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युवतियां ब्रेकअप से कैसे उबरें

औफिस के लंचब्रेक में पाखी को अनमना और उदास देख कर मैं ने उस से पूछा, “क्यों, अद्यांत को मिस कर रही है? बेहद दुखी दिख रही है. भूलने की कोशिश कर यार उसे?”

“कैसे भूलूं उसे, पूरे 3 बरसों का साथ था. उस पर बहुत ज़ोरों का गुस्सा आ रहा है कि वह अपनी मां के सामने कोई स्ट्रौंग स्टैंड क्यों नहीं ले सका. हम दोनों की शादी करने की मंशा सुन कर उन के ब्लडप्रैशर हाई होने से ही घबरा गया और मुझ से ब्रेकअप कर लिया. अरे, दवाइयों से ब्लडप्रैशर कम नहीं होता क्या? चलो, एक तरह से अच्छा ही हुआ, शादी से पहले ही उस की असली फितरत समझ आ गई कि वह मम्माज बौय है.”

“बिलकुल सही कह रही है तू, ऐसे कमजोर, बिना रीढ़ की हड्डी वाले इंसान के साथ तू कभी खुश नहीं रहती जो मां की जरा सी बीमारी से अपने पार्टनर से मुंह मोड़ ले. फिर उस के बारे में इतना सोच क्यों रही है तू. परे कर उस की यादों को.”

“मेरे वश में नहीं, अवनी. सच कह रही हूं. बेहद दुखी और कन्फ़्यूज्ड फील कर रही हूं. दुखी हूं उसे खोने पर और कन्फ़्यूज्ड हूं कि मेरे साथ ही ऐसा क्यों हुआ. मैं उसे पहचान क्यों नहीं पाई.”

“चलचल, उस के बारे में ज्यादा सोच मत और औफिस के काम में मन लगा. आई एम श्योर, वक़्त के साथ तू उसे भूलने लगेगी.”

लंचब्रेक के ख़त्म होने के थोड़ी देर बाद मैं उस के पास गई तो देखा, वह अपना काम छोड़ पनीली आंखों से शून्य में ताक रही थी.

“पाखी, डियर, अगर काम में मन न लग रहा हो तो घर जा और रैस्ट कर. तू मुझे ठीक नहीं लग रही.”

शाम को औफिस के बाद मैं उस के फ्लैट पहुंची. मैं ने देखा कि वह बेतहाशा रो रही थी और उस ने रोरो कर आंखें सुजा ली थीं.

उस का यह हाल देख मैं घबरा गई और उसे अपनी एक सहेली की मनोचिकित्सक मां डाक्टर सीमा शर्मा, फाउंडर, यंग इंडिया सायकोलौजिकल सौल्यूशंस के घर ले गई. डाक्टर सीमा ने ब्रेकअप को सक्षमता से हैंडल करने के लिए उसे जो टिप्स दिए उन्हें मैं आप सब के साथ साझा कर रही हूं.

अपना सैल्फकेयर रूटीन बनाएं और उस को फौलो करें: ब्रेकअप के बाद रोजाना कुछ ऐसी गतिविधि करें जो आप को खुशी दे, जैसे कि अपने फ्रैंड्स से मिलनाजुलना, नए खुशनुमा अनुभव लेना जैसे पिकनिक, सिनेमा जाना, दोस्तों के साथ होटल या पार्टी में जाना, अपनी पसंदीदा हौबी में समय बिताना. अपने को शारीरिक अथवा मानसिक पोषण देने वाली गतिविधियां करें, जैसे ऐक्सरसाइज़ करें, कुछ देर मैडिटेशन करें या यदि आप को कुकिंग पसंद हो तो कुछ नया और स्वादिष्ठ पकाएं.

अपनी डायरी में ब्रेकअप के बाद महसूस की गई अपनी फीलिंग्स व्यक्त करें अथवा किसी घनिष्ठ परिचित से उन्हें शेयर करें. किसी मनोचिकित्सक से अपनी भावनाएं साझा करना व उन की सलाह लेना भी ब्रेकअप से उबरने का कारगर उपाय है.

ब्रेकअप के बाद समुचित आराम करना चाहिए. करीब सात से आठ घंटों की नींद लेने का प्रयास करें. लेकिन इस से अधिक सोने से बचें क्योंकि नींद में कमी या ओवरस्लीपिंग आप के मूड को प्रतिकूल रूप से प्रभावित कर सकती है.

इस स्थिति में समुचित पोषणयुक्त भोजन करना न भूलें.

अपनी भावनाओं को व्यक्त करें: आप ब्रेकअप के बाद अकेलापन, कन्फ़्यूजन, उदासी, दुख, और क्रोध जैसे स्ट्रौंग इमोशन्स का अनुभव कर सकती हैं. सो, इन्हें सहज और सामान्य भाव से स्वीकार करें. इन्हें अपनी डायरी में लिखें या किसी दोस्त से शेयर करें.

अपनी भावनाओं को खुल कर व्यक्त करें लेकिन उन में डूबे न रहें. नैगेटिव इमोशन्स और विचारों के अंतहीन दुष्चक्र में उलझने से बचें.
गौर करें, अपने ब्रेकअप के बारे निरंतर सोचते रहना आप के दुख और उदासी की अवधि में इजाफा कर सकता है.

यदि आप अपने एक्सप्रेमी को नहीं भूल पा रहीं, तो घर की डीप क्लीनिंग में जुट जाएं, अपना पसंदीदा संगीत सुनें, दोस्तों से मिलेंजुलें या उन से बातें करें.

यदि आप अपने एक्स को याद कर बेहद इमोशनल फील कर रही हैं तो टीवी पर कौमेडी शोज या प्रेरक कार्यक्रम देखें. हलकेफुलके, सुखद अंत वाला रोमांटिक साहित्य पढ़ें. यह आप का अपनी हालत से ध्यान हटाने में बहुत सहायता करेगा.

सोशल मीडिया से कुछ दिनों के लिए हर संभव दूरी बनाएं: सोशल मीडिया, जैसे फेसबुक, इंस्टाग्राम पर बारबार जाने से आप अपने एक्स के फोटो देख कर उसे याद करेंगी जो आप को उसे भूलने नहीं देगा. वहां अपने परिचित जोड़ों की हंसतीमुसकराती फ़ोटोज़ आप का मूड खराब कर सकती हैं.

सोशल मीडिया पर अपने ब्रेकअप को कतई पोस्ट न करें: ऐसा करना आप को लोगों के निरर्थक सवालों से बचाएगा.

सोशल मीडिया पर अपने एक्स को अन-फौलो या म्यूट कर दें: यदि आप के एक्स से ब्रेकअप के बाद भी परस्पर संबंध में बहुत अधिक कड़वाहट नहीं घुली, आप उसे अब भी अपना दोस्त मानती हैं तो उसे अनफ्रैंड करने की आवश्यकता नहीं. उसे बस म्यूट, अनफौलो या हाइड करने से आप उस की पोस्ट देखने से बच जाएंगी.

अपने एक्स का सोशल मीडिया पेज चैक करने से बचें: ब्रेकअप के बाद आप को उस की मनोदशा का पता लगाने के लिए उस के फोटो या स्टेटस देखने की इच्छा हो सकती है कि उस का हाल कैसा है लेकिन यह बिलकुल न करें क्योंकि यह मात्र आप के दुख में बढ़ोतरी करेगा.

उस के उपहारों को किसी अलमारी में ताले में रख दें: उस के गिफ्ट्स, आप के साथ खींचे गए फोटोज़ को अपने सामने से हटा देने से आप को अपने टूटे रिश्ते की याद नहीं आएगी जोकि आप को दुखी करने के अलावा और कुछ नहीं करेंगे.

भाषा की मर्यादा लांघ चुके भाजपा नेताओं पर कार्रवाई कब

लोकसभा चुनाव में मुंह की खाने के बाद से भारतीय जनता पार्टी बौखलाई हुई है. उस के नेता लगातार राहुल गांधी पर अपनी भड़ास निकाल रहे हैं. कोई मुंह से भले न कहे, भीतर से तो सभी जान रहे हैं कि भाजपा और मोदी के तिलिस्म को राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ ने तोड़ दिया है. रहीसही कसर इंडिया गठबंधन ने पूरी कर दी है और 400 पार का नारा देने वालों को 240 पर समेट दिया है.

उधर उत्तर प्रदेश के फायरब्रैंड भाजपाई मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बुलडोजर न्याय पर सुप्रीम कोर्ट ने हथौड़ा चला दिया है. योगी आदित्यनाथ समाज का ध्रुवीकरण करने की नीयत से मुसलिम समाज को डराने व हिंदू समाज को खुश करने के लिए प्रदेशभर में मुसलिम घरों, दुकानों को बुलडोजर से ढहा रहे थे. तुर्रा यह दिया जा रहा था कि जिन घरों और दुकानों पर बुलडोजर चलाए जा रहे हैं वो अवैध रूप से बने थे. कोई पूछे कि जब बन रहे थे तब इन के निकम्मे प्रशासन ने क्यों नहीं रोका? तब कैसे बन गईं इतनी अवैध संपत्तियां?

समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव तो योगी की बुलडोजर नीति की लंबे समय से आलोचना करते आ रहे हैं. इधर जब से भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व की तरफ से राहुल गांधी पर आक्रामक टिप्पणी करने की मौन स्वीकृति भाजपा नेताओं को मिली है तभी से अखिलेश यादव के खिलाफ भी भाजपा नेता ही नहीं, योगी आदित्यनाथ तक भाषाई मर्यादा लांघ कर निंदनीय बयानबाजी कर रहे हैं. दरअसल, राहुल और अखिलेश की जोड़ी से भाजपा थर्रा रही है, इसीलिए इन दोनों पर पिली हुई है. बात आरोपप्रत्यारोप की होती तो सहन की जा सकती थी मगर जिस तरह की बातें अब सामने आ रही हैं वे नेताओं की बयानबाजी नहीं बल्कि जान से मारने की धमकियां है, जिन के खिलाफ तुरंत एफआईआर दर्ज की जानी चाहिए और आरोपियों की गिरफ्तारी होनी चाहिए.

भाजपा के रेल राज्यमंत्री रवनीत सिंह बिट्‌टू ने 15 सितंबर को राहुल गांधी को आतंकवादी कहा. उन्होंने राहुल गांधी की नागरिकता को भी ख़ारिज करने की कोशिश की, कहा कि, राहुल गांधी हिंदुस्तानी नहीं हैं. उन को भारत से प्यार भी नहीं है. राहुल ने पहले मुसलमानों का इस्तेमाल करने की कोशिश की, लेकिन ऐसा नहीं हुआ तो वे अब सिखों को बांटने की कोशिश कर रहे हैं. राहुल गांधी देश के नंबर वन टेररिस्ट हैं. उन को पकड़ने वाले को ईनाम दिया जाना चाहिए, क्योंकि वे देश के सब से बड़े दुश्मन हैं. देश की एजेंसियों को उन पर नजर रखनी चाहिए.

भाजपा नेता और यूपी के मंत्री रघुराज सिंह ने भी 16 सितंबर को इंदौर में सार्वजनिक तौर पर कहा था कि नेताप्रतिपक्ष राहुल गांधी ‘भारत के नंबर वन आतंकवादी’ हैं.

दरअसल, हाल ही में राहुल गांधी अमेरिकी यात्रा पर थे जहां उन्होंने भारतीय मूल के लोगों से मुलाक़ात की और मंच से उन को संबोधित करते हुए देश के बारे में अपनी चिंता जाहिर की. राहुल गांधी ने अमेरिका में कहा कि भारत में सिख समुदाय के बीच इस बात की चिंता है कि उन्हें पगड़ी और कड़ा पहनने की इजाजत दी जाएगी या नहीं. उन के इस वक्तव्य पर भाजपा नेताओं ने राहुल को घेरना और उन पर आरोप मढ़ना शुरू कर दिया. मगर देश के नेताप्रतिपक्ष को आतंकवादी कहना न सिर्फ निंदनीय है बल्कि एक संगीन जुर्म है. एक ऐसा नेता जिस की दादी और पिता देश के प्रधानमंत्री रहे, जिन्होंने देश के लिए शहादत दी, जो खुद देश की सब से बड़ी पार्टी का नेतृत्व करता रहा हो, जिस के कदम से कदम मिला कर देश की जनता आज चलती हो, जिस को सुनने के लिए अपार जनसैलाब उमड़ता हो, ऐसे व्यक्तित्व को भाजपा का एक ऐसा नेता ‘आतंकवादी कह रहा है जिस ने कभी खुद कांग्रेस की गोद में बैठ कर राजनीति का ककहरा सीखा था.

रवनीत सिंह बिट्‌टू के बयान पर कांग्रेस प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने उन की बखिया उधेड़ते हुए कहा- जिस ने राहुल गांधी के आगेपीछे घूम कर अपना राजनीतिक कैरियर बनाया, वो सत्ता के लालच में विरोधियों की गोदी में बैठ कर सस्ते बयान दे रहा है. रवनीत बिट्टू जैसों को ही शास्त्रों में आस्तीन का सांप कहा गया है.

राजनीति में नेताओं के बीच आरोपप्रत्यारोप चलते रहते हैं. वे एकदूसरे पर कटाक्ष भी करते हैं जो अखबारों की सुर्खियां बनते हैं मगर आज जिस प्रकार की बातें नेताओं की गंदी जबान उगल रही हैं वे महज बयानबाजी या कटाक्ष या भाषा की मर्यादा लांघने जैसी नहीं हैं बल्कि नेताप्रतिपक्ष को जान की धमकी और मानहानि का मामला है जिस के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए.

गत 16 सितंबर को महाराष्ट्र के बुलढाणा से विधायक संजय गायकवाड़ ने राहुल गांधी की जीभ काट कर लाने वाले को 11 लाख रुपए का ईनाम देने की घोषणा कर डाली. संजय गायकवाड़ ने कहा- राहुल गांधी पिछड़ों, आदिवासियों का आरक्षण खत्म करना चाहते हैं. उन्हें इस का ईनाम मिलेगा, जो भी राहुल की जीभ काटेगा, उसे 11 लाख रुपए दिए जाएंगे.

गौरतलब है कि एक सभा को संबोधित करते हुए राहुल गांधी ने कहा था कि जब भारत में (आरक्षण के लिहाज से) निष्पक्षता होगी, तब हम आरक्षण खत्म करने के बारे में सोचेंगे. अभी भारत इस के लिए एक निष्पक्ष जगह नहीं है. उन के कहने का सीधा अर्थ था कि जिस दिन भारत के सभी लोगों को समान अधिकार प्राप्त हो जाएगा, वे आरक्षण को ख़त्म करने की बात तब सोचेंगे.

इस में उन्होंने क्या गलत कहा? मगर अपने केंद्रीय आका को खुश करने के लिए कमअक्ल, बददिमाग और बदजबान भाजपा नेता सदन के नेताप्रतिपक्ष को जान की धमकी खुलेआम देने लगे और मोदी-शाह व उन की पुलिस गायकवाड़ जैसे नेताओं के खिलाफ कार्रवाई करने के बजाय तमाशा देखती रही.

याद होगा 13 अप्रैल, 2019 को, आम चुनाव से पहले भारत के कर्नाटक के कोलार में एक राजनीतिक रैली के दौरान राहुल गांधी ने हिंदी में टिप्पणी करते हुए कहा था, “सभी चोर, चाहे वह नीरव मोदी, ललित मोदी या नरेंद्र मोदी हों, उन के नाम में मोदी क्यों होता है?” इस टिप्पणी पर उन के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दर्ज हुआ था और उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उपनाम को बदनाम करने के आरोप में 2 साल के कारावास की सजा सुनाई गई थी. इस के चलते राहुल गांधी को 24 मार्च, 2023 को भारतीय संसद के निचले सदन (लोकसभा) के सदस्य के रूप में अयोग्य घोषित कर दिया गया था. मगर अब जबकि संजय गायकवाड़ राहुल गांधी की जीभ काटने की धमकी दे रहे हैं और रवनीत सिंह बिट्‌टू और रघुराज सिंह उन को आतंकवादी घोषित कर रहे हैं, तो इन के खिलाफ पुलिस का कोई ऐक्शन न होना और इन्हें गिरफ्तार न किया जाना देश की न्याय प्रणाली को कठघरे में खड़ा करता है.

धमकियों का सिलसिला इन्हीं 3 नेताओं तक सीमित नहीं है. सदन के भीतर बातबात पर बेतुकी कविताएं सुनाने वाले रामदास अठावले भी बदजबानी में आगे हैं. अठावले कहते हैं- राहुल गांधी विदेश में जा कर देश की प्रतिष्ठा को गिराते हैं, उन का पासपोर्ट रद्द होना चाहिए. वहीं भाजपा सांसद अनिल बोंडे भी राहुल की जीभ काट लेने का मशवरा देते हैं. भाजपा नेता तरविंदर सिंह ने तो अपनी सड़कछाप भाषा का परिचय दिया, एक्स पर लिखा- राहुल गांधी बाज आ जा, नहीं तो आने वाले टाइम में तेरा भी वही हाल होगा, जो तेरी दादी का हुआ.

यानी, भाजपा नेता खुलेआम देश के नेताप्रतिपक्ष को हत्या की धमकी दे रहा है. यह बेहद गंभीर मामला है. ये सभी भाजपा की नफरत की फैक्ट्री के प्रोडक्ट हैं और इन पर कठोर से कठोर कार्रवाई इसलिए होनी चाहिए क्योंकि ये देश के युवाओं को हत्या और मारकाट के लिए उकसा रहे हैं. देश के प्रधानमंत्री और गृहमंत्री अगर इन धमकियों पर खामोशी ओढ़े हुए हैं तो माना जाना चाहिए कि उन की मौन स्वीकृति भाजपा नेताओं को मिली हुई है. इन के पाप और अपराध में वे बराबर के शरीक हैं.

नेता की भाषा उस के राजनीतिक स्तर को मापने का एक पैमाना होती है. इस में नेता का स्तर रिफ्लैक्ट होता है. अगर भाजपा नेता ऐसी आपराधिक बातें कह रहे हैं तो देश की जनता को समझ लेना चाहिए कि देश अगर ऐसे लोगों के हाथों में रहा तो आने वाले वक्त में चारों तरफ अपराध और अराजकता का बोलबाला होगा.

राहुल गांधी पर भाजपा द्वारा लगाए गए आरोप और उन को दी जा रही धमकियां केवल एक व्यक्ति पर हमला नहीं हैं बल्कि भारतीय लोकतंत्र, राजनीति और समाज के मूल्यों पर भी हमला हैं. जनता को यह समझना होगा कि यह राजनीति का गिरता स्तर है और इसे सुधारने की जिम्मेदारी जनता पर ही है.

भारतीय राजनीति में विचारधारा, मूल्यों और सिद्धांतों का अपना विशेष महत्त्व है. यह न केवल देश के विकास और स्थायित्व के लिए आवश्यक है बल्कि यह जन के प्रति राजनीतिक दलों की जिम्मेदारी का भी प्रमाण होता है. लेकिन जब राजनीति में व्यक्तिगत हमले, अनर्गल आरोप और मिथ्या प्रचार का सिलसिला शुरू हो जाता है, तो यह राजनीति के गिरते स्तर को ही दर्शाता है.

भारतीय जनता पार्टी जिस तौरतरीके की राजनीति करना चाह रही है, वह भारतीय लोकतंत्र के लिए अस्वीकार्य है. यह कहने में कोई संकोच नहीं होना चाहिए कि स्तर की इस गिरावट पर प्रधानमंत्री की चुप्पी वाचाल वर्ग को प्रोत्साहन दे रही है. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और लोकसभा में नेताप्रतिपक्ष राहुल गांधी पर भाजपा द्वारा लगाए गए अनर्गल आरोप इसी विकृत मानसिकता का परिचायक हैं. भाजपा का बारबार राहुल गांधी के खिलाफ इस प्रकार के आरोप लगाना उस के राजनीतिक भय का भी बड़ा प्रमाण है. चूंकि राहुल गांधी देशहित में सरकार से लगातार सवाल पूछते हैं, गांव, गरीब, मजदूर और किसान की आवाज उठाते हैं, महिला उत्पीड़न के मामलों को राष्ट्रीय मुद्दा बनाते हैं, इसलिए प्रधानमंत्री के संरक्षण और प्रोत्साहन से केंद्र सरकार के मंत्री से ले कर अलगअलग राज्यों के विधायक तक गैरजरूरी व अनर्गल आरोप लगाते रहते हैं.

राहुल गांधी पर लगाए जाने वाले आरोप और भाजपा द्वारा अपनाई जा रही यह रणनीति भारतीय लोकतंत्र के लिए एक बड़ा खतरा है. प्रजातंत्र की मौलिक परिभाषा में यह एक स्थापित तथ्य और सत्य है कि स्वस्थ लोकतंत्र में विपक्ष का स्थान और सम्मान महत्त्वपूर्ण होता है. विपक्ष सरकार की नीतियों की आलोचना करता है और जनता की आवाज उठाता है. लेकिन जब विपक्ष के शीर्ष नेतृत्व पर नितांत निराधार व्यक्तिगत हमले होते हैं, तो यह सदन की गरिमा और गंभीरता के साथ लोकतंत्र की नींव को भी कमजोर करता है. राहुल गांधी पर लगाए गए आरोप अल्पजीवी चर्चा तो बटोर लेते हैं लेकिन लोकतांत्रिक प्रणाली के प्रति जनता के विश्वास को कमजोर कर देते हैं. इस से जनता के बीच यह संदेश जाता है कि राजनीति में विचारधारा और सिद्धांतों के बजाय व्यक्तिगत हमले ही प्रमुख हो गए हैं.

भाजपा अपनी नफरत से भरी वैचारिक विचारधारा और बांटने की राजनीतिक भावना को बढ़ावा देती है जबकि कांग्रेस एक धर्मनिरपेक्ष और समावेशी समाज की वकालत करती है. इस वैचारिक संघर्ष में बारबार हारने के बावजूद भाजपा राहुल गांधी को केवल इसलिए निशाना बनाती है क्योंकि वह कांग्रेस की विचारधारा के आगे आज भी खुद को बौना पाती है, परास्त होती है और बौखला कर बेशर्मी व अपराध की राह पकड़ती है.

मेरी मां अकसर चुपके से मेरी बीवी का मोबाइल फोन चैक करती है.

अगर आप भी अपनी समस्या भेजना चाहते हैं, तो इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ें..

सवाल –

मेरी शादी को 1 साल हुआ है और मेरे घर में मैं, मेरी पत्नी और मेरे मातापिता रहते हैं. हम चारों में काफी प्यार है और किसी को किसी से कोई शिकायत नहीं रहती. मेरी पत्नी भी मेरे मातापिता का खूब अच्छे से खयाल रखती है. मैं ज्यादातर समय अपने काम पर ही रहता हूं और कभीकभी अपने काम के सिलसिले में मुझे शहर से बाहर भी जाना पड़ता है पर मैं इस बात से निश्चिंत हूं कि मेरी बीवी ने मेरा घर अच्छे से संभाल लिया है और वह अपनी जिम्मेदारी अच्छे से निभाती है. पिछले कुछ दिनों से मेरी बीवी ने मुझ से एक ऐसी शिकायत की जिसे सुन कर मुझे उस पर विश्वास नहीं हुआ. मेरी पत्नी को लगता था कि मेरी मां उस से छिप कर उस का मोबाइल फोन चैक करती हैं. पहले तो मुझे यकीन नहीं हुआ लेकिन मैं काफी हैरान हुआ जब मैं ने अपनी मां को खुद मेरी बीवी का फोन चैक करते हुए देखा. मुझे नहीं पता वे ऐसा क्यों कर रही हैं. मुझे क्या करना चाहिए ?

जवाब –

जैसाकि आप ने बताया कि आप ज्यादातर अपने काम पर ही रहते हैं, तो ऐसे में आप के मातापिता के सब से नजदीक आप की पत्नी ही रहती है. हो सकता है कि आप की मां ने कुछ ऐसा देखा हो या फिर उन्हें कुछ एहसास हुआ हो जो वे ऐसा कर रही हैं. या फिर यह भी हो सकता है आप की माताजी आप की पत्नी के मोबाइल से कुछ सीखने की कोशिश भी कर रही हों.

आप को बिना सारी बात जाने किसी से कोई बात नहीं करनी चाहिए. यहां तक की आप अपनी पत्नी को भी न बताएं कि आप ने भी अपनी मां को उन का फोन चैक करते देखा है. आप अपनी पत्नी से ऐसा कहें कि हो सकता है कि यह सब उन का वहम हो.

अपनी मां के साथ अकेले में बैठें और उन से पूछें कि वे यह सब क्यों कर रही हैं. आखिर उनके मन में ऐसा क्या चल रहा है जो वे अपनी बहू का फोन चैक करने लगी हैं. यह भी जानने की कोशिश करें कि कहीं वे मोबाइल पर कुछ जानने की कोशिश तो नहीं करतीं.

बात जो भी हो, वे यकीनन आप को सारी सचाई जरूर बताएंगी. ऐसे में आप को शांत दिमाग से काम लेना होगा.

अपनी मां की बात सुन कर पहले सारी सचाई का अपनी तरफ से पता लगा लें उस के बाद ही किसी से कुछ कहें क्योंकि रिश्तों की डोर काफी नाजुक होती है तो इसे संभाल कर चलना पङता है.

मां और पत्नी दोनों का साथ दे कर एकदूसरे के मन के वहम को दूर करना आप की जिम्मेदारी है.

अलबत्ता, मां को आप की बहू का फोन पसंद है, तो एक अपनी मां को भी ला कर दे दें. दूसरा, अगर वे पढ़ीलिखी हैं तो उन्हें पत्रपत्रिकाएं व अच्छा साहित्य भी पढ़ने को दे सकते हैं. इस से वे मोबाइल से दूर रहेंगी और बुजुर्ग अवस्था में उन का मन भी लगा रहेगा.

व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या इस नम्बर पर 8588843415 भेजें.

महाराष्ट्र : शक्की पति को पत्नी के चरित्र पर था शक, चाकू घोंप कर बेरहमी से मार डाला

महाराष्ट्र के पालघर जिले में एक 34 वर्षीय भारती नामक महिला की हत्या खुद उस के पति ने ही कर दी। उस ने चाकू से गोदगोद कर पत्नी की हत्या कर दी. इस घटना से पूरे क्षेत्र में सनसनी फैल गई. आरोपी की पहचान 37 वर्षीय गोपाल राठौड़ के रूप में की गई है.

पड़ोसियों की मानें तो दोनों पतिपत्नी के बीच काफी समय से किसी न किसी बात को ले कर विवाद चल रहा था.

आरोपी गोपाल राठौड़ को शराब पीने की भी लत थी और इसी के चलते बीते दिनों उस ने फुलपाड़ा इलाके में स्थित अपने घर खूब शराब पी कर आया और किसी बात पर उस में और उस की पत्नी में झगड़ा होने लगा। झगड़े के बीच उस ने बिना सोचेसमझे सुबह के साढ़े 4 बजे चाकू उठा कर अपनी पत्नी भारती के सीने में घोंप कर उस की हत्या कर दी.

खबर मिलते ही पुलिस की एक टीम घटनास्थल पहुंची और महिला के शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया.

बताया जा रहा है कि आरोपी को अपनी पत्नी के चरित्र को ले कर शक था जिस के चलते दोनों में अकसर लड़ाइयां हुआ करती थीं.

पुलिस की तारीफ करनी चाहिए जिन्होंने सीसीटीवी फुटेज और अपने नैटवर्क का इस्तेमाल कर केवल 6 घंटे में इस केस को सौल्व कर आरोपी गोपाल राठौड़ को हिरासत में ले लिया.

पुलिस ने गोपाल राठौड़ को कोपर स्टेशन से गिरफ्तार किया जिस समय वह कर्नाटक भागने की कोशिश कर रहा था.

पतिपत्नी का रिश्ता आपसी भरोसे और विश्वास पर कायम रहता है, जिसे दोनों को ही निभाना चाहिए. मगर शराबी पति ने न सिर्फ नशे में अपनी पत्नी की हत्या कर दी, रिश्ते को भी कलंकित कर दिया.

कानून को हाथ में लेने वाले लोग अक्सर यह सोचते हैं कि वह पुलिस को चकमा दे कर बच जाएगा. मगर कानून के हाथ लंबे होते हैं और अपराधी कितना भी शातिर हो, एक न एक दिन जरूर पकड़ा जाता है.

अब वह सनकी पति पूरी उम्र जेल में बिताएगा और पलपल खुद को कोसता रहेगा कि ऐसी बङी गलती उसे नहीं करनी चाहिए थी.

शादी से पहले अपना आशियाना बना लें और खुशियों का दरवाजा खोलें

करन और काशवी की शादी को 6 महीने भी नहीं हुए हैं कि दोनों का रिश्ता टूटने की कगार पर है. काशवी और उस की सास में रोज किसी न किसी बात पर कलह होती है. काशवी अपनी तरफ से पूरी कोशिश करती है कि करन के पेरैंट्स के साथ उस का रिश्ता अच्छा रहे और घर में सब मिलजुल कर रहें, लेकिन उस की लाख कोशिशों के बाद भी ऐसा नहीं हो पा रहा. करन अपनी वाइफ और पेरैंट्स के बीच सैंडविच बना हुआ है. अब स्थिति यहां तक पहुंच चुकी है कि काशवी और करन ने अलग रहने का फैसला किया है. शादी के शुरुआती दिनों में अधिकतर परिवारों की यही कहानी होती है.

पेरैंट्स भी खुश और बच्चे भी खुश

आजकल विवाह के बाद कपल्स का लड़के के पैरैंट्स के घर को छोड़ अलग से रहना आम बात होती जा रही है. अगर लड़केलड़की दोनों जौब करते हैं और पेरैंट्स शारीरिक व आर्थिक रूप से स्वस्थ और संपन्न हैं तो अलग रहने में ही भलाई है.

इस का एक फायदा यह भी है कि वह घर जो दोनों ने अपनी कमाई से खरीदा है दोनों का बराबर होगा और एकदूसरे को कोई इमोशनल ब्लैकमेल नहीं कर सकता कि यह मेरा घर है.

समय तेजी से बदल रहा है, अब भारतीय युवा भी पारिवारिक रजामंदी से अपने पेरैंट्स से अलग रहने लगे हैं. पेरैंट्स को भी अब बच्चों को अपने से अलग रहने में कोई समस्या नहीं दिखाई देती क्योंकि साथ रह कर रोज की किचकिच से थोड़ा दूर रह कर प्यार बना रहना उन्हें सही फैसला लगता है. शहरों में पढ़ेलिखे परिवारों में जहां बच्चे आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हैं, अपना अलग घर बसाने लगे हैं या फिर पेरैंट्स खुद अपने बच्चों को अपनी ही सोसाइटी या आसपास ही अलग घर दिला देते हैं, ताकि बच्चे और वे भी बिना किसी मनमुटाव के अपनी मनमरजी से रह सकें और दूर रह कर भी आपसी प्यार बना रहे.

आप सब ने स्टार वन चैनल पर दिखाया जाने वाला हिंदी हास्य धारावाहिक ‘साराभाई वर्सेस साराभाई’ जरूर देखा होगा. इस धारावाहिक में बेटाबहू यानी डा. साहिल साराभाई और मनीषा ‘मोनिशा’ सिंह साराभाई, ससुर इंद्रवदन साराभाई और सास माया मजूमदार साराभाई के सामने वाले फ्लैट में रहते हैं और दोनों अलगअलग रहते हुए भी साथ रहते हैं और इन के बीच की मीठी नोकझोंक सब का खूब मनोरंजन करती थी.

अपने पैरेंट्स से अलग अपने आशियाने में रहने वाले बौलीवुड सितारे

बौलीवुड में आप को कई ऐसे स्टार्स मिल जाएंगे जिन्होंने शादी से पहले ही अपना नया घर बना लिया और शादी करते ही अपने नए आशियाने में अपने पार्टनर के साथ शिफ्ट हो गए. बौलीवुड के उन मैरिड कपल्स में रणवीर सिंह-दीपिका पादुकोण, सिद्धार्थ मल्होत्रा-कियारा आडवाणी, कैटरीना कैफ-विक्की कौशल से ले कर रणबीर कपूर-आलिया भट्ट के अलावा और भी कई स्टार्स शामिल हैं.
वरुण धवन ने भी अपनी गर्लफ्रेंड नताशा दलाल से शादी करने के बाद अपने पिता डेविड धवन का घर छोड़ दिया था. सोनम कपूर भी शादी के बाद अपने बिजनैसमैन पति आनंद आहूजा के साथ उन के अपने घर में लंदन शिफ्ट हो गई थीं.

पेरैंट्स भी खुश और बच्चे भी खुश. लेकिन ऐसा बहुत कम है. अधिकतर मामलों में तो पारिवारिक अनबन, निजता, आजादी, घर के खर्चे और सामाजिकता आदि मुद्दे ही आधार होते हैं.

मजबूरी में नहीं हंसीखुशी लें अलग रहने का फैसला

पेरैंट्स से अलग रहने का फैसला कहीं हंसीखुशी से होता है तो कहीं मजबूरीवश. जहां यह फैसला हंसीखुशी से होता है वहां इस के कई फायदे हैं और जहां मजबूरीवश होता है वहां कई तरह के नुकसान.

एकदो कमरे का फ्लैट और उस में शादी के बाद सासससुर के साथ रहना अपने लिए स्पेस तलाशना, मनचाहे कपड़े पहनना, दोस्तों का आनाजाना आसान नहीं होता. कई तरह की बंदिशें और औपचारिकताएं निभानी पड़ती हैं. उस पर पेरैंट्स के नियमकायदे रिश्तों में मनमुटाव का कारण बन जाते हैं, इसलिए हंसीखुशी अलग रहें.

वर्किंग बहू की परेशानियां

परिवार के अपने रिवाज और परंपराएं होती हैं, ऐसे में कई बार बहुओं को इन के मुताबिक ढलने में परेशानी आती है. उदाहरण के लिए, अगर किसी घर में यह रिवाज हो कि सुबह के नाश्ते से ले कर दिन का खाना बहुएं ही बनाती हों, तो उन महिलाओं को दिक्कत आ सकती है जिन्हें सुबह औफिस जाना होता है. इसी तरह कुछ परिवारों में लड़कियों के लिए एक कर्फ्यू टाइम तय होता है. इस स्थिति में भी बहू अगर औफिस से लेट आए तो उसे सासससुर से सुनने को मिल सकता है. महिला के लिए जब इन स्थितियों में एडजस्ट करना मुश्किल हो जाता है तो वह अलग होना ही बेहतर समझती है.

हंसतेमुसकराते बनाएं स्पेस

हंसतेमुसकराते अपने और उन के लिए भी स्पेस बना कर जिस की उन को भी जरूरत है, खुशियों को इन्वाइट किया जा सकता है. शादी के बाद पेरैंट्स से अलग रहने का मतलब उन के प्रति लगाव कम होना नहीं होता. दूर रह कर भी पारिवारिक रिश्ते मजबूत बने रह सकते हैं.

फोनकौल, वीडियो चैट, त्योहारों, घर के कार्यक्रमों में शामिल हो कर रिश्तों में मजबूती और प्यार बनाए रखा जा सकता है. साथ रह कर एकदूसरे को दुख देने से बेहतर है थोड़ा दूर रह कर एकदूसरे की खुशियों को बढ़ाने में सहयोग किया जाए. नई पीढ़ी दूर रह कर भी पेरैंट्स के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को ले कर सजग रह सकती है. पेरैंट्स को भी यह समझना जरूरी है कि बदलते समय के साथ नई पीढ़ी का अपना घर चलाने का तरीका और लाइफस्टाइल बदल चुका है. इस नजरिए से दोनों दूर रह कर भी एक परिवार की तरह रह पाएंगे.

आज के युवाओं के लिए प्राइवेसी और पर्सनल फ्रीडम बहुत माने रखते हैं और वे अपना जीवन अपने हिसाब से जीना चाहते हैं जिस के वे काबिल भी हैं.

शादी के बाद परिवार से अलग रहने के फायदे

पेरैंट्स के साथ रहने से मैरिड कपल को प्राइवेसी नहीं मिल पाती है. इस के अलावा जब नए शादीशीदा कपल पेरैंट्स से अलग रहते हैं तो लड़का अपनी वाइफ की घर के कामों में मदद कर पाता है, दोनों को एकदूसरे को समझने का मौका मिल पाता है, दोनों एकदूसरे के साथ क्वालिटी टाइम स्पैंड कर पाते हैं, कैरियर पर फोकस कर पाते हैं. इसलिए लड़का हो या लड़की, आर्थिक रूप से स्वतंत्र होते ही, शादी से पहले ही, पेरैंट्स से अलग अपना आशियाने का इंतजाम करना बेहतर होता है. क्योंकि 2 पीढ़ियों की सोच, जिंदगी, खानपान, जीवनशैली आदि में बहुत फर्क होता है.

साथ में घर के काम करने से बढ़ता है प्यार

शादी के बाद जब अपने घर में अलग रहते हुए नए शादीशुदा कपल साथ में घर का काम करते हैं, जैसे साथ खाना बनाते हैं या फिर घर का कोई अन्य कार्य करते हैं तो उन का रिश्ता मजबूत बनता है, उन के बीच की बौन्डिंग मजबूत होती है और साथ काम करने से भेदभाव भी खत्म होता है. लेकिन जब आप पेरैंट्स के घर में रहते हैं तो घर के काम की सारी जिम्मेदारी नई बहू को दे दी जाती है और इस से जैंडर भेदभाव को बढ़ावा मिलता है.

एकदूसरे को समझने का मौका

जौइंट फैमिली में शादी के शुरुआती दिनों में पतिपत्नी को एकदूसरे को समझने का पर्याप्त मौका नहीं मिल पाता है जबकि पेरैंट्स से दूर रह कर पतिपत्नी एकदूसरे को ज्यादा बेहतर तरीके से समझ पाते हैं. परिवार के सभी सदस्यों को यह समझना चाहिए कि पतिपत्नी को बहुत लंबा जीवन जीना है, इसलिए उन्हें एकदूसरे को समझना बहुत जरूरी है. अकेले रहते हुए वे एकदूसरे की अच्छी और बुरी आदतों को समझते हुए दोनों एकदूसरे में रम जाते हैं और उस के बाद जीवन की असली खूबसूरती निखर कर आती है. जब कपल अकेले रहते हैं तो वे अपने व्यक्तित्व को ज्यादा बेहतर तरीके से निखार पाते हैं. उन्हें एकदूसरे को समझने का मौका मिलता है और उन्हें मिल कर जीवन के उतारचढ़ावों से जूझना आता है.

पति के साथ प्राइवेट मोमैंट मिलने का मौका चाहे लव मैरिज हो या फिर अरेंज्ड, हर कपल शादी के बाद एकदूसरे के साथ समय बिताना चाहता है लेकिन जब कपल शादी के बाद पेरैंट्स के साथ रहने का फैसला करता है तो नए नए पतिपत्नी बने कपल पारिवारिक जिम्मेदारियां निभाने में ही इतना बिजी हो जाते हैं कि उन्हें आपस में क्वालिटी टाइम स्पैंड करने का मौका ही नहीं मिलता. नईनवेली दुलहन के लिए यह स्थिति बहुत चैलेंजिंग होती है क्योंकि जिस के लिए वह परिवार में आती है उसी के साथ उसे समय बिताने का मौका नहीं मिल पाता जो उसे फ्रस्ट्रेट करता है और उन के बीच प्यार के बजाय झगड़े शुरू हो जाते हैं. ऐसी स्थिति नए कपल का अलग घर में शिफ्ट होना उन्हें साथ में समय बिताने का मौका देता है.

मैंटल स्ट्रैस से बचाव और रिश्तों में मिठास

बहुत सारे मामलों में नइ बहू के लिए सासससुर या ससुराल के किसी अन्य मैंबर से रोजरोज की तूतू मैंमैं, पति के साथ प्राइवेट मोमैंट का न मिलना जबरदस्त मैंटल स्ट्रेस का कारण बनते हैं और शादी को ले कर बुने सारे सपने हवा हो जाते हैं और झगड़े बढ़ने लगते हैं. ऐसे में मानसिक शांति और रिश्तों में मिठास के लिए पेरैंट्स से अलग रहना सही फैसला साबित होता है.

क्यों आंसुओं का कोई मोल नहीं : आखिर क्या हुआ था मार्गरेट के साथ

कोमल एहसासों की चादर में लिपटी मारिया अपने आज और आने वाले कल की खुशियों को धीमधीमे खुद में समेटने की कोशिश में जुटी थी. आज वह बहुत खुश थी. पूरे 3 साल बाद उस की बेटी मार्गरेट अमेरिका से पढ़ाई पूरी कर जयपुर लौट रही थी. डैविड की असमय मृत्यु के 5 सालों बाद मारिया दिल से खुशी को जी रही थी. मार्गरेट तो वैसे भी घर की जान हुआ करती थी. उस की हंसी और खुशमिजाज स्वभाव से तो सारा घर खिल उठता था. उस के अमेरिका चले जाने के बाद घर बिलकुल सूना सा हो गया था. मारिया यह सोच खुश थी कि उस के घर की रौनक लौट रही है. उस की खुशी का अंदाजा लगाना मुश्किल था.

न्यूयौर्क जाने से पहले मार्गरेट ने मारिया को धैर्य बंधाते हुए कहा था, ‘‘मां, मैं तुम्हारी बहादुर बेटी हूं और तुम्हारी ही तरह आत्मनिर्भर बनना चाहती हूं. आने वाले दिनों में तुम्हें मुझ पर गर्व होगा.’’ तब मारिया ने अपनी आंखें बंद कर मन ही मन कामना की थी बेटी की सारी इच्छाएं पूरी हों.

डैविड की 5 साल पहले एक ऐक्सीडैंट में असमय मौत हो गई थी. यों अचानक बीच रास्ते में साथी का साथ छूट जाना कितना तकलीफदेह होता है, इस बात को केवल वही समझ सकता है जिस के साथ यह घटित होता है. डैविड के जाने के बाद 2 बेटियों की परवरिश और घर चलाने का पूरा जिम्मा मारिया पर आ गया था. यह अच्छी बात थी कि मारिया भी डैविड के बिजनैस में अपना योगदान देती थी. उन का गारमैंट्स ऐक्सपोर्ट का बिजनैस था, जो बहुत अच्छा चल रहा था. इसीलिए डैविड की असमय मृत्यु के बाद मारिया को उतनी दिक्कतों का सामना नहीं करना पड़ा जितना कि एक नौनवर्किंग महिला को करना पड़ता है. पर अकेले व्यापार और घर संभालना आसान भी नहीं था. फिर बेटियां भी छोटी ही थीं.

तब बड़ी बेटी मार्गरेट 10वीं कक्षा में पढ़ रही थी और छोटी बेटी ऐंजेल 8वीं कक्षा में. उस समय मार्गरेट अपनी मां का सहारा बनी. परिस्थितियों ने अचानक उसे परिपक्व बना दिया. अपनी पढ़ाई के साथसाथ घर के कामों में मां का हाथ भी बंटाने लगी. मार्गरेट पढ़ाई में बहुत होशियार थी. 2 साल बाद 12वीं कक्षा में स्कूल में टौप किया था और एक टेलैंट सर्च कंपीटिशन में उसे स्कौलरशिप मिली थी न्यूयौर्क यूनिवर्सिटी से बिजनैस की पढ़ाई के लिए.

हालांकि मारिया नहीं चाहती थी कि मार्गरेट पढ़ने के लिए सात समंदर पार जाए, पर बच्चों की जिद और उन के सपनों के लिए अपनी सोच से डर को रुखसत करना ही पड़ता है. हर मातापिता यही चाहते हैं कि उन के बच्चे खूब पढ़ेंलिखें और आगे बढ़ें. मारिया ने भी आखिरकार रजामंदी दे दी. मारिया की एक कजिन सुजन अमेरिका में ही रहती थी. अत: एक भरोसा था कि कोई जानने वाला वहां है जो जरूरत के समय काम आ जाएगा और यह भी कि मार्गरेट को भी घर जैसा फील चाहिए हो तो वह सुजन के घर जा सकती है. मारिया ने सुजन से बात कर अमेरिका के विषय में काफी जानकारी ले ली थी. उसे यह जान कर खुशी हुई थी कि वहां पढ़ाई का बहुत उच्च स्तर है जो मार्गरेट के भविष्य के लिए बहुत अच्छा होगा. अत: 3 साल का समय किसी तरह दिल पर पत्थर रख कर बिता दिया.

मार्गरेट की फ्लाइट शाम को 5 बजे लैंड होने वाली थी. मार्गरेट के इंतजार में एअरपोर्ट पर जैसे मारिया को 1-1 पल भारी पड़ रहा था. इंतजार का वक्त खत्म हुआ और मार्गरेट एअरपोर्ट से बाहर निकल मारिया केसामने आ खड़ी हो गई. पर मानो मारिया के लिए उसे पहचान पाना मुश्किल सा था. सामने कोई मुसकराता चेहरा न था. मार्गरेट का चेहरा मायूसी से भरा था. आंखों के नीचे काले गड्ढे हो गए थे. मुसकराहट तो चेहरे से लापता थी. सामने जैसे कोई हड्डी का ढांचा खड़ा हो.

मारिया ने जैसेतैसे खुद को संभाला और मार्गरेट को गले से लगाते हुए कहा, ‘‘कैसी है मेरी बच्ची? बहुत दुबली हो गई है.’’ मार्गरेट ने बहुत धीमे स्वर में कहा, ‘‘ठीक हूं और जिंदा हूं.’’

न उस के चेहरे पर कोई खुशी का भाव था और न ही दुख का. एक बेजान चेहरा. कुछ क्षणों के लिए जैसे मारिया के दिमाग ने काम करना बंद कर दिया हो, फिर खुद को संभालते हुए उस ने प्यार से मार्गरेट के सिर पर हाथ फेरा और कहा, ‘‘चलो, घर चलें. ऐंजेल तुम्हारा बेसब्री से इंतजार कर रही होगी.’’

मारिया ने गाड़ी में सामान रखवा कर गाड़ी घर की तरफ मोड़ दी. पूरा रास्ता मार्गरेट चुप बैठी एकटक लगाए कार की खिड़की से बाहर देखती रही.

मारिया को कई सवालों ने घेर लिया था. उसे मार्गरेट की चुप्पी खाए जा रही थी पर चाह कर भी उस ने मार्गरेट से कुछ नहीं कहा और न ही कुछ पूछा. उसे लगा हो सकता है लंबे सफर की वजह से थक गई हो या फिर 3 सालों के फासले ने उसे कुछ बदल दिया हो. दिमाग सवालों की एक माला पिरोता जा रहा था पर जवाब तो सारे मार्गरेट के पास थे. यही सब सोचतेसोचते मारिया मार्गरेट को ले कर घर पहुंच गई. कार का हौर्न बजाते ही ऐंजेल बुके लिए दरवाजे पर खड़ी थी. मार्गरेट कार से धीमी गति से उतरी, एकदम सुस्त. ऐंजेल दौड़ कर उस के पास पहुंची और चिल्लाते हुए बोली, ‘‘वैलकम होम दीदी… आई मिस्ड यू सो मच.’’

पर मार्गरेट के चेहरे पर न कोई खुशी, न कोई उत्साह और न कोई उल्लास था. जब मार्गरेट ने उसे कोई उत्साह नहीं दिखाया तो ऐंजेल थोड़ी मायूम हो गई. बोली, ‘‘क्या दीदी, तुम मुझ से 3 साल बाद मिल रही हो और तुम्हारे चेहरे पर कोई खुशी नहीं है.’’

मारिया ने ऐंजेल को समझाते हुए कहा कि मार्गरेट सफर से थकी हुई है. तुम इसे परेशान न करो. इसे आराम करने दो… बाद में बातें कर लेना.’’ ऐंजेल ने एक अच्छी बच्ची की तरह मां की बात मान ली. कहा, ‘‘चलो दीदी, मैं तुम्हें तुम्हारा कमरा दिखा दूं. मैं ने और मां ने उसे तुम्हारी पसंद से सजाया है.’’

कमरा बहुत खूबसूरती और करीने से सजा था. टेबल पर गुलाब के फूलों का गुलदस्ता था और मार्गरेट की पसंदीदा बैडशीट जिस पर गुलाब के फूलों के प्रिंट थे बिस्तर पर बिछी थी. मार्गरेट की फैवरिट कौर्नर की स्टडी टेबल पर फूलों से लिखा था- वैकलम होम. मार्गरेट जैसे ही कमरे में दाखिल हुई जोर से चिल्ला उठी, ‘‘आई हेट फ्लौवर्स,’’ और फिर गुलदस्ता जमीन पर पटक दिया. चादर को भी उठा कर एक कोने में सरका दिया, फिर अपना सिर पकड़ वहीं बैड पर बैठ गई.

मार्गरेट का यह रूप देख मारिया और ऐंजेल डरीसहमी एक कोने में खड़ी हो गईं. मारिया को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे. बहुत हिम्मत जुटा कर वह मार्गरेट के पास पहुंची और फिर उस के सिर पर हाथ सहलाते हुए बोली, ‘‘मार्गरेट, तुम आराम करो, सफर में थक गई होगी. थोड़ी देर बाद हम डिनर टेबल पर मिलते हैं,’’ और फिर मारिया ने ऐंजेल, जो सहमी सी एक कोने में खड़ी थी, को इशारे से वहां से जाने को कहा. फिर मार्गरेट को बिस्तर पर लिटा दिया. उसे चादर ओढ़ाते हुए कहा, ‘‘तुम आराम करो,’’ और कमरे से बाहर आ गई. डाइनिंगटेबल के पास बैठ बहुत परेशान हो मार्गरेट के विषय में सोचने लगी. उसे मार्गरेट के बदले स्वभाव के बारे में कुछ भी समझ नहीं आ रहा था.

फिर खयाल आया कि क्यों न सुजन से पूछे… हो सकता है वह कुछ जानती हो. अत: सुजन को फोन लगाया और यों ही बातोंबातों में जानने की कोशिश करते हुए कहा, ‘‘हैलो सुजन कैसी हो? तुम्हें इस वक्त फोन यह बताने के लिए कर रही हूं कि मार्गरेट घर पहुंच गई है. तुम्हें तहेदिल से शुक्रिया भी कहना था कि वहां परदेश में तुम ने मार्गरेट का खयाल रखा.’’ ‘‘नहीं मारिया शुक्रिया कहने की कोई जरूरत नहीं…मार्गरेट तो बहुत ही प्यारी बच्ची है और वह कभीकभार ही आती थी. पहले तो वह अकसर आती थी पर पिछले साल सिर्फ 1 बार ही आई थी और वह भी मेरे बुलाने पर,’’ सुजन बोली.

फिर कुछ इधरउधर की बातें कर मारिया ने थैंक्स कहते हुए फोन रख दिया. मारिया को सुजन से भी कुछ खास जानकारी न मिल सकी. अब वह और परेशान थी. तभी मार्गरेट के जोर से चिलाने की आवाज आई. मारिया दौड़ कर कमरे में पहुंची, मार्गरेट को देखा एक जगह सुन्न सी खड़ी रही. मार्गरेट अपने कपड़ों को अपने ही हाथों से नोचनोच कर अलग कर रही थी. बालों का एक गुच्छा जमीन पर पड़ा था. मार्गरेट की हालत और हरकतें कुछ पागलों जैसी थीं… मारिया ने खुद को फिर संभाला और मार्गरेट के पास जा उसे प्यार से सहलाने की कोशिश की तो मार्गरेट ने उस का हाथ झटकते हुए कहा, ‘‘डौंट टच मी,’’ और फिर जोरजोर से चिल्लाने लगी…

मार्गरेट की हालत देख कर मारिया को यह तो समझ आ गया था कि मार्गरेट किसी मानसिक समस्या से जूझ रही है. बड़ी मुश्किल से मारिया ने मार्गरेट को संभाला. किसी तरह खाना खिला उसे सोने के लिए छोड़ कमरे से बाहर गई. काफी रात हो चुकी थी, पर उस से रहा न गया. अपने फैमिली डाक्टर को फोन मिलाया और सारा ब्योरा देते हुए पूछा, ‘‘डाक्टर अमन बताएं मैं क्या कंरू? प्लीज मेरी मदद कीजिए. मैं ने अपनी बेटी को पहले कभी ऐसी हालत में नहीं देखा है.’’ डाक्टर ने धैर्य बंधाते हुए कहा, ‘‘मेरे खयाल से डाक्टर राजन आप की मदद कर सकते हैं, क्योंकि वे साइकिएट्रिस्ट हैं. मेरे अच्छे दोस्त हैं. तुम्हारी मदद जरूर करेंगे…डौंट वरी… सब ठीक हो जाएगा. तुम्हारी कल की अपौइंटमैंट फिक्स करवा देता हूं.’’

मारिया ने डाक्टर का शुक्रिया करते हुए फोन रख दिया. फिर उसे कई सवालों ने घेर लिया. पूरी रात यही सोचती रही कि न्यूयौर्क में ऐसा क्या हुआ होगा जो मार्गरेट की ऐसी हालत हो गई… सोचतेसोचते अचानक खयाल आया कि जब मार्गरेट सैकंड ईयर में थी तब वीडियो चैट के दौरान उस ने अपनी एक सहेली से भी बात करवाई थी, जो अमेरिकन थी. शायद एमिली नाम था. तब शायद उस समय उस का नंबर भी लिया था. उसे यह भी याद आया कि पिछले साल मार्गरेट ने कभी वीडियो चैट नहीं किया. अकसर फोन पर ही बातें करती थी. ये सब सोचतेसोचते कब उसकी आंख लगी और कब सुबह हो गई पता ही नहीं चला.

सुबह उठते ही सब से पहले मारिया ने एमिला का नंबर तलाशना शुरू किया. एक पुरानी डायरी में वह नंबर लिखा करती थी. उस में एमिली का नंबर लिखा मिल गया. इसी बीच डाक्टर की अपौइंटमैंट का समय हो गया. अत: मारिया ने एमिली को शाम को फोन लगाना उचित समझा, क्योंकि अमेरिका में तब रात होती है जब भारत में दिन होता है.

बड़ी मुश्किल से मार्गरेट तैयार हुई डाक्टर से मिलने को और वह भी यह कह कर कि मारिया को कुछ डिसकस करना है स्वयं के विषय में. डाक्टर अमन ने पहले ही डाक्टर राजन को पूरा ब्योरा दे दिया था.

मारिया जब डाक्टर मुखर्जी के रूम में मार्गरेट के संग दाखिल हुई तब डाक्टर राजन ऐसे मिले जैसे वह मारिया को पहले से जानते हों, ‘‘हैलो मारिया, कैसी हैं आप और अगर मैं गलती नहीं कर रहा तो यह आप बड़ी बेटी है मार्गरेट… एम आई राइट?’’ मारिया ने हां में सिर हिला दिया. बातोंबातों में डाक्टर ने बहुत सी जानकारी निकाल ली मार्गरेट के विषय में और उस के हावभाव, आचरण से यह साबित हो ही रहा था कि वह किसी तनाव से ग्रस्त है. यों ही मजाक करते हुए पहले मारिया का ब्लडप्रैशर लिया, फिर बाद में हंसते हुए कहा कि चलो मार्गरेट आज तुम्हारा भी बीपी चैक कर लिया जाए…

ऐसे ही बातोंबातों में डाक्टर ने एक प्रश्नावली मार्गरेट को भरने को कहा. दरअसल, यह कोई मामूली प्रश्नावली न हो कर एक साइकोलौजिकल टैस्ट था मार्गरेट के लिए. किसी तरह डाक्टर ने मार्गरेट का मूल्यांकन किया और फिर उसे बाहर बैठने को कहा. मार्गरेट के बाहर जाते ही उत्सुकता से मारिया ने पूछा, ‘‘क्या हुआ है मेरी बच्ची को… वह क्यों ऐसा बरताव कर रही हैं?’’

डाक्टर ने एक गहरी सांस लेते हुए कहा, ‘‘मार्गरेट को ऐनोरेक्सिया और पार्शियल एपिलिप्स्या है.’’ मारिया ने इस बीमारी का नाम पहले कभी नहीं सुना था. कहा, ‘‘डाक्टर यह कौन सी बीमारी है और इसे कैसे हो गई? मेरी बच्ची ठीक तो हो जाएगी न?’’

डाक्टर ने हताश मन से कहा, ‘‘मैडिकल में इस बीमारी का कोई ठोस इलाज नहीं है. ठीक होने के चांसेज 30-35% ही हैं. यह बीमारी अकसर अत्यधिक स्ट्रैस या फिर लंबे समय तक किसी मानसिक तनाव से गुजरने से हो जाती है. आप चाहें तो मार्गरेट को कुछ दिनों के लिए यहां ऐडमिट करा सकती हैं.’’ मारिया ने सोचने का समय लेते हुए डाक्टर को धन्यवाद कहा और फिर एक उदासी को साथ लिए कमरे से बाहर आ गई. मन सवालों की गठरी के नीचे दबा जा रहा था. पर जवाब मिलें भी तो कहां से मिलें. मार्गरेट की अवस्था सवालों के जवाब देने लायक तो बिलकुल भी नहीं थी. इन्हीं सवालों में उलझी मारिया मार्गरेट को ले घर पहुंची और तुरंत एमिली को फोन मिलाने का निश्चय किया.

एमिली इस वक्त एकमात्र जरीया थी जहां से कुछ जानकारी मिलने की आशा थी. बहुत संकोच के साथ मारिया ने एमिली को फोन मिलाया. जाने क्या सुनने को मिलेगा बस यही विचार बारबार दिमाग में आ कर बेचैन कर रहा था. तभी बेचैनी को भेदती हुए एक आवाज कानों में पड़ी, ‘‘हैलो.’’

जवाब में मारिया ने भी, ‘‘हैलो,’’ कहा. एमिली ने पूछा, ‘‘मे आई नो हु इज औन

द लाइन?’’ मारिया ने कहा, ‘‘इज दिस एमिली औन द लाइन… दिस इज मारिया मार्गरेट्स मदर. डू यू रीमैंबर मार्गरेट?’’

‘‘ओह यस आई डू रीमैंबर मार्गरेट… हाऊ इज शी?’’ मारिया ने समय न गंवाते हुए झट मार्गरेट की स्थिति से अवगत कराते हुए पूछा, ‘‘डू यू हैव एनी आइडिया, व्हाट हैप्पंड विद मार्गरेट व्हैन शी वाज इन अमेरिका?’’

सवाल को सुन एमिली कुछ देर चुप रही. इधर मारिया की जान मानो हलक में अटकी हो. मारिया ने फिर अपना सवाल दोहराया. तब एमिली ने एक गहरी सांस छोड़ते हुए कहा, ‘‘यस आंटी, बट आई कांट टैल यू ओवर द फोन. यू नीड टु कम हियर… इट्स अ लौंग स्टोरी.’’

जवाब सुनते ही मानो मारिया के दिमाग में हजारों सवालों ने एक सुरंग का रूप धारण कर लिया हो, जहां सिर्फ अंधकार ही अंधकार हो, जहां से दूसरा छोर नजर तो आ रहा था पर पहुंच के बाहर सा लग रहा था. मारिया कुछ देर चुप सोचती रही कि आखिर क्या करे, फिर, ‘‘आई विल कौल यू लेटर… थैंक यू,’’ कह फोन रख दिया. एक तरफ मार्गरेट का दर्द और तकलीफ, तो दूसरी तरफ ऐंजेल की स्कूल की पढ़ाई, तीसरी तरफ बिजनैस की जिम्मेदारी तो चौथी तरफ घर…क्या संभाले और कैसे. पर इस चक्रव्यूह को किसी भी तरह तो भेदना ही था. अत: बहुत सोचविचार कर मारिया ने निर्णय लिया कि वह अमेरिका जाएगी.

अगले ही दिन मारिया ने वीजा के लिए तत्काल में आवेदन किया. 10 दिनों में यूएस का मल्टिपल ऐंट्री वीजा मिल गया. इन 10 दिनों में मार्गरेट को डाक्टर राजन के हौस्पिटल में दाखिल करवा दिया. हालांकि यह एक दिल पर पत्थर रख कर लिया जाने वाला निर्णय था पर लेना भी तो जरूरी था. जाने से एक दिन पहले ऐंजेल को डैविड की बड़ी सिस्टर जो जयपुर में ही रहती थी उन के पास छोड़ दिया ताकि उस का खयाल रखें और पढ़ाई में कोई नुकसान न हो. औफिस की सारी जिम्मेदारी डैविड के खास दोस्त और कंपनी के चार्टर्ड अकाउंटैंट उमेश को सौंप मारिया अब तैयार थी आगे की लड़ाई के लिए. फ्लाइट में मारिया सोच रही थी कि पता नहीं न्यूयौर्क पहुंच क्या सुनने और जानने को मिले. विमान में बैठे घर और बच्चों की चिंता से मन भारी हो रखा था. एअरपोर्ट पर सुजन मारिया का इंतजार कर रही थी.

सुजन को देखते ही मारिया उस के गले से लिपट गई. दोनों एकदूसरी से 10 साल बाद मिल रही थीं. एअरपोर्ट से सुजन का घर आधे घंटे की दूरी पर था. सुजन ने मारिया से कहा, ‘‘इतने सालों बाद अचानक तुम से मुलाकात होने पर बहुत खुशी हो रही है.’’ मारिया ने जवाब में कहा, ‘‘क्या बताऊं तुम्हें… मेरी तो दुनिया ही उलटपलट हो गई है.’’

रास्ते में मारिया ने सुजन को मार्गरेट के बारे में सब कुछ बता दिया, फिर बोली, ‘‘इसी सिलसिले में यहां मार्गरेट की दोस्त एमिली से मिलने आई हूं… जानना चाहती हूं कि क्या हुआ इन 3 सालों में, जिस ने मेरी हंसतीखिलखिलाती बच्ची के चेहरे से हंसी ही छीन ली है.’’ सुजन को यह सब जान कर बेहद दुख हुआ. उस ने मायूसी भरे स्वर में कहा, ‘‘काश मैं कुछ कर पाती… मैं तो यहीं थी पर मुझे कुछ मालूम ही नहीं चला.’’

अगली सुबह मारिया की मुलाकात एमिली से तय थी. पूरी रात मारिया ने एक भय के साए में बिताई कि न जाने सुबह क्या सुनने को मिले. मारिया एमिली के बताए पते पर पहुंच गई. रविवार का दिन था. एमिली की छुट्टी का दिन था. वह एक न्यूज एजेंसी में पत्रकार थी. एमिली और मार्गरेट एक ही कालेज में साथ पढ़े थे. एमिली ने जर्नलिज्म का कोर्स किया था और मार्गरेट ने मैनेजमैंट का. जर्नलिज्म का कोर्स करते हुए एमिली ने कामचलाऊ हिंदी भी सीख ली थी. दोनों में बहुत अच्छी दोस्ती थी. एमिली ने मारिया को सोफे पर बैठने का आग्रह करते हुए कहा, ‘‘हैलो मारिया नाइस टु सी यू.’’

मारिया ने समय न गंवाते हुए सीधे एमिली से प्रश्न किया, ‘‘एमिली, आई हैव कम औल द वे टु नो अबाउट माई चाइल्ड मार्गरेट…प्लीज टैल मी इन डिटेल.’’ एमिली ने थोड़ी टूटीफूटी हिंदी में बताना शुरू किया, ‘‘वह मेरी रूममेट थी. हम एकदूसरे से काफी बातें शेयर करते थे. फर्स्ट ईयर तो हंसतेखेलते निकल गया. मार्गरेट ने कालेज में अपने अच्छे स्वभाव से अपनी बहुत अच्छी इमेज बना ली थी. वह पढ़ाई में तो होशियार थी ही, साथ ही ऐक्स्ट्रा ऐक्टिविटीज में भी.

‘‘रूथ एक अमेरिकन लड़का था जो मार्गरेट को पसंद करता था. दोनों में बहुत अच्छी दोस्ती भी थी. एक ही क्लास में थे. रूथ कालेज में बहुत पौपुलर था. उस की इमेज कुछ प्लेबौय जैसी थी पर वह मार्गरेट को पसंद करता था. मगर मार्गरेट का लक्ष्य पढ़ाई कर वापस जाना था. अत: उस ने रूथ को कभी सीरियसली नहीं लिया. पर रूथ उसे इंप्रैस करने की हमेशा कोशिश करता. हर रोज मार्गरेट को एक गुलाब का फूल देता था. हम सब जानते थे मार्गरेट को गुलाब का फूल बेहद पसंद है. ‘‘लास्ट सैम से पहले कालेज इलैक्शन के दौरान मार्गरेट और रूथ को नौमिनेट किया गया, कालेज प्रैसिडैंट की पोस्ट के लिए और जैसाकि हम सब जानते थे मार्गरेट इलैक्शन जीत गई. रूथ को दुख तो हुआ पर उस ने मार्गरेट को बधाई दी. मार्गरेट की जीत की खुशी में रूथ ने एक पार्टी और्गनाइज की जिस में केवल कुछ दोस्तों को ही बुलाया गया,’’ कहतेकहते एमिली रुक गई और रोने लगी.

मारिया की समझ में कुछ नहीं आ रहा था. उस ने एमिली से रिक्वैस्ट की ‘‘एमिली प्लीज मुझे सारी बातें बताओ… तुम ऐसे अचानक क्यों रोने लगी.’’ एमिली ने 1 घूंट पानी पीया और आगे बताना शुरू किया, ‘‘मार्गरेट जब रूथ के चंगुल से निकल कर आई तब उस ने मुझे बताया कि उस के साथ क्या गुजरी. अब तक हम सब रूथ को बस एक मदमस्त लड़के के रूप में जानते थे. पार्टी के बाद रूथ ने मार्गरेट को रुकने को कहा. अपनी दोस्ती का वास्ता दिया. मार्गरेट एक अच्छे दोस्त की तरह रूथ की बातों में आ गई. कहीं न कहीं मार्गरेट भी रूथ को पसंद करती थी. शायद यही कारण था कि वह उस की बातों में आ गई. फिर कोई अपने दोस्त पर शक करे भी तो कैसे? मार्गरेट भी तो अनजान थी रूथ के इरादों से.

‘‘पार्टी में सभी ने शराब पी. हालांकि मार्गरेट ने सिर्फ बियर ही पी थी पर न जाने कैसे बेहोश हो गई. जब आंखें खुली ने उस ने स्वयं को एक छोटे से गंदे से कमरे में पाया. स्टोररूम जैसा लग रहा था. मार्गरेट को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि आखिर वह उस कमरे में कैसे आई. घबराहट में उस की आंखों से आंसुओं की धारा बहने लगी. तभी दरवाजा खुलने की आवाज आई. सामने रूथ को देख उस की जान में जान आई. वह झट रूथ के गले लग गई. मगर रूथ ने उसे अपने से अलग करते हुए धक्का देते हुए कहा कि स्टे अवे. ‘‘मार्गरेट की समझ से परे था ये सब. वह सोच रही थी कि जिस लड़के ने एक दिन पहले उस की जीत की खुशी में पार्टी दी वही आज उस से इतनी बेरुखी से क्यों पेश आ रहा है? मार्गरेट ने फिर मदद की गुहार लगाई पर रूथ के कानों में तो जूं तक नहीं रेंग रही थी. अचानक उस ने मार्गरेट पर झपट्टा मारा और मार्गरेट के बदन से कपड़ों को नोच कर अलग कर दिया. मार्गरेट दया की गुहार लगाती रही और रूथ उस की इज्जत से खेलता रहा. मार्गरेट ने छूटने की बहुत कोशिश की, गिड़गिड़ाई पर जैसे रूथ तो एक आदमखोर भेडि़ए की तरह मार्गरेट को नोचने में लगा था.

बहुत कोशिशों के बाद भी मार्गरेट स्वयं को बचा न सकी. जब रूथ का दिल भर गया तो वह उसे वहीं कमरे में छोड़ जाने लगा. उस के चेहरे पर कुछ अजीब से भाव थे जैसे वह अपनी जीत का जश्न मना रहा हो. मार्गरेट को अब तक कुछ समझ नहीं आ रहा था कि आखिर रूथ ऐसा कर क्यों रहा था उस के साथ. जातेजाते रूथ अपने साथ मार्गरेट के कपड़े भी ले गया. ‘‘नग्नावस्था में मार्गरेट ने 1 नहीं, 2 नहीं पूरे 3 हफ्ते बिताए. रूथ का जब मन करता कमरे में आता और मार्गरेट की आबरू को छलनी कर वहां से ऐसे चला जाता जैसे कुछ हुआ ही नहीं हो. मार्गरेट के आसुओं का, उस की विनती का कोई असर नहीं होता. उसे तो केवल अपनी हवस ही सर्वोपरी थी. उस ने जीतेजी एक लड़की को निर्जीव बना दिया था वह भी केवल अपने घमंड को ऊंचा रखने के लिए. रूथ मार्गरेट का इस्तेमाल एक सैक्स टौय के रूप में कर रहा था,’’ कहतेकहते एमिली फिर रुक गई.

यह सब सुनना मारिया के लिए एक नर्क से गुजरने जैसा था. मार्गरेट की चीखें जैसे मारिया के कानों को भेदते हुए उस के शरीर को तारतार कर रही थीं. मारिया का केवल कल्पनामात्र से शरीर सुन्न पड़ गया था. न जाने मार्गरेट ने इन कठिन परिस्तिथियों का सामना किस प्रकार किया होगा… मारिया ये सब सुन कर पूरी तरह से ब्लैकआउट हो गई थी. आज उसे बेहद पछतावा हो रहा था कि उस ने मार्गरेट को अमेरिका पढ़ने ही क्यों भेजा… वह सोच रही कि मार्गरेट इतने कठिन दौर से गुजरी और उस ने इस दर्द को किसी के साथ बांटा भी नहीं. मार्गरेट ने इस दर्द को अकेले सह साहसी होने का परिचय तो दिया था पर इस दर्द और तकलीफ ने उसे जीतेजी मार डाला था.

इन सब बातों को सुनने के बाद मारिया ने यह तय किया कि उसे रूथ को उस की गलतियों की सजा अवश्य दिलवानी है. मारिया ने एमिली से रूथ का पता जानने की इच्छा जताई तो एमिली ने बताया कि रूथ भी होस्टल में ही रहता था. उस के पास उस का पता नहीं है. एक संभावना थी शायद कालेज से पता मिल जाए पर उस के लिए कुछ जुगत लगानी होगी, क्योंकि अधिकतर कालेजों में पर्सनल डिटेल्स देना रूल्स के खिलाफ माना जाता है.

‘‘लड़ाई तो बस अभी शुरू ही हुई है,’’ मारिया ने एक लंबी सांस छोड़ते हुए कहा. उस ने हाथ जोड़ कर एमिली से रूथ का पता निकलवाने का आग्रह किया. एमिली ने मारिया को धैर्य बंधाते हुए कहा, ‘‘मैं पूरी कोशिश करूंगी… आप चिंता न करें.’’

एमिली को दिल से शुक्रिया कहते हुए मारिया ने उसे अपने गले से लगा लिया. फिर कहा, ‘‘तुम्हारी मदद की आवश्यकता मुझे आगे भी इस लड़ाई में पड़ती रहेगी. आशा करती हूं तुम मेरी हैल्प अवश्य करोगी.’’ एमिली ने दुख में सराबोर हो कहा, ‘‘एनी टाइम यू कैन कौल मी.’’

मारिया भारी मन से वहां से रुखसत हुई. वह यही सोच रही थी कि कैसे मार्गरेट ने इतनी तकलीफों का सामना किया होगा और अब सारी बातें जानने के बाद मार्गरेट के बदले और बेहाल स्वास्थ्य का कारण भी पता था. मारिया का मन तो कर रहा था कि रूथ बस कहीं से मिल जाए और वह उसे सरे बाजार नंगा कर बीच चौराहे में गोली मार दे. उस के भीतर गुस्से का ज्वालामुखी फट चुका था. इस ज्वालामुखी के शांत होने का सिर्फ एक ही उपाय था कि वह उसे सलाखों के पीछे देखे. पर यह इतना आसान भी नहीं था. मार्गरेट एक प्रवासी थी न्यूयौर्क में. इस रास्ते को तय करना बेहद मुश्किलों से भरा था, पर मारिया अब इन मुश्किलों से लड़ने के लिए स्वयं को तैयार कर चुकी थी.

2 दिन बाद एमिली ने मारिया को फोन कर खबर दी कि रूथ के लोकल गार्जियन जिन का नाम रोसेलिन था का पता मिल गया है. झट मारिया ने रूथ की आंटी का पता नोट कर उन से मिलने की सोची. समय न गंवाते हुए वे उस के घर जो बोस्टन में था के लिए रवाना हो गई. न्यूयौर्क से बोस्टन की दूरी बस द्वारा कुल 4 घंटों की थी. जैसेतैसे यह रास्ता भी तय हो गया. बस स्टौप से रोसेलिन का घर 5 मिनट की दूरी पर था. मारिया ने घर के दरवाजे पर दस्तक दी. दरवाजा रोसेलिन ने ही खोला. वह एक आकर्षक वृद्ध ब्रिटिश महिला थीं, जिन्होंने थोड़े आश्चर्यभाव के साथ दरवाजा खोला. उन्होंने दरवाजा खोलते ही पूछा ‘‘हू आर यू… व्हाट डू यू वांट.’’

मारिया ने जवाब में कहा, ‘‘आई वांट टू मीट रोसेलिन. आई एम मारिया फ्रौम इंडिया… वांट टू सी हर.’’ जवाब में रोसेलिन ने कहा, ‘‘कम इन, आई एम रोसेलिन.’’

घर काफी करीने से सजा था. मारिया ने एक नजर घर के चारों कोनों में दौड़ाई. वह मन ही मन सोच रही थी कि शुरुआत कहां से और कैसे की जाए.

तभी रोसेलिन ने पूछा, व्हाटस द पर्पज औफ आवर मीटिंग… हाऊ यू नो मी?’’ मारिया ने कहा, ‘‘आई वांट टु नो अबाउट रूथ योर नैफ्यू,’’ और फिर मारिया ने एक ही सांस में सारी कहानी रोसेलिन को बता डाली कि कैसे रूथ ने उस की बेटी मार्गरेट का जीवन नष्ट कर डाला और यह भी कि वह रूथ से मिल कर जानना चाहती है कि क्या मिला उसे मार्गरेट के जीवन से खेल कर.

पहले तो रोसेलिन चुप रहीं पर मारिया के बहुत समझाने और आग्रह करने पर वे मान गईं और फिर रूथ की पूरी कहानी मारिया को बताई. मारिया और रोसेलिन के बीच संपूर्ण वार्त्तालाप अंगरेजी में ही हुई थी. रोसेलिन ने बताया, ‘‘रूथ की परवरिश एक अजीबोगरीब परिवार में हुई थी. रूथ जब मात्र

7 साल का था तब उस की मां उस के पिता को छोड़ किसी और के साथ रहने लगी. पिता शराबी और व्यभिचारी था. रूथ ने जो बचपन से देखा वही सीखा. उसे कभी औरतों की इज्जत करना आया ही नहीं. आता भी कैसे. किसी ने कभी कुछ सिखाया ही नहीं. ‘‘अपने मातापिता होने के बावजूद उस ने अनाथों की तरह अपनी जिंदगी बिताई… घर का माहौल बेहद खराब था, जिस का असर यह हुआ कि रूथ में एक स्प्लिट पर्सनैलिटी ने जन्म ले लिया था. उसे औरतों से खासा नफरत सी थी. जब वह अपनी वास्तविक अवस्था में रहता तब कोईर् अंदाजा भी नहीं लगा सकता था कि उस के दिमाग के एक हिस्से में बेहद खतरनाक इंसान का वास है.

‘‘पर किसी भी दृष्टिकोण से रूथ को कोई हक नहीं था कि किसी बेगुनाह की जिंदगी से खेले. मुझे लगता है उसे उस के किए का कोई पछतावा भी नहीं होगा. होता भी कैसे. उसे जो उस की समझ में ठीक लगता है वह वही करता हैं. कई बार मैं ने उसे समझाने की कोशिश की पर कोई फायदा नहीं हुआ. रूथ जहां पढ़ने में बहुत अच्छा था, वहीं उस के मन को पढ़ना उतना ही कठिन था.’’ मारिया ने रोसेलिन से रूथ का पता जानने की इच्छा जताई तो रोसेलिन ने बताया कि जब तक कालेज में था तब तक वे उस की लोकल गार्जियन थीं, पर अब वह उन के साथ नहीं रहता था. कालेज खत्म कर रूथ ने वहां न्यूयौर्क के एक कालेज में फैलोशिप की नौकरी कर ली थी. उन की आखिरी मुलाकात 6 महीने पहले हुई थी.

मारिया को अपने कई सवालों के जवाब तो मिल गए थे पर यह जानना अभी बाकी था कि आखिर मार्गरेट ही क्यों उस का शिकार बनी? रोसेलिन का हृदय से धन्यवाद कर मारिया न्यूयौर्क वापस आ गई. अगले दिन मारिया सुजन की मदद से एक वकील जो इंडियन अमेरिकन था को मार्गरेट के साथ हुए भयावह अत्याचार का ब्योरा दिया.

वकील ने मारिया को सुझाव देते हुए कहा कि सुबूतों के अभाव की वजह से केस बहुत वीक है और विक्टिम भी कुछ बताने की स्थिति में नहीं है, ऐसे स्थिति में पुलिस भी शायद ही एफआईआर लिखे. फिर भी मारिया ने उम्मीद का दामन नहीं छोड़ा. उस के सामने अब एक और चुनौती ने जन्म ले लिया था. वह किसी भी हाल में रूथ को सलाखों के पीछे देखना चाहती थी. उसे यह खयाल दिन में चैन से नहीं बैठने देता था कि उस के पास सारी जानकारी है पर सुबूत न होने की वजह से रूथ जैसे दुराचारी के खिलाफ कुछ नहीं कर पा रही है. मारिया ने मार्गरेट के कालेज मैनेजमैंट से बात कर सीसीटीवी फुटेज निकलवाए. जिन से यह पता चला कि मार्गरेट की वाकई जानपहचान थी रूथ से और फिर डाक्टर राजन से कह मार्गरेट की मैडिकल रिपोर्ट तैयार करवाई, जिस में डाक्टर ने मार्गरेट की मानसिक और शारीरिक स्थिति का पूरा ब्योरा दिया कि कैसे शारीरिक और मानसिक यातना का नतीजा है मार्गरेट की ऐसी दयनीय स्थिति. इन सभी सुबूतों को ले मार्गरेट और उस के वकील ने रूथ के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाई. इतना ही नहीं एमिली ने भी गवाही देना मंजूर कर लिया.

इन सभी रास्तों पर चलना मारिया के लिए आसान तो नहीं था पर शायद मां की आत्मशक्ति के आगे रास्ते खुदबखुद बनने लगे थे. आखिरकार पुलिस ने रूथ को पकड़ ही लिया. कस्टडी में पूछताछ के दौरान उस ने मान लिया कि मार्गरेट को उसी ने बंदी बना रखा था और वह ये सब इसलिए करता था क्योंकि उसे सुंदर और अंकलमंद औरतों से नफरत थी. दूसरा कारण यह भी था कि मार्गरेट

स्टूडैंट इलैक्शन में जीत गई थी, जिस से रूथ के अहं को बहुत ठेस पहुंची थी और वह मार्गरेट से इस बात का बदला लेना चाहता था. रूथ को सैशन कोर्ट ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई और उसे मनोवैज्ञानिक उपचार भी करवाने की सलाह दी. मार्गरेट की कोई गलती न होने पर भी उसे नर्क से गुजरना पड़ा. मारिया को जब कारण का पता चला तो उस के होश उड़ गए. मार्गरेट को इतनी परेशानियों का सामना केवल इसलिए

करना पड़ा कि वह खूबसूरत और अकलमंद है. रूथ को सजा होने पर मारिया खुश तो थी पर मार्गरेट को देख बेहद दुख होता. एक होनहार लड़की की ऐसी हालत देख बहुत दर्द होता. मार्गरेट आज भी डाक्टर राजन से अपना इलाज करा रही है. उस से दैहिक घाव तो मिट गए हैं, पर आत्मिक घाव आज भी रिस रहे हैं. मार्गरेट के साथ जो भी घटित हुआ था वह आज के युग का एक ऐसा भयंकर सच है जिस के साथ जीना न केवल मुश्किल है, अपितु विषपान से भी अधिक कड़वा पान है. ऐसी कितनी ही मार्गरेट आएदिन विकृत विचारधारा वाले भेडि़यों के मुंह का निवाला बनती रहती हैं. उन के मन को इतना लहूलुहान कर दिया जाता है कि वे जिंदा तो होती हैं पर उन की स्थिति एक जिंदा लाश से कम नहीं.

चौथा चक्कर : रामजी ने तो गुरुजी को उलटा प्रवचन दे डाला

रामजी एक सरकारी दफ्तर में बड़े साहब थे. सुबह टहलने जाते तो पूरी तरह तैयार हो कर जाते थे. पांव में चमकते स्पोर्ट्स शूज, सफेद पैंट, सफेद कमीज, हलकी सर्दी में जैकेट, सिर पर कैप, कभीकभी हाथ में छड़ी. पार्क में टहलने का शौक था, अत: घर से खुद कार चला कर पार्क में आते थे. वहां पर न जाने क्यों 3 चक्कर के बाद वह बैठ जाते. शायद ही कभी उन्होंने चौथा चक्कर लगाया हो.

उस दिन पार्क में बहस छिड़ गई थी.

कयास लगाने वालों में एक ने चुटकी लेते हुए कहा, ‘‘अरे, बामन ने 3 पग में पृथ्वी नाप दी थी तो रामजी साहब 3 चक्कर में पार्क को नाप देते हैं.’’

कुछ दिन पहले पार्क के दक्षिण में हरी घास के मैदान पर सत्संगियों ने कब्जा कर लिया. वे अपने किसी गुरु को ले आए थे. छोटा वाला माइक और स्पीकर भी लगा लिया था. गुरुजी के लिए एक फोल्डिंग कुरसी कोई शिष्य, जिस का मकान पार्क के पास था, ले आता था.

इस बीच घूमने वाले, अपने घूमने का समय कम कर वहां बैठ जाते थे और गुरुजी मोक्ष की चर्चा में सब को खींचने का प्रयास करते थे. वह बता रहे थे कि थोड़े से अभ्यास से ही तीसरी आंख खुल जाती है और वही सारी शक्तियों का घर है. हमारे गुरु पवित्र बाबा के आश्रम पर आप आइए, मात्र 7 दिन का सत्संग है.

पता नहीं क्यों, गुरुजी को रामजी साहब की सुंदर शख्सियत भा गई. उन के भीतर का विवेकानंद जग गया. अगर यह सुदर्शन मेरे सत्संग में आ जाए, तो फिर शायद पूरे पार्क के लोग आ जाएं. उन्होंने सावधानी से रामजी साहब की परिक्रमा के समय…जीवन की क्षणभंगुरता, नश्वर शरीर को ले कर, कबीर के 4 दोहे सुना दिए, पर रामजी का ध्यान उधर था ही नहीं.

‘‘खाली घूमने से कुछ नहीं होगा. प्राण शक्ति का जागरण ही योग है,’’ गुरु समझा रहे थे.

रामजी साहब ने अनसुना करते हुए भी सुन लिया…

उन के दूसरे चक्कर के समय, एक शिष्य उन के नजदीक आया और बोला, ‘‘गुरुजी, आप से कुछ बात करना चाहते हैं.’’

‘‘क्यों? मुझे तो फुरसत नहीं है.’’

‘‘फिर भी, आप मिल लें. वह सामने बैठे हैं.’’

‘‘पर वहां तो एक ही कुरसी है.’’

‘‘आप उधर बैंच पर आ जाएं, मैं उधर चलता हूं.’’

शिष्य को यह सब बुरा लगा. फिर भी वह अपने गुरुजी के पास यह संदेश ले गया.

गुरुजी मुसकराते हुए उठे, ‘‘नारायण, नारायण…’’

रामजी साहब ने गुरुजी को नमस्कार किया तो उन का हाथ, आशीर्वाद की मुद्रा में उठा और बोले, ‘‘वत्स, आप का स्वास्थ्य कैसा है?’’

‘‘बहुत बढि़या.’’

‘‘आप रोजाना इस पार्क में टहलने आते हैं?’’

‘‘हां.’’

‘‘पर मैं देखता हूं कि आप 3 ही चक्कर लगाते हैं, क्यों?’’

रामजी साहब हंसे, जैसे लाफिंग क्लब के सदस्य हंसते हैं. गुरुजी और शिष्य उन्हें इस तरह बेबाक हंसता देख अवाक् रह गए.

‘‘तो क्या आप मेरे चक्कर गिना करते हैं?’’ रामजी साहब ने पूछा.

‘‘नहीं, नहीं, ये भक्तगण इस बात की चर्चा करते हैं.’’

‘‘हां, पर आप ने तो सीधा ही चौथा चक्कर लगा लिया, क्या?’’

गुरुजी समझ नहीं पाए. वह अवाक् से रामजी साहब को देखते रह गए.

अपनी बात को स्पष्ट करने के लिए रामजी साहब बोले, ‘‘महाराज, आप को इस कम उम्र में संन्यास की क्या आवश्यकता पड़ गई?’’

‘‘मेरी बचपन से रुचि थी, संसार के प्रति आकर्षण नहीं था.’’

‘‘तो अब भी बचपन की रुचि उतनी ही है या बढ़ गई?’’ रामजी ने पूछ लिया. सवाल तीखा और तीर की तरह चुभने वाला था.

‘‘महाराज एक जातिगत आरक्षण होता है,’’ गुरुजी के चेहरे के भावों को पढ़ते हुए रामजी आगे बोले, ‘‘उस में कम योग्य भी अच्छा पद पा सकता है, क्योंकि पद आरक्षित है और उस पर बैठने वाले भी कम ही हैं. एक यह ‘धार्मिक’ आरक्षण है, यहां कोई बैठ जाए, उस का छोटामोटा पद सुरक्षित हो जाता है. आप शनि का मंदिर खोल लें. वहां लोग अपनेआप खिंचे चले आएंगे. टीवी पर देखें, सुकुमार संतसाध्वियों की फौज चली आई. फिर आप को इस आरक्षण की क्यों जरूरत हो गई? पार्क में मार्केटिंग की अब क्या जरूरत है?’’

‘‘नहीं, यह बात नहीं है, महाराज तो इंजीनियरिंग गे्रजुएट हैं, वैराग्य ही आप को इधर ले आया,’’ एक भावुक शिष्य बोला.

‘‘महाराज, वही तो मैं कह रहा हूं कि बिना 3 चक्कर चले आप चौथे पर कैसे पहुंच गए?’’

‘‘नहीं, नहीं, मैं ने विद्याध्ययन किया है, स्वाध्याय किया है, गुरु आश्रम में दीक्षा ली है,’’ महाराज बोले.

‘‘पहला चक्कर तो पूरा ही नहीं हुआ और पहले से चौथे पर छलांग और महाराज, जो आप कह रहे थे कि चौथे चक्कर की जरूरत है, तो क्यों? अभी तो नौकरी की लाइन में लगना था?

‘‘बुद्ध के जमाने में दुख था, होगा. हमारे बादशाहों के महल में एक भी वातानुकूलित कमरा नहीं था. आज तो आम आदमी के पास भी अच्छा जीवन जीने का आधार है. घर में गैस है, फ्रिज है, गाड़ी है, घूमने के लिए स्कूटर है. उस की सुरक्षा है. उस के बच्चे स्कूल जाते हैं. घर है. महाराज, आज जीवन जीने लायक हो गया है. बताएं, सब छोड़ कर किस मुक्ति के लिए अब जंगल जाया जाए?’’

गुरुजी चुप रह गए थे.

‘‘सात प्राणायाम, आंख मींचने की कला, गीता पर व्याख्यान, इस से ही काम चल जाए फिर कामधाम की क्या जरूरत है?’’

रामजी साहब की बात सुन कर शिष्यगण सोच रहे थे, उन्हें क्यों पकड़ लाए.

‘‘फिर भी मानव जीवन का एक उद्देश्य है कि वह इस जीवन में शांति, प्रेम, आनंद को पाए. भारतीय संस्कृति जीवन जीने की कला सौंपती है, उस का भी तो प्रचार करना है,’’ महाराज बोले.

‘‘महाराज, उस के लिए घर छोड़ कर, आश्रम की क्या जरूरत है. आश्रम भी ईंटपत्थर का, यहां घर भी ईंटपत्थर का, भोजन की तो वहां भी जरूरत होती है, रहा सवाल ग्रंथ और पाठ का, तो वह घर पर भी कर सकते थे. आंख मींचना ही ध्यान है, तो आप कहीं भी ध्यान लगा सकते हैं, यह बात दूसरी है जब बेपढ़ेलिखे इस उद्योग में अच्छा कमा रहे हैं, तब पढ़ेलिखे तो बिजनेस चला ही लेंगे? आप ने मुझ से पूछा है, इसीलिए मैं ने भी आप से पूछ लिया, वरना इस चौथे चक्कर के पीछे मैं कभी नहीं पड़ता.’’

‘‘महाराज के गुरुजी के आश्रम तो दुनिया भर में हैं. आज शांति की जरूरत सब को है, जिसे आज पूरा विश्व चाहता है,’’ एक शिष्य बोला.

‘‘हां,’’ महाराज चहके, ‘‘यहां के लोगों में अज्ञान है, यहां विदेशों से लोग आते हैं और ज्ञान लेने में रुचि ले रहे हैं.’’

‘‘आप विदेश हो आए क्या?’’

‘‘अभी नहीं, महाराज का कार्यक्रम बन गया है. अगले माह जा रहे हैं,’’ दूसरा शिष्य चहका.

‘‘वहां क्यों? काम तो यहां अपने देश में बहुत है. गरीबी है, अज्ञान है, अशिक्षा है. महाराज, मुफ्त में विदेश यात्राएं, वहां की सुविधाएं, डालर की भेंट तो यहां नहीं है. पर महाराज यहां भी बाजार मंदा नहीं है.’’

शिष्यगण नाराज हो चले थे. सुबहसुबह जो पार्क में टहलने आए थे वे भी यह संवाद सुन कर रुक गए थे.

‘‘लगता है आप बहुत अशांत हैं,’’ महाराज बोले, ‘‘कसूर आप का नहीं है, कुछ तत्त्व हैं, वे हमेशा धर्म के खिलाफ ही जनभावना बनाते रहते हैं. पर उस से क्या फर्क पड़ा? दोचार पत्रपत्रिकाएं क्या प्रभाव डालेंगी? आज करोड़ों मनुष्य सुबह उठते ही धर्म से जुड़ना चाहते हैं. सारे चैनल हमारी बात कह रहे हैं. कहां क्या गलत है?’’

महाराज ने गर्व के साथ श्रोताओं की ओर देखा. शिष्यों ने तालियां बजा दी थीं.

‘‘आप सही कह रहे हैं, आजादी के समय न इतने बाबा थे, न इतना पाप बढ़ा था. जब आप कर्मफल को मानते हैं तब इन कर्मकांडी व्यापारों की क्या जरूरत है. क्या 10 मिनट को आंख मींचने से, मंदिर की घंटियां बजाने से, यज्ञ करने से, तीर्थयात्रा से कर्मफल कट सकता है? महाराज, शांति तो भांग पी कर भी आ जाती है. मुख्य बात मन का शांत होना होता है और वह होता है, अपनी जिम्मेदारियां पूरी करने से, पलायन से नहीं.’’

युवा संन्यासी का चेहरा उतर गया था.

उस ने उठने का संकेत किया.

‘‘महाराज, पहला चक्कर धर्म का था, वह तो पैदा होते ही मिल गया. शिक्षा ग्रहण की, बड़े हुए तो देश का कानून मिल गया, समाज का विधान मिल गया. धन का दूसरा चक्कर लगाया, 30 साल नौकरी की. तीसरा चक्कर गृहस्थी का अभी चल रहा है, चलेगा. इन तीनों चक्करों में महाराज खूब सुख मिला है, मिल रहा है, शांति है.

‘‘महाराज, यह चौथा चक्कर तो नीरस होता है. जब इतना सुख मिल रहा है तो मोक्ष पाने को चौथा चक्कर क्यों लगाएं.

‘‘मृत्यु के बाद आनंद कैसा, आज तक तो कोई बताने आया नहीं. सुख तो देह भोगती है, शांति मन भोगता है, पर महाराज, जब तन और मन दोनों ही नहीं होंगे, तब कौन भोगेगा और कौन बताएगा? जैसे साधारण आदमी की मौत होती है वैसे ही महात्मा रोगशोक से लड़ते हुए मरते हैं.

‘‘महाराज मान लें, इसी जीवन में मोक्ष मिल जाएगा तो महाराज उस की शर्त तो ‘कष्टवत’ हो जाना है, और बाद मरने के मोक्ष मिला तो. महाराज, कल आप कह रहे थे, बूंद समुद्र में मिल जाएगी तो समुद्र का पानी खारा होता है, पीने लायक ही नहीं, उस नीरस जीवन से तो यह सरस जीवन श्रेष्ठ है. हां, धंधे के लिहाज से ठीक है, आप इंजीनियर हैं, कंप्यूटर जानते हैं, इंटरनेट जानते हैं, अच्छी अंगरेजी आती है. कमाएं, पर मुझे बख्शें. हां, यह बात दूसरी है, आज जैसे बालाएं विज्ञापन में बिक रही हैं, बाबा भी बिक रहे हैं, उन का काम धन कमाना है. कोई सुने या न सुने अपनी बात कहने का हक तो है न.

‘‘आप लोग विचारें, मैं तो अपने इन 3 चक्करों में ही संतुष्ट हूं. क्यों अनावश्यक उस चौथे चक्कर के प्रपंच में पड़ कर अपने 3 चक्करों के सुख को खोऊं. सुख तो आप लोग खो रहे हो,’’ रामजी साहब ने भक्तों की ओर देखते हुए कहा.

भक्त लोग अवाक् थे, सोच रहे थे, क्या रामजी ने कुछ गलत कहा है, सोच तो वह भी यही रहे थे, पर कह नहीं पा रहे थे, क्यों?

राहुल बड़ा हो गया है : राहुल की तीमारदारी ने कैसे बदली मां की सोच

अमित से मैं अकसर इस बात पर उलझ पड़ती हूं कि राहुल अभी छोटा है. वह कभी हंस देते हैं, कभी झुंझला उठते हैं कि इतना छोटा भी नहीं है जितना तुम समझती हो.

अमित कहते हैं, ‘‘14 साल पूरे करने वाला है और तुम उसे छोटा ही कहती हो. मैं तो समझता हूं कि कल को उस के बच्चे भी हो जाएंगे तब भी राहुल तुम्हें छोटा ही लगेगा.’’

मैं इस तरह की बातें अनसुनी करती रहती हूं. बेटी मिनी, जो 16 की हुई है, वह भी अपने पापा के सुर में सुर मिलाए रखती है. वह भी यही कहती है, ‘‘छोटा है, हुंह, स्कूल में इस की मस्ती देखो तो आप को पता चलेगा कि यह कितना छोटा है.’’

मैं कहती हूं, ‘‘तो क्या हुआ, छोटा है तो मस्ती तो करेगा ही,’’ मतलब मेरे पास इन दोनों की हर बात का यही जवाब होता है कि राहुल अभी छोटा है. यह तो शुक्र है कि राहुल ने बहुत तेज दिमाग पाया है. कक्षा में हमेशा प्रथम स्थान प्राप्त करता है. खेलकूद में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेता है. जिस में भाग लेता है उसी में प्रथम स्थान प्राप्त करता है. यहीं पर अमित उस से बहुत खुश हो जाते हैं नहीं तो उसे मेरा छोटा कहना दोनों बापबेटी के लिए अच्छाखासा मनोरंजन का विषय रहता है. अब मैं क्या करूं, अगर वह मुझे छोटा लगता है. वैसे भी सुना है कि मां के लिए बच्चे हमेशा छोटे ही रहते हैं.

ठीक है, उस का कद मुझे पार कर गया है. मैं जो अच्छीखासी लंबी हूं, राहुल के कंधे पर आने लगी हूं. उस की हर समय खेलकूद की बातें, उस के चेहरे पर रहने वाली भोली सी मुसकराहट, बस, मुझे कुछ दिखाई नहीं देता, न घर में सब को पार करता उस का कद, न उस के होंठों के ऊपर हलकी सी उभरती मूंछों की कालिमा.

अभी एक हफ्ते पहले मैं ने राहुल का एक दूसरा ही रूप देखा जिसे देख कर मैं ने भी महसूस किया कि राहुल बड़ा हो गया है.

मेरी तबीयत अकसर ठीक नहीं रहती है. कभी कुछ, कभी कुछ, लगा ही रहता है. पिछले हफ्ते की बात है. एक दिन घर का सामान लेने बाजार जाना था. मेरी तबीयत सुबह से ही कुछ सुस्त थी. अमित टूर पर थे, मिनी की परीक्षाएं चल रही थीं. सामान जरूरी था, अत: राहुल और मैं शाम को 4 बजे के आसपास बाजार चले गए. यहां मुंबई में किसी भी दिन किसी भी समय कहीं भी चले जाइए भीड़ ही भीड़, लोग ही लोग. कोई कोना खाली नहीं दिखता.

मुंबई आए 7 साल होने को हैं लेकिन आज भी बाहर निकलती हूं तो हर तरफ भीड़ देख कर जी घबरा जाता है. साधारण हाउसवाइफ हूं, बाहर अकेले कम ही निकलती हूं.

खैर, उस दिन बाजार में सामान लेतेलेते एक जगह सिर बहुत भारी लगने लगा. अचानक ही मुझे तेज चक्कर आया और मैं पसीनेपसीने हो उठी. साथ ही पेट के अंदर कमर के पास तेज दर्द शुरू हो गया. राहुल मेरी हालत देख कर घबरा उठा. मैं ने उसे अपना पर्स व सामान थमाया और इतना ही कहा, ‘‘राहुल, तुरंत डाक्टर के पास चलो.’’

राहुल ने तुरंत आटो बुलाया और मुझे उस में बैठा कर मेरे फैमिली डाक्टर के नर्सिंग होम पहुंचा. रास्ते में मैं ने उसे मिनी को फोन कर के बताने को कहा. डाक्टर ने पहुंचते ही मेरा चेकअप किया और बताया, ‘‘ब्लडप्रेशर बहुत हाई है. मुझे कुछ टेस्ट करने हैं. दर्द के लिए इंजेक्शन दे रहा हूं, आज आप को यहां भरती होना पड़ेगा.’’

मैं यह सोच कर परेशान हो गई कि अमित शहर में नहीं हैं और परीक्षा की तैयारी में व्यस्त मिनी घर पर अकेली है.

मैं अपनी परेशान हालत में कुछ और सोचती इस से पहले ही राहुल बोल उठा, ‘‘अंकल, मम्मी आज यहीं रुक जाएंगी. मैं सब देख लूंगा,’’ आगे मुझ से बोला, ‘‘आप बिलकुल किसी बात की चिंता मत करो, मम्मी. मैं यहीं हूं, मैं हर बात का ध्यान रखूंगा.’’

दर्द से तड़पती मैं उस हाल में भी गर्वित हो उठी यह सोच कर कि मेरा छोटा सा बेटा कैसे मेरी देखभाल के लिए तैयार है. दर्द से मेरी जान निकल रही थी. शायद इंजेक्शन से थोड़ी देर में मुझे नींद भी आ गई. इस बीच राहुल ने मिनी को फोन कर के कुछ पैसे और मेरे लिए खाने को कुछ लाने के लिए कहा.

रात 8 बजे मेरी आंख खुली, तो देखा, दोनों बच्चे मेरे सामने चुपचाप उदास बैठे थे. मन हुआ उठ कर दोनों को अपने सीने से लगा लूं. दर्द खत्म हो चुका था, कमजोरी बहुत महसूस हो रही थी.

मैं बच्चों से बोली, ‘‘अब मैं ठीक हूं. तुम लोग अब घर चले जाओ, रात हो गई है.’’

मैं ने अपनी 2-3 सहेलियों के नाम ले कर कहा, ‘‘उन लोगों को बता दो, उन में से कोई एक यहां रुक जाएगा रात को.’’

मैं आगे कुछ और कहती, इस से पहले ही राहुल बोल उठा, ‘‘नहीं, मम्मी, जब मैं यहां हूं और किसी को बुलाने की जरूरत नहीं है. आप देखना, मैं आप का अच्छी तरह ध्यान रखूंगा. मिनी दीदी, आप जाओ, आप के पेपर हैं. मम्मी और मैं सुबह आ जाएंगे.’’

राहुल आगे बोला, ‘‘हां, एक बात और मम्मी, हम पापा को नहीं बताएंगे. वह टूर पर हैं, परेशान हो जाएंगे. वैसे भी 2 दिन बाद तो वह आ ही जाएंगे.’’

मैं अपने छोटे से बेटे का यह रूप देख कर हैरान थी. मिनी को हम ने समझा कर घर भेज दिया. वैसे भी वह एक समझदार लड़की है. राहुल ने अपने हाथों से मुझे थोड़ा खाना खिलाया और कुछ खुद भी खाया. मेरे राहुल ने कितनी देर से कुछ भी नहीं खाया था, सोच कर मैं लेटेलेटे दुखी सी हो गई.

कुछ दवाइयों का असर था शायद मैं फिर सो गई लेकिन रात को मैं ने जितनी बार आंखें खोलीं, राहुल को बराबर के बेड पर जागते ही पाया. सुबह मुझे पता चला कि किडनी में पथरी का दर्द था. खैर, उस का इलाज तो बाद में होना था. ब्लडप्रेशर सामान्य था.

अब मैं डाक्टर की हिदायतों के बाद घर जाने को तैयार थी. डाक्टर से दवाई समझता, सब बिल चुकाता, एक हाथ से मेरा हाथ, दूसरे में मेरा पर्स और बैग थामता राहुल आज मुझे सच में बड़ा लग रहा था. अस्पताल से निकलते हुए मैं यही सोच रही थी कि अमित और मिनी ठीक कहते हैं राहुल बड़ा हो गया है.

वास्तु और मेरा घर : श्रीमतीजी की जिद के आगे मुझे घुटने टेकने ही पड़े

मकान बनाना कितनी बड़ी बला है यह तो वही जान सकता है जिस ने बनवाया हो. लोगों के जीवन में बड़ी मुश्किल से यह दिन आ पाता है. इतने सारे पापड़ बेलना हर किसी के बस की बात नहीं है. पर आदमी दूसरों को बनवाता देख कर हिम्मत कर बैठता है और एक दिन रोतेधोते मकान बनवा ही लेता है.

ऐसा ही मेरे साथ हुआ. एक दिन मेरी पत्नी ने सुबहसुबह एक गृहप्रवेश कार्ड मेरे सामने रख दिया. मेरे एक रिश्तेदार ने नया मकान बनवाया था. उसी खुशी में वह पार्टी दे रहा था. शाम को वहां जाना था.

‘‘देखिए, अब बहुत हो गया. मेरा शाम को कहीं जाने का मन नहीं है,’’ श्रीमतीजी तल्ख लहजे में बोलीं.

मैं ने उन के नहीं जाने के निर्णय को बहुत हलके से लिया, ‘‘हां, वैसे आजकल पक्का खाना नहीं खाना चाहिए. वाकई अब इस उम्र में इन चीजों का ध्यान भी रखना चाहिए.’’

पर यह क्या, मेरी इस बात पर तो वह बादल की तरह फट पड़ीं, ‘‘यह क्या, बस तुम्हें हर बात पर मजाक सूझता रहता है. मैं ने तो फैसला कर लिया है कि मैं अब किसी के गृहप्रवेश में तब तक नहीं जाऊंगी जब तक तुम मुझे एक प्यारा सा मकान नहीं बनवा कर दे दोगे.’’

मुझे बस चक्कर ही नहीं आया, ‘‘यह तुम कैसी बात कर रही हो. अरे, मूड खराब है तो शाम को चल कर एक साड़ी ले लेना. लेकिन कम से कम ऐसी बात तो मत करो जिसे सुन कर मुझे हार्टअटैक आ जाए.’’

श्रीमती के तेवर देख कर लगता था कि बात बहुत आगे बढ़ चुकी है. अब आसानी से केवल साड़ी पर सिमटने वाली नहीं थी. जब भी किसी का मकान बनता तो वह ऐसी फरमाइश कर बैठती थीं. उन्होंने थोड़ाबहुत इतिहास भी पढ़ा हुआ था अत: कह बैठती थीं, ‘‘देखो, शाहजहां ने अपनी बेगम के लिए ताजमहल बनवाया था. क्या तुम मेरे लिए एक अदद मकान नहीं बनवा सकते.’’

यहां मैं चुप रह जाता था. हालांकि चाहता तो मैं भी बता सकता था कि शाहजहां ने उस के जीतेजी कोई ताजमहल नहीं बनवाया था. जब मुमताज नहीं रही तब जा कर वह ऐसा कर पाया था. पर यह कहने पर एक युद्ध की संभावना और हो सकती थी इसलिए चुप रहने में ही भलाई थी.

बात जब इस स्तर पर पहुंच जाए तो कोई न कोई समाधान निकलना आवश्यक होता है. सो जल्दी ही यह बात मिलनेजुलने वालों तक पहुंच गई कि मैं मकान बनवाने वाला हूं.

मकान को ले कर लोगों ने अलगअलग सलाह दी. मुझे लगता है कि मुझे बनाबनाया मकान ले लेना चाहिए क्योंकि मकान बनवाने में उठाई जाने वाली मुसीबतों के नाम से ही मुझे बुखार आने लगता था. पर चूंकि मेरी बीवी के पिताजी यानी कि मेरे ससुर साहब का यही मानना था कि आदमी को जमीन खरीद कर ही मकान बनवाना चाहिए तो फिर भला मेरे तर्क कितनी देर चलते. अब प्लाट की खोज शुरू हुई और फिर जैसेतैसे एकमत हो कर एक प्लाट का चयन कर लिया गया.

प्लाट खरीदने वाला आदमी यही सोचता है कि वह आधी लड़ाई जीत चुका है, लेकिन यह मात्र उस का खयाली पुलाव ही होता है क्योंकि अभी तो उसे मकान बनाने की तकलीफदेह प्रक्रिया से गुजरना होता है और वही मेरे साथ भी हुआ. लेकिन बात यहीं तक सीमित होती तो कोई बात नहीं थी. असली परेशानी तो तब शुरू हुई जब मकान के निर्माण ने गति पकड़ी. मकान आधा बन चुका था. तभी एक दिन मेरी पत्नी ने मुझ से कहा, ‘‘आज तुम जरा आफिस से जल्दी घर आ जाना, मैं ने शर्माजी को बुलवाया है.’’

मैं चक्कर में पड़ गया, ‘‘यह शर्माजी कौन हैं. क्या कोई नए ठेकेदार हैं. तुम तो अभी इसी ठेकेदार को चलने दो.’’

वह नाराज हो गईं, ‘‘एक तो आप की आदत खराब है. पूरी कोई बात नहीं सुनते. वह कोई ठेकेदार नहीं हैं. वह तो बहुत पहुंचे हुए आदमी हैं. बहुत बड़े वास्तुकार हैं. मैं ने सोच लिया है, आजकल सभी लोग वास्तु के बिना कोई काम नहीं करते. मैं ने भी उन्हें बुलवाया है. उन के पास तो टाइम नहीं है. बड़ी मुश्किल से राजी हुए हैं.’’

मैं ने सोचा, चलो आज देख लेते हैं फिर टाल देंगे. मुझे तो पहले ही इन चीजों में कोई विश्वास नहीं है. आदमी कर्म करे, ईमानदारी से जीवन व्यतीत करे, समाज, परिवार व देश के प्रति जिम्मेदारी भलीभांति निभाए. बस, जीवन अपनेआप ठीकठाक निकल जाता है.

शाम को जल्दी घर आ गया. एक सज्जन मेरा इंतजार कर रहे थे. झूलती हुई दाढ़ी, माथे पर लंबा तिलक, गले में बड़ेबड़े मनकों की मालाएं, सभी उंगलियों में विभिन्न प्रकार की अंगूठियां पहनी हुईं. मुझे लगा किसी आश्रम से चंदा वगैरह लेने पधारे हैं.

मैं ने सोचा, इस से पहले कि श्रीमतीजी कुछ देनेलेने का वादा कर लें, इसे भगा दूं सो बोल पड़ा, ‘‘देखिए, हम लोग इन पाखंडों में विश्वास नहीं करते हैं. हमें जो भी देना होता है हम किसी सामाजिक संस्था को दे देते हैं. इसलिए आप हमें तो क्षमा कर ही दें.’’

मेरी इस बात से वह सज्जन नाराज हो गए. तभी मेरी आवाज सुन कर श्रीमतीजी बाहर निकल आईं, ‘‘क्या बकवास लगा रखी है. मैं ने इन्हें बुलवाया है.’’

वह सज्जन मुझे क्रोध भरी नजरों से देखने लगे. मैं ने नजर दूसरी ओर कर ली तो उधर श्रीमती की निगाहें अंगारे बरसा रही थीं, ‘‘माफ कीजिए, दरअसल यह आप को जानते नहीं हैं. पता है, शर्माजी बहुत बड़े वास्तु विशेषज्ञ हैं. इन्हें तो बिलकुल भी समय नहीं मिलता. बड़ेबड़े लोग इन से मकान के बारे में राय लेते हैं, तुम भी बस…’’ लानत उलाहना देते श्रीमतीजी बोलीं.

मैं निसहाय सा उन के पीछेपीछे चल दिया. थोड़ी ही देर में मकान पर पहुंचा. मैं अपने मकान पर बहुत मेहनत कर रहा था. मेरा आर्किटेक्ट बहुत अच्छा था. मैं ने स्वाभाविक रूप से अपनी निगाह प्रशंसा पाने के लिए उन के चेहरे पर जमा दी. पर यह क्या, उन का मुखमंडल तो मानो जड़ हो गया.

‘‘भई, यह क्या किया आप ने. एक तो दरवाजा ही गलत दे दिया. आप के दोनों ओर दरवाजे का विकल्प था, पर आप ने दरवाजा दक्षिण में क्यों दिया, उत्तर में क्यों नहीं.’’

‘‘देखिए, उत्तर की ओर दुकानें बनी हुई हैं. वहां भीड़भाड़ अधिक रहती है. उधर दरवाजा खोलने पर शोरशराबा अधिक रहता है.’’

‘‘पर भई, यह तो गजब हो गया. यह नहीं चल सकता. आप को इधर दरवाजा तुड़वाना पड़ेगा और यह क्या, आप ने रसोई उधर रख दी. यह तो 3 कोण पर निर्मित है, इसे तो बदलवाना ही पड़ेगा. बेडरूम इधर शिफ्ट करना पड़ेगा.’’

मैं धम से जमीन पर बैठ गया. अगर इतनी तोड़फोड़ हुई तो 50 हजार रुपए बेकार हो जाएंगे और समय भी अधिक लग जाएगा. जैसेतैसे उन्हें निबटा कर घर आया तो पत्नी ने 5 हजार रुपए मांगे. मैं तो आसमान से जमीन पर आ गिरा.

‘‘5 हजार…’’ मेरे मुंह से निकला.

शर्माजी को कुछ अच्छा नहीं लगा.

‘‘देखिए, यह तो डिस्काउंट रेट है, वरना मैं 15 हजार से एक पैसा कम नहीं लेता.’’

क्या करता, बुझे मन से 5 हजार दिए. शर्माजी के विदा होते ही श्रीमतीजी मुझ पर चढ़ बैठीं, ‘‘क्या है… बिलकुल भी तमीज नहीं है. कितनी मुश्किल से तैयार किया था. छोटीमोटी जगह तो शर्माजी जाते ही नहीं हैं. कितने नेताअभिनेता उन की एक विजिट के लिए चक्कर लगाते रहते हैं.’’

पर बात केवल लड़ने तक ही सीमित रहती तो चल जाती. वह तो शर्माजी की कही हुई बातों पर अड़ गईं.

‘‘देखो, तुम मुझे मत टोको. शर्माजी बहुत पहुंचे हुए हैं. उन की सारी बातें बिलकुल सच निकलती हैं. गर हम ने नहीं मानीं, तो अनिष्ट ही हो जाएगा.’’

मैं ने श्रीमतीजी की बातों का बहुत विरोध किया. बहुत लड़ाझगड़ा भी पर अनिष्ट का भूत उन के दिमाग पर इस कदर सवार था कि वह मानी ही नहीं, फिर घर वाले भी उन के साथ हो लिए.

मकान में टूटफूट होती रही. मैं भारी मन से सब देखता रहा. देखतेदेखते बजट से 60 हजार रुपए और निकल गए. जब सारा काम पूरा हुआ तो मैं ने चैन की सांस ली कि चलो, इतने में ही निबटे. पर अभी थोड़े दिन ही निकले थे कि एक दिन मैं ने शर्माजी को फिर अपने घर में पाया. एक बार फिर वह सब के साथ मकान पर गए, मकान में 10 दोष गिना दिए. नतीजे में फिर टूटफूट हो गई और फिर हजारों रुपए का खर्चा हुआ और इन सब से बड़ी दुख की बात तो यह हुई कि 5 हजार रुपए फिर शर्माजी को देने पड़े.

यह प्रक्रिया यहीं रुक जाती तो ठीक था, पर अफसोस, ऐसा नहीं हो पाया. शर्माजी का अनवरत आनाजाना लगा रहा. मकान के निर्माण में कई तरह के दोष हो जाते, फिर टूटफूट हो जाती और शर्माजी की जेब में एक मोटी रकम चली जाती.

इन सब बातों का फर्क यही पड़ा कि एक दिन मकान का निर्माण कार्य ओवरबजट होने के कारण बंद हो गया. जितने भी लोन मैं ले सकता था, मैं ने ले लिए थे. अब कोई जगह बाकी नहीं रह गई थी.

मकान मालिक, जो मेरे जल्दी मकान खाली करने के वादे को पूरा होते देख खुश था, वह हकीकत जान कर नाराज रहने लगा.

लगातार होती टूटफूट ने मुझे कहीं का नहीं छोड़ा. जिस बजट में मकान पूरा हो सकता था वह बजट पहले ही पूरा हो गया. मैं श्रीमतीजी पर भी नाराज होता था लेकिन वह भी चुपचाप रह जाती थीं.

ऐसे ही एक रविवार को घर पर बैठे हुए थे कि शर्माजी घर आ गए. उन्हें देखते ही मेरा पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया, ‘‘शर्माजी, अब हमें किसी वास्तुशास्त्र की जरूरत नहीं है. वास्तु के चक्कर में पड़ कर मेरा तो मकान ही अधूरा रह गया.’’

शर्माजी हंसने लगे, ‘‘चिंता मत कीजिए, भाई साहब. मैं यहां वास्तुदोष बताने नहीं आया. मैं अपने गृहप्रवेश का न्योता देने आया हूं. शाम को पधारिएगा. खाना भी वहीं है,’’ कह कर वह चले गए.

मन तो नहीं था पर फिर शाम को यही सोच कर चले गए कि शाम को खाना तो नहीं बनाना पड़ेगा.

वहां जा कर देखा तो श्रीमतीजी की आंखें फटी की फटी रह गईं. शर्माजी ने बहुत भव्य मकान बनवाया था. पूरे मकान को देख कर यही लग रहा था कि उस में बहुत पैसा खर्च हुआ है.

श्रीमतीजी ने दबे स्वर में पूछ ही लिया, ‘‘शर्माजी, इस में तो बहुत खर्चा आया होगा.’’

शर्माजी हंसने लगे, ‘‘हां, बहनजी, प्लाट के अलावा 20 लाख रुपए खर्च हुए हैं. मेरी तो बिसात ही क्या थी, आप जैसे भक्त लोगों के सहयोग से यह कार्य पूरा हो पाया. हां, आप के मकान का काम कैसा चल रहा है. आप लोग कब शिफ्ट हो रहे हैं. मेरे लायक कोई सेवा हो तो बताइएगा.’’

उन की बात सुन कर पत्नी का चेहरा उतर गया, लेकिन फिर धीरेधीरे चेहरे की रंगत बढ़ी और फिर जो उस ने कहा, वह मेरे लिए अप्रत्याशित था.

‘‘हां, आप बिलकुल सही कह रहे हैं. हमारे जैसे बेवकूफों के सहयोग से ही यह कार्य संपन्न हुआ है. आप ने अंधविश्वास के जाल में फंसा कर हमारा घर तो बनने नहीं दिया, पर अपनी झोली भर कर अपना उल्लू सीधा कर लिया. सेवा बस इतनी सी है कि आप भूल कर भी हमारे घर की ओर रुख मत करिएगा. आज आप की बातों में नहीं आते तो हम अपने घर में रह रहे होते.’’

इतना कह कर श्रीमतीजी ने मेरी ओर देखा. मुझे भी लगा कि उन के कहने से मेरे दिल पर छाया एक बड़ा बोझ उतर गया था.

हम दोनों बाहर निकल आए. हालांकि मुझे इतना बड़ा नुकसान झेलना पड़ा था पर इस बात की खुशी थी कि अंतत: मेरी श्रीमतीजी इन सब चीजों से बाहर तो निकल आई थीं.

अपने दिल की सुनें और इस का खयाल कैसे रखें

इंसान के जिस्म में हृदय रोज 1,00,000 बार खून को पंप करता है. रक्त संचार प्रणाली के अभिन्न अंग के रूप में हृदय शरीर के हर अंग में खून के साथ औक्सीजन पहुंचाता है, जिस से टिश्यू व अंग जीवित रहते हैं. हृदय बीमार पड़ जाए, तो खून के संचार में बाधा आ जाती है. इस का तुरंत इलाज कराना आवश्यक हो जाता है.

दिल को जानें

हृदय मांस का बना एक छोटा सा अंग होता है, जो हमारी मुटठी के समान दिखता है. हृदय का वजन 300 से 450 ग्राम के बीच होता है.
यह छाती के मध्य थोड़ा सा बाईं ओर थोरैक्स के अंदर स्थित होता है. इस में 4 चैंबर होते हैं, जिन में निचले चैंबर को वेंट्रिकल्स और ऊपरी चैंबर को एट्रिया कहा जाता है. हृदय के 2 चैंबर्स को बांटने वाली मांसपेशी की दीवार को सेप्टम कहा जाता है.

हृदय के दाईं ओर का हिस्सा खून को शरीर से फेफड़ों में धकेलता है, वहीं बाईं ओर का हिस्सा फेफड़ों से खून को शरीर के अन्य अंगों में भेजता है. इस प्रकार हृदय का काम पूरे शरीर में रक्त का संचार बना कर रखना, अंगों तक पोषण और औक्सीजन पहुंचाना और टौक्सिन व कार्बन डाईऔक्साइड जैसे व्यर्थ पदार्थों को शरीर से बाहर निकालना होता है.

इस निरंतर चलने वाली प्रक्रिया में हृदय की पेशियां संकुचित होती हैं और फैलती हैं. पेशियों के संकुचन की प्रक्रिया सिस्टोल के दौरान और फैलने की प्रक्रिया डायस्टोल के दौरान होती है. सिस्टोल के दौरान वेंट्रिकल्स संकुचित हो कर कस जाते हैं और खून को आर्टरी में प्रवाहित करते हैं, बायां वेंट्रिकल खून को आयोर्टा में और दाहिना वेंट्रिकल फेफड़ों में धकेलता है. डायस्टोल के दौरान हृदय की पेशियां फैलती हैं, जिस से एट्रिया में खून भर जाता है और फिर वेंट्रिकल्स में प्रवाहित होता है.

दिल को को रखें स्वस्थ

दैनिक जीवन में निम्न मुख्य बिंदुओं का ध्यान रख कर हृदय को स्वस्थ रखें:

* स्वस्थ आहार: अपने दैनिक आहार में फलों और सब्जियों का भरपूर सेवन करें. फल, सब्जियों, साबुत अनाज, लीन प्रोटीन, स्वस्थ फैट, कुछ मछलियों, चिकन और बीन्स में पर्याप्त प्रोटीन मिलता है. अतिरिक्त शुगर, कोलैस्ट्रौल, ट्रांस फैट, सैचुरेटेड फैट्स, और सोडियम का सेवन कम करने से हृदय को स्वस्थ रखने में मदद मिलती है. आहार में रेड मीट की मात्रा कम करने से कोलैस्ट्रौल कम
होता है.

* नियमित व्यायाम: सप्ताह में कम से कम 150 मिनट तक हलके से गहरा व्यायाम करें, 75 मिनट कठोर व्यायाम करें या दोनों तरह के व्यायामों की दिनचर्या बनाएं. सप्ताह में कम से कम 2 बार स्ट्रेंथ ट्रेनिंग से मांसपेशियों के कार्य और मेटाबोलिज़्म में काफी सुधार होता है. हलके से व्यायाम, जैसे वौकिंग करने या सीढ़ियों का उपयोग करने से भी हृदय के स्वास्थ्य में सुधार आता है.

* धूम्रपान न करें: धूम्रपान हृदय रोग के मुख्य कारणों में से एक है. इस से हार्ट अटैक और स्ट्रोक का जोखिम काफी कम हो जाता है.

* तनाव को नियंत्रित रखें: योगा, ध्यान, प्राणायाम जैसी गतिविधियों द्वारा तनाव को नियंत्रित करें. समाज में सक्रिय रहने और लोगों से संबंध अच्छा रखने से तनाव कम करने में मदद मिलती है.

* नियमित स्वास्थ्य जांच: उच्च रक्तचाप चुपचाप शरीर को खोखला करता चला जाता है. इस की वजह से हृदयरोग पनपते हैं. इसलिए नियमित जांच की मदद से रक्तचाप को नियंत्रण में रखें. ज्यादा कोलैस्ट्रौल से रक्तवाहिनियों में प्लौक जम जाता है, जिस की वजह से हार्टअटैक या स्ट्रोक हो सकता है. अगर मरीज को डायबिटीज है, तो हृदय को स्वस्थ रखने के लिए शुगर को नियंत्रित रखना बहुत आवश्यक होता है.

हृदय को किस से जोखिम होता है

कार्डियोवैस्कुलर बीमारियों या समस्याओं का जोखिम कई कारणों से बढ़ जाता है. उच्च रक्तचाप, उच्च कोलैस्ट्रौल, धूम्रपान, मोटापा, और शिथिल जीवनशैली समय के साथ हृदय और रक्तवाहिनियों को कमजोर करते चले जाते हैं.

हृदय के अस्वस्थ होने से गंभीर विकार और जान का खतरा उत्पन्न हो सकते हैं. इन में से सब से आम कोरोनरी आर्टरी डिजीज (सीएडी) है, जिस में कोरोनरी आर्टरीज में प्लौक जम जाता है, और वह आंशिक या पूरी तरह से ब्लौक हो जाती हैं. प्लौक जमने के कारण सांस फूलने लगती है, छाती में दर्द होने लगता है. अगर इस का तुरंत इलाज न किया जाए, तो हार्टअटैक हो सकता है.

खराब जीवनशैली, जैसे अस्वस्थ आहार, अत्यधिक मदिरासेवन से हृदय रोग का जोखिम बढ़ता है. अगर व्यक्ति को डायबिटीज, तनाव, और परिवार में हृदयरोग का इतिहास रहा हो, तो यह जोखिम बढ़ जाता है.

पुरुषों को हृदयरोग कम उम्र में होने का जोखिम ज्यादा होता है. अगर इन बातों का ध्यान रखा जाए और जीवनशैली में सुधार कर के दवाइयों की मदद ली जाए, तो हृदय को लंबे समय तक स्वस्थ रखा जा सकता है.

डाक्टर को दिखाएं

गंभीर स्थितियों में तुरंत डाक्टर को दिखाना आवश्यक होता है:

* हार्टअटैक: हार्टअटैक तब हो सकता है जब कोरोनरी आर्टरी या इस की कोई छोटी रक्तनलिका में प्लौक जम कर यह अवरुद्ध हो जाती है. इस की वजह से हृदय की मांसपेशियों में खून की सप्लाई रुक जाती है और वे क्षतिग्रस्त हो जाती हैं. यह स्थिति जानलेवा होती है.

* हार्टफेल: हार्ट के फेल होने पर हार्ट शरीर में पर्याप्त खून को पंप नहीं कर पाता है. इस से फेफड़ों और लिवर में फ्लूइड जमा हो जाता है. इस स्थिति को एडेमा कहते हैं. हार्टफेल होने पर मरीजों को अनेक लक्षण महसूस होते हैं, जिन में सांस का फूलना, थकान और हाथों व पैरों में सूजन है. हृदय के इलैक्ट्रिक सिस्टम में गड़बड़ी के कारण भी हृदय असामान्य रूप से धड़कने लगता है, इस स्थिति को एरिथमिया कहते हैं. यह अकसर कोरोनरी आर्टरी डिजीज?, हार्टअटैक या हृदय की किसी अन्य बीमारी के कारण हो सकता है. कुछ एरिथमिया नुकसान नहीं पहुंचाते हैं पर कुछ जानलेवा हो सकते हैं.

* स्ट्रोक: स्ट्रोक होने पर मस्तिष्क के किसी हिस्से में खून की आपूर्ति थक्का जमने के कारण रुक जाती है, जिस की वजह से टिश्यू तक औक्सीजन और पोषक तत्त्व नहीं पहुंच पाते हैं. इस की वजह से मस्तिष्क के टिश्यू को स्थायी क्षति पहुंच सकती है और मरीज को विकलांगता या मृत्यु हो सकती है. इस के मुख्य कारणों में उच्च रक्तचाप और कार्डियोवैस्कुलर आर्टरी डिजीज होती हैं.
कार्डियोवैस्कुलर आर्टरी डिजीज की तरह ही एक पेरिफेरल आर्टरी डिजीज भी होती है, जो अंगों को खून पहुंचाने वाली आर्टरी को प्रभावित करती है. इस की वजह से दर्द, सुन्नपन या गंभीर मामलों में संक्रमण का जोखिम हो सकता है.

* कार्डियेक अरेस्ट: इस स्थिति में हृदय अचानक काम करना बंद कर देता है और मरीज की सांस एवं चेतना चली जाती है. यह आमतौर से गंभीर एरिथमिया की वजह से होता है. इस स्थिति में मरीज अगर तुरंत हौस्पिटल न पहुंचे तो उस की मौत हो सकती है. इन बीमारियों से बचे रहने के लिए हृदय का खयाल रख कर समस्याओं की रोकथाम करना बहुत आवश्यक है.

हृदय एक महत्त्वपूर्ण अंग है, जिस की बहुत सतर्कता से खयाल रखने की आवश्यकता है. हृदय की संरचना और क्रियाओं को समझ कर और हृदय के लिए लाभकारी गतिविधियों की मदद से हृदय रोग के जोखिम को काफी कम किया जा सकता है. यदि फिर भी किसी को सांस लेने में मुश्किल, छाती में दर्द या बेचैनी महसूस हो, तो उसे फौरन कार्डियोलौजिस्ट के पास जा कर अपने हृदय की जांच करानी चाहिए क्योंकि शुरुआती लक्षणों को नजरअंदाज करने से स्थिति गंभीर हो सकती है और मरीज की जान भी जा सकती है.

(लेखक मणिपाल इंस्टिट्यूट औफ कार्डियक साइंसेज, एचसीएमसीटी मणिपाल अस्पताल, द्वारका, दिल्ली में चेयरमैन हैं.)

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