भाड़े पर हत्या, अपहरण से ले कर नशे की बड़ीबड़ी खेप इधर से उधर पहुंचाने वाले युवा देश के लिए बहुत बड़ी चुनौती बनते जा रहे हैं. चंद रुपयों के लालच में वे बहुत आसानी से अपराधी समूहों को जौइन कर रहे हैं. देश की युवा शक्ति को रोजगार से जोड़ कर सही दिशा देने में नाकाम मोदी सरकार की अग्निवीर योजना भी देश की सुरक्षा के लिए खतरनाक स्थितियां पैदा करेगी, इस में कोई दोराय नहीं.

मुंबई में बाबा सिद्दीकी की हाई प्रोफाइल हत्या के बाद लौरेंस बिश्नोई का नाम फिर चर्चा में है. देशविदेश में पहले भी हो चुकी कई हत्याओं में लौरेंस बिश्नोई का नाम आया है. अब कहा जा रहा है कि बाबा सिद्दीकी की हत्या भी उसी के गैंग ने की है.

लम्बे समय से लौरेंस बिश्नोई फिल्म स्टार सलमान खान को मारने की फिराक में है, ऐसा पुलिस का कहना है और लौरेंस के कुछ वीडियो भी सोशल मीडिया पर हैं जिस में वह ऐसा कहते सुना जा रहा है. सिद्धू मूसेवाला की हत्या में पुलिस उस की संलिप्तता मानती है तो वहीं सुखदेव सिंह गोगामेड़ी की हत्या का जिम्मेदार भी लौरेंस को माना जाता है.

यही नहीं कनाडा सरकार ने आरोप लगाया है कि भारत के गृहमंत्री अमित शाह के इशारे पर खालिस्तान समर्थक हरदीप सिंह निज्जर की हत्या भी लौरेंस गैंग ने की है. कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने कनाडाई नागरिकों की टार्गेट किलिंग का आरोप भारत पर मढ़ा है जिस के चलते दोनों देशों के बीच इस कदर खटास आ गई है कि दोनों देशों ने अपनेअपने राजदूतों को देश वापस बुला लिया है.

आखिर कौन है लौरेंस बिश्नोई?

पंजाब के फिरोजपुर जिले के धत्तरांवाली गांव का रहने वाला और पंजाब यूनिवर्सिटी से एलएलबी की डिग्री प्राप्त सतविंदर सिंह उर्फ़ लौरेंस बिश्नोई की उम्र अभी मात्र 31 साल है और दिलचस्प बात यह है कि वह पिछले 12 साल से जेल में है. यानी मात्र 19 साल की उम्र में वह जेल चला गया था. फिर उस ने ग्रेजुएशन और एलएलबी कब और कैसे की? वह दिल्ली की तिहाड़ जेल में रहा. राजस्थान की जोधपुर जेल में रहा.

आजकल लौरेंस गुजरात की जेल में बंद है. पुलिस कहती है कि वह जेल में रह कर अपना गैंग चला रहा है. उस के गैंग में 700 से अधिक क्रिमिनल्स हैं. जो उस के इशारे पर कभी भी कहीं भी किसी का भी गेम बजा देते हैं. क्या जेल प्रशासन और हमारी खुफिया एजेंसियां क्या छुट्टी पर हैं? अगर नहीं, तो फिर कैसे जेल की ऊंची और मजबूत दीवारों में कैद रहते हुए लौरेंस बिश्नोई ने इतना विशाल गैंग खड़ा कर लिया? गोल्डी बरार नाम के अपराधी के संपर्क में वह कब और कैसे आया, जिस को उस के गैंग का लेफ्टिनेंट कमांडर कहा जाता है और जो कई साल से विदेश में है. क्या जेल में रहते हुए किसी से संपर्क करना, किसी की सुपारी लेना, गैंग के सदस्यों से बातचीत करना इतना आसान है? आखिर लारेंस बिश्नोई जेल में बैठ कर कैसे ये सब कर रहा है? गुजरात की जेल में रहने के बावजूद लौरेंस बिश्नोई इतना शक्तिशाली कैसे है? मोदी सरकार लौरेंस बिश्नोई को अन्य मामलों में जांच के लिए गुजरात से बाहर अन्य जेलों में ले जाने के हर प्रयास का विरोध क्यों कर रही है? बिश्नोई जेल में रहते हुए कथित तौर पर भारत और विदेश में हत्याएं और जबरन वसूली कैसे कर सकता है? लौरेंस बिश्नोई को कौन बचा रहा है और किस के आदेश पर वह काम कर रहा है? क्या लौरेंस बिश्नोई जेल में बंद अपराधी है या मोदी सरकार उसे सक्रिय रूप से इस्तेमाल कर रही है? क्या एक गैंगस्टर को जानबूझ कर खुली छूट दी जा रही है? सवाल सैकड़ों हैं.

राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) जिस के सर्वेसर्वा अजीत डोभाल हैं, के मुताबिक लौरेंस गैंग न सिर्फ 700 शूटरों के साथ काम करता है बल्कि गैंग समय के साथ बड़ा होता जा रहा है. इस के औपरेशन जिस तरह 11 राज्यों में फैले हुए हैं, उस से लगता है कि ये गिरोह भी डी कंपनी यानि दाऊद इब्राहिम की राह पर चल रहा है. गौरतलब है कि 90 के दशक में दाऊद इब्राहिम को भी बड़ा डोन अजीत डोभाल ने ही साबित किया था और दाऊद के खिलाफ उन के पास भारत से ले कर पाकिस्तान तक तमाम सबूत भी मौजूद थे, बावजूद इस के दाऊद इब्राहिम कभी उन के शिकंजे में नहीं आया. अब दाऊद की तरह लौरेंस का नाम खूब चर्चा में है. लेकिन यह पुलिस और खुफिया एजेंसियों के लिए डूब मरने की बात है कि एक क्रिमिनल 12 साल से आप की निगरानी में जेल में बंद है फिर भी वह इतनी आसानी से बड़ीबड़ी वारदातों को अंजाम दे रहा है.

कभी सलमान खान को धमकी तो कभी उस पर गोली चलवाना, कभी सिद्धू मूसेवाला की हत्या… कभी कनाडा में औपरेशन तो कभी इंग्लैंड में क्राइम. हर बार ऐसे कांडों के बाद लौरेंस बिश्नोई का नाम लिया जाता है तो हैरानी ही होती है कि वो जेल में बैठ कर कैसे ये सब कैसे कर रहा है? कहीं ऐसा तो नहीं कि उस के कंधे पर बन्दूक धर कर कोई और इन तमाम सनसनीखेज कांडों को अंजाम दे रहा है?

दाऊद इब्राहिम भारतीय जांच एजेंसियां कहती हैं कि उस ने ड्रग तस्करी, लक्षित हत्याओं, जबरन वसूली रैकेट के जरिए अपने नेटवर्क का विस्तार किया था. बाद में पाकिस्तानी आतंकवादियों के साथ मिल कर उस ने डी-कंपनी बनाई. ठीक उसी तरह लौरेंस बिश्नोई ने भी अपना गिरोह बनाया और छोटेमोटे अपराधों से शुरुआत कर वह जल्दी ही उत्तर भारत के अपराध जगत पर छा गया.

लौरेंस बिश्नोई के निकट सहयोगी के रूप में गोल्डी बरार का नाम लिया जाता है. कहते हैं गोल्डी बरार इस गिरोह में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. वह कनाडा या विदेश में कहीं बैठ कर लौरेंस बिश्नोई के मुख्य लेफ्टिनेंट का काम करता है. उस की भागीदारी कई हाई-प्रोफाइल आपराधिक गतिविधियों और बिश्नोई के साथ रही है.

एएनआई के मुताबिक लौरेंस बिश्नोई गिरोह पहले पंजाब तक ही सीमित था लेकिन अपने करीबी सहयोगी गोल्डी बरार की मदद से लौरेंस बिश्नोई ने हरियाणा, दिल्ली और राजस्थान के गिरोहों के साथ गठजोड़ कर के एक बड़ा नेटवर्क तैयार कर लिया. ये गिरोह पंजाब, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, महाराष्ट्र, दिल्ली, राजस्थान और झारखंड सहित पूरे उत्तर भारत में फैल चुका है. मुंबई में सरेआम बाबा सिद्दीकी को गोली मारने के आरोप में पकड़े गए दो शूटर यूपी के बहराइच जिले के एक गांव के हैं, जो अपनी रोजी कमाने के लिए पुणे गए थे. ऐसे लाखों बेरोजगार युवा देश में हैं जिन्हे चंद पैसे का लालच दे कर अपराध की काली दुनिया में घसीट लिया जाता है.

बात करते हैं बाबा सिद्दीकी की, जिन की 12 अक्टूबर की देर रात मुंबई के बांद्रा इलाके में गोली मार कर हत्या कर दी गई. और पुलिस के मुताबिक़ इस हत्या की जिम्मेदारी लौरेंस गैंग ने ली है. बाबा जियाउद्दीन सिद्दीकी भारत के महाराष्ट्र में बांद्रा वेस्ट विधानसभा सीट के विधायक थे. बाबा ने युवावस्था में कांग्रेस ज्वाइन की थी. मुंबई कांग्रेस के एक प्रमुख अल्पसंख्यक चेहरे, सिद्दीकी ने कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन के सत्ता में रहने के दौरान मंत्री के रूप में भी कार्य किया था. वह 1999, 2004 और 2009 में लगातार 3 बार विधायक रहे और उन्होंने 2004 से 2008 के बीच मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख के अधीन खाद्य और नागरिक आपूर्ति और श्रम राज्य मंत्री के रूप में भी काम किया.

सिद्दीकी ने 1992 से 1997 के बीच लगातार दो कार्यकालों के लिए नगर निगम पार्षद के रूप में भी काम किया था. अपनी मृत्यु से पहले, उन्होंने मुंबई क्षेत्रीय कांग्रेस समिति के अध्यक्ष और वरिष्ठ उपाध्यक्ष और महाराष्ट्र प्रदेश कांग्रेस समिति के संसदीय बोर्ड के रूप में कार्य किया. 8 फरवरी 2024 को, उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया और 12 फरवरी 2024 को वे अजीत पवार के नेतृत्व वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए.

सिद्दीकी का संबंध अंडरवर्ल्ड गैंग से माना जाता है. कहते हैं वह दाऊद के करीबी थे. इसी के साथ वह कई फिल्म अभिनेताओं के भी करीबी मित्र थे जिस में सुनील दत्त का नाम भी शामिल है. 2005 में सुनील दत्त की मौत के बाद भी सिद्दीकी उन के घर पर आते रहे. राजनीति में वे प्रिया दत्त के गुरु थे, लेकिन बाद में उन्होंने संजय दत्त को छोड़ कर बाकी दत्त परिवार से खुद को अलग कर लिया. फिल्म अभिनेता सलमान खान और बाबा सिद्दीकी दो दशकों से भी ज़्यादा समय से करीबी दोस्त थे. बौलीवुड के ‘सुल्तान’ हमेशा सिद्दीकी की सालाना इफ्तार पार्टियों में शामिल होते थे. वे हर मुश्किल समय में एकदूसरे के साथ खड़े रहते थे. अनेक फ़िल्मी हस्तियों के घर पर बाबा का उठनाबैठना था.

राजनीति में रहते और अंडरवर्ल्ड से नजदीकियों के चलते बाबा सिद्दीकी ने अथाह दौलत इकट्ठा कर ली. इंफोर्समेंट डायरैक्टर (ईडी) ने साल 2018 में बाबा सिद्दीकी की 462 करोड़ रुपये की संपत्ति को अटैच किया था. यह संपत्ति बांद्रा वेस्ट में स्थित थी और इसे धन शोधन निरोधक अधिनियम के तहत जब्त किया गया था. एजेंसी यह जांच कर रही थी कि क्या बाबा सिद्दीकी ने 2000 से 2004 तक महाराष्ट्र हाउसिंग और एरिया डेवलपमेंट अथौरिटी के चेयरमैन के रूप में अपनी पद का गलत इस्तेमाल कर पिरामिड डेवेलपर्स को बांद्रा में विकसित हो रहे स्लम रिहैबिलिटेशन अथौरिटी प्रोजैक्ट में मदद की थी. इस कथित घोटाले की राशि 2,000 करोड़ रुपये बताई गई थी.

कयास लगाए जा रहे हैं कि स्लम रिहैबिलिटेशन अथौरिटी रिडेवलपमेंट का मामला भी बाबा सिद्दीकी की हत्या की वजह हो सकती है, क्योंकि कुछ रोज पहले से इस मामले में बाबा सिद्दीकी के बेटे जीशान सिद्दीकी, जो खुद एक राजनेता हैं, इस का विरोध कर रहे थे. ईडी इस मामले में बाबा सिद्दीकी की गिरफ्तारी की तैयारी में भी थी कि तभी बाबा की हत्या हो गई.

अगर बाबा सिद्दीकी को ईडी अरेस्ट करती तो जाहिर है स्लम घोटाले से ही नहीं बल्कि बौलीवुड और अंडरवर्ल्ड के बीच कई रिश्तों से भी पर्दा उठता. कई राज बाहर आते. रौ के पूर्व अधिकारी एनके सूद का कहना है कि बाबा सिद्दीकी अंडरवर्ल्ड और बौलीवुड के बीच मध्यस्थ थे. दाऊद की डी कंपनी से उन के आज भी काफी नजदीकी संबंध थे.

उधर लौरेंस बिश्नोई और डी कंपनी के बीच शत्रुता की कहानी भी बांची जा रही है और कहा जा रहा है कि बिश्नोई गैंग डी कंपनी को ख़त्म कर उस की जगह लेने की फिराक में है और बाबा की हत्या कर उस ने डी कंपनी को चुनौती दी है. ऐसे में लौरेंस बिश्नोई, दाऊद इब्राहिम या 462 करोड़ की प्रौपर्टी… बाबा सिद्दीकी की हत्या के पीछे बड़ा राज छिपा है. बाबा सिद्दीकी की हत्या में जितना दिख रहा है उस से कहीं अधिक इस में पेंच हैं.

इसी बीच देश में कई जगहों पर बहुत बड़ी मात्रा में ड्रग्स पकड़ी गई हैं. इतनी भारी मात्रा में ड्रग्स का देश के भीतर आना और खपाया जाना बहुत बड़ी चिंता को जन्म देता है. ड्रग्स का इस्तेमाल युवा वर्ग करता है. स्कूल, कालेज, औफिसेस से ले कर गांवदेहातों तक युवाओं के बीच ड्रग्स की खपत बढ़ रही है. जाहिर है एक बहुत बड़ी साजिश के तहत देश की युवा शक्ति को कमजोर और जर्जर किया जा रहा है.

जिस दिन बाबा सिद्दीकी की ह्त्या हुई उसी दिन यानी 12 अक्टूबर को दिल्ली पुलिस की स्पैशल ब्रांच और गुजरात पुलिस ने एक साझा अभियान में गुजरात के भरूच जिले के अंकलेश्वर से 518 किलो हेरोइन जब्त की. अंतरराष्ट्रीय बाजार में इस की कीमत 5 हजार करोड़ रुपये आंकी गई.

इस से पहले 10 अक्टूबर को दिल्ली पुलिस ने पश्चिमी दिल्ली के रमेश नगर में एक दुकान से नमकीन के पैकेट में रखी 208 किलो कोकीन बरामद की थी. इस की क़ीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार में करीब दो हजार करोड़ रुपये आंकी गई थी. ये ड्रग्स रमेश नगर की एक पतली गली में स्थित एक दुकान में 20 पैकेटों में रखी थी और आगे डिलीवर की जानी थी.

वहीं, एक अक्टूबर को दिल्ली पुलिस ने महिपालपुर में एक वेयरहाउस से 562 किलो हेरोइन और 40 किलो हाइड्रोपोनिक गांजा बरामद किया था. जो ड्रग्स महिपालपुर से पकड़ी गई हैं वो भारत के बाहर से लाई गई थी. 562 किलो कोकीन के अलावा जो 40 किलो हाइड्रोपोनिक गांजा पकड़ा गया था, वो थाईलैंड से आया था.

स्पैशल सेल के एक अधिकारी के मुताबिक़ एक अक्तूबर और 10 अक्तूबर को दिल्ली के दो अलगअलग इलाक़ों से जो ड्रग्स बरामद की गई, वह एक ही ड्रग्स रैकेट से संबंधित हैं. गुजरात के भरूच में बरामद ड्रग्स भी इसी रैकेट से जुड़ी है.

5 अक्टूबर को गुजरात पुलिस ने नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के साथ मिल कर भोपाल की एक फैक्ट्री से 907 किलो मेफेड्रोन (एमडी) ड्रग्स बरामद की, जिस की कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार में 1814 करोड़ रुपए आंकी गई. क़रीब 5 हजार किलो कच्चा माल भी इस छापेमारी के दौरान बरामद किया गया. ये ड्रग्स भोपाल के बागोड़ा इंडस्ट्रियल एस्टेट में चल रही एक फैक्ट्री से बरामद की गई थी.

देश में जिस बड़े पैमाने पर ड्रग्स पकड़ी जा रही हैं, यह अभूतपूर्व है. इस तरह के बड़ेबड़े ड्रग नेटवर्क भारत में कैसे काम कर रहे हैं? सीमापार से इतनी भारी मात्रा में ड्रग्स की खेप अंदर कैसे आ रही है? बौर्डर सिक्योरिटी फोर्स और खुफिया एजेंसियां क्या कर रही हैं? ड्रग नेटवर्क भारत की सीमा में कैसे ड्रग्स पहुंचाने में कामयाब हो रहे हैं? इस संबंध में अभी तक कोई बड़ा किंगपिन गिरफ्तार क्यों नहीं हुआ?

बड़ी तादाद में ड्रग्स का पकड़ा जाना ये भी बताता है कि भारतीय बाजार में ड्रग्स की मांग बढ़ रही है और इसलिए ही इस की सप्लाई बढ़ी है. अगर डिमांड नहीं बढ़ती तो इतनी बड़ी मात्रा में सप्लाई नहीं होती. इस कारोबार में पैसा भी बहुत है, इसलिए अपराधी इस की तरफ आकर्षित हो रहे हैं. पुलिस की कार्रवाई से पता चलता है कि ड्रग्स तस्करी के नेटवर्क और संगठित हुए हैं. हाल के सालों में ड्रग्स से जुड़े अपराध बहुत तेजी से बढ़े हैं.

गौरतलब है कि लौरेंस बिश्नोई को भी अगस्त 2023 में सीमा पार से ड्रग्स की तस्करी के एक मामले में दिल्ली की तिहाड़ जेल से साबरमती सेंट्रल जेल में स्थानांतरित किया गया था. साफ है कि जो गिरोह आतंक और हत्या का धंधा चला रहे हैं वही ड्रग्स और जिस्मफरोशी का कारोबार भी कर रहे हैं. और यह सब उन के राजनीतिक आकाओं के संरक्षण में फलफूल रहा है.

भारत एक युवा देश है. यहां 18 से 30 आयु वर्ग के लोगों की तादाद सब से ज्यादा है. यह ऊर्जा का बहुत बड़ा और बहुत शक्तिशाली पुंज है. लेकिन मोदी सरकार इस शक्ति को देश के विकास में इस्तेमाल नहीं कर पा रही है. सरकार इन युवाओं को रोजगार नहीं दे पा रही है. असंख्य युवा आज बेरोजगार हैं. जिन्हे थोड़े से पैसे का लालच दे कर बहुत आसानी से बरगलाया जा सकता है. चंद रुपयों के लालच में ये किसी की भी जान ले सकते हैं. ह्त्या, अपहरण, देह व्यापर और नशे के कारोबार को बढ़ाने में यही युवा वर्ग बहुत बड़ी भूमिका निभा रहा है.

लौरेंस बिश्नोई या दाऊद की कथित डी कंपनी ऐसे ही बेरोजगार युवाओं का इस्तेमाल कर रही है. वह इन्हें पैसे और हथियार मुहैया करा रही है. बाबा सिद्दीकी की हत्या में जितने युवा पुलिस की गिरफ्त में आते जा रहे हैं वे सभी गरीब घरों के बेरोजगार हैं जो मजदूरी के इरादे से महानगरों की तरफ गए और बड़ी आसानी से अपराधी गिरोहों के जाल में फंस गए. इन के पास से विदेशी असलहे बरामद हुए हैं.

युवा शक्ति को सही दिशा देने में नाकाम मोदी सरकार की अग्निवीर योजना भी देश की सुरक्षा के लिए खतरनाक स्थितियां पैदा करेगी. 4 साल की नौकरी के बाद इन्हें सेना से निकाल दिया जाएगा. इन के पास कोई नौकरी, कोई पेंशन नहीं होगी. यह एक ऐसी बेरोजगार फौज होगी जिस को हथियार चलाना, गोला बारूद फेंकने में महारत हासिल होगी. ये बेरोजगारों की एक ऐसी फौज होगी जिसे देश की सुरक्षा प्रणाली की पूरी जानकारी होगी. जो यह भी जानती होगी कि सेना किस तरह काम करती है, उस के हथियारों का जखीरा कहांकहां है? उस पर कब कहां और कैसे हमला किया जा सकता है. हमारी सुरक्षा व्यवस्था कहां कहां पर ढीली है. हथियार चलाने में ट्रेंड इस बेरोजगार फौज को अपराधी समूह आसानी से अपनी गैंग में शामिल कर देश विरोधी गतिविधियों में लगा देंगे. यह मादक द्रव्यों के सप्लायर बनेंगे. ये भाड़े पर हत्याएं करेंगे. आका के इशारे पर लोगों का अपहरण करेंगे. ये अपराधी समूहों के शार्प शूटर्स बनेंगे और अपनी दबंगई से देश को थर्राने का काम करेंगे.

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