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Best Short Story : क्लेम – परमानंद को क्या मिल पाया अपना क्लेम

Best Short Story : जब आंखें खुलीं, तो परमानंद ने देखा कि दिन निकल आया था. रात को सोते समय उस ने सोचा था कि सुबह वह जल्दी उठेगा. आटोरिकशा वालों की हड़ताल थी, वरना कुछ कमाई हो जाती. वैसे, आज के समय तांगा कौन लेता है? सभी तेज भागने वाली सवारी लेना चाहते हैं. आटोरिकशा वालों की हड़ताल से कुछ उम्मीद बंधी थी, पर सिर भारी हो रहा था. बुखार सा लग रहा था. इच्छा हुई, आराम कर ले, पर कमाएगा नहीं तो खाएगा क्या? और उस का रुस्तम? उस का क्या होगा?

परमानंद जल्दी से उठा और रुस्तम को चारापानी डाल कर तैयार होने के लिए चल दिया. जल्दीजल्दी सबकुछ निबटा कर उस ने तांगा तैयार किया और सड़क पर जा पहुंचा.

जल्दी ही सवारी भी मिल गई. 2 लोगों ने हाथ दिखा कर उसे रोका. उन में एक अधेड़ था और दूसरा नौजवान.

‘‘कलक्ट्रेट चलना है?’’ अधेड़ आदमी ने पूछा.

‘‘जी, चलेंगे,’’ परमानंद बोला.

‘‘क्या लोगे? पहले तय कर लो, नहीं तो बाद में झंझट करोगे,’’ नौजवान ने कहा.

‘‘आप ही मुनासिब समझ कर दे दीजिएगा. झंझट किस बात का?’’

‘‘नहींनहीं, पहले तय हो जाना चाहिए. हम 30 रुपए देंगे. चलना है तो बोलो, नहीं तो हम दूसरी सवारी देखते हैं.’’

‘‘ठीक है साहब,’’ परमानंद बोला.

‘‘और देखो, कलक्ट्रेट के भीतर पहुंचाना होगा. बीच में ही मत छोड़ देना.’’

‘‘गांधी मैदान का भाड़ा ही 30 रुपए होता है. भीतर अंदर तक तो 50 रुपए होगा.’’

‘‘देखो, हम ने जो कह दिया, सो कह दिया. चलना है तो चलो,’’ नौजवान की आवाज सख्त थी.

परमानंद इनकार करने ही जा रहा था कि बुजुर्ग ने तांगे पर चढ़ते हुए कहा, ‘‘चलो, तुम 40 रुपए ले लेना. हम भी तो परेशानी में पड़े हैं.’’

अब परमानंद इनकार न कर सका. उस के सिर का दर्द बढ़ता जा रहा था और वह तकरार के मूड में नहीं था.

‘‘ठीक है, 40 रुपए ही सही,’’ परमानंद ने धीरे से कहा.

तांगा सड़क पर सरपट दौड़ने लगा. आटोरिकशा वालों की हड़ताल से सड़क खाली सी थी. रुस्तम भी रात के आराम से तरोताजा हो कर तेजी से दौड़ रहा था.

दोनों सवारी आपस में बातें कर रहे थे. पता चला, वे एक परिवार के नहीं हैं, बल्कि अलगअलग परिवारों से हैं. शायद दूर का रिश्ता हो. दोनों बाढ़ के नुकसान के अनुदान के सिलसिले में कलक्टर साहब के दफ्तर जा रहे थे.

थोड़ा आगे जाने पर सड़क की दूसरी ओर एक गिरजाघर दिखाई पड़ा. परमानंद ने देखा कि अंधेड़ ने बड़ी श्रद्धा और भक्ति से सिर झुकाया.

नौजवान ने हैरानी से पूछा, ‘‘आप ईसाई गिरजाघर को प्रणाम करते हैं?’’

अधेड़ ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘पता नहीं, किस देवी या देवता का आशीर्वाद मिल जाए और काम बन जाए?’’

वे अधेड़ बता रहे थे, ‘‘इस क्लेम को पाने के लिए मैं 50-60 हजार रुपए खर्च कर चुका हूं. क्लेम 2 लाख रुपए का किया है. अपने एकमंजिला मकान को दोमंजिला दिखाया है. खेती का नुकसान भी दोगुना दिखाया है,’’ और एक लंबी आह भरते हुए उन्होंने आगे जोड़ा, ‘‘देखें, कितना पास होता है और मिलता क्या है?’’

नौजवान ने हामी भरी, ‘‘मैं ने भी अपना नुकसान खूब बढ़ाचढ़ा कर दिखाया है. मुखिया तो मानता ही न था. 30 हजार रुपए दे कर उसे किसी तरह मनाया. मुलाजिम और चपरासी के हाथ अलग से गरम करने पड़े.

‘‘और कलक्ट्रेट में तो खुलेआम लूट है. सभी मुंह खोले रहते हैं. बिना पैसा लिए कोई काम ही नहीं करता. फाइल आगे बढ़ाने के लिए हर बार चपरासी को चढ़ावा देना पड़ता है. लगता है कि सभी बाढ़ और सूखे के लिए भगवान से प्रार्थना करते रहते हैं.’’

आगे गंगा किनारे एक मंदिर था. उन्होंने तांगा रुकवाया, उतर कर बगल की दुकान से तमाम तरह की मिठाइयां खरीदीं और मंदिर में प्रवेश किया.

जब वे वापस आए, तो नौजवान ने कहा, ‘‘इतनी सारी मिठाइयां चढ़ाने की क्या जरूरत थी?’’

‘‘सुना नहीं… जितनी ज्यादा शक्कर डालोगे, हलवा उतना ही मीठा होगा. लंबाचौड़ा क्लेम है, चढ़ावा तो बड़ा करना ही होगा. पंडितजी ने कहा है कि जितना ज्यादा चढ़ावा चढ़ाओगे, तो जल्दी फल मिलेगा.’’

इस बाढ़ में तो परमानंद ने अपना सबकुछ खो दिया है. उस का सारा परिवार, उस की प्यारी पत्नी, उस के 2 छोटेछोटे बच्चे, उस का बूढ़ा पिता. सब को इस बाढ़ ने निगल लिया था. एक छोटा सा मिट्टी का घर था, गंगा किनारे सरकारी जमीन पर. सबकुछ, सारे लोग, घर का सारा सामान, रात के अंधेरे में गंगा में समा गए. कुछ भी नहीं बचा.

यह तो रुस्तम की मेहरबानी थी कि वह बच गया, नहीं तो वह भी गंगा की भेंट चढ़ गया होता. पता नहीं, जानवरों को कैसे आने वाली मुसीबत का पता चल जाता है? शायद उसी के चलते उस दिन रुस्तम, जो बाहर बंधा था, रस्सी तोड़ कर जोरों से हिनहिनाते हुए भाग खड़ा हुआ. परमानंद उस के पीछे दौड़ा. दौड़तेभागते वे दूर निकल गए.

रुस्तम लौटने को तैयार ही नहीं था, इसलिए परमानंद भी वहीं रह गया. जब वह लौटा, तो सबकुछ खत्म हो गया था. तेज धारा के कटाव से उस का घर गंगा में बह गया था. तब उस के जीने की इच्छा भी मर गई थी. वह तो जिंदा रहा सिर्फ रुस्तम के लिए, जो उस का घोड़ा नहीं, बल्कि परिवार का हिस्सा था. वह उस का बेटा था और अब तो उस की जिंदगी बचाने वाला भी.

‘‘जरा जल्दी चलो, दिनभर ले लोगे क्या?’’ नौजवान ने झुंझलाते हुए कहा, ‘‘पहले ही इतनी देरी हो गई है.’’

तांगा तेजी से भाग रहा था… और दिनों से कहीं ज्यादा तेज.

‘क्या उड़ा कर ले चलें? तांगा ही तो है, मोटरगाड़ी नहीं,’ परमानंद ने मन ही मन कहा, पर उन लोगों को खुश रखने के लिए उस ने घोड़े को ललकारा, ‘‘चल बेटा, अपनी चाल दिखा. साहब लोगों को देर हो रही है.’’

लेकिन उस ने चाबुक नहीं उठाया. वह रुस्तम को कभी भी नहीं मारता था. जल्दी ही वे दोनों कलक्ट्रेट पहुंच गए. अधेड़ ने सौ का नोट निकाला, ‘‘बाकी के 60 रुपए दे दो भाई.’’

छुट्टे के नाम पर परमानंद के पास फूटी कौड़ी भी नहीं थी.

‘‘मैं छुट्टे कहां से लाऊं?’’ उस ने आसपास नजर दौड़ाई. छुट्टे पैसे देने वाला उसे कोई न दिखा.

‘‘छुट्टे ले कर चलना चाहिए न?’’ नौजवान बोला. अपने बटुए से उस ने 30 रुपए निकाले, ‘‘मेरे पास तो बस यही छुट्टे हैं.’’

‘‘ले लो भाई. आज ये ही रख लो. बाकी फिर कभी ले लेना,’’ अधेड़ ने कहा.

परमानंद ने वे 30 रुपए ले लिए. पहली सवारी में ही घाटा. फिर उस ने रुस्तम को देखा और उस की पीठ थपथपाते हुए कहा, ‘‘चलो, तेरे लिए चारापानी का इंतजाम तो हो गया.’’

परमानंद सोच रहा था कि बाढ़ के अनुदान का अधिकार इन लोगों से ज्यादा तो उस का था. उस का इन लोगों से ज्यादा नुकसान हुआ था, पर वह कोई क्लेम नहीं कर सका था. घूस देने के लिए उस के पास पैसे न थे. जमीनजायदाद न थी. उस का घर मिट्टी का था, जो सरकारी जमीन पर बना था. मुखिया 10 हजार रुपए मांग रहा था. मुलाजिम की मांग अलग थी और कलक्ट्रेट का खर्च अलग. कहां से लाता वह यह सब? बाढ़ में सबकुछ खो देने के बाद उसे कुछ भी मुआवजा नहीं मिला.

किसी ने सुझाया था, ‘रुस्तम को बेच दो.’ ऐसा परमानंद कैसे कर सकता था? कोई अपने बेटे को बेच सकता है भला? उस ने अपने रुस्तम को प्यार से थपथपाया, ‘‘मेरा क्लेम तो तू ही है. मेरी सारी जरूरतों को तू ही पूरा करता है.’’

रुस्तम ने गरदन हिला कर सहमति जताई. गले में बंधी घंटियां बज उठीं और परमानंद के कानों में मधुर संगीत गूंज उठा.

Best Hindi Story : कर्तव्य – मीनाक्षी किसकी आवाज सुनकर बाहर आईं थी

Best Hindi Story : सोफे पर बैठी मीनाक्षी ने दीवारघड़ी की ओर देखा. 3 बजने को थे. उस ने मेज पर रखा समाचारपत्र उठाया और समाचारों पर सरसरी दृष्टि डालने लगी. चोरी, चैन झपटने, लूटमार, हत्या, अपहरण व बलात्कार के समाचार थे. 2 समाचारों पर उस की दृष्टि रुक गई- 12 वर्षीया बालिका से स्कूल वैन ड्राइवर द्वारा बलात्कार; दूसरा समाचार था- स्कूल के औटो ड्राइवर द्वारा 8 वर्षीय बालक का अपहरण, फिरौती न देने पर हत्या.

पूरे समाचार पढ़ कर सन्न रह गई मीनाक्षी. यह क्या हो रहा है? क्यों बढ़ रहे हैं इतने अपराध? कभी भी सुरक्षा नहीं रही. इन अपराधियों को तो पुलिस व जेल का बिलकुल भी भय नहीं रहा. पता नहीं क्यों आज इंसान के रूप में ऐसे शैतानों को बच्चियों से जघन्य अपराध करते हुए जरा भी दया नहीं आती. फिरौती के रूप में लाखों रुपए न मिलने पर मासूम बच्चों की हत्या करते हुए उन का हृदय जरा भी नहीं पसीजता.

यह सब सोचतेसोचते मीनाक्षी ने घड़ी की ओर देखा 3:30 बज रहे थे. अभी तक रमन स्कूल से नहीं लौटा. स्कूल की छुट्टी तो 3 बजे हो जाती है. घर आने तक आधा घंटा लगता है. अब तक तो रमन को घर आ जाना चाहिए था.

मीनाक्षी के पति गिरीश वर्मा एक प्राइवेट कंपनी में प्रबंधक थे. उन का 8 वर्षीय रमन इकलौता बेटा था. रमन शहर के एक इंग्लिश मीडियम स्कूल में पढ़ रहा था. रमन देखने में सुंदर और बहुत प्यारा था. दूधिया रंग था उस का. सिर पर छोटेछोटे भूरे बाल. नीली आंखें. मोती से चमकते दांत. जो भी रमन को पहली बार देखता, उस का मन करता कि देखता ही रहे. वह पढ़ाई में भी बहुत आगे रहता. उस की प्यारीप्यारी बातें सुन कर खूब बातें करने को मन करता था.

एक दिन गिरीश ने मीनाक्षी से कहा था, ‘देखो मीनाक्षी, हमें दूसरा बच्चा नहीं पैदा करना है. मैं चाहता हूं कि रमन को खूब पढ़ालिखा कर किसी योग्य बना दें.’

मीनाक्षी ने भी सहमति के रूप में सिर हिला दिया था. वह स्वयं भी कंप्यूटर इंजीनियर थी. चाहती तो नौकरी भी कर सकती थी, परंतु रमन के कुशलतापूर्वक लालनपालन के लिए उस ने नौकरी करने का विचार त्याग दिया था. उसे एक गृहिणी बन कर रहना ही उचित लगा.

मीनाक्षी के हृदय की धडक़न बढऩे लगी. कहां रह गया रमन? सुबह 9 बजे औटोरिकशा में बैठ कर स्कूल जाता है. 5 बच्चे और भी उसी औटो में बैठ कर जाते हैं. रमन सब से पहले औटो में बैठता है और सब से बाद में घर आता है.

आटोरिकशा चलाने वाला मोहन लाल पिछले वर्ष से बच्चों को ले जा रहा था. अब 3 दिनों से मोहन लाल बुखार में पड़ा था. उस ने अपने छोटे भाई सोहन लाल को भेज दिया था.

कल सोहन लाल औटोरिकशा ले कर आया था. सोहन लाल भी नगर में औटो चलाता है.

उस ने पूछा था, ‘तुम्हारा भाई मोहन लाल नहीं आया. उस का बुखार ठीक नहीं हुआ क्या? कल उस का फोन आया था कि बुखार हो गया है, इसलिए कुछ दिन छोटा भाई आएगा.’

‘हां मैडम जी, अभी भाई का बुखार ठीक नहीं हुआ है. आज उसे खून की जांच करानी है. जब तक वह नहीं आता, मैं बच्चों को स्कूल ले जाऊंगा.’

‘ठीक है, जरा ध्यान से ले जाना,’ उस ने रमन को औटो में बैठाते हुए कहा था.

‘आप चिंता न करें मैडम जी. मैं पहले भी कई बार इन बच्चों को स्कूल ले गया हूं. मुझे इन बच्चों के घर का पता भी मालूम है. 3 बजे छुट्टी होती है. मैं साढ़े तीन बजे तक घर पर बैठे रमन को ले आऊंगा.’

‘बाय, अम्मा,’ रमन ने मुसकरा कर हाथ हिलाते हुए कहा था.

कल 3 बज कर 45 मिनट पर सोहन लाल औटोरिकशा में रमन को ले कर आ गया था. रमन के आ जाने पर उस ने चैन की सांस ली थी.

परंतु आज कहां रह गया रमन? पौने चार बज रहे थे. उसे आज अपनी मूर्खता पर क्रोध आ रहा था कि उस ने सोहन लाल का मोबाइल नंबर क्यों नहीं लिया? न कल लिया और आज भी वह भूल गई थी.

मीनाक्षी को ध्यान आया कि सोहन लाल का नंबर तो पिछली बार डायरी में नोट किया था. उस ने डायरी उठा कर झटपट नंबर मिलाया. परंतु वह नंबर मौजूद नहीं था. पता नहीं बहुत से लोग नंबर क्यों बदलते रहते हैं? वह झुंझला उठी.

उस ने मोहन लाल का नंबर मिला कर कहा, “तुम्हारा भाई सोहन अभी तक रमन को ले कर नहीं आया है, पता नहीं कहां रह गया? मेरे पास उस का मोबाइल नंबर भी नहीं है.”

“इतनी देर तो नहीं होनी चाहिए थी. मैं ने उसे फोन मिलाया है पर उस का फोन लग नहीं रहा है. स्विच औफ सुनाई दे रहा है. पता नहीं क्या बात हो सकती है?” उधर से मोहन लाल का भी चिंतित स्वर सुनाई दिया.

मीनाक्षी ने घबराए स्वर में कहा, “ओह, मुझे बहुत डर लग रहा है. पता नहीं रमन किस हाल में होगा?”

“मैडम जी, आप चिंता न करें. रमन बेटा आप के पास पहुंच जाएगा. हो सकता है कहीं जाम में औटो फंस गया हो,” मोहन लाल का स्वर था.

मीनाक्षी ने रमन की कक्षा में पढऩे वाले एक बालक की मम्मी का मोबाइल नंबर मिला कर कहा, “मैं मीनाक्षी वर्मा बोल रही हूं.”

“कहिए मीनाक्षी जी, कैसी हैं आप? 10 तारीख को होटल ग्रीन में किट्टी पार्टी है.”

“हां, मालूम है मुझे. यह बताओ कि आप का बेटा कमल स्कूल से आ गया है क्या?” बात काट कर मीनाक्षी ने कहा.

“हांहां, आ गया है. वह तो सवा तीन बजे ही आ गया था. पर क्या बात है, आप यह क्यों पूछ रही हैं?”

“रमन को ले कर सोहन लाल अभी तक घर नहीं आया है.”

“क्या कह रही हो मीनाक्षी? अब तो 4 बजने को हैं. स्कूल से छुट्टी हुए तो एक घंटा हो रहा है. कहां रह गया होगा बेटा? आजकल जमाना बहुत खराब चल रहा है. रोजना अखबारों में बेटीबेटों के बारे में दिल दहला देने वाले समाचार छपते रहते हैं, किस पर कितना विश्वास करें? किसी का क्या पता कि कब मन बदल जाए? दिमाग में कब शैतान घुस जाए? हमारी मजबूरी है कि हम अपने घर के चिरागों को इन जैसे लोगों के साथ भेज देते हैं. आप जल्दी से स्कूल फोन करो, कहीं ऐसा न हो कि रमन आज स्कूल में ही रह गया हो. हमारे, आप के यहां तो एकएक ही बच्चा है? यदि कुछ ऐसावैसा हो गया तो…”

“नहीं…” आगे और सुन नहीं सकी मीनाक्षी. उस ने एकदम फोन काट दिया.

उस का हृदय बुरी तरह धडक़ रहा था. उस ने स्कूल का नंबर मिलाया. उधर से हैलो होते ही वह एकदम बोली, “मेरा बेटा रमन आप के यहां तीसरी कक्षा में पढ़ रहा है. वह अभी तक घर नहीं पहुंचा. स्कूल में तो कोई बच्चा नहीं रह गया है?”

“नहीं मैडम जी, यहां कोई बच्चा नहीं है. स्कूल की 3 बजे छुट्टी हो गई थी. यदि यहां आप का बच्चा होता तो आप को फोन पर सूचना दी जाती. आप का बच्चा कैसे घर पहुंचता है?”

“औटोरिकशा में कुछ बच्चे आतेजाते हैं. कल व आज औटो वाले का भाई आया था. औटो वाला मोहन लाल बीमार है.”

“ओह मैडम, आप तुरंत पुलिस को सूचना दीजिए. इतनी देर तक बच्चा घर नहीं पहुंचा तो कुछ गलत हुआ है. कुछ पता नहीं चलता कि इंसान कब शैतान बन जाए.”

सुनते ही मीनाक्षी बुरी तरह घबरा गई. आंखों से आंसू बहने लगे. उस ने गिरीश को फोन मिलाया.

‘‘हैलो.’’ गिरीश की आवाज सुनाई दी.

“रमन अभी तक स्कूल से घर नहीं पहुंचा,” मीनाक्षी ने रोते हुए कांपते स्वर में कहा.

“क्या कह रही हो? रमन अभी तक स्कूल से घर नहीं लौटा? अब तो 4 से भी ज्यादा बज रहे हैं. छुट्टी तो 3 बजे हो गई होगी. औटो वाले सोहन का नंबर मिलाया?” गिरीश का भी घबराया सा स्वर सुनाई दिया.

“सोहन का नंबर मेरे पास नहीं है. मैं ने उस के भार्ई को मिलाया था तो वह बोला कि सोहन के फोन का स्विच औफ है. स्कूल वालों से पूछा तो उन्होंने जवाब दिया कि छुट्टी 3 बजे हो गई थी. अब यहां कोई बच्चा नहीं है. वे कह रहे थे कि किसी भी औटो वाले का क्या विश्वास कि कब मन बदल जाए. पुलिस में सूचना दो.”

“मैं अभी पहुंच रहा हूं,” गिरीश ने चिंतित हो कर कहा.

दस मिनट में ही गिरीश घर पर पहुंच गया. मीनाक्षी को रोते हुए देख कर समझ गया कि रमन अभी तक नहीं आया है.

“क्या सभी बच्चे अपने घर पहुंच गए?”

“हां, मैं ने कमल की मम्मी से पूछा था. वह सवा तीन बजे अपने घर पहुंच गया था. मेरा तो दिल बैठा जा रहा है. मेरे रमन को कुछ हो गया तो मैं भी जान दे दूंगी. पता नहीं वह कमीना मेरे रमन को किस तरह सता रहा होगा,” कहते ही मीनाक्षी फूटफूट कर रोने लगी.

“मुझे तो यह औटो वाला सोहन जरा भी अच्छा नहीं लगता. देखने में गुंडा और लफंगा लगता है. जब इस के भाई ने भेज ही दिया तो हम क्या करते, मजबूरी है. इस के मन में आ गया होगा कि बच्चे को कहीं छिपा दूंगा. 15-20 लाख रुपए मांग लूंगा तो 5-7 मिल ही जाएंगे. हो सकता है उस के साथ कोई दूसरा भी मिला हो. देखना अभी इस का फोन आएगा.”

“अपने बच्चे के लिए मैं अपने बैंक खाते के सारे रुपए तथा जेवरात आदि दे दूंगी लेकिन रमन को कुछ नहीं होना चाहिए. उस के बिना मैं जीवित नहीं रह पाऊंगी.”

“मीनाक्षी, अपनेआप को संभालों. हम पर अचानक यह भयंकर मुसीबत आई है. हमें इस का मुकाबला करना होगा. अब मैं पुलिस स्टेशन रिपोर्ट लिखाने जा रहा हूं,”’ गिरीश ने कहा और कमरे से बाहर निकला.

तभी घर के बाहर औटोरिकशा के रुकने की आवाज आई.

देखते ही गिरीश एकदम चीख उठा, “अबे, कहां मर गया था उल्लू के पट्ठे?”

औटो की आवाज व गिरीश का चीखना सुन कर मीनाक्षी भी एकदम कमरे से बाहर आई.

रमन औटो से उतर रहा था. सोहन लाल के हाथ पर पट्टी बंधी थी तथा चेहरे पर मारपिटाई के निशान थे.

मीनाक्षी ने रमन को गोद में उठा कर इस प्रकार गले लगाया मानो वह वर्षों बाद मिला हो.

गिरीश ने रमन से पूछा, “बेटे, तुम ठीक हो?”

“मैं बिलकुल ठीक हूं, पापा, लेकिन अंकल की लोगों ने मारपिटाई की है,” रमन ने कहा.

गिरीश व मीनाक्षी चौंके. वे दोनों चकित से सोहन लाल के चेहरे की ओर देख रहे थे.

गिरीश ने पूछा, “सोहन लाल, क्या बात हुई. हम तो बहुत परेशान थे कि अभी तक तुम रमन को ले कर क्यों नहीं आए हो.”

“परेशान होने की तो बात ही है बाबूजी. रोजाना तो बेटा साढ़े तीन बजे तक घर आ जाता था और आज इतनी देर तक भी नहीं आया, घबराहट तो होनी ही थी. इस बीच न जाने क्याक्या सोच लिया होगा आप ने.”

“हाथ पर चोट कैसे लगी?” मीनाक्षी ने पूछा.

“सब बच्चे अपनेअपने घर चले गए थे. मैं इधर ही लौट रहा था तो औटो में पंचर हो गया. आधा घंटा वहां लग गया. गांधी चौक पर जाम लगा हुआ था. वहां एक धार्मिक शोभायात्रा जा रही थी. मैं औटो दूसरे रास्ते से ले कर जल्दी घर पहुंचना चाहता था. मैं जानता था कि देर हो चुकी है.

“मैं पटेल रोड पर आ रहा था तो सामने से एक बाइक पर 2 युवा स्टंट करते हुए तेजी से आ रहे थे. जो चला रहा था, उस ने कानों में इयर फोन भी लगा रखा था. सिर पर हेलमेट नहीं था. मैं समझ गया कि इन की बाइक औटो से टकरा जाएगी. जैसे ही मैं ने तेजी से औटो बचाया तो सडक़ के किनारे खड़ी किसी नेताजी की कार में जरा सी खरोंच आ गई. कार पर पार्टी का झंडा लगा था. कार से 3 व्यक्ति उतरे. मैं ने उन के आगे हाथ जोड़ कर माफी मांगी, पर वे तो सत्ता के नशे में चूर थे. उन्होंने मेरे साथ मारपिटाई शुरू कर दी. एक ने मुझे धक्का दिया तो मेरा सिर औटो से जा लगा. लोगों ने बीचबचाव कर मुझे छुड़ा दिया. पास के नर्सिंगहोम में जा कर मैं ने पट्टी कराई और सीधा यहां आ गया. आज तो मोबाइल चार्ज भी नहीं था, इसलिए मेरा फोन भी बंद था,” सोहन लाल ने बताया.

यह सुन कर गिरीश व मीनाक्षी का क्रोध शांत होता चला गया.

“बाबूजी, आज जो हुआ, उस में मेरा तो कोई दोष नहीं, बस, हालात ही ऐसे बनते चले गए कि देर होती चली गई,” सोहन लाल बोला.

मीनाक्षी के हृदय में दया व सहानुभूति की लहर दौड़ऩे लगी. वह बोली, “सोहन लाल, तुम्हारा दोष जरा भी नहीं है. तुम्हें तो चोट भी लग गर्ई है.”

“मुझे इस चोट की जरा भी चिंता नहीं है मैडम जी. यदि रमन बेटे को जरा भी चोट लग जाती तो मैं कभी स्वयं को माफ नहीं करता. उस का मुझे बहुत दुख होता. आप लोग अपने बच्चों को हमारे साथ कितने विश्वास के साथ स्कूल भेजते हैं. हमारा भी तो यह कर्तव्य है कि हम उस विश्वास को बनाए रखें. हम लोगों की जरा सी लापरवाही से यह विश्वास टूट जाएगा. मैं तो उन लोगों में हूं जो अपनी जान पर खेल कर सदा यह विश्वास बनाए रखना चाहते हैं.”

गिरीश ने कहा, “बैठो सोहन, मीनाक्षी तुम्हारे लिए चाय बना कर लाती है.”

“धन्यवाद बाबूजी, चाय फिर कभी. अभी तो मुझे भैया के खून की टैस्ट रिपोर्ट लानी है. काफी देर हो चुकी है,” सोहन लाल ने कहा और औटो स्टार्ट कर चल दिया.

Love Story : लिस्ट – क्या सच में रिया का कोई पुरुष मित्र था या फिर…

Love Story : संडे के दिन लंच के बाद मैं सारे काम निबटा कर डायरी उठा कर बैठ गई. मेहमानों की लिस्ट भी तो बनानी थी. 20 दिन बाद हमारे विवाह की 25वीं सालगिरह थी. एक बढ़िया पार्टी की तैयारी थी.

आलोक भी पास आ कर बैठ गए. बोले, ‘‘रिया, बच्चों को भी बुला लो. एकसाथ बैठ कर देख लेते हैं किसकिस को बुलाना है.’’

मैं ने अपने युवा बच्चों सिद्धि और शुभम को आवाज दी, ‘‘आ जाओ बच्चो, गैस्ट लिस्ट बनानी है.’’

दोनों फौरन आ गए. कोई और काम होता तो इतनी फुरती देखने को न मिलती. दोनों कुछ ज्यादा ही उत्साहित थे. अपने दोस्तों को जो बुलाना था. डीजे होगा, डांस करना है सब को. एक अच्छे होटल में डिनर का प्लान था.

मैं ने पैन उठाते हुए कहा, ‘‘आलोक, चलो आप से शुरू करते हैं.’’

‘‘ठीक है, लिखो. औफिस का बता देता हूं. सोसायटी के हमारे दोस्त तो कौमन ही हैं,’’ उन्होंने बोलना शुरू किया, ‘‘रमेश, नवीन, अनिल, विकास, कार्तिक, अंजलि, देविका, रंजना.’’

आखिर के नाम पर मैं ने आलोक को देखा तो उन्होंने बड़े स्टाइल से कहा, ‘‘अरे, ये भी तो हैं औफिस में…’’

‘‘मैं ने कुछ कहा?’’ मैं ने कहा.

‘‘देखा तो घूर कर.’’

‘‘यह रंजना मुझे कभी पसंद नहीं आई.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘तुम जानते हो, उस का इतना मटकमटक कर बात करना, हर पार्टी में तुम सब कुलीग्स के गले में हाथ डालडाल कर बातें करना बहुत बुरा लगता है. ऐसी उच्छृंखल महिलाएं मुझे कभी अच्छी नहीं लग सकतीं.’’‘‘रिया, ऐसी छोटीछोटी बातें मत सोचा करो. आजकल जमाना बदल गया है. स्त्रीपुरुष की दोस्ती में ऐसी छोटीछोटी बातों पर कोई ध्यान नहीं देता… अपनी सोच का दायरा बढ़ाओ.’’

मैं चुप रही. क्या कहती. आलोक के प्रवचन सुन कर कुछ कटु शब्द कह कर फैमिली टाइम खराब नहीं करना चाहती थी. अत: चुप ही रही.

फिर मैं ने शुभम से कहा, ‘‘अब तुम लिखवाओ अपने दोस्तों के नाम.’’

शुभम शुरू हो गया, ‘‘रचना, शिवानी, नव्या, अंजलि, टीना, विवेक, रजत, सौरभ…’’

मैं बीच में ही हंस पड़ी, ‘‘लड़कियां कुछ ज्यादा नहीं हैं लिस्ट में?’’

‘‘हां मौम, खूब दोस्त हैं मेरी,’’ कह वह और भी नाम बताता रहा और मैं लिखती रही.

‘‘यह हमारी शादी की सालगिरह है या तुम लोगों का गैट टु गैदर,’’ मैं ने कहा.

‘‘अरे मौम, सब वेट कर रहे हैं पार्टी का… नव्या और रचना तो डांस की प्रैक्टिस भी करने लगी हैं… दोनों सोलो परफौर्मैंस देंगी.’’सिद्धि ने कहा, ‘‘चलो मौम, अब मेरे दोस्तों के नाम लिखो- आशु, अभिजीत, उत्तरा, भारती, शिखर, पार्थ, टोनी, राधिका.’’

उस ने भी कई नाम लिखवाए और मैं लिखती रही. शुभम ने उसे छेड़ा, ‘‘देखो मौम, इस की लिस्ट में भी कई लड़के हैं न?’’

सिद्धि ने कहा, ‘‘चुप रहो, आजकल सब दोस्त होते हैं. हम लोग पार्टी का टाइम पूरी तरह ऐंजौय करने वाले हैं… आप देखना मौम आशु कितना अच्छा डांसर है.’’

इसी बीच आलोक को औफिस की 2 और लड़कियों के नाम याद आ गए. मैं ने वे भी लिख लिए.

‘‘हमारे दोस्तों की लिस्ट तो बन गई मौम. लाओ, मुझे डायरी और पैन दो मैं आप की फ्रैंड्स के नाम लिखूंगी,’’ सिद्धि बोली.

‘‘अरे, तुम्हारी मम्मी की लिस्ट तो मैं ही बता देता हूं,’’ मैं कुछ कहती उस से पहले ही आलोक बोल उठे तो मैं मुसकरा दी.

आलोक बताने लगे, ‘‘नीरा, मंजू, नीलम, विनीता, सुमन, नेहा… कुछ और भी होंगी किट्टी पार्टी की सदस्याएं… हैं न?’’

तब मैं ने 4-5 नाम और बताए. फिर अचानक कहा, ‘‘बस एक नाम और लिख लो, शरद.’’

‘‘यह कौन है?’’ तीनों चौंक उठे.

‘‘मेरा दोस्त है.’’

‘‘क्या? कभी नाम नहीं सुना… कौन है? इसी सोसायटी में रहता है?’’

तीनों के चेहरों के भाव देखने लायक थे.

आलोक ने कहा, ‘‘कभी तुम ने बताया नहीं. मुझे समझ नहीं आ रहा कौन है?’’

‘‘बताने को तो कुछ खास नहीं है. ऐसे ही कुछ दोस्ती है… मेरा मन कर रहा है कि मैं उसे भी सपरिवार इस पार्टी में बुला लूं. इसी सोसायटी में रहता है. 1 छोटी सी बेटी है. कई बार उसे सपरिवार घर बुलाने की सोची पर बुला नहीं पाई. अब पार्टी है तो मौका भी है… तुम लोगों को अच्छा लगेगा उस से मिल कर. अच्छा लड़का है.’’

तीनों को तो जैसे सांप सूंघ गया. माहौल एकदम

बदल गया. एकदम हैरत भरा, गंभीर माहौल.

आलोक के मुंह से फिर यही निकला, ‘‘तुम ने कभी बताया नहीं.’’

‘‘क्या बताना था… इतनी बड़ी बात नहीं थी.’’

‘‘कहां मिला तुम्हें यह?’’

‘‘लाइब्रेरी में मिल जाता है कभीकभी. मेरी तरह ही पढ़नेलिखने का शौकीन है… वहीं थोड़ी जानपहचान हो गई.’’

‘‘उस की पत्नी से मिली हो?’’

‘‘बस उसे देखा ही है. बात तो कभी नहीं हुई. अब सपरिवार बुलाऊंगी तो मिलना हो जाएगा.’’

शुभम ने कहा, ‘‘मौम, कुछ अजीब सा लग रहा है सुन कर.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘पता नहीं मौम, आप के मुंह से किसी मेल फ्रैंड की बात अजीब सी लग रही है.’’

सिद्धि ने भी कहा, ‘‘मौम, मुझे भी आप से यह उम्मीद तो कभी नहीं रही.’’

‘‘कैसी उम्मीद?’’

‘‘यही कि आप किसी लड़के से दोस्ती करेंगी.’’

‘‘क्यों, इस में इतनी नई क्या बात है? जमाना बदल गया है न. स्त्रीपुरुष की मित्रता तो सामान्य सी बात है न. मैं तो थोड़ी देर पहले आप लोगों के विचार सुन कर खुश हो रही थी कि मेरा परिवार इतनी आधुनिक सोच रखता है, तो मेरे भी दोस्त से मिल कर खुश होगा.’’

अभी तक तीनों के चेहरे देखने लायक थे. तीनों को जैसे कोई झटका लगा था. आलोक ने अचानक कहा, ‘‘अभी थोड़ा लेटने का मन हो रहा है. बच्चो, तुम लोग भी अपना काम कर लो. बाकी तैयारी की बातें बाद में करते हैं.’’

बच्चे मुंह लटकाए हुए चुपचाप अपने रूम में चले गए. आलोक ने लेट कर आंखों पर हाथ रख लिया. मैं वहीं बैठेबैठे शरद के बारे में सोचने लगी…

साल भर पहले लाइब्रेरी में मिला था. वहीं थोड़ीबहुत कुछ पुस्तकों पर, पत्रिकाओं पर बात होतेहोते कुछ जानपहचान हो गई थी. वह एक स्कूल में हिंदी का टीचर है. उस की पत्नी भी टीचर है और बेटी तो अभी तीसरी क्लास में

ही है. उस का सीधासरल स्वभाव देख कर ही उस से बात करने की इच्छा होती है मेरी. कहीं कोई अमर्यादित आचरण नहीं. बस, वहीं खड़ेखड़े कुछ साहित्यिक बातें, कुछ लेखकों का जिक्र, बस यों ही आतेजाते थोड़ीबहुत बातें… मुझे तो उस का घर का पता या फोन नंबर भी नहीं पता… उसे बुलाने के लिए मुझे लाइब्रेरी के ही चक्कर काटने पड़ेंगे.

खैर, वह तो बाद की बात है. अभी तो मैं अपने परिवार की स्त्रीपुरुष मित्रता पर आधुनिक सोच के डबल स्टैंडर्ड पर हैरान हूं. शरद का नाम सुन कर ही घर का माहौल बदल गया. मैं कुछ हैरान थी. मैं तो कितनी सहजता से तीनों के दोस्तों की लिस्ट बना रही थी. मेरी लिस्ट में एक लड़के का नाम आते ही सब का मूड खराब हो गया. पहले तो मुझे थोड़ी देर तक बहुत गुस्सा आता रहा, फिर अचानक मेरा दिल कुछ और सोचने लगा.

इन तीनों को मेरे मुंह से एक पुरुष मित्र का नाम सुन कर अच्छा नहीं लगा… ऐसा क्यों हुआ? वह इसलिए ही न कि तीनों मुझे ले कर पजैसिव हैं तीनों बेहद प्यार करते हैं मुझ से, जैसेजैसे मैं इस दिशा में सोचती गई मेरा मन हलका होता गया. कुछ ही पलों में डबल स्टैंडर्ड के साथसाथ मुझे इस बात में भी बहुत सा स्नेह, प्यार, सुरक्षा, अधिकार की भावना महसूस होने लगी. फिर मुझे किसी से कोई शिकायत नहीं रही. मुझे कुछ बहुत अच्छा लगा.

अचानक फिर तीनों के साथ बैठने का मन हुआ तो मैं ने जोर से आवाज दी, ‘‘अरे, आ जाओ सब. मैं तो मजाक कर रही थी. मैं तो तुम लोगों को चिढ़ा रही थी.’’

आलोक ने फौरन अपनी आंखों से हाथ हटाया, ‘‘सच? झूठ क्यों बोला?’’

बच्चे फौरन हाजिर हो गए, ‘‘मौम, झूठ

क्यों बोला?’’

‘‘अरे, तुम लोग इतनी मस्ती, मजाक करते रहते हो, तो क्या मैं नहीं तुम्हें चिढ़ा सकती?’’

सिद्धि ने फरमाया, ‘‘फिर भी मौम, ऐसे मजाक भी न किया करें… बहुत अजीब लगा था.’’

शुभम ने भी हां में हां मिलाई, ‘‘हां मौम, मुझे भी बुरा लगा था.’’

आलोक मुसकराते हुए उठ कर बैठ चुके थे, ‘‘तुम ने तो परेशान कर दिया था सब को.’’

अब फिर वही पार्टी की बातें थीं और मैं मन ही मन अपने सच्चेझूठे मजाक पर मुसकराते हुए बाकी तैयारी की लिस्ट में व्यस्त हो गई. लेकिन मन के एक कोने में शरद की याद और ज्यादा पुख्ता हो गई. उसे तो किसी दिन बुलाना ही होगा. मैरिज ऐनिवर्सरी पर नहीं तो किसी और दिन.

Romantic Story : जीने की इच्छा – आभा और अरुण का क्या रिश्ता था

Romantic Story : ‘‘जल्दी करो मां. मुझे देर हो रही है. फिर ट्रेन में जगह नहीं मिलेगी,’’ अरुण ने कहा.

मां बोलीं, ‘‘तेरी गाड़ी तो 12 बजे की है. अभी तो 7 भी नहीं बजे हैं.’’

‘‘मां, तुम समझती क्यों नहीं हो. मैं यार्ड में ही जा कर डब्बे में बैठ जाऊंगा. प्लेटफार्म पर सभी जनरल डब्बे बिलकुल भरे हुए ही आते हैं,’’ अरुण बोला.

उन दिनों ‘श्रमजीवी ऐक्सप्रैस’ ट्रेन पटना जंक्शन से 12 बजे खुल कर अगले दिन सुबह 5 बजे नई दिल्ली पहुंचती थी. अरुण को एक इंटरव्यू के लिए दिल्ली जाना था. अगले दिन सुबह के 11 बजे दिल्ली के दफ्तर में पहुंचना था.

अरुण के पिता किसी प्राइवेट कंपनी में चपरासी थे. अभी कुछ महीने पहले ही वे रिटायर हुए थे. वे कुछ दिनों से बीमार थे. वे किसी तरह 2 बेटियों की शादी कर चुके थे. सब से छोटे बेटे अरुण ने बीए पास करने के बाद कंप्यूटर की ट्रेनिंग ली थी. वह एक साल से बेकार बैठा था.

अरुण 1-2 छोटीमोटी ट्यूशन करता था. उस के पास स्लीपर क्लास के भी पैसे नहीं थे, इसीलिए पटना से दिल्ली जनरल डब्बे में जाना पड़ रहा था.

मां ने कहा, ‘‘बस हो गया. मैं ने  परांठा और भुजिया एक पैकेट में पैक कर दिया है. तुम याद से अपने बैग में रख लेना.’’

पिता ने भी बिस्तर पर पड़ेपड़े कहा, ‘‘जाओ बेटे, अपने सामान का खयाल रखना.’’

अरुण मातापिता को प्रणाम कर स्टेशन के लिए निकल पड़ा. यार्ड में जा कर एक डब्बे में खिड़की के पास वाली सिंगल सीट पर कब्जा जमा कर उस ने चैन की सांस ली.

ट्रेन प्लेटफार्म पर पहुंची, तो चढ़ने वालों की बेतहाशा भीड़ थी. अरुण जिस खिड़की वाली सीट पर बैठा था, वह इमर्जैंसी खिड़की थी. एक लड़की डब्बे में घुसने की नाकाम कोशिश कर रही थी. उस लड़की ने अरुण के पास आ कर कहा, ‘‘आप इमर्जैंसी खिड़की खोलें, तो मैं भी डब्बे में आ सकती हूं. मेरा इस ट्रेन से दिल्ली जाना बहुत जरूरी है.’’

अरुण ने उसे सहारा दे कर खिड़की से अंदर डब्बे में खींच लिया. लड़की पसीने से तरबतर थी. दुपट्टे से मुंह का पसीना पोंछते हुए उस ने अरुण को ‘थैंक्स’ कहा.

थोड़ी देर में गाड़ी खुली, तो अरुण ने अपनी सीट पर जगह बना कर लड़की को बैठने को कहा. पहले तो वह झिझक रही थी, पर बाद में और लोगों ने भी बैठने को कहा, तो वह चुपचाप बैठ गई.

तकरीबन 2 घंटे बाद ट्रेन बक्सर पहुंची. यह बिहार का आखिरी स्टेशन था. यहां कुछ लोकल मुसाफिरों के उतरने से राहत मिली.

अरुण के सामने वाली सीट खाली हुई, तो वह लड़की वहां जा बैठी.

अरुण ने लड़की का नाम पूछा, तो वह बोली, ‘‘आभा.’’

अरुण बोला, ‘‘मैं अरुण.’’

दोनों में बातें होने लगीं. अरुण ने पूछा, ‘‘पटना में तुम कहां रहती हो?’’

आभा बोली, ‘‘सगुना मोड़… दानापुर के पास.’’

‘‘मैं बहादुरपुर… मैं पटना के पूर्वी छोर पर हूं और तुम पश्चिमी छोर पर. दिल्ली में कहां जाना है?’’

‘‘कल मेरा एक इंटरव्यू है.’’

‘‘वाह, मेरा भी कल एक इंटरव्यू है. बुरा न मानो, तो क्या मैं जान सकता हूं कि किस कंपनी में इंटरव्यू है?’’

आभा बोली, ‘‘लाल ऐंड लाल ला असोसिएट्स में.’’

अरुण तकरीबन अपनी सीट से उछल कर बोला, ‘‘वाह, क्या सुहाना सफर है. आगाज से अंजाम तक हम साथ रहेंगे.’’

‘‘क्या आप भी वहीं जा रहे हैं?’’

अरुण ने रजामंदी में सिर हिलाया और मुसकरा दिया. रातभर दोनों अपनीअपनी सीट पर बैठेबैठे सोतेजागते रहे थे.

ट्रेन तकरीबन एक घंटा लेट हो गई थी. इस के बावजूद काफी देर से गाजियाबाद स्टेशन पर खड़ी थी. सुबह के 7 बज चुके थे. अरुण नीचे उतर कर लेट होने की वजह पता लगाने गया.

अरुण अपनी सीट पर बैठते हुए बोला, ‘‘गाजियाबाद और दिल्ली के बीच में एक गाड़ी पटरी से उतर गई है. आगे काफी ट्रेनें फंसी हैं. ट्रेन के दिल्ली पहुंचने में काफी समय लग सकता है.’’

आभा यह सुन कर घबरा गई. अरुण ने उसे शांत करते हुए कहा, ‘‘डोंट वरी. हम दोनों यहीं उतर जाते हैं. यहीं फ्रैश हो कर कुछ चायनाश्ता कर लेते हैं. फिर यहां से आटोरिकशा ले कर सीधे कनाट प्लेस एक घंटे के अंदर पहुंच जाएंगे.’’

दोनों ने गाजियाबाद स्टेशन पर ही चायनाश्ता किया. फिर आटोरिकशा से दोनों कंपनी पहुंचे. दोनों ने अलगअलग इंटरव्यू दिए. इस के बाद कंपनी के मालिक मोहनलाल ने दोनों को एकसाथ बुलाया.

मोहनलाल ने दोनों से कहा, ‘‘देखो, मैं भी बिहार का ही हूं. दोनों की क्वालिफिकेशंस एक ही हैं. इंटरव्यू में दोनों की परफौर्मेंस बराबर रही है, पर मेरे पास तो एक ही जगह है. अब तुम लोग बाहर जा कर तय करो कि किसे नौकरी की ज्यादा जरूरत है. मुझे बता देना, मैं औफर लैटर इशू कर दूंगा.’’

अरुण और आभा दोनों ने बाहर आ कर बात की. अपनीअपनी पारिवारिक और माली हालत बताई.

आभा की मां विधवा थीं. उस की एक छोटी बहन भी थी. वह पटना के कंप्यूटर इंस्टीट्यूट में पार्ट टाइम नौकरी करती थी, पर उसे बहुत कम पैसे मिलते थे. परिवार को उसी को देखना होता था.

अरुण ने आभा के पक्ष में सहमति जताई. आभा को वह नौकरी मिल गई.

मालिक मोहनलाल अरुण से बहुत खुश हुआ और बोला, ‘‘नौकरी तो तुम भी डिजर्व करते थे. मैं तुम से बहुत खुश हूं. वैसे तो किराया देने का कोई करार नहीं था. फिर भी मैं ने अकाउंटैंट को कह दिया है कि तुम्हें थर्ड एसी का अपडाउन रेल किराया मिल जाएगा. जाओ, जा कर पैसे ले लो.’’

अरुण ने पैसे ले लिए. आभा उसे धन्यवाद देते हए बोली, ‘‘यह दिन मैं कभी नहीं भूलूंगी. मिस्टर मोहनलाल ने मुझे बताया कि तुम ने मेरी खाितर बड़ा त्याग किया है.’’

दोनों ने एकदूसरे का फोन नंबर लिया और संपर्क में रहने को कहा.

अरुण जनरल डब्बे में बैठ कर पटना लौट आया. उस ने किराए का काफी पैसा बचा लिया था. मातापिता को जब पता चला कि उसे नौकरी नहीं मिली, तो वे दोनों उदास हो गए.

कुछ ही दिनों में अरुण के पिता चल बसे. अरुण किसी तरह 2-3 ट्यूशन कर अपना काम चला रहा था. जिंदगी से उस का मन टूट चुका था. कभी सोचता कि घर छोड़ कर भाग जाए, तो कभी सोचता गंगा में जा कर डूब जाए. फिर अचानक बूढ़ी मां की याद आती, तो आंखों में आंसू भर आते.

एक दिन अरुण बाजार से कुछ सामान खरीदने गया. एक 16-17 साल का लड़का अपने कंधे पर एक बैग लटकाए कुछ बेच रहा था. उस के एक पैर में पोलियो का असर था. लाठी के सहारे चलता हुआ वह अरुण के पास आ कर बोला, ‘‘भैया, क्या आप को पापड़ चाहिए? 10 रुपए का एक पैकेट है.’’

अरुण ने कहा, ‘‘नहीं चाहिए पापड़.’’

लड़के ने थैले से एक शीशी निकाल कर कहा, ‘‘आम का अचार है. चाहिए? पापड़ और अचार दोनों घर के बने हैं. मां बनाती हैं.’’

अरुण के मन में दया आ गई. उस के पास 5 रुपए ही बचे थे. उस ने लड़के को देते हुए कहा, ‘‘मुझे कुछ चाहिए तो नहीं, पर तुम इसे रख लो.’’

अरुण ने रुपए उस के हाथ में पकड़ा दिए. दूसरे ही पल वह लड़का गुस्से से बोला, ‘‘मैं विकलांग हूं, पर भिखारी नहीं. मैं मेहनत कर के खाता हूं. जिस दिन कुछ नहीं कमा पाता, मांबेटे पानी पी कर सो जाते हैं.’’

इतना बोल कर उस लड़के ने रुपए अरुण को लौटा दिए. पर वह अरुण की आंखों में उम्मीद की किरण जगा गया. वह सोचने लगा, ‘जब यह लड़का जिंदगी से हार नहीं मान सकता है, तो मैं क्यों मानूं?’

अरुण के पास दिल्ली में मिले कुछ रुपए बचे थे. वह कोलकाता गया. वहां के मंगला मार्केट से थोक में कुछ जुराबें, रूमाल और गमछे खरीद लाया. ट्यूशन के बाद बचे समय में न्यू मार्केट और महावीर मंदिर के पास फुटपाथ पर उन्हें बेचने लगा.

इस इलाके में सुबह से ले कर देर रात तक काफी भीड़ रहती थी. अरुण की अच्छी बिक्री हो जाती थी.

शुरू में अरुण को कुछ झिझक होती थी, पर बाद में उस का इस में मन लग गया. इस तरह उस ने देखा कि एक हफ्ते में तकरीबन 7-8 सौ रुपए, तो कभी हजार रुपए की बचत होती थी.

इस बीच बहुत दिन बाद उसे आभा का फोन आया. उस ने कहा, ‘‘अगले हफ्ते मेरी शादी होने वाली है. कार्ड पोस्ट कर दिया है. तुम जरूर आना और मां को भी साथ लाना.’’

अरुण मां के साथ आभा की शादी में सगुना मोड़ उस के घर गया. आभा ने अपनी मां, बहन और पति से उन्हें मिलवाया और कहा, ‘‘मैं जिंदगीभर अरुण की कर्जदार रहूंगी. मुझे नौकरी अरुण की वजह से ही मिली थी.’’

शादी के बाद आभा दिल्ली चली गई. अरुण की दिनचर्या पहले जैसी हो गई.

एक दिन आभा का फोन आया. उस ने कहा, ‘‘मेरे पति गुड़गांव की एक गारमैंट फैक्टरी में डिस्पैच सैक्शन में हैं. फैक्टरी से मामूली डिफैक्टिव कपड़े सस्ते दामों में मिल जाते हैं. तुम चाहो, तो इन्हें बेच कर अच्छाखासा मुनाफा कमा सकते हो.’’

अरुण बोला, ‘नेकी और पूछपूछ… मैं गुड़गांव आ रहा हूं.’

इधर अरुण उस पापड़ वाले लड़के का स्थायी ग्राहक हो गया था. उस का नाम रामू था. हर हफ्ते एक पैकेट पापड़ और अचार की शीशी उस से लिया करता था. अब अरुण महीने 2 महीने में एक बार दिल्ली जा कर कपड़े लाता और उन्हें अच्छे दाम पर बेचता.

धीरेधीरे अरुण का कारोबार बढ़ता गया. उस ने कंकड़बाग में एक छोटी सी दुकान किराए पर ले ली थी. बीचबीच में कोलकाता से भी थोक में कपड़े लाया करता. कारोबार बढ़ने पर उस ने एक बड़ी दुकान ले ली.

अरुण की शादी थी. उस ने आभा को भी बुलाया. वह भी पति के साथ आई थी. अरुण ने उस पापड़ वाले लड़के को भी अपनी शादी में बुलाया था.

शादी हो जाने के बाद जब अरुण अपनी मां के साथ मेहमानों को विदा कर रहा था, अरुण ने आभा को उस की मदद के लिए थैंक्स कहा.

आभा ने कहा, ‘‘अरे यार, नो मोर थैंक्स. हिसाब बराबर. हम दोस्त  हैं.’’

फिर अरुण ने रामू को बुला कर सब से परिचय कराते हुए कहा, ‘‘आज मैं जोकुछ भी हूं, इस लड़के की वजह से हूं. मैं तो जिंदगी से निराश हो चुका था. मेरे अंदर जीने की इच्छा को इस स्वाभिमानी मेहनती रामू ने जगाया.’’

तब अरुण रामू से बोला, ‘‘मुझे अपनी दुकान में एक सेल्समैन की जरूरत है. क्या तुम मेरी मदद करोगे?’’

रामू ने हामी भर कर सिर झुका कर अरुण को नमस्कार किया.

अरुण बोला, ‘‘अब तुम्हें घूमघूम कर सामान बेचने की जरूरत नहीं है. मैं ने यहां के विधायक को अर्जी दी है तुम्हें अपने फंड से एक तिपहिया रिकशा देने की. तुम उसे आसानी से चला सकते हो और आजा सकते हो.’’

अरुण, आभा, रामू और बाकी सभी की आंखें खुशी से नम थीं. तीनों एकदूसरे के मददगार जो बने थे.

Emotional Story : वापसी – क्या वापस लौटा पूनम का फौजी पति

Emotional Story : आंगन में तुलसी के चबूतरे पर लगी अगरबत्ती की खुशबू ने पूरे घर को महका दिया था. पूनम अभीअभी पूजा कर के रसोईघर में गई ही थी कि दादी मां ने रोज की तरह चिल्लाना शुरू कर दिया था, “अरी ओ पूनम, पूजापाठ का ढकोसला खत्म हो गया तो चायवाय मिलेगी कि नहीं.

“ऐसे भी कौन सा सुख दिया है भगवान ने… मेरे हंसतेखेलते परिवार की सारी खुशियां छीन लीं,” बोलते हुए दादी मां ने गुस्से से अपनी भौएं सिकोड़ ली थीं.

पूनम ने रसोईघर में से झांकते हुए कहा, “चाय बन गई है दादी मां, अभी लाती हूं.”

माथे पर बिंदी, दोनों कलाइयां कांच की चूड़ियों से भरी हुईं, लाल रंग के सलवारकमीज में पूनम किसी नई दुलहन सी दिख रही थी.

दादी मां को चाय दे कर पूनम मुड़ी ही थी कि उन्होंने फुसफुसाना शुरू कर दिया, “आदमी का तो कुछ अतापता नहीं है… जिंदा भी है कि नहीं, फिर भी न जाने क्यों इतना बनसंवर कर रहती है…”

पूनम ने सबकुछ सुन कर भी अनसुना कर दिया था. और करती भी क्या. उस के दिन की शुरुआत रोज ऐसे ही दादी मां के तीखे शब्दों से होती थी.

दादी मां को चाय देने के बाद पूनम अपने ससुर को चाय देने के लिए उन के कमरे में जाने लगी, तो उन्होंने उसे आवाज दे कर कहा, “पूनम बेटा, मेरी चाय बाहर ही रख दे, मैं उधर ही आ कर पी लूंगा.”

“जी पापा,” बोल कर पूनम वापस चली आई थी.

पूनम के ससुर शशिकांतजी रिटायर्ड आर्मी आफसर थे. उन का बेटा मोहित भी सेना में जवान था. पूनम मोहित की पत्नी थी. 3 साल पहले ही मोहित और पूनम का ब्याह हुआ था और ब्याह के 2-4 दिन बाद ही मोहित को किसी खुफिया मिशन पर जाने के लिए सेना में वापस बुला लिया गया था.

इस बात को 3 साल बीत चुके थे, पर अब तक मोहित वापस नहीं लौटा था और न ही उस की कोई खबर आई थी, इसलिए फौज की तरफ से उसे गुमशुदा घोषित कर दिया गया था.

मोहित के लापता होने की खबर से शशिकांतजी की पत्नी को गहरा सदमा लगा था, जिस के चलते वे कोमा में चली गई थीं. डाक्टर का कहना था कि मोहित की वापसी ही उन के लिए दवा का काम कर सकती है.

पूनम को विश्वास था कि मोहित जिंदा है और एक दिन जरूर वापस आएगा. उस के इस विश्वास को कायम रखने के लिए शशिकांतजी पूरा सहयोग देते थे. उन्हें पूनम का पहनओढ़ कर रहना पसंद था. मोहित के हिस्से का लाड़प्यार भी वे पूनम पर ही लुटाते थे.

पूनम ने फैशन डिजाइनिंग का कोर्स किया हुआ था. उस की शादी के कुछ समय बाद ही उस के ससुर ने एक बुटीक खुलवा दिया था.

तब दादी मां ने इस बात का भरपूर विरोध करते हुए कहा था कि समय काटने के लिए घर के काम कम होते हैं क्या. पर शशिकांतजी ने उन की एक न सुनी थी.

सास की बीमारी के बाद घर के कामकाज की पूरी जिम्मेदारी पूनम के कंधों पर आ गई थी. बुटीक के साथ वह घर भी बखूबी संभाल रही थी. पर दादी मां हमेशा उस से नाराज ही रहती थीं. उन्हें पूनम का साजसिंगार करना, गाड़ी चलाना, बुटीक जाना बिलकुल नहीं सुहाता था. वे पूनम को ताने मारने का एक भी मौका अपने हाथों से जाने नहीं देती थीं.

समय बीतता जा रहा था. मोहित की मां की तबीयत में कोई सुधार नहीं था. इस बीच पूनम के मातापिता कई बार उसे अपने साथ घर ले जाने के लिए आए, पर हर बार उन्हें खाली हाथ ही लौटना पड़ा. पूनम का कहना था कि मोहित वापस आएगा तो उसे यहां न पा कर परेशान होगा और उस के परिवार की जिम्मेदारी भी अब मेरी है. अब ससुराल ही मेरा मायका है.

शशिकांतजी को पूनम की ऐसी सोच और समझदारी पर बहुत गर्व होता था.

एक दिन शशिकांतजी के करीबी दोस्त कर्नल मोहन घर आए और बोले, “शशि, मैं एक प्रस्ताव ले कर तेरे पास आया हूं.”

“कैसा प्रस्ताव?” शशिकांतजी ने पूछा.

इस के बाद उन दोनों दोस्तों ने बहुत देर तक साथ में समय बिताया और बातें कीं, फिर कर्नल मोहन जातेजाते बोले, “मुझे तेरे जवाब का इंतजार रहेगा.”

कर्नल मोहन के जाने के बाद शशिकांतजी काफी दिन तक किसी गहरी सोच में डूबे रहे. पूनम ने कई बार पूछने की कोशिश की, पर उन्होंने ‘चिंता की कोई बात नहीं’ बोल कर उसे टाल दिया. पर मन ही मन वे पूनम के लिए एक बड़ा फैसला ले चुके थे, जिस की चर्चा पूनम के मातापिता से करने के लिए आज वे उस के मायके जा रहे थे. पूनम इस बात से पूरी तरह बेखबर थी.

पूनम के बुटीक जाते ही शशिकांतजी घर से निकल गए थे. उन्हें अचानक यों देख कर पूनम के मातापिता थोड़े चिंतित हो उठे थे. पूनम के पिताजी ने हाथ जोड़ कर शशिकांतजी से पूछा, “आप अचानक यहां, सब ठीक तो है न?”

“हांहां, सब ठीक है. चिंता की कोई बात नहीं…” शशिकांतजी बोले, “मैं ने पूनम के लिए एक फैसला लिया है, जिस में आप दोनों की राय लेना जरूरी था.”

यह सुन कर पूनम के मातापिता एकदूसरे की तरफ हैरानी से देखने लगे. पूनम की मां ने बड़े ही उतावलेपन से पूछा, “कैसा फैसला भाई साहब?”

शशिकांतजी ने कहा, “पूनम के दूसरे ब्याह का फैसला.”

“यह आप क्या कह रहे हैं… यह कैसे मुमकिन है…” पूनम के पिता ने हैरानी से.

शशिकांतजी बोले, “क्यों मुमकिन नहीं है? मोहित की वापसी अब एक सपने जैसी है. चार दिन की शादी को निभाने के लिए पूनम अपनी पूरी जिंदगी अकेलेपन के हवाले कर दे, ऐसा मैं नहीं होने दे सकता. उस बच्ची के विश्वास पर अपने यकीन की मोहर अब और नहीं लगा सकता. बिना किसी दोष के वह एक अधूरेपन की सजा क्यों काटेगी…”

“पर भाई साहब…” पूनम की मां ने बीच में बोलना चाहा तो शशिकांतजी ने उन्हें रोकते हुए कहा, “माफ कीजिएगा, पर मेरी बात अभी पूरी नहीं हुई है.”

इतना कह कर वे आगे बोले, “मैं अपने बेटे के मोह में पूनम के भविष्य की बलि नहीं चढ़ने दूंगा. आज मेरी जगह मोहित भी होता तो पूनम के लिए इस तरह की अधूरी जिंदगी उसे कभी स्वीकार नहीं होती.

“आप दोनों ने उसे जन्म दिया है. उस की जिंदगी का इतना बड़ा फैसला लेने के पहले आप को इस की सूचना देना मेरा फर्ज था, इसलिए चला आया वरना पूनम का कन्यादान करने का फैसला मैं ले चुका हूं. अब आज्ञा चाहता हूं.”

शशिकांत जी के जाने के बाद पूनम के मातापिता बहुत देर तक सोचते रहे कि वे अपनी बेटी के भविष्य के बारे में इतनी गहराई से नहीं सोच पाए, पर शशिकांतजी जैसे लोग बहू को बेटी की जगह रख कर अपनी सोच का लैवल कितना ऊपर उठाए हुए हैं. पूनम के दूसरे ब्याह के बारे में सोचते समय मोहित का चेहरा न जाने कितनी बार उन की आंखों के सामने घूमा होगा.

पूनम के मायके से लौटने के बाद शशिकांतजी अपने कमरे से बाहर नहीं आए थे. पूनम शाम की चाय ले कर उन के कमरे में ही चली गई थी. चाय का कप टेबल पर रखते हुए उस ने पूछा, “क्या हुआ पापा? तबीयत ठीक नहीं है क्या?”

“सब ठीक है बेटा,” उन्होंने जवाब दिया और कहा, “आ थोड़ी देर मेरे पास बैठ, तुझ से कुछ बात करनी है.”

“जी पापा,” बोल कर पूनम उन के पास बैठ गई.

शशिकांतजी ने एक गहरी सांस ली और बोलना शुरू किया, “मोहित की गैरमौजूदगी में तू ने इस घर की जिम्मेदारियों के साथसाथ हम सब को भी बहुत अच्छे से संभाला है. अपने छोटेबड़े हर फर्ज को तू ने प्यार और अपनेपन से निभाया है. इतना ही नहीं, अपनी दादी मां के रूखे बरताव के बाद भी तू कभी उन की सेवा करने से पीछे नहीं हटी. अगर मैं यह कहूं कि मोहित की कमी तू ने कभी महसूस ही नहीं होने दी, तो यह गलत नहीं होगा.

“पर अब नहीं बेटा. मैं चाहता हूं कि मोहित की चंद यादों का जो दायरा तू ने अपने आसपास बना रखा है, उसे तोड़ कर तू बाहर निकले और जिंदगी में आगे बढ़े…”

पूनम ने कहा, “आज अचानक ऐसी बातें क्यों कर रहे हैं आप? कुछ हुआ है क्या? मोहित की कोई खबर आई क्या? बोलिए न पापा, क्या हुआ है?” पूनम बेचैन हो उठी थी.

शशिकांतजी ने भरे हुए गले से कहा, “कोई खबर नहीं आई मोहित की और न ही आएगी. उस की वापसी की उम्मीद अब छोड़नी होगी हमें.”

पूनम जोर से चिल्लाते हुए बोली, “नहीं पापा, ऐसा मत कहिए…” इतने साल से पति के बिछड़ने का दर्द जो उस ने अपने अंदर दबा कर रखा था, वह आज आंसुओं की धार के साथ बहता जा रहा था.

शशिकांतजी ने पूनम के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, “आज यह लाचार और बेबस पिता तुझ से कुछ मांगना चाहता है बेटा, मना मत करना. बहुत सोचसमझ कर मैं ने तेरा कन्यादान करने का फैसला लिया है.”

पूनम ने चौंकते हुए कहा, “पापा, आप भी…” कमरे से बाहर जातेजाते वह रुकी और बोली, “आप गलत कह रहे हैं पापा, अगर मोहित की कमी मैं पूरी कर पाती तो मम्मी आज अस्पताल में कोमा में न होतीं, दादी मां को मुझ से इतनी नफरत न होती और आज आप मुझे इस घर से विदा करने की बात नहीं करते,” ऐसा बोल कर वह तेजी से कमरे से बाहर निकल गई.”

पूनम के जाने के बाद शशिकांतजी सोच में पड़ गए थे कि ‘आप भी’ से पूनम का क्या मतलब था.

इस बात को 8 दिन बीत चुके थे. शशिकांतजी अपने फैसले पर अटल थे. उन के इस फैसले से दादी मां बहुत नाराज थीं और दादी मां ने उन से बात करना बंद कर दिया था. पर उन्होंने हार नहीं मानी थी.

शशिकांतजी एक बार फिर पूनम को समझाने की उम्मीद से उस के बुटीक पहुंच गए थे. उन्हें देखते ही पूनम ने कहा, “अरे पापा, आप यहां कैसे?”

“कुछ नहीं बेटा, शाम की सैर के लिए निकला था…” शशिकांतजी बोले, “सोचा तुझे देख लेता हूं… तेरा काम खत्म हो गया होगा तो साथ में घर चलेंगे.”

पूनम ने कहा, “पापा, मुझे थोड़ा समय और लगेगा.”

“ठीक है…” शशिकांतजी बोले, “मैं बाहर तेरा इंतजार करता हूं, आ जाना.”

थोड़ी देर बाद बुटीक बंद कर के पूनम अपनी कार ले कर बाहर आ गई. शशिकांतजी ने उस से कहा, “आज मैं गाड़ी चलाता हूं.”

कार चलाते हुए शशिकांतजी ने फिर अपनी बात शुरू की और पूनम से कहा, “तू ने मेरी बात का कोई जवाब नहीं दिया बेटा… और उस दिन तू ने ‘आप भी’ ऐसा क्यों कहा था?”

पूनम ने कहा, “मोहित ने मिशन पर जाने से पहले मुझे कसम दी थी कि अगर वह वापस नहीं लौटा तो मैं उस के इंतजार में अपनी पूरी जिंदगी नहीं निकालूंगी और एक नई शुरुआत करूंगी. उस दिन आप ने भी वही बात कह दी. आप ही की तरह शायद वह भी मुझे अपने से दूर करना चाहता था.”

शशिकांतजी को इस बात की बहुत खुशी हो रही थी कि मोहित के बारे में उन की सोच गलत नहीं थी. वह भी पूनम के लिए इस तरह की अधूरी जिंदगी नहीं चाहता था.

शशिकांतजी अपने फैसले पर अब और ज्यादा मजबूत हो गए थे. उन्होंने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा, “तुझे याद है, कुछ दिन पहले कर्नल मोहन अपने घर आए थे. वे अपने बेटे गौरव के लिए तेरा हाथ मांगने आए थे.

“गौरव की पहली पत्नी का शादी के 4 महीने बाद ही देहांत हो गया था. वह अमेरिका में बहुत बड़ी कंपनी में काम करता है. वह अभी यही है और कुछ दिन में वापस जाने वाला है, इसलिए उन्हें शादी की जल्दी है.

“कर्नल मोहन को मैं बहुत सालों से जानता हूं. वे बेहद सुलझे और समझदार लोग हैं. तू बहुत खुश रहेगी… और तुझे तो गौरव के साथ अमेरिका में ही रहना होगा. इस रिश्ते के लिए हां कह दे बेटा,” शशिकांतजी ने जोर देते हुए पूनम से कहा.

पूनम ने जवाब दिया, “मुझे नहीं पता था पापा कि आप के लाड़प्यार का कर्ज मुझे एक दिन आप से दूर जा कर चुकाना पड़ेगा.”

शशिकांतजी ने पूनम और गौरव का रिश्ता तय कर दिया. पूनम के मातापिता को भी खबर कर दी गई.

शादी का दिन आ चुका था. बंगले की सजावट शशिकांतजी ने पूनम की पसंद के लाल गुलाब के फूलों से कराई थी.

बरात जैसे ही बंगले के सामने पहुंची तो शशिकांतजी ने सभी का स्वागत किया. थोड़ी देर बाद पूनम की मां उसे मंडप में ले जाने के लिए आईं, तो पूनम ने कस कर अपनी मां के हाथों को पकड़ा और कहा, “मुझ से यह नहीं होगा मां. मेरा मन बहुत घबरा रहा है. पता नहीं क्यों बारबार ऐसा लग रहा है कि मोहित यहीं कहीं आसपास है.

“मैं किसी और से शादी नहीं कर सकती. यह सब होने से रोक दो मां,” पूनम अपनी मां के सामने हाथ जोड़ कर रोते हुए बोली और बेसुध हो कर जमीन पर गिर पड़ी.

पूनम की मां उस के बेसुध होने की सूचना देने बाहर आईं तो उन्होंने देखा कि फौज की एक गाड़ी बंगले के बाहर आ कर रुकी है. उस में से सेना के 2 जवान उतरे, फिर उन्होंने हाथ पकड़ कर काला चश्मा पहने एक शख्स को गाड़ी से नीचे उतारा.

विवाह समारोह में आए सभी लोगों की नजरें बड़ी हैरानी से उस शख्स को देख रही थीं. उसे देखते ही शशिकांतजी की आंखों से आंसुओं का सैलाब उमड़ पड़ा.

“मोहित… मेरे बेटे, तू ने बहुत इंतजार कराया,” बोलते हुए शशिकांतजी ने उसे अपने सीने से लगा कर बेटे की वापसी की तड़प को शांत कर दिया.

पूनम की मां खुशी से भागते हुए अंदर गईं और उन्होंने पूनम के ऊपर पानी के छींटे मारे, फिर जोर से उसे झकझोर कर बोलीं, “उठ बेटा, बाहर जा कर देख… तेरे विश्वास ने आज तेरे सुहाग की वापसी कर ही दी.”

पूनम सभी मर्यादाओं को लांघ कर गिरतीपड़ती भागते हुए बाहर गई और मोहित से जा लिपटी. वह फूटफूट कर रोते हुए बोली, “आखिर आप ने मेरे विश्वास की लाज रख ही ली मोहित.”

शोरगुल की आवाज से दादी मां भी बाहर आ गई थीं और मोहित को देख कर अपने आंसुओं के बहाव को रोक नहीं पाई थीं.

मोहित ने पूनम से कहा, “मेरी वापसी एक अधूरेपन के साथ हुई है पूनम. लड़ाई में मैं अपनी दोनों आंखें गंवा चुका हूं. जिसे अब खुद हर समय सहारे की जरूरत पड़ेगी वह तुम्हारा सहारा क्या बनेगा.”

पूनम ने चिल्लाते हुए कहा, “यह कैसी बात कर रहे हैं आप. हम पूरी जिंदगी के साथी है. हमें एकदूसरे के सहारे और हमदर्दी की नहीं, बल्कि साथ की जरूरत है…” इतना कह कर पूनम ने अपना हाथ मोहित के आगे बढ़ाया और कहा, “आप देंगे न मेरा साथ?”

गौरव इतनी देर से दूर खड़ा हो कर सब देख रहा था. उस ने मोहित का हाथ पकड़ कर अपने हाथों से पूनम के हाथ में दे दिया.

पूनम कर्नल मोहन के पास गई और हाथ जोड़ कर बोली, “मुझे माफ कर दीजिए अंकल. इस घर और मोहित को छोड़ कर मैं कहीं नहीं जा सकती.”

कर्नल मोहन ने पूनम के सिर पर हाथ रख कर अपना आशीर्वाद दे दिया.

Sexual Tips : मुझे चिंता है मेनोपौज से मेरी कामेच्छा खत्म न हो जाए

Sexual Tips : मेरी उम्र 51 साल की है. मैं और मेरे पति अच्छा वैवाहिक जीवन जी रहे हैं. सैक्स लाइफ अच्छी है. मैं अब मेनोपौज के दौर से गुजर रही हूं. मेरे पति रोज मेरे साथ सैक्स करते हैं और मैं भी एंजौय करती हूं. लेकिन डर लग रहा है कि मेनोपौज से मेरी कामेच्छा खत्म न हो जाए और मेरे पति मुझ से खुश न रह पाएं. क्या मेरा ऐसा सोचना सही है?

यह सच है कि मेनोपौज के कारण महिलाओं की कामेच्छा कम हो जाती है या कई महिलाओं में यह बिलकुल खत्म हो जाती है लेकिन सभी महिलाओं के केस में ऐसा नहीं होता. महिलाओं में कुछ थोड़े बदलाव देखने को मिलते हैं. कई रिसर्च में यह सामने आया है कि कुछ महिलाओं में मेनोपौज के बाद कामेच्छा और बढ़ जाती है. मेनोपौज का अनुभव व्यक्तिगत तौर पर अलगअलग हो सकता है. जबकि कुछ महिलाओं के अनुभवों में समानताएं हो सकती हैं.

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Best Friend : ‘फ्रैंड्स विद बैनिफिट्स’ का चलन आखिर है क्या?

Best Friend : मैं ने इसी साल अपनी स्कूलिंग खत्म की है. अब मैं कालेज जाती हूं. आजकल एक बात ‘फ्रैंड्स विद बेनिफिट्स’ बहुत बोली जाती है. मैं इस रिलेशनशिप को अच्छी तरह समझ नहीं पाती. थोड़ा कन्फ्यूज्ड हूं. जरा मुझे क्लीयर करेंगे क्या?

यह एक यूनिक प्रकार का फिजिकल रिलेशनशिप होता है जिस में दोनों व्यक्ति दोस्त होते हैं लेकिन साथ ही एक बौयफ्रैंड और गर्लफ्रैंड वाला रिश्ता शेयर करते हैं. इस रिश्ते को स्टिंग अटैच भी कहा जाता है.

फ्रैंड्स विद बेनिफिट्स ऐसा इंटीमेट रिलेशनशिप है जिस के कुछ नियम होते हैं. ये नियम दोनों ही पार्टनर्स को एकसमान मानने पड़ते हैं. वे चाहें तो इस रिलेशनशिप में एकदूसरे की सहमति के साथ नए नियम भी बना सकते हैं. हालांकि हर मामले में फ्रैंड्स विद बेनिफिट्स का मतलब केवल फिजिकल रिलेशनशिप नहीं होता. कुछ लोग इस प्रकार के रिश्तों में केवल एकदूसरे से मिलना व बात करना पसंद करते हैं.

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Unwanted Hair : दिक्कत यह है कि मेरी बौडी पर काफी बाल हैं

Unwanted Hair : मेरी उम्र 27 साल है. मैं रैगुलर जिम जाता हूं. अब मेरी बौडी जिम जाने से मस्कुलर हो गई है. छाती और पीठ के बाल तो बिलकुल भी अच्छे नहीं लगते. उन की वजह से बौडी खूबसूरत नहीं लगती. ऐब्स वगैरह अच्छी तरह नहीं दिखते. क्याक्या तरीके हैं बाल साफ करने के, बताने की कृपा करें.

आप कूल दिखने के लिए छाती और पीठ के बाल हटाना चाहते हैं, बिलकुल सही सोच रहे हैं कि परफैक्ट लुक के लिए अनचाहे बालों से छुटकारा जरूरी है. लड़कों के बाल काफी हार्ड होते हैं, उन्हें आसानी से नहीं निकाला जा सकता. फिर भी शेविंग, वैक्सिंग, ट्रिमिंग, हेयर रिमूवल क्रीम, थ्रेडिंग से अनवांटेड हेयर से राहत पा सकते हैं. आजकल रेजर की मदद से छाती और पीठ के अनचाहे बालों को भी शेव किया जा रहा है. इस के लिए नहाने का समय सब से उपयुक्त होता है. शेविंग के बाद मौइश्चराइजर जरूर लगाएं.

ट्रिमर की मदद से बालों को ट्रिम कर सकते हैं. हेयर रिमूवल क्त्रीम की मदद से भी बालों को हटा सकते है. बालों पर 10-15 मिनट क्रीम लगा कर छोड़ दें, फिर स्पेटुला की मदद से बालों को हटा दें. वैक्सिंग करना भले ही मुश्किल लगता है लेकिन इस से बाल जड़ से निकलते हैं और ग्रोथ होने में 20 से 22 दिन लगते हैं.

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Friendship : मेरी फ्रैंड हर बात में इंटरफेयर करती है, मैं क्या करूं?

Friendship : मेरी उम्र 24 साल है. कालेज टाइम में मेरी एक बहुत अच्छी फ्रैंड बन गई थी. हम दोनों एकदूसरे के बहुत करीब हैं, सारी बातें शेयर करते हैं. अभी हाल ही में मेरा एक बौयफ्रैंड बना है. मैं ने यह बात अपनी फ्रैंड को बताई तो उस का रिऐक्शन कुछ अजीब लगा मुझे, जैसे मैं ने बौयफ्रैंड बना कर कोई बहुत बड़ी गलती कर दी हो. अब वह रोज मुझ से मेरे बौयफ्रैंड के बारे में पूछती रहती है जैसे वह क्या बातें करता है, कहांकहां गए तुम घूमने, कितने क्लोज आ गए हो, जरा उस से बच कर रहा कर, लड़के लोग धोखेबाज होते हैं आदि. मतलब कि मुझे उस से दूर रहने की सलाह देती रहती है. मैं तंग आ गई हूं. मैं क्या करूं कि जिस से वह मुझ से नाराज न हो और मुझ से मेरे बौयफ्रैंड के बारे में पूछे भी न?

लगता है आप की फ्रैंड आप को ले कर कुछ ज्यादा ही पजेसिव है. आप की या तो वह ज्यादा ही केयर करती है या फिर आप का बौयफ्रैंड बनाना उसे अच्छा नहीं लगा. कारण कुछ भी हो सकता है. आप की लाइफ है, आप की मरजी है कि बौयफ्रैंड बनाएं या न. किसी दूसरे को इस में दखलंदाजी करने का हक नहीं.

आप चाहती हैं कि आप की फ्रैंड की दखलंदाजी न हो और उसे किसी बात का बुरा भी न लगे तो उस से अपने बौयफ्रैंड की कोई बात मत कीजिए. वह पूछे भी तो गोलमोल जवाब दें. बात को दूसरी तरफ घुमा दें. मजाकमजाक में यह भी कह दें कि छोड़ न उसे, हम अपनी बात करते हैं. समझदार होगी तो समझ जाएगी कि आप अपने बौयफ्रैंड की बात उस से नहीं करना चाहतीं.

वैसे भी, यदि आप की लव लाइफ अच्छी चल रही है तो उसे यारदोस्तों से ज्यादा शेयर न करें. ऐसे दोस्तों से तो अपनी पर्सनल लाइफ के बारे में बात न ही करें जो आप को हर छोटी बात में गलत सलाह देते हों. कुछ बातें ऐसी होती हैं जो अपने तक ही सीमित रखनी ठीक होती हैं.

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Financial Planning : युवाओं के सपनों के घर पर डाका

Financial Planning : नौकरीपेशा होम लोन ले कर अपने सपनों का आशियाना खरीद लेते हैं. लेकिन यहां समस्या तब आती है जब किसी सूरत में वे लोन नहीं चुका पाते. ऐसे में कई बार उन्हें अपने घर से हाथ धोना पड़ता है.

प्राइवेट सैक्टर में काम करने वाले 36 साल के राहुल ने बैंक से लोन ले कर दिल्ली में 2 कमरे का फ्लैट बुक कराया. बिल्डर ने उसे 2 साल बाद पजेशन देने की बात कही. उस ने सोचा, धीरेधीरे लोन चुकता कर देगा, फिर तो यह घर उस का अपना हो जाएगा और उसे किराए के घर में नहीं रहना पड़ेगा. 2 साल बाद उसे अपने घर का पजेशन मिल गया और वह अपनी पत्नी के साथ अपने नए घर में रहने भी लगा. सबकुछ सही चल रहा था. बैंक का लोन भी वह हर महीने भर रहा था. तभी अचानक एक दिन उस की पत्नी की तबीयत बहुत खराब हो गई, जिस के कारण उसे अपनी पत्नी को अस्पताल में भरती करवाना पड़ा, जहां डाक्टर ने कुछ टैस्ट कराए. पता चला कि उस की पत्नी की ओवरी में गांठ है और जल्द ही उस का औपरेशन करवाना पड़ेगा. इलाज तो हुआ लेकिन पत्नी की बीमारी में राहुल की सारी जमापूंजी खत्म हो गई, बल्कि उसे अपने रिश्तेदार से कर्ज भी लेना पड़ गया.

रिकवरी एजेंसियों का तकाजा

राहुल की आर्थिक स्थिति इतनी खस्ता हो गई कि वह 3 महीने अपने घर की ईएमआई नहीं भर पाया. लोन न भर पाने के कारण रिकवरी एजेंसियों का स्टाफ उस के मोबाइल पर लगातार कौल कर वसूली के लिए दबाव बनाने लगा. हर बार राहुल का यही कहना था कि अभी उसे पैसों की थोड़ी तंगी है, इसलिए पैसा आते ही वह ईएमआई चुका देगा.

लेकिन रिकवरी एजेंसी अब उसे व्हाट्सऐप कौल करने लगी. उस से भी बात न बनी तो बदतमीजी वाले मैसेज भेजने लगी. कौल पिक न करने पर रैफरैंस में लिखवाए गए उस के एक रिश्तेदार के नंबर पर कौल कर बोला गया कि अपने रिश्तेदार से कहो, फोन उठाए और लोन भरे वरना उस का घर बैंक अपने कब्जे में ले लेगा. लेकिन वह लोन चुकाता कहां से जब उस के पास पैसे ही नहीं थे तो? ईएमआई न चुका पाने के कारण एक दिन बैंक ने राहुल का घर सील कर दिया और राहुल अपने परिवार सहित सड़क पर आ गया.

एक मोबाइल शौप विक्रेता का कहना है कि उस की छोटी सी मोबाइल शौप थी. वह एक बड़ी दुकान खरीद कर अपना बिजनैस बड़ा करना चाहता था, इसलिए उस ने बैंक से 20 लाख रुपए का लोन ले कर और बड़ी दुकान खरीद ली. सोचा, दुकान अच्छी चल रही है तो जल्द ही लोन चुकता कर देगा.

लेकिन उस का सोचा हुआ, हुआ नहीं, क्योंकि, वहां उस जगह पर उस के कंपीटिशन में और कई मोबाइल शौप्स खुल गईं. उस का धंधा मंदा पड़ने लगा. आखिरकर, उस शख्स ने अपनी दुकान का सारा माल बेच दिया, क्योंकि कोई फायदा नहीं हो रहा था उसे. अब जब कमाई ही बंद हो गई तो बैंक का लोन कहां से भरता वह.

2 महीने तक बैंक का लोन नहीं भर पाने के कारण उसे बैंक से फोन आने लगे. लेकिन उस ने बैंक का फोन उठाना बंद कर दिया. फिर बैंक वालों ने उस के एक पहचान वालों से यह कहलवाया कि अगर उस ने लोन नहीं भरा तो उस की दुकान कब्जे में ले लेंगे. उस पर भी उस ने कोई ऐक्शन नहीं लिया तो हार कर बैंक को उस की दुकान को सील करना पड़ा.

घर खरीदना सपना

कोरोना महामारी के समय कंपनियों द्वारा कर्मचारियों की सैलरी में कटौती और छंटनी का असर रियल एस्टेट सैक्टर पर खूब देखने को मिला. बिल्डर और विभिन्न प्रोजैक्ट्स में फ्लैट बुक कराने वाले खरीदारों को एक नई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ा था क्योंकि बैंक फ्लैट के खरीदारों को लोन जारी करने के लिए नई सैलरी स्लिप मांग रहे थे.

कंपनियों में सैलरी में कटौती और जौब तथा व्यापक स्तर पर छंटनी के कारण बैंक पहले यह सुनिश्चित कर लेना चाहता था कि उन का लोन डूबेगा नहीं. राहुल का कहना है कि होम लोन समय से न चुका पाने के कारण उस के साथ ऐसा बरताव किया गया जैसे वह कोई अपराधी हो. उस का घर जब्त कर लिया गया और अब वह अपने एक रिश्तेदार के यहां रहने को मजबूर है.

नौकरीपेशा को लोन लेने में आसानी

लोन की ईएमआई में चूक कोई अपराध नहीं है, हालांकि लोन चुकाने के लिए जारी किए गए चैक का बाउंस होना निगोशिएबल इंस्ट्रूमैंट्स एक्ट 1881 के तहत एक अपराध जरूर माना जा सकता है. घर खरीदना हर व्यक्ति का सपना होता है. आज की तारीख में घर खरीदना थोड़ा आसान हो गया है. यह आसानी होम लोन ने बनाई है. होम लोन न सिर्फ हमें अपने घर खरीदने के फैसले को टालने से रोकता है, बल्कि यह हमें टैक्स बचाने में भी मदद करता है. नौकरी की शुरुआत में ही युवाओं की घर, गाड़ी खरीदने की महत्त्वाकांक्षा होती है. इसलिए वे होम लोन ले कर अपने सपनों का आशियाना खरीद लेते हैं, क्योंकि नौकरीपेशा लोगों को लोन आसानी से मिल जाता है. लेकिन यहां समस्या तब आती है जब किसी सूरत में आप नौकरी खो देते हैं या आप को सैलरी नहीं मिल रही होती है. इस स्थिति में तो कोई भी होम लोन चुकाने में सक्षम नहीं होगा. ऐसे में व्यक्ति बैंक के डर से छिपने की कोशिश करता है, क्योंकि समय पर ईएमआई न चुका पाने के कारण बैंक से कौल आनी शुरू हो जाती हैं. जब आप बैंक की कौल नहीं उठाते तो बैंक ऐक्शन लेता है और वह आप का घर, दुकान जब्त कर लेता है.

युवा आ रहे हैं तनाव में

आर्थिक संकट से जूझ रहे युवा समय पर ईएमआई न चुका पाने के कारण तनाव में आ सकते हैं क्योंकि कई बार रिकवरी एजेंट्स धमकियां देते हैं कि अगर जल्द से जल्द लोन भुगतान नहीं किया गया तो वे उन के घर व औफिस आएंगे. यहां तक बोला जाता है कि जब बेइज्जती होगी तब भुगतान करोगे. ऐसे में साथियों व पड़ोसियों के सामने कलैक्शन एजेंटों के आने की आशंका के चलते लोग मानसिक रूप से परेशान हो सकते हैं. अगर आप के साथ भी कुछ ऐसा हो रहा हो तो परेशान न हों. रिजर्व बैंक के मुताबिक, लोन लेने वाले शख्स के भी कुछ अधिकार होते हैं.

बैंक से करें बात

किसी वजह से होम लोन न चुका पाने की स्थिति में सब से पहले उस बैंक से बात करें जहां से आप ने लोन लिया है. उसे अपनी आर्थिक स्थिति से अवगत कराएं और कहें कि लोन ईएमआई देने के लिए कुछ समय चाहिए. बेहतर होगा कि अपनी समस्या लिखित में बताएं, ताकि आप के पास उस का प्रूफ भी रहे. इस के लिए ईमेल करना अच्छा औप्शन हो सकता है.

बची रकम रीस्ट्रक्चर कराएं

आप बैंक से बात कर के बची रकम को रीस्ट्रक्चर करवा सकते हैं. इस से लोन की ईएमआई कम हो जाती है. हालांकि लोन चुकाने का कुल समय बढ़ जाता है. लोन की बची रकम को रीस्ट्रक्चर करवाने से बैंक को भी फायदा होता है, क्योंकि उसे पहले के मुकाबले ज्यादा रकम मिलती है. इसलिए ज्यादातर बैंक इस बात को आसानी से मान लेते हैं.

जुर्माना हटवाने के लिए कहें

अगर होम लोन की ईएमआई चुकाने में 2-3 महीने से ज्यादा समय हो जाए तो बैंक का जुर्माना काफी हो जाता है. इतने समय में अगर आप के पास पैसों का इंतजाम हो जाता है तो बैंक से जुर्माना हटाने के लिए कह सकते हैं.

बैलेंस ट्रांसफर करवाएं

आप किसी दूसरे बैंक से बात कर उस से बैलेंस के बारे में जानकारी ले सकते हैं. काफी बैंक ऐसे होते हैं जो कस्टमर के लोन को चुकाते हैं और बदले में नया लोन देते हैं. अमूमन लोन की रकम पहले वाले लोन से ज्यादा होती है.

लोन का सैटलमैंट कराएं

अगर आप लोन चुकाने में पूरी तरह असमर्थ हैं और बहुत ज्यादा रकम आप के पास नहीं है तो आप बैंक से लोन का सैटलमैंट करने के लिए भी कह सकते हैं. इस प्रक्रिया में बैंक लोन की बाकी बची पूरी रकम को नहीं लेते बल्कि शेष रकम का कुछ हिस्सा ही ले कर लोन बंद कर देते हैं.

पुलिस में कर सकते हैं शिकायत

अगर आप लोन की किस्त नहीं चुका पा रहे हैं और बैंक का कोई रिकवरी एजेंट आप को धमकी दे रहा है तो आप इस की शिकायत पुलिस में कर सकते हैं क्योंकि लोन न चुका पाना सिविल विवाद के दायरे में आता है. ऐसे में बैंक या उस का कोई रिकवरी एजेंट मनमानी नहीं कर सकता. कोई भी बैंक या रिकवरी एजेंट सुबह 8 बजे से शाम 7 बजे तक ही कौल कर सकता है या घर आ सकता है. अगर वह ऐसा नहीं करता है तो आप उस की शिकायत बैंक या पुलिस से कर सकते हैं.

लोन की किस्त न चुकाने पर नुकसान

जुर्माना लग सकता है, आप का सिबिल स्कोर खराब हो सकता है, घर जब्त होने का जोखिम, लोन ट्रांसफर में कठिनाई, कानूनी परिणाम, भविष्य में लोन या क्रैडिट कार्ड मिलने की संभावना कम हो जाना. वैसे, बैंक एकदम से ग्राहक के खिलाफ ऐक्शन नहीं लेता. ऐसे मामले में बैंक की ओर से पहले समस्या का समाधान निकालने की कोशिश की जाती है, ताकि बैंक को ग्राहक की संपत्ति जब्त कर नीलाम करने की जरूरत न पड़े. लेकिन जब नोटिस के बावजूद ग्राहक की तरफ से कोई ध्यान नहीं दिया जाता और तीसरी किस्त भी मिस हो जाती है तो बैंक लोन अकाउंट को एनपीए मान लेता है और उधारकर्ता को डिफौल्टर घोषित कर देता है.

लोन के एनपीए बन जाने के बाद भी बैंक एकदम से संपत्ति की नीलामी नहीं करता. बैंक होम लोन डिफौल्टर को कानूनी कार्रवाई का नोटिस देता है और फिर उधारकर्ता को छूटी हुई ईएमआई का भुगतान करने के लिए 60 दिन यानी कि 2 महीने तक का समय देता है.

इस के बावजूद उधारकर्ता का जवाब नहीं आता तो घर नीलाम कर दिया जाता है. नीलामी के मामले में बैंक को पब्लिक नोटिस जारी करना पड़ता है. इस नोटिस में असेट का उचित मूल्य, रिजर्व प्राइस, तारीख और नीलामी के समय का जिक्र किया जाता है. अगर बौरोअर को लगता है कि असेट का दाम कम रखा गया है तो वह नीलामी को चुनौती दे सकता है.

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