लेखक- अक्षय कुलश्रेष्ठ

रामी काफी परेशान थी, क्योंकि देश में कोरोना के चलते 21 दिन का लौकडाउन था. बच्चे और पति राज घर पर ही थे. हर समय बच्चों के साथसाथ ये भी कुछ न कुछ फरमाइश करते रहते. रामी को इस का कोई तोड़ नजर नहीं आ रहा था, तभी घर का काम करते हुए 3 अप्रैल की सुबह प्रधानमंत्री के भाषण की आवाज उस के कानों में सुनाई पड़ी: ‘5 अप्रैल, 2020 की रात 9 बजे, 9 दीए...’ रामी बस इतना ही सुन सकी, तभी छोटे बच्चे ने कार्टून का चैनल लगा दिया. पति राज छत से टहल कर नीचे आए और एक कप चाय की मांग कर डाली. उन्हें नहीं पता था प्रधानमंत्री के इस भाषण के बारे में.

पति राज कुछ समझ पाता, पत्नी रामी ने थैला थमाते हुए कहा कि पहले कहीं से 9 दीए का इंतजाम करो. ‘क्यों...? क्या हुआ...? इन दीए का क्या करोगी...?’ राज ने पूछने की गुस्ताखी की, ‘क्या लौकडाउन में भी...’ ‘जी हां, पहले जो कहा है, वह करो,’ रामी ने गुस्सा दिखाते हुए कहा. ‘अच्छा, जो तुम कहोगी, वही होगा, पर पहले नहा तो लेने दो,’ राज ने अपना पक्ष रखा. राज कुछ सोचता हुआ नहाने बाथरूम की ओर चला गया. राज जब नहा कर आया, तो उस ने मुसकान बिखेरते हुए रामी से एक कप चाय की फरमाइश कर दी. चाय का नाम सुनते ही रामी का पारा चढ़ गया, ‘पहले जो कहा है, उसे पूरा करो.’ नरम पड़ते हुए राज ने रामी से कहा, ‘क्या हुआ आज जो इतनी गुस्से में हो?’ ‘मैं गुस्से में नहीं हूं...’ रामी ने नाराजगी छिपाते हुए कहा. ‘जब मैं आज घर का नाश्ता तैयार कर रही थी, तभी प्रधानमंत्री की स्पीच आ रही थी, जिस में कहा गया था कि रविवार की रात 9 बजे 9 मिनट अंधेरा करें, फिर 9 दीए जला कर बालकनी में रखें...’ रामी ने इतना ही कहा. ‘तुम भी बेवजह हंगामा करती रहती हो,’ राज ने छोटे बेटे के हाथ से मोबाइल छीन कर न्यूज वाला चैनल लगा दिया.

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