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उत्तर प्रदेश में पेप्सिको इण्डिया फूड्स प्लांट्स

लखनऊ . उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी ने आज यहां अपने सरकारी आवास पर आयोजित एक कार्यक्रम में पेप्सिको इण्डिया कोसी कलां मथुरा फूड्स प्लाण्ट का वर्चुअल माध्यम से उद्घाटन किया.

मुख्यमंत्री जी ने इस अवसर पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि सरकार की सोच उसकी कार्य पद्धति में दिखाई देती है. सरकार की सकारात्मक सोच से निवेश बढ़ता है. निवेश से रोजगार सृजन होता है, जिससे आत्मनिर्भरता व स्वावलम्बन प्राप्त करने में मदद मिलती है. पेप्सिको द्वारा कोसी कलां में स्थापित इकाई इसी सकारात्मक सोच का परिणाम है. उन्हांेने कहा कि प्रधानमंत्री जी द्वारा कल 14 सितम्बर, 2021 को जनपद अलीगढ़ में उत्तर प्रदेश डिफेंस इण्डस्ट्रियल काॅरिडोर के अलीगढ़ नोड का शुभारम्भ किया गया था. इससे 1,250 करोड़ रुपए के निवेश प्रस्तावों को जमीनी धरातल पर उतारने की कार्यवाही सम्पन्न हुई है. श्रीकृष्ण की पावन भूमि मथुरा के कोसी कलां में 800 करोड़ रुपए से अधिक की इस यूनिट का उद्घाटन सम्पन्न हुआ.

मुख्यमंत्री जी ने कहा कि ब्रज भूमि के किसानों की वर्षाें से मांग थी कि उनके क्षेत्र में खाद्य प्रसंस्करण की अत्याधुनिक इकाइयां स्थापित हों. प्रदेश सरकार की औद्योगिक नीति के अन्तर्गत पेप्सिको ने कोसी कलां में निवेश किया है. आज पेप्सिको द्वारा स्थापित इकाई का उद्घाटन किया गया है. सरकार व निवेशक जब मिलकर सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़ंेगे, तो इसके सकारात्मक परिणाम इसी रूप में सामने आएंगे. उन्होंने विश्वास जताया कि राज्य सरकार और पेप्सिको की साझेदारी उन्नति, विश्वास तथा स्वावलम्बन की साझेदारी होने के साथ ही, प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के आत्मनिर्भर भारत के संकल्पों को आगे बढ़ाने की भी साझेदारी होगी.

मुख्यमंत्री जी ने कहा कि राज्य सरकार द्वारा प्रदेश के औद्योगिक विकास के लिए बनायी गयी नीतियों के तहत निवेशकों द्वारा राज्य में बड़े पैमाने पर निवेश किया जा रहा है. यह निवेश किसानों के जीवन में व्यापक परिवर्तन का आधार बन रहा है. साथ ही, इससे नौजवानों के लिए रोजगार का सृजन हो रहा है. 04 वर्ष पूर्व प्रदेश में आलू उत्पादक किसान संकट में था. ऐसी स्थिति में आलू उत्पादक किसानों को उनके उत्पाद का उचित मूल्य दिलाने के लिए राज्य सरकार ने आलू का न्यून्तम समर्थन मूल्य घोषित किया, जिससे किसानों के सामने असहाय जैसी स्थिति पैदा न हो और उन्हें आलू का उचित मूल्य प्राप्त हो सके. पेप्सिको इण्डिया द्वारा स्थापित प्लाण्ट से इस क्षेत्र के किसानों को लाभ मिलेगा.

मुख्यमंत्री जी ने कहा कि उन्हें अवगत कराया गया कि कोसी कलां में स्थापित फूड्स प्लाण्ट यूनिट के माध्यम से डेढ़ लाख मीट्रिक टन आलू का प्रति वर्ष प्रसंस्करण किया जाएगा.

पेप्सिको इण्डिया किसान भाइयों के साथ पहले से ही साझेदारी करते हुए उनके उत्पाद का उचित मूल्य प्रदान करने के लिए पूरी प्रतिबद्धता के साथ कार्य कर रही है. उन्होंने कहा कि कोसी कलां में स्थापित प्लाण्ट खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में आलू उत्पादक किसानों की दृष्टि से मील का पत्थर साबित होगा. इस खाद्य प्रसंस्करण इकाई से किसानों को अपने उत्पादों को बेचने के लिए एक मंच मिला है.

मुख्यमंत्री जी ने कहा कि उत्तर प्रदेश देश का सबसे बड़ा खाद्यान्न उत्पादक राज्य है. प्रदेश मंे पर्याप्त जल संसाधन एवं उर्वरा भूमि मौजूद है. प्रदेश में किसानों की बड़ी संख्या एवं देश का सबसे बड़ा बाजार है. प्रदेश में 24 करोड़ जनता निवास करती है. साथ ही, यहां पर निवेश के लिए अनुकूल वातावरण भी है. ब्रज क्षेत्र में आगरा एवं अलीगढ़ मण्डलों के 08 जनपदों में बड़े पैमाने पर आलू उत्पादन होता है. इस यूनिट की स्थापना इस क्षेत्र के आलू उत्पादक किसानों की आमदनी कई गुना बढ़ाने में सहायक होगी.

औद्योगिक विकास मंत्री श्री सतीश महाना ने कार्यक्रम को वर्चुअल माध्यम से सम्बोधित करते हुए कहा कि मुख्यमंत्री जी के नेतृत्व में प्रदेश में औद्योगिक विकास के नये युग की शुरुआत हुई है. सरकार, किसानों और उद्यमियों के बीच विश्वास पैदा हुआ है. प्रदेश सरकार के सहयोग से पेप्सिको द्वारा कोसी कलां में दो वर्ष से भी कम समय में खाद्य प्रंसस्करण इकाई की स्थापना की गयी है. यहां प्रति वर्ष डेढ़ लाख टन आलू का प्रसंस्करण किया जाएगा. प्लाण्ट की स्थापना से 1500 लोगों को प्रत्यक्ष तथा बड़ी संख्या में लोगों को परोक्ष रूप से रोजगार के अवसर प्राप्त होंगे.

दुग्ध विकास मंत्री श्री लक्ष्मी नारायण चैधरी ने कार्यक्रम को वर्चुअल माध्यम से सम्बोधित करते हुए कहा कि मुख्यमंत्री जी के मार्गदर्शन में जनपद मथुरा में पर्यटन विकास, बिजली, सड़क आदि विभिन्न विकास कार्य सम्पन्न कराये गये हैं. मुख्यमंत्री जी के प्रयास से प्रदेश में पेप्सिको की इकाई स्थापित हुई है. इससे किसानों को लाभ होगा. साथ ही, युवाओं को रोजगार के अवसर भी सुलभ होंगे.

कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए प्रेसिडेण्ट पेप्सिको इण्डिया श्री अहमद अलशेख ने कहा कि मुख्यमंत्री जी द्वारा पेप्सिको इण्डिया के कोसी कलां, मथुरा फूड्स प्लाण्ट का उद्घाटन पेप्सिको के लिए गर्व का विषय है. राज्य सरकार के सहयोग से दो वर्ष से भी कम समय में इस प्लाण्ट को स्थापित कर प्रारम्भ कराया जा रहा है. यह पेप्सिको इण्डिया का भारत में स्थापित सबसे बड़ा खाद्य प्रसंस्करण प्लाण्ट है. सीईओ एएमईएसए पेप्सिको श्री यूजीन विलेम्सन ने भी कार्यक्रम को वर्चुअल माध्यम से सम्बोधित किया. कार्यक्रम के दौरान पेप्सिको द्वारा निर्मित एक लघु फिल्म ‘उन्नति की साझेदारी’ भी प्रदर्शित की गयी.

इस अवसर पर मुख्य सचिव श्री आरकेतिवारी, अवस्थापना एवं औद्योगिक विकास आयुक्त श्री संजीव मित्तल, अपर मुख्य सचिव सूचना एवं एमएसएमई श्री नवनीत सहगल, अपर मुख्य सचिव अवस्थापना एवं औद्योगिक विकास श्री अरविन्द कुमार सहित अन्य वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे.

मशरूम उत्पादन: किसान महिलाओं व युवाओं के लिए रोजगार का साधन

लेखक- डा. प्रेम शंकर, डा. एसएन सिंह, डा. वीना सचान

मशरूम की खेती अब पूरी दुनिया में लोकप्रिय हो रही है. मशरूम की खेती सीधे आजीविका में सुधार कर सकती है. इस का आर्थिक पोषण और औषधीय योगदान बहुत है. यह ग्रामीण विकास, महिलाओं और युवाओं के अनुकूल पेशे का माध्यम बन सकता है. उत्पादन तकनीक कंपोस्ट की तैयारी कंपोस्ट कृत्रिम ढंग से बनाया गया वह माध्यम है, जिस से मशरूम की कायिक संरचना भोजन प्राप्त कर अपने फलनकाय के रूप में मशरूम पैदा करती है,

अत: कंपोस्ट बनाने के पीछे मशरूम को उचित भोजन सामग्री उपलब्ध कराना निहित है. कंपोस्ट बनाने के लिए पक्के फर्श या विशेष कंपोस्टिंग शैड उपयोग में लाए जाते हैं. कंपोस्ट बनाने के लिए निम्नलिखित सामग्री प्रयोग में लाएं : गेहूं का भूसा-1,000 किलोग्राम, अमोनियम सल्फेट व कैल्शियम अमोनियम नाइट्रेट-30 किलोग्राम, सुपर फास्फेट-10 किलोग्राम, पोटाश-10 किलोग्राम, यूरिया-10 किलोग्राम, जिप्सम-100 किलोग्राम, गेहूं का चोकर-50 किलोग्राम, फ्यूरोडान 500 ग्राम. कंपोस्ट बनाना शुरू करने से 48 घंटे पहले भूसे की पतली तह पक्के फर्श पर बिछा कर उसे अच्छी तरह से पलट कर पानी के फव्वारे से तर कर दें. आरंभ या शून्य इस आरंभ में भूसे में नमी की मात्रा 75 फीसदी होनी चाहिए. इस नमीयुक्त भूसे में चोकर, कैल्शियम, यूरिया, म्यूरेट औफ पोटाश और सुपर फास्फेट अच्छी तरह मिला देते हैं. अब लकड़ी के पूर्व निर्मित तख्तों की मदद से भूसे का लगभग 1.5 मीटर चौड़ा, 1.25 मीटर ऊंचा किसी भी लंबाई का ढेर बनाएं. ढेर बनाने के बाद लकड़ी के तख्तों को ढेर से अलग कर दें.

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24 घंटे के भीतर ढेर का भीतरी तापमान 70-75 डिगरी सैंटीग्रेड तक होना चाहिए. इस ढेर की नमी बनाए रखने के लिए एक या 2 बार बाहरी सतह पर पानी का छिड़काव करें. पहली पलटाई छठे दिन ढेर के बाहरी भाग को (15 सैंटीमीटर अंदर तक का) फर्श पर फैला दें, शेष भाग को दूसरी जगह फर्श पर फैला दें. अब बाहरी भाग की कंपोस्ट को अंदर डाल कर व भीतरी भाग की कंपोस्ट को बाहर डाल कर लकड़ी के तख्तों की मदद से दोबारा ढेर बना कर तख्तों को अलग कर दें. दूसरी पलटाई 10वें दिन बाहरी व भीतरी भाग को अलग कर के बाहरी भाग पर अच्छी तरह पानी का छिड़काव कर के ढेर को इस तरह बनाएं कि बाहरी भाग ढेर के भीतर व भीतरी भाग ढेर के बाहर पहुंच जाए. तीसरी पलटाई 13वें दिन पहले की तरह पलटाई व ढेर का निर्माण करें व जिप्सम मिला दें. चौथी पलटाई 16वें दिन पहले की तरह पलटाई व ढेर का निर्माण करें. 5वीं पलटाई 19वें दिन पहले की तरह पलटाई ढेर का निर्माण करें. छठी पलटाई 22वें दिन पहले की तरह पलटाई का निर्माण करें व फ्यूरोडान मिला दें. 7वीं पलटाई 25वें दिन यदि कंपोस्ट अमोनिया गैस मुक्त है,

तो कंपोस्ट बीजाई के लिए तैयार है, वरना 28वें दिन करें और बीजाई 30वें दिन करें. बीजाई बीजाई (स्पौनिंग) कंपोस्ट में स्पौन मिलाने के ढंग को कहते हैं. प्रति क्विंटल तैयार कंपोस्ट में 500 ग्राम से 750 ग्राम स्पौन (0.5-7.5 फीसदी की दर से) अच्छी प्रकार मिलाया जाता है. बीजाई की हुई कंपोस्ट को सैल्फ या पौलीथिन बैगों से हलका ढक कर रखना चाहिए. सैल्फ में 80-100 किलोग्राम/मीटर व बैग में 10-15 किलोग्राम कंपोस्ट भरते हैं. बीजाई की हुई कंपोस्ट को निर्जीवीकृत अखबार द्वारा ढक देते हैं. अखबारों को इस्तेमाल में लाने से एक हफ्ते पहले फौर्मेलीन घोल से या वाष्प द्वारा 20 पौंड पर आधा घंटा निर्जीवीकरण कर लेना चाहिए. यदि पौलीथिन बैग इस्तेमाल कर रहे हैं, तो बैग को ऊपर से मोड़ कर बंद कर दें. बीजाई के बाद फसल कक्ष का तापमान 22-23 डिगरी सैंटीग्रेड या अपेक्षित आर्द्रता 85-90 फीसदी बनाए रखना चाहिए.

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दिन में 2 बार हलके पानी का छिड़काव अखबार के ऊपर व फसल कक्ष की फर्श व दीवार पर करें. बीजाई के 6-7 दिन बाद धागेनुमा फफूंदी की वृद्धि दिखाई देने लगती है, जो 12-15 दिन में कंपोस्ट की सतह को सफेद कर देते हैं. बिछे हुए अखबार के ऊपर फैली हुई फफूंदी को आवरण मृदा द्वारा ढक दिया जाता है. आवरण मृदा (केसिंग मिट्टी) आवरण मृदा का मतलब है, कंपोस्ट पर फैली हुई फफूंदी के ऊपर मृदा मिश्रण का स्तर बिछाना, जिस से नमी बनाए रखने व गैस के आदानप्रदान में कवक को मदद मिलती रहे. आवरण मृदा बीमारियों और कीड़ों से मुक्त व इस का पीएच मान 7.5 से 7.8 होना चाहिए. अपने देश में निम्नलिखित सामग्री से आवरण मृदा तैयार की जाती है : * गोबर की खाद (2 साल पुरानी) बगीचे की मिट्टी (2:1) * गोबर की खाद (2 साल पुरानी) स्पेंट कंपोस्ट (1:1) आवरण मृदा का पाश्चुरीकरण आवरण मृदा को फौर्मेलीन द्वारा शोधित किया जा सकता है.

आवरण मृदा का मिश्रण पक्के फर्श पर ढेर के रूप में रख कर उस में 4 प्रतिशत फौर्मेलीन का घोल पानी में बना कर अच्छी तरह मिला लें. उस के बाद ढेर को पौलीथिन चादर को हटा कर आवरण मृदा को उलटपलट कर फौर्मेलीन की गंध उड़ने के लिए छोड़ देते हैं. इस तरह 3-4 दिन तक आवरण मृदा को उलटतेपलटते रहते हैं व पूरी तरह से ढेर को फौर्मेलीन गंधरहित कर लेते हैं. आवरण मृदा का शोधन वाष्प द्वारा 65 डिगरी सैंटीग्रेड पर 6-8 घंटे करना ज्यादा उपयोगी है. आवरण मृदा का प्रयोग आवरण मृदा की 4 सैंटीमीटर मोटी सतह कवक जाल युक्त कंपोस्ट के ऊपर बिछा दी जाती है. आवरण मृदा बिछाने के बाद 2 फीसदी फौर्मेलीन घोल का छिड़काव इस पर करना चाहिए और फसल कक्ष का तापमान 15-18 डिगरी सैंटीग्रेड और आर्द्रता 80-85 फीसदी कर देना जरूरी है.

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साथ ही, समुचित वायु संचार का इस अवस्था में प्रबंधन करना जरूरी होता है. आवरण मृदा के ऊपर से दिन में एक या 2 बार पानी का हलका छिड़काव करना चाहिए. फसल की तुड़ाई आवरण मृदा बिछान के 12 से 18 दिन बाद (मशरूम) निकलना शुरू हो जाता है और 50-60 दिन तक निरंतर निकलते रहते हैं. दिन में एक अथवा दो बार मशरूम को टोपी खुलने के पहले (जिस की परिधि एक से डेढ़ इंच हो), उंगलियों के सहारे ऐंठ कर निकाल लेना चाहिए. इतना ही नहीं, मशरूम खुल जाने और छतरी बन जाने पर मशरूम की क्वालिटी और बाजार में इस की कीमत कम हो जाती है. पैदावार दीर्घ अवधि से बनाई गई प्रति 100 किलोग्राम कंपोस्ट से 14 से 16 किलोग्राम मशरूम व इतनी ही मात्रा में पाश्चुरीकरण कंपोस्ट से 18 से 22 किलोग्राम मशरूम की पैदावार हासिल हो जाती है.

खौफ – भाग 2 : हिना के मन में अन्नया को लेकर क्या खौफ था

काफी देर तक वह बातें करती रही. अनन्या ईशा के पास आ गई और बोली, “कैसे हैं हमारे जीजू?” “तुम खुद ही देख लेना.” “वह तो मैं देख लूंगी. तुम भी तो कुछ बताओ.” “मुझे तो वे बहुत अच्छे लगे. वे बहुत सुलझे हुए हैं. वे किसी से ज्यादा बात नहीं करते.”

“अभी बात करने में डरते होंगे. धीरेधीरे तुम से और हम से भी उन की खूब बातें होने लगेंगी. और कौनकौन आ रहा है?” अनन्या ईशा को चिढ़ाते हुए बोली.

“सब आ रहे हैं. मामा के दोनों बेटे और बुआ की दोनों लड़कियां कल तक पहुंच जाएंगे. तुम्हारे आने से घर में शादी के माहौल की शुरुआत हो गई है.”

बातें करते हुए रात हो गई थी. हिना ने कहा, “दी, मेरे लिए अलग कमरे की व्यवस्था कर देना.” “तुझे कहने की जरूरत नहीं है. मैं जानती हूं कि तू क्या चाहती है? मैं ने तेरे लिए पहले से ही व्यवस्था कर दी है. तुम और अनन्या ऊपर के कमरे में आराम से रहना.”

“थैंक्यू दी,” कह कर हिना अनन्या के साथ वहां आ गई. उन्होंने अच्छे से अपना सामान व्यवस्थित कर लिया. हिना ने हमेशा की तरह यहां आ कर अनन्या को ढ़ेर सारी नसीहतें दे डालीं.

“मम्मी प्लीज, मैं कोई बच्ची नहीं हूं. 16 साल की हो गई हूं. मुझे भी अपने भलेबुरे की पहचान है.” “जानती हूं, फिर भी मैं कुछ मामलों में बिलकुल रिस्क नहीं उठा सकती.” “इस में रिस्क की क्या बात है? हम सब आपस में रिश्तेदार हैं.”

“तुम नहीं समझती अनन्या. बस मेरी बात मान लो. मैं जानती हूं कि तुम्हें यह सब देखसुन कर बुरा लगता है, फिर भी इस से आगे कुछ मत कहो और इस टौपिक को यहीं खत्म कर दो.”

अपना सामान व्यवस्थित कर के वह राशि दी के पास चली गई. राशि दी एकएक कर के उसे शादी का सामान दिखा रही थीं और अनन्या उस पर अपनी टिप्पणियां दे रही थी. उस के बाद वह ईशा के साथ आ गई.

खाना खाने के बहुत देर बाद अनन्या मम्मी के पास आई. हिना उस समय राशि के साथ बातें कर रही थी. बातें तो एक बहाना था. दरअसल, वह उसी के आने का इंतजार कर रही थी. दोनों कमरे में आ कर कुछ देर बातें करते रहे और फिर आराम से सो गए.

अगले दिन सुबह से ही मेहमानों का आनाजाना शुरू हो गया था. राशि दी के परिवार में यह पहली शादी थी. सारे रिश्तेदार शादी में शामिल होने सपरिवार आए थे. बुआ, मौसी, चाचा, ताऊ और छोटे दादाजी सब अपने परिवार के साथ पहुंच गए थे. घर पर रिश्तेदारों का मेला लग गया था. सभी के बच्चे जवान थे. कुछ की शादी हो चुकी थी और उन के साथ छोटे बच्चे भी आए हुए थे. यह सब देख कर राशि दी बहुत खुश थीं. वह खुद भी बहुत व्यवहारकुशल थी. हरेक के सुखदुख में शामिल होने वह सब से पहले पहुंच जाती. इसी वजह से सभी लोग ईशा की शादी में एक दिन पहले ही पहुंच गए थे.

सुबह से ही घर में शादी की रस्में चल रही थीं. हिना राशि दी के साथ हर काम में बढ़चढ़ कर हिस्सा ले रही थी. अनन्या कजिन के साथ बातों में व्यस्त थी. सब अपने कामों में लगे थे. जवान लड़कियों को सजनेसंवरने और शाम को होने वाले महिला संगीत में विशेष रुचि थी. उन्होंने पहले से ही प्रोग्राम बना लिया था कि सुंदरकांड और कीर्तन खत्म होने के बाद सब मिल कर खूब धमाल मचाएंगे. इस के लिए वे दिनभर से  तैयारी कर रहे थे.

शाम हुई. सुंदरकांड के पाठ, कीर्तन और अच्छेखासे जलपान के बाद अधिकांश अपने घर चले गए. अब युवाओं की महफिल सजने लगी थी. डैक पर नए गाने बज रहे थे और उस की धुन पर सभी युवा थिरक रहे थे. उस में पासपड़ोस के युवा भी शामिल थे.

आए हुए युवा मेहमानों के कुछ दोस्त भी शादी में शिरकत कर रहे थे. अनन्या गुलाबी लहंगे में बहुत खूबसूरत लग रही थी. उस की दीपक मामा के बेटे सिद्धार्थ से बहुत अच्छी पटती थी. वे दोनों साथ मिल कर दिनभर से प्रैक्टिस कर रहे थे. शाम को उन का प्रदर्शन सब से अच्छा था. सब उन्हें बधाई दे रहे थे.

हिना को यह कार्यक्रम बहुत अच्छा लगा. रात को खाना खाने के बाद उन्होंने और भी प्रोग्राम बना लिए थे.रात के 12 बज चुके थे. सब लोग सोने की तैयारी करने लगे. कल के जश्न के लिए सभी को रात देर तक उठे रहना था. हिना अभी तक युवाओं के साथ बैठी हुई थी. सिद्धार्थ बोला, “बुआ तुम भी सो जाओ. थोड़ी देर और मस्ती कर के हम सब भी सोने चले जाएंगे.”

“मुझे नींद नहीं आ रही है. तुम लोगों के कार्यक्रम बहुत अच्छे लग रहे हैं. ऐसा मौका बारबार कहां मिलता है?””जैसी आप की इच्छा. मुझे लगा शायद आप जबरदस्ती यहां बैठी हैं.” उस की बात सुन कर अनन्या ने एक नजर मम्मी पर डाली, लेकिन बोली कुछ नहीं. वह अच्छे से जानती थी कि मम्मी उसी की वजह से इतनी रात तक जागी हुई हैं, अन्यथा वे  रोज 10 बजे ही सोने चली जाती हैं. हिना के साथ के सभी लोग सोने जा चुके थे. एकमात्र वही थी, जो उन युवाओं के बीच बैठ कर उन के कार्यक्रमों का मजा ले रही थीं.

रात के एक बजे कार्यक्रम खत्म हुए और सब अपनेअपने कमरों में सोने चले गए. अनन्या भी मम्मी के साथ कमरे में आ गई. हिना को लग रहा था, आज उस के कारण शायद वह आहत हुई है. हिना बोली, “सो जा बेटा. कल भी तुम्हें सारी रात जागना है.”

“नींद की जरूरत मुझ से ज्यादा आप को है मम्मी. आप की नींद पूरी न हो तो आप सुबह बड़ी चिड़चिड़ी सी हो जाती हैं. क्या जरूरत थी इतनी देर तक वहां बैठे रहने की?”

“मुझे तुम्हारा डांस बहुत अच्छा लग रहा था.” “ज्यादा बहाने बनाने की जरूरत नहीं है मम्मी. मुझे सब पता है कि आप मेरी चौकीदारी के लिए वहां बैठी थीं ना.” “ऐसा क्यों सोचती है तू?मुझे तेरी चिंता रहती है बस.” “ऐसी चिंता किस काम की, जिस पर मम्मीपापा चौकीदार नजर आने लगे.”

अनन्या की बात पर हिना कुछ नहीं बोली और चुपचाप बिस्तर पर लेट गई. उसे समझ नहीं आ रहा था कि वे अनन्या को किस तरह समझाएं. आज के जमाने में युवा लड़कियों को जितना खतरा बाहर से है, उस से अधिक खतरा अपने लोगों से है. बाहर वालों के खिलाफ तो खुल कर आवाज उठाई जा सकती है, लेकिन घर वालों के खिलाफ मुंह खोलने के लिए बहुत अधिक साहस चाहिए.

यह सोच कर वह अतीत में गोते लगाने लगी. वह बचपन से मम्मीपापा के साथ कानपुर में रहती थी. शहर के नजदीक होने की वजह से उन के घर मेहमानों का आनाजाना लगा रहता. ताऊजी, चाचाजी, बुआजी, मामाजी व अन्य दूर के सभी रिश्तेदार अकसर मम्मीपापा से मिलने आ जाते. कभी कोई बीमार पड़ता है, तो वह उन्हीं के घर पर महीनों तक डेरा डाल लेता.

खौफ – भाग 1 : हिना के मन में अन्नया को लेकर क्या खौफ था

लेखिका- डा. के. रानी

शाम का समय था. राशि दी का फोन आ रहा था. यह देख कर हिना की खुशी का ठिकाना न रहा. वह समझ गई कि जरूर कोई खास बात होगी, जिस की वजह से उन्होंने इस समय फोन किया वरना वह रोज रात 10 बजे फोन करती.

“हैलो दी कैसी हो? आज आप ने इस वक्त फोन कर दिया.” ” क्या बताऊं, मुझ से सब्र नहीं हो रहा था.” “ऐसी क्या बात हो गई?”

“ईशा का रिश्ता पक्का हो गया है. बस चट मंगनी पट ब्याह होना है. आज से ठीक 10 दिन बाद सगाई है और उस के अगले दिन ही शादी है. तुम सब को आना है.”

“यह भी कोई कहने की बात है दी. मैं जरूर आऊंगी.” “मैं तेरी ही बात नहीं कर रही हूं, बल्कि राजीव, अनन्या और विनय को भी आना है.” “राजीव की मैं कह नहीं सकती. विनय के अगले महीने इम्तिहान हैं. एक को  उस के साथ घर पर रहना होगा. मैं और अनन्या जरूर आएंगे. यह तो पक्का है. कुछ दामाद के बारे में भी बताओ,” हिना ने कहा, तो राशि दी फोन पर उसे सारी बातें विस्तार से बताने लगीं.

बातें करते हुए दोनों को एक घंटा हो गया था, तभी अनन्या ने आवाज लगाई, “मम्मी, बाहर कोई आया है आप से मिलने.” “अच्छा दी, बाद में बात करती हूं,” कह कर उस ने फोन रख दिया. खुशी के मारे उस के पैर धरती पर नहीं पड़ रहे थे.

राशि दी ईशा के रिश्ते को ले कर कब से परेशान थीं. इतना पढ़लिखने के बाद भी उस के लिए कोई अच्छा रिश्ता नहीं मिल रहा था. अब ऊपर वाले ने उन की सुन ली थी और  झट से उस का रिश्ता तय हो गया था. लड़का मल्टीनेशनल कंपनी में इंजीनियर था. अच्छाखासा परिवार था. वहां कोई कमी नहीं थी.

हिना ने खुशखबरी अनन्या और राजीव को भी सुना दी. “मम्मी, ईशा दी की शादी में मजा आ जाएगा. मैं पूरे एक हफ्ते वहीं रहूंगी,” अनन्या बोली. “यह क्या कह रही है? शादी के माहौल में इतने दिन कैसे रहा जा सकता है?”

“मम्मी, यही तो मौका होता है सब से मिलने का. शादी में हमारे सारे कजन आएंगे. वैसे, उन से व्हाट्सएप पर चैट हो जाती है, लेकिन आमनेसामने बात करने का मजा ही कुछ और है.”

“यह सब छोड़ो, पहले शादी के लिए ड्रेस तैयार करवानी है. समय बहुत कम है.” “आप ठीक कह रही हैं मम्मी. हम कल ही बाजार जा कर सब से पहले अपने लिए ड्रेस तैयार करवा लेते हैं, बाकी काम तो होते रहेंगे,” अनन्या बोली.

मांबेटी दोनों ही शादी की तैयारी में उसी दिन से जुट गई थीं. हिना को अब इस से आगे कुछ सूझ ही नहीं रहा था. राजीव बोले, “हिना, मैं एक दिन के लिए ही शादी में आ सकता हूं, उस से ज्यादा नहीं. बेटे के इम्तिहान सिर पर हैं. मैं इस समय इतना बड़ा रिस्क नहीं ले सकता.”

“जैसा तुम्हें ठीक लगे. मैं तो अनन्या के साथ 2 दिन पहले ही चली जाऊंगी. आप को अभी से बता देती हूं.””तुम्हारी जो मरजी हो वो करो. इस मामले में मैं कुछ नहीं बोलूंगा. मैं ने अपनी दिक्कत तुम्हें बता दी है, बाकी उन लोगों से तुम खुद ही निबट लेना.”

एक हफ्ता कब गुजर गया, पता ही नहीं लगा. अब शादी में केवल 3 दिन रह गए थे. अगले दिन हिना और अनन्या को शादी में राशि दी के घर जाना था. अनन्या बोली, “मम्मी, आप ने स्कूल से कितने दिन की छुट्टी ली है?”

“3 दिन और क्या…? बीच में एक दिन इतवार है. कुल मिला कर 4 दिन हो जाएंगे.” “आप चली आना, मैं तो वहीं रुकूंगी,” अनन्या बोली, तो हिना ने उसे घूर कर देखा.  वह जानती थी कि मम्मी किसी भी कीमत पर उसे अकेले नहीं छोड़ेंगी और अपने साथ ही वापस ले आएंगी.

बचपन से वह यही सब देखती आई थी. मम्मी जहां कहीं भी जाती हैं, उसे अपने साथ ले कर जाती हैं. कहीं छोड़ने की नौबत आती तो बहाना बना कर टाल देतीं.

पता नहीं क्यों मम्मी बेटी को किसी के भी घर पर अकेले छोड़ने में बहुत डरती थीं. इतना ही नहीं, घर पर कोई मेहमान आता तो वह उन की हर सुविधा का खयाल रखती. रात में कोई प्रोग्राम हो तो वह अनन्या के शामिल होने पर पहले ही एतराज जता देती थी.

मम्मी का रुख देख कर अनन्या ने अब कुछ कहना ही छोड़ दिया था. अलीगढ़ से आगरा का केवल 2 घंटे का रास्ता था. वे टैक्सी से वहां पहुंच गए थे. उन्हें देख कर राशि दी बहुत खुश हुईं. “हिना, तेरे आ जाने से मेरी हिम्मत बहुत बढ़ गई है, नहीं तो मैं बड़ा नर्वस हो रही थी. घर पर पहलीपहली शादी है, इसीलिए मुझे थोड़ा डर लग रहा है.”

“ऐसी कोई बात नहीं है दी. हम मिलजुल कर काम करेंगे तो सबकुछ अच्छे से निबट जाएगा.” “हां, यह बात तो है. लड़के वालों की कोई डिमांड नहीं है. वे बहुत शरीफ लोग हैं. इसी वजह से मुझे और ज्यादा हिचक हो रही है. हम अपनी बेटी की शादी में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे. भले ही वे अपने मुंह से कुछ नहीं कह रहे.”

सब से बड़ी बहन की शादी को 2 वर्ष हो चुके हैं, लेकिन इधर कुछ दिनों से मेरे जीजाजी गलत काम कर रहे हैं क्या करूं?

सवाल

मैं हाईस्कूल का छात्र हूं. मेरी 2 बड़ी बहनें हैं. सब से बड़ी बहन की शादी को 2 वर्ष हो चुके हैं, लेकिन इधर कुछ दिनों से मेरे जीजाजी के मेरी छोटी बहन के साथ गलत संबंध बन गए हैं. मैं यह बात अपने मातापिता को भी बता चुका हूं. लेकिन वे मेरी बात नहीं सुनते. हमारी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है और जीजाजी ही हमारी मदद करते हैं. इसलिए मेरे मातापिता जान कर भी अनजान बने रहते हैं. कृपया इस समस्या का कोई समाधान बताइए?

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जवाब

आप की समस्या का सब से बड़ा समाधान आर्थिक रूप से आत्मनिर्भरता है. आप के पत्र से यह तो मालूम नहीं हुआ कि आखिर मातापिता के होते हुए भी ऐसी कौन सी समस्या है जो आप को ये सब अत्याचार सहने पर मजबूर कर रही है. इस के समाधान के लिए आप अपनी छोटी बहन को समझा सकते हैं. आवश्यकता पड़ने पर कानूनी सहायता भी ले सकते हैं.

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अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

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मजाक : मर्द का बच्चा

लेखक- प्रदीप नील

अजीब सा नजारा था. अधेड़ उम्र के एक आदमी को दूसरा आदमी भरी पंचायत में जूते मार रहा था, लेकिन खाने वाला हंसे जा रहा था. वहीं पास में सिर झुकाए बैठी एक औरत के चेहरे पर जरूर दुख के भाव थे, लेकिन भीड़ को उस में भी मजा आ रहा था. पता चला कि जूते खाने वाला आदमी 4 बच्चों का बाप था, जो सिर झुकाए बैठी आधा दर्जन बच्चों की मां को ले कर भाग गया था. बाद में दोनों पकड़े भी गए थे. अब इतना तो आप भी सम झ गए होंगे कि जूते मारने वाला कौन था? ‘‘यह आदमी जूते खा कर भी शर्मिंदा होने के बजाय हंस क्यों रहा है?’’ मैं ने वहां खड़े राम अवतार से पूछा. राम अवतार ने कहा, ‘‘हंस रहा है, क्योंकि मर्द को दर्द नहीं होता.

यह मर्द का बच्चा है.’’ मैं ने कहा, ‘‘इस उम्र में की गई इस बेवकूफी को तुम मर्दानगी कहते हो?’’ राम अवतार ने मु झे हिकारत भरी नजरों से देखा और बोला, ‘‘बेवकूफी करते हैं नादान उम्र के लड़के, जो यह भी नहीं सोचते कि बाद में अपनी ‘बूआ’ को रोटी कहां से खिलाएगा. ‘‘यह मर्द का बच्चा नहीं तो और क्या है, जो अपने और महबूबा दोनों के मिला कर कुल जमा 10 बच्चों का कुनबा पालने जा रहा था.’’ राम अवतार की बात तो ठीक थी. यहां लोग बच्चे पैदा करने में तो मर्दानगी दिखा देते हैं, लेकिन ढंग से पाल नहीं पाते, तो खुद के बजाय सरकार को निकम्मी बताने लगते हैं. मु झे याद आया, जब हमारे पड़ोस में रहने वाले राजू की बीवी मर गई थी, तो अपने 8 बच्चों की देखभाल के लिए उस ने उस विधवा से शादी कर ली थी, जो राजू से आधी मर्द थी, यानी 4 बच्चों की मां थी. जैसा कि अपने देश में आमतौर पर होता है, 2 साल में 2 बच्चे… उन से भी हो गए.

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वही राजू एक दिन काम पर गया हुआ था, तो उस की बीवी का फोन आया, जो घबराई हुई आवाज में कह रही थी, ‘‘जी, जल्दी से घर आ जाओ, क्योंकि आप के बच्चे मेरे बच्चों को पीट रहे हैं.’’ राजू ने कहा, ‘‘काम छोड़ कर नहीं आ सकता. किसी तरह काम चला लो, आते ही ठुकाई करूंगा उन की.’’ थोड़ी देर बाद फिर फोन आया, ‘‘किसी तरह आ सको, तो आ जाओ. इस बार मेरे बच्चे तुम्हारे बच्चों को पीट रहे हैं.’’ राजू झल्लाया, ‘‘नहीं आ सकता. लेकिन तुम चिंता मत करो, घर आ कर उन की भी ठुकाई मैं ही कर दूंगा.’’ अभी 10 मिनट भी नहीं बीते थे कि फोन फिर बज उठा. राजू चिल्लाया, ‘‘अब क्या आफत आ गई?’’ उधर से रोती हुई उस की बीवी कह रही थी, ‘‘जी, मामला इतना गंभीर है कि इस बार तो तुम्हें आना ही पड़ेगा, क्योंकि इस बार तुम्हारे बच्चे और मेरे बच्चे मिल कर हम दोनों के बच्चों को पीट रहे हैं.’’ और बेचारे राजू को नौकरी छोड़ कर आना पड़ा. इस हिसाब से तो जूते खाने वाला वाकई मर्द का बच्चा था,

जो भरी पंचायत में हंसे जा रहा था. मैं ने राम अवतार से पूछा, ‘‘यार, ये दोनों पकड़े कैसे गए?’’ राम अवतार ने जूते मारने वाले की तरफ इशारा करते हुए पूरी नफरत के साथ कहा, ‘‘इस घसियारे ने पुलिस को शिकायत जो कर दी थी.’’ सुन कर मु झे बहुत अच्छा लगा. लोग तो 5-7 साल बाद ही बीवी से तंग आ जाते हैं और दहेज की मांग कर के उसे जला देते हैं या जहर दे कर मार देते हैं. इधर यह पति है कि 20 साल से न केवल साथ रह रहा है, बल्कि सच्चे आशिक की तरह अपनी बीवी के बिना नहीं रह पाया. मु झे उस औरत से बहुत नफरत होने लगी. मैं ने राम अवतार से पूछा, ‘‘जूते इस पापिन को क्यों नहीं मारते, जो देवता जैसे अपने पति को छोड़ कर भागी?’’ ‘‘देवता…’’ राम अवतार हंसने लगा, ‘‘यह देवता हर शाम सोमरस चढ़ा कर आता था और दिनभर खटने वाली अपनी इसी बीवी को जूतों का प्रसाद दिया करता था. बेचारी भागती नहीं, तो और क्या करती?’’ मैं और भी ज्यादा हैरान रह गया. मैं ने पूछा, ‘‘जब यह अपनी बीवी से इतनी नफरत करता है,

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तो उस के भागने पर चैन की सांस क्यों नहीं ली कि चलो पीछा छूटा?’’ राम अवतार ने किसी बाबा की तरह चेहरा लटका लिया और कहने लगा, ‘‘हमारी परंपरा कहती है कि बीवी को सारी उम्र दुख दे कर मारने का हक पति का है, जिसे खुद ऊपर वाला भी नहीं छीन सकता. इस सब के बावजूद यह शायद चुप भी रह जाता, अगर यह घर से गहने और रुपए ले कर न भागी होती.’’ ‘‘गहने और रुपए? यह औरत तो कई साल से गरीबी की रेखा से नीचे रह रही थी. उस ने सर्वे करने वालों को कच्चा मकान तो दिखा दिया, गहने क्यों नहीं दिखाए?’’ राम अवतार मुंह पर हाथ रख कर हंसते हुए बोला, ‘‘गहने तो भारतीय औरत की लाज होते हैं. अब तुम्हारी भ्रष्ट व्यवस्था क्या चाहती है कि इज्जतदार औरत की इज्जत भी उतार ली जाए या उस की इसलिए मदद न की जाए कि उस के पास इज्जत है?’’ राम अवतार के भाषण से बचने के लिए मैं ने पूछा, ‘‘पंचायत ने यह कहां का इंसाफ किया कि इतने कोमल अपराध पर जूते मारने की कठोर सजा सुना दी?’’ राम अवतार हंसा और बोला, ‘‘आंख के बदले आंख, जूते के बदले जूता.’’ मैं सम झ नहीं पाया कि यह नियम यहां कैसे लागू हो रहा है? राम अवतार चिढ़ गया, ‘

‘किस दुनिया के जानवर हो, जो इतना भी नहीं जानते कि औरत तो पैर की जूती होती है. ‘‘ध्यान से देखो, अपना मर्द बच्चा जूते से नहीं, बल्कि सरपंचनी की जूती से पिट रहा है, इसलिए मैं ने कहा कि जूते के बदले जूता.’’ मैं ने कहा, ‘‘यह इंसाफ तो अब सम झ आ गया, लेकिन एक लाख रुपए का जुर्माना भी तो लगाया जा रहा है.’’ राम अवतार ने भूल सुधारी, ‘‘इसे जुर्माना नहीं, मनोरंजन टैक्स कहते हैं.’’ मैं ने हैरान हो कर कहा, ‘‘इतना ज्यादा मनोरंजन टैक्स?’’ राम अवतार ने कहा, ‘‘हां, यह टैक्स होता ही सब से ज्यादा है. अपने शहर के सारे सिनेमाघर इसी चक्कर में तो बंद हो गए.’’ मैं ने पूछा, ‘‘यार, अपना मर्द बच्चा कितनी देर से पिट रहा है, फिर भी वह हंसे जा रहा है. इस ड्रामे का अंत कब होगा?’’ राम अवतार ने कहा, ‘‘अंत करवाना हो, तो आधा मिनट लगेगा. आखिर में पंचायत इस औरत को सिर्फ एक जूता मारने को कहेगी और अपना यह मर्द बच्चा जूते की हलकी सी मार से भी रो पड़ेगा.’’

मैं ने राम अवतार से पूछा, ‘‘ऐसा क्यों?’’ उस ने कहा, ‘‘मर्द है तो क्या हुआ, दिल पर चोट लगने पर तो हर कोई रो देता है.’’ मैं ने उस से आखिरी सवाल पूछा, ‘‘फिर वही काम कर के यह ड्रामा बंद क्यों नहीं कर देते?’’ राम अवतार मुंह लटका कर बोला, ‘‘भीड़ में कामकाजी आदमी एक भी नहीं है, जितने हैं सारे निठल्ले हैं. इन को यहीं उल झाए रख कर मनोरंजन करा दिया जाए तो ठीक, वरना ये घर जा कर किसी और तरीके से मन बहलाएंगे. तकरीबन सवा अरब आबादी का अपना देश अब इस हालत में नहीं है कि मूर्खों के मनोरंजन का मैदान बना रहे.’’ मैं राम अवतार को अब तक नासम झ और मूर्ख ही सम झ रहा था, लेकिन उस की यह बात सुन कर मु झे तो बहुत शर्म आई. क्यों न आती, मैं 7 बच्चों का पिता जो ठहरा.

मासूम बच्चों पर पड़ता पारिवारिक झगड़ों का असर

पटना के फतुहा हाई स्कूल की टीचर मनीषा गोस्वामी की मौत के बाद पुलिस ने उस के पति रवि गोस्वामी को तो गिरफ्तार कर लिया, पर ससुराल के बाकी आरोपी फरार हो गए और वे मनीषा की बेटियों 2 साल की अंतरा और 10 महीने की विशाखा को भी साथ ले गए. मनीषा के भाई मनीष ने बताया कि मनीषा नौकरी करना चाहती थी, पर रवि मना करता था. यहां तक कि मनीषा को मायके भी नहीं जाने देता था. इस बात को ले कर रवि और मनीषा के बीच आएदिन झगड़ा होता था.

गत 13 सितंबर को जब मनीषा मायके जाने की जिद पर अड़ गई, तो रवि ने उसे तीसरे माले से धक्का दे दिया, जिस से उस की मौत हो गई. जबकि रवि ने पुलिस को बताया कि मनीषा मायके जाने की जिद कर रही थी. जब उस ने मना किया तो मनीषा ने खुद ही छत से छलांग लगा दी.

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मनीषा की मौत हो गई. उस के पति रवि को पुलिस ने जेल भेज दिया. पुलिस और अदालत अपनीअपनी रफ्तार से काम करती रहेंगी. साल दर साल पुलिस जांच चलती रहेगी और अदालत में तारीख दर तारीख पड़ती रहेगी. इन सब के बीच उन दोनों बच्चों का क्या होगा? इस सवाल पर कानून हमेशा की तरह खामोश है. उन बच्चों की जिंदगी कैसे चलेगी, जिन्हें पता तक नहीं है कि उन के साथ कितना बड़ा हादसा हुआ है? उन के नानानानी, मामामामी आदि कब तक उन का खयाल रखें? उन का पालनपोषण और पढ़ाईलिखाई का क्या होगा? ऐसे कई सवाल हैं, जिन के जवाब न समाज के पास हैं और न ही कानून की मोटीमोटी किताबों में.

मनोविज्ञानी अजय मिश्रा कहते हैं कि परिवार और मातापिता के झगड़ों के बीच बच्चे पिसते ही नहीं, बल्कि घुटते भी रहते हैं. हजारों ऐसे मामले अदालतों में चल रहे हैं और बच्चे सहमे और घुटते रहते हैं. एक वाकेआ के बारे में बताते हुए वे कहते हैं कि रांची के एक पतिपत्नी की लड़ाई का मामला उन के पास आया था. घर वाले दोनों के झगड़े से तंग आ कर दोनों को काउंसलिंग के लिए मेरे पास लाए थे. उन के 2 बच्चे भी उन के साथ आए थे.

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सभी से बात करने के बाद जब बच्चों से पूछा गया कि घर में कौन ज्यादा झगड़ा करता है, तो इस सवाल को सुन कर दोनों बच्चे सहम गए और अपने मातापिता को देखने लगे. बच्चों को दूसरे कमरे में ले जा कर पूछा तो 8 साल के बच्चे ने बताया कि मम्मी और पापा हमेशा लड़ाई करते हैं.

लड़ाई करने के बाद हम से पूछते हैं कि बताओ तो कौन पहले झगड़ा करता है? मम्मी पूछती हैं कि पापा ज्यादा झगड़ा करते हैं न? पापा पूछते हैं कि मम्मी पहले लड़ाई की शुरुआत करती हैं न? हम क्या बोलेंगे? हमेशा दोनों लड़ाई करते हैं. लड़ाई करने के बाद दोनों सो जाते हैं और उस के बाद मुझे और मेरी बहन को ब्रैड या बिस्कुट खा कर सोना पड़ता है. कई बार तो ऐसा होता है कि मम्मीपापा के बीच 6-7 दिनों तक बोलचाल बंद रहती है और हमें स्कूल नहीं भेजा जाता है. मम्मी खाना भी ठीक से नहीं बनाती हैं.

पुलिस औफिसर आर.के. दुबे कहते हैं कि मातापिता अपने बच्चों की नजरों में हीरो होते हैं. उन की नजरों में वे दुनिया के सब से बेहतरीन इनसान होते हैं. ऐसे में उन के आपस में लड़ने से बच्चों के मन में बनी अपने मातापिता की इमेज गिरती है, जिस से बच्चों को बहुत तकलीफ होती है. उस तकलीफ को बच्चे बयां नहीं कर पाते और मन ही मन घुटते रहते हैं. इस से उन का मानसिक और शारीरिक विकास बाधित होता है. जिस घर में लड़ाई ज्यादा होती है, उस घर के ज्यादातर बच्चे मानसिक बीमारी और डिप्रैशन के शिकार होते हैं. कई बच्चे तो गुस्सैल स्वभाव और अपराधी बन जाते हैं.

मातापिता की लड़ाई से भौचक बच्चे

मातापिता के झगड़े का सीधा असर बच्चों पर होता है. सब से ज्यादा नुकसान वही उठाते हैं. पटना हाई कोर्ट के वकील अनिल कुमार सिंह बताते हैं कि पतिपत्नी झगड़ा करने के बाद बच्चों की नजरों में खुद को सही साबित करने के लिए एकदूसरे के खिलाफ उन में जहर भरते हैं. लड़ाई के बाद मां अपने बच्चों से कहती है कि उन के पापा ही गंदे हैं. हमेशा लड़ाई करते हैं. पापा से बात नहीं करना वरना तुम्हें भी पीटेंगे. वहीं पिता अपने बच्चों को समझाता है कि उन की मम्मी ही लड़ाई की शुरुआत करती है. उन की मम्मी गंदी है. इस तरह की बातें सुन कर बच्चे दुविधा में पड़ जाते हैं. वे समझ नहीं पाते हैं कि दुनिया के सब से अच्छे उन के मातापिता हैं और वही दोनों एकदूसरे को बुरा ठहरा रहे हैं.

तलाक के बाद सिसकते बच्चे

पटना सिविल कोर्ट के सीनियर वकील उपेंद्र प्रसाद कहते हैं कि मातापिता के तलाक के बाद सब से ज्यादा चुनौती का सामना उन के बच्चों को ही करना पड़ता है. कई केसेज में देखा गया है कि तलाक के मुकदमे में पतिपत्नी दोनों बच्चों को अपने पास रखने की जिद करते हैं. दोनों पक्ष अदालत से बारबार गुहार लगाते हैं कि बच्चों को उन के पास रहने दिया जाए. मां कहती है कि बच्चे पिता के पास नहीं रह सकेंगे, जबकि पिता यह दावा करता है कि वही बच्चों की बेहतर परवरिश कर सकता है.

कई बार अदालत दोनों के पास कुछकुछ समय तक बच्चों को रहने का फैसला सुनाती है. ऐसे में बच्चे मातापिता से मिलते तो रहते हैं, लेकिन उन्हें उन का सच्चा प्यार नहीं मिल पाता है. मां खुद को बेहतर साबित करने के चक्कर में बच्चों को नएनए खिलौने और कपड़े देती है, तो पिता उस से बेहतर और कीमती चीज दे कर बच्चों की नजरों में अच्छा पिता बनने की कोशिश करता है. अपनेअपने अहं में डूबे मातापिता यह नहीं समझ पाते हैं कि बच्चों को असली खुशी दोनों के साथ रहने से मिलती है. अलगअलग रह कर दोनों से मिलने और महंगे से महंगे गिफ्ट्स देने से भी उन के मासूम मन को खुशी नहीं मिल सकती.

परिवार के झगड़ों के बीच लाचार बच्चे

संयुक्त परिवार के झगड़ों में सब से ज्यादा बच्चे ही पीडि़त होते हैं. वे अपने मातापिता को अपनों से ही लड़तेझगड़ते और पुलिसकचहरी करते देखते हैं. उन्हें यह समझ नहीं आता है कि उन के पिता और चाचा जो कभी साथसाथ रहते थे, आज आपस में लड़ाई क्यों कर रहे हैं? किस बात को ले कर घर के लोग एकदूसरे के दुश्मन बन गए हैं?

परिवार मामलों की वकील सुनीता वर्मा एक केस का जिक्र करते हुए बताती हैं कि पटना के एक परिवार के भाइयों के बीच शुरू हुआ घरेलू झगड़ा मारपीट और पुलिस तक जा पहुंचा. एक भाई ने एफआईआर में भाई और भाभी के साथसाथ उन के 10 साल के बेटे को भी मारपीट करने का आरोपी बना दिया. मामला 6 सालों से कोर्ट में चल रहा है और 10 साल का बच्चा 16 साल का युवा बन गया है. उस के मन में आज भी अपने चाचा के प्रति इतना गुस्सा है कि अकसर कहता है कि कभी न कभी चाचा की पिटाई जरूर करेगा.

इस मामले से साफ हो जाता है कि बड़े झगड़ों और केस कर के अपनेअपने काम में मसरूफ हो जाते हैं, लेकिन मासूमों के मन पर वे सदमे की छाप छोड़ देते हैं और उन्हें गुस्सैल बना देते हैं.

पिता के जेल जाने पर घुटते

किसी भी अदालत के कैंपस में जाने पर पुलिस वालों, कैदियों, अपराधियों, वकीलों और जजों की भीड़ के बीच कई औरतें और उन के साथ कई बच्चे दिख जाएंगे. बच्चे कभी अपने पिता के हाथों में लगी हथकड़ी देखते हैं, कभी पुलिस वाले को तो कभी अपनी मां के चेहरे को देखते हैं.पटना सिविल कोर्ट के वकील सुबोध गोस्वामी बताते हैं कि पिता को हथकड़ी में जकड़े देख कर मासूम बच्चे के दिमाग पर क्या गुजरती होगी, इस का अंदाजा लगाना मुश्किल है. 10-12 साल तक के बच्चे को तो पता ही नहीं चल पाता है कि उस के पिता ने क्या गुनाह किया है और उन्हें हथकड़ी से बांध कर क्यों रखा गया है? वह बुत बना सभी चेहरों को निहारता रहता है. मां के रोने पर उस के साथ रोने लगता है. सब से ज्यादा तकलीफदेह हालत तो उस मां की होती है जब उस का मासूम बच्चा उस से पूछता है कि उस के पिता उन के साथ घर में क्यों नहीं रहते हैं? पिता को पुलिस वालों ने हथकड़ी से क्यों बांध रखा है? वे घर कब आएंगे? उन्हें जेल में क्यों रखा गया है?  

बच्चों पर होने वाला बुरा असर

– बच्चे खामोश हो जाते हैं. गुमसुम से रहते हैं. किसी से मिलनेजुलने से कतरातेघबराते हैं.

– उन्हें नींद न आने की बीमारी हो जाती है. सपने में मांबाप का झगड़ालू चेहरा नजर आता है.

– कई बच्चे नशे की गिरफ्त में फंस जाते हैं.

– वे झगड़ालू, गुस्सैल और चिड़चिड़े हो जाते हैं.

– अपराध की फिसलन भरी राह पर चल पड़ते हैं.

– पढ़ाईलिखाई पर बुरा असर पड़ता है.

– डिप्रैशन का शिकार हो जाते हैं.

– दिमागी और जिस्मानी ग्रोथ तक रुक सकती

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