पुराने समय से लोग कुंडली ही मिलाते आए हैं शादी के लिए. लेकिन कुंडली से ज्यादा जरूरी है विचार मिलना और वैचारिक स्तर पर दोनों (लड़का लड़की) में ट्यूनिंग होना, तभी शादियां सफल हो सकती हैं. रही बात रुपएपैसे की, आर्थिक संपन्नता की, तो मेरा विचार है, पैसा सबकुछ नहीं होता है, बहुतकुछ हो सकता है लेकिन सबकुछ नहीं. रुपयों का पहाड़ हो घर में और रिश्तों में धोखा हो, मनमरजी हो, कपट हो तो ऐसे रिश्ते सिर्फ ढोए जा सकते हैं, निभाए नहीं. हमारे देश की कानून व्यवस्था लचर है, तलाक लेना भी चाहें तो बरसोंबरस लग जाते हैं.
आसानी से तलाक नहीं मिलता. जरूरत है कानून व्यवस्था भी सुधारी जाए. जहां रिश्ते बोझ बनने लगे वहां तलाक आसानी से मिले.
साथियो, कोई पति, पत्नी नहीं चाहते रिश्तों को खत्म करना लेकिन जब रिश्तों में दम घुटने लगे, व्यक्ति सांस भी न ले पाए तो तलाक बेहतर होगा.
चूंकि तलाक की प्रक्रिया बहुत ही जटिल और लंबी होती है, इसलिए वर्तमान पीढ़ी ने ‘लिवइन’ का जो रास्ता चुना है उस का मैं समर्थन करती हूं. लेकिन सोचसमझकर इस रिश्ते को चुनें, जिस से कि आप सुरक्षित रह सकें और जीवन अच्छे से बिता सकें. धन्यवाद. और मंजरी मंच से नीचे उतर गई.
तालियों का शोर, वाओ.
डिबेट कंपीटिशन में मंजरी विजेता घोषित कर दी गई. कालेज के डिबेट कंपीटिशन का विषय था, ‘लिवइन रिलेशनशिप समाज व संस्कृति के लिए घातक है.’ इस के पक्ष में मंजरी का भाषण था.
विपक्ष में जिसे विजेता घोषित किया गया था वह था मानस, जिस ने संस्कृति और समाज पर लिवइन के नुकसान बताए थे. इस से हमारे समाज पर बुरा प्रभाव पड़ेगा. समाज में स्वच्छंदता का वातावरण होगा, बच्चे अपनी संस्कृति को भूलेंगे, समाज का पतन होगा.
मंजरी के लिए प्रथम आना बड़ी बात नहीं थी. उस की स्पीच, तर्क, बोलने का ढंग इतना शानदार होता था कि कालेज के स्टूडैंट मंत्रमुग्ध हो कर सुनते थे. यों कहें तो वह कालेज की हीरोइन थी. मंजरी बीए औनर्स की सैकंड ईयर की स्टूडैंट थी. मानस सांइस का स्टूडैंट था. मानस और मंजरी का कोई तालमेल नहीं था. दोनों के विचार विपरीत थे.
मंजरी को बधाई देने वालों की भीड़ सी लग गई थी. शायद इसी बहाने से मंजरी से फ्रैंडशिप हो जाए. बधाई देने वालों की भीड़ जब छंटी तो मानस सामने था. उस ने भी हाथ बढ़ाया.
“थैंक्यू मानस,” कहती हुई मंजरी आगे निकलने लगी.
“मंजरी, क्या हम कौफी पी सकते हैं कालेज की कैंटीन में?” मानस ने पूछा.
“क्यो नहीं, श्योर,” मंजरी बोली. उस ने सोचा पहली बार मानस ने कहा है. कालेज आतेजाते, कालेज के गार्डन मे अनेक बार टकराए हैं लेकिन हैलोहाय से ज्यादा कभी बात नहीं की.
मंजरी अपनी फ्रैंड्स के साथ रहती थी. मानस भी अपने फ्रैंड्स के साथ.
डिबेट कंपीटिशन संडे को रखा गया था लेकिन कैंटीन खुली थी. पूरा कालेज रेशमी एहसास से भरा था. हंसतीखिलखिलाती लड़कियांलड़के, दूसरे कालेजों के स्टूडेंट भी थे जो डिबेट कंपीटिशन को सुनने आए थे.
सब्जैक्ट ने सब को अपनी ओर खींचा था- ‘लिवइन…’ ने. कैंटीन में खासी भीड़ थी.
सभी लिवइन पर ही चर्चा कर रहे थे. मंजरी को जैसे ही देखा, कुछ स्टूडैंट मंजरी को घेर कर खड़े हो गए.
“क्यों मंजरी, तुम लिवइन के फेवर में हो तो शादी करोगी या फिर किसी के साथ लिवइन में रहने का मूड बना रखा है?” और जोरदार ठहाकाहंसी की आवाजें.
“वैसे, मंजरी बहुत सुंदर बोलती हो,” एक स्टूडैंट बोली.
“अब कौफी पी लें, इस टौपिक पर फिर कभी बात कर लेंगे,” मंजरी बोली और मानस के साथ कूपन काउंटर की ओर बढ़ गई.
मानस कौफी के साथ सैंडविच भी लाया था. कौफी की भाप दोनों के बीच चिलमन का काम कर रही थी. दोनों आज पहली बार इतनी करीब से एकदूसरे को देख रहे थे.
उन्नीस वर्षीय मंजरी को गोरा नहीं कहा जा सकता था, उसे बादामी रंगत वाला कह सकते हैं. ऊंचा कद, बादामी रंगत, खुले बाल, जींस पर कमर तक टौप और हंसते समय दोनों गालों पर पड़ने वाले डिम्पल उस की सुंदरता में जादू जगाते थे. बस, उस दिन से मानस गालों के इन डिंपलों में उलझने लगा था. उस को दिल पहली बार धड़कता हुआ महसूस होने लगा था. लड़कियों के बीच मानस असहज नहीं होता था पर आज उस को कंफर्टेबल फील नहीं कर पा रहा था-
मंजरी की हंसी, बालों का रेश्मीपन, दांए हाथ में पहना गोल्ड ब्रेसलेट जिसे मंजरी रहरह कर छू रही थी.
मानस को कोई टौपिक नहीं सूझ रहा था, मंजरी से क्या बात करे. तभी उसे ब्रेसलेट दिख गया. उस ने पूछा, “मंजरी, ब्रेसलेट बहुत प्यारा है, कहां से खरीदा है? देख सकता हूं?”
“क्यों नहीं. देखो,” कहते हुए मंजरी ने ब्रेसलेट हाथ से उतार कर मानस के हाथ में दे दिया.
मानस बड़ी देर तक उस की डिजायन, खूबसूरती को देखता रहा. फिर जैसे ही ब्रेसलेट देने के लिए उस ने हाथ आगे बढ़ाया, मंजरी ने हाथ आगे कर दिया.
मानस ने मंजरी की कलाई में ब्रेसलेट पहना दिया. उस की उंगलियां मंजरी की कलई को स्पर्श कर गईं. एक रेशमी छुअन का एहसास.
कौफी खत्म हो रही थी.
“मानस चलें, लेट हो रहा है,” कहती हुई मंजरी उठ खड़ी हुई.
“चलो पार्किंग तक साथ चलते हैं,” मानस बोला.
“चलो,” मंजरी बोली.
कैंटीन से पार्किंग तक का रास्ता खामोशी से निकला. मंजरी ने अपनी एक्टिवा निकाली. मानस ने अपनी कार.
कार स्टार्ट करतेकरते मानसम बोला, “बाय मंजरी, कल मिलते हैं.”
“बाय मानस,” कहते हुए मंजरी ने एक्टिवा स्टार्ट कर दी थी.
मंजरी का घर जौनपुर की एक पौश कालोनी में था. मंजरी एक उच्चमध्यवर्गीय परिवार की लड़की थी. पिता डाक्टर थे. मां एक सच्ची, सफल गृहिणी थी. परिवार में मंजरी के अलावा 2 भाई थे- एक की शादी हो चुकी थी, वह दुबई में रहता था. एक भाई 12वीं में था. मंजरी का परिवार खुले माहौल का पक्षधर था.
डा. विश्वास खुल कर बात करने में विश्वास रखते थे. परिवार किसी भी प्रकार के अंधविश्वास और रूढ़ियों से दूर रहता था. मंजरी को भी यह सजगता, साहस अपने परिवार से मिला था.
जब मंजरी अपनी ट्रौफी, मैडल लिए घर पहुंची तो भाई अतुल इंतजार कर रहा था.
“अरे वाह, मंजरी, आज तो पार्टी पक्की रही,” अतुल ने जल्दी से ट्रौफी-मैडल हाथ में लिया और उस के साथ सैल्फी लेने लगा.
मंजरी हंसती हुई अपने रूम में गई. कपड़े चेंज कर के आ गई. मां ने नाश्ता तैयार कर लिया था.
“मम्मी, नाश्ता नहीं करूंगी, मानस के साथ कैंटीन में कौफी और सैंडविंच खा लिया था.”
“मानस तेरी क्लास में है?” मां ने सवाल किया.
“नहीं, मम्मी, वो बधाई देने वालों में था. मानस साइंस का स्टूडैंट है.”
“मंजर, आज तुम कंपीटिशन में जीती हो, आज तो डिनर बाहर बनता है,” अतुल बोला,
“हां, क्यों नहीं, पहले पापा को आने दे फिर,” कह कर मंजरी आज वाले पिक्स सोशल मीडिया पर पोस्ट करने लगी. देखतेदेखते लाइक्स, कमैंटस आने चालू हो गए.
डा. विश्वास किसी पेशेंट को देखने गए थे, इसलिए उन को फोन करना भी उचित नहीं था. लगभग घंटेभर बाद डा. विश्वास आ गए थे. सब से पहले मंजरी को ढेर सारी बधाई दीं. “यों ही आगे बढ़ती रहो, विजेता बनती रहो.”
मंजरी पापा के लाड़ मे इतराते हुए बोली, “पापा, डिनर बाहर करेंगे.”
“बस, इतनी सी बात, जरूर करेंगे. ठीक है,” कह कर डा. विश्वास वापस क्लिनिक में चले गए. घर के ठीक बाहर क्लीनिक था. कोई पेशेंट घर बुलाता था, तो वहां भी जाते थे.
जब रात के लगभग साढ़े 9 बजे डा. विश्वास पेशेंट से फ्री हो कर घर के अंदर आए तो डिनर के लिए सभी तैयार थे.
“पापा, जल्दी से चेंज कर लीजिए,” मंजरी बोली.
“बस, दस मिनट में रेडी हो कर आता हूं.” कुछ ही देर में डा. विश्वास तैयार हो कर घर से निकल गए.
जौनपुर का वह प्रसिद्द होटल सुपर सत्यम रैस्टोरैंट था.
कार पार्किंग में रोक कर जब सब वहां पहुंचे तो मंजरी बहुत खुश थी. रहरह कर उस की आंखों के सामने मानस का चेहरा घूम जाता था. उस के हाथों की छुअन उसे याद आ रही थी.
सब जा कर टेबल पर जम गए. मंजरी को यह होटल और यहां का डिनर पसंद था.
पानी की बोतलें रखने के बाद वेटर मीनू रख गया था. रैस्टोरैंट की खूबसूरती देखते बनती थी.
मंजरी मीनू देखने में व्यस्त थी.
“अरे, मंजरी, आज का दिन बहुत लकी है. आप से दोबारा मुलाकात होगी, सोचा भी न था.”
मंजरी ने नजर उठाई, तो सामने मानस खड़ा था.
“अरे, मानस, तुम भी यहां,” मंजरी बोली.
डा. विश्वास दोनों को देख रहे थे, बोले, “मंजरी, तुम जानती हो इन्हें?”
“हां पापा, यह मानस है, मेरे कालेज में साइंस का स्टुडैंट है.”
“अरे वाह, यह तो अच्छी बात है,” डा. विश्वास बोले.
“नमस्ते अंकलजी,” कहते हुए मानस ने डा. विश्वास के पैर छू लिए.
“जीते रहो बेटा, जीते रहो,” विश्वास खुश हो गए, “ऐसे अच्छे संस्कार, कैसे आए? दोस्तों के साथ?” डा. विश्वास ने सवाल किया.
“मम्मीपापा के साथ, छोटी सिस्टर भी साथ है,” मानस बोला.
“बेटा, तुम्हें दिक्कत न हो, साथ में डिनर कर लें,” डा. विश्वास बेटी मंजरी के चेहरे पे छाई खुशी की लालिमा को महसूस कर रहे थे.
उन की बातचीत होते देख कर मानस के मम्मीपापा भी नजदीक आ गए थे. दोनों परिवारों का आपस में परिचय हुआ.
मानस का परिवार भी संपन्न था. शहर में कई शोरूम थे और प्रौपर्टी का भी बिजनैस था. मानस की छोटी बहन हिमानी 10वीं की स्टूडैंट थी. खूब सैल्फियों का दौर चला.
डिनर भी सब की मिलीजुली पसंद का मंगवाया गया- सब्जी, कोरमा, मशरूम, मसाला, मखनी पनीर, बिरियानी, स्टफ्ड नौन, मिक्स वैजिटेबल सलाद.
मानस के परिवार को मंजरी का परिवार पसंद आया था. इस मुलाकात के बाद मानस मंजरी की बातें बढ़ने लगीं, बाहर मुलाकातें भी होने लगीं.
जौनपुर के किले की कभी सैर की जाती, तो कभी कौफीहाउस के गुलाबी अंधेरे भले लगते. कभी कोई मूवी देखने जाते तो कभी फ्लौवर एक्जीबिशन में.
कालेज में भी ढेरो बातें होतीं. घंटों साथ रहना और कभी घंटों साथ रहते तो भी कोई बात न होती, सिर्फ खामोशी पसरी रहती दोनों के बीच. न जाने कौन सी भाषा होती जिस से बातें होतीं दोनों की खामोशी से. तभी किसी ने कहा है, शायद, मोहब्बत की जबां नहीं होती.
मानस एक दिन बोला, “मंजरी, तुम स्टेज पर कितना अच्छा बोलती हो, हर विषय पर कितनी पकड़ है तुम्हारी लेकिन मुझ से तुम ज्यादा बात नहीं करती हो. बस, जी अच्छा, हां या न के अलावा कुछ नहीं बोलती हो.”
“अच्छा,” मंजरी मुसकरा कर बोली.
“मैं परेशान हो उठता हूं तुम्हारी खामोशी से,” मानस बोला.
मंजरी खिलखिला कर हंस दी. मानस देखता रह गया उस की हंसी को जैसे छोटेछोटे घुंघरू बज उठे हों. वह देखता रहा एकटक.
“क्या देख रहे हो?” मंजरी ने मानस का हाथ अपने हाथ में लिया.
मानस के पूरे शरीर मे बिजली दौड़ गई. उस ने मंजरी के हाथ को पकड़ कर उस पर अपनी प्रेममोहर लगा दी. फिर अचानक से हाथ छोड़ दिया कहीं कोई देख तो नहीं रहा.
ऐसे ही खुशबूभरे दिन उड़ते रहे. कहते हैं सुख के दिन पंख लगा कर आते हैं, जल्दी ही उड़ भी जाते हैं जबकि दुख की एक रात भी बहुत लंबी होती है.
मानस को पढाई सिर्फ डिग्री के लिए करनी थी. वह जानता था कि उस के पापा के साथ उसे बिजनैस ही देखना था. यों भी, वह नौकरी के पक्ष में बिलकुल नहीं था. एक बंधीबंधाई रकम के बजाय उसे तो रुपयों का ढेर पंसद था, जो उस के पास था ही, इसलिए उसे इस की ज्यादा परवा नहीं थी. उस की दौलत से प्रभावित कई युवतियां मानस के करीब जाने की कोशिश कर चुकी थीं. पर मानस मंजरी के गालों के भंवर में डूब चुका था. मानस को दौलत का नशा भी था. उसे लगता था, उसूल,चरित्र, सत्य नैतिकता, आदर्श, सिद्धांत सब किताबी बाते हैं.
मंजरी को पढ़ने में रुचि थी. वह प्रोफैसर बनना चाहती थी. इस के लिए उस ने मानस को बताया हुआ भी था. मानस को यह विश्वास था, मंजरी जब उस से शादी करेगी, प्रोफैसर बनना, पढ़नालिखना सब भूल जाएगी.
हुआ भी वही जो मानस ने सोचा था. कालेज में मंजरी का अंतिम वर्ष था. दोनों का मिलनाजुलना, प्रेम पूरे कालेज में फेमस हो गया था. सब को पता था दोनों ही संपन्न परिवार के हैं. कोई अड़चन नहीं आएगी. ऐसा ही हो भी गया. मंजरी का रिजल्ट आने से पहले ही मानस अपनी मम्मीपापा को ले कर मंजरी के घर पहुंच गया.
डा. विश्वास की विशाल कोठी, अंदर से उस की भव्यता देख मानस की मां बड़ी खुश हुई.
चाय, कौफी के साथ भुने काज़ुओं, गरम पकौड़ों के साथ चर्चा शुरु हुई. डा. विश्वास ने कहा, “मंजरी को तो प्रोफैसर बनना है. यह मंजरी का सपना है. बाकी का डिसीजन तो मंजरी को लेना है.”
“डा. साहब, पढ़ाई तो वहां भी कर सकती है, प्रोफैसर ही तो बनना है. आप तो मंजरी को हमें दे दो. दोनों बच्चे एकदूसरे को पसंद भी करते हैं.”
“मंजरी बेटे,” डा. विश्वास ने पुकारा.
मंजरी वहां नहीं थी. घर के गार्डन में मंजरी मानस के साथ गुलाबों को निहार रही थी. दोनों साथ ही अंदर पहुंचे.
“मंजरी बेटा, तुम्हारा क्या फैसला है शादी का?” डा. विश्वास ने पूछा.
मंजरी शरमा कर पापा के गले लग गई.
डा. विश्वास को जवाब मिल गया था.
दोनों परिवारों ने शादी की तैयारियां शुरू कर दी थीं. मानस के परिवार को यकीन था, ढेर सारा दहेज मिलेगा, डाक्टर की लड़की है.
रिसैप्शन में शहर के जानेमाने डाक्टर और धनी लोग थे. भव्य फाइवस्टार होटल ‘प्लाज़ा’ में रिसैप्शन था. डा. विश्वास ने दहेज के नाम पर कुछ भी नहीं दिया था. मंजरी का परिवार इन बातों के खिलाफ़ था.
शादी के कुछ दिनों बाद ही मानस, मंजरी सिंगापुर चले जाते हैं. जौनपुर से वाराणसी टैक्सी से, फिर वाराणसी से सिंगापुर फ्लाइट से.
हनीमून के समय ही मंजरी को यह भी मालूम पड़ा कि मानस की बहुत सी महिला मित्र हैं. लेकिन आज के युग मैं यह सब सामान्य था. मंजरी के भी कई लड़के मित्र कभीकभी हालचाल ले लिया करते थे. शादी में मंजरी व मानस के लगभग सभी फ्रैंड्स आए थे. लड़कियों को तो मंजरी से जलन भी थी. शानदार जोड़ी की सभी ने तारीफ की थी.
हनीमून की खुमारी में दोनों ही एकदूसरे में डूबे हुए थे. मानस के मोबाइल में मधुर आवाज ने दोनों को खुमारी से जगा दिया. मानस ने देखा, मां की कौल थी.
“हां मां,” मानस ने मंजरी के बालों को सहलाते हुए कहा.
“बेटा, वापसी कब की है? करवाचौथ आ रहा है, बहू का पहला करवाचौथ है. व्रत करना है,” मां बोली.
“मां कब करवाचौथ है?” मानस ने पूछा.
“बेटा, 25 अक्टूबर को है,: मां बोली.
“23 की फ्लाइट है, हम 24 तक पहुंच जाएंगे,” मानस बोला.
मंजरी चुपचाप सुन रही थी.
“जानू, मां को करवाचौथ की चिंता लगी हुई है,” मानस बोला. मंजरी फिलहाल बहस नहीं करना चाहती थी, चुप रही.
वे दोनों जब घर पहुंचे तो देखा, बहुत जी महिलाएं आई हुई हैं. ब्यूटीपार्लर वाली भी आई हुई है अपनी 2 असिस्टैंट के साथ. मेहंदी लगाई जा रही है, कपड़े, ज्वैलरी की चर्चा चल रही है.
“बहू, मेहंदी वाली शाम तक यहीं है. तुम आराम कर लो, शाम को मेहंदी लगवा लेना.”
“मां, मुझे यह पसंद नहीं है,” मंजरी सीधी भाषा में प्यार से बोली.
“बेटा, कल पहला करवाचौथ है तुम्हारा, कैसी बातें करती हो?” मानस की मां आश्चर्य से बोली. बाकी सब महिलाएं देखने लगीं.
“मां, तुम मेहंदी लगाओ, मैं बाद में बात करूंगा,” कह कर मानस मंजरी को अपने कमरे में ले कर आ गया.
मानस ने कहा फ्रैश हो जाओ, रैस्ट करो,” कह कर खुद भी फ्रैश होने चला गया.
मंजरी खुश हो गई कि मानस समझता है. मंजरी फ्रैश होने के बाद कपड़े चेंज कर कौफी पी कर सो गई.
शाम होने पर दोनों उठे. मानस बोला, “मंजरी, जाओ मेहंदी लगवा लो. अब तो थकान भी दूर हो गई होगी.”
“क्या?” मंजरी ने आश्चर्य से कहा.
“कल करवाचौथ की तैयारी नहीं करोगी, मेरे लिए व्रत नहीं रखोगी?” मानस उसे गले लगा कर बोला,
“अरे नहीं, मैं ये बेसिरपैर के व्रत पसंद नहीं करती,” मंजूरी ने अपने से उसे दूर करते हुए कहा.
“बेसिरपैर, मतलब? यह व्रत मेरे जीवन से जुड़ा है,” मानस बोला.
“देखो मानस, व्रत रखा जाए तो दिल से रखा जाए, जहां व्रत में श्रद्धाविश्वास हो वही व्रत रखना चाहिए. मेरा विश्वास नहीं है व्रत में,” मंजरी ने एक बार दोबारा कोशिश की.
“मैं कुछ नहीं जानता, तुम को व्रत रखना चाहिए बस,” इतना कह कर वह गुस्से में दरवाज़े से बाहर चला गया.
मंजरी चुपचाप बैठी रही अपने कमरे में.
बहुत देर तक मंजरी बाहर नहीं आई, तो उस की सास और रिश्ते की कुछ महिलाएं मंजरी के पास उस के कमरे में गईं.
“मंजरी बेटे, मेहंदी लगवा लो. सभी ने लगा ली है, तुम ही रह गई हो,” एक महिला बोली.
“मुझे मेहंदी लगवाने में कोई दिक्कत नहीं. लेकिन में व्रत नहीं रखूंगी,”
मंजरी साफ शब्दों में बोली.
“प्रौब्लम क्या है, मंजरी?” मानस अंदर आतेआते बोला.
“एक के व्रत रखने से दूसरे की उम्र नहीं बढ़ती. यह कथा तथ्यहीन है, कहीं सत्यवती नाम है, कहीं करवा बताया गया है? तीसरी बात, पति की डैडबौडी पत्नी ने सालभर सुरक्षित रखी, सालभर बाद व्रत रखने से पति जीवित हो गया. इस पर तुम को कैसे यकीन होता है? मानस, तुम तो एजुकेटेड हो,” मंजरी ने पूछा.
“देखो, मैं नहीं जानता ये सब, व्रत तो तुम्हें करना पड़ेगा वरना मुश्किल है तुम्हारीहमारी निभनी.”
“मुझे कोई दिक्कत नहीं, लेकिन इन ढकोसलों में विश्वास नहीं है मेरा,” मंजरी बोली.
“तो क्या मुझ से प्रेम नहीं करतीं?” मानस बोला.
“प्रेम अपनी जगह है,” मंजरी बोली.
“अगर प्रेम करती हो तो प्रेम की खातिर व्रत भी करो, समझीं,”
मानस बोला.
“मानस, मुझे भेड़चाल में चलना पसंद नहीं.”
“देखो, फिर करवाचौथ तुम अपने घर में मना लो इस बार. करवाचौथ के बाद वापस ससुराल आ जाना,” मानस ने फैसला सुनाते हुए कहा. साथ ही, उस ने मंजरी के पापा को फोन कर दिया. फिर घर से बाहर निकल गया.
मंजरी के पापा डा. विश्वास ने आ कर समस्या सुनी. उन्होंने मंजरी की सास से कहा, “हम किस युग में हैं, यह तो देखिए.”
“युग बदलने से क्या संस्कार-रीतिरिवाज बदल दें, समधीजी? कैसी बात करते हो आप?”
“लेकिन आप सोचिए, क्या यह संभव है? कब तक ढोते रहेंगे हम सड़ेगले रिवाजों को?” डा. विश्वास बोले.
“समधीजी, आप भी महिलाओं के मामले में उलझ गए,” अपने कमरे से मंजरी के ससुर आतेआते बोले.”
“सवाल महिलाओं के मामले का नहीं है, समधी जी, सवाल विश्वास और श्रद्धा का है. अगर मंजरी को इस पर भरोसा नहीं तो प्रैशर क्यों बनाया जाए?” डा. विश्वास बोले.
“समधीजी, सावित्री सत्यवान के प्राण यमराज से वापस ले आई थी. सत्यवती ने पति को सालभर बाद जीवित कर दिया, यह क्या गलत है? हम अपनी संस्कृति भूल जाएं?
“फिर आप खुद सोचिए, मंजरी और मानस हनीमून से अभी वापस लौटे हैं, महीनाभर भी नहीं हुआ शादी को, समाज क्या कहेगा?” मंजरी की सास बोली.
“मानस कहा है? मंजरी उन्हें बुलाओ”, डा. विश्वास बोले.
“पापा, वे गुस्से में बाहर निकल गए आप को फोन कर के,” मंजरी बोली.
“समधीजी, मानस गुस्से में बाहर चला गया है, मूड सही होगा तो आएगा. कुछ दिनों के लिए मंजरी को ले जाइए,” ससुर बोले.
“ले जाने से पहले एक बार जरूर सोचिए, मंजरी को दाग लग गया है शादीशुदा होने का. घर ले जाने से बदनामी होगी आप की,” सास बोली.
“शरीर के 2 इंच हिस्से से पवित्रअपवित्र कुछ नहीं होता. आप की सोच है, मेरी नहीं,” डा. विश्वास बोले.
“एक बार फिर सोचिए, पति को खुश करने के लिए व्रत रख भी लिया तो क्या हुआ?” ससुर बोले.
“आगे भी सालभर ये सब चलता रहेगा, क्या गलत बोल रहा हूं मैं?” डा. विश्वास ने पूछा, हमारे संस्कार हैं, सालभर व्रतत्योहार चलते भी हैं तो बुरा क्या है?” ससुर बोले.
“ठीक है. मंजरी, अब तुम ही बोलो, क्या फैसला है तुम्हारा,” डा. विश्वास ने मंजरी को देखा.
“पापा, मैं सत्यवती नहीं बनूंगी.”
मंजरी ने पापा का हाथ पकड़ा और घर के बाहर आ गई.