Download App

चश्मा: एस्थर ने किया पाखंडी गुरूजी को बेनकाब

आज एस्थर का ससुराल में पहला दिन था. उस ने सोचा जब परिवार के हर सदस्य ने उसे खुले दिल से अपनाया है तो क्यों ना वह भी उन के ही रंग में रंग जाए और उन जैसा ही बन कर सब का दिल जीत ले. यही सोच वह भोर होने से पहले अपनी सासूमां सुनंदा की भांति ही जाग गई.

रोज सुबह 8 बजने जागने वाली एस्थर आज अलार्म लगा कर 5:30 बजे ही जाग गई. घर के सभी लोगों की सुबह की शुरुआत चाय से होती है, इसलिए वह चाय बनाने के लिए रसोईघर की ओर चल पड़ी.

उस ने कभी सोचा ही नहीं था की पराग का परिवार इतनी सहजतापूर्वक उस की और पराग की शादी के लिए स्वीकृति प्रदान कर देगा और उसे पूरे दिल से अपना लेगा, क्योंकि अकसर पराग की बातों से उसे ऐसा प्रतीत होता था कि उस का परिवार एक रूढ़िवादी ब्राह्मण परिवार है पर कल के रिसैप्शन पार्टी में एस्थर का यह भ्रम टूट गया. उसे एक पल के लिए भी यह महसूस नहीं हुआ कि वह किसी दूसरे धर्म या समुदाय में ब्याही है.

जाति, धर्म कभी भी प्यार एवं स्नेह के बीच दीवार नहीं बन सकते, पराग के परिवार ने इस बात पर मुहर लगा दी थी.

यही सब सोचती हुई अभी वह रसोईघर में प्रवेश करने ही वाली थी कि सुमित्रा बुआ जोरजोर से चिल्लाने लगीं,”अरे…अरे… बहुरिया यह क्या अनर्थ करने जा रही हो…”

सुमित्रा बुआ अपना ससुराल छोड़ कर यहां मायके में डेरा डाले बैठी हैं. सुबहसुबह ही जाग जाती हैं और अकसर माला फेरने का ढोंग रचा हौल में धुनी रमाए बैठ जाती हैं. आज भी वह अपना आसन जमाए बैठी हुई थीं.

असल में उन का सुबह से ले कर रात तक केवल इस बात पर पूरा ध्यान रहता है कि घर में कौनकौन सदस्य क्याक्या कर रहा है? भगवान की अराधना तो सब एक आडंबर मात्र ही थी.

बुआ का चिल्लाना सुन सुनंदा दौड़ती हुई बाथरूम से वहां आ ग‌ई. एस्थर भी सुमित्रा बुआ को इस तरह चिल्लाता देख पूरी तरह से स्तब्ध रह गई और डर कर रसोईघर के दरवाजे पर ही ठिठक गई.

सुनंदा कुछ पूछती इस से पहले ही सुमित्रा बुआ गुर्राती हुईं एस्थर से बोलीं,”इस घर पर पांव धर कर तुम पहले ही हमारे भैया की जातबिरादरी में नाक कटा चुकी हो. कुल तो भ्रष्ट कर ही दिया है और अब बिन नहाए भीतर जा कर हमारा धर्म भी भ्रष्ट करने का इरादा है क्या? कुछ नियम, धर्म है कि नहीं? वैसे भी तुम्हें मोमबत्ती जलाने के अलावा कुछ मालूम ही क्या होगा पर भौजी तुम… तुम को तो इतना वर्ष हो गया है इस घर में आए फिर भी अब तक तुम हमारे घर का नियम जान नहीं पाईं क्या?

“अपनी बहुरिया को तनिक ज्ञान दो, उस को इस घर के तौरतरीके सिखाओ, बताओ उस को इस घर में क्या होता है क्या नहीं. तुम पुत्रमोह में इतनी अंधी हो गई हो कि सब भूल ग‌ईं?”

यह सुन एस्थर सहम सी गई. वह कुछ समझ ही नहीं पाई कि आखिर उस से क्या चूक हो गई कि जो बुआ कल रात तक सभी के समक्ष उस की बलाईयां लेते हुए नहीं थक रही थीं, आज अचानक सुबह होते ही ऐसा क्या हो गया कि तीखे और कड़वे वचन उगल रही है.

सुनंदा लड़खड़ाती जबान में बोलीं,”दीदी, उस का घर में आज पहला दिन है धीरेधीरे सब सीख जाएगी. आप चिंता ना करें, मैं स्वयं उसे सब बता दूंगी. इस बार माफ कर दीजिए.”

“हां…. सिखाना तो अब पड़ेगा ही. केवल विजातीय बहू नहीं लाया है तुम्हारा लाडला बेटा, बल्कि गैर धर्म की लड़की ही घर उठा लाया है.”

यह सुन सुनंदा वहां से चुपचाप जाती हुई एस्थर को भी अपने संग चलने का इशारा कर गई. एस्थर भी सुनंदा के पीछे हो ली.

एक कोने में जा कर सुनंदा अपना हाथ एस्थर के सिर पर रखती हुई बोलीं,”दीदी के बातों का बुरा नहीं मानना. उन की जबान ही थोड़ी कड़वी है लेकिन वह दिल की बहुत अच्छी हैं. तुम एक काम करो पहले नहा लो, तब तक मैं पूजा कर लेती हूं फिर दोनों मिल कर चायनाश्ता बनाते हैं,” इतना कह सुनंदा चली गई.

*एस्थर* को सुबहसुबह नहाने की आदत नहीं है पर वह क्या करे ससुराल वालों का दिल जीतना बहुत जरूरी है क्योंकि पराग पहले ही कह चुका है कि उस की वजह से परिवार के लोगों को किसी प्रकार की कोई शिकायत का मौका नहीं मिलना चाहिए वरना वह उस की कोई मदद नहीं कर पाएगा.

घर के सदस्यों के प्रति नकारात्मक विचारों की बेल एस्थर के मन को जकड़ने लगे जिन्हें वह झटक नहाने चली गई और जब वह तैयार हो कर पहुंची तो उस ने देखा सासूमां ने सभी के लिए चायनाश्ता बना लिया है और सभी बैठक में नाश्ते के साथ चाय की चुसकियां ले रहे हैं.

सुनंदा बेचारी भागभाग कर सभी के प्लेट्स पर कभी कचौड़ियां परोस रही थीं तो कभी चटनी. कोई मीठी चटनी की फरमाइश कर रहा था तो कोई हरी धनिया की चटनी, पर उन की मदद कोई नहीं कर रहा. यहां तक कि उन की अपनी बेटी शिल्पी भी उन का हाथ बंटाने के बजाय उलटा उन से दोपहर पर बनने वाले खाने की सूची में अपनी फरमाइश जोड़ रही थी.

यह सब देख एस्थर अंदर ही अंदर क्रोध से भर गई पर स्वयं पर संयम रखती हुई शांत खड़ी रही. वह काफी देर तक वहां खड़ी रही लेकिन किसी ने भी उस से कुछ नहीं कहा.

सभी इस प्रकार व्यवहार कर रहे थे जैसे वह वहां पर उपस्थित ही नहीं है. यहां तक कि पराग ने भी उसे अनदेखा कर दिया.

सब का रवैया देख एस्थर की आंखें नम हो गईं पर किसी को भी इस बात का आभास तक नहीं हुआ, तभी सुनंदा बोलीं,”एस्थर तुम भी चाय पी लो.”

सुनंदा का इतना कहना था कि पराग की दादी, सुमित्रा बुआ की मां, सुनंदा की सासूमां और इस घर की मुखिया गायत्री देवी भड़कती हुई सुनंदा से बोलीं,”बहू, अब तुम इस घर की केवल बहू ही नहीं रहीं सास भी बन गई हो, तो इस बात का ध्यान रखना तुम्हारी जिम्मेदारी है कि गलती से भी कोई चूक ना हो. यह तुम्हारा मायके नहीं है जहां कुछ भी चल जाएगा.”

“जी मां जी,” सुनंदा ने सिर झुकाए हुए ही जवाब दिया.

तभी फिर दोबारा गायत्री देवी अपने रोबदार आवाज में बोलीं,”आज मैं ने अपने गुरु महाराज को घर पर बुलाया है. उस की सारी व्यवस्था तुम कर लेना. पूजा की सारी सामग्री गुरू महाराज स्वयं ही ले आएंगे. उन्होंने कहा है कि आज वे घर के साथसाथ इस छोरी का नामकरण और शुद्धिकरण भी करेंगे.”

इतना सुनते ही माला फेरतीं सुमित्रा बुआ अपनी ईश्वर अराधना पर अल्पविराम लगाते हुए बोलीं,”अम्मां, नामकरण… भला क्यों?”

“अरे भई, इस छोरी का नाम जो इतना विचित्र है पुकार लो तो ऐसा लगे है जैसे जबान ही पूरी अशुद्ध हो गई हो और फिर गुरु महाराज ने भी कहा है कि नाम बदलने से ही पराग का वैवाहिक जीवन सुखमय बना रहेगा अन्यथा नहीं और उन्होंने यह भी कहा है कि हमारे कुल और पूर्वज पर जो इस छोरी की वजह से कलंक लगा है वह धुल जाएगा और हमारे पूर्वजों को वहां परलोक में किसी प्रकार की कोई यातना नहीं सहनी पड़ेगी. शिल्पी की शादी हेतु भी ग्रहशांति करने का कह रहे थे गुरूजी.

“मोहन, तुम जल्दी बैंक जा कर ₹1 लाख निकाल लाना. पूजा में जरूरत पड़ेगी.”

₹1 लाख सुनते ही पराग के पिता और गायत्री देवी के पुत्र मोहनजी के कान खड़े हो गए और उन्होंने आश्चर्य से कहा, “अम्मां ₹1 लाख वह भी पूजा के लिए… बहुत ज्यादा नहीं है क्या?”

“बहुत ज्यादा कहां है भैया…यह तो बहुत ही कम है. इस प्रकार की पूजा में ₹1-2 लाख खर्च हो जाते हैं. वह तो गुरू महाराज की हम सब पर कृपा एवं उन का आशीष है और फिर अम्मां उन की परमभक्त हैं इसलिए इतने कम में सब काम हो रहा है वरना आप और भाभी ने तो जो अपने पुत्रमोह में इस गैर धर्म की छोरी को बहू बना कर घर ले आए हैं उस के लिए तो आजीवन आप को और इस घर के पूर्वजों को सदा के लिए कष्ट भोगना पड़ता.”

यह सुन पराग बोला,”पापा, आप चिंता ना करें, मैं अपने अकाउंट से रुपए निकाल लूंगा.”

एस्थर आश्चर्य से पराग की ओर देखने लगी. उस ने आज से पहले कभी पराग का यह अंधविश्वासी अवतरण नहीं देखा था. उस ने कभी सोचा नहीं था कि इतना पढ़ालिखा और आधुनिकता का आवरण ओढ़ने वाला यह पूरा परिवार असल में पूर्ण रूप से अंधविश्वास के गिरफ्त में जकड़ा हुआ होगा.

*वह* विचार करने लगी कि इतना रूढ़िवादी और अंधविश्वासी परिवार ने उसे स्वीकार किया तो किया कैसे?

असल में वह इस सत्य से अनभिज्ञ थी कि इस ब्राह्मण परिवार का उसे अपनाना एक पाखंड था. वह तो बस यह नहीं चाहते थे कि उन का इकलौता कमाऊ बेटा शादी कर के अलग हो जाए क्योंकि अभी उन की छोटी बेटी की भी शादी होनी बाकी थी जिस में दहेज लगना था और एस्थर स्वयं भी एक कमाऊ मुरगी थी जिस का वह भरपूर इस्तेमाल कर सकते थे. इसलिए उन्होंने एस्थर को अलग धर्म का होते हुए भी अपनाने का स्वांग रचा.

इन सब बातों के बीच सहसा एस्थर को ऐसा एहसास हुआ जैसे गुरू महाराज और ग्रह शांति की बातें सुन सासूमां सुनंदा के चेहरे का रंग उड़ गया है और शिल्पी भी थोड़ी घबराई एवं असहज लगने लगी है.

अब तक जो लड़की हंसखेल रही थी, मुसकरा रही थी अचानक वह वहां से उठ कर चली गई और उसे इस प्रकार जाता देख सुनंदा भी उस के पीछे हो गईं.

दोनों को इस तरह परेशान देख एस्थर भी वहां से चली गई. जब वह शिल्पी के कमरे के करीब पहुंची तो उस ने सुना शिल्पी कह रही है,”अम्मां, मैं पूजा में ग्रहशांति हेतु नहीं बैठूंगी चाहे मेरी शादी हो या ना हो.”

सुनंदा उसे समझाने का प्रयत्न करते हुए कह रही थीं,”देखो शिल्पी, अम्मांजी ने गुरू महाराज को तुम्हारे ग्रहशांति हेतु पहले ही कह दिया है इसलिए इस बार तो तुम्हें बैठना ही होगा और फिर इस में तुम्हारा ही भला है. इस पूजा से तुम्हें अच्छा घरपरिवार मिलेगा.”

माजरा क्या है यह जानने के लिए एस्थर कमरे के अंदर जा अपनी सासूमां सुनंदा से बोली,”क्या बात है मम्मीजी, शिल्पी ग्रहशांति के नाम से इतना रो क्यों रही है?”

सुनंदा ने कोई जवाब नहीं दिया बस वह लगातार शिल्पी को पूजा पर बैठने के लिए मना रही थी.

तभी शिल्पी चिढ़ती और जोर से चिल्लाती हुई बोली,”अम्मां, आप समझती क्यों नहीं. पूजा के बाद हर बार मैं बेहोश हो जाती हूं. मेरा पूरा शरीर दर्द से भर जाता है. मुझे बहुत डर लगता है मम्मी. प्लीज, मैं पूजा में नही बैठूंगी.”

शिल्पी का डर उस के शब्दों से अधिक उस की आंखों में नजर आ रहा था.

*शिल्पी* को अपनी मां के समक्ष गिड़गिड़ाता देख एस्थर ने बड़े सहज भाव से कहा,”मम्मीजी, क्या शिल्पी का पूजा में बैठना जरूरी है?”

“बस… अभी तुम्हें इस घर में आए चंद घंटे ही हुए हैं. बेहतर होगा ज्यादा सवालजवाब करना छोड़ो और मेरे साथ चल के गुरू महाराज की सेवा और उन के खानपान की व्यवस्था में मेरा हाथ बंटाओ. और हां, पराग से कहना ₹1 लाख अधिक निकाल ले क्योंकि गुरू महाराज को पूजा के उपरांत दक्षिणा भी देना होगा ताकि शिल्पी के लिए अच्छे रिश्ते आएं.”

सासूमां की बातें सुन एस्थर यह जान चुकी थी कि वक्त रहते उसे सही कदम उठाना होगा अन्यथा उस का घर बरबाद हो जाएगा. साथ ही वह अपनी पहचान खो देगी और उस का अस्तित्व भी समाप्त हो जाएगा.

इस घरपरिवार के लोगों पर अंधविश्वास का ऐसा चश्मा लगा हुआ था जिसे उतार पाना इतना आसान नहीं था. यदि वह प्रयास भी करेगी तो सफल होना मुश्किल था, इसलिए वह यह जानते हुए कि शुद्धिकरण, नामकरण और शादी के लिए ग्रहशांति की पूजा सब बकवास एवं बेकार की बातें हैं, पूजा में हिस्सा लेने एवं अपनी सासूमां का हाथ बंटाने को वह स्वेच्छा से तैयार हो गई.

*गुरू* महाराज निर्धारित समय पर अपने 5 शिष्यों के साथ घर पहुंचे. सभी उन का चरणस्पर्श करने लगे. एस्थर दूर ही खड़ी सब देख रही थी.

तभी दादी एस्थर की ओर इशारा करती हुई बोलीं,”अरे बहूरानी, तुम्हें अलग से कहना पड़ेगा… जाओ और गुरू महाराज का आशीष लो.”

एस्थर ने जैसे ही गुरू चरणों में अपना शीश नवाया, आशीष देते हुए गुरू महाराज ने उसे जिस प्रकार से स्पर्श किया एवं उन के शिष्यों की जो दृष्टि उस पर पड़ी वह सिहर उठी. उसी क्षण गायत्री देवी ने गुरू महाराज को पूजा प्रारंभ करने का आग्रह किया तो उन्होंने एक अजीब सी मादक मुसकान लिए एस्थर की ओर इशारा करते हुए बोले,”हम पहले इस लड़की का शुद्धिकरण करेंगे फिर पूजा संपन्न होगा.”

फिर वे उस कमरे की ओर बढ़ ग‌ए जहां पहले से ही सारे कर्मकांड की व्यवस्था की गई थी. सासूमां के इशारे पर एस्थर भी गुरू महाराज के साथ उस कमरे में चली गई और घर के बाकी सदस्य वहीं हाल में ही गुरूजी के साथ आए शिष्यों के संग पूजा की बाकी तैयारियों में जुट गए.

करीब 2 घंटे बाद गुरू महाराज और एस्थर कमरे से बाहर निकले फिर गुरूजी तुरंत ही अपने शिष्यों के साथ पूजा की वेदी पर पूजा कराने लगे.

पूजा कराते हुए बारबार उन्हें एस्थर के साथ कमरे में बिताए क्षण स्मरण होने लगे कि कैसे एस्थर ने बड़ी चालाकी से अपने मोबाइल फोन का कैमरा कमरे में छिपा दिया था जिस में उन की सारी हरकतें कैद हो गई थीं. किस प्रकार उन्होंने एस्थर को भभूत का पुड़िया खाने को दिया जिस में बेहोशी की दवा थी. कैसे वे अपने साथ लाए पूजा समाग्री में नशीली मादक दवाएं ले कर आए थे और उस का सेवन कर वे एस्थर को बेहोश समझ उस के साथ दुराचार करने का प्रयत्न करने लगे.

यह सब विचार करते हुए गुरू महाराज आननफानन में पूजा निबटा जल्दी से जल्दी यहां से निकाल जाना चाहते थे क्योंकि एस्थर की दी हुई धमकी उन के कानों में गूंज रही थी,”चुपचाप शांतिपूर्ण ढंग से पूजा निबटा कर यहां से निकलो, वरना पुलिस बुला कर तुम्हारा यह वीडियो दिखा, तुम्हें पाखंड, ढोंग, मासूम लड़कियों की इज्जत से खेलने, उन्हें अपना शिकार बना और दूसरों को धर्म और ग्रहों का डर दिखा कर लूटने के नाम पर अंदर करवा दूंगी.”

पूजा संपन्न करा जब गुरू महाराज जाने लगे तो गायत्रीजी बड़ी विनम्रता पूर्वक बोलीं,”गुरूजी, आप ने इस छोरी का नामकरण और मेरी पोती का ग्रह शांति तो कराया नहीं?”

गुरू महाराज एस्थर की ओर घूरते हुए बोले,”नामकरण की कोई आवश्यकता नहीं है. शादी बहुत ही शुभ लग्न में हुई है. यह कन्या ईश्वर का वरदान है. आप के घर पर इस के पैर पड़ते ही घर की सभी विघ्न बाधाएं दूर हो गईं. सभी ग्रह अपनेआप ठीक स्थानों पर चले गए हैं इसलिए ग्रहशांति की भी अब कोई आवश्यकता नहीं.”

इतना कह गुरू महाराज चले गए और घर के सभी सदस्यों का एस्थर की ओर देखने का नजरिया ही बदल गया. सभी बड़े प्यार से उसे देखने लगे और एस्थर यह सोच कर मुसकराने लगी कि चश्मा तो अब भी सब के आंखों पर चढ़ा हुआ है लेकिन इस चश्मे की वजह से अब ना तो शिल्पी की शादी रुकेगी और ना ही उस का दैहिक शोषण होगा, जो अब तक होता आया है.

बुड्ढा आशिक : मानसी को क्यों परेशान कर रहे थे प्रोफैसर प्रसाद

मानसी अभी कालेज से लौट कर होस्टल पहुंची ही थी कि उस के डीन मिस्टर प्रसाद का फोन आ गया. वह बैग पटक कर मोबाइल अटैंड करने लगी. प्रसाद मानसी के पीएचडी गाइड थे और वे चाहते थे कि मानसी उन के साथ बाहर जाने के लिए तैयार हो जाए, उन्हें तुरंत बाहर जाना है.

मानसी को समझ नहीं आया कि क्या कहे? हां कहे तो मुश्किल और ना कर दे तो और भी मुसीबत. तभी उसे अपने बचपन के साथी शिशिर का बहाने बनाने का फार्मूला याद आया.

उस ने कराहते हुए कहा, ‘‘सर, मैं तो एक कदम भी चल नहीं पा रही हूं.’’

प्रसाद भी बड़े घाघ थे, बोले, ‘‘अभी तो यहां से अच्छीभली निकली हो, अब क्या हो गया?’’

‘‘ओह,’’ मानसी आवाज में दर्द भर कर बोली, ‘‘सर, अभी यहां बस से उतरते समय मेरा पांव मुड़ गया जिस से मोच आ गई,’’ कहते हुए मानसी ने एक और कराह भरी.

अब प्रसादजी परेशान हो उठे. प्रसाद थे तो 52-55 की उम्र के बीच, पर अपनी ही स्टूडैंट स्कौलर छात्रा मानसी पर ऐसे लट्टू हुए रहते कि सारे कालेज में उन्हें ‘बुड्ढा आशिक’ के नाम से जाना जाता.

वे मानसी को डांटते हुए बोले, ‘‘क्या मानसी, तुम ढंग से नहीं चल सकती, अभी आता हूं तुम्हें देखने.’’

प्रसाद की बात सुन मानसी और परेशान हो उठी. फिर वह कराहते हुए बोली, ‘‘वह मेरा दोस्त शिशिर आ रहा है, वह दवा दे देगा. आप चिंता न करें मैं ठीक हो जाऊंगी.’’

बेचारे प्रसाद सर ने बाहर जाने का अपना प्रोग्राम ही कैंसिल कर दिया. वे मानसी के बिना नहीं जाना चाहते थे. उन का हाल तो कुछ ऐसा था कि एक मिनट भी मानसी के बिना न रहें.

मानसी थी तो उन की एक रिसर्च स्कौलर छात्रा, किंतु उस के विरह में जैसे वे हलकान होते थे, यह देख कर उन के साथी तो क्या उन के स्टूडैंट भी परेशान हो जाते थे और कई बार उन्हें चिढ़ा कर कहते, ‘‘सर, मानसीजी तो कैंटीन में खा रही हैं.’’

इस पर वे बड़े परेशान हो जाते और फोन कर मानसी से कहते, ‘‘अरे मानसी, कैंटीन का खाना खा कर तुम बीमार हो जाओगी. आओ तो, यहां मेरे कैबिन में देखो, मनोरमा ने क्या लजीज खाना बना कर भेजा है.’’

इस पर मानसी की सारी सहेलियां उस की हंसी उड़ाती और कहतीं, ‘‘जा, तेरा बुड्ढा आशिक तुझे बुला रहा है.’’

मानसी भी कम नहीं थी, वह कहती, ’’कम से कम आशिक तो है, तुम्हारे तो वे भी नहीं हैं.’’

मानसी ने अपने कक्ष में बैड पर लेट कर कुछ देर रैस्ट किया, फिर फोन पर शिशिर का नंबर मिला कर बतियाने लगी, ’’अरे, कंपाउंडर साहब, कैसे हो,’’ शिशिर कोई कंपाउंडर नहीं था, वह तो अपने पिता का तेल का बिजनैस संभालता था. उस के पिता तेल के व्यापारी थे और उन का यह व्यवसाय पीढि़यों से चल रहा था. मानसी व शिशिर के घरमहल्ले थोड़ी दूरी पर ही थे. शिशिर उस के साथ ही कालेज तक पढ़ता रहा था. एमए के दौरान शिशिर के पिता के बीमार होने पर उसे पूरा बिजनैस संभालना पड़ा था. तब मानसी ही उस की मदद कर के एमए की परीक्षा जैसेतैसे दिलवा सकी. फिर वह आगे न पढ़ सका. मानसी ने पीएचडी की पढ़ाई जारी रखी. इस तरह वे थोड़े दूर तो हो गए, पर मोबाइल पर दोनों के बीच बातचीत होती रहती थी. यहां तक कि मानसी के घर पर कोई काम हो तो शिशिर ही कर जाता.

मानसी के पिता नहीं रहे थे. उस की बहन वैशाली ने फैशन डिजाइनिंग का कोर्स किया था, वह अपना बुटीक चलाती थी. वह मानसी से बड़ी थी.

मानसी को प्रसाद प्यार से मनु कहते. उन्हें लगता मनु ही उन की सच्ची संगिनी हो सकती है. उस समय वह भूल जाते कि उन की भी पत्नी है, बच्चे हैं, घरबार है. वे मानसी के पीएचडी के काम में जरा भी रुचि नहीं लेते थे. इस से मानसी को भीतर ही भीतर गुस्सा आता.

प्रसाद की पत्नी मनोरमा अपनी नई बहू व नाती में इतनी व्यस्त रहती कि उस बेचारी को पता ही नहीं था कि इधर उस के पति क्या रंगरलियां मना रहे हैं.

अगले दिन मानसी कालेज पहुंची, तो ठीकठाक थी, किंतु जैसे ही वह प्रसाद के कैबिन के सामने पहुंची, लंगड़ाने लगी. प्रसाद लपकते हुए बाहर आए और बोले, ’’अरे मानसी, संभल कर.’’

मानसी तो शर्म से पानीपानी हो गई. उस की सारी सहेलियां भी यह देख कर हंस कर लोटपोट हो रही थीं. वे बोलीं, ’’यह क्या मनु? लग रहा था, प्रसाद अभी तुम्हें गोद में उठा कर सीधे अपने कैबिन में ही ले जाएंगे.’’

मानसी ने किताबें समेटीं व लाइब्रेरी में जा बैठी. तभी प्रसाद भी वहां आ गए और पूछने लगे, ’’कल क्यों नहीं आई? कितना मजा आता, केरल का ट्रिप था?’’

मानसी को लगा, साफसाफ कह दे कि आप अपनी श्रीमतीजी को क्यों नहीं ले जाते? पर चुप रही, उसे पीएचडी भी तो पूरी करनी है.

प्रसाद को टरका कर उस ने शिशिर को फोन मिलाया, ’’अरे, कंपाउंडर…’’ फिर शुरू हो गई दोनों की बातचीत. शिशिर को वह कंपाउंडर इसलिए कहती थी कि खुद पीएचडी कर के डाक्टर हो जाएगी.

अभी उस ने कुछ लिखा ही था कि फिर प्रसाद आ गए और शुरू हो गई वही उन की बकवास, ’’आप कितनी खूबसूरत हैं, आप पर तो सब फिदा होते होंगे?’’

इधर मानसी की सहेलियां चुपके से सुनतीं और कहतीं, ’’तेरा बुड्ढा आशिक बेचारा…’’

इन बातों से मानसी का दिमाग गरम हो जाता, लेकिन वह क्या करे? पीएचडी तो उसे करनी ही है. फिर लैक्चररशिप… फिर मजे ही मजे. पर इस बुड्ढे आशिक से कैसे पीछा छुड़ाए? वह बेचारी मन मसोस कर रह जाती.

एक दिन तो गजब हो गया. सारी सहेलियों के साथ वह फिल्म देखने गई थी. वहां सभी ऐंजौय कर रही थीं कि जाने कहां से प्रसाद टपक पड़े,’’अरे, अब क्या करें.’’ सारी सहेलियां एकदम चीखीं.

’मुझे इस बला से पिंड छुड़ाना ही होगा,’ एक दिन मानसी सोचने लगी, लेकिन ऐसे कि लाठी भी न टूटे और सांप भी मर जाए.

अब तो हद ही हो गई थी, रोज कालेज से होस्टल पहुंचते ही उस के मोबाइल पर प्रसाद का मैसेज आ जाता, ’शाम को कहीं चलते हैं, वहीं डिनर करेंगे.’ अति होने पर मानसी ने सोच लिया कि कुछ तो करना ही पड़ेगा. रोज कहां तक बहाने बनाए. अत: उस ने शिशिर को फोन किया, ’’कंपाउंडर साहब, कल तैयार रहना…’’ और उसे अपनी सारी योजना भी बताई. वह पीली साड़ी और गले में मंगलसूत्र डाले शिशिर की स्कूटी से कालेज पहुंची और सीधे प्रसाद के कैबिन में विनम्रता से दाखिल हुई, ’’मे आई कम इन सर,’’ कुछ ऐसा ही मुंह से निकला मानसी के.

’’ओह… ’’प्रसाद ने सिर उठाया, वे पेपर पढ़ रहे थे. देख कर गिरतेगिरते बचे. ’’कम इन… कम इन…’’ वे बोले.

’’सर, ये मेरे मंगेतर शिशिर, अब मेरे जीवनसाथी बन गए हैं. हम दोनों ने शादी कर ली है. सर, आशीर्वाद दीजिए न.’’ मानसी ने हाथ जोड़ कर कहा.

प्रसाद की तो भृकुटी तन गई. उसे तो समझ ही नहीं आ रहा था कि वे मानसी से क्या कहें.

’’तुम… हांहां ठीक है, ठीक है, जाओ.’’ मानसी पर उन्हें गुस्सा आ रहा था.

मानसी बोली, ’’सर, डिनर…’’

प्रसाद बोले, ’’नहीं. आज मनोरमा को क्लीनिक ले कर जाना है.

मानसी बोली,’’बधाई हो सर.’’

प्रसाद को जैसे काटो तो खून नहीं.

मानसी बाहर आ गई. शिशिर को मंगलसूत्र उतार कर देते हुए बोली, ’’इसे संभाल कर रखना. फिर काम आएगा.’’

उस की सारी सहेलियां भी उस के इस नाटक से हैरान थीं. वे बोलीं, ’’तेरा जवाब नहीं मानसी, तूने सही तरीका ढूंढ़ा उस बुड्ढे आशिक से पीछा छुड़ाने का. अब शायद ही कभी वह ऐसी हरकतें करे.’’

मानसी बोली, ’’हम ऐसे ही डाक्टरथोड़े हैं,’’ और कैंपस में ठहाके गूंजने लगे.

रैगिंग का रगड़ा : कैसे खत्म हुआ रैगिंग से शुरू हुआ विवाद

बात 70 के दशक की है. उन दिनों इलाहाबाद विश्वविद्यालय के तकनीकी और गैरतकनीकी संस्थानों में बिहारी छात्रों की संख्या बहुत अधिक होती थी. उन के बीच आपस में एकता और गुटबंदी भी थी. शहर में उन की तूती बोलती थी. इसलिए उन से कोई पंगा लेने का साहस भी नहीं करता था. यहां तक कि नए बिहारी छात्रों की रैगिंग भी दूसरे प्रदेशों के सीनियर छात्र नहीं ले पाते थे. अगर बिहारी छात्रों की रैगिंग होती भी थी तो बिहार के ही सीनियर छात्र करते थे. इत्तफाक से शहर के कुछ डौन भी भोजपुर से आए थे और विश्वविद्यालय के छात्र संगठन में बिहारियों की अच्छी भागीदारी थी. उन्हीं दिनों मैं ने भी एक तकनीकी संस्थान में नामांकन कराया था और शहर के एक होटल में कमरा ले कर रहता था. तब इलाहाबाद में कई होटल ऐसे थे जिन में मासिक किराए पर खाने और रहने की व्यवस्था थी. मैं जिस होटल में रहता था उस में 150 रुपए में पंखायुक्त कमरा, सुबह की चाय और दोनों वक्त का भोजन शामिल था. नाश्ता बाहर करना होता था.

मैं मोतीहारी के एक कालेज से आया था. जहां से कई छात्र इलाहाबाद आए थे. उन में से अधिकांश होस्टल में रहते थे. नैनी स्थित एग्रीकल्चर इंस्टिट्यूट में भी बिहार के काफी छात्र थे. सब आपस में मिलतेजुलते रहते थे. उन दिनों पौकेट में चाकू रखने का बड़ा फैशन था. हम भी रखते थे. एक दिन जब मैं अपने कालेज के होस्टल में मोतीहारी के मित्रों से मिलने गया हुआ था तो पता चला कि होस्टल के एक दादा ने रैगिंग के नाम पर एक नए लड़के की बहन की तसवीर छीन ली है और उस के बारे में अश्लील टिप्पणियां करता रहता है. लड़का पूरी बात बतातेबताते रोने लगा. हमें गुस्सा आया. रैगिंग का यह क्या तरीका है.

हम 4-5 लोग कथित दादा के कमरे में गए. चाकू निकाल कर उस की गरदन पर सटा दिया और उस लड़के की बहन की तसवीर तुरंत वापस लौटाने को कहा. उस ने तसवीर लौटा दी और बाद में देख लेने की धमकी दी. हम ने कहा बाद में क्यों, अभी देख लो और उस की जम कर पिटाई कर वहां से चल दिए. थोड़ी दूर जाने के बाद अरुण सिंह नाम के एक साथी ने कहा कि फिर होस्टल चलते हैं. मैं ने उसे समझाया कि कोई कांड करने के बाद घटनास्थल पर भूल कर भी नहीं जाना चाहिए, लेकिन वह ताव में आ गया. उस की जिद के कारण हम दोबारा होस्टल पहुंचे. तब तक माहौल काफी गरम हो चुका था. होस्टल के लड़के उत्तेजित थे. हमें देखते ही वे हम पर टूट पड़े. हमारी पिटाई हो गई और हमें कालेज के प्रिंसिपल के पास ले जाया गया. प्रिंसिपल के चैंबर के बाहर हम खड़े थे. लड़के इधरउधर खड़े थे, तभी इलाहाबाद के कुछ स्थानीय लड़के मेरे पास आए और बोले, ‘बौस, हमारे घेरे में धीरेधीरे चारदीवारी की ओर चलो और फांद कर निकल जाओ. पुलिस आने वाली है.’ तरकीब काम आ गई. मैं धीरे से चारदीवारी फांद कर सरक गया. अपने ठिकाने पर जाना खतरे से खाली नहीं था इसलिए गलीगली होता हुआ लोकनाथ पहुंचा जहां मेरे एक मित्र मंटूलाल रहते थे. उन के घर पहुंचा तो बिहार के कई छात्र चिंतित अवस्था में बैठे थे. उन्हें घटना की जानकारी मिल चुकी थी. अब परिस्थितियों के अनुरूप रणनीति तैयार की गई. अजीत लाल ने यह सुझाव दिया कि होस्टल के युवा लड़के शहर में जहां भी दिखें उन की पिटाई की जाए और अपना आवागमन गलियों के जरिए किया जाए. इस बीच शहरी इलाके के कई युवक वहां पहुंचे और उन्होंने इस लड़ाई में हर तरह से साथ देने का वादा किया. मेरे होटल में लौटने पर रोक लग गई. हम पास के एक बिहारी लौज में रहने लगे. उस दिन हम लोकनाथ के इलाके से निकले ही थे कि एक शहरी लड़के ने सूचना दी कि होस्टल के 2 लड़के पास के सिनेमाहौल में टिकट लेने के लिए लाइन में खड़े हैं.

हम तुरंत सिनेमाहौल पहुंचे. उन्हें खींच कर बाहर ले आए. इलाहाबाद की सड़क पर मारपीट करना आसान नहीं था. हम ने एक तरकीब लगाई. उसे पीटते हुए कहा, ‘साले, छोकरीबाजी करता है.’ तभी हमारे ग्रुप के दूसरे लड़के भी वहां आ गए और शुरू हो गए देदनादन उसे बजाने में. इस बीच भीड़ इकट्ठी हो गई. लोगों को पता चला कि कुछ मजनुओं की पिटाई हो रही है तो उन्होंने भी उन्हें पीटना शुरू किया. वे अपनी सफाई देते रहे और पिटते रहे. हम धीरे से खिसक लिए और उन की पिटाई चलती रही. इस बीच शहरी लड़कों की सूचना पर हम ने उस शाम 8-10 लड़कों की इसी तर्ज पर पिटाई कर दी. अब लड़ाई शहरी बनाम होस्टल में तबदील हो चुकी थी. हम लोगों की चारों तरफ तलाश हो रही थी, लेकिन हम छापामार तरीके से हमला कर फिर गायब हो जा रहे थे.

अगले दिन से होस्टल के लड़कों का शहर में निकलना बंद हो गया. वे होस्टल में नजरबंद हो गए. इलाहाबाद के शहरी क्षेत्र के लड़कों ने होस्टल पर नजर रखी थी और हमें वहां की तमाम गतिविधियों की सूचना मिल रही थी. होस्टल के दादाओं में एक ऐसा था जो हमारे ग्रुप के एक वरिष्ठ साथी मलय दा का भानजा था. मलय दा पूरी तरह हमारे साथ थे और उसे किसी तरह की रियायत देने के खिलाफ थे, लेकिन हम ने तय किया था कि उसे बख्श देंगे. उसे भी पता था कि जब तक वह हमला नहीं करेगा हम उस पर हाथ नहीं उठाएंगे. वह किसी तरह हिम्मत कर के होस्टल से निकला और शहर के एक खुंख्वार डौन से संपर्क कर उसे अपने पक्ष में कर लिया. हमें जानकारी मिली तो हम भी डौन लोगों से संपर्क करने लगे. शहरी खेमे का होने के कारण अधिकांश गैंगस्टर हमारे पक्ष में आ गए. सिर्फ एक डौन होस्टल वालों के पक्ष में था. मेरे होटल के सामने एक लौज में हमारे गु्रप के कई लड़के रहते थे. वही हमारा केंद्र बना हुआ था.

दोपहर में कुछ शहरी लड़कों ने सूचित किया कि होस्टल में कथित डौन के साथ सैकड़ों लड़कों की मीटिंग चल रही है. वे हमारे अड्डे पर हमला करने की तैयारी में हैं. प्रशांत और अजीत लाल ने पूछा, ‘‘तुम कितने लोग हो.’’ उस ने बताया, ‘‘हम 5-6 लोग हैं.’’

’’ठीक है, ऐसा करो कि 2 लोग मीटिंग में घुस जाओ और अफवाह फैलाओ कि हम लोग छत पर बंदूकराइफल और बम ले कर बैठे हैं. आज भयंकर कांड होने वाला है. 2 लोग होस्टल से यहां तक बीच में खड़े रहना और इसी बात को दोहराना.’’ तरकीब काम कर गई. सभास्थल पर ही इस अफवाह ने इतना असर दिखाया कि 70 फीसदी छात्र किसी न किसी बहाने खिसक गए. दूसरे गुट ने जब तेजी से आ कर यही बात दोहराई तो फिर भगदड़ मच गई. शेष बचे सिर्फ डौन और मलय चाचा के रिश्तेदार. वे भी हमारे केंद्र से 100 गज की दूरी पर तीसरे प्रोपेगंडा एजेंट के आगे घिघियाते हुए बोले, ‘‘उन लोगों को जा कर कहो कि हम लोग समझौता करना चाहते हैं.’’

उस ने आ कर बताया कि उन की हालत खराब है. इस बीच शहर के सब से बड़े डौन हमारी सुरक्षा में हमारे अड्डे से थोड़ी दूरी पर जीप लगा कर हथियारों के साथ मौजूद थे. कुछ बड़े डौन हमारे बीच आ कर बैठे थे. यूनिवर्सिटी के कुछ बड़े छात्रनेता भी हमारे बीच थे. कहा गया कि उन्हें बुला लाओ. उन के पक्ष के डौन तो अपने बड़ों की उस इलाके में चहलकदमी देख कर खिसक लिए. मलय चाचा के भानजे अकेले लौज में आए. हम ने समझौते की कई शर्तें रखीं. पहली, मुकदमा बिना शर्त वापस हो. दूसरी, होस्टल के वे लड़के जो हमारे साथ थे, उन्हें सम्मान के साथ वापस बुलाया जाए. उन पर कालेज प्रबंधन किसी तरह की दंडात्मक कार्यवाही न करे.

बौस लोगों ने भी अपनी तरफ से शहर में शांति बनाए रखने के लिए एक शर्त रखी कि दोनों पक्ष इलाहाबाद शहर के अंदर आपस में टकराव नहीं करेंगे. होस्टल के दादा लड़ाई हार चुके थे इसलिए हर शर्त मानने के अलावा उन के पास कोई चारा नहीं था. इस घटना का नतीजा यह हुआ कि पहले दिन होस्टल की घटना के बाद मोतीहारी के जो लड़के होस्टल छोड़ कर भाग गए थे. वे वापस लौटने के बाद होस्टल के बौस बन गए. पुराने बौस लोगों की हवा निकल गई. इस घटना के बाद शहर के अन्य संस्थानों में भी रैगिंग की परंपरा में कमी आई. इधर किसी ने मेरे घर तक इस घटना की खबर पहुंचा दी और मुझे तुरंत इलाहाबाद छोड़ कर वापस लौट आने का फरमान सुना दिया गया. इलाहाबाद में लंबे समय तक यह लड़ाई चर्चा का विषय बनी रही.

कनाडा में हिंदू मंदिरों पर हमला, भड़ास या फिर कोई साजिश

इतिहास में मामूली दिलचस्पी रखने वाला भी जानता है कि सिख धर्म मुगलों से हिंदुओं की हिफाजत के लिए बना था. ये सिख भी अधिकतर दलित हिंदू ही थे जिन्हें गुरुगोविंद सिंह ने हिम्मत और अन्याय से लड़ने का जज्बा दिया जिसे अमृत छकाना (पंच ककार धारण करना) कहा जाता है. लेकिन एक हकीकत कम ही सनातनी जानते हैं और जो जानते भी हैं तो वे उसे स्वीकार करने की हिम्मत नहीं जुटा पाते कि गुरुनानक का एक अहम मकसद तत्कालीन हिंदू समाज में फैली रूढ़ियों, भेदभाव, कुरीतियों और अंधविश्वासों से मुक्ति दिलाना भी था. खालसा पंथ के संविधान में से तो जातपांत नाम का अनुच्छेद ही डिलीट कर दिया गया था.

कनाडा की ताजी सिखहिंदू हिंसा के मद्देनजर कनाडा में भी जो हिंदू भारत के सनातनियों की तर्ज पर ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ का जुमला बुलंद कर रहे हैं उन्हें यह सबक इतिहास और सिख धर्म की स्थापना से ले ही लेना चाहिए कि एकता के लिए जरूरी यह है कि जातपांत, भेदभाव और छुआछूत फैलाने का निर्देश और आदेश देने वाले अप्रांसगिक हो चुके धर्मग्रंथों से वक्त रहते किनारा कर लिया जाए. नहीं तो कटते रहना हिंदुओं की नियति थी और आगे भी रहेगी और इस का जिम्मेदार कोई और नहीं बल्कि वे सवर्ण हिंदू ही होंगे जो रामायण, गीता और मनुस्मृति जैसे भेदभाव व नफरत फैलाते ग्रंथों को सीने से लगाए अवर्ण हिंदुओं को लतियाते और बहिष्कृत करते रहते हैं (हालांकि किसी भी दौर में ये ब्राह्मणवादी धर्मग्रंथ प्रासंगिक नहीं थे). गौतम बुद्ध, महावीर स्वामी और गुरुनानक जैसे चिंतकों ने बिना इन्हें नष्ट किए या जलाए बगैर अलग संप्रदाय खड़े करने में बेहतरी समझी जो आज क्रमश बौद्ध, जैन और सिख धर्म के नाम से जाने व पहचाने जाते हैं. अब यह और बात है कि इन धर्मों के अनुयायी भी इन रोगों की चपेट में, आंशिक रूप से ही सही, आने लगे हैं.

नवंबर महीने की शुरुआत से ही कनाडा में हिंदूसिख तनातनी की खबरें आने लगी थीं जो आखिरकार हिंसा में तबदील हो गईं. खालिस्तान समर्थक सिखों ने 2 हिंदू मंदिरों पर धावा बोला और हिंसा भी की. पहली वारदात टोरंटो के ब्रेम्पटन स्थित हिंदू सभा मंदिर में हुई जहां खालिस्तानियों ने मंदिर के अंदर घुस कर मारपीट की.

हमलावर खालिस्तानियों की भीड़ में शामिल लोगों के हाथ में पीले खालिस्तानी झंडे थे. उपद्रव और शांति भंग के आरोप में पुलिस ने 3 लोगों को गिरफ्तार किया. कनाडा में हिंदू मंदिरों पर हमले की यह कोई पहली वारदात नहीं थी. इस के पहले भी ब्रिटिश कोलंबिया और ग्रेटर टोरंटो सहित दूसरी जगहों पर भी हिंदू मंदिरों पर हमले हो चुके थे. इन का इतिहास लंबा है और पुराना भी. 1984 के सिख दंगों के बाद से ही कनाडा के सिखों ने वहां के हिंदुओं को निशाने पर ले रखा है. वे आएदिन हिंदू मंदिरों पर हमले बोला करते हैं और ‘हिंदुओं भारत वापस जाओ’ का नारा भी लगाते रहते हैं.

कनाडा में सिखहिंदुओं की नफरत का खमियाजा अकसर मंदिरों पर गिरता है. ताजी वारदातों में एक अहम वारदात बीती जुलाई में देखने को आई थी जब एड्मोर्टन के बीएपीएस मंदिर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और इकलौते कनाडाई हिंदू सांसद चंद्र आर्य को हिंदू आतंकवादी बताते मंदिर के भित्तिचित्रों के साथ तोड़फोड़ की गई थी.

अक्तूबर 2023 में तो ओंटारियों में एकसाथ 6 हिंदू मंदिरों में सेंध लगाई गई थी. इन मंदिरों में चितपूर्णी मंदिर, केलेनडन में रामेश्वर मंदिर, मिसीसागा में हिंदू हैरिटेज सैंटर, पिकरिंग में देवी मंदिर और अजाक्स का संकट मोचन मंदिर शामिल हैं. इस से पहले अगस्त 2023 में सरे में लक्ष्मीनारायण मंदिर में तोड़फोड़ की गई थी और फ्रंट गेट व पिछली दीवार पर भारत विरोधी और खालिस्तान समर्थक पोस्टर चस्पां किए गए थे.

इसे भारतकनाडा विवाद से भी जोड़ कर देखने की कोशिश की गई जो अभी तक जारी है. इस की शुरुआत बीती 18 सितंबर को हुई थी. उस दिन कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने भारत पर निज्जर की हत्या का आरोप लगाते भारत के एक सीनियर डिप्लोमैट को बाहर का रास्ता दिखला दिया था.

गौरतलब है कि 18 जून, 2023 को खालिस्तानी समर्थक और वैंकूवर स्थित गुरुनानक सिख गुरुद्वारा के अध्यक्ष हरदीप सिंह निज्जर की गुरुद्वारे की पार्किंग में गोली मार कर हत्या कर दी गई थी. गौरतलब यह भी है कि निज्जर खालिस्तान टाइगर फोर्स के भी मुखिया थे.

इस के दूसरे दिन यानी 19 सितंबर को ही भारत सरकार ने कनाडा में रह रहे भारतीयों के लिए एक एडवायजरी जारी करते उन से यानी भारत विरोधी गतिविधियों से सतर्क रहने की अपील की थी. 21 सितंबर को और आक्रामक होते भारत ने कनाडा के लोगों के लिए वीजा सेवाएं सस्पैंड कर दीं. इस संबंध में विदेश मंत्रालय ने कहा था कि हमारे डिप्लोमैट्स को लगातार धमकियां मिल रही हैं. 13 अक्तूबर को कनाडा सरकार ने भारत को एक चिट्ठी भेजी जिस में हाई कमिश्नर संजय वर्मा सहित दूसरे डिप्लोमैट्स को एक मामले में संदिग्ध करार दिया गया था. एवज में 14 अक्तूबर को ही भारत ने इन लोगों को वापस बुला लिया.

जाहिर है, बात बिगड़ चुकी थी और अभी तक सिखों या हिंदुओं का इस से घोषित तौर पर कोई सीधे लेनादेना नहीं था. लेकिन वक्त बीतते जस्टिस ट्रूडो इस मामले को ले कर भारत पर सख्त होते गए और उन्होंने निज्जर के कातिलों को कनाडा की संसद में भारत सरकार का एजेंट बता डाला जिस का भारत ने तुरंत खंडन किया. कनाडा ने यह आरोप भी लगाया कि भारतीय डिप्लोमैट्स अपने पद का बेजा इस्तेमाल करते हुए भारत सरकार के लिए जानकारियां जुटा रहे हैं जिन का इस्तेमाल दक्षिणएशियाई लोगों को निशाना बनाने में किया जाता है. जेल में बंद लौरेंस विश्नोई से भी कनाडा ने हिंसा के तार जोड़ते बयान दिए थे. निज्जर के हत्यारों के बारे में जांच में पता चला कि तीनों युवा आरोपी करण बराड़, करणप्रीत और कमलप्रीत पंजाब के रहने वाले हैं और खातेपीते परिवारों से हैं.

यह मसला सुलझ पाता, इस के पहले ही मंदिर पर हमलों ने तूल पकड़ लिया. इस के भी पहले एक सनसनीखेज बयान में कनाडा ने गृहमंत्री अमित शाह पर अमेरिकी मीडिया हाउस वाशिंगटन पोस्ट के हवाले से कनाडा में तोड़फोड़ का आरोप लगाया था. इस को भी बेतुका बताते भारत ने खंडन किया था. भारत का आरोप यह है कि कनाडा सरकार और ट्रूडो भारत विरोधी गतिविधियों को शह दे रहे हैं.

इधर, दीवाली के बाद कनाडाई हिंदुओं ने भी विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया. उन्होंने इस के लिए जय श्रीराम और हरहर महादेव के नारों का सहारा लिया. 5 नवंबर को ब्रेम्पटन शहर में हजारों हिंदुओं ने प्रदर्शन किया. इन के हाथ में तिरंगा और भगवा झंडों के अलावा कनाडा का राष्ट्रीय ध्वज भी था. इस मार्च का आयोजन ‘कोलिशन औफ हिंदूज इन नौर्थ अमेरिका’ ने किया था. इन प्रदर्शनकारियों ने प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो को भी कोसा और हिंदू फोबिया पर भी सख्त कार्रवाई करने की मांग की. भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्रूडो को कूटनीतिक भाषा में हड़काने की रस्म पहले ही अदा कर थी तो विदेश मंत्री जयशंकर ने भी उन का अनुसरण किया.

5 नवंबर के प्रदर्शन में हिंदू भड़काऊ बातें करते नजर आए, मसलन यह कहना कि जो कोई भी हिंदुओं का विरोध करेगा तो उसे छोड़ेंगे नहीं बल्कि तोड़ेंगे. हिंदू सभा मंदिर विवाद में भी हिंदुओं ने भड़काऊ नारे लगाए थे जिन का मकसद सिखों को उकसाना और भड़काना ही था. 5 नवंबर को ही हिंदू सभा मंदिर के पंडित राजेंद्र प्रसाद को सिखों के खिलाफ हिंसक बयानबाजी करने के आरोप में हिंदू सभा मंदिर के अध्यक्ष मधुसूदन लामा ने निलंबित करते हुए बाहर का रास्ता दिखाने को मजबूर होना पड़ा था.

ब्रेम्पटन के मेयर पैट्रिक ब्राउन ने इस पुजारी की करतूत की निंदा सोशल मीडिया पर करते हुए यह भी लिखा था कि अधिकांश कनाडाई सिख और कनाडाई हिंदू सद्भाव में रहना चाहते हैं और हिंसा बरदाश्त नहीं करते हैं. पंडित राजेंद्र प्रसाद के निलंबन से साफ लगा था कि हिंदू सारा दोष सिखों के सिर मढ़ कर पाकसाफ दिखना चाहते हैं.

इधर, भारत में सिखों ने समझदारी का परिचय देते हुए कनाडा की हिंसा के विरोध में जगहजगह विरोध प्रदर्शन करते कनाडा सरकार पर खालिस्तानियों को संरक्षण देने के खिलाफ नारेबाजी की. भोपाल के रोशनपुरा चौराहे पर ऐसे ही एक प्रदर्शन का नेतृत्व कर रहे मध्य प्रदेश के प्रमुख भाजपाई सिख नेता और गुरुद्वारा सिख सभा के संरक्षक जसपाल अरोरा ने कनाडा सरकार को कोसते हुए यह भी कहा कि हिंदू सनातन धर्म का सब से मजबूत पंथ सिख पंथ है जिस के कुछ लोगों को भड़का कर उन्हें खालिस्तानी नाम दे कर उन के द्वारा कनाडा में एक तथाकथित आंदोलन चलाया जा रहा है.

जल्द ही इस मामले में राजनीति भी शामिल कर ली गई, जब भारतीय मीडिया ने यह कहना शुरू किया कि ट्रूडो के लिए सिख वोट अहम हैं क्योंकि अगले साल कनाडा में आम चुनाव हैं और ट्रूडो एक बार फिर इन्हीं के सहारे प्रधानमंत्री बन जाना चाहते हैं. कोई 4 करोड़ की आबादी वाले में कनाडा में लगभग 9 लाख सिख हैं हालांकि हिंदुओं की तादाद सिखों से थोड़ी ज्यादा है लेकिन वे वहां वोटर नहीं हैं. कनाडा की संसद में 15 सिख सांसद हैं और ट्रूडो मंत्रिमंडल में 4 सिख हैं. जबकि इकलौते हिंदू सांसद चंद्र आर्य हैं. सिखों से ज्यादा आबादी वाले हिंदुओं की संसद में तादाद कम क्यों है, इस का चिंतनमंथन कनाडा के हिंदुओं को करना चाहिए जो वहां भी जातिवाद के शिकार हैं. सिखों की कनाडा में छोटीमोटी कई राजनातिक पार्टियां हैं जिन में प्रमुख लिबरल पार्टी औफ कनाडा, कंजर्वेटिव पार्टी औफ कनाडा और एनडीपी यानी न्यू डैमोक्रेटिक पार्टी शामिल हैं.

इस समीकरण के मद्देनजर भारत के हिंदू नेता आरोप यह लगा रहे हैं कि खालिस्तानियों को खुश करने के लिए ट्रूडो सिखों को हिंदुओं पर हमलों की खुली छूट दे रहे हैं. हालांकि यह दलील देने वाले इस तथ्य को नजरअंदाज कर जाते हैं कि ट्रूडो सरकार में शामिल खालिस्तान समर्थक जगमीत सिंह की अगुआई वाली एनडीपी, जिस के 24 सांसद हैं, ने अपना समर्थन वापस ले लिया था जिस के चलते अल्पमत में आ गई ट्रूडो सरकार एक अक्तूबर के फ्लोरटैस्ट में जुगाड़तुगाड़ कर बहुमत साबित कर पाई थी. जगमीत सिंह से पहले एनडीपी के अध्यक्ष कनाडाई नेता ही हुआ करते थे.

विदेशी धरती पर लड़ रहे सिख और हिंदुओं का बैर और अलग खालिस्तान की मांग बहुत पुरानी है. भारत में जो हुआ उसे सब जानते हैं कि इंदिरा गांधी की हत्या कैसे और क्यों हुई और कैसे राजीव गांधी ने इसे तात्कालिक तौर पर सुलझाया था.

आमतौर पर लोग यही मानते हैं कि खालिस्तान की मांग ने 80-90 के दशकों में जन्म लिया लेकिन हकीकत में यह 95 साल पुरानी मांग है. साल 1931 में कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में मोतीलाल नेहरू ने जब पूर्ण स्वराज की बात कही थी तब शिरोमणि अकाली दल के मास्टर तारासिंह ने सिखों के लिए एक अलग देश बनाने की मांग की थी क्योंकि उन की चिंता वे ब्राह्मण थे जो गुरुद्वारों के पंडेपुजारी बन कर लूटखसोट तो मचा ही रहे थे, साथ ही, सिखों में भी हिंदुओं सरीखे अंधविश्वास फैला रहे थे. तारासिंह ने ही इन्हें गुरुद्वारों से खदेड़ा था. आजादी के बाद भी खालिस्तान की मांग कायम रही लेकिन कांग्रेस सरकार ने इसे हलके में ले कर टाल दिया था.

1955 में एक बार फिर अकाली दल ने भाषा के आधार पर राज्य के पुनर्गठन के लिए आंदोलन किया था. उस की मांग थी कि पंजाबी और गैरपंजाबी भाषी क्षेत्रों में विभाजित किया जाए. तब प्रमुख हिंदूवादी संगठनों आरएसएस और हिंदू महासभा ने गुरुमुखी भाषा में शिक्षा देने सहित इस का विरोध किया था. इस से उन्हें क्या हासिल हुआ, यह राम जाने.

1966 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पंजाब को 3 हिस्सों में बांट दिया था जिस के तहत हिमाचल प्रदेश और हरियाणा को नया राज्य बनाया गया और चंडीगढ़ को केंद्रशासित प्रदेश का दर्जा दिया गया था. तब भी अकाली दल इस मांग पर अड़ गया था कि रक्षा, विदेश, संचार और मुद्रा छोड़ कर दूसरे सारे अधिकार पंजाब को दे दिए जाएं. लेकिन इंदिरा गांधी ने इस मांग को खारिज कर दिया था. 80 के दशक में एक बार फिर पृथक खालिस्तान की मांग ने जोर पकड़ा जिसे दमदम अकाली दल के मुखिया जरनैल सिंह भिंडरांवाला ने एक आंदोलन की शक्ल दे दी. इस के बाद जो भी हुआ, अप्रिय ही हुआ और खालिस्तान की मांग हौरर फिल्मों के प्रेत की तरह हर कभी सिर उठाती रही.

इस पूरे दौर और खेल में एक बात आईने की तरह साफ है और आज भी होती रहती है कि हिंदू और सिख एकसाथ सहज ढंग से नहीं रह सकते और असहज ढंग से रहने का खमियाजा अब भारत के बाहर कनाडा में भी भुगत रहे हैं जिस का दोष राजनीति या किसी ट्रूडो को देना असल मुद्दे से ध्यान भटकाने जैसी बात है. लड़ाई चूंकि धार्मिक है, इसलिए राजनीति से नहीं सुलझने वाली. जो काम इंदिरा और राजीव गांधी जैसे धुरंधर प्रधानमंत्री नहीं कर पाए उसे नरेंद्र मोदी कर दिखाएंगे, इस में शक नहीं बल्कि यकीन है कि यह काम उन के बूते का भी नहीं. हां, बातें वे भी हजार करें, यह हर्ज और गौर करने वाली भी बात नहीं. यह बात महज 9 महीने पहले 20 फरवरी को ही एक और खालिस्तानी समर्थक ‘वारिस दे पंजाब’ के स्वयंभू मुखिया अमृतपाल सिंह ने कही भी थी जिसे खडूर साहब लोकसभा क्षेत्र की जनता ने भले ही जिता कर लोकसभा भेज दिया लेकिन वह इन दिनों असम की डिब्रूगढ़ जेल में बंद है.

तो फिर समस्या का हल क्या, क्या पृथक खालिस्तान की मांग मान लेनी चाहिए? इस का जवाब है, हरगिज नहीं. जरूरत इस बात की है कि हिंदू सिखों के प्रति अपना पूर्वाग्रह छोड़ें, हिंदू राष्ट्र की बेजा मांग छोड़ें, देश को धर्मनिरपेक्ष रहने दें और याद रखें कि कैसीकैसी कुर्बानियां सिख गुरुओं ने उस सनातन हिंदू धर्म की रक्षा के लिए दी हैं जिस के मूलभूत सिद्धांतों, खासतौर से वर्ण व्यवस्था, से ही वे सहमत नहीं थे. जरूरत इस बात की भी है कि हिंदू भी कृतघ्नता छोड़ें और सिखों का मजाक बनाना व उड़ाना बंद करें, संक्षेप में याद दिला देना जरूरी है कि किसान आंदोलन के दौरान किसानों को खालिस्तानी कहा गया था. उन के आंदोलन को विदेशियों, खासतौर से पाकिस्तान, से फंडिंग होना बताया गया था.

छोटेबड़े सनातनी नेता किसान आंदोलन और सिखों को कोसते रहे लेकिन हद ऐक्ट्रैस कंगना रानौत ने कर दी जो हर कभी सिखों और किसानों को अपने बयानों के जरिए जलील करती रहती हैं. इन दिनों कंगना हिमाचल प्रदेश के मंडी लोकसभा सीट से भाजपाई सांसद हैं जो अमर्यादित आचरण को ही राजनीति समझती हैं. बडबोली कंगना ने कब, क्या कहा, इस पर एक नजर डालें तो समझ आता है कि सुंदर चेहरे वाली इस ऐक्ट्रैस का दिल कितना बदसूरत है.

नवंबर 2021 में पहली बार कंगना ने एक विवादित बयान दिया था कि किसान आंदोलन के जरिए देश को कमजोर किया जा रहा है. किसानों ने अपने हितों के लिए राष्ट्र की अनदेखी की है. दरअसल तब कंगना भाजपा में आने के लिए छटपटा रही थीं और भाजपा की ही जबान बोलती थीं. किसान आंदोलन में चूंकि पंजाब के किसान ज्यादा थे इसलिए उन का मतलब और इशारा सिखों की तरफ ही था.

इस के पहले फरवरी 2021 में कंगना किसान आंदोलन को आतंकवाद करार दे चुकी थीं. बकौल कंगना, ये किसान नहीं बल्कि आतंकवादी हैं जो भारत को विभाजित करने की कोशिश कर रहे हैं. यह वह वक्त था जब किसान आंदोलन के पक्ष में राष्ट्रीय के अलावा कई नामी अंतर्राष्ट्रीय हस्तियां भी बोल रही थीं. इन में मशहूर पौप स्टार रिहाना और ग्रेटा थानबर्ग के नाम उल्लेखनीय हैं. 2 फरवरी, 2021 को रिहाना ने सोशल मीडिया पर लिखा था कि आखिर हम इस (किसान आंदोलन) के बारे में बात क्यों नहीं कर रहे हैं. एवज में कंगना ने घटिया और पूर्वाग्रही बात कह डाली थी.

कंगना की सिख समुदाय से बैर, नफरत और भड़ास नवंबर 2021 में भी उजागर हुए थे जब उन्होंने इंस्टाग्राम पर लिखा था कि खालिस्तानी आतंकवादी आज सरकार को परेशान कर रहे हैं लेकिन हमें एक महिला को नहीं भूलना चाहिए. एकमात्र महिला प्रधानमंत्री ने इन्हें अपनी जूतियों के नीचे कुचल दिया था चाहे उन्होंने देश को कितनी तकलीफें ही क्यों न दी हों. उन्होंने अपनी जान की कीमत पर इन्हें मच्छरों की तरह कुचल दिया. लेकिन देश के टुकड़े नहीं होने दिए. इस बयान से आहत सिखों ने देशभर में कंगना का विरोध किया था लेकिन उन के कान पर जूं नहीं रेंगी और ऐसे विवादित बयानों को वे शान की बात समझने लगी थीं.

सांसद बनने के बाद भी यह बड़बोली ऐक्ट्रैस सुधरी नहीं. 25 अगस्त, 2024 को एक बार फिर उन्होंने सोशल मीडिया पर यह कहते बवाल खड़ा कर दिया कि “किसान आंदोलन के जरिए भारत में बंगलादेश जैसी स्थिति पैदा करने की तैयारी थी, जो बंगलादेश में हुआ वह यहां होने में भी देर नहीं लगती अगर हमारा शीर्ष नेतृत्व सशक्त न होता. जहां किसान आंदोलन हुए वहां पर लाशें लटकी थीं, वहां रेप हो रहे थे. किसानों की बड़ी लंबी प्लानिंग थी, जैसे बंगलादेश में हुआ इस तरह का षड्यंत्र…आपको क्या लगता है, किसानों…चीन, अमेरिका इस तरह की विदेशी शक्तियां यहां काम कर रही हैं.”

इस पर भी बवाल मचा तो भाजपा ने इस से पल्ला झाड़ लिया कि, “यह पार्टी की राय नहीं है. नीतिगत विषयों पर बोलने को ले कर कंगना रानौत को न तो अनुमति है और न ही वे बयान देने के लिए अधिकृत हैं. कंगना को निर्देशित किया गया है कि वे भविष्य में इस तरह के कोई बयान न दें.”

इस निर्देश से कंगना ने यही सीखा कि उन्हें इस तरह के ही बयान देते रहने के लिए पार्टी ने अधिकृत किया है, सो, ठीक एक महीने बाद 24 सितंबर को उन्होंने फिर रट्टू तोते की तरह कहा कि तीनों विवादास्पद कृषि कानून फिर से लागू करने चाहिए और इस की मांग खुद किसानों को करनी चाहिए. अब तक लोग उन की किसानों और सिखों के प्रति सनक, कुंठा और भड़ास के आदी हो चुके थे, इसलिए किसी ने उस पर ध्यान ही नहीं दिया.

अब हैरानी नहीं होनी चाहिए कि सनातनी रंग में रंग चुकी कंगना कनाडा की हिंसा पर भी कुछ न कुछ ऐसा बोले जो उन्हें सुर्खियां दे. हालांकि, विवादित बयानों से ज्यादा सुर्खियां उन्हें इसी साल 6 जून को मिली थीं जब दिल्ली जाते वक्त चंडीगढ़ एयरपोर्ट पर उन्हें सीआईएसएफ की एक महिला कांस्टेबल कुलविंदर कौर ने गाल पर तबीयत से थप्पड़ जड दिया था. कुलविंदर ने कुछ न छिपाते हुए बेबाकी से बता दिया था कि उस ने अभिनेत्री सांसद को थप्पड़ इसलिए मारा कि उस ने किसान आंदोलन को ले कर कमैंट किया था कि पंजाब की महिलाओं ने पैसों के लिए किसान आंदोलन में हिस्सा लिया था. इस आंदोलन में उस की मां भी शामिल थी जिन का अपमान उस से बरदाश्त न हुआ.

ऐसे माहौल में हिंदीभाषी इलाकों के सिख अगर मुसलमानों की तरह खुद को असुरक्षित, अलगथलग और उपेक्षित समझ रहे हैं तो इस की वजह बहुसंख्यक हिंदुओं का उन के प्रति वही नजरिया है जो मुसलमानों के प्रति है. इसी की प्रतिक्रिया में जगजीत सिंह भिंडरांवाला, जगमीत सिंह और अमृतपाल सिंह जैसे दर्जनों सैकड़ों नौजवान धार्मिक उन्माद का शिकार हो कर देश का माहौल बिगाड़ते हैं और इसी की भड़ास अब कनाडा में निकल रही है जहां हिंदू सिख आस्तीनें चढ़ाए आमनेसामने खड़े एकदूसरे का सिर फोड़ रहे हैं और कैथोलिक ईसाई तमाशा देख रहे हैं.

इधर सिखों को भी ध्यान रखना चाहिए कि खुदा न खास्ता खालिस्तान कभी बन भी गया तो चैन से वे भी नहीं रह पाएंगे. अफगानिस्तान के साथसाथ पाकिस्तान इस का बेहतर उदाहरण हैं जहां के फिरकापरस्त मुसलमान कठमुल्लाओं की कठपुतली बने आपस में लड़तेझगड़ते रहते हैं और हर कभी फांके करते रहते हैं. ऐसा सिर्फ कट्टरवाद की वजह से है जो विकास और तर्कों से कोई वास्ता नहीं रखता.

‘बटेंगे तो कटेंगे’ का नारा बुलंद करने वाले हिंदू किस हद तक जातिगत भेदभाव के शिकार हैं, यह उन के इस नारे देने की मजबूरी से ही पता चलता है. इसलिए नारा तो सब का यह होना चाहिए कि ‘जुड़ेंगे तो बढ़ेंगे, नहीं तो फिर पिछ्ड़ेंगे’. लेकिन सभी धर्मों के ठेकेदार और दुकानदार सभी को यह सोचने की मोहलत और मौका देंगे, ऐसा सोचने की कोई वजह नहीं.

भूल: प्यार के सपने दिखाने वाले अमित के साथ क्या हुआ?

कैफे कौफी डे’ में रजत, अमित, विनोद और प्रशांत बैठे गपें मार रहे थे, इतने में अचानक रजत की नजर घड़ी पर गई तो वह बोला, ‘‘अमित, तुझे तो अभी ‘उपवन लेक’ जाना है न, वहां पायल तेरा इंतजार कर रही होगी.’’

अमित ने अपने कौलर ऊपर करते हुए कहा, ‘‘वही एक अकेली थोड़ी है जो मेरा इंतजार कर रही है, कई हैं, करने दे उसे भी इंतजार, बंदा है ही ऐसा.’’

प्रशांत हंसा, ‘‘हां यार, तू अमीर बाप की इकलौती औलाद है, हैंडसम है, स्मार्ट है, लड़कियां तो तुझ पर मरेंगी ही.’’

अमित ने इशारे से वेटर को बुला कर बिल मंगवाया और बिल चुकाने के बाद अपनी गाड़ी की चाबी उठाई और बोला, ‘‘चलो, मैं चलता हूं, थोड़ा टाइमपास कर के आता हूं,’’ सब ने ठहाका लगाया और अमित बाहर निकल गया. वह सीधा ‘उपवन लेक’ पहुंचा, पायल वहां बैंच पर बैठी थी, उस ने कार से उतरते अमित को देखा तो खिल उठी. वह अमित को देखती रह गई. शिक्षित, धनी, स्मार्ट अमित उस जैसी मध्यवर्गीय घर से ताल्लुक रखने वाली साधारण लड़की को प्यार करता है, यह सोचते ही पायल खुद पर इतरा उठी. पास आते ही अमित ने उस की कमर में हाथ डाल दिया और इधरउधर देखते हुए कहा, ‘‘चलो, कहीं चल कर कौफी पीते हैं.’’

‘‘नहीं अमित, अगर किसी ने देख लिया तो?’’

‘‘अरे पायल, मैं तुम्हें जिस होटल में ले जाऊंगा वहां तुम्हारी जानपहचान का कोई फटक भी नहीं सकता.’’

पायल को अमित की यह बात बुरी तो लगी, लेकिन उस के व्यक्तित्व के रोब में दबा उस का मन कोई प्रतिक्रिया नहीं दे पाया, उस ने चुपचाप सिर हिला दिया. अमित उसे एक शानदार महंगे होटल में ले गया और दोनों ने एक कोने में बैठ कर कौफी और कुछ स्नैक्स का और्डर दे दिया, हलकाहलका मधुर संगीत और होटल के शानदार इंटीरियर को देख पायल का मन झूम उठा.

अमित की मीठीमीठी बातें सुन कर पायल किसी और ही दुनिया में पहुंच गई. करीब घंटेभर दोनों साथ बैठे रहे. इस दौरान कभी अमित पायल का हाथ अपने हाथ में ले कर बैठता तो कभी उस के खूबसूरत सुनहरे बालों को उंगलियों से सहलाने लगता. पायल हमेशा की तरह सुधबुध खो कर उस की बातों की दीवानी बन खोई रही. जब उस के मोबाइल की घंटी बजी तो वह होश में आई, उस के पापा का फोन था, उन्होंने पूछा, ‘‘कहां हो?’’

पायल ने तुरंत कहा, ‘‘बस पापा, रास्ते में हूं, घर पहुंचने वाली हूं.’’ उस ने अमित से कहा, ‘‘अब मैं जा रही हूं, फिर मिलेंगे.’’ अमित ने कहा, ‘‘ठीक है, तुम जाओ, मैं यहां अपने दोस्त का इंतजार कर रहा हूं, वह आता ही होगा.’’ पायल चली गई. अमित ने मुसकराते हुए घड़ी देखी. रंजना को उस ने आधे घंटे बाद यहीं बुलाया था. वह जानता था कि पायल घंटेभर से ज्यादा नहीं रुक पाएगी, क्योंकि उस के पापा काफी अनुशासनप्रिय हैं.

अमित बिजनैसमैन कमलकांत का इकलौता बेटा था, मम्मी का देहांत हो चुका था. उस ने अभीअभी एमबीए किया था ताकि बिजनैस संभाल सके. वह युवतियों को खिलौना समझता था, उन पर पैसा खर्च कर वह अपना उल्लू साधता था. वह कई युवतियों से एकसाथ फ्लर्ट करता था. कालेज में युवतियां उस की दीवानी थीं, जिस का उस ने हमेशा फायदा उठाया.

पायल के जाने के बाद वह अब रंजना का इंतजार कर रहा था. खुले विचारों वाली रंजना मौडर्न ड्रैस पहन कर मिलने आई थी. अमित को देख कर उस ने फ्लाइंग किस की और पास पहुंच कर उस से सट कर बैठ गई. अमित ने उस से प्यार भरी बातें कीं और छेड़खानी शुरू कर दी.

रंजना खुद को बड़ी खुशनसीब मानती थी कि उसे अमित जैसा दौलतमंद बौयफ्रैंड मिला. उस ने शादी का जिक्र किया, ‘‘अमित, तुम डैड से हमारी शादी की बात कब कर रहे हो?’’

अमित चौंक कर बोला, ‘‘देखता हूं, अभी तो डैड बहुत बिजी हैं,’’ कहते हुए वह मन ही मन हंसा, ’कितनी बेवकूफ होती हैं लड़कियां, दो बोल प्यार के सुन कर शादी के सपने देखने लगती हैं, हुंह. शादी और इन से, शादी तो अपने ही जैसे उच्चवर्गीय परिवार की किसी लड़की से करूंगा, मखमल में टाट का पैबंद तो लगने से रहा,’अमित ने रंजना की बातों का रुख मोड़ दिया. फिर घंटेभर टाइमपास कर रंजना को ले कर कार की तरफ बढ़ा और उस के घर से पहले ही कार रोक कर उसे उतार कर आगे बढ़ गया.

वह जब घर पहुंचा तो उस के पिता कमलकांत औफिस से आ चुके थे, वे ड्राइंगरूम में गुमसुम बैठे थे. अमित गुनगुनाते हुए घर के अंदर दाखिल हुआ तो उस से पापा की नजरें मिलीं. अमित ने अपने पिता के चेहरे की गंभीरता भांप ली और बोला, ‘‘डैड, कुछ प्रौब्लम है क्या? आप की तबीयत तो ठीक है न?’’

कमलकांत कुछ नहीं बोले, बस, सोफे पर उन्होंने सिर टिका लिया. अमित घबरा कर आगे बढ़ा, ‘‘क्या हुआ डैड?’’

कमलकांत की बुझीबुझी सी आवाज आई, ‘‘2 दिन से सोच रहा हूं तुम्हें बताने के लिए, मुझे एबीसी कंपनी के शेयरों में काफी घाटा हुआ है. अब सारा पैसा डूब गया, जबरदस्त नुकसान हुआ है.’’

दोनों बापबेटा काफी देर सिर पकड़ कर बैठे रहे, फिर कमलकांत ने कहा,

‘‘मि. कुलकर्णी की बेटी से तुम्हारे रिश्ते की जो बात चल रही थी आज उन्होंने भी बात घुमाफिरा कर इस रिश्ते को खत्म करने का संकेत दे दिया है. अब तुम्हें कोई लड़की पसंद हो तो बता देना,’’ तभी नौकर ने आ कर खाना बनाने के लिए पूछा तो दोनों ने ही मना कर दिया.

दोनों के होश उड़े हुए थे, दोनों बापबेटा अपनेअपने कमरे में रातभर जागते रहे. कमलकांत रातभर अपने वकील, सैक्रेटरी, मैनेजर से बात करते रहे, अमित ने तो अपना फोन ही स्विचऔफ कर दिया था, कहां तो वह रोज इस समय फोन पर किसी न किसी लड़की को भविष्य के सुनहरे सपने दिखा रहा होता था. अगले कुछ दिनों में स्थिति और भी स्पष्ट होती चली गई थी. शहर में चर्चा होने लगी, इसी वजह से कमलकांत को हार्टअटैक आ गया, उन्हें तुरंत अस्पताल में भरती किया गया. अमित की भी हालत खराब थी. रिश्तेदारों ने भी उस से दूरी बना ली. सिर्फ एकदो दोस्त उस के साथ अस्पताल में थे.

अमित पिता की रातदिन देखभाल कर रहा था. कुछ दिन बाद जब उन की हालत में कुछ सुधार हुआ तो डाक्टर के निर्देशों के साथ घर आते ही उन्होंने अमित से कहा, ‘‘बेटा, तुम जल्दी से जल्दी साधारण ढंग से ही शादी कर लो, मेरी एक चिंता तो खत्म हो जाएगी. तुम्हारी तो इतनी सारी लड़कियों से दोस्ती है. मुझे बताओ, किस से शादी करना चाहते हो?’’

‘‘डैड, पहले आप ठीक तो हो जाओ, मुझे तय करने के लिए थोड़ा समय चाहिए.’’

समाचारपत्रों में छपी खबरों से अब तक रंजना, पायल और अन्य लड़कियों को भी अमित के चरित्र और कमलकांत की गिरती साख की खबर लग चुकी थी. अमित ने पायल को मिलने के लिए फोन किया तो उस ने साफ इनकार कर दिया और बोली, ‘‘तुम एक आवारा और चरित्रहीन लड़के हो, लड़कियों की भावनाओं से खेलते हो. शादी तो दूर मैं तुम्हारी शक्ल भी नहीं देखना चाहती.‘‘

अमित पायल के व्यंग्यबाणों से अपमान, मानसिक पीड़ा और क्रोध में जला जा रहा था. इस पीड़ा से उस ने अपनेआप को बहुत मुश्किल से संभाला. सामान्य होने के बाद उस ने रंजना को फोन किया तो रंजना का भी जवाब था, ‘‘तुम अब कुछ भी नहीं हो अमित, जिस पिता के पैसे पर ऐश कर के लड़कियों को बेवकूफ बनाते थे वह पैसा तो अब डूब गया. अब मेरी भी तुम में कोई रुचि नहीं है. मुझे पूजा, अनीता और मंजू के बारे में भी पता चल चुका है, अब सब तुम्हारी हकीकत जान चुके हैं. पिता की दौलत के बिना तुम कुछ नहीं हो, किसी लड़की को अपने से कम समझना, तुम लड़कों का ही हक नहीं है बल्कि हम में भी फैसला लेने की क्षमता, इच्छा, रुचि और पसंद होती है. काश, तुम गरीब और साधारण रूपरंग वाले लेकिन चरित्रवान युवक होते और लड़कियों की भावनाओं से नहीं खेलते,’’ कह कर रंजना ने उस की बात सुने बिना ही फोन रख दिया.

अमित को ऐसा लगा जैसा कि रंजना ने उसे करारा तमाचा मारा हो. निष्प्राण सा वह बिस्तर पर ढह गया. उसे ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो शरीर का खून पानी हो गया हो. उस का गला सूखने लगा और वह अब कुछ करने की हालत में नहीं था. वह बड़ी मुश्किल से उठा और पापा को उस ने अपने हाथ से जबरदस्ती कुछ खिला कर दवा दी, फिर अपने कमरे में आ कर निढाल पड़ गया. उस के दिलोदिमाग में विचारों की आंधी का तांडव चल रहा था. वह इस तरह अपने को ठुकराना सहन नहीं कर पा रहा था. उस ने सपने में भी नहीं सोचा था कि उस जैसे स्मार्ट, हैंडसम लड़के का कोई लड़की इस तरह से अपमान कर सकती है. उस ने अब तक न जाने कितनी लड़कियों को अपनी बातों के जाल में फंसाया था, लेकिन आज उन साधारण लड़कियों ने उस के घमंड को चकनाचूर कर दिया.

मन शांत हुआ तो उस ने सोचा कि सिर्फ पुरुष होने के नाते वह किसी लड़की की भावनाओं से नहीं खेल सकता. उस ने हमेशा अपनी भावनाओं को ही महत्त्व दिया. कभी उस के मन में यह बात नहीं आई कि किसी लड़की का भी आत्मसम्मान व पसंदनपसंद हो सकती है. उस के दिमाग में तो हमेशा यही गलतफहमी रही कि उसे पा कर हर लड़की खुद को धन्य समझेगी, लेकिन उस रात आत्मविश्लेषण करते हुए उस ने महसूस किया कि पायल और रंजना की बातों ने उस की सोच को नया आयाम दिया है. सुबह उस का मन एकदम शांत था, ठीक तूफान के गुजरने के बाद की तरह शांत. उसे अपनी भूल का एहसास हो चुका था. वह मन ही मन पायल, रंजना और पता नहीं कितनी लड़कियों से माफी मांग रहा था.

पुरवई : मनोहर की कौन सी बात लोगों को चुभ गई

‘‘सुनिए, पुरवई का फोन है. आप से बात करेगी,’’ मैं बैठक में फोन ले कर पहुंच गईथी.

‘‘हां हां, लाओ फोन दो. हां, पुरू बेटी, कैसी हो तुम्हें एक मजेदार बात बतानी थी. कल खाना बनाने वाली बाई नहीं आईथी तो मैं ने वही चक्करदार जलेबी वाली रेसिपी ट्राई की. खूब मजेदार बनी. और बताओ, दीपक कैसा है हां, तुम्हारी मम्मा अब बिलकुल ठीक हैं. अच्छा, बाय.’’

‘‘बिटिया का फोन लगता है’’ आगंतुक ने उत्सुकता जताई.

‘‘जी…वह हमारी बहू है…बापबेटी का सा रिश्ता बन गया है ससुर और बहू के बीच. पिछले सप्ताह ये लखनऊ एक सेमीनार में गएथे. मेरे लिए तो बस एक साड़ी लाए और पुरवई के लिए कुरता, टौप्स, ब्रेसलेट और न जाने क्याक्या उठा लाए थे. मुझ बेचारी ने तो मन को समझाबुझा कर पूरी जिंदगी निकाल ली थी कि इन के कोई बहनबेटी नहीं है तो ये बेचारे लड़कियों की चीजें लाना क्या जानें और अब देखिए कि बहू के लिए…’’

‘‘आप को तो बहुत ईर्ष्या होती होगी  यह सब देख कर’’ अतिथि महिला ने उत्सुकता से पूछा.

‘‘अब उस नारीसुलभ ईर्ष्या वाली उम्र ही नहीं रही. फिर अपनी ही बेटी सेक्या ईर्ष्या रखना अब तो मन को यह सोच कर बहुत सुकून मिलता है कि चलो वक्त रहते इन्होंने खुद को समय के मुताबिक ढाल लिया. वरना पहले तो मैं यही सोचसोच कर चिंता से मरी जाती थी कि ‘मैं’ के फोबिया में कैद इस इंसान का मेरे बाद क्या होगा’’

आगंतुक महिला मेरा चेहरा देखती ही रह गई थीं. पर मुझे कोई हैरानी नहीं हुई. हां, मन जरूर कुछ महीने पहले की यादों मेंभटकने पर मजबूर हो गया था.  बेटा दीपक और बहू पुरवई सप्ताह भर का हनीमून मना कर लौटेथे और अगले दिन ही मुंबई अपने कार्यस्थल लौटने वाले थे. मैं बहू की विदाई की तैयारी कर रही थी कि तभी दीपक की कंपनी से फोन आ गया. उसे 4 दिनों के लिए प्रशिक्षण हेतु बेंगलुरु जाना था. ‘तो पुरवई को भी साथ ले जा’ मैं ने सुझाव रखा था.

‘मैं तो पूरे दिन प्रशिक्षण में व्यस्त रहूंगा. पुरू बोर हो जाएगी. पुरू, तुम अपने पापामम्मी के पास हो आओ. फिर सीधे मुंबई पहुंच जाना. मैं भी सीधा ही आऊंगा. अब और छुट्टी नहीं मिलेगी.’  ‘तुम रवाना हो, मैं अपना मैनेज कर लूंगी.’

दीपक चला गया. अब हम पुरवई के कार्यक्रम का इंतजार करने लगे. लेकिन यह जान कर हम दोनों ही चौंक पड़े कि पुरवई कहीं नहीं जा रहीथी. उस का 4 दिन बाद यहीं से मुंबई की फ्लाइट पकड़ने का कार्यक्रम था. ‘2 दिन तो आनेजाने में ही निकल जाएंगे. फिर इतने सालों से उन के साथ ही तो रह रही हूं. अब कुछ दिन आप के साथ रहूंगी. पूरा शहर भी देख लूंगी,’ बहू के मुंह से सुन कर मुझे अच्छा लगा था.

‘सुनिए, बहू जब तक यहां है, आप जरा शाम को जल्दी आ जाएं तो अच्छा लगेगा.’

‘इस में अच्छा लगने वाली क्या बात है मैं दोस्तों के संग मौजमस्ती करने या जुआ खेलने के लिए तो नहीं रुकता हूं. कालेज मेंढेर सारा काम होता है, इसलिए रुकता हूं.’

‘जानती हूं. पर अगर बहू शाम को शहर घूमने जाना चाहे तो’

‘कार घर पर ही है. उसे ड्राइविंग आती है. तुम दोनों जहां जाना चाहो चले जाना. चाबी पड़ोस में दे जाना.’

मनोहर भले ही मना कर गए थे लेकिन उन्हें शाम ठीक वक्त पर आया देख कर मेरा चेहरा खुशी से खिल उठा.  ‘चलिए, बहू को कहीं घुमा लाते हैं. कहां चलना चाहोगी बेटी’ मैं ने पुरवई से पूछा.

‘मुझे तो इस शहर का कोई आइडिया नहीं है मम्मा. बाहर निकलते हैं, फिर देख लेंगे.’

घर से कुछ दूर निकलते ही एक मेला सा लगा देख पुरवई उस के बारे में पूछ बैठी, ‘यहां चहलपहल कैसी है’

‘यह दीवाली मेला है,’ मैं ने बताया.

‘तो चलिए, वहीं चलते हैं. बरसों से मैं ने कोई मेला नहीं देखा.’

मेले में पहुंचते ही पुरवई बच्ची की तरह किलक उठी थी, ‘ममा, पापा, मुझे बलून पर निशाना लगाना है. उधर चलते हैं न’ हम दोनों का हाथ पकड़ कर वह हमें उधर घसीट ले गई थी. मैं तो अवाक् उसे देखती रह गईथी. उस का हमारे संग व्यवहार एकदम बेतकल्लुफ था. सरल था, मानो वह अपने मम्मीपापा के संग हो. मुझे तो अच्छा लग रहाथा. लेकिन मन ही मन मैं मनोहर से भय खा रही थी कि वे कहीं उस मासूम को झिड़क न दें. उन की सख्तमिजाज प्रोफैसर वाली छवि कालेज में ही नहीं घर पर भी बनी हुईथी.

पुरवई को देख कर लग रहा था मानो वह ऐसे किसी कठोर अनुशासन की छांव से कभी गुजरी ही न हो. या गुजरी भी हो तो अपने नाम के अनुरूप उसे एक झोंके से उड़ा देने की क्षमता रखती हो. बेहद स्वच्छंद और आधुनिक परिवेश में पलीबढ़ी खुशमिजाज उन्मुक्त पुरवई का अपने घर में आगमन मुझेठंडी हवा के झोंके सा एहसास करा रहा था. पलपल सिहरन का एहसास महसूस करते हुए भी मैं इस ठंडे उन्मुक्त एहसास कोभरपूर जी लेना चाह रही थी.

पुरवई की ‘वो लगा’ की पुकार के साथ उन्मुक्त हंसी गूंजी तो मैं एकबारगी फिर सिहर उठी थी. हड़बड़ा कर मैं ने मनोहर की ओर दृष्टि दौड़ाई तो चौंक उठी थी. वे हाथ में बंदूक थामे, एक आंख बंद कर गुब्बारों पर निशाने पर निशाना लगाए जा रहे थे और पुरवई उछलउछल कर ताली बजाते हुए उन का उत्साहवर्द्धन कर रही थी. फिर यह क्रम बदल गया. अब पुरवई निशाना साधने लगी और मनोहर ताली बजा कर उस का उत्साहवर्द्धन करने लगे. मुझे हैरत से निहारते देख वे बोल उठे, ‘अच्छा खेल रही है न पुरवई’

बस, उसीक्षण से मैं ने भी पुरवई को बहू कहना छोड़ दिया. रिश्तों की जिस मर्यादा को जबरन ढोए जा रही थी, उस बोझ को परे धकेल एकदम हलके हो जाने का एहसास हुआ. फिर तो हम ने जम कर मेले का लुत्फ उठाया. कभी चाट का दोना तो कभी फालूदा, कभी चकरी तो कभी झूला. ऐसा लग रहा था मानो एक नई ही दुनिया में आ गए हैं. बर्फ का गोला चाटते मनोहर को मैं ने टहोका मारा, ‘अभी आप को कोई स्टूडेंट या साथी प्राध्यापक देख ले तो’

मनोहर कुछ जवाब देते इस से पूर्व पुरवई बोल पड़ी, ‘तो हम कोई गलत काम थोड़े ही कर रहे हैं. वैसे भी इंसान को दूसरों के कहने की परवा कम ही करनी चाहिए. जो खुद को अच्छा लगे वही करना चाहिए. यहां तक कि मैं तो कभी अपने दिल और दिमाग में संघर्ष हो जाता है तो भी अपने दिल की बात को ज्यादा तवज्जुह देती हूं. छोटी सी तो जिंदगी मिली है हमें, उसे भी दूसरों के हिसाब से जीएंगे तो अपने मन की कब करेंगे’

हम दोनों उसे हैरानी से ताकते रह गए थे. कितनी सीधी सी फिलौसफी है एक सरस जिंदगी जीने की. और हम हैं कि अनेक दांवपेंचों में उसे उलझा कर एकदम नीरस बना डालते हैं. पहला दिन वाकई बड़ी मस्ती में गुजरा. दूसरे दिन हम ने उन की शादी की फिल्म देखने की सोची. 2 बार देख लेने के बावजूद हम दोनों का क्रेज कम नहीं हो रहा था. लेकिन पुरवई सुनते ही बिदक गई. ‘बोर हो गई मैं तो अपनी शादी की फिल्म देखतेदेखते… आज आप की शादी की फिल्म देखते हैं.’

‘हमारी शादी की पर बेटी, वह तो कैसेट में है जो इस में चलती नहीं है,’ मैं ने समस्या रखी.

‘लाइए, मुझे दीजिए,’ पुरवई कैसेट ले कर चली गई और कुछ ही देर में उस की सीडी बनवा कर ले आई. उस के बाद जितने मजे ले कर उस ने हमारी शादी की फिल्म देखी उतने मजे से तो अपनी शादी की फिल्म भी नहीं देखीथी. हर रस्म पर उस के मजेदार कमेंट हाजिर थे.

‘आप को भी ये सब पापड़ बेलने पड़े थे…ओह, हम कब बदलेंगे…वाऊ पापा, आप कितने स्लिम और हैंडसम थे… ममा, आप कितना शरमा रही थीं.’

सच कहूं तो फिल्म से ज्यादा हम ने उस की कमेंटरी को एंजौय किया, क्योंकि उस में कहीं कोई बनावटीपन नहीं था. ऐसा लग रहा था कमेंट उस की जबां से नहीं दिल से उछलउछल कर आ रहे थे. अगले दिन मूवी, फिर उस के अगले दिन बिग बाजार. वक्त कैसे गुजर रहा था, पता ही नहीं चल रहाथा.  अगले दिन पुरवई की फ्लाइट थी. दीपक मुंबई पहुंच चुका था. रात को बिस्तर पर लेटी तो आंखें बंद करने का मन नहीं हो रहा था,क्योंकि जागती आंखों से दिख रहा सपना ज्यादा हसीन लग रहा था. आंखें बंद कर लीं और यह सपना चला गया तो पास लेटे मनोहर भी शायद यही सोच रहे थे. तभी तो उन्होंने मेरी ओर करवट बदली और बोले, ‘कल पुरवई चली जाएगी. घर कितना सूना लगेगा 4 दिनों में ही उस ने घर में कैसी रौनक ला दी है मैं खुद अपने अंदर बहुत बदलाव महसूस कर रहा हूं्…जानती हो तनु, बचपन में  मैं ने घर में बाबूजी का कड़ा अनुशासन देखा है. जब वे जोर से बोलने लगते थे तो हम भाइयों के हाथपांव थरथराने  लगते थे.

‘बड़े हुए, शादी हुई, बच्चे हो जाने के बाद तक मेरे दिलोदिमाग पर उन का अनुशासन हावी रहा. जब उन का देहांत हुआ तो मुझे लगा अब मैं कैसे जीऊंगा क्योंकि मुझे हर काम उन से पूछ कर करने की आदत हो गईथी. मुझे पता ही नहीं चला इस दरम्यान कब उन का गुस्सा, उन की सख्ती मेरे अंदर समाविष्ट होते चले गए थे. मैं धीरेधीरे दूसरा बाबूजी बनता चला गया. जिस तरह मेरे बचपन के शौक निशानेबाजी, मूवी देखना आदि दम तोड़ते चले गए थे ठीक वैसे ही मैं ने दीपक के, तुम्हारे सब के शौक कुचलने का प्रयास किया. मुझे इस से एक अजीब आत्म- संतुष्टि सी मिलती थी. तुम चाहो तो इसे एक मानसिक बीमारी कह सकती हो. पर समस्या बीमारी की नहीं उस के समाधान की है.

‘पुरवई ने जितनी नरमाई से मेरे अंदर के सोए हुए शौक जगाए हैं और जितने प्यार से मेरे अंदर के तानाशाह को घुटने टेकने पर मजबूर किया है, मैं उस का एहसानमंद हो गया हूं. मैं ‘मैं’ के फोबिया से बाहर निकल कर खुली हवा में सांस ले पा रहा हूं. सच तो यह है तनु, बंदिशें मैं ने सिर्फ दीपक और तुम पर ही नहीं लगाईथीं, खुद को भी वर्जनाओं की जंजीरों में जकड़ रखा था. पुरवई से भले ही यह सब अनजाने में हुआ हैक्योंकि उस ने मेरा पुराना रूप तो देखा ही नहीं है, लेकिन मैं अपने इस नए रूप से बेहद प्यार करने लगा हूं और तुम्हारी आंखों मेंभी यह प्यार स्पष्ट देख सकता हूं.’

‘मैं तो आप से हमेशा से ही प्यार करती आ रही हूं,’ मैं ने टोका.

‘वह रिश्तों की मर्यादा में बंधा प्यार था जो अकसर हर पतिपत्नी में देखने को मिल जाता है. लेकिन इन दिनों मैं तुम्हारी आंखों में जो प्यार देख रहा हूं, वह प्रेमीप्रेमिका वाला प्यार है, जिस का नशा अलग ही है.’

‘अच्छा, अब सो जाइए. सवेरे पुरवई को रवाना करना है.’

मैं ने मनोहर को तो सुला दिया लेकिन खुद सोने सेडरने लगी. जागती आंखों से देख रही इस सपने को तो मेरी आंखें कभी नजरों से ओझल नहीं होने देना चाहेंगी. शायद मेरी आंखों में अभी कुछ और सपने सजने बाकी थे.  पुरवई को विदा करने के चक्कर में मैं  हर काम जल्दीजल्दी निबटा रही थी. भागतेदौड़ते नहाने घुसी तो पांव फिसल गया और मैं चारोंखाने चित जमीन पर गिर गई. पांव में फ्रैक्चर हो गया था. मनोहर और पुरवई मुझे ले कर अस्पताल दौड़े. पांव में पक्का प्लास्टर चढ़ गया. पुरवई कीफ्लाइट का वक्त हो गया था. मगर  वह मुझे इस हाल में छोड़ कर जाने को तैयार नहीं हो रही थी. उस ने दीपक को फोन कर के सब स्थिति बता दी. साथ ही अपनी टिकट भी कैंसल करवा दी. मुझे बहुत दुख हो रहा था.

‘मेरी वजह से सब चौपट हो गया. अब दोबारा टिकट बुक करानी होगी. दीपक अलग परेशान होगा. डाक्टर, दवा आदि पर भी कितना खर्च हो गया. सब मेरी जरा सी लापरवाही की वजह से…घर बैठे मुसीबत बुला ली मैं ने…’

‘आप अपनेआप को क्यों कोस रही हैं ममा यह तो शुक्र है जरा से प्लास्टर से ही आप ठीक हो जाएंगी. और कुछ हो जाता तो रही बात खर्चे की तो यदि ऐसे वक्त पर भी पैसा खर्च नहीं किया गया तो फिर वह किस काम का यदि आप के इलाज में कोई कमी रह जाती, जिस का फल आप को जिंदगी भर भुगतना पड़ता तो यह पैसा क्या काम आता हाथपांव सलामत हैं तो इतना पैसा तो हम चुटकियों में कमा लेंगे.’

उस की बातों से मेरा मन वाकई बहुत हल्का हो गया. पीढि़यों की सोच का टकराव मैं कदमकदम पर महसूस कर रही थी. नई पीढ़ी लोगों के कहने की परवा नहीं करती. अपने दिल की आवाज सुनना पसंद करती है. पैसा खर्च करते वक्त वह हम जैसा आगापीछा नहीं सोचती क्योंकि वह इतना कमाती है कि खर्च करना अपना हक समझती है.  घर की बागडोर दो जोड़ी अनाड़ी हाथों में आ गईथी. मनोहर कोघर के कामों का कोई खास अनुभव नहीं था. इमरजेंसी में परांठा, खिचड़ी आदि बना लेतेथे. उधर पुरवई भी पहले पढ़ाई और फिर नौकरी में लग जाने के कारण ज्यादा कुछ नहीं जानती थी. पर इधर 4 दिन मेरे साथ रसोई में लगने से दाल, शक्कर के डब्बे तो पता चले ही थे साथ ही सब्जी, पुलाव आदि में भी थोड़ेथोड़े हाथ चलने लग गए थे. वरना रसोई की उस की दुनिया भी मैगी, पास्ता और कौफी तक ही सीमित थी. मुझ से पूछपूछ कर दोनों ने 2 दिन पेट भरने लायक पका ही लिया था. तीसरे दिन खाना बनाने वाली बाई का इंतजाम हो गया तो सब ने राहत की सांस ली. लेकिन इन 2 दिनों में ही दोनों ने रसोई को अच्छीखासी प्रयोगशाला बना डालाथा. अब जबतब फोन पर उन प्रयोगों को याद कर हंसी से दोहरे होते रहते हैं.

तीसरे दिन दीपक भी आ गया था. 2 दिन और रुक कर वे दोनों चले गए थे. उन की विदाई का दृश्य याद कर के आंखें अब भी छलक उठती हैं. दीपक तो पहले पढ़ाई करते हुए और फिर नौकरी लग जाने पर अकसर आताजाता रहता है पर विदाई के दर्द की जो तीव्र लहर हम उस वक्त महसूस कर रहे थे, वह पिछले सब अनुभवों से जुदा थी. ऐसा लग रहा था बेटी विदा हो कर, बाबुल की दहलीज लांघ कर दूर देश जा रही है. पुरवई की जबां पर यह बात आ भी गई थी, ‘जुदाई के ऐसे मीठे से दर्द की कसक एक बार तब उठी थी जब कुछ दिन पूर्व मायके से विदा हुई थी. तब एहसास भी नहीं था कि इतने कम अंतराल में ऐसा मीठा दर्द दोबारा सहना पड़ जाएगा.’

पहली बार मुझे पीढि़यों की सोच टकराती नहीं, हाथ मिलाती महसूस हो रही थी. भावनाओं के धरातल पर आज भी युवा प्यार के बदले प्यार देना जानते हैं और विरह के क्षणों में उन का भी दिल भर आता है.पुरवई चली गई. अब ठंडी हवा का हर झोंका घर में उस की उपस्थिति का आभास करा जाता है.

भोर का तारा

लेखिका-सवि शर्मा

अरे, 7 बज गए. हड़बड़ा कर उठी. पता ही न चला, कब नींद में अलार्म बंद कर दिया. कुछ भी समय पर नहीं हो पा रहा. 7 बजे तो आंख खुली है. अभी मनु को नाश्ता, खाना, तैयार करना है और 9 बजे निकलना है. कैसे करेगी, खुद को भी तैयार होना है.

मां के देहावसान के बाद खूबसूरत से खिलते जीवन में जैसे अचानक कोई तूफ़ान आ गया हो.

यह आंख भी जाने क्यों नहीं खुलती. आधे समय तो नींद में ही अलार्म बंद कर देती है. रोज़ ही औफ़िस को देर हो जाती है. जब तक सासुमां ज़िंदा थीं तो कभी ऐसा हुआ ही नहीं कि उसे औफ़िस की देर हुई हो. हमेशा प्रोजैक्ट समयसीमा से पहले ही पूरा कर देती थी. औफिस के विवाहित साथी उस से कई बार पूछते थे, कैसे कर पाती हो पूरा, छोटे बच्चे और गृहस्थी के साथ.

उसे भी बोध कहां था कि इन सब उपलब्धियों के पीछे मां का परोक्षरूप में सहयोग है. बस, सब की बात सुन गर्व से मुसकरा देती थी. जल्दी से उठी. मनु को दूध दिया, “मेरा राजा बेटा, अपनेआप दूध पिएगा.” “मम्मा, इस में तो बादाम भी नहीं हैं, दादी तो रोज़ बादाम देती थीं.”

“कोई बात नहीं, आज पी लो, कल ज़रूर बना दूंगी.” रुद्री को मन में बुरा लगा, रोज़ सोचती है मनु को कल से दूध में बादाम पीस कर देगी पर वह कल आ ही नहीं पाता. जल्दी से अपने कपड़े ले नहाने घुस गई वह.“अरे, यह क्या किया मनु बेटा, सारा दूध गिरा दिया?” वह नहा कर निकली तो देखा सारा दूध फ़र्श पर बिखरा था.

”मां, गिलास हाथ से फिसल गया.”“कोई बात नहीं. जा, फटाफट नहा कर आ जा, तौलिया लपेट कर आना. मैं कमरे में ही कपड़े पहना दूंगी.” “नहीं मां, आप ही नहलाओ.” “बेटा, इतवार को नहलाऊंगी, आज समय नहीं है.” “दादी, आप क्यों चली गईं?” और मनु रोने लगा, “मां के पास तो मेरे लिए समय ही नहीं है.”

5 साल के अबोध बच्चे को क्या पता कि दादी वहां गईं जहां से कोई लौट कर नहीं आता. जैसेतैसे हवा की रफ़्तार से रुद्री ने नाश्ता, लंच तैयार किया. मनु को बिना नहलाए ही स्कूल के लिए तैयार कर दिया. अब तो अकसर ही यही होता है. कभी अपना नाश्ता छूटता है, कभी मनु का नहाना. एक गहन पीड़ा से आंखों में नमी तैर गई. रुद्री का दिल रोने को हो गया, उसे याद आने लगा.

सुबहसवेरे ही नल से पानी गिरने की आवाज़ कर्णभेदी सी लगती. ऐसा लगता जैसे स्वप्नों की झील में किसी ने बड़ा सा पत्थर फेंक दिया हो. रोज़ का यही क्रम. सुबह की नींद टूटने से कितना खीझती थी. जाने क्यों इस समय की नींद भी इतनी प्यारी लगती है, सौ सुख भी बलिहारी है. तब तो ऐसा महसूस होता था कि अभी सो ले, बाद में जो होगा देखा जाएगा. और सास भी थोड़ी देर बाद नहीं नहा सकतीं. सुबह ही नहाना जरूरी है.

शांति भंग हो गई थी रुद्री की, आंख खुली. अरे, अभी तो साढ़े चार ही बजे हैं. तकिया कान के ऊपर रख करवट बदल लेट गई. मन ही मन कुसमुसाई, ‘क्या दो पल की नींद भी सुकून की नहीं मिल सकती.’ अभी गहरी झपकी ही आई थी कि 5 साल के बेटे मनु के रोने की आवाज़ आई.

उसे थपकासुला, फिर नींद के इंतज़ार में आंखें मूंदी. पर नींद तो जैसे कह रही हो, जा, मैं नहीं आती. और अंगूठा दिखा इतराती जाने किस ख़्वाब के पीछे जा छिप गई.

एक वह समय था जब चाहे जितना भी सो लो, न शादी न घर का झंझट. और अब कभी मनु उठा देता, कभी सुबह ही सास की खटरपटर. और नींद मुझे चिढ़ा भाग जाती. ‘अरे रुद्री, क्या बात है बेटा, तुम थकी सी लग रही हो?’ एक दिन सास ने उस का उनींदी चेहरा देखा तो पूछा.

यह सुनते ही रुद्री के मुंह से अचानक निकल गया, ‘मां, इतनी सुबह आप उठती हो तो मेरी भी नींद खुल जाती है. रात में भी औफ़िस का काम करते देर हो जाती है. जल्दी नहीं सो पाती. नींद पूरी न होने से दिनभर थकान रहती है.’ अरे, मैं ने तो ध्यान ही नहीं दिया. बेचारी रुद्री सारे दिन काम करती है और फिर मेरे सुबह के क्रियाकलापों से उस की नींद पूरी नहीं हो पाती. उस की सास ने मन ही मन सोचा.

मां ने आगे पूरी सतर्कता से उस की नींद का ध्यान रखा. सासुमां ने अपने उठने का समय 4 बजे के बजाय 5 बजे कर दिया था. पानी भी रात को ही बालटियों में भर लेती थीं. रुद्री अब आराम से नींद पूरी कर उठती. कितनी संवेदनशील थीं मां, हर बात को कितनी जल्दी समझ जाती थीं. और एक मैं थी उन के इतने लाड़प्यार को बोझ समझती रही, जो जीवन की सब से बड़ी उपलब्धि थी.

वैसे, जब रुद्री फ़्री होती, सास के साथ घूमने जाती या उन की मनपसंद की पिक्चर देखती. इतना सब सोचने में ही 6 बज गए. नींद न आई. और त्यागना पड़ा बिस्तर का मोह. खुद को भी दफ़्तर के लिए तैयार होना है पति के साथ निकलना जो पड़ता है. दिन भी कैसे भागते हैं. कब सोमवार, फिर जब इतवार.

एक तसवीर यादों की फिर उभर आई. ‘अम्मा, आप क्या कर रही हो?’ मनु ने दादी को रसोई में काम करते देखा तो बोला. ‘अपने छोटे से मनु को खूब ताकतवर बनाने के लिए बादाम वाला दूध बना रही हूं.’ ‘मम्मा कहां हैं?’

‘मम्मा नहाने गई हैं.’ ‘आजा, जल्दी आजा मेरे पास, मैं गिनती गिनती हूं और आंख बंद करती हूं. जल्दी से यह दूध ख़त्म कर लो.’ ‘नहीं, मुझे नहीं पीना.’ ‘अच्छा, आ मैं तुझे चंदा मामा वाला गाना सुनाऊंगी.’ ‘सच, दादी,’ इतना कह कर मनु दादी की गोद में आ गया. रुद्री नहा कर निकली. मनु को सास की गोदी में दूध पीते देखा तो मन ही मन उन के प्यार को देख मन श्रद्धा से झुक गया. इस उम्र में भी अपने आशीर्वाद के हाथ से सम्बल देती रहती हैं.

कितना समर्पण था उन में. कितनी बार मनु को सास के पास छोड़ पार्टियों/शादियों में गई है वह. आज सोच सास के साथ चल रही थी रुद्री की. कितना अजीब है जीवन भी, जब कोई सामने होता है, हम उस की सार्थकता नहीं समझते. बाद में समझ आती है.

सास थी तो आराम से नाश्ता, लंच बना पैक करती, पति को भी देती. सास का मनपसंद नाश्ता बना कर रख देती. मनु की तो चिंता ही नहीं रहती थी. उस के लिए उस की दादी ही गरम बनाती हैं. ‘बाएं मां बाएं मनु.’ ‘अरे रुक जा रुद्री, ले ये फल रख लो, तुम दोनों खा लेना.’ ‘मां, आप भी न, हर बात पर ऐसे करती हो जैसे अभी भी हम छोटे बच्चे ही हैं,’ एक चिड़चिड़ाहट का भाव चेहरे पर तैर गया.

सोचने लगी, क्यों नहीं अब भी ये फ़्री छोड़तीं. अब हम कोई छोटे बच्चे तो हैं नहीं. पर दूसरे ही पल महसूस हुआ की वह खुद भी तो मां है, उसे अपने छोटे बच्चे के खानेपीने की चिंता रहती है. सास भी तो मां है. जल्दी से सास के हाथ से फल ले अपना व पति का लंचबौक्स संभाले दोनों को हाथ हिलाते रुद्री व उस का पति औफिस निकल गए.

रुद्री को मां के रहते मनु की कोई चिंता ही नहीं होती थी. सास की गोद में बच्चे को छोड़ कितनी निश्चिंत हो जाती है. क्या अगर मां न होतीं तो इतनी बेफ़िक्री से औफ़िस जा पाती? और प्रेम उन का केवल पोते के लिए ही नहीं, वे मेरी भी चिंता करतीं. औफ़िस से आ कर कुछ खाया या नहीं, सासुमां ही तो पूछती थीं. फ़ास्ट फ़ूड की जगह कितनी बार पौष्टिक खाना खुद ही बना देती थीं. रुद्री को आज उन का प्यारदुलार सब याद आ रहा है जो उस समय बोझ लगता था, बातें पुराने जमाने की लगती थीं.

अब कितनी बार कुछ और न बना पाने के कारण फ़ास्ट फ़ूड खा कर उस का पेट ख़राब हो जाता है. मां की आंखों में वात्सल्य का लहलहाता सागर याद आ रहा है. यादें लड़ियां सी पिरोती एक के बाद एक सामने आ रही हैं. ‘रुद्री, मनु ने उलटी कर दी, पेट में बहुत दर्द भी है,’ सास का फ़ोन था. ‘मां, फिर आप ने ज़्यादा खिलाया होगा. कितनी बार मना किया, थोड़ा खिलाया करो, पर आप मानती ही नहीं,’ झुंझला पड़ी रुद्री. ग़ुस्सा आने लगा मां पर. और फ़ोन काट दिया. फिर उस ने पति को फ़ोन कर मनु को दिखाने के लिए बोल दिया.

‘मां, अब मनु कैसा है?’ मनु के पापा ने घर चलने के पहले फ़ोन किया. ‘अब तो ठीक है.’ ‘कोई बात नहीं मां. आप परेशान न हों. अगर कोई दिक़्क़त हो, आप बता देना, हम आ जाएंगे,’ कह कर मनु के पापा निश्चिंत हो गए. ‘आप चले गए क्या मनु को दिखाने?’ रुद्री ने पति को फ़ोन किया, उस का औफ़िस दूर था. ‘नहीं, अब मनु ठीक है. मां से बात हो गई है.’‘ये मां भी न, हर छोटी बात पर परेशान हो जाती हैं, हमें भी करती हैं.’ ‘अरे रुद्री, ये बड़े लोग बहुत प्यार करते हैं, इसीलिए चिंता कुछ ज़्यादा ही करते हैं.’

‘ह्म्म्म्म्म्म…’ लापरवाही से कह रुद्री ने फ़ोन रख दिया. ‘आज तुम लोग औफ़िस से लेट हो गए, सब ठीक तो है न?’ घर में औफ़िस से घुसते ही सास ने कहा. आज रुद्री और उस का पति दोनों कुछ ज़्यादा ही लेट हो गए थे. ‘हां मां, हज़ार काम होते हैं, आप को हर बात कैसे बताएं,’ रुद्री ने रुखाई से जवाब दिया. ‘बेटा, और कोई बात नहीं, चिंता हो जाती है. तुम लोग, बस, फ़ोन कर दिया करो.’ ‘आप चिंता न किया करें, हम अपना ध्यान रख सकते हैं.’

लेकिन बाद में रुद्री ध्यान रखने लगी. वह सोचने लगी, बड़ों की चिंता करना स्वाभाविक है.कुछ समय बाद सास और रुद्री एकदूसरे की भावनाओं को समझने लगीं. एक खूबसूरत रिश्ता बन गया रुद्री और सास में. कितनी परिपक्व सोच थी मां की. वास्तव में सासुमां, हां, मां ही कहना ठीक होगा. इतना प्यारदुलार जो वे देती रहीं और तब जब वे जीवित थीं, मैं जीवन की आपाधापी में महसूस ही नहीं कर पाई. वटवृक्ष सी पूरी गृहस्थी संभाले थीं वे.

फ़िस में काम बहुत ज़्यादा था, थक गई थी. सास होतीं तो तबीयत पूछतीं, गरम दूध देतीं. हर पल ख़याल रखना, कैसे सुकून से घऔर की देखभाल, मनु का ध्यान सब रखती थीं. मनु भी खूब ख़ुश रहता था, कभी औफ़िस को भी लेट नहीं हुई. उन के रहते कितने प्रमोशन मिले. मां तो जैसे भोर का तारा थीं, जिन का प्रकाश घर में हमेशा दैदीप्यमान रहता था. घर प्यारदुलार से रोशन रहता था. आज आप की बहुत याद आ रही है मां, तब मैं आप के कुछ कहने पर चिढ़ जाती थी.

न जाने कब सास को याद करते रुद्री की आंख लग गई. सुबह आंख खुली. खिड़की से बाहर निगाह गई. देखा, एक भोर का तारा टिमटिमा कर जैसे कुछ कह रहा हो, बिलकुल उस की सास की तरह. ऐसे ही सुबह उठ जाती थीं. आज आप नहीं हो, तो आप का प्यारदुलार समझ आता है. आप तो आशीर्वाद हो मां… “अरे, तुम रो रही हो,” तभी पति की नींद भी अचानक खुल गई.

“देखो रुद्र, वह आसमान में भोर का तारा. वह हमारी मां ही हैं, कहते हैं अच्छे इंसान दुनिया से जा कर आसमान में तारे बन जाते हैं. देखो, कैसे झांक कर हमें आश्वस्त कर रही हैं मानो कह रही हों वे हमारे साथ ही हैं.” “आज मां बहुत याद आ रही हैं. उन के रहते जीवन कितना आसान था. अपनी छत्रछाया से सबकुछ संभाले हुए थीं. किंतु आज कितना मुश्किल हो रहा है,” रुद्री ने ऊपर आसमान में तारे को नम आंखों से देखा. उसे लगा, मां मुसकरा कर आशीर्वाद दे रही हैं.

अधूरा सा दिल : कैसा हो गया था करुणा का मिजाज

‘‘आप को ऐक्साइटमैंट नहीं हो रही है क्या, मम्मा? मुझे तो आजकल नींद नहीं आ रही है, आय एम सो सुपर ऐक्साइटेड,’’ आरुषि बेहद उत्साहित थी. करुणा के मन में भी हलचल थी. हां, हलचल ही सही शब्द है इस भावना हेतु, उत्साह नहीं. एक धुकुरपुकुर सी लगी थी उस के भीतर. एक साधारण मध्यवर्गीय गृहिणी, जिस ने सारी उम्र पति की एक आमदनी में अपनी गृहस्थी को सुचारु रूप से चलाने में गुजार दी हो, आज सपरिवार विदेशयात्रा पर जा रही थी.

पिछले 8 महीनों से बेटा आरव विदेश में पढ़ रहा था. जीमैट में अच्छे स्कोर लाने के फलस्वरूप उस का दाखिला स्विट्जरलैंड के ग्लायन इंस्टिट्यूट औफ हायर एजुकेशन में हो गया था. शुरू से ही आरव की इच्छा थी कि वह एक रैस्तरां खोले. स्वादिष्ठ और नएनए तरह के व्यंजन खाने का शौक सभी को होता है, आरव को तो खाना बनाने में भी आनंद आता था.

आरव जब पढ़ाई कर थक जाता और कुछ देर का ब्रेक लेता, तब रसोई में अपनी मां का हाथ बंटाने लगता, कहता, ‘खाना बनाना मेरे लिए स्ट्रैसबस्टर है, मम्मा.’ फिर आगे की योजना बनाने लगता, ‘आजकल स्टार्टअप का जमाना है. मैं अपना रैस्तरां खोलूंगा.’

ग्लायन एक ऐसा शिक्षा संस्थान है जो होटल मैनेजमैंट में एमबीए तथा एमएससी की दोहरी डिगरी देता है. साथ ही, दूसरे वर्ष में इंटर्नशिप या नौकरी दिलवा देता है. जीमैट के परिणाम आने के बाद पूरे परिवार को होटल मैनेजमैंट की अच्छी शिक्षा के लिए संस्थानों में ग्लायन ही सब से अच्छा लगा और आरव चला गया था दूर देश अपने भविष्यनिर्माण की नींव रखने.

अगले वर्ष आरव अपनी इंटर्नशिप में व्यस्त होने वाला था. सो, उस ने जिद कर पूरे परिवार से कहा कि एक बार सब आ कर यहां घूम जाओ, यह एक अलग ही दुनिया है. यहां का विकास देख आप लोग हैरान हो जाओगे. उस के कथन ने आरुषि को कुछ ज्यादा ही उत्साहित कर दिया था.

रात को भोजन करने के बाद चहलकदमी करने निकले करुणा और विरेश इसी विषय पर बात करने लगे, ‘‘ठीक कह रहा है आरव, मौका मिल रहा है तो घूम आते हैं सभी.’’

‘‘पर इतना खर्च? आप अकेले कमाने वाले, उस पर अभी आरव की पढ़ाई, आरुषि की पढ़ाई और फिर शादियां…’’ करुणा जोड़गुना कर रही थी.

‘‘रहने का इंतजाम आरव के कमरे में हो जाएगा और फिर अधिक दिनों के लिए नहीं जाएंगे. आनाजाना समेत एक हफ्ते का ट्रिप बना लेते हैं. तुम चिंता मत करो, सब हो जाएगा,’’ विरेश ने कहा.

आज सब स्विट्जरलैंड के लिए रवाना होने वाले थे. कम करतेकरते भी बहुत सारा सामान हो गया था. क्या करते, वहां गरम कपड़े पूरे चाहिए, दवा बिना डाक्टर के परचे के वहां खरीदना आसान नहीं. सो, वह रखना भी जरूरी है. फिर बेटे के लिए कुछ न कुछ बना कर ले जाने का मन है. जो भी ले जाने की इजाजत है, वही सब रखा था ताकि एयरपोर्ट पर कोई टोकाटाकी न हो और वे बिना किसी अड़चन के पहुंच जाएं.

हवाईजहाज में खिड़की वाली सीट आरुषि ने लपक ली. उस के पास वाली सीट पर बैठी करुणा अफगानिस्तान के सुदूर फैले रेतीले पहाड़मैदान देखती रही. कभी बादलों का झुरमुट आ जाता तो लगता रुई में से गुजर रहे हैं, कभी धरती के आखिर तक फैले विशाल समुद्र को देख उसे लगता, हां, वाकईर् पृथ्वी गोल है. विरेश अकसर झपकी ले रहे थे, किंतु आरुषि सीट के सामने लगी स्क्रीन पर पिक्चर देखने में मगन थी. घंटों का सफर तय कर आखिर वो अपनी मंजिल पर पहुंच गए. ग्रीन चैनल से पार होते हुए वे अपने बेटे से मिले जो उन के इंतजार में बाहर खड़ा था. पूरे 8 महीनों बाद पूरा परिवार इकट्ठा हुआ था.

आरव का इंस्टिट्यूट कैंपस देख मन खुश हो गया. ग्लायन नामक गांव के बीच में इंस्टिट्यूट की शानदार इमारत पहाड़ की चोटी पर खड़ी थी. पहाड़ के नीचे बसा था मोंट्रियू शहर जहां सैलानी सालभर कुदरती छटा बटोरने आते रहते हैं. सच, यहां कुदरत की अदा जितनी मनमोहक थी, मौसम उतना ही सुहावना. वहीं फैली थी जिनीवा झील. उस का गहरा नीला पानी शांत बह रहा था. झील के उस पार स्विस तथा फ्रांसीसी एल्प्स के पहाड़ खड़े थे. घनी, हरी चादर ओढ़े ये पहाड़, बादलों के फीते अपनी चोटियों में बांधे हुए थे. इतना खूबसूरत नजारा देख मन एकबारगी धक सा कर गया.

हलकी धूप भी खिली हुई थी पर फिर भी विरेश, करुणा और आरुषि को ठंड लग रही थी. हालांकि यहां के निवासियों के लिए अभी पूरी सर्दी शुरू होने को थी. ‘‘आप को यहां ठंड लगेगी, दिन में 4-5 और रात में 5 डिगरी तक पारा जाने लगा है,’’ आरव ने बताया. फिर वह सब को कुछ खिलाने के लिए कैफेटेरिया ले गया. फ्रैश नाम के कैफेटेरिया में लंबी व सफेद मेजों पर बड़बड़े हरे व लाल कृत्रिम सेबों से सजावट की हुई थी. भोजन कर सब कमरे में आ गए. ‘‘वाह भैया, स्विट्जरलैंड की हौट चौकलेट खा व पेय पी कर मजा आ गया,’’ आरुषि चहक कर कहने लगी.

अगली सुबह सब घूमने निकल गए. आज कुछ समय मोंट्रियू में बिताया. साफसुथरीचौड़ी सड़कें, न गाडि़यों की भीड़ और न पोंपों का शोर. सड़क के दोनों ओर मकानों व होटलों की एकसार लाइन. कहीं छोटे फौआरे तो कहीं खूबसूरत नक्काशी किए हुए मकान, जगहजगह फोटो ख्ंिचवाते सब स्टेशन पहुंच गए.

‘‘स्विट्जरलैंड आए हो तो ट्रेन में बैठना तो बनता ही है,’’ हंसते हुए आरव सब को ट्रेन में इंटरलाकेन शहर ले जा रहा था. स्टेशन पहुंचते ही आरुषि पोज देने लगी, ‘‘भैया, वो ‘दिलवाले दुलहनिया ले जाएंगे’ वाले टे्रन पोज में मेरी फोटो खींचो न.’’ ट्रेन के अंदर प्रवेश करने पर दरवाजे खुद ही बंद हो गए. अंदर बहुत सफाई थी, आरामदेह कुशनदार सीटें थीं, किंतु यात्री एक भी न था. केवल यही परिवार पूरे कोच में बैठा था. कारण पूछने पर आरव ने बताया, ‘‘यही तो इन विकसित देशों की बात है. पूरा विकास है, किंतु भोगने के लिए लोग कम हैं.’’

रास्तेभर सब यूरोप की अनोखी वादियों के नजारे देखते आए. एकसार कटी हरी घास पूरे दिमाग में ताजा रंग भर रही थी. वादियों में दूरदूर बसा एकएक  घर, और हर घर तक पहुंचती सड़क. अकसर घरों के बाहर लकडि़यों के मोटेमोटे लट्ठों का अंबार लगा था और घर वालों की आवाजाही के लिए ट्रकनुमा गाडि़यां खड़ी थीं. ऊंचेऊंचे पहाड़ों पर गायबकरियां और भेड़ें हरीघास चर रही थीं.

यहां की गाय और भेंड़ों की सेहत देखते ही बनती है. दूर से ऐसा प्रतीत होता है जैसे किसी ने पूरे पहाड़ पर सफेद रंग के गुब्बारे बिखरा दिए हों, पर पास आने पर मालूम होता है कि ये भेंड़ें हैं जो घास चरने में मगन हैं. रास्ते में कई सुरंगें भी आईं. उन की लंबाई देख सभी हैरान रह गए. कुछ सुरंगें तो 11 किलोमीटर तक लंबी थीं.

ढाई घंटे का रेलसफर तय कर सब इंटरलाकेन पहुंचे. स्टेशन पर उतरते ही देखा कि मुख्य चौक के एक बड़े चबूतरे पर स्विस झंडे के साथ भारतीय झंडा भी लहरा रहा है. सभी के चेहरे राष्ट्रप्रेम से खिल उठे. सड़क पर आगे बढ़े तो आरव ने बताया कि यहां पार्क में बौलीवुड के एक फिल्म निर्मातानिर्देशक यश चोपड़ा की एक मूर्ति है. यश चोपड़ा को यहां का ब्रैंड ऐंबैसेडर बनाया गया था. उन्होंने यहां कई फिल्मों की शूटिंग की जिस से यहां के पर्यटन को काफी फायदा हुआ.

सड़क पर खुलेआम सैक्स शौप्स भी थीं. दुकानों के बाहर नग्न बालाओं की तसवीरें लगी थीं. परिवार साथ होने के कारण किसी ने भी उन की ओर सीधी नजर नहीं डाली, मगर तिरछी नजरों से सभी ने उस तरफ देखा. अंदर क्या था, इस का केवल अंदाजा ही लगाया जा सकता है. दोनों संस्कृतियों में कितना फर्क है. भारतीय संस्कृति में तो खुल कर सैक्स की बात भी नहीं कर सकते, जबकि वहां खुलेआम सैक्स शौप्स मौजूद हैं.

दोपहर में सब ने हूटर्स पब में खाना खाने का कार्यक्रम बनाया. यह पब अपनी सुंदर वेट्रैस और उन के आकर्षक नारंगी परिधानों के लिए विश्वप्रसिद्ध है. सब ने अपनीअपनी पसंद बता दी किंतु करुणा कहने लगी, ‘‘मैं ने तो नाश्ता ही इतना भरपेट किया था कि खास भूख नहीं है.’’

अगले दिन सभी गृंडेलवाल्ड शहर को निकल गए. ऐल्प्स पर्वतों की बर्फीली चोटियों में बसा, कहीं पिघली बर्फ के पानी से बनी नीली पारदर्शी झीलें तो कहीं ऊंचे ऐल्पाइन के पेड़ों से ढके पहाड़ों का मनोरम दृश्य, स्विट्जरलैंड वाकई यूरोप का अनोखा देश है.

गृंडेलवाल्ड एक बेहद शांत शहर है. सड़क के दोनों ओर दुकानें, दुकानों में सुसज्जित चमड़े की भारीभरकम जैकेट, दस्ताने, मफलर व कैप आदि. एक दुकान में तो भालू का संरक्षित शव खड़ा था. शहर में कई स्थानों पर गाय की मूर्तियां लगी हैं. सभी ने जगहजगह फोटो खिंचवाईं. फिर एक छोटे से मैदान में स्कीइंग करते पितापुत्र की मूर्ति देखी. उस के नीचे लिखा था, ‘गृंडेलवाल्ड को सर्दियों के खेल की विश्व की राजधानी कहा जाता है.’

भारत लौटने से एक दिन पहले आरव ने कोऔपरेटिव डिपार्टमैंटल स्टोर ले जा कर सभी को शौपिंग करवाई. आरुषि ने अपने और अपने मित्रों के लिए काफी सामान खरीद लिया, मसलन अपने लिए मेकअप किट व स्कार्फ, दोस्तों के लिए चौकलेट, आदि. विरेश ने अपने लिए कुछ टीशर्ट्स और दफ्तर में बांटने के लिए यहां के खास टी बिस्कुट, मफिन आदि ले लिए. करुणा ने केवल गृहस्थी में काम आने वाली चीजें लीं, जैसे आरुषि को पसंद आने वाला हौट चौकलेट पाउडर का पैकेट, यहां की प्रसिद्ध चीज का डब्बा, बढि़या क्वालिटी का मेवा, घर में आनेजाने वालों के लिए चौकलेट के पैकेट इत्यादि.

‘‘तुम ने अपने लिए तो कुछ लिया ही नहीं, लिपस्टिक या ब्लश ले लो या फिर कोई परफ्यूम,’’ विरेश के कहने पर करुणा कहने लगी, ‘‘मेरे पास सबकुछ है. अब केवल नाम के लिए क्या लूं?’’

शौपिंग में जितना मजा आता है, उतनी थकावट भी होती है. सो, सब एक कैफे की ओर चल दिए. इस बार यहां के पिज्जा खाने का प्रोग्राम था. आरव और आरुषि ने अपनी पसंद के पिज्जा और्डर कर दिए. करुणा की फिर वही घिसीपिटी प्रतिक्रिया थी कि मुझे कुछ नहीं चाहिए. शायद उसे यह आभास था कि उस की छोटीछोटी बचतों से उस की गृहस्थी थोड़ी और मजबूत हो पाएगी.

अकसर गृहिणियों को अपनी इच्छा की कटौती कर के लगता है कि उन्होंने भी बिना कमाए अपनी गृहस्थी में योगदान दिया. करुणा भी इसी मानसिकता में उलझी अकसर अपनी फरमाइशों का गला घोंटती आई थी. परंतु इस बार उस की यह बात विरेश को अखर गई. आखिर सब छुट्टी मनाने आए थे, सभी अपनी इच्छापूर्ति करने में लगे थे, तो ऐसे में केवल करुणा खुद की लगाम क्यों खींच रही है?

‘‘करुणा, हम यहां इतनी दूर जिंदगी में पहली बार सपरिवार विदेश छुट्टी मनाने आए हैं. जैसे हम सब के लिए यह एक यादगार अनुभव होगा वैसे ही तुम्हारे लिए भी होना चाहिए. मैं समझता हूं कि तुम अपनी छोटीछोटी कटौतियों से हमारी गृहस्थी का खर्च कुछ कम करना चाहती हो. पर प्लीज, ऐसा त्याग मत करो. मैं चाहता हूं कि तुम्हारी जिंदगी भी उतनी ही खुशहाल, उतनी ही आनंदमयी हो जितनी हम सब की है. हमारी गृहस्थी को केवल तुम्हारे ही त्याग की जरूरत नहीं है. अकसर अपनी इच्छाओं का गला रेतती औरतें मिजाज में कड़वी हो जाती हैं. मेरी तमन्ना है कि तुम पूरे दिल से जिंदगी को जियो. मुझे एक खुशमिजाज पत्नी चाहिए, न कि चिकचिक करती बीवी,’’ विरेश की ये बातें सीधे करुणा के दिल में दर्ज हो गईं.

‘‘ठीक ही तो कह रहे हैं,’’ अनचाहे ही उस के दिमाग में अपने परिवार की वृद्धाओं की यादें घूमने लगीं. सच, कटौती ने उन्हें चिड़चिड़ा बना छोड़ा था. फिर जब संतानें पैसों को अपनी इच्छापूर्ति में लगातीं तब वे कसमसा उठतीं उन का जोड़ा हुआ पाईपाई पैसा ये फुजूलखर्ची में उड़ा रहे हैं. उस पर ज्यादती तो तब होती जब आगे वाली पीढि़यां पलट कर जवाब देतीं कि किस ने कहा था कटौती करने के लिए.

जिस काम में पूरा परिवार खुश हो रहा है, उस में बचत का पैबंद लगाना कहां उचित है? आज विरेश ने करुणा के दिल से कटौती और बेवजह के त्याग का भारी पत्थर सरका फेंका था.

लौटते समय भारतीय एयरपोर्ट पहुंच कर करुणा ने हौले से विरेश के कान में कहा, ‘‘सोच रही हूं ड्यूटीफ्री से एक पश्मीना शौल खरीद लूं अपने लिए.’’

‘‘ये हुई न बात,’’ विरेश के ठहाके पर आगे चल रहे दंपतियों का मुड़ कर देखना स्वाभाविक था.

आखिर पकड़ा गया गैंगस्टर लौरेंस बिश्नोई का भाई! सलमान के फैंस को मिली राहत

गैंगस्टर लौरेंस बिश्नोई आज किसी पहचान का मोहताज नहीं है. लौरेंस बिश्नोई इन दिनों खूब सुर्खियां बटोर रहा है और इस सुर्खियों की शुरुआत उस समय हुई जब उसके कहने पर बिश्‍नोई गैंग ने मशहूर पंजाबी सिंगर सिद्धू मूसे वाला की हत्या की. लौरेंस पिछले कुछ समय से गुजराज की साबरमती जेल में बंद है और जेल के अंदर से ही वह अपने पूरे गैंग को औप्रेट करता है.

लौरेंस बिश्नोई की गैंग में लगभग 700 से भी ज्यादा शूटर्स हैं जिन्हें वे जब चाहे तब किसी को भी मारने का आदेश देकर कोई भी घटना को अंजाम दे सकता है. पिछले कुछ दिनों से लौरेंस बिश्नोई और भी ज्यादा सुर्खियों में है जब से उसने बौलीवुड मेगास्टार सलमान खान को जान से मारने की धमकी दी है. आपको बता दें कि एक्टर सलमान खान को धमकी देने के बाद से मुंबई ट्रैफिक पुलिस के पास लौरेंस के भाई होने का दावा कर रहे एक इंसान के लगातार धमकी भरे मैसेज आ रहे थे कि या तो सलमान खान 5 करोड़ रूपए दे या फिर बिश्नोई समाज के मंदिर में आकर काले हिरण का शिकार करने के लिए माफी मांगे.

इन सब के बीच सलमान खान और उनका पूरा परिवार काफी डरा हुआ दिखाई दे रहा था और यह डर तब और ज्यादा बढ़ा जब लौरेंस बिश्नोई ने सलमान खान के खास दोस्त और एनसीपी नेता बाबा सिद्दीकी की हत्या करवाई थी. इस हत्या के बाद सलमान खान और उनका परिवार काफी ज्यादा घबरा गया था और इसी के चलते एक्टर ने ना सिर्फ अपनी सिक्योरिटी बढ़ाई बल्कि अपने लिए दुबई से स्पैशल 2 करोड़ की बुलेट प्रूफ गाड़ी भी इम्पोर्ट करवाई.

आपको जान कर खुशी होगी कि जो व्यक्ति मुंबई ट्रैफिक पुलिस को लगातार धमकी भरे मैसेज भेज रहा था उसे कर्नाटक से अरैस्ट किया जा चुका है और उसका नाम भीखाराम बताया जा रहा है. दरअसल, लौरेंस बिश्नोई के भाई होने का दावा कर रहे इस शख्स का लौरेंस और बिश्नोई समाज से दूर दूर तक कोई लेना-देना नहीं है. भीखाराम लोहे की जालियां बनाने का काम करता है और उसने यह सब सिर्फ सुर्खियां बटोरने के लिए किया था.

यह शख्स राजस्थान के जालोर जिले के सांचौर कस्बे का रहने वाला है और वह कर्नाटक 1 महीने पहले ही काम करने आया था. इस खबर के बाद से सलमान खान के फैंस को काफी राहत मिली है लेकिन देखा जाए तो सलमान खान पर से खतरा अभी टला नहीं है.

मधु और प्रमिला के लिए इमरजैंसी का प्रतिकार प्रेम

बात 26 जून, 1975 की है. देश पर आपातकाल थोप दिया गया था. इंदिरा गांधी सुप्रीम लीडर थी. तमाम विरोधी दलों के नेता जेलों में बंद थे. इस इमरजैंसी का विरोध सोशलिस्ट लीडर मधु दंडवते और उन की पत्नी प्रमिला दंडवते ने भी किया था, जिस का अंजाम यह हुआ कि उन्हें आपातकाल खत्म होने तक जेल हुई. मधु को बेंगलुरु सेंट्रल जेल में और लगभग 900 किलोमीटर दूर प्रमिला को यरवदा सेंट्रल जेल में बंद किया गया.

सवाल यह कि इंसानों को कैद किया जा सकता है पर क्या प्रेम को किया जा सकता है? इस का जवाब इन दोनों के उन पत्र व्यवहार ने दिया जो न तो इन के बीच की दूरी की बाधा बनी या न निराशा का कारण. बल्कि इस मुश्किल समय में इन दोनों का प्रेम एक दूसरे के लिए और भी गहरा होता गया.

कैद के दौरान मधु और प्रमिला ने एकदूसरे को लगभग 200 लैटर्स लिखे. एक विचारधारा से आने वाले इस कपल ने इन लैटर्स में एकदूसरे से संगीत, पुस्तकों, कविता और फिलौसफी पर चर्चा की. यही नहीं उन्होंने इस सवाल से भी निपटने की कोशिश की कि क्या आजादी के बिना प्रेम संभव है?

एजुकेशनिष्ट ज्ञान प्रकाश ने ‘इमरजेंसी क्रौनिकल्स : इंदिरा गांधी एंड डैमोक्रेसीज टर्निंग प्वाइंट’ में मधु और प्रमिला के लैटर्स पर स्टडी की. उन्होंने अपने कन्क्लूजन में लिखा, “दोनों के बीच हुए लैटर्स कम्युनिकेशन से प्रेम के दर्द को बयां करते हैं और साथ ही साथ उन्होंने फ्रीडम को ले कर अपनी कमिटमैंट को प्रेम के इमोशनल बांड से दिखाने का काम किया. वे एकदूसरे से प्यार करते थे क्योंकि वे आजादी से प्यार करते थे. उन के प्रेम ने आजादी के अर्थ को भी मजबूत और विस्तार दिया.”

मधु और प्रमिला की शादी 1953 में हुई. इमरजैंसी के हालातों में भी वे टूटे नहीं बल्कि एकदूसरे के साथ रहने के लिए उत्साहित थे. जेल और सेपरेशन ने दोनों के प्रेम को और बढ़ा दिया. प्रमिला ने मधु को एक पत्र में लिखा, “क्या तुम ने जीवन में पहले कभी मुझे इतने नियमित रूप से लैटर लिखे हैं?” वह आगे कहती हैं, “मुझे याद है आप लंबे दौरों पर चले जाते थे और महीनों तक नहीं लिखते थे. जब कोई आप के बारे में पूछता था तो मुझे बहुत शर्मिंदगी महसूस होती थी. मेरे पास उन्हें बताने के लिए कुछ नहीं होता था. लेकिन अब हमें देखो… आप बिना किसी समस्या के मुझे हर सोमवार को लिखते हैं. आपातकाल को धन्यवाद.” यह वार्तालाप बताता है कि दोनों अपने प्रेम को इमरजैंसी में एंजोय कर रहे थे. वे अपने लैटर से जता गए कि इमरजैंसी का प्रतिकार प्रेम ही था.

जिस दौरान वे जेल में बंद थे उस दौरान उन का इकलौता बीटा उदय देश के प्रेस्टीजीयस इंस्टिट्यूट ‘नेशनल इंस्टिट्यूट ओफ डिज़ाइन’ में पढ़ रहा था. प्रमिला ने अपने पत्रों में अपने बेटे के लिए चिंता भी जताई . उन्होंने एक पत्र में लिखा, “हमारा अपने के लिए कुछ नहीं कर सकते. हम ने उन में अपने मूल्यों को विकसित करने का प्रयास किया लेकिन इस से पहले कि वह पूरी तरह से तैयार होता, इस से पहले कि उस के पंखों में ताकत आती, हम ने उसे छोड़ दिया, उसे खुद की देखभाल करने, अपना जीवन बनाने के लिए छोड़ दिया.” प्रमिला ने अपने एक पत्र में लिखा, “उस के मातापिता जीवित हैं मगर वह एक अनाथ कि तरह है.”

इमरजैंसी के इन मुश्किल पलों में जबजब कोई नाउम्मीदी और निराशा से भरता, दोनों में से कोई न कोई एकदूसरे को सहारा बन ही जाता. बेटे व जेल से निकलने के बाद नाउमीदी से भरी जिंदगी को ले कर प्रमिला की चिंताओं को ले कर मधु कहते हैं, “तुम्हारे आखिरी पत्र पर दुख की छाया थी. तुम ने कहा था कि ‘जब तक हम यहां से निकलेंगे तब तक हमारा घर और जीवन एक साथ पूरी तरह नष्ट हो जाएंगे और आप नहीं जानते कि आप के पास यह सब दोबारा करने की ताकत और दृढ़ता है या नहीं.’ तुम्हारी टिप्पणी मुझे बेहद निराशाजनक लगी. हम ने हमेशा अपने जीवन को एक साथ अपनी पीठ पर ढोया है. जब तक हमारी रीढ़ अपनी जगह पर है, कौन संभवतः हमारे जीवन को एक साथ छू सकता है?”

यह प्रेम का जरुरी पहलु है कि आप बुरे समय में एक साथ खड़े रहते हैं. डिजिटल एरा में ‘प्रेम क्या है’ यह आज के युवा कितना बेहतर जानतेसमझते हैं यह पता नहीं, मगर एक बात पक्की है कि वे मधु और प्रमिला दंडवते की तरह अपनी भावनाओं को एक्सप्रैस करने के लिए एसी कमरों में चार शब्द नहीं लिख सकते.

व्हाट्सऐप पर घंटों चैटिंग करने वाले युवा कपल्स मुमकिन है कि ‘प्रेम क्या है’ के जवाब में शारीरिक वासना और स्टेटस पाने का जरिया ही प्रेम बताए, पर डिजिटल एरा से पहले इस सवाल के कईयों सुंदर जवाब दिए जा चुके हैं.

हालांकि प्रेम की कोई सीमित परिभाषा नहीं, कोई एक परिभाषा नहीं हो सकती, इस के बावजूद तमाम प्रेम गाथाओं से एक मुक्कमल जवाब आखिरकार यही समझ आता है कि प्रेम इंसान को बेहतर बनाती है. लालच, डर, नफरत से आजाद करती है, त्याग और साहस सिखाती है.

फिर भी सवाल आता है कि आजादी के बिना प्रेम क्या है? क्या कोई पहरा प्रेम को रोक सकती है? इसे फ्रीडम फाइटर रहे मधु दंडवते और प्रमिला के 18 महीने लंबे चले उस टाइम पीरियड से समझा जा सकता है जिन्होंने बाताया कि इंसान भले जंजीरों में बंधा हो मगर प्रेम को जंजीरों में नहीं बांधा जा सकता.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें