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अपार शक्ति खुराना कर रहे हैं भारतीय समाज में टैबू समझे जाने वाले ‘कंडोम’पर बनी फिल्म‘हेलमेट’

बौलीवुड के चर्चित अभिनेता आयुष्मान खुराना के छोटे भाई अपार शक्ति खुुरानामूलतः  क्रिकेटर थे.एक वक्त वह था, जब वह हरियाणा अंडर-19 क्रिकेट टीम के कप्तान थे.पर फिर वह भी अपने बड़े भाई के पद चिन्हो पर चलते हुए पहले रेडियोजॉ की और टेलीविजन होस्ट बने.

इसके बाद 2016 में उन्हे खेल प्रधान नितेश तिवारी की फिल्म‘‘दंगल’’मेंअभिनय करने का अवसर मिल गया.इस फिल्म में आमीर खान भी थे.फिल्म को सफलता मिली और अपारशक्ति ख्राुराना भी चर्चा में आ गए.उसके बाद वह ‘बद्रीनाथ की दुल्हनिया (2017)’,‘स्त्री (2018)’, ‘लुकाछुपी (2019)’तथा ‘पति पत्नी और वो (2019)’सहित तकरीबन 12 व्यावसायिक फिल्मों में सहायक भूमिकाएँ निभाते हुए नजर आए.2018 में उन्होने वेबसीरीज ‘‘धत्ततेरे की’भी की.

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लेकिन अब पहली बार वह अभिनेता से निर्माता बने डीनो मोरिया निर्मित और सतराम रमानी निर्देषित फिल्म‘‘हेलमेट’’में प्रनूतन बहल के साथ नायक बनकर आ रहे हैं.मगर फिल्म में मुख्य भूमिका निभाने का अवसर पाने के लिए भी अपार  शक्ति खराना को अपने बड़े भाई आयुष्मान खुराना के ही पद चिन्हों पर चलना पड़ा है.जी हाॅ !आयुष्मान खुराना ने समाज मेें हौव्वा/टैबू समझे जाने वाले ‘वीर्य दान’विषय पर बनी फिल्म ‘‘विक्की डोनर’’से सफलता पायी थी और तबसे आयुष्मान ने ज्यादातार उसी तरह के विषयोॆ पर बनी फिल्में की.अब अपार शक्ति ख्राुना भी समाज में हौव्वा  समझे  जाने वाले ‘कंडोम’पर बनी फिल्म‘‘हेलमेट’’में मुख्य  हीरो बनकर आ रहे हैं.आयुष्मान कहते हैं-‘‘हमारे भारत देश में आज भी ‘कंडोम’पर बात करना शर्मनाक माना जाता है.पर हमने अपनी हास्य फिल्म‘हेलमेट में इस विषय पर मनोरंजक तरीके से बात की है.

यह फिल्म देश की जमीनी हकीकत पर एक व्यंग्य है, जहां कंडोम खरीदते और बात करते वक्त लोगों को अजीब लगता है.फिल्म बिना उपदेश के संदेश को मजाकिया तरीके से उजागर करने की कोशिश करती है.
अपार शक्ति खुराना ने सोशल मीडिया पर कलाकारों का पहला लुक एक साथ साझा  किया. उन्होंने तस्वीर को कैप्शन के साथ साझा किया, “कृपया अपने हेलमेट पहन लीजिए क्योंकि हम जल्द ही आ रहे हैं आपको एक सवारी पर ले जाने के लिए सभी सुरक्षा  सावधानियां बरती जाएंगी.

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अपारशक्ति  खुराना  ने सोशल मीडिया पर फिल्म‘हेलमेट’कोे लेकर जो कुछ लिखा है,उसे उन्होने प्रनूतन बहल,डीनो मोरिया,सोनीपिक्चर्स,सोनीफिल्मस,सतरामरमानी,अभिषेकबनर्जी, आशीष वर्मा को भी टैग किया है. फिल्म‘हेलमेट’मेंअपारशक्ति खुराना व प्रनूतालबहल के साथ ही अभिषेक बनर्जी, आशीष वर्मा और कई अन्य कलाकार भी हैं.

Super Dancer Chapter 4 : लंबे समय बाद शो में हुईं शिल्पा शेट्टी कि वापसी, फिर दिखेगा जलवा

बॉलीवुड एक्ट्रेस शिल्पा शेट्टी  एक बार फिर बतौर डांस जज रियलिटी शो सुपर डांसर चैप्टर 4 में वापसी कर ली हैं. शिल्पा ने पिछले कुुछ हफ्ते के लिए इस शो से ब्रेक लिया था, जब उनके पति राज कुंद्रा कि गिरफ्तारी हुई थी, उस वक्त उन्होंने इस शो से ब्रेक लिया था.

बीते दिन ही फिल्म निर्माता और इस शो में जज की भूमिका निभा रहे अनुराग बासु ने कहा था कि वह इस शो पर शिल्पा को काफी ज्यादा मिस कर रहेे हैं. आगे अनुुराग ने यह भी कहा था कि वह ये भी नहीं जानते कि शिल्पा शो पर कब वापस आएगी.

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एक रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ है कि अपकमिंग एपिसोड कि शूटिंग शिल्पा शेट्टी आज करने वाली हैं. शिल्पा के फैंस के लिए यह बहुत बड़ी खबर है कि एक बार फिर एक्ट्रेस शो में वापसी करने जा रही हैं.

20 जुलाई को शिल्पा ने शो कि शूटिंग छोड़ दी थी, जिसके बाद वह एक बार फिर शो में वापसी करने जा रही हैं. इस बात से फैंस  और शिल्पा के फ्रेंड्स काफी ज्यादा खुश हैं.

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वहीं बात करें अगर शिल्पा के पति कि तो वह पिछले महीने से ही पुलिस कि हिरासत में हैं. पोर्नोग्राफी मामले में अभी भी उनसे पूछताछ जारी हैं. देखना यह है कि आखिरकर राज कुंद्रा खुद को सही कैसे साबित करेंगे इस मामले में.

वहीं अनुराग बासु बताते हैं कि शिल्पा के साथ उनकी बॉन्डिंग काफी ज्यादा अच्छी है, वह उन्हें बहुुत ज्यादा मानते हैं. हमलोग एक छोटे से परिवार हैं, एक-दूसरे के साथ समय बीताना काफी ज्यादा अच्छा लगता है. कम काम और मस्ती में समय निकल जाता है पता भी नहीं चलता है.

सुविधाओं से लैस होगी एटीएस

लखनऊ. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्रदेश में आतंकी गतिविधियों के प्रभावी रोकथाम के लिए बड़ी पहल की है. उन्होंने प्रदेश में पहली बार एक साथ एटीएस की 12 इकाइयों की स्थापना की संस्तुति की है. साथ ही एटीएस को और मजबूत करने के लिए प्रस्ताव मांगा है, आशा है कि जल्द ही एटीएस को और अत्याधुनिक संसाधनों से लैस किया जाएगा और समुचित मानव संसाधन उपलब्ध कराया जाएगा.

प्रदेश के संवेदनशील 10 जिलों मेरठ, अलीगढ़, श्रावस्ती, बहराइच, ग्रेटर नोएडा (जेवर एयरपोर्ट), आजमगढ़ (निकट एयरपोर्ट), कानपुर, सोनभद्र, मीरजापुर और सहारनपुर के देवबंद में एटीएस इकाई/कमाण्डो ट्रेनिंग सेंटर स्थापित किया जाएगा. इसके लिए संबंधित जिलों में भूमि आवंटित हो गई है और भवनों के निर्माण के लिए कार्यवाही चल रही है. इसके अलावा वाराणसी और झांसी में एटीएस इकाई की स्थापना के लिए जल्द ही भूमि आवंटन होने की संभावना है. शासन के निर्देशानुसार एटीएस को और अधिक प्रभावशाली बनाने के लिए इंडो-नेपाल बॉर्डर पर बहराइच और श्रावस्ती में एटीएस की नई फील्ड यूनिट स्थापित की जा चुकी है और कार्य सुचारु रूप से चल रहा है.

एटीएस आतंकी मंसूबों पर फेर रहा पानी, राष्ट्र द्रोहियों को भेज रहा जेल

एटीएस ने विभिन्न आतंकवादी संगठनों आईएसआईएस, हिजबुल मुजाहिद्दीन, जैश-ए-मोहम्मद, जेएमबी, आईएसआई जासूस, पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई), नक्सल, टेरर फंडिंग, एबीटी/बांग्लादेश, बब्बर खालसा, जाली भारतीय मुद्रा आदि से सम्बन्धित 69 आतंकवादियों, विभिन्न अपराधों से संबंधित 216 आरोपियों को गिरफ्तार किया है. इसके अलावा मूक बधिर छात्रों, कमजोर आय वर्ग के लोगों को धन, नौकरी और शादी का लालच देकर धर्मांतरण कराने वाले सिंडिकेट का भंडाफोड़ करते हुए कई आरोपियों को गिरफ्तार किया गया है. इसके अलावा 16 जनवरी को एटीएस ने कूट रचित प्रपत्रों के आधार पर भारी मात्रा में फर्जी मोबाईल सिम एक्टीवेट कराने से संबंधित 18 आरोपियों को गिरफ्तार कर जेल भेजा है, जिसमें तीन चीनी नागरिक भी शामिल हैं. यह मामला आर्थिक घोटाले के साथ-साथ राष्ट्र विरोधी गतिविधियों से जुड़ा है, जिसकी गहराई से जांच हो रही है.

खतरनाक ऑपरेशन के लिए स्पॉट की पांच टीमें और स्नाईपर्स की चार टोलियां तैयार

प्रदेश में एनएसजी की तरह खतरनाक ऑपरेशन को विशेषज्ञ तरीके से करने के लिए एटीएस के विशेष पुलिस संचालन दल (स्पॉट) का गठन 2017 में किया गया है. स्पॉट कर्मियों ने बीएसएफ, सीआरपीएफ, सीआईएसएफ, आईटीबीपी आदि पुलिस के विशेषज्ञ प्रशिक्षकों से प्रशिक्षण लिया है. स्पॉट की पांच टीमें तैयार हैं, दो टीमें प्रशिक्षण ले रही हैं और दो अन्य टीमों के लिए कार्यवाही चल रही है. इसके अलावा यूपी पुलिस की पहली स्नाईपर्स टीम की चार टोलियां तैयार की गई हैं, जिसे राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (एनएसजी) ने प्रशिक्षण दिया है. इसके बाद यूपी पुलिस की दक्षता और प्रभावशीलता में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है.

यूपी ने कायम की मिसाल, वैक्सिनेशन छह करोड़ पार

लखनऊ . यूपी ने कोरोना टीकाकरण में दूसरे प्रदेशों को पीछे छोड़ते हुए अपने  नाम एक नया रिकार्ड हासिल किया है. महाराष्‍ट्र, दिल्‍ली, आंध्र प्रदेश, वेस्‍ट बंगाल समेत दूसरे कई राज्‍यों से आगे निकल 6 करोड़ से अधिक टीकाकरण की डोज दी हैं. यह आंकड़ा देश के दूसरे प्रदेशों से कहीं अधिक है. यूपी टीकाकरण के साथ ही सर्वाधिक जांच करने वाला प्रदेश है. ट्रिपल टी की रणनीति व टीकाकरण से यूपी में कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर नियंत्रण में हैं. प्रदेश में वृहद टीकाकरण अभियान के तहत ‘सबका साथ, सबका विकास, सबको वैक्सीन, मुफ्त वैक्सीन’ के मूल मंत्र पर टीकाकरण किया जा रहा है.

प्रदेश में वैक्‍सीन की पहली खुराक 5 करोड़ 07 लाख से अधिक और 94 लाख से अधिक वैक्‍सीन की दूसरी डोज दी जा चुकी है. बता दें क‍ि मेगा वैक्सिनेशन में एक दिन में सर्वाधिक टीकाकरण कर यूपी देश के दूसरे प्रदेशों के समक्ष नज़ीर पेश कर चुका है. योगी सरकार ने मेगा वैक्सिनेशन ड्राइव के तहत एक दिन में 20 लाख लोगों को वैक्सीन लगाने का लक्ष्य निर्धारित किया था जिसके सापेक्ष में यूपी ने 29.52 लाख लोगों का टीकाकरण किया था. जो एक दिन में किया गया अब तक का सर्वाधिक टीकाकरण था. एक दिन में अब तक सबसे अधिक वैक्‍सीन की डोज लगाकर योगी सरकार रिकार्ड बना चुकी है.

14 दिनों के अंदर एक करोड़ टीकाकरण कर अपने लक्ष्‍य के करीब पहुंचा यूपी

यूपी में टीकाकरण अभियान को गति देते हुए शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों में युद्धस्‍तर पर टीकाकरण किया जा रहा है. तीन अगस्‍त को यूपी ने पांच करोड़ टीकाकरण कर एक कीर्तिमान बनाया था वहीं महज 14 दिनों में एक करोड़ टीकाकरण कर यूपी ने छह करोड़ टीकाकरण कर अपने निर्धारित टीकाकरण लक्ष्‍य की ओर तेजी  से आगे बढ़ रहा है. 31 अगस्‍त तक 10 करोड़ लोगों को टीका लगाने का लक्ष्‍य निर्धारित किया है. मिशन जून के तहत प्रदेश सरकार ने एक करोड़ लोगों को वैक्‍सीन की डोज लगाने का लक्ष्‍य निर्धारित किया था लेकिन प्रदेश में इससे कहीं अधिक एक करोड़ 29 हजार टीके की डोज दी गई.

यूपी ऐसे रहा महाराष्ट्र, दिल्ली और अन्य प्रदेशों से टीकाकरण में अव्वल

25 करोड़ के आबादी वाले उत्तर प्रदेश से देश के दूसरे प्रदेश टीकाकरण में कहीं पीछे हैं.  वेस्ट बंगाल, महाराष्ट्र, दिल्ली समेत अन्य प्रदेशों में जहां काम आबादी होने के बावजूद टीकाकरण धीमी गति से चल रहा कहीं यूपी लगातार रिकॉर्ड बना रहा है. वेस्ट बंगाल में अब तक तीन करोड़ 47 लाख, केरल में दो करोड़ 47 लाख,महाराष्ट्र में पांच करोड़ 03 लाख, दिल्ली में एक करोड़ 17  लाख और तमिलनाडु दो करोड़ 72 लाख ही वैक्सिनेशन किया गया है.

Family Story in Hindi – छलना- भाग 1 : क्या थी माला की असलियत?

लेखिका- नलिनी शर्मा

शलभ ने अपने नए मकान के बरामदे में आरामकुरसी डाली और उस पर लेट गया. शरद ऋतु की सुहानी बयार ने थपकी दी तो उस की आंख लग गई. तभी बगल वाले घर से स्त्रीपुरुष के लड़ने की तेज आवाज आने लगी. जब काफी देर तक पड़ोस का महाभारत बंद नहीं हुआ तो उस ने पत्नी को आवाज लगाई.

‘‘रमा, जरा देखो तो यह कैसा हंगामा है…’’

पत्नी के लौटने की प्रतीक्षा करते हुए शलभ सोचने लगा कि अपनी ससुराल के रिश्तेदारों से त्रस्त हो कर शांति और सुकून के लिए वह यहां आया था. बड़ी दौड़धूप करने के बाद दिल्ली से वह मेरठ में ट्रांसफर करवा सका था. उसे दिल्ली में पल भर भी एकांत नहीं मिलता था. रोज ही दफ्तर जाने के पहले व शाम को दफ्तर से लौटने पर कोई न कोई रिश्तेदार उस के घर आ टपकता था.

तनाव के कारण 33 वर्ष की आयु में ही उस के बाल खिचड़ी हो गए थे. अपनी उम्र से 10 वर्ष बड़ा लगता था वह. नौकरी की टैंशन, राजधानी के ट्रैफिक की टैंशन, रोजरोज की भागमभाग, ऊपर से पत्नी के नातेरिश्तेदारों का दखल.

10 मिनट बाद रमा आते ही चहक कर बोली, ‘‘सरप्राइज है, तुम्हारे लिए. सुनोगे तो झूम उठोगे. बगल वाले घर में मेरी मुंहबोली बहन माला है. उस का 2 वर्ष पहले ही विवाह हुआ है.’’

शलभ का चेहरा मुरझा गया. उस के मुंह से अस्पष्ट सी आवाज निकली, ‘‘यहां भी… ’’

रमा आगे बोली, ‘‘नहीं समझे  भई, मां की सहेली अनुभा मौसी की लड़की है यह. इस के विवाह में मैं नहीं जा पाई थी. अपना दीपू पैदा हुआ था न. मैं वहीं से अनुभा मौसी से फोन पर बात कर के आ रही हूं. कह दिया है मैं ने कि माला की जिम्मेदारी मेरी…’’

और सुनने की शक्ति नहीं थी शलभ में. पत्नी की बात काट कर उस ने विषैले स्वर में पूछा, ‘‘तो वही दोनों इतनी बेशर्मी से झगड़

रहे थे… ’’

आग्नेय नेत्रों से पति को घूरते हुए रमा बोली, ‘‘दोनों पैसे की तंगी से परेशान हैं. भलीचंगी नौकरी थी दोनों के पास. माला की कौलसैंटर में और महेश की एक प्राइवेट कंस्ट्रक्शन कंपनी में. माला देर से घर लौटती थी इसलिए महेश ने उस की नौकरी छुड़वा दी. माला के नौकरी छोड़ते ही महेश की कंपनी भी अचानक बंद हो गई. 2 माह से बेचारों को वेतन नहीं मिला है… मैं ने फिलहाल 10 हजार रुपए देने का वादा…’’

चीख पड़ा शलभ बीच में ही, ‘‘बिना मुझ से पूछे किसी भी ऐरेगैरे को…’’

‘‘ऐरीगैरी नहीं, मेरी मौसी की बेटी है वह…’’ रमा दहाड़ी.

‘‘तो तुम्हारी मौसी क्यों नहीं…’’ बोलतेबोलते रुक गया शलभ. सामने गेट के अंदर प्रवेश कर रहा था एक अत्यंत सुंदर, आकर्षक सजाधजा जवान जोड़ा.  दोनों एकदूसरे के लिए बने दिख रहे थे. शलभ ठगा सा उन्हें देखने लगा.

तभी रमा ऊंचे सुर में चिल्लाई, ‘‘आओ, माला, महेश…’’

अपने शांत जीवन में अनाधिकार प्रवेश कर के खलल उत्पन्न करने वाले इस खूबसूरत जोड़े को नापसंद नहीं कर सका शलभ. सौंदर्य निहारना उस की कमजोरी थी. चायपानी के बाद माला धीरे से बोली, ‘‘दीदी… आप ने पैसे…’’

‘‘हांहां,’’ कहते हुए रमा ने रखे 10 हजार रुपए ला कर माला को दे दिए.

रुपए मिलते ही दोनों हंसते हुए गेट से बाहर हो गए और स्कूटर पर फौरन फुर्र हो गए. शाम को दोनों देर से लौटे और आते ही सीधे रमा के पास आ गए.

घर में प्रवेश करते ही माला सोफे पर पसर गई और बोली, ‘‘खाना हम दोनों यहीं खाएंगे. बिलकुल हिम्मत नहीं है कुछ करने की. बहुत थक गई हूं मैं…’’

‘‘कहां थे तुम दोनों अभी तक ’’ उत्सुकता से पूछा रमा ने.

‘‘पूरा समय ब्यूटीपार्लर में निकल गया,’’ चहक उठी माला, ‘‘पैडीक्योर, मैनीक्योर, फेशियल, हेयर कटिंग, सैटिंग व बौडी मसाज…’’

‘‘तुम तो वैसे ही इतनी सुंदर हो. तुम्हें इन सब की क्या जरूरत है  बहुत पैसे खर्च हो गए होंगे…’’ मरी सी आवाज निकली रमा के मुख से.

‘‘कुछ ज्यादा नहीं, बस 15 सौ रुपए ही लगे हैं,’’ लापरवाही से अपने खूबसूरत केशों को झटका देते हुए बोली माला, ‘‘मैंटेन न करो तो अच्छाखासा रूप भी बिगड़ जाता है. अपनी ओर तो तनिक देखो दीदी, क्या हुलिया बना रखा है आप ने  आप के रूप की मिसाल तो मां आज तक देती हैं. ऐसा लगता है कि आप ने कभी पार्लर में झांका तक नहीं है. या तो पैसा बचाओ या रूप… पैसा तो हाथ का मैल है. आज है कल नहीं…’’

शलभ की सहनशक्ति जवाब दे गई. उस ने कटाक्ष किया, ‘‘क्या महेश भी दिन भर ‘मैंस पार्लर’ में था ’’

‘‘नहींनहीं,’’ बोली माला, ‘‘उसे कहां फुरसत थी. तमाम बिल जो जमा करने थे. घर का किराया, बिजली का बिल, टैलीफोन का बिल…’’

घबरा गई रमा, ‘‘तब तो पूरे 10 हजार…’’

‘‘हां, पूरे खत्म हो गए. अभी दूध वाले का बिल बाकी है. साथ में रोज का जेब खर्च,’’ बेहिचक माला बोली.

शलभ क्रोध से मन ही मन बुदबुदाया, ‘हाथ में फूटी कौड़ी नहीं, अंदाज रईसों के…’

पति का क्रोधित रूप देख कर रमा घबरा कर बोली, ‘‘माला, तुम थकी हो दिन भर की. जा कर आराम करो. मैं आती हूं…’’

माला के जाते ही शलभ के अंदर दबा आक्रोश ज्वालामुखी की तरह फट पड़ा, ‘‘कहीं नहीं जाओगी तुम. तुम्हारे रिश्तेदारों से बच कर मैं यहां आया था सुकून की जिंदगी की तलाश में. लेकिन आसमान से गिरा खजूर में अटका.’’

पति से नजरें बचा कर रमा चुपके से 1 हजार रुपए और दे आई माला को और साथ में शीघ्रातिशीघ्र नौकरी ढूंढ़ने की हिदायत भी. उसे पता चला कि माला और महेश ने आसपास के कई लोगों से उधार लिया हुआ था. पैसा हाथ में नहीं रहने पर आपस में झगड़ते थे और पैसा हाथ में आते ही दोनों में तुरंत मेल हो जाता और हंसतेखिलखिलाते वे मौजमस्ती करने निकल पड़ते. स्कूटर में ऐसे सट कर बैठते मानो इन के समान कोई प्रेमी जोड़ा नहीं है. ऐसा लगता था कि उस समय झगड़ने वाले ये दोनों नहीं, कोई दूसरे थे. इन दोनों के आपसी झगड़े के कारण पड़ोसी भी 2 खेमों में बंट गए थे. कुछ माला का दोष बताते थे तो कुछ महेश का. इन दोनों का प्रसंग छिड़ते ही दोनों खेमे बहस पर उतारू हो जाते.

अफगानिस्तान: अमेरिका का पलायन और तालिबान का कब्जा                                                                               

अफगानिस्तान में अमेरिका का पलायन और तालिबान लड़ाकूओं का सत्ता में आ जाना केवल इतिहास का दोहराना है. अफगान किसी भी सूरत में किसी और देश व लोगों के अधीन रहने को तैयार नहीं हैं और उन्होंने कर्ई सदियों से यह साबित कर दिया है कि विदेशी कुछ समय वहां राज कर सकते हैं, हमेशा नहीं. अफगानिस्तानी अपनी गरीबी, अपनी मेहनत पर संतुष्ट हैं और यदि उन्हें आधुनिक मिलें तो ठीक हैं वर्ना वे किसी भी हमले का खामियाजा भुगतने को तैयार हैं पर गुलाबी सहने को तैयार नहीं है.

तालिबानियों का काबुल पर कब्जा एक बार फिर साबित कर गया है कि इस देश को नियंत्रित करने का काम किसी के बस में नहीं है यह अच्छा है कि भारत ने इस विवाद में ज्यादा दखल नहीं दिया और कट्टरपंथी राज्य के अखंड पौराणिक भारत के सपने को साकार करने के लिए महाभारत वाले गंधार को आज का गंधार नहीं समझा. भारत के लिए काबुल अब एक बड़ा सिरदर्द रहेगा और 2 कट्टरपंथी सरकारों की झड़प हो जाए ये आश्चर्य नहीं है.

तालिबानी अफगानों का सपना सिर्फ काबुल पर राज करना नहीं है. वे पाकिस्तान, कश्मीर, उत्तर और पश्चिम में अपने पैर नहीं फैलाएंगे इस की कोई गारंटी नहीं है. यह न समझें कि दुनिया उन की आॢथक नाकेबंदी कर सकती क्योंकि दुनिया भर की सरकारें चाहे जो फैसलें लेती रहीं, उन्हीं की जनता पतली गलियों में आफगानिस्तान से उगी अफीम से बनी नशीली दवाओं को इस्तेमाल करती रहेगी. अफगानिस्तान को पैसे की कमी कभी नहीं होगी क्योंकि दुनिया भर के युवा नशा करने के लिए अफगान अफीम खरीदेंगे ही और जैसे पानी अपना रास्ता बांधों और बनाई गई दीवारों को तोड़ कर निकलता चला गया है, अफीम मिलती रहेगी.

तालिबानियों के लिए अफीम का व्यापार अब और आसान हो जाएगा क्योंकि अब दुनिया भर का पैसा यहां रखा जा सकेगा जो अपराधियों की कम से कम अपनी सरकारों से सुरक्षित तो रहेगा. इस सदी में तो कोई अफगानिस्तान से दखलअंदाजी नहीं करेगा, यह पक्का है.

भारत के लिए तालिबानी कब्जा एक बड़ा खतरा है क्योंकि संसद में बैठ कर कश्मीर का फैसला करना आसान है पर जब यह फैसला काबुल में आगे होगा तो नागपुर और दिल्ली कुछ नहीं कर पाएंगे. कश्मीर को अफगान अपना प्रेष्टिज मामला बना लें तो बड़ी बात नहीं है. उन्हें भारत से कोई लगाव नहीं है चाहे अब्दुल गफ्फार खां के जमाने में अफगान भारत संबंध कितने ही सहज रहे हों. तब से अब तक कट्टरता दोनों देशों में कई गुना बढ़ गई है. भारत में आप ङ्क्षहदू समर्थक भाड़े के रक्षकों पर निर्भर है जबकि काबुल में इस्लाम समर्थक खुद मरना व मारना जानता है.

मानवीय अधिकारों की बात न करें. जब लोगों ने कट्टर धर्म को अपनाया है तो इस का अर्थ है कि उन्होंने मानवीय अधिकारों को आग में जला दिया. भारत में कट्टर ङ्क्षहदू औरतों, दलितों, मुसलमानों, पिछड़ों के कौन से मानवीय अधिकारों की रक्षक है? अपनी ही औरतों के साथ जो व्यवहार यहां हो रहा है, वही अफगानिस्तान में हो रहा, फर्क डिग्रियों का है. ङ्क्षहदू प्रवचन सुनें तो वे अफगानी बयानों से कम नहीं लगेंगे. अफगान कट्टर भी है, मेहनती भी, डीलडौल में मजबूत भी हमारे कट्टरपंथी भाड़े के रक्षकों को ढूंढते हैं जैसे महान गुरू विश्वामित्र राक्षसों को मारने के लिए दशरथ के दरबार में पहुंचे थे.

तालिबानी अफगानिस्तान अपनेआप में उत्तरी कोरिया या क्यूबा की तरह संतुष्ट रहेगा, इस के आसार कम हैं. चूंकि उस का अस्तित्व अफीम के अंतराष्ट्रीय व्यापार व बाजार पर निर्भर है, वह अपने पांव पसारेगा. दुनिया भर में फैले शरणार्थी अफगान तालिबान हुक्म को मानने को मजबूर रहेंगे और उन का माफिया दक्षिणी अमेरिकी माफियाओं से ज्यादा खूंखार व प्रभावशाली रहेगा. भारत के लिए आसार अच्छे नहीं है, यह पक्का है. बहुत ही सूझबूझ वाली सरकार तालिबानी अफगानिस्तान से निपट सकती है.

सरकारी आंकड़ों के अनुसार ही अफगानिस्तान में 6500 टन अफीम पैदा होती है जिस की किसानों को 55 डौलर किलो कीमत मिलती है और करीब 300 करोड़ रुपए की आमदनी है. यह अफीम पूरे यूरोप में बिकती है और भारत में भी जम कर इस्तेमाल हो रही है. अमेरिकी अधिकारों के अनुसार 90′ हिराइन अफगानिस्तानी अफीम से ही बनती है. जब तक वास्तविक अफीम पैदा हो रही है ङ्क्षहदू या इस्लामी धर्म की अफीम की अफगानिस्तान को जरूरत नहीं हैं. वे तो वैसे ही दुनियाभर पर कब्जा किए बैठे हैं. तालिबानी तो इस धंधे को और ज्यादा जोर से चलाएंगे और अब सरकार का संरक्षण मिलेगा.

दस्तक – भाग 5 : नेहा किस बात को लेकर गहरी सोच में डूबी थी

‘मम्मी, किस ने कहा आप को कि शिवम ने मुझे फंसाया?’ बाथरूम से आ नेहा बोली.

 

‘चुप्प,’ रमा अपने ऊपर से नियंत्रण खो बैठी. शिवम को अनापशनाप सुनाने लगी. नेहा और दीप्ति ने बहुत रोकने की कोशिश की, लेकिन रमा थमने का नाम न ले रही थी.

 

‘शिवम, जाओ यहां से,’ नेहा ने शिवम को जाने का इशारा करते हुए जोर से कहा.

 

अपमानित सा शिवम दरवाजे से बाहर निकल गया. पलभर में पूरा दृश्य बदल गया. नेहा का चेहरा तमतमा गया. दीप्ति कभी मम्मी को देखती, तो कभी नेहा को.

 

‘नेहा, समझने की कोशिश कर. हम एक छोटे से कसबे में रहते हैं. अगर तेरा विवाह शिवम से करते हैं, तो हमारी इज्जत खाक में मिल जाएगी. लोग क्या कहेंगे? तेरी छोटी बहनों की शादी होना मुश्किल हो जाएगा. घर के बड़ेबुजुर्ग हरगिज राजी न होंगे इस रिश्ते के लिए. सारी बिरादरी हमारे मुंह पर थूकेगी,’ रुंधे गले से रमा बोली.

 

 

 

नेहा कुछ देर होंठ भींचे खामोश बैठी रही.

 

‘मम्मी, आप बेकार समय बरबाद कर रहे हो. मैं ने फैसला कर लिया है. बस, आप के आशीर्वाद का इंतजार है,’ यह बोलतेबोलते नेहा का स्वर कटु हो गया. मम्मी ने जो शब्द शिवम को बोले थे, वे उस के दिमाग में हथौड़े की तरह बज रहे थे.

 

‘वह तुझे कभी नहीं मिलेगा,’ तिलमिलाती हुई रमा चिल्लाई.

 

‘क्यों? सिर्फ एक जाति के कारण, तो मैं इस जाति को तिलांजलि देती हूं. धिक्कारती हूं इस जातिप्रथा को जो इंसान को जाति के तराजू में तोलती हो,’ नेहा ने उत्तेजना से हांफते हुए कहा.

 

रमा नेहा के बगावती तेवरों को देख हैरान रह गई. दीप्ति भी नेहा का यह रूप देख कर सिहर उठी. वातावरण बेहद तनावपूर्ण हो गया.

 

जाने वाले दिन नेहा खामोशी से उन को तैयार होती देखती रही.

 

‘दीदी, एक बार सोच लो, वैभव बहुत अच्छा लड़का है.’

 

नेहा के मुंह से कुछ न निकला, प्यार से दीप्ति के सिर पर हाथ फेरते हुए उस की आंखें नम हो आईं.

 

एक खदबदाते सन्नाटे के बीच मम्मी और दीप्ति कानपुर के लिए निकल गईं.

 

मम्मी, पापा और नेहा के बीच बातचीत बिलकुल बंद हो गई थी. एक दिन छुटकी का फोन आया कि दीप्ति की सगाई हो गई वैभव के साथ, और अगले महीने शादी है. विवाह की खबर सुन कहीं कुछ दरक गया नेहा के दिल में. मम्मीपापा तो छोड़ो, दीप्ति ने भी इतनी बड़ी बात उसे न बताई. मन में एक तूफान उठ गया- क्या मैं परिवार के लिए इतनी पराई हो गई.

 

अरे, मेरी बहन है, यह तो खुशी की बात है. अगले ही पल मन हर्षित हो उठा और उस के हाथ उठ गए दीप्ति को फोन करने के लिए.

 

नेहा ढेर सारे उपहार लिए पहुंच गई दीप्ति के विवाह में. विवाह की गहमागहमी में चर्चा का विषय दीप्ति का विवाह नहीं, नेहा का विवाह था. नातेरिश्तेदारों की फुसफुहाटों के कारण नेहा का दम घुटने लगा. शिवम नहीं आया. हां, उस के मातापिता अवश्य आमंत्रित थे.

 

 

 

‘दीदी, मैं आ जाऊं आप के पास सोने?”

 

छुटकी की आवाज ने नेहा के दिलोदिमाग में चल रही ऊहापोह को विराम लगा दिया. छुटकी एक छोटे से बच्चे की तरह दीदी से लिपट गई. नेहा ने प्यार से उसे निहारते हुए देखा, फिर स्नेह से उस को आलिंगंबद्ध कर लिया.  नेहा की आंख़ों से नींद अभी भी कोसों दूर थी. कल सुबह हैदराबाद वापस जाने से पहले अपना निर्णय सुनाना था. परिणाम मालूम था, लेकिन यह अंतिम कोशिश तो करनी थी. पूरी रात गुजर गई स्वयं से उलझते हुए. भोर के उजाले ने सदैव की भांति दस्तक दी. क्या यह उजाला उस के जीवन में भी दस्तक देगा? पता नहीं? लेकिन आज सामाजिक मूल्यों, मान्यताओं और परंपराओं की बेड़ियां उस के कदमों को नहीं रोकेंगी.

 

नेहा नहा कर तैयार हुई. अपना बैग पैक किया और कमरे से बाहर आ गई. रमा नाश्ता बना रही थी, पापा अखबार पढ़ रहे थे. दादी घर के लौन में टहल रही थी. दोनों की नजरें एकसाथ नेहा की ओर उठीं, ठहरीं और फिर बिना कुछ बोले दोनों व्यस्त हो गए अपनेअपने कार्यों में. उन नजरों में नाराजगी के भावों को पकड़ने में क्षणभर भी नहीं लगा नेहा को.

 

हिम्मत बटोरती हुई नेहा बोली, “मुझे आप से कुछ कहना है.”

 

 

 

इस बार दोनों की दृष्टि उठी और स्थिर हो गई नेहा के चेहरे पर, एक प्रश्न उभर गया उन की आंखों में.

 

“मम्मी, मैं इस महीने की 25 तारीख को शिवम से कोर्ट मैरिज कर रही हूं हैदराबाद में. आप तीनों का आशीर्वाद लेने आई हूं,” मम्मी के चरणों में झुकती हुई बोली.

 

मम्मी पीछे हट गई. पापा आवाक से नेहा को देखते ही रह गए, फिर गुस्से से लपके नेहा की ओर, तभी रमा ने सख्ती से पति का हाथ पकड़ लिया.

 

“उस लड़के के लिए तू अपने मातापिता से नाता तोड़ रही है?” हताशा से रमा बोली.

 

“नहीं मम्मी, मैं नहीं, सामाजिक बंधनों में जकड़े आप अपने खून से नाता तोड़ रहे हो,” बोलतेबोलते नेहा का स्वर और आंखें दोनों नम हो गए. जानती थी कि निष्कर्ष यही होगा, फिर भी धूमिल सी एक आशा कहीं छिपी हुई थी उस के अवचेतन मन में. निराशा ने उसे घेर लिया. थके कदमों से वह कमरे में चली गई.

 

शिवम को सारी स्थिति से अवगत कराया. टैक्सी की बुकिंग की. छुटकी सब बातों से बेखबर गहरी नींद में सो रही थी. नेहा ने एक स्नेहदृष्टि उस पर डाली और बैग उठा कर कमरे से बाहर आ गई. मम्मीपापा दोनों सब कामधाम छोड़ स्तब्ध से सोफे पर बैठे हुए थे, साथ में दादी भी बैठी रही.

 

“पापा, एक बजे की मेरी फ्लाइट है हैदराबाद के लिए. मुझे अभी निकलना पड़ेगा. 25 तारीख को मुझे आप सब का इंतजार रहेगा,” दोनों को प्रणाम कर, दादी के चरण स्पर्श कर, तटस्थ स्वर में कह कर नेहा घर से बाहर निकलने ही वाली थी कि दादी की पीछे से आती आवाज से वह ठिठक गई.

 

“रुको.”

 

नेहा के चौंक कर दादी की ओर देखा.

 

“मैं आऊंगी तुझे आशीर्वाद देने.”

 

“मां,” देवेंद्र सिंह की दमदार आवाज ने एक बार फिर घर की दीवारों को थर्रा दिया.

 

“लोग क्या बोलेंगे,” समाज का खोखला परदा अभी भी रमा के मनमस्तिष्क से हटा न था.

 

एक जमाना देख चुकी दादी ने अपने बेटे की ओर उन्मुख हो डूबे स्वर में कहा, “बेटा, इतने वर्षों में मैं ने बहुत से परिवारों को समाज और लोगों के दबाव में आ कर टूटतेबिखरते देखा है.”

 

एकाएक उन की आवाज बुलंद हो गई, पता नहीं कहां से उन की जर्जर काया में इतनी ताकत आ गई, “कान खोल कर सुन देवू, जिस समाज की तुम दुहाई दे रहे हो, वह विपत्ति आने पर कभी तुम्हारे काम नहीं आएगा. काम आएगा तो तेरा अपना खून, जिस की खुशियों को तू रौंद रहा है. क्या कमी है अपने शिवम में?” बोलतेबोलते दादी की सांस धौंकनी के समान तेज चलने लगी, स्वर में एक उत्तेजना आ गई, फिर रमा की ओर रुख करती हुई बोली, “और हां, लोग तो तब बोलेंगे न, जब हम उन्हें बोलने का अवसर देंगे.”

 

मां का यह रूप रमा और देवेंद्र को हतप्रभ कर गया. नेहा दादी को विस्मय से देखती रह गई. हर्षातिरेक से उस के आंसू बह निकले.

 

“दादी…” भावावेश में दादी से लिपटती हुई अवरुद्ध कंठ से, बस, इतना ही निकला नेहा के मुंह से. नेहा का भारी हो गया शरीर उसी क्षण फाहे के समान हलका हो गया. 3 वर्षों से चली आ रही कशमकश को पलभर में विराम मिल गया. 3 वर्षों में पहली बार आंखें आंसुओं से छलकीं, लेकिन खुशी के आंसुओं से. दिलोदिमाग से एक भारी बोझ हट गया. भोर के उजाले की लालिमा ने उस के जीवन में दस्तक दे दी थी. यह दस्तक उस के जीवन में नहीं, यह दस्तक विभिन्न जातियों में बंटे हमारे समाज पर भी थी.

Family Story in Hindi : तेरी सास तो बहुत मौडर्न है

लेखिका- प्रेमलता यदु

इंट्रो : शादी के समय ही रिश्तेदारों व जानपहचान वालों ने कहना शुरू कर दिया कि तेरी सास तो बड़ी मौडर्न है. पर नियति ही जानती है कि उस की सास उस के लिए कितनी केयरिंग है. सास के कहने पर जब नियति मायके आई तो क्या वह अपनी उन के प्रति मां की सोच बदल पाई…?

आज सुबहसुबह जैसे ही नियति का फोन श्रीकांतजी के मोबाइल पर आया, उन की पत्नी लीला ने उन्हें फोन स्पीकर पर डालने का इशारा किया और उन्होंने स्पीकर औन कर दिया.

नियति हंसती हुई बोली, “हैलो पापा, आप ने स्पीकर औन कर लिया हो और मम्मी आ गई हों तो मैं अपनी बात शुरू करूं.”

पिछले 2 महीनों से यही चल रहा है. नियति का फोन जब भी आता है, श्रीकांतजी स्पीकर औन कर देते हैं क्योंकि नियति और उस की मां लीला की बातचीत तब से बंद है, जब से नियति ने अपना निर्णय सुनाया है कि वह शादी अपने कलिग और स्कूल फ्रैंड विकल्प से ही करना चाहती है. यह बात जानते ही दोनों मांबेटी के बीच अबोलेपन ने अपना स्थान ले लिया. लेकिन जब भी नियति का फोन आता है, लीला अपने सारे काम छोड़ कर फोन के करीब आ जाती है, यह जानने के लिए कि नियति क्या कह रही है.

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नियति की बातों को सुन कर लीला के चेहरे के हावभाव बनतेबिगड़ते रहते हैं, क्योंकि लीला किसी हाल में नहीं चाहती कि उन की बेटी किसी विजातीय लड़के से ब्याह करे.

वैसे, लीला क‌ई दफा विकल्प की मां मिसेज चंद्रा से नियति के स्कूल फंक्शन और पैरेंट्स टीचर मीटिंग में मिल चुकी है. मिसेज चंद्रा मौडर्न और स्वतंत्र विचारधारा की महिला है.

लीला को लगता है कि मिसेज चंद्रा जरूरत से ज्यादा ही मौडर्न है. मिस्टर चंद्रा इंडियन नेवी में वरिष्ठ अधिकारी के पद पर थे. उन का घर ग्वालियर के पौश एरिया में है और काफी आलीशान भी है. नौकरचाकर सब हैं. किसी चीज की कोई कमी नहीं है. उन के घर का वातावरण, रहनसहन थोड़ा भिन्न है, जो लीला को शुरू से ही अटपटा लगता आया है. क्योंकि लीला जहां रहती है, वहां की औरतें ना तो मिसेज चंद्रा की भांति बिना आस्तीन का ब्लाउज पहनती हैं और ना ही बिना सिर पर पल्लू लिए घर से बाहर निकली हैं. ऊपर से इन का पूरा परिवार शुद्ध शाकाहारी और उन के घर पर बिना अंडा, मांस, मछली के काम ही नहीं चलता.

श्रीकांतजी एक सुलझे हुए और सरल व्यक्तिव के धनी हैं. उन्हें इस रिश्ते से कोई एतराज नहीं, क्योंकि उन के लिए तो नियति की खुशी ही सब से बड़ी है. उन का मानना है कि जातिपांति, धर्म कुछ नहीं होता, मनुष्य की बस एक ही जाति है और एक ही धर्म होता है और वह है मानवता का धर्म. श्रीकांतजी को मिसेज चंद्रा के मौडर्न होने से भी कोई तकलीफ नहीं है.

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श्रीकांतजी ने भी हंसते हुए कहा, “हां बोलो, तुम्हारी मम्मी आ गई हैं.”

“पापा, कल मैं और विकल्प ग्वालियर आ रहे हैं, फिर शाम को विकल्प के मौमडैड आप और मम्मी से हमारी शादी की बात करने आएंगे.”

श्रीकांतजी नियति को आश्वस्त करते हुए बोले, “तुम चिंता मत करो. सब ठीक होगा.”

यह सुनने के बाद नियति ने कहा, “थैंक्यू पापा, मुझे आप से एक बात और शेयर करनी है. मैं ने और विकल्प ने कंपनी चेंज कर ली है. हमारी न‌ई कंपनी का सबडिविजनल औफिस ग्वालियर में भी है तो शादी के बाद हम दोनों ग्वालियर आ जाएंगे.”

“यह तो और भी अच्छी बात है. हमारी बेटी शादी के बाद भी इसी शहर में रहेगी, हमें और क्या चाहिए. यह खबर सुनते ही तुम्हारी भाभी बहुत खुश हो जाएगी.”

भाभी का नाम सुनते ही नियति चहकती हुई बोली, “पापा, भाभी कहां है. बात तो कराइए.”

“इस वक्त तो वह किचन में व्यस्त है.”

नियति थोड़ा नाराज होती हुई बोली, “पापा, मैं ने मम्मी से कितनी बार कहा है कि एक फुल टाइम मैड रख लो, सुबह से ले कर रात तक भाभी बेचारी घर के कामों में ही उलझी रहती है. यहां तक कि उन के पास अपने खुद के लिए भी समय नहीं होता. और मम्मी हैं कि कुछ समझती ही नहीं. उन्हें लगता है कि घर का सारा काम बहू का ही है. ऊपर से भाभी को सारे काम साड़ी पहन कर करने पड़ते हैं. उन्हें काम करने में कितनी असुविधा होती है.

“पापा आप मम्मी को समझाइए, वक्त तेजी से बदल रहा है. अब मम्मी को भी थोड़ा बदलना होगा. अच्छा पापा, अब मैं फोन रखती हूं.”

ऐसा कह कर नियति ने फोन रख दिया.

नियति के फोन रखते ही लीला के चेहरे का रंग गुस्से से लाल हो गया और वह बड़बड़ाती हुई कहने लगी, “लो… अब ये छोरी सिखाएगी मुझे बहू से क्या काम करवाना है और क्या नही. खुद को तो ढेलेभर की अक्ल नहीं. एक ऐसी औरत की बहू बनने को उतावली हुए जा रही है, जिसे हमारी संस्कृति का जरा सा भी ज्ञान नहीं. ना तो वह अपने सिर पर पल्लू लेती है और ना ही उसे छोटेबड़े का लिहाज है. शादी हो जाने दो, फिर पता चलेगा मौडर्न सास कैसी होती है.”

लीला को अपनी स्वयं की बेटी के लिए इस प्रकार मुंह से आग उगलता देख श्रीकांतजी बोले, “अब बस भी करो लीला, मिसेज चंद्रा मौडर्न हैं, इस का मतलब यह नहीं कि वे बुरी हैं या फिर बुरी सास ही साबित होगी, कम से कम अपनी बेटी के लिए तो अच्छा सोचो और अच्छा बोलो. विकल्प अपने पैरेंट्स के साथ हम से मिलने आ रहा है. कल न‌ए रिश्तों की नींव पड़ने वाली है. मैं नहीं चाहता कि किसी भी रिश्ते की शुरुआत खटास से हो.”

श्रीकांतजी के ऐसा कहते ही लीला कोई प्रतिक्रिया व्यक्त किए बगैर वहां से चली गई.

दूसरे दिन नियति आ गई. शाम की पूरी तैयारियां जोरों पर थीं. वह वक्त भी आ गया, जब विकल्प अपने पैरेंट्स के साथ नियति के घर पहुंचा.

मिसेज चंद्रा की खूबसूरती आज भी बरकरार थी. उसे देखते ही लीला मन ही मन कुड़कुड़ाने लगी. जवान बेटे की मां और ये साजोसिंगार, अपनी उम्र तक का लिहाज नहीं. आग लगे ऐसे मौडर्ननेस को, लेकिन मिसेज चंद्रा इन सब से बेखबर, घर के सभी सदस्यों के साथ बड़ी आत्मीयता से मिल रही थी. बातों ही बातों में मिसेज चंद्रा ने कहा, “मैं बड़ी खुश किस्मत हूं, जो मुझे नियति जैसी खूबसूरत और समझदार बहू मिल रही है. मैं ढूंढ़ने भी निकलती तो नियति जैसी बहू मुझे नहीं मिलती.”

मिसेज चंद्रा के ऐसा कहने पर लीला व्यंग्यात्मक लहजे में बोली, “खूबसूरत, समझदार के साथसाथ कमाऊ बहू भी मिल रही है मिसेज चंद्रा, ये कहना भूल ग‌ईं आप.”

लीला का ऐसा कहना श्रीकांतजी, नियति और उस के भैयाभाभी को बड़ा अटपटा और बुरा लगा, लेकिन मिसेज चंद्रा बड़े सहज भाव से लीला की बातों को हंसी में उड़ा गई. उस के कुछ सप्ताह बाद नियति और विकल्प की शादी बड़े धूमधाम से हो गई.

शादी में आए सभी मेहमानों द्वारा शादी में किए गए शानदार इंतजाम को ले कर खूब तारीफ हुई, साथ ही साथ नियति व विकल्प की भी काफी प्रशंसा हुई. इन सब के अलावा सभी की जबान पर एक और बात की चर्चा जोरों पर थी और वह थी मिसेज चंद्रा की लेटेस्ट ज्वेलरी, स्टाइलिस साड़ी और हेयर स्टाइल.

लीला के सभी सगेसंबंधी और सहेलियां उस से यह कहने से नहीं चूकीं कि लीला बहन तुम ने तो दामाद के संग समधन भी बड़ी जोरदार पाई है. नियति की सास तो बड़ी मौडर्न है. इस उम्र में इतना स्टाइल, कमाल है… तुम्हारी समधन तो काफी स्टाइलिश है.

सभी के मुंह से बस एक ही बात सुन कर कि नियति की सास तो बड़ी मौडर्न है, लीला के कान पक गए और जब नियति शादी के बाद पहली बार घर आई तो लीला नियति की खैरखबर लेने के बजाय उस से कहने लगी, “कैसी है तेरी मौडर्न सास..? सजनेसंवरने के अलावा भी कुछ करती है या बस सारा दिन केवल आईने के सामने ही बैठी रहती है.”

अपनी मां का इस तरह बातबेबात नियति को उस की सास के मौडर्न होने का ताना देना उसे अच्छा नहीं लगता, इसलिए धीरेधीरे अब नियति अपने मायके आने से कतराने लगी. बस फोन पर ही अपने पापा और भाभी से बात कर लेती.

औफिस का भी यही हाल था. नियति के हर फैंड्स और कलीग्स को बस यही जानना होता है कि उस की सास का उस के साथ व्यवहार कैसा है..? उसे परेशान तो नहीं करती है…? नियति अपनी सास के होते हुए इतना फ्री कैसे रहती है…? क्योंकि सभी को लगता है कि नियति की सास बड़ी तेजतर्रार, स्टाइलिश और मौडर्न है.

नियति को यह बात समझ ही नहीं आ रही थी कि लोग सभी को एक ही तराजू पर क्यों तौलते हैं. ऐसा जरूरी तो नहीं कि जो महिला स्टाइलिश हो, मौडर्न हो, वह तेजतर्रार और बुरी सास ही होगी और जो देखने में सिंपल हो, सीधीसादी लगती हो, वह अच्छी सास ही होगी.

एक शनिवार नियति अपने मायके में फोन कर अपनी मम्मी से बोली, “मम्मी, इस वीकेंड पर हम पिकनिक पर जा रहे हैं. मौम कह रही थीं कि आप सब भी हमारे साथ चलते तो एक अच्छा फैमिली पिकनिक हो जाएगा. आप भैयाभाभी से भी चलने को कह देना.”

नियति का इतना कहना था कि लीला भड़क उठी और कहने लगी, “हमें कहीं नहीं जाना तेरी मौडर्न सास के साथ और ना ही हमारी बहू जाएगी तुम लोगों के साथ. तुम सासबहू दोनों घूमो जींसपेंट घटका कर पूरे शहर में. तुम्हें ना सही, पर हमें तो है लोकलाज का खयाल.

“वैसे भी तुम्हारी भाभी अपने मायके इंदौर गई है और तुम्हारा पत्नीभक्त भाई उस के साथ ही गया है. दोनों यहां होते भी तो हम में से कोई ना जाता तुम्हारे मौडर्न परिवार के साथ कहीं, क्योंकि उस दिन मेरे गुरुजी का जन्मदिन है, इसलिए हमारी समिति की ओर से इस अवसर पर भव्य सत्संग रखा है. उस दिन गुरुजी सभी को दर्शन और आशीर्वाद देंगे, जो जीवन की सद्गति के लिए बहुत जरूरी है. यह सब तेरी मौडर्न सास क्या समझेगी.”

लीला का इतना कहना था कि नियति ने गुस्से में फोन काट दिया.

निर्धारित दिन पर नियति अपने पूरे परिवार के साथ इधर पिकनिक के लिए निकल पड़ी, उधर लीला और श्रीकांतजी भी गुरुजी से आशीष लेने सत्संग के लिए निकल पड़े.

आज पूरा दिन परिवार के संग इतना अच्छा समय बिता कर नियति काफी खुश थी. उसे बस इस बात का अफसोस था कि आज की इस खुशी का हिस्सा उस के अपने मम्मीपापा केवल उस की मौम की संकुचित मानसिकता की वजह से नहीं बन पाए थे.

पिकनिक से लौटते वक्त नियति इन्हीं सब बातों में गुम थी कि अचानक उस का मोबाइल बजा. फोन किसी अनजान नंबर से था. फोन रिसीव करते ही नियति की आंखों से अविरल अश्रुधारा प्रवाहित होने लगी.

यह देख नियति की सास ने उस से कारण जानना चाहा, तो नियति रोती हुई बोली, “मम्मी का फोन था. सत्संग से लौटते हुए मम्मीपापा का एक्सीडेंट हो गया है. पापा गंभीर रूप से घायल हो गए हैं. मम्मी को ज्यादा चोटें नहीं आई हैं. मोबाइल भी टूट गया है, इसलिए उन्होंने किसी दूसरे के मोबाइल से फोन किया था. भैयाभाभी भी शहर से बाहर हैं और वहां सिटी अस्पताल में पुलिस प्रक्रिया में देर होने की वजह से पापा का इलाज शुरू नहीं हो पा रहा है. मम्मी बहुत घबराई हुई हैं और परेशान हैं.”

इतना सुनते ही मिसेज चंद्रा बोलीं, “तुम्हें रोने या परेशान होने की जरूरत नहीं बेटा, शहर के डीएसपी से मेरा बहुत अच्छा परिचय है. मैं अभी उन्हें फोन कर देती हूं और अस्पताल में भी फोन कर देती हूं. वहां भी मेरी पहचान के काफी सीनियर डाक्टर हैं, वे सब संभाल लेगें. तुम्हें चिंता करने की जरूरत नहीं और कुछ घंटों में तो हम भी शहर पहुंच ही जाएंगे.”

ऐसा कहती हुई मिसेज चंद्रा ने अपने क‌ई मित्रों और पहचान के नामीगिरामी हस्तियों को फोन कर नियति के मम्मीपापा को हर संभव मदद करने को कह दिया.

जब नियति अपने पूरे परिवार के साथ अस्पताल पहुंची, तो उस के मम्मीपापा का इलाज शुरू हो गया था. पुलिस और अस्पताल के डाक्टर व स्टाफ अपना पूरा सहयोग दे रहे थे.

यह देख एक बार फिर नियति की आंखें नम हो गईं और उस के चेहरे पर अपनी सास के प्रति आदर और कृतज्ञता के भाव उभर आए.

नियति की मम्मी 3 दिनों तक अस्पताल में एडमिट रहीं और उस के पापा 15 दिनों तक, मिसेज चंद्रा पूरी आत्मीयता से हर रोज अस्पताल में मिलने जाती. उन की वजह से नियति के मम्मीपापा को अस्पताल में कभी कोई परेशानी नहीं हुई. वहां उन का विशेष ध्यान रखा गया और अस्पताल के डाक्टरों व स्टाफ के द्वारा भरपूर सहयोग मिला. उस के बावजूद मिसेज चंद्रा के प्रति लीला के विचार और बरताव में कोई फर्क नहीं आया.

लीला अब भी अपने स्वस्थ होने और सही समय पर इलाज मिलने का श्रेय अपने गुरुजी की कृपा और आशीर्वाद को ही दे रही थी.

मिसेज चंद्रा को लीला अपने गुरुजी के द्वारा भेजा गया केवल एक माध्यम समझ रही थी, जबकि गुरुजी का इस बात से कोई वास्ता ही नहीं था.

लीला की इस प्रकार अंधभक्ति देख और बारबार अपनी ही मां से अपनी सास के लिए अपमान भरे शब्द सुनसुन कर नियति ने यह तय कर लिया कि वह अब ना तो अपने मायके जाएगी और ना ही अपनी मम्मी को फोन करेगी.

काफी दिनों तक जब नियति अपने मायके नहीं गई, तो एक दिन नियति की सास ने उस से कहा, “नियति बेटा, तुम बहुत दिनों से अपने मायके नहीं गई हो, इस संडे समय निकाल कर उन से मिल आओ. उन्हें तुम्हारी चिंता होती होगी.”

नियति अपनी सास की बात टालना नहीं चाहती थी और ना ही उन्हें सच बता कर उन का दिल दुखाना चाहती थी, इसलिए वह बोली, “जी. इस संडे चली जाऊंगी.”

संडे को जब नियति अपने मायके पहुंची, तो पापा उसे वरांडे में आरामकुरसी पर बैठे किताब पढ़ते मिल गए. काफी देर पापा के पास बैठने के बाद जब नियति अंदर गई तो उस ने देखा कि उस की मम्मी अपनी सहेलियों के साथ बैठी हंसीठिठोली कर रही है और उस की भाभी भागभाग कर सब के लिए चायनाश्ता और पानी की व्यवस्था कर रही है.

यह देख नियति अपनी भाभी का हाथ बंटाने किचन की ओर बढ़ी ही थी कि वहां बैठी उस की मम्मी की सहेलियों में से एक ने कहा, “अरे नियति, तुम कब आई? इधर आ… हमारे पास बैठ. मैं ने तो सुना है कि तेरी सास बड़ी मौडर्न है, तुम अपनी सास के साथ ससुराल में कैसे निभा रही हो?”

नियति चुप रही, फिर क्या था एक के बाद एक सभी ने नियति की सास का मजाक उड़ाना शुरू कर दिया. कोई उन की लिपिस्टिक पर फिकरे कसने लगा, तो कोई हेयर स्टाइल पर, किसी को उन का इस उम्र में जींस पहनना गलत लग रहा था, तो किसी को उन के लहराते हुए आंचल से आपत्ति थी.

सभी की अनर्गल बातें सुन कर नियति से रहा नहीं गया और वह सब पर बरस पड़ी और कहने लगी, “हां, मेरी सास बड़ी मौडर्न है. वह केवल मौडर्न ड्रेस ही नहीं पहनती, उन की सोच भी मौडर्न है. वे अपनी बहू को चारदीवारी में घूंघट के पीछे घुटनभरी जिंदगी नहीं, खुली हवा में आजादी की सांस लेने देती है.

“यहां आप में से कितनी सास अपनी बहू को उन की मरजी से जीने देती है…?अपनी बहू का बेटी की तरह मां बन कर ध्यान रखती है..? लेकिन मेरी मौडर्न सास मेरा खयाल अपनी बेटी की तरह रखती है और मुझे उन के मौडर्न होने पर गर्व है. क्योंकि वह मुझे केवल बेटी बुलाती ही नहीं, अपनी बेटी समझती भी हैं. और सब से बड़ी बात यह कि बुरे वक्त में साथ खड़ी रहती हैं. ऊपर वाले की इच्छा कह कर अपना पल्ला नहीं झाड़ लेती हैं.”

नियति की बातें सुन कर सब की आंखें शर्म से झुक गईं और नियति के पापा वरांडे में बैठे मंदमंद मुसकरा रहे थे.

Family Story in Hindi : डौल्फिन- कैसे मोहल्ले वालों की बेटी बन गई वो लड़की?

लेखक- Dr. Narendrta Chaturvedi

आजकल टैलीविजन पर सुबह-सुबह ग्रहनक्षत्रों की बात अधिक ही होने लगी है. लगता है, 12 राशियां, 9 ग्रहों के जोड़तोड़, कुल 108 के अंकों में ही 1 अरब से अधिक की जनसंख्या उलझ गई है. सुबह घूमते समय भी लोग आज के चंद्रमा की बात करते मिल जाते हैं. उन का कुसूर नहीं है. हम जैसा सोचते हैं, बाहर वैसा ही दिखाई पड़ता है. उस दिन माथुर साहब मिल गए थे, बोले, ‘‘भीतरिया कुंड पर कोई बनारस के झा आए हुए हैं, कालसर्प दोष निवारण करा रहे हैं.’’

‘‘तो,’’ मैं चौंक गया. उन्होंने जेब से एक परचा निकाला, मुझे देना चाहा.

‘‘नहीं, आप ही रखें. जो होना है, वह तो होगा ही, वह होता है, तो फिर इन उपायों के क्या लाभ? ये कोई सरकारी बाबू तो नहीं हैं, जो पैसे ले कर फाइल निकाल देते हैं.’’

उन का चेहरा कुछ उदास हो गया. वे तेजी से आगे बढ़ गए. मैं ने देखा वे अन्य किसी व्यक्ति के साथ खड़े हो कर शायद मेरी ही चर्चा कर रहे होंगे, क्योंकि बारबार वे दोनों मेरी तरफ देख रहे थे. पर अगले ही दिन, कालसर्प दोष लग ही गया था.

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अचानक पड़ोस के खन्नाजी के घर से रोने की तेज आवाज सुनाई दी थी, ‘इन्हें क्या हो गया?’

तभी बाहर कौलबैल बज गई. पड़ोसी गुप्ताजी खड़े थे.

‘‘आप ने सुना?’’

‘‘क्या हुआ?’’

‘‘खन्नाजी का सुबह ऐक्सिडैंट हो गया. वे फैक्टरी से आ रहे थे, पीछे से तेजी से आ रहा टैंकर टक्कर मारता हुआ निकल गया. पीछे आ रहे लोगों ने खन्नाजी को संभाला, पर तब तक उन की मृत्यु हो चुकी थी. अब चलते हैं, उन के घर उन के परिवार वालों को फोन कर दिया है, वे लोग तो शाम तक आ जाएंगे.’’

‘‘हूं, दुख कभी कह कर नहीं आता है और सुख कभी कह कर नहीं जाता है, यह प्रकृति का रहस्य है.’’

बाहर बरामदे में खन्नाजी का शव रखा था. पोस्टमार्टम के बाद उन के सहयोगी शव ले आए थे. खन्नाजी अपने प्लांट में लोकप्रिय थे. पत्नी तो उन के शव को देखते ही अचानक कोमा में चली गईं. डाक्टर को सूचना दे दी गई. उन की छोटी सी 7 साल की बेटी सूनी आंखों से अपने पिता के शव को देख रही थी. सभी पड़ोसी जमा हो गए थे.

डाक्टर ने तुरंत उन की पत्नी को अस्पताल में भरती करने को कहा. ऐंबुलैंस बुलाई गई, पर अस्पताल पहुंचतेपहुंचते उन की पत्नी भी पति के साथ चल बसी थीं.

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शाम तक सभी रिश्तेदार आ गए थे. दाहसंस्कार हुआ. 3 दिन तक सब जमा रहे. समस्या थी, अब डौल्फिन कहां जाए? जो लड़की सामने पार्क में सब से आगे रहती थी, तितलियों से बात करती थी, वह अचानक पथरा गई थी.

खन्ना के मकान का क्या होगा? बैंक में उन का कितना रुपया है? उन के इंश्योरैंस का क्या होगा? ये सवाल रिश्तेदारों के जेहन में उछल रहे थे. डौल्फिन की नानी ने चाहा, डौल्फिन को अपने साथ ले जाएं, पर लड़की है, जिम्मेदारी किस की होगी? मामा ने हाथ खींच लिए थे. चाचाताऊ वकीलों से बात करने चले गए थे.

डौल्फिन चुपचाप अपने कमरे में रह गई थी. उस की आंखों के आंसू मानो धरती सोख गई हो, ‘‘अरे, इसे रुलाओ,’’ महिलाओं ने कहा, ‘‘नहीं तो यह भी मर जाएगी.’’

पड़ोस की बुजुर्ग महिला, मालतीजी, जो रिटायर्ड अध्यापिका थीं, वे ही डौल्फिन के लिए खाना ले कर आती थीं, पर डौल्फिन कुछ नहीं खाती थी, वे उसे बस अपनी छाती से चिपटाए बैठी रहतीं. मालतीजी का लड़का न्यूयार्क में था, बेटी पेरिस में, दोनों ही सौफ्टवेयर इंजीनियर थे. उन के अपने घर बस गए थे. वे लोग बुलाते तो मालतीजी यही कहतीं, ‘बेटा, यहां अपना घर है, सब अपने हैं, वहां अब कहां रहा जाए?’ बच्चे ही साल में चक्कर लगा जाते. मालतीजी रिटायरमैंट के बाद शुरूशुरू में बच्चों के पास कुछ दिनों के लिए रहने चली जातीं पर धीरेधीरे उन का जाना कम होता चला गया.

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‘‘यह बुढि़या क्यों आती है यहां?’’ डौल्फिन की ताई ने अपनी देवरानी से पूछा.

‘‘क्या पता? इस के पास खन्नाजी ने रुपए रखे हों.’’

तब तक खबर आ गई थी कि डौल्फिन को शहर के चिल्ड्रन होम में रखने का फैसला घर वालों ने कर लिया है. उस का कौन संरक्षक होगा, उस का फैसला कोर्ट तय करेगा. तब तक वह वहीं रहे, यही तय हुआ है. मकान और उस के सामान को ताला लगा देंगे. घर वाले अब जाना चाहते हैं.

‘‘क्या यह बच्ची अनाथालय में रहेगी?’’

‘‘तो हम क्या कर सकते हैं? जब उस के घर वाले यही चाहते हैं, तो हम लोग क्या हैं?’’

पर क्या डौल्फिन से भी किसी ने पूछा है? सवाल बड़ा था. दोनों ही पक्षकारों में कुछ सुलह भी हो गई थी. पैसा, मकान झगड़ोगे तो सब चला जाएगा. हां, मिल कर कोई कार्यवाही कर लेते हैं, इसी में सब को लाभ है. फिर जहां कोर्ट कहेगा, वहां बच्ची रह लेगी, अभी तो यह मामला कोर्ट में है. इस पर दोनों पार्टियों में सहमति हो गई थी.

पर दूसरे ही दिन मानो भूचाल आ गया हो. मालतीजी अपने साथ डौल्फिन को ले जा रही थीं.

‘‘आप इसे अपने साथ नहीं रख सकतीं,’’ रिश्तेदार कह रहे थे.

‘‘हां, मैं ने कोर्ट में दरख्वास्त दी है, इस को अनाथालय भेजना उचित नहीं है. मैं ने अपनी जमानत दी है, मैं ने इसे गोद नहीं लिया है, न मुझे आप का यह मकान लेना है, न इंश्योरैंस का धन. मेरा खुद का मकान बहुत बड़ा है. यह वहां पढ़ लेगी. मुझे इसे पढ़ाना है. यही मैं ने मजिस्ट्रेट से कहा है, अपनी जमानत दी है. जब तक कोर्ट का निर्णय नहीं आता, तब तक मेरे पास रहने की इजाजत मिल गई है. आप लोग मकान में ताला लगा दें, मुझे वहां से कुछ नहीं लेना है. खन्नाजी आप के रिश्तेदार थे, उन से मुझे कुछ नहीं चाहिए.’’

रुचि खन्ना, मालतीजी को आंटी कहा करती थीं. उस की दोपहर उन के घर पर ही बीतती थी. और तब डौल्फिन भी मां के साथ आ कर उन के घर में खेलती रहती थी. वह उन्हें नानी ही कहती थी. उन के यहां पर कंप्यूटर था, लैपटौप भी था और उन का बेटा तरहतरह के कैमरे भी रख गया था. वह आती, कहती, मेरा फोटो खींचो. फिर वह उन फोटो को लैपटौप पर देखा करती थी. उस के चेहरे की तरहतरह की मुद्राएं मालतीजी को सहेजना पसंद था.

पर अब जो हुआ, उस पर किसी का भी विश्वास होना कठिन था.

अगले दिन सुबह ही पार्क में बुजुर्गों की मीटिंग थी. कुछ उन के इस कदम की सराहना कर रहे थे, कुछ चिंता, ‘‘क्या वह उसे गोद लेगी? कितने दिन अपने पास रख पाएगी? अन्यथा किसी रिश्तेदार को सौंप देगी? पर फिर यही तय हुआ, वह जो मदद मांगेगी तो कर देंगे.’’

बस अपना बस्ता और खिलौने ले कर डौल्फिन मालती के घर आ गई थी. उस का घर यथावत बंद हो गया था, रिसीवरी में यह किस के पास रहेगी? विवाद का विषय अब संपत्ति के फैसले से जुड़ गया था.

दिनभर डौल्फिन उन के ही पास रहती, वे उसे पार्क में ले जातीं, पर वह न तो पहले की तरह दौड़ती, भागती, न ही किसी से बोलती. बस, चुपचाप पार्क की बैंच पर बैठी रहती. स्कूल से भी फोन आया था, इम्तिहान भी आने वाले थे, मालतीजी उसे खुद पढ़ाने लग गई थीं. उसे बाजार ले जा कर उस के लिए नए कपड़े ले आई थीं. उन्होंने स्कूल की शिक्षिका को घर पर ही पढ़ाने के लिए बुला लिया था.

हां, वह पढ़ती रही, वह 10वीं पास कर गई थी. तब इस महल्ले में मेरा रहना शुरू हुआ था. कानपुर से मैं यहां पर कोचिंग इंस्टिट्यूट में कैमिस्ट्री पढ़ाने आ गया था. अच्छा पैकेज था, पत्नी को भी काम मिल गया था. यहीं पार्क के सामने हम ने अपना घर किराए पर ले लिया था.

तभी एक दिन मेरे घर पर महल्ले के बुजुर्गों ने कौलबैल बजाई. उस दिन कोई अवकाश था. मुझ से मिलने कौन आएगा? चौंक गया मैं. दरवाजे पर देखा, काफी लोग थे. मैं समझा शायद चंदा मांगने आए होंगे.

‘‘आप?’’

‘‘हम इसी महल्ले में रहते हैं. यह जो सामने पार्क है, इस की कमेटी बना रखी है, इस के सदस्य हैं.’’

‘‘हां, पार्क बहुत सुंदर है, मैं भी शाम को घूमता हूं.’’

‘‘हां, वहीं आप को देखते हैं, आज सोचा, मिल लें.’’

‘‘क्यों नहीं, आज्ञा दें, आप लोग बैठें.’’

‘‘आज्ञा?’’ वे लोग हंसे, तभी एक सज्जन, जिन्होंने अपनेआप को रिटायर्ड प्रिंसिपल बताया था, बोले, ‘‘हम आप से एक रिक्वैस्ट करने आए हैं.’’

‘‘कहें.’’

‘‘आप डौल्फिन को नहीं जानते,’’ तब उन्होंने मुझे उस दुर्घटना के बारे में बताया था और किस प्रकार मालतीजी ने इस डौल्फिन की मदद में अपनेआप को पूरी तरह लगा दिया था. उन का बेटा जब अमेरिका से आया था तो वह उन्हें अमेरिका ले जाना चाहता था लेकिन उन्होंने अमेरिका जाना ठीक न समझा और डौल्फिन को नहीं छोड़ा. यह डौल्फिन महल्ले के सभी लोगों की बेटी हो गई है.

‘‘हम सब उसी के लिए आप से सहायता मांगने आए हैं.’’

‘‘क्या?’’

‘‘हां, 10वीं में डौल्फिन की मैरिट आई है. वह डाक्टर बनना चाहती है. पर जहां आप पढ़ाते हैं, वहां की फीस बहुत ज्यादा है, साथ ही यहां से बहुत दूर है. बहरहाल, हम ने एक आटो लगा दिया है, उस से वह जाया करेगी. आप वहां उस का ध्यान

रख लें, संभाल लें, आप की भी…’’ कहतेकहते उन का गला भर्रा गया था.

मैं अवाक् था, क्या कहता, महीने की भी फीस वास्तव में ज्यादा है. पर अब तो टैस्ट भी हो गए हैं, सीटें भर गई हैं, इन्हें क्या कहूं?

‘‘क्या सोच रहे हैं आप?’’ वे बोले.

‘‘उस ने एंट्रैंस टैस्ट तो पास कर लिया होगा?’’ मैं ने पूछा.

‘‘नहीं, वह जा नहीं पाई, तब बीमार हो गई थी और इंस्टिट्यूट में वह जाना नहीं चाहती है.’’

‘‘ठीक है, आप कल आ जाएं, मैं बात करूंगा.’’

उन के जाते ही पत्नी ने कहा, ‘‘किस झमेले में पड़ गए हो. मुझे भी यहां उस के बारे में बताया था, पता नहीं अपने रिश्तेदारों के यहां न भेज कर इन्होंने कौन सा पुण्य किया है?’’

मुझे हंसी आ गई, क्या कहता, स्त्री मन को कौन पढ़ पाया है. जिन रिश्तेदारों को धन से मतलब है, वहां किसी के जीवन का क्या अर्थ है. हमारे समाज में स्त्री का स्त्री होना  ही अभिशाप है. लड़की वह भी बिना मातापिता की, अचानक मेरा सिर मालतीजी के सम्मान में झुक गया था.

मैं ने पत्नी से कहा, ‘‘तुम अपने मन से कह रही हो या मुझे खुश करने के लिए?’’

वह अचानक स्तब्ध रह गई, ‘‘कैसे इन लोगों ने इस बच्ची को पाला है?’’

‘‘तो फिर.’’

‘‘तुम मदद कर सको तो कर दो,’’ उस ने अचानक मुंह फेर लिया था, वह अपने आंसू नहीं रोक पाई थी.

करुणा का पाठ, किसी पाठ्यपुस्तक में नहीं होगा, यह तो जीवन के थपेड़े कब सौंप जाते हैं, कहना कठिन है.

कालेज में वे सभी लोग एकसाथ आए थे. मैं ने उन्हें विजिटर्स में बैठा दिया था और डौल्फिन की मार्कशीट ले कर माहेश्वरीजी से मिला था.

‘‘यह क्या है?’’ वे चौंके.

‘‘एक फौर्म है.’’

फौर्म उन्होंने हाथ में ले लिया, ‘‘क्या नाम है, डौल्फिन,’’ और हंस पड़े, ‘‘मार्क्स तो बहुत हैं. यह तो मैरिट में है. इस ने एंट्रैंस क्यों नहीं दिया?’’

‘‘नहीं दे पाई,’’ मैं ने सामने रखा पानी का गिलास उठाया और पानी के घूंट के साथ अपनेआप को संयत किया, डौल्फिन की पूरी कहानी सुनाई.

माहेश्वरीजी भी स्तब्ध रह गए थे.

‘‘यह लड़की नीचे बैठी है.’’

‘‘इस के साथ कौन आया है?’’ वे बोले.

‘‘महल्ले के बुजुर्ग,  वे सब इस के संरक्षक हैं.’’

‘‘फौर्म दे दो.’’

‘‘पर…’’

‘‘पर क्या?’’

‘‘वे सब इतनी फीस नहीं दे पाएंगे,’’ मैं ने अटकते हुए कहा था.

अचानक माहेश्वरीजी सीट से उठ कर खड़े हुए, और खिड़की के पास खड़े हो गए. मैं अवाक् था, देखा उन के गाल के पास से पानी की लकीर सी खिंच गई है.

‘‘इसे ‘ए’ बैच में भेज दो,’’ वे धीरे से बोले, ‘‘इस का फौर्म कहां है?’’

फौर्म पर उस का नाम लिखा था और मार्कशीट साथ में लगी हुई थी. जहां मातापिता, संरक्षक के हस्ताक्षर होने थे, वह कालम खाली पड़ा था. उन्होंने पैन उठाया और फौर्म पूरा भर दिया.

डौल्फिन उन की उम्मीदों पर खरी उतरी थी, मेरे सामने ही वह पीएमटी में अच्छी रैंक से पास हो गई थी. बोर्ड में उस की मैरिट थी. जब उस का परिणाम आया था, महल्ले  ने पार्टी दी थी, मैं भी तब वहीं था. पर उस के बाद वहां से मुझे नागपुर आना पड़ गया. वहां के विश्वविद्यालय में मेरा चयन हो गया था.

समय किसी के चाहने से ठहरता नहीं है. उस की अपनी गति है. मैं भी इस शहर को, यहां के लोगों को भूल ही गया था. शास्त्र भी कहता है, ज्यादा बोझा स्मृति पर डाला नहीं जाता, ‘भूल जाना’ स्वास्थ्य के  लिए अच्छा है. यहां के विश्वविद्यालय में पीएचडी के लिए मौखिक परीक्षा थी. मैं परीक्षक था. मुझे आना पड़ा. सोचा तो यही था, एक बार पुराने महल्ले में हो आऊं, छोड़े 10 साल हो गए हैं, क्या पता अब वहां कौन हो? मालतीजी भी हैं या नहीं और डौल्फिन, अचानक उस की याद आ गई. पर संबंध भी समय के साथ टूट जाते हैं. मोबाइल में मेमोरी भी वही नंबर रखती है जो हम फीड करते हैं. यह तो नौकरी के साथ घटी घटना थी, बस. विश्वविद्यालय की कार ने दरवाजे पर उतारा. मैं अपना ब्रीफकेस ले कर स्टेशन की तरफ तेजी से बढ़ ही रहा था कि तभी एक कार तेजी से मेरे पास आ कर रुकी.

मैं चौंक गया, ‘‘आप?’’

सुंदर सी युवती, जिस के साथ एक छोटा सा खूबसूरत बच्चा था, अचानक कार से उतरी.

‘‘अंकल, मैं डौल्फिन, आप को कई पत्र लिखे, पर आप का जवाब ही नहीं आया, आप की यूनिवर्सिटी का पता लगाया था, वहां भी कोरियर भेजा था, पर आप तो हमें भूल ही गए.’’

‘‘तुम?’’

‘‘हां, मैं आप का यूनिवर्सिटी से पीछा कर रही हूं, मुझे तो आज ही पता लगा था कि आप मौखिक साक्षात्कार लेने आए हैं. वहां गई थी, वहां पता लगा कि आप ट्रेन से जा रहे हैं, पर आप की ट्रेन तो लेट है.’’

मैं किंकर्तव्यविमूढ़ सा उसे देखे जा रहा था.

‘‘अंकल, नानी आप को बहुत याद करती हैं, उन्होंने आप का फोटो भी अस्पताल के हौल में लगा रखा है.’’

‘‘क्या?’’

‘‘हां, मैं ने पढ़ाई पूरी कर के, एमडी भी कर लिया, नानी ने मेरी शादी भी कर दी, रोहित भी डाक्टर हैं, नानी ने हमारा क्लीनिक खुलवा दिया है, हम नानी के पास, नानी हमारे पास रहती हैं.’’

‘‘बहुत अच्छा, तुम ने जो मालतीजी को साथ ही रखा वरना इस बुढ़ापे में उन की देखभाल करने वाला था ही कौन.’’

‘‘घर चलिए आप, मैं आप को नहीं जाने दूंगी, हमारा पूरा महल्ला भी आप को याद करता है, पर आप तो, बड़े शहर के हो…’’ वह हंस रही थी.

मैं अचानक मानस समुद्र के उद्वेलित जल में उठती, फूटती, डौल्फिन का नृत्य देख कर चकित था. बहुत पहले गोआ गया था, अचानक समुद्र में तेज पानी का उछाल देख कर चौंक गया था, पास खड़ा कोई कह रहा था, बाहर से डौल्फिन ला कर यहां छोड़ी गई है. मैं उसे नहीं देख पाया था. क्या पता कोई और हो, पर यहां डौल्फिन अपने होने का सचमुच एहसास करा रही थी.

 

Satyakatha : ऊंचे ओहदे वाला रिश्ता

लेखक- नितिन शर्मा ‘सबरंगी’

सौजन्या- सत्यकथा

ह.र मातापिता की इच्छा होती है कि उन के बच्चे पढ़ाईलिखाई कर के आगे बढ़ें, उन की शादियां हों और वे अपनी दुनिया में खुश रहें. अशोक कुमार की बेटी साक्षी इंडियन आर्मी में मिलिट्री नर्सिंग सर्विसेज में लेफ्टिनेंट थी. साल 2017 में उस का सेलेक्शन हुआ था.

दिल्ली के तिलकनगर इलाके के रहने वाले अशोक कुमार को बेटी के आर्मी में सेलेक्शन के वक्त बधाइयां देने वालों का तांता लग गया था. तब वह खुशी से फूले नहीं समाए. जाहिर है यह बड़े गर्व की बात थी.
साक्षी की शादी नवनीत शर्मा के साथ हुई थी. नवनीत वायुसेना में स्क्वाड्रन लीडर थे. दोनों ही हरियाणा की अंबाला छावनी में तैनात थे. उन का 2 साल का एक बेटा भी था. लोग अशोक कुमार को खुशनसीब इंसान मानते थे. कामयाब बेटी के पिता होने के नाते लोगों का सोचना भी ठीक था, लेकिन किसी इंसान की असल जिंदगी में क्या कुछ चल रहा होता है, इस बात को कोई नहीं जान पाता.

अशोक कुमार के साथ भी कुछ ऐसा ही था. बेटी को ले कर वह परेशान रहते थे. इस की बड़ी वजह यह थी कि बेटी का वैवाहिक जीवन उम्मीदों के विपरीत था. 20 जून, 2021 की रात का वक्त था, जब अशोक कुमार के मोबाइल पर साक्षी का फोन आया. उन्होंने बेटी से बात शुरू की. ‘‘हैलो! साक्षी बेटा कैसी हो?’’
‘‘पापा, यहां कुछ भी अच्छा नहीं चल रहा, मैं बहुत परेशान हो चुकी हूं.’’ साक्षी के लहजे में परेशानी छिपी हुई थी, जिसे अशोक कुमार ने भांप लिया था. उन्होंने धड़कते दिल से पूछा, ‘‘क्या हुआ बेटा?’’
‘‘पापा, नवनीत मुझे लगातार परेशान करते हैं, हद इतनी हो गई है कि मेरे साथ मारपीट भी की जाती है. पता नहीं कब तक ऐसा चलेगा.’’ वह बोली.

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‘‘सब्र कर बेटा. समय के साथ सब ठीक हो जाएगा. मैं समझाऊंगा उसे.’’ अशोक कुमार ने समझाया.
‘‘यह समझने वाले नहीं हैं. पता नहीं क्या होगा पापा. मैं बाद में बात करती हूं.’’ साक्षी ने सुबकते हुए फोन काट दिया. बेटी की बातों से अशोक परेशान हो गए. उन्होंने अपने दामाद नवनीत का मोबाइल नंबर डायल किया, लेकिन कोई रिस्पांस नहीं मिला. उन्हें याद आया कि उन का नंबर दामाद ने ब्लौक किया हुआ था.
साक्षी भी यह बात अपने परिजनों को बता चुकी थी कि मायके वालों के नंबर ब्लौक लिस्ट में हैं.
इस के बाद उन्होंने साक्षी के ससुर चेतराम शर्मा को फोन किया, ‘‘भाईसाहब, आप ही बच्चों को समझाइए, काफी समय से यही सब चल रहा है. साक्षी का अभी फोन आया था और वह बता रही थी कि उस के साथ मारपीट भी की जा रही है.’’

‘‘देखिए भाईसाहब, यह उन का आपस का मामला है. नवनीत तो मेरी बात सुनता ही नहीं तो बताओ, मैं भी क्या कर सकता हूं.’’ चेतराम शर्मा बोले. उन की बात सुन कर अशोक कुमार को बहुत निराशा हुई. इस से ज्यादा वह कर भी क्या कर सकते थे अलबत्ता वह चिंतित जरूर हो गए. अशोक ने यह बात अपने बेटे सौरभ को बताई. उन का पूरा परिवार पूरी रात चैन की नींद नहीं सो सका. 21 जून की सुबह के करीब साढ़े 6 बजे नवनीत की मां लक्ष्मी का फोन आया और उन्होंने बताया कि साक्षी ने सुसाइड कर लिया है.
यह सुनते ही अशोक के पैरों तले से जमीन खिसक गई. उन का फोन केवल सूचनात्मक था. इस से ज्यादा उन्होंने कोई बात नहीं की. बेटी की मौत की खबर से अशोक के परिवार में कोहराम मच गया. आननफानन में पितापुत्र दिल्ली से अंबाला के लिए रवाना हो गए.

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नवनीत और साक्षी रेसकोर्स स्थित आवास नंबर 115/04 में रहते थे. अशोक और सौरभ से वहां कोई बात करने को भी तैयार नहीं था. वह सीधे रेजीमेंट बाजार पुलिस चौकी पहुंचे और नवनीत व उस के परिजनों के खिलाफ बेटी को दहेज के लिए प्रताडि़त करने की तहरीर दे दी. पुलिस पहले ही इस मामले की तहकीकात में जुटी हुई थी. दरअसल, पुलिस कंट्रोल रूम को 21 जून की सुबह इस घटना की सूचना मिली थी. कंट्रोल रूम से यह सूचना थाने को फ्लैश की गई. मामला हाईप्रोफाइल था, लिहाजा एसएसपी हमीद अख्तर ने अधीनस्थों को इस मामले में तत्काल सक्रिय होने के निर्देश दे दिए थे.

डीएसपी रामकुमार, इंसपेक्टर विजय व चौकी इंचार्ज कुशलपाल ने जांचपड़ताल शुरू की. पुलिस ने साक्षी के परिजनों की तहरीर पर दहेज उत्पीड़न की धाराओं में मुकदमा दर्ज कर लिया. साक्षी के शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया. साथ ही उन के पति नवनीत को भी गिरफ्तार कर लिया गया.
ओहदे थे ऊंचे पर जिंदगी थी नीरस

पुलिस की जांचपड़ताल और परिजनों से की गई पूछताछ में ऊंचे ओहदों के पीछे की ऐसी कहानी निकल कर सामने आई, जिस ने हर किसी को सोचने पर मजबूर कर दिया. देश सेवा के लिए आर्मी जौइन करने वाली साक्षी की निजी जिंदगी में वास्तव में अंधेरा लिए हुए एक बड़ा तूफान चल रहा था. साक्षी और नवनीत के बीच जानपहचान थी. पहले दोनों के बीच दोस्ती हुई और फिर यह दोस्ती प्यार में बदल गई. नवनीत का परिवार हरियाणा के पंचकूला जिले के पिंजोर कस्बे का रहने वाला था. नवनीत स्क्वाड्रन लीडर थे और साक्षी लेफ्टिनेंट. दोनों ही ऊंचे पद पर थे.

12 दिसंबर, 2018 को दोनों विवाह बंधन में बंध गए. साक्षी के परिजनों की आर्थिक स्थिति बहुत ज्यादा अच्छी नहीं थी. फिर भी उन्होंने अपनी हैसियत के अनुसार शादी में खर्च किया. शादी के बाद कुछ महीनों तक तो सब ठीक चलता रहा. साक्षी ने एक बेटे को भी जन्म दिया. दोनों अच्छे पद पर थे. परिवार की खुशियों में चारचांद लगाने के लिए बेटा भी हो चुका था, लेकिन जिंदगी में कई बार पद और सुखसुविधाओं से खुशियों के मायने नहीं होते.

साक्षी और नवनीत के बीच मनमुटाव रहने लगा था. साक्षी ने शुरू में तो अपने परिवार में कुछ नहीं बताया, परंतु जब बात हद से ज्यादा बढ़ने लगी तो एक दिन उस ने अपने पिता को सारी बातें बताईं, ‘‘पापा, सोचा नहीं था कि ये लोग ऐसे होंगे.’’ बेटी की बात पर अशोक थोड़ा सकपका गए ‘‘मैं समझा नहीं बेटी?’’
‘‘पापा, ये लोग मुझे दहेज के लिए ताना मारते हैं. कभी कहते हैं कि गाड़ी नहीं दी, कभी कहते हैं कि रिश्तेदारों का मान नहीं रखा.’’ साक्षी ने बताया.

‘‘बेटी, इस से ज्यादा हम कर भी क्या सकते थे. तुम दोनों कमाते हो क्या किसी चीज की कोई कमी है. परिवार में यह सब बातें तो चलती रहती हैं. नवनीत को तुम समझाना.’’ अशोक ने कहा.
‘‘मैं ने बहुत समझाया है पापा, लाइफ को एडजस्ट तो बहुत कर रही हूं.’’ साक्षी बोली. बेटी की बातें सुन कर अशोक कुमार को बहुत अफसोस हुआ. उन्होंने सोचा कि वक्त के साथ एक दिन सब ठीक हो जाएगा. यूं
भी इंसान ऐसे मामलों में सकारात्मक ही सोचता है.

लालच ने घोली कड़वाहट

कहते हैं कि जब किसी परिवार में अनबन, शक और लालच जैसी चीजें घर कर जाएं, तो फिर कलह का वातावरण बन जाता है बिखराव बढ़ता चला जाता है. साक्षी के परिवार में भी ऐसा ही हो रहा था. साक्षी के पिता और भाई ने भी नवनीत को समझाया, लेकिन उन्होंने उन्हें परिवार के मामले में दखल न देने की नसीहत दे डाली. साक्षी की जिंदगी में एक बार अनबन का सिलसिला शुरू हुआ, तो फिर उस ने रुकने का नाम नहीं लिया. बाद में हालात बिगड़ते देख अशोक खुद भी बेटी के घर गए और दोनों को समझा कर आए.

कुछ दिन तो सब ठीक रहा, बाद में स्थिति पहले जैसी ही हो गई. रिश्तों में दूरियां तब और भी बढ़ गईं जब नवनीत साक्षी पर शक करने लगे. शक का दायरा इतना बढ़ गया कि नवनीत ने घर के बैडरूम तक में सीसीटीवी कैमरे लगवा दिए. साक्षी के पिता और भाई फोन करते तो नवनीत झल्ला जाते. उन्होंने दोनों के नंबर तक ब्लौक कर दिए. साक्षी परिजनों को बताती थी कि उस के साथ मारपीट भी की जाने लगी है.

साक्षी के परिजनों को पूरी उम्मीद थी कि एक दिन सब ठीक जाएगा, लेकिन यह भी सच है कि इंसान सोचता कुछ है और हो कुछ और जाता है. परिवार के बिगड़े हालात के बीच आखिर साक्षी 20 जून, 2021 की रात जिंदगी की जंग हार गई. पतिपत्नी के बीच अनबन में 20 जून को एक तूफान आया. दोनों के बीच झगड़ा और मारपीट हुई. साक्षी ने यह बात अपने पिता को भी फोन पर बताई थी. नवनीत के अनुसार, उन्होंने साक्षी को देर रात कपड़े के सहारे पंखे से झूलते हुए पाया. इस के बाद उन्होंने उसे नीचे उतारा और मिलिट्री हौस्पिटल ले गए, जहां डाक्टरों ने साक्षी को मृत घोषित कर दिया.

इस के बाद हौस्पिटल से पुलिस कंट्रोल रूम को सूचना दी गई. साक्षी की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मौत का कारण हैंगिग आया. नवनीत के घर पर लगे कैमरों की सीसीटीवी फुटेज डिलीट हो चुकी थी.
साक्षी के परिजनों का आरोप था कि सारी फुटेज को सच्चाई छिपाने के मकसद से डिलीट किया गया.

प्रताड़ना बनी मौत की वजह

साक्षी के परिजनों का साफ कहना था कि वह मानसिक व शारीरिक प्रताड़ना से तंग आ चुकी थी. उन के दहेज के आरोपों में सच्चाई है तो सोचने वाली बात है कि बड़े पदों पर नौकरी करने वाले अच्छेखासे पढ़ेलिखे लोग भी दहेज के लालच में किस स्तर तक जा सकते हैं. हालांकि दूसरी तरफ नवनीत शर्मा ने जेल जाने से पहले पुलिस कस्टडी में मीडिया के सामने अपने ऊपर लगाए गए सभी आरोपों से साफ इंकार कर दिया.

साक्षी ने वास्तव में आत्महत्या की या उस की हत्या की गई, पुलिस इस पहलू की भी बारीकी से जांच कर रही थी. प्रकरण की और भी सच्चाई तो पुलिस की पूर्ण जांच के बाद ही सामने आएगी. अदालत इस मामले में सबूतों के आधार पर फैसला भी करेगी. लेकिन जब साक्षी नवनीत और उन के परिजनों की फितरत को समझ गई थी और जब उस का वहां तालमेल नहीं बैठ रहा था, तब वह वक्त रहते ऐसे रिश्ते से पीछा छुड़ा लेती तो शायद ऐसी नौबत कभी नहीं आती.

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