उत्तर प्रदेश की जनता ने जिस भारतीय जनता पार्टी को अपनी बेरोजगारी, बीमारी, कुपोषण और भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए बहुमत से सरकार बनाने का मौका दिया, उसी की सरकार ने करोड़ों रुपए अयोध्या में दीपोत्सव मनाने में खर्च कर दिए. यह रकम सरकारी खजाने की थी. सरकारी खजाना जनता के कर योगदान से भरा जाता है. प्रदेश सरकार ने अयोध्या में 6 लाख दीए जला कर दीवाली मनाई.

6 लाख दीयों में करीब 6 हजार लिटर सरसों का तेल प्रयोग हुआ. जिस की कीमत 100 रुपए प्रति लिटर के हिसाब से 6 लाख रुपए बैठती है. सरसों के तेल का प्रयोग खाने में किया जाता है. सवाल उठता है कि क्या सरकार को खाने के तेल को जलाने का हक है? अगर सरकार खुद ऐसे आयोजन में फुजूलखर्ची कर रही है तो जनता को कैसे रोका जा सकता है. भाजपा समाजवादी पार्टी की सरकार के कार्यकाल के दौरान सैफई महोत्सव में होते खर्चों पर सवाल उठाती रही है. जब खुद सत्ता में आई तो राम के नाम पर राजनीति करने के लिए अयोध्या में सरकारी खर्च पर दीपोत्सव मनाने लगी.

राम की राजनीति करने वाली भाजपा अयोध्या मामले पर सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले से पहले वहां भव्य कार्यक्रम का आयोजन करना चाहती थी. इस के लिए सरकार ने दीपोत्सव का बजट बढ़ा दिया.

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एक दिन के दीपोत्सव को 3 दिन का कार्यक्रम बना दिया गया. कार्यक्रम को दुनिया के सामने लाने व विश्व रिकौर्ड बनाने के लिए 6 लाख दीये जलाने का काम किया गया.

एक पुरानी कहावत है, ‘9 की लकड़ी 90 खर्च.’ उत्तर प्रदेश की योगी सरकार पर यह कहावत पूरी तरह फिट बैठती है. अयोध्या में राम की पैड़ी पर दीपोत्सव मनाने के लिए प्रदेश सरकार ने 5 लाख

50 हजार से अधिक के मिट्टी के दीये जलाने का लक्ष्य रखा था. इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए सरकार ने दीपोत्सव के बजट को बढ़ा दिया था. ऐसे में सरकार ही नहीं, दूसरे तमाम संस्थान भी दीपोत्सव को सफल बनाने के लिए कमर कस कर खड़े हो गए. अयोध्या के मंदिरों में भी ज्यादा से ज्यादा दीये जलाने का काम किया गया. दीये जलाने के साथ ही तमाम तरह के भव्य कार्यक्रम भी आयोजित किए गए.

फलस्वरूप, 6 लाख से अधिक दीये रोशन हो गए. पिछले साल दीपोत्सव के बाद अगली सुबह दीये पूरे अयोध्या में बिखरे पड़े थे. इस बार सरकार और अयोध्या नगर निगम ने कार्यक्रम खत्म होने के बाद ही कार्यक्रम स्थल से दीयों को समेटना शुरू कर दिया. इन दीयों को आधी रात के बाद सरयू नदी में प्रवाहित कर दिया गया. इस से अगली सुबह अयोध्या में राम की पैड़ी में दीये बिखरे नहीं दिखे. सरयू नदी में ये दीए वर्षों तक पानी रोकते रहेंगे, प्रदूषण फैलाएंगे, उस की चिंता योगी, मोदी को कहां. पिछले साल दीपोत्सव के बाद अयोध्या में बिखरे दीयों की वायरल हुई फोटो को ले कर सरकार की कड़ी आलोचना की गई थी.

दीपोत्सव को सफल बनाने के लिए प्रदेश सरकार के बड़े अफसर कई दिनों से तैयारी कर रहे थे. 3 दिनों तक चले दीपोत्सव के समापन वाले दिन दीये जगमगाए गए थे. दीवाली के दिन शाम को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, राज्यपाल आनंदी बेन पटेल और मुख्य अतिथि के रूप में फिजी गणराज्य की डिप्टी स्पीकर वीना भटनागर के साथ प्रदेश के डिप्टी सीएम दिनेश शर्मा और केशव मौर्य भी मौजूद थे.

दीपोत्सव को ऐतिहासिक बनाने के लिए गिनीज बुक औफ वर्ल्ड रिकौर्ड्स के लोगों ने अयोध्या में एक समय में सब से अधिक दीये जलाने का रिकौर्ड दर्ज किया. राम और सीता को हैलिकौप्टर से सरयू के तट पर उतारा गया और तब मुख्यमंत्री ने उन की आरती उतारी.

राम के नाम पर भव्य आयोजन जनता को लुभाने का काम करते हैं. भव्य आयोजन में कोई कमी न रह जाए, इसलिए बजट बढ़ा दिया गया. पुलिस, पीडब्लूडी, कौर्पोरेशन के खर्च भी जोड़ लें, तो खर्च कहीं ज्यादा होगा. बजट के बढ़ने से सरकारी विभागों और गैरसरकारी संस्थाओं की रुचि इस में बढ़ गई. जिस प्रदेश में जनता रोजगार, नौकरी के लिए दरदर भटक रही हो वहां दीये जलाने के लिए सरकार करोड़ों रुपए फुजूल में खर्च कर रही है.

चर्चा में दीपोत्सव बजट

अयोध्या दीपोत्सव के बजट को ले कर असमंजस बना रहा. योगी सरकार ने अपने तीसरे अनुपूरक बजट में इस के लिए 6 करोड़ रुपए का बजट रखा था. इस के साथ ही साथ 100 करोड़ रुपए का बजट दूसरे धार्मिक स्थलों के लिए आवंटित किया गया. इस के बाद योगी सरकार ने अयोध्या के दीपोत्सव को राज्य उत्सव का दर्जा दे दिया. इस के बजट को बढ़ा कर 33 करोड़ रुपए कर दिया गया. अयोध्या दीपोत्सव के भारीभरकम खर्च को ले कर योगी सरकार की आलोचना शुरू हो गई. कुछ समाचारपत्रों में खर्च का आंकड़ा 133 करोड़ रुपए लिखा गया. फुजूलखर्ची की आलोचना से जागे योगी सरकार के अफसरों ने अपनी वैबसाइट पर इस खर्च को 1.33 करोड़ रुपए दिखाना शुरू कर दिया. सवाल उठता है कि 6 करोड़ और 33 करोड़ और 133 करोड़ रुपए के बाद अचानक यह खर्च घट कर 1.33 करोड़ रुपए कैसे हो गया?

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असल में योगी सरकार खुद इस खर्च के सही आंकड़े सामने नहीं रख रही है. बजट के बोझ को अलगअलग मदों में बांट दिया गया ताकि खर्च एक जगह कम दिखे. 6 लाख दीपक जलाने के लिए 133 करोड़ रुपए का खर्च भारीभरकम लग रहा था. एक दीपक जलाने में करीब 2,200 रुपए का खर्च दिख रहा था, जो हर तरह से आलोचना का विषय हो सकता था. सोशल मीडिया और वैबसाइट की खबरों में आलोचना शुरू हो गई. आलोचना से बचने के लिए आंकड़ों को कम दिखाने का काम किया गया. आंकड़ों की बाजीगरी कर के इस 133 करोड़ रुपए को 1.33 करोड़ रुपए कर दिया गया. ऐसा कैसे हो गया, यह शोध का विषय हो सकता है.

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