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खून के छींटे : मालिनी किसे देखकर सन्न रह गई थी ?

लेखक-चितरंजन भारती 

देवानंद को एकदम सामने देख कर मालिनी सन्न रह गई. देवानंद ने उसे देख कर मुसकराते हुए अपनी बाइक रोक दी थी. मालिनी तुरंत मुड़ कर दूसरी ओर बढ़ी, मगर वह तुरंत बाइक को मोड़ उस की राह के आगे खड़ा हो गया था. अभी वह कुछ सोचती या फैसला लेती कि एक दूसरी बाइक वहां आ खड़ी हुई. मालिनी एकदम हक्कीबक्की रह गई थी कि उस ने उस की घेरेबंदी का यह नया पैंतरा शुरू किया है. यह जरूर उस का अपहरण करेगा. पहले ही देवानंद का नाम कई अपहरण कांड से जुड़ा है. उस के लिए यह कौन सी मुश्किल बात होगी. अचानक ही उस दूसरी बाइक से एक नौजवान उतरा और उस के बिलकुल नजदीक जा कर पिस्तौल निकाल कर गोलियां चला दीं. तेज आवाज हुई और वह अब बाइक से छिटक कर सड़क पर छटपटा रहा था. सुबह 10 बजे का समय था और बाजार में कोई भीड़ नहीं थी. सड़क पर कुछ ही गाडि़यां दौड़ रही थीं. लेकिन यहां पलक झपकते ही यह सबकुछ हो गया था.

मालिनी का रास्ता रोकने वाले सड़क पर गिरे देवानंद की पीठ में 2 और गरदन पर एक गोली लगी थी. वहां से खून निकलना शुरू हो चुका था. अचानक उस के मुंह से खून का थक्का निकला और परनाले सा बह चला. वे दोनों नौजवान बाइक सहित भाग चुके थे. वह उसे सड़क पर छटपटाते देख रही थी, जिस से डर कर वह भागना चाहती थी, अभी वही उसे कातर शिकायती निगाहों से देख रहा था, जैसे वे उसी के आदमी हों, जिन्होंने यह करतूत की थी. समय और हालात कितनी जल्दी बदल जाते हैं. अब वह बिलकुल शांत था. बाजार की भीड़ देवानंद की ओर बढ़ते हुए घेरा बना कर खड़ी हो चुकी थी. सड़क पर अब गाडि़यां तेजी से भागने लगी थीं, ताकि वे किसी बंद वगैरह के चक्कर में न फंसें.

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पुलिस घटना वाली जगह पर आ चुकी थी और अब एंबुलैंस की आवाज सुनाई दे रही थी. दूसरे लोगों की तरह वह भी वहां से वापस अपने घर की ओर लौट चली थी, ताकि किसी लफड़े में न पड़े. ‘‘क्या हुआ रे,’’ मालिनी की मां ने उसे देख कर हैरानगी जाहिर की, ‘‘बड़ी जल्दी आ गई. दुकान नहीं गई क्या?’’ ‘‘नहीं मां, मैं नहीं गई,’’ मालिनी ने गुसलखाने में घुसते हुए छोटा सा जवाब दिया, ‘‘रास्ते में तबीयत ठीक नहीं लगी, तो वापस लौट आई.’’ मालिनी की आंखों के सामने दोबारा देवानंद का चेहरा आ गया था, जिस के नाकमुंह से खून की धार बह निकली थी. मालिनी नाली के पास बैठ उलटी करने लगी थी. उस ने जल्दी से अपने कपड़ों को रगड़रगड़ कर धोना शुरू किया, जैसे उस पर खून के छींटे पड़े हों. अब वह अपने शरीर को मलमल कर नहा रही थी. ‘‘इतनी हड़बड़ाई क्यों है?’’ मालिनी की मां उसे शक की निगाहों से देखते हुए बोली, ‘‘दुकान से फोन आया था कि तुम अभी तक आई नहीं हो. मैं ने उन्हें बता दिया है कि तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं थी, इसलिए गई नहीं. ‘‘और हां, अभी पता चला है कि देवानंद को किसी ने गोली मार दी,’’ मां फिर बोली, ‘‘आजकल किसी का कोई ठिकाना नहीं. भला आदमी था बेचारा.’’ ‘‘तो मैं क्या करूं,’’ मालिनी सहज होते हुए बोली, ‘‘तुम मुझे एक कप चाय बना दो. मुझे कुछ ठीक नहीं लग रहा. चक्कर सा आ रहा है.’’ मालिनी तख्त पर लेट गई.

‘बेचारा, भला आदमी’ उस ने बुरा सा मुंह बनाया, क्योंकि वह जानती है कि वह कितना भला और बेचारा था. शहर के चुनिंदा बदमाशों में देवानंद की गिनती होती थी. न जाने कितने रंगदारी, चोरीडकैती से ले कर अपहरण तक में उस का नाम था. चुनाव के समय बूथ पर कब्जा तक का धंधा करता था वह. कई बार वह जेल भी जा चुका था. एक स्थानीय दबंग नेता के दम पर वह कारगुजारी कर बच निकलता था, इसलिए पुलिस भी सोचसमझ कर ही उस पर हाथ डालती थी. अकसर ही वह उस के साथ घूमता रहता था, इसलिए लोग उस से डरते थे और मां कहती है कि वह भला आदमी था. आखिर क्यों नहीं बोलेगी कि वह भला आदमी था. कितनी ही बार वह उन के आड़े वक्त में काम आ चुका है. शहर के प्रमुख ‘साड़ी शौप’ में उसी ने उस की नौकरी भी लगवाई थी. मगर उस की कीमत उस ने चुकाई है, यह वही जानती है. एक दिन मां कहीं बाहर गई थी. बापू भी रिकशा ले कर निकल गया था और भाई महेश स्कूल जा चुका था.

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देवानंद उस के घर में घुसा और उसे अकेली जान उस पर झपट पड़ा था और उस के रोनेछटपटाने का उस पर कोई असर नहीं पड़ा था. मालिनी की आंखों के सामने देवानंद का छटपटाता चेहरा आ गया था. इसी तरह तो वह फर्श पर छटपटा रही थी और वह हवसी अपना काम कर गया था. वह उसी तरह लहूलुहान हो छटपटा रही थी और वह हंसता हुआ बाहर निकल गया था. इस के बाद तो वह मौका देख कर घर में जब कभी घुस जाता और उस से अपनी हवस का शिकार बनाता था.

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शाम को फिर घर पर आता और मां को कुछ जरूरत की चीजें पकड़ा कर कहता, ‘‘किसी चीज की जरूरत हो, तो बेझिझक कहना और किसी से डरने की जरूरत नहीं. मैं हूं न.’’ मां की सराहना और दुआओं के बीच मालिनी कुछ कह नहीं पाती थी और इस बीच उसे बच्चा ठहर गया था. उस ने उसे कुछ दवाएं ला कर दी थीं. उन दवाओं के खाने के बाद उसे इतना खून बहा कि उस का चलनाफिरना मुश्किल हो गया था. उन दिनों वह उसी तरह छटपटाती थी, जिस तरह आज वह सड़क पर गिर कर छटपटा रहा था. फिर भी उस के मन में शक था कि जिन खून के छींटों के बीच वह छटपटा रहा था, उसे महसूस कर उसे खुश होना चाहिए या नहीं?

मौनसून में आंखों की देखभाल के लिए अपनाएं ये 11 आसान टिप्स

मौनसून के आते ही जहां चारों तरफ खुशियां छा जाती हैं, वहीं कुछ बीमारियां भी साथ आती हैं. कई दूसरी बीमारियों के साथसाथ आंखों की बीमारी भी इस मौसम में अधिक होती है. मगर आंखों की सही देखभाल से इस मौसम का आनंद उठा सकते हैं.

इस बारे में मुंबई के मेहता इंटरनैशनल आई हौस्पिटल की आई स्पैशलिस्ट ऐंड सर्जन पद्मश्री डा. केकी मेहता कुछ टिप्स देती हैं:

  1. बाहर से घर पहुंचने पर चेहरा, हाथपांव धोना न भूलें. यदि संभव हो तो हलके गरम पानी से नहाएं.

2. अपने हाथों को, जब भी कोई काम करें, अवश्य धोएं. आंखों को साफ पानी से धोएं.

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3. हमेशा चेहरे और आंखों को पोंछने के लिए टिशू पेपर या फेस टौवेल रखें. शरीर को साफ करने वाले टिशू या टौवेल से आंखों को कभी न पोंछें वरना आंखों में संक्रमण होने का डर रहता है.

4. बारिश में निकलने से पहले यह देख लें कि चश्मा अच्छी तरह साफ हो. अगर कौंटैक्ट लैंस लगाती हैं और तेज हवा से बारिश का पानी आंखों में चला गया तो देखने में परेशानी हो सकती है. इसलिए कौंटैक्ट लैंस की एक अतिरिक्त जोड़ी, लैंस केस और लैंस लोशन अपने साथ अवश्य रखें.

5. जो ज्यादा नंबर के चश्मे पहनते हैं उन्हें एक अलग चश्मा अपने साथ अवश्य रखना चाहिए.

6. चेहरे पर बारिश की बूंदों का आनंद लेने के लिए आंखें खुली न रखें, क्योंकि वे वायुमंडलीय प्रदूषण को अवशोषित कर सकती हैं, जो उन के लिए हानिकारक हो सकता है. इस के अलावा वर्षा का पानी आंखों की ‘टियर फिल्म’ को बहा सकता है, जो आंखों की प्राकृतिक सुरक्षाकवच होती है.

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7. बच्चों को अधिकतर जल भराव वाली जगह पर छपछप करने या छींटे उड़ाने की इच्छा होती है, जो खतरनाक साबित हो सकता है, क्योंकि जलजनित बैक्टीरिया की वजह से कंजक्टिवाइटिस जैसा संक्रमण हो सकता है. यह इस मौसम की एक बड़ी बीमारी है. बच्चों को इस के बारे में बताएं और बारिश के गंदे पानी से दूर रखें.

8. वैसे तो बारिश का पानी साफ होता है, लेकिन पेड़ या इमारत की छतों से निकल कर आने वाला पानी बड़ी संख्या में जर्म्स लिए होता है. अत: जब आप इन स्थानों से गुजर रही हों तो खयाल रखें कि वहां का पानी आंखों में न जाए. अगर किसी कारणवश चला जाए तो पहले आंखों को सुखा लें, फिर घर जा कर साफ पानी से धो लें.

9. सड़क पर छितराए पानी में हमेशा कीचड़ और गंदगी रहती है. ऐसे में अगर सड़क का पानी आंखों में चला जाए तो रुक कर आंखों को धोएं. भले इसके लिए आप को पानी की बोतल खरीदनी पड़े. संक्रमण की रोकथाम हमेशा ही संक्रमण का इलाज करने से अच्छी होती है.

10. आंखों की कोई दवा लेने से पहले डाक्टर की सलाह अवश्य लें. अपनेआप या फिर कैमिस्ट की सलाह पर दवा न लें. अगर दवा लेने के बाद खुजली या इरिटेशन महसूस हो, तो भी डाक्टर के पास जाएं.

11. अगर आंखों का औपरेशन हुआ हो या सर्जरी करवाई हो तो उस स्थिति में और भी सावधानी बरतने की जरूरत होती है, क्योंकि औपरेशन की गई आंखों में जल्दी संक्रमण होने का खतरा रहता है.

समझौता

Crime Story: बेवफाई की सजा

सौजन्य-सत्यकथा
प्रियंका कानपुर जिले के गांव मझावन निवासी राजकुमार विश्वकर्मा की सब से छोटी  बेटी थी. सन 2015 में उस की शादी अशोक विश्वकर्मा से हो गई. अशोक कानपुर शहर की इंदिरा बस्ती में  किराए के मकान में रहता था और लोडर चलाता था.खूबसूरत पत्नी पा कर अशोक अपने को खुशकिस्मत समझ रहा था, जबकि प्रियंका दुबलेपतले सांवले अशोक को पा कर मन ही मन अपनी बदकिस्मती पर रोती थी. पत्नी खूबसूरत हो, तो पति उस के हुस्न का गुलाम बन जाता है. अशोक भी प्रियंका का शैदाई बन गया.

प्रियंका ने अशोक की कमजोरी का फायदा उठा कर उसे अपनी अंगुलियों पर नचाना शुरू कर दिया. वह सुबह 8 बजे घर से निकलता और फिर रात 8 बजे ही घर लौटता था. वह पूरी पगार प्रियंका के हाथ पर रख देता था.अशोक मूलरूप से सरसौल का रहने वाला था. उस के 2 भाई सर्वेश व कमलेश थे. मातापिता की मृत्यु के बाद तीनोें भाइयों में घर, खेत का बंटवारा हो गया था. कमलेश खेती करता था, जबकि सर्वेश प्राइवेट नौकरी कर रहा था. अशोक की अपने भाई कमलेश से नहीं पटती थी, इसलिए अशोक ने अपने हिस्से की जमीन बंटाई पर दे रखी थी.

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घर में प्रियंका को रोकनेटोकने वाला कोई नहीं था. पहली बात तो यह थी कि पति कम कमाता था, ऊपर से वह स्मार्ट भी नहीं था. अत: वह पत्नी के दबाव में रहता था. प्रियंका को सिर्फ इस बात की खुशी थी कि पति उस की जीहुजूरी करता है. अपनी दूसरी हसरतें पूरी न हो पाने की वजह से वह मन ही मन खिन्न रहती थी.
अशोक विश्वकर्मा का एक दोस्त था राकेश. हृष्टपुष्ट, हंसमुख व स्मार्ट. वह बिजली मेकैनिक था. किदवई नगर में वह रामा इलैक्ट्रिकल्स की दुकान पर काम करता था. जिस दिन अशोक काम पर नहीं जाता था, उस दिन वह दुकान पर पहुंच जाता. दोनों खातेपीते और खूब बतियाते. खानेपीने का इंतजाम राकेश ही करता था.

एक सुबह अशोक ड्यूटी पर जाने को निकला, तो राकेश को कह गया कि उस के घर की बिजली बारबार चली जाती है, जा कर फाल्ट देख आए.

दोपहर को समय निकाल कर राकेश, अशोक के घर पहुंचा, तो उस समय भी बिजली नहीं आ रही थी. गरमी के दिन थे और उमस भी खूब हो रही थी. पसीने से बेहाल प्रियंका अपनी साड़ी के आंचल को ही पंखा बना कर हवा कर रही थी. उस का खुला वक्षस्थल राकेश की आंखों के आगे कामना की रोशनी बिखेरने लगा.

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राकेश को आया देख कर प्रियंका ने आंचल संभाला और चहकती हुई बोली, ‘‘वाह देवर जी, शादी के दिन दिखे, उस के बाद कभी घर नहीं आए.’’‘‘अब आ तो गया हूं, भाभी.’’ राकेश मुसकराया.‘‘वह तो बिजली ठीक करने आए हो, तुम्हारे पास हम जैसे गरीबों से मिलने का वक्त कहां है.’’‘‘ऐसी बात नहीं है भाभी, काम में इतना व्यस्त रहता हूं कि समय नहीं मिलता. फिर भैया से कभीकभी मुलाकात हो ही जाती है.’’
राकेश ने अपने औजारों का थैला टेबल पर रखा और बिजली की लाइन पर नजर डाली, ‘‘भाभी एक स्टूल
तो दो.’’

प्रियंका फटाफट स्टूल ले आई. स्टूल रखने को वह झुकी, तो आंचल गिर गया. एक बार फिर से राकेश की आंखों में हुस्न की चांदनी कौंधी. प्रियंका ने आंचल संभाला फिर हंसती हुई बोली, ‘‘मैं तो तंग आ गई हूं इस बिजली से. कभीकभी रात को 2-2 घंटे अंधेरे में रहना पड़ता है.’’

राकेश ने टकटकी लगा कर प्रियंका की आंखों में देखा, ‘‘शादी वाले दिन तो आप को ठीक से देखा नहीं था. खूबसूरत तो तब भी थी आप, पर अब तो आप के हुस्न में गजब का निखार आ गया है. आप तो खुद ही रोशनी का खजाना हैं, आप के आगे बिजली की क्या हैसियत?’’राकेश ने प्रशंसा का पुल बना कर प्रियंका के दिल में घुसपैठ करनी चाही.

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‘‘हटो, बहुत मजाक करते हो तुम.’’ प्रियंका हया से लजाई, ‘‘फटाफट लाइन जोड़ दो. देखो मैं पसीने से भीगी जा रही हूं.’’राकेश ने लाइन जोड़ कर स्विच औन किया तो पंखा चल पड़ा और कमरा रोशनी से भर गया. प्रियंका ने प्रशंसा भरी निगाहों से उसे देखा और बोली, ‘‘मैं तुम्हारे लिए शरबत बनाती हूं.’’
प्रियंका ने प्यार से राकेश को शरबत पिलाया. दोनों के बीच कुछ देर बातें हुईं फिर राकेश सामान थैले में रख कर जाने लगा तो प्रियंका ने पूछा, ‘‘अच्छा ये तो बताओ, कितने पैसे हुए?’’

‘‘किस बात के?’’
‘‘अरे तुम ने बिजली ठीक की है.’’
‘‘अच्छा भाभी, अपनों से भी कोई पैसे लेता है. एक मिनट में बेगाना बना दिया. देना ही है तो कोई ईनाम दो.’’ राकेश के होंठों पर अर्थपूर्ण मुसकान तैरने लगी.
‘‘मांगो क्या चाहिए?’’‘‘तुम्हारा प्यार चाहिए भाभी. पहली ही नजर में तुम मेरी आंखों में रचबस गई हो.’’
‘‘धत पहली ही बार में सब कुछ पा लेना चाहते हो.’’ कह कर प्रियंका ने नजरें झुका लीं.
‘‘ठीक है, दूसरी बार में पा लूंगा. जब मुझे ईनाम देने का मन हो फोन कर के बुला लेना.’’ राकेश ने एक पर्चे पर अपना मोबाइल नंबर लिख कर प्रियंका को दे दिया. उस के बाद अपना थैला उठाया और फिर चला गया.

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जब राकेश अपने प्यार का ट्रेलर दिखा गया, तो प्रियंका के कदम क्यों नहीं बहकते. पूरी रात वह राकेश के बारे में सोचती रही.अभी एक सप्ताह भी न बीता था कि प्रियंका ने राकेश का नंबर मिला दिया. उस ने फोन उठाया तो प्रियंका ने खनकती आवाज में झूठ बोला, ‘‘बिजली फिर चली गई है, ठीक कर जाओ.’’
राकेश इसी इंतजार में बैठा था. उस ने भी सांकेतिक शब्दों में कहा, ‘‘ठीक है भाभी, अपने हुस्न की रोशनी बिखेर कर रखो. मै अभी आ रहा हूं.’’

राकेश दोस्त के घर पहुंचा तो बिजली आ रही थी. उस ने चाहत भरी नजरों से प्रियंका को देखा, जो मंदमंद मुसकरा रही थी.राकेश ने पूछा, ‘‘भाभी, झूठ क्यों बोला?’’‘‘झूठ कहां बोला,’’ प्रियंका ने मदभरी नजरों से उसे देखा, ‘‘बत्ती आ रही है पर मेरे मन में अंधेरा है. पंखा चल रहा है, पर मैं अंदर से पसीने से तर हूं.’’
खुला आमंत्रण पा कर राकेश 2 कदम आगे बढ़ा और प्रियंका को अपनी बांहों में भर लिया. फिर तो कमरे में अनीति का अंधेरा गहराता चला गया. प्रियंका की चूडि़यां राकेश की पीठ पर बजने लगीं और दोनों ने अपनी हसरतें पूरी कर लीं.

अविवाहित राकेश ने पहली बार यह सुख पाया था. इसलिए वह तो निहाल हो ही गया. प्रियंका भी राकेश की कायल हो गई. थकी सांसों वाले अशोक से वह पहले ही ऊब गई थी, राकेश का साथ मिला तो प्रियंका अपनी सारी मर्यादा भूल गई.अवैध संबंधों का सिलसिला एक बार शुरू हुआ तो वक्त के साथ बढ़ता ही गया. जिस रात अशोक लोडर पर माल लाद कर दूसरे शहर जाता, उस रात प्रियंका फोन कर राकेश को
घर बुला लेती फिर रात भर दोनों रंगरलियां मनाते.

अशोक को इस बात की भनक भी नहीं थी कि उस का दोस्त उस की बीवी का बिस्तर सजा रहा है. राकेश का बारबार अशोक के घर आना पासपड़ोस के लोगों को खलने लगा. उन के बीच कानाफूसी होने लगी कि राकेश और अशोक की बीवी प्रियंका के बीच नाजायज रिश्ता है. एक कान से दूसरे कान होते हुए जब यह बात अशोक के कानों तक पहुंची तो उस का माथा ठनका. उस ने इस बाबत प्रियंका से जवाब तलब किया तो वह साफ मुकर गई. यही नहीं वह त्रियाचरित्र दिखा कर अशोक पर ही हावी हो गई.

अशोक उस समय तो चुप हो गया परंतु उस के मन में शक जरूर पैदा हो गया. अब वह घर पर नजर रखने लगा. इस का परिणाम भी जल्द ही उस के सामने आ गया. उस रोज अशोक दोपहर को घर आया तो राकेश उस के घर की तरफ से आता दिखा. उस ने आवाज दे कर राकेश को रोकने का प्रयास भी किया. पर वह उस की आवाज अनसुनी कर स्कूटर से भाग गया.

घर पहुंच कर अशोक ने पत्नी से पूछा, ‘‘प्रियंका, क्या राकेश घर आया था?’’‘‘नहीं तो. यह तुम राकेश…राकेश क्या रटते रहते हो. क्या तुम्हें मुझ पर भरोसा नहीं. क्या मैं बदचलन हूं, वेश्या हूं? हे भगवान! मुझे मौत दे दो.’’औरत के आंसू मर्द की कमजोरी बन जाते है. जब प्रियंका आंसू बहाने लगी तो अशोक को झुकना पड़ा. उस ने वादा किया कि अब वह उस पर शक नहीं करेगा. आंसुओं से प्रियंका ने अशोक का शक तो दूर कर दिया, किंतु मन ही मन वह डर भी गई थी. उस ने राकेश को भी बता दिया कि अशोक उन दोनों पर शक करने लगा है, हमें अब सतर्कता बरतनी होगी.

इंदिरा बस्ती में अशोक का एक रिश्तेदार शिव रहता था. एक रोज उस ने बताया कि राकेश उस के घर अकसर आता है. प्रियंका का उस से लगाव है. उस के आते ही प्रियंका दरवाजा बंद कर लेती है. बंद दरवाजे के पीछे क्या होता होगा, यह तो तुम भी जानते हो और मैं भी जानता हूं. इसलिए प्रियंका को समझाओ कि वह घर की इज्जत नीलाम न करे.

शिव की बात अशोक को तीर की तरह चुभी. वह शराब के ठेके पर गया और जम कर शराब पी. नशे में धुत हो कर वह घर पहुंचा और पत्नी से पूछा, ‘‘प्रियंका, सचसच बता, तेरा राकेश के साथ टांका कब से भिड़ा है?’’‘‘नशे में तुम यह कैसी बहकीबहकी बातें कर रहे हो. मैं तुम्हें सुबह जवाब दूंगी.’’ प्रियंका बोली.
‘‘नहीं, मुझे अभी और इसी वक्त जवाब चाहिए.’’ अशोक ने जिद की.
‘‘राकेश से मेरा कोई गलत संबंध नहीं हैं.’’ प्रियंका ने सफाई दी.

‘‘साली, बेवकूफ बनाती है. पूरी बस्ती जानती है कि तू राकेश के साथ गुलछर्रे उड़ा रही है. आज मैं भी जान गया, इसलिए तुझे ऐसी सजा दूंगा कि तू बरसों तक नहीं भूलेगी.’’ कहते हुए अशोक ने प्रियंका को जम कर पीटा.कहते हैं शक की विषबेल बहुत जल्दी पनपती है. अशोक के साथ भी यही हुआ. दिन पर दिन उस का शक बढ़ता गया. आए दिन दोनों के बीच कलह व मारपीट होने लगी.

कभी प्रियंका भारी पड़ती तो कभी अशोक प्रियंका की देह सुजा देता. इस कलह के कारण राकेश ने प्रियंका से मिलना तथा उस के घर आना बंद कर दिया था. अशोक राकेश को भी खूब खरीखोटी सुनाता था. कई बार उस ने दुकान पर जा कर भी उसे सब के सामने जलील किया था.9 जुलाई, 2020 की शाम अशोक को पता चला कि दोपहर में राकेश उस के घर के आसपास मंडरा रहा था. इस पर उसे शक हुआ कि वह जरूर प्रियंका से मिलने आया होगा. अत: राकेश को ले कर अशोक और प्रियंका में पहले तूतूमैंमैं हुई फिर अशोक ने प्रियंका की पिटाई कर दी. गुस्से में प्रियंका थाना किदवई नगर जा कर पति प्रताड़ना की शिकायत कर दी.

शिकायत मिलते ही थानाप्रभारी धनेश कुमार ने 2 सिपाहियों को भेज कर अशोक को थाने बुलवा लिया. थाने पर उस ने सच्चाई बताई, परंतु पुलिस ने उस की एक न सुनी और हवालात में बंद कर दिया.
अशोक रात भर हवालात में रहा. सुबह माफी मांगने तथा फिर झगड़ा न करने पर उसे थाने से घर जाने दिया गया.

पत्नी द्वारा थाने में बंद करवाना अशोक को नागवार लगा था. वह मन ही मन जलभुन उठा था. 10 जुलाई की सुबह जब वह घर पहुंचा तो प्रियंका पड़ोस की महिलाओं से पति को पिटवाने और बंद करवाने की शेखी बघार रही थी. पति को सामने देख कर उसे सांप सूंघ गया. वह घर के अंदर चली गई.दोपहर लगभग 12 बजे दोनों में फिर राकेश को ले कर बहस होने लगी. इसी बीच प्रियंका ने दोबारा लौकअप में बंद कराने की धमकी दी तो अशोक का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया. उस ने कमरे में रखी लोहे की रौड उठाई और प्रियंका पर प्रहार करने लगा.

रौड के प्रहार से प्रियंका का सिर फट गया. वह चीखतेचिल्लाते घर के बाहर निकली और गली में गिर पड़ी. कुछ ही देर में उस की सांसें थम गईं. हत्या करने के बाद अशोक फरार हो गया.

मकान मालिक कमल कुमार व अन्य लोग बाहर निकले तो खून से सना प्रियंका का शव गली में पड़ा था. इस के बाद तो इंदिरा बस्ती में सनसनी फैल गई. सैकड़ों लोगों की भीड़ उमड़ आई. इसी बीच मकान मालिक कमल कुमार ने थानाप्रभारी धनेश कुमार को इस की सूचना दे दी. थानाप्रभारी ने अपने आला अधिकारियों को इस घटना से अवगत करा दिया. कुछ ही देर में एसपी (साउथ) दीपक भूकर, तथा एसएसपी प्रीतिंदर सिंह घटनास्थल आ गए.

उन्होंने शव का निरीक्षण किया फिर मकान मालिक कमल कुमार तथा अन्य लोगों से पूछताछ की. उस के बाद शव पोस्टमार्टम के लिए हैलट अस्पताल भिजवा दिया.चूंकि पूछताछ से यह बात साफ हो गई थी कि अशोक ने ही अपनी पत्नी प्रियंका की हत्या की है. इसलिए थानाप्रभारी धनेश कुमार ने मकान मालिक कमल कुमार की तहरीर पर भादंवि की धारा 302 के तहत अशोक विश्वकर्मा के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली और उस की गिरफ्तारी के प्रयास में जुट गए.

रात 10 बजे धनेश कुमार को पता चला कि अशोक सोंटा वाले मंदिर के पास मौजूद है. इस सूचना पर वह पुलिस टीम के साथ वहां पहुंच गए और हत्यारोपी अशोक को हिरासत में
ले लिया. उसे थाना किदवई नगर लाया गया.थाने में जब उस से प्रियंका की हत्या के संबंध में पूछा गया तो उस ने सहज ही जुर्म कबूल कर लिया. यही नहीं उस ने हत्या में प्रयुक्त लोहे की रौड भी बरामद करा दी, जो उस ने घर के अंदर छिपा दी थी.

पूछताछ में अशोक ने बताया कि प्रियंका बदचलन थी, अपनी गलती मानने के बजाय वह उस पर हावी हो जाती थी. इसलिए उस ने गुस्से में उस की हत्या कर दी. उसे इस गुनाह की सजा का खौफ नहीं है.
11 जुलाई, 2020 को थानाप्रभारी ने अभियुक्त अशोक विश्वकर्मा को कानपुर कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जिला जेल भेज दिया गया.

समझौता – भाग 3 : नई किराएदारिन किसे देखकर हैरान थी

कुछ दिनों के बाद रीना चहकते हुए आई, “ दीदी देखो क्या खरीदा?”सुधा ने देखा कि उस के हाथ में लाल रंग की रेशमी पोटली थी. उस ने उस के अंदर से प्लास्टिक की डिबिया निकाली. उस में सोने के चमचमाते हुए झुमके निकाले.

“दीदी, पिछले 2 महीनों से ओवरटाइम कर के पैसे बचाए हैं और लोग जो बच्चे पैदा होने पर निछावर भी दे  जाते हैं, वो सब जोड़ कर खरीदे हैं.

“दीदी, ऐसे ही झुमके थे मेरी शादी के. मेरा पति जुए में हार गया था. मेरे सारे जेवर उस की बुरी आदतों की भेंट चढ़ गए,” उस ने झुमकी हाथ में ले कर हिलाई. झुमकी की चमक उस की आंखों में झिलमिला गई.

“तुम्हारी मेहनत की कमाई है. बधाई हो तुम को,” सुधा ने उस की खुशी में शामिल होते हुए कहा.“थैंक यू दीदी, आप की तरह डाक्टरनीजी भी बहुत अच्छी हैं. मैं ने भी मेहनत कर बहुत काम सीख लिए हैं. बहुत बड़ा नर्सिंगहोम है. बड़ीबड़ी कार में लोग बच्चे पैदा कराने को आते हैं. हम लोगों को भी खूब मिठाई, रुपया बांट कर जाते हैं. कुछ लोग बचे फल, बिसकुट भी घर नहीं ले जाते, वहीं दे जाते हैं. डाक्टरनीजी हम से कहती हैं, ‘ये तुम्हारा रुपया है. खुद रखो, किसी से मांगना नहीं. कोई अपनी खुशी से दे तो कोई हर्ज नहीं’. किसी दिन इतनी मिठाई खा लेती हूं कि रात को खाना ही नहीं बनाती,” उस का चेहरा खुशी से चमक रहा था.

“किसी दिन तुम्हारी डाक्टरनीजी से भी मिलने चलूंगी,” सुधा ने उस का मन टटोलना चाहा. “अरे दीदी, आप को अपने पीछे स्कूटी पर बैठा कर ले जाऊंगी,” कह कर वह जोरों से खिलखिलाई. आज उस की खुशी छलकी पड़ रही थी.

“तुम्हें स्कूटी चलानी आती है क्या?” सुधा ने पूछा. “महेश ने कहा है कि ‘सिखा दूंगा’, फिर बैंक से लोन ले कर खरीद लेना. “दीदी, वो आप की पुरानी स्कूटी जो गैराज में रखी है, उस से मैं चलाना सीख लूं?”

“वह तो खराब है. बेटे के लिए खरीदी थी. अब तो वह होस्टल चला गया. उसे ठीक करानी पड़ेगी.” “मैं ठीक करा लूंगी. अगर आप मुझे सीखने के लिए दे  दें,” उस ने बड़ी उम्मीद से सुधा से कहा. “मुझे कोई एतराज नहीं है. जब चाहो ले जाना,” सुधा की बात सुन कर वह बच्चों की तरह खुश हो कर बोली, “मैं कल से ही सीखना शुरू कर दूंगी.”

जब सुधा ने विराज को रीना के विषय में विस्तार से बताया, तो कंजूस विराज भी बोल पड़े, “बेचारी फलमिठाई खा कर, एक समय के भोजन की बचत कर लेती है. उसे लोन की जरूरत होगी तो बताना, मेरा मित्र बैंक मैनेजर है. उसे आसानी से लोन दिला दूंगा,” सुधा विराज को देख कर मुसकराई और सोचा, “कंजूस हैं, मगर दिल के बुरे नहीं हैं.”

उस दिन सुधा गेट पर खड़ी आटो का इंतजार कर रही थी कि सामने से स्कूटी सवार रीना आ गई, “आइए दीदी, आप को मार्केट ले चलूं,” बड़े प्यार से वह बोली.“नहीं, तुम रहने दो. एक पहचान का आटो है. उसे फोन कर दिया है. वह आता ही होगा.”

“अरे दीदी, चलिए न. मुझे बहुत अच्छे से चलाना आ गया है,” उस का मनुहार देख सुधा मना न कर सकी.

पूरे रास्ते वह अपनी कामयाबी की उड़ान सुनाती  रही. पीछे बैठी सुधा सोच रही थी कि वो पोस्ट ग्रेजुएट हो कर भी घर बैठी रह गई और स्कूटी गैराज में. ये कल गावं से शहर आई युवती अपने संघर्षों से जूझते हुए आज अपने पंख पसार हवा में तैर रही है. जल्द ही लोन ले कर वह नई स्कूटी ले आई.

“दीदी, ये मिठाई का डब्बा आप के लिए, आप की पसंद की  रसमलाई है. आप ने मुझ पर भरोसा किया. मेरी बातों को समझा,” उस ने लपक कर पैर छू लिए.“अरे, मेरी जगह कोई भी होता तो ऐसा ही करता,” सुधा ने कहा.

“दीदी चलिए न ऊपर, वहीं बैठ कर चाय पीते हैं. आप हमेशा टाल देती हैं,” रीना ने जिद की.सुधा मना न कर सकी. दोनों ऊपर आ गए. बेड के सिरहाने फोटोफ्रेम ऐसे ही रखा हुआ था. पहाड़ी वादियों में झील के किनारे प्रेम में डूबे युगल नजर आ गए. दूर से चेहरे स्पष्ट नजर नहीं आ रहे थे.

रीना कुछ अचकचाई, फिर कुछ सोच कर फोटोफ्रेम सुधा के हाथों में थमा दिया.महेश और रीना नैनीताल की झील के किनारे आलिंगनबद्ध खड़े थे.सुधा जानती है कि पर्यटन स्थलों में प्रेमी युगल देख फोटोग्राफर घेर लेते हैं और तरहतरह के फोटो दिखा कर फोटो खींचने को मना ही लेते हैं. रीना की मांग में सिंदूर, गले में मंगलसूत्र नजर आ रहा था.

सुधा चौंक गई कि रीना का अपने पति की मृत्यु से पहले से ही महेश के संग प्रेम प्रसंग चल रहा था. सुधा के चेहरे का रंग बदलते देख रीना समझ गई. उस ने अपनी अलमारी खोल कर एक कागज निकाला और सुधा के पास आ कर बैठ गई.

“दीदी ये देखिए, मेरे पति का डेथ सर्टिफिकेट, जनवरी, 2016 में मृत्यु को प्राप्त हो गए थे और इस फोटो में फरवरी, 2017 लिखा है. आप ने पूछा था कि गांव क्यों नहीं लौट गई? कंपनी की भागदौड़ में ही 3 से 4 महीने लग गए थे. बच्चे गांव भेज दिए थे कि यहां का कर्ज चुका कर लौट जाऊंगी. कोई किसी के लिए कितना करेगा? महेश का अपना परिवार है. 2 बच्चे हैं. अच्छे स्कूल में पढ़ते हैं. वह सिर्फ ओवरटाइम या पैट्रोल को कमज्यादा दिखा कर जो पैसे कमाता है, वही मुझ पर खर्च कर पाता है. उस का वेतन का पूरा हिसाब उस की पत्नी रखती है. मेरे पास क्या है? ये रूपरंग, यौवन. यही सब की लोलुप नजरों का शिकार बन रहा था. ऐसे में मैं ने महेश के संरक्षण को पाने के लिए खुद को सौंप दिया. उस ने खुद कभी जबरदस्ती नहीं की. ये समझिए दीदी कि हमें खुद महेश से प्यार हो गया.

उन दिनों जब हर कोई भूखीप्यासी निगाहों से घूर रहा था, महेश मेरी ढाल बन कर खड़ा हो गया. यही शराफत मेरे दिल में उतर गई. फिर वापस गांव जाने की न तो हिम्मत हुई, न दिल ही तैयार हुआ. मैं ने नर्सिंगहोम जाना शुरू कर दिया. मुझे महेश की कमाई नहीं, मुझे सिर्फ उस का साथ चाहिए. उस का परिवार भी नहीं तोड़ना चाहती हूं. पिछले साल उस का परिवार जब गांव गया था, वह मुझे नैनीताल घुमाने ले गया. वहीं नैना मंदिर में मेरी मांग में सिंदूर भर कर, मंगलसूत्र पहना कर बहुत भावुक हो गया था. मगर मैं ने उसे अपने परिवार के साथ ही रहने को कहा. वह कभीकभी मौका पा कर, बहाना बना कर यहां रुक जाता है. शायद आप जानती भी हैं, मगर कुछ पूछती नहीं,” रीना सुधा की आंखों में झांक कर बोली.

“हां, शक तो मुझे भी था कि तुम दोनों के बीच बहुतकुछ चल रहा है. मगर, मुझे किसी की व्यक्तिगत जिंदगी से कुछ लेनादेना नहीं रहता है. सिर्फ एक बात का डर लगता था कि कहीं तुम अपने पति का खून कर के तो नहीं आई हो,” सुधा ने अपने दिल का डर उजागर किया.

“मैं ने नहीं, बल्कि उस ने ही मुझे और बच्चों को अपने जीतेजी भूखा मार ही दिया था और मरने के बाद मुझे बीच बाजार में बिकने के लिए मेरे सिर कर्ज की गठरी थमा गया था. 1-2 साल और जिंदा रहता तो शराब की एक बोतल के लिए वह दूसरों के आगे परोस भी देता,” रीना कड़वाहट से भर उठी.

कुछ देर कमरे में सन्नाटा पसरा रहा. रीना उठ कर चाय बनाने लगी. सुधा रीना की बात सुन कर सोच में पड़ गई.उस ने बेड के सिरहाने रखे फोटोफ्रेम को सीधा कर के रख दिया. रीना चाय ले कर आ गई. कुछ देर बाद चुप्पी को तोड़ते हुए रीना बोली, “दीदी, मैं यह लोन चुका दूंगी, तो मुझे छोटा सा प्लाट खरीदने के लिए भी लोन दिला देंगी.”

“हां बिलकुल, पर तुम नियम से अपनी किस्त भरते रहना,” उस की महत्वाकांक्षा को सुन कर सुधा मुसकराई.“दीदी, लखनऊ शहर के अंदर तो बहुत महंगी जमीन है, मगर सीतापुर रोड की तरफ हमारे स्टाफ के 2-3 लोगों ने प्लाट लिए हैं. थोड़ा दूर है, मगर अब तो हमारे पास स्कूटी भी है. एक कमरे का ही सही अपना घर तो होगा. बच्चे भी गांव से ले आएंगे. यहीं पढ़ाऊंगी,” वह अपनी योजनाओं को बताती जा रही थी.

“महेश का क्या होगा…?” सुधा ने उस के मन की थाह लेने के लिए पूछ ही लिया.“महेश ने ही तो बोला है कि जब तुम्हें किराए के मकान से निकाल कर अपने घर में शिफ्ट कर देंगे, तभी मुझे सुकून मिलेगा. वही तो सारे कागज तैयार करता है. मुझे तो इतना आता भी नहीं. उसी ने स्कूटी खरीदने को थोड़े रुपए भी दिए, मगर स्कूटी मेरे नाम से है. उस ने बोला है कि प्लाट खरीदने में मदद भी करेगा और मेरे ही नाम से लेगा.”

“अच्छा है कि उसे तुम्हारे भविष्य की चिंता है,” सुधा ने कहा.“उस का अपना घरपरिवार होते हुए भी वह मेरी कितनी चिंता करता है. पता नहीं, उस की पत्नी यह बात जानती भी है कि नहीं ?” रीना ने पूछा.

“उस की पत्नी की निगाहों में उस के लिए तिरस्कार और उपेक्षा का भाव रहता है. वह अपने को उस से अधिक काबिल समझती है. उस की सेलरी भी ज्यादा है. उस के आगे महेश को हीन भावना महसूस होती है. मगर तुम्हारी आंखों में प्यार, कृतज्ञता उसे हीन भावना से उबार देते हैं. उसे भी तुम्हारी उंगली थाम तुम्हें धीरेधीरे उन्नति के सोपान चढ़ते देखना अच्छा लगता है,” सुधा ने समझाया.

“मैं कुछ गलत तो नहीं कर रही हूं न दीदी, कभी न कभी तो वह मेरा हाथ छोड़ ही देगा, मगर मुझे अब अपने ऊपर पूरा भरोसा हो गया है. उस ने मुझे आत्मनिर्भर तो बना ही दिया है. उस का यह अहसान मैं कभी नहीं भूलूंगी,” रीना ने कहा.

सुधा रीना के चेहरे पर छलकते आत्मविश्वास को देख मुसकरा उठी. दूर कहीं गाना गूंज रहा था,“समझौता गमों से कर लो, जिंदगी में गम भी मिलते हैं, पतझड़ आते ही रहते हैं…”

समझौता – भाग 2 : नई किराएदारिन किसे देखकर हैरान थी

सुधा ने कुरसी पर बैठते हुए पूरे कमरे का मुआयना कर लिया. डबल बेड और 2 प्लास्टिक की कुरसियां, एक मेज, फ्रिज, छोटा कूलर, गैस चूल्हा और थोड़े से बरतन. बस इतनी सी गृहस्थी, उस ने छोटे से कमरे में सुरुचिपूर्ण ढंग से रखी हुई थीं. सभी वस्तुएं साफ और व्यवस्थित थीं.

सुधा को थोड़ी तसल्ली हुई. वे सोच कर आई थीं कि अगर उस ने चायपानी को पूछा तो कह देंगी कि वे अभी नीचे से नाश्ता कर के ही आई हैं. “ दीदी चाय बना दूं?” रीना ने पूछा.

“ नहीं, अभी नहीं. मैं ने तुम को डिस्टर्ब तो नहीं किया,” सुधा ने औपचारिकता में पूछा. “नहीं दीदी, आज फुरसत है. सुबह ही उठ कर मैं ने इडलीसांभर बना दिया है. अब आराम हो गया दिनभर के खाने का. मैं तो खुद नीचे आने वाली थी आप को देने के लिए. अभी खिलाऊंगी आप को,” उस के बच्चों जैसे निर्दोष चेहरे को देख सुधा को अपने ऊपर कोफ्त हुई कि वे उसे खूनी समझ कर शक करती हैं.

“तुम्हारे पति की अचानक ही मौत कैसे हो गई?” सुधा पूछे बिना रह न सकी. “दीदी, आप से क्या छुपाना. सच तो यह है कि जब तक मैं गावं में थी, सुकून से थी. मेरा पति 15-20 दिन में गावं के चक्कर लगा जाता. महीने में 4-5 हजार रुपए दे भी जाता था. यहां आ कर जब रहने लगी तो पता चला कि वे नशे में डूबे रहते हैं. इसी वजह से उन्हें दिन की ही ड्यूटी मिलती थी.

“महेश भी मेरे पति के संग ड्राइवर था. महेश की पत्नी प्राइमरी स्कूल में टीचर हैं. हमारी तरह ही कमउम्र में महेश की भी शादी हो गई थी. “उस समय महेश 12वीं में और उस की पत्नी 10 वीं का पेपर दे रहे थे. महेश ने 12वीं के बाद गांव में पढ़ाई छोड़ दी और शहर में ड्राइवरी सीख अपना काम  पकड़ लिया.

“5-6 साल बाद जब महेश गौना करा कर अपनी पत्नी को घर लाया, उस की पत्नी टीचर बन चुकी थी. दोनों के बीच जब भी बहस होती, तो पत्नी अपने टीचर होने का घमंड दिखाती. घरेलू कलह से ऊब कर महेश मेरे पति के साथ बैठ कर शराब पीने चला आता था.

“जब मैं बेटों को ले कर गांव से आ कर यहीं रहने लगी, तभी से महेश जब भी शराब पीने आता, बच्चों के लिए दूधबिसकुट भी ले आता. बच्चे उसे पसंद करने लगे. बाकी शराबी तो नमकीन और बोतल ले कर आते और खापी कर, गंदगी मचा कर चले जाते. उन की जोरजोर की बहसबाजी से बच्चे डर भी जाते.

“महेश अब अकसर ही यहां चला आता. उसे हमारे पति के हालात पता चल गए थे. वह कभी सब्जी और राशन भी रख जाते. हमारे घर मकान मालिक, गली का किराना वाला, सब्जी वाला सभी शाम को घर के आंगन में जमा हो जाते. शराब पी कर गालीगलौज करना रोज की बात हो गई थी.

“महेश ने मेरे पति से कहा भी था कि यहां से घर बदल लो, मगर वे नहीं माने और कहने लगे, “तुम्हारी बीवी तो कमाऊ है, तभी तुम इतने अच्छे महल्ले में रहते हो. मेरी बीवी तो घरेलू है. मेरी इतनी आमदनी नहीं कि कहीं और घर ले सकूं.”

“बहुत जिद्दी और  गैरजिम्मेदार आदमी था,” सुधा घृणा से बोली.“उस रात वे बाहर से शराब पी कर आए थे. खाना भी नहीं खाया था और गाली बकते, बड़बड़ाते हुए सो गए. आधी रात से ही उन्हें खून की उलटी शुरू हो गई. मकान मालिक को बुला कर लाई. किसी तरह सरकारी अस्पताल में पहुंचे, मगर वहां पहुंच कर उस ने दम तोड़ दिया.

“पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला कि जहरीली शराब पीने से मौत हुई है,” बीते दिनों को याद कर रीना की आंख भर आई.“बहुत बुरा हुआ तुम्हारे साथ,” सुधा ने रीना का हाथ अपने हाथ में ले कर अपनेपन से कहा.

“इस से भी अधिक बुरा तो तब हुआ, जब महीनेभर में घर में रखा राशन खत्म हो गया. कुछ रुपया मेरे मायके वाले थमा गए थे. सोचा, राशन ही भर लूं. दुकान पर पहुंची तो वह पुराने उधार का रजिस्टर खोल कर बैठ गया. घर पहुंची तो मकान मालिक बैठा था. उसे पिछले 6 महीने का किराया चाहिए था. मेरे सिर इतना कर्जा छोड़ जाएगा, मुझे पता ही नहीं था.

“शाम गहराते ही न जाने कौनकौन शराबी कुंडी खटखटाने लगते. सभी को अपना उधार वापस चाहिए था. किराना वाला और मकान मालिक अपने गंदे इरादे बता कर उधार माफ करने की बात भी करने लगे थे,” कह कर रीना सिसक उठी.

“अपना तो मर गया, पर तुम्हें खाई में डाल गया,” सुधा दुख और क्रोध में भर कर बोली.“मैं ने सोच लिया था कि थोड़ा सा जहर ला कर अपनी और बच्चों की जिंदगी खत्म कर लूंगी.”“तुम गांव क्यों नहीं लौट गईं?” सुधा ने पूछा.“मकान मालिक ने बंधक बना कर रख लिया था. उस का कहना था कि पहले पुराना उधार चुकाओ, फिर गावं लौटना. मेरे मायके वाले भी गरीब ही हैं. वे लोग गावं में मजदूरी कर दिन काटते हैं. वे भी किसकिस का उधार चुकाते?

“सोचा, इस से अच्छा है कि जहर खा कर मर जाऊं. मेरे पति की मौत के तकरीबन 2 महीने बाद महेश घर आए. मैं ने रोरो कर पूरी घटना बता दी.”महेश ने ही भागदौड़ कर कंपनी से थोड़े रुपए दिलवाए, जिस से किराना वाले और मकान मालिक का उधार चुकता किया. फिर अपनी पहचान के नर्सिंगहोम में ट्रेनिग पर रखवा दिया. लेकिन बच्चों को कौन देखता? उन्हें गांव भिजवा दिया. डाक्टरनी बहुत अच्छी हैं. उन्होंने बहुतकुछ सिखाया भी है और समझाया भी,“ फिर कुछ पल को वह चुप हो गई. जैसे सोच रही हो कि बताए या न बताए, फिर वह बोली, “दीदी, महेश ने ही कहा था कि ‘इस गंदे महल्ले से बाहर निकलो’ और मकान ढूंढ़तेढूंढ़ते आप के पास पहुंच गए. यहां आ कर जिंदगी में सुकून मिल गया है.”

तभी एक हाथ में सब्जी का थैला और दूसरे हाथ में आटे का थैला लिए महेश सीढ़ी चढ़ कर आता दिखा.सुधा उसे देख कर नीचे उतर आईं. एक बार मन तो हुआ कि महेश को भी कुरेदे, मगर फिर चुप रह गईं.सुधा हमेशा उधेड़बुन में लगी रहती कि यह सच बोल रही है कि झूठ. पहले दिन तो रीना ने महेश को अपने गांवबिरादरी का बताया था. अब अपने पति का दोस्त बता रही है, लेकिन रिश्ता तो देह से जुड़ा लग रहा है. उस ने सोचा कि जिस नर्सिंगहोम में यह काम करती है, उस में जा कर डाक्टर से मिल कर सच जानने की वह स्वयं ही कोशिश करेगी.

रिश्तों में दस्तक देता अपराध

वक्त के साथ समाज बदल गया है. इंसान की सोच में फर्क आया. लोगों ने परंपराओं के नाम पर रूढि़वादी सोच को निकाल फेंकने का साहस भी जुटा लिया. हम ने बेशक इस में कामयाबी क्यों न हासिल कर ली हो पर यहीं से शुरू हो जाता है रिश्तों के टूटने का सिलसिला. आधुनिकता का प्रभाव हमारे दम तोड़ते रिश्तों में नजर आने लगा है.

अकसर अखबारों और टैलीविजन चैनलों में सुर्खियां बनती हैं कि पत्नी ने प्रेमी के साथ मिल कर पति की हत्या कर दी. एक पिता ने अपनी ही औलाद को गला घोंट कर मार दिया. बेटे ने अपने ही चाचा के लड़के का अपहरण कर फिरौती की मांग की और फिरौती नहीं मिलने पर भतीजे को मार डाला वगैरहवगैरह.

जिस तेजी से अपराध बढ़ रहे हैं वह बदलते परिवेश का एक हिस्सा ही हैं. हत्या की वारदातों में बेहिसाब इजाफा हुआ है. भारत दुनिया के ऐसे देशों में शामिल हो चुका है जहां ज्यादा हत्याएं हो रही हैं. नैशनल क्राइम रिकौर्ड्स ब्यूरो यानी एनसीआरबी के अनुसार हर 18 से 20 मिनट में भारत में एक हत्या होती है. हर 23 मिनट में एक अपहरण और हर 28 मिनट में एक बलात्कार होता है.

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देश का कोई ऐसा हिस्सा नहीं बचा है जहां महिलाओं की अस्मत न लूटी जा रही हो. यह अलग बात है कि कुछ मामलों में बात सामने आ जाती है और बाकी मामले दब कर दफन हो जाते हैं. इन में तो बहुत से मामले ऐसे भी होते हैं जो रिश्तों को तारतार कर देने वाले होते हैं. जानीमानी मनोवैज्ञानिक डा. नीना गुप्ता का मानना है, ‘‘जब हम अपने ही वजूद से बेईमानी करने लगे हैं तो इस का असर हमारे रिश्तों पर पड़ेगा ही.’’

सामाजिक परिवर्तन

समाज में जो बदलाव सब से बड़ा आया है वह है महिलाओं का समाज में योगदान. एक तरह से समाज की तरक्की के लिए यह जरूरी भी है. घर की दहलीज तक सीमित रहने वाली स्त्री आज समाज में ऐसी भूमिकाएं निभाने लगी है जिस पर अभी तक पुरुष अपना वर्चस्व जमाए बैठे थे. शिक्षा के क्षेत्र में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा कर महिलाओं ने दिखा दिया है कि चूल्हेचौके में ही वे दक्ष नहीं, बल्कि वैज्ञानिक सोच रखते हुए टैक्नोलौजी में भी वे अपनी महारत हासिल कर सकती हैं.

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विवाह जैसी सामाजिक प्रथा अब व्यक्तिगत होती नजर आने लगी है. परिवार वालों की रजामंदी से थोपे गए रिश्ते अब नकारे जाने लगे हैं. व्यक्ति अपनी खुशी के पैमाने पर रिश्ते जोड़ने लगा है. परिवार, रिश्तेदारी का दायरा उन के लिए उतना माने नहीं रखता जितनी स्वयं की व्यक्तिगत अभिरुचि  व पसंद.

लिव इन रिलेशनशिप खुल कर सामने आने लगी है. व्यक्ति को यह कहते कोई संकोच नहीं रहा है कि वह रिश्तों को केवल समाज की परवा करते हुए क्यों ढोए. रिश्ते इतने खुले होने चाहिए कि जब चाहे उन्हें उतार फेंक दिया जाए. पाश्चात्य शैली व ग्लोबलाइजेशन का दावा करती नई पीढ़ी के साथसाथ पुरानी पीढ़ी भी रिश्तों को नया रूप देने में लग गई है.

सैक्स एक ढकाछिपा शब्द अब आम हो गया है. जिंदगी का एक अहम हिस्सा मानते हुए सैक्स के प्रति भ्रांतियों को दूर करने के पक्ष में प्रशासन भी अब पीछे नहीं है. स्कूलों में यौन शिक्षा के हिमायती अब कम नहीं हैं. शायद यही कारण है कि अब विवाहेतर संबंधों को लोग खुलेआम स्वीकार करने लगे हैं. व्यक्ति के लिए रिश्तेनाते, सामाजिकता, परिवारवाद सब बाद में, पहले स्वयं का सुख माने रखने लगा है. कामयाबी, परंपरा, संस्कार सभी भौतिकवादिता में बदल गए हैं.

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संबंधों पर असर

लेकिन इन सब परिवर्तनों का कहीं न कहीं असर पड़ रहा है हमारे आपसी रिश्तों पर. हाथ से छूटते, दरकते ये रिश्ते कहानी बता रहे हैं इन्हीं परिवर्तनों की. इन्हीं का असर है कि आपसी संबंध बिखरने लगे हैं. समझौता जैसा शब्द रिश्तों के बीच गायब हो चुका है.

आर्थिक सबलता ने हर किसी की सहनशक्ति को कम कर दिया है. प्रैक्टिकल सोच के आगे भावनाएं महत्त्वहीन होती जा रही हैं. आपस में कम्युनिकेशन गैप बढ़ा है. पैसा और भौतिक सुविधाएं ही महत्त्वपूर्ण बन गई हैं. भाईबहन, पतिपत्नी, बच्चों, पेरैंट्स के बीच औपचारिकताएं न रह कर दोस्ताना रिश्ते बन गए हैं जिन्होंने इन के बीच का सम्मान खत्म कर दिया है. इसी का नतीजा है अधिकतर बच्चे पेरैंट्स की सुनते नहीं हैं. पेरैंट्स और बच्चों के बीच दूरियां और टकराव भी बढ़ रहे हैं. बच्चों की मनमानी रोकने पर मातापिता आउटडेटेड मान लिए जाते हैं. पतिपत्नी की बनती नहीं है. वे अपनीअपनी जिंदगी में व्यस्त हैं. वे अपनी सहूलियत के अनुसार एकदूसरे को वक्त देते हैं. भाईबहन के रिश्तों में अब वह लगाव नहीं है. टीनएज प्रैग्नैंसी बढ़ती जा रही है. सैक्सुअल बीमारियां आम होती जा रही हैं. फ्रीसैक्स आधुनिकता का सिंबल बन गया है.

इन हालात को देखते हुए क्या तरक्की के माने ये हैं कि व्यक्ति केवल अपने तक सीमित रह कर रिश्तों की अहमियत को भूल जाए और संकुचित सोच के दायरे में रह कर जिसे वह अपना सुख मानता है, जीने लगे? नहीं, यह सुख, सुख नहीं स्वार्थ है. व्यक्ति के रिश्ते उतने ही अहमियत रखते हैं जितना कि खाने में नमक. इस में कोई दोराय नहीं कि रिश्ते गले की फांस नहीं, गले का हार बनने चाहिए. इसलिए आपसी संबंधों को बचाए रखना भी जरूरी है.

नजरअंदाज ना करें ये आम समस्याएं, हो सकते हैं हार्ट अटैक के संकेत

बिग बॉस 13 के विनर और टीवी एक्टर सिद्धार्थ शुक्ला का महज 40 साल की उम्र में हार्ट अटैक से निधन हो गया. जिससे हर कोई सदमे में हैं. उनके फैंस इसलिए भी दुखी और हैरान हैं क्योंकि वो एक हेल्दी पर्सन थे और फिटनेस का पूरा ख्याल रखते थे. फिर भी वो हार्ट अटैक का शिकार हो गए. आपको बता दें कि हार्ट अटैक आने से पहले आपकी बॉडी कुछ संकेत देती है, अगर आपको इनके बारे में पता होगा तो आप अपना इलाज समय रहते करा सकेंगे और हार्ट अटैक से भी बच जाएंगे.

आम तौर पर ह्रदय रोग के लिए कोरोनरी आर्टर बीमारी प्रमुख कारण होता है. हृदय की अन्य बीमारियों में पेरिकार्डियल रोग, हृदय की मांसपेशियों से संबंधित समस्या, महाधमनी की समस्या हार्ट फेल होना, दिल की धड़कन का अनियमित होना हार्ट के वौल्व से संबंधित बीमारी जैसी कई बीमारियां हैं. इन परेशानियों से बचने के लिए जरूरी है कि आप इनके लक्षणों के बारे में जान लें. और जब भी आपको इनका आभास हो आप तुरंत डाक्टर से मशवरा लें.

symptoms of heart attack

ह्रदयघात के लक्षणों में छाती में भारीपन, भुजाओं या कंधों में, गले, जबड़े, पीठ या गर्दन में दर्द होना इसके प्रमुख लक्षण हैं. इसके अलावा धड़कन का बढ़ना, सांस लेने में परेशानी, चक्कर आना, पसीना आना जैसे अन्य लक्षण भी अहम हैं.

यदि आपको आपकी छाती पर भार महसूस हो रहा है या छाती की मांसपेशियों में खिंचाव महसूस हो रहा है इसका मतलब है कि आपका ह्रदय स्वस्थ नहीं है. वो अच्छे से काम नहीं कर रहा है.

symptoms of heart attack

वहीं आप कसरत करने के बाद छाती में दर्द महसूस करते हैं या आपको कुछ ज्यादा थकान महसूस होती हो तो इसका अर्थ है कि आपके हृदय के रक्त प्रवाह में कुछ गड़बड़ी है.

यदि आपको हल्का फुल्का काम करने के बाद भी सांस लेने में परेशानी हो रही है, या जब आप लेटें तब आपको सांस लेने में परेशानी हो रही हो, तो समझ जाइए कि आपके ह्रदय में कुछ परेशानी है.

symptoms of heart attack

इसके अलावा थोड़ा काम करने के बाद भी आपको थकान या चंचलता महसूस होती है तो ये ह्रदय ब्लाकेज के लक्षण हो सकते हैं.

यदि आप ज्यादातर वक्त थका हुआ महसूस करते हैं, इसके अलावा आपको अच्छे से नींद भी ना आती हो, अचानक से आपको थकान हो जाए, उल्टी का मन हो तो समझ जाइए कि आपको ह्रदय संबंधित परेशानी है.

दर्द ए दिल : समय रहते करें हार्टकेयर

बिग बॉस 13 के विनर और टीवी एक्टर सिद्धार्थ शुक्ला का महज 40 साल की उम्र में हार्ट अटैक से निधन हो गया. जिससे हर कोई सदमे में हैं. उनके फैंस इसलिए भी दुखी और हैरान हैं क्योंकि वो एक हेल्दी पर्सन थे और फिटनेस का पूरा ख्याल रखते थे. फिर भी वो हार्ट अटैक का शिकार हो गए.

मौजूदा समय में बदलती लाइफस्टाइल और तनाव के बीच आम लोग भी इस समस्या से जूझ रहे हैं. ऐसे में कुछ खास बातों का ध्यान रखना बेहद जरूरी है. ताकी आपका दिल स्वस्थ रहे.

दिल शरीर का ऐसा अंग है जो एक बार धड़कना शुरू करता है तो अंतिम सांस तक धड़कता रहता है. औसतन यह 1 मिनट में 72 बार धड़कता है. सब से कीमती अंग होने की वजह से यह बेहद सम्मान और देखभाल का हकदार है. हार्ट की समस्याएं या तो जीवनशैली की वजह से हो सकती हैं या जन्मजात (कौंजीनिटल हार्ट डिजीज) होती हैं.

जन्मजात दिल के रोग : ज्यादातर मामलों में दिल के जन्मजात रोगों की रोकथाम संक्रमण से बचाव कर के और गर्भधारण के पहले 3 महीनों में दवाएं न ले कर की जा सकती है. अगर नवजात या गर्भ में पल रहे बच्चे को दिल की कोई बीमारी हो तो जितनी जल्दी हो सके उस का इलाज करना चाहिए ताकि भविष्य में होने वाली जटिलताओं से बचा? जा सके.

रिह्यूमैटिक दिल का रोग : यह दिल की एक आम बीमारी है जो युवाओं में पाई जाती है. यह बीमारी अकसर स्कूल जाने वाले उन बच्चों को हो जाती है जिन्हें गठिया की वजह से बुखार हो जाता है. इस बीमारी को पूरी तरह से रोका जा सकता है. अभिभावकों को चाहिए कि वे जब बच्चे का गला खराब हो या खांसी हो तो डाक्टर से जांच कराएं और रिह्यूमैटिक बुखार है या नहीं, इस का पता लगाएं. दूसरों तक संक्रमण न फैले, इस के लिए खांसी ठीक हो जाने तक बच्चे को स्कूल नहीं भेजना चाहिए.

हृदयधमनी रोग : हर रोज तनाव, सफर, छोटे परिवार व कार्यस्थल व घर पर संतुलन बनाने के बढ़ते दबाव के चलते लोग अस्वस्थ जीवनशैली अपना लेते हैं. नींद आधी हो जाती है, खाने में अत्यधिक ट्रांस फैट वाला जंक फूड शामिल हो जाता है जिस से रक्तचाप बढ़ जाता है और लोग सिगरेट व शराब का सहारा लेने लग जाते हैं. यह सब मिल कर डायबिटीज और हाइपरटैंशन का कारण बनते हैं, जो हृदयधमनी रोग को जन्म देते हैं. जीवनशैली से जुड़े सभी रोग टाले जा सकते हैं बशर्ते शुरुआत में ही उचित सावधानियां बरती जाएं.

भोजन से रोकें हृदयधमनी रोग

क्या आप ने कभी सोचा है कि जानवरों में जीवनशैली की समस्याएं जैसे उच्च रक्तचाप, डायबिटीज, मोटापा, कैंसर, ओस्टियोपोरोसिस, दिल का दौरा, मेटाबौलिक सिंड्रोम, बढ़ा हुआ लिवर और पौलिसिस्टक ओवेरियन रोग क्यों नहीं होते. इस का सीधा कारण है कि वे प्राकृतिक नियमों के अनुसार जीते हैं. एक संतुलित और स्वस्थ जीवनशैली इन सभी रोगों को रोकने व ठीक करने का कारगर मंत्र है. स्वस्थ जीवन के लिए सब से पहला कदम है सही वजन होना. अल्प आहार की सनक, तनावपूर्ण कार्यस्थल लोगों को कंफर्ट फूड खाने के लिए उत्साहित करते हैं, दिनभर की डैस्क जौब और साइज जीरो की सोच तेजी से लोगों में उचित वजन और संपूर्ण आहार की परिभाषा को बदल रही है. ज्यादातर लोगों को यह बात पता नहीं है कि उन के वजन के मुताबिक तीनगुना ज्यादा कैलोरीज की उन्हें जरूरत होती है बल्कि भोजन से उन्हें मैक्रो और माइक्रोन्यूट्रैंट्स भी मिलने चाहिए.

मैक्रोन्यूट्रैंट्स खाने के रासायनिक तत्त्व होते हैं जैसे कि कार्बोहाइड्रेट्स, प्रोटीन, वसा जो शरीर को ऊर्जा प्रदान करते हैं और इन की बड़ी मात्रा में जरूरत होती है, माइक्रोन्यूट्रैंट्स की जरूरत कम मात्रा में होती है जिन में कई मिनरल और विटामिन शामिल हैं. अगर इन का सेवन उचित मात्रा और संतुलित रूप से नियमित व्यायाम के साथ किया जाए तो ये हमारी जीवनशैली से होने वाली सभी आम समस्याओं से हमें बचाते हैं. सेहतमंद भोजन का मंत्र है 7 रंगों और 6 स्वादों वाला भोजन खाना. खाने का हर रंग एक किस्म के विटामिन का संकेत होता है यानी लाल सेब से लाइकोपीन, हरी पत्तेदार सब्जियों और फलों से बी कौंपलैक्स और संतरी खाद्य पदार्थों से विटामिन सी मिलता है. इसी तरह मीठे, कड़वे व नमकीन स्वाद से वजन बढ़ता है और इस के विपरीत तीखे, कसैले व कड़वे स्वाद से वजन कम होता है.

सेहतमंद जिंदगी का फार्मूला

उम्र के 80वें वर्ष में भी आप का दिल स्वस्थ रहे, इस के लिए इन फार्मूलों पर ध्यान दें: अपने पेट का घेरा 80 सैंटीमीटर से कम रखें : पेट के घेरे को एडिपौसिटी भी कहा जाता है. पुरुषों में मोटापा आम समस्याओं को जन्म देने के अलावा जानलेवा भी माना जाता है. पेट के मोटापे से ग्रस्त लोगों में संपूर्ण मोटापे वाले लोगों के मुकाबले दिल की बीमारियां, डायबिटीज, हाइपरटैंशन और डिसलिपिडेमिया से पीडि़त होने की संभावनाएं ज्यादा होती हैं. किसी का बौडी मास इंडैक्स और कमर का घेरा माप कर उस के मोटापे का पता लगाया जा सकता है. कमर का घेरा लचीले टेप से इलियिक क्रेस्ट से समतल सतह पर बाहर से मापा जाता है. वयस्कों में बौडी मास्क इंडैक्स (बीएमआई) अगर 23 किलोग्राम/एम2 हो और कमर का घेरा 80 सैंटीमीटर से ज्यादा हो तो इसे हाइपरटैंशन, टाइप 2 डायबिटीज, डिसलिपिडेमिया और दिल के रोगों के खतरे से जोड़ा जाता है.

उच्च रक्तचाप को निम्न स्तर 80 पर रखना : उच्च रक्तचाप आम जीवनशैली से जुड़ी बीमारी है जिस में रक्त धमनियों में खून का बहाव बहुत तेज होता है जो कई बड़ी स्वास्थ्य समस्याएं पैदा कर देता है. ब्लडप्रैशर दिल द्वारा रक्त को पंप किए जाने की मात्रा और धमनियों में इस के बहाव के दबाव के हिसाब से मापा जाता है. दिल जितना ज्यादा रक्त पंप करता है और रक्त धमनियां जितनी संकरी होती है, ब्लडप्रैशर उतना ही ज्यादा होता है. अगर इसे सही तरह से नियंत्रित न किया जाए तो यह दिल, दिमाग, किडनी और आखों को पक्के तौर पर नुकसान पहुंचा सकता है. 2 दशकों तक कोई भी लक्षण नजर न आने की वजह से इसे साइलैंट किलर भी कहा जाता है. अगर किसी को उच्च रक्तचाप हो तो उसे तुरंत मैडिकल सलाह लेनी चाहिए. रक्तचाप के उच्च स्तर को सिस्टौलिक और निम्न स्तर को डायस्टौलिक ब्लडप्रैशर कहा जाता है. उच्च और निम्न रक्तचाप में 40 एमएमए एचडी से ज्यादा का अंतर नहीं होना चाहिए. हर उम्र के लोगों में उच्च रक्तचाप 120 से कम और निम्न स्तर पर 80 होना चाहिए.

ब्लडशुगर 80 से कम रखें : खाली पेट ब्लडशुगर अगर 80 एमजी प्रतिशत से ज्यादा हो तो मैकरोवैस्कुलर डिजीज (हार्ट अटैक, लकवा, और फेरीफर्ल वैस्कुलर डिजीज) होने का खतरा रहता है. दिल के सभी रोगों से बचने के लिए ब्लडशुगर का स्तर हमेशा 80 एमजी प्रतिशत से कम होना चाहिए 

बैड कोलैस्ट्रौल का स्तर 80 एमजी से कम हो : भारतीयों में एलडीएल बैड कोलैस्ट्रौल की सही मात्रा 80 एमजी प्रतिशत से कम होनी चाहिए.

धड़कन प्रति मिनट 80 बार से कम हो : आरामदायक हालत में दिल की धड़कन जितनी ज्यादा होगी, अचानक मृत्यु होने का खतरा उतना ही ज्यादा होगा. बेहतर स्थिति बनाए रखने के लिए दिल की धड़कन हमेशा 80 बार प्रति मिनट से ज्यादा न होने पाए. साल में 80 दिन अनाज से परहेज करें : हम जितना कम खाएंगे उतना ज्यादा जिएंगे. विज्ञान यही कहता है कि साल में 80 दिन अनाज का त्याग करें. हर रोज अनाज खाने से खासतौर पर रिफाइंड  कार्बोहाइड्रेट्स (सफेद चीनी, सफेद मैदा और सफेद चावल) खाने से इंसुलिन का स्तर बढ़ता है और इंसुलिन से प्रतिरोधक क्षमता कम होती है. कम कैलोरी लेने से हार्ट अटैक होने की संभावना कम होती है. किसी भी भोजन में एक समय में 80 से ज्यादा कैलोरी नहीं लेनी चाहिए.

80 मिनट व्यायाम करें : हर रोज 80 मिनट तक व्यायाम करें. 1 मिनट में 80 कदम चलना और हफ्ते में 80 मिनट चलना दिल की सेहत के लिए अच्छा होता है.

(लेखक इंडियन मैडिकल एसोसिएशन के महासचिव व जानेमाने कार्डियोलौजिस्ट हैं)

गीतकार वंदना खंडेलवाल ने निर्देशन में रखा कदम

वंदना खंडेलवाल मूलतः गायक हैं. उन्होने भारत के नाम चीन गायकों से गायकी व संगीत का विधिवत प्रशिक्षण हासिल किया. पर बौलीवुड में उनकी पहचान गीतकार के रूप में हैं. वंदना खंडेलवाल ने अब तक कई म्यूजिक वीडियो और कई टीवी सीरियलों के लिए कई शीर्ष गीत व अन्य गीत लिखे हैं. इनमें से ‘तूआशिकी’का शीर्ष गीत,खुशी, बेपनाह (जरूरत), इंटरनेट वाला लव (शीर्षगीत ), बेहद 2 (शीर्षगीत ) ), जुदाई, डिमडिमलाइट, वजाह, पहला प्यार, दिल को मेरे, अब तेरे बिना, बदनाम, मेरी मां, पास आओ ना, चांदनी रातें, आवाजें, दोरुपए की पेप्सी, बेवफा ऐ दिल, आज जाने की जिद ना करो, टाटा नेक्सन दिवाली गीत काफी चर्चित रहे हैं.

तो वही वंदना खंडेलवाल ने बतौर निर्माता ‘जी 5’के लिए वेबसीरीज ‘‘कुबूल है 2’’का निर्माण भी किया है.जबकि इन दिनों वह ओटीटी प्लेटफार्म ‘मै क्सप्लेयर’के लिए ‘रक्तांचल 2’ और संजय मासूम लिखित वेबसीरीज ‘कंट्री माफिया’का निर्माण कर रही हैं.

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गीतकार व निर्माता के रूप में अपनी पहचान बनाने के बाद अब वंदना ख्ंाडेलवाल ने निर्देशन के क्षेत्र में भी कदम रख दिया है.बहरहाल, उन्होेने निर्देशन की शुरूआत म्यूजिक वीडियो ‘‘अब तेरे बिना’’से की है,इस गीत को उन्होने खुद ही लिखा है.  उनका मानना है कि संगीत की उन्हे अच्छी समझ है.

और वह संगीत को ज्यादा से ज्यादा बढ़ावा देना चाहती हैं,इसीलिए उन्होने निर्देशन की शुरूआत म्यूजिक अलबम से की है. इस गीत के संगीतकार सोहम नाइक हैं तथा गीत को सोहम नाइक ने ही स्वरबद्ध किया है. जबकि इस काम्यूजिक वीडियो अनाया शाह और सोहम नाइक पर फिल्माया गया है.

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म्यूजिक वीडियो ‘‘अब तेरे बिना’’में सरल शब्द के साथ कर्ण प्रिय संगीत का संयोजन है.वंदना कहती हैं-‘‘इन दिनों बौलीवुड में संगीत जगत में मौलिकता का घोर अभाव है.ऐसे वक्त में मैने कुछ मौलिक परोसने के मकसद से यह कदम उठाया है.यह रोमांटिक गीत मौलिकवता जगी के साथ प्रामाणिक संगीत को बढ़ावा देगा.’’

गीतकार और निर्देशक वंदना खंडेलवाल अपने अलबम ‘‘अब तेरे बिना’’के संदर्भ में कहती हैं-‘‘ संगीत की दुनिया में मेरा प्रवेश अचानक नही हुआ. संगीत का शिल्प मेरे लिए जुनून और प्यार है. यही जुनून मुझे सदैव प्रतिष्ठित भारतीय संगीत बिरादरी का हिस्सा बनने के लिए प्रेरित करता है.गीत ‘अब तेरे बिना ’के माध्यम से हमने एक सुंदर कहानी बताने की कोशिश की है.इसमें हमने अलग-अलग तरीकों से प्यार की भावनाओं को तलाशने की कोशिश की है.यह एक बहुत ही भावपूर्ण गीत है,जो आप के रोंगटे खड़े कर देगी. जब आप अपने टूटे हुए दिल की देखभाल कर रहे होंगे तो गीत आपको साथ रखेगा.‘’

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