इसी साल जुलाई में गोधरा कांड पर एक फिल्म रिलीज हुई थी. फिल्म में बताया गया था कि गुजरात का बहुचर्चित गोधरा कांड एक हादसा था या साजिश. इसी विषय पर तहकीकात करती यह दूसरी फिल्म है. ये दोनों फिल्में एक एजेंडे के तहत बनाई गई हैं. वर्ष 2002 में गोधरा हादसे के वक्त नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे. इस हादसे या साजिश के बाद पूरा गुजरात दंगों की आग में झुलस उठा था. प्रशासन आंखें मूंदे बैठा था. मुसलमानों का चुनचुन कर खात्मा किया गया था.
अब उसी विषय पर एक और फिल्म बनाने की आवश्यकता ही नहीं थी, मगर लगता है, एक ही समय पर दोनों फिल्मों के बनाने का निर्णय लिया गया. ‘द साबरमती रिपोर्ट’ भी विवादास्पद गोधरा कांड पर बनाई गई है. शायद ही कोई ऐसा हो जो गुजरात के गोधरा कांड के बारे में न जानता हो. इस ट्रेन अग्निकांड में 59 लोग मारे गए थे और सैकड़ों घायल हुए थे. नानावती आयोग ने गोधरा कांड को हादसा नहीं, एक साजिश बताया था. यह फिल्म भी उस साजिश को परतदरपरत खोलती है.
‘द साबरमती रिपोर्ट’ की कहानी एक न्यूज चैनल में बतौर कैमरामैन काम करने वाले समर कुमार (विक्रांत मैसी) की है जो गोधरा के पास ट्रेन में लगी आग के मामले को रिपोर्ट करने गई एक वरिष्ठ रिपोर्टर मनिका राजपुरोहित (रिद्धि डोगरा) के साथ भेजा जाता है.
समर और मनिका राजपुरोहित दोनों गोधरा पहुंचते हैं. समर यहां सारी चीजें रिकौर्ड करता है. उसे पता चलता है कि यह आग जानबू?ा कर लगाई गई थी, जबकि मनिका राज इसे सिर्फ एक हादसा मान रही थी. मनिका राज के लौटने के बाद समर अस्पताल जा कर घायलों के बयान भी रिकौर्ड करता है. उस पर दंगाइयों ने हमला करने की भी कोशिश की, मगर वह बच कर भाग निकला और सीधे चैनल के डायरैक्टर को जा कर टेप सौंप दी.
अगले दिन समर हैरान रह गया. टीवी पर उस का टेप नहीं, मनिका राजपुरोहित द्वारा शूट किया गया टेप चलाया गया था, जिस में मनिका राज ने इसे सिर्फ एक हादसा बताया था. समर के एतराज करने पर उसे नौकरी से निकाल दिया गया और एक ?ाठे केस में जेल में डाल दिया गया, मगर उस की गर्लफ्रैंड ने उसे जेल से बाहर निकलवा दिया. अब उस का अपनी गर्लफ्रैंड के साथ ब्रेकअप हो चुका था.
अब समर रातदिन शराब के नशे में धुत रहने लगा. इसी तरह 5 साल बीत गए. कहानी 2007 में पहुंच जाती है, जहां दर्शक अमृता गिल (राशि खन्ना) को देखते हैं. वह एक टीवी चैनल ग्रुप को जौइन कर लेती है.
2007 में जब मुख्यमंत्री बदला तो केस एक बार फिर से खुला. न्यूज चैनल को सरकार ने गोधरा कांड पर फिर से रिपोर्ट तैयार करने को कहा. मनिका राज अमृता गिल से गोधरा कांड के विक्टिम्स के बारे में रिपोर्ट तैयार करने को कहती है. न्यूज चैनल के हैड मिश्राजी अमृता को वह टेप दे देते हैं जो समर ने शूट किया था और न्यूज चैनल के डायरैक्टर को सौंपा था. टेप को देखने के बाद अमृता सम?ा चुकी थी कि यह कोई हादसा नहीं बल्कि सोचीसम?ा साजिश है.
अमृता तुरंत समर के पास जाती है. पैसों के लालच में समर अमृता को सारी इन्फौर्मेशन देने को राजी हो जाता है. अगले दिन दोनों गोधरा पहुंचते हैं. वहां जा कर उन्हें गोधरा कांड की सचाई मालूम पड़ती है. दोनों साबरमती ट्रेन की जली बोगियों को भी देखने जाते हैं. पहले बनाई गई रिपोर्टों में विरोधाभास था. समर को यह बात नागवार लगी कि ट्रेन में खाना बनाया जा रहा था, जबकि ट्रेन में पैर रखने तक की जगह न थी.
इस सारी घटना के प्रमुख गवाह प्लेटफौर्म पर कार्यरत एक वेटर अरुण बर्धा को पुलिस द्वारा छिपाया जा रहा था. समर और अमृता एक वरिष्ठ अधिकारी का भेष बदल कर अरुण बर्धा तक पहुंच जाते हैं और उस से सारी सचाई उगलवाते हैं. उस के अनुसार एक सोचीसम?ा साजिश के तहत ट्रेन को जलाने की प्लानिंग एक दिन पहले ही हो गई थी. 20-20 लिटर केरोसिन टिन के पीपे पहले से ही ला कर रख दिए थे. समर अदालत को सारी सचाई बताता है और प्रूव करता है कि गोधरा कांड हादसा नहीं, साजिश थी. नानावती आयोग ने भी इसे साजिश माना था.
कहानी और उस का ट्रीटमैंट विषय के साथ न्याय नहीं करता. ‘द साबरमती रिपोर्ट’ ऐक्सिडैंट या कौंसपिरेसी इस संवेदनशील मुद्दे में कुछ ऐसा नहीं जोड़ पाती जो नया हो. पटकथा भी कमजोर है. फिल्म का पहला भाग उस भयावह हादसे को मीडिया पर छिपाने के लिए फोकस करता है, दूसरा इस सच की पड़ताल करता है. यह दूसरा भाग कमजोर है.
फिल्म में हिंदी बनाम इंग्लिश की जंग भी दिखाई गई है. कई बार फिल्म मुद्दे से हट कर 2 समुदायों की अनबन को दिखाने के साथसाथ कौमी एकता को भी दिखाती है. विक्रांत मैसी अपने किरदार में आसानी से ढल गए हैं. रिद्धि डोगरा ने अपना किरदार बखूबी निभाया है. राशि खन्ना का काम भी बढि़या है.
यह बात बारबार दोहराई गई है कि समर हिंदी का पत्रकार है. अमूमन हिंदी के पत्रकारों की कोई इज्जत नहीं होती. पत्रकार आखिर पत्रकार होता है, वह चाहे हिंदी का पत्रकार ही क्यों न हो. प्रैस इन्फौर्मेशन ब्यूरो उन के साथ दोगला व्यवहार नहीं कर सकता, सरकार को इस ओर ध्यान देना चाहिए.
नानावती आयोग की रिपोर्ट, गुजरात हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का उदाहरण देती इस फिल्म में दर्शकों को यही याद दिलाने की कोशिश की गई है कि अयोध्या से यज्ञ कर के लौट रहे 59 रामभक्तों को गोधरा में जिंदा जला दिया.
निर्देशक अनुराग कश्यप के सहायक रहे राजन पटेल ने फिल्म ‘द साबरबती रिपोर्ट’ निर्देशित की है. फिल्म में विक्रांत मैसी की शोहरत को भुनाने की कोशिश की गई है. रिद्धि डोगरा दबंग पत्रकार के रूप में जमी है. पार्श्व संगीत अच्छा है. सिनेमेटोग्राफी बढि़या है. एक खोजी पत्रकार का निराश हो कर नशे की लत में डूब जाना अखरता है. इस से पत्रकारों की प्रतिष्ठा पर आंच आती है.