पहले उस सामान की सही कीमत जरूर चेक करें कि क्या सेल के समय सामान पर जो छूट दिखाई जा रही है वह वाकई सही है क्योंकि कुछ सेलर सेल से ठीक पहले कीमतें बढ़ा देते हैं फिर उस पर ग्राहक को अधिक छूट का औफर दे कर लुभाने की कोशिश करते हैं.

• दीवाली के समय स्मार्ट शौपिंग का सब से अच्छा तरीका यह है कि आप अपनी जरूरत की चीजों की लिस्ट सेल शुरू होने से पहले ही बना लें और उन चीजों का प्राइज भी नोट कर लें. फिर सेल के दौरान अगर उन चीजों पर अच्छा डिस्काउंट मिल रहा है तो खरीद लें.

• दीवाली के समय स्मार्ट शौपिंग करने से पहले अपना एक बजट फिक्स कर लें और शौपिंग लिस्ट बना लें. इस से न सिर्फ जरूरत की चीजों की शौपिंग होगी और चाहे कितना भी सस्ता सामान मिल रहा होगा फिक्स बजट से ऊपर खर्च नहीं होगा.

• सेल के समय अपने खर्च पर कंट्रोल करने के लिए कैश औन डिलीवरी का औप्शन चुनें. दरअसल, जब आप अपनी जेब से पैसे निकलते हुए देखते हैं तो अपने खर्चों के बारे में अधिक जागरूक होते हैं. यह पैसे को ले कर एक साइकोलौजिकल फैक्ट है जबकि कार्ड से शौपिंग करने पर यह फीलिंग नहीं आती. इस कारण कई बार युवा शौपिंग पर जरूरत से ज्यादा पैसे खर्च कर देते हैं. कई बार सेल के समय क्रेडिट कार्ड से शौपिंग करने पर एक्स्ट्रा डिस्काउंट मिल जाता है तो क्रेडिट कार्ड का इस्तेमाल करना बेहतर होता है.

• हमेशा औफीशियल वेबसाइट से ही शौपिंग करें और प्रोडक्ट की क्वालिटी और रेटिंग जरूर चेक करें. कई बार औनलाइन शौपिंग के दौरान फ्रौड भी हो जाता है क्योंकि आजकल बहुत सी फेक वेबसाइट्स भी हैं जो एक बार प्रोडक्ट डिलीवर करने के बाद न रिटर्न करती हैं और न ही एक्सचेंज.

• कई बार फेस्टिवल सेल के दौरान कुछ ब्रैंड्स प्रोडक्ट्स पर डिस्काउंट औफर भी देते हैं. जिस में अगर आप एक निश्चित राशि की खरीदारी करते हैं तो कुछ सामान मुफ्त मिलता है. इस तरह के औफर के समय आप औफर वाले प्रोमो कोड का भी इस्तेमाल कर सकते हैं.

• फेस्टिवल सेल के दौरान शौपिंग करते समय सिर्फ ब्रैंडेड प्रोडक्टस न देखें. कभीकभी कुछ नए या कम पोपुलर ब्रैंड के प्रोडक्टस भी बेटर होते हैं और पौकेट फ्रैंडली भी होते हैं. इस से कम बजट में अधिक प्रोडक्टस की शौपिंग की जा सकती है. साथ ही कई बार सेल के समय सब से ऊपर दिखाए जा रहे प्रोडक्ट्स बहुत महंगे होते हैं और सस्ते और कुछ अच्छे औप्शन नीचे होते हैं.

वारिसों वाली अम्मां : पुजारिन अम्मां की मौत से मच गई खलबली

कल रात पुजारिन अम्मां ठंड से मर गईं तो महल्ले में शोक की लहर दौड़ गई. हर एक ने पुजारिन अम्मां के ममत्व और उन की धर्मभावना की जी खोल कर चर्चा की पर दबी जबान से चिंता भी जाहिर की कि पुजारिन का अंतिम संस्कार कैसे होगा? पिछले 20-25 सालों से वह मंदिर में सेवा करती आ रही थीं, जहां तक लोगों को याद है इस दौरान उन का कोई रिश्तेनाते का परिचित नहीं आया. उन की जैसी लंबी आयु का कोई बुजुर्ग अब महल्ले में भी नहीं बचा है जो बता सके कि उन का कोई वारिस है भी या नहीं. महल्ले वालों को यह सोच कर ही कंपकंपी छूट रही है कि केवल दाहसंस्कार कराने से ही तो सबकुछ नहीं हो जाएगा, तमाम तरह के कर्मकांड भी तो करने होंगे. आखिर मंदिर की पवित्रता का सवाल है. बिना कर्मकांड के न तो पत्थर की मूर्तियां शुद्ध होंगी और न ही सूतक से बाहर निकल सकेंगी. पर यह सब करे कौन और कैसे?

मजाकिया स्वभाव के राकेशजी हंस कर अपनी पत्नी से बोले, ‘‘क्यों रमा, यह 4 बजे भोर में पुजारिन अम्मां को लेने यमदूत आए कैसे होंगे? ठंड से तो उन की भी हड्डी कांप रही होगी न?’’

इस समाचार को ले कर आई महरी घर का काम करने के पक्ष में बिलकुल नहीं थी. वह तो बस, मेमसाहब को गरमागरम खबर देने भर आई है. चूंकि वह पूरी आल इंडिया रेडियो है इसलिए रमा ने पति की तरफ चुपके से आंखें तरेरीं कि कहीं उन की मजाक में कही बात मिर्च- मसाले के साथ पूरे महल्ले में न फैल जाए.

घड़ी की सूई जब 12 पर पहुंचने को हुई तब जा कर महल्ले वालों को चिंता हुई कि ज्यादा देर करने से रात में घाट पर जाने में परेशानी होगी. पुजारिन अम्मां की देह यों ही पड़ी है लेकिन कोई उन के आसपास भी नहीं फटक रहा है. वहां जाने से तो अशौच हो जाएगा, फिर नहाना- धोना. जितनी देर टल सकता है टले.

धीरेधीरे पूरे महल्ले के पुरुष चौधरीजी के यहां जमा हो गए. चौधरीजी कालीन के निर्यातक हैं. महल्ले में ही नहीं शहर में भी उन का रुतबा है. चमचों की लंबीचौड़ी फौज है जो हथियारों के साथ उन्हें चारों ओर से घेरे रहती है. शायद यह उन के खौफ का असर है कि अंदर से सब उन से डरते हैं लेकिन ऊपर से आदर का भाव दिखाते हैं और एकदूसरे से चौधरीजी के साथ अपनी निकटता का बखान करते हैं.

हां, तो पूरा महल्ला चौधरीजी के विशाल ड्राइंगरूम में जमा हो गया. सब के चेहरे तो उन के सीने तक ही लटके रहे पर चौधरीजी का तो और भी ज्यादा, शायद उन के पेट तक. फिर वह दुख के भाव के साथ उठे और मुंह लटकाएलटकाए ही बोलना शुरू किया, ‘‘भाइयो, पुजारिन अम्मां अचानक हमें अकेला छोड़ कर इस लोक से चली गईं. उन का हम सब के साथ पुत्रवत स्नेह था.’’

वह कुछ क्षण को मौन हुए. सीने पर बायां हाथ रखा. एक आह सी निकली. फिर उन्होंने अपनी बात आगे बढ़ाई, ‘‘मेरी तो दिली इच्छा थी कि पुजारिन अम्मां के क्रियाकर्म का समस्त कार्य हम खुद करें और पूरी तरह विधिविधान से करें किंतु…’’

चौधरीजी ने फिर अपना सीना दबाया और एक आह मुंह से निकाली. उधर उन के इस ‘किंतु’ ने कितनों के हृदय को वेदना से भर दिया क्योंकि महल्ले के लोगों ने चौधरी के इस अलौकिक अभिनय का दर्शन कितने ही आयोजनों में चंदा लेते समय किया है.

चौधरीजी ने फिर कहना शुरू किया, ‘‘किंतु मेरा व्यापार इन दिनों मंदा चल रहा है. इधर घर ठीकठाक कराने में हाथ लगा रखा है, उधर एक छोटा सा शौपिंग मौल भी बनवा रहा हूं. इन वजहों से मेरा हाथ बहुत तंग चल रहा है. और फिर पुजारिन अम्मां का अकेले मैं ही तो बेटा नहीं हूं, आप सब भी उन के बेटे हैं. उन की अंतिम सेवा के अवसर को आप भी नहीं छोड़ना चाहेंगे. मेरे विचार से तो हम सब को मिलजुल कर इस कार्य को संपादित करना चाहिए जिस से किसी एक पर बोझ भी न पड़े और समस्त कार्य अनुष्ठानपूर्वक हो जाए. तो आप सब की क्या राय है? वैसे यदि इस में किसी को कोई परेशानी है तो साफ बोल दे. जैसे भी होगा महल्ले की इज्जत रखने के लिए मैं इस कार्य को करूंगा.’’

चौधरी साहब के इस पूरे भाषण में कहां विनीत भाव था, कहां कठोर आदेश था, कहां धमकी थी इस सब का पूरापूरा आभास महल्ले के लोगों को था. इसलिए प्रतिवाद का कोई प्रश्न ही न था.

अपने पुत्रों की इस विशाल फौज से पुजारिन अम्मां जीतेजी तो नहीं ही वाकिफ थीं. कितने समय उन्होंने फाके किए यह तो वही जानती थीं. हां, आधेअधूरे कपड़ों में लिपटी उन की मृत देह एक फटी गुदड़ी पर पड़ी थी. लगभग डेढ़ सौ घरों वाला वह महल्ला न उन के लिए कपड़े जुटा पाया न अन्न. किंतु आज उन के लिए सुंदर महंगे कफन और लकड़ी का प्रबंध तो वह कर ही रहा है.

कभी रेडियो, टीवी का मुंह न देखने वाली पुजारिन अम्मां के अंतिम संस्कार की पूरी वीडियोग्राफी हो रही है. शाम को टीवी प्रसारण में यह सब चौधरीजी की अनुकंपा से प्रसारित भी हो जाएगा.

इस प्रकार पुजारिन अम्मां की देह की राख को गंगा की धारा में प्रवाहित कर गंगाजल से हाथमुंह धो सब ने अपनेअपने घरों को प्रस्थान किया. घर आ कर गीजर के गरमागरम पानी से स्नान कर और चाय पी कर चौधरी के पास हाजिरी लगाने में किसी महल्ले वाले ने देर नहीं की.

चौधरी खुद तो घाट तक जा नहीं सके थे क्योंकि उन का दिल पुजारिन अम्मां के मरने के दुख को सहन नहीं कर पा रहा था किंतु वह सब के लौटने की प्रतीक्षा जरूर कर रहे थे. उन की रसोई में देशी घी में चूड़ा मटर बन रहा था तो गाजर के हलवे में मावे की मात्रा भरपूर थी. आने वाले हर व्यक्ति की वह अगवानी करते, नौकर गुनगुने पानी से उन के चरण धुलवाता और कालीमिर्च चबाने को देता, पांवपोश पर सब अपने पांव पोंछते और अंदर आ कर सोफे पर बैठ शनील की रजाई ओढ़ लेते. नौकर तुरंत ही चूड़ामटर पेश कर देता, फिर हलवा, चाय, पान वगैरह चौधरीजी की इसी आवभगत के तो सब दीवाने हैं. बातों के सिलसिले में रात गहराई तो देसीविदेशी शराब और काजूबादाम के बीच पुजारिन अम्मां कहीं खो सी गईं.

अगली सुबह महल्ले वालों को एक नई चिंता का सामना करना पड़ा. मंदिर और मूर्तियों की साफसफाई का काम कौन करे. महल्ले के पुरुषों को तो फुरसत न थी. महिलाओं के कामों और उन की व्यस्तताओं का भी कोई ओरछोर न था. किसी को स्वेटर बुनना था तो किसी को अचार डालना था. कोई कुम्हरौड़ी बनाने की तैयारी कर रही थी, तो कोई आलू के पापड़ बना रही थी. उस पर भी यह कि सब के घर में ठाकुरजी हैं ही, जिन की वे रोज ही पूजा करती हैं. फिर मंदिर की देखभाल करने का समय किस के पास है?

महल्ले की सभी समस्याओं का समाधान तो चौधरी को ही खोजना था. हर रोज एक परिवार के जिम्मे मंदिर रहेगा. वह उस की देखभाल करेगा और रात में चौधरीजी को दिनभर की रिपोर्ट के साथ उस दिन का चढ़ावा भी सौंपेगा. हर बार की तरह अब भी महल्ले वालों के पास प्रतिवाद के स्वर नहीं थे.

अभी पुजारिन अम्मां को मरे एक सप्ताह भी नहीं बीता था कि एक दिन 50, 55 और 60 वर्ष की आयु के 3 लोग रामनामी दुपट्टा ओढ़े मंदिर में सपरिवार विलाप करते महल्ले वालों को दिखाई दिए. ये कौन लोग हैं और कहां से आए हैं यह किसी को पता नहीं था पर उन के फूटफूट कर रोने से सारा महल्ला थर्रा उठा.

महल्ले के लोग अपनेअपने घरों से निकल कर मंदिर में आए और यह जानने की कोशिश की कि वे कौन हैं और क्यों इस तरह धाड़ें मारमार कर रो रहे हैं. ये तीनों परिवार केवल हाहाकार करते जाते पर न तो कुछ बोलते न ही बताते.

हथियारधारी लोगों से घिरे चौधरी को मंदिर में आया देख कर महल्ले वाले उन के साथ हो लिए. तीनों परिवार के लोगों ने चौधरीजी को देखा, उन के साथ आए हथियारबंद लोगों को देखा और समझ गए कि यही वह मुख्य व्यक्ति है जो यहां फैले इस सारे नाटक को दिशानिर्देश दे सकेगा. इस बात को समझ कर उन के विलाप करते मुंह से एक बार ही तो निकला, ‘‘अम्मां’’ और उन के हृदय से सटी अम्मां और उन के परिवार की किसी मेले में खींची हुई फोटो जैसे उन के हाथों से छूट गई.

चौधरीजी के साथ सभी ने अधेड़ अम्मां को अपने तीनों जवान बेटों के साथ खड़े पहचाना जो अब अधेड़ हो चुके हैं. घूंघट की ओट से झांकती ये अधेड़ औरतें जरूर इन की बीवियां होंगी और पोते- पोतियों के रूप में कुछ बच्चे.

चौधरी साहब के साथ महल्ले के लोग अपनेअपने ढंग से इन के बारे में सोच रहे थे कि इतने सालों बाद इन बेटों को अपनी मां की याद आई है, वह भी तब जब वह मर गई. किस आशा, किस आकांक्षा से आए हैं ये यहां? क्या पुजारिन अम्मां के पास कोई जमीनजायदाद थी? 3 बेटों की यह माता इतना भरापूरा परिवार होते हुए भी अकेली दम तोड़ गई, आज उस का परिवार यहां क्यों जमा हुआ है? इतने सालों तक ये लोग कहां थे? किसी को भी तो नहीं याद आता कि ये तीनों कभी यहां आए हों या पुजारिन अम्मां कुछ दिनों के लिए कहीं गई हों?

‘‘ठीक है, ठीक है, हाथमुंह धो लो, आराम कर लो फिर हवेली आ जाना. बताना कि क्या समस्या है?’’ चौधरीजी ने घुड़का तो सारा विलाप बंद हो गया. धीरेधीरे भीड़ अपनेअपने रास्ते खिसक ली.

अगर कोई देखता तो जान पाता कि कैसे वे तीनों परिवार लोगों के जाने के बाद आपस में तूतू-मैंमैं करते हुए लड़ पड़े थे. बड़ा बोला, ‘‘मैं बड़ा हूं. अम्मां की संपत्ति पर मेरा हक है. उस का वारिस तो मैं ही हूं. तुम दोनों क्यों आए यहां? क्या मंदिर बांटोगे? पुजारी तो एक ही होगा मंदिर का?’’

मझले के पास अपने तर्क थे, ‘‘अम्मां मुझे ही अपना वारिस मानती थीं. देखोदेखो, उन्होंने मुझे यह चिट्ठी भेजी थी. लो, देख लो दद्दा. अम्मां ने लिखा है कि तू ही मेरा राजा बेटा है. बड़े ने तो साथ ले जाने से मना कर दिया. तू ही मुझे अपने साथ ले जा. अकेली जान पड़ी रहूंगी. जैसे अपने टामी को दो रोटियां डालना वैसे मुझे भी दे देना.’’

अब की बार छोटा भी मैदान में कूद पड़ा, ‘‘तो कौन सा तुम ले गए मझले दद्दा. अम्मां ने मुझे भी चिट्ठी भेजी थी. लो, देखो. लिखा है, ‘मेरा सोना बेटा, तू तो मेरा पेट पोंछना है. तू ही तो मुझे मरने पर मुखाग्नि देगा. बेटा, अकेली भूत सी डोलती हूं. पोतेपोतियों के बीच रहने को कितना दिल तड़पता है. मंदिर में कोई बच्चा, कोई बहू जब अपनी दादी या सास के साथ आते हैं तो मेरा दिल रो पड़ता है. इतने भरेपूरे परिवार की मां हो कर भी मैं कितनी अकेली हूं. मेरा सोना बेटा, ले जा मुझे अपने साथ.’ ’’

सच है, सब के पास प्रमाण है अपनेअपने बुलावे का किंतु कोई भी सोना या राजा बेटा पुजारिन अम्मां को अपने साथ नहीं ले गया. इस के लिए किसी प्रमाण की जरूरत नहीं क्योंकि कोई ले कर गया होता तो आज पुजारिन अम्मां यों अकेली पड़ेपड़े न मर गई होतीं और उन का दाहसंस्कार चंदा कर के न किया गया होता.

पुजारिन अम्मां के 3 पुत्र, जिन्होंने एक क्षण भी बेटे के कर्तव्य का पालन नहीं किया, जिन्हें अपनी मां का अकेलापन नहीं खला, वे आज उस के वारिस बने खड़े हैं. क्या उन का मन जरा भी अपनी मां के भेजे पत्र से विचलित नहीं हुआ. क्या कभी उन्हें एहसास हुआ कि जिस मां ने उन्हें 9 माह तक अपनी कोख में रखा, जिस ने उन्हें सीने से लगा कर रातें आंखों में ही काट दीं, उस मां को वे तीनों मिल कर 9 दिन भी अपने साथ नहीं रख सके.

आज भी उन्हें उस के दाहसंस्कार, उस के श्राद्ध आदि की चिंता नहीं, चिंता है तो मात्र मंदिर के वारिसाना हक की. वे अच्छी तरह से जानते हैं कि मंदिर का पुजारी दीनहीन हो तो कोई चढ़ावा नहीं चढ़ता किंतु पुजारी तनिक भी टीमटाम वाला हो, उस को पूजा करने का दिखावा करना आता हो, भक्तों की जेबों के वजन को टटोलना आता हो तो इस से बढि़या कोई और धंधा हो ही नहीं सकता.

आने वाले समय की कल्पना कर तीनों भाई मन में पूरी योजना बनाए पड़े थे. बस, उन्हें चौधरी का खौफ खाए जा रहा था वरना अब तक तो तीनों भाइयों ने फैसला कर ही लिया होता, चाहे बात से चाहे लात से. 3 अलगअलग ध्रुवों से आए एक ही मां के जने 3 भाइयों को एकदूसरे की ओर दृष्टि फिराना भी गवारा नहीं. एकदूसरे का हालचाल, कुशलक्षेम जानने की तनिक भी जिज्ञासा नहीं, बस, केवल मंदिर पर अधिकार की हवस ही दिल- दिमाग को अभिभूत किए है.

उधर चौधरीजी की चिंता और परेशानी का कोई ओरछोर नहीं है. कितने योजनाबद्ध तरीके से वे मंदिर को अपनी संपत्ति बनाने वाले थे. उन के जैसा विद्वान पुरुष यह अच्छी तरह से जानता है कि मंदिर की सेवाटहल करना महल्ले के लोगों के बस की बात नहीं. उन्हें ही कुछ प्रबंध करना है. प्रबंध भी ऐसा हो जिस से उन का भी कुछ लाभ हो. मंदिर के लिए अभी उन्होंने जो व्यवस्था की है वह तो अस्थायी है.

अभी वह कोई उचित व्यवस्था सोच भी नहीं पाए थे कि ये तीनों जाने कहां से टपक पड़े. पर उन के आने के पीछे छिपी उन की चतुराई को याद कर और उन को देख उन के नाटक में आए बदलाव को याद कर चौधरीजी मुसकरा दिए. तीनों में से किसी एक का चुनाव करना कठिन है. तीनों ही सर्वश्रेष्ठ हैं, तीनों ही योग्य और उपयुक्त हैं. एक निश्चय सा कर चौधरीजी निश्चिन्त हो चले थे.

अगले दिन सुबह ही मंदिर के घंटे की ध्वनि से महल्ले वालों की नींद टूट गई. मंदिर को देखने और पुजारिन अम्मां के वारिसों के बारे में जानने के लिए लोग मंदिर पहुंचे तो देखा तीनों भाई मंदिर के तीनों कमरों में किनारीदार पीली धोती पहने, लंबी चुटिया बांधे और सलीके से चंदन लगाए मूर्तियों के सामने मंत्र बुदबुदा रहे हैं. वे बारीबारी से उठते हैं और वहां खड़े लोगों को तांबे के लोटे में रखे जल का प्रसाद देते हैं. सामने ही तालाजडि़त दानपात्र रखा है जिस पर गुप्तदान, स्वेच्छादान आदि लिखा हुआ है. पुजारी की ओर दक्षिणा बढ़ाने पर वे दानपात्र की ओर इशारा कर देते हैं.

मंदिर के इस बदलाव पर अब महल्ले के लोग भौचक हैं. श्रद्धालुओं की जेबें ढीली हो रही हैं. पुजारीत्रय तथा चौधरीजी के खजाने भर रहे हैं. पुजारिन अम्मां को सब भूल चुके हैं.

अंतिम निर्णय : उम्र के अंतिम पड़ाव पर कोई जीना तो नहीं छोड़ता

सुहासिनी के अमेरिका से भारत आगमन की सूचना मिलते ही अपार्टमैंट की कई महिलाएं 11 बजते ही उस के घर पहुंच गईं. कुछ भुक्तभोगियों ने बिना कारण जाने ही एक स्वर में कहा, ‘‘हम ने तो पहले ही कहा था कि वहां अधिक दिन मन नहीं लगेगा, बच्चे तो अपने काम में व्यस्त रहते हैं, हम सारा दिन अकेले वहां क्या करें? अनजान देश, अनजान लोग, अनजान भाषा और फिर ऐसी हमारी क्या मजबूरी है कि हम मन मार कर वहां रहें ही. आप के आने से न्यू ईयर के सैलिब्रेशन में और भी मजा आएगा. हम तो आप को बहुत मिस कर रहे थे, अच्छा हुआ आप आ गईं.’’

उन की अपनत्वभरी बातों ने क्षणभर में ही उस की विदेशयात्रा की कड़वाहट को धोपोंछ दिया और उस का मन सुकून से भर गया. जातेजाते सब ने उस को जेट लैग के कारण आराम करने की सलाह दी और उस के हफ्तेभर के खाने का मैन्यू उस को बतला दिया. साथ ही, आपस में सब ने फैसला कर लिया कि किस दिन, कौन, क्या बना कर लाएगा.

सुहासिनी के विवाह को 5 साल ही तो हुए थे जब उस के पति उस की गोद में 5 साल के सुशांत को छोड़ कर इस दुनिया से विदा हो गए थे. परिजनों ने उस पर दूसरा विवाह करने के लिए जोर डाला था, लेकिन वह अपने पति के रूप में किसी और को देखने की कल्पना भी नहीं कर सकती थी. पढ़ीलिखी होने के कारण किसी पर बोझ न बन कर उस ने अपने बेटे को उच्चशिक्षा दिलाई थी. हर मां की तरह वह भी एक अच्छी बहू लाने के सपने देखने लगी थी.

सुशांत की एक अच्छी कंपनी में जौब लग गई थी. उस को कंपनी की ओर से किसी प्रोजैक्ट के सिलसिले में 3 महीने के लिए अमेरिका जाना पड़ा. सुहासिनी अपने बेटे के भविष्य की योजनाओं में बाधक नहीं बनना चाहती थी, लेकिन अकेले रहने की कल्पना से ही उस का मन घबराने लगा था.

अमेरिका में 3 महीने बीतने के बाद, कंपनी ने 3 महीने का समय और बढ़ा दिया था. उस के बाद, सुशांत की योग्यता देखते हुए कंपनी ने उसे वहीं की अपनी शाखा में कार्य करने का प्रस्ताव रखा तो उस ने अपनी मां से भी विचारविमर्श करना जरूरी नहीं समझा और स्वीकृति दे दी, क्योंकि वह वहां की जीवनशैली से बहुत प्रभावित हो गया था.

सुहासिनी इस स्थिति के लिए बिलकुल तैयार नहीं थी. उस ने बेटे को समझाते हुए कहा था, ‘बेटा, अपने देश में नौकरियों की क्या कमी है जो तू अमेरिका में बसना चाहता है? फिर तेरा ब्याह कर के मैं अपनी जिम्मेदारी से मुक्त होना चाहती हूं. साथ ही, तेरे बच्चे को देखना चाहती हूं, जिस से मेरा अकेलापन समाप्त हो जाए और यह सब तभी होगा, जब तू भारत में होगा. मैं कब से यह सपना देख रही हूं और अब यह पूरा होने का समय आ गया है, तू इनकार मत करना.’ यह बोलतेबोलते उस की आवाज भर्रा गई थी. वह जानती थी कि उस का बेटा बहुत जिद्दी है. वह जो ठीक समझता है, वही करता है.

जवाब में वह बोला, ‘ममा, आप परेशान मत होे, मैं आप को भी जल्दी ही अमेरिका बुला लूंगा और आप का सपना तो यहां रह कर भी पूरा हो जाएगा. लड़की भी मैं यहां रहते हुए खुद ही ढूंढ़ लूंगा.’ बेटे का दोटूक उत्तर सुन कर सुहासिनी सकते में आ गई. उस को लगा कि वह पूरी दुनिया में अकेली रह गई थी.

सालभर के अंदर ही सुशांत ने सुहासिनी को बुलाने के लिए दस्तावेज भेज दिए. उस ने एजेंट के जरिए वीजा के लिए आवेदन कर दिया. बड़े बेमन से वह अमेरिका के लिए रवाना हुई. अनजान देश में जाते हुए वह अपने को बहुत असुरक्षित अनुभव कर रही थी. मन में दुविधा थी कि पता नहीं, उस का वहां मन लगेगा भी कि नहीं. हवाई अड्डे पर सुशांत उसे लेने आया था. इतने समय बाद उस को देख कर उस की आंखें छलछला आईं.

घर पहुंच कर सुशांत ने घर का दरवाजा खटखटाया. इस से पहले कि वह अपने बेटे से कुछ पूछे, एक अंगरेज महिला ने दरवाजा खोला. वह सवालिया नजरों से सुशांत की ओर देखने लगी. उस ने उसे इशारे से अंदर चलने को कहा. अंदर पहुंच कर बेटे ने कहा, ‘ममा, आप फ्रैश हो कर आराम करिए, बहुत थक गई होंगी. मैं आप के खाने का इंतजाम करवाता हूं.’

सुहासिनी को चैन कहां, मन ही मन मना रही थी कि उस का संदेह गलत निकले, लेकिन इस के विपरीत सही निकला. बेटे के बताते ही वह अवाक उस की ओर देखती ही रह गई. उस ने इस स्थिति की कल्पना भी नहीं की थी. उस के बहू के लिए देखे गए सपने चूरचूर हो कर बिखर गए थे.

सुहासिनी ने अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखते हुए कहा, ‘मुझे पहले ही बता देता, तो मैं बहू के लिए कुछ ले कर आती.’

मां की भीगी आखें सुशांत से छिपी नहीं रह पाईं. उस ने कहा, ‘ममा, मैं जानता था कि आप कभी मन से मुझे स्वीकृति नहीं देंगी. यदि मैं आप को पहले बता देता तो शायद आप आती ही नहीं. सोचिए, रोजी से विवाह करने से मुझे आसानी से यहां की नागरिकता मिल गई है. आप भी अब हमेशा मेरे साथ रह सकती हैं.’ उस को अपने बेटे की सोच पर तरस आने लगा. वह कुछ नहीं बोली. मन ही मन बुदबुदाई, ‘कम से कम, यह तो पूछ लेता कि विदेश में, तेरे साथ, मैं रहने के लिए तैयार भी हूं या नहीं?’

बहुत जल्दी सुहासिनी का मन वहां की जीवनशैली से ऊबने लगा था. बहूबेटा सुबह अपनीअपनी जौब के लिए निकल जाते थे. उस के बाद जैसे घर उस को काटने को दौड़ता था. उन के पीछे से वह घर के सारे काम कर लेती थी. उन के लिए खाना भी बना लेती थी, लेकिन उस को महसूस हुआ कि उस के बेटे को पहले की तरह उस के हाथ के खाने के स्थान पर अमेरिकी खाना अधिक पसंद आने लगा था. धीरेधीरे उस को लगने लगा था कि उस का अस्तित्व एक नौकरानी से अधिक नहीं रह गया है. वहां के वातावरण में अपनत्व की कमी होने के चलते बनावटीपन से उस का मन बुरी तरह घबरा गया था.

सुहासिनी को भारत की अपनी कालोनी की याद सताने लगी कि किस तरह अपने हंसमुख स्वभाव के कारण वहां पर हर आयुवर्ग की वह चहेती बन गई थी. हर दिन शाम को, सभी उम्र के लोग कालोनी में ही बने पार्क में इकट्ठे हो जाया करते थे. बाकी समय भी व्हाट्सऐप द्वारा संपर्क में बने रहते थे और जरा सी भी तबीयत खराब होने पर एकदूसरे की मदद के लिए तैयार रहते थे.

उस ने एक दिन हिम्मत कर के अपने बेटे से कह ही दिया, ‘बेटा, मैं वापस इंडिया जाना चाहती हूं.’

यह प्रस्ताव सुन कर सुशांत थोड़ा आश्चर्य और नाराजगी मिश्रित आवाज में बोला, ‘लेकिन वहां आप की देखभाल कौन करेगा? मेरे यहां रहते हुए आप किस के लिए वहां जाना चाहती हैं?’ वह जानता था कि उस की मां वहां बिलकुल अकेली हैं.

सुहासिनी ने उस की बात अनसुनी  करते हुए कहा, ‘नहीं, मुझे जाना है, तुम्हारे कोई बच्चा होगा तो आ जाऊंगी.’ आखिर वह भारत के लिए रवाना हो गई.

सुहासिनी को अब अपने देश में नए सिरे से अपने जीवन को जीना था. वह यह सोच ही रही थी कि अचानक उस की ढलती उम्र के इस पड़ाव में भी सुनीलजी, जो उसी अपार्टमैंट में रहते थे, के विवाह के प्रस्ताव ने मौनसून की पहली झमाझम बरसात की तरह उस के तन के साथ मन को भी भिगोभिगो कर रोमांचित कर दिया था. उस के जीवन में क्या चल रहा है, यह बात सुनीलजी से छिपी नहीं थी.

सुहासिनी के हावभाव ने बिना कुछ कहे ही स्वीकारात्मक उत्तर दे दिया था. लेकिन उस के मन में आया कि यह एहसास क्षणिक ही तो था. सचाई के धरातल पर आते ही सुहासिनी एक बार यह सोच कर कांप गई कि जब उस के बेटे को पता चलेगा तो क्या होगा? वह उस की आंखों में गिर जाएगी? वैधव्य की आग में जलते हुए, दूसरा विवाह न कर के उस ने अपने बेटे को मांबाप दोनों का प्यार दे कर उस की परवरिश कर के, समाज में जो इज्जत पाई थी, वह तारतार हो जाएगी?

‘नहीं, नहीं, ऐसा मैं सोच भी नहीं सकती. ठीक है, अपनी सकारात्मक सोच के कारण वे मुझे बहुत अच्छे लगते हैं और उन के प्रस्ताव ने यह भी प्रमाणित कर दिया कि यही हाल उन का भी है. वे भी अकेले हैं. उन की एक ही बेटी है, वह भी अमेरिका में रहती है. लेकिन समाज भी कोई चीज है,’ वह मन ही मन बुदबुदाई और निर्णय ले डाला.

जब सुनीलजी मिले तो उस ने अपना निर्णय सुना दिया, ‘‘मैं आप की भावनाओं का आदर करती हूं, लेकिन समाज के सामने स्वीकार करने में परिस्थितियां बाधक हो जाती हैं और समाज का सामना करने की मेरी हिम्मत नहीं है, मुझे माफ कर दीजिएगा.’’ उस के इस कथन पर उन की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई, जैसे कि वे पहले से ही इस उत्तर के लिए तैयार थे. वे जानते थे कि उम्र के इस पड़ाव में इस तरह का निर्णय लेना सरल नहीं है. वे मौन ही रहे.

अचानक एक दिन सुहासिनी को पता चला कि सुनीलजी की बेटी सलोनी, अमेरिका से आने वाली है. आने के बाद, एक दिन वह अपने पापा के साथ उस से मिलने आई, फिर सुहासिनी ने उस को अपने घर पर आमंत्रित किया. हर दिन कुछ न कुछ बना कर सुहासिनी, सलोनी के लिए उस के घर भेजती ही रहती थी. उस के प्रेमभरे इस व्यवहार से सलोनी भावविभोर हो गई और एक दिन कुछ ऐसा घटित हुआ, जिस की वह कल्पना भी नहीं कर सकती थी.

अचानक एक दिन सलोनी उस के घर आई और बोली, ‘‘एक बात बोलूं, आप बुरा तो नहीं मानेंगी? आप मेरी मां बनेंगी? मुझे अपनी मां की याद नहीं है कि वे कैसी थीं, लेकिन आप को देख कर लगता है ऐसी ही होंगी. मेरे कारण मेरे पापा ने दूसरा विवाह नहीं किया कि पता नहीं नई मां मुझे मां का प्यार दे भी पाएगी या नहीं. लेकिन अब मुझ से उन का अकेलापन देखा नहीं जाता. मैं अमेरिका नहीं जाना चाहती थी. लेकिन विवाह के बाद लड़कियां मजबूर हो जाती हैं. उन को अपने पति के साथ जाना ही पड़ता है. मेरे पापा बहुत अच्छे हैं. प्लीज आंटी, आप मना मत करिएगा.’’ इतना कह कर वह रोने लगी. सुहासिनी शब्दहीन हो गई. उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या कहे. उस ने उसे गले लगा लिया और बोली, ‘‘ठीक है बेटा, मैं विचार करूंगी.’’ थोड़ी देर बाद वह चली गई.

कई दिनों तक सुहासिनी के मनमस्तिष्क में विचारों का मंथन चलता रहा. एक दिन सुनीलजी अपनी बेटी के साथ सुहासिनी के घर आ गए. वह असमंजस की स्थिति से उबर ही नहीं पा रही थी. सबकुछ समझते हुए सुनीलजी ने बोलना शुरू किया, ‘‘आप यह मत सोचना कि सलोनी ने मेरी इच्छा को आप तक पहुंचाया है. जब से वह आई है, हम दोनों की भावनाएं इस से छिपी नहीं रहीं. उस ने मुझ से पूछा, तो मैं झूठ नहीं बोल पाया. अभी तो उस ने महसूस किया है, धीरेधीरे सारी कालोनी जान जाएगी. इसलिए उस स्थिति से बचने के लिए मैं अपने रिश्ते पर विवाह की मुहर लगा कर लोगों के संदेह पर पूर्णविराम लगाना चाहता हूं.

‘‘शुरू में थोड़ी कठिनाई आएगी, लेकिन धीरेधीरे सब भूल जाएंगे. आप मेरे बाकी जीवन की साथी बन जाएंगी तो मेरे जीवन के इस पड़ाव में खालीपन के कारण तथा शरीर के शिथिल होने के कारण जो शून्यता आ गई है, वह खत्म हो जाएगी. इस उम्र की इस से अधिक जरूरत ही क्या है?’’ सुनील ने बड़े सुलझे ढंग से उसे समझाया.

सुहासिनी के पास अब तर्क करने के लिए कुछ भी नहीं बचा था. उस ने आंसूभरी आंखों से हामी भर दी. सलोनी के सिर से मानो मनों बोझ हट गया और वह भावातिरेक में सुनील के गले से लिपट गई.

अब सुहासिनी को अपने बेटे की प्रतिक्रिया की भी चिंता नहीं थी.

गरीबी रेखा: रेखा सिर्फ हीरोइन ही नहीं, सरकारी कलाकारी भी

उन का आना कभी नागवार नहीं गुजरा. चाहे घर में कोई मेहमान आया हो या मैं कोई जरूरी काम निबटा रहा होऊं. यहां तक कि हम पतिपत्नी के बीच किसी बात को ले कर हुए विवाद की वजह से घर का माहौल अगर तनावभरा हो गया हो, तो भी.

वे जब भी आते, गोया अपने साथ हर मर्ज की दवा ले कर आते. हालांकि उन के पास दवा की कोई पुडि़या नहीं होती, फिर भी, शायद यह उन के व्यक्तित्व का कमाल था कि उन के आते ही घर में शीतल वायु सी ठंडक घुल जाती. जरूरी काम को बाद के लिए टाल दिया जाता और मेहमान तो जैसे उन्हीं से मिलने आए होते हों. पलभर में वे उन से इतना खुल जाते जैसे वर्षों से उन्हें जानते हों.

लवी तो उन्हें देखते ही उन की गोद में बैठ जाता, उन की मोटीघनी मूंछों के साथ खेलने लगता. और बेगम बड़ी अदा से मुसकरा कर कहती, ‘‘चाचाजी, आज स्पैशल पकौड़े बनाने का मूड था, अच्छा हुआ आप आ गए.’’

‘‘तुम्हारे मूड को मैं जानता हूं बेटी, जो मुझे देख कर ही पकौड़े बनाने का बन जाता है. लेकिन सौरी,’’ वे हाथ उठा कर कहते, ‘‘आज पकौड़े खाने का मेरा कोई इरादा नहीं है.’’

लेकिन बेगम उन की एक नहीं सुनती और उन्हें पकौड़े खिला कर ही मानती.

वे आते, तो कभी इतनी धीरगंभीर चर्चा करते जैसे सारे जहां कि चिंताएं उन्हीं के हिस्से में आ गई हैं, तो कभी बच्चों की तरह कोई विषय ले कर बैठ जाते. आज आए तो कहने लगे, ‘‘बेटा, यह तो बताओ, यह गरीबीरेखा क्या होती है?’’

मुझे ताज्जुब नहीं हुआ कि वे मुझ से गरीबीरेखा के बारे में सवाल कर रहे हैं. मैं उन के स्वभाव से वाकिफ हूं. वे कब, क्या पूछ बैठेंगे, कुछ तय नहीं रहता. अकसर ऐसे सवाल कर बैठते, जिन से आमतौर पर आदमी का अकसर वास्ता पड़ता है, लेकिन आम आदमी का उस पर ध्यान नहीं जाता. और ऐसा भी नहीं कि जो सवाल वे कर रहे होते हैं, उस का जवाब वे न जानते हों. वे कोई सवाल उस का जवाब जानने के लिए नहीं, बल्कि उस की बखिया उधेड़ने के लिए करते हैं, यह मैं खूब जानता हूं.

मैं बोला, ‘‘गरीबीरेखा से आदमी के जीवनस्तर का पता चलता है.’’

‘‘मतलब, गरीबीरेखा से यह पता चलता है कि कौन गरीब है और कौन अमीर है.’’

मैं बोला, ‘‘हां, जो इस रेखा के इस पार है, वह अमीर है और जो उस पार है, वह गरीब है.’’

‘‘मतलब, गरीब को उस की गरीबी का और अमीर को उस की अमीरी का एहसास दिलाने वाली रेखा.’’

‘‘हां,’’ मैं थोड़ा हिचकिचा कर बोला, ‘‘आप इसे इस तरह भी समझ सकते हैं.’’

‘‘यानी, एक तरह से यह कहने वाली रेखा कि तू गरीब है. तू ये वाला चावल मत खा. ये वाले कपड़े मत पहन वगैरहवगैरह.’’

‘‘नहीं,’’ मैं बोला, ‘‘गरीबीरेखा का यह मतलब निकालना मेरे हिसाब से ठीक नहीं होगा.’’

‘‘गरीब को उस की गरीबी का एहसास दिलाने के पीछे कोई और भी मकसद हो सकता है भला,’’ उन्होंने व्यंग्यात्मक लहजे में पहलू बदल कर कहा, ‘‘खैर, यह बताओ, यह रेखा खींची किस ने है, सरकार ने?’’

‘‘हां, और क्या, सरकार ने ही खींची है. और कौन खींच सकता है.’’

‘‘लेकिन सरकार को यह रेखा खींचने की जरूरत क्यों पड़ी भला?’’

‘‘सरकार गरीबों की चिंता करती है इसलिए. सरकार चाहती है कि गरीब भी सम्मानपूर्वक जिंदगी गुजारें. उन की जरूरतें पूरी हों. वे भूखे न रहें. गरीबों का जीवनस्तर ऊपर उठाने के लिए सरकार ने कई कल्याणकारी योजनाएं बना रखी हैं.’’

‘‘तो ऊपर उठा उन का जीवनस्तर?’’

‘‘उठेगा,’’ मैं बोला, ‘‘उम्मीद पर तो दुनिया कायम है. लेकिन यह तय है कि इस से उन्हें उन की जरूरत की चीजें जरूर आसानी से मुहैया हो रही हैं.’’

‘‘गरीबों को उन की जरूरत की चीजें गरीबीरेखा खींचे बगैर भी तो मुहैया कराई जा सकती थीं?’’

उन के इस सवाल से मेरा दिमाग चकरा गया और मुझ से कोई जवाब देते नहीं बना. फिर भी मैं बोला, ‘‘आप ठीक कह रहे हैं. ऐसा हो तो सकता था. फिर पता नहीं क्यों, गरीबीरेखा खींचने की जरूरत पड़ गई.’’

‘‘ऐसा तो नहीं कि अमीर लोग गरीबों का हक मार रहे थे, इसलिए यह रेखा खींचने की जरूरत पड़ी?’’

तभी गरमागरम पकौड़े से भरी ट्रे ले कर बेगम वहां आ गई. आते ही बोली, ‘‘थोड़ी देर के लिए आप दोनों अपनी बहस को विराम दीजिए. पहले गरमागरमा पकौड़े खाइए, उस के बाद देशदुनिया की फिक्र करिए.’’

बेगम के वहां आ जाने से चाचा के मुंह से निकला अंतिम वाक्य आयागया हो गया. मैं और चाचाजी पकौड़े खाने में मसरूफ हो गए. पकौड़े गरम तो थे ही, स्वादिष्ठ भी थे.

4-6 पकौड़े खाने के बाद चाचाजी  ही बोले, गरीबीरेखा से अगर सचमुच अमीर लोगों को गरीबों का हक मारने का मौका नहीं मिल रहा है और गरीबों को उन की जरूरत की चीजें मुहैया हो रही हैं, तो क्यों ने ऐसी दोचार रेखाएं और खींच दी जाएं.’’

मैं ने एक पकौड़ा उठा कर मुंह में रखा और चाचाजी की तरफ देखने लगा. वे समझ गए कि मैं उन का आशय समझ नहीं पाया हूं. इसलिए उन्होंने खुद ही अपनी बात आगे बढ़ाई, बोले, ‘‘एक भ्रष्टाचारी रेखा हो. एक कमीनेपन की रेखा हो. एक चुनाव के दौरान झूठे वादे करने की रेखा हो…’’

उन्होंने एक और पकौड़ा उठाया और उसे मिर्र्च वाली चटनी में डुबोते हुए बोले, ‘‘भ्रष्टाचार, कमीनापन और चुनाव जीतने के लिए झूठे वादे करना मनुष्य के स्वभावगत गुण हैं. इन्हें पूरी तरह खत्म नहीं किया जा सकता. चुनावी सीजन में जो भ्रष्टाचार खत्म करने और ब्लैकमनी वापस लाने के दावे करते थे, चुनाव जीतने के बाद वे खुद उस में रम जाते हैं. यहां तक कि अपने मूल काम को भी त्याग देते हैं, जिस का नुकसान सीधे गरीबों को होता है. इसलिए गरीबीरेखा की तरह कुछ और रेखाएं भी खींची जानी चाहिए.

‘‘भ्रष्टाचारी रेखा, भ्रष्टाचार करने वालों की लिमिट तय करेगी. तुम ने सुना होगा, यातायात विभाग के एक हैड कौंस्टेबल के पास से करोड़ों रुपए बरामद हुए थे. भ्रष्टाचारी रेखा खींच दी जाए तो भ्रष्टाचारी एक हद तक ही भ्रष्टाचार करेगा.

‘‘भ्रष्टाचार जब लाइन औफ कंट्रोल तक पहुंचेगा तो वह खुद ही हाथ जोड़ कर रकम लेने से मना कर देगा, कहेगा, ‘इस साल का मेरा भ्रष्टाचार का कोटा पूरा हो गया है, इसलिए अब नहीं. कम से कम इस साल तो नहीं. अगले साल देखेंगे.’

‘‘इसी तरह चुनावीरेखा चुनाव के दौरान झूठे वादों की लिमिट तय करेगी. चुनाव के दौरान उम्मीदवार यह देखेगा कि उस की पार्टी के नेता ने पिछली बार कौनकौन से वादे किए थे और उन में से कौनकौन से वादे पूरे नहीं हुए हैं. उस हिसाब से उम्मीदवार वादे करेगा, कहेगा, ‘पिछले चुनाव में मेरी पार्टी के नेता ने फलांफलां वादे किए थे जो पूरे नहीं हो पाए, इसलिए इस चुनाव में मैं कोई नया वादा नहीं करूंगा बल्कि पिछली बार किए गए वादों को पूरा करूंगा.’ इसी तरह कमीनीरेखा लोगों के कमीनेपन की लिमिट तय करेगी.’’

उन की इस राय के बाद मेरे पास बोलने को जैसे कुछ रह ही नहीं गया था. वे भी एकदम से खामोश हो गए थे. जैसे बोलने की उन की लिमिट पूरी हो गई हो. उसी समय बेगम भी वहां चाय ले कर पहुंच गई थी. तब तक लवी उन की गोद में ही सो गया था.

बेगम ने लवी को उन की गोद से उठाया और उसे ले कर दूसरे कमरे में चली गई. हम दोनों चुपचाप चाय सुड़कने लगे थे. चाय का घूंट भरते हुए बीचबीच में मैं उन की ओर कनखियों से देख लिया करता था, लेकिन वे निर्विकार भाव से चुप बैठे चाय सुड़क रहे थे.

उन के दिमाग की थाह पाना मुश्किल है. समझ में नहीं आता कि उन के दिमाग में क्या चल रहा होता है. एक दिन पूछ बैठे, ‘‘मुझे देख कर तुम्हारे मन में कभी यह खयाल नहीं आता कि जब दंगा होता है तो मेरी कौम के लोग तुम्हारी कौम के लोगों का गला काटते हैं, उन के घर जलाते हैं, उन की संपत्ति लूटते हैं.’’

उन के इस अप्रत्याशित सवाल से मैं बौखला गया था, बोला, ‘‘यह कैसा सवाल है चाचाजी.’’

‘‘सवाल तो सवाल है बेटा. सवाल में कैसे और वैसे का सवाल क्यों?’’

‘‘तो एक सवाल मेरा भी है चाचाजी,’’ मैं बोला, ‘‘क्या आप के मन में कभी यह खयाल आया कि आप मुसलमान हैं और मैं हिंदू हूं. जब दंगा होता है तो मेरी कौम के लोग भी आप की कौम के लोगों के साथ वही सब करते हैं जो आप की कौम के लोग हमारी कौम के साथ करते हैं. आप मांसभक्षी हैं और मैं शुद्ध शाकाहारी.’’

‘‘जवाब यह है बेटे कि यह खयाल हम दोनों के मन में नहीं आता, न आएगा.’’

‘‘फिर आप ने यह सवाल पूछा ही क्यों चाचाजी?’’

वे अपेक्षाकृत गंभीर लहजे में बोले, ‘‘दरअसल, हम यह समझने की कोशिश कर रहे थे बेटा कि जब एक आम हिंदू और एक आम मुसलमान के मन में कभी यह खयाल नहीं आता कि मैं हिंदू, तू मुसलमान या मैं मुसलमान तू हिंदू, जब आम दिनों में दोनों संगसंग व्यापार करते हैं, उठतेबैठते हैं, एकदूसरे के रस्मोरिवाज का हिस्सा बनते हैं तो आखिर दंगा होता ही क्यों है. और जब दंगा होता भी है तो इतना जंगलीपन कहां से पैदा हो जाता है कि दोनों एकदूसरे के खून के प्यासे हो जाते हैं. कहीं…’’ वे एक पल के लिए रुके, फिर बोले, ‘‘कहीं ऐसा तो नहीं कि हमारे बीच भी कोई रेखा खींच दी जाती हो, हिंदूरेखा या मुसलमानरेखा.’’

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें