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Short Story : पत्‍नी का चुनाव

 

गाड़ी की रफ्तार धीरेधीरे कम हो रही थी. सुधीर ने झांक कर देखा, स्टेशन आ गया था. गाड़ी प्लेटफार्म पर आ कर खड़ी हो गई थी. प्रथम श्रेणी का कूपा था, इसलिए यात्रियों को चढ़नेउतरने की जल्दी नहीं हो रही थी.

सुधीर इत्मीनान से अटैची ले कर दरवाजे की ओर बढ़ा. तभी उस ने देखा कि गाड़ी के दरवाजे पर सुनहरे फ्रेम का चश्मा लगाए व सूटबूट पहने एक आदमी आरक्षण सूची में अपना नाम देख रहा था.

उस आदमी को अपना नाम दिखाई दिया तो उस ने पीछे खड़े कुली से सामान अंदर रखने को कहा.

सुधीर को उस की आकृति कुछ पहचानी सी लगी. पर चेहरा तिरछा था इसलिए दिखाई नहीं दिया. जब उस ने मुंह घुमाया तो दोनों की नजरें मिलीं. क्षणांश में ही दोनों दोस्त गले लग गए. सुधीर के कालेज के दिनों का साथी विनय था. दोनों एक ही छात्रावास में कई साल साथ रहे थे.

सुधीर ने पूछा, ‘‘आजकल कहां हो? क्या कर रहे हो?’’

विनय बोला, ‘‘यहीं दिल्ली में अपनी फैक्टरी है. तुम कहां हो?’’

‘‘सरकारी नौकरी में उच्च अधिकारी हूं. दौरे पर बाहर गया था. मैं भी यहीं दिल्ली में ही हूं.’’

वे बातें कर ही रहे थे कि गाड़ी की सीटी ने व्यवधान डाला. एक गाड़ी से उतर रहा था, दूसरा चढ़ रहा था. दोनों ने अपनेअपने विजिटिंग कार्ड निकाल कर एकदूसरे को दिए. सुधीर गाड़ी से उतर गया. दोनों मित्र एकदूसरे की ओर देखते हुए हाथ हिलाते रहे. जब गाड़ी आंखों से ओझल हो गई तो सुधीर के पांव घर की ओर बढ़ने लगे.

टैक्सी चल रही थी, पर सुधीर का मन विनय में रमा था. विनय और वह छात्रावास के एक ही कमरे में रहते थे. विनय का मन खेलकूद में ही लगा रहता था, जबकि सुधीर की आकांक्षा थी कि किसी प्रतियोगिता में चुना जाए और उच्च अधिकारी बने. इसलिए हर समय पढ़ता रहता था.

जबतब विनय उसे टोकता था, ‘क्यों किताबी कीड़ा बना रहता है, जिंदगी में और भी चीजें हैं, उन की ओर भी देख.’

‘मेरे कुछ सपने हैं कि उच्च अफसर बनूं, कार हो, बंगला हो, इसलिए मेरी मां मेरे सपने को पूरा करने के लिए जेवर बेच कर मेरी फीस भर रही है.’

उस की सब तमन्नाएं पूरी हो गई थीं. पर विनय से मिलने के बाद उसे ताज्जुब हो रहा था कि वह भी उसी की तरह गरीब परिवार से था. उस का यह कायापलट कैसे हो गया? एक फैक्टरी का मालिक कैसे बन गया? इसी उधेड़बुन में वह घर पहुंचा.

नौकर रामू ने कार का दरवाजा खोला. घर के अंदर मेज पर मां की बीमारी का तार पड़ा था. पड़ोसिन चाची ने बुलाया था.

रामू ने बताया, ‘‘मेम साहब अपनी सहेलियों के साथ घूमने गई हैं.’’

सुनते ही सुधीर को गुस्सा आ गया. वह सोच रहा था कि जब मां का तार आ गया था तो रश्मि को उन के पास जाना चाहिए था. वह उलटे पांव बस अड्डे की ओर चल दिया. वह रहरह कर रश्मि पर खीज रहा था कि उसे मां की बीमारी की जरा भी परवा नहीं है.

मां बेटे को देख प्रसन्न हो उठीं. पड़ोसिन चाची ने बताया, ‘‘तेरी मां को तेज बुखार था. हम तो घबरा गए. इसीलिए तुझे तार दे दिया. रश्मि को क्यों नहीं लाया?’’

‘‘वह अपनी मां के पास गई है. घर होती तो अवश्य आती.’’

सुधीर जानता था कि गांव के माहौल में मां के साथ रहना रश्मि को गवारा नहीं है. मां भी उस की आदतें जानती थीं, इसीलिए उन्होंने अधिक कुछ नहीं कहा.

दूसरे दिन सुधीर लौट आया था. रश्मि ने मां की बीमारी के बारे में ज्यादा पूछताछ नहीं की थी.

अगली सुबह वह अभी दफ्तर पहुंचा ही था कि रश्मि का फोन आ गया, ‘‘आज घर में पार्टी है, नौकर नहीं आया है, तुम दफ्तर के किसी आदमी को थोड़ी देर के लिए भेज दो.’’

सुधीर कुढ़ गया, पर कुछ सोचते हुए बेरुखी से बोला, ‘‘ठीक है, भेज दूंगा.’’

शाम को वह घर पहुंचा. सोचा था कि थोड़ी देर आराम करेगा और कौफी पी कर थकान मिटाएगा. वह रश्मि के पास पहुंचा. वह लेटी हुई पुस्तक पढ़ रही थी.

सुधीर को देख कर बोली, ‘‘आज मैं तो बहुत थक गई. नौकर भी नहीं आया. अब तो उठा भी नहीं जा रहा है. पर किटी पार्टी बहुत अच्छी रही. रमी में बारबार हारती ही रही, इसलिए थोड़ा जी खट्टा हो गया. आज तो रात का खाना बाहर ही खाना पड़ेगा.’’

रश्मि की बातें सुन सुधीर की कौफी पीने की इच्छा मर गई. वह पलंग पर लेट गया और सोचने लगा, ‘रश्मि का समय या तो घूमने में व्यतीत होता है या सखियों के साथ ताश खेलने में. घर के कामों में तो उस का मन ही नहीं लगता है, इसीलिए मोटी और भद्दी होती जा रही है. जब कभी मैं राय देता हूं कि घर के कामों में मन नहीं लगता है तो मत करो, लेकिन घूमने या रमी खेलने के बजाय कुछ रचनात्मक कार्य करो तो चिढ़ उठती है.’

सोचतेसोचते सुधीर सो गया. 9 बजे रश्मि ने जगाया, ‘‘चलिए, किसी होटल में खाना खाते हैं.’’

न चाहते हुए भी सुधीर को उस के साथ जाना पड़ा.

सुबह सुधीर दफ्तर जाने लगा तो रश्मि बोल उठी, ‘‘दफ्तर पहुंच कर ड्राइवर से कहिएगा कि कार घर ले आए. कुछ खरीदारी करनी है.’’

‘‘कल ही तो इतना सामान खरीद कर लाई हो, आज फिर कौन सी ऐसी जरूरत पड़ गई. अपने दोनों बच्चे मसूरी में पढ़ रहे हैं. उन का खर्चा भी है. इस तरह तो तनख्वाह में गुजारा होना मुश्किल है. ऊपरी आमदनी भी कम है, लोग पैसा देते हैं तो 10 काम भी निकालते हैं.’’

सुनते ही रश्मि के माथे पर बल पड़ गए, ‘‘बड़े भैया भी इसी पद पर हैं लेकिन उन की सुबह तो तोहफों से शुरू होती है और रात नोट गिनते हुए व्यतीत होती है. वह तो कभी टोकाटाकी नहीं करते.’’

‘‘आजकल जमाना खराब है, बहुत सोचसमझ कर कदम बढ़ाना पड़ता है. अगर कहीं छानबीन हो गई तो सारी इज्जत खाक में मिल जाएगी,’’ सुधीर बोला.

रश्मि रोंआसी हो गई, ‘‘कार क्या मांगी, पचास बातें सुननी पड़ीं.’’

सुधीर रश्मि के आंसू नहीं देख सकता था. माफी मांग कर उस के आंसू पोंछने के लिए रूमाल निकाला तो जेब से एक कार्ड गिर पड़ा.

कार्ड देख कर विनय का ध्यान आ गया, ‘‘मेरे कालेज के दिनों का मित्र इसी शहर में रह रहा है, मुझे पता ही नहीं चला. अब किसी दिन उस के घर चलेंगे.’’

रश्मि को गाड़ी भेजने का वादा कर के ही वह दफ्तर जा पाया. दफ्तर से विनय को फोन किया. दूसरे दिन छुट्टी थी. विनय ने दोनों को खाने पर आने का न्योता दे दिया.

दूसरे दिन सुधीर और रश्मि गाड़ी से विनय के घर की ओर चल पड़े. आलीशान कोठी के गेट पर दरबान पहरा दे रहा था. पोर्टिको में विदेशी गाड़ी खड़ी थी. लौन में बैठा विनय उन का इंतजार कर रहा था. उस ने मित्र को गले लगा लिया. फिर रश्मि को ‘नमस्ते’ कह कर उन्हें बैठक में ले गया.

सुधीर ने देखा कि बैठक विदेशी और कीमती सामानों से सजी हुई है. सभी सोफे पर बैठ गए. नौकर ठंडा पानी ले कर आया. रश्मि ने इधरउधर देख कर पूछा, ‘‘भाभीजी दिखाई नहीं दे रही हैं?’’

‘‘जरूरी काम पड़ गया था इसलिए फैक्टरी जाना पड़ा. आती ही होंगी,’’ विनय ने उत्तर दिया.

थोड़ी देर बाद क्षमा आती हुई दिखाई दी.

सुधीर ने देखा, इकहरे शरीर व सांवले रंगरूप वाली क्षमा सीधी चोटी और कायदे से बंधी साड़ी में भली और शालीन लग रही थी.

मेहमानों को अभिवादन कर के वह बैठ गई.

सुधीर को लगा कि इसे कहीं देखा है, पर याद नहीं आया. वह सोच रहा था, ‘रश्मि इस से सुंदर है, पर मोटापे के कारण कितनी भद्दी लग रही है.’

तभी 2 बच्चों की ‘नमस्ते’ से उस का ध्यान टूटा. दोनों बच्चे मां के पास बैठ गए थे. सुधीर ने देखा, बच्चे भी मांबाप के प्रतिरूप हैं. शीघ्र ही मां से खेलने जाने की आज्ञा मांगी तो क्षमा ने कहा, ‘‘जाओ, खेल आओ, परंतु खाने के समय आ जाना.’’

फिर वह रश्मि से बोली, ‘‘आप बच्चों को क्यों नहीं लाईं?’’

रश्मि के चेहरे पर गर्वीली मुसकान छा गई. कटे हुए बालों को झटक कर कहा, ‘‘दोनों बच्चे मसूरी में पढ़ते हैं, घर में ठीक से पढ़ाई नहीं हो पाती है.’’

क्षमा ने बच्चों को स्नेह से देखा, जो बाहर खेलने जा रहे थे, ‘‘मैं तो इन के बिना रह ही नहीं सकती.’’

विनय और सुधीर अपने कालेज के दिनों की बातें कर रहे थे, जैसे कई साल पीछे पहुंच गए हों.

क्षमा को देख कर विनय बोला, ‘‘यह तो हमेशा पढ़ाई में लगा रहता था, लेकिन मैं खेलने में मस्त रहता था. परीक्षा के दिनों में यह मेरे पीछे पड़ा रहता कि किसी तरह से कुछ याद कर लूं. तब मैं इस का मजाक उड़ाता था. आज यह अपनी मेहनत और लगन से ही उच्च ओहदे पर पहुंचा है.’’

सुधीर ने हंसते हुए कहा, ‘‘भाभीजी, झगड़ा यह करता था, निबटाने मैं पहुंचता था.’’

दोनों दोस्त बातों में मगन थे कि फोन की घंटी बजी. विनय कुछ देर बात करने के बाद पत्नी से बोला, ‘‘बाहर से कुछ लोग आए हैं, वे व्यापार के सिलसिले में हम से बात करना चाहते हैं. तुम्हारे पास कब समय है? वही समय उन्हें बता दूं. जरूरी मीटिंग है, हम दोनों को जाना होगा.’’

क्षमा ने घड़ी देख कर कहा, ‘‘कल की मीटिंग रख लीजिए, मैं फैक्टरी पहुंच जाऊंगी.’’

देखने में साधारण व घरेलू लगने वाली महिला क्या मीटिंग में बोल पाएगी? कैसे व्यापार संबंधी बातचीत करती होगी? सुधीर क्षमा को ताज्जुब से देख रहा था.

उस की शंका का समाधान विनय ने किया, ‘‘क्षमा बहुत होशियार हैं, कुशाग्रबुद्धि और मेहनती हैं. इन्हीं की असाधारण प्रतिभा और मेहनत के कारण ही छोटी सी दुकान से शुरू कर के आज हम फैक्टरी के मालिक बन गए हैं.’’

क्षमा ने बातों का रुख बदलते हुए कहा, ‘‘चलिए, खाना लग गया है.’’

सभी भोजनकक्ष में आ गए तो क्षमा ने बच्चों को भी बुला लिया. खाने की मेज पर कुछ भारतीय तो कुछ विदेशी व्यंजन दिखाई दे रहे थे.

रश्मि ने कहा, ‘‘आप को तो घर का काम देखने की फुरसत ही नहीं मिलती होगी क्योंकि फैक्टरी में जो व्यस्त रहती हैं.’’

विनय ने पत्नी की ओर प्रशंसाभरी नजरों से देखते हुए कहा, ‘‘यही तो इन की खूबी है, खाना अपने तरीके से बनवाती हैं. जिस दिन ये रसोई में नहीं जातीं तो बच्चों का और मेरा पेट ही नहीं भरता.’’

बच्चे खाना खा कर अपने कमरे में जा चुके थे. उन के हंसनेबोलने की आवाजें आ रही थीं. सारा माहौल अत्यंत खुशनुमा प्रतीत हो रहा था, जबकि सुधीर को अपना सूना घर कभीकभी अखर जाता था. वह तो चाहता था कि बच्चे घर पर ही पढ़ें. पर इस से रश्मि की आजादी में खलल पड़ता था. दूसरे, जिस तरह का जीवन रश्मि जी रही थी, उस माहौल में बच्चे पढ़ ही नहीं सकते थे. इसीलिए उन्हें मसूरी भेज दिया था.

जाड़ों की धूप का अलग ही आनंद होता है. खाना खा कर सभी धूप में बैठ कर गपशप करने लगे. गरमागरम कौफी भी आ गई. विनय ने पूछा, ‘‘मां कैसी हैं? मुझे तो उन्होंने बहुत प्यार दिया है.’’

‘‘वे रुड़की से आना ही नहीं चाहतीं. हम लोग तो बहुत चाहते हैं कि वे यहीं रहें,’’ सुधीर ने उदास स्वर में उत्तर दिया.

विनय ने बताया, ‘‘क्षमा का मायका भी रुड़की में ही है. इस तरह तो तू उस का भाई हुआ और मेरा साला भी बन गया. दोस्त और साला यानी पक्का रिश्ता हो गया.’’

विनय हंसा तो साथ में सभी हंस पड़े. अब सुधीर को सारी कहानी समझ में आ गई थी कि क्षमा को कहां और कब देखा था? उस की पढ़ाई समाप्त हो चुकी थी. मनमाफिक नौकरी मिल चुकी थी. दिलोदिमाग पर अफसरी की शान छाई थी. शादी के लिए हर तरह के रिश्ते आ रहे थे. लेकिन उस के दिमाग में ऐसी लड़की की तसवीर बन गई थी जो जिंदगी की गाड़ी तेजी से दौड़ा सके, जिस की रफ्तार धीमी न हो.

मां ने क्षमा की फोटो दिखाई थी. एक दिन वह उस को देखने उस के घर जा पहुंचा था. साधारण वेशभूषा में दुबलीपतली सांवले रंगरूप वाली क्षमा ने आ कर नमस्कार किया था.

तब सुधीर ने सोचा कि अगर इस साधारण सी लड़की से शादी की तो जिंदगी में कुछ चमकदमक नहीं होगी और न ही कोई नवीनता, वही पुरानी घिसीपिटी धीमी गति से गाड़ी हिचकोले खाती रहेगी.

उस का ध्यान दीनानाथ की बातों से टूटा था, ‘क्षमा बहुत कुशाग्रबुद्धि है, हमेशा प्रथम आई है. खाना तो बहुत ही अच्छा बनाती है. यह गुलाबजामुन इसी के बनाए हुए हैं.’

सुधीर यह कह कर लौट आया था कि मां से सलाह कर के जवाब देगा. रश्मि सुधीर के एक मित्र की बहन थी. जब वह आधुनिक पोशाक में उस के सामने आई तो सौंदर्य के साथसाथ उस की शोखी और चपलता भी सुधीर को भा गई.

उस ने सोचा, ‘यही लड़की मेरे लिए ठीक रहेगी. कहां क्षमा जैसी सीधीसादी लड़की और कहां यह तेजतर्रार आधुनिका…दोनों की कोई तुलना नहीं.’

सुधीर ने मां को फैसला सुना दिया और रश्मि उस की सहचरी बन गई.

अब उसे लग रहा था कि वास्तव में क्षमा की रफ्तार ही तेज है. रश्मि तो फिसड्डी और घिसीपिटी निकली, जिस में न कुछ करने की उमंग है, न लगन.

Hate Story : एक बेवफा थी

श्रेया से गौतम की मुलाकात सब से पहले कालेज में हुई थी. जिस दिन वह कालेज में दाखिला लेने गया था, उसी दिन वह भी दाखिला लेने आई थी.

वह जितनी सुंदर थी उस से कहीं अधिक स्मार्ट थी. पहली नजर में ही गौतम ने उसे अपना दिल दे दिया था.

गौतम टौपर था. इस के अलावा क्रिकेट भी अच्छा खेलता था. बड़ेबड़े क्लबों के साथ खेल चुका था. उस के व्यक्तित्व से कालेज की कई लड़कियां प्रभावित थीं. कुछ ने तो खुल कर मोहब्बत का इजहार तक कर दिया था.

उस ने किसी का भी प्यार स्वीकार नहीं किया था. करता भी कैसे? श्रेया जो उस के दिल में बसी हुई थी.

श्रेया भी उस से प्रभावित थी. सो, उस ने बगैर देर किए उस से ‘आई लव यू’ कह दिया.

वह कोलकाता के नामजद अमीर परिवार से थी. उस के पिता और भाई राजनीति में थे. उन के कई बिजनैस थे. दौलत की कोई कमी न थी.

गौतम के पिता पंसारी की दुकान चलाते थे. संपत्ति के नाम पर सिर्फ दुकान थी. जिस मकान में रहते थे, वह किराए का था. उन की एक बेटी भी थी. वह गौतम से छोटी थी.

अपनी हैसियत जानते हुए भी गौतम, श्रेया के साथ उस के ही रुपए पर उड़ान भरने लगा था. उस से विवाह करने का ख्वाब देखने लगा था.

कालांतर में दोनों ने आधुनिक रीति से तनमन से प्रेम प्रदर्शन किया. सैरसपाटे, मूवी, होटल कुछ भी उन से नहीं छूटा. मर्यादा की सारी सीमा बेहिचक लांघ गए थे.

2 वर्ष बीत गए तो गौतम ने महसूस किया कि श्रेया उस से दूर होती जा रही है. वह कालेज के ही दूसरे लड़के के साथ घूमने लगी थी. उसे बात करने का भी मौका नहीं देती थी.

बड़ी मुश्किल से एक दिन मौका मिला तो उस से कहा, ‘‘मुझे छोड़ कर गैरों के साथ क्यों घूमती हो? मुझ से शादी करने का इरादा नहीं है क्या?’’

श्रेया ने तपाक से जवाब दिया, ‘‘कभी कहा था कि तुम से शादी करूंगी?’’

वह तिलमिला गया. किसी तरह गुस्से को काबू में कर के बोला, ‘‘कहा तो नहीं था पर खुद सोचो कि हम दोनों में पतिपत्नी वाला रिश्ता बन चुका है तो शादी क्यों नहीं कर सकते हैं?’’

‘‘मैं ऐसा नहीं मानती कि किसी के साथ पतिपत्नी वाला रिश्ता बन जाए तो उसी से विवाह करना चाहिए.

‘‘मेरा मानना है कि संबंध किसी से भी बनाया जा सकता है, पर शादी अपने से बराबर वाले से ही करनी चाहिए. शादी में दोनों परिवारों के आर्थिक व सामाजिक रुतबे पर ध्यान देना अनिवार्य होता है.

‘‘तुम्हारे पास यह सब नहीं है. इसलिए शादी नहीं कर सकती. तुम्हारे लिए यही अच्छा होगा कि अब मेरा पीछा करना बंद कर दो, नहीं तो अंजाम बुरा होगा.’’

श्रेया की बात गौतम को शूल की तरह चुभी. लेकिन उस ने समझदारी से काम लेते हुए उसे समझने की कोशिश की पर वह नहीं मानी.

आखिरकार, उसे लगा कि श्रेया किसी के बहकावे में आ कर रिश्ता तोड़ना चाहती है. उस ने सोचा, ‘उस के घर वालों को सचाई बता दूंगा तो सब ठीक हो जाएगा. परिजनों के कहने पर उसे मुझसे विवाह करना ही होगा.’

एक दिन वह श्रेया के घर गया. उस के पिता व भाई को अपने और उस के बारे में सबकुछ बताया.

श्रेया अपने कमरे में थी. भाई ने बुलाया. वह आई. भाई ने गौतम की तरफ इंगित कर उस से पूछा, ‘‘इसे पहचानती हो?’’

श्रेया सबकुछ समझ गई. झट से अपने बचाव का रास्ता भी ढूंढ़ लिया. बगैर घबराए कहा, ‘‘यह मेरे कालेज में पढ़ता है. इसे मैं जरा भी पसंद नहीं करती. किंतु यह मेरे पीछे पड़ा रहता है. कहता है कि मुझ से शादी नहीं करोगी तो इस तरह बदनाम कर दूंगा कि मजबूर हो कर शादी करनी ही पड़ेगी.’’

वह कहता रहा कि श्रेया झठ बोल रही है परंतु उस के भाई और पिता ने एक न सुनी. नौकरों से उस की इतनी पिटाई कराई कि अधमरा हो गया. पैरों की हड्डियां टूट गईं.

किसी पर किसी तरह का इलजाम न आए, इसलिए गौतम को अस्पताल में दाखिल करा दिया गया.

थाने में श्रेया द्वारा यह रिपोर्ट लिखा दी गई, ‘घर में अकेली थी. अचानक गौतम आया और मेरा रेप करने की कोशिश की. उसी समय घर के नौकर आ गए. उस की पिटाई कर मुझे बचा लिया.’

थाने से खबर पाते ही गौतम के पिता अस्पताल आ गए. गौतम को होश आया तो सारा सच बता दिया.

सिर पीटने के सिवा उस के पिता कर ही क्या सकते थे. श्रेया के परिवार से भिड़ने की हिम्मत नहीं थी.

उन्होंने गौतम को समझाया, ‘‘जो हुआ उसे भूल जाओ. अस्पताल से वापस आ कर पढ़ाई पर ध्यान लगाना. कोशिश करूंगा कि तुम पर जो मामला है, वापस ले लिया जाए.’’

 

अस्पताल में गौतम को 5 माह रहना पड़ा. वे 5 माह 5 युगों से भी लंबे थे. कैलेंडर की तारीखें एकएक कर के उस के सपनों के टूटने का पैगाम लाती रही थीं.

उसे कालेज से निकाल दिया गया तो दोस्तों ने भी किनारा कर लिया. महल्ले में भी वह बुरी तरह बदनाम हो चुका था. कोई उसे देखना नहीं चाहता था.

श्रेया के आरोप पर किसी को विश्वास नहीं हुआ तो वह थी इषिता. वह उसी कालेज में पढ़ती थी और गौतम की दोस्त थी. वह अस्पताल में उस से मिलने बराबर आती रही. उसे हर तरह से हौसला देती रही.

गौतम घर आ गया तो भी इषिता उस से मिलने घर आती रही. शरीर के घाव तो कुछ दिनों में भर गए पर आत्मसम्मान के कुचले जाने से उस का आत्मविश्वास टूट चुका था.

मन और आत्मविश्वास के घावों पर कोई औषधि काम नहीं कर रही थी. गौतम ने फैसला किया कि अब आगे नहीं पढ़ेगा.

परिजनों तथा शुभचिंतकों ने बहुत सम?ाया लेकिन वह फैसले से टस से मस नहीं हुआ.

इस मामले में उस ने इषिता की भी नहीं सुनी. इषिता ने कहा था, ‘‘ पढ़ना नहीं चाहते हो तो कोई बात नहीं. क्रिकेट में ही कैरियर बनाओ.’’

‘‘मेरा आत्मविश्वास टूट चुका है. कुछ नहीं कर सकता. इसलिए मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो,’’ उस ने दोटूक जवाब दिया था.

वह दिनभर चुपचाप घर में पड़ा रहता था. घर के लोगों से भी ठीक से बात नहीं करता था. किसी रिश्तेदार या दोस्त के घर भी नहीं जाता था. हर समय चिंता में डूबा रहता.

पहले छुट्टियों में पिता की दुकान संभालता था. अब पिता के कहने पर भी दुकान पर नहीं जाता था. उसे लगता था कि दुकान पर जाएगा तो महल्ले की लड़कियां उस पर छींटाकशी करेंगी तो वह बरदाश्त नहीं कर पाएगा.

इसी तरह घटना को 2 वर्ष बीत गए. इषिता ने ग्रैजुएशन कर ली. जौब की तलाश की, तो वह भी मिल गई. बैक में जौब मिली थी. पोस्टिंग मालदह में हुई थी.

जाते समय इषिता ने उस से कहा, कोलकाता से जाने की इच्छा तो नहीं है पर सवाल जिंदगी का है. जौब तो करनी ही पड़ेगी, पर 6-7 महीने में ट्रांसफर करा कर आ जाऊंगी. विश्वास है कि तब तक श्रेया को दिल से निकाल फेंकने में सफल हो जाओगे.

इषिता मालदह चली गई तो गौतम पहले से अधिक अवसाद में आ गया. तब उस के मातापिता ने उस की शादी करने का विचार किया.

मौका देख कर मां ने उस से कहा, ‘‘जानती हूं कि इषिता सिर्फ तुम्हारी दोस्त है. इस के बावजूद यह जानना चाहती हूं कि यदि वह तुम्हें पसंद है तो बोलो, उस से शादी की बात करूं?’’

‘‘वह सिर्फ मेरी दोस्त है. हमेशा दोस्त ही रहेगी. रही शादी की बात, तो कभी किसी से भी शादी नहीं करूंगा. यदि किसी ने मुझ पर दबाव डाला तो घर छोड़ कर चला जाऊंगा.’’

गौतम ने अपना फैसला बता दिया तो मां और पापा ने उस से फिर कभी शादी के लिए नहीं कहा. उसे उस के हाल पर छोड़ दिया.

लेकिन एक दोस्त ने उसे समझाते हुए कहा, ‘‘श्रेया से तुम्हारी शादी नहीं हो सकती, यह अच्छी तरह जानते हो. फिर जिंदगी बरबाद क्यों कर रहे हो? किसी से विवाह कर लोगे तो पत्नी का प्यार पा कर अवश्य ही उसे भूल जाओगे.’’

‘‘जानता हूं कि तुम मेरे अच्छे दोस्त हो. इसलिए मेरे भविष्य की चिंता है. परंतु सचाई यह है कि श्रेया को भूल पाना मेरे वश की बात नहीं है.’’

दोस्त ने तरहतरह से समझाया. पर वह किसी से भी शादी करने के लिए राजी नहीं हुआ.

इषिता गौतम को सप्ताह में 2-3 दिन फोन अवश्य करती थी. वह उसे बताता था कि जल्दी ही श्रेया को भूल जाऊंगा. जबकि हकीकत कुछ और ही थी.

हकीकत यह थी कि इषिता के जाने के बाद उस ने कई बार श्रेया को फोन लगाया था. पर लगा नहीं था. घटना के बाद शायद उस ने अपना नंबर बदल लिया था.

न जाने क्यों उस से मिलने के लिए वह बहुत बेचैन था. समझ नहीं पा रहा था कि कैसे मिले. अंजाम की परवा किए बिना उस के घर जा कर मिलने को वह सोचने लगा था.

तभी एक दिन श्रेया का ही फोन आ गया. बहुत देर तक विश्वास नहीं हुआ कि उस का फोन है.

विश्वास हुआ, तो पूछा, ‘‘कैसी हो?’’

‘‘तुम से मिल कर अपना हाल बताना चाहती हूं. आज शाम के 7 बजे साल्ट लेक मौल में आ सकते हो?’’ उधर से श्रेया ने कहा.

खुशी से लबालब हो कर गौतम समय से पहले ही मौल पहुंच गया. श्रेया समय पर आई. वह पहले से अधिक सुंदर दिखाई पड़ रही थी.

उस ने पूछा, ‘‘मेरी याद कभी आई थी?’’

‘‘तुम दिल से गई ही कब थीं जो याद आतीं. तुम तो मेरी धड़कन हो. कई बार फोन किया था, लगा नहीं था. लगता भी कैसे, तुम ने नंबर जो बदल लिया था.’’

उस का हाथ अपने हाथ में ले कर श्रेया बोली, ‘‘पहले तो उस दिन की घटना के लिए माफी चाहती हूं. मुझे इस का अनुमान नहीं था कि मेरे झठ को पापा और भैया सच मान कर तुम्हारी पिटाई करा देंगे.

‘‘फिर कोई लफड़ा न हो जाए, इस डर से पापा ने मेरा मोबाइल ले लिया. अकेले घर से बाहर जाना बंद कर दिया गया.

‘‘मुंबई से तुम्हें फोन करने की कोशिश की, परंतु तुम्हारा नंबर याद नहीं आया. याद आता तो कैसे? घटना के कारण सदमे में जो थी. उन्होंने सोर्ससिफारिश की तो श्रेया के पिता ने मामला वापस ले लिया.

‘‘फिलहाल वहां ग्रैजुएशन करने के बाद 3 महीने पहले ही आई हूं. बहुत कोशिश करने पर तुम्हारे एक दोस्त से तुम्हारा नंबर मिला, तो तुम्हें फोन किया. मेरी सगाई हो गई है. 3 महीने बाद शादी हो जाएगी.

‘‘यह कहने के लिए बुलाया है कि जो होना था वह हो गया. अब मुद्दे की बात करते हैं. सचाई यह है कि हम अब भी एकदूसरे को चाहते हैं. तुम मेरे लिए बेताब हो, मैं तुम्हारे लिए.

‘‘इसलिए शादी होेने तक हम रिश्ता बनाए रख सकते हैं. चाहोगे तो शादी के बाद भी मौका पा कर तुम से मिलती रहूंगी. ससुराल कोलकाता में ही है. इसलिए मिलनेजुलने में कोई परेशानी नहीं होगी.’’

श्रेया का चरित्र देख कर गौतम को इतना गुस्सा आया कि उस का कत्ल कर फांसी पर चढ़ जाने का मन हुआ. लेकिन ऐसा करना उस के वश में नहीं था. क्योंकि वह उसे अथाह प्यार करता था. उसे लगता था कि श्रेया को कुछ हो गया तो वह जीवित नहीं रह पाएगा.

उसे सम?ाते हुए उस ने कहा, ‘‘मुझे इतना प्यार करती हो तो शादी मुझ से क्यों नहीं कर लेतीं?’’

‘‘इस जमाने में शादी की जिद पकड़ कर क्यों बैठे हो? वह जमाना पीछे छूट गया जब प्रेमीप्रेमिका या पतिपत्नी एकदूसरे से कहते थे कि जिंदगी तुम से शुरू, तुम पर ही खत्म है.

‘‘अब तो ऐसा चल रहा है कि जब तक साथ निभे, निभाओ, नहीं तो अपनेअपने रास्ते चले जाओ. तुम खुद ही बोलो, मैं क्या कुछ गलत कह रही हूं? क्या आजकल ऐसा नहीं हो रहा है?

‘‘दरअसल, मैं सिर्फ कपड़ों से ही नहीं, विचारों से भी आधुनिक हूं. जमाने के साथ चलने में विश्वास रखती हूं. मैं चाहती हूं कि तुम भी जमाने के साथ चलो. जो मिल रहा है उस का भरपूर उपभोग करो. फिर अपने रास्ते चलते बनो.’’

श्रेया जैसे ही चुप हुई, गौतम ने कहा, ‘‘लगा था कि तुम्हें गलती का अहसास हो गया है. मु?ा से माफी मांगना चाहती हो. पर देख रहा हूं कि आधुनिकता के नाम पर तुम सिर से पैर तक कीचड़ से इस तरह सन चुकी हो कि जिस्म से बदबू आने लगी है.

‘‘यह सच है कि तुम्हें अब भी अथाह प्यार करता हूं. इसलिए तुम्हें भूल जाना मेरे वश की बात नहीं है. लेकिन अब तुम मेरे दिल में शूल बन कर रहोगी, प्यार बन कर नहीं.’’

श्रेया ने गौतम को अपने रंग में रंगने की पूरी कोशिश की, परंतु उस की एक दलील भी उस ने नहीं मानी.

उस दिन से गौतम पहले से भी अधिक गमगीन हो गया.

इस तरह कुछ दिन और बीत गए. अचानक इषिता ने फोन पर बताया कि उस ने कोलकाता में ट्रांसफर करा लिया है. 3-4 दिनों में आ जाएगी.

3 दिनों बाद इषिता आ भी गई. गौतम के घर गई तो वह गहरी सोच में था.

उस ने आवाज दी. पर उस की तंद्रा भंग नहीं हुई. तब उसे झंझोड़ा और कहा, ‘‘किस सोच में डूबे हुए हो?’’

‘‘श्रेया की यादों से अपनेआप को मुक्त नहीं कर पा रहा हूं,’’ गौतम ने सच बता दिया.

इषिता गुस्से से उफन उठी, ‘‘इतना सबकुछ होने के बाद भी उसे याद करते हो? सचमुच तुम पागल हो गए हो?’’

‘‘तुम ने कभी किसी को प्यार नहीं किया है इषिता, मेरा दर्द कैसे समझ सकती हो.’’

‘‘कुछ घाव किसी को दिखते नहीं. इस का मतलब यह नहीं कि उस शख्स ने चोट नहीं खाई होगी,’’ इषिता ने कहा.

गौतम ने इषिता को देखा तो पाया कि उस की आंखें नम थीं. उस ने कहा, ‘‘तुम्हारी आंखों में आंसू हैं. इस का मतलब यह है कि तुम ने भी प्यार में धोखा खाया है?’’

‘‘इसे तुम धोखा नहीं कह सकते. जिसे मैं प्यार करती थी उसे पता नहीं था.’’

‘‘यानी वन साइड लव था?’’

‘‘कुछ ऐसा ही समझो.’’

‘‘लड़का कौन था. निश्चय ही वह कालेज का रहा होगा?’’

इषिता उसे उलझन में नहीं रखना चाहती थी, रहस्य पर से परदा हटाते हुए कह दिया, ‘‘वह कोई और नहीं, तुम हो.’’

गौतम ने चौंक कर उसे देखा तो वह बोली, ‘‘कालेज में पहली बार जिस दिन तुम से मिली थी उसी दिन तुम मेरे दिल में घर कर गए थे. दिल का हाल बताती, उस से पहले पता चला कि तुम श्रेया के दीवाने हो. फिर चुप रह जाने के सिवा मेरे पास रास्ता नहीं था.

‘‘जानती थी कि श्रेया अच्छी लड़की नहीं है. तुम से दिल भर जाएगा, तो झट से किसी दूसरे का दामन थाम लेगी. आगाह करती, तो तुम्हें लगता कि अपना स्वार्थ पूरा करने के लिए उस पर इलजाम लगा रही हूं. इसलिए तुम से दोस्ती कर ली पर दिल का हाल कभी नहीं बताया.

‘‘श्रेया के साथ तुम्हारा सबकुछ खत्म हो गया, तो सोचा कि मौका देख कर अपनी मोहब्बत का इजहार करूंगी और तुम से शादी कर लूंगी. पर देख रही हूं कि आज भी तुम्हारे दिल में वह ही है.’’

दोनों के बीच कुछ देर तक खामोशी पसर गई. गौतम ने ही थोड़ी देर बार खामोशी दूर की, ‘‘उसे दिल से निकाल नहीं पा रहा हूं, इसीलिए कभी शादी न करने का फैसला किया है.’’

‘‘तुम्हें पाने के लिए मैं ने जो तपस्या की है उस का फल मुझे नहीं दोगे?’’ इषिता का स्वर वेदना से कांपने लगा था. आंखें भी डबडबा आई थीं.

‘‘मुझे माफ कर दो इषिता. तुम बहुत अच्छी लड़की हो. तुम से विवाह करता तो मेरा जीवन सफल हो जाता. पर मैं दिल के हाथों मजबूर हूं. किसी से भी शादी नहीं

कर सकता.’’

इषिता चली गई. उस की आंखों में उमड़ा वेदना का समंदर देख कर भी वह उसे रोक नहीं पाया. वह उसे कैसे समझाता कि श्रेया ने उस के साथ जो कुछ भी किया है, उस से समस्त औरत जाति से उसे नफरत हो गई है.

3 दिन बीत गए. इषिता ने न फोन किया न आई. गौतम सोचने लगा, ‘कहीं नाराज हो कर उस ने दोस्ती तोड़ने का मन तो नहीं बना लिया है?’

उसे फोन करने को सोच ही रहा था कि अचानक उस के मोबाइल की घंटी बज उठी. उस समय शाम के 6 बज रहे थे. फोन किसी अनजान का था.

उस ने ‘‘हैलो’’ कहा तो उधर से किसी ने कहा, ‘‘इषिता का पापा बोल रहा हूं. तुम से मिलना चाहता हूं. क्या हमारी मुलाकात हो सकती है?’’

उस ने ?ाट से कहा, ‘‘क्यों नहीं अंकल. कहिए, कहां आ जाऊं?’’

‘‘तुम्हें आने की जरूरत नहीं है बेटे. 7 बजे तक मैं ही तुम्हारे घर आ जाता हूं.’’

इषिता उसे 3-4 बार अपने घर ले गई थी. वह उस के मातापिता से मिल चुका था.

उस के पिता रेलवे में उच्च पद पर थे. बहुत सुलझे हुए इंसान थे. वह उन की इकलौती संतान थी. मां कालेज में अध्यापिका थीं. बहुत समझदार थीं. कभी भी उस के और इषिता के रिश्ते पर शक नहीं किया था.

इषिता के पापा समय से पहले ही आ गए. गौतम के साथसाथ उस की मां और बहन ने भी उन का भरपूर स्वागत किया.

उन्होंने मुद्दे पर आने में बहुत देर नहीं लगाई. पर उन चंद लमहों में ही अपने शालीन व्यक्तित्व की खुशबू से पूरे घर को महका दिया था. इतनी आत्मीयता उड़ेल दी थी वातावरण में कि उसे लगने लगा कि उन से जनमजनम का रिश्ता है.

कुछ देर बाद इषिता के पापा को गौतम के साथ कमरे में छोड़ कर मां और बहन चली गईं तो उन्होंने कहा, ‘‘बेटा, इषिता तुम्हें प्यार करती है और शादी करना चाहती है. उस ने श्रेया के बारे में भी सबकुछ बता दिया है.

‘‘श्रेया से तुम्हारा रिश्ता टूट चुका है तो इषिता से शादी क्यों नहीं करना चाहते? वैसे तो बिना कारण भी कोई किसी को नापसंद कर सकता है. यदि तुम्हारे पास इषिता से विवाह न करने का कारण है तो बताओ. मिलबैठ कर कारण को दूर करने की कोशिश करें.’’

उसे लगा जैसे अचानक उस के मन में कोई बड़ी सी शिला पिघलने लगी है. उस ने मन की बात बता देना ही उचित समझा.

‘‘इषिता में कोई कमी नहीं है अंकल. उस से जो भी शादी करेगा उस का जीवन सार्थक हो जाएगा. कमी मुझ में है. श्रेया से धोखा खाने के बाद लड़कियों से मेरा विश्वास उठ गया है.

‘‘लगता है कि जिस से भी शादी करूंगा वह भी मेरे साथ बेवफाई करेगी. ऐसा भी लगता है कि श्रेया को कभी भूल नहीं पाऊंगा और पत्नी को प्यार नहीं कर पाऊंगा,’’ गौतम ने दिल की बात रखते हुए बताया.

‘‘इतनी सी बात के लिए परेशान हो? तुम मेरी परवरिश पर विश्वास रखो बेटा. तुम्हारी पत्नी बन कर इषिता तुम्हें इतना प्यार करेगी कि तुम्हारे मन में लड़कियों के प्रति जो गांठ पड़ गई है वह स्वयं खुल जाएगी.’’

वे बिना रुके कहते रहे, ‘‘प्यार या शादी के रिश्ते में मिलने वाली बेवफाई से हर इंसान दुखी होता है, पर यह दुख इतना बड़ा भी नहीं है कि जिंदगी एकदम से थम जाए.

‘‘किसी एक औरतमर्द या लड़कालड़की से धोखा खाने के बाद दुनिया के तमाम औरतमर्द या लड़केलड़की को एकजैसा सम?ाना सही नहीं है.

‘‘यह जीवन का सब से बड़ा सच है कि कोई भी रिश्ता जिंदगी से बड़ा नहीं होता. यह भी सच है कि हर प्रेम संबंध का अंजाम शादी नहीं होता.

‘‘जीवन में हर किसी को अपना रास्ता चुनने का अधिकार है. यह अलग बात है कि कोई सही रास्ता चुनता है कोई गलत.

‘‘श्रेया के मन में गलत विचार भरे पड़े थे. इसलिए चंद कदम तुम्हारे साथ चल कर अपना रास्ता बदल लिया. अब तुम भी उसे भूल कर जीने की सही राह पर आ जाओ. गिरते सब हैं पर जो उठ कर तुरंत अपनेआप को संभाल लेता है, सही माने में वही साहसी है.’’

थोड़ी देर बाद इषिता के पापा चले गए. गौतम ने मंत्रमुग्ध हो कर उन की बातें सुनी थीं.

श्रेया के कारण लड़कियों के प्रति मन में जो गांठ पड़ गई थी वह खुल गई.

अब देर करना उस ने मुनासिब नहीं समझा. इषिता के पापा को फोन किया, ‘‘अंकल, कल अपने घर वालों के साथ इषिता का हाथ मांगने आप के घर आना चाहता हूं.’’

उधर से इषिता के पापा ने कहा, ‘‘वैलकम बेटे. देर आए दुरुस्त आए. अब तुम्हें आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता. तुम ने अपने भीतर के डर पर विजय जो प्राप्त कर ली है.’’

Jagdeep Dhankar : धनखड़ के खिलाफ क्‍यों एकजुट है विपक्ष

संसद में शीत सत्र चल रहा है लेकिन भीतर का माहौल बिलकुल गरम है. राज्यसभा के सभापति और उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ इस की धुरी बन गए हैं.

“मैं ने हमेशा कहा है कि राष्ट्र की एकता और अखंडता के लिए हमें एकजुट रहना होगा. जो लोग देश की एकता और अखंडता के खिलाफ बोलते हैं, वे देशद्रोही हैं.”  जगदीप धनखड़, सभापति, राज्यसभा, उपराष्ट्रपति. यह उद्धरण जगदीप धनखड़ की चाटुकारिता और सरकार के प्रति अनुकूलता को दर्शाता है. दरअसल, वे सरकार के प्रति अत्यधिक अनुकूल हैं और आलोचना को बर्दाश्त नहीं करते हैं. उन के कार्यकाल में राज्यसभा में लिए गए कुछ फैसले भी उन के विपक्ष के प्रति सोच को उजागर करते हैं.

इन में से कुछ प्रमुख फैसले हैं :

– विपक्ष के अविश्वास प्रस्ताव को खारिज करना : जगदीप धनखड़ ने विपक्ष के अविश्वास प्रस्ताव को खारिज कर दिया, जिसे विपक्ष ने उन के खिलाफ पेश किया था.
– विपक्षी सांसदों को निलंबित करना : जगदीप धनखड़ ने विपक्षी सांसदों को निलंबित करने का फैसला किया, जिसे विपक्ष ने उन के खिलाफ प्रदर्शन के रूप में देखा.
– संसदीय नियमों का पालन न करना : जगदीप धनखड़ पर आरोप लगाया गया है कि उन्होंने संसदीय नियमों का पालन नहीं किया और विपक्ष को बोलने का मौका नहीं दिया.
– विपक्ष की याचिकाओं को खारिज करना : जगदीप धनखड़ ने विपक्ष की कई याचिकाओं को खारिज कर दिया, जिन में सरकार की नीतियों की आलोचना की गई थी.
– संसदीय समितियों की रिपोर्टों को दबाना : जगदीप धनखड़ पर आरोप लगाया गया है कि उन्होंने संसदीय समितियों की रिपोर्टों को दबाने का प्रयास किया, जिन में सरकार की नीतियों की आलोचना की गई थी.

एक बार फिर उपराष्ट्रपति के पद पर रहते हुए जगदीप धनखड़ ने अपनी बात को कुछ उलटपुलट कर के दोहराया है. 2014 के पश्चात नरेंद्र मोदी की सरकार के दरमियान जबजब प्रधानमंत्री गृहमंत्री या सरकार के किसी बड़े चेहरे पर कोई सवाल उठता है तो कहा जाने लगा है कि यह तो भारत की छवि खराब करने का प्रयास किया जा रहा है. ऐसा पहले कांग्रेस की सरकार या अन्य किसी सरकार के दरमियान कभी नहीं हुआ. यह एक ऐसी बारीक रेखा है जिसे आम आदमी नहीं समझ सकता.

दरअसल 5 वर्षों के लिए इस देश को विकास के पथ पर आगे बढ़ाने के लिए देश की जनता द्वारा सरकार चुनी जाती है. वह कोई देश नहीं होती है यह स्पष्ट है मगर यह खेल हमारे देश मंि चल रहा है कि इन दिनों जब सरकार पर कोई सवाल खड़ा होता है तो कहा जाता है कि देश की छवि खराब की जा रही है और इस तरह अपनेआप को बचाया जाता रहा है.

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के बयानों पर विवाद की स्थिति है, वे अपनेआप को भारत समझते हैं, यह अतिशयोक्ति पूर्ण है. दरअसल विपक्ष के सवालों का जवाब देना और संवाद में शामिल होना लोकतंत्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है.

उपराष्ट्रपति पद की गरिमा और संवैधानिक भूमिका को ध्यान में रखना चाहिए. वे सवालों से बच नहीं सकते हैं और न ही अखंडता के सवाल को उठा सकते हैं. संविधान के मुताबिक लोकतंत्र में विपक्ष की भूमिका महत्वपूर्ण है, और उन्हें सरकार और उस के अधिकारियों के कार्यों की आलोचना करने का अधिकार है. उपराष्ट्रपति को भी इस आलोचना का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए और इस का जवाब देना चाहिए. जब विपक्ष को अधिकार है तो फिर संप्रभुता और अखंडता कहां से आ गई, यह एक जटिल मुद्दा बन कर सामने है.

दरअसल, संप्रभुता और अखंडता दो अलगअलग अवधारणाएं हैं जो एकदूसरे से जुड़ी हुई हैं. संप्रभुता का अर्थ है किसी भौगोलिक क्षेत्र या जन समूह पर सत्ता या प्रभुत्व का सम्पूर्ण नियंत्रण. अखंडता का अर्थ है किसी देश या राज्य की एकता और अखंडता को बनाए रखना.
जब विपक्ष को अधिकार है, तो उन के सवाल और व्यवहार देश की संप्रभुता और अखंडता को प्रभावित नहीं करता है. विपक्ष का अधिकार संविधान द्वारा प्रदान किया गया है, और यह अधिकार विपक्ष को सरकार की नीतियों और कार्यों की आलोचना करने और उन्हें सुधारने के लिए प्रेरित करने के लिए दिया गया है.

यह महत्वपूर्ण है कि विपक्ष अपने अधिकार का उपयोग संविधान के अनुसार करे और सरकार की नीतियों और कार्यों की आलोचना करने के लिए प्रेरित करे, न कि उन्हें बाधित करने की कोशिश करे. उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के बयानों पर चर्चा का माहौल बन सकता है, विपक्ष के सवालों का जवाब देना और संवाद में शामिल होना सरकार सत्ता का दायित्व है यह लोकतंत्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है.

यहां उल्लेखनीय है कि उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के कुछ बयानों पर पहले भी विवाद हुआ है

– राज्यसभा में विपक्ष के सदस्यों द्वारा उन के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने पर उन्होंने कहा था कि यह देश की अखंडता और भारत की बात करने का समय है.
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि उपराष्ट्रपति को पद की गरिमा और संवैधानिक भूमिका को ध्यान में रखना चाहिए. और व्यवहार मर्यादित रखना चाहिए.
मजेदार है कि भाजपा शासन काल में कई घटनाएं घटित हुई हैं जब प्रधानमंत्री, गृहमंत्री या उपराष्ट्रपति की आलोचना को देश और अखंडता का सवाल बना दिया गया है.

जबजब प्रधानमंत्री की आलोचना

जब विपक्षी दल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नीतियों की आलोचना करते हैं, तो अकसर उन्हें देशद्रोही या राष्ट्र-विरोधी बता दिया जाता है. जब विपक्षी दल गृहमंत्री अमित शाह की नीतियों की आलोचना करते हैं, तो अकसर उन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बता दिया जाता है. जब विपक्षी दल उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ की नीतियों की आलोचना करते हैं, तो अकसर उन्हें संविधान की अवहेलना करने वाला बता दिया जाता है. इन उदाहरणों से पता चलता है कि भाजपा शासन काल में आलोचना को अकसर देश और अखंडता का सवाल बना दिया जाता है, जो लोकतंत्र के मूल्यों के विरुद्ध है.

Syria : तानाशाह बशर अल असद की तख्‍तापलट की नींव रखी मासूम बच्‍चों ने

तानाशाही ज्यादा दिन चलती नहीं है और तानाशाहों का अंत बहुत दर्दनाक होता है. हिटलर हों, स्टालिन हों, ईदी अमीन हों, फ्रांसिस्को फ्रैंको हों या सद्दाम हुसैन, सबका अंत दर्दनाक था. इतने उदाहरणों के बाद भी दुनिया यह नहीं समझ रही कि लोकतांत्रिक तरीके से देश को चलाना ही शासन का बेहतर तरीका है.

सीरिया में इस्लामिक विद्रोहियों ने 24 वर्षों से चले आ रहे राष्ट्रपति बशर अल-असद के शासन को उखाड़ फेंका. बीते पांच दशकों से एक ही परिवार के केंद्र में रही सत्ता की परिपाटी बदल गई और सीरिया में भी तानाशाही का दौर ख़त्म हुआ. सीरिया में बशर अल-असद शासन का खात्मा ऐसे समय में हुआ है जब माना जा रहा था कि उन्होंने सालों से जारी विद्रोह पर काबू पा लिया है.

सीरिया एक समय अरब संस्कृति का समृद्ध केंद्र था, पर बीते एक दशक से वह दुनिया के सबसे खतरनाक युद्ध क्षेत्रों में से एक बना हुआ था. साल 2011 में राष्ट्रपति बशर अल-असद की तानाशाही के खिलाफ शुरू हुआ आंदोलन गृहयुद्ध में तब्दील होकर मल्टी-फ्रंट वॉर में बदल चुका था. करीब 2 करोड़ की आबादी वाले सीरिया में पिछले 13 सालों में 5 लाख से ज्यादा लोगों की जाने जा चुकी हैं. लाखों लोग विस्थापित हुए हैं और अनेक देशों में शरणार्थियों के रूप में त्रासदी से भरी जिंदगी जी रहे हैं. सोशल मीडिया पर ऐसे अनेक विज्ञापन देखे जा रहे थे जहां माँ बाप अपने बच्चों को गोद देने के लिए बेचैन थे. वे नहीं चाहते थे कि उनके बच्चे सीरिया में रह कर युद्ध की विभीषिका या भुखमरी झेलें अथवा माँ बाप की आकस्मिक मौत के बाद लावारिस हालत में भटकें क्योंकि सीरिया के हालात इतने खराब हो चुके थे कि कोई भी अपने को सुरक्षित नहीं समझ रहा था.

दुनिया के अधिकांश इस्लामिक देश तानाशाहों के नेतृत्व में बर्बाद हुए हैं और जहां जहां तानाशाही जारी है वहां वहां जनता बदहाल है. औरतें और बच्चे असुरक्षा और भुखमरी का शिकार हैं. अशिक्षित युवाओं के हाथों में बंदूकें हैं और निशाने पर निर्दोष लोग हैं. ट्यूनेशिया, बेहरीन, लीबिया, लेबनान. सीरिया जैसे देश सदियों से जल रहे हैं. जनता में आक्रोश है. आक्रोश विद्रोह में बदल रहा है. जगह जगह गृहयुद्ध छिड़े हुए हैं.

सीरिया की बात करें तो तानाशाही की शुरुआत वहां सत्तर के दशक में हुई थी. बात 13 नवंबर 1970 की है. हाफिज अल असद सीरियाई एयरफोर्स के चीफ थे. सेना में उनकी अच्छी पकड़ थी. इसी का फायदा उठाते हुए 13 नवंबर 1970 को हाफिज असद ने तब की सरकार को गिरा कर तख्तापलट करते हुए खुद को सीरिया का राष्ट्रपति डिक्लेयर कर दिया. हालांकि तब लोगों को उम्मीद नहीं थी की हाफिज ज्यादा दिनों तक तानाशाह रह पाएंगे. उसकी वजह यह थी की सीरिया शुरू से सुन्नियों की आबादी वाला देश रहा है.

सीरिया में सुन्नियों की आबादी करीब 74 फीसदी है. जबकि शियाओं की आबादी 16 फीसदी है. हाफिज असद शिया थे. उन्हें भी पता था कि सुन्नी कभी भी विरोध कर सकते हैं. इसलिए तख्तापलट करने के बाद से ही हाफिज असद ने सुन्नियों को कुचलना शुरू कर दिया. उन्होंने नौकरी, सेना और दूसरी पॉलिसी में शियाओं को फेवर दिया और सुन्नियों को निकाल बाहर किया. इससे सुन्नियों में गुस्सा तो पैदा हुआ, मगर फौज पर चूंकि असद की पकड़ काफी मजबूत थी लिहाजा उनकी सत्ता बनी रही.

करीब 30 साल तक सीरिया पर हुकुमत करने के बाद साल 2000 में हाफिज अल-असद की मौत हो गई. उनके बाद उनके बेटे बशीर अल-असद बतौर राष्ट्रपति सीरिया की गद्दी पर बैठ गए. अगले 10 सालों तक पिता की पॉलिसी और हथकंडों के चलते बशर अल-असद भी हर विरोध को दबाते रहे. बाप-बेटे ने मिलकर विपक्ष खत्म कर दिया था. साल 2006 से 2010 तक सीरिया में कम बारिश की वजह से सूखा पड़ गया. लोग भूखे मरने लगे.
सरकार ने जनता की कोई मदद नहीं की. जनता को लगने लगा कि तानाशाही ना होती तो शायद उनकी जिंदगी बेहतर होती. पहली बार बशर के खिलाफ लोगों का गुस्सा फूटा और लोग सड़कों पर उतरे. इत्तेफाक से ठीक इसी वक्त अरब में एक आंदोलन शुरू हो गया, जिसे अरब स्प्रिंग नाम से जाना जाता है. ये आंदोलन उन देशों में शुरू हुआ, जहां लंबे वक्त से तानाशाही थी. देखते ही देखते ट्यूनीशिया, लीबिया, इजिप्ट, लेबनान, जॉर्डन में लोग सड़कों पर उतर आए. इस आक्रोश और विद्रोह का नतीजा दुनिया के लिए हैरान करने वाला था.

पहला अरब स्प्रिंग सरकार विरोधी प्रदर्शनों, विद्रोहों और सशस्त्र विद्रोहों की एक श्रृंखला थी जो 2010 के दशक की शुरुआत में अरब दुनिया के अधिकांश हिस्सों में फैल गयी. यह भ्रष्टाचार और आर्थिक स्थिरता के जवाब में ट्यूनीशिया में शुरू था. ट्यूनीशिया से शुरू हुआ विरोध प्रदर्शन पाँच अन्य देशों लीबिया, मिस्र, यमन, सीरिया और बहरीन में फैल गया. शासकों को पदच्युत कर दिया गया. 2011 में ट्यूनीशिया के ज़ीन एल अबिदिन बेन अली, 2011 में लीबिया के मुअम्मर गद्दाफी, 2011 में मिस्र के होस्नी मुबारक और 2012 में यमन के अली अब्दुल्ला सालेह का तख्तापलट हो गया. 23 साल से ट्यूनीशिया की सत्ता पर काबिज बेन अली को देश छोड़कर भागना पड़ा. लीबिया में कर्नल गद्दाफी को जनता ने मार दिया. 30 साल तक इजिप्ट के तानाशाह रहे हुस्नी मुबारक को भी देश छोड़कर भागना पड़ा.

कई जगह बड़े विद्रोह और दंगे हुए. कुछ देशों में गृहयुद्ध या उग्रवाद सहित सामाजिक हिंसा हुई. मोरक्को, इराक, अल्जीरिया, लेबनान, जॉर्डन, कुवैत, ओमान और सूडान में लगातार सड़क पर जनता ने उग्र प्रदर्शन किया. जिबूती, मॉरिटानिया, फिलिस्तीन, सऊदी अरब और पश्चिमी सहारा में छोटे-मोटे विरोध प्रदर्शन हुए. अरब दुनिया में प्रदर्शनकारियों का एक प्रमुख नारा था – अश-शा’ब युरीद इस्कात अन-नियाम यानी लोग शासन को गिराना चाहते हैं.

अब चूंकि ये सब कुछ सीरिया के इर्द-गिर्द हो रहा था. इसलिए पहली बार बशर अल असद को भी इस खतरे का अहसास हुआ. उनको लगा कि सीरिया में भी लोग बगावत ना कर दें. असद डरे हुए थे. उसी वक्त उन्होंने अपनी सेना को यह हुक्म दिया कि पूरे सीरिया पर पैनी नजर रखी जाए. जो भी सरकार के खिलाफ आवाज उठाए उसे कुचल दिया जाए. हालांकि तब तक सीरिया शांत था.

14 साल के एक बच्चे ने दीवार लिखा – अब तुम्हारी बारी है डॉक्टर!

साल 2010 खत्म होते होते असद को लगा कि अब सब कुछ ठीक है, लेकिन तभी 14 साल के एक बच्चे ने कुछ ऐसा कर दिया कि सीरिया में विद्रोह की ऐसी चिंगारी फूट पड़ी जिसने अंततः 13 साल बाद बशर अल असद को सीरिया छोड़कर भागने के लिए मजबूर कर दिया.

26 फरवरी 2011 को उत्तरी सीरिया के दारा में 14 साल के एक बच्चे मुआविया सियास ने अपने स्कूल की दीवार पर लिखा – ”अब तुम्हारी बारी है डॉक्टर…” चूंकी बशर अल-असद को उनके करीबी डॉक्टर भी बुलाते थे, इसलिए दारा शहर में जिसने भी ये लाइन पढ़ी वो इसका मतलब समझ चुका था.

तानाशाही सरकार की बच्चे से दरिंदगी

अरब देशों के कई तानाशाहों के खात्मे के बाद बच्चे द्वारा लिखी इस लाइन का साफ मतलब यही था कि अब बारी बशर अल-असद सरकार की है. जैसे ही दारा के लोगों ने दीवार पर यह लाइन पढ़ी सभी डर गए. मुआविया के पिता ने तो अपने बेटे को ही छुपा दिया. लेकिन दारा के सिक्योरिटी चीफ को दीवार पर लिखे इस लाइन के बारे में जानकारी मिल गई. अगले ही दिन यानी 27 फरवरी 2011 को स्कूल के कुल 15 बच्चों को असद की आर्मी ने उठा लिया. इनमें मुआविया भी था. इसके बाद इन बच्चों पर जो जुल्म ढाए गए उसकी कोई इंतिहा नहीं थी. उनके नाखून नोच दिए गए. मासूम बच्चों को पानी से भिगोकर करंट दिए गए.

कई बच्चों को उल्टा लटकाया गया. इन बच्चों की रिहाई की मांग को लेकर दारा के लोगों ने शांतिपूर्ण प्रदर्शन किया. सरकार से बच्चों को छोड़ने की अपील की लेकिन बच्चों को नहीं छोड़ा गया. उल्टे असद की सेना ने बच्चों के मां-बाप से एलानिया यह कह दिया कि अपने बच्चों को भूल जाओ. दूसरे बच्चे पैदा करो और नहीं कर सकते तो अपनी औरतों को हमारे पास छोड़ जाओ.

बच्चों पर हो रहे जुल्म, दीवार पर लिखी वो लाइनें, दारा से निकलकर सीरिया के अलग-अलग शहरों में भी पहुंच चुकी थी. चूंकि बच्चे छोटे थे इसलिए हर एक को हमदर्दी थी. फिर क्या था देखते ही देखते पूरे सीरिया में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया. जो कि बहुत जल्द बड़ा होता गया.

बशर अल असद को तब पहली बार अहसास हुआ कि इस विरोध प्रदर्शन को रोकना जरूरी है. आखिरकार पूरे 45 दिन बाद अप्रैल 2011 में सभी बच्चों को छोड़ दिया गया. लेकिन यहीं से कहानी पलट गई. जब बच्चे कैद से बाहर आये तो उनके साथ उन पर ढाए गए जुल्मों की निशानियां और कहानियां भी सामने आईं. मासूम बच्चों पर सेना की हिंसा के चिन्ह देख कर और उनकी जुबान से हिंसा की दर्दनाक दास्तां सुनकर आंदोलन रुकने की बजाय और तेज हो गया. बच्चों की रिहाई के अगले ही शुक्रवार यानि 22 अप्रैल 2011 को दारा की एक मस्जिद में नमाज के बाद खुलकर असद के खिलाफ नारेबाजी हुई. इस शोर को कुचलने के लिए आर्मी ने लोगों पर गोलियां चलाईं जिसमें दो लोग मारे गए और अनेक घायल हुए. फिर तो मामला और गर्म हो गया और इसने विद्रोह का रूप ले लिया.

मारे गए दोनों लोगों के जनाजे के साथ लोग सड़कों पर उतर आये. असद की आर्मी ने फिर हिंसा का नंगा नाच किया और असद सरकार ने अपनी ही जनता को कुचलने के लिए सड़कों पर टैंक उतार दिए. आसमान में हेलीकॉप्टर से गोलियां बरसाई जाने लगीं. यह पहली बार था जब सीरिया में एक साथ दर्जनों लोग मारे गए. दारा की कहानी अब सीरिया के शहर शहर की कहानी बन चुकी थी. हर शहर हिंसा की चपेट में था. सीरिया के लोग असद की सेना की गोलियों का सामना डंडों और पत्थरों से कर रहे थे. हर दिन लाशों की तादाद बढ़ती ही जा रही थी. हालात ऐसे हो गए थे कि असद की सेना में भी बगावत शुरू हो गयी.

तानाशाह की क्रूरता देख कर हजारों सैनिक सरकार का साथ छोड़कर आम लोगों से जा मिले. असद के ऐसे ही सैनिकों को अपने साथ लेकर सीरिया की जनता ने सेना का मुकाबला करने के लिए अपनी सेना बनाने का फैसला किया. आखिरकार 29 जुलाई 2011 को फ्री सीरियन आर्मी की बुनियाद रखी गई. इसमें ऐसे हजारों अलग अलग छोटे छोटे गुट आ मिले जो असद के खिलाफ थे. सीरिया के पड़ोसी सुन्नी देशों ने भी फ्री सीरियन आर्मा की मदद करनी शुरू कर दी. यह वही दौर था जब बहती गंगा में बगदादी ने भी हाथ साफ करने की ठानी थी. बगदादी की आईएसआई भी फ्री सीरियन आर्मी की मदद के लिए ईराक से सीरिया पहुंच गयी.

अभी तक जो आईएसआई यानि इस्लामिक स्टेर ऑफ ईराक था वो अब ISIS यानि इस्लामिक स्टेट ऑफ ईराक एंड सीरिया बन गया. सीरिया में एक बड़ी आबाद कुर्द की भी है. खासकर नॉर्थ ईस्ट सीरिया में. फ्री सीरियन आर्मी की तर्ज पर अब कुर्द ने भी असद सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. असल में कुर्दों की मांग एक अलग देश की थी. यानि अब सूरत-ए-हाल कुछ यूं था कि सीरिया के अंदर एक साथ चार मोर्चे खुल गए थे. एक असद की सरकार का. एक बगदादी की आईएसआई का. फ्री सीरियन आर्मी की और कुर्द फोर्स का. अब सीरिया सचमुच गृहयुद्ध की आग में झुलस रहा था.

हुआ तख्तापलट, भागने पर मजबूर हुए बशर अल-असद

देखते ही देखते अब बाहरी देश भी अपने अपने फायदे के लिए सीरिया के अखाड़े में कूदने लगे. कई अरब देश सीधे फ्री सीरियन आर्मी की मदद के लिए आगे आये. वजह ये थी कि वो सीरिया में सुन्नियों को सपोर्ट करना चाहते थे. यह देख ईरान भी इस लड़ाई में कूद पड़ा. लेकिन असद के विरोधियों का साथ देने के लिए नहीं बल्कि असद सरकार को बचाने के लिए, क्योंकि ईरान शियाओं का सबसे बड़ा देश है. उधर रूस को इस इलाके में एक दोस्त चाहिए था. पुतिन को असद के रूप में एक दोस्त नजर आया, तो रूस भी असद की ढाल बनकर सामने आ गया. अब जहां रूस होगा तो उसके खिलाफ अमेरिका को तो आना ही था.

अमेरिका ने भी सीरिया में असद सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. कुल मिलाकर सीरिया अब एक बड़ा अखाड़ा बन चुका था जहां कई देश दंगल खेल रहे थे. मगर अब भी किसी तरह असद अपनी सरकार बचाए हुए थे. सीरियाई सेना के खिलाफ लड़ाई जारी थी, फिर हुआ यूं कि असद जिस ईरान और पुतिन के भरोसे बैठे थे, उन दोनों देशों की स्थिति भी काफी डगमगा गयी. रूसी राष्ट्रपति पुतिन का सारा ध्यान यूक्रेन में जंग की तरफ था. यूक्रेन के साथ जंग में उन्हें भारी क्षति हो रही थी. दूसरी तरफ ईरान भी हिज्बुल्लाह के चक्कर में इजरायल से उलझा हुआ था. ऐसे वक्त में पुतिन और ईरान दोनों ने ही असद की और मदद करने से इंकार कर दिया. हालत ऐसी हो गयी कि असद की सेना के पास सिर्फ तीन दिन का राशन बचा था. फिर क्या था असद को अपने अंजाम का अहसास हो गया. और वह बच निकलने की योजना बनाने लगे.

11 दिन पहले सीरिया में फिर से विद्रोह ने जोर पकड़ा. सीरियाई सैनिक चौकी, पोस्ट छोड़-छोड़ कर भागने लगे. देखते ही देखते इन्हीं 11 दिनों में असद के हाथों से सीरिया की राजधानी दमिश्क समेत 5 बड़े शहर अलेप्पो, हमा, होम्स और वह दारा भी निकल गया जहां से इस क्रांति की शुरुआत हुई थी. 8 दिसंबर को बशर अल-असद सीरिया पर 20 साल हुकुमत करने के बाद दमिश्क से एक प्लेन में बैठ कर चुपचाप रूस चले गए. अपने परिवार को वह पहले ही वहां शिफ्ट कर चुके थे. पुतिन ने भी अपनी दोस्ती निभाई और असद को अपने घर में पनाह दी. मगर कब तक. पुतिन जिस तरह यूक्रेन को लेकर जंग छेड़े हुए हैं उससे उनकी भी आतंरिक हालत खस्ता है. कब पुतिन का सितारा अस्त हो जाए और रूस भी तानाशाही की गुलामी से आजाद हो जाए कहा नहीं जा सकता है. मगर जल्दी ही यह होना है. क्योंकि तानाशाही ज्यादा दिन चलती नहीं है और तानाशाहों का अंत बहुत दर्दनाक होता है. हिटलर हों, स्टालिन हों, ईदी अमीन हों, फ्रांसिस्को फ्रैंको हों या सद्दाम हुसैन, सबका अंत दर्दनाक था. इतने उदाहरणों के बाद भी दुनिया यह नहीं समझ रही कि लोकतंत्र ही शासन का सबसे बेहतर तरीका है.

भले लोकतंत्र बहुत मजबूत ना हो, भले उसमें कमीबेशी हो, भले भ्रष्टाचार हो मगर जनता द्वारा चलाया जाने वाला शासन ही जनता की जरूरतों को समझता है और जनता को भी समझ में आता है. भारत हो, नेपाल हो, पाकिस्तान हो या बांग्लादेश यहां उस तरह के हालात नहीं हैं जैसे तानाशाही हुकूमत वाले देशों के हैं. यहां लचर लोकतंत्र ही सही मगर उसने देश को बर्बाद होने से बचाया हुआ है.

 

अरब स्प्रिंग या जैस्मिन क्रांति के 13 साल में मिट गया तानाशाहों का राज

साल 2011 अरब जगत के देशों के लिए भारी उथल-पुथल भरा था. ट्यूनीशिया में एक सब्जी बेचने वाले के आत्मदाह से भड़की आग में इस क्षेत्र के कई देश झुलस गए. आलम ये था कि ट्यूनीशिया से निकली विद्रोह की ये चिंगारी मिस्र, लीबिया, यमन और सीरिया कई देशों तक फैली. विद्रोह की इस चिंगारी को जैस्मीन क्रांति या फिर अरब स्प्रिंग भी कहा गया. इस क्रांति ने कई तानाशाहों की चूल्हें हिला दी और उन्हें गद्दी से उतार फेंका.

इस फेहरिस्त में पहला नाम मिस्र के तानाशाह होस्नी मुबारक का है. होस्नी मुबारक 1981 में अनवर सदत की हत्या के बाद मिस्र के राष्ट्रपति बने थे. वह 1981 से 2011 तक मिस्र में एकछत्र राज करते रहे. लेकिन
2011 में ट्यूनीशिया से निकली विद्रोह की चिंगारी में उन्हें गद्दी से उतरना पड़ा.

जनवरी 2011 में मिस्र की राजधानी काहिरा के तहरीर स्क्वायर में हजारों की संख्या में प्रदर्शनकारी इकट्ठा हुए, जिन्होंने राजनीतिक सुधारों और मुबारक के इस्तीफे की मांग की. सोशल मीडिया और इंटरनेट के जरिए आंदोलन को व्यापक समर्थन मिला, जिसने सरकार के दमन के प्रयासों को चुनौती दी.

होस्नी मुबारक सरकार ने शुरुआत में इन विरोधों को दबाने की कोशिश की लेकिन जनता के भारी समर्थन और वैश्विक दबाव के सामने उनकी रणनीति असफल रही. पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच झड़प के बावजूद प्रदर्शनकारियों ने अपनी मांगों को जारी रखा. लेकिन 18 दिनों तक हुए हिंसक प्रदर्शन के बाद होस्नी मुबारक को अपना पद छोड़ना पड़ा, और सत्ता सेना के हाथ में चली गई. यह पहली बार था जब मिडिल ईस्ट में सोशल मीडिया से शुरू होकर सड़क तक पहुंचे एक आंदोलन ने किसी निरंकुश शासक को सत्ता से उखाड़ फेंका था. इस प्रोटेस्ट में 239 प्रदर्शनकारियों की मौत हो गई थी.

क्रूर कर्नल गद्दाफी का खौफनाक अंत

जैस्मिन क्रांति की आग में ही लीबिया के क्रूर तानाशाह मुअम्मर अल गद्दाफी की गद्दी भी जल गई थी. 2011 में विद्रोही लड़ाकों ने राजधानी त्रिपोली में गद्दाफी के बाब अल-अजीजिया पर कब्जा कर लिया था. इस दौरान गद्दाफी की मूर्तियां ढहा दी गईं. 25 एकड़ में फैले गद्दाफी के महल में घुसकर विद्रोहियों ने जमकर लूटपाट की. इसके बाद गद्दाफी को पकड़ लिया गया.

मुअम्मर अल गद्दाफी ने लीबिया पर 42 सालों तक राज किया था. उन्होंने मात्र 27 साल की उम्र में तख्तापलट कर दिया था. 7 जून 1942 को लीबिया के सिर्ते शहर में जन्मा गद्दाफी हमेशा से अरब राष्ट्रवाद से प्रभावित रहा और मिस्र के नेता गमाल अब्देल नासिर का प्रशंसक रहा.

गद्दाफी बेहद क्रूर था. उसे लोग सनकी तक कहते थे. विद्रोहियों ने राजधानी त्रिपोली पर कब्जा कर लिया. जून 2011 में मामला अंतरराष्ट्रीय अपराध अदालत पहुंचा. यहां अत्याचार करने के लिए गद्दाफी, उसके बेटे सैफ अल इस्लाम और उसके बहनोई के खिलाफ वारंट जारी किया गया. जुलाई में दुनिया के 30 देशों ने लीबिया में विद्रोहियों की सरकार को मान्यता दे दी. 20 अक्टूबर 2011 को गद्दाफी को उसके गृहनगर सिर्ते में मार गिराया गया. हालांकि मौत कैसे हुई इस पर संशय रहा.

कई रिपोर्ट्स के मुताबिक, जब विद्रोही गद्दाफी को मार रहे थे तो वह उनसे गुहार लगा रहा था कि उसे गोली न मारी जाए. मारे जाने के बाद गद्दाफी की कई तस्वीरें सामने आई थीं. उनके मरने की खबर सुनने के बाद लीबिया में लोगों ने जमकर जश्न मनाया था.

बता दें कि ट्यूनीशियाई क्रांति 28 दिन तक चलने वाला एक विद्रोह था. नागरिकों के इस विरोध के कारण जनवरी 2011 में लंबे समय तक राष्ट्रपति पद पर रहे जीन अल आबिदीन बेन अली को पद से हटने लिए मजबूर होना पड़ा. इसके बाद देश में लोकतंत्रीकरण की प्रक्रिया शुरू हुई.

बशर अल असद का तख्तापलट

इस फेहरिस्त में नया नाम बशर अल असद का है. कई मोर्चों पर जंग के बीच सीरिया पर विद्रोहियों का कब्जा हो चुका है. राष्ट्रपति बशर अल असद ने अपने परिवार सहित रूस में राजनीतिक शरण ले ली है. इस बीच सीरिया से ऐसी कई तस्वीरें और वीडियो सामने आए, जिसमें लोगों को राष्ट्रपति भवन के भीतर लूटपाट करते और हुड़दंग मचाते देखा गया. इसी तरह की लूटपाट श्रीलंका के राष्ट्रपति भवन, बांग्लादेश के बंगभवन और काबुल से भी देखने को मिली थी.

एक हफ्ते में विद्रोहियों ने राजधानी दमिश्क के अलावा सीरिया के चार बड़े शहरों पर कब्जा कर लिया है, अब सवाल ये है कि सीरिया में अब आगे क्या होगा? विद्रोहियों की जीत के साथ ही सीरिया में बशर अल-असद के 24 साल के शासन और देश में 13 साल से चल रहे गृह युद्ध का अंत हो गया है. अब सीरिया की राजधानी दमिश पर हयात अल-शाम का कब्जा है.

सीरियाई शरणार्थियों की घर वापसी

सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल-असद के सत्ताच्युत होने और देश छोड़ने के बाद से जॉर्डन और लेबनान समेत तमाम देशों से सीरियाई शरणार्थी अपने मुल्क वापस लौट रहे हैं. यूनाइटेड नेशन्स के डेटा के अनुसार, दुनियाभर में सबसे ज्यादा शरणार्थियों में एक सीरियाई रिफ्यूजी हैं. साल 2011 में सीरिया में गृह युद्ध शुरू हुआ. लड़ाई विद्रोही समूहों और असद सरकार के बीच थी. सरकार विरोधी गुटों का कहना था कि वे महंगाई, हिंसा और भ्रष्टाचार के खिलाफ हैं. पहले सड़कों पर आंदोलन शुरू हुआ, जिसे अरब स्प्रिंग कहा गया. जल्द ही इसमें मिलिटेंट्स शामिल हो गए, जिन्हें विदेशी ताकतों का सपोर्ट था. हालात बिगड़ने लगे. पहले तो सीरियाई नागरिक अपने ही देश में विस्थापित होने लगे. जल्द ही वहां भी असुरक्षा बढ़ने पर वे पड़ोसी देशों की शरण लेने लगे. और फिर वे यूरोप और अमेरिका तक चले गए. पांच सालों से ज्यादा चली लड़ाई में शरणार्थियों ने देश लौट सकने की उम्मीद खो दी थी लेकिन अब असद सरकार के गिरने के साथ वे दोबारा लौट रहे हैं.

यूनाइटेड नेशंस हाई कमिश्नर फॉर रिफ्यूजीज की मानें तो सीरिया के भीतर ही 7 मिलियन से ज्यादा नागरिक विस्थापित हैं, जबकि लगभग इतने ही लोग दूसरे देशों में शरण ले चुके. इनमें से तुर्की में सबसे ज्यादा लगभग साढ़े तीन करोड़ सीरियाई शरणार्थी हैं. इसके बाद लेबनान, जॉर्डन, जर्मनी और फिर ईराक है. इनमें से लगभग सारे ही मिडिल ईस्टर्न देश लगातार सीरिया के मामले में मध्यस्थता करने की कोशिश करते रहे ताकि उनके अपने देश से रिफ्यूजियों की आबादी घट सके. अब पड़ोसी देशों से उनकी वापसी शुरू हो चुकी है.

ज्यादातर देशों में सीरिया के शरणार्थियों को लेबर मार्केट में औपचारिक एंट्री नहीं है. वे काम तो कर रहे हैं लेकिन छुटपुट या फिर थर्ड पार्टी के जरिए. सरकारी कामों या बड़े कामों से योग्यता के बाद भी उन्हें दूर रखा जाता है. अगर वे लेबर फोर्स में शामिल होना चाहें तो इसकी सजा भी है. मसलन लेबनान वैसे तो सीरिया का मददगार है लेकिन अपने यहां शरण देने वालों के सामने उसने शर्त रख दी कि वे तभी अपना शरणार्थी स्टेटस रिन्यू करवा सकते हैं, जब वे वर्कफोर्स से दूर रहें. द गार्जियन की रिपोर्ट के अनुसार, इसके लिए उनसे बाकायदा दस्तखत करवाया जाता है.

शरणार्थियों के लिए फंड की कमी

इन देशों के पास शरणार्थियों को देने के लिए कुछ खास नहीं है. आमतौर पर यूनाइटेड नेशन्स की तरफ से इनके लिए कई प्रोग्राम चलते हैं. सीरिया को भी मदद मिल रही है. लेकिन ये समस्या एक दशक से भी ज्यादा लंबे समय तक खिंच गई और रिफ्यूजियों की आबादी भी काफी ज्यादा है. ऐसे में यूएनएचसीआर को भी फंडर्स की कमी होने लगी. कुछ साल पहले जब वर्ल्ड फूड प्रोग्राम ने हजारों शरणार्थियों को खाना पहुंचाने से इनकार कर दिया था, तब इस बात पर पहली बार ध्यान गया था. इसी के बाद कैंप्स से निकलकर रिफ्यूजी बाहर घूमने लगे और स्थानीय लोगों और उनके बीच तनाव बढ़ने लगा.

ज्यादातर देशों में सीरियाई रिफ्यूजियों के लिए मेडिकल सुविधाएं भी काफी नहीं. जैसे जॉर्डन में बहुत से लोगों के पास फ्री हेल्थकेयर नहीं है, खासकर वयस्कों के लिए. स्वास्थ्य सुविधाओं के अलावा, उनके बच्चों के पास फॉर्मल एजुकेशन की भी गुंजाइश कम है. इंटरनेशनल सपोर्ट के बगैर शरण दे चुके देश सीधे-सीधे उन्हें हटा नहीं रहे थे, लेकिन उन्होंने शरणार्थियों पर तमाम ऐसी बंदिशें लाद दी थीं कि वे खुद ही देश छोड़ना चाहें. ऐसे में असद सरकार के जाते ही रिफ्यूजी, खासकर पड़ोसी देशों में बसे लोग घर वापसी कर रहे हैं.

Sad Hindi Story : यह कैसी मां

माया को देखते ही बाबा ने रोना शुरू कर दिया था और मां चिल्लाना शुरू हो गई थीं. मां बोलीं, ‘‘बाप ने बुला लिया और बेटी दौड़ी चली आई. अरे, हम मियांबीवी के बीच में पड़ने का हक किसी को भी नहीं है. आज हम झगड़ रहे हैं तो कल प्यार भी करेंगे. 55 साल हम ने साथ गुजारे हैं. मैं अपने बीच में किसी को भी नहीं आने दूंगी.’’

‘‘मैं इस के साथ नहीं रहूंगा. तुम मुझे अपने साथ ले चलो,’’ कहते हुए बाबा बच्चों की तरह फूटफूट कर रो पड़े.

‘‘मैं तुम को छोड़ने वाली नहीं हूं. तुम जहां भी जाओगे मैं भी साथ चलूंगी,’’ मां बोलीं.

‘‘तुम दोनों आपस का झगड़ा बंद करो और मुझे बताओ क्या बात है?’’

‘‘यह मुझे नोचती है. नोचनोच कर पूछती है कि नीना के साथ मेरे क्या संबंध थे? जब मैं बताता हूं तो विश्वास नहीं करती और नोचना शुरू कर देती है.’’

‘‘अच्छाअच्छा, दिखाओ तो कहां नोचा है? झूठ बोलते हो. नोचती हूं तो कहीं तो निशान होंगे.’’

‘‘बाबा, दिखाओ तो कहां नोचा है?’’

बाबा फिर रोने लगे. बोले, ‘‘तेरी मां पागल हो गई है. इसे डाक्टर के पास ले जाओ,’’ इतना कहते हुए उन्होंने अपना पाजामा उतारना शुरू किया.

मां तुरंत बोलीं, ‘‘अरे, पाजामा क्यों उतार रहे हो. अब बेटी के सामने भी नंगे हो जाओगे. तुम्हें तो नंगे होने की आदत है.’’

बाबा ने पाजामा नीचे कर के दिखाया. उन की जांघों और नितंबों पर कई जगह नील पड़े हुए थे. कई दाग तो जख्म में बदलने लगे थे. वह बोले, ‘‘देख, तेरी मां मुझे यहां नोचती है ताकि मैं किसी को दिखा भी न पाऊं. पीछे मुड़ कर दवा भी न लगा सकूं.’’

‘‘हांहां, मैं नोचूंगी. जितना कष्ट तुम ने मुझे दिया है उतना ही कष्ट मैं भी दूंगी,’’ इतना कहते हुए मां उठीं और एक बार जोर से बाबा की जांघ पर फिर चूंटी काट दी. बाबा दर्द से तिलमिला उठे और माया के पैरों पर गिर कर बोले, ‘‘बेटी, मुझे इस नरक से निकाल ले. मेरा अंत भी नहीं आता है. मुझे कोई दवा दे दे ताकि मैं हमेशा के लिए सो जाऊं.’’

‘‘अरे, ऐसे कैसे मरोगे. तड़पतड़प कर मरोगे. तुम्हारे शरीर में कीड़े पड़ेंगे,’’ मां चीखीं.

24 घंटे पहले ही माया का फोन बजा था.

सुबह के 9 बज चुके थे, पर माया अभी तक सो रही थी. उस के सोने का समय सुबह 4 बजे से शुरू होता और फिर 9-10 बजे तक सोती रहती.

माया के पति मोहन मर्चेंट नेवी में थे इसलिए अधिकतर समय उसे अकेले ही बिताना पड़ता था. अकेले उसे बहुत डर लगता था इसलिए सो नहीं पाती थी. सारी रात उस का टेलीविजन चलता था. उसे लगता था कि बाहर वालों को ऐसा लगना चाहिए कि इस घर में तो रात को भी रौनक रहती है.

सुबह 4 बजे जब दूध की लारी बाहर सड़क पर आ जाती और लोगों की चहलपहल शुरू हो जाती तो वह टेलीविजन बंद कर के नींद के आगोश में चली जाती थी. काम वाली बाई भी 11 बजे के बाद ही आ कर घंटी बजाती थी.

उस ने फोन की घंटी सुनी तो भी वह उठने के मूड में नहीं थी, उसे लगा था कि यह आधी रात को कौन उसे जगा रहा है. पर एक बार कट कर फिर घंटी बजनी शुरू हुई तो बजती ही चली गई.

अब उस ने फोन उठाया तो उधर से बाबा की आवाज सुनाई दी, ‘‘हैलो, मन्नू, तेरी मां मुझे मारती है,’’ कह कर उन के रोने की आवाज आनी शुरू हो गई. माया एकदम परेशान हो उठी.

उस के पिता उसे प्यार से मन्नू ही बुलाते थे. 80 साल के पिता फोन पर उसे बता रहे थे कि 70 साल की मां उन्हें मारती है. यह कैसे संभव हो सकता है.

‘‘आप रो क्यों रहे हो? मां कहां हैं? उन्हें फोन दो.’’

‘‘मैं बाहर से बोल रहा हूं. घर में उस के सामने मैं उस की शिकायत नहीं कर सकता,’’ इतना कह कर वह फिर रोने लगे थे.

‘‘क्यों मारती हैं मां?’’

‘‘कहती हैं कि नीना राव से मेरा इश्क था.’’

‘‘कौन नीना राव, बाबा?’’

‘‘वही हीरोइन जिस को मैं ने प्रमोट किया था.’’

‘‘पर इस बात को तो 40 साल हो गए होंगे.’’

‘‘हां, 40 से भी ज्यादा.’’

‘‘आज मां को वह सब कैसे याद आ रहा है?’’

‘‘मैं नहीं जानता. मुझे लगता है कि वह पागल हो गई है. मैं घर नहीं जाऊंगा. वह मुझे नोचती है. नोचनोच कर खून निकाल देती है,’’ बाबा ने कहा और फिर रोने लगे.

‘‘आप अभी तो घर जाओ. मैं मां से बात करूंगी.’’

‘‘नहीं, उस से कुछ मत पूछना, वह मुझे और मारेगी.’’

‘‘अच्छा, नहीं पूछती. आप घर जाओ, नहीं तो वह परेशान हो जाएंगी.’’

‘‘अच्छा, जाता हूं पर तू आ कर मुझे ले जा. मैं इस के साथ नहीं रह सकता.’’

‘‘जल्दी ही आऊंगी, आप अभी तो घर जाओ.’’

बाबा ने फोन रख दिया था. माया ने भी फोन रखा और अपनी शून्य हुई चेतना को वापस ला कर सोचना शुरू किया. पहला विचार यही आया कि मां को पागल बनाने वाली यह नीना राव कौन थी और वह 40 साल पहले वाले जमाने में पहुंच गई.

तब वह 12 साल की रही होगी और 7वीं कक्षा में पढ़ती होगी. तब उस के बाबा एक प्रसिद्ध फिल्मी पत्रिका के संपादक थे.

बाबा और मां का उठनाबैठना लगातार फिल्मी हस्तियों के साथ ही होता था. दोनों लगातार सोशल लाइफ में ही व्यस्त रहते थे. अपने बच्चों के लिए भी उन के पास समय नहीं था. उन की दादी- मां ही उन्हें पाल रही थीं. रात भर पार्टियों में पीने के बाद दोनों जब घर लौटते तो आधी रात हो चुकी होती थी. सुबह जब माया और राजा स्कूल जाते तब वे दोनों गहरी नींद में होते थे. जब माया और राजा स्कूल से घर लौटते तो बाबा अपने काम से और मां किटी और ताश पार्टी के लिए निकल चुकी होतीं.

स्कूल में भी सब को पता था कि उस के पिता फिल्मी लोगों के साथ ही घूमते हैं इसलिए जब भी कोई अफवाह किसी हीरोहीरोइन के बारे में उड़ती तो उस की सहेलियां उसे घेर लेती थीं और पूछतीं, ‘क्या सच में राजेंद्र कुमार तलाक दे कर मीना कुमारी से शादी कर रहा है?’ दूसरी पूछती, ‘क्या देवआनंद अभी भी सुरैया के घर के चक्कर लगाता है?’ तीसरी पूछती, ‘सच बता, क्या तू ने नूतन को देखा है? सुना है देखने में वह उतनी सुंदर नहीं है जितनी परदे पर दिखती है?’

ऐसे अनेक प्रश्नों का उत्तर माया के पास नहीं होता था, क्योंकि उस की दादीमां बच्चों को फिल्मी दुनिया की खबरों से दूर ही रखती थीं. पर एक बार ऐसा जरूर हुआ जब मां उसे अपने साथ ले गई थीं. कार किनारे खड़ी कर के उन्होंने कहा था, ‘देखो, उस घर में जाओ. बाबा वहां हैं. तुम थोड़ी देर वहां बैठना और सुनना नीना और बाबा क्या बातें कर रहे हैं और कैसे बैठे हैं.’

वह पहला अवसर था जब वह किसी हीरोइन के घर जा रही थी. उस ने अपनी फ्राक को ठीक किया था, बालों को संवारा था और कमरे के अंदर चली गई थी. उस ने बस इतना सुना था कि कोई नई हीरोइन है और अगले ही महीने एक प्रसिद्ध हीरो के साथ एक फिल्म में आने वाली है.

नमस्ते कह कर वह बैठ गई थी. बाबा ने पूछा था, ‘कैसे आई हो? मां कहां हैं?’

उस ने उत्तर दिया था, ‘मां बाजार गई हैं. अभी थोड़ी देर में आ जाएंगी.’

बाबा ने बैठने का इशारा किया था और फिर नीना से बातें करने में व्यस्त हो गए थे. माया के कान खड़े थे. मां ने कहा था कि सब बातें ध्यान से सुनना और फिर उसे यह भी देखना था कि बाबा और नीना कैसे बैठे हुए हैं. उस ने ध्यान से देखा था कि नीना ने बहुत सुंदर स्कर्ट ब्लाउज पहना हुआ था और वह आराम से सोफे पर बैठी थी. उस के हाथ में एक सिगरेट थी जिसे वह थोड़ीथोड़ी देर में पी रही थी. बाबा पास ही एक कुरसी पर बैठे थे और दोनों लगातार फिल्म पब्लिसिटी की ही बात कर रहे थे.

किसी भी नए हीरो या हीरोइन को प्रमोट करने के काम के लिए बाबा को काफी रुपए मिलते थे और मां को ऐसे धन की आदत पड़ गई थी. उन का जीवन ऐशोआराम से भरा था. आएदिन नए शहरों में जाना, पांचसितारा होटलों में रुकना, रंगीन पार्टियों का मजा लेना उन की आदत में शुमार हो गया था. तब उन्होंने भी यह उड़ती सी खबर सुनी थी कि बाबा उस हीरोइन पर ज्यादा ही मेहरबान हैं, पर उस के द्वारा जो धन की वर्षा हो रही थी उस ने मां के दिमाग को बेकार बना दिया था.

मां को तो बस, भरे हुए पर्स से मतलब था. जब मां को तनाव होना चाहिए था तब तो कुछ नहीं हुआ, पर कुछ साल बीत जाने के बाद उन्होंने बाबा को कुरेदना शुरू किया था. वह कहतीं, ‘अच्छा, सचसच बताना नीना को तुम प्यार करने लगे थे क्या?’

बाबा बोलते, ‘तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है. तुम्हें पता है कि पब्लिसिटी के लिए क्याक्या कहानियां बनानी पड़ती हैं. तुम तो लगातार मेरे साथ थीं फिर अब क्यों पूछ रही हो?’

अब तक बाबा का काम कम हो गया था. बाजार में और भी कई फिल्मी पत्रिकाएं आ चुकी थीं. जवान और चालाक सेके्रटरी हीरोहीरोइनों को संभालने के लिए आ चुके थे. ऐसे भी कभीकभी ही थोड़ा सा काम मिलता था. पैसे की भी काफी तंगी हो गई थी. जवानी में बाबा ने पैसा बचाया नहीं और अब पुरानी आदतें छूट नहीं पा रही थीं इसलिए मां और बाबा में भी आपस में कहासुनी होनी शुरू हो गई थी.

 

अब तक माया विवाह योग्य हो चुकी थी और उस ने अपना जीवनसाथी स्वयं ही चुन लिया था. राजा भी काम की तलाश में अमेरिका पहुंच गया था. बुरी आदतें और अनियमित दिनचर्या के कारण बाबा की सेहत भी डगमगाने लगी थी. चारों तरफ से दबाव ही दबाव था. अब मां के गहने बिकने शुरू हो गए थे. ऐसे में जब भी मां का कोई गहना बिकता, अपना गुस्सा इसी प्रकार से बाबा से प्रश्न कर के निकालतीं.

कभी पूछतीं, ‘अच्छा उस साल दीवाली पर तुम ने रात नीना के घर गुजारी थी न? घर में और भी कोई था या तुम दोनों अकेले थे?’

बाबा जो भी उत्तर देते, उस पर उन्हें विश्वास नहीं होता. ढलती उम्र, बालों में फैलती सफेदी और कमजोर होते अंगप्रत्यंग उन्हें अत्यंत शंकालु बनाते जा रहे थे. तब तक केवल मां की जबान ही चलती थी. फिर माया का विवाह हो गया और वह विदेश चली गई. उस के पति की नौकरी अच्छी थी इसलिए वह हर महीने मां और बाबा के लिए भी पैसे भेजती थी. घर उन का अपना था इसलिए आधा घर किराए पर दे दिया था. वहां से भी हर महीने पैसा मिल जाता था. इस प्रकार दोनों का गुजारा भली प्रकार से चल रहा था.

बीचबीच में माया का चक्कर मुंबई का लगता रहता था पर तब उस ने कभी इस बात की ओर ध्यान नहीं दिया था कि दोनों का आपस में झगड़ा किस बात को ले कर होता है. मां कभीकभी उसे भी जलीकटी सुना देती थीं, बोलतीं, ‘अरे, बाबा ने जवानी में बहुत मस्ती मारी है. अभी वैसा नहीं है इसलिए झुंझलाए रहते हैं. अब इस बूढ़े को कौन मुंह लगाएगा.’

‘मां, चुप हो जाओ. बाबा के लिए ऐसे कैसे बोलती हो? तुम भी तो मस्ती मारती थीं.’

‘नहींनहीं, मैं तो सिर्फ ताश खेलती थी, इन की मस्तियां तो हाड़मांस की होती थीं.’

माया डांट कर मां को चुप करा देती थी. उस ने तो दोनों को जवानी में मौजमस्ती करते ही देखा था. अगर दादी नहीं होतीं तो उन दोनों भाईबहनों का बचपन पता नहीं कैसे बीतता.

कुछ सालों बाद माया भारत लौट आई थी. उस ने अपने बच्चों की शिक्षा के लिए चेन्नई को चुना था. माया के पति साल में 2 ही बार छुट्टी पर चेन्नई आते थे. अब साल में एक बार वह भी मांबाबा को बुला लेती थी. एक माह बिताने के बाद वे मुंबई लौट जाते थे. जितने दिन बेटी के पास रहते बहुत सुखसुविधा में रहते पर उन की जड़ें तो मुंबई में थीं इसलिए उन्हें वहां लौटने की भी जल्दी होती थी.

जितने दिन वे दोनों बेटी के पास होते उतने दिन उन में झगड़ा नहीं होता था. पर माया ने देखा था कि मां का व्यवहार थोड़ा अजीब होता जा रहा है. बाबा को दुखी देख कर उन्हें बहुत अच्छा लगता था. यदि बाबा को कोई चोट लग जाती तो वह तालियां बजाने लगती थीं. उन की इस बचकानी हरकत पर माया को बहुत गुस्सा आता था और वह मां को डांट भी देती थी.

लेकिन आज के फोन ने माया को हिला कर रख दिया था. इतने बूढ़े पिता को उन की जीवनसंगिनी ही मार रही है और वह किसी से शिकायत भी नहीं कर सकते हैं. उस ने कुछ सोचा और मुंबई अपने मामा को फोन मिलाया. वह फोन पर बोली, ‘‘मामा, मां और बाबा कैसे हैं? इधर आप का चक्कर उन के घर का लगा था?’’

‘‘नहीं, मैं एक महीने से उन के घर नहीं गया हूं. मेरे घुटनों में बहुत दर्द रहता है. मैं कहीं भी आताजाता नहीं हूं. क्यों, क्या बात है? उन का हालचाल जानने के लिए उन को फोन करो.’’

‘‘सुबह बाबा का फोन आया था. रो रहे थे. मुझे बुला रहे हैं. आप जरा देख कर आइए क्या बात है? इतनी दूर से आना आसान नहीं है.’’

‘‘तुम कहती हो तो आज ही दोपहर को चला जाता हूं. तुम मुझ से वहीं बात कर लेना.’’

‘‘ठीक है, मैं 2 बजे फोन करूंगी,’’ कह कर माया ने फोन रख दिया.

अब किसी भी काम में माया का दिल नहीं लग रहा था. समय बिताने के लिए उस ने पुराना अलबम उठा लिया. उस के बाबा और मां की फोटो हर हीरोहीरोइन के साथ थी. नीना राव के साथ एक फोटो में उस ने मांबाबा को देखा. नीना राव कितनी खूबसूरत थी. माया ने तो उसे पास से भी देखा था. उस की गुलाबी रंगत देखते ही बनती थी. नीना राव की सुंदरता के आगे मां फीकी लग रही थीं. इस फोटो में बाबा ने दोनों औरतों के गले में बांहें डाली हुई थीं.

नीना की सुंदरता देख कर माया ने सोचा तब मां को जरूर हीन भावना होती होगी, पर बाबा का काम ही ऐसा था कि वह उन के काम में बाधा नहीं डाल सकती थीं. जब नीना को प्रमोट किया जा रहा था तब बाबा का अधिक से अधिक समय उस के साथ ही बीतता था. तब मां अपनी किटी पार्टियों में व्यस्त रहती थीं. हर जगह वह बाबा के साथ नहीं जा सकती थीं. तब का मन में दबाया हुआ आक्रोश अब मानसिक विकृति बन कर उजागर हो रहा था. वह कल्पना भी नहीं कर सकती थी कि मानसिक अवसाद कितना घिनौना रूप ले सकता है.

2 बजते ही माया ने मुंबई फोन मिलाया. मामा ने फोन उठाया और बोले, ‘‘तुम जल्दी आ जाओ. यहां के हालात ठीक नहीं हैं. मैं तुम्हें फोन पर कुछ भी नहीं बता सकता हूं.’’

फोन रखते ही माया ने शाम की फ्लाइट पकड़ी और रात के 10 बजे तक  घर पहुंच गई थी.

उन दोनों की हालत देख कर माया भी रो पड़ी. अकेले वह दोनों को नहीं संभाल सकती थी. उस ने अपने बड़े बेटे को फोन कर के बंगलौर से बुला लिया. उस ने भी दोनों की हालत देखी और दुखी हो गया. दोनों मांबेटे ने बहुत दिमाग लगाया और इस फैसले पर पहुंचे कि मां और बाबा को अलगअलग रखा जाए, माया बाबा को अपने साथ ले गई और मां को एक नर्स और एक नौकरानी के सहारे छोड़ दिया.

मां को बहुत समझाया और साथ ही धमकी भी दे डाली, ‘‘सुधर जाओ, नहीं तो मैंटल हास्पिटल में डाल देंगे. तुम्हारा बुढ़ापा बिगड़ जाएगा.’’

एक छोटे बच्चे की तरह बाबा माया का हाथ पकड़ कर घर से बाहर निकले और तेजी से जा कर कार में बैठ गए. उस अप्रत्याशित मोड़ ने मां को स्तंभित कर दिया था. वह शांत हो कर अपने बिस्तर पर बैठी रहीं और नर्स ने उन्हें नींद की गोली दे कर लिटा दिया. कल से ही उन का इलाज शुरू होगा.

 

Comedy : शादीलाल की शरारती सालियां

लेखक – अजीत श्रीवास्‍तव 

शादीलाल जैसा सामान धरती पर कम ही मिलता है. साढ़े 4 फुट की उस चीज का पेट आगे निकला हुआ था और गंजे सिर पर गिनने लायक बाल थे. मुझे यकीन था कि उस की शादी नामुमकिन है, पर शायद वह अपने माथे पर कुछ और ही लिखा कर लाया था.

पिछले साल ही तो शादीलाल की शादी हुई थी. कुदरत ने उस के साथ मजाक नहीं किया, क्योंकि कोई भी यह नहीं कह सकता था कि ‘राम मिलाए जोड़ी, एक अंधा एक कोढ़ी’.

जी हां, जैसा हमारा प्यारा दोस्त शादीलाल था, ठीक वैसी ही उस की बीवी यानी मेरी भाभी आई थीं. वे भी करीब 37 साल की होंगी. शादीलाल की कदकाठी से ले कर मोटापा, लंबाई, ऊंचाई, निचाई, चौड़ाई सभी में जबरदस्त टक्कर देने वाली थीं.

मेरी भाभी का नाम पहले कुमारी सुंदरी था, पर अब श्रीमती सुंदरी देवी हो गया था.

पर भाभी का सुंदरी होना तो दूर, वे सुंदरी का ‘सु’ भी नहीं थीं, मगर ससुराल के नाम से बिदकने वाला मेरा यार गजब की तकदीर पाए हुए था. उस के 7 सगी सालियां थीं और सातों एक से बढ़ कर एक.

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मैं भी शादी में गया था. सच कहता हूं कि मेरा ईमान भूचाल में जैसे धरती डोलती है, वैसे डोल गया था. अगर मेरी नकेल पहले से न कसी होती, तो मैं शादीलाल की सालियों के साथ इश्क कर डालता.

शादी में शादीलाल की सालियों ने उस की इतनी खिंचाई की थी कि वह ससुराल का नाम लेना ही भूल गया. शादी में उस से जूतों की पूजा कराई गई. धोखे में डाल कर सुंदरी देवी के पैर छुआए गए. सुंदरी देवी के नाम से झूठी चिट्ठी भेज कर उसे जनवासे से 7 फर्लांग दूर बुलवाया गया.

खैर, होनी को कौन टाल सकता था. आज शादीलाल की शादी को एक साल हो गया. सुंदरी देवी अपने मायके में थीं. वे न जाने कितनी बार वहां हो आईं, पर मेरे यार ने कभी वहां की यात्रा का नाम नहीं लिया.

वहां से ससुर साहब की चिट्ठी आई कि आप शादी के बाद से ससुराल नहीं आए. अब सुंदरी की विदाई तभी होगी जब आप खुद आएंगे, वरना नहीं.

यह वाकिआ मुझे तब पता चला, जब औफिस की बड़े बाबू वाली कुरसी पर शादीलाल को गमगीन बैठे देखा.

‘‘मेरे यार, क्या कहीं से कोई तार वगैरह आया है या गमी हो गई?’’ मैं ने घबरा कर पूछा.

शादीलाल ने अपना मुंह नहीं खोला. अलबत्ता, नाक पर मक्खी बैठ जाने पर भैंस जैसे सिर हिलाती है, वैसे न में सिर हिला दिया.

तब मैं ने पूछा, ‘‘क्या आप को सुंदरी देवी की तरफ से तलाक का नोटिस आया है? क्या वे बीमार हैं या सासससुर गुजर गए?’’

अब शादीलाल ने जो सिर उठाया, तो मेरा दिल बैठ गया. लाललाल आंखें आंसुओं से भरी थीं. चेहरा गधे सा मुरझाया था.

मैं ने उस के हाथ पर हाथ रखा, तो शादीलाल रो उठा और बोला, ‘‘देखो एकलौता राम, तुम मेरे खास दोस्त हो, तुम से क्या छिपाना. चिट्ठी आई है.’’

‘‘क्या कोई बुरी खबर है या कोई अनहोनी घटना घट गई?’’

‘‘नहीं, ससुरजी ने मुझे बुलाया है. इस बार वे साले के साथ सुंदरी को नहीं भेज रहे हैं. अब तो मुझे जाना ही होगा.’’

‘‘अरे, तो इस में घबराने की क्या बात है. ससुराल से बुलावा तो अच्छे लोगों को ही मिलता है. तुम तो

7 सालियों के आधे घरवाले हो, तुम जरूर जाओ.’’

‘‘नहीं यार, यही तो मुसीबत है. मैं उन सातों के मुंह में तिनके की तरह समा जाता हूं.’’

‘‘शादीलाल, तुम्हें क्या हो गया है? घबराओ मत, मैं तुम्हारे साथ हूं,’’ मैं ने उसे हौसला बंधाया.

‘‘एकलौता राम, मुझे तुम्हीं पर भरोसा है. इस संसार में मेरा साथ देने वाले यार तुम्हीं हो. क्या तुम मेरे ऊपर एक एहसान करोगे?’’

‘‘कहो यार, मैं तो यारों का एकलौता राम हूं.’’

‘‘तुम को मेरे साथ मेरी ससुराल चलना होगा, वरना मेरी शैतान सालियां मुझे सतासता कर काढ़ा बना कर पी जाएंगी.’’

मैं ने शादीलाल को समझाना चाहा, पर वह मुझे अपनी ससुराल ले ही गया. इस तरह अब शादीलाल की ससुराल यात्रा और साथ में एकलौता राम की यादगार यात्रा शुरू हो गई.

87 किलोमीटर दूर ससुराल में पहुंचे, तो हमारी खूब खातिरदारी हुई. फिर सातों शैतान सालियों के कारनामे शुरू हो गए, जिन का हमें डर था.

थका होने की वजह से शादीलाल शाम 7 बजे से ही खर्राटे लेने में मस्त हो गया. तभी वे सातों आईं. उन्होंने मुंह पर उंगली रख चुप रहने का इशारा किया तो मैं समझ गया कि शादीलाल अब तो गया काम से.

मैं शादीलाल को जगाने के चक्कर में था कि 27 साला एक साली ने कहा, ‘‘आप खामोश रहिए, वरना आप की हजामत जीजा से भी बढ़ कर होगी.’’

मैं ने रजाई तानी और उस में झरोखा बना कर नजारा देखने लगा. शादीलाल के हाथों में एक साली ने नीली स्याही का पोता फेरा. दूसरी साली ने उस की नाक में कागज की सींक बना कर घुसा दी. नतीजतन, शादीलाल का हाथ नाक पर पहुंच गया और स्याही चेहरे पर ‘मौडर्न आर्ट’ बनाती गई.

मैं लिहाफ के अंदर हंसी नहीं रोक पा रहा था. आखिर में 6 सालियां बाहर चली गईं, केवल 7 साल की सुनीता बची, तो उस ने अपने जीजा के हाथों में उसी की हवाई चप्पलें उलटी कर के फंसी दीं और फिर उस के कानों में सींक घुमा कर भाग गई.

सींक से बेचैन हो कर शादीलाल ने अपने कानों पर हाथ मारे, तो चप्पलें गालों पर चटाक से बोलीं.

मैं ने किसी तरह झरोखा बंद किया. हंसहंस कर मेरा पेट हिल रहा था, पर कान आहट ले रहे थे.

मेरा यार उठा. चप्पलें फेंकने की आवाज आई, फिर उस ने मेरी रजाई उठा दी. मैं तब भी हंस रहा था.

शादीलाल बरस पड़ा, ‘‘एकलौता राम, तू कर गया न गद्दारी. मेरी यह हालत किस ने की?’’

मैं ने आंख मलने का नाटक किया और पूछा, ‘‘क्या बात है यार?’’

‘‘बनो मत, मेरी हालत पर तुम हंस रहे थे.’’

‘‘क्या बात करते हो यार… मैं तो सपने में हंस रहा था. अरे, तुम्हारे चेहरे पर रामलीला का मेकअप किस ने किया?’’

‘‘उठ यार, मैं यहां पलभर भी नहीं ठहर सकता. वही कमबख्त सालियां होंगी,’’ उस ने आईने में अपना चेहरा देखते हुए कहा.

 

‘‘चलो ससुरजी के पास, मैं उन सब की शिकायत करता हूं,’’ मैं ने कहा.

‘‘पर यार, ससुरजी ऐसा टैक्नीकलर दामाद देखेंगे तो क्या कहेंगे? आखिर मैं क्या करूं? मैं इसीलिए यहां नहीं आता हूं. तुझे बचाव के लिए लाया था, पर तू भी बेकार रहा.’’

‘‘शादीलाल, क्या मैं रातभर जाग कर तुम्हारी खाट के चक्कर लगाऊंगा? तुम भी तो घोड़े बेच कर सो गए. वहां जग में पानी रखा है, मुंह धो डालो.’’

बेचारा शादीलाल मुंह धो कर लेट गया. मैं सोने की कोशिश में था कि तभी पायल की आवाज सुन कर चौंका.

जीरो पावर का बल्ब जल रहा था.

मैं ने देखा, वह भारीभरकम औरत शायद श्रीमती शादीलाल थीं. मैं ज्यादा रात तक जागने पर मन

ही मन झल्लाया और करवट बदल कर लेटा रहा. मुझे आवाजें सुनाई पड़ रही थीं.

‘‘अरे तुम, देखो हल्ला नहीं करना. मेरा यार एकलौता राम सोया हुआ है. तुम खुद नहीं आ सकती थीं. तुम्हारी बहनों ने मेरा मजाक बना दिया.’’

ठीक तभी बिजली जलने की आवाज सुनाई दी और सामूहिक ठहाके भी. मैं ने फौरन हड़बड़ा कर रजाई फेंकी. देखा तो दंग रह गया. शादीलाल की 6 सालियां खड़ी थीं. बेचारा शादीलाल उन्हें टुकुरटुकुर देख रहा था.

साली नंबर 5 गद्दा, तकिया व साड़ी फेंक कर फ्राक में खड़ी हो गई और बोली, ‘‘हम सातों को जीजाजी शैतान कह रहे थे.’’

‘‘अरे, मैं तो पहले ही समझ गया था. मैं तो नाटक कर रहा था,’’ शादीलाल ने झेंपते हुए साली नंबर 5 को देखा.

इस मजाक के बाद अगला मजाक सुबह ही हुआ. मैं और मेरा यार जब कमरे से बाहर आए, तो आंगन में सालियों से दुआसलाम हुई.

तभी एक साली ने कहा, ‘‘जीजाजी, क्या आप रात को बड़ी दीदी के कमरे में गए थे?’’

‘‘नहीं सालीजी, तुम्हारे होते हुए मैं वहां क्यों जाता?’’ कह कर शादीलाल ने उसे गोद में उठा लिया.

‘‘पर जीजाजी, आप बड़ी दीदी की चप्पलें पहने हैं और आप की चप्पलें तो दीदी के कमरे में पड़ी हैं.’’

शादीलाल ने घबरा कर पैरों की ओर देखा. पैरों में लेडीज चप्पलें ही थीं.

शादीलाल के हाथ से साली छूट गई, पर मैं ने उसे संभाल लिया. फिर ठहाका लगा, तो शादीलाल की सिट्टीपिट्टी गुम हो गई.

सब से ज्यादा मजा उस समय आया, जब शादीलाल पेट हलका करने शौचालय में घुसा. तब मैं आंगन में खड़ाखड़ा ब्रश कर रहा था. सालियों ने जो टूथपेस्ट दिया था, उस का स्वाद कड़वा सा था और उस से बेहद झाग भी निकल रहा था.

तभी शौचालय के अंदर के नल का कनैक्शन, जिस से पानी जाता था, एक साली ने बाहर से बंद कर दिया.

मैं ने सोचा कि शादीलाल तो गया काम से. इधर मैं थूकतेथूकते परेशान था कि शादीलाल की सास ने कहा, ‘‘बेटा, तुम कुल्ला कर लो. इन शैतानों ने टूथपेस्ट की जगह तुम्हें ‘शेविंग क्रीम’ दे दी थी.’’

मेरे तो मानो होश ही उड़ गए. जल्दीजल्दी थूक कर भागा और सालियों के जबरदस्त ठहाके सुनता रहा.

शादीलाल एक घंटे बाद जब बिना पानी के ‘शौचालय’ से बाहर आया तो छोटी साली नाक दबा कर आई और बोली, ‘‘जीजाजी, फिर से अंदर जाइए. अब नल चालू कर दिया है.’’

शादीलाल दोबारा अंदर घुसा, फिर निकल कर नहाने घुस गया. उस का लगातार मजाक बनाया जा रहा था, पर वह ऐसा चिकना घड़ा था कि उस पर कोई बात रुकती नहीं थी.

2 दिन ऐसे ही सालियों की मुहब्बत भरी छेड़खानी में गुजरे. जब जाने का नंबर आया तो मेरे सीधेसादे यार शादीलाल ने सालियों से ऐसा मजाक किया कि सातों सालियां ही शर्म से पानीपानी हो गईं.

हुआ यों कि जब हमारे जाने का समय आया और रोनेधोने के बाद तांगे में सामान रख दिया गया, तब सालियां, उन की सहेलियां और महल्ले वालों की भीड़ जमा थी.

तभी शादीलाल ने कहा, ‘‘देखो सातों सालियो, मुझे यह बताओ कि कुंआरी लड़की को क्या पसंद है?’’

सातों सालियों ने न में सिर हिलाया. सब लोगों को यह जानने की बेताबी थी कि शादीलाल अब क्या कहेंगे. तभी शादीलाल ने आगे बढ़ कर कहा, ‘‘अरे, तुम लोगों को नहीं पता कि कुंआरी लड़कियों को क्या पसंद है?’’

‘नहीं,’ सातों सालियों ने एकसाथ फिर से वही जवाब दिया.

‘‘मुझे पहले ही तुम लोगों पर शक था,’’ शादीलाल ने नाटकीय लहजे में कहा.

उस समय सातों सालियों पर घड़ों पानी पड़ गया, जब उन की एक सहेली ने कहा, ‘‘तुम लोगों को जीजाजी ने बेवकूफ बना दिया. उन्हें तुम्हारे कुंआरे होने पर शक है. उन्होंने तुम सभी को शादीशुदा बना दिया है, क्योंकि तुम लोगों को कुंआरी लड़कियों की पसंद नहीं मालूम है.’’

और फिर तो सातों सालियों पर इतने जबरदस्त ठहाके लगे कि सभी दुपट्टे में मुंह छिपा कर अंदर भाग गईं.

 

Funny Story : बालम बकरा बनने से बच गए

बालम, कलकत्ता और गोरी का बहुत ही गहरा रिश्ता है. गोरी परेशान है. उस की रातों की नींद और दिन का चैन उड़ा हुआ है… यह सोचसोच कर कि बालम का काम बारबार कलकत्ता में ही क्यों होता है? चलो मान लिया काम होता भी है तो पूरे दफ्तर में अकेले उसी के बालम रह गए हैं क्या, जिन्हें बारबार कलकत्ता भेज दिया जाता है? बालमजी भी इतना खुश हो कर कलकत्ता ही क्यों जाते हैं जबकि देश

के मानचित्र पर अनेक शहर हैं. फिर कलकत्ता में ऐसी कौन सी डोर बंधी है जो गोरी के बालम को खींच रही है और बालम भी गोरी के लटकेझटके, नाजनखरे, प्यारमुहब्बत सब बिसार कर उधर ही खिंचे चले जाते हैं?

गोरी विरह की आग में जल रही है, ऊपर से बरसात उस की इस आग को ठीक उसी तरह भड़काने का काम कर रही है जैसे होम में घी करता है. गोरी के दिल से फिल्मी गाने के ये बोल निकल रहे हैं, ‘हायहाय ये मजबूरी, ये मौसम और ये दूरी…’

पर न तो कोई गोरी की हालत समझ रहा है, न ही उस का गीत सुन रहा है. गोरी के दिल का बोझ बढ़ता गया और आखिरकार उस ने अपनी पीड़ा हमउम्र सखियों को बताई. उस की पीड़ा सुन कर सखियां भी उदास हो गईं. एक बोली, ‘‘रे सखी, कहीं तेरे बालम का दिल वहां की किसी सांवलीसलोनी पर तो नहीं आ गया है?’’

‘‘ऐसा नहीं हो सकता. हमारी इतनी प्यारी सखी को छोड़ कहीं नहीं जाएगा जीजा,’’ दूसरी सखी डपटते हुए बोली. तभी तीसरी सखी बोली, ‘‘अरी, हम ने तो सुना है कि वहां की औरतें काला जादू जानती हैं और मर्दों को अपने बस में कर लेती हैं?’’

‘‘हां री, मैं ने भी बचपन में अपनी दादी से यही सुना था कि जो भी मरद कलकत्ता गए वे कभी न लौटे. फिर वहां की लुगाइयां मर्दों को भेड़बकरा या तोता कुछ भी बना डालती हैं जादू से और अपने यहां पालती हैं. उन की लुगाइयां बेचारी ऐसी ही जिंदगीभर इंतजार करती हैं उन का,’’ एक सखी ने उस में जोड़ा. ‘‘हां री, मैं ने भी सुना है यह तो… कलकत्ता गए मर्द कभी न आते वापस.’’

‘‘ऐसा हुआ तो हम कहां जाएंगे?’’ गोरी का कलेजा बैठने लगा, बहुत कोशिश कर के भी खुद को रोक न पाई और बुक्का फाड़ कर रो पड़ी, ‘‘हाय रे, मैं क्या करूं, कहां जाऊंगी मैं. कहीं वे भेड़बकरा बन गए तो मेरे किस काम के रह जाएंगे… एक तो पहले ही शक्ल बकरे जैसी थी, ऊपर से जादू से बकरा बना ही दिया तो कहां रखूंगी मैं उन्हें.’’ सारी सखियां उस की बातों पर हंसने लगीं. सभी सखियां मिल कर गोरी को चुप कराने लगीं, ‘अरी, रो मत. हम तो तुझ से मजाक कर रही थीं… यह सच नहीं है. ऐसा कुछ नहीं होता… जीजा बहुत जल्द आ जाएंगे,’ और उसे समझाबुझा कर घर भेज दिया.

गोरी घर तो आ गई, पर उस के मन का बोझ कई गुना बढ़ गया था. वह मन ही मन समझ रही थी कि जो बातें सखियों ने कहीं, वे झूठ नहीं थीं, क्योंकि उस ने भी वैसी बातें सुन रखी थीं… पर उस का बालम तो नहीं सुनता. इस बार तो कई महीनों से वापस नहीं आया. उसे अचानक याद आया कि उस का बालम कई बार कह भी चुका है कि कलकत्ता की लुगाइयां बड़ी सलोनी होती हैं.

वह पहले क्यों न समझी. गोरी की रातों की नींद और दिन का चैन छिन गया. पर यह बालम भी कैसा बेदर्द है. वह एक फोन तक नहीं कर रहा उस से बात करने को… बताओ, उस फिल्मी हीरोइन के बालम ने तो रंगून से भी फोन किया था कि तुम्हारी याद सताती है… और यह मेरा बालम है जो कलकत्ता से भी फोन नहीं कर रहा.

ऊपर से दिनभर सास के ताने सुनने को मिलते हैं, ‘‘ये आजकल की लड़कियां भी बिना खसम के रह ही न सकें, जाने काहे की आग लगी है? हम भी तो कभी जवान थे. हमारे वे तो 6-6 महीने के लिए परदेश जाते थे कमाने को… हम ने तो यों आंसू न बहाए थे… पूरे घर के काम और करे थे. ‘‘मर्द और बैल कभी खूंटा से बांध के रखे जाते हैं भला. उन्हें तो काम करना ही पड़ेगा तभी तो पेट भरेंगे सब का.’’

गोरी बेचारी चुपचाप ताने सुनसुन कर घर के काम कर रही थी. वैसे भी हमारी बहुओं में चुप रहने की आदत होती है. उस ने ठान लिया था कि इस बार बालम बस वापस आ जाएं, फिर उन्हें कहीं भी जाने देगी, पर कलकत्ता नहीं जाने देगी, चाहे कुछ भी हो जाए. वह अपने पति के रास्ते को वैसे ही रोकेगी जैसे गोपियों ने उद्धव का रथ रोका था जब वे कान्हा को ले कर मथुरा जा रहे थे.

उस दिन सुबहसुबह सचमुच आहट हुई और दरवाजे पर बालम को देख गोरी खुशी में पति से ऐसे लिपट गई मानो चंदन के पेड़ पर सांप लिपटे हों. वह तो ऐसे ही लिपटी रहती अगर सास ने सुमधुर आवाज में उस के पूरे खानदान की आरती न उतारी होती. गालियों की बौछारों ने उस के अंदर से फूटे प्रेम के झरने को बहने से तुरंत रोक दिया.

गोरी ने अपनी भावनाओं को रोका और चुपचाप अपने कामों में जुट गई. भले ही उस की आंखें बालम पर टिकी थीं. आखिरकार इंतजार की घडि़यां खत्म हुईं और गोरी का बालम से मिलन हुआ. पर यह मिलन स्थायी तो नहीं था… गोरी के दिल में हरदम डर लगा रहता, बालम फिर से न कहें कलकत्ता जाने की. गोरी अपने बालम की हर इच्छा का खयाल रखती ताकि उसे जाने की याद न आए. वह प्यारमनुहार से बालम के दिल को टटोलने की कोशिश कर रही थी जिस की डोर का एक सिरा कलकत्ता में बंधा तो है, पर किस से? पर अब तक कामयाब न हो सकी. सो बालम के प्रेम में मगन हो गई.

अभी कुछ ही दिन प्रेम की नदी में डुबकियां लगाते बीते थे कि बालमजी ने फिर कलकत्ता का राग अलापा. इधर उन का अलाप शुरू हुआ… उधर गोरी ने ऐसा रुदन शुरू किया कि बालम के स्वर हिलने लगे. गोरी जमीन में लोटपोट हो कर दहाड़ें मार रही थी… बालम बेचारा हैरानपरेशान उसे जितना चुप कराने की कोशिश करता, गोरी उतनी ही तेज आवाज में अपना रोना शुरू कर देती. सारा घर, सारा महल्ला इकट्ठा हो गया.

सासू ने भी अपने चिरपरिचित अंदाज में गोरी को चुप होने का आदेश दिया, पर आज तो गोरी ने उन की भी न सुनी. उस का रैकौर्डर एक ही जगह फंस गया था कि इस बार बालम को कलकत्ता नहीं जाने दूंगी. जितने लोग उतने उपाय. कोई कहे इस पर भूतनी आ गई है, इसे तांत्रिक बाबा के पास ले चलो… कोई चप्पल सुंघाने की सलाह दे रहा था… कोई कह रहा था कि इस के खसम का किसी कलकत्ते वाली से टांका भिड़ा है. उस के बारे में गोरी को पता लग गया है इसलिए इतना फैल रही है. बालम बेचारा अपने माथे पर हाथ धर के बैठ गया. सब मिल कर गोरी से जानने की कोशिश कर रहे थे कि ऐसी क्या वजह है कि वह अपने बालम को कलकत्ता नहीं जाने देना चाहती.

पर गोरी पर तो जैसे सच्ची में भूत सवार था. वह दहाड़ें मारमार कर रोए जा रही थी और कलकत्ता पर गालियां बरसा रही थी. यह नाटक और कई घंटे चलता, पर इतने में किसी ने पुलिस को फोन कर दिया. कुछ देर तक तो पुलिस के सामने भी यह नाटक चालू रहा, पर फिर दरोगाजी ने डंडा फटकार कर कहा, ‘‘इस को, इस की सास को और पति को ले चलो और जेल में डाल दो. सारा सच सामने आ जाएगा…’’

जेल का नाम सुनते ही गोरी के रोने पर झटके से ब्रेक लग गया. वह एक सांस में बोली, ‘‘हमें न भेजना अपने बालम को कलकत्ता, वहां की औरतें काला जादू जानती हैं, इसे जादू से बकरा बना कर अपने घर में बांध लेंगी, फिर हमारा क्या होगा?’’ और गोरी फिर से रोने लगी.

गोरी की बात सुन कर बाकी लोग हंसने लगे. गोरी रोना बंद कर मुंहबाए सब को देखने लगी… उस ने देखा कि बालम भी हंस रहा है… ‘‘धत पगली, ऐसा किस ने कह दिया तुम से. इस जमाने में ऐसी कहानी कहां से सुन ली…’’ बालम ने उसे मीठी फटकार लगाई.

‘‘मैं ने बचपन में सुना था ऐसा, जो भी बालम कलकत्ता जाते, कभी वापस नहीं आते और मेरी सब सखियों ने भी तो ऐसा ही कहा,’’ गोरी ने बताया. अब सासूजी बोलीं, ‘‘ये कौन सी सखियां हैं तेरी… मुझे बता, मैं खबर लूं उन की. बताओ छोरी का दिमाग खराब कर के धर दिया… कोई भी लुगाई यह सुनेगी, उस बेचारी का कलेजा तो धसक ही जाएगा…

‘‘चल, अब तू भीतर चल. कहीं न जाएगा तेरा बालम… और तुम सब भी अपनेअपने घर को जाओ. यहां कोई मेला थोड़े ही न लगा है.’’ सब अपने रास्ते चल दिए और दारोगाजी भी हंसते हुए वापस चले गए. आखिर गोरी की जीत जो हो गई थी. उस के बालम बकरा बनने से बच जो गए थे.

 

love Story : आप की शिवानी

प्रोफैसर महेश ने कढ़ा हुआ रूमाल उठाया. उन्होंने रूमाल को पहचानने की कोशिश की. यह वही रूमाल था जो शिवानी उन्हें देने के लिए उस दिन उन के कमरे में आई थी. उन की आंखें आंसुओं से भर गईं. कहानी द् तिनसुखिया मेल के एसी कोच में बैठे प्रोफैसर महेश एक पुस्तक पढ़ने में मशगूल थे. वे एक सैमिनार में भाग लेने गुवाहाटी जा रहे थे.

पास की एक सीट पर बैठी प्रौढ़ महिला बारबार प्रोफैसर महेश को देख रही थी. वह शायद उन्हें पहचानने का प्रयास कर रही थी. जब वह पूरी तरह आश्वस्त हो गई तो उठ कर उन की सीट के पास गई और शिष्टतापूर्वक पूछा, ‘‘सर, क्या आप प्रोफैसर महेश हैं?’’ यह अप्रत्याशित सा प्रश्न सुन कर प्रोफैसर महेश असमंजस में पड़ गए. उन्होंने महिला की ओर देखते हुए कहा, ‘‘मैं ने आप को पहचाना नहीं, मैडम.’’ ‘‘मेरा नाम माधवी है. मैं लखनऊ यूनिवर्सिटी में प्रोफैसर हूं.

मेरी एक सहेली थी प्रोफैसर शिवानी,’’ वह महिला बोली. ‘‘थी… से आप का क्या मतलब है?’’ प्रोफैसर महेश ने उस की ओर देखते हुए पूछा. ‘‘वह अब इस दुनिया में नहीं है. उस ने किसी को अपनी किडनी डोनेट की थी. उसी दौरान शरीर में सैप्टिक फैल जाने के कारण उस की मृत्यु हो गई थी,’’ महिला ने कहा. ‘‘क्या?’’ प्रोफैसर महेश का मुंह आश्चर्य से खुला रह गया था. ‘‘जी सर. उसे शायद अपनी मृत्यु का एहसास पहले ही हो गया था. मरने से 2 दिन पहले उस ने मुझे यह रूमाल और एक पत्र आप को देने के लिए कहा था. उस के द्वारा दिए पते पर मैं आप से मिलने दिल्ली कई बार गई. मगर आप शायद वहां से कहीं और शिफ्ट हो गए थे.’’ यह कह कर उस महिला ने वह रूमाल और पत्र प्रोफैसर को दे दिया. वह महिला जा कर अपनी सीट पर बैठ गई. प्रोफैसर महेश बुत बने अपनी सीट पर बैठे थे. तिनसुखिया मेल अपनी पूरी रफ्तार से दौड़ रही थी और उस से भी तेज रफ्तार से अतीत की स्मृतियां प्रोफैसर महेश के मानसपटल पर दौड़ रही थीं. आज से 25 वर्ष पूर्व उन की तैनाती एक कसबे के डिग्री कालेज में प्रोफैसर के रूप में हुई थी.

कालेज कसबे से दोढाई किलोमीटर दूर था. कालेज में छात्रछात्राएं दोनों पढ़ते थे. कालेज का अधिकांश स्टाफ कसबे में ही रहता था. प्रोफैसर महेश का व्यक्तित्व बड़ा आकर्षक था और उन के पढ़ाने का ढंग बहुत प्रभावी. इसलिए छात्रछात्राएं उन का बड़ा सम्मान करते थे. वे बड़े मिलनसार और सहयोगी स्वभाव के थे. इसलिए स्टाफ में भी उन के सब से बड़े मधुर संबंध थे.

एक दिन वे क्लास में पढ़ा रहे थे, तभी चपरासी उन के पास आया और बोला, ‘सर, प्रिंसिपल सर आप को अपने औफिस में बुला रहे हैं.’ प्रोफैसर महेश सोच में पड़ गए. फिर वे प्रिंसिपल रूम की ओर चल दिए. उन्हें देख कर प्रिंसिपल साहब बोले, ‘प्रोफैसर महेश, बीए सैकंड ईयर की छात्रा शिवानी अचानक क्लास में बेहोश हो गई है. उसे किसी तरह होश तो आ गया है मगर अभी उस की तबीयत पूरी तरह ठीक नहीं है. आप ऐसा करिए, उसे अपने स्कूटर से उस के घर छोड़ आइए.’ उस समय स्टाफ के 2-3 लोगों के पास ही स्कूटर था.

शायद इसी कारण प्राचार्यजी ने उन्हें यह कार्य सौंपा था. वे शिवानी को स्कूटर पर बैठा कर कसबे की ओर चल दिए. वे कसबे में पहुंचने ही वाले थे कि सड़क के किनारे खड़े बरगद के पेड़ के पास शिवानी ने कहा, ‘सर, स्कूटर रोक दीजिए.’ प्रोफैसर महेश ने स्कूटर रोक दिया और शिवानी से पूछा, ‘‘क्या बात है शिवानी, क्या तुम्हें फिर चक्कर आ रहा है?’ ‘मुझे कुछ नहीं हुआ सर, मैं तो आप से एकांत में बात करना चाहती थी, इसलिए मैं ने कालेज में बेहोश होने का नाटक किया था,’

उस ने बड़े भोलेपन से कहा. ‘क्या?’ प्रोफैसर ने हैरानी से उस की ओर देखा. फिर पूछा, ‘आखिर, तुम ने ऐसा क्यों किया और तुम मुझ से क्या बात करना चाहती हो?’ ‘सर, मैं आप से प्यार करती हूं और आप को यही बात बताने के लिए मैं ने यह नाटक किया था,’ वह प्रोफैसर की ओर देख कर मुसकरा रही थी.

प्रोफैसर हतप्रभ खड़े थे. उन्हें समझ में ही नहीं आ रहा था कि वे उस से क्या कहें. काफी देर तक वे चुप रहे. फिर बोले, ‘यह तुम्हारी पढ़ने की उम्र है, प्यार करने की नहीं. अभी तो तुम प्यार का मतलब भी नहीं जानतीं.’ ‘आप ठीक कह रहे हैं, सर. मगर मैं अपने इस दिल का क्या करूं, यह तो आप से प्यार कर बैठा है,’ वह प्रोफैसर की ओर देख कर मुसकराते हुए बोली. ‘तुम्हें मालूम है कि मैं शादीशुदा हूं और मेरे 2 बच्चे हैं. और मेरी तथा तुम्हारी उम्र में कम से कम 20 साल का अंतर है,’ प्रोफैसर ने उसे समझते हुए कहा. ‘मुझे इन बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता, सर. मैं तो केवल एक ही बात जानती हूं कि मैं आप से प्यार करती हूं, बेपनाह प्यार,’ वह दार्शनिक अंदाज में बोली. प्रोफैसर ने उसे समझने का हरसंभव प्रयास किया. मगर उस पर कोई असर नहीं हुआ.

तो उन्होंने यह कह कर कि, अब तुम ठीक हो इसलिए यहां से अपने घर पैदल चली जाना, वे कालेज लौट गए. प्रोफैसर महेश ने इस बात को उस का बचपना समझ और गंभीरता से नहीं लिया. शिवानी किसी न किसी बहाने से उन के करीब आने और उन से बात करने का प्रयास करती रहती. परंतु वह उन के जितना करीब आने का प्रयास करती, वे उतना ही उस से दूर भागते. वे नहीं चाहते थे कि कालेज में यह बात चर्चा का विषय बने. कसबे में छोटे बच्चों का कोई कौन्वैंट स्कूल नहीं था, इसलिए वे यहां अकेले ही किराए के मकान में रहते थे. उन की पत्नी और बच्चे उन के मम्मीपापा के साथ रहते थे. एक दिन शाम का समय था. प्रोफैसर कमरे में अकेले बैठे एक किताब पढ़ रहे थे. तभी दरवाजे पर खटखट हुई. उन्होंने दरवाजा खोला. सामने शिवानी खड़ी थी. उसे इस प्रकार अकेले अपने घर पर देख वे असमंजस में पड़ गए. इस से पहले कि वे कुछ कहते, वह कमरे में आ कर एक कुरसी पर बैठ गई.

आज पहली बार प्रोफैसर ने शिवानी को ध्यान से देखा. 20-21 वर्ष की उम्र, लंबा व छरहरा बदन, गोराचिट्टा रंग और आकर्षक नैननक्श. उस के लंबे घने बाल उस की कमर को छू रहे थे. सादे कपड़ों में भी वह बेहद सुंदर लग रही थी. कमरे के एकांत में एक बेहद सुंदर नवयुवती प्रोफैसर के सामने बैठी थी और वह उन से प्यार करती है, यह सोच कर प्रोफैसर के मन में गुदगुदी सी होने लगी. उन्होंने अपने मन को संयत करने का बहुत प्रयास किया मगर वे अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखने में असफल रहे. उन के मन में तरहतरह की हसीन कल्पनाएं उठने लगीं, चेहरे का रंग पलपल बदलने लगा. इस सब से बेखबर शिवानी कुरसी पर शांत और निश्चल बैठी थी. उस के एक हाथ में सफेद रंग का रूमाल था.

प्रोफैसर उठ कर उस के पास गए और उस के गालों को थपथपाते हुए पूछा, ‘शिवानी, तुम यहां अकेले क्या करने आई हो?’ उस ने प्रोफैसर की आंखों में झंक कर देखा, पता नहीं उसे उन की आंखों में क्या दिखाई दिया, वह झटके के साथ कुरसी से उठ कर खड़ी हो गई. उस के चेहरे के भाव एकाएक बदल गए थे. प्रोफैसर के हाथों को अपने गालों से झटके के साथ हटाते हुए वह बोली, ‘प्लीज, डोंट टच मी. आई डोंट लाइक दिस.’ प्रोफैसर के ऊपर पड़ा बुद्धिजीवी का लबादा फट कर तारतार हो चुका था. शिवानी का यह व्यवहार उन के लिए अप्रत्याशित था. उन्हें समझ ही नहीं आ रहा था कि वे उस से क्या कहें. ‘तुम तो कहती हो कि तुम मुझ से बहुत प्यार करती हो,’ प्रोफैसर महेश ने शिवानी की ओर देखते हुए कहा. ‘हां सर, मैं आप को बहुत प्यार करती हूं. मगर मेरा प्यार गंगाजल की तरह निर्मल और कंचन की तरह खरा है,’ उस ने दृढ़ स्वर में कहा. ‘ये सब फिल्मी डायलौग हैं,’ प्रोफैसर ने खिसियानी हंसी हंसते हुए कहा. ‘सर, जरूरत पड़ने पर मैं यह सबित कर दूंगी कि आप के प्रति मेरा प्यार कितना गहरा है,’ यह कह कर वह कमरे से चली गई थी. काफी देर तक प्रोफैसर अवाक खड़े रहे थे, फिर अपने काम में लग गए थे. इस के बाद शिवानी ने उन से बात करने या मिलने का प्रयास नहीं किया.

वे भी धीरेधीरे उसे भूल गए. कुछ समय बाद उन का उस कालेज से स्थानांतरण हो गया. सरकारी सेवा होने के कारण कई जगह स्थानांतरण हुए और आखिर में वे दिल्ली में सैटल्ड हो गए. 2 साल पहले प्रोफैसर को किडनी प्रौब्लम हो गई. कई महीने तक तो डाइलिसिस पर रहे, फिर डाक्टरों ने कहा कि अब किडनी ट्रांसप्लांट के अलावा कोई चारा नहीं है. तब प्रोफैसर ने अपने परिवार में इस संबंध में सब से बातचीत की. उन की पत्नी, दोनों बेटों और बेटी ने राय दी कि पहले किडनी के लिए विज्ञापन देना चाहिए. हो सकता है कि कोई जरूरतमंद पैसे के लिए अपनी किडनी डोनेट करने के लिए तैयार हो जाए. अगर 2-3 बार विज्ञापन देने के बाद भी कोई डोनर नहीं मिलता है तो हम लोग फिर इस बारे में बातचीत करेंगे. बेटे ने राजधानी के सभी अखबारों में किडनी डोनेट करने वाले को 20 लाख रुपए देने का विज्ञापन छपवाया. विज्ञापन में प्रोफैसर का नाम, पूरा पता दिया गया. विज्ञापन दिए एक महीना हो गया था.

जिस अस्पताल में प्रोफैसर महेश का इलाज चल रहा था. एक दिन वहां से फोन आया. ‘सर, आप के लिए गुड न्यूज है. आप को किडनी देने के लिए एक डोनर मिल गई है. उस की उम्र 45 साल के करीब है और वह आप को किडनी डोनेट करने के लिए तैयार है. मगर उस की एक शर्त है कि, किडनी ट्रांसप्लांट होने से पहले उस का नाम व पता किसी को न बताया जाए.’

मुझे यह जान कर हैरानी हुई कि डोनर अपना नाम, पता क्यों नहीं बताना चाहती. फिर हम सब ने सोचा कि शायद उस की कोई मजबूरी होगी. ट्रांसप्लांट की सारी फौर्मैलिटीज पूरी कर ली गईं और नियत तारीख पर उन की किडनी का ट्रांसप्लांटेशन हो गया, जो पूरी तरह से सफल रहा. इस के कई दिनों बाद जब प्रोफैसर महेश अपने को काफी सहज अनुभव करने लगे तो उन्होंने एक दिन डाक्टर साहब से पूछा कि ‘डाक्टर साहब, वे लेडी कैसी हैं जिन्होंने उन्हें अपनी किडनी डोनेट की थी.’ कुछ देर तक डाक्टर साहब खामोश रहे, फिर बोले कि वह लेडी तो परसों बिना किसी को कुछ बताए अस्पताल से चली गई.

हैरानी की बात यह है कि वह अपनी डोनेशन फीस भी नहीं ले गई. ‘क्या..?’ प्रोफैसर का मुंह विस्मय से खुला का खुला रह गया था. जब उन्होंने यह बात अपने परिवार के लोगों को बताई तो उन सब को बड़ी हैरानी हुई. सभी को यह बात समझ ही नहीं आ रही थी कि आज के इस आपाधापी के दौर में 20 लाख रुपए ठुकरा देने वाली यह लेडी आखिर कौन थी.

काफी दिनों तक प्रोफैसर इसी उधेड़बुन में रहे. उन्होंने उस लेडी का पता लगाने की हरसंभव कोशिश की, मगर इस के बारे में कुछ पता नहीं चला. ‘‘आप को कहां तक जाना है, सर,’’ अचानक टीटीई ने आ कर प्रोफैसर महेश की तंद्रा को भंग कर दिया. वे अतीत से वर्तमान में लौट आए. टिकट चैक करने के बाद टीटीई चला गया. प्रोफैसर महेश ने वह रूमाल उठाया जो शिवानी ने उन्हें देने के लिए प्रोफैसर माधवी को दिया था. उन्होंने रूमाल को पहचानने की कोशिश की. यह शायद वही कढ़ा हुआ रूमाल था जो शिवानी उन्हें देने उन के कमरे पर आई थी.

सफेद रंग के उस रूमाल के एक कोने में सुनहरे रंग से इंग्लिश का अक्षर एस कढ़ा हुआ था. एस यानी शिवानी के नाम का पहला अक्षर. अब प्रोफैसर महेश को डोनर की सारी पहेली समझ में आ गई थी. उन्होंने रूमाल में रखे हुए मुड़ेतुड़े पत्र को खोल कर पढ़ा, लिखा था- ‘‘प्रोफैसर साहब, ‘‘आप का जीवन मेरे लिए बहुत बहुमूल्य है, इसलिए मैं ने अपने जीवन को संकट में डाल कर आप की जान को बचाया. मगर मैं ने ऐसा कर के आप पर कोई एहसान नहीं किया. मुझे तो इस बात की खुशी है कि मैं जिसे हृदय की गहराइयों से प्यार करती थी, उस के किसी काम आ सकी. ‘‘आप की शिवानी.’’ पत्र पढ़ कर प्रोफैसर महेश का मन गहरी वेदना से भर उठा. शिवानी का यह निस्वार्थ प्यार देख कर उन की आंखों से आंसू बहने लगे. उन्होंने शिवानी का दिया हुआ रूमाल उठाया और उस से अपने आंसुओं को पोंछने लगे. ऐसा कर के शायद उन्होंने शिवानी के सच्चे अमर प्रेम को स्वीकार कर लिया था.

Satire : थूक

केदारनाथ धाम में मुंबई के मेरे एक दोस्त पिछले दिनों केदारनाथ धाम आए थे. अपने आने की खबर उन्होंने मुझे पहले से दे दी थी. वे एक होटल में ठहरे थे.

उन से मुलाकात कर के मैं वापस लौट रहा था. रास्ते में देखा कि एक कोढ़ी खस्ता हालत में शिवलिंग के दर्शन के लिए गुजरात से आया था.

वह कोढ़ी पूरी शिद्दत से मंदिर के अंदर चला गया. सब लोग लाइन में खड़े थे, तभी उस कोढ़ी के पास एक पंडा आया. उस कोढ़ी ने जेब से 500 रुपए निकाल कर पंडे को दे दिए. पंडा उसे स्पैशल पूजा के रास्ते से मंदिर के भीतर ले गया.

पूजा के बाद पंडा तो खिसक गया, लेकिन उस कोढ़ी ने शिवलिंग को कस कर पकड़ते हुए कहा, ‘‘महाराज, मैं गुजरात से आया हूं. न जाने मैं ने पिछले जन्म में क्या पाप किया था, जो मैं कोढ़ी हो गया…’’

वह कोढ़ी शिवलिंग पर ऐसे चिपटा हुआ था, मानो उस का कोढ़ गायब हो जाएगा. वह शिवलिंग को छोड़ने के मूड में नहीं था, तभी वहां तमाम भक्तों की भीड़ लग गई. सभी दर्शनों के लिए बेचैन थे. दूसरे पंडे उसे शिवलिंग को छोड़ने के लिए लगातार कह रहे थे, पर वह उन की बात न सुन कर केवल रोए जा रहा था.

 

हार कर 4 पंडे और आए और उसे जबरन घसीट कर मंदिर से बाहर ले गए.

गुस्से में आगबबूला हो कर पंडे उसे गालियां देने लगे. कुछ पंडे उस पर लातें चला रहे थे, तो कई घूंसे जमा रहे थे.

थोड़ी देर बाद वह कोढ़ी लहूलुहान हो कर सीढ़ी के किनारे आ बैठा.

मैं ने उस की हालत देख कर कहा, ‘‘अरे, यह क्या कर दिया?’’

दिल्ली रेलवे स्टेशन पर मुझे कवि सम्मेलन में भाग लेने के लिए नागपुर जाना था. मैं ने स्टेशन पर पता किया कि नागपुर के लिए गाड़ी रात के 3 बजे मिलेगी. मैं रात के 12 बजे स्टेशन पहुंच गया. मैं ने सोचा कि 3 घंटे टहलतेटहलते कट जाएंगे.

मैं प्लेटफार्म नंबर 5 पर आया और एक लोहे की बैंच पर बैठ गया. मेरे बगल वाली बैंच पर धोतीकुरता पहने एक साहब गहरी नींद में सोए हुए थे.

मेरी दाईं तरफ एक साहब व उन की बीवी और 2 बच्चे एक बैंच पर बैठे थे. शायद वे भी गाड़ी का इंतजार कर रहे थे. उन के बच्चे बहुत नटखट नजर आ रहे थे. उन की मम्मी उन्हें बिट्टू व पिंटू नाम से पुकार रही थीं.

वे दोनों बच्चे मेरे बगल वाली बैंच पर सो रहे साहब को नाना पाटेकर कह रहे थे. एक भिखारी व एक भिखारिन को वे अनिल कपूर व जूही चावला कह रहे थे.

अचानक वे दोनों बच्चे मेरी बगल वाली बैंच पर सोए हुए साहब की बैंच पर बैठ गए और उन में से एक ने अपनी मम्मी से कहा, ‘‘मम्मी, हम नाना पाटेकर के साथ बैठे हैं.’’

उन की मम्मी मुसकराते हुए उन्हें चुप रहने का इशारा करने लगीं.

वे दोनों बच्चे उन साहब के नीचे रखे जूतों को इस तरह देख रहे थे, मानो जूतों की तहकीकात कर रहे हों. फिर उन दोनों ने जूतों में पेशाब करना शुरू कर दिया. वे पेशाब की धार की गिनती गिनने लगे. बिट्टू ने 50 की गिनती तक जूता भरा, जबकि पिंटू ने 30 की गिनती में ही जूता भर दिया. इस के बाद वे दोनों अपनी मम्मी के पास चले गए.

तभी एक पुलिस वाला आया. उसने सोए हुए आदमी को डंडा चुभा कर कहा, ‘‘अबे ओ घोंचू, घर में सोया है क्या?’’

उन साहब की नींद खुली और वे जूता पहनने लगे कि जूतों में भरे पेशाब ने वहां का फर्श गीला कर दिया.

‘‘अरे, यह क्या किया. जूतों में पेशाब कर के सो रहा था. प्रदूषण फैलाता है. तुझे सामने लिखा नहीं दिखाई दिया कि गंदगी फैलाने वाले से 500 रुपए जुर्माना वसूल किया जाएगा. चल थाने,’’ कह कर पुलिस वाला उसे थाने ले जाने लगा.

 

वे साहब चलतेचलते गिड़गिड़ाने लगे, ‘‘नहीं जनाब, मैं ने पेशाब नहीं किया…’’

पुलिस वाले ने उन की एक न सुनी. वह उन्हें प्लेटफार्म नंबर 4 की तरफ ले गया.

मैं ने उन दोनों बच्चों की तरफ देखा. वे भी सारा माजरा समझ गए थे. उन में से एक ने दूसरे से कहा, ‘‘अभी तो फिल्म का ट्रेलर चल रहा है, पिक्चर शुरू नहीं हुई.’’

मैं धीरे से कहने लगा, ‘‘अरे, यह क्या कर दिया?’’

राजस्थान की बस में मैं अजमेर में एक अखबार में सहायक संपादक था. प्रधान संपादक ने मुझे निजी काम से दिल्ली भेजा था. मैं अजमेर से दिल्ली के लिए सुबह बस से चला था. जयपुर से आगे एक छोटे शहर में बस का टायर पंचर हो गया. सभी सवारियां समय बिताने व कुछ खानेपीने के लिए आसपास की दुकानों में चली गईं.

मैं एक पेड़ की छाया में बैठ गया. बगल वाली गली में कुछ बच्चे खेल रहे थे, तभी वहां से एक गधा गुजरा. गधे को देख कर बच्चों ने हल्ला मचाना शुरू कर दिया. 3 बच्चे गधे पर सवार हो गए और 2 बच्चे डंडे से पीटते हुए उसे दौड़ाने लगे. गधा ‘ढेंचूढेंचू’ करता हुआ दौड़ता जा रहा था.

सभी सवारियां यह तमाशा देख रही थीं. हमारी बस का ड्राइवर लंबी चोटी रखे हुए था. वे बच्चे ड्राइवर को चिढ़ाने लगे, ‘चोटी वाला साबुन क्या भाव है?’

 

ड्राइवर को गुस्सा आ गया. उस ने सड़क के किनारे पड़ा एक पुराना सैल उठाया और बच्चों की तरफ फेंक दिया. सैल एक बच्चे की खोपड़ी में जोर से लगा और उस की खोपड़ी से खून बहने लगा.

बस का टायर बदला जा चुका था. ड्राइवर ने हौर्न बजाया. सब सवारियां बस में बैठ गईं और बस दिल्ली की तरफ चल पड़ी.

रेवाड़ी पहुंचते ही पुलिस ने बस को घेर लिया और ड्राइवर को हथकड़ी पहना दी.

मैं ने कहा, ‘‘अरे, यह क्या कर दिया?’’

मसजिद के बाहर बात मुरादाबाद की है. एक मसजिद के बाहर एक हिंदू दंपती ने अपना तकरीबन 15 साल का लड़का नंगा कर के जमीन पर बैठा रखा था. जो भी नमाज पढ़ने अंदर जाता, उस से लड़के का पिता गुजारिश करता कि बाहर आते समय लड़के के ऊपर थूक कर चले जाना, क्योंकि यह लड़का दुष्ट आत्मा का शिकार है.

मैं ने अपने दोस्त से पूछा कि यह क्या हो रहा है, तो उस ने बताया कि यह किसी जिन का चक्कर है.

हम दोनों मसजिद के सामने वाली दुकान पर अखबार पढ़ने के बहाने बैठ गए. मेरी नजर उसी लड़के पर टिकी थी. जो भी नमाजी बाहर आ रहा था,

वह लड़के पर थूक रहा था. कोई पान वाला लाल थूक डाल रहा था तो कोई सादा थूक.

नमाजियों की भीड़ बढ़ती जा रही थी. एक नमाजी नया सफेद पठानी सूट पहने था. भीड़ की वजह से उस की सलवार पर उस लड़के के बदन का थूक लग गया.

 

‘‘बेवकूफ, मेरी सलवार को कौन साफ करेगा? तेरा बाप…?’’ कहते हुए उस ने एक जोरदार लात लड़के के मुंह पर जमा दी. मैं ने देखा कि लड़के की दाईं आंख लात की चोट से बंद हो चुकी थी.

दुष्ट आत्मा तो थूकने या लात खाने से भले ही न निकली हो, पर उस लड़के को रिकशे पर लाद कर अस्पताल ले जाना पड़ा.

मैं ने कहा, ‘‘अरे, यह क्या कर दिया?’’

Hindi Story : जज्‍बात का सौदागर

रोमा सारे घरों का काम जल्दीजल्दी निबटा कर तेज कदमों से भाग ही रही थी कि वनिता ने आवाज लगाई, ‘‘अरी ओ रोमा… नाश्ता तो करती जा. मैं ने तेरे लिए ही निकाल कर रखा है.’’‘‘रख दीजिए बीबीजी, मैं शाम को आ कर खा लूंगी. अभी बहुत जरूरी काम से जा रही हूं,’’ कहते हुए रोमा सरपट दौड़ गई. रोमा यहां सोसाइटी के कुछ घरों में झाड़ूपोंछा, बरतन, साफसफाई का काम करती थी. इस समय वह इतनी तेजी से अपने प्रेमी रौनी से मिलने जा रही थी. रौनी बगल वाली सोसाइटी में मिस्टर मेहरा के यहां ड्राइवर था.

पिछले 2 साल से रोमा और रौनी में गहरी जानपहचान हो गई थी. वे दोनों अगलबगल की सोसाइटी में काम करते थे और एक दिन आतेजाते उन की निगाहें टकरा गईं. फिर देखते ही देखते उन के बीच प्यार की शहनाई बज उठी.जवानी की दहलीज पर अभीअभी कदम रखने वाली रोमा पूर्णमासी के चांद की तरह बेहद ही खूबसूरत और मादक लगती थी. उस की हिरनी जैसी आंखें, सुराहीदार गरदन, पतली कमर और गदराया बदन देख कर हर कोई उसे रसभरी निगाहों से देखता था, लेकिन रोमा की जिंदगी का रस रौनी था, जिस से शादी कर के वह अपना घर बसाना चाहती थी. रौनी दिखने में बांका जवान था.

बिखरे बाल, आंखों पर चश्मा, शर्ट के सामने के 2 बटन हमेशा खुले, गले में चेन और कलाई में ब्रैसलेट… रौनी का यह स्टाइल किसी हीरो से कम नहीं था और रोमा उस के इसी स्टाइल पर मरमिटी थी.अकसर रोमा ही सारे घरों का काम निबटा कर रौनी को पास वाले पार्क में मिलने के लिए फोन किया करती थी, लेकिन आज पहली बार रौनी ने फोन कर के रोमा को ‘जरूरी काम है’ कह कर बुलाया था.रोमा भागीभागी पार्क में पहुंची, तो देखा कि रौनी वहां उस का इंतजार कर रहा था.

रोमा को सामने देखते ही रौनी ने उसे अपनी बांहों में दबोच लिया. रोमा खुद को छुड़ाते हुए बोली, ‘‘यही था तेरा जरूरी काम, जो तू ने मुझे यहां इतनी जल्दी में बुलाया… तुझे पता है कि मैं बनर्जी के घर का काम छोड़ कर आई हूं…

अब जल्दी से बोल कि यहां मुझे क्यों बुलाया?’’रोमा की कमर पर अपना हाथ डाल कर उसे अपनी ओर खींच कर करीब लाने के बाद उस के होंठों पर अपनी उंगली फेरते हुए रौनी बोला, ‘‘हमारी शादी के लिए रुपयों का जुगाड़ हो गया…’’यह सुनते ही रोमा उछल पड़ी और बोली, ‘‘अरे वाह… यह सब तू ने कैसे किया? तेरा मालिक तुझे रुपए उधार देने के लिए तैयार हो गया क्या?’’रोमा के ऐसा पूछने पर रौनी के चेहरे पर एक राजभरी मुसकान और आंखों पर एक अजीब सी शरारत तैर गई और वह रोमा का चेहरा अपने दोनों हाथों में ले कर उस के होंठों को चूमने लगा. रोमा झुंझला कर रौनी से अलग होते हुए बोली,

‘‘छोड़ मुझे… पहले यह बता कि रुपए कहां से आएंगे?’’अपने हाथों से अपने ही होंठों को पोंछते हुए रौनी बोला, ‘‘तुझे हमारे साहब के बच्चे को जन्म देना होगा.’’इतना सुनते ही रोमा चिढ़ गई और बोली, ‘‘तुझे शर्म नहीं आती, कैसी बेशर्मों जैसी बात करता है. मैं भला तेरे साहब के बच्चे की मां क्यों बनूंगी…’’

रोमा के ऐसा कहने पर रौनी हंसते हुए बोला, ‘‘अरे, तुझे साहब के बच्चे की मां नहीं बनना है, बच्चे की मां तो उन की बीवी ही रहेगी, तुझे तो बस उन के बच्चे को अपनी कोख में 9 महीने के लिए रखना है. इस के लिए साहब हमें 2 लाख रुपए देंगे, मकान किराए पर ले कर देंगे और खानापीना सब का खर्चा साहब ही उठाएंगे.’’पहले तो रोमा मानी नहीं, लेकिन जब रौनी ने उसे सरोगेसी मां के बारे में अच्छी तरह से समझाया, अपने प्यार का वास्ता दिया और जल्द ही शादी करने का वादा किया, तो 20 साल की भोलीभाली रोमा सरोगेसी मां बनने के लिए तैयार हो गई.

रोमा ने सारे घरों का काम छोड़ दिया. इतना ही नहीं, अपना घर भी छोड़ दिया. वैसे भी घर पर उस का अपना कोई था नहीं. बाप पूरा दिन शराब के नशे में पड़ा रहता. उसे अपना होश नहीं रहता था, तो वह अपनी बेटी की फिक्र कहां से करता. सौतेली मां के लिए रोमा बोझ ही थी. रोमा के आगेपीछे कोई नहीं था. जो था रौनी ही था, जिस पर उसे अंधा भरोसा था और वह रौनी पर जान छिड़कती थी.रौनी कोलकाता से रोमा को उत्तराखंड ले आया.

यहां आ कर रोमा को पता चला कि जहां वह रहने वाली है वह कोई घर नहीं, बल्कि एक आश्रम है, जहां उस के जैसी और भी बहुत सी लड़कियां और औरतें दिखाई दे रही थीं, जो मां बनने वाली थीं. आश्रम में कुछ जवान लड़कियां और बुजुर्ग औरतें भी थीं, जो साध्वी और सेवादार थीं. यह आश्रम एक जानेमाने आचार्य द्वारा चलाया जा रहा था, जिन का देशविदेश में हर दिन प्रवचन होता था और वे धर्म से जुड़ी कहानियां भक्तों से साझा करते थे.

रोमा को यह सब बहुत अटपटा लग रहा था, लेकिन वह रौनी का साथ पा कर इन सभी को नजरअंदाज कर रही थी. रोमा की दुनिया अब बदल गई थी. रौनी हर समय उस के साथ रहता, उस का पूरा खयाल रखता. एक महीने के भीतर डाक्टर की निगरानी में रोमा पेट से भी हो गई, लेकिन उसे कुछ समझ नहीं आया कि यह सब हुआ कैसे? न रौनी के साहब यहां आए और न ही साहब की पत्नी.इस बीच रोमा ने न कभी आश्रम में रह रही किसी लड़की या औरत से कोई बात की और न ही यह जानने की कोशिश की कि वे सब कहां से आई हैं, उन के पति कहां हैं और वे इस आश्रम में कब से हैं.

एक रात अचानक खाना खाने के बाद रौनी कहीं जाने की तैयारी करने लगा. यह देख कर रोमा बोली, ‘‘रौनी, तू कहीं जा रहा है क्या?’’रोमा के ऐसा कहने पर रौनी बोला, ‘‘हां, काम पर तो लौटना होगा. शादी की तैयारी जो करनी है.’’यह सुन कर रोमा का चेहरा उतर गया. वह रोआंसी हो गई और रौनी के गले लगते हुए बोली, ‘‘तू मत जा, रौनी. मैं तेरे बगैर यहां नहीं रह पाऊंगी.

फिर अभी तो बच्चे के होने में पूरे 9 महीने हैं. मैं यहां अकेली तेरे बगैर कैसे रहूंगी… मैं भी तेरे साथ चलती हूं.’’रोमा को इस तरह रोते और साथ चलने की जिद करते देख रौनी उसे समझाते हुए बोला, ‘‘देख, साहब और मेमसाहब की पहली शर्त यही थी कि उन का बच्चा इसी आश्रम में पैदा हो, ताकि बच्चे में अच्छे गुण और संस्कार आएं, इसलिए तुझे यहीं रहना होगा और मुझे तो जाना ही होगा. ‘‘शादी के लिए और भी रुपयों की जरूरत पड़ेगी. तुझे दुखी होने की कोई जरूरत नहीं.

तू यहां अकेली कहां है. इस आश्रम में इतने सारे लोग हैं. सब तेरा ध्यान रखेंगे और मैं भी तो आताजाता ही रहूंगा,’’ ऐसा कह कर रौनी जाने लगा. रोमा उसे भारी मन से आश्रम के बाहर तक छोड़ने के लिए साथ चलने लगी. अभी वे दोनों आश्रम के मेन गेट से कुछ दूर ही पहुंचे थे कि एक लड़की दौड़ती हुई आई और रौनी से लिपट गई. यह देख कर रोमा हैरान थी, क्योंकि वह लड़की बारबार रौनी को अपने साथ ले चलने की बात कह रही थी.वह लड़की कह रही थी,

‘‘रौनी, यह आश्रम, आश्रम नहीं है. यहां लड़कियों की दलाली होती है. उन का शारीरिक शोषण होता है. जबरन उन्हें पेट से किया जाता है और उन से पैदा होने वाले बच्चों को उन पैसे वाले और विदेशी जोड़ों को बेच दिया जाता है, जिन के बच्चे नहीं हैं.’’उस लड़की की बातों को सुन कर रोमा को यह समझने में समय नहीं लगा कि उस के साथ छल हुआ है और वह भी उस लड़की की ही तरह रौनी के हाथों ठगी जा चुकी है. वह रौनी के किसी भी साहब या उन की पत्नी के लिए सरोगेसी मां नहीं बनाई जा रही है, बल्कि इस आश्रम में बच्चों का व्यापार होता है और उसे इसीलिए इस आश्रम में लाया गया है.

रोमा उस लड़की से कोई सवाल करती या फिर रौनी से पूछती कि उस ने उस के साथ यह छल क्यों किया, उस से पहले एक साध्वी तेज कदमों से वहां आई और उस लड़की के गाल पर जोरदार तमाचा जड़ने के बाद उसे वहां से खींच कर ले जाने लगी. वह लड़की चीखचीख कर रौनी को पुकारती रही और उस से कहती रही, ‘‘रौनी, मुझे इस नरक से ले चलो…’’लेकिन रौनी उस लड़की को अनसुना और रोमा को अनदेखा कर आश्रम के गेट से बाहर अपने नए शिकार की तलाश में निकल गया. रोमा हैरान सी खड़ी रौनी को अपनी आंखों से ओझल होते हुए देखती रही.

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