लेखक- प्रदीप नील
अजीब सा नजारा था. अधेड़ उम्र के एक आदमी को दूसरा आदमी भरी पंचायत में जूते मार रहा था, लेकिन खाने वाला हंसे जा रहा था. वहीं पास में सिर झुकाए बैठी एक औरत के चेहरे पर जरूर दुख के भाव थे, लेकिन भीड़ को उस में भी मजा आ रहा था. पता चला कि जूते खाने वाला आदमी 4 बच्चों का बाप था, जो सिर झुकाए बैठी आधा दर्जन बच्चों की मां को ले कर भाग गया था. बाद में दोनों पकड़े भी गए थे. अब इतना तो आप भी सम झ गए होंगे कि जूते मारने वाला कौन था? ‘‘यह आदमी जूते खा कर भी शर्मिंदा होने के बजाय हंस क्यों रहा है?’’ मैं ने वहां खड़े राम अवतार से पूछा. राम अवतार ने कहा, ‘‘हंस रहा है, क्योंकि मर्द को दर्द नहीं होता.
यह मर्द का बच्चा है.’’ मैं ने कहा, ‘‘इस उम्र में की गई इस बेवकूफी को तुम मर्दानगी कहते हो?’’ राम अवतार ने मु झे हिकारत भरी नजरों से देखा और बोला, ‘‘बेवकूफी करते हैं नादान उम्र के लड़के, जो यह भी नहीं सोचते कि बाद में अपनी ‘बूआ’ को रोटी कहां से खिलाएगा. ‘‘यह मर्द का बच्चा नहीं तो और क्या है, जो अपने और महबूबा दोनों के मिला कर कुल जमा 10 बच्चों का कुनबा पालने जा रहा था.’’ राम अवतार की बात तो ठीक थी. यहां लोग बच्चे पैदा करने में तो मर्दानगी दिखा देते हैं, लेकिन ढंग से पाल नहीं पाते, तो खुद के बजाय सरकार को निकम्मी बताने लगते हैं. मु झे याद आया, जब हमारे पड़ोस में रहने वाले राजू की बीवी मर गई थी, तो अपने 8 बच्चों की देखभाल के लिए उस ने उस विधवा से शादी कर ली थी, जो राजू से आधी मर्द थी, यानी 4 बच्चों की मां थी. जैसा कि अपने देश में आमतौर पर होता है, 2 साल में 2 बच्चे… उन से भी हो गए.
ये भी पढ़ें- शेष चिह्न – भाग 1 : निधि की क्या मजबूरी थी
वही राजू एक दिन काम पर गया हुआ था, तो उस की बीवी का फोन आया, जो घबराई हुई आवाज में कह रही थी, ‘‘जी, जल्दी से घर आ जाओ, क्योंकि आप के बच्चे मेरे बच्चों को पीट रहे हैं.’’ राजू ने कहा, ‘‘काम छोड़ कर नहीं आ सकता. किसी तरह काम चला लो, आते ही ठुकाई करूंगा उन की.’’ थोड़ी देर बाद फिर फोन आया, ‘‘किसी तरह आ सको, तो आ जाओ. इस बार मेरे बच्चे तुम्हारे बच्चों को पीट रहे हैं.’’ राजू झल्लाया, ‘‘नहीं आ सकता. लेकिन तुम चिंता मत करो, घर आ कर उन की भी ठुकाई मैं ही कर दूंगा.’’ अभी 10 मिनट भी नहीं बीते थे कि फोन फिर बज उठा. राजू चिल्लाया, ‘‘अब क्या आफत आ गई?’’ उधर से रोती हुई उस की बीवी कह रही थी, ‘‘जी, मामला इतना गंभीर है कि इस बार तो तुम्हें आना ही पड़ेगा, क्योंकि इस बार तुम्हारे बच्चे और मेरे बच्चे मिल कर हम दोनों के बच्चों को पीट रहे हैं.’’ और बेचारे राजू को नौकरी छोड़ कर आना पड़ा. इस हिसाब से तो जूते खाने वाला वाकई मर्द का बच्चा था,
जो भरी पंचायत में हंसे जा रहा था. मैं ने राम अवतार से पूछा, ‘‘यार, ये दोनों पकड़े कैसे गए?’’ राम अवतार ने जूते मारने वाले की तरफ इशारा करते हुए पूरी नफरत के साथ कहा, ‘‘इस घसियारे ने पुलिस को शिकायत जो कर दी थी.’’ सुन कर मु झे बहुत अच्छा लगा. लोग तो 5-7 साल बाद ही बीवी से तंग आ जाते हैं और दहेज की मांग कर के उसे जला देते हैं या जहर दे कर मार देते हैं. इधर यह पति है कि 20 साल से न केवल साथ रह रहा है, बल्कि सच्चे आशिक की तरह अपनी बीवी के बिना नहीं रह पाया. मु झे उस औरत से बहुत नफरत होने लगी. मैं ने राम अवतार से पूछा, ‘‘जूते इस पापिन को क्यों नहीं मारते, जो देवता जैसे अपने पति को छोड़ कर भागी?’’ ‘‘देवता…’’ राम अवतार हंसने लगा, ‘‘यह देवता हर शाम सोमरस चढ़ा कर आता था और दिनभर खटने वाली अपनी इसी बीवी को जूतों का प्रसाद दिया करता था. बेचारी भागती नहीं, तो और क्या करती?’’ मैं और भी ज्यादा हैरान रह गया. मैं ने पूछा, ‘‘जब यह अपनी बीवी से इतनी नफरत करता है,
ये भी पढ़ें- चॉकलेट चाचा : रूपल ने पार्क में क्या देखा
तो उस के भागने पर चैन की सांस क्यों नहीं ली कि चलो पीछा छूटा?’’ राम अवतार ने किसी बाबा की तरह चेहरा लटका लिया और कहने लगा, ‘‘हमारी परंपरा कहती है कि बीवी को सारी उम्र दुख दे कर मारने का हक पति का है, जिसे खुद ऊपर वाला भी नहीं छीन सकता. इस सब के बावजूद यह शायद चुप भी रह जाता, अगर यह घर से गहने और रुपए ले कर न भागी होती.’’ ‘‘गहने और रुपए? यह औरत तो कई साल से गरीबी की रेखा से नीचे रह रही थी. उस ने सर्वे करने वालों को कच्चा मकान तो दिखा दिया, गहने क्यों नहीं दिखाए?’’ राम अवतार मुंह पर हाथ रख कर हंसते हुए बोला, ‘‘गहने तो भारतीय औरत की लाज होते हैं. अब तुम्हारी भ्रष्ट व्यवस्था क्या चाहती है कि इज्जतदार औरत की इज्जत भी उतार ली जाए या उस की इसलिए मदद न की जाए कि उस के पास इज्जत है?’’ राम अवतार के भाषण से बचने के लिए मैं ने पूछा, ‘‘पंचायत ने यह कहां का इंसाफ किया कि इतने कोमल अपराध पर जूते मारने की कठोर सजा सुना दी?’’ राम अवतार हंसा और बोला, ‘‘आंख के बदले आंख, जूते के बदले जूता.’’ मैं सम झ नहीं पाया कि यह नियम यहां कैसे लागू हो रहा है? राम अवतार चिढ़ गया, ‘
‘किस दुनिया के जानवर हो, जो इतना भी नहीं जानते कि औरत तो पैर की जूती होती है. ‘‘ध्यान से देखो, अपना मर्द बच्चा जूते से नहीं, बल्कि सरपंचनी की जूती से पिट रहा है, इसलिए मैं ने कहा कि जूते के बदले जूता.’’ मैं ने कहा, ‘‘यह इंसाफ तो अब सम झ आ गया, लेकिन एक लाख रुपए का जुर्माना भी तो लगाया जा रहा है.’’ राम अवतार ने भूल सुधारी, ‘‘इसे जुर्माना नहीं, मनोरंजन टैक्स कहते हैं.’’ मैं ने हैरान हो कर कहा, ‘‘इतना ज्यादा मनोरंजन टैक्स?’’ राम अवतार ने कहा, ‘‘हां, यह टैक्स होता ही सब से ज्यादा है. अपने शहर के सारे सिनेमाघर इसी चक्कर में तो बंद हो गए.’’ मैं ने पूछा, ‘‘यार, अपना मर्द बच्चा कितनी देर से पिट रहा है, फिर भी वह हंसे जा रहा है. इस ड्रामे का अंत कब होगा?’’ राम अवतार ने कहा, ‘‘अंत करवाना हो, तो आधा मिनट लगेगा. आखिर में पंचायत इस औरत को सिर्फ एक जूता मारने को कहेगी और अपना यह मर्द बच्चा जूते की हलकी सी मार से भी रो पड़ेगा.’’
मैं ने राम अवतार से पूछा, ‘‘ऐसा क्यों?’’ उस ने कहा, ‘‘मर्द है तो क्या हुआ, दिल पर चोट लगने पर तो हर कोई रो देता है.’’ मैं ने उस से आखिरी सवाल पूछा, ‘‘फिर वही काम कर के यह ड्रामा बंद क्यों नहीं कर देते?’’ राम अवतार मुंह लटका कर बोला, ‘‘भीड़ में कामकाजी आदमी एक भी नहीं है, जितने हैं सारे निठल्ले हैं. इन को यहीं उल झाए रख कर मनोरंजन करा दिया जाए तो ठीक, वरना ये घर जा कर किसी और तरीके से मन बहलाएंगे. तकरीबन सवा अरब आबादी का अपना देश अब इस हालत में नहीं है कि मूर्खों के मनोरंजन का मैदान बना रहे.’’ मैं राम अवतार को अब तक नासम झ और मूर्ख ही सम झ रहा था, लेकिन उस की यह बात सुन कर मु झे तो बहुत शर्म आई. क्यों न आती, मैं 7 बच्चों का पिता जो ठहरा.