ऐसा पहली मर्तबा नहीं हो रहा है इससे पहले भी हम अन्नदाताओं के सीने छलनी होते देख चुके है. सियासतदानों के वादों और चुनावी घोषणा पत्रों में किसानों की हिमायतगार बनने वाले ये नेता हमेशा से ही इस वर्ग से फरेब करते आए हैं. ताजा मामला है उन्नाव से. जहां पर किसान अपनी जमीन का उचित मुआवजा मांगने के लिए सड़कों पर आ गए थे. किसानों का आंदोलन बढ़ता देख यूपी पुलिस ने निहत्थों पर वार करना शुरू कर दिया. पुलिस की लाठी ने बिना भेदभाव किए सबकों एक तराजू में तौल दिया. कौन बुजुर्ग, कौन महिला सबको मारकर तितर-बितर किया गया. हो सकता हो इसमें प्रशासन का ये कहना हो कि शांति व्यवस्था बनाने के लिए ऐसा करना पड़ा. हम उस चर्चा में जाकर आपका और अपना समय व्यर्थ ही बर्बाद नहीं करूंगा. खास बात तो यह है कि जिस वक्त किसानों और पुलिस के बीच ये सब हो रहा था उस दौरान सीएम योगी गोरखपुर में किसानों को ही संबोधित कर रहे थे.

प्रदर्शनकारी किसानों ने जेसीबी और गाड़ी पर पथराव किया. इसके बाद जिला प्रशासन की तरफ से 12 थानों की पुलिस और कई कंपनी पीएसी को मौके पर भेजा गया. इसके साथ ही सिटी मजिस्ट्रेट के नेतृत्व में तहसील विभाग के अधिकारी भी मौके पर पहुंचे. दरअसल, प्रशासन शनिवार को किसानों की जमीन पर जेसीबी चलवाए जाने के बाद किसान उग्र हो गए. किसानों ने नाराज होकर जेसीबी पर पथराव कर दिया. बताया जा रहा है कि मौके पर अब भी भारी फोर्स तैनात है.

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किसानों का आरोप है कि 2005 में बगैर समझौते के उनकी जमीनों को अधिगृहित कर लिया गया था, लेकिन बदले में उसका मुआवजा नहीं दिया जा रहा. इसके विरोध में हम सड़क पर उतरे हैं. असल में, पूरा मामला यूपीएसआईडीसी की ट्रांस गंगा सिटी का है, जहां किसान अधिग्रहण की शर्तें पूरी नहीं किए जाने के कारण लगातार विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं.

जिस योजना के लिए किसानों की जमीन अधिग्रहित की गई है उसकी नींव 2003 में तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के कार्यकाल में पड़ी थी. यहां पर ट्रांस गंगा हाई टेक योजना बनी थी. करीब ढाई साल पहले उन्नाव के जिलाधिकारी ने आश्वासन दिया था कि वे इसके लिए विशेष दल गठित कर मामले का निपटारा कराने का प्रयास करेंगे. मगर अब तक प्रशासन की तरफ से कोई संतोषजनक नतीजा सामने नहीं आ पाया है, जिसकी वजह से किसान आंदोलन पर उतर आए हैं. इस तरह विकास परियोजनाओं के लिए भूमि अधिग्रहण में पारदर्शिता न बरते जाने या फिर अधिग्रहीत भूमि के मुआवजे की रकम का संतोषजनक भुगतान न हो पाने की वजह से देश के विभिन्न हिस्सों से किसानों और आदिवासियों के आंदोलन उभरते रहे हैं.

कई बार ऐसे आंदोलन हिंसक रूप भी अख्तियार कर लेते रहे हैं. हालांकि पहले के मुकाबले अब भूमि अधिग्रहण कानून को काफी पारदर्शी बनाने का प्रयास किया गया है. इसमें मुआवजे की रकम भी बाजार भाव से अधिक रखी गई है. किसानों की मंजूरी के बिना भूमि अधिग्रहण नहीं किया जा सकता. लेकिन हकीकत कुछ और ही कहानी बयां कर रही है. भूमि अधिग्रहण के लिए प्रशासन बल का प्रयोग या फिर मनमानी करता है. उसमें मुआवजे की रकम पर भी अड़चनें देखी जाती हैं. उन्नाव में बन रहे गंगा ट्रांस सिटी के मामले में भी ऐसी ही तकनीकी दिक्कतें हैं.

भूमि अधिग्रहण कानून में बदलाव से अब मुआवजे की रकम बाजार भाव से अधिक तो मिलने लगी है, पर इसके भुगतान में जिस तरह सरकारी अमले का भ्रष्ट आचरण अड़चनें पैदा करता है, वह किसी से छिपा नहीं है. इसे लेकर उत्तर प्रदेश प्रशासन पर कुछ अधिक अंगुलियां उठती रही हैं। इसलिए उन्नाव में किसानों के मुआवजे के भुगतान में विलंब हुआ है या फिर उन्हें उचित मुआवजा नहीं मिला है, तो उनका रोष समझा जा सकता है.

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क्या है ट्रांस गंगा प्रोजेक्ट

इस प्रोजक्ट के तहत 1156 एकड़ जमीन अधिग्रहित की गई थी. इस जमीन पर लो राइड बिल्डिंग खड़ी की जाएंगी. जिनकी ऊंचाई लगभग 100 से 140 मीटर तक होगी. प्रोजक्ट रिपोर्ट के अनुसार पर्यावरण को देखते हुए हर दो बिल्डिंग बीच ग्रीन लैंड बनाया जाएगा. जिससे कि लोगों को शुद्ध हवा मिल सके. इसके अलावा यहां पर हर प्रकार की सुविधाएं मुहैया कराई जाएंगी. साथ ही आप इन इमारतों से गंगा नदीं का नजारा भी देख सकते हैं.

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