बात 26 जून, 1975 की है. देश पर आपातकाल थोप दिया गया था. इंदिरा गांधी सुप्रीम लीडर थी. तमाम विरोधी दलों के नेता जेलों में बंद थे. इस इमरजैंसी का विरोध सोशलिस्ट लीडर मधु दंडवते और उन की पत्नी प्रमिला दंडवते ने भी किया था, जिस का अंजाम यह हुआ कि उन्हें आपातकाल खत्म होने तक जेल हुई. मधु को बेंगलुरु सेंट्रल जेल में और लगभग 900 किलोमीटर दूर प्रमिला को यरवदा सेंट्रल जेल में बंद किया गया.
सवाल यह कि इंसानों को कैद किया जा सकता है पर क्या प्रेम को किया जा सकता है? इस का जवाब इन दोनों के उन पत्र व्यवहार ने दिया जो न तो इन के बीच की दूरी की बाधा बनी या न निराशा का कारण. बल्कि इस मुश्किल समय में इन दोनों का प्रेम एक दूसरे के लिए और भी गहरा होता गया.
कैद के दौरान मधु और प्रमिला ने एकदूसरे को लगभग 200 लैटर्स लिखे. एक विचारधारा से आने वाले इस कपल ने इन लैटर्स में एकदूसरे से संगीत, पुस्तकों, कविता और फिलौसफी पर चर्चा की. यही नहीं उन्होंने इस सवाल से भी निपटने की कोशिश की कि क्या आजादी के बिना प्रेम संभव है?
एजुकेशनिष्ट ज्ञान प्रकाश ने ‘इमरजेंसी क्रौनिकल्स : इंदिरा गांधी एंड डैमोक्रेसीज टर्निंग प्वाइंट’ में मधु और प्रमिला के लैटर्स पर स्टडी की. उन्होंने अपने कन्क्लूजन में लिखा, “दोनों के बीच हुए लैटर्स कम्युनिकेशन से प्रेम के दर्द को बयां करते हैं और साथ ही साथ उन्होंने फ्रीडम को ले कर अपनी कमिटमैंट को प्रेम के इमोशनल बांड से दिखाने का काम किया. वे एकदूसरे से प्यार करते थे क्योंकि वे आजादी से प्यार करते थे. उन के प्रेम ने आजादी के अर्थ को भी मजबूत और विस्तार दिया.”