Jagdeep Dhankhar : राज्यसभा अध्यक्ष व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के विरुद्ध संसद में पहली बार अविश्वास प्रस्ताव का लाना चाहे कोई अंतिम लक्ष्य पूरा न कर पाए, मगर इस ने अध्यक्ष की सरकार की चाटुकारिता करने की पोल अवश्य खोली. पूजापाठी और वर्णव्यवस्था की हिमायती वर्तमान सरकार को अंधसमर्थन देने में संसद के कुछ सदस्य खूब बढ़चढ़ कर बोल रहे हैं, यहां तक कि कुछ को तो अपने संवैधानिक पद की गरिमा का भी खयाल नहीं रहता. ऐसा लगता है कि देश में लोकतंत्र नहीं, पौराणिक तंत्र चल रहा है जिस में राजा ऋषिमुनि के आने पर अपने स्थान से उठ कर उन की आवभगत में लग जाता था.

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ पर आरोप यही है कि वे राज्यसभा के अध्यक्ष होने के नाते राज्यसभा में सरकार का बचाव हर संभव तरीके से करते हैं. यही नहीं, राज्यसभा से बाहर उन्हें जहां मौका मिलता है वे कट्टरवादी सोच के प्रमुख वक्ता बन जाते हैं. उन के प्रशंसात्मक बयानों को एकत्र किया जाए तो अखंड सप्ताह चलने वाले माता के 2 जागरणों जैसा बन जाएगा जिस में बारबार जयजयकारा लगाया जाता है.

पूर्व कांग्रेसी जगदीप धनखड़ आज उपराष्ट्रपति के संवैधानिक पद पर बैठे हैं और उन्हें पद व संविधान की मर्यादा की रक्षा करनी चाहिए पर जिस तरह का व्यवहार वे हर सैशन में करते रहे हैं, उस से विपक्षी दलों का एक न एक दिन उखड़ना स्वाभाविक ही था. यह पक्का था कि अगर इस पर बहस होती तो प्रस्ताव भारी मतों से गिर जाता क्योंकि भारतीय जनता पार्टी और किसी बात में माहिर हो या न, लोगों को मनाने, बहलाने और फुसलाने के साथसाथ डरानेधमकाने के सभी पौराणिक ढंग अच्छी तरह से जानती है.

भागवत महापुराण में सगर चरित्र वर्णन करते हुए शुकदेव कहते हैं कि चक्रवर्ती सम्राट सगर ने और्व ऋषि के कहने पर अश्वमेध यज्ञ किया तो उस का छोड़ा गया घोड़ा जब कहीं नहीं मिला तो सगर के पुत्रों ने सारी पृथ्वी खोद डाली और कपिल मुनि के पास वह मिला. कपिल मुनि का तिरस्कार होने पर उन के शिष्य सगर राजकुमारों को जैसे जला बैठे थे, आज कितने ही संवैधानिक पद पर बैठे लोग उस समय के उसी तरह से विपक्षियों को जलाने के लिए तैयार बैठे हैं.

सगर के एक भतीजे ने कपिल मुनि के पास जा कर कहा, ‘‘भगवन, आप अजन्मे ब्रह्माजी से परे हैं, आप एक रस हैं, ज्ञानधन हैं, आप सनातन आत्मा हैं. ज्ञान का उपदेश देने के लिए आप ने यह शरीर धारण कर रखा है. यह संसार आप की माया की करामात है.’’

आज जब जज, विचारक, टीवी एंकर, पत्रकार, लेखक इस तरह की भाषा का इस्तेमाल करने लगते हैं तो साफ हो जाता है कि उन की पढ़ाई चाहे देशविदेश के बड़े विश्वविद्यालयों में हुई हो लेकिन  वे असल में पौराणिक सोच के गुलाम हैं. उन के खिलाफ आवाज उठाना लोकतंत्र के लिए जरूरी है.

 

 

 

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