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शिकार

चेन्नई एक्सप्रेस तेजी से अपने गंतव्य की ओर दौड़ी जा रही थी. श्याम ने गाड़ी के डिब्बे की खिड़की से बाहर झांकते हुए कहा, ‘‘बस, थोड़ी ही देर में हम चेन्नई के सेंट्रल स्टेशन पर पहुंचने वाले हैं.

फिर उस ने अपनी नव विवाहिता पत्नी के चेहरे को गौर से निहारा. उसे अभी भी विश्वास नहीं हो रहा था कि उसे इतनी सुंदर और पढ़ीलिखी पत्नी मिली है. जब उसे अपने पिता का पत्र मिला था कि उन्होंने अपने मित्र की बेटी से उस की शादी तय कर दी है तो उसे बहुत गुस्सा आया था. लेकिन मीरा की एक झलक देखने के बाद उस का गुस्सा हवा हो गया था.

श्याम को अपनी ओर निहारते देख मीरा लजा गई. पर वह मन ही मन खुश थी. लेकिन उस वक्त उसे श्याम को यह जताना उचित नहीं लगा कि उस के मन में भी अपने विवाह को ले कर ढेर सारी शंकाएं थीं. एक अनजान व्यक्ति से शादी के गठबंधन में बंध कर उस के साथ पूरा जीवन बिताने के खयाल से ही वह भयभीत थी और मातापिता से विद्रोह करना चाहती थी.

लेकिन श्याम को देख कर उसे थोड़ा इत्मीनान हुआ. उस का चेहरामोहरा भी अच्छा था और वह स्मार्ट भी था. श्याम चेन्नई में एक निजी कंपनी में कार्यरत था. मीरा को ऐसा लगा कि श्याम के साथ उस की अच्छी भली निभ जाएगी और दोनों की जिंदगी आराम से कटेगी.

रेलगाड़ी से उतर कर श्याम और मीरा एक बेंच पर बैठ गए. श्याम ने अपना मोबाइल निकाला और मीरा की ओर देख कर बोला, ‘‘ओह, मेरे मोबाइल की बैटरी तो बिलकुल खत्म हो गई है. मैं ने अपने एक दोस्त को हमें पिक करने को कह दिया था, लेकिन वह कहीं दिख नहीं रहा. जरा अपना मोबाइल तो देना. मैं उसे फोन करता हूं, अभी तक आया क्यों नहीं?’’

फोन लगाने के कुछ देर बाद वह बोला, ‘‘ताज्जुब है, उस का फोन औफ है. जरा मैं बाहर देख कर आता हूं कि वह आया है कि नहीं. तुम यहीं ठहरो.’’

‘‘लेकिन मैं यहां अकेली…’’ मीरा ने चिंता जताई.

‘‘ओह… अकेली कहां हो. चारों ओर इतनी भीड़भाड़ है. फिर अपना सामान भी तो है. इस की निगरानी कौन करेगा? बस, मैं यों गया, यों आया.’’

श्याम तुरंत बाहर की ओर चला गया. मीरा के चेहरे पर थोड़ी परेशानी झलक आई. एक तो सफर की थकान, दूसरे एकदम अजनबी शहर. वह अपने बक्सों पर नजर गड़ाए एक बैंच पर सिकुड़ कर बैठ गई. बारबार उस की नजरें बाहर वाले उस गेट की तरफ उठ जातीं, जहां से उस का पति बाहर गया था. पलपल उस की अधीरता बढ़ती जा रही थी. श्याम को गए काफी समय हो गया था और उस का कोई अतापता नहीं था. उस ने कुढ़ कर सोचा, ‘कहां रह गए.’

सहसा उस ने देखा कुछ युवक उस के पास आ कर रुके. ‘‘भाभी.’’ एक ने कहा, ‘‘आप मीरा भाभी ही हैं न, श्याम की पत्नी?’’

‘‘हां, लेकिन आप लोग कौन?’’ उस ने सवालिया नजरें उन पर गड़ा दीं.

‘‘हम उस के जिगरी दोस्त हैं, हम लोग श्याम की बारात में मुंबई आए थे न. आप ने हमें पहचाना नहीं क्या? मैं अनंत हूं और ये तीनों मनोहर, प्रेम और मुरुगन. हम आप दोनों को लेने निकले थे, लेकिन रास्ते में हमारी गाड़ी खराब हो गई. हमें टैक्सी कर के आना पड़ा, पहुंचने में थोड़ी देरी हो गई… खैर, श्याम कहां हैं?’’

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‘‘वो तो आप को ही खोजने गए हैं.’’

‘‘ओह, हमारी नजर उस पर नहीं पड़ी. कोई बात नहीं, चलिए चलते हैं. श्याम को बाहर से ले लेंगे.’’

उन्होंने मीरा को कुछ बोलने का अवसर नहीं दिया और उसे लगभग खदेड़ कर साथ ले चले.

‘‘श्याम कहीं दिखाई दे नहीं रहा है,’’ अनंत ने कहा, ‘‘कोई हर्ज नहीं, हम में से कोई एक यहां रुक जाएगा, और उसे अपने साथ औटो में ले आएगा. वैसे भी टैक्सी में 4 से अधिक सवारी नहीं बैठ सकतीं.’’

धोखे का शिकार हुई नवविवाहिता मीरा…उन्होंने मीरा को गाड़ी में बिठाया और आननफानन में टैक्सी चल पड़ी. मीरा के मन में धुकधुकी सी होने लगी. ये लोग उसे कहां लिए जा रहे हैं? अनजान शहर, अनजाने लोग. उस की घबराहट को भांप कर उस के साथ बैठा युवक हंसा, ‘‘भाभी, आप जरा भी न घबराएं. हम पर भरोसा कीजिए. हम चारों श्याम के बचपन के दोस्त हैं. अब तक हम बेसांटनगर में साथ ही रहते थे. अब उस ने अड्यार में किराए के एक दूसरे फ्लैट में शिफ्ट कर लिया है.’’

कुछ देर बाद टैक्सी रुकी.

‘‘आइए भाभी.’’ अनंत ने कहा.

मीरा ने चारों तरफ नजरें घुमाते हुए पूछा, ‘‘ये कौन सी जगह है?’’

‘‘ये हमारा घर है. आप को यहां थोड़ी देर रुकना पड़ेगा.’’

मीरा थोड़ी असहज हो गई, ‘‘लेकिन क्यों? और मेरे पति कहां रह गए?’’  उस ने पूछा.

‘‘बस, थोड़ी देर की बात है.’’ कहते हुए वे मीरा को घर के अंदर ले गए.

‘‘श्याम भी आता ही होगा. आप बैठिए. मैं आप के लिए कौफी बना कर लाता हूं.’’ अनंत ने कहा.

‘‘आप के घर में कोई महिला नहीं है क्या?’’ मीरा ने सवाल किया.

अनंत हंस दिया, ‘‘नहीं, हम चारों अभी कुंवारे हैं.’’

थोड़ी देर में कौफी आ गई. मीरा ने अनिच्छा से कौफी को मुंह लगाया. उस के मन में एक अनजाना सा डर बैठ गया था. वह सोच रही थी, ‘आखिर श्याम कहां रह गया और उस ने अब तक उस से फोन पर बात क्यों नहीं की?’

‘‘भाभी,’’ अनंत आत्मीयता से बोला, ‘‘हमारी कुटिया में आप के चरण पड़े. आप के साथ हमारी थोड़ी पहचान भी हो गई. हमें बड़ा अच्छा लगा. बाद में तो मिलनामिलाना होता ही रहेगा.’’

अनंत उस से जबरन नजदीकियां बनाना चाह रहा था. मीरा ने चिढ़ कर सोचा. यह जबरन उस के गले पड़ रहा है. बात इतनी ही नहीं है. इन सब ने एक तरह से उसे स्टेशन से अगवा कर लिया था और उस की मरजी के बगैर उसे वहां रोक रखा था. वे चारों उस के इर्दगिर्द शिकारी कुत्तों की तरह मंडरा रहे थे, पर उस से आंखें मिलाने से कतरा रहे थे.

उन के संदिग्ध व्यवहार से साफ लग रहा था कि उन के इरादे नेक नहीं हैं. उन की नीयत में खोट है. मीरा के मन में भय का संचार हुआ. उस ने उन लोगों के साथ आ कर बड़ी भूल की. अब वह उन के जाल से कैसे छूटेगी?

वह भयभीत थी. तभी अनंत ने अचानक अपने चेहरे से भलमनसाहत का मुखौटा उतार फेंका. उस के होंठों पर एक कुटिल मुसकान खेल रही थी, आंखों में वासना की लपटें दहक रही थीं.

पति के दोस्त ही निकले दरिंदे एकाएक उस ने मीरा पर धावा बोल दिया. मीरा की चीख निकल गई.

‘‘ये क्या कर रहे हैं आप?’’ उसने अपने आप को छुड़ाने की कोशिश की, ‘‘आप अपने होश में तो हैं न?’’

‘‘होश में था. अब तो मैं मदहोश हूं, आप के रूप ने मुझे दीवाना बना दिया है. भाभी, आप नहीं जानतीं कि आप की मदमाती आंखें कितना कहर ढा रही हैं. जब से हम लोगों ने शादी में आप की एक झलक देखी, तभी से हम आप पर बुरी तरह लटटू हो गए थे.’’

मीरा उस की बांहों में छपटपटाने लगी. लेकिन अनंत के बलिष्ठ बाजू उस के इर्दगिर्द कसते गए. आखिर उस ने मीरा को अपनी हवस का शिकार बना ही लिया. कुछ देर बाद वह उसे छोड़ कर चला गया. दरवाजा खुला और एक और व्यक्ति ने कमरे में प्रवेश किया. उसे देख कर मीरा के होश उड़ गए. ‘‘नहीं…’’ वह प्राणपण से चीख उठी. लेकिन उस की गुहार सुनने वाला वहां कोई नहीं था.

इज्जतआबरू लुटा कर असहाय रह गई. मीरा बिस्तर पर असहाय सी पड़ी थी. उस की आंखों से झरझर आंसू बह रहे थे. उस ने सोचा, अब वह इस नर्क से कैसे निकलेगी? वह अपने पति को क्या मुंह दिखाएगी? क्या कोई उस की बात पर यकीन करेगा? दोस्ती का दम भरने वाले अपने दोस्त की पत्नी से ऐसा घृणित आचरण कैसे कर सकते हैं? ये तो अमानत में खयानत हुई. क्या सभ्य समाज के सदस्य इस हद तक गिर सकते हैं? क्या दुनिया में इंसानियत बिलकुल मर गई है?

वे लोग मीरा के बदन से तब तक खेले, जब तक उन का मन नहीं भर गया. फिर उसे श्याम के घर पहुंचा दिया गया.

‘‘अपने नए घर में तुम्हारा स्वागत है मीरा,’’ श्याम ने हुलस कर कहा, ‘‘बताओ कैसा लगा तुम्हें ये घर? मैं ने थोड़ीबहुत साफसफाई करवा दी है और राशनपानी भी ले आया हूं. मैं ने बाथरूम में गीजर चला दिया है. तुम नहा धो लो.’’

मीरा जड़वत, गुमसुम बैठी रही.

‘‘चाय पिओगी? क्या बात है, तुम इतनी चुप क्यों हो? क्या नाराज हो मुझ से? सौरी, मुझे अचानक किसी जरूरी काम से जाना पड़ गया था. पर मैं जानता था कि मेरे दोस्त तुम्हें सहीसलामत यहां पहुंचा देंगे.’’

भग्न हृदय, मीरा मुंह नीचा किए कठघरे में खड़े मुलजिम की तरह बैठी रही. श्याम ने उसे झकझोरा, ‘‘क्या हुआ भई, तुम कुछ बोलती क्यों नहीं?’’

अचानक वह फूट पड़ी और बिलखबिलख कर रोने लगी.

‘‘अरे ये क्या? रो क्यों रही हो? क्या हुआ, कुछ तो बोलो?’’

मीरा ने सिसकते हुए टूटेफूटे शब्दों में उसे अपने साथ हुई त्रासदी के बारे में बताया. सुन कर श्याम सन्न रह गया. उस का चेहरा विवर्ण हो गया. उस ने अपना सिर दोनों हाथों में थाम लिया. फिर रुआंसे शब्दों में बोला, ‘‘हे भगवान, मैं नहीं जानता था कि मेरे दोस्त ऐसी घिनौनी हरकत करेंगे. यह तो हैवानियत की हद हो गई.’’

वह उत्तेजित सा हो कर कमरे में चहलकदमी करने लगा.

‘‘अब मेरा क्या होगा?’’ मीरा ने आंसू बहाते हुए कहा.

‘‘तुम क्यों फिक्र करती हो? इस में तुम्हारा कोई कसूर थोड़े ही है. मैं तुम्हें जरा भी दोष नहीं दूंगा. लेकिन एक बात बताओ. क्या तुम्हें पक्का यकीन है कि जो लोग तुम्हें स्टेशन पर लेने आए थे वे मेरे ही दोस्त थे? वे कोई गुंडे मवाली तो नहीं थे न, जो तुम्हें अकेली देख बहलाफुसला कर अपने साथ ले गए.’’

‘‘ये आप क्या कह रहे हैं?’’ मीरा ने तड़प कर कहा, ‘‘मैं क्या इतनी बेवकूफ हूं कि किसी भी अनजान आदमी के साथ मुंह उठा कर चल दूंगी? क्या मुझे किसी भलेमानस और गुंडेमवाली में फर्क करने की तमीज नहीं है? वैसे भी आप ही ने तो कहा था कि आप के दोस्त हमें स्टेशन पर लेने आएंगे. उन्हें मैं ने पहचान भी लिया था, तभी तो उन पर भरोसा कर के उन के साथ गई. पर उन्होंने इस बात का नाजायज फायदा उठाया और मेरे साथ ऐसा वहशियाना सलूक किया.’’

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पति का प्यार, जो सिर्फ नाटक था. मीरा अपना मुंह ढांप कर सिसकने लगी. श्याम ने उसे अपनी बांहों में ले लिया और उसे दिलासा दी. उस के आंसू पोंछे, ‘‘रोओ नहीं, जो हो गया सो हो गया. बीती बात पर खाक डालो. इस घटना को एक हादसा समझ कर भूल जाओ.’’

‘‘नहीं, ये हादसा इतनी आसानी से नहीं भुलाया जा सकता. पिछले कुछ घंटों की दर्दनाक याद मेरे जेहन में नासूर बन कर हमेशा टीसती रहेगी. मैं तो कहीं मुंह दिखाने लायक भी नहीं रही. मेरे दामन में हमेशा के लिए दाग लग गया.’’

‘‘छि: ऐसी घिसीपिटी बातें न करो. मैं हूं न. मेरे रहते तुम्हें किसी बात की फिक्र करने की जरूरत नहीं है. हम दोनों मिल कर हर मुश्किल को सुलझाएंगे. हर मुसीबत का सामना करेंगे.’’

थोड़ी देर बाद मीरा ने आंसू पोंछ कर कहा, ‘‘अब आप का क्या करने का इरादा है?’’

‘‘सोच रहा हूं कि जा कर उन पाजी दोस्तों को खूब खरीखोटी सुनाऊं. उन की सात पुश्तों की खबर ले डालूं.’’ श्याम ने दांत पीस कर कहा.

‘‘बस इतना ही, और कुछ नहीं.’’

‘‘नहीं, मैं और भी बहुत कुछ कर सकता हूं. मैं उन्हें किराए के गुंडों से पिटवाऊंगा, उन की हड्डीपसली एक कर दूंगा. उन्हें जन्म

भर के लिए अपाहिज बना कर छोडूंगा.’’

‘‘लेकिन ये सजा उन नरपिशाचों के लिए नाकाफी है. इस की जगह हमें पुलिस में जाना चाहिए. अभी, इसी वक्त.’’

‘‘पुलिस!’’ श्याम बुरी तरह चौंक गया.

‘‘हां. पुलिस में जाए बिना काम नहीं चलेगा. उन गुनहगारों को उन के किए की सजा दिलानी ही होगी.’’

श्याम सोच में पड़ गया. ‘‘नहीं,’’ उस ने सर हिलाया, ‘‘पुलिस में जाना ठीक नहीं होगा.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘इसलिए कि इस से बात फैल जाएगी. अभी ये बात केवल हम दोनों तक ही सीमित है. पुलिस में रपट लिखाते ही सब कुछ जगजाहिर हो जाएगा. अखबार में सुर्खियां छपेंगी. गली मोहल्ले में हमारा नाम उछाला जाएगा. घरघर में चरचे होंगे. जितने मुंह उतनी बातें.’’

मीरा सोच भी नहीं सकती थी कि यह पति की शातिर चाल है. ‘‘लेकिन आजकल ऐसे मामलों में पीडि़त का नाम व पता गोपनीय रखा जाता है. उसे मीडिया और कानून की भरपूर मदद मिलती है, सहयोग मिलता है. पब्लिक की सहानूभूति उसी के साथ होती है. वे दिन लद गए जब बलात्कारी कुकर्म कर के बेदाग बच जाते थे और सारी जिल्लत और रुसवाई नारी को झेलनी पड़ती थी.’’

‘‘यह भी तो सोचो कि बात फैल गई और मेरे मातापिता को खबर लग गई तो प्रलय आ जाएगी. मेरे पिता दिल के मरीज हैं. वे इतना बड़ा आघात कभी नहीं सहन कर पाएंगे. उन्हें हार्ट अटैक आ सकता है.’’

‘‘तो क्या हम चुप लगा जाएं?’’ मीरा ने हैरत से पूछा.

‘‘हां, मेरी मानो तो इस बात पर परदा डालना ही ठीक रहेगा. आखिर इस बात का ढिंढोरा पीटने से हमें क्या हासिल होगा? बदनामी के सिवाय कुछ हाथ नहीं लगेगा. समय सब घाव भर देता है, हमें इस अप्रिय घटना को भूलना होगा. जो बीत गया सो बीत गया.’’

मीरा सोच में डूब गई. कुछ देर सन्नाटा छाया रहा. फिर श्याम बोला, ‘‘तुम नहाधो लो, सुबह की भूखी हो. मुझे भी जोरों की भूख लगी है. मैं पास के होटल से खाना ले आता हूं.’’

‘‘आप फिर मुझे अकेला छोड़ कर जा रहे हैं.’’ वह रुआंसी हो गई.

‘‘ओह, यहां इस बिल्डिंग में तुम्हें किसी तरह का खतरा नहीं है. अड़ोसपड़ोस में भले लोग रहते हैं. बाहर गेट पर चौकीदार तैनात है. दरवाजा अंदर से बंद कर लो. जब मैं लौटूं तभी खोलना. मैं जल्द से जल्द लौट आऊंगा.’’

श्याम अपनी मोटरसाइकिल पर सवार हो कर सीधा अपने दोस्तों के यहां पहुंचा.

‘‘आओ आओ यार,’’ उन्होंने उस का जिंदादिली से स्वागत किया.

‘‘अबे सालो,’’ श्याम ने उन्हें लताड़ा, ‘‘ये तुम लोगों ने मुझे किस मुसीबत में फंसा दिया?’’

‘‘क्यों क्या हुआ?’’

‘‘गधे की औलादों, मीरा को अपना अतापता बताने की क्या जरूरत थी. उसे अपने घर लाने के बजाय कहीं और ले जाते.’’

‘‘श्याम मेरे भाई, हमारा प्लान तो यही था कि उसे कार में इधरउधर घुमाते रहेंगे और अपना मतलब साध लेंगे. पर मांगी हुई कार ससुरी बीच रास्ते में टें बोल गई और लाचारी में हमें टैक्सी करनी पड़ी. अब टैक्सी में तो ये सब संभव नहीं था. लिहाजा हमें मीरा को अपने घर लाना पड़ा.’’

‘‘अब मैं मीरा को कैसे मनाऊं, कैसे समझाऊं. वह भरी बैठी है, पुलिस में जाने पर तुली है. अगर उसने थाने में रपट लिखाई तो पुलिस फौरन यहां आ धमकेगी और तुम सब को हथकड़ी लग जाएगी.’’

‘‘पुलिस?’’ वे घबरा कर बोले, ‘‘अरे यार इतना अंधेर तो न कर. अगर पुलिस ने हमें धर लिया तो हम सब बेमौत मर जाएंगे. हमारी जिंदगी तबाह हो जाएगी, नौकरी चली जाएगी, जेल में सड़ना पड़ेगा. और बदनामी होगी अलग से. हम तेरे पैर पकड़ते हैं. हमें इतनी बड़ी सजा न दिलवा. किसी भी तरह हमें पुलिस से बचा ले.’’

‘‘मैं भरसक कोशिश करूंगा कि वह पुलिस में न जाए पर पता नहीं वह मेरी बात मानेगी या नहीं. वह भोलीभाली गांव की गोरी तो है नहीं, जो रोधो कर, इस सब को अपनी किस्मत का खेल मान कर चुप हो जाएगी. खैर, मैं जरा जल्दी में हूं. तुम लोग जल्दी से मेरे पैसे निकालो.’’

‘‘ले भाई,’’ उन्होंने उस के हाथ में कुछ नोट थमा दिए.

‘‘ये क्या,’’ वह आग बबूला हुआ, ‘‘सिर्फ 4 हजार? मेरे तो 4 लाख रुपए बनते हैं. तुम सब ने 1-1 लाख देने का वादा किया था.’’

‘‘श्याम मेरे भाई, हम पर रहम कर. एक लाख बहुत बड़़ी रकम होती है. हमारे पास एक लाख न कभी हुए थे और न होंगे. हम सब छोटीमोटी नौकरी वाले हैं, रोज कुंआ खोदना और रोज पानी पीना.’’

‘‘तुम लोग पैदाइशी कमीने हो,’’ श्याम ने दांत पीस कर कहा, ‘‘जब देने की औकात नहीं थी तो वादा क्यों किया? बेकार में ये सब ड्रामा करना पड़ा. मेरी फजीहत करवाई. अगर मेरी पत्नी को असलियत मालूम हो गई तो वह मुझे कभी माफ नहीं करेगी. उम्र भर मुझे कोसती रहेगी. मुझे तो माया मिली न राम. और हां, तुम लोग अपनी खैरियत चाहते हो तो कुछ दिनों के लिए इधरउधर कहीं खिसक जाओ. मीरा गुस्से से उबल रही है. अगर उस ने पुलिस में जाने की जिद की तो मैं कुछ नहीं कर सकूंगा.’’

‘‘लेकिन यार सारा कुसूर हमारा थोड़े ही न है. हम ने तुझ से करार लिया था कि हम चारों एक बार तेरी पत्नी से सहवास करेंगे और इस के एवज में हर एक तुझे एकएक लाख रुपए देगा. ये सब तेरी मरजी से ही तो हुआ है. तुझ से इजाजत न मिलती तो क्या हम ऐसा कदम उठाने की जुर्रत करते? इस मामले में तू भी उतना ही दोषी है, जितना कि हम.’’

श्याम का चेहरा उतर गया. वह उस शाम की याद कर के मन ही मन तिलमिला उठा. श्याम अतीत में खो गया.

नाम श्याम पर काम किया. उस ने विनाश का शादी की शाम वह अपने दोस्तों के साथ बैठा शराब पी रहा था. सब के सब सुरूर में थे, नशे में झूम रहे थे.

‘‘मान गए यार श्याम,’’ उस के दोस्त बोले, ‘‘तेरी ससुराल वाले बड़े दरियादिल हैं. हम बारातियों की क्या खातिरदारी की है उन्होंने. तबीयत बागबाग हो गई.’’

‘‘ऊंह, कोरी खातिरदारी अपने किस काम की,’’ श्याम ने मुंह बना कर कहा, ‘‘मेरे पिताजी ने मुझसे कहा था कि वे मेरे ससुर से बात कर चुके हैं, उन्होंने मुझे शादी में कार देने का वादा किया है. लेकिन ससुर जी ने शादी में दिया ठेंगा, कहने लगे कि इतना पैसा खर्च करने की उन की सामर्थ्य नहीं है. वे मुझे एक स्कूटर दे कर टरकाना चाहते थे, पर मैं ने मना कर दिया. मुझे तो इतना गुस्सा आया कि उन से कह दूं, अपनी बेटी को भी अपने ही पास सहेज कर रखें.’’

‘‘पागल न बन यार. तेरी पत्नी तो रूप की खान है. वह एक बेशकीमती हीरा है, जिसे पा कर कोई भी अपना भाग सराहेगा. हम ने तो जब से उसे देखा है, तब से तेरी खुशकिस्मती पर रश्क कर रहे हैं. आहें भर रहे हैं कि हमें ऐसी परी क्यों नहीं मिली.’’

‘‘परी है सो ठीक है. लेकिन मुझे कार न मिलने का बहुत मलाल है.’’ श्याम कुढ़ कर बोला, ‘‘मैं ने तो मौडल और रंग भी पसंद कर रखा था. सोच रहा था कि शादी के बाद शान से कार चलाता हुआ घर पहुंचूंगा तो मोहल्ले वालों पर धाक जम जाएगी. अपने दिन तो तंगी और फाकामस्ती में गुजरते हैं. कार खरीदने की सामर्थ्य अपने में नहीं है.’’

‘‘मेरे दिमाग में एक बात आई है,’’ अनंत बोला, ‘‘अगर तू बुरा न माने तो कहूं.’’

‘‘बोल न. बेधड़क बोल.’’

‘‘एक तरीका है, जिस से तू कार के दाम हासिल कर सकता है. बाप ने न दिया न सही, उस की बेटी से वसूल ले.’’

‘‘क्या मतलब.’’

फिर नशे में धुत सब ने वह विनाशकारी प्लान बनाया था. अपने ही बुने जाल में फंस गया श्याम..श्याम उल्टे पांव घर लौटा. रास्ते भर वह अपने आप को धिक्कारता रहा. कैसी भयानक भूल कर दी थी उस ने. कैसा बचकाना काम किया था. अब वह अपने ही बुने जाल में कैसे निकलेगा? बिगड़ी बात कैसे बनाएगा? उसेबारबार अपनीपत्नी का आंसुओं से भीगा चेहरा याद आ रहा था.

उसे पश्चाताप हो रहा था कि क्या मीरा अपने इस कटु अनुभव से कभी उबर  सकेगी या उन दोनों के विवाहित जीवन को ग्रहण लग जाएगा?

उस ने खुद अपने सुखी संसार में आग लगा दी थी. अपने विवाहित जीवन में जहर घोल दिया था. उस का लालच उसे ले डूबा. अब वह कैसे इस भूल का सुधार करेगा. क्या मीरा उसे क्षमा कर देगी?

घर पहुंच कर उस ने मोटरसाइकिल पार्क की. उसे देख कर चौकीदार दौड़ा आया, ‘‘साहब, मेमसाहब बाहर गई हैं. बोलीं कि साहब आएं तो बता देना.’’

‘‘कहां गई हैं?’’

‘‘वे बोलीं कि साहब से कह देना, पुलिस स्टेशन गई हैं.’’

श्याम को काटो तो खून नहीं. वह वहीं जमीन पर धम से बैठ गया. ?

(कल्पना पर आधारित)

विस्फोटक जत्था

सुबह पांच बजे, 13 अगस्त, 2023, दामया घाटी.

महेश सार्थक ने अपने विस्फोटक सूचक यंत्र को यहांवहां घुमाया और कदम उठाने से पहले उच्च आवाज वाले अलार्म की खतरे की घंटी को सुनने के लिए उस पर पूरा ध्यान दिया. सूर्य अभी तक क्षितिज के नीचे ही था, उस का उदय नहीं हुआ था और दामया नदी के पानी से पोषित ‘तहली ज़ोन’ अभी भी ठंडा और नम था और इसी वजह से सैनिकों का जमावड़ा था. वातावरण में मौन इस वक़्त अच्छी बात लग रही थी. यही वह आवाज थी जिसे इस वक़्त हर सैनिक सुनना चाहता था. महेश ने सूखी नदी के किनारे विस्फोटकों की अपनी धीमी खोज जारी रखी.

लांस नायक महेश सार्थक अपनी टुकड़ी की ओर से गश्त पर जाने वाला पहला सैनिक था. जिम्मेदारी लेना उस के कर्तव्यों में से एक था. उस के पीछे मूक मानव श्रृंखला में एक सैनिक कंपनी थी, जिस में 130 सैनिक थे और हर सैनिक पूरी तरह से महेश के नक्शेकदम पर चलने की कोशिश कर रहा था. भारतीय बेस के आसपास आतंकवादियों ने भूमिगत विस्फोटक खानों जाल बुन दिया था.

महेश सार्थक अपने काम में माहिर था, इसीलिए शायद उसे कंपनी की ओर से सब से पहले जाने के लिए कहा गया था. पांच महीने पहले दामया पहुंचने के बाद से उस ने जितने गश्त किए थे, उस की गिनती वह खो चुका था. अब उस के पास बस एक और महीना था और फिर घरवापसी अपनी मंगेतर के पास. दो महीने पहले छुट्टी ले कर जब वह घर गया था तो उस ने शादी की बात उठाई थी. तुरंत हामी मिलने पर उस ने 2024 की शुरुआत में शादी करने का फैसला कर लिया.

शरीर से मजबूत वह एक हट्टाकट्टा इंसान था, लेकिन चेहरे पर कोई गंभीर भाव नहीं थे. उलटे, सब के साथ मुसकरा कर ही बात करता था. 25 वर्षीय यह जवान इस वक़्त दामया के सब से खतरनाक और विस्फोटकग्रस्त क्षेत्रों में से एक के बीच से एक सुरक्षित मार्ग ढूंढ़ने की कोशिश कर रहा था. अपनी पूरी कंपनी की सुरक्षा की जिम्मेदारी उस के सिर पर थी. जब भी वह भारतीय बेस छोड़ कर आतंकवादियों से बदहवास इस इलाके में औपरेशन के लिए निकलता, उस के पेट से एक अजीब लहर उठती. शायद किसी भयावह आशंका से उत्पन्न लहर. पांच महीनों से लगातार उठने वाली इस लहर की उसे आदत हो गई थी. उस ने इस लहर के साथ जीना सीख लिया था और यह स्वीकार कर लिया था कि गलत जगह पर एक कदम का मतलब तुरंत मौत या अंगभंग हो सकता है.

इस अजीबोगरीब लहर का साथ शायद अच्छा था. इसी लहर की वजह से शायद उसे अपनी और अपने साथियों की परवा थी. इस लहर ने उस की इंद्रियों को पैना कर दिया था और उसे जिंदा रखा था.

महेश हमेशा इस बात पर जोर दिया करता था कि गश्त में अगला आदमी उस से कम से कम 5 मीटर पीछे रहे – उस के द्वारा धीमे स्वर में दिए गए आदेश को सुनने के लिए यह काफी था, लेकिन यह इतनी दूरी जरूर थी कि अगर गलती से महेश आतंकवादियों द्वारा रखे गए विस्फोटक पर पांव रख देता है तो पीछे वाले व्यक्ति को कुछ न हो.

आज सुबह मिशन का उद्देश्य दामया शहर के दक्षिणपश्चिम में एक मार्ग को साफ करना था. कुछ समय पहले तक जहां भारतीयों ने बेस बनाई थी, वह आतंकवादियों का अड्डा था. अब यह भारतीय सेना के कब्जे में था. इस बेस के सुरक्षित परिवेश से बाहर निकलने के आदेश की प्रतीक्षा करते हुए कई सैनिक शारीरिक रूप से बीमार हो गए थे.

यह एक खतरनाक मिशन था और हर कोई इस बात को जानता था. महेश के साथ 8 ऐसे जवान थे जो इस आगे बढ़ने वाली सेना की अग्रिम पंक्ति में थे और इस का महत्त्वपूर्ण हिस्सा थे. इस से पीछे चलने वाली सेना सुदृढ हो गई थी. इस औपरेशन में वे वही काम कर रहे थे जो शतरंज के खेल में सामने की पंक्ति में 8 मोहरे करते हैं. सुबहसुबह के अंधेरे में सैनिक एक कतार में अपनी बेस से बाहर निकले. कोई कुछ नहीं बोला. धूल में चलते हुए केवल बूट के कदमों की नरम गड़गड़ाहट ही सुनी जा सकती थी. केवल आधा किलोमीटर चलने के बाद ही गोलाबारूद, पानी और वायरलैस यंत्र के बोझ से दबे हुए कई सैनिक भारी सांस लेने लगे. उन की वरदी पसीने से लथपथ शरीर से चिपक गई.

महेश इस मार्ग को जानता था और उसे कमर तक गहरे दामया नदी के ठंडे पानी व उस से आगे की घाटी में अपनी टीम को पहुंचाने में कोई परेशानी नहीं हुई. दुश्मन के किसी भी संकेत के लिए सचेत, नदी किनारे से संभल कर वह अपनी सेना की टुकड़ी को आगे ले आया.

कोई नहीं जानता था कि महेश ने उस क्लिक की आवाज को सुना या नहीं जो विस्फोटक पर उस के पांव पड़ने की वजह से हुई. लेकिन अगर उस ने सुना भी, तो भी प्रतिक्रिया करने का कोई समय नहीं था. देखते ही देखते विस्फोटक के अंदर का इलैक्ट्रिकल सर्किट पूरा हो गया, उस में बिजली का प्रवाह हुआ और 20 किलो के घरेलू बम के अंदर दबा डेटोनेटर फट गया. धमाके से महेश हवा में ऊपर उछला और धरती पर गिरा. घटनास्थल पर ही उस ने अपने दोनों पैर खो दिए.

हवलदार प्रसाद दीवान, एक बम निबटान विशेषज्ञ, ने कवर लिया क्योंकि विस्फोट की आवाज घाटी में फैल गई. धुएं और धूल का एक गाढ़ा भूरा गुबार दामया के आकाश में चमकने लगा.

कंपनी में बहुत पीछे हवलदार प्रसाद अनैच्छिक रूप से दबी हुई सांस में बुदबुदाने लगा. दामया में 4 महीनों के दौरान उस ने 80 बमों को निष्प्रभावी कर दिया था और अब वह घर में बने विस्फोटकों व पारंपरिक विस्फोटकों के फटने की आवाज के बीच अंतर बता सकता था. लेकिन इतना करने के बावजूद आज के इस धमाके से उस की रीढ़ में सिहरन दौड़ गई.

हवलदार प्रसाद औपरेशन के दौरान विस्फोटक की खोज के मामले में सहायता प्रदान करने के लिए कंपनी से जुड़ा हुआ था. उस की टीम के 2 हिस्से थे– एक विस्फोटक निबटान टीम और एक खोजकर्ता टीम. धमाके से खोजकर्ता तुरंत कार्रवाई की तैयारी करने लगे. दो मिनट बाद ही कंपनी के सामने से किसी ने उन्हें आपातकालीन हैलिकौप्टर को भूमि पर उतारने के लिए मैदान साफ़ करने हेतु आगे बुलाया. और तब ही उन्हें पता चला कि एक व्यक्ति हताहत हुआ है.

कंपनी के आगे के भाग में विस्फोट का दृश्य बन गया था. महेश निश्चल पड़ा था, खून से लथपथ आंखें आसमान की ओर ताक रही थीं. हितेश और शंकर महेश के 2 सब से अच्छे साथी, 2 युवा सैनिक जो महेश के भाई जैसे बन गए थे. दोनों अपने घायल कमांडर की ओर धीरेधीरे सावधानी से बढ़े. उस की चोटों को देख कर उन के चेहरे दहशत से भर गए.

भारतीय बेस को एक जरूरी संदेश भेजा गया. ‘विस्फोटक हमला.घायल.’

‘चिंता मत करो, महेश, हम तुम्हें बाहर निकालने वाले हैं, दोस्त. सबकुछ ठीक हो जाएगा,’ हितेश ने कहा. सैनिकों ने महेश के जर्जर हुए शरीर को एक स्ट्रेचर पर उठा लिया. उस के पैरों के स्थान पर रक्तरोधक लगाया. उस के तीव्र दर्द के निदान के लिए मार्फिन दी. हितेश और शंकर ने स्ट्रेचर उठा लिया और तेजी से उस मैदान की तरफ बढ़ने लगे जहां आपातकालीन हैलिकौप्टर ज़मीन पर उतरने वाला था. जब अचानक हितेश की नज़र महेश पर पड़ी तो उस ने देखा कि महेश ने सांस लेना बंद कर दिया था. ‘महेश, दोस्त, सांस लो,’ हितेश रोया.

हितेश द्वारा बोले गए ये उस के अंतिम शब्द थे.

महेश के शरीर से थोड़ी हरकत देख कर हितेश और शंकर ने जैसे ही स्ट्रेचर पर लेटे महेश को आगे ले जाना चाहा, वैसे ही एक और बड़े पैमाने पर विस्फोट हुआ. हितेश और शंकर मारे गए. फिर चीखपुकार शुरू हो गई.

‘क्या हो रहा है?’ कंपनी के एकदम पीछे खड़े हवलदार टिल्लू सारथी ने कहा. दूर कंपनी के सामने से घबराहट की आवाजें तेज होती गईं.

‘प्रकृति ही जाने,’ हवलदार प्रसाद ने उत्तर दिया, ‘लेकिन जरूर कुछ बुरा है.’

हवलदार टिल्लू खोजकर्ता टीम का प्रमुख सदस्य था. दोनों ने एकदूसरे को देखा लेकिन कोई नहीं बोला. यह एक मूक पुष्टि थी कि कुछ बहुत बुरा घटा है.

कंपनी के पीछे मौजूद खोजकर्ता टीम ने कार्रवाई के लिए खुद को तैयार किया. हवलदार प्रसाद ने अपने उपकरणों की जांच की. उस ने यह सुनिश्चित किया कि उन के वायरकटर उस के शरीर के सुरक्षा कवच के सामने और विस्फोटक सूचक यंत्र बगल में सुरक्षित हैं. उस के बाकी के आवश्यक उपकरण उस के बैग में समाहित थे. अभी उस की तैयारियां पूरी ही हो रही थीं कि काले-लाल चेहरे वाला एक युवा सिपाही सामने की ओर से आया. ‘हमें आगे खोज दल की जरूरत है,’ वह हकलाया, ‘आगे कई लोग हताहत हुए हैं.’

हवलदार प्रसाद ने उसे ढांढ़स बंधाते हुए कहा, ‘हिम्मत रखो.’ फिर अपने सहयोगी हवलदार टिल्लू की ओर मुड़ कर कहा, ‘टिल्लू, सावधान रहना. कुछ पता नहीं कि आगे क्याक्या, कहांकहां रखा हुआ हो सकता है.’

हवलदार प्रसाद ने अंतिम ब्रीफिंग के लिए अपनी टीम को इकट्ठा किया. ‘पता नहीं आगे क्या चल रहा है, लेकिन कुछ अच्छा प्रतीत नहीं हो रहा. सब लोग होशियार रहना,’ अपनी टीम के साथ खोजकर्ताओं में से एक की ओर मुड़ते हुए उस ने कहा, ‘हमें नहीं पता कि कंपनी के सामने चल रहे साथियों से कुछ छूट गया है या नहीं, इसलिए मैं चाहता हूं कि आप घटनास्थल तक का रास्ता साफ कर दें. जहां पर घायल हैं वहां से करीब 30 मीटर की दूरी पर हम रुकेंगे और आकलन करेंगे. हर कोई एक पंक्ति में एकदूसरे के आगेपीछे चलेगा.’

किनारे के दोनों ओर के नरकट नदी के तल के साथसाथ लंबे और मोटे होते जा रहे थे और घायलों की चीखों को वापस विस्फोट के इन शिकारियों की ओर ले आ रहे थे. जैसेजैसे यह दस्ता सामने नरसंहार के दृश्य के करीब आता गया, उन्होंने सैनिकों को उन के पेट के बल लेटे, सिर पर दोनों हाथ रखे सिर को बचाते होने की अवस्था में पाया. कुछ सिपाही शून्य में ताक रहे थे. उन के चेहरों पर दहशत के भाव अपनी कहानी खुद बयां कर रहे थे.

प्रमुख खोजकर्ता रुक गया और हवलदार प्रसाद उस की तरफ बढ़ गया. दोनों में से कोई कुछ नहीं बोला. खोजकर्ता धीरेधीरे मृतकों और घायलों तक पहुंचने के लिए रास्ता सुरक्षित कर रहे थे. सामने पहुंच कर हवलदार प्रसाद के चेहरे से पसीने की बूंदें बहने लगीं और तबाही की भयावहता को देखते हुए उस ने ज़ोर से सांस ली. मृत और घायल – कुल छह सैनिक – 200 वर्ग मीटर के क्षेत्र में फैले हुए थे. अघायल सैनिक भी इस विस्फोटक खदान के अंदर फंसे हुए थे. उन्हें भी मुक्त करना होगा. दूर कुछ सिपाहियों की अनियंत्रित आवाजें सुनाई दे रही थीं. अब केवल खोजकर्ता ही चल रहे थे, घायलों को प्रोत्साहन के दो शब्द के अलावा उन का मौन उन की एकाग्रता को दर्शा रहा था.

जहां हवलदार प्रसाद खड़ा था, उस के सब से नजदीक के शरीर के पैर नहीं थे और केवल एक हाथ था, खून से लथपथ सैनिक विस्फोट की चपेट में आ गया था. बम के चलते बने गड्ढे के दूसरी तरफ एक और सैनिक पड़ा हुआ था. यह उस सैनिक का मृत शरीर था जो अजीब तरह से मुड़ा हुआ था और उस के पैर नहीं थे. विस्फोट ने दोनों सैनिकों को विपरीत दिशाओं में लगभग 20 मीटर की दूरी तक उछाला था. अपने अनुभव से हवलदार प्रसाद ने ज्ञात किया कि यह 20-30 किलोग्राम भारी उपकरण था, जो घर में ही बना हुआ विस्फोटक था. एक बम दस्ते के रूप में अपनी जिंदगी में पहली बार हवलदार प्रसाद का सामना एक बड़े पैमाने पर हुई विस्फोटक घटना से हुआ था.

अपने आसपास की बरबादी को देख कर हवलदार प्रसाद को 3 हफ्ते पहले सेना के औपरेशन के दौरान मारे गए बमनिरोधक विशेषज्ञ हवलदार मनोज शर्मा की मौत दिमाग में घूमने लगी.

लेकिन इस वक़्त समय था ध्यान केंद्रित करने का, एक योजना तैयार करने का, यह पता लगाने की कोशिश करने का कि क्या चल रहा था. दो विस्फोटों के आकार और स्थिति ने उसे बताया कि बमों को एक केंद्रीय बैटरी स्रोत से जोड़ा गया होगा. लेकिन वह स्रोत कहां था? घायलों की प्राथमिकता थी, मृतकों को बाद में एकत्रित किया जाएगा, यह हमेशा का नियम था. लेकिन अब महत्त्वपूर्ण यह सुनिश्चित करना था कि कोई और हताहत न हो. खोजकर्ताओं में से एक ने जमीन का हर टुकड़ा अच्छे से छान मार लिया और अपने खोजी उपकरण से मार्ग को साफ़ और सुरक्षित करते हुए दर्दनाक व घायल अवस्था में पड़े हुए एक सैनिक तक पहुंचने में कामयाब हो गया. वहीं उस घायल सैनिक के पास उस का उपकरण बजा जिस से विस्फोटक वहां मौजूद होने का अंदेशा हुआ. उस ने तुरंत सभी से कहा, ‘एक यहां है.’ विस्फोटक उस जगह से एक हाथ की दूरी पर था जहां घायल लेटा हुआ था.

अब निर्णायक समय आ गया था. हर कोई जानता था कि आतंकवादी विस्फोट की आवाज की ओर बढ़ रहे होंगे और हताहतों को निकालने के लिए आए सैनिकों पर घात लगा कर हमला करने की उम्मीद कर रहे होंगे. एक सुरक्षात्मक घेरा डालने, दूरस्थ वाहनों का उपयोग करने, या प्रसाद के लिए अपना सुरक्षात्मक बम सूट पहनने का समय नहीं था. यह आपातकालीन श्रेणी की कार्रवाई थी, जिस का अभ्यास केवल 2 ही परिस्थितियों में कराया जाता था- या तो एक बंधक परिदृश्य जहां एक निर्दोष व्यक्ति को विस्फोटकों से बांध दिया गया हो, या फिर ऐसा कुछ जहां कार्रवाई न करने का अर्थ एक बड़े पैमाने पर दुर्घटना की आशंका और ज्यादा से ज्यादा हताहतों की संख्या निश्चित हो.

दोनों ही स्थितियों में खुद की जान की कीमत पर भी दूसरे लोगों की जान बचाने पर जोर दिया जाता था. हवलदार प्रसाद जानता था कि क्या करना है. बैटरी के स्रोत को ढूंढना होगा, उस ने मन ही मन सोचा. वह रेंगते हुए उस ओर पहुंचा जहां उसे लगा कि सब से पहले वाले बम को दफनाया गया था. उस ने पहले विस्फोटक की प्रैशर प्लेट और फिर 20 किलो के बम का पता लगाया. बम को खोज कर उस ने घायल को सांत्वना दी कि वह ठीक हो जाएगा और उस से शांत रहने का आग्रह किया. उस ने बम से जुड़ा हुआ एक तार ढूंढ़ निकाला और उसे काट दिया. तार काटते वक़्त वह सोच रहा था कि कहीं आतंकवादियों ने ऐसा सर्किट न बनाया हो कि तार के काटने मात्र से ही एक और विस्फोट हो जाए. अगर आतंकवादियों ने ऐसा किया है तो चंद सैकंडों में उसके भी परखच्चे उड़ जायेंगे. लेकिन तार काटने से कोई धमाका नहीं हुआ.

निष्प्रभावीकरण को पूरा करने से पहले ही एक खोजकर्ता ने महेश, जो अभी भी जीवित था और जमीन पर तड़प रहा था, के पास एक और विस्फोटक पाया. जैसे ही प्रसाद ने इस विस्फोटक तक पहुंचने का अपना मार्ग साफ किया, एक तार उन क्षेत्रों में जाता दिखाई दिया जहां बम रखे गए थे. इस बात की पूरी संभावना थी कि प्रसाद द्वारा किया जा रहा यह अभियान अब किसी छिपे हुए आतंकवादी द्वारा लक्षित किया जा रहा हो.

खोजकर्ताओं को यह भी स्वीकार करना पड़ा कि किसी भी अन्य विस्फोटक में अब बहुत कम धातु प्राप्त होने के आसार हो सकते हैं और इस तरह वे अब अपने विस्फोटक सूचक यंत्रों पर भरोसा नहीं कर सकते. अब तक आसमान में सूरज उगना शुरू हो गया था और भारतीय बेस के खुफिया अधिकारियों द्वारा बम खोजने वालों को चेतावनी दी जा रही थी कि आतंकवादी दामया क्षेत्र में बढ़ रहे हैं. हवलदार प्रसाद इस संदेश को सुन कर हरकत में आ गया. एक और विस्फोटक मिला. एक बार फिर यह एक प्रैशरप्लेट वाला विस्फोटक था जो एक केंद्रीय बैटरी स्रोत से जुड़ा था. इस से तुरंत प्रसाद को समझ आ गया कि वह एक जटिल उपकरण प्रणाली वाले विस्फोटक के साथ जूझ रहा था. ऐसा विस्फोटक जो दामया में नहीं देखा गया था. वह अब पूरी तरह से एक नई खतरनाक दुनिया में प्रवेश कर चुका था जहां उसे केवल अपनी बुद्धि और कौशल पर भरोसा करना था. बेहद तनावपूर्ण स्थिति में भी उसे तुरंत यह जानकारी हो गई कि सभी बमों को ठीक उसी तरह से बिछाया गया है जैसे कि विस्फोटक क्रमांक एक और दो थे- एक प्रैशरप्लेट उपकरण जो 20 किलो की विस्फोटक सामग्री के ऊपर रखा गया था. इस बात की भी पूरी संभावना थी कि यदि एक बम फटा तो वे सभी एक ही समय में फटेंगे.

फिर से प्रसाद ने इसे भी निष्प्रभावी किया और सावधानी बरती, कोई भी त्रुटि घातक साबित हो सकती थी. इस उपकरण के निष्प्रभावी होने के दो मिनट से भी कम समय के बाद मृत सैनिकों में से एक के पास एक और विस्फोटक खोजा गया. यह विस्फोट उपकरण वहां रखा गया था जहां से सैनिकों को हताहतों को ले जाने के लिए गुजरना होता. इसे भी प्रसाद ने पूरी तन्मयता के साथ निष्क्रिय किया.

जैसे ही सूरज ने वादी को रोशन करना शुरू किया, चारों ओर अशांत मिट्टी के काले धब्बे दिखने लगे. प्रत्येक स्थल के नीचे एक बम छिपा हुआ था. दो हज़ार स्क्वायर मीटर के क्षेत्र में बम खोजने वालों को 7 बम मिले. इस के अलावा उन्होंने जमीनी निशानों से अन्य 6 उपकरणों के स्थानों की पहचान की. आतंकवादियों द्वारा एक विस्फोटक उपकरण लगाए जाने के बाद वहां के आसपास की धरती पर ये निशान अब सूरज की रोशनी में साफ़ नज़र आ रहे थे.

इस से पहले कि घायलों को निकाला जा सके, निष्कर्षण मार्ग पर खोजे गए 2 और उपकरणों को प्रसाद ने निष्प्रभावी किया.

नरसंहार के बावजूद हवलदार प्रसाद तब तक अपना संयम बनाए रखने में कामयाब रहा जब तक कि स्ट्रेचर ले कर चिकित्सा दल नहीं पहुंचा. कंपनी में पीछे मौजूद सैनिक जब आगे पहुंचे और उन्हें पता चला कि कौन मृत है या गंभीर रूप से जख्मी हो गया है, तो बरबस उन की आंखों से आसूं निकल आए. यह स्पष्ट था कि टीम के युवा सैनिकों का आपस में भाईचारा था. उन में से एक ने जब अपने दोस्त को दामया नदी की धूल में मृत पड़ा देखा तो बेकाबू हो कर रोने लगा. औपरेशन में शामिल सभी लोगों को अचानक जो कुछ हुआ था उस की पूरी भयावहता महसूस होने लगी. उस समय तक हवलदार प्रसाद और उन की टीम पूरी तरह से आतंकवादी बमों का पता लगाने व उन्हें बेअसर करने पर ध्यान केंद्रित कर रही थी.

हवलदार प्रसाद के घटनास्थल पर पहुंचने के ठीक 45 मिनट बाद 13 विस्फोटक उपकरणों का पता लगा लिया गया था और उन्हें निष्क्रिय कर दिया गया था. बमों के बेअसर होने के बाद घायलों और मृतकों को वहां से निकाला गया. लांस नायक महेश सार्थक को भारतीय बेस से मिलिट्री अस्पताल तक पहुंचाया गया. युद्ध के मैदान से निकाले जाने के कुछ महीनों बाद उन की स्थिति में सुधार आया. अन्य घायल सैनिकों की भी हालत में सुधार आया.

भारतीय बेस से आधुनिक हथियारों से लैस भारतीय सेना के जवानों की टुकड़ी ने दामया घाटी में अग्रसर होते आतंकवादियों के चारों ओर घेरा डाल दिया और उन्हें मार गिराया.

story : हिल स्टेशन पर तबादला

भगत राम का तबादला एक सुंदर से हिल स्टेशन पर हुआ तो वे खुश हो गए, वे प्रकृति और शांत वातावरण के प्रेमी थे, सो, सोचने लगे, जीवन में कम से कम 4-5 साल तो शहरी भागमभाग, धुएं, घुटन से दूर सुखचैन से बीतेंगे.

पहाड़ों की सुंदरता उन्हें इतनी पसंद थी कि हर साल गरमी में 1-2 हफ्ते की छुट्टी ले कर परिवार सहित घूमने के लिए किसी न किसी हिल स्टेशन पर अवश्य ही जाते थे और फिर वर्षभर उस की ताजगी मन में बसाए रखते थे.

तबादला 4-5 वर्षों के लिए होता था. सो, लौटने के बाद ताजगी की जीवनभर ही मन में बसे रहने की उम्मीद थी. दूसरी खुशी यह थी कि उन्हें पदोन्नति दे कर हिल स्टेशन पर भेजा जा रहा था.

साहब ने तबादले का आदेश देते हुए बधाई दे कर कहा था, ‘‘अब तो 4 वर्षों तक आनंद ही आनंद लूटोगे. हर साल छुट्टियां और रुपए बरबाद करने की जरूरत भी नहीं रह जाएगी. कभी हमारी भी घूमनेफिरने की इच्छा हुई तो कम से कम एक ठिकाना तो वहां पर रहेगा.’’

‘‘जी हां, आप की जब इच्छा हो, तब चले आइएगा,’’ भगत राम ने आदर के साथ कहा और बाहर आ गए.

बाहर साथी भी उन्हें बधाई देने लगे. एक सहकर्मी ने कहा, ‘‘ऐसा सुअवसर तो विरलों को ही मिलता है. लोग तो ऐसी जगह पर एक घंटा बिताने के लिए तरसते हैं, हजारों रुपए खर्च कर डालते हैं. तुम्हें तो यह सुअवसर एक तरह से सरकारी खर्चे पर मिल रहा है, वह भी पूरे 4 वर्षों के लिए.’’

‘‘वहां जा कर हम लोगों को भूल मत जाना. जब सीजन अच्छा हो तो पत्र लिख देना. तुम्हारी कृपा से 1-2 दिनों के लिए हिल स्टेशन का आनंद हम भी लूट लेंगे,’’ दूसरे मित्र ने कहा.

‘‘जरूरजरूर, भला यह भी कोई कहने की बात है,’’ वे सब से यही कहते रहे.

घर लौट कर तबादले की खबर सुनाई तो दोनों बच्चे खुश हो गए.

‘‘बड़ा मजा आएगा. हम ने बर्फ गिरते हुए कभी भी नहीं देखी. आप तो घुमाने केवल गरमी में ले जाते थे. जाड़ों में तो हम कभी गए ही नहीं,’’ बड़ा बेटा खुश होता हुआ बोला.

‘‘जब फिल्मों में बर्फीले पहाड़ दिखाते हैं तो कितना मजा आता है. अब हम वह सब सचमुच में देख सकेंगे,’’ छोटे ने भी ताली बजाई.

मगर पत्नी सुजाता कुछ गंभीर सी हो गई. भगत राम को लगा कि उसे शायद तबादले वाली बात रास नहीं आई है. उन्होंने पूछा, ‘‘क्या बात है, गुमसुम क्यों हो गई हो?’’

‘‘तबादला ही कराना था तो आसपास के किसी शहर में करा लेते. सुबह जा कर शाम को आराम से घर लौट आते, जैसे दूसरे कई लोग करते हैं. अब पूरा सामान समेट कर दोबारा से वहां गृहस्थी जमानी पड़ेगी. पता नहीं, वहां का वातावरण हमें रास आएगा भी या नहीं,’’ सुजाता ने अपनी शंका जताई.

‘‘सब ठीक  हो जाएगा. मकान तो सरकारी मिलेगा, इसलिए कोई दिक्कत नहीं होगी. और फिर, पहाड़ों में भी लोग रहते हैं. जैसे वे सब रहते हैं वैसे ही हम भी रह लेंगे.’’

‘‘लेकिन सुना है, पहाड़ी शहरों में बहुत सारी परेशानियां होती हैं-स्कूल की, अस्पताल की, यातायात की और बाजारों में शहरों की तरह हर चीज नहीं मिल पाती,’’ सुजाता बोली.

भगत राम हंस पड़े, ‘‘किस युग की बातें कर रही हो. आज के पहाड़ी शहर मैदानी शहरों से किसी भी तरह से कम नहीं हैं. दूरदराज के इलाकों में वह बात हो सकती है, लेकिन मेरा तबादला एक अच्छे शहर में हुआ है. वहां स्कूल, अस्पताल जैसी सारी सुविधाएं हैं. आजकल तो बड़ेबड़े करोड़पति लाखों रुपए खर्च कर के अपनी संतानों को मसूरी और शिमला के स्कूलों में पढ़ाते हैं. कारण, वहां का वातावरण बड़ा ही शांत है. हमें तो यह मौका एक तरह से मुफ्त ही मिल रहा है.’’

‘‘उन्नति होने पर तबादला तो होता ही है. अगर तबादला रुकवाने की कोशिश करूंगा तो कई पापड़ बेलने पड़ेंगे. हो सकता है 10-20 हजार रुपए की भेंटपूजा भी करनी पड़ जाए और उस पर भी आसपास की कोई सड़ीगली जगह ही मिल पाए. इस से तो अच्छा है, हिल स्टेशन का ही आनंद उठाया जाए.’’

यह सुन कर सुजाता ने फिर कुछ न कहा. दफ्तर से विदाई ले कर भगत राम पहले एक चक्कर अकेले ही अपने नियुक्तिस्थल का लगा आए और 15 दिनों बाद उन का पूरा परिवार वहां पहुंच गया. बच्चे काफी खुश थे.

शुरूशुरू की छोटीमोटी परेशानी के बाद जीवन पटरी पर आ ही गया. अगस्त के महीने में ही वहां पर अच्छीखासी ठंड हो गई थी. अभी से धूप में गरमी न रही थी. जाड़ों की ठंड कैसी होगी, इसी प्रतीक्षा में दिन बीतने लगे थे.

फरवरी तक के दिन रजाई और अंगीठी के सहारे ही बीते, फिर भी सबकुछ अच्छा था. सब के गालों पर लाली आ गई थी. बच्चों का स्नोफौल देखने का सपना भी पूरा हो गया.

मार्च में मौसम सुहावना हो गया था. अगले 4 महीने के मनभावन मौसम की कल्पना से भगत राम का मन असीम उत्साह से भर गया था. उसी उत्साह में वे एक सुबह दफ्तर पहुंचे तो प्रधान कार्यालय का ‘अत्यंत आवश्यक’ मुहर वाला पत्र मेज पर पड़ा था.

उन्होंने पत्र पढ़ा, जिस में पूछा गया था कि ‘सीजन कब आरंभ हो रहा है, लौटती डाक से सूचित करें. विभाग के निदेशक महोदय सपरिवार आप के पास घूमने आना चाहते हैं.’

सीजन की घोषणा प्रशासन द्वारा अप्रैल मध्य में की जाती थी, सो, भगत राम ने वही सूचना भिजवा दी, जिस के उत्तर में एक सप्ताह में ही तार आ गया कि निदेशक महोदय 15 तारीख को पहुंच रहे हैं. उन के रहने आदि की व्यवस्था हो जानी चाहिए. निदेशक के आने की बात सुन कर सारे दफ्तर में हड़कंप सा मच गया.

‘‘यही तो मुसीबत है इस हिल स्टेशन की, सीजन शुरू हुआ नहीं, कि अधिकारियों का तांता लग जाता है. अब पूरे 4 महीने इसी तरह से नाक में दम बना रहेगा,’’ एक पुराना चपरासी बोल पड़ा.

भगत राम वहां के प्रभारी थे. सारा प्रबंध करने का उत्तरदायित्व एक प्रकार से उन्हीं का था. उन का पहला अनुभव था, इसलिए समझ नहीं पा रहे थे कि कैसे और क्या किया जाए.

सारे स्टाफ  की एक बैठक बुला कर उन्होंने विचारविमर्श किया. जो पुराने थे, उन्होंने अपने अनुभवों के आधार पर राय भी दे डालीं.

‘‘सब से पहले तो गैस्टहाउस बुक करा लीजिए. यहां केवल 2 गैस्टहाउस हैं. अगर किसी और ने बुक करवा लिए तो होटल की शरण लेनी पड़ेगी. बाद में निदेशक साहब जहांजहां भी घूमना चाहेंगे, आप बारीबारी से हमारी ड्यूटी लगा दीजिएगा. आप को तो सुबह 7 बजे से रात 10 बजे तक उन के साथ ही रहना पड़ेगा,’’ एक कर्मचारी ने कहा तो भगत राम ने तुरंत गैस्टहाउस की ओर दौड़ लगा दी.

जो गैस्टहाउस नगर के बीचोंबीच था, वहां काम बन नहीं पाया. दूसरा गैस्टहाउस नगर से बाहर 2 किलोमीटर की दूरी पर जंगल में बना हुआ था. वहां के प्रबंधक ने कहा, ‘‘बुक तो हो जाएगा साहब, लेकिन अगर इस बीच कोई मंत्रीवंत्री आ गया तो खाली करना पड़ सकता है. वैसे तो मंत्री लोग यहां जंगल में आ कर रहना पसंद नहीं करते, लेकिन किसी के मूड का क्या भरोसा. यहां अभी सिर्फ 4 कमरे हैं, आप को कितने चाहिए?’’

भगत राम समझ नहीं पाए कि कितने कमरे लेने चाहिए. साथ गए चपरासी ने उन्हें चुप देख कर तुरंत राय दी, ‘‘कमरे तो चारों लेने पड़ेंगे, क्या पता साहब के साथ कितने लोग आ जाएं, सपरिवार आने के लिए लिखा है न?’’

भगत राम को भी यही ठीक लगा. सो, उन्होंने पूरा गैस्टहाउस बुक कर दिया. ठीक 15 अप्रैल को निदेशक महोदय का काफिला वहां पहुंच गया. परिवार के नाम पर अच्छीखासी फौज उन के साथ थी. बेटा, बेटी, दामाद और साले साहब भी अपने बच्चों सहित पधारे थे. साथ में 2 छोटे अधिकारी और एक अरदली भी था.

सुबह 11 बजे उन की रेल 60 किलोमीटर की दूरी वाले शहर में पहुंची थी. भगत राम उन का स्वागत करने टैक्सी ले कर वहीं पहुंच गए थे. मेहमानों की संख्या ज्यादा देखी तो वहीं खड़ेखड़े एक मैटाडोर और बुक करवा ली.

शाम 4 बजे वे सब गैस्टहाउस पहुंचे. निदेशक साहब की इच्छा आराम करने की थी, लेकिन भगत राम का आराम उसी क्षण से हराम हो गया था.

‘‘रहने के लिए बाजार में कोई ढंग की जगह नहीं थी क्या? लेकिन चलो, हमें कौन सा यहां स्थायी रूप से रहना है. खाने का प्रबंध ठीक हो जाना चाहिए,’’ निदेशक महोदय की पत्नी ने गैस्टहाउस पहुंचते ही मुंह बना कर कहा. उन की यह बात कुछ ही क्षणों में आदेश बन कर भगत राम के कानों में पहुंच गई थी.

खाने की सूची में सभी की पसंद और नापंसद का ध्यान रखा गया था. भगत राम अपनी देखरेख में सारा प्रबंध करवाने में जुट गए थे. रहीसही कसर अरदली ने पूरी कर दी थी. वह बिना किसी संकोच के भगत राम के पास आ कर बोला, ‘‘व्हिस्की अगर अच्छी हो तो खाना कैसा भी हो, चल जाता है. साहब अपने साले के साथ और उन का बेटा अपने बहनोई के साथ 2-2 पेग तो लेंगे ही. बहती गंगा में साथ आए साहब लोग भी हाथ धो लेंगे. रही बात मेरी, तो मैं तो देसी से भी काम चला लूंगा.’’

भगत राम कभी शराब के आसपास भी नहीं फटके थे, लेकिन उस दिन उन्हें अच्छी और खराब व्हिस्कियों के नाम व भाव, दोनों पता चल गए थे.

गैस्टहाउस से घर जाने की फुरसत भगत राम को रात 10 बजे ही मिल पाई, वह भी सुबह 7 बजे फिर से हाजिर हो जाने की शर्त पर.

निदेशक साहब ने 10 दिनों तक सैरसपाटा किया और हर दिन यही सिलसिला चलता रहा. भगत राम की हैसियत निदेशक साहब के अरदली के अरदली जैसी हो कर रह गई.

निदेशक साहब गए तो उन्होंने राहत की सांस ली. मगर जो खर्च हुआ था, उस की भरपाई कहां से होगी, यह समझ नहीं पा रहे थे.

दफ्तर में दूसरे कर्मचारियों से बात की तो तुरंत ही परंपरा का पता चल गया. ‘‘खर्च तो दफ्तर ही देगा, साहब, मरम्मत और पुताईरंगाई जैसे खर्चों के बिल बनाने पड़ेंगे. हर साल यही होता है,’’ एक कर्मचारी ने बताया.

दफ्तर की हालत तो ऐसी थी जैसी किसी कबाड़ी की दुकान की होती है, लेकिन साफसफाई के बिलों का भुगतान वास्तव में ही नियमितरूप से हो रहा था. भगत राम ने भी वही किया, फिर भी अनुभव की कमी के कारण 2 हजार रुपए का गच्चा खा ही गए.

निदेशक का दौरा सकुशल निबट जाने का संतोष लिए वे घर लौटे तो पाया कि साले साहब सपरिवार पधारे हुए हैं.

‘‘जिस दिन आप के ट्रांसफर की बात सुनी, उसी दिन सोच लिया था कि इस बार गरमी में इधर ही आएंगे. एक हफ्ते की छुट्टी मिल ही गई है,’’ साले साहब खुशी के साथ बोले.

भगत राम की इच्छा आराम करने की थी, मगर कह नहीं सके. जीजा, साले का रिश्ता वैसे भी बड़ा नाजुक होता है.

‘‘अच्छा किया, साले साहब आप ने. मिलनेजुलने तो वैसे भी कभीकभी आते रहना चाहिए,’’ भगत राम ने केवल इतना ही कहा.

साले साहब के अनुरोध पर उन्हें दफ्तर से 3 दिनों की छुट्टी लेनी पड़ी और गाइड बन कर उन्हें घुमाना भी पड़ा.

छुट्टियां तो शायद और भी लेनी पड़ जातीं, मगर बीच में ही बदहवासी की हालत में दौड़ता हुआ दफ्तर का चपरासी आ गया. उस ने बताया कि दफ्तर में औडिट पार्टी आ गई है, अब उन के लिए सारा प्रबंध करना है.

सुनते ही भगत राम तुरंत दफ्तर पहुंच गए और औडिट पार्टी की सेवाटहल में जुट गए. साले साहब 3 दिनों बाद ‘सारी खुदाई एक तरफ…’ वाली कहावत को चरितार्थ कर के चले गए, मगर औडिट पार्टी के सदस्यों का व्यवहार भी सगे सालों से कुछ कम न था. दफ्तर का औडिट तो एक दिनों में ही खत्म हो गया था लेकिन पूरे हिल स्टेशन का औडिट करने में एक सप्ताह से भी अधिक का समय लग गया.

औडिट चल ही रहा था कि दूर की मौसी का लड़का अपनी गर्लफ्रैंड सहित घर पर आ धमका. जब तक भगत राम मैदानी क्षेत्र के दफ्तर में नियुक्त थे, उस के दर्शन नहीं होते थे, लेकिन अचानक ही वह सब से सगा लगने लगा था. एक हफ्ते तक वह भी बड़े अधिकारपूर्वक घर में डेरा जमाए रहा.

औडिट पार्टी भगत राम को निचोड़ कर गई तो किसी दूसरे वरिष्ठ अधिकारी के पधारने की सूचना आ गई.

‘‘समझ में नहीं आता कि यह सिलसिला कब तक चलेगा?’’ भगत राम बड़बड़ाए.

‘‘जब तक सीजन चलेगा,’’ एक कर्मचारी ने बता दिया.

भगत राम ने अपना सिर दोनों हाथों से थाम लिया. घर पर जा कर भी सिर हाथों से हट न पाया क्योंकि वहां फूफाजी आए हुए थे.

बाद में दूसरे अवसर पर तो बेचारे चाह कर भी ठीक से मुसकरा तक नहीं पाए थे, जब घर में दूर के एक रिश्तेदार का बेटा हनीमून मनाने चला आया था.

उसी समय सुजाता की एक रिश्तेदार महिला भी पति व बच्चों सहित आ गई थी. और अचानक उन के दफ्तर के एक पुराने साथी को भी प्रकृतिप्रेम उमड़ आया था. भगत राम को रजाईगद्दे किराए पर मंगाने पड़ गए थे.

वे खुद तो गाइड की नौकरी कर ही रहे थे, पत्नी को भी आया की नौकरी करनी पड़ गई थी. सुजाता की रिश्तेदार अपने पति के साथ प्रकृति का नजारा लेने के लिए अपने छोटेछोटे बच्चों को घर पर ही छोड़ जाया करती थी.

उधर, दफ्तर में भी यही हाल था. एक अधिकारी से निबटते ही दूसरे अधिकारी के दौरे की सूचना आ जाती थी. शांति की तलाश में भगत राम दफ्तर में आ जाते थे और फिर दफ्तर से घर में. लेकिन मानसिक शांति के साथसाथ आर्थिक शांति भी छिन्नभिन्न हो गई थी. 4 महीने कब गुजर गए, कुछ पता ही न चला. हां, 2 बातों का ज्ञान भगत राम को अवश्य हो गया था. एक तो यह कि दफ्तर के कुल कितने बड़ेबड़े अधिकारी हैं और दूसरी यह कि दुनिया में उन के रिश्तेदार और अभिन्न मित्रों की कोई कमी नहीं है.

‘‘सच पूछिए तो यहां रहने का मजा ही आ गया…जाने की इच्छा ही नहीं हो रही है, लेकिन छुट्टियां इतनी ही थीं, इसलिए जाना ही पड़ेगा. अगले साल जरूर फुरसत से आएंगे.’’ रिश्तेदार और मित्र यही कह कर विदा ले रहे थे. उन की फिर आने की धमकी से भगत राम बुरी तरह से विचलित होते जा रहे थे.

‘‘क्योंजी, अगले साल भी यही सब होगा क्या?’’ सुजाता ने पूछा. शायद वह भी विचलित थी.

‘‘बिलकुल नहीं,’’ भगत राम निर्णायक स्वर में चीख से पड़े, ‘‘मैं आज ही तबादले का आवदेन भिजवाए देता हूं. यहां से तबादला करवा कर ही रहूंगा, चाहे 10-20 हजार रुपए खर्च ही क्यों न करने पड़ें.’’

सुजाता ने कुछ न कहा. भगत राम तबादले का आवेदनपत्र भेजने के लिए दफ्तर की ओर चल पड़े.

VIDEO : रेड वेलवेट नेल आर्ट

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Smart Parenting : नए मेहमान की जिम्‍मेदारियों से डरें नहीं

जहां नन्हे मेहमान के आने से घर में रौनक आ जाती है, घर में चारों तरफ बच्चे की किलकारियां गूंजती हैं, वहीं घर का हर सदस्य उत्सुकता से भर जाता है. पेरैंट्स को तो ऐसा लगता है जैसे उन की जिंदगी में नई ऊर्जा का संचार हुआ हो. लेकिन नन्हे के आने से पेरैंट्स का लाइफस्टाइल भी पूरी तरह से प्रभावित होता है, जिसे शुरुआत में तो वे हंसीखुशी स्वीकार लेते हैं, लेकिन बाद में रूटीन में भी बदलाव उन की जिंदगी पर असर डालने लगता है. ऐसे में जरूरी है कि रूटीन में बदलाव से निबटने के लिए योजना बना कर चलें.

खानपान में लापरवाही: पूरा दिन बच्चे की केयर में मातापिता अपने खानपान पर बिलकुल ध्यान नहीं देते हैं. समय नहीं मिलने के कारण वे जो मिल गया वही खा लेते हैं. भले ही फास्टफूड खा कर ही पूरा दिन क्यों न बिताना पड़े और फिर यही अनहैल्दी ईटिंग हैबिट्स उन्हें बीमार कर देती हैं.

कैसे निबटें: जब भी कुछ नया होता है तो बदलाव आना स्वाभाविक है. लेकिन उस बदलाव के अनुसार खुद को ऐडजस्ट करना बड़ी चुनौती होती है. अगर आप अकेले रहते हैं तो आप अपना खानपान संबंधी टाइमटेबल बना कर चलें, जिस से अनहैल्दी खाने का सवाल ही न उठे. जैसे आप ब्रेकफास्ट में स्प्राउट्स, अंडा, चीला बगैरा ले सकते हैं. इसी तरह लंच में दाल, रोटी, दही, छाछ या फिर उबले चने और रात के डिनर में ओट्स बगैरा ले सकते हैं, जो हाई फाइबर रिच डाइट होती है. इस बीच आप को जब भी भूख का एहसास हो तो आप फू्रट्स, चने बगैरा लें, जो आप की भूख को शांत करने के साथसाथ आप को हैल्दी भी रखेंगे.

सोने के समय में कमी: बच्चे के आने से पेरैंट्स की नींद में खलल पड़ता है, क्योंकि अब अपने हिसाब से नहीं बल्कि बच्चे के हिसाब से सोनाउठना पड़ता है, जो थकान के साथसाथ तनाव का भी कारण बनता है और जिस का असर उन की पर्सनल के साथसाथ प्रोफैशनल लाइफ पर भी पड़ता है.

कैसे निबटें: ऐसे समय में पेरैंट्स को मिल कर जिम्मेदारी निभानी चाहिए, जैसे आप घर पर हैं तो आप अपने हसबैंड के सामने घर के सभी जरूरी काम निबटा लें ताकि बच्चे के सोने पर आप भी अपनी नींद पूरी कर सकें और फिर जब आप का पार्टनर काम से घर लौटे तो आप के फ्रैश होने के कारण उन्हें भी आराम मिल सके. रात को भी इसी तरह मैनेज करने से आप पहले की तरह ही अपना रूटीन बना सकते हैं.

 

इमोशनल बैलेंस: वर्किंग होते हुए भी पहले घंटों एकदूसरे को टाइम देना, एकदूसरे की हर बात सुनना, लेकिन बाद में बच्चे में बिजी रहने के कारण पार्टनर एकदूसरे को वक्त नहीं दे पाते हैं. रोमांस तो उन की लाइफ में रह नहीं जाता, जिस से उन के बीच इमोशनली अटैचमैंट में कमी आती है.

कैसे निबटें: पेरैंट्स बनने का मतलब यह नहीं कि आप एकदूसरे के साथ रोमांस जताना ही छोड़ दें, एकदूसरे को छेड़ना ही छोड़ दें, बल्कि पहले की तरह ही पार्टनर के साथ रोमांटिक रहें. उस की फीलिंग्स को समझें और टाइम दें. हो सके तो डिनर या फिर रोमांटिक डेट्स पर भी जाएं. इस से लाइफ में रोमांस बना रहता है वरना नीरसता आने से लाइफ बोरिंग लगने लगती है.

 

अनुशासन में कमी: अकसर हमें अनुशासन में रहना पसंद होता है जैसे टाइम पर उठना, खाना, कहीं बाहर जाना है तब भी टाइम से निकलना, ऐक्सरसाइज बगैरा. लेकिन पेरैंट्स बनने के बाद हम चाह कर भी खुद को अनुशासन में नहीं रख पाते, जो हमें अंदर ही अंदर परेशान करता है.

कैसे निबटें: भले ही शुरुआत के 1-2 हफ्ते आप के बहुत बिजी निकलें, लेकिन बाद में आप अपना शैड्यूल बना कर चलें, जैसे अगर आप बाहर ऐक्सरसाइज के लिए नहीं जा सकते तो घर में ही करें और अगर डिनर फिक्स टाइम पर नहीं हो पा रहा तो निडर को टाइम पर करने के लिए उस में ओट्स, सूप, सलाद, खिचड़ी शामिल करें, जो कम समय में बनने के साथसाथ ज्यादा हैल्दी भी है. इस से आप बाहर का खाने से भी बच जाएंगे और स्वस्थ भी रहेंगे. इसी तरह आप बाकी चीजों को भी मैनेज कर के नई स्थितियों से आसानी से निबट सकते हैं.

Metro : कसूरवार चश्‍मा

‘‘अरे,संभल कर बेटा,’’ मैट्रो में तेजी से चढ़ती प्रिया के धक्के से आहत बुजुर्ग महिला बोलीं.

प्रिया जल्दी में आगे बढ़ गई. बुजुर्ग महिला को यह बात अखर गई. वे उस के करीब जा कर बोलीं, ‘‘बेटा, चाहे कितनी भी जल्दी हो पर कभी शिष्टाचार नहीं भूलने चाहिए. तुम ने एक तो मुझे धक्का मार कर मेरा चश्मा गिरा दिया उस पर मेरे कहने के बावजूद मुझ से माफी मांगने के बजाय आंखें दिखा रही हो.’’

अब तो प्रिया ने उन्हें और भी ज्यादा गुस्से से देखा. मैं जानती हूं, प्रिया को गुस्सा बहुत जल्दी आता है. इस में उस की कोई गलती नहीं. वह घर की इकलौती लाडली बेटी है. गजब की खूबसूरत और होशियार भी. वह जल्दी नाराज होती है तो सामान्य भी तुरंत हो जाती है. उसे किसी की टोकाटाकी या जोर से बोलना पसंद नहीं. इस के अलावा उसे किसी से हारना या पीछे रहना भी नहीं भाता.

जो चाहती उसे पा कर रहती. मैं उसे अच्छी तरह समझती हूं. इसीलिए सदैव उस के पीछे रहती हूं. आगे चलने या रास्ते में आने का प्रयास नहीं करती.

मुझे जिंदगी ने भी कुछ ऐसा ही बनाया है. बचपन में अपनी मां को खो दिया था. पिता ने दूसरी शादी कर ली. सौतेली मां को मैं बिलकुल नहीं भाती थी. मैं दिखने में भी खूबसूरत नहीं. एक ही उम्र की होने के बावजूद मुझ में और प्रिया में दिनरात का अंतर है. वह दूध सी सफेद, खूबसूरत, नाजुक, बड़ीबड़ी आंखों वाली और मैं साधारण सी हर चीज में औसत हूं.

जाहिर है, पापा की लाडली भी प्रिया ही थी. मेरे प्रति तो वे केवल अपनी जिम्मेदारी ही निभा रहे थे. पर मैं ने बचपन से ही अपनी परिस्थितियों से समझौता करना सीख लिया था. मुझे किसी की कोई बात बुरी नहीं लगती. सब की परवाह करती पर इस बात की परवाह कभी नहीं करती कि मेरे साथ कौन कैसा व्यवहार कर रहा है. जिंदगी जीने का एक अलग ही तरीका था मेरा. शायद यही वजह थी कि प्रिया मुझ से बहुत खुश रहती. मैं अकसर उस की सुरक्षाकवच बन कर खड़ी रहती.

आज भी ऐसा ही हुआ. प्रिया को बचाने के लिए मैं सामने आ गई, ‘‘नहींनहीं आंटीजी, आप प्लीज उसे कुछ मत कहिए. प्रिया ने आप को देखा नहीं था. वह जल्दी में थी. उस की तरफ से मैं आप से माफी मांगती हूं, प्लीज, माफ कर दीजिए.’’

‘‘बेटा जब गलती तूने की ही नहीं तो माफी क्यों मांग रही है? तूने तो उलटा मुझे मेरा गिरा चश्मा उठा कर दिया. तेरे जैसी बच्चियों की वजह से ही दुनिया में बुजुर्गों के प्रति सम्मान बाकी है वरना इस के जैसी लड़कियां तो…’’

‘‘मेरे जैसी से क्या मतलब है आप का? ओल्ड लेडी, गले ही पड़ गई हो,’’ बुजुर्ग महिला को झिड़कती हुई प्रिया आगे बढ़ गई.

मुझे प्रिया की यह बात बहुत बुरी लगी. मैं ने बुजुर्ग महिला को सहारा देते हुए खाली पड़ी सीट पर बैठाया और उन्हें चश्मा पहना कर प्रिया के पास लौट आई.

हम दोनों जल्दीजल्दी घर पहुंचे. प्रिया का मूड औफ हो गया था. पर मैं उसे लगातार चियरअप करने का प्रयास करती रही.

मैं सिर्फ प्रिया की रक्षक या पीछे चलने वाली सहायिका ही नहीं थी वरन उस की सहेली और सब से बड़ी राजदार भी थी. वह अपने दिल की हर बात सब से पहले मुझ से ही शेयर करती. मैं उस के प्रेम संबंधों की एकमात्र गवाह थी. उसे बौयफ्रैंड से मिलने कब जाना है, कैसे इस बात को घर में सब से छिपाना है और आनेजाने का कैसे प्रबंध करना है, इन सब बातों का खयाल मुझे ही रखना होता था.

प्रिया का पहला बौयफ्रैंड 8वीं क्लास में उस के साथ पढ़ने वाला प्रिंस था. उसी ने पीछे पड़ कर प्रिया को प्रोपोज किया था. उस की कहानी करीब 4 सालों तक चली. फिर प्रिया ने उसे डिच कर दिया. दूसरा बौयफ्रैंड वर्तमान में भी प्रिया के साथ था. अमीर घर का इकलौता चिराग वैभव नाम के अनुरूप ही वैभवशाली था. प्रिया की खूबसूरती से आकर्षित वैभव ने जब प्रोपोज किया तो प्रिया मना नहीं कर सकी.

आज भी प्रिया उस के साथ रिश्ता निभा रही है पर दिल से उस से जुड़ नहीं सकी है. बस दोनों के बीच टाइमपास रिलेशनशिप ही है. प्रिया की नजरें किसी और को ही तलाशती रहती हैं.

उस दिन हमें अपनी कजिन की शादी में नोएडा जाना था. मम्मी ने पहले ही ताकीद कर दी थी कि दोनों बहनें समय पर तैयार हो जाएं. प्रिया के लिए पापा बेहद खूबसूरत नीले रंग का गाउन ले आए थे जबकि मैं ने अपनी पुरानी मैरून ड्रैस निकाल ली.

नई ड्रैस प्रिया की कमजोरी है. इसी वजह से जब भी पापा प्रिया को पार्टी में ले जाना चाहते तो इसी तरह एक नई ड्रैस उस के बैड पर चुपके से रख आते.

आज भी प्रिया ने नई डै्रस देखी तो खुशी से उछल पड़ी. जल्दी से तैयार हो कर निकली तो सब दंग रह गए. बहुत खूबसूरत लग रही थी.

‘‘आज तो तू बहुतों का कत्ल कर के आएगी,’’ मैं ने प्यार से उसे छेड़ा तो वह मुझे बांहों में भर कर बोली, ‘‘बहुतों का कत्ल कर के क्या करना है, मुझे तो बस अपने उसी सपनों के राजकुमार की ख्वाहिश है जिसे देखते ही मेरी नजरें झपकना भूल जाएं.’’

‘‘जरूर मिलेगा मैडम, मगर अभी सपनों की दुनिया से जरा बाहर निकलिए और पार्टी में चलिए. क्या पता वहीं कोई आप का इंतजार कर रहा हो,’’ मैं ने उसे छेड़ते हुए कहा तो वह हंस पड़ी.

पार्टी में पहुंच कर हम मस्ती करने लगे. करीब 1 घंटा बीत चुका था. अचानक प्रिया मेरी बांह पकड़ कर खींचती हुई मुझे अलग ले गई और कानों में फुसफुसा कर बोली, ‘‘प्रज्ञा वह देखो सामने. ब्लू सूट पहने मेरे सपनों का राजकुमार खड़ा है. मुझे तो बस इसी से शादी करनी है.’’

मैं खुशी से उछल पड़ी, ‘‘सच प्रिया? तो क्या तेरी तलाश पूरी हुई?’’

‘‘हां,’’ प्रिया ने शरमाते हुए कहा.

सामने खड़ा नौजवान वाकई बहुत हैंडसम और खुशमिजाज लग रहा था. मैं ने कहा, ‘‘मुझे तेरी पसंद पर नाज है प्रिया, मैं पता लगाती हूं कि यह है कौन? वैसे तब तक तुझे उस से दोस्ती करने का प्रयास करना चाहिए.’’

वह रोंआसी हो कर बोली, ‘‘यार यही तो समस्या है. वह पहला लड़का है जो मुझे भाव नहीं दे रहा. मैं ने 1-2 बार प्रयास किया पर वह अपने घर वालों में ही व्यस्त है.’’

‘‘यार कुछ लड़के शर्मीले होते हैं. हो सकता है वह दूसरे लड़कों की तरह बोल्ड न हो जो पहली मुलाकात में ही दोस्ती के लिए उतावले हो उठते हैं.’’

‘‘यार तभी तो यह लड़का मुझे और भी ज्यादा पसंद आ रहा है. दिल कर रहा है कि किसी भी तरह यह मेरा बन जाए.’’

‘‘तू फिक्र मत कर. मैं इस के बारे में सारी बात पता करती हूं. सारी कुंडली निकलवा लूंगी,’’ मैं ने उस लड़के की तरफ देखते हुए कहा.

जल्द ही कोशिश कर के मैं ने उस लड़के से जुड़ी काफी जानकारी इकट्ठी कर ली. वह हमारी कजिन के फ्रैंड का भाई था. उस का नाम मयूर था.

वह कहां काम करता है, कहां रहता है, क्या पसंद है, घर में कौनकौन हैं जैसी बातें मैं ने प्रिया को बता दीं. प्रिया ने फेसबुक, लिंक्डइन जैसी सोशल मीडिया साइट्स पर जा कर उस लड़के के बारे में और भी जानकारी ले ली. प्रिया ने फेसबुक पर मयूर को फ्रैंड रिक्वैस्ट भी भेजी पर उस ने स्वीकार नहीं की.

अब तो मैं अकसर देखती कि प्रिया उस लड़के के ही खयालों में खोई रहती है. उसी की तसवीरें देखती रहती है या उस की डिटेल्स ढूंढ़ रही होती है. मुझे समझ में आ गया कि प्रिया को उस लड़के से वास्तव में प्यार हो गया है.

एक दिन मैं ने यह बात पापा को बता दी और आग्रह किया कि वे उस लड़के के घर प्रिया का रिश्ता ले कर जाएं. पापा ने उस के परिवार वालों से बात चलाई तो पता चला कि वे लोग भी मयूर के लिए लड़की ढूंढ़ रहे हैं. पापा ने अपनी तरफ से प्रिया के लिए उन्हें प्रपोजल दिया.

रविवार के दिन मयूर और उस के परिवार वाले प्रिया को देखने आने वाले थे. प्रिया बहुत खुश थी. अपनी सब से अच्छी ड्रैस पहन कर वह तैयार हुई. मैं ने बहुत जतन से उस का मेकअप किया. मेकअप कर के बालों को खुला छोड़ दिया. वह बेहद खूबसूरत लग रही थी.

मगर आज पहली दफा प्रिया मुझे नर्वस दिखाई दे रही थी. जब प्रिया को उन के सामने लाया गया तो मयूर और उस की मां एकटक उसे देखते रह गए. मैं भी पास ही खड़ी थी. मयूर ने तो कुछ नहीं कहा पर उस की मां ने बगैर किसी औपचारिक बातचीत के जो कहा उसे सुन कर हम सब सकते में आ गए.

लड़के की मां ने कहा, ‘‘खूबसूरती और आकर्षण तो लड़की में कूटकूट कर भरा है, मगर आगे कोई बात की जाए उस से पहले ही क्षमा मांगते हुए मैं यह रिश्ता अस्वीकार करती हूं.’’

प्रिया का चेहरा उतर गया. पापा भी इस अप्रत्याशित इनकार से हैरान थे. अजीब मुझे भी बहुत लग रहा था. आखिर प्रिया जैसी खूबसूरत और पढ़ीलिखी बड़े घर की लड़की को पाना किसी के लिए भी हार्दिक प्रसन्नता की बात होती और फिर प्रिया भी तो इस रिश्ते के लिए कितनी उत्साहित थी.

पापा ने हाथ जोड़ते हुए धीरे से पूछा, ‘‘इस इनकार की वजह तो बता दीजिए. आखिर मेरी बच्ची में कमी क्या है?’’

लड़के की मां ने बात बदली और मेरी तरफ इशारा करते हुए कहा, ‘‘मुझे यह लड़की पसंद है. यदि आप चाहें तो मैं इसे अपनी बहू बनाना पसंद करूंगी. आप घर में बात कर के जब चाहें अपना जवाब दे देना.’’

पापा ने उम्मीद के साथ मयूर की ओर देखा तो वह भी हाथ जोड़ता हुआ बोला, ‘‘अंकल, जैसा मम्मी कह रही हैं मेरा जवाब भी वही है. मैं भी चाहूंगा कि प्रज्ञा जैसी लड़की ही मेरी जीवनसाथी बने.’’

प्रिया रोती हुई अंदर भाग गई. मैं भी उस के पीछेपीछे अंदर चली गई. उन्हें बिदा कर मम्मीपापा भी जल्दी से प्रिया के कमरे में आ गए.

मगर प्रिया किसी से भी बात करने को तैयार नहीं थी. रोती हुई बोली, ‘‘प्लीज, आप लोग बाहर जाएं, मैं अभी अकेली रहना चाहती हूं.’’

हम सब बाहर आ गए. इस समय मेरी स्थिति अजीब हो रही थी. समझ में नहीं आ रहा था कि मैं क्या कहूं. कुसूरवार न होते हुए भी आज मैं सब की आंखों में चुभ रही थी. मम्मी मुझे खा जाने वाली नजरों से देख रही थीं तो प्रिया भी नजरें चुरा रही थी. मुझे रात भर नींद नहीं आई.

अगली सुबह भी प्रिया बहुत उदास दिखी. उस की नजरों में दोषी मैं ही थी और यह बात सहन करना मेरे लिए बहुत कठिन था. मैं ने तय किया कि मैं मयूर के घर वालों के इनकार की वजह जान कर रहूंगी. प्रिया को छोड़ कर उन्होंने मुझे क्यों चुना जबकि प्रिया मुझ से लाख गुना ज्यादा खूबसूरत और स्मार्ट है, होशियार है. मैं तो कुछ भी नहीं.

बात की तह तक पहुंचने का फैसला कर मैं मयूर के घर पहुंच गई. बहुत आलीशान और खूबसूरत घर था उन का. महरी ने दरवाजा खोला और मुझे अंदर आने को कहा. घर बहुत करीने से सजा था. मैं ड्राइंगरूम का जायजा ले रही थी कि तभी बगल के कमरे से चश्मा पोंछती बुजुर्ग महिला निकलीं.

मुझे उन्हें पहचानने में एक पल भी नहीं लगा. यह तो मैट्रो वाली वही बुजुर्ग महिला थीं जिन का चश्मा कुछ दिन पहले प्रिया ने गिरा दिया था. मैं ने उन्हें चश्मा उठा कर दिया था. मुझे सहसा सारी बात समझ में आने लगी कि क्यों प्रिया को रिजैक्ट कर उन्होंने मुझे चुना.

सामने से मयूर की मां निकलीं. मुसकराती हुई बोलीं, ‘‘बेटा, मैं समझ सकती हूं कि तू क्या पूछने आई है. शायद तुझे अपने सवाल का जवाब मिल भी गया होगा. दरअसल, उस दिन मैट्रो में मैं भी वहीं थी और सब कुछ अपनी नजरों से देखा था. खूबसूरती, रंगरूप, धन, इन सब से ऊपर एक चीज होती है और वह है संस्कार. हमें एक सभ्य और व्यवहारकुशल बहू चाहिए बिलकुल तुम्हारे जैसी.’’

मैं ने आगे बढ़ कर दोनों के पांव छूने चाहे पर अम्मांजी ने मुझे गले से लगा लिया.

घर पहुंची तो प्रिया ने पहले की तरह रूखेपन से मेरी तरफ देखा और फिर अपने काम में लग गई.

मैं उस के पास जा कर धीरे से बोली, ‘‘कल के इनकार की वजह जानने मैं मयूर के घर गई थी. तुझे याद हैं वे बुजुर्ग महिला, जिन का चश्मा मैट्रो में तेरी टक्कर से नीचे गिर गया था? दरअसल, वे बुजुर्ग महिला मयूर की दादी हैं और इसी वजह से उन्होंने तुझे न कह दिया.

पर तू परेशान मत हो प्रिया. तेरी पसंद के लड़के को मैं कभी अपना नहीं बनाऊंगी. मैं न कह कर आई हूं.’’

प्रिया खामोशी से मेरी तरफ देखती रही. उस की आंखों में रूखेपन की जगह बेचारगी और अफसोस ने ले ली थी. थोड़ी देर चुप बैठने के बाद वह धीरे से उठी और मुझे गले लगाती हुई बोली, ‘‘पागल है क्या? इतने अच्छे रिश्ते के लिए कभी न नहीं करते. मैं करवाऊंगी मयूर से तेरी शादी.’’

मैं आश्चर्य से उसे देखने लगी तो वह मुसकराती हुई बोली, ‘‘आज तक तू मेरे लिए जीती रही है. आज समय है कि मैं भी तेरे लिए कुछ अच्छा करूं. खबरदार जो न कहा.’’

मेरे दिल पर पड़ा बोझ हट गया था. मैं ने आगे बढ़ कर उसे गले से लगा लिया.

Hospital : अस्‍पताल का जनरल वार्ड

मैंने चाय का आखिरी घूंट पिया और आदत के अनुसार उस को मुंह में घुमाया तो मेरे सामने के बैड पर लेटा बालक हंस दिया. मैं ने जल्दी से चाय को गले उतारा और इशारे से पूछा, ‘क्या?’ वह फिर हंस दिया, बोला, ‘चाय को मुंह में रखने और घुमाने से आप मुझे मानव विकास क्रम के पहले चरण से लगे.’ उस की बात सुन कर मैं भी हंस दिया.

अस्पताल का जनरल वार्ड है यह. कई रोगी हैं यहां. मैं तो 2 दिनों पहले ही आया हूं. कई रोगी तो महीनों से भरती हैं. यह लड़का भी 7 दिनों से भरती है. इस को कुत्ते ने काटा था तो इस के पिताजी इसे बावसी के पास ले गए थे. यहां ज्यादातर लोग पशु के काटने, बुखार आने, पेटदर्द जैसी बीमारियों पर पहले आस्था के केंद्र पर जाते हैं. जब मामला बिगड़ जाता है तो डाक्टर के पास आते हैं. ठीक होने पर डाक्टर को नहीं, बावसी को ही प्रसाद चढ़ाते हैं. तो इस लड़के को कुत्ते ने काटा. बावसी ने कुत्ते के काटे पर फूंक मारी और कहा, ‘जाओ, ठीक हो जाएगा.’ सब ने बावसी की जय की और टापरे चले गए थे. पर कुछ दिनों बाद मामला बिगड़ गया. कुत्ता पागल था, सो, लड़के को रेबीज हो गया, तो इसे यहां अस्पताल लाया गया.

अस्पताल में एक संस्था द्वारा मुफ्त में दिए जाने वाले भोजन का वितरण शुरू हुआ और लड़के के पिताजी भोजन लेने चले गए.

मेरे पास के बिस्तर पर एक 14 साल की लड़की है, जिस को उस के ही रिश्तेदारों ने जम कर पीटा है. स्वयंसेवी संस्था, पुलिस, नेता, प्रशासन के लोग उस से मिलने लगातार आते रहते हैं. किसी ने बताया कि प्रेम का मामला है, लेकिन परंपरा, सम्मान से जुड़ा है. यहां यह परंपरा है कि गांव के लड़केलड़की भाईबहन माने जाते हैं. यह लड़की गांव के ही एक लड़के से प्रेम करती है. लड़का भी जीजान से इस को चाहता था. जब गांव के बड़ेबुजुर्गों को पता लगा तो दोनों को समझाया कि यह प्रेम गलत है. वे शादी नहीं कर सकते. पर ये दोनों नहीं माने. एक दिन दोनों ने जहर खा लिया. प्रेमी तो मर गया लेकिन प्रेमिका बच गई, जो अब यहां है. लड़की बहुत दबाव में है.

परंपराएं कितनों का ही खून करती हैं, कितने ही अरमानों का गला दबा देती हैं, कितनी ही उम्मीदों को कोख में ही मार देती हैं. हर व्यक्ति जन्म लेते ही ऐसे कितने ही बोझों को ले कर बड़ा होता है. आजकल के युवा कहां मानते हैं ऐसी पुरानी बातों को. यह बात मांबाप, रिश्तेदार और समाज के ठेकेदार नहीं मानते हैं, इसलिए ऐसी घटनाएं होती हैं.

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फिर ग्रामीण लड़केलड़कियां शारीरिक संबंधों को कम उम्र में ही समझ जाते हैं. क्योंकि वे एक कमरे के टापरे में मांबाप, भाईभाभी को सैक्स करते देखते हैं. प्राइवेसी तो होती नहीं है, तो वे भी इसे करने लगते हैं. फिर परिवार, गांव के सम्मान की रक्षा के लिए लड़केलड़कियां पेड़ों पर लटके दिखते हैं, जहर खा लेते हैं या दुष्कर्म के मुकदमे दायर हो जाते हैं.

वार्ड में और भी मरीज हैं जिन से मिलनेजुलने का, आनेजाने वालों का तांता लगा रहता है. ऊंची आवाज में बातचीत होती रहती है. दूसरे मरीजों की तकलीफ का खयाल नहीं रखा जाता है. कभीकभी नर्स चुप रहने को कहती है, तो कुछ देर शांति रहती है, फिर वही सब शुरू हो जाता है. कुछ बुजुर्ग बीड़ी पीते हैं. गार्ड उन से बीड़ी छीन लेते हैं. लेकिन चोरीछिपे फिर वार्ड में ये वस्तुएं आ ही जाती हैं. सभी जानते हैं इन से होने वाले नुकसान, लेकिन नशा होता ही ऐसा है जिस से दिमाग बंद हो जाता है. इंसान अच्छाबुरा, सहीगलत कुछ नहीं देखता.

लधमाके ले कर बड़ा हुजूम वार्ड में घुस आया. जिस बैड पर लड़का लेटा था, वहां पूजापाठ होने लगी, कर्मकांड किया जाने लगा. भोपा आटे के पिंड बना कर लाया था जिसे बैड के चारों तरफ घुमाया जाने लगा. वैसे, लड़के को बैड से हटा दिया गया था.

जब वे लोग चले गए तो लड़के को वापस बैड पर लिटा दिया गया. जानकारी मिली कि 10 साल पहले एक लड़के की इसी बैड पर मृत्यु हो गई थी और भोपा ने उस के परिजनों को बताया कि लड़के की आत्मा भटक रही है, उस की मुक्ति करनी है, इसलिए यह कर्मकांड किया गया.

अस्पताल का प्रशासन, गार्ड सभी मूकदर्शक बने देख रहे थे, मरीजों की तकलीफ से उन को कोई मतलब नहीं था. आत्मा ले जाई जा चुकी थी और वार्ड के ज्यादातर लोग इस कर्मकांड की प्रशंसा कर रहे थे. कैसा समाज हम ने बनाया है जहां पाखंड के नाम पर होने वाले अंधविश्वास के आगे दूसरों की तकलीफ की कोई सुनवाई नहीं है.

मैं पूरे दिन विचलित रहा, उत्तेजित रहा. मेरे पक्ष में लोग ज्यादा नहीं थे, इसलिए प्रशासन से शिकायत करने पर मेरी सुनवाई नहीं हुई थी. लोकतंत्र में बहुमत की ही सुनवाई होती है. उस के लिए गलतसही कुछ नहीं होता. मैं बेचैनी से करवटें बदलता रहा.

शाम के डाक्टर राउंड पर आए. जब उन को मैं ने यह परेशानी बताई तो वे हंस कर बोले, ‘‘आप को कल छुट्टी मिल जाएगी, घर जा कर चिंतनमनन करते रहना.’’ वे बेफिक्री से दूसरे रोगियों को देखने लगे.

Time Management : घरदफ्तर के कामों को मैनेज नहीं कर पा रही हूं

मेरा सवाल :

Time Management : मैं वर्किंग वुमन हूं. शाम को 7 बजे तक घर वापस आती हूं. रिश्तेदार काफी हैं, इसलिए अकसर शाम के टाइम मेहमान आ जाते हैं सासससुर से मिलने क्योंकि वे दोनों तो घर पर ही रहते हैं. सब से फोन पर बात करते रहते हैं. उन्हें घर बुलाते रहते हैं. मेहमान भी उन की नाराजगी दूर करने के लिए आ जाते हैं. लेकिन उन का चायपानी, नाश्ता तो मुझे ही देखना पड़ता है. अब बच्चे, उन का होमवर्क, घर का काम, मेहमानदारी आदि इतना भार हो जाता है कि कई बार जी करता है सब छोड़ कर कहीं चली जाऊं. आप ही बताएं समय की कमी और जिम्मेदारियों के बीच तालमेल कैसे बिठाऊं?

जवाब

वाकई वर्किंग वुमन के लिए कई जिम्मेदारियां निभाना चुनौतीपूर्ण होता है. हम आप को कुछ सुझाव दे रहे हैं जो आप की दिनचर्या को सरल बनाने में मदद कर सकते हैं.

 

अगर घर में मेहमान आने की संभावना रहती है तो हफ्ते की शुरुआत में ही खानेपीने की तैयारी कर लें. कुछ स्नैक्स और हलके भोजन को तैयार कर फ्रिज में रख सकती हैं जो मेहमानों के आने पर जल्दी से परोसने में मदद करेंगे.

बच्चों को रूटीन में डालें. बच्चों को उन के होमवर्क और पढ़ाईर् के लिए एक नियमित समय दें, जैसे, आप काम पर हों तो वे अपना होमवर्क करें ताकि शाम को आप के पास बस चैक करने का काम हो.

परिवार का सहयोग लें. अपने पति और बच्चों को छोटीछोटी जिम्मेदारियां सौंपें. बच्चे अपनी किताबें या खिलौने समेट सकते हैं और पति मेहमानों का स्वागत कर सकते हैं.

वीकैंड में आने वाले हफ्ते के लिए थोड़ी तैयारी कर लें. अगर संभव हो तो ग्रौसरी, घर के जरूरी सामान और अन्य जरूरतों के लिए औनलाइन शौपिंग करें. इस से बाहर जा कर समय बरबाद नहीं करना पड़ेगा.

हफ्तेभर के खाने का मैन्यू पहले से तय कर लें. इस से रोज सोचने में समय नहीं लगेगा कि क्या बनाना है. मेहमानों के लिए तैयारियां सीमित रखें. खुद पर बहुत ज्यादा दबाव न डालें कि हमेशा कुछ खास ही खाने में पेश करना है.

माइक्रो ब्रेक्स लें. दिनभर की भागदौड़ में थोड़ी देर आराम करना जरूरी है. 10 मिनट का छोटा ब्रेक ले कर चायकौफी का आनंद लें. इस से आप की ऊर्जा वापस आएगी और तनाव कम भी होगा.

अपने पति और परिवार के अन्य सदस्यों को अपनी जिम्मेदारियों के बारे में बताएं ताकि वे आप की स्थिति को समझे  और संभव हो तो मदद करें.

 

 

 

Online Shopping : एमआरपी का भ्रमजाल

लेेखक – विजय कुमार श्रीवास्‍तव

MRP तय करने का कोई कठोर नियम नहीं होता. कंपनियां इसे अपनी मरजी से तय करती हैं और इसे इतना ऊंचा रखती हैं कि खुदरा विक्रेताओं को भी अच्छा मुनाफा मिल सके.

 

समाज में बदलाव होते रहते हैं और बाजार में उपभोक्ताओं की आदतें भी बदलती रहती हैं. अब वस्तुओं, दवाओं आदि के पैकेटों पर छपे अधिकतम खुदरा मूल्य को ही लें.

 

10-15 वर्ष पहले तक हम यह देखा करते थे कि जहां से हम सामान खरीद रहे हैं वहां हम से अधिकतम खुदरा मूल्य से अधिक तो नहीं लिया जा रहा. अब यह देखते हैं कि विक्रेता इस मूल्य के ऊपर कितना डिस्काउंट दे रहा है. डिस्काउंट मिल भी खूब रहा है लेकिन सब को नहीं.

 

डिस्काउंट की संस्कृति सब से अधिक दवाओं के व्यापार पर हावी है. कम से कम महानगरों और शहरों में एलोपैथिक दवाएं बेचने वाले अधिकांश दुकानदार एमआरपी से 10 प्रतिशत कम लिया करते हैं पर यह जरूरी नहीं कि डिस्काउंट बिन मांगे मिल जाए.

 

हाल में मैं डाक्टर को दिखाने के बाद प्रिस्क्रिप्शन ले कर नजदीक की दुकान पर दवा खरीदने गया. डिस्काउंट मिलने की पुष्टि मैं ने दुकानदार से पहले ही कर ली थी. मेरे सामने एक और ग्राहक आया. उस ने मु?ा से भी ज्यादा मूल्य की दवाएं खरीदीं. न उस ने डिस्काउंट के बारे में पूछा, न दुकानदार ने उसे डिस्काउंट दिया. वास्तविकता यह है कि कम आय

 

वाले, अल्पशिक्षित व्यक्ति अज्ञानतावश एमआरपी पर वस्तुएं खरीदा करते हैं. पढ़ेलिखे और अच्छा पैसा कमाने वाले लोग एमआरपी पर मिलने वाली छूट का भरपूर लाभ उठा रहे हैं.

 

एमआरपी की अवधारणा हमारे देश में नागरिक आपूर्ति मंत्रालय द्वारा वर्ष 1990 में लागू की गई थी. इस का उद्देश्य कर चोरी को रोकना तथा खुदरा विक्रेताओं को मुनाफाखोरी करने से रोकना था. एमआरपी सभी करों को मिला कर होता है. बहुत लोग इसे मानक या वाजिब मूल्य के रूप में देखते हैं, जबकि यह मुद्रित किया हुआ वह अधिकतम मूल्य है जिस पर आप को सामान बेचा जाना है. दुकानदार मुद्रित कीमत से अधिक कीमत नहीं ले सकता लेकिन इस से कम कीमत पर बिक्री जरूर कर सकता है.

 

मौल्स में स्थित स्टोरों, रिटेल चेनों और गलीमहल्ले के दुकानदारों के लिए भी एमआरपी से कम कीमत पर सामान बेचना आम बात हो चुकी है. वे जानते हैं कि ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए अब यह जरूरी हो गया है. कई दुकानों पर बोर्ड भी लगे होते हैं जिन में एमआरपी पर न्यूनतम कुछ (7 से 10 ) प्रतिशत छूट देने की बात कही गई होती है.

 

औनलाइन शौपिंग का चलन

 

औनलाइन शौपिंग की लोकप्रियता किस तरह से बढ़ रही है, यह हमारी आंखों के सामने है. लोगों ने करीबकरीब यह मान लिया है कि औनलाइन खरीदारी एमआरपी पर नहीं करनी है. पहले लोग अलगअलग ऐप या वैबसाइट पर जा कर देखते हैं कि जो सामान उन्हें खरीदना है, कहां सब से कम कीमत पर मिल रहा है, इस के बाद ही वे अपना और्डर प्लेस करते हैं. काफी लोगों की दिनचर्या का कुछ समय इसी में जाता है.

 

मेरे एक संबंधी बेंगलुरु में एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में ऊंचे पद पर हैं, कुछ समय पहले तक उन का पूरी तरह से वर्क फ्रौम होम चल रहा था जिस में उन्हें हद से हद 4-6 घंटे दैनिक कार्य करना होता था. जब मैं ने उन से पूछा कि खाली समय में वे क्या करते हैं तो उन का जवाब था- ‘मोबाइल पर देखता रहता हूं कि कहां, क्या सस्ता मिल रहा है.’ एमआरपी को धता बता कर खरीदारी करना मध्य तथा उच्च वर्ग का शगल बनता जा रहा है. इस प्रवृत्ति का लाभ उठाने के लिए कंपनियां मार्जिन खूब बढ़ा कर अनापशनाप कीमतें मुद्रित करने लगी हैं. ग्राहक को लगता है कि डिस्काउंट पर सामान खरीद कर वह फायदे में है पर वास्तव में हमेशा ऐसा नहीं होता.

 

मनोविज्ञान का फायदा

 

एमआरपी पर छूट का समीकरण कई बार समझ में नहीं आता. सब से बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों में से एक के कुछ उत्पादों के अलगअलग विक्रेताओं द्वारा वसूले जाने वाले मूल्य की तुलना के समय कुछ चौंकाने वाली बातें सामने आईं. इस कंपनी का एक लोकप्रिय शैंपू ब्रैंड है जिस के 650 मिलीलिटर की बोतल की छपी हुई कीमत 730 रुपए है. एक ऐप पर इसे 578 रुपए और दूसरे पर इसे 530 रुपए में बेचा जा रहा है जबकि एक तीसरे पर एक खरीदो एक मुफ्त पाओ के हिसाब से यानी आधी कीमत पर मिल रहा है.

 

टूथपेस्ट की एक बड़ी कंपनी के एक खास टूथपेस्ट के 2 पैकेट कहीं 10, कहीं 25 तो कहीं 30 प्रतिशत की छूट पर बिक रहे हैं. अब जानकार लोग कीमतों की तुलना कर के न खरीदें तो क्या करें पर एक निश्चित एमआरपी होने के बावजूद किसी वस्तु को बेचने की कीमतों में इतना अधिक अंतर होना गले के नीचे नहीं उतरता.

प्रतिस्पर्धा का बहाना

 

बाजार में प्रतिस्पर्धा अच्छी बात है लेकिन प्रतिस्पर्धा का लाभ जहां तक हो सके सभी को समान रूप से मिलना चाहिए. ग्राहक अपने मनोविज्ञान को भले न समझें पर कंपनियों तथा उन के उत्पादों को बेचने वालों ने इसे खूब समझ रखा है और वे इस का बढ़चढ़ कर लाभ उठा रहे हैं. हमें 499 रुपए छपे मूल्य वाली वस्तु 349 रुपए में मिल जाती है तो इस सौदे से हम खुश हो जाते हैं पर हमें शायद यह नहीं मालूम होता कि वस्तु की अंतर्निहित कीमत 100 रुपए भी नहीं है.

 

जब एयरलाइंस हवाई टिकटों को मनमाने दामों पर बेचने लगी थीं तो सरकार ने हस्तक्षेप कर इन टिकटों हेतु ‘कैप’ यानी उच्चतम सीमा निर्धारित करने का निर्णय लिया पर साबुन, तेल, बिस्कुट आदि जैसी चीजों के लिए न तो यह संभव है और न ही व्यावहारिक. एमआरपी के साथ एक और समस्या है, हवाई अड्डों पर और फैन्सी रैस्तरां में एमआरपी से ज्यादा वसूला जाता है. इन स्थानों पर यदि पानी की 20 रुपए की बोतल के लिए 80 रुपए और चिप्स के 45 रुपए के पैकेट के लिए 110 रुपए चुकाने पड़ें तो यह सामान्य बात मानी जाती है.

 

देश में उपभोक्ता संरक्षण कानून के साथ एकाधिकार और प्रतिबंधात्मक व्यापार व्यवहार अधिनियम भी काफी समय से लागू है जो उपभोक्ताओं का शोषण रोकने के लिए है. यहां प्रतिवाद तो शायद ही कोई करता है. प्रतिवाद करे भी तो उत्तर अकसर यही मिलता है कि खरीदना, न खरीदना आप की मरजी है, कीमत तो बढ़ी हुई ही लगेगी.

 

निस्संदेह एमआरपी अपने वर्तमान स्वरूप में दिखावा है और आगे भी इस के इसी रूप में बने रहने की उम्मीद है. एक उपभोक्ता के रूप में हमआप यही कर सकते हैं कि बचत तो अधिक से अधिक करें लेकिन सिर्फ इसलिए कि कोई चीज एमआरपी से काफी नीचे कीमत पर मिल रही है, अनावश्यक खरीदारी न करें.

Satire : ट्रांसफर का सीजन

जैसे ही घर पहुंचा, पत्नी ने बताया कि अपनी कालोनी में मिस्टर गुलाटी के यहां चोरी हो गई है. मैं ने पूछा, ‘‘चोरों का कोई पता चला?’’

‘‘अभी तक तो मुझे कोई जानकारी नहीं मिली है,’’ पत्नी बोली, ‘‘आप आ गए हो तो सारी जानकारी मिल जाएगी. कोई कह रहा था कि चोरी हो गई और कोई बता रहा था डकैती पड़ी है. मुझे तो दोनों में अंतर ही पता नहीं चलता.’’

पत्नी के साथ यही दिक्कत है. अंतर करने से चूक जाती है. मुझे सीआईडी का आदमी समझती है. अखबारों में पढ़े समाचारों को कभी मनोरंजक और कभी खौफनाक ढंग से मिर्चमसाला लगा कर बता देता हूं. इसलिए पत्नी को ऐसा भ्रम हो जाता है कि मैं जासूसी भी करने लगा हूं.

मैं ने तुरंत पूछा, ‘‘तुम हालचाल जानने के लिए उन के घर गई थीं?’’

उस ने वर्षों पुराना घिसापिटा रिकार्ड दोहरा दिया, ‘‘घर के काम से फुर्सत नहीं मिली. बच्चे धींगामस्ती कर रहे थे. पड़ोसिन बैठने आ गई थीं.’’

मैं ने कहा, ‘‘क्या पड़ोसिन सुबह से शाम तक बैठी रही थीं. रही बात बच्चों की तो तुम्हीं बताओ, किस के घर के बच्चे धींगामस्ती नहीं करते. यह तो गनीमत है कि अपने बच्चे बाहर लड़तेझगड़ते नहीं. वरना दिनभर शिकायतों का ही तांता लगा रहता. तुम जानती नहीं, अपने पड़ोसी वर्माजी कितने परेशान रहते हैं बच्चों की कंपलेंट से.’’

चोरी और किसी के घर होती तो जाने, न जाने की बात अलग थी. गुलाटी का पारा तो इसी बात को ले कर 108 डिगरी तक पहुंच गया होगा कि न शर्माजी आए न उन की श्रीमतीजी. पिछली बार गुलाटी को फ्लू हो गया था. समाचार कुछ देर से मिला. हम दोनोें घर गए तो ठीक हो चुका था. देखते ही बरस पड़ा, ‘‘अब फुर्सत मिली है. अच्छा होने के बाद देखने आए हो. आधी कालोनी आ कर चली गई. अब कोई बहाना मत बनाना और मेरी अगली बीमारी का ध्यान रखना.’’

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चोरी तो हो चुकी थी लेकिन चोरों की तरह डरतेसहमते गुलाटी के घर पहुंचा. वह 4-5 अतिथियों से घिरे बैठे थे. उन के सामने की मेज पर अखबारों का ढेर पड़ा था. रसोईघर से कुछ बनने की महक कमरे में आ रही थी. मेरी ओर देख कर भी वह बिलकुल चुप थे. नाराज हो जाने  पर यह गुलाटी की खास किस्म की आदत थी यानी जिस से नाराज हो जाओ, उस की ओर देखो जरूर लेकिन बातों का सिलसिला शुरू न करो.

गुलाटी ने पड़ोसियों को विस्तार से डकैती का हाल बताया कि किधर से डकैत आए, किधर गए होंगे, संख्या कितनी रही होगी. डकैती के अभिनय से ले कर पुलिस की भूमिका तक सरगर्म चर्चा हो गई. इतने में नाश्ता आ गया. उस का तामझाम देख कर मुझे तो ऐसा लगा नहीं कि गुलाटी के यहां चोरी हुई है. नाश्ते की सजी हुई प्लेटों और उस के चेहरे के हावभाव से लग रहा था डैकती का माल बरामद हो चुका है. उसी के उपलक्ष्य में स्वल्पाहार का आयोजन है.

पड़ोसियों ने वही किया जो ऐसे मौके पर किया जाता है. नाश्ता ठूंसते हुए प्रशासन की जम कर आलोचना हुई. गुलाटी को सांत्वना और डकैतों के पकड़े जाने का आश्वासन देते हुए वे एकएक कर विदा हो गए. हालांकि उन्हें इशारा मिल जाता तो इसी विषय पर बहस करते हुए कम से कम 1 घंटा और जम सकते थे. पड़ोसियों के जाते ही गुलाटी ने खबरों का ढेर मेरी ओर पटक दिया और कहा, ‘‘कल चोरी हुई है और आज दर्शन दे रहे हो. अच्छी दोस्ती निभाते हो.’’

अखबार पलटते हुए मैं ने कहा, ‘‘भाई, शहर के बाहर था. पहुंचते ही पत्नी ने डकैती का समाचार बताया और तुरंत यहां आया हूं. पूरा समाचार तो अभी अखबार पढ़ कर ही जान पाया.’’

‘‘देख लिया न तुम ने अखबार वालों का हाल. पूरे 2 लाख की डकैती हुई है. पूरी कालोनी में सनसनी है. आनेजाने वालों का तांता लगा है और समाचार इतना छोटा. न्यूज देख कर तो ऐसा लगता है कि जैसे 100-50 मुरगियों की चोरी का हलकाफुलका समाचार हो.’’

मैं ने कहा, ‘‘ठीक कह रहे हो यार. सारा अखबार तो पी.एम. के समाचारों और तसवीरों से भरा है. कहीं उद्घाटन है, कहीं शिलान्यास. पूरे फ्रंट पेज पर उन के भाषण, स्वागत और झलकियों की झलक है. इसी वजह से डकैती के समाचार को स्थान ठीक से नहीं मिल सका.’’

मेरी बातें सुन कर गुलाटी हां में हां मिलाते हुए बोला, ‘‘मेरे साथ यही दिक्कत है. अखबारों ने कभी मेरे साथ न्याय नहीं किया. पिछली बार जब मैं मेयर पद का उम्मीदवार बना था तो अखबारों ने सतही ढंग से लिया. मेरी उम्मीदवारी का समाचार भी नहीं बना और जब 15 पार्षदों ने मेरे पक्ष में वातावरण बनाया, हस्ताक्षर अभियान चलाया तो अखबारों में भी हरकत बढ़ी तब कहीं फोटो सहित समाचार आया,’’ इतना कह कर उस ने राहत की सांस ली और 2 लाख की डकैती के दुख को कुछ कम किया.

मैं ने झिड़कते हुए कहा, ‘‘गड़े मुर्दे उखाड़ने से क्या फायदा, अतीत को छोड़ कर अपने वर्तमान में आजा और डकैती का सार संक्षेप में बता.’’

‘‘देख लो दुर्भाग्य, डकैतों ने भी कैसा दिन चुना. दिन भर पी.एम. नगर में रहे, रात में डकैत आए. 1-2 दिन आगेपीछे आ जाते तो अपने को इतना अफसोस नहीं होता,’’ इतना कह कर उस ने आज का अखबार दिखाया.

अखबार में पुलिस दल के निरीक्षण और डाकुआें का कोई सुराग न मिलने का समाचार छपा था. मैं ने कहा, ‘‘आज के अखबार में भी डकैती को विशेष स्थान नहीं मिला. सी.एम. की खबर से अखबार भरा पड़ा है.’’

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अपने घर की डकैती का समाचार तो पी.एम. और सी.एम. के दौरे के बीच दब कर दम तोड़ चुका है. पुलिस वाले भी देर से आए. 2 दिन के थकेहारे खानापूर्ति कर के चले गए. 2 पुलिस के नौसिखिए भी आए. एक तो पूछ रहा था कि डकैती का सही समय बताइए. उस की बात सुन किसी को भी गुस्सा आ सकता है. फिर भी अपने को संयत कर मैं ने कहा, ‘‘ठीक समय मालूम होता तो जान पर खेल कर पकड़ नहीं लेता डकैत को, डाकुओं के आने के लिए अलार्म लगा कर तो सोए नहीं थे. ठीक समय क्या बताएंगे. सो कर उठे तो मालूम हुआ, सुबह के 5 बज चुके थे.’’

दूसरे ने पूछा, ‘‘सुना है, कालोनी के कुछ लोगों ने डकैतों को भागते भी देखा है. क्या डकैत सशस्त्र थे?’’ मैं ने कह दिया, ‘‘यह आप उन्हीं से पूछ लीजिए, जिन्होंने देखा है. अब भला यह भी कोई पूछने की बात है कि डकैत सशस्त्र थे? सशस्त्र नहीं होंगे तो क्या चकलाबेलन ले कर रोटी बेलने आएंगे. यह हाल है अपने नए अफसरों का. फिल्मों में कामेडियन कम हो गए हैं पुलिस विभाग में ज्यादा.’’

पत्नी और बच्चे भी पहुंच चुके थे. वे लोग अंदर मिसेज गुलाटी के साथ नाश्ता करते हुए डकैतों के जाने के बाद का आंखोंदेखा हाल सुन रहे थे. बच्चों को मिस्टर गुलाटी का लड़का वह खिड़की दिखा रहा था जिधर से डकैत आए थे. मैं मिस्टर गुलाटी का साथ दे रहा था. कालोनी के अनेक परिचित अभी तक नहीं आ पाए थे. गुलाटी को इसी बात की चिंता सता रही थी. बारबार उस की नजर दरवाजे की ओर उठ जाती थी. वह स्वागत के लिए कमर कस कर बैठा था. तभी अचानक कुत्ते के भौंकने की आवाज आई. मैं ने कहा, ‘‘यार गुलाटी, तुम्हारी पामेरियन नस्ल का कुत्ता क्या कर रहा था. तेज कुत्ता है जरूर भौंका होगा डकैतों की आहट सुन कर.’’

खीजते हुए गुलाटी बोला, ‘‘पामेरियन और अल्सेशियन बस, नाम के रह गए हैं. हमारा जानी तो दिन में आनेजाने वालों को भौंकता है और रात को खर्राटे भरता है. दरअसल, विदेशी नस्ल का भी भारतीयकरण हो गया है. रात को बिलकुल ही नहीं भौंकता. मुझे तो लगता है कि यह कुत्ता डकैतों से मिला हुआ है.’’

मैं ने अपनी हंसी दबाते हुए कहा, ‘‘पुलिस के कुत्ते तो आए होंगे. उन्होंने क्या डिटेक्ट किया?’’

‘‘अरे, यार, पी.एम. और सी.एम. के दौरे में कुत्ता ज्यादा व्यस्त और सक्रिय रहा. सुना है 2-3 दिन से बीमार चल रहा है. एक पशु चिकित्सक की सतत निगरानी मेें है. उस के लिए राजधानी से इंजेक्शन आ रहे हैं.’’

मैं ने कहा, ‘‘तुम्हारी तो तकदीर ही खराब है. 2 लाख की डकैती हो गई, अभी तक पुलिस के जासूसी कुत्ते भी नहीं पहुंचे.’’

गुलाटी ने तैश में आ कर कहा, ‘‘शर्माजी, पैसा तो अपने हाथ में नाचता है. गहने और नकदी मिला कर 2 लाख के करीब गए हैं. ये तो ट्रांसफर के सीजन में फिर कमा लेंगे. मानसून के आनेजाने से मामले में धोखा हो सकता है. गरज के साथ सिर्फ छींटे पड़ सकते हैं लेकिन अपना सीजन ठीक समय में आता है. आंगन में अच्छी बारिश हो जाती है. इसलिए सवाल 2 लाख की डकैती का नहीं है. अपन तो अखबारों में ठीक कवरेज न आने से दुखी हैं.’’

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hindi online story : प्‍यार के जख्‍म

लेखक : कृष्ण कुमार भगत 

सुनील के निश्छल प्रणय निवेदन को रोजी उर्फ सीमा ने बड़ी बेदर्दी से ठुकरा दिया. बीते वक्त के साथ उस की जिंदगी में आई अनिता. सुनील के टूटे दिल के जख्म फिर हरे होने लगे ही थे कि एक दिन अचानक हुआ सीमा का आगमन, जिस ने उस के दिलोदिमाग को झकझोर कर रख दिया.

सीमा के संदर्भ में मैं ने एक कविता संग्रह ‘आओ, इस जर्जर घड़ी को बदल डालें’ शीर्षक से लिखा था, जिस की याद अब मुझे आ रही है और अनिता अक्षरश: उसे सुनाने लगी. मेरे अपने ही शब्द आज मुझे कितने भोथरे महसूस हो रहे हैं.

‘‘जितनी जल्दी हो सके…आओ इस जर्जर घड़ी को बदल डालें. वरना हरगिज माफ नहीं करेंगी हमें…आने वाली हमारी नस्लें…’’

सीमा, यानी अनिता की पुरानी सहेली, इतनी जल्दी वह घर आ धमकेगी, वह भी मेरी गैरमौजूदगी में, यह तो बिलकुल न सोचा था. कल शाम को बाजार में शौपिंग करते हुए अचानक वह मिल गई तो मैं चौंक उठा, जबकि उस के चेहरे पर ऐसा कोई भाव न उभरा था.

‘‘सुनील, यह सीमा है,’’ अनिता ने परिचय दिया, ‘‘मेरी प्रिय सखी.’’

‘‘बड़ी खुशी हुई आप से मिल कर,’’ औपचारिकता के नाते कहना पड़ा. कड़वा सच एकदम से उगला भी तो नहीं जाता.

‘‘किसी हसीन लड़की से साली का रिश्ता जुड़ जाने पर भला कौन खुश नहीं होगा,’’ निसंकोच सीमा ने कहा और हंस पड़ी. वही 3 साल पुराना चेहरा, वही रूपरंग, कातिल अदा, मोतियों से चमकते दांत, कुदरती गुलाबी होंठ और उसी तरह गालों को चूमती 2 आवारा लटें, कुछ भी तो न बदली थी वह. हां, उस का यह नाम जरूर पहली बार सुना और अपनी बात पर स्वयं ही खिलखिला उठना कतई न सुहाया. मन में दबी नफरत की चिंगारी भड़क उठी और ‘साली का संबोधन’ अंगारे की तरह अंदर जलाता चला गया.

‘‘अच्छा, मैं चलूं, अनिता,’’ सहसा वह बोली.

मैं उस से पूछना चाहता था कि इतना कह देने भर से ही क्या तुम छूट जाओगी और मेरी यादों के कैनवास पर से तुम्हारे चरित्र के दाग मिट जाएंगे?

‘‘ऐसी भी क्या जल्दी है,’’ अनिता ने कहा, ‘‘इतने बरसों बाद तो मिली हो, घर चलो, आराम से बैठ कर बातें करेंगे.’’

‘‘फिर कभी आऊंगी, अभी जल्दी में हूं, अपना पता दे दो.’’

अनिता ने उसे अपना विजिटिंग कार्ड थमा दिया था.

रात भर मैं यही सोचता रहा कि उस ने अनिता के सामने ऐसा क्यों जताया कि हम पहली बार मिले हैं. क्या वह मुझे उस पत्र से ब्लैकमेल करना चाहती है, जिस में प्रेम के साथसाथ मैं ने उस से विवाह करने की इच्छा भी जाहिर की थी? ऐसी लड़कियों का भरोसा ही क्या? आज सारा दिन आफिस में भी दिमाग अशांत रहा. शाम को थकाहारा घर लौटा तो अनिता ने ठंडे पानी के साथ गरमागरम खबर दी, ‘‘दोपहर में सीमा आई थी.’’

 

सुनते ही मैं सोफे पर से उछल पड़ा, कई सवाल दिमाग में कौंधे…क्यों वह मेरे शांत व सुखी घरेलू जीवन में तूफान लाने पर तुली है अनिता, अब तक मां नहीं बन सकी तो क्या हुआ, दोनों में अच्छा तालमेल तो है.

‘‘रहने की तलाश में है बेचारी,’’ अनिता ने बताया, ‘‘अपने पड़ोस में खाली पड़ा मकान तय करवा दिया है और कह रही थी, प्लीज जीजाजी से सिफारिश कर के कहीं काम पर रखवा देना.’’

मैं बोला, ‘‘देखूंगा.’’

‘‘देखूंगा नहीं,’’ अनिता ने जोर दिया, ‘‘उसे सर्विस दिलानी है, वह आप की बहुत प्रशंसा कर रही थी.’’

‘‘क्या कह रही थी?’’

‘‘ऐसा नेक पति भाग्य से मिलता है,’’ पत्नी के होंठों पर मंदमंद मुसकान देख…मेरा चोर मन बोला कि निश्चय ही यह सबकुछ जान कर…अब मजा ले रही है.

‘‘शोख और चंचल है ना, इसलिए मजाक भी कर रही थी.’’

‘‘क्या?’’

‘‘जानेमन, शादी से पहले अगर जनाब को देख लेती तो तुम्हारी जगह आज मैं होती,’’ शुक्र है, लेकिन तभी अनिता ने यह कह कर मुझे फिर झटका दिया, ‘‘मैं देख रही हूं…कल शाम से आप कुछ अपसेट हैं?’’

‘‘नहीं, मैं ठीक हूं,’’ स्वयं को संभालते हुए मैं ने कहा, ‘‘एक बात कहूं अनि, मानोगी?’’

‘‘कहो.’’

‘‘सीमा से अब तुम्हारा मेलजोल बढ़ाना ठीक नहीं.’’

‘‘क्यों?’’ वह सकपका गई, ‘‘क्या दोष है उस में?’’

दोष, यह पूछो, क्या दोष नहीं है उस में? पर इतना कह न पाते हुए मैं बोला, ‘‘हमारा स्तर उस से…’’

‘‘यह तो कोई बात न हुई,’’ अनिता ने एकदम से कहा, ‘‘आखिरकार वह मेरी पुरानी दोस्त है.’’

इस विषय को बदलने के लिए मैं कपड़े बदल कर हाथ में रिमोट ले कर टीवी खोलता हूं, पर यह क्या? हर चैनल पर सीमा मौजूद है. झल्ला कर रिमोट, मेज पर रखते हुए अपनी एक पत्रिका उठा लेता हूं, उस के पन्नों पर भी वही चेहरा दिखता है तो हार कर पत्रिका मेज पर पटक देता हूं और अपने दोनों पैर मेज पर फैला कर व सिर सोफे पर टिकाते हुए पलकें मूंद लेता हूं, तो सीमा, नहींनहीं, रोजी का चेहरा सजीव होने लगता है.

मुंबई के ‘प्रिंस’ होटल की रजत जयंती का मौका था. उस रात होटल में नृत्य का एक विशेष कार्यक्रम आयोजित हुआ था. कार्यक्रम शुरू होने में अभी कुछ देर थी. मैं डिनर ले कर अपनी मेज पर अकेला ही काफी पीने लगा. सहसा 2 नारी स्वरों ने चौंका दिया. कनखियों से उधर देखा तो बस, देखता ही रह गया. वहां 2 नव- युवतियां एक मेज पर बैठी नजर आईं, उन में एक सांवली सी गदराए बदन की बिल्लौरी आंखों वाली सामान्य लड़की थी, जिस ने कत्थई रंग की मैक्सी पहन रखी थी.

दूसरी, पहली बार में ही असामान्य लगी. गुलाबी साड़ीब्लाउज में सजासंवरा उस का मदमस्त यौवन लोगों के दिलों पर कहर ढा रहा था. कुछेक क्षणों के लिए तो मेरा दिल भी थम सा गया. यों लगा मानो वह नृत्य प्रोग्राम के बजाय, किसी सौंदर्य प्रतियोगिता में भाग लेने आई हो.

बीयर के जाम पर नाचती हुई उस की उंगलियां देख कर किसी नाजुक टहनी पर अधखिली कलियों के मंदमंद हवा में हिलने का भ्रम हुआ. उस ‘गुलाबी सुंदरी’ को अपनी सखी के साथ इस तरह अकेले बीयर पीते देख मैं ने उसे किसी बड़े घराने की माडर्न लड़की ही समझा. वह जितनी सुंदर उतनी ही चंचल लगी. मेरा ध्यान  अब तक उधर क्यों नहीं गया? इस का अफसोस तो हुआ ही, साथ में यह ताज्जुब भी कि वे दोनों डांस में मुझे अपना पार्टनर बनाने को आतुर हैं.

प्रोग्राम शुरू होने जा रहा है, जिन के पास निजी पार्टनर नहीं हैं, वे हाल में बैठे लोगों में से  अपना मनपसंद पार्टनर ढूंढ़ने लगे. कत्थई मैक्सी वाली को एक मनचले युवक ने आमंत्रित कर लिया, ‘गुलाबी रूपसी’ को उस का आफर ठुकराते देख मुझे एक अनजानी खुशी महसूस हुई.

सहसा तभी होटल मैनेजर ने स्टेज पर ताली बजाते हुए लोगों का ध्यान खींचा और माइक में बोला, ‘लेडीज एंड जेंटल मैन, जैसा कि आप सब जानते हैं, आज हम इस पिं्रस होटल की सिल्वर जुबली मनाने जा रहे हैं. पिछले अनेक सालों से निरंतर हमें आप का जो अपार स्नेह व भरपूर सहयोग मिलता रहा है, उस के लिए यह होटल आप सब का आभारी है, और आशा नहीं, पूर्ण विश्वास है कि भविष्य में भी हमें आप सब का इसी तरह सहयोग मिलता रहेगा.

‘आज के स्पेशल डांस प्रोग्राम में सर्वप्रथम आप बाल रूम डांस का लुत्फ उठाएंगे, फिर टैब डांस का और अंत में आर्केस्ट्रा की धुन में तेजी आ जाएगी, जो हर पल बढ़ती ही रहेगी. आखिर तक इस तीव्र धुन पर नाचने वाला जोड़ा, आज के डांस प्रोग्राम का विनर प्राइज हासिल करेगा.’

हाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा.

नृत्य आरंभ हो गया. आर्केस्ट्रा की धीमी व मीठी धुन हाल में रस घोलने लगी. चारों तरफ एक अजीब सा उन्माद छा गया. जवान क्या, बूढे़ भी एकदूसरे की कमर में बांहें डाल थिरकते हुए डांसिंग फ्लोर पर आ गए, धीमी गति के नृत्य का मधुर समां देखते ही बनता था.

रात के उस दौर में शराब और शबाब का अनूठा मेल पा कर मेरा सूफी मन भी उस में डूब जाने को मचल उठा. उस ‘गुलाबी प्रिया’ को यथावत बैठी देख मैं प्रसन्नता से झूमता चला गया.

‘आई एम सुनील कुमार,’ नाम बताते हुए उस से बोला, ‘क्या आप मेरे साथ डांस करेंगी?’

‘श्योर,’ वह मुसकरा दी, ‘मुझे रोजी कहते हैं.’

‘वेरी गुड,’ मैं चहका, ‘आप के पेरेंट्स ने बहुत सोचसमझ कर यह नाम रखा होगा?’

‘नहीं, ऐसा नहीं है,’ रोजी पुन: मुसकराने लगी और उठ कर अपना खूबसूरत एवं नाजुक हाथ बढ़ाते हुए बोली, ‘आइए, डांस करें.’

कहीं फिर न चूक जाऊं, इसलिए प्यार से उस का हाथ पकड़ते हुए मैं ने ‘थैंक्यू’ कहा. नृत्य में वह इस कदर खुल कर पेश आई मानो हम पहले से एकदूसरे को जानते हों. खैर, उस रात विशेष डांस प्रोग्राम में रोजी के साथ मुझे ही ‘ताजमहल’ मिला, लेकिन विदा होते समय जब उसे प्राइज सौंपा तो वह उदास लगी, मानो उस की उम्मीदों पर मैं खरा नहीं उतरा.

इस के बाद रोजी कई बार क्लब, होटल, सिनेमा, समंदर के किनारे आदि जगहों पर मिली लेकिन वह हमेशा जल्दी में होती जबकि मैं निरंतर महसूस करता कि वह जानबूझ कर ऐसा करती है. उस की चेष्टा कतरा जाने में रहती है. अचानक ही सामने आ जाने से उस के चेहरे पर नागवारी के जो भाव उभरते उन्हें आसानी से मैं पढ़ लेता. उसे मानो मेरा मिलना अखरता हो.

वह मेरे होशोहवास पर इस तरह छा गई कि मैं एकांत में छटपटा उठता और तब मुझे ऐसा लगता कि उस के बगैर वजूद अधूरा है. प्राय: मैं सोचता, ज्यों ही वह मिलेगी तो फौरन उस के आगे पे्रम का इजहार कर दूंगा, लेकिन रोजी की व्यस्तता और जल्दबाजी…कुछ कहने का मौका न देती.

एक दिन सोचा कि बात ऐसे नहीं बनेगी, अत: रोजी के वास्ते मैं ने एक पत्र लिखा, जिस में प्रेम के साथसाथ उस से विवाह रचाने की इच्छा भी प्रकट की और अब वह पत्र सदा जेब में रहता, ताकि मिलते ही उसे थमा दूं.

सहसा एक दिन शाम को वह सड़क पर भीड़ में जाती दिखाई दी. मैं ने जोर से नाम ले कर उसे पुकारा. उस ने चौंक कर पीछे देखा. मैं ने झट से गाड़ी फुटपाथ के साथ ले जा कर रोक दी तो उसे नजदीक आना ही पड़ा.

‘हाय, रोजी.’

‘हाय…’ मुसकराने के बावजूद उस के चेहरे पर बेरुखी उभर आई. सफेद पैंट और टौप पर खुली केश राशि में वह बिजलियां गिराती नजर आई.

मैं कह उठा, ‘आओ, जुहू पर टहलें.’

‘सौरी, आज फिर बिजी हूं,’ खेद भरे स्वर में वह बोली.

‘आओ तो सही, जहां कहोगी वहां उतार दूंगा.’

दिल की बात कहने के लिए इतना सफर ही बहुत होगा.

‘बेकार आप को परेशान…’

 

‘मैं फुरसत में हूं,’ उतावलेपन से मैं उस की बात बीच में काटते हुए बोला तो उस से इनकार करते न बन पड़ा.

कार का अगला गेट खोलते हुए वह चुपचाप मेरी बाजू में आ कर बैठ गई. उस के बदन का मधुर स्पर्श पाते ही बात कहां से शुरू करूं समझ में न आया और कुछेक क्षण यों ही निकल गए.

‘मुझे यहीं उतरना है,’ रोजी ने कहा.

‘ठहरो रोजी.’

जातेजाते वह पलटी. मैं ने पत्र निकाल कर उसे देते हुए भारी स्वर में कहा, ‘एकांत में इसे जरूर पढ़ लेना.’

रोजी उसे ले कर भीड़ में समा गई. मैं ने देखा, वह क्लब के सामने उतरी है.

अगली मर्तबा मिलते ही रोजी खिलखिला कर हंस पड़ी.

मैं अवाक् सा मोतियों की भांति चमकते उस के दांत देखता रह गया. हंसतेहंसते उस की आंखें नम हो गईं. थोड़ी देर बाद अपनी हंसी पर काबू पाते हुए वह बोली, ‘बस, इतनी सी बात के लिए कागज रंग डाला. कितनी बार तो मिली हूं? कभी भी कह दिया होता.’

‘तुम्हारी व्यस्तता और जल्दबाजी ने मौका ही कब दिया?’

एकाएक रोजी गंभीर हो गई. माथा सिलवटों से भर गया. मानो किसी उलझन में फंस गई हो…हां…कहेगी या ना? सोचते हुए मैं ने उसे टोका, ‘जवाब दो, रोजी.’

उस की चंचलता पुन: लौट आई और वह अपने आंसू इतनी सफाई से पी गई कि मैं देख कर दंग रह गया. ‘बेकार शादी के लफड़े में क्यों पड़े हो?’ जबरन हंसते हुए उस ने कहा, ‘मैं तो यों ही तुम्हारी बन जाने को तैयार हूं, चलो, कहां ले जाना चाहते हो मुझे?’

रोजी, अश्लीलता की सारी हदें पार कर गई थी. निर्लज्जता से भरा यह निमंत्रण पा कर मन में आया कि एक जोरदार थप्पड़ उस के गाल पर जड़ दूं, लेकिन कुछ सोचते हुए दुख, आश्चर्य व क्रोध से कसमसा कर रह गया.

‘मुझे तुम से यह उम्मीद नहीं थी, रोजी.’

‘गलती की, जो एक सेक्स वर्कर से आप कोई दूसरी उम्मीद कर बैठे.’

रोजी ने मानो पिघला हुआ शीशा कानों में उड़ेल दिया हो. सहज ही उस के शब्दों पर विश्वास न हुआ और मैं पागलों की भांति उसे देखता रह गया. यह खूबसूरत लड़की…बाजारू माल कैसे हो सकती है? नहीं…नहीं…पर जो पहले से था, उस पर यकीन करना ही पड़ा. उस के मुख से यह कड़वा सच सुन प्यार के साथसाथ अब उस के प्रति सहानुभूति भी उमड़ आई. जीवन में इस अंधेरी राह पर जाने के पीछे अवश्य कोई मजबूरी रही होगी. उसे जानने की इच्छा से ही मैं कातर स्वर में बोला, ‘इतनी सुंदर, पढ़ीलिखी और समझदार हो कर भी तुम ने यह लाइन क्यों पकड़ी, रोजी?’

‘अरे, तुम तो भावुक हो गए,’ वह उपहास उड़ाते हुए खिलखिला उठी, जबकि मैं उसे अपनी आंतरिक वेदना पर हंसी का लबादा ओढ़ते हुए साफसाफ देख रहा था.

‘मजाक नहीं रोजी, मैं अब भी तुम्हें अपना जीवनसाथी बनाना चाहता हूं,’ सचमुच भावुकता के वेग में मैं बहता ही चला गया, ‘तुम्हारे अतीत से मुझे कोई सरोकार नहीं…और न ही भविष्य में कभी कुछ पूछूंगा, मैं तो सिर्फ…तुम्हें इस अंधेरे से उजाले में ले जा कर एक नए जीवन की शुरुआत करना चाहता हूं, जहां हम दोनों और हमारी खुशियां होंगी.’

‘तुम्हारे विचार और भावनाओं की मैं कद्र करती हूं, सुनील,’ वह यथार्थ के कठोर धरातल से चिपकी रह कर ही बोली, ‘मगर अफसोस, तुम्हारा औफर ठुकराने पर मजबूर हूं, मेरे हालात ऐसे हैं कि लाख चाहने पर भी मैं उन के खिलाफ कोई फैसला नहीं ले सकती.’

‘मुझ पर भरोसा करो, रोजी,’ मैं ने तहे दिल से कहा, ‘हम हर मुश्किल आसान कर लेंगे, प्लीज, बताओ तो सही.’

‘यह नामुमकिन है, सुनील,’ कह कर उस ने एक गहरी सांस ली और फिर अपनी कलाई पर बंधी घड़ी देख कर बोली, ‘अच्छा, मैं अब चलूं.’

लेकिन जातेजाते ठहर गई. उसी कातिल अदा से पलट कर देखा और हंस कर बोली, ‘यों रास्ते में अचानक ही घेर कर मेरा धंधा खराब मत किया करो. पहले दिन भी तुम्हें अपना ग्राहक समझा था मैं ने और मेरी वह रात बेकार गई. खैर, कोई बात नहीं, तुम से मुझे न जाने क्यों अजीब सा लगाव हो गया है और उसे मैं कोई नाम नहीं देना चाहती. हां, अगर तुम चाहो तो हफ्ते में एक नाइट तुम्हारे साथ मुफ्त गुजार दिया करूंगी.’

‘‘रोजी…’’

‘‘क्या हुआ?’’ अनिता किचन से बाहर आ गई, ‘‘क्यों चिल्ला रहे हो? तबीयत ठीक तो है?’’

‘‘हां, मैं ठीक हूं,’’ कह कर माथे से पसीना पोंछते हुए बोला, ‘‘आज चाय नहीं दोगी?’’

‘‘एक मिनट, अभी लाई,’’ और वह लौट गई.

मैं फिर रोजी के बारे में सोचने लगा.

रोजाना आफिस आतेजाते सड़कों पर या जहांजहां उस के मिलने की संभावना थी वे सारे ठिकाने देख डाले पर रोजी नहीं मिली. फिर अचानक एक दिन भीड़ में वह नजर आ गई. फौरन कार फुटपाथ के एक ओर रोक कर मैं पैदल ही उस के पीछे हो लिया.

‘रोजी…’ हांफते हुए मैं ने पुकारा. पर वह अनजान सी आगे बढ़ती रही. मुझ से रहा न गया तो दौड़ कर उसे पकड़ लिया और फुटपाथ पर खींच लिया.

‘आखिर तुम चाहते क्या हो?’ पलटते ही वह एकदम गुर्राई, ‘क्यों हाथ धो कर मेरे पीछे पड़े हो?’

‘आई लव यू, रोजी.’

उस ने सहम कर इधरउधर देखा, फिर बोली, ‘देखो, मैं चिल्ला उठी तो यहां लोग जमा हो जाएंगे और वे सब तुम्हें इश्क का मतलब समझा देंगे, पुकारूं?’

मैं यह सोच कर सिर से पांव तक सिहर गया कि वह मेरे साथ ऐसा भी कर सकती है. उस की बांह पर कसा मेरा हाथ दूसरे ही क्षण ढीला पड़ता चला गया.

‘आइंदा यह हरकत मत करना, वरना…’ चेतावनी देते हुए उस ने हाथ छुड़ाया और भीड़ में खो गई, मैं पागलों की तरह खड़ा रह गया.

उस के बाद रोजी कभी नहीं मिली और न ही मन में कभी उस से मिलने का खयाल आया. जब कभी उसे ले कर मन घृणा से भरता तो मैं कविता के सहारे उसे हलका कर लेता.

काशीपुर में दीदी की ससुराल है. वह अकसर फोन करती रहतीं कि तेरे लिए एक लड़की देखी है, कभी आ कर हां, ना बता जा. मातापिता के बरसों पहले गुजर जाने के बाद इस जहान में वही तो हैं, उन की यह बात न रखी तो वह भी मुंह मोड़ लेंगी. सो, मैं एक माह की छुट्टियां ले कर काशीपुर आ गया.

कांता दीदी ने मेरी पसंद को ध्यान में रखा था. लड़की देखते ही रिश्ता पक्का हो गया. जीजाजी तो मानो पहले से ही पूरी तैयारियां किए बैठे थे. अनिता के साथ चट मंगनी, पट ब्याह होते ही मैं अनिता को ले कर हनीमून मनाने के लिए नैनीताल जा पहुंचा. ऊंचीऊंची पर्वत श्रेणियों से घिरा नैनीताल का सुंदर इलाका, सुंदरतम झील और हरीभरी वादियों में पता ही न चला कि छुट्टियां कब गुजर गईं. हम दोनों एक दूसरे के इतने करीब आ गए, जैसे बचपन से साथ रहे हों. नैनीताल से काशीपुर, 2 दिन दीदी के यहां रह कर हम मुंबई आ गए.

उन्हीं दिनों की बात है, जब गुप्ता इंटरप्राइजेज ने पुणे में भी अपनी शाखा खोली. चूंकि कंपनी के मालिक मेरी कार्यकुशलता व ईमानदारी से पूरी तरह संतुष्ट थे. इसलिए यहां की जिम्मेदारी भी मुझे ही सौंपी गई. यहां मुंबई के मुकाबले मुझे ज्यादा सुविधाएं मिलीं.

अनिता के साथ पिता न बन पाने के बावजूद चैन से हूं. उस की बच्चेदानी में इंफैक्शन है. डाक्टर का कहना है, शीघ्र ही उसे आपरेशन द्वारा निकाला नहीं गया तो अनिता की जान को खतरा हो सकता है.

कल शाम से सीमा ने हमारे दांपत्य जीवन में हलचल मचा दी. समझ में नहीं आ रहा कि आखिर वह चाहती क्या है? ऐसी बाजारू लड़कियों का भरोसा ही क्या? अपनी इज्जत तो नीलाम करती ही हैं, दूसरे की भी मिट्टी में मिला देती हैं. सीमा अगर अनि से कह दे कि 3 साल पहले मैं ने उसे न केवल पत्नी बनाना चाहा था, बल्कि उस के द्वारा विवाह का प्रस्ताव ठुकरा देने पर बुरी तरह अपमानित भी हुआ था, तो क्या मैं उस की निगाह में ठहर पाऊंगा? अगर सीमा ने कहीं अनिता को वह पत्र दिखा दिया तो क्या जवाब दूंगा? अगर उस ने यह भेद छिपाने की कीमत मांग ली तो कैसे अदा करूंगा? उफ.

 

‘‘बेशर्म, कमीनी,’’ क्रोध में मैं बड़बड़ा उठा.

‘‘किसे विभूषित किया जा रहा है, महोदय?’’ चायनाश्ता टे्र में लाते हुए अनिता ने पूछा तो मैं हड़बड़ा गया, मानो रंगेहाथों चोर पकड़ा गया हो.

‘‘क्षमा करें, बंदी से भूल हो गई,’’ अपने खास लहजे में उस ने चोट की.

‘‘सौरी.’’

‘‘भविष्य में ध्यान रहे,’’ वह महारानियों की तरह मुसकराई.

चाय से पहले, मुंह में चिप्स डाला तो मन में यह खयाल आया कि क्यों न अनिता को अपने अतीत के बारे में बता दूं और अपराधबोध से मुक्त हो जाऊं? यह तो मुझे अच्छी तरह समझती है. मेरी कविताओं की सहृदय पाठक ही नहीं, बल्कि समालोचक भी है. हां, इसी के सहयोग व प्रेरणा से तो ‘कायर नहीं हैं हम’ और ‘आओ, इस जर्जर घड़ी को बदल डालें’ कविता संग्रहों का प्रकाशन हुआ है.

‘‘सीमा को तुम कब से जानती हो, अनि?’’ रहस्योद्घाटन से पहले टोह लेना चाहा.

‘‘बचपन से,’’ उस ने बताया, ‘‘बाजपुर में उस का परिवार हमारे पड़ोस में ही रहता था, 9वीं में वह अपने मम्मीपापा के साथ वाराणसी चली गई थी. कुछ समय तक हमारे बीच फोन पर बातचीत होती रही, फिर वे लोग, भैया की शादी में नहीं आए, तो फोन आना बंद हो गया. उस के बाद वह कल शाम ही मिली, क्यों?’’

‘‘उसे नौकरी पर लगवाने के लिए पूछ रहा हूं. उस की योग्यता क्या है?’’

‘‘अंगरेजी से बी.ए. फाइनल नहीं कर सकी थी.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘हीरोइन बनने की गरज से अपने प्रेमी के साथ मुंबई भाग आई थी, फिर स्टूडियो के चक्कर लगातेलगाते हताश हो कर उस ने घर लौट जाने का फैसला कर लिया था. उस का वह प्रेमी उस के गहने व रुपए ले कर चंपत हो गया और जातेजाते उसे लड़कियों से जबरन धंधा कराने वाले एक गिरोह के एजेंट को बेच गया जिस के बौस के पास कई पुरुषों के साथ बेहोशी में शूट की गई उस की ब्लू फिल्म थीं.’’

‘‘कंप्यूटर तो जानती होगी?’’

‘‘हां, प्लीज…कोई जगह खाली हो तो उसे रख लो,’’ अनिता ने आग्रह किया.

‘‘मैं हंसा,’’ वह भी फ्री में…

‘‘उस के पास देने को है भी क्या?’’

‘‘है, जो हमारे पास नहीं है.’’

‘‘मतलब?’’ अनिता चौंकी थी.

‘‘कोख.’’

वह भी हंसी, ‘‘तो पापा बनने को व्याकुल हो. मैं जानती हूं.’’

‘‘अनि…क्या तुम उसे स्वीकार कर सकोगी. कहीं वह मुझ पर अधिकार न जता ले?’’

‘‘‘सीमा के संदर्भ में’ आओ, इस जर्जर घड़ी को बदल डालें, संग्रह की शीर्षक कविता याद आ रही है मुझे,’’ और वह अक्षरश: उसे सुनाने लगी.

दीवार घड़ी में थरथर कांप कर, आगे बढ़ती हुई सुइयों को निहारते हुए चुपचाप मैं सुनता रहा…उस की आवाज…और अंत में बोला, ‘‘स्पष्ट करो.’’

‘‘सीमा एक सेक्स वर्कर है, यह जान कर भी आप उसे अपनाने को तैयार हो गए थे, तो…’’

मैं दंग रह गया, ‘‘यानी…’’ मुख से बमुश्किल निकला.

‘‘हां, आज दोपहर सीमा…सबकुछ बता गई.’’

अपराधबोध से मैं दब गया.

‘‘लेकिन उस ने आप को ठुकरा  दिया क्यों? कभी सोचा आप ने.’’

‘‘हां, कई बार सोचा था,’’ पर किसी नतीजे पर न पहुंच सका.

‘‘दरअसल, वह आप से बेहद प्रभावित हुई थी,’’ अनिता बोली, ‘‘उसे एक अजीब सा लगाव हो गया था आप से, जिसे वह कोई नाम नहीं देना चाहती थी. एक और बात थी कि आप की भलाई भी उस के पांव की जंजीर बन गई.’’

अनिता ने एक नया रहस्य खोला तो मैं बोला, ‘‘उसे और स्पष्ट करो.’’

‘‘लड़कियों की नजरबंदी के लिए तैनात सुरक्षा गार्ड, अगर आप को सीमा के इर्दगिर्द ज्यादा समय तक देख लेते तो आप की जान चली जाती और इसीलिए जानबूझ कर सीमा ने आप के मन में अपने प्रति नफरत भर दी ताकि आप उस से दूर हो जाएं.’’

मैं आश्चर्य से भर कर पत्नी को देखने लगा तो वह आगे बोली.

‘‘यह तो समूचा विपक्ष एक हो जाने पर पिछले दिनों सरकार को उन दरिंदों के खिलाफ काररवाई करने के लिए पुलिस को सख्त आदेश देने पड़े. तब कहीं वह मुक्त हो पाई और घर जा सकी.

‘‘अंकल, सीमा के भाग जाने का आघात बरदाश्त न कर पाते हुए पहले ही चल बसे थे. उस पर बदनामी का दंश…बेचारी कब तक झेलती रहती? छोटे भाईबहन और बीमार मां के साथ तंग आ कर आखिर में वह वाराणसी से पूना चली आई.’’

‘‘पगली, इतना बड़ा त्याग कर डाला, सिर्फ मेरे लिए? क्या लगता हूं मैं उस का? मैं तो आज तक उस से घृणा करता रहा…उसे गलत समझता रहा… छि…छि…छि…’’

‘‘अब तो यही हो सकता है कि हम कुछ करें, सीमा जैसी लड़कियों के लिए,’’ अनिता ने मानो अंदर झांक लिया हो.

‘‘हां, अनि,’’ ये दो शब्द अनंत गहराइयों से निकले पर मुझे नहीं मालूम था कि यह फैसला सही है या गलत. अगर बच्चा हो गया तो क्या उसे अनिता स्वीकार करेगी. और क्या सीमा वास्तव में बच्चे को और मुझे छोड़ कर जाएगी. मैं ने गहरी सांस ली और सब कुछ अनिता पर छोड़ दिया.

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