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 Interview : FIR, Bhabhi ji Ghar Par Hain और ‘हप्पू की उलटन पलटन’ की निर्माता हैं बिनायफर कोहली

‘एफआईआर’, ‘भाभीजी घर पर हैं’, ‘हप्पू की उलटन पलटन’ जैसे टौप कौमेडी फैमिली शोज की निर्माता बिनायफर कोहली अपने शोज के माध्यम से महिला सशक्तीकरण का संदेश देने में यकीन रखती हैं. वह अपने शोज की महिला किरदारों को गृहणी की जगह वर्किंग और तेजतर्रार दिखाती हैं, ताकि आज की जनरेशन कनैक्ट हो सके.

 

बहुमुखी प्रतिभा की धनी बिनायफर कोहली ने मौडलिंग से कैरियर की शुरुआत की थी. महज 16 साल की उम्र में वे कोरियोग्राफर बन गई थीं. बिनायफर ने बौम्बे डाइंग, मफतलाल, आईडब्ल्यूएस, पोर्श, एस्टी लौडर आदि के लिए भारत और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर फैशन शोज की कोरियोग्राफी व मौडलिंग की. फिर एडवरटाइजिंग एजेंसी का काम संभाला. उस के बाद वे लेखिका, टीवी सीरियल निर्मात्री बनीं.

पिछले 32 वर्षों में अपने पति संजय कोहली के साथ मिल कर ‘एडिट 2 प्रोडक्शन’ के तहत ‘माही वे’, ‘निलांजना’, ‘एफआईआर’, ‘भाभीजी घर पर हैं’, ‘हप्पू की उलटन पलटन’, ‘जीजा जी छत पर हैं’, ‘फैमिली नंबर 1’, ‘में आई कम इन मैडम’ और ‘शादी नंबर वन’ सहित 32 से अधिक सामाजिक एवं कौमेडी टीवी सीरियलों का निर्माण कर चुकीं बिनायफर कोहली की गिनती सर्वश्रेष्ठ लेखिका, निर्माता, कोरियोग्राफर के साथसाथ समाजसेवक के रूप में भी होती है.

रतन टाटा को अपनी प्रेरणास्रोत मानने वाली बिनायफर कोहली मूलतया पारसी हैं, जिन्होंने मौडलिंग के दौरान उस वक्त के मशहूर मौडल व पंजाबी युवक संजय कोहली संग विवाह रचाया था. आज वे एक बेटे व एक बेटी की मां हैं.

बिनायफर के पिता एक बहुराष्ट्रीय कंपनी के सीईओ और मां अपने समय की फैशनपरस्त व एलआईसी की गोल्ड मैडलिस्ट थीं. मुंबई में पलीबढ़ी बिनायफर की स्कूली शिक्षा क्राइस्ट चर्च स्कूल और के सी कालेज से पूरी हुई. टीवी इंडस्ट्री में बिनायफर कोहली की पहचान एक कड़क मास्टर लेकिन मुसीबत के वक्त हर किसी की मदद करने वाली टीवी निर्माता के रूप में होती है.

पुलवामा हमले में शहीद हुए महाराष्ट्र के 2 शहीदों के परिवारों को आर्थिक सहायता देने, भुज में आए भूकंप के दौरान 9 मैडिकल टीमें भेजने से ले कर अभिनेता दीपेश भान की सामयिक मौत के बाद दीपेश के 40 लाख रुपए के कर्ज को अपनी पूरी टीम व क्राउड फंडिंग की मदद से चुकता करवाने से ले कर कई तरह से लोगों की मदद बिना किसी शोरशराबा के करती रहती हैं. तभी तो कई तकनीशियन उन के साथ 30 वर्षों से काम कर रहे हैं तो कई कलाकार 20 वर्षों से उन के साथ काम कर रहे हैं.

बिनायफर कोहली अपने सामाजिक व कौमेडी सीरियलों के माध्यम से हमेशा महिला सशक्तीकरण सहित कई संदेश देती आई हैं. उन्हें सीरियल के किसी भी महिला पात्र को शौर्ट्स पहनाना पसंद नहीं.

आप खुद को टीवी सीरियल निर्माता, कोरियोग्राफर या लेखिका में से क्या बेहतरीन मानती हैं? उन से जब यह सवाल पूछा तो उन्होंने कहा, ‘‘मैं तो तीनों में खुद को बेहतरीन मानती हूं. मैं भारत की लीडिंग कोरियोग्राफर थी. हमारी एडवरटाइजिंग एजेंसी भी थी. मैं और मेरे पति संजय कोहली मिल कर एड भी बनाते थे. मैं स्पष्ट कर दूं कि हमारी प्रोडक्शन कंपनी ‘एडिट 2’ को मेरे पति संजय कोहली हैड करते हैं. हम ने जी टीवी का लौंच इवैंट किया और पहला सीरियल जसपाल भट्टी को ले कर ‘हाय जिंदगी बाय जिंदगी’भी बनाया.

‘‘फिर हम ने सोनी टीवी के लिए ‘फैमिली नंबर वन’ बनाया. कौमेडी में तो संजय को महारत हासिल है. लोग उन्हें ‘किंग औफ कौमेडी’ कहते हैं. टीवी पर 10 अतिलोकप्रिय व बेहतरीन कौमेडी सीरियलों में से 6 सीरियल तो हमारे ही हैं. हमारी कंपनी यानी कि ‘एडिट 2’ का सीरियल ‘एफआईआर’ पूरे 10 साल तक प्रसारित होता रहा. ‘भाभीजी घर पर हैं’ को भी 10 साल हो गए. ‘हप्पू की उलटन पलटन’ 5वें वर्ष में है. ‘मे आई कम इन मैडम’ के 3 सीजन टैलीकास्ट हो चुके हैं. ‘जीजा जी छत पर हैं’ के 2 सीजन टैलीकास्ट हुए. हमारे सीरियल ‘फैमिली नंबर वन’ की गिनती पहले पांच में होती है. हम ने कई सामाजिक सीरियल भी बनाए, जिन्हें पुरस्कृत भी किया गया. मु?ो सामाजिक सीरियल लिखने में महारत हासिल है तो वहीं संजय कोहली को कौमेडी में महारत है तो वे अपनी टीम के साथ कौमेडी सीरियलों पर काम करते हैं. इसलिए मैं अपनेआप को तीनों क्षेत्रों में बेहतरीन मानती हूं.

‘‘हम ने कई नएनए प्रयोग किए. पहले सीरियल के टाइटल में हर कोई सीरियल या एपिसोड के ही कुछ सीन्स को काट कर, उन्हें जोड़ कर उस पर टाइटल चलाते थे. लेकिन सोनी टीवी के लिए जब हम ने पहला सीरियल ‘फैमिली नंबर वन’ बनाया तो हम ने टाइटल के लिए भी कोरियोग्राफ किया. ऐसा काम सब से पहले मैं ने ही किया था. हम ने एक परिवार को नीले और दूसरे परिवार को हरे रंग के कौस्ट्यूम पहना कर डांस कराया. तो वे टाइटल्स एकदम अलग बन गए थे. फिर मैं ने यही काम अपने दूसरे शो ‘मस्ती’ में किया. धीरेधीरे दूसरे निर्माताओं ने हमारी नकल करते हुए टाइटल्स के लिए अलग शूट करना शुरू किया और अब तो सीरियल के टाइटल्स और प्रोमो को फिल्माने के लिए अलग से यूनिट बुलाई जाती है. मैं ने कई सीरियल लिखे. मैं ने एक फिल्म ‘बारिश’ लिखी थी, जिसे ‘स्टार’ ने रिलीज किया था. इस फिल्म को सुखवंत ढड्ढा ने पंजाब में फिल्माया था.’’

कहा जाता है कि आप खुद को मल्टीटास्किंग मानती हैं? यह पूछे जाने पर वे कहती हैं, ‘‘जी. मैं मल्टीटास्कर और वर्कहौलिक हूं. मैं प्रतिदिन 16 से 18 घंटे काम करती हूं और मुझे यह पसंद है. दूसरी बात मेरे पास एक टीम है, जो वास्तव में पुरानी और मजबूत है. इन में से कुछ 32 साल से हमारे साथ हैं, कुछ 20 साल से हैं. इन में से अधिकांश की शुरुआत हमारे साथ हुई. हमारे कैमरामैन राजा दादा मेरे पहले सीरियल से हमारे साथ काम कर रहे हैं. यानी कि 32 वर्षों से हमारे साथ हैं. निर्देशक शशांक बाली ने हमारे स्टार प्लस पर प्रसारित सीरियल ‘शादी नंबर वन’ में बतौर सहायक निर्देशक काम किया था. हम ने उन्हें सीरियल ‘एफआईआर’ में निर्देशक बना दिया. शशांक बाली पहले मशहूर हास्य निर्देशक राजन वागधरे के सहायक थे. समीर कुलकर्णी भी राजन वागधरे के सहायक थे, जिन्होंने ‘फैमिली नंबर वन’ निर्देशित किया था.

‘एफआईआर’ के बाद शशांक बाली तो संजय के छोटे भाई बन चुके हैं. शशांक की सहायक हर्षदा भी हमारे सीरियल निर्देशित करती है. रघुबीर शेखावत ने सब से पहले हमारे लिए ‘फैमिली नंबर वन’ लिखा, अब वे 5 वर्षों से ‘हप्पू की उलटन पलटन’ लिखते हैं. फिर मनोज संतोषी हमारे साथ जुड़े. मनोज संतोषी जैसा कौमेडी लेखक मैं ने टीवी इंडस्ट्री में नहीं देखा. संजय के मुकाबले मैं थोड़ी कड़क हूं. लेकिन मेरा कोई भी तकनीशियन मु?ो रात के एक बजे भी फोन कर सकता है और उस का फोन आते ही मैं तुरंत पहुंचती हूं क्योंकि वह मेरी ‘वर्किंग फैमिली’ है. मेरे आर्ट डायरैक्टर अरूप 30 साल से मेरे साथ हैं. अब तो वे काफी सीनियर आर्ट डायरैक्टर हैं. शशांक का सहायक रित्विक अब हमारा ‘हप्पू की उलटन पलटन’ निर्देशित कर रहा है.

आप ने सामाजिक सीरियलों के मुकाबले कौमेडी सीरियल ज्यादा बनाए. जब एकसाथ दोतीन कौमेडी सीरियल प्रसारित हो रहे होते हैं तो यह कितनी चुनौती होती है? इस सवाल पर उन्होंने बताया, ‘‘जब कई कौमेडी सीरियल एकसाथ प्रसारित होते हैं तो अलगअलग ट्रैक के बारे में सोचना एक चुनौती होती है और कहानी के हिसाब से कुछ समान नहीं होना चाहिए. अलगअलग ट्रैक के बारे में सोचना एक चुनौती बन जाता है.

‘‘कभीकभी आप के पास समान ट्रैक भी हो सकते हैं क्योंकि यदि आप स्वच्छता पर कुछ कर रहे हैं, आप ईर्ष्या पर कुछ कर रहे हैं तो ये समान ट्रैक हो सकते हैं. लेकिन ऐसा लगता है कि हरकोई एकजैसा ट्रैक बना सकता है, लेकिन जो भी इसे अच्छा बनाएगा, वह देखने लायक के मामले में इसे अच्छी तरह से बेचेगा. साथ ही, प्रत्येक कहानी अलग है और पात्रों का एक अलग सैट है. हम सर्वश्रेष्ठ के लिए प्रयास करते हैं और कुछ सुपर कौमेडी सीरियल बनाते हैं.’’

टीवी इंडस्ट्री में जिस तरह की औरतें दिखाई जा रही हैं उन से आप कितना सहमत हैं? इस मसले पर उन का कहना था, ‘‘फिलहाल तो टीवी में रीयल औरतें ही दिखाई जा रही हैं. आप टीवी में औरत को वकील के रूप में, औरत को ग्रूमिंग क्लासेस चलाने वाली के रूप में, कुछ सिर्फ घर संभालती हैं पर वे अन्याय नहीं सहन करेंगी. मसलन, आप ‘अनुपमा’ को लीजिए. अनुपमा के साथ बहुतकुछ होता रहता है, उसे कई समस्याओं से जू?ाना पड़ता है पर वह उन सभी से लड़ विजयी बन कर आती है.

‘‘उसे देख कर हर औरत रिलेट करती है, कहती है कि हां, ऐसा तो उस के साथ भी हुआ था. अनुपमा में वह क्लासेस शुरू करती है, फिर शेफ की प्रतियोगिता भी जीतती है. मेरे सीरियल में महिला चुनाव लड़ती है और जीतती है. जबकि औरतें घरेलू हैं पर उन के पति उन का हौसला बढ़ाते हैं. जिंदगी में समस्या आने पर एकसाथ मिलबैठ कर हल करते हैं. ‘भाभीजी घर पर हैं’ में अंगूरी की सास हमेशा अंगूरी का पक्ष लेती है. अंगूरी व उस की सास के बीच बहुत अच्छा रिश्ता है. मेरे निजी जीवन में मेरी सास मेरी बहुत अच्छी दोस्त है तो वही हमारे सीरियल में नजर आता है. मेरे एक सीरियल में ससुरबहू के बीच बेहतरीन रिश्ते हैं. अब तो हम सभी सीरियल के माध्यम से दकियानूसी बातों को हटाने की पहल में लगे हुए हैं. अब विज्ञान का जमाना है.

‘‘हमारा ‘भाभीजी घर पर हैं’ और राजन साही का ‘अनुपमा’ ऐसे सीरियल हैं जहां महिलाओं को सकारात्मक तरीके से महिमामंडित किया गया है. यहां तक कि अंगूरी भाभी और अनुपमा जैसी साधारण महिलाओं को भी उन के जीवन में पुरुष अपना खुद का कुछ शुरू करने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं. भाभीजी विभिन्न चीजें करने का प्रयास करती हैं चाहे वह नृत्य हो या अभिनय और उन्हें हमेशा प्रोत्साहित किया जाता है. ‘भाभीजी घर पर हैं’ और ‘अनुपमा’ ने मानक स्थापित किए हैं और कई लोगों को प्रेरित किया है. लोग अलगअलग चीजों के साथ प्रयोग कर रहे हैं और अपनी विचारधारा को आगे बढ़ा रहे हैं.

‘‘निजी जीवन में महिलाएं हमारे सीरियलों के इन मजबूत किरदारों से प्रभावित होती हैं और उन्हें अपना रोल मौडल मानती हैं. जब वे टीवी के परदे पर वंचितों को सफल होते और अपने निर्णय स्वयं लेते हुए व विजेता के रूप में आगे आते हुए, अपनी आकांक्षाओं और जो वह चाहते हैं उसे हासिल करने के सपनों को पूरा करते हुए देखती हैं तो वे व दूसरी सभी महिलाएं प्रेरित होती हैं.’’

तो जिन सीरियलों में किचन पौलिटिक्स तथा औरत को औरत की दुश्मन दिखाया जाता है, उस से आप कितना सहमत हैं? इस सवाल पर वे कहती हैं, ‘‘यह सब भी तो हमारे समाज का हिस्सा है. हमारे देश की 70 प्रतिशत जनता गांवों में रहती है. ग्रामीण औरत जब बेटी को जन्म देती है तो उस को कितने ताने ?ोलने पड़ते हैं. सास के अत्याचार, पति के अत्याचार आदि खबरें हम आज भी सुनते रहते हैं. ससुर अलग से फायदा उठाने का प्रयास करता है. मैं ने निजी जीवन में एक महिला को डोनेशन के तौर पर एफडी बना कर दिया तो उस ने कहा, ‘मैडम, आप इसे अपने पास ही रखिए, घर पर ले जाएंगे तो हमारे सासससुर इसे तुरंत बंद करा कर पैसा ले लेंगे.’

‘‘समाज में विधवाओं को इज्जत नहीं मिलती. मैं तो सवाल उठाती हूं कि एक देवी की मूर्ति मंदिर में रख कर पूजा करते हो तो फिर घर में दूसरी देवी को क्यों मारते हो? वैसे अब धीरेधीरे बदलाव आ रहा है. शहरों में और मौडर्न विचारों के लोगों में सासबहू के बीच दोस्ताना संबंध हैं पर बड़े स्तर पर बदलाव तभी आ सकता है, जब पुरुष की मानसिकता में बदलाव आए. पुरुष सत्तात्मक सोच बदले.’’

इन सामाजिक बुराइयों को बदलने के लिए टीवी किस तरह से अपनी भूमिका निभा सकता है? इस पर उन का कहना है, ‘‘हम अपने सीरियलों में महिला किरदारों को सिखाते रहते हैं कि किस तरह दूसरों को अपने पक्ष में करना चाहिए, किस तरह होनहार बनना चाहिए. सीरियल ‘दिया बाती और हम’ में तो नायक ने अपनी पत्नी को पढ़ कर पुलिस औफिसर बनने दिया.

‘‘पिछले 8-10 वर्षों में टीवी इंडस्ट्री में काफी बदलाव आया. वह महिलाओं को उठने और आगे बढ़ने के मौके दे रही है. अब सीरियल बताते हैं कि आप की पत्नी आप की अर्धांगिनी है, वह ऊपर उठेगी तो आप भी ऊपर उठेंगे, बच्चों का भी विकास होगा. हम महानगरों में देखते हैं कि अधिकांश औरतें सुबह 4 बजे उठ कर पानी भरती हैं, फिर टिफिन बनाती हैं, फिर लोकल ट्रेन में लटकलटक कर नौकरी पर जाती हैं, शाम को घर वापस आने पर पहले बच्चों को पढ़ाती हैं, फिर रात्रि का भोजन बनाती हैं. खाना बना, खिला कर फिर बरतन धो कर वे कब सोती हैं, कौन पूछता है पर वे मेहनत कर रही हैं और आगे बढ़ने की जुगत में लगी हुई हैं.

‘‘मुझे नहीं पता कि हिंदुस्तान में कितने मर्द हैं जोकि घर में बरतन धोते हैं. देखिए, लिज्जत पापड़ को एक औरत ने शुरू किया था, आज इस में कितनी औरतें काम कर रही हैं. मेरे पड़ोस में एक औरत है, जोकि सिर्फ काजू की बर्फी बना कर बेचने का काम करती है. एक औरत है, जोकि सिर्फ मोहन थाल बेचती है तो एक भी काम अच्छा करो तो पूरा संसार बदल जाता है.’’

तमाम लोगों का मानना है कि टीवी सीरियल की महिलाएं खलनायिका होती हैं? इस सवाल पर उन्होंने अपना मत यों जाहिर किया, ‘‘मैं टीवी की महिलाओं को खलनायिका नहीं मानती. टीवी पर खलनायक की भूमिका निभाने वाले बहुत सारे खूबसूरत पुरुष हैं. भले ही यह एक उचित नकारात्मक चरित्र न हो, फिर भी उन के पास भूरे रंग के बहुत सारे शेड्स हैं. एक समय था जब महिलाएं प्रतिपक्षी की भूमिका निभाती थीं, लेकिन अब बदलाव आ गया है. टीवी का कंटैंट काफी बदल गया है और लोग ऐसे वास्तविक व प्रासंगिक सीरियल बना रहे हैं. वैसे, अब पुरुषों को भी टीवी पर शक्तिशाली किरदार मिलने लगे हैं, जो पहले नहीं होता था. जैसा कि मैं ने कहा कि कंटैंट में प्रगति हुई है, उसी तरह चरित्ररेखाचित्र भी बदल गए हैं. टीवी पर सिर्फ महिला उन्मुख सीरियल नहीं रहे.’’

अक्तूबर 1992 में सैटेलाइट टीवी चैनल की शुरुआत होने पर सीरियलों की टीआरपी 22 से 32 तक जाती थी, अब यह 3 तक नहीं पहुंच पा रही है. ऐसा क्यों? इस सवाल पर वे बताती हैं, ‘‘अब दर्शकों के पास मनोरंजन की चौइस बढ़ गई है. पहले जीटीवी और सोनी टीवी के अलावा दूरदर्शन व फिल्में थीं. अब मनोरंजन चैनलों की भीड़ है. फिल्में हैं, टीवी हैं, ओटीटी प्लेटफौर्म हैं.

‘‘इतना ही नहीं, अब हर इंसान के हाथ में मोबाइल है, जिस पर वह इंस्टाग्राम रील्स से ले कर यूट्यूब पर ढेर सारा कंटैंट देख रहा है. ऐसे में दर्शकों का बंटना स्वाभाविक है. शुरू में सिर्फ जीटीवी था, फिर सोनी टीवी आया. कुछ समय बाद लोग स्टार प्लस पर केवल ‘सांस’ सीरियल देखने के लिए जाने लगे थे. उस के बाद सहारा, इमेजिन, कलर्स, दंगल सहित कई चैनल आए. इस के अलावा आप अपने पसंदीदा सीरियल को समय मिलने पर कभी भी ओटीटी प्लेटफौर्म पर जा कर देख सकते हैं.

‘‘आज की तारीख में मेरे सीरियल का जो नया एपिसोड रात में 8 या 9 बजे आता है, वह पहले उसी दिन सुबह 6 या 7 बजे ओटीटी प्लेटफौर्म अर्थात वैब पर आ चुका होता है. मतलब, पहले एपिसोड ओटीटी प्लेटफौर्म पर आता है, दिनभर में किसी भी समय लोग उसे देख सकते हैं. उस के बाद रात में चैनल पर आता है. अब मैं अपना पसंदीदा सीरियल सुबह उठ कर ओटीटी प्लेटफौर्म पर देख लेती हूं. ऐसे में चैनल पर सीरियल को व्यूवरशिप कैसे मिलेगी? पहले ऐसा नहीं था.

‘‘पहले चैनल पर हर सीरियल का एक ‘रिपीट रन’ था. पहले पूरा परिवार एक समय में एक ही सीरियल देख पाता था. अब तो एक ही समय में परिवार का हर सदस्य अलगअलग सीरियल या इंस्टाग्राम रील्स वगैरह देख सकता है. अब तो एक ही घर के हर कमरे में टीवी सैट है. हर इंसान के हाथ में मोबाइल फोन है. लेकिन अब तनाव बढ़ गया है. अब हम एकसाथ कई चीजों से प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं.’’

लेकिन चैनल पर सीरियल का एपिसोड टैलीकास्ट होने से पहले ही ओटीटी प्लेटफौर्म पर उसे स्ट्रीम कर देने से नुकसान तो टीवी इंडस्ट्री को ही हो रहा है? इस पर उन्होंने कहा, ‘‘जी हां, आप सच कह रहे हैं. टीआरपी गई तो चैनल को मिलने वाले एड कम हुए या एड पर मिलने वाली राशि कम हुई. वैसे भी, कोविड के दौरान चैनलों को मिलने वाले एड काफी कम हुए. एड पर मिलने वाली राशि कम हुई. इस से चैनल को काफी नुकसान हुआ.’’        द्य

 

 

 

 

 

’10 हजार से एक घंटे में बनाएं 1 लाख रुपए’ ऐसी बातों से बेफकूफ बनाते finance influencers

सोशल मीडिया पर दर्जनों फाइनैंस इन्फ्लुएंसर्स भरे पड़े हैं. सब एक से बढ़ कर एक अपने सब्सक्राइबर्स को अमीर बनने के तरीके बता रहे हैं, हैरानी यह कि अपने तरीकों से ये खुद अमीर नहीं बन पा रहे हैं, फिर यह फालतू गप हांकने का क्या मतलब?

’10 हजार से एक घंटे में बनाएं 1 लाख रुपए’, ‘एक टिप्स और अमीर होना कंफर्म’, ‘अमीर बनने के ये हैं तरीके’, ‘शेयर बाजार में इन्वैस्ट करना एक कला है, आप भी सीखें’. ऐसे और ऐसी कई तरह की हैडलाइन वाले कंटैंट आप को सोशल मीडिया पर पढ़ने व देखने को मिल जाते हैं. दरअसल, इंस्टाग्राम, फेसबुक, यूट्यूब पर रील्स और वीडियोज अब सिर्फ मनोरंजन के लिए ही नहीं बल्कि फाइनैंशियल एडवाइस लेने का भी जरिया बन गए हैं. शेयर बाजार में पैसा लगाना है लेकिन कौन सा स्टौक खरीदें, इस की समझ न हो, तो इस के लिए ज्यादातर लोग यूट्यूब की मदद लेते हैं जहां मुफ्त में लोगों को शेयर मार्केट का ज्ञान मिल जाता है.

लेकिन, यह मुफ्त का ज्ञान लोगों के लिए घातक भी साबित हो सकता है क्योंकि सोशल मीडिया प्लेटफौर्म पर स्टौक टिप्स देने वाले लोगों, जिन्हें फाइनैंशियल इंफ्लुएंसर्स कहा जाता है, के पास कोई समझ या अनुभव है, इस की गारंटी नहीं होती है. कई इन्फ्लुएंसर्स अकसर लोगों को तगड़े मुनाफे का लालच दे कर शेयर मार्केट में इन्वैस्ट करने की सलाह देते हैं. बहुत से लोग उन की बातों में आ कर इन्वैस्ट कर देते हैं और बाद में उन्हें भारी नुकसान होता है. इसलिए अगर इस तरह की रील्स देख रहें है तो केवल जानकारी बढ़ाने के लिए देखें. इन की हर बात को सही मान कर उस पर बिना सोचेसमझे विश्वास करना सही नहीं है. इस के लिए रिसर्च करें. कुछ अनुभवी लोगों से बात करें, तब कोई फैसला लें.

फिनफलुएंसर कौन होते हैं

फिनफलुएंसर ऐसे लोगों को कहा जाता है जो सोशल मीडिया प्लेटफौर्म पर फाइनैंस से जुड़ी कई डिटेल्स देते हों. ये लोग सोशल मीडिया प्लेटफौर्म पर जा कर लोगों को शेयरों में इन्वैस्टमैंट, बजट बनाने, प्रौपर्टी खरीदने, क्रिप्टोकरेंसी और फाइनैंशियल ट्रैंड आदि के बारे में सलाह देते व अपना निजी अनुभव शेयर करते हैं. इस के लिए ये लोग वीडियो बनाते हैं, अब फिर वह चाहे 90 सैकंड की रील हो, यूट्यूब पर लौंग वीडियो हो या फिर 60 सैकंड का शौर्ट वीडियो. इन सभी प्लेटफौर्म से उन की जबरदस्त कमाई होती है.

इंस्टाग्राम पर कुछ फेमस फिनफलुएंसर्स हैं. इन के फौलोअर्स की संख्या लाखों में है, जैसे अक्षत श्रीवास्तव के 1.43 लाख फौलोअर्स हैं. वहीं, अंकुर वारिको के 22 लाख, बूमिंग बुल्स के 2.72 लाख, फिनोवेशन जेड के 1.68 लाख, लेबर ला एडवाइजर के 5.12 लाख, प्रांजल कामरा के 7.71 लाख, रचना रानाडे के 9.37 लाख और शरण हेगड़े के 22 लाख फौलोअर्स हैं.

इस के अलावा इन सभी के यूट्यूब, लिंक्डइन, फेसबुक और ट्विटर पर भी लाखों फौलोअर्स व सब्सक्राइबर्स हैं. इन प्लेटफौर्म से भी इन सब की कमाई होती है. इस में एक बड़ा हिस्सा गूगल एड और फेसबुक एड से होने वाली कमाई का है. इन सभी को पेड कंटैंट के लिए जेरोधा, फिनशौट, स्मालकेस, क्रेड, मोबिक्विक, अपस्टौक्स, वजीर एक्स, कोटक लाइफ इंश्योरैंस, आईएनडी मनी और डिट्टो जैसी कंपनियां पेमेंट करती हैं.

सोशल मीडिया यानी यूट्यूब, फेसबुक पर ऐसे इंफ्लुएंसर्स की संख्या तेजी से बढ़ रही है जिन का स्टौक मार्केट से कोई मतलब नहीं है, लेकिन ये स्टौक पर सलाह देते हैं. इन की सलाह मान कर और गलत डेटा शेयर कर लोग नुकसान उठा रहे हैं.

नैशनल सैंटर फौर फाइनैंशियल एजुकेशन के 2019 के सर्वेक्षण के अनुसार, इन 10-20 मिनट लंबे वीडियो की लोकप्रियता भारत की 27 प्रतिशत की कम वित्तीय साक्षरता दर से स्पष्ट होती है. इसलिए स्वाभाविक रूप से, पहली बार इन्वैस्टमैंट करने वाले, विशेष रूप से दूरदराज के कसबों और शहरों से, लोग इन फिनफ्लुएंसर की ओर आकर्षित होते हैं. उन के सब से ज़्यादा देखे जाने वाले वीडियोज में से कुछ हैं- ‘अपना पहला शेयर कैसे खरीदें’, ‘सोने से नियमित आय प्राप्त करें’, ‘20 साल में 2.5 करोड़ कमाएं. कैसे?’

गपोड़बाजी से कैसे बेफकूफ बनाते हैं ये फाइनैंस इन्फ्लुएंसर्स

सागर सिन्हा अपने पोडकास्ट पर बता रहे हैं, शेयर मार्केट में पहला शेयर कैसे खरीदें, घर बैठे 1 लाख रुपया महीना कैसे कमाएं. अमीर बनने का 100 परसैंट गारंटेड तरीका.
संजय कथूरिया पोडकास्ट पर बता रहे हैं कि बेहद आसान है अमीर बनना. बस, इन तरीकों को अपनाएं. 20 हजार रुपए महीने की सैलेरी से अमीर कैसे बनें. ध्यान दें तो ये महाशय अपने बताए तरीके अपना कर अभी तक अमीर नहीं बन पाए हैं. बस, गपोड़बाजी करने में लगे हैं.

दीपक बजाज बता रहे हैं, 2024 का बेस्ट इन्वैस्टमैंट प्लान. डाक्टर शिखा शर्मा जल्दी अमीर होने के तरीके बता रही हैं जो कोई नहीं बताता, यह उन के वीडियो का टाइटल है. क्या यह बेवकूफ बनने का तरीका नहीं है. क्या आसान है- शेयर मार्केट में पैसा लगाया और अमीर हो गए.

शेयर बाजार में अफवाहें और स्टौक टिप्स एक बड़ा जाल साबित हो सकते हैं. अकसर इन्वैस्टर्स को ऐसे संदेश और सुझाव मिलते हैं जिन में किसी विशेष कंपनी के शेयर खरीदने की सलाह दी जाती है. इन संदेशों में कहा जाता है कि इस कंपनी के शेयर की कीमत तेजी से बढ़ेगी, जिस से इन्वैस्टर मुनाफा कमा सकते हैं. लेकिन ये संदेश ज्यादातर धोखेबाजों द्वारा भेजे जाते हैं, जिन का उद्देश्य सीधेसाधे इन्वैस्टर्स को गुमराह करना होता है.

एक उदाहरण के तौर पर, 28 सितंबर, 2018 को इंफीबीम एवेन्यूज के स्टौक्स में भारी गिरावट आई, जो लगभग 71 फीसदी गिर कर रुपए 197 से रुपए 50 पर आ गया. इस का कारण एक व्हाट्सऐप संदेश था, जिस ने इन्वैस्टर्स के बीच घबराहट फैला दी. इस घटना ने दिखाया कि अफवाहों और गलत सूचनाओं के कारण इन्वैस्टर्स को कितना बड़ा नुकसान हो सकता है. इस प्रकार के संदेश इन्वैस्टर्स को भ्रमित कर उन्हें ऐसे स्टौक्स में इन्वैस्टमैंट करने के लिए प्रेरित करते हैं जिन का कोई ठोस आधार नहीं होता.

कई लोग उत्साह और जल्दी से अमीर बनने की भावना में आ कर इंट्राडे ट्रेडिंग करते हैं. हालांकि, इस में मुनाफा कमाने की संभावना कम होती है और जोखिम बहुत अधिक होता है. एक गलत ट्रेड पूरे इन्वैस्टमैंट को नष्ट कर सकता है, जिस से इन्वैस्टर्स भारी नुकसान झेलते हैं. कई बार लोग नुकसान की भरपाई करने के चक्कर में और भी ज्यादा नुकसान कर बैठते हैं. इस प्रकार की भावना से प्रेरित ट्रेडिंग अकसर भारी हानि का कारण बनती है.

फाइनैंस इन्फ्लुएंसर्स इस तरह चलाते हैं अपनी दुकान

फाइनैंस इन्फ्लुएंसर्स अक्षत श्रीवास्तव ने अक्टूबर 2024 में एक वीडियो बनाया. उस का टाइटल उन्होंने दिया, ‘एक करोड़ कमाने के प्रैक्टिकल तरीके’.

इस में उन्होंने कहा, “मैं आप को बताऊंगा कि मैं ने अपनी वैल्थ कैसे जनरेट की. मेरा क्या ऐसा थौट प्रोसैस था जिस से मैं ने वैल्थ बनाई. मैं ने जो एक्सीलैंट चीजें चुनीं, आप भी वही चुनें. पैसा इन्वैस्ट करें तभी पैसे से पैसा बनेगा.”

इस तरह की बहुत सी बातें अपने वीडियो में वह बताता है. ये ठीक उसी तरह के दावे हैं जैसे नैटवर्क मार्केटिंग वाले करते हैं. अगर उसे इतना ही मुनाफा हो रहा होता तो क्यों वीडियो बना रहा होता, चुपचाप मुनाफा बनाने के ही काम में न लगा होता. क्या राकेश झुनझुनवाला को ऐसी वीडियो बनाते देखा है?
लोग इन इन्फ्लुएंसर्स को सुनते हैं और इन के कहे अनुसार इन्वैस्ट करते हैं जिस से कई बार उन्हें नुकसान भी उठाना पड़ता है क्योंकि अपना दिमाग इस्तेमाल करने के बजाय वे किसी और के दिमाग से चल रहे होते हैं, जोकि गलत है.

फाइनैंस इन्फ्लुएंसर्स सोनू शर्मा

येह अपनी एक वीडियो के शीर्षक में लिखते हैं- ‘अमीर बनने के 3 नियम’. अपनी इस वीडियो की शुरुआत में वे कहते हैं, “आज हर कोई यह बता रहा है कि अमीर कैसे बनें, जवान कैसे दिखें. लेकिन इस का कोई फार्मूला नहीं है. लोग आप को बेफकूफ बना रहे हैं.” इस के बाद वे कहते हैं, “आज जो मैं आप को बताने जा रहा हूं उसे एक साल तक लगातार फौलो करो तो पैसों की कभी कोई कमी नहीं होगी.”

यह फार्मूला सोनू ने अपने ऊपर कैसे अप्लाई किया और क्या रिजल्ट मिला, यह वे नहीं बताते. अगर अमीर बनने का फार्मूला उन के पास है तो सरकार को क्यों नहीं दे देता? दूसरी बात वे लोग ही आप से क्या अलग बता रहे थे जिन्हें आप बेवकूफ बनाना कह रहे थे. जरा, इस पर भी गौर फरमाइए कि आप क्या कर रहे हैं.
आगे ये महाशय कहते हैं, ‘एक फील्ड चुनें और उस में 5 साल लगाएं. खुद को घिसते रहें, तभी सफल होंगें. लेकिन साहब अगर फील्ड गलत चुन ली या उस में कोई स्कोप या चांस नहीं है तो पूरे 5 साल उस में बरबाद करना कहां की अक्लमंदी है. लेकिन हमारी युवा पौध इन लोगों पर इतना भरोसा कर बैठती है कि अपना अच्छाबुरा किस में है, यह भूल कर, बस, इन फाइनैंस इन्फ्लुएंसर्स के पीछे लग जाती है. जब यह बात समझ आती है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है.

फाइनैंस इन्फ्लुएंसर्स अंकुर वारिको

जनवरी 2024 में अंकुर वारिको ने ‘पैसा होगा 16 गुना वो भी बिना किसी रिस्क के’ के नाम से एक वीडियो बनाई.

सब से पहले से इस के टाइटल पर ही बात कर लें. क्या ऐसा पौसिबल है और अगर ऐसा पौसिबल होता तो ये अंकुर यहां बैठ कर ज्ञान पेलने के बजाय खुद इस से पैसा कमा कर एक लग्जरी लाइफ जी रहा होता. यहां युवाओं को बेवकूफ बना कर अपना उल्लू सीधा न कर रहा होता.

इस वीडियो में वह सवालों के जवाब दे रहा है जैसे कि एक युवा ने पूछा कि, ‘मेरे पापा 50 साल के हैं. इस उम्र में वे कहां और कैसे इन्वैस्ट कर सकते हैं.’ इस पर अंकुर बताता है कि अधिकतर पेरैंट्स का पैसा पीपीएफ में होता है लेकिन अगर आप पीपीएफ के बजाय ईपीएफ में पैसा लगाएं तो 8.1 परसैंट आप को फिक्स रिटर्न मिलता है. जोकि फिक्स डिपौजिट से काफी आगे है.

पीपीएफ आप को 6 परसैंट ही देगा और यहां आप को इस से कहीं ज्यादा मिलेगा. यह ठीक है पर इस में 16 गुना फायदा कहां है? इस तरह की कई सलाह वे लोगों को देते हैं जिन में से कुछ अधकचरी होती हैं और कुछ गलत भी होती हैं, और कुछ सुनने वाला समझ ही नहीं पाता. लेकिन इन लोगों को सुन कर अगर आप सिर्फ जानकारी ले रहे हैं तो कोई बात नहीं पर अगर इन पर डिपैंड हो कर इन की कही हर बात पर आंखें मूंद कर विश्वास कर रहे हैं तो यह गलत होगा.

इन के और वीडियोज के टाइटल देखिए, जैसे-
‘इन 3 जगह इन्वैस्टमैंट से आप बनेंगे करोड़पति’, ‘आई अर्न 9 लाख रुपए इन वन औवर’. हो सकता है कमा लिया हो लेकिन इस से अपने फौलोअर्स और व्यूअर्स बटोरना कौन सी नैतिकता है. क्या यह युवाओं को भ्रमित करना नहीं है ताकि बताने वाले की हर बात वह माने?

इन में से ज्यादातर सर्टिफाइड एडवाइजर नहीं होते हैं. ऐसे में इन की राय पर इन्वैस्टमैंट करना घातक साबित हो सकता है. इस के अलावा, कई फेमस फाइनैंशियल इंफ्लुएंसर किसी कंपनी से लाभ ले कर उस के शेयरों पर खरीदी की राय देते हैं, यह भी इन्वैस्टर्स के हित में नहीं है.

सजल गोयल शौर्ट रील्स

सजल गोयल अपनी एक शौर्ट रील में कुछ ही मिनट में ऐसा बता देते हैं कि एक बार को तो लगता है वाकई कुछ मिस कर दिया. ये बता रहे हैं कि “अगर कुछ समय पहले इस शेयर में आप ने 3 लाख रुपए डाले होते तो आज आप के पास 2 करोड़ रुपए होते. लेकिन कोई बात नहीं. आप ने इस शेयर को मिस कर दिया. हम आप का नुकसान नहीं होने देंगे, इसलिए अब आप को एक नया शेयर बता देते हैं.”

अब इन से हमारा यह सवाल है कि चलो हम ने तो मिस कर दिया लेकिन आप ने अपना तो उद्धार किया ही होगा इस से. आप अरबपति न सही, करोड़पति तो बन ही गए होंगे. दूसरों का इतना फायदा करा रहे हैं तो अपना फायदा तो किया ही होगा.

एक स्टौक टिप ने अभिनव के लाखों रुपए डुबो दिए

सोशल मीडिया पर मिली इसी तरह की एक स्टौक टिप ने अभिनव के लाखों रुपए डुबो दिए हैं. अभिनव शेयर बाजार में ऊंचा रिटर्न कमाने के चक्कर में बरबाद हो गए. दरअसल, अभिनव शेयर बाजार में तेजी से मोटा मुनाफा कामना चाहते थे. वे, बस, इस इंतजार में थे कि स्टौक्स की कहीं से कोई ऐसी टिप मिले कि वे पैसा लगाएं और पूंजी धड़ाधड़ दोगुनीतिगुनी हो जाए. उन के दिमाग में अभी खलबली चल ही रही थी कि किसी ने एक व्हाट्सऐप ग्रुप पर उन्हें जोड़ लिया और इस ग्रुप में एक स्टौक में पैसा लगाने की राय दी गई. मोटे मुनाफे का पूरा गणित बता दिया गया. बस, अभिनव ने आगापीछा सोचे बगैर झोंक दी मोटी पूंजी और बैठ गए कि अब होगा पैसा डबल. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. एकदो दिन चढ़ने के बाद स्टौक बुरी तरह गिरने लगा.

अभिनव की लगाई रकम का 80 फीसदी हिस्सा खत्म हो चुका है, तो इस से यह सबक मिलता है कि बिना जांचेपरखे सोशल मीडिया के जरिए मिलने वाली टिप्स पर पैसा न लगाएं. लेकिन तमाम लोग इन हथकड़ों का शिकार हो जाते हैं. इन में से ज्यादातर लोग ऐसे होते हैं जिन्हें बाजार की कम जानकारी होती है.

शेयर बाजार में इन्वैस्टमैंट करने से पहले सही जानकारी, योजना और अनुशासन का होना बहुत जरूरी है. 90 फीसदी लोगों का पैसा डूबने की धारणा इस बात की ओर संकेत करती है कि लोग अकसर बिना तैयारी के इन्वैस्ट करते हैं.

सच तो यह है कि ये इन्फ्लुएंसर्स शेयर मार्केट में पैसे बनाने के तरीके बताते हैं. ये शौर्ट रील्स और वीडियोज बनाते हैं. कभी टाटा, अंबानी के बारे में बता देंगे, कभी किसी बड़े उद्योगपति के बारे में बता देंगे कि इन लोगों को देखो, ये कैसे अमीर बने. फिर इस तरह की मोटिवेशनल स्टोरी सुनाएंगे कि लोगों को लगेगा कि यह चीज वे भी कर सकते हैं. दूसरे शब्दों में कहें तो ये इन्फ्लुएंसर्स इसी किस्म की गपोड़बाजी करते हैं. यूथ को बेवफकूफ बनाते हैं. जो चीज नौर्मल है उसे ये ओवरहाइप कर के बताते हैं और अभिनव जैसे लोग इन की बातों में आ जाते हैं. शेयर मार्केट में लौस और प्रौफिट दोनों होता है लेकिन इन्फ्लुएंसर्स सिर्फ फायदे की बात करते हैं.

अगर आप शेयर मार्केट में कहीं पैसा डालते हैं तो वहां लौस और प्रौफिट दोनों होता है. पैसा कमाने का कोई शौर्टकट तरीका नहीं होता. सब स्किल और मेहनत पर डिपैंड करता है. आप को फायदा हो सकता है और नुकसान भी हो सकता है. इन्फ्लुएंसर्स यूथ को अपनी बातों के जाल में फंसाते हैं और मोटीवेट करते हैं ताकि लोग इन के बताए हुए शेयर खरीदें.

ऐसी बातें युवाओं को निकम्मा और आलसी बनाती हैं

अच्छा है कि युवाओं को फाइनैंस के बारे में नौलेज होनी चाहिए लेकिन अमीर होने के शौर्टकट तरीके बता कर युवाओं को भ्रमित करना कहां तक सही है. इस तरह की बातें युवाओं को आलसी व निकम्मा बनाती हैं. युवाओं से यह नहीं बोलना चाहिए की पैसे से पैसे बनता है. बल्कि पैसा मेहनत और काम करने से बनता है. पैसा कमाना पड़ता है. ऐसा नहीं होता कि आप ने किसी कमरे में 10 रुपए रख दिए और कल वो 20 रुपए बन जाएंगे.

आप इन लोगों को फौलो कर भी रहे हो तो पहले जांच लो कि जिसे आप फौलो कर रहे हो वो सही है भी या नहीं. उस के पास कोई नौलेज है भी या नहीं. किसी को भी इन्वैस्टर्स को शेयर से जुड़ी किसी भी तरह की कोई सलाह देने के लिए बाजार नियामक सेबी के पास पंजीकृत होना जरूरी है, जबकि वित्तीय सलाह देने वाले इन फिनफ्लुएंसर्स में से ज्यादातर गैरपंजीकृत हैं.

दरअसल, सेबी एक तरह की संस्था है जो इस तरह की चीजों को कंट्रोल करने के लिए काम करती है. हालांकि इस समय सेबी की चेयरपर्सन माधवी बुच खुद विवादों में घिरी हुई हैं लेकिन इस के बावजूद सेबी इस तरह की चीजों को कंट्रोल करती है.

जरूरी यह है कि आप अपनी भी रिसर्च करिए. हाल ही में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की ओर से कहा गया था कि लोगों को फिनफ्लुएंसर्स की किसी भी सलाह को मानने से पहले उस को अच्छे से जांचपरख लेना चाहिए. एक जगह देखा और खरीदने बैठ गए, यह गलत है. आप उस तरह की पत्रिकाओं को पढ़िए जहां फाइनैंस के बारे में जानकारी दी जाती है क्योंकि वे बारीक जानकारियां आप को देती हैं.

सोफिया अंसारी, पूनम पांडे के Leak Sex Videos वायरल होने का नुस्खा तो नहीं

आएदिन किसी न किसी सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर का प्राइवेट वीडियो लीक हो जाता है और उस के बाद वो रातोंरात सुर्खियों में आ जाता है. ये लोग सुर्ख़ियों में आते भी इसलिए हैं क्योंकि युवा इन्हें रातदिन देखते हैं जिस से इन की फैन फौलोइंग लाखोंकरोड़ों में हो जाती है और वायरल होने के लिए वे किसी भी हद तक गुजर जाते हैं.

सोफिया अंसारी, कश्मीरा कौर, पूनम पांडे, मीनाहिल मलिक, अंजलि अरोड़ा, हरीम शाह और इन के जैसे ही जाने कितनी ही सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स हैं जिन के वीडियो आएदिन वायरल होते रहते हैं और सनसनी मचा देते हैं. इस तरह ये हमेशा चर्चाओं में रहती हैं और इसी के चलते ज्यादा से ज्यादा लोग इन्हें देखते व फौलो करते हैं जिस से इन की कमाई होती है.

सोफिया अंसारी उन चुनिंदा लड़कियों में से एक हैं जो रातोंरात सोशल मीडिया पर वायरल हो गई थीं. इस के बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा. इंस्टाग्राम व अन्य सोशल मीडिया प्लेटफौर्म्स पर उन के लाखों फौलोअर्स हैं. यही वजह है कि वे अपने फैंस के लिए सोशल मीडिया पर ऐक्टिव रहती हैं. सोफिया अंसारी आज इंटरनैट सैंसेशन बन चुकी हैं. सोशल मीडिया पर उन के वीडियोज आएदिन वायरल होते रहते हैं. सोफिया अंसारी के इंस्टाग्राम पर 1 करोड़ से अधिक फौलोअर्स हैं. इस के अलावा यूट्यूब पर उन के साढ़े 7 लाख से अधिक सब्सक्राइबर्स हैं.

उन के इंस्टाग्राम अकाउंट पर हद से ज्यादा बोल्ड कंटैंट आप को देखने को मिल जाएंगे. दरअसल, सोफिया ने अपने कैरियर की शुरुआत टिकटौक से की थी, जहां वे लिप्सिंग वीडियो बनाया करती थीं. हालांकि, टिकटौक बाद में बंद हो गया था. इस के बाद सोफिया ने इंस्टाग्राम पर रील्स ‘सोफिया अंसारी इंस्टाग्राम रील्स’ अकाउंट बना कर छोटी रील्स वीडियो बनानी शुरू कीं.

अभी हाल ही में सोफिया अंसारी ने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर अपनी कुछ तसवीरें पोस्ट की हैं. इन तसवीरों में सोफिया ने ब्रा नहीं पहनी है और डैनिम जींस के साथ एक टौप पहना हुआ है. लेकिन सोफिया ने अपने इस टौप के बटन खुले रखे हैं जिस से उन का सैक्सी लुक कूटकूट कर बाहर आ रहा है. सिर्फ़ इतना ही नहीं, सोफिया ने अपनी जींस की ज़िप भी नहीं लगाई है और अंडरगारमैंट्स भी वे दिखा रही हैं. सोफिया ने अपनी इस पोस्ट को ‘स्वेल्टरिंग’ नाम दिया है. ऐसा बताया जा रहा है कि सोफिया ने अपना नया टैटू दिखाने के लिए ये तसवीरें शेयर की हैं. हालांकि, तसवीरों में उन का टैटू कहीं दिखाई नहीं दे रहा है.

इस से पहले, सोफिया अंसारी ने इंस्टाग्राम अकाउंट पर अपनी 2 तसवीरें शेयर की थीं, जो होश उड़ाने वाली थीं. हालांकि, दोनों ही तसवीरें मिरर-सेल्फी थीं. पहली फोटो के बारे में आप को बताएं तो उन्होंने टौवल से अपना बदन ढका हुआ था, जिस में वे हौट लग रहीं थीं. वहीं दूसरी तसवीर में सोफिया ने तो मर्यादा की सीमा ही तोड़ दी थी. उन्होंने टौवल से अपना बदन तो ढका हुआ था, लेकिन साथ ही वे अपनी फिगर भी फ्लांट कर रही थीं.

वहीं, एक वीडियो में वे ब्लैक कलर की ब्रा में नजर आ रही हैं. इस के ऊपर उन्होंने जरीदार दुपट्टा जैसा कुछ भी कैरी किया हुआ है. सोफिया हर दिन अपनी बोल्ड अदाओं से सोशल मीडिया पर आग लगाती रहती हैं. वे सोशल मीडिया पर काफी ऐक्टिव रहती हैं और अकसर अपने फैंस के साथ तसवीरें व वीडियोज शेयर करती हैं. इस तरह सोशल मीडिया पर सोफिया के बारे में खूब चर्चा होती रहती है. यही वजह है कि वे अपनी हौटनैस के अवतार से काफी कमाई भी कर रही हैं.

अब ऐसे में सवाल उठता है कि इन के सैक्स वीडियो ही क्यों वायरल होते हैं? कैसे होते हैं? ये अपने सैक्सी फोटोज और वीडियोज ही क्यों डालती हैं? क्या इस के जरिए ये बहुत कम समय में फेमस होना चाहती हैं? क्या इन के पास फेमस होने के लिए कुछ अच्छा कंटैंट नहीं है? मशहूर होने के लिए क्या ये सब करना जरूरी है? क्या ये सब पैसा कमाने का खेल है?

इन्फ्लुएंसर गुनगुन गुप्ता की वायरल सैक्स वीडियो

मशहूर सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स गुनगुन गुप्ता का एक अश्लील वीडियो नवंबर 2023 में वायरल हो गया था. इस में वो एक लड़के के साथ वीडियो कौल पर दिख रही हैं. थोड़ी देर दोनों में बात होती है. इस के बाद वीडियो कौल पर गुनगुन गुप्ता लड़के को अपने शरीर के प्राइवेट पार्ट दिखाने लगती हैं. इस वीडियो में वो वीडियो कौल पर कपड़े उतार कर स्तन और प्राइवेट पार्ट्स दिखाती नज़र आ रही थीं. इस पर वीडियो कौल पर उस के साथ जुड़ा लड़का भी प्रतिक्रिया दे रहा है. सोशल मीडिया पर ये वीडियो खासा वायरल हो गया.
गुनगुन गुप्ता इंस्टाग्राम पर काफी सक्रिय रहती हैं. उन के 58 लाख फौलोअर्स हैं. इसी तरह फेसबुक पर उन के 2 लाख से ज़्यादा फौलोअर्स हैं. यूट्यूब पर भी 66,000 लोगों ने उन्हें सब्सक्राइब किया हुआ है. ऐसे में उन का वीडियो वायरल होना चर्चा का विषय बन गया था.

सोशल मीडिया एक्स पर एन्फ्लुएंसर्स का वीडियो वायरल होने के बाद इस पर लंबी जंग छिड़ गई है. कुछ लोग इसे मांबाप के संस्कारों की कमी बता रहे हैं तो कुछ लोग लड़कियों की आजादी पर अपना पक्ष रख रहे हैं.

एक्स पर एक यूजर नितिन शुक्ला ने लिखा, “ये लड़की सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर बताई जा रही है, अब इस की खुद की बनाई ब्लू फिल्म वायरल है, इस के असल दोषी वो मांबाप हैं जो खुद तो अपनी लाइफ में लूज़र हैं, फेलियर हैं और अपने बच्चों की इस तरह की एक्टिविटीज पर ध्यान नहीं देते.

इस पर कुछ लोगों ने इन का साथ दिया वहीं कुछ लोग सोशल मीडिया पर भड़क गए. उन का कहना था कि इस में मांबाप की कोई गलती नहीं है. आजकल के युवा मांबाप की कोई बात नहीं सुनते. वो अपनी लाइफ, अपना स्पेस, अपना सर्कल किसी से शेयर ही नहीं करना चाहते.
हालांकि, मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, गुनगुन गुप्ता ने एक पोस्ट के जरिए अपनी सफाई दी. उन्होंने अपने वायरल वीडियो पर सफाई पेश करते हुए उसे एडिटेड बताया है. साथ ही, कहा कि ऐसी हरकत व्यू पाने व उन को बदनाम करने के लिए की गई है.

उन्होंने आगे कहा, “बस करो आप सभी. मैं इतनी मजबूत नहीं हूं. सब बताना है आप सब को. थोड़ा टाइम और. जिन लोगों ने भी इसे एडिट किया है उन का मकसद सिर्फ व्यू हासिल करना और मुझे बदनाम करना है. ऐसे काम किसी की जिंदगी बरबाद कर देते हैं. और आप लोगों को भी किसी को जज करने का मौक़ा चाहिए. लेकिन कोई बात नहीं. अभी मेरा बुरा समय चल रहा है.”

सवाल यह कि उस पर्सनल वीडियो कौल की क्लिप आखिर बनाई ही क्यों गई? यदि आप ने नहीं किया और बना लिया तो वह तो आप के और आप के साथी के ही पास था, फिर वह वायरल कैसे हो गया? अब पब्लिक के मन में तो सवाल आएगा ही न कि वो वीडियो अपनेआप आप के फोन से निकल कर वायरल कैसे हो गया? किसी ने तो यह काम किया ही होगा? क्या यह आप की लापरवाही थी या वाकई व्यूज के लिए ये सब किया गया था?

इन्फ्लुएंसर्स सोना जब आपत्तिजनक और अंतरंग स्थिति में दिखाई दी

अगस्त 2024 में सोना का एक एमएमएस वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होने लगा. वीडियो में सोना आपत्तिजनक और अंतरंग स्थिति में दिखाई दे रही हैं. तेजी से वायरल हो रहे वीडियो को ले कर उन के फौलोअर्स और आम जनता में काफी उत्सुकता व चिंता पैदा हो गई.

आप को बता दें कि सोना डे एक लोकप्रिय सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर व यूट्यूबर हैं, जिन के इंस्टाग्राम पर 91 लाख फौलोअर्स और यूट्यूब चैनल पर 25 लाख से ज्यादा सब्सक्राइबर हैं. सोना अपने यूट्यूब चैनल पर लगातार डांस वीडियो और व्लौग अपलोड करती रहती हैं.

लेकिन इस वीडियो के बाद बवाल मच गया जिस पर अपनी सफाई देते हुए सोना ने कहा, ‘यह मैं नहीं हूं और यह वीडियो केवल मुझे बदनाम करने के लिए बनाया जा रहा है. यह सिर्फ एक एडिटेड वीडियो है. इंटरनैट पर वायरल हो रहा वीडियो पूरी तरह से फेक है. वीडियो में दिख रही महिला बंगलादेशी है और मेरे नाम पर वीडियो को फैला कर मुझे बदनाम किया जा रहा है.’

वीडियो लीक होने के बाद से ही सोशल मीडिया यूजर्स के बीच कई सवाल पैदा हो गए. कई लोगों ने कमैंट करते हुए पूछा, ‘यह वाकई सोना डे की हरकत थी या यह एआई से बनाया गया कोई डिजिटल हेरफेर है?’
कुछ यूजर्स ने लिखा, ‘यह कोई डीप फेक वीडियो हो सकता है.’ एक ने लिखा, ‘सोना डे का यह वीडियो वायरल होना इस बात की तरफ इशारा करता है कि सोशल मीडिया पर आसानी से कुछ भी वायरल हो सकता है और किसी को भी बदनाम किया जा सकता है.’

लेकिन इस पर भी सवाल वही है कि ऐसा आप जैसे बड़े मीडिया इन्फ्लुएंसर्स और यूट्यूबर्स के साथ ही क्यों होता है? वीडियो लीक हो जाने पर क्या आप ने इस मामले पर कोई पुलिस कंप्लेंट या साइबर क्राइम में रिपोर्ट की? अगर की थी तो बाद में पब्लिक को यह भी तो बताएं कि इस मामले पर दोषी लोगों को पकड़ा गया या नहीं?

कुछ भी कहें, वायरल वीडियोज का फायदा कहीं न कहीं इन मीडिया इन्फ्लुएंसर्स और यूट्यूबर्स को तो होता ही है.

मिनाहिल मलिक का प्राइवेट वीडियो

मिनाहिल मलिक एक पाकिस्तानी टिकटौक स्टार हैं, जिन के इंस्टाग्राम पर 18 लाख से ज्यादा फौलअर्स हैं. अपने फौलोअर्स को मिनाहिल अपनी डांस वीडियो और मजेदार रील्स से इंगेज रखती हैं.

मिनाहिल मलिक का एक प्राइवेट वीडियो लीक हुआ, जिस के बाद एक विवाद खड़ा हो गया. इस घटना के बाद मिनाहिल मलिक भारत में पौपुलर हो गईं और उन्हें गूगल पर तेजी से सर्च किया जा रहा है. मिनाहिल मलिक के लिए गूगल सर्च में भारत में 100 गुना वृद्धि हुई है. दरअसल, मिनाहिल को ले कर अचानक लोगों में दिलचस्पी तब पैदा हुई जब अगस्त में उन की पोस्ट वायरल हो गई जिस में उन का और उन के बौयफ्रैंड का एक निजी वीडियो औनलाइन लीक हो गया. मिनाहिल मलिक को इस के बाद विरोध का सामना भी करना पड़ा.

पाकिस्तानी अभिनेत्री मिशी ने कहा कि टिकटौक स्टार की चाहत बहुत जल्दी फेमस होने की है. वे इस तरह के एमएमएस वीडियो को लीक कर सुर्खियों में बनी रहना चाहती हैं. वे बौलीवुड की अभिनेत्री करीना कपूर खान की फिल्म ‘हीरोइन’ के किरदार से इंस्पायर हो कर यह कर रही हैं. करीना कपूर अभिनीत बौलीवुड फिल्म ‘हीरोइन’ के एक सीन से इस घटना की उन्होंने तुलना की.

इंस्टाग्राम पर साझा की गई एक पोस्ट में मिशी खान ने अपनी निराशा व्यक्त की और लिखा, ‘इन प्रभावशाली लोगों को प्रसिद्धि के लिए सब से निचले स्तर पर गिरते हुए और अपने परिवार, मातापिता व समाज को अपमानित करते हुए देखना शर्मनाक है. उन्हें सोशल मीडिया का उपयोग करने से प्रतिबंधित किया जाना चाहिए.’

इस के बाद लोग उन के इस वीडियो को ‘पाकिस्तानी टिकटौक वायरल वीडियो’ कीवर्ड के सहारे खोज रहे हैं. गूगल ट्रैंड्स के आंकड़ों के अनुसार ‘पाकिस्तानी टिकटौक वायरल वीडियो’ कीवर्ड में उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में 100 फीसदी की वृद्धि देखी गई.

क्या वाकई यह पब्लिसिटी स्टंट था? अगर हां, तो यह बहुत बुरी बात है. इतने लाखोंकरोड़ों लोग आप को देख रहे हैं और आप में इतना टैलेंट भी नहीं कि कुछ अच्छा और बेहतर कर के अपना नाम कर सकें? पब्लिसिटी के लिए इस स्तर तक गिरना क्या सही है? सवाल तो यह भी है कि ऐसा प्राइवेट वीडियो बनाया ही क्यों गया?

अपने अंतरंग पलों का वीडियो बनाना क्या सही है? कुछ दिन पहले ‘विक्की और विद्या का ‘वो वाला वीडियो’ यही सीख देता है कि ऐसा वीडियो न बनाएं. क्या आप इतना भी नहीं जानतीं कि अगर ये चीजें गलत हाथों में पड़ जाएं तो इस से कितना नुकसान हो सकता है.

अगर बना भी लिया था तो बाहर लीक कैसे हो गया? यह तो आप दोनों के फ़ोन में ही था न, तो फिर किसी तीसरे व्यक्ति तक यह कैसे पहुंचा?

मिनाहिल का पहले भी एक एमएमएस वायरल हो चुका था. यह मामला कुछ वर्षों पहले का है, जिस में उस की वीडियो और फोटोज वायरल हुई थीं. तब भी सबक नहीं लिया और फिर इस तरह के वीडियो को बनाया व उसे सुरक्षित भी नहीं रख सकीं वे. ऐसा बारबार इन्हीं के साथ ही क्यों हो रहा है?

सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर अंजलि अरोड़ा

कच्चा बादाम गर्ल के नाम से मशहूर सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर अंजलि अरोड़ा अकसर ही किसी न किसी वजह से लाइमलाइट में रहती हैं. ये इंफ्लुएंसर कभी अपनी ग्लैमरस तसवीरें तो कभी अपने बोल्ड वीडियोज के चलते लोगों के बीच चर्चा का विषय रहती हैं. फैन फौलोइंग के मामले में अंजलि अरोड़ा कई ऐक्ट्रैसेस को टक्कर देती हैं.

2022 में अंजलि अरोड़ा अपने एमएमएस लीक को ले कर भी काफी विवादों से घिरी रहीं. एमएमएस लीक के कारण अंजलि को कई लोगों ने ट्रोल भी किया था. हालांकि, उन्होंने कहा था कि, एमएमएस वीडियो में वे नहीं थीं.

वहीं नवंबर 2024 में ही पाकिस्तानी टिकटौकर इम्शा रहमान का एक वीडियो वायरल हुआ. वायरल क्लिप में वे दोस्त के साथ आपत्तिजनक हालत में हैं. सोशल मीडिया पर उन का यह प्राइवेट वीडियो खूब तेजी से वायरल हो रहा है. अभी तक यह पता नहीं चल पाया है कि इम्शा के इस प्राइवेट वीडियो को किस ने लीक किया है. एमएमएस के सामने आने के बाद इम्शा रहमान को सोशल मीडिया यूजर्स की कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ रहा है. लोगों का कहना है कि टिकटौकर ने यह लोगों का अटेंशन और अपने फौलोअर्स बढ़ाने के लिए किया है.

दरअसल, समयसमय पर ऐसे वीडियो वायरल होने पर इन्हें पब्लिक की कई बार सिम्पैथी भी मिलती है, तो कई बार पब्लिक इन्हें अपने तरीके से जज भी करती हैं और इन पर खुद ही वीडियो वायरल करने के आरोप भी लगाती है. वजह चाहे कुछ भी हो इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि इस तरह की पोस्ट से ये इन्फ्लुएंसर्स चर्चाओं में आ जाते हैं. वैसे भी, ये इन्फ्लुएंसर्स हमेशा चाचाओं में और विवादों में रहना पसंद करते हैं ताकि उन को फुटेज या व्यूज मिलें, फौलोअर्स मिल सकें.

इन की जबजब इस तरह की वीडियो वायरल होती हैं, ये फिर चर्चाओं में आ जाती हैं. फिर इन की रीच बढ़ती है, फैन फौलोअर्स बढ़ते हैं, इन के व्यूअर्स बढ़ते हैं. यही इन की मोटी कमाई का जरिया भी होता है. जिन के पास टैलेंट के नाम पर सिर्फ शरीर दिखाना हो, उन के पास चारा कुछ और नहीं बच पाता.

अधिकतर इन्फ़्लुएंसर्स सिर्फ विवादों में रहना चाहते हैं ताकि पैसा कमा सकें. ये जीरो टैलेंट लोग हैं. न ये यूथ को कोई इनफौर्मेशन दे रहे हैं, न ही कोई नौलेज दे रहे हैं. जो यूथ इस तरह के विवादों में मजा लते हैं या देख रहे होते हैं उन की भी गलती है कि वे इन्हें अपना आइडल बना रहे हैं और अपना टाइम व पैसा दोनों खर्च कर रहे हैं.

आस्ट्रेलिया में टीनएजर्स के लिए social media बैन क्या हैं माने

आस्ट्रेलिया में 16 साल से कम उम्र के टीनएजर्स के लिए सोशल मीडिया इस्तेमाल करने पर रोक लगी है. यह फैसला ऐसे समय लिया गया है जब दुनियाभर में युवा और टीनएजर्स इस की गिरफ्त में फंसते जा रहे हैं.

आज सोशल मीडिया सब की जिंदगी का अहम हिस्सा बनता जा रहा है और सोशल मीडिया से हो रहे नुकसान को ले कर दुनियाभर में चर्चा हो रही है. एक रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया के करीब 519 करोड़ लोग सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते हैं. टीनएजर्स समेत करीब 60 फीसदी से ज्यादा युवा सोशल मीडिया के ऐक्टिव यूजर्स हैं.

इसी नुकसान को देखते हुए आस्‍ट्रेलिया की सरकार ने बड़ा और सराहनीय कदम उठाते हुए 16 साल से कम उम्र के बच्‍चों के लिए सोशल मीडिया को बैन करने का फैसला लिया है. आस्ट्रेलियाई सरकार ने फरमान जारी किया है कि देश में 16 साल से कम उम्र के बच्चे का सोशल मीडिया पर कोई अकाउंट नहीं होगा. इस का सीधा सा मतलब है कि स्कूल के बच्चे अब सोशल मीडिया पर अपना कीमती समय नहीं बरबाद करेंगे.
आस्ट्रेलिया के पीएम अंथोनी अलबनीस ने कहा, “यदि ये ऐप्‍स बच्‍चों पर बैन नहीं लगाती हैं तो इन्‍हें भारी जुर्माना भरना पड़ सकता है. मेरे सिस्टम पर ऐसी चीजें दिखाई देती हैं जिन्हें मैं नहीं देखना चाहता तो एक नासमझ 14 वर्षीय टीनएजर की तो बात ही छोड़िए.”
सोशल मीडिया की वजह से हर देश के नौजवान के फ्यूचर पर बात आ रही है. ऐसे में आस्ट्रेलिया ने यह सराहनीय कदम उठा कर बाकी देशों को इस पर विचार करने लिए मजबूर कर दिया है.

आस्ट्रेलिया में सोशल मीडिया पर लगे बैन की खबर पर भारतीय जनता की राय कुछ इस तरह सामने आ रही है-
‘यह भारत में भी होना चाहिए’.

‘ग्रेट डिसीजन, इस से बच्चों का मानसिक संतुलन बिगड़ता जा रहा है.’
‘ऐसा कानून तो भारत में भी लागू होना चाहिए, अगर आने वाली पीढ़ी को सुधारना है तो यह सब रोकना पड़ेगा’.
‘इस से बढ़िया खबर आज तक नहीं मिली.’
‘फेसबुक, इंस्टाग्राम पर रील देख कर बच्चे और नौजवान अपना फ्यूचर खतरे में डाल रहे हैं, यह नियम भारत में भी जल्दी लागू करो.’

भारत की स्थिति कहीं ज्यादा खराब

देशभर में बाल संरक्षण पर काम करने वाली गैरसरकारी संस्था ‘क्राई’ के एक सर्वे के अनुसार, दिल्ली-एनसीआर में करीब 48 फीसदी टीनएजर्स इंटरनैट की लत से ग्रसित हैं और इस से उन के जीवन पर नैगेटिव असर पड़ रहा है. दिल्ली-एनसीआर में 13 से 18 साल तक के करीब 76 फीसदी बच्चे हर दिन औसतन 2 घंटे इंटरनैट पर बिता रहे हैं. इन में करीब 8 फीसदी किशोर दिन में 4 घंटे इंटरनैट का प्रयोग करते हैं. कुछ किशोर तो ऐसे भी हैं जिन को दिन में 18 घंटे फोन पर बिताने की लत है.
यही वजह है कि भारत में भी टीनएजर्स के लिए सोशल मीडिया के बैन की मांग की जा रही है. टीनएजर्स को सोशल मीडिया के नैगेटिव प्रभाव से बचाना बहुत जरूरी है. उस उम्र में जहां टीनएजर्स को अपने हमउम्रों के बीच घुलनामिलना चाहिए और कुछ क्रिएटिव सीखना चाहिए वे घंटों सोशल मीडिया से चिपके रहते हैं.

पेरैंट्स-टीचर्स की राय

पेरैंट्स का मानना है कि इंस्टाग्राम, यूट्यूब और एक्स जैसे सोशल मीडिया प्लेटफौर्म की वजह से टीनएजर्स के फैसले लेने की क्षमता, सोचनेसमझने की शक्ति और टाइम मैनेजमैंट प्रभावित हो रहा है. पेशे से टीचर और 12 और 16 वर्षीया 2 बेटियों की मां साक्षी के अनुसार, “सोशल मीडिया की वजह मेरी बेटियों ने खुद से कुछ सोचना और फैसले लेना बंद कर दिया है. उन की बोलचाल की भाषा तो बहुत ही ज्यादा खराब हो गई है. वे अपने आसपास के लोगों से बातचीत भी न के बराबर करती हैं. बस, अपनी ही दुनिया में मस्त रहती हैं वे.
“उन की बातचीत सिर्फ इस बात पर होती है कि किस ने उन की स्टोरी लाइक की, किस ने कमैंट किया, किस ने फौरवर्ड किया और उन्हें कितने लाइक मिले, क्या मुझे फलां व्यक्ति की फौलो रिक्वैस्ट स्वीकार करनी चाहिए, क्या मुझे फौलो रिक्वैस्ट भेजनी चाहिए, प्राइवेट अकाउंट कब और क्यों अनफौलो करना चाहिए. इन सब में सब से खराब बात यह है कि अगर 5वीं क्लास तक किसी बच्चे का सोशल मीडिया अकाउंट नहीं है, तो उन के फ्रैंड्स के अनुसार वह ओल्डफैशन्ड है.”

क्यों टीनएजर्स के लिए सोशल मीडिया बैन होना चाहिए?

व्‍यवहार में आता है बदलाव : सोशल मीडिया पर ज्‍यादा समय बिताने वाले टीनएजर्स के बिहेवियर में बदलाव दिखाई देता है. ऐसे टीनएजर्स में चिड़चिड़ापन, एंग्‍जायटी, डिप्रैशन, नींद से जुड़ी समस्‍याएं, आत्‍मसम्‍मान में कमी और किसी काम में फोकस न कर पाने जैसी समस्‍याएं देखने में आती हैं. स्मार्टफोन और सोशल मीडिया के उपयोग से किशोर बच्चे नकारात्मकता के शिकार हो रहे हैं. कुछ टीनएजर्स में तो सोशल मीडिया की वजह से आत्महत्या करने जैसे विचार जन्म ले लेते हैं. एक केस में, 8वीं कक्षा के छात्र ने फेसबुक पर किसी के अपमानजनक मैसेज के कारण आत्महत्या करने का प्रयास किया.

साइबर बुलिंग का खतरा : जब टीनएजर्स जरूरत से ज्‍यादा समय सोशल मीडिया पर बिताते हैं तब उन के साथ साइबर बुलिंग होने का भी खतरा बढ़ जाता है. साइबर बुलिंग का किशोरों पर शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक रूप से बुरा प्रभाव पड़ रहा है. टीनएजर्स सोशल मीडिया प्‍लेटफौर्म पर अपनी पर्सनल डिटेल्‍स शेयर करते हैं जिस से फ्रौड करने वाले लोगों तक उन की जानकारी पहुंच जाती है.

मोटापा बढ़ने का खतरा : स्‍क्रीन का बहुत ज्‍यादा इस्‍तेमाल करने की वजह से टीनएजर्स में मोटापा बढ़ने का खतरा बढ़ता है. जो रोज 5 घंटे से ज्‍यादा समय सोशल मीडिया पर या किसी भी तरह की स्क्रीन पर नजरें गड़ाए रहते हैं उन के ओवरवेट होने का खतरा कम समय के लिए स्क्रीन यूज करने वालों की अपेक्षा पांचगुना ज्‍यादा होता है.

सोशल मीडिया का एडिक्शन : सोशल मीडिया सब की लाइफ से कुछ इस तरह से जुड़ चुका है कि आजकल के टीनएजर्स तो एक मिनट भी इस के बिना रह नहीं पाते हैं. परिवार और दोस्तों के साथ जुड़े रहने, शौपिंग, फूड, आसपास की हर जानकारी व इवैंट्स के बारे में जानने के लिए भी वे सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते हैं. देखा जाए तो एक तरह से उन्हें सोशल मीडिया का एडिक्शन हो गया है. वे अपना कीमती समय घंटों तक 15-30 सैकंड की रील्स देख कर बरबाद कर रहे हैं जिस से उन्हें कोई जानकारी नहीं मिलती, सिर्फ समय की बरबादी होती है.
कुछ टीनएजर्स को तो सोशल मीडिया की इतनी बुरी लत लग गई है कि वे टौयलेट में भी बिना मोबाइल लिए नहीं जाते हैं और शायद यही वजह है कि अब उन के पास किसी दूसरे के लिए तो क्या खुद के कामों के लिए भी पर्याप्त समय नहीं है.

कमजोर होता सोशल कनैक्शन : सोशल मीडिया के एडिक्शन के चलते टीनएजर्स का सोशल कनैक्शन काफी हद तक कमजोर होता जा रहा है. जब वे फैमिली मैंबर्स के साथ किसी रैस्टोरैंट में भी जाते हैं तो फूड और्डर करने के बाद से उस के आने तक के समय में भी वे अपने मोबाइल फोन में चैटिंग करते रहते हैं या फिर सोशल मीडिया में फोटोज या रील्स अपलोड करने में लग होते हैं. और तो और, वे लाइफ के डिजिटल होने के चलते वे अपने इमोशन्स रोने, हंसने से ले कर प्यार जाहिर करने तक को भी इमोजी के जरिए व्यक्त कर रहे हैं.
उन की लाइफ जितनी डिजिटल होती जा रही है उन का शरीर उतना ही बीमारियों का घर बनता जा रहा है. आज सोशल मीडिया एडिक्शन को एक बीमारी की तरह ही ट्रीट किया जाने लगा है और सोशल मीडिया का नशा इस कदर टीनएजर्स के सिर पर चढ़ रहा है कि उन का इलाज और काउंसलिंग तक करानी पड़ रही है.

फेवरेट क्रिएटर्स से इन्फ़लुएंस होते टीनएजर्स : सोशल मीडिया के एडिक्टेड टीनएजर्स अपने फेवरेट क्रिएटर्स से इस कदर इन्फ्लुएंस होते हैं कि उन के द्वारा प्रमोट किए गए प्रोडक्टस पर वे आंख बंद कर विश्वास करते हैं और उन्हीं चीजों को खरीदने के लिए पेरैंट्स पर प्रैशर बनाते हैं और अगर डिमांड पूरी नहीं होती तो वे गलत तरीके अपनाते हैं.

सोशल मीडिया से दूरी के फायदे

रुहर यूनिवर्सिटी बोचुम और जरमन सैंटर फौर मैंटल हैल्थ, जरमनी की रिसर्च के अनुसार, सोशल मीडिया से दूरी बनाने से टीनएजर्स को अपना काम करने के लिए ज्यादा समय मिलता है. स्टडी में बताया गया है कि सोशल मीडिया का दिनभर में 30 मिनट कम इस्तेमाल करने से उन की मैंटल हैल्थ और संतुष्टि में सुधार हुआ है जबकि लगातार सोशल मीडिया के इस्तेमाल करने वाले टीनएजर्स को अपने काम पर ध्यान केंद्रित करना मुश्किल होता है.
रिसर्चर्स ने यह भी पाया कि सोशल मीडिया के कम इस्तेमाल से लोगों को काम का बोझ कम महसूस हुआ. साथ ही, ‘खो जाने का डर’ जिसे फोमो यानी फियर आफ मिसिंग आउट के नाम से जाना जाता है, कम हो ग

Student Teacher conflict : टीचर से क्रश या अनबन होने पर आजमाएं इन सुझावों को

स्टूडैंट और टीचर के बीच की ऐसी खट्टीमीठी यादें होती हैं जो बड़े होने पर भी दिमाग से नहीं निकलतीं. कई बार अनबन होती हैं जो बाद में बचकानी लगती हैं. जानिए ऐसी अनबनों को कैसे ठीक करें.

मैं कोई शिक्षक नहीं हूं, बस एक साथी यात्री हूं जिस से तुम ने राह पूछी है.’ महान नाटककार, आलोचक और नोबेल पुरस्कार साहित्य विजेता जौर्ज बर्नार्ड शौ का यह कथन शिक्षक की अहमियत को और बढ़ा देता है. टीचर केवल किताबी ज्ञान नहीं देते, वे जीवन की राह भी दिखाते हैं. वे आप को दुनिया के बीच खड़े होने को तैयार करते हैं. वही अनुशासन सिखाते हैं.

स्टूडैंट और टीचर का रिश्ता काफी खास होता है. पेरैंट्स के बाद अध्यापक को ही टीनएजर का दूसरा गुरु माना जाता है. शिक्षक भी बच्चों के भविष्य को बेहतर बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं, लेकिन कई बार स्टूडैंट और टीचर की रिलेशनशिप ज्यादा मजबूत नहीं होती है. कालेज में बेस्ट परफौर्मेंस देने के बाद जहां शिक्षक टीनएजर की सराहना करते हैं तो वहीं गलती करने पर टीनएजर को फटकार लगाने से भी नहीं चूकते हैं. ऐसे में ज्यादातर टीनएजर के साथ शिक्षक का रिश्ता बेहतर नहीं बन पाता है.

दरअसल, टीचर जब होमवर्क दे या डांटे तो वह आप को बुरी लगती है और जब तारीफ करे तो अच्छी. इसी तरह के कुछ खट्टे मीठेपलों से बनता है यह रिश्ता. लेकिन कई बार टीचर और स्टूडैंट के बीच किसी बात को ले कर अनबन काफी बढ़ जाती है. यह स्थिति दोनों के लिए ही सही नहीं होती क्योंकि इस का सीधा असर पढ़ाई और आने वाले भविष्य पर पड़ता है. सो, आइए जानें कि टीचर से अनबन या झगड़ा के क्या कारण होते हैं और उन्हें कैसे दूर करें.

क्या होते हैं टीचर से अनबन के कारण

सिचुएशन -1 टीचर घर का काम करवाती है : रोहित का कहना है, “मेरे एक ट्यूशन वाले सर हैं. पढ़ाते बहुत अच्छा हैं लेकिन उन की एक बुरी आदत है, वे पढ़ाने के बदले पैसे तो लेते ही हैं, साथ ही, उन्हें और भी फेवर चाहिए. वे अपने घर के सारे काम हम से करवाते हैं. कोई बिल जमा करना हो तो रोहित कर देना, औनलाइन बुकिंग तक तो चलो समझ आता है लेकिन हद तो तब हो गई जब वे अपने घर की सब्जियां और राशन तक हम से ही मंगवाने लगे. इन बातों को ले कर मेरा उन से झगड़ा हो गया. मैं ने उन्हें एक दिन खूब सुना दिया और कहा कि मैं उन का पर्सनल कोई भी काम नहीं करूंगा. बस, तभी से वे मेरे दुश्मन बन गए.”

सोल्यूशन क्या है- इस तरह लड़ने से कुछ नहीं होगा. आप ने फीस भी ट्यूशन की पूरे साल की दे रखी होती है. ऐसे में बीच में ट्यूशन छोड़ा भी नहीं जा सकता. इसलिए उन से आराम से बात करें कि पढ़ाई के साथ आप के पास इन सब कामों के लिए समय नहीं होता है. कभीकभार कोई काम में मदद चाहिए, तो ठीक है. अगर वे तब न समझें तो अपने पेरैंट्स को यह समस्या बताएं, वे टीचर से बात कर के इस का हल निकाल लेंगे.

सिचुएशन -2 मेरे पापा पुलिस में बड़ी पोस्ट पर हैं, इसलिए चिढ़ती हैं : रचना का कहना है, “मेरी मैथ्स की टीचर हमेशा मुझे ताना देती है कि होंगे तुम्हारे पापा कोई बड़े अफसर लेकिन यहां कोई रोब नहीं चलेगा. तुम्हें भी गलती करने पर वही पनिशमैंट मिलेगी जो बाकियों को मिलती है. हर वक्त पापा का नाम लेले कर मुझे सुनाती रहती है.”

सोल्युशन क्या है- ऐसी सिचुएशन में आप को टीचर से नहीं बल्कि खुद से सवाल करने की जरूरत है कि कहीं ऐसा तो नहीं, आप ही बातोंबातों में किसी स्टूडैंट पर अपने पापा की पोस्ट का रोब झाड़ती हों और किसी ने यह चुगली टीचर से कर दी हो. अगर ऐसा नहीं है तब भी टीचर से अकेले में बात करें और पूछें कि वे ऐसा क्यों करती हैं. यक़ीनन, बात करने पर समस्या का हल निकलेगा. साथ ही, आप भी ध्यान रखें कि आप के व्यवहार से ऐसा न झलके कि आप के पापा बड़े अफसर हैं तो आप सैलिब्रटी बन गए हैं.

सिचुएशन -3 हमारी दोस्ती पसंद नहीं : आशा का कहना है, “मैं और मेरी बेस्टी एक ही सीट शेयर करते हैं लेकिन इस बात से मैडम को जाने क्या चिढ़ है, वे हमारे पीछे लगी रहती हैं कि अलगअलग सीट पर बैठो. शायद उन्हें हमारी दोस्ती पसंद नहीं.

सोल्युशन क्या है- अगर टीचर को आप की दोस्ती पसंद नहीं तो भी क्या हुआ, वे आप के भले के लिए ही कह रही होंगी. हो सकता है आप को पता न चलता हो कि एकसाथ बैठ कर आप दोनों बातों में इतना मगन हो जाती हों कि टीचर की बात पर ध्यान न दे पाती हों. दूसरे, टीचर चाहती होंगी कि आप की बाकी लोगों से भी दोस्ती हो ताकि आप थोड़ी सोशल बनें. अपनी बेस्टी से तो आप लंचटाइम में या फिर घर पर, या किसी और पीरियड में दोस्ती निभा लेंगी य फिर एकआध बार साथ बैठें और कुछ दिन अलग ताकि टीचर को बोलने का मौका न मिले.

सिचुएशन 4 – एक बार टीचर की शिकायत कर दी थी : रजत ने बताया हमारी टीचर हर समय फोन पर लगी रहती थी और पढ़ने के बजाय इधरउधर की बात करती रहती थी जिस की वजह से पढ़ाई का बहुत नुकसान हो जाता था. एक बार प्रिंसिपल टीचर्स का सर्वे करने आई तो मैं ने सारी बातें उन्हें बता दी. उस दिन के बाद टीचर मुझ से हर बात पर चिढ़ती है. हर वक्त मुझ से सवालजवाब करती है. न जवाब दूं तो खूब सुनाती हैं कि तुम्हें तो बहुत पढ़ना था, अब क्या हो गया.

सोल्युशन क्या है- हालांकि टीचर की शिकायत प्रिंसिपल से करने से बेहतर था आप खुद ही टीचर से बात करते लेकिन अगर ऐसा हो ही गया है तो टीचर से बात करें की अगर उन्हें बुरा लगा तो सौरी. उन्हें मनाने की कोशिश करें. दूसरे, आप इतना पढ़ें कि उन के हर सवाल का जवाब आप के पास होना चाहिए. ताकि उन्हें लगे कि सच में ही आप पढ़ना चाहते थे. यह एक समस्या थी, न कि शिकायत.

 

इसके आलावा भी कुछ और कारण होते हैं जैसे-

 

कहीं टीचर पर क्रश तो नहीं
15 साल की उम्र के बाद टीनएजर स्टूडैंट को अकसर अपनी टीचर इतनी अच्छी लगने लगती है कि उन्हें लगता है कि उन्हें टीचर से प्यार हो गया है. उन का ध्यान पढ़ाई में कम, टीचर को घूरने में ज्यादा होता है. टीचर ये सब नोटिस करती हैं और झुंझला कर डांट लगाती हैं लेकिन कह नहीं पातीं कि वो समझ रही हैं तुम्हें मुझ पर क्रश हो गया है.

इसलिए अगर आप कुछ ऐसा कर रहे हैं तो रुक जाएं. यह आप की पढ़ाई के लिए भी ठीक नहीं है. अपना ध्यान न भटकाएं. यह सब करने के लिए पूरी उम्र पड़ी है. बहुत से मौके आएंगे लेकिन टीचर अगर चिढ़ गई तो प्रैक्टिकल के मार्क्स तो समझो गए. इसलिए अब खुद ही सोच लें कि आप को क्या करना है.

फ्लर्टिंग और तारीफ के बीच के फर्क को समझें

आकाश अपने दोस्त को बता रहा था कि आज रचना मैडम ने मुझ से कहा कि यह हेयरकट तो तुम पर बहुत सूट कर रहा है. यार, पहले भी मैं ने देखा है वे मुझे नोटिस करती हैं. जब भी मैं कुछ नया पहन कर आता हूं तो मुझ पर कमैंट करने से पीछे नहीं हटतीं. कई लोगों को टीचर का इस तरह करना अच्छा तो लगता है पर उन्हें लगता है टीचर उन्हें पसंद करती हैं, इसलिए ऐसा कर रही हैं जबकि वास्तव में ऐसा होता नहीं है.

अगर टीचर आप की हेयरस्टाइल को अच्छा बता रही हैं तो इस का मतलब यह बिलकुल नहीं है कि वे आप को लाइन मार रही हैं. कई बार टीचर स्टूडैंट और अपने बीच की दूरी को कम करने के लिए भी ऐसा करती हैं, थोड़ा फ्रैंडली माहौल बनाने के लिए ताकि वे स्टूडैंट को करीब से जान सकें और उन की समस्याओं को समझ कर उन्हें उन के हिसाब से पढ़ा सकें. इसलिए समझें हर तारीफ फ्लर्टिंग नहीं होती.

पढ़ाई पर धयान देते हैं या नहीं

टीचर से अनबन का एक कारण यह भी होता है कोई स्टूडैंट अगर पढ़ाई पर धयान नहीं दे रहा तो टीचर उसे बारबार टोकेगी ही, वह ऐसा उस के अच्छे फ्यूचर के लिए ही करती हैं. लेकिन स्टूडैंट को लगता है वे मुझे पसंद नहीं करतीं, इसलिए मेरे पीछे पड़ी रहती हैं. जरा एक बार कारण खोज के देंखें कि क्या आप क्लास में पूरा धयान देतें हैं? क्या आप अपनी पढ़ाई के प्रति लापरवाह नहीं हैं? अगर आप ढंग से पढेंगे तो यकीनन टीचर का आप से कोई बैर नहीं है. वे आप को उतना सम्मान देंगी जितना बाकी स्टूडैंट को देती हैं.

इन तरीकों से अनबन दूर करें

खुद में सुधार करें

आप को जहां लगता है सुधार की जरूरत है वहां सुधार करें. टीचर अगर कोई फीडबैक देती हैं तो उसे समझें और खुद में बदलाव लाने की कोशिश करना कोई बुरी बात नहीं है.

अपना रोब न झाड़ें

अगर बातबात में आप को अपने पैसे का रोब झाड़ने की आदत है, तो यह बात टीचर तो क्या, किसी को भी पसंद नहीं आएगी. यहां आप पढ़ने आते हैं. यहां सब स्टूडैंट सामान हैं. इसलिए स्कूल की यूनिफौर्म, क्लासेस भी एकजैसी होती हैं. टीचर के लिए कोई छोटा या बड़ा नहीं है, इसलिए सब से बराबरी का व्यवहार करें और करवाएं.

अपनी गलतियों की माफी मांगें

अगर टीचर से आप ने कभी कोई बदतमीजी की और वे उस वजह से आप से चिढ़ती हों तो अब उस बात को माफी के साथ ख़त्म करें. इस से टीचर की नाराजगी भी दूर होगी.

टीचर को भी उन की गलती का एहसास कराएं

अगर टीचर आप के साथ कुछ गलत कर रही हैं तो उन से जा कर सीधे बात करें और उन की गलती का उन्हें एहसास कराएं. ऐसा करने पर टीचर आप से नहीं चिढेंगी और उन्हें अपनी गलती का एहसास भी होगा.

शरारतें कम करें, टीचर आप से बड़ी हैं

अगर आप बहुत शरारती हैं और हर वक्त टीचर को परेशान करने के नएनए तरीके खोजते रहते हैं तो ऐसा न करें. वे आप से बहुत बड़ी हैं. कभीकभार शरारत करना और बात है लेकिन हर वक्त अच्छा नहीं लगता. ऐसा करने पर टीचर आप से चिढ़ने लगेंगी.

Hindi Story : एक संबंध ऐसा भी

मैं ने शादी का कार्ड निशा को देते हुए कहा, ‘‘देखना, यह कार्ड हम दोनों की शादी के लिए ठीक रहेगा. अगले महीने की 10 तारीख का कार्ड है.’’

निशा आश्चर्यचकित एकटक मेरी ओर देख रही थी. गुस्से से बोली, ‘‘ऐसा भद्दा मजाक आप करोगे, मैं ने सपने में भी नहीं सोचा था.’’ फिर मेरे गंभीर चेहरे को गौर से देखते हुए वह बोली, ‘‘मैं आप को बता चुकी हूं कि मैं राहुल को तलाक देने के पक्ष में नहीं हूं. आप का सम्मान करती हूं लेकिन राहुल को जीजान से चाहती हूं. मैं उस के बगैर कदापि नहीं रह सकती. मैं अपना टूटता हुआ घर दोबारा बसाना चाहती हूं.’’

‘‘निशा, धीरज रखो. मैं अपनी योजना तुम्हें बताता हूं. यह मेरी अद्भुत सी कोशिश है. शायद इस से तुम्हारी बिगड़ी हुई बात बन जाए,’’ यह सुन कर निशा खुश दिखाई दी.

मैं ने निशा की पीठ प्यार से थपथपाई और उसे आश्वस्त करते हुए विनम्रता से कहा, ‘‘मैं तुम्हारा दोस्त हूं और यह चाहता हूं कि जब राहुल को यह कार्ड दिखाया जाएगा तो उस के अहं को चोट पहुंचेगी. वह अवश्य सोचेगा कि तुम्हारे दूसरे विवाह की कोई संभावना नहीं होनी चाहिए. वैसे भी वह तुम से दूर रह कर पछता रहा होगा.’’

‘‘मुझे नहीं लगता है कि मुझ से दूर रह कर वह परेशान है. मुझे तो पता चला है कि दोस्तों के साथ उस की हर शाम मौजमस्ती में गुजर रही है. उस की एक महिला दोस्त उस के साथ विवाह के सपने देख रही है,’’ निशा ने कहा.

मैं ने निशा को आगे बताया कि शादी के कार्ड की कुछ गिनीचुनी प्रतियां ही छपवाई हैं. राहुल के एक मित्र को कार्ड दिखा भी दिया है. अब तक तो वह उसे कार्ड दिखा चुका होगा. वैसे एक कार्ड मैं ने उसे राहुल के लिए भी दे दिया था.

राहुल को जब निशा के विवाह के बारे में पता चला तो उस ने तीव्र प्रतिक्रिया दिखाते हुए निशा से फोन पर बात की.

‘‘तुम अगर यह समझती हो कि मैं तुम्हें किसी और से शादी करने दूंगा तो गलत समझती हो. जिस घमंड के साथ तुम मुझे छोड़ कर अपने मायके चली गई थीं वह एक दिन टूटेगा और विवश हो कर तुम मेरे घर रहने के लिए वापस लौटने को मजबूर हो जाओगी. मैं देखता हूं कि तुम कैसे कांतजी से विवाह करती हो.’’

निशा राहुल की प्रतिक्रिया से मन ही मन खुश थी. उसे लगा राहुल अभी भी उस से बहुत प्यार करता है और कोर्र्टकचहरी की भागदौड़ से तंग आ चुका है. उस ने संक्षेप में राहुल से कहा, ‘‘लगता है जब मैं तुम्हारे साथ मौजूद नहीं हूं, तुम्हें मेरी अहमियत और जरूरत महसूस हो रही है. यह बात मेरे लिए अच्छी है. मिथ्या अभिमान त्याग कर खुशीखुशी मुझे और हमारी बेटी रिंकू को यहां आ कर अपने घर ले जाओ.’’

राहुल ने बगैर कोई उत्तर दिए फोन का रिसीवर रख दिया था.

निशा को अब तक साफतौर पर यह पता नहीं चल पा रहा था कि आखिर राहुल की मां उस से क्या चाहती हैं. वे अपनी बहू में किस प्रकार के गुण ढूंढ़ती हैं. जिस बात के लिए वे अपने बेटे से उस का तलाक चाहती थीं वह बात थी उन के घर एक बेटी (रिंकू ) का जन्म होना. उन की चाहत थी कि उन के घर एक लड़के का जन्म हो. वैसे भी शुरू से ही राहुल की मां को निशा पसंद नहीं थी क्योंकि निशा के मायके जाने के बाद उन्हें दोनों वक्त का खाना बनाना पड़ता था. घर का सारा काम करना पड़ता था. वे अपना अहम भी बरकरार रखना चाहती थीं.

एक दिन राहुल किसी काम से मौल गया हुआ था तो उस ने देखा कि निशा, कार में मेरे साथ आई हुई थी. उसे बहुत आश्चर्य हुआ. निशा कार से बाहर निकल कर मौल में चली गई और वह मन ही मन कुछ सोचता वहीं खड़ा रहा.

‘निशा एक सुंदर और आकर्षक लड़की है जिसे कोई भी प्रेम करने से इनकार नहीं करेगा. उस में कुछ ऐसी बातें अवश्य हैं जिन से प्रभावित हो कर मैं उसे अपनाना चाहूंगा. वास्तव में मैं कई बार निशा को आश्वस्त कर चुका हूं कि उसे राहुल से अधिक प्यार करूंगा. हम दोनों का बारबार मिलना इस बात का प्रमाण है. जब कभी भी हम दोनों एक हो पाए तो निशा के जीवन में कोई कमी नहीं रहेगी,’ मैं कार में बैठा सोचता रहा.

‘मैं आप की बात जरूर मानूंगी. अगर तलाक के कारण राहुल ने मुझे छोड़ दिया तो…इस के लिए कांतजी आप को इंतजार करना होगा,’ निशा ने एक दिन मुझ से कहा था.

निशा जैसे ही मौल से बाहर आई मैं ने आगे बढ़ कर हाथ मिलाने के लिए अपना हाथ बढ़ाया. वह मुसकराते हुए मेरी ओर आ रही थी. उस ने पूरे उत्साह से मुझ से हाथ मिलाया. उस की आंख में चमक थी. वह बहुत खुश दिखाई दे रही थी.

राहुल यह देख कर जलभुन उठा. मेरी गाड़ी से वह थोड़ी दूरी पर खड़ा था. हम दोनों ने उसे जानबूझ कर अनदेखा किया हुआ था. मैं ने कार का दरवाजा खोल कर निशा को बैठने का संकेत किया. वह ड्राइविंग सीट के साथ वाली सीट पर बैठ गई और मैं ने कार स्टार्ट कर के उसे मेन रोड पर ले लिया. देखते ही देखते मेरी कार राहुल की आंखों से ओझल हो गई.

राहुल के पास मोटरबाइक थी. उस ने हम दोनों का पीछा नहीं किया. राहुल को एक झटका सा लगा. अगर वह निशा को दोबारा घर में ला कर बसा नहीं पाया तो मेरे संबंध में उस के लिए एक विकल्प मौजूद है. उसे इस बात का एहसास था. निशा इतनी खूबसूरत है कि कोई भी उसे सहर्ष पत्नी के रूप में स्वीकार कर लेगा. वैसे निशा मेरे बारे में राहुल को सविस्तार बता चुकी थी कि मैं उसे स्वीकार करने के लिए तत्पर हूं और जैसे ही तलाक की कार्यवाही पूरी होगी, मैं उस से विवाह में देर नहीं लगाऊंगा. मैं निशा को आश्वस्त कर चुका था.

एक दिन निशा आफिस के बाद सीधे मेरे घर आई. मैं उस समय अकेला ही था. वह बहुत परेशान लग रही थी. कारण पूछने पर बताया कि राहुल ने फोन पर उस से कहा है कि अगर तुम सीधी तरह से तलाक के कागज पर स्वीकृति के हस्ताक्षर नहीं करोगी तो मैं तुम पर चरित्रहीनता का आरोप लगा दूंगा. मैं ने मोबाइल से तुम्हारी और कांतजी की फोटो ले कर तैयार करवा ली है. रिंकू और स्वयं के लिए जो खर्चे का आवेदन- पत्र दिया है उसे भी वापस लो. मैं कोई भी रकम तुम्हें जीवननिर्वाह के लिए देने के पक्ष में नहीं हूं.

 

यह बताने के बाद निशा मेरे कंधे पर सिर रख कर जोरजोर से रोने लगी. मेरा हृदय उस के दुख से द्रवित हो रहा था. मैं ने उसे अपने आलिंगन में ले कर प्यार से उस का माथा चूम लिया.

‘‘मेरा धीरज अब मेरा साथ नहीं दे रहा है. मैं फोन पर राहुल द्वारा दी जाने वाली धमकियों से बहुत परेशान हो चुकी हूं. एक तरफ दफ्तर के काम का बोझ, दूसरी तरफ रिंकू के लालनपालन की जिम्मेदारी. कांतजी, मैं बुरी तरह से टूट रही हूं. इतनी अच्छी शैक्षिक योग्यता हासिल करने के बाद लगता है कि बहुत कम योग्यता वाले राहुल को अपनाकर मैं ने जिंदगी की बहुत बड़ी भूल की है, जिस की कीमत मुझे मानसिक यातना से चुकानी पड़ रही है.’’

निशा ने सिसकियों के बीच कहना जारी रखा, ‘‘मां के हठ के कारण राहुल घर बसाने का साहस नहीं बटोर पा रहा है. मुझे पता चला है कि अब उस ने शराब पीना भी शुरू कर दिया है. रिंकू का मोह तो उसे रत्ती भर भी नहीं है. प्यार पर हम दोनों का अहम भारी हो गया है.’’

मैं चुपचाप निशा की बातें सुन रहा था. प्यार से उस की पीठ थपथपाते हुए सांत्वना भरे स्वर में बोला, ‘‘निशू, मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूं, तुम्हें इस तरह मानसिक दबाव में टूटते हुए तो मैं बिलकुल नहीं देख सकता हूं. जमाने की मुझे कोई चिंता नहीं है. जब किसी को अपनाना होता है तो यह जरूरी होता है कि बगैर शर्त के उसे उस की जिम्मेदारियों के साथ अपना बना लिया जाए. रिंकू को मैं अपनी पुत्री की तरह पालने की जिम्मेदारी के एहसास के साथ अपनाऊंगा. आज से तुम्हारी चिंताएं मेरी हैं.’’

‘‘सर, मुझे आप पर पूरा यकीन है,’’ निशा ने पहली बार ‘सर’ के संबोधन से, मेरा हाथ अपने हाथ में ले कर कहा, ‘‘अगर आप मेरे विवाह से पहले मिले होते तो आज बात कुछ और ही होती. बेशक आप अधिक उम्र के हैं पर एक सुलझे हुए व्यक्तित्व वाले पुरुष हैं. मैं अपने तलाक के कागज हस्ताक्षर कर के आप के द्वारा ही अपने वकील को भिजवा दूंगी,’’ भावुकतावश निशा की आंखें भर आईं थीं. अपनेआप को संभाल पाना उसे मुश्किल लग रहा था.

मैं ने निशा को समझाने का प्रयत्न करते हुए कहा, ‘‘तुम अभी धैर्य का साथ मत छोड़ो. तुम अपनी समस्या का समाधान तलाश रही हो. तुम्हें अपने हित को ताक पर रख कर किसी भी हाल में समझौता नहीं करना चाहिए. रिंकू का भविष्य सर्वोपरि है. अगर तुम राहुल के पास लौट जाती हो तो क्या तुम आश्वस्त हो कि किसी प्रकार तुम्हारे प्रति हिंसा या दुर्व्यवहार नहीं किया जाएगा.’’

इस का निशा के पास कोई उत्तर नहीं था. इसलिए उस की प्रतिक्रिया मूक थी. थोड़ी देर बाद निशा ने मौन तोड़ा.

‘‘मेरे बारे में जो धमकी राहुल ने दी है कि वह मुझे चरित्रहीन ठहराते हुए कोर्ट में इस आशय का एफिडेविट देगा, वह कोरी बकवास है. जब रिंकू का नामकरण था तो राहुल की एक गर्लफ्रैंड, जिस का नाम पूजा है, हमारे यहां उस के साथ आई थी और इस तरह व्यवहार कर रही थी जैसे वह राहुल की पत्नी है. यदि तलाक की प्रक्रिया पूरी हो गई तो राहुल के आगेपीछे घूमने वाली पूजा को खुला मौका मिल जाएगा. वह उस के साथ शादी करना चाहेगी,’’ निशा ने मुझे बताया.

निशा अकसर अपने व्यक्तिगत जीवन की सारी बातें मुझे बता दिया करती थी.

निशा एक सशक्त नारी की भांति हमेशा अपने पैरों पर खड़ी रही. दफ्तर में पूरी मुस्तैदी से कार्य करती थी. जिस प्रधानाचार्य के साथ काम करती थी वह उस से बेहद खुश था. मेरा उस कालेज में आनाजाना था और यह जान कर कि व्यक्तिगत जीवन में ढेरों तनाव के रहते हुए भी वह दफ्तर की सभी जरूरतों पर खरी उतरती थी. मैं भी उस के इस गुण से प्रभावित था.

सास और पति से प्रताडि़त होने पर भी निशा सबकुछ धैर्य से सहती रही. अपनी लालसाओं की पूर्ति न होने पर सास अपने बेटे का दूसरा विवाह करने के लिए तलाक करवाना चाहती थी, इसलिए वह निशा को अपने घर से निकाल कर खुश थी.

महिला का दुश्मन महिला का ही होना कोई नई बात नहीं है. यह तो कई परिवारों में होता रहा है. निशा के विवाह के समय उस के मातापिता ने राहुल को कोई दहेज नहीं दिया था. राहुल की मां चाहती थीं कि दूसरी शादी करवा कर राहुल को बहुत बढि़या दहेज मिले. उन के घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी. राहुल न तो नौकरी कर सकता था और न उस के पास कोई पूंजी थी कि वह व्यापार में पैसे लगा कर आमदनी का जरिया बना सके.

मैं ने जब कभी निशा को सलाह दी कि वह कभीकभी राहुल की मां से मिलने चली जाया करे, शायद उन से मेलजोल से बिगड़ी बात बन जाए तो निशा का उत्तर होता था, ‘मेरी सास के मन में मेरी छवि खराब हो चुकी है. मेरा कोई भी प्रयत्न सफल नहीं हो पाएगा. मुझ में उन्हें अच्छी बहू का कोई गुण नजर नहीं आता है. राहुल भी हमेशा अपनी मां के पक्ष में ही बात करता है.’

जब कभी निशा मेरे घर पर होती थी बहुत प्यारा और खुशी का माहौल होता था. अकसर बातें करतेकरते वह खिलखिला कर अनायास ही हंसने लग जाती थी. मुझे ऐसे समय में यही लगता था, जैसे वह एक नन्ही सी बच्ची है जो छोटीछोटी बातों से अपना मन बहला कर खुश होना जानती है. निशा ने जिंदगी में बहुत दुख झेले हैं जिन की भरपाई उस के जीवन में आने वाले खुशी के पल शायद ही कर पाएं.

एक दिन निशा ने बताया, ‘कांतजी, मैं आगे अपनी पढ़ाई जारी रखना चाहती हूं. आज की स्पर्धा के युग में नारी को सक्षम बनना बहुत जरूरी हो गया है.’ मुझे उस के कथन में दृढ़ता का आभास हो रहा था.

मैं ने निशा को आश्वस्त करते हुए कहा, ‘तुम अवश्य ऐसा करो. मैं तुम्हारी सहायता करूंगा. उच्च शिक्षा प्राप्त करो. मुझे विश्वास है, तुम कामयाब होगी.’

वह मेरी बात बहुत ध्यान से सुन रही थी. सच कहूं तो नितप्रति मेरे मन में एक आशा हिलोरे मार रही थी कि अगर निशा राहुल के साथ घर नहीं बसा पाई तो मेरे घर आने में उसे कोई संकोच नहीं होगा. एक निराश नारी के हृदय में मैं प्राण फूंक सकूं. उस की पुत्री का पिता बन कर उसे सहारा दे सकूं तो स्वयं को मैं धन्य समझूंगा.

निशा को दिया जाने वाला हर आश्वासन मुझे उस की ओर ले जा रहा था. निशा भी यह बात अच्छी तरह जान चुकी थी कि मेरा आकर्षण उस के प्रति किसी शारीरिक मोह से प्रेरित नहीं है और न ही मैं उस की हालत पर तरस खा कर उसे अपनाना चाहता हूं. ऐसा केवल स्वभाववश है.

कई बार निशा मुझ से कह चुकी है, ‘‘कांतजी, न जाने कुदरत ने आप को किस मिट्टी से बनाया है. आप हर शख्स के साथ मोहब्बत और करुणा से पेश आते हैं.’’

आखिर वह दिन आ ही गया जब राहुल और निशा दोनों ने कोर्ट में तलाक के कागज पर हस्ताक्षर कर दिए. जिस दिन जज ने फैसले पर अपनी मुहर लगा दी और केस का निबटारा हो गया उसी दिन शाम के समय निशा मेरे घर आई.

वह दिन हमारी जिंदगी का बेहद अनमोल दिन था. खबर मिलने के बाद मैं रिंकू के लिए ढेरों उपहार और खिलौने बाजार से ले आया था. मैं ने इस अवसर को किसी खास तरीके से मनाने की बात को महत्त्व नहीं दिया. मैं अकेले ही निशा के साथ समय बिताना चाहता था.

घंटी बजने पर मैं ने दरवाजा खोला तो मैं आश्चर्यचकित रह गया. निशा लाल जोड़े में बेहद खूबसूरत शृंगार से सजीधजी सामने खड़ी थी. आंखों में नए जीवन की उम्मीद की चमक, होंठों पर न भुलाई जाने वाली मुसकान. स्वागत करते हुए मैं निशा के साथ ड्राइंगरूम में आ कर उस के समीप बैठ गया.

‘‘निशा, बड़े धैर्य के साथ मेरी बात सुनना,’’ मैं ने बड़े प्यार भरे शब्दों में उस से कहा, ‘‘बुरा मत मानना, बहुत विचार और चिंतन के बाद मैं इस नतीजे पर पहुंचा हूं कि मुझे तुम से विवाह करने के फैसले को बदलना होगा. दुनिया को यही लगे कि तुम मेरी पत्नी हो. अत: रिंकू के साथ मेरे घर आ जाओ. हम दोनों मिल कर रिंकू का लालनपालन करेंगे. यह एक प्रकार की लिव इन रिलेशनशिप ही होगी.

‘‘मेरी बढ़ती उम्र का तकाजा है कि मैं तुम्हें बेटी की तरह प्यार दूं. जहां इस दुनिया में भू्रणहत्या जैसे अपराध में लिप्त परिवार हैं वहीं हम दोनों मिल कर एक बेटी को पाल कर यह आदर्श स्थापित करें कि बेटी और बेटे में कोई फर्क नहीं होता है. अपना सबकुछ मैं आज से तुम्हारे नाम कर रहा हूं.’’

निशा किंकर्तव्यविमूढ़ मेरी ओर बड़े आदरभाव से देख रही थी. मेरे निकट आ कर उस ने मुझे गले से लगा लिया. आंसुओं को रोक पाना उस के बस में नहीं था. उस का मेरे निकट आना और मुझे गले लगाना कुछ ऐसा लगा जैसे किसी शिकारी ने एक चिडि़या को अपने तीर का निशाना बना दिया हो और वह घायल चिडि़या मेरी नरम हथेलियों पर सुरक्षा की तलाश में आ गिरी हो. वाल्मीकि ने अपनी प्रथम कविता की पंक्ति में ठीक ही लिखा था :

‘मां निषाद प्रतिष्ठाम् त्वमगम: शाश्वती समा:.

यत्क्रौंच मिथुनादेकमवधीम् काममोहित:’

-अर्थात् हे बहेलिया, काममोहित क्रौंच पक्षियों के जोड़े में से एक (नर) को तुम ने मार डाला. इसलिए अनंत वर्षों तक तुम्हें प्रतिष्ठा न मिले.

क्या राहुल को मैं भी वाल्मीकि जैसी बद्दुआ दूं, यह सोचने के तुरंत बाद मुझे लगा कि शायद इस की जरूरत नहीं, क्योंकि राहुल का तीर राहुल को ही ज्यादा घायल कर चुका होगा. पक्षी तो अब सुरक्षित है.

 

Donald Trump का नया ड्रामा, अमेरिका पर अब चर्च का शिकंजा

5 नवंबर की अपनी जीत के बाद 6 नवंबर को पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप जब फ्लोरिडा स्थित पाम बीच कन्वैंशन सैंटर में भाषण दे रहे थे तब लौबी में उन के सैकड़ों समर्थक इकट्ठा थे और हाउ ग्रेट थू आर्ट (हे ईश्वर तू कितना महान है) गा रहे थे. यह एक ईसाई भजन है जिसे 1885 में एक स्वीडिश कवि और राजनेता कार्लबर्ग ने लिखा था. इस के लंबेचौड़े अनुवाद का सार यह है कि ईश्वर महान है, सर्वशक्तिमान है वगैरहवगैरह.

इस भजन की भाषा ठीक वैसी है जैसी हिंदू धर्म में वेदों की ऋचाओं की है. यानी, हरेक छंद में आदमी के अपने पापी और हीन होने का कन्फेशन, पाप, पुण्य, मोक्ष, उद्धार जैसे शब्द और फिर उस महान परमेश्वर से बातबात पर क्षमा मांगना और तरहतरह की याचनाएं करना और फिर बातबात में ही उस का आभार व्यक्त करना आदि है. कार्लबर्ग विकट के पूजापाठी थे जिन की परवरिश ही एक चर्च में हुई थी. इस दिन भीड़ में आकर्षण का केंद्र बने इवेंजेलिकल ईसाईयों ने भी अपने क्लासिक भजनों को गा कर खुशी जताई.

आखिर खुशी जताते भी क्यों न, उन के हिस्से में तो मौका भी था, मौसम भी था और दस्तूर भी था जिसे शब्द देते 2016 से ही ट्रंप के कट्टर इंजील समर्थक रहे डलास के फर्स्ट बैपटिस्ट चर्च के पादरी रौबर्ट जेफ्रेस ने कहा, ‘‘यह एक बड़ी जीत है. इवेंजेलिकल्स के लिए कुछ आस्था संबंधी मुद्दे महत्त्वपूर्ण थे. लेकिन इवेंजेलिकल्स भी अमेरिकी हैं. इन्हें आप्रावासन की चिंता है, इन्हें अर्थव्यवस्था की चिंता है. इस ऐतिहासिक करार दी जाने वाली जीत का जश्न स्वाभाविक तौर पर पूरे अमेरिका की सड़कों पर मनाया गया.’’

फ्लोरिडा में दिए अपने विजयी भाषण में डोनाल्ड ट्रंप ने वही बातें कीं जिन की उम्मीद उन से थी, मसलन ‘मैं ये कर दूंगा’, ‘मैं वो कर दूंगा’, ‘यह अमेरिका का स्वर्णिम काल होगा’, ‘हम अमेरिका को फिर से महान बना सकेंगे’, ‘यह पूरे अमेरिका की राजनीतिक जीत है जो पहले कभी अमेरिका ने नहीं देखी थी.’ लेकिन पूरे भाषण में जो 2 बातें उल्लेखनीय थीं उन में से पहले थी एलन मस्क जिन्हें ट्रंप ने सार्वजनिक तौर पर धन्यवाद देते उन्हें नया स्टार करार दिया और दूसरी थी 13 जुलाई, 2024 के हमले में उन का बच जाना जिस के बारे में उन के शब्द थे, ‘कई लोगों ने मुझ से कहा है कि भगवान ने किसी कारण से मेरी जान बचाई है. 13 जुलाई को पेन्सिल्वेनिया के बटलर में लगभग घातक हत्या के प्रयास में मुझे चमत्कारिक दिव्य संरक्षण प्राप्त हुआ था और इस की वजह थी हमारे देश को बचाना और अमेरिका को फिर से महानता की ओर स्थापित करना.’

अब शायद ही कोई ट्रंप या कोई और भगवानवादी यह बता पाए कि जब भगवान को जान बचानी ही रहती है तो वह जानलेवा हमला करवाने का ड्रामा क्यों करता है.

इस बहस से परे ट्रंप के ये शब्द (चमत्कारिक दिव्य संरक्षण) धार्मिक ही थे और लगभग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उन शब्दों जैसे ही थे जिन में वाराणसी में नाव में इंटरव्यू देते उन्होंने एक न्यूज चैनल की एंकर से अपने नौन बायोलौजिकल होने की बात कहने के साथसाथ 24 मई, 2024 को यह भी कहा था कि मु?ो भगवान ने एक मिशन को पूरा करने के लिए भेजा है. वैसे भी, नरेंद्र मोदी और डोनाल्ड ट्रंप के व्यक्तिगत स्वभाव, राजनीतिक चरित्र और फलसफे में कई समानताएं हैं ही, साथ ही, दोनों की जीत और उस की ट्रिक्स भी मेल खाती हुई हैं.

ट्रंप के पहले विजयी भाषण में अगर रौबर्ट जेफ्रेस जैसे पादरी थे तो मोदी के 9 जून, 2024 के शपथ ग्रहण समारोह में भी कई नामी साधुसंत मौजूद थे. लोकतांत्रिक प्रक्रिया में इन धर्मगुरुओं की न तो कोई उपयोगिता होती है और न ही जरूरत. हां, इन लोगों की मौजूदगी यह साबित करती है कि बिना इन ईश्वरीय दूतों व इन के धर्म के ट्रंप और मोदी की जीत मुश्किल थी, क्योंकि दोनों के ही सामने कमला हैरिस और राहुल गांधी सरीखे निरपेक्ष, उदार और संविधानवादी नेता थे, जिन्हें दक्षिणपंथी अपनी सहूलियत और स्वार्थ के लिए वामपंथी कहते हैं और तब इन का लहजा किसी गाली से कम नहीं होता.

जलवा व दबदबा श्वेतों और सवर्णों का

डैमोक्रेटिक पार्टी के बुजुर्ग उम्मीदवार राष्ट्रपति जो बाइडेन ने जब अपनी खराब सेहत के कारण राष्ट्रपति पद की दौड़ से हटते भारतवंशी कमला हैरिस को नामांकित किया था तो ट्रंप खेमा बौखला उठा था. उपराष्ट्रपति कमला हैरिस के चुनावी मैदान में उतरने से पहले तक सबकुछ उबाऊ था और दुनिया यह मान चुकी थी कि डोनाल्ड ट्रंप दूसरी बार राष्ट्रपति बनने जा रहे हैं लेकिन कमला हैरिस की उम्मीदवारी से रिपब्लिकन्स में खलबली मच गई. कमला हैरिस लोकप्रियता के मामले में डोनाल्ड ट्रंप से उन्नीस नहीं थीं और न ही अब हारने के बाद हैं, क्योंकि वे ट्रंप से नहीं बल्कि उन कट्टर श्वेत ईसाईयों से हारी हैं जिन के लिए अमेरिका का संविधान बाइबिल के मुकाबले एक फुजूल सी किताब है.

अमेरिकी संविधान भी धर्मनिरपेक्ष है जिस में किसी धर्म का उल्लेख नहीं है. इस के बाद भी माना यह जाता है और हकीकत भी है कि 42 फीसदी श्वेत ईसाईयों (14 फीसदी इवेंजेलिकल, 16 फीसदी व्हाइट मेन लाइन वाले प्रोटेस्टैंट और 12 फीसदी कैथोलिक इन्हें हिंदू वर्णव्यवस्था के हिसाब से ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य कहा जा सकता है) का झुकाव शुरू से रिपब्लिकन पार्टी की तरफ रहा है जबकि 63 फीसदी गैर और अश्वेत ईसाईयों (7 फीसदी अश्वेत प्रोटेस्टैंट, 4-4 फीसदी हिस्पेनिक प्रोटेस्टैंट व दूसरे रंगों वाले प्रोटेस्टैंट, 8 फीसदी हिस्पेनिक कैथोलिक,
2 फीसदी दूसरे रंगों वाले हिस्पेनिक और बाकी छोटेमोटे धर्मों जैसे हिंदू व मुसलमानों के अलावा सब से ज्यादा 723 फीसदी वे अनएफिलिएटेड यानी जो किसी धर्म से संबद्ध नहीं हैं) का झुकाव डैमोक्रेटिक पार्टी की तरफ रहता है. इन्हें भारतीय संदर्भों के दलित, महादलित, पिछड़ा, अतिपिछड़ा, आदिवासी और मुसलमान कहा जा सकता है.

वर्ष 2020 से ले कर 2024 तक डोनाल्ड ट्रंप पूरी तरह धार्मिक राजनीति करते श्वेत ईसाईयों के हाथों नाचते रहे. जिद्दी, ऐयाश और बड़बोले ट्रंप को सब से पहले 2016 के चुनाव के वक्त मोहरा बनाया था. अमेरिका में रहने वाले इवेंजेलिकल ईसाईयों ने खुल कर उन का साथ दिया था. इस के बाद श्वेत कैथोलिकों और श्वेत प्रोटेस्टैंटों ने भी ईसाई राष्ट्रवाद से सहमति जताई थी क्योंकि ये भी उन्हीं की तरह पूजापाठी हैं. सो डोनाल्ड ट्रंप के लिए चुनाव कुछ खास मुश्किल नहीं रह गया था. इस के बाद भी उन्होंने लापरवाही नहीं दिखाई और अपने नए स्टार एलन मस्क की दौलत के दम पर 10 फीसदी से भी ज्यादा डैमोक्रेटिक वोटों में सेंधमारी करने में कामयाबी हासिल कर ली.

यह बिलकुल भारत जैसा था जिस में 15 फीसदी सवर्ण एकमुश्त भाजपा को वोट देते हैं और पंडेपुजारियों, कथावाचकों के फुसलाने व डराने के अलावा अडानी और अंबानी जैसे धनकुबेरों की दौलत के दम पर पिछड़ों, दलितों और आदिवासियों के 70 में से 15-20 फीसदी वोट हासिल कर 30-35 फीसदी वोट ले जाने वाली भाजपा के मुखिया नरेंद्र मोदी सत्ता पर काबिज हो जाते हैं. फर्क इतना है कि अमेरिका में एलन मस्क ने खुलेआम स्विंग स्टेट्स में करोड़ों रुपए मतदाताओं में लौटरी के नाम पर बांटे जबकि भारत में अभी यह रिवाज घोषित तौर पर नहीं है, यहां चोरीछिपे रात के अंधेरे में नोट, शराब और कंबल बांटने का चलन है. इस के अलावा इलैक्टोरल बौंड यानी चुनावी चंदा भी चलता है. एक और समानता यह है कि भारत में जिस तरह मुसलमानों का डर और हौआ दिखा कर वोटों का ध्रुवीकरण हिंदूवादी करते हैं उसी तरह अमेरिका में प्रवासियों का डर दिखा कर रिपब्लिकन पार्टी ने सत्ता हासिल की है.

इस के लिए डोनाल्ड ट्रंप ने अलगअलग सभाओं में खुलेआम श्वेत ईसाईयों को यह आश्वासन दिया कि ‘मेक अमेरिका ग्रेट अगेन’ मुहिम दरअसल उन के लिए ही है. उन के चर्चों के लिए है, उन के पादरियों के लिए है, उन के ब्यूरोक्रेट्स के लिए है, उन के परिवारों के लिए है, उन के बच्चों के लिए है जिन्हें स्कूलों में बाइबिल की शिक्षा दी जाएगी. सो, 5 नवंबर के नतीजे तमाम अनुमानों से उलट आए.

फंदा श्वेत ईसाईवाद का

डोनाल्ड ट्रंप के इन बयानों को समझने से पहले अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के अंदरूनी माहौल की एक बानगी देखें, तो तसवीर बहुत हद तक साफ हो जाती है कि वहां बहुत सारे मुद्दे सिर्फ भाषणों की सजावट के लिए थे वरना इकलौता मुद्दा वर्ण संकर (उस पर भी अश्वेत महिला) कमला हैरिस को राष्ट्रपति बनने से रोकना था. जैसे भारत के सवर्ण साधुसंत मानसिक गुलामी ढोते हैं वैसे ही अमेरिका के श्वेत ईसाई भी एरिजोना के इवेंजेलिकल पादरी मार्क ड्रिसकौल जैसों की धुन पर नाचते हैं जिन्होंने कमला हैरिस की उम्मीदवारी के बाद कहा था, ‘हमें ईसाई होने के नाते ‘जेजेबेल’ को सिंहासन पर बैठने से रोकने के लिए हर मुमकिन कोशिश करनी चाहिए.’

कहने की जरूरत नहीं कि यही बात भारत में राहुल गांधी के बारे में कही जाती है कि वे प्योर हिंदू न होने या विदेशी मूल के होने के नाते भारत के प्रधानमंत्री नहीं बन सकते. उन के पूर्वज मुसलमान, ईसाई, पारसी और फलांनेढिकाने थे, उन्हें रोकने के लिए हिंदुओं को कांग्रेस को वोट नहीं देना चाहिए.

जेजेबेल बाइबिल में वर्णित एक घृणित पात्र है जिस का आशय चरित्रहीन, अनैतिक और व्यभिचारिणी स्त्री से होता है. यानी, त्रेतायुग की शूर्पणखा की तरह. सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि श्वेत अमेरिकी ईसाई किस हद तक गिर गए थे और किस मुंह से अमेरिका के दुनिया में सब से पुराने और सशक्त लोकतंत्र होने की दुहाई देते हैं. कमला हैरिस का गुनाह इतना भर है कि वे अश्वेत हैं. उन्हें तरहतरह से अपमानित किया गया. उन की जगह कोई और होता या होती, तो चुनाव मैदान छोड़ देता लेकिन वे आखिर तक डटी रहीं और इस छिछोरेपन के आगे उन्होंने घुटने नहीं टेके. उम्मीद ही नहीं बल्कि तय है कि भविष्य में वे और मजबूत हो कर उभरेंगी जैसे राहुल गांधी भारत में उभरे हैं. उन्हें भी धर्म और वंश के नाम पर जलील करने में सनातनी कोई शर्म नहीं बल्कि गर्व महसूस करते हैं.

अमेरिका के भी चुनावप्रचार अभियान को देख कर लगा कि वहां सभ्यता और शिक्षा के माने कितने सिमट कर रह गए हैं. लोकतंत्र के साथसाथ इन सहित बहुत सी चीजें वहां भी खतरे में हैं जिस की जिम्मेदारी और ठेकेदारी कुटिल और धूर्त धर्मांध लोगों ने डोनाल्ड ट्रंप के कंधों पर डाल दी है.

कमला को सोशल ?मीडिया पर बारबार बेइज्जत किया गया. उन्हें ‘ब्राउन’ कहा गया जो नस्ल और रंग के हिसाब से अमेरिका में एक तरह की भद्दी गाली की तरह माना जाता है. ब्राउन दरअसल उपनिवेशवाद से ताल्लुक रखता शब्द है जिस का इस्तेमाल खासतौर से उत्तरी अमेरिका में दक्षिण एशियाई और हिस्पेनिक्स लोगों को अपमानित करने के लिए किया जाता है. ये लोग गोरे अमेरिकियों और गोरे यूरोपियों की संतानें हैं. कमला पर तो सैक्सिस्ट कमैंट्स भी जम कर किए गए.

अमेरिका की रिपब्लिक ट्रोल आर्मी ने भारत की भगवा ट्रोल आर्मी को पीछे छोड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी. कमला हैरिस पर जम कर निजी हमले किए गए, उन के बारे में झूठे किस्सेकहानियां गढ़े गए. उन के भूतपूर्व प्रेमी सेन फ्रांसिस्को के भूतपूर्व मेयर विली ब्राउन के तरहतरह के अश्लील मीम बना कर पोस्ट किए गए.

यह हकीकत कभी कमला हैरिस ने छिपाई नहीं कि 1990 के दशक में वे अपने से उम्र में ढाईगुना बड़े विली ब्राउन को डेट करती थीं. यह बात अमेरिका के लिहाज से बुरी गलत या अनैतिक नहीं समझ जाती. पर श्वेतों ने इसे यों पेश किया मानो कमला जीतीं तो पहाड़ टूट पड़ेगा और अमेरिका का नैतिक, धार्मिक व चारित्रिक पतन हो जाएगा.

सच तो यह है कि अमेरिका का नैतिक पतन पहली बार खुलेआम देखने में आया जब ट्रंप को जिताने के लिए श्वेत ईसाईयों ने तबीयत से स्याहपना दिखाया. डोनाल्ड ट्रंप और उन की व्हाइट क्रिश्चियन टीम किस महानता की तरफ वापस लौटने की बात कर रही है, यह तो कमला हैरिस की राष्ट्रपति पद की दावेदारी से ही साबित हो गया था जब मार्क ड्रिसकौल जैसे पादरियों ने अपना असली रंग दिखाना शुरू कर दिया था और ट्रंप इन उज्जडों को रोकने के बजाय उन्हें और शह देते ये वादे कर रहे थे क्योंकि वे खुद भी उज्जड हैं.

ईसाई एजेंडे के वाइस कैप्टन

डोनाल्ड ट्रंप ने अपनी सभाओं में बहुत स्पष्ट कहा कि मेरे प्यारे ईसाइयो- मेरा समर्थन करने वाले ईसाई नेताओं को व्हाइट हाउस में सीधी एंट्री मिलेगी.

ईसाई पूर्वाग्रह से लड़ने के लिए एक संघीय टास्क फोर्स गठित किया जाएगा.

हमें अमेरिका में धर्म को बचाना है. ‘गौड ब्लेस द यूएसए.’ बाइबिल हमें याद दिलाती है कि अमेरिका को फिर से महान बनाने के लिए सब से बड़ी चीज हमारा धर्म है.

अमेरिका में ईसाईयहूदी मूल्यों पर हमला हो रहा है जो शायद पहले कभी नहीं हुआ.

अमेरिकी अदालतों में रूढि़वादी जजों की नियुक्ति की जाएगी.

मुझे इस बार और वोट दे दो, इस के बाद आप को वोट देने की जहमत नहीं उठानी पड़ेगी.

इस ईसाई एजेंडे के तहत और भी कई बातें ट्रंप व उन की टीम ने कहीं, जिन के उपकप्तान जे डी वेंस थे. उन की छवि अमेरिका में ठीक वैसी ही है जैसी कि भारत में उमा भारती या गिरिराज सिंह सरीखे कट्टर हिंदूवादी नेताओं की है. पूरे प्रचार में रिपब्लिकंस ने जे डी वेंस की धार्मिक इमेज को जम कर भुनाया. मसलन, यह कि वे एक आस्थावान ईसाई हैं और नियमित चर्च जाते हैं. भारत की चुनावी सभाओं में राम की तर्ज पर जे डी ने कई बार जीसस को दुनिया का राजा बताया.

भारतीय मूल की अपनी पत्नी को उन्होंने खुद के आस्थावान ईसाई होने का श्रेय सार्वजनिक रूप से दिया जिस से गोरे लोग पत्नी की मंशा सहित, रंगत और नस्ल को ले कर सवाल न करें. गौरतलब है कि जे डी वेंस की पत्नी उषा चिलकुरी आंध्र प्रदेश के कृष्णा जिले के छोटे से गांव पामरू की हैं, जहां के लोग अपने अमेरिकी दामाद की जीत के लिए पूजापाठ करते रहे थे.

उषा रिपब्लिकन पार्टी जौइन करने से पहले डैमोक्रेटिक पार्टी में हुआ करती थीं. पत्नी उषा को अपना धार्मिक और आध्यात्मिक गुरु बताने वाले जे डी ज्यादा नहीं, अब से 7-8 वर्षों पहले तक डोनाल्ड ट्रंप के कट्टर आलोचक हुआ करते थे सोशल मीडिया पर वे उन्हें अमेरिका का हिटलर, बेवकूफ और सनकी भी कहा करते थे.

पेशे से लेखक और निवेशक रहे जे डी का हृदय परिवर्तन एकाएक ही इतना हुआ कि वे ट्रंप के हनुमान बन गए. उन की लिखी संस्मरणात्मक किताब ‘हिलबिली एलेजी’ बेस्ट सेलर बुक्स में शुमार होती है. ‘मेक अमेरिका ग्रेट अगेन’ मुहिम की स्क्रिप्ट लिखने वालों में से एक जे डी को भी माना जाता है जिन की ईसाई छवि, महत्त्वाकांक्षाओं और भारतीय पत्नी के प्रोत्साहन व मशवरे ने उन्हें श्वेत गैंग का हिस्सा बनने को मजबूर कर दिया. लेकिन इस की मुकम्मल कीमत भी उन्होंने वसूली जो वे अब अमेरिका के उपराष्ट्रपति होंगे और 2028 के लिए राष्ट्रपति पद के संभावित उम्मीदवारों की लिस्ट में रिपब्लिकन पार्टी में सब से ऊपर हैं.

ट्रेनिंग और ईसाइयत का कार्ड

अमेरिका की सैकंड लेडी बनने जा रहीं उषा चिलकुरी एक स्मार्ट फैशनेबल और सांवली रंग की खूबसूरत महिला हैं जो अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस जौन रौबर्ट्स की क्लर्क रह चुकी हैं. हैरानी की बात यह भी है कि जे डी जितने कट्टर ईसाई हैं, उषा उतनी ही कट्टर हिंदू हैं जिन्होंने शादी चर्च में नहीं बल्कि मंदिर में की थी और अपने तीनों बच्चों के नाम भी हिंदुओं सरीखे रखे.

धर्म और उस के मानने वाले, उस पर अपनी दुकान चलाने वाले कितने शातिर और धूर्त होते हैं, यह श्वेत ईसाईयों के दोहरे रवैये से उजागर हुआ जिन्हें कमला हैरिस में तो ब्राउनपना नजर आया लेकिन उषा चिलकुरी में नहीं. डैमोक्रेटिक्स चूंकि रिपब्लिकंस की तरह छिछोरे नहीं हैं इसलिए उन्होंने इसे मुद्दा नहीं बनाया. नतीजतन, जे डी की इमेज का फायदा वोटों की शक्ल में ट्रंप को मिला.

डोनाल्ड ट्रंप की दूसरी जीत एकाएक ही आसमान से नहीं टपकी है, बल्कि इस के लिए पादरियों ने परमेश्वर से उन के पुराने पाप धुलवाए होंगे और प्रायश्चित्त भी करवाया होगा. इस शुद्धीकरण के बाद उन्हें बतौर ईसाई सुल्तान पेश किया गया. यह तैयारी 2020 से ही चल रही थी और इस के निर्मातानिर्देशक वगैरह चर्चों के कर्ताधर्ता ही थे जिन्होंने तय कर लिया था कि ईसाई राज अगर कोई स्थापित कर सकता है तो वे डोनाल्ड ट्रंप हैं.

यही कभी भारत में हुआ था जब संतों, महंतों, मठाधीशों और शंकराचार्यों ने वाराणसी व प्रयागराज जैसे धार्मिक शहरों में आयोजित धर्मसंसदों में एक लाइन का एजेंडा पारित कर दिया था कि मोदी ही प्रधानमंत्री होंगे क्योंकि वही राममंदिर बनवा सकते हैं, मुसलमानों को खदेड़ सकते हैं और अगर सबकुछ प्लान के मुताबिक रहा तो जातिगत आरक्षण भी खत्म कर सकते हैं. यानी, संविधान को बेअसर कर सकते हैं.

इस बाबत उत्साहित धर्मगुरुओं ने प्रस्तावित हिंदू राष्ट्र का संविधान तक लिखना शुरू कर दिया था. लेकिन 4 जून, 2024 के नतीजों ने उन की उम्मीदों पर पानी फेर दिया. इस के बाद भी वे बहुत ज्यादा दुखी नहीं हैं क्योंकि मंदिर फलफूल रहे हैं, दक्षिणा इफरात से बरस रही है और दलितों व मुसलमानों को उन की हैसियत समझ आ रही है कि वह फिर से दोयम दर्जे की हो चुकी है.

अमेरिका में दिक्कत यह थी कि डोनाल्ड ट्रंप की धार्मिक इमेज कमजोर थी जिस की भरपाई के लिए एक बाइबिल, ‘गौड ब्लेस द यूएसए’ लिखवाई गई जिस की करोड़ों प्रतियां बिकीं. एहतियात के तौर पर यह किताब चीन में छपवाई गई. अमेरिकी मीडिया ने इसे खूब स्पेस दिया जो उस की नीतियों से मेल खाती बात नहीं थी. लेकिन ट्रंप और मस्क पैसा बरसा रहे थे, सो, उन्होंने भी भारतीय मीडिया से प्रेरणा लेते गंगा में हाथ धो लेना फायदे का सौदा समझा, कुछ तो इस में डुबकी लगा कर नहा ही लिए.

इश्यू नहीं यीशू चले

कमला हैरिस को हराने के लिए ट्रंप ‘गौड ब्लेस द यूएसए’ का दांव नाकाफी था, इसलिए ट्रंप ने खुद को सुपीरियर व्हाइट साबित करने के लिए कमला की नस्ल और रंग पर निशाना साधना शुरू कर दिया. उन्हें वामपंथी, कम्युनिस्ट और समाजवादी भी कहा, साथ ही, इस के काल्पनिक खतरे भी गिनाए. कमला हैरिस के नाम का उच्चारण कुछ इस तरीके से वे करने लगे थे कि सुनने वाले कमला की जगह काला सुने. काफी यह भी नहीं था, इसलिए ट्रंप की सभाओं और रैलियों में ऐसे श्वेत युवाओं के हुजूम नजर आने लगे जिन की शर्टों पर लिखा होता था- ‘यीशु मेरे उद्धारकर्ता हैं ट्रंप मेरे राष्ट्रपति हैं’, ‘ईश्वर बंदूकें और ट्रंप’ और ‘अमेरिका को फिर से ईश्वरीय बनाओ’. ये युवा गौड ब्लेस द यूएसए गीत भी गला फाड़ कर गाते थे तो लगता ऐसा था मानो मोदी की सभा में भगवा गमछाधारी गा रहे हैं कि जो राम को लाए हैं हम उन को लाएंगे.

इस श्वेत आतंक का गैरश्वेत ईसाईयों, अश्वेतों और असंबद्ध समूह पर फर्क नहीं पड़ा होगा, ऐसा न कहने की कोई वजह नहीं. ट्रंप की जीत इस की गवाही देती है कि वे इश्यूज पर नहीं बल्कि यीशु पर जीते हैं. भारत में भी भाजपा काम पर नहीं बल्कि राम नाम पर चुनाव जीतती है. मुद्दों की भीड़ में मुद्दा एक ही चला कि अगर कमला हैरिस जीतीं तो पूरा अमेरिका प्रवासियों से भर जाएगा और ये बाहरी विधर्मी लोग मूल अमेरिकियों को सड़क पर ला देंगे.

एक भाषण में डोनाल्ड ट्रंप ने कमला हैरिस को खतरनाक उदारवादी महिला इसी मंशा से बताया था. यह डर भारत में राहुल गांधी के नाम पर फैलाया जाता है कि अगर वे प्रधानमंत्री बन पाए तो हिंदुस्तान को मुसलिम राष्ट्र बना देंगे. इस डर को फर्जी, मनगढ़ंत आंकड़ों के जरिए इतने आत्मविश्वास से पेश किया जाता है कि लोग दहल उठते हैं और सामान्य बुद्धि व तर्क से उन का कोई लेनादेना नहीं रह जाता. वे, बस, यही देखते हैं कि मंदिरों में नोट चढ़ाने और मोदी को वोट देने से ही यह पीपल वाला भूत पीछा छोड़ेगा. इस भूत का हौरर फिल्मों के भूतों की तरह कोई अस्तित्व नहीं होता.

इस मुद्दे या इश्यू पर एक और हैरत वाली बात यह नजर और समझ आती है कि जिस तरह से भारत के कुछ पिछड़ों को अपने अगड़ी जमात में होने की गलतफहमी हो आई है, वैसे ही अमेरिका में 3-4 पीढि़यों से बसे गैरअमेरिकी लोगों को यह वहम हो चला है कि वे अब श्वेतों के बराबर सामाजिक दर्जा रखने लगे हैं. अपने इस वहम को पाले रखने के लिए उन्होंने ट्रंप और रिपब्लिकन पार्टी को वोट दे दिया. इन में बड़ी तादाद में भारतीय मूल के अमेरिकी भी शामिल हैं जो परंपरागत रूप से डैमोक्रेटिक पार्टी के वोटर व समर्थक रहे हैं. ये लोग भूल रहे हैं कि उन की हैसियत ठीक वैसी ही रहनी है जैसी भारत में गैरसवर्णों की है. हां, इतना जरूर है कि जब तक वे चर्च और मंदिरों की दानपेटियों में पैसा चढ़ा रहे हैं तब तक उन्हें छेड़ा और प्रताडि़त नहीं किया जाएगा लेकिन तिरस्कार से वे खुद को ज्यादा दिनों तक बचा नहीं सकते.

धार्मिक टैक्स

धार्मिक टैक्स दुनियाभर में अमेरिका और भारत की तर्ज पर वसूला जा रहा है. कनाडा के सिख इस की ताजा मिसाल हैं जो कनाडाई लोगों की शह पर हिंदुओं को भगा कर मुख्यधारा में होने का भ्रम पाले बैठे हैं. कल को अमेरिका और अमेरिकी भी इसी राह पर चल पड़ें तो बात कतई हैरानी की नहीं होगी.

चुनावी तौर पर तो श्वेत ईसाईयों ने गैरश्वेत ईसाईयों और अश्वेतों को दोफाड़ कर ही दिया है. अब यह खेल धार्मिक और सामाजिक तौर पर भी और खुल कर खेला जा सकता है जिस में मुख्यधारा के लोग चर्चों में प्रार्थना करते नजर आएंगे और सहायक धाराओं वाले आपस में जूतमपैजार कर रहे होंगे.

प्रवासी अब वैश्विक मुद्दा बनाए जा रहे हैं. यह दुनियाभर में दक्षिणपंथ के पसरने का चिंताजनक उदाहरण है जिसे धर्म के धंधेबाजों ने पैसा उगाहने का जरिया बना रखा है. डोनाल्ड ट्रंप, बेंजामिन नेतन्याहू और नरेंद्र मोदी जैसे नेता सत्तासुख भोग रही कठपुतलियां मात्र हैं, फिर भी ढोल सभी धर्म विश्वबंधुत्व और भाईचारे का पीटते हैं तो तरस आना और चिंता होना स्वाभाविक है कि पूरा विश्व एक बारूद के मुहाने पर आ खड़ा हुआ है जिस के विस्फोट, छिटपुट ही सही, देखने में आने लगे हैं.

बात जहां तक अमेरिका की है, तो उस का लोकतंत्र और भविष्य इस बार तो ट्रंप के हाथों में रत्तीभर भी सुरक्षित नहीं है क्योंकि, हकीकत में, वह ट्रंप के नहीं बल्कि चर्चों और पादरियों के हाथों में है और दिलचस्प बात यह कि लोकतंत्र के जरिए है. न कहने की कोई वजह नहीं कि अब अमेरिका कहने को ही व्हाइट हाउस से चलेगा वरना चलना तो उसे अब चर्चों से है. डोनाल्ड ट्रंप 20 जनवरी को शपथ लेंगे लेकिन अभी से व्हाइट हाउस में श्वेतों की भरती शुरू हो गई है.

67 वर्षीया सूसी विल्स को व्हाइट हाउस चीफ औफ स्टाफ नियुक्त किया गया है. कट्टर श्वेत ईसाई यह महिला डोनाल्ड ट्रंप के चुनाव अभियान की प्रमुख थीं जिन की मरजी के बिना अब व्हाइट हाउस का पत्ता भी नहीं हिलेगा.

डोनाल्ड ट्रंप को दोबारा राष्ट्रपति बनाने की गोरे ईसाईयों की मंशा साल 2022 में भी उजागर हुई थी, तब प्यू रिसर्च सैंटर के एक सर्वेक्षण के मुताबिक 60 फीसदी ईसाईयों ने कहा था कि अमेरिका के संस्थापकों का इरादा इसे ईसाई राष्ट्र बनाने का था. 45 फीसदी लोगों ने कहा था कि अमेरिका को ईसाई राष्ट्र होना चाहिए. सर्वे रिपोर्ट यह भी बताती है कि 81 फीसदी श्वेत इवेंजेलिकल प्रोटेस्टैंटों ने कहा था कि संस्थापकों का इरादा अमेरिका को ईसाई राष्ट्र बनाने का था.

ऐसे कई सर्वेक्षण इस हकीकत पर मुहर लगाते हुए हैं कि अमेरिका को श्वेत ईसाई राष्ट्र बनाने की मुहिम को अंजाम डोनाल्ड ट्रंप ही दे सकते हैं क्योंकि दोनों बार, इत्तफाक से ही सही, उन्होंने महिलाओं को हराया है, इस से उन की स्त्रीविरोधी इमेज और पुख्ता हुई है. यह बात अमेरिकी समाज के पुरुष वर्चस्व और सत्तावादी होने की पुष्टि करते उन्हें ईसाईयों का नायक भी घोषित करती है.

गर्भपात के मुद्दे पर ट्रंप गोलमोल बातें करते रहे तो सिर्फ इसलिए कि कहीं महिलाओं के वोट न कट जाएं लेकिन अब वे शायद खुल कर बोलेंगे कि एबौर्शन ईसाई धर्म के मूलभूत सिद्धांतों के खिलाफ है क्योंकि परमेश्वर ऐसा नहीं चाहता. गौरतलब है कि गर्भपात के चर्चित मुकदमे रो बनाम वेड पर आया 2022 का फैसला ईसाइयत के हक में था और इसे उन्हीं रूढि़वादी जजों ने दिया था जिन्हें ट्रंप ने नियुक्त किया था.

कमला हैरिस इस अहम मसले पर बहुत स्पष्ट थीं लेकिन एबौर्शन पर प्रवासियों का मुद्दा भारी पड़ा जिस की बाबत शुरू से ही हमलावर रहे ट्रंप ने धमकियां देना शुरू कर दिया है.

महान अमेरिका के माने

कमला हैरिस के इस चुनाव में होने के माने कई वजहों से औपचारिक हो गए थे जिन की अब कोई अहमियत नहीं. लेकिन अपने चुनावप्रचार में उन्होंने जो महत्त्वपूर्ण बातें कहीं उन में से एक थी कि ट्रंप फासीवादी हैं, दूसरी यह कि अमेरिका में लोकतंत्र खतरे में है और इन से भी ज्यादा अहम यह थी कि हम वापस पीछे नहीं जा रहे हैं. ट्रंप का नारा चला कि हम अमेरिका को फिर से महान बनाएंगे. भारत के संदर्भों में समझ जाए तो रामराज्य लाएंगे और मनुवादी व्यवस्था भी नए तरीके से लागू करेंगे और एक हद तक ऐसा हो भी रहा है.

अमेरिका बाइबिल या चर्चों से महान नहीं बना बल्कि वह महान बना था अपनी आर्थिक और सैन्य शक्ति के चलते जिस में प्रवासियों का योगदान कमतर नहीं था. अमेरिका महान बना था नएनए अनुसंधान और आविष्कार करने वाले वैज्ञानिकों के दम पर. अमेरिका का महान बनना तब शुरू हुआ था जब वहां से संवैधानिक तौर पर गुलामी या दासप्रथा का खात्मा हुआ था और हर तरह के व हर धर्म और संस्कृति के लोग वहां जा कर बसने लगे थे.

ये लोग अमेरिका को अपने वतन के बराबर ही प्यार करते थे और अभी भी करते हैं. लेकिन 5 नवंबर का नतीजा कई खतरे ले कर आया है क्योंकि बड़े और घोषित तौर पर अमेरिका को एक धार्मिक राष्ट्र बनाने की मुहिम परवान चढ़ रही है. भारत की तरह वहां भी कट्टरवादी अपना एजेंडा चला रहे हैं. ऐसे में यह आशंका है कि वहां के राजनेताओं और धर्मगुरुओं का गठजोड़ अमेरिका से उस के अमेरिका होने की पहचान छीन भी सकता है.

झांसी कांड ने खोली चिकित्सा व्यवस्था की पोल : कहीं मनी देव दीवाली, कहीं परसा मातम

झांसी के अस्पताल में हुए हादसे ने उत्तर प्रदेश में सरकारी चिकित्सा व्यवस्था की पोल खोल दी है. नेता व अफसर दीये जला कर रिकौर्ड बना रहे तो वहीं रिश्वतखोर परिवारों के चिराग बुझाने का खेल खेलने में लगे हैं.

झांसी में महारानी लक्ष्मीबाई मैडिकल कालेज के बाहर 55 साल की महिला सितारा देवी जो महोबा से अपने पोते को ले कर आई थी, रोते हुए बोली, ‘परसों रात हम अपने बच्चे को ले कर आए थे. डाक्टरों ने ‘बडी मशीन’ में बच्चे को रखा था. आज यहां आग लग गई. मेरे बच्चे के माथे पर काला टीका लगा था. वह नहीं मिल रहा. जो एक बच्चा मिला वह किसी दूसरे की लड़की थी. उसे दे दी. मेरा बच्चा नहीं मिल रहा मुझे.’ सितारा की बहू महोबा अस्पताल में भरती है. वह अपने बेटे के साथ पोते को ले कर झांसी आई थी.
संजना नाम की महिला ने कहा कि कुलदीप नीलू का बच्चा ले कर वह आई थी. मंगलवार को उन्होंने बच्चा भरती कराया. वहां आग लग गई तो बच्चों को लेने के लिए भागे. वहां दूसरों के जले बच्चे लाए गए. उन का बच्चा नहीं मिल रहा.
अस्पताल के बाहर कई लोग अपने हाथ में जले बच्चे लिए भाग रहे थे. बच्चे जल कर काले हो गए गए थे. ये मांस के लोथड़े जैसे दिख रहे थे. झांसी के अस्पताल में भरती बच्चों और मांबाप के लिए कार्तिक पूर्णिमा का यह दिन अशुभ साबित हुआ.

कहीं दीये जले तो कहीं चिराग बुझे

सनातन धर्म में कार्तिक पूर्णिमा पर होने वाले गंगा स्नान को बेहद शुभ माना जाता है. कार्तिक मास की पूर्णिमा पर लाखों लोग गंगा के तट पर स्नान करने जाते हैं. माना जाता है कि इस दिन पर जो लोग गंगा स्नान करते हैं, उन्हें पापों से मुक्ति मिल जाती है और जीवन के उपरांत वे मोक्ष को प्राप्त करते हैं. इस दिन विष्णु, लक्ष्मी और चंद्र देव की पूजा की जाती है. इस साल कार्तिक पूर्णिमा 15 नवंबर को थी. कार्तिक पूर्णिमा पर गंगा स्नान के बाद दान देने का चलन होता है.
कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही देव दीपावली भी मनाई जाती है. आमतौर पर वाराणसी में ही देव दीवाली मनाई जाती थी. अब इस का चलन करीबकरीब हर बड़े शहर में नदी में होता है. इस की शुरुआत अयोध्या से होती है, जहां पिछले 8 वर्षों से दीये जलाने का रिवाज है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 5 लाख दीये जलाने से यह सफर तय किया. इस साल 22 लाख से अधिक दीये जलाने का विश्व रिकौर्ड बना. अब देव दीवाली भी वाराणसी से बाहर निकल कर हर शहर तक पहुंच गई है.
15 नवंबर के इस दिन को शुभ मान कर बहुत सारे लोगों ने गंगा स्नान कर दान दिया होगा. तमाम लोगों ने अपने घरों में दीये जलाए होंगे. वाराणसी में 21 लाख दीये जलाए गए थे. इसी दिन रात 10 बज कर 30 मिनट से 45 मिनट के बीच उत्तर प्रदेश के झांसी में महारानी लक्ष्मीबाई मैडिकल कालेज के नवजात शिशु गहन चिकित्सा कक्ष (एनआईसीयू) में आग लग गई. डीएम, झांसी, अविनाश कुमार के अनुसार, इस घटना में 10 नवजात शिशुओं की मौत हो गई. इन घरों के दीये हमेशा के लिए बुझ गए.
झांसी के चीफ मैडिकल सुपरिंटेंडैंट सचिन महोर ने बताया कि यह घटना औक्सीजन कंसंट्रेटर में आग लगने से हुई थी. एनआईसीयू वार्ड में 54 बच्चे भरती थे और अचानक औक्सीजन कंसंट्रेटर में आग लग गई जिस को बुझाने की कोशिशें की गईं. लेकिन कमरा हाइली औक्सिजिनेटेड रहता है तो आग तुरंत फैल गई. बाकी बच्चों को बचा लिया गया.
वहीं यूपी की मुख्य विपक्षी पार्टी समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने इस घटना पर दुख जताते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की निंदा की है. उन्होंने कहा है कि मुख्यमंत्री को चुनावप्रचार छोड़ कर चिकित्सा व्यवस्था पर ध्यान देना चाहिए. उन्होंने एक्स पर एक पोस्ट लिख कर राज्य सरकार को मृत नवजातों के परिजनों को एक करोड़ रुपए की सहायता राशि देने की मांग की है.
उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक ने कहा, ‘आग कैसे लगी है, इस की जांच होगी. डाक्टरों, नर्सों और पैरामैडिकल स्टाफ ने बहुत बहादुरी के साथ बच्चों को बचाया है. बड़ी संख्या में बच्चों को रेस्क्यू किया गया है. जो महिलाएं भरती थीं उन को भी रेस्क्यू किया गया है. फरवरी में अस्पताल का फायर सेफ्टी औडिट हुआ था. जून में मौक ड्रिल भी किया गया था. लेकिन यह घटना क्यों और कैसे हुई, यह जांच रिपोर्ट आने के बाद ही पता चलेगा.’
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने शिशुओं के मातापिता को 5-5 लाख रुपए और घायलों के परिजनों को 50-50 हजार रुपए की सहायता मुख्यमंत्री राहत कोष से उपलब्ध कराने की घोषणा की है.

क्या होता है ‘एनआईसीयू’ ?

अगर बच्चा समय से पहले पैदा हो जाता है या नवजात शिशु जन्म के बाद किसी गंभीर बीमारी से ग्रसित होते हैं तो उन बच्चों को नियोनेटल इंटैंसिव केयर यूनिट यानी एनआईसीयू में भरती किया जाता है. इस को नवजात गहन चिकित्सा इकाई भी कहा जाता है. यहां 24 घंटे नवजात शिशुओं की देखभाल के लिए विशेषज्ञ की टीम मौजूद रहती है. यहां बच्चे तब तक रहते हैं जब तक वे पूरी तरह से स्वस्थ नहीं हो जाते.
इन बच्चों की मुख्य परेशानी सही तरह से सांस का न लेना होता है. इस के लिए ‘औक्सीजन कंसंट्रेटर’ का प्रयोग किया जाता है. यहां बच्चों के लिए छोटेछोटे पालनेनुमा बेड होते हैं. इन में हर तरह की मैडिकल सुविधा बच्चे को मिलती है.
‘औक्सीजन कंसंट्रेटर’ एक मैडिकल डिवाइस होता है, जो हवा में से औक्सीजन को अलग करता है. वातावरण में मौजूद हवा में कई तरह की गैस मौजूद होती हैं और यह कंसंट्रेटर उसी हवा को अपने अंदर लेता है और उस में से दूसरी गैसों को अलग कर के शुद्ध औक्सीजन सप्लाई करता है. औक्सीजन लैवल 90-94 प्रतिशत होने पर औक्सीजन कंसंट्रेटर की मदद से सांस ली जा सकती है. एनआईसीयू में वैंटिलेटर भी होता है. यह भी एक तरह का मैडिकल उपकरण होता है. यह बच्चों के फेफड़ों में औक्सीजन या हवा भेजने का काम करता है.
एनआईसीयू में बच्चों को अकेले रखा जाता है. बच्चों की देखभाल करने की जिम्मेदारी डाक्टर और पैरामैडिकल स्टाफ की होती है. मातापिता या उन के करीबी रिश्तेदार समयसमय पर अपने बच्चे को देख लेते हैं. झांसी में महारानी लक्ष्मीबाई मैडिकल कालेज के एनआईसीयू वार्ड में 54 बच्चों के एक साथ इलाज की व्यवस्था है. इस वार्ड के 2 हिस्से हैं. अंदर वाले हिस्से में ज्यादा गंभीर बच्चे रखे जाते हैं. बाहर वाले वार्ड में जो बच्चे ठीक हो जाते हैं उन को रखा जाता है. जिस समय दुर्घटना हुई वहां 47 बच्चे थे. जिन में से 37 को बचा लिया गया, 10 को नहीं बचाया जा सका.

 

पुरानी घटना से नहीं लेते सीख

2017 में गोरखपुर के बीआरडी मैडिकल कालेज में एनआईसीयू वार्ड में आग लगने की घटना घटित हुई थी जिस में 63 बच्चों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था. उस समय योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बन चुके थे. बात केवल घटनाओं की नहीं है. उत्तर प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था पूरी तरह से चरमरा गई है. कोविड काल में अस्पतालों ने जिस तरह के हालात पैदा किए वे बेहद शर्मनाक थे. जिस तरह से अस्पतालों का निजीकरण हुआ है उस ने सरकारी अस्पतालों को और भी खस्ताहाल कर दिया है. सरकारी अस्पतालों में दवा की खरीदारी से ले कर मशीनों की खरीद तक में तमाम तरह की गड़बड़ियां की जाती हैं.
अस्पतालों में जांच के काम में आने वाली मशीनें खराब हैं. इस में सामान्य जांच से ले कर अल्ट्रासाउंड, एक्सरे, सीटी स्कैन तक की मशीनें काम नहीं करती हैं. इन को जल्दी ठीक नहीं कराया जाता है जिस से कि महंगी फीस दे कर प्राइवेट पैथोलौजी में जांच कराई जा सके.
सरकारी अस्पताल में मशीनें खराब रहती हैं तो 2 रास्ते होते हैं- या तो प्राइवेट में जांच हो या फिर अस्पताल की मशीन ठीक होने का इंतजार. इस में कई बार मरीज के लिए खतरा हो जाता है.

खस्ताहाल व्यवस्था

सरकार ने गरीबों को खुश करने के लिए 5 लाख रुपए वाला आयुष्मान भारत कार्ड बना दिया है. गरीबीरेखा के नीचे के लोगों का इस कार्ड के जरिए प्राइवेट में मुफ्त इलाज होने लगा है. तमाम अस्पतालों में लिखा होता है कि यहां आयुष्मान भारत कार्ड धारकों का इलाज होता है. इस इलाज का खर्च सरकारी खाते से जाता है. निजी अस्पतालों के लिए यह कमाई का बड़ा जरिया हो गया है. इस में मनमानी महंगी दवा के सेवन की सलाह दी जाती है जिस से सरकारी पैसे को निकाला जा सके.
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 12 करोड़ कार्ड धारक हैं. 55 करोड़ लोग इस से लाभ पा रहे हैं. अगर इस की गहन जांच हो तो निजी अस्पतालों के लिए यह कमाई का बड़ा जरिया साबित होगा. इतने लोगों का कार्ड बनने के बाद भी निजी अस्पताल में भीड़ कम नहीं हो रही है. न ही सरकारी अस्पतालों में भीड़ कम हो रही है. लखनऊ के राम मनोहर लोहिया अस्पताल मैडिकल कालेज के ओपीडी में परचा बनवाने के लिए 8 बजे खिड़की खुलती है. इस में परचा बनवाने की लाइन सुबह 5 बजे से लगनी शुरू हो जाती है. एकएक डाक्टर 150 से 200 मरीजों को देखता है. इस के बाद भी कुछ मरीज बिना देखे ही रह जाते हैं.
सरकारी अस्पतालों की खस्ताहाल व्यवस्था ही है जिस की वजह से जांच की मशीनें खराब हैं. निजी पैथोलौजी की संख्या और फीस बढ़ती जा रही है. निजी अस्पताल और पैथोलौजी में गरीब लोगों को इलाज कराना मुश्किल होता है. जान बचाने के लिए वह जमीन बेच कर इलाज कराता है. अगर वह सरकारी अस्पताल जाता है तो झांसी जैसे कांड का सामना करना पड़ जाता है. बीमारी के शिकार लोगों के पास कोई रास्ता नहीं है. या तो निजी अस्पताल में इलाज करा कर बिक जाए या फिर सरकारी अस्पताल में इलाज करा कर मर जाए. वह जाए जो जाए कहां?

बच्चों पर रीतिरिवाज न थोपें

16 साल का सुगम परीक्षा देने जाने से पहले भगवान के सामने दीया जलाए और माथे पर तिलक लगाए बिना एग्जाम देने नहीं जाता. उस का विश्वास है कि ऐसा करने से उस की परीक्षा अच्छी जाएगी और वह अच्छे नंबरों से पास हो जाएगा. परीक्षा के समय शुभ शगुन के लिए वह अपनी मां के हाथ से दहीचीनी भी जरूर खा कर जाता है. उस की मां ने बचपन से जो भी रीतिरिवाज सिखाए हैं, उन का वह पूरी तरह से पालन करता है.

26 साल की तिथि कौर्पोरेट जौब करती है. उस के घर में बहुत सारे नियमकानून बने हुए हैं, जैसे कि गुरुवार को बाल नहीं धो सकते, नाखुन नहीं काट सकते. शनिवार को नौनवेज नहीं खा सकते वगैरह. तिथि को इस बात से बहुत चिढ़ होती है कि ये सब क्या है. क्यों वह गुरुवार को अपने बाल नहीं धो सकती और शनिवार को नौनवेज नहीं खा सकती? लेकिन न चाहते हुए भी उसे वह सब करना पड़ता है. कहें तो ये सारे रीतिरिवाज उस पर जबरन थोपे गए हैं.

परीक्षा देने जाते समय अतुल की बहन ने जब उस से आवाज लगा कर रुकने को कहा, तो वह अपनी बहन पर यह कह कर बरस पड़ा कि उस ने उसे पीछे से क्यों टोका. अब देखना उस का एग्जाम अच्छा नहीं जाएगा. और हुआ भी वही, अतुल का एग्जाम अच्छा नहीं गया. कारण जो भी रहा हो पर परीक्षा के अच्छा न होने का सारा इलजाम उस ने अपनी बहन पर लगा दिया कि उस ने पीछे से टोका, इसलिए वह फेल हो गया.

अब यह तो कोरा अंधविश्वास ही है. फेल तो वह इसलिए हुआ क्योंकि उस ने अच्छे से पढ़ाई नहीं की. मगर सारा दोष उस ने अपनी बहन पर मढ़ दिया कि उस के पीछे से टोकने के कारण वह फेल हो गया. वैसे, यह सीख अतुल को अपने पापा से ही मिली है. बाहर जाते समय जब कभी उस की मां उस के पापा को पीछे से टोक देतीं तो वे यह कह कर गुस्सा हो जाते थे कि ‘लो, पीछे से टोक कर अपशगुन कर दिया न.’ अतुल ने जो भी सीखा अपने मातापिता से ही सीखा.

23 साल की निधि कहती है कि उस की मां बेमतलब के रीतिरिवाजों को बहुत मानती है और उस पर भी ऐसा करने का दबाव बनाती है. जब भी वह मासिकधर्म में होती है, उसे किचन से दूर कर दिया जाता है. यहां तक कि वह घर के पुरुषों के सामने तक नहीं जा सकती है. उन का कहना है कि तुम, बस, एक कोने में पड़ी रहो. अजीबअजीब सी शंकाएं पाल बैठी हैं. निधि कहती हैं कि ‘डर लगता है मुझे कि कहीं आगे चल कर मैं भी अपनी मां की जैसी न बन जाऊं.

बिहार के मिथिला क्षेत्र, जिसे सीता माता का मायका कहा जाता है, आज भी नई बहू के आने पर उस के घुटने को जलती रूई की बाती से दागा जाता है. इन रीतिरिवाजों और परंपराओं को लोग जानने की कोशिश नहीं करते कि ऐसा करने के पीछे कारण क्या है. बस, पीढ़ीदरपीढ़ी वे निभाते चले आ रहे हैं.

बेमतलब के बहुत से रीतिरिवाज हमारे भारतीय परिवारों में देखने को मिलते हैं, जिन का कोई आधार नहीं होता. एक अध्ययन में यह बात सामने आ चुकी है कि लगभग 8 वर्ष तक बच्चे का दिमाग काफी तेज दौड़ता है. उसे जो बताया जाए, वह बहुत अच्छे से सीखता है और पूरी ज़िंदगी उसी का अनुसरण करता है.

इंटरनैशनल जर्नल औफ साइकोलौजी एंड बिहेवियोरल साइंसेज में छपे एक लेख में कहा गया है कि ‘अंधविश्वास और रीतिरिवाज की जड़ें हमारी प्रजाति की युवावस्था में हैं. संपत्ति के साथ मातापिता अपने बच्चों को रीतिरिवाज और परंपराएं भी सौंपते हैं. लेकिन इन परंपराओं के पीछे क्या तर्क है, वे यह नहीं बताते. हमारे समाज में और भी बहुत सी ऐसी प्रथाएं हैं जो हमारी संस्कृति, तरक्की और विकास पर सवालिया निशान खड़े करती हैं.’

रीतिरिवाज और परंपराएं तर्क को दबा देती हैं जिस से रूढ़िवादिता बढ़ती है. सतीप्रथा और बालविवाह जैसी प्रथाएं रूढ़िवादिता के कारण लंबे समय तक जारी रहीं. कई धर्मों में पशुपक्षी की बलि की परंपरा आज भी जारी है. महिला जननांग विच्छेदन की प्रथा अभी भी कुछ समुदायों में प्रचलित है. जाति के नाम पर औनर किलिंग आज भी हो रही है. आज भी कुछ स्थानों पर रीतिरिवाजों और पवित्रता के नाम पर जातिगत भेदभाव जारी है. धर्म और रीतिरिवाज के नाम पर आज भी कुछ जगहों पर देवदासी प्रथा कायम है.

रीतिरिवाजों के नाम पर बच्चों को अंधविश्वासी बनाना गलत है. अंधविश्वास किसी व्यक्ति या समाज की तार्किक सोच और विज्ञान से दूर रखने वाला है और यह बच्चों के मानसिक विकास के लिए हानिकारक हो सकता है.

मातापिता को चाहिए कि बच्चों पर रीतिरिवाज न थोपें, बल्कि उन्हें तर्क से समझाएं, ताकि वे खुद सोच सकें, आलोचनात्मक दृष्टिकोण अपना सकें और सहीगलत के बीच फर्क कर सकें. जब बच्चों को अंधविश्वास में फंसाया जाता है, तो उन की मननशीलता, सोचने की क्षमता और स्वतंत्र निर्णय लेने की शक्ति दब जाती है.

रीतिरिवाज और अंधविश्वास में जकड़े लोग अपनी जिंदगी में बहुत सी बेड़ियां खुद डालते हैं. उन में विश्वास की कमी आ जाती है. वे डर और भ्रम में जीने लगते हैं, जो उन के मानसिक विकास के लिए ठीक नहीं है. इसलिए बच्चों को सही ज्ञान, तर्क और सोचने की आजादी देने की कोशिश करनी चाहिए ताकि वे समझदारी से अपनी दुनिया को देख, परख सकें और बेमतलब के रीतिरिवाजों से बचे रह सकें.

Singham Again एक प्रोपेगेंडा मूवी, अंधभक्‍तों को लुभाने की कोशिश

इस बार दीवाली के अवसर पर एक नवंबर को रोहित शेट्टी निर्देशित फिल्म ‘सिंघम अगेन’ और अनीस बज़मी निर्देशित फिल्म ‘भूल भुलैया 3’ एक साथ रिलीज हुई. इन दोनों औसत दर्जे की फिल्मों ने एक ही दिन सिनेमाघरों में आ कर आपस में टकराते हुए अपना नुकसान ही किया है,जबकि 8 नवंबर और 15 नवंबर को एक भी बड़ी फिल्म प्रदर्शित नहीं हो रही है.

अगर इन दोनों फिल्मों के निर्माता आपस में बात कर  अलगअलग सप्ताह में अपनी फिल्म ले कर आते,तो दोनों को फायदा होता. नवंबर माह के पहले सप्ताह ‘भूल भ्रुलैया 3’ और ‘सिंघम अगेन’ ने जो कमाई की है,उस की वजह इन फिल्मों का बेहतरीन होना कदापि नहीं है, बल्कि 2024 के पूरे साल में दर्शक सिनेमा देखने के लिए प्यासा था, तो छुट्टियों के वक्त वह इन फिल्मों को देखनेे चला गया.

दीवाली के अवसर पर 15 दिनों के लिए स्कूल,कालेज भी बंद चल रहे हैं. इस के अलावा दीवाली की शुक्रवार, शनिवार, रविवार को छुट्टी रही, रविवार के दिन ‘भाई दूज’ का त्योहार भी रहा पर कमाई के आंकड़ों में बड़ा घालमेल होने के आरोप भी लग रहे हैं.

भारतीय सिनेमा के इतिहास में और कम से कम मेेरे 42 साल के फिल्म पत्रकारिता के वक्त जिस तरह की गला काट प्रतिस्पर्धा ‘सिंघम अगेन’ और ‘भूलभुलैया 3’ के निर्माताओं के बीच नजर आई, वह इस से पहले कभी नहीं हुआ. इस की अपनी वजहें रही हैं.

पहले बात रोहित शेट्टी निर्देशित एक्शन प्रधान फिल्म ‘सिंघम अगेन’ की. ‘सिंघम अगेन’ का निर्माण रोहित शेट्टी,अजय देवगन और मुकेश अंबानी की कंपनी ‘जियो स्टूडियो’ ने किया है. अजय देवगन पिछले कई वर्षों से लगातार असफलता का दंश झेलते आ रहे हैं. बतौर अभिनेता तो छोड़िए, पिछले 4 वर्ष के अंतराल में अजय देवगन की बतौर निर्माता, जिन में मुख्य भूमिका अजय देवगन ने निभाई, ‘छलांग’, ‘द बिग बुल’, ‘भुज द प्राइड औफ इंडिया’, ‘रन वे 34’, ‘भोला’, ‘शैतान’, ‘औरों में कहां दम था’ जैसी 7 असफल फिल्में दे चुके हैं. तो वहीं बतौर निर्माता व निर्देशक रोहित शेट्टी पिछले एक वर्ष में ‘सर्कस’ और ‘इंडियन पोलिस फोर्स’ की बुरी तरह से असफलता का दंश झेलते आ रहे हैं. ऐसे में अजय देवगन और रोहित शेट्टी ने साम, दाम, दंड, भेद की नीति अपना कर अपनी फिल्म ‘सिंघम अगेन’ को सफलतम फिल्म साबित करवाने के सारे प्रयास कर डाले, पर उन्हें सफलता हाथ लगी हो, ऐसा कहना मुश्किल है.

रोहित शेट्टी ने ‘सिंघम अगेन’ में अजय देवगन, करीना कपूर खान, रणवीर सिंह, दीपिका पादुकोण, अक्षय कुमार, टाइगर श्रौफ जैसे स्टार कलाकारों की फौज खड़ी कर डाली, पर वह यह भूल गए कि यह सभी स्टार कलाकार पिछले 5 – 6 वर्ष से लगातार असफल फिल्में ही दे रहे हैं. अभी कुछ दिन पहले ही अक्षय कुमार और टाइगर श्रौफ की जोड़ी की फिल्म ‘छोटे मियां बड़े मियां’ बौक्स औफिस पर बुरी तरह से मात खा चुकी है. रणवीर सिंह पिछले 4 साल से एक आध फिल्म छोड़ कर घर पर बैठ कर मक्खी मार रहे हैं. रणवीर सिंह के साथ कोई भी फिल्मकार फिल्म बनाने के लिए तैयार नहीं है. इतना ही नहीं अजय देगवन व रोहित शेट्टी ने ‘सिंघम अगेन’ में धर्म, हनुमान, ‘रामायण’ को बेचने के साथसाथ ‘अंध भक्तों’ को लुभाने के लिए फिल्म के अंदर ‘जय श्री राम’ के नारे लगवाने, हनुमान चालीसा का पाठ, शिव तांडव स्तोत्र का पाठ सहित सब कुछ कर डाला. पर कुछ भी काम नहीं आया. काश रोहित शेट्टी और उन के 9 लेखकों ने यह सब करने में पैसा व ताकत बरबाद करने की बजाय फिल्म की कहानी, पटकथा व संवाद पर मेहनत कर एक मनोरंजक फिल्म बनाई होती तो आज बाक्स आफिस पर फिल्म की दर्गति नही होती.

‘सिंघम अगेन’ में कहानी नहीं है. संवाद चेारी के हैं. यह फिल्म दिमागी टार्चर है. इसे 15 मिनट से ज्यादा झेलना दर्शक के लिए मुश्किल हो रहा है. वास्तव में ‘सिंघम अगेन’ रोहित शेट्टी की बजाय एक ऐसे फिल्मकार की फिल्म है, जो कि पूरी तरह से सत्ता के तले दबा और मजबूर नजर आता है. ‘सिंघम अगेन’ एक अति घटिया प्रपोगंडा और सरकार परस्त फिल्म है.

‘आदिपुरुष’ की ही तरह इस फिल्म में भी रावण को मुसलिम किरदार के रूप में पेश करते हुए ‘राम’ के हाथों मरवा कर यही बात कहने का प्रयास किया गया कि मुस्लिम हत्या करने योग्य हैं. क्या एक फिल्मकार को इस तरह के दृश्य गढ़ना शोभा देता है. इस के बावजूद जिस तरह के निर्माता की तरफ से पहले दिन से ही बौक्स औफिस के आंकड़े पेश किए जा रहे हैं, उसे देख कर इन आंकड़ों की सचाई पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं. केआरके ने तो खुलेआम ट्वीट कर कई आरोप लगाए हैं.

इतना ही नहीं ‘सिंघम अगेन’ को ‘भूल भुलैया 3’ से ज्यादा सफल फिल्म साबित करवाने के लिए रोहित शेट्टी ने ‘सिंघम अगेन’ का डिस्ट्रीब्यूटर ‘पीवीआर आयनौक्स’ को ही बनाया और 60 प्रतिशत स्क्रीन्स पर केवल ‘सिंघम अगेन’ को ही रिलीज किया. ‘भूल भुलैया 3’ को महज 40 प्रतिषत स्क्रीन्स मिले.

इतना ही नहीं रामानंद सागर के पोते शिव सागर एक सीरियल ‘कागभुसुंडी रामायण’ ले कर आ रहे हैं, तो ‘सिंघम अगेन’ के ही बैकड्राप पर खड़े हो कर अजय देवगन ने ‘कागभुसूंडी रामायण’ सीरियल देखने की वकालत करते हुए एक वीडियो सोशल मीडिया पर जारी कर ‘सिंघम अगेन’ की तरफ लोगों का ध्यान खींचने का प्रयास किया.

इस के बावजूद 375 करोड़ रूपए की लागत में बनी ‘सिंघम अगेन’ 7 दिनों के अंदर महज 173 करोड़ रुपए ही बौक्स औफिस पर एकत्र कर सकी, इस में से निर्माता की जेब में आएंगे लगभग 90 करोड़ रुपए. अब अंदाजा लगा लें कि साम, दाम, दंड,भेद की नीति अपनाने के साथ ही धर्म को बेच कर भी ‘सिंघम अगेन’ कितनी सफल हुई?

173 रुपए बौक्स औफिस कलेक्शन का दावा निर्माता ने किया है, जबकि आरोप है कि यह आंकड़े गलत हैं. उन पर कौरपोरेट बुकिंग करवाने, फिल्म से जुड़े हर कलाकार व निर्माता द्वारा टिकटें खरीद कर मुफ्त में बांटने सहित कई आरोप लग रहे हैं. मजेदार बात यह है कि ‘सिंघम अगेन’ का डिस्ट्रीब्यूशन ‘पीवीआर आयनौक्स’ के पास है. निर्माता की तरफ से दावे किए जा रहे हैं कि फिल्म अच्छा कमा रही है. तो फिर एक नवम्बर के बाद ‘पीवीआर आयनौक्स’ के शेयर के दाम 5 से 7 प्रतिशत तक क्यों गिरे? यदि फिल्म कमा रही है,तो फिर डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी के शेयर के दामों में उछाल आना चाहिए. इस का जवाब तो फिल्म के निर्माता और पीवीआर आयनौक्स ही बेहतर दे सकता है.

अब बात टी सीरीज निर्मित और अनीस बज्मी निर्देशित हौरर कौमेडी फिल्म ‘भूल भुलैया 3’ की, जिस में कार्तिक आर्यन, माधुरी दीक्षित, विद्या बालन, तृप्ति डीमरी, राजपाल यादव, संजय मिश्रा जैसे कलाकार हैं. यह फिल्म भी मौलिक नहीं बल्कि 2007 में प्रदर्शित प्रियदर्शन निर्देशित व अक्षय कुमार और विद्या बालन के अभिनय से सजी फिल्म ‘भूल भुलैया’ का तीसरा भाग है. इस का दूसरा भाग 15 वर्ष बाद 2022 में ‘भूल भुलैया 2’ के नाम से आया था, जिस का निर्देशन अनीस बज्मी ने किया था.

इस फिल्म में कार्तिक आर्यन के साथ तब्बू थीं. फिल्म को अच्छी सफलता मिल गई थी. इसी सफलता को भुनाने के लिए निर्माता टीसीरीज और निर्देशक अनीस बज़मी ‘भूल भुलैया 3’ लेकर आ गए. ‘भूल भुलैया 3’ भी औसत दर्जे की ही फिल्म है, पर ‘सिंघम अगेन’ के मुकाबले 10 प्रतिशत अच्छी कही जा सकती है. लेकिन ‘भूलभुलैया 3’ में भी धर्म व अंधविश्वास को बढ़ावा देने के साथ ही जितने मसाले हो सकते थे, उन्हें जबरन ठूंसा गया है. कार्तिक आर्यन से ले कर विद्या बालन, माधुरी दीक्षित, राजपाल यादव व संजय मिश्रा के अभिनय में काफी कमियां नजर आती हैं.

2007 की फिल्म ‘भूल भुलैया’ के मुकाबले ‘भूल भुलैया 3’ 10 प्रतिशत भी नहीं है. मगर 150 करोड़ रुपए की लागत में बनी फिल्म ‘भूल भुलैया 3’ ने 7 दिन में 168 करोड़ 80 लाख रुपए बौक्स औफिस पर एकत्र किए हैं. इस में से निर्माता की जेब में लगभग 80 करोड़ रुपए जा सकते हैं. मगर यह आंकड़े वह हैं, जो कि निर्माता की तरफ से पेश किए जा रहे हैं, जिन्हें कोई सच मानने को तैयार नहीं है. इस फिल्म के निर्माताओं पर भी कौरपोरेट बुकिंग, फर्जी आंकड़े देने से ले कर टिकटें खरीद कर मुफ्त में बांटने के आरोप लग रहे हैं. सब से बड़ा आरेाप तो कार्तिक आर्यन और उस की पीआर टीम पर लग रहा है कि इन्होंने अपनी जेब से पैसे खर्च कर जम कर टिकटें खरीदी हैं.

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