लेखक-चितरंजन भारती 

देवानंद को एकदम सामने देख कर मालिनी सन्न रह गई. देवानंद ने उसे देख कर मुसकराते हुए अपनी बाइक रोक दी थी. मालिनी तुरंत मुड़ कर दूसरी ओर बढ़ी, मगर वह तुरंत बाइक को मोड़ उस की राह के आगे खड़ा हो गया था. अभी वह कुछ सोचती या फैसला लेती कि एक दूसरी बाइक वहां आ खड़ी हुई. मालिनी एकदम हक्कीबक्की रह गई थी कि उस ने उस की घेरेबंदी का यह नया पैंतरा शुरू किया है. यह जरूर उस का अपहरण करेगा. पहले ही देवानंद का नाम कई अपहरण कांड से जुड़ा है. उस के लिए यह कौन सी मुश्किल बात होगी. अचानक ही उस दूसरी बाइक से एक नौजवान उतरा और उस के बिलकुल नजदीक जा कर पिस्तौल निकाल कर गोलियां चला दीं. तेज आवाज हुई और वह अब बाइक से छिटक कर सड़क पर छटपटा रहा था. सुबह 10 बजे का समय था और बाजार में कोई भीड़ नहीं थी. सड़क पर कुछ ही गाडि़यां दौड़ रही थीं. लेकिन यहां पलक झपकते ही यह सबकुछ हो गया था.

मालिनी का रास्ता रोकने वाले सड़क पर गिरे देवानंद की पीठ में 2 और गरदन पर एक गोली लगी थी. वहां से खून निकलना शुरू हो चुका था. अचानक उस के मुंह से खून का थक्का निकला और परनाले सा बह चला. वे दोनों नौजवान बाइक सहित भाग चुके थे. वह उसे सड़क पर छटपटाते देख रही थी, जिस से डर कर वह भागना चाहती थी, अभी वही उसे कातर शिकायती निगाहों से देख रहा था, जैसे वे उसी के आदमी हों, जिन्होंने यह करतूत की थी. समय और हालात कितनी जल्दी बदल जाते हैं. अब वह बिलकुल शांत था. बाजार की भीड़ देवानंद की ओर बढ़ते हुए घेरा बना कर खड़ी हो चुकी थी. सड़क पर अब गाडि़यां तेजी से भागने लगी थीं, ताकि वे किसी बंद वगैरह के चक्कर में न फंसें.

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