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गायत्री की खूनी जिद: कैसे बलि का बकरा बन गया संजीव

उत्तर प्रदेश के जिला फिरोजाबाद में एक कस्बा है एटा इस कस्बे में थाना भी है. एटा कस्बे से कुछ दूर एक गांव है  नगलाचूड़. सोनेलाल अपने परिवार के साथ इसी गांव में रहता था. सोनेलाल के 3 बेटे थे गोपाल, कुलदीप और संजीव. इन के अलावा 2 बेटियां भी थीं. सोनेलाल के पास खेती की जमीन थी, जिस से उस के घरपरिवार का गुजारा बडे़ आराम से हो जाता था. सोनेलाल के बड़े बेटे गोपाल और एक बेटी की शादी हो चुकी थी.

शादी के बाद गोपाल अपने परिवार के साथ काम के लिए पंजाब गया था. वहां से वह कभीकभी ही घर आता था. सोनेलाल की एक बेटी और बेटा कुलदीप अपनी पढ़ाई कर रहे थे. जबकि संदीप अपने पिता के साथ खेती के कामों में हाथ बंटाता था. घर की व्यवस्था सोनेलाल की पत्नी सरला के जिम्मे थी. सरला चाहती थी कि संजीव का भी घर बस जाए इसलिए वह 24 साल के संजीव के लिए कोई लड़की देखने लगी.

इसी सिलसिले में रिजौर निवासी छबिराम नाम के एक रिश्तेदार ने रिजौर के ही रामबाबू शाक्य की बेटी गायत्री के बारे में बताया. छबिराम की मार्फत सोनेलाल ने रामबाबू से बात की.

उन्हें रामबाबू की बेटी गायत्री अपने बेटे संजीव के लिए सही लगी. दोनों ओर से चली बातचीत के बाद संजीव और गायत्री का रिश्ता तय कर के जल्द ही दोनों की शादी कर दी गई. यह लगभग डेढ़ साल पहले की बात है.

खूबसूरत गायत्री से शादी कर के संजीव ही नहीं बल्कि उस के घर वाले भी बहुत खुश थे. लेकिन यह कोई नहीं जानता था कि आगे चल कर यही खूबसूरत दुलहन कितनी बड़ी मुसीबत बनने वाली है.

शादी के बाद गायत्री की शिकायत

गायत्री ससुराल आ तो गई थी पर उस के तेवर किसी की समझ में नहीं आ रहे थे. संजीव की मां सरला ने सोचा था कि बहू घर आ जाएगी तो सब कुछ ठीक हो जाएगा. घर की जिम्मेदारी बहू के हवाले कर के वह आराम करेगी, क्योंकि बड़ी बहू शादी के कुछ दिनों बाद ही गोपाल के साथ पंजाब चली गई थी. पर सरला का यह सपना अधूरा रहा. क्योंकि गायत्री पूरे दिन अपने कमरे में बैठी टीवी देखती रहती थी.

टीवी से फुरसत मिल जाती तो वह मोबाइल पर लग जाती. वह काफीकाफी देर तक किसी से बातें करती रहती थी. कुछ दिन तक तो सरला ने गायत्री से कुछ नहीं कहा. लेकिन जब पगफेरे के लिए उस का भाई टीटू उसे लेने आया तो सरला ने टीटू से कहा, ‘‘अपनी बहन को समझाओ. वह ससुराल में रहने का सलीका सीखे. यह इस घर की बहू है, इसे यहां बहू की तरह ही रहना होगा.’’

बहन की शिकायत सुन कर टीटू के माथे पर शिकन आ गई. उस ने घूर कर गायत्री की तरफ देखा लेकिन उस से कहा कुछ नहीं. टीटू के पिता बीमार रहते थे, इसलिए वह ही सब्जी की दुकान चलाता था. भाई के साथ गायत्री अपने मायके आ गई. घर पहुंचते ही टीटू ने अपनी मां रामश्री से कहा, ‘‘संभालो अपनी लाडली को, यह हमें जीने नहीं देगी.’’

गायत्री अपने कमरे में चली गई. इस के बाद रामश्री और टीटू देर तक बातें करते रहे. रामबाबू कुछ देर बाद घर आया तो उसे भी पता चल गया कि गायत्री के ससुराल वाले उस से खुश नहीं हैं. वह गुस्से में बोला, ‘‘हम ने तो सोचा था कि गायत्री शादी के बाद सुधर जाएगी, पर लगता है ये लड़की उन लोगों को भी नहीं जीने देगी.’’

दरअसल शादी के पहले से ही रामबाबू के घर में तनाव था. इस की वजह यह थी कि गायत्री संजीव से शादी करने से इनकार कर रही थी. पर घर वालों के सामने उस की एक नहीं चली. रामबाबू और रामश्री इस बात को ले कर बहुत चिंतित थे कि कहीं गायत्री की वजह से वह लोग किसी नई परेशानी में न पड़ जाएं.
रिजौर में ही रामबाबू के घर से कुछ दूरी पर किशनलाल का घर था. उस के बेटे रंजीत ने भी अपने घर वालों को परेशान कर रखा था. यूं तो किशनलाल के 4 बेटे थे, जिन में से 3 पढ़ेलिखे थे पर छोटे बेटे रंजीत का पढ़ाई में मन नहीं लगता था. वह सारे दिन गांव में अपने दोस्तों के साथ गपशप करता रहता था. वह अपने पिता के खेती के काम में भी हाथ नहीं बंटाता था.

रंजीत की जिंदगी में आई गायत्री

एक दिन अचानक रंजीत की नजर गायत्री से टकराई और वह उस की ओर खिंचता चला गया. वह उस से बात करने के लिए मौके की तलाश में था. एक दिन मोबाइल की दुकान पर उसे मौका मिल गया, जहां गायत्री अपना मोबाइल रीचार्ज कराने आई थी. उस से बात की शुरुआत करने का कोई बहाना चाहिए था. लिहाजा उस ने गायत्री से कहा, ‘‘गायत्री, देखें तुम्हारा मोबाइल किस कंपनी का है.’’

गायत्री ने उस के हाथ में मोबाइल दे दिया. रंजीत हाथ में मोबाइल ले कर देखते हुए बोला, ‘‘यह मोबाइल तो तुम्हारी तरह ही स्मार्ट है.’’

गायत्री ने उसे घूर कर देखा फिर खिलखिला कर हंसते हुए बोली, ‘‘तुम भी काफी स्मार्ट लगते हो.’’
सुन कर रंजीत की हिम्मत और बढ़ गई. गायत्री वहां से चलने लगी तो रंजीत ने कहा, ‘‘अगर आप बुरा न मानो तो मैं बाइक से तुम्हें तुम्हारे घर छोड़ दूंगा.’’

गायत्री मुसकराई और उस की बाइक पर बैठ गई. रंजीत बहुत खुश हुआ. पहली बार किसी लड़की ने उस की दोस्ती कबूल की थी.

‘‘रंजीत वैसे तुम आजकल क्या कर रहे हो.’’ गायत्री ने पूछा.

‘‘इंटरमीडिएट पास कर के घर पर ही मौज कर रहा हूं. वैसे भी तुम्हें तो पता ही है कि घर में किसी चीज की कमी तो है नहीं. जब जिम्मेदारी आ जाएगी, देखा जाएगा’’ रंजीत बोला, ‘‘गायत्री, क्या तुम अपना मोबाइल नंबर दे सकती हो?’’

‘‘हांहां क्यों नहीं, तुम मुझे अपना मोबाइल नंबर बताओ, मैं मिस्ड काल कर देती हूं.’’ गायत्री बिना किसी झिझक के बोली. बाइक चलातेचलाते रंजीत ने उसे अपना मोबाइल नंबर बता दिया. गायत्री ने तुरंत उस के नंबर पर मिस्ड काल दे दी. गायत्री ने अपने घर से कुछ पहले ही मोटरसाइकिल रुकवा ली और बाइक से उतर कर पैदल अपने घर चली गई ताकि कोई घर वाला उसे बाइक पर बैठे न देख ले. उसे उतार कर रंजीत भी मुसकराता हुआ अपने घर चला गया.

अगले दिन रंजीत ने अपने मोबाइल पर किसी अनजान नंबर की घंटी सुनी. जैसे ही उस ने हैलो कहा तो दूसरी तरफ से लड़की की आवाज सुनाई दी. वह बोला, ‘‘कौन, किस से बात करनी है.’’
‘‘ओह हम ने तो सोचा था कि तुम काफी स्मार्ट हो, पर तुम तो जीरो निकले मि. स्मार्ट.’’ कहते हुए लड़की हंसने लगी.

रंजीत समझ गया कि वह गायत्री है. रंजीत मन ही मन बहुत खुश हुआ. वह सफाई देते हुए वह बोला, ‘‘सौरी गायत्री, मैं समझा किसी और का फोन है. अब मैं तुम्हारा फोन नंबर मोबाइल में सेव कर लूंगा.’’
‘‘हां, समझदार दिखते हो. सुनो, आज मुझे 2 घंटे के बाद एटा जाना है. तुम मोड़ पर मिलो.’’ गायत्री ने कहा.
रंजीत निर्धारित समय से पहले ही वहां पहुंच गया. उस के कुछ देर बाद गायत्री भी आ गई. उस दिन से रंजीत और गायत्री के बीच नजदीकियां बढ़ने लगीं. दोनों ही लोगों की नजरों से छिप कर मिलने लगे. लेकिन लाख छिपाने पर भी ऐसी बातें छिप नहीं पातीं. गांव के किसी आदमी ने गायत्री को रंजीत की बाइक पर बैठे देखा तो उस ने रामबाबू को यह बात बता दी.

घर वालों की परेशानी बढ़ाई गायत्री ने

रामबाबू परेशान हो गया. घर आ कर उस ने गायत्री से पूछताछ की तो उस ने इस बात से इनकार कर दिया. रामबाबू ने सोचा कि शायद पड़ोसी को कोई गलतफहमी हो गई होगी.

लेकिन अब गायत्री सतर्क हो गई थी. उस का और रंजीत का प्यार परवान चढ़ने लगा था. अपनी मुलाकातों के दौरान प्रेमी युगल भविष्य के सपने बुनने लगा था. हालांकि दोनों की जाति एक थी पर रंजीत न तो कोई कामधंधा करता था और न ही उस की छवि अच्छी थी. गायत्री अच्छी तरह जानती थी कि घर वाले उस के इस रिश्ते को स्वीकार नहीं करेंगे.

दूसरी ओर दोनों के इश्क की खबरें लोगों तक पहुंचने लगी थीं. लोग दोनों के बारे में खुसुरफुसुर करने लगे. कई लोगों ने रामबाबू से शिकायत की कि उसे अपनी बेटी पर कंट्रोल करना चाहिए. लोगों की बातें सुन कर वह परेशान हो गया था. जबकि गायत्री यही कहती कि लोगों को तो बातें बनाने की आदत होती है. फालतू में उसे बदनाम कर रहे हैं.

लेकिन एक दिन गायत्री और रंजीत ने रात को मिलने का फैसला किया. गायत्री के घर के सभी लोग सो चुके थे. देर रात को रंजीत उस के यहां पहुंच गया. गायत्री बाहरी गेट खोल कर उसे अंदर ले आई, पर वह दिन उन की मुलाकात के लिए ठीक नहीं रहा.

उस रात गायत्री के भाई टीटू की तबीयत ठीक नहीं थी. वह टौयलेट जाने को उठा तो देखा, मेन गेट की कुंडी खुली हुई है. उसे कुछ शक हुआ तो उस ने गायत्री के कमरे में झांक कर देखा, गायत्री वहां नहीं थी. वह टौयलेट जाने के बजाए तेजी से गेट खोल कर बाहर आया. तभी कोई व्यक्ति छत से कूद कर भाग गया. टीटू भाग कर अंदर आया तो देखा, गायत्री कमरे में थी.

‘‘तू कहां गई थी?’’ टीटू ने उस से पूछा.

‘‘मैं तो यहीं थी भैया, क्यों क्या हुआ आप कुछ परेशान से दिख रहे हैं?’’ गायत्री ने कहा.

टीटू की समझ में नहीं आ रहा था कि सच क्या है. कुछ देर पहले गायत्री कमरे में नहीं थी. किसी के छत से कूदने की आवाज भी उस ने सुनी थी, पर देखा किसी को नहीं था. क्या उसे भ्रम हुआ था. पर बाहरी दरवाजे की कुंडी भी खुली हुई थी. उस की समझ में कुछ नहीं आ रहा था. वह वहां से चुपचाप चला गया.

गुपचुप खेला जाने लगा खेल

गायत्री ने राहत की सांस ली. वह जानती थी कि अगर भाई ने रंजीत को देख लिया होता तो उस की खैर नहीं थी. अगले दिन उस ने रंजीत को फोन पर सारी बात बताई और सतर्क रहने को कह दिया. इधर टीटू को लगने लगा था कि कुछ तो है जो वह देख नहीं पा रहा, जबकि लोग देख रहे हैं. बहन पर उस का शक पक्का होने लगा था.

अब वह गायत्री पर गहरी नहर रखने लगा. गायत्री भी मन ही मन डर गई थी. इधर टीटू ने एक दिन मां से कहा कि वह बहन को ले कर काफी चिंतित है. अगर कोई ऊंचनीच हो गई तो कहीं के नहीं रहेंगे. लेकिन मां ने कहा, ऐसी कोई बात नहीं है, गायत्री ऐसी लड़की नहीं है.

एक दिन टीटू ने खुद गायत्री को रंजीत के साथ देख लिया. वह उस के साथ बाइक पर थी. टीटू जब घर आया तो उस ने देखा गायत्री घर पर ही थी. उस ने उस से पूछा कि अभी कुछ देर पहले वह कहां थी.
गायत्री ने कहा मैं तो अपनी सहेली के घर गई थी. टीटू को लगा कि वह झूठ बोल रही है. लिहाजा उस ने उस की पिटाई कर दी और कहा, ‘‘आइंदा अगर मैं ने तुझे किसी के साथ देखा तो जान से मार दूंगा.’’

मां को भी लगने लगा कि गायत्री कुछ तो गड़बड़ कर रही है. जब देखो तब बाहर भागने की कोशिश करती है. इसलिए मां ने भी उस से कहा, ‘‘आज से तेरा घर से बाहर जाना बंद, अब घर का काम सीख, वरना ससुराल जा कर हमारी बेइज्जती कराएगी.’’

‘‘मैं क्या कोई कैदी हूं मां, जो मुझे बांध कर रखोगी. आखिर मैं ने किया क्या है.’’ गायत्री ने कहा तो टीटू ने उसे कस कर तमाचा जड़ दिया, ‘‘तू क्या समझती है, हम अंधे हैं.’’

गायत्री रोती हुई कमरे में चली गई और उस ने मौका देख कर रंजीत को सारी बात बता दी. उस ने कहा कि जल्दी कुछ सोचो, वरना ये लोग हमें अलग कर देंगे.

अगले दिन टीटू ने रंजीत को रास्ते में रोक कर कहा, ‘‘तू गायत्री का पीछा करना छोड़ दे वरना बुरा होगा.’’ रंजीत ने टीटू को समझाने की कोशिश की कि उसे शायद कोई गलतफहमी हुई है.

गायत्री और रंजीत की हकीकत आई सामने

इधर रंजीत ने प्रेमिका से मिलने का एक उपाय खोज लिया. उस ने कैमिस्ट से नींद की गोलियां खरीद कर गायत्री को देते हुए कहा कि वह रात के खाने में कुछ गोलियां मिला दिया करे. फिर दोनों बेखौफ हो कर मिला करेंगे. गायत्री ने अब रात का खाना बनाने की जिम्मेदारी ले ली. इस के बाद वह जब अपने प्रेमी से मिलने का प्रोग्राम बना लेती तो खाने में नींद की गोलियां मिला देती. पूरा परिवार गोलियों के असर से गहरी नींद में सो जाता लेकिन सुबह जब वे लोग उठते तो सब का सिर भारी होता.

एक दिन गायत्री की मां रामश्री की रात को नींद खुल गई. उस दिन मां ने गायत्री और रंजीत को रंगे हाथों पकड़ लिया. इस पर घर वालों ने गायत्री की पिटाई कर दी. इस के बाद गायत्री के लिए रिश्ते की तलाश होने लगी. आखिर उन्होंने गायत्री की शादी संजीव से कर के राहत की सांस ली. हालांकि गायत्री ने इस शादी का विरोध किया था लेकिन घर वालों ने उस की एक नहीं सुनी थी.

बेटी की शादी के बाद सब निश्चिंत थे, लेकिन शादी के बाद भी गायत्री के नाजायज संबंध रंजीत से बने रहे. एक दिन रंजीत उस की ससुराल भी पहुंच गया. गायत्री ने उसे अपना दूर का रिश्तेदार बताया. ससुराल वालों ने भी मान लिया, लेकिन बाद में दूर के इस रिश्तेदार का कुछ ज्यादा ही आनाजाना होने लगा तो ससुराल वालों ने आपत्ति जताई.

गायत्री नहीं चाहती थी कि यह बात मायके वालों तक जाए. अत: उस ने अब अपना पुराना फारमूला अपनाया. वह ससुरालियों को भी रात के खाने में नींद की गोलियां देने लगी. इस तरह वह ससुराल में भी बेखौफ इश्क लड़ाती रही. गायत्री यह जानती थी कि ऐसा हमेशा नहीं चल सकता.

अब संजीव को भी उस पर शक होने लगा था. उस ने साफ शब्दों में कहा कि अगर अब कभी उस ने रंजीत को घर में देखा तो बुरा होगा. गायत्री पर ससुराल में भी लगाम लगनी शुरू हो गई तो वह परेशान हो उठी. उसे अपना पति ही दुश्मन लगने लगा.

एक दिन गायत्री ने तय किया कि संजीव से छुटकारा पाने के बाद ही वह प्रेमी से बेखौफ मिल सकती है. इस बारे में उसे रंजीत से बात की. दोनों ने तय किया कि संजीव को ठिकाने लगा कर वे कहीं दूर जा कर दुनिया बसा लेंगे.

गायत्री को शादी के डेढ़ साल बाद भी बच्चा नहीं हुआ था. गायत्री ने एक दिन अपनी सास से कहा कि एटा में एक अच्छा डाक्टर है. उस के इलाज से कई औरतों को बच्चा हुआ है. गायत्री ने सास से अपना इलाज उसी डाक्टर से कराने की बात कही. सास ने सोचा, अगर बच्चा हो गया तो गायत्री का मन भी घर में रमने लगेगा. अत: उस ने एटा के डाक्टर से इलाज कराने की इजाजत दे दी. गायत्री को कोई इलाज वगैरह नहीं कराना था, बल्कि यह उस का पति को ठिकाने लगाने का एक षड्यंत्र था.

लिखी जाने लगी हत्या की पटकथा

अब गायत्री का खुराफाती दिमाग काम करने लगा. उस ने पति के नाम मौत का वारंट जारी कर दिया और इस के लिए 13 मई, 2018 का दिन भी तय कर दिया. मौत की इस दस्तक से पूरा परिवार बेखबर था. पूरे घटनाक्रम की कहानी मोबाइल पर तय हो गई थी.

अपने इस काम में रंजीत ने रिजौर के ही रहने वाले अपने दोस्त राजेश उर्फ पप्पू को भी मिला लिया.

13 मई को गायत्री अपने पति संजीव के साथ बाइक नंबर यूपी 83एएल 6985 से एटा के लिए निकली. उस ने प्रेमी रंजीत को अपने एटा जाने की सूचना दे दी. रंजीत अपने दोस्त राजेश के साथ रिजौर से एटा पहुंच गया. इस के बाद न तो बहू और न ही बेटा घर वापस लौटे.

शाम तक जब दोनों घर नहीं लौटे तो पूरा परिवार चिंतित हो गया. उन्होंने एका थाने के थानाप्रभारी जितेंद्र सिंह भदौरिया को सूचना दे दी और अपने सभी रिश्तेदारों से भी फोन द्वारा पूछा. उन्होंने गायत्री के घर वालों को भी बता दिया था.

दोनों का फोन भी स्विच्ड औफ था. रोरो कर घर वालों का बुरा हाल था. इधर मायके वाले परेशान थे कि कहीं गायत्री ने ही तो कुछ नहीं कर डाला. गायत्री और संजीव के गुम होने की सूचना अन्य थानों को भी दे दी गई थी.

18 मई, 2018 को रिजौर के चौकीदार रमेश को किसी ने बताया कि कुरीना दौलतपुर मोड़ के पास जैन फार्महाउस के खेत में एक युवक की लाश पड़ी हुई है. चौकीदार ने तुरंत इस की सूचना रिजौर के थानाप्रभारी जितेंद्र सिंह भदौरिया को दी. थानाप्रभारी तुरंत मौके पर पहुंचे.

उन्हें वहां एक युवक की लाश मिली, जिस की गला रेत कर हत्या की गई थी. मौके पर काफी भीड़ इकट्ठा हो गई थी लेकिन शव को कोई नहीं पहचान पाया. कुछ दूरी पर पुलिस को एक मोबाइल फोन मिला जिस में मिले नंबर पर काल की गई तो पता चला कि मोबाइल रंजीत नाम के व्यक्ति का है. लेकिन उस के परिवार वालों ने जब लाश देखी तो कहा कि वह उन का बेटा नहीं है.

रंजीत और गायत्री की हकीकत आई सामने

जब लाश रंजीत की नहीं थी तो उस का मोबाइल वहां क्यों मिला. यह बात कोई नहीं समझ पा रहा था. इसी बीच सोशल मीडिया पर लाश का फोटो वायरल हो गया तो सोनेलाल ने एका थाने से संपर्क किया. पता चला कि जैन फार्महाउस रिजौर में मिलने वाली लाश उन के बेटे संजीव की है. संजीव के घर वाले समझ गए कि जरूर इस हत्या में गायत्री का हाथ है. उन्होंने रिजौर थानाप्रभारी को सारी बात बता दी.
गायत्री का भाई और पिता भी रिजौर आ गए. उन्हें विश्वास ही नहीं हो रहा था कि गायत्री ऐसा कर सकती है. मौके पर संजीव की बाइक भी बरामद हो गई थी, लेकिन गायत्री का कोई अतापता नहीं था.

रिजौर थानाप्रभारी ने मुखबिरों का जाल फैला दिया. पुलिस को गायत्री और रंजीत के प्रेम संबंधों का भी पता चल चुका था. रंजीत भी घर से गायब था. अत: अब पुलिस उन दोनों की तलाश में लग गई. अगले दिन संजीव की पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ गई. जिसे देख कर पुलिस चौंक गई. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में पाया गया कि युवक ने नशे का सेवन किया था. पूछताछ करने पर पता चला कि संजीव तो नशा करता ही नहीं था.

इसी बीच 18 मई, 2018 को मुखबिर की सूचना पर पुलिस ने प्रेमी युगल को बख्शीपुर तिराहे से गिरफ्तार कर लिया. दोनों किसी वाहन का इंतजार कर रहे थे. थाने ला कर गायत्री और रंजीत से पूछताछ की गई. गायत्री ने बताया कि वह तो रंजीत से प्यार करती थी. उसे जबरन प्रेमी से दूर कर के संजीव के गले बांध दिया गया. इसलिए उस ने उस से छुटकारा पाने का निश्चय कर किया. उस ने बताया कि उस ने रंजीत से पूर्व में शादी कर ली थी लेकिन पुलिस को वह शादी की कोई साक्ष्य नहीं दे पाई.

रंजीत ने भी अपना गुनाह कबूल करते हुए कहा कि पिछले 2-3 सालों से वह और गायत्री एकदूसरे से प्यार करते थे और शादी भी करना चाहते थे लेकिन गायत्री के घर वाले इस के लिए राजी नहीं हुए. गायत्री की शादी के बाद भी वे दोनों अलग नहीं रह पाए और आखिर संजीव को रास्ते से हटाने का फैसला कर लिया.

गायत्री के प्यार की भेंट चढ़ा संजीव

उस दिन जब गायत्री अपने पति के साथ एटा पहुंची तो रास्ते में उस ने बाइक रुकवाई. मौका पा कर वह बोतल में भरे पानी में नींद की गोलियां मिला चुकी थीं. वही पानी उस ने पति संजीव को पीने को दिया. जिस जगह पर बैठ कर उस ने पानी पिया था कुछ ही देर में वह वहीं पर बेहोश हो गया.

तभी रंजीत अपने दोस्त के साथ वहां पहुंच गया. राजेश ने संजीव की बाइक संभाली और वह और गायत्री बेहोश हो चुके संजीव को आटो में डाल कर कुरीला गांव के पास दौलतपुर मोड़ पर ले आए. आटो वाले को पैसे दे कर उन्होंने वापस भेज दिया.

तभी राजेश भी वहां आ गया, फिर वे लोग संजीव को जैन फार्म हाउस के खेतों में ले आए. जहां गायत्री ने खुद चाकू से अपने पति का गला रेत दिया. इस के बाद राजेश अपने घर चला गया और वह दोनों एटा घूमते रहे. दोनों दिल्ली भाग जाना चाहते थे पर पैसों का इंतजाम करना था, इस से पहले कि वे एटा छोड़ पाते पुलिस के हत्थे चढ़ गए.

गायत्री के मायके वालों को जब पता चला कि उन की बेटी ने खुद अपना सुहाग मिटा डाला है तो वे हैरान रह गए. उन्होंने कहा कि अब गायत्री से उन का कोई संबंध नहीं है. उसे उस की करनी की सजा मिलनी ही चाहिए.

संजीव के घर वाले दुखी हैं, उन्होंने तो सोचा तक नहीं था कि वह अपने सीधेसादे बेटे को खो देंगे. पुलिस ने भादंवि की धारा 302, 120बी के अंतर्गत तीनों को गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक उन की जमानत नहीं हुई थी.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

कातिल मां को मिली मौत: घातक साबित हुए नाजायज संबंध

उत्तर प्रदेश के जिला फिरोजाबाद के थाना टूंडला क्षेत्र के मोहल्ला इंदिरा कालोनी में 19 सितंबर, 2018 को दोपहर 2 बजे गोली चलने की आवाज से सनसनी फैल गई. गोली चलने की आवाज रिटायर्ड दरोगा रमेशचंद्र के मकान की ओर से आई थी. इस मकान में ग्राउंड फ्लोर और फर्स्ट फ्लोर पर किराएदार रहते थे.

चूंकि गोली की आवाज फर्स्ट फ्लोर से आई थी, इसलिए नीचे रहने वाले किराएदार तुरंत ऊपर पहुंचे तो वहां किराए पर रहने वाली महिला बेबीरानी खून में लथपथ किचन में पड़ी थी. उसे इस हालत में देखते ही उन्होंने शोर मचाया. इस के बाद तो मोहल्ले के कई लोग वहां पहुंच गए.

महिला के सिर से खून बह रहा था. उस के शरीर में कोई हरकत न होने से लोग समझ गए कि उस की मौत हो चुकी है. घटना के समय मृतका का 4 साल का बच्चा आदित्य घर में ही मौजूद था.

इसी दौरान किसी ने इस की सूचना पुलिस को दे दी. कुछ ही देर में थानाप्रभारी बी.डी. पांडेय पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. पुलिस ने घटनास्थल का निरीक्षण किया. पता चला कि हत्या के समय महिला रसोई में खाना बना रही थी. खाना बनाते समय कोई उस के सिर में गोली मार कर चला गया.

पुलिस को पूछताछ के दौरान पता चला कि 35 साल की बेबीरानी अपने 4 साल के बेटे आदित्य के साथ इस मकान में रहती थी. यह मकान रिटायर्ड दरोगा रमेशचंद्र का है. इस बीच मकान मालिक रमेशचंद्र भी वहां पहुंच गए. उन्होंने बताया कि डेढ़ महीने पहले ही बेबी ने उन का मकान किराए पर लिया था. इस से पहले यह इसी क्षेत्र में अमित जाट के मकान में किराए पर रहती थी. थानाप्रभारी ने महिला की हत्या की जानकारी अपने उच्चाधिकारियों को दे दी.

इस पर एसएसपी सचिंद्र पटेल, एसपी (सिटी) राजेश कुमार सिंह, सीओ संजय वर्मा फोरैंसिक टीम के साथ वहां पहुंच गए. उच्चाधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया. इस के साथ ही पुलिस ने काररवाई शुरू कर दी.

फोरैंसिक टीम द्वारा कई स्थानों से फिंगरप्रिंट उठाए गए. घटनास्थल का जायजा लेने पहुंचे एसएसपी सचिंद्र पटेल के निर्देश पर थानाप्रभारी ने जरूरी काररवाई कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया.

अधिकारियों ने 4 साल के मासूम आदित्य से पूछा कि घर में कौन आया था? मम्मी को गोली किस ने मारी? आदित्य ने बताया, ‘‘भैया आए थे. उन्होंने ठांय किया और मर गई मेरी मम्मी.’’

उस बच्चे ने भैया का नाम लिया तो पुलिस पता करने में जुट गई कि यह भैया कौन है. पुलिस ने छानबीन की तो जानकारी मिली कि मृतका बेबीरानी के पहले पति रामवीर के बड़े बेटे गुलशन को आदित्य भैया कहता था.

बेबी के पहले पति रामवीर की हत्या 9 साल पहले हो चुकी है. पहले पति की हत्या के बाद बेबी ने अपने प्रेमी विजेंद्र सिंह उर्फ गुड्डू से दूसरी शादी कर ली. दूसरे पति से 4 साल का बेटा आदित्य है.

दूसरे पति से भी नहीं बनी बेबी की

पुलिस को पूछताछ में पता चला कि शादी के कुछ समय बाद बेबी की दूसरे पति से नहीं पटी और वह उस से अलग हो गया. वर्तमान में वह आगरा में रह रहा है. बेबी पहले पति रामवीर की पेंशन से गुजारा करते हुए बेटे आदित्य के साथ किराए के मकान में रहती थी. बेबी के पास उस के पहले पति का बेटा गुलशन अकसर आयाजाया करता था. पड़ोसियों ने भी गुलशन के वहां आते रहने की बात कही.

बेबी के पहले पति रामवीर से 2 बेटे हैं गुलशन और हिमांशु. पिता की हत्या के बाद बच्चों के दादादादी दोनों को अपने साथ शिकोहाबाद के गांव कटौरा बुजुर्ग ले गए थे. वहीं रह कर दोनों बच्चे बड़े हुए. मृतका के 4 वर्षीय बेटे के बयान के आधार पर पुलिस को यह शक हो गया कि बेबी की हत्या में उस के बेटे गुलशन का हाथ हो सकता है.

जांच के दौरान यह भी पता चला कि दूसरा पति विजेंद्र सिंह पिछले ढाई साल से अपने बेटे आदित्य को देखने तक नहीं आया. चूंकि पुलिस का शक 20 वर्षीय गुलशन की तरफ था, इसलिए पुलिस सरगर्मी से उस की तलाश में जुट गई.

थानाप्रभारी बी.डी. पांडेय दूसरे दिन पुलिस की एक टीम के साथ गांव कटौरा बुजुर्ग पहुंचे. घर पर उस का बीमार भाई हिमांशु मिला. उस ने बताया कि उसे मां की हत्या के बारे में कोई जानकारी नहीं है. उस ने बताया कि गुलशन घर पर नहीं है. वह दिल्ली में रह कर काम करता है. लिहाजा पुलिस टीम वहां से बैरंग लौट आई.

29 सितंबर को पुलिस ने मुखबिर की सूचना पर आरोपी गुलशन को ऐत्मादपुर तिराहे से बाइक सहित गिरफ्तार कर लिया. गुलशन बाइक से कहीं जा रहा था. गिरफ्तार करने वाली टीम में थानाप्रभारी बी.डी. पांडेय, एसआई मुकेश कुमार, सुरेंद्र कुमार, इब्राहीम खां, धर्मेंद्र सिंह शामिल थे. गुलशन की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त तमंचा पुलिस ने बरामद कर लिया. आरोपी गुलशन ने थाने में मौजूद एसपी (सिटी) राजेश कुमार सिंह द्वारा की गई पूछताछ में जो कहानी बताई, वह इस प्रकार थी—

बेबीरानी मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जिला मैनपुरी के थाना भौगांव अंतर्गत गांव मोटा की रहने वाली थी. उस की शादी थाना शिकोहाबाद के गांव कटौरा बुजुर्ग निवासी 30 साल के रामवीर सिंह से हुई थी, जो रेलवे में खलासी पद पर नौकरी करता था. उस की पोस्टिंग टूंडला में हुई थी तो वह वहीं आ कर बस गया. वह रेलवे कालोनी के क्वार्टर में पत्नी बेबीरानी व दोनों बच्चों गुलशन व हिमांशु के साथ रहने लगा.

तीखे नैननक्श, सुंदर और शोख अदाओं वाली बेबी के प्रेम संबंध हाथरस के सादाबाद के रहने वाले गजेंद्र उर्फ गुड्डू से हो गए थे, जोकि रेलवे में गार्ड था तथा टूंडला के रैस्टकैंप में ही रहता था. रामवीर के ड्यूटी पर जाने के बाद गुड्डू बेबी से मिलने उस के क्वार्टर पर पहुंच जाता था.

इस की भनक जब रामवीर को लगी तो उस ने बेबी पर निगाह रखनी शुरू कर दी. वह पत्नी पर सख्ती करने लगा, जिस की वजह से बेबी अपने पति से नाखुश रहने लगी.

गहरी साजिश रची थी हत्या की

3-4 अक्तूबर, 2009 की आधी रात को जब पूरा परिवार घर में सोया हुआ था, तभी रात लगभग 2 बजे 2 व्यक्ति उस के क्वार्टर पर आए तथा दरवाजा खटखटाया. जैसे ही बेबी ने दरवाजा खोला, उन्होंने सोते हुए रामवीर को दबोच लिया तथा चाकू से उस का गला रेत कर उस की हत्या कर दी. उस समय घर पर उस का बेटा गुलशन 11 साल का था.

बेबी अपने प्रेमी गुड्डू के प्रेमपाश में पूरी तरह बंध चुकी थी. उस से अवैध संबंध थे. अवैध संबंधों में बाधक बनने पर रामवीर भेंट चढ़ गया. इस मामले में तत्कालीन एसएसपी रघुवीर लाल को बेबीरानी ने बताया कि जगदीश नामक व्यक्ति ने दरवाजा खुलवाया था. उस के साथ एक व्यक्ति कोई और था. उन के द्वारा पति को चाकू मारने पर वह चीखीचिल्लाई, लेकिन कोई सहायता के लिए नहीं आया.

घटना के बाद पड़ोसी वहां पहुंचे, लेकिन तब तक बदमाश भाग गए. पुलिस जांचपड़ताल कर ही रही थी, तभी पुलिस को मृतक के 11 वर्षीय बेटे गुलशन ने ऐसी जानकारी दी कि उस से न सिर्फ हत्यारे के बारे में जानकारी मिली बल्कि हत्या की वजह भी सामने आ गई.

एसपी रघुवीर लाल के निर्देश पर मृतक के चश्मदीद बेटे गुलशन व दूसरे बेटे हिमांशु को भी पूरी पुलिस सुरक्षा प्रदान करने के साथ उन बच्चों की मां बेबीरानी को हिरासत में ले लिया गया था.

घटना की रिपोर्ट मृतक के भाई श्यामवीर सिंह ने अपनी भाभी बेबीरानी और उस के प्रेमी गजेंद्र उर्फ गुड्डू व शाहिद के विरुद्ध दर्ज कराई थी.

‘मेरे पिता को हत्यारों ने जिस तरह से मारा है, उन्हें उन की सजा मैं ही दूंगा कोई और नहीं.’ यह बात गुलशन ने तत्कालीन एसपी से कही तो वह भी सन्न रह गए. उन्होंने जब उस से उस के पिता की हत्या के बारे में पूछा तो उस की आंखों में खून उतर आया था.

घटना के चश्मदीद गुलशन ने तब पूरी घटना को बताते हुए कहा था कि बस उसे अपनी रिवौल्वर दे दो, वह अपनी मां को अभी मार देगा. उस ने सिर्फ हत्यारों की पहचान ही नहीं कराई बल्कि अपनी मां की पोल भी खोल दी थी. उस ने बताया, ‘‘बदमाशों ने उस के पिता को पलंग से खींच कर जमीन पर गिराया तभी वह जाग गया था. इस दौरान उस की मां उसे खींच कर दूसरे कमरे में ले जाने लगी थी. पिता की चीख पर जब उस ने पलट कर देखा तो उस ने पिता के गले में चाकू घुसा पाया.’’ इस दौरान उस ने मां के रोने की बात को नाटक बताया था.

गुलशन के सामने हुई थी पिता की हत्या

इस छोटी सी उम्र में अपनी आंखों के सामने हुई पिता की हत्या से उस समय मासूम गुलशन के चेहरे पर बदले की भावना के तीखे तेवर स्पष्ट दिखाई दे रहे थे. पुलिस कस्टडी में बैठी बेबीरानी को तब उस के प्रेम संबंधों के चलते न ही प्रेमी मिल पाया था और न ही पति रहा और बच्चे भी उस से दूर चले गए थे.

पिता की हत्या के बाद बिखरे रिश्ते अंत तक नहीं जुड़ पाए. गुलशन पिता की हत्या का चश्मदीद गवाह था. बेबी जेल से जल्दी छूट आई थी. वह पति की पेंशन से अपना खर्च चला रही थी.

गुलशन ने रिश्तों की बर्फ पिघलाने की हरसंभव कोशिश की. उस ने मां को दादादादी के गांव चल कर रहने की बात कही, लेकिन उस ने साफ इनकार कर दिया.

बेबी व गुड्डू के कोर्ट से बरी होने के बाद दोनों ने शादी कर ली थी. शादी के बाद बेबी के गुड्डू से एक बेटा आदित्य हुआ जो इस समय 4 साल का है. शादी के बाद बेबी की अपने दूसरे पति गजेंद्र से भी नहीं पटी. वक्त गुजरने के साथसाथ बेबी और गजेंद्र अलग हो गए.

गुलशन ने बताया कि वह कई दिन से मां के पास लगातार जा रहा था. छोटा भाई बीमार था, उस का इलाज कराने की बात पर मां ने कहा कि मेरे पास आ कर रहो. गुलशन ने मना कर दिया. उस का कहना था कि जो मेरे बाप को मरवा सकती है, वह मुझे भी मरवा सकती थी.

गुलशन को पिता की जगह आश्रित कोटे से रेलवे में नौकरी मिलने का मामला भी तय हुआ था. मां उस से इस कदर नफरत करने लगी थी कि जब उस की नौकरी लगने का मौका आया तो उस ने सहमतिपत्र पर दस्तखत करने से इनकार कर दिया. वह उस से बेगाने जैसा व्यवहार कर रही थी. मां के सहमतिपत्र पर हस्ताक्षर जरूरी थे. भाई का इलाज व नौकरी को मना करने पर गुलशन का खून खौल उठा.

गुलशन बना मां का हत्यारा

19 सितंबर को दोपहर 2 बजे वह मां के पास पहुंचा. उस समय वह रसोई में रोटी बना रही थी. आटे की लोई बेल रही थी. गुलशन ने तमंचे से उस के सिर के पीछे गोली मार दी. गोली लगते ही बेबी कटे पेड़ की तरह रसोई में ही गिर गई. उस के हाथ से आटे की लोई छूट कर पास ही गिर गई. घटना को अंजाम दे कर गुलशन तेजी से घर से भाग गया. भागते समय उस के 4 वर्षीय सौतेले भाई आदित्य ने उसे देख लिया था.

मृतका बेबी का 4 साल का बेटा आदित्य अनाथ हो गया. मां की हत्या के बाद अब उसे कहां भेजा जाएगा, कोई नहीं बता रहा है. क्योंकि पिछले ढाई साल से उस का पिता गजेंद्र उर्फ गुड्डू एक बार भी उसे देखने नहीं आया. फिलहाल पुलिस ने उसे पड़ोस में रहने वाली एक महिला को सौंप दिया है.

यह अजीब संयोग था कि मां का कातिल बना बेटा गुलशन अपने पिता की हत्या में मां के खिलाफ गवाह था. वहीं अब दूसरा बेटा आदित्य मां की हत्या के मामले में अपने बड़े भाई के खिलाफ गवाह है.

अपने प्रेमी की मोहब्बत पाने के लिए उस ने अपनी ही मांग का सिंदूर उजाड़ डाला. जेल से छूटने के बाद प्रेमी के साथ घर बसाया, मगर सब कुछ उजड़ गया.

पहले पति के बेटे की गोली का शिकार बनी मृतका बेबी का शव पोस्टमार्टम कक्ष में रखा रहा. टूंडला में ही मृतका की बहन रेनू रहती है, लेकिन मायका व ससुराल पक्ष से, यहां तक कि बेबीरानी से शादी रचाने वाला गजेंद्र सिंह उर्फ गुड्डू भी सामने नहीं आया.

बेबी को अपने किए की सजा उसे मौत के रूप में मिली. अपनों के होते हुए भी पोस्टमार्टम के बाद पुलिस ने ही लावारिस लाशों की तरह उस का अंतिम संस्कार किया.

पुलिस ने हत्यारोपी गुलशन को न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया ?

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Manohar Kahaniya: साजिश जो छिप न सकी

पंजाब के जिला संगरूर के गांव लखोवाल निवासी शेर सिंह पहली अक्तूबर, 2017 को थाना भवानीगढ़ के अंतर्गत पड़ने वाली पुलिस चौकी पहुंचे. उन्होंने चौकीइंचार्ज एएसआई गुरमीत सिंह को एक लिखित तहरीर देते हुए कहा कि मैं कल सुबह अपने बेटे यादविंदर के साथ अपने खेतों पर काम करने के लिए गया था. खेतों के नजदीक ही एक प्लाईवुड फैक्ट्री थी. कुछ देर बाद उसी फैक्ट्री में काम करने वाले शिवकुमार और राम नरेश हमारे पास खेत पर आ गए.

शिवकुमार और रामनरेश दिन भर खेतों पर साथ ही रहे. रात करीब 9 बजे मैं ने और मेरे बेटे ने उन दोनों को अपनी मोटरसाइकिलों से प्लाईवुड फैक्ट्री छोड़ दिया. उन्हें छोड़ कर मैं अपने बेटे के साथ घर की ओर लौट रहा था तभी कोई ट्रक बेटे की मोटरसाइकिल में पीछे से टक्कर मार कर भाग गया. उस समय रात के यही कोई साढ़े 9 बज रहे थे, इसलिए मैं ट्रक का नंबर भी नहीं देख पाया.

यादविंदर खून से लथपथ सड़क पर पड़ा तड़पने लगा. फोन करने के बाद जब अस्पताल की एंबुलेंस वहां पहुंची तो उसे नाभा अस्पताल ले जाया गया, जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. यादविंदर के पास उस समय एक मोबाइल फोन था. वह मौके पर ही कहीं खो गया. शेर सिंह ने उस अज्ञात ट्रक चालक के खिलाफ कानूनी काररवाई किए जाने की मांग की.

शेर सिंह की इस सूचना पर चौकीइंचार्ज गुरमीत सिंह ने भादंसं की धारा 279, 304ए के तहत अज्ञात ट्रक चालक के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर काररवाई शुरू कर दी. पुलिस ने काफी कोशिश की, लेकिन घटना के 3-4 महीने बाद भी वह उस ट्रक चालक को नहीं ढूंढ पाई. लिहाजा इस केस की जांच वहां से सीआईए के इंचार्ज इंसपेक्टर विजय कुमार को ट्रांसफर कर दी गई.

शुरूशुरू में इंसपेक्टर विजय कुमार को भी इस केस में कोई सफलता मिलती नजर नहीं आई, पर उन्हें मामले की तह तक तो पहुंचना ही था सो उन्होंने घटनास्थल का निरीक्षण किया. साथ ही अपने खास मुखबिरों को इस काम पर लगाने के बाद मृतक के पिता शेर सिंह से भी पूछताछ की. इस बार शेर सिंह ने बताया कि उन्हें संदेह है कि उस के बेटे यादविंदर की मृत्यु दुर्घटना में नहीं हुई थी, बल्कि उस की हत्या की गई थी.

‘‘ऐसा कैसे हो सकता है?’’ इंसपेक्टर विजय कुमार ने आश्चर्यचकित होते हुए कहा, ‘‘आप ने तो अपने बयानों में लिखवाया था कि उस की मौत एक्सीडेंट से हुई थी. आप के बयानों के अनुसार एक अंजान ट्रक चालक के खिलाफ रिपोर्ट भी लिखी गई थी. अगर ऐसी बात थी तो आप ने यह सब पहले क्यों नहीं बताया था. इस प्रकार गलतबयानी कर के आप ने पुलिस को गुमराह करने की कोशिश की है.’’

‘‘साहबजी, दरअसल किसी ने मुझे उस रात खबर दी थी कि यादविंदर का एक्सीडेंट हो गया है और उस की लाश सड़क पर पड़ी है. खबर सुनते ही मैं मौके पर पहुंचा तो बेटा तड़प रहा था. वहीं उस की मोटरसाइकिल भी पड़ी थी. फोन कर के मैं ने एंबुलेंस बुलाई और उसे नाभा के अस्पताल ले गया था.
‘‘पहली अक्तूबर को मैं ने पुलिस चौकी के एसआई गुरमीत सिंह को जो बयान दिया था, वह किसी के कहने पर दिया था, जबकि सच्चाई यह है कि मैं ने ट्रक वाले को नहीं देखा था.

‘‘सच्चाई यह है कि उस समय बेटे की लाश देख कर मैं अपना होश खो बैठा था. लोग जैसा कह रहे थे, मैं वैसा ही कर रहा था. अब मैं पूरी तरह ठीक हूं. मुझे उम्मीद है कि मेरे बेटे की किसी ने हत्या कर मामले को एक्सीडेंट का रूप देने की कोशिश की है.’’

शेर सिंह की बात सुनने के बाद इंसपेक्टर विजय कुमार ने इस मामले की जांच शुरू कर दी. जांच की शुरुआत उन्होंने शेर सिंह के घर से ही की. उन्होंने यह जानने की कोशिश की कि कहीं यादविंदर या शेर सिंह की किसी से कोई दुश्मनी तो नहीं थी. इस काम में उन्होंने अपने मुखबिरों को भी लगा दिया.
इस बीच एक मुखबिर ने इंसपेक्टर विजय कुमार को खबर दी कि शेर सिंह के परिवार की नूरपुर गांव के रहने वाले जसवंत सिंह उर्फ जस्सा के साथ दुश्मनी थी. दुश्मनी की वजह क्या थी, यह बात मुखबिर नहीं बता सका.

जस्सा के साथ शेर सिंह की क्या दुश्मनी थी, यह जानने के लिए उन्होंने शेर सिंह को सीआईए औफिस बुलाया तो शेर सिंह ने बताया, ‘‘साहब, जस्सा से उस की ऐसी कोई खास दुश्मनी नहीं है. बस खेतों के पानी को ले कर एकदो बार उस से कहासुनी जरूर हो गई थी.’’

शेर सिंह के हावभाव और बातों से इंसपेक्टर विजय कुमार समझ गए कि वह कुछ छिपा रहा है या जानबूझ कर वह सच नहीं बताना चाहता. और फिर खेतों के पानी को ले कर तो गांवों में अकसर छोटेमोटे झगड़े होते ही रहते हैं. इस के पीछे कोई किसी का कत्ल नहीं करता. बात जरूर कोई और ही रही होगी.
बहरहाल, इंसपेक्टर विजय को किसी ऐसे आदमी की तलाश थी जो जस्सा और शेर सिंह के बीच चल रही दुश्मनी की सही वजह का पता लगा सके. थोड़ी कोशिश के बाद उन्हें एक ऐसी चतुर औरत मिल गई. वह न केवल जसवंत सिंह उर्फ जस्सा और शेर सिंह के परिवारों के बीच की दुश्मनी का पता लगा सकती थी बल्कि उन की कुंडली भी खंगाल सकती थी.

इंसपेक्टर विजय ने उसे कुछ ईनाम देने का लालच दिया तो वह यह काम करने के लिए तैयार हो गई. काम सौंपे जाने के कुछ दिनों बाद उस औरत ने सब पता लगाने के बाद उन्हें जो कुछ बताया, उस में उन्हें सच्चाई दिखाई दी.

उस औरत ने बताया कि जस्सा और शेर सिंह के बीच दुश्मनी की वजह खेतों का पानी नहीं था बल्कि जस्सा की खूबसूरत बेटी थी. जस्सा की एक बेटी थी कल्पना, जिस की सुंदरता की चर्चा आसपास के गांवों में भी थी. उस के चाहने वालों की लंबी फेहरिस्त थी.

शेर सिंह के बेटे यादविंदर की नजर जब उस पर पड़ी तो पहली नजर में ही वह उस का दीवाना हो गया था. लड़की के अन्य चाहने वालों की तरह वह भी उस के घर के इर्दगिर्द चक्कर लगाने लगा था.
यादविंदर भी अच्छाखासा गबरू नौजवान था. वह पढ़ालिखा भी था और अच्छे घर से ताल्लुक रखता था, पर कल्पना ने उसे कभी लिफ्ट नहीं दी. वह भी एक अच्छे परिवार की संस्कारी लड़की थी.

प्यार वगैरह के फालतू चक्करों में वह नहीं पड़ना चाहती थी. इसलिए यादविंदर क्या उस ने किसी भी लड़के को भाव नहीं दिया. लेकिन यादविंदर किसी न किसी तरह उस के नजदीक पहुंचने की कोशिश करता रहा.

कल्पना के घर के चक्कर लगाने की यादविंदर की दिनचर्या सी बन गई थी. कल्पना की झलक पाने या उस से बात करने के चक्कर में वह उस के घर के कई चक्कर रोजाना लगाता था. जब वह उसे रास्ते में मिल जाती तो वह उस के साथ छेड़छाड़ करे बिना नहीं मानता था.

1-2 बार तो कल्पना के पिता जस्सा ने यादविंदर को अपनी बेटी के साथ छींटाकशी करते देख लिया था. तब उन्होंने उसे चेतावनी दे कर छोड़ दिया था. पर यादविंदर अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा था.
एक रोज तो यादविंदर ने हद ही कर दी. उस ने कल्पना का रास्ता रोक कर उस का हाथ पकड़ कर बात करने की कोशिश की. कल्पना को यह बात बहुत बुरी लगी. उस ने यह सारी बात अपने पिता जसवंत सिंह को बता दी. पानी सिर से इतना ऊंचा पहुंच जाएगा, इस बात का अंदाजा शायद जसवंत सिंह उर्फ जस्सा को नहीं था.

बेटी के मुंह से यादविंदर की करतूतें सुन कर जस्सा का खून खौल उठा. वह सीधा शेर सिंह के घर गया. उस ने यादविंदर को ही नहीं, बल्कि शेर सिंह को भी खरीखोटी सुनाई. बापबेटे की उस ने गांव वालों के सामने ही बेइज्जती की और बाद में चलते समय उस ने शेर सिंह को यह भी धमकी दी कि अगर उस ने अपने बेटे पर लगाम नहीं लगाई तो वह उस के टुकड़ेटुकड़े कर देगा.

यह धमकी जस्सा ने पूरे गांव के सामने दी थी, पर इंसपेक्टर विजय कुमार को गांव वालों ने यह बात नहीं बताई थी. बहरहाल, जस्सा और शेर सिंह के बीच दुश्मनी की असली वजह इंसपेक्टर विजय कुमार को पता चल चुकी थी. उन्होंने जस्सा को पूछताछ के लिए सीआईए औफिस बुलवा लिया.

उन्होंने उस से यादविंदर की हत्या के बारे में पूछताछ की तो उस ने खुद को निर्दोष बताया. उस ने कहा, ‘‘साहब, आप को शायद गलतफहमी हुई है. यादविंदर की हत्या नहीं हुई, बल्कि उस का एक्सीडेंट हुआ था.’’
‘‘बकवास बंद करो.’’ इंसपेक्टर विजय ने उसे धमकाते हुए कहा, ‘‘हमें सब मालूम है कि यादविंदर का एक्सीडेंट हुआ था या अपनी बेटी के चक्कर में तुम ने मिल कर उस की हत्या की थी. यह सारी सच्चाई मैं तुम्हारे मुंह से सुनना चाहता हूं.’’

इंसपेक्टर विजय की घुड़की के बाद जसवंत सिंह उर्फ जस्सा हाथ जोड़ कर माफी मांगने लगा और रोते हुए कहने लगा, ‘‘साहबजी, मैं यादविंदर की हत्या नहीं करना चाहता था पर जब बात इज्जत पर बन आई तो मजबूरन मुझे यह कदम उठाना पड़ा.’’

इस के बाद उस ने यादविंदर के एक्सीडेंट के रहस्य से परदा उठाते हुए उस की हत्या की जो कहानी बताई, इस प्रकार निकली—

यादविंदर काफी समय से जस्सा की बेटी कल्पना को छेड़छेड़ कर परेशान कर रहा था. जस्सा ने उसे प्यार से और धमका कर हर तरह से समझा कर देख लिया था पर वह अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा था.
जस्सा ने उस के पिता शेर सिंह को भी चेतावनी दी पर यादविंदर पर किसी बात का असर नहीं हुआ था. उल्टे यादविंदर कल्पना को धमकी देता था कि यदि उस ने उस की बात नहीं मानी तो वह उसे उठा कर ले जाएगा.

30 सितंबर, 2017 की रात यादविंदर कल्पना से बातचीत करने के लिए उस के घर की तरफ चक्कर लगाने के लिए आया था. इत्तफाक से उस समय जस्सा भी अपने घर के बाहर खड़ा था.

यादविंदर को देखते ही उस के तनबदन में आग लग गई. उस जलती हुई आग पर तेल खुद यादविंदर ने ही डाला. वह जस्सा के घर के बाहर खड़ा हो कर अपनी बाइक का हौर्न बजाने लगा.

जस्सा ने यादविंदर को अपने पास बुला लिया और प्यार से बातें करते हुए उसे अपने खेतों की ओर ले गया. उस समय जस्सा के साथ उस का भतीजा मनदीप सिंह मनी व नौकर सुखविंदर सिंह उर्फ काला भी था.
अपने खेत में पहुंचने के बाद यादविंदर को सबक सिखाने की नीयत से तीनों ने जम कर उस की पिटाई की. उन का इरादा यादविंदर की हत्या करने का नहीं था पर अंधाधुंध पिटाई करने से यादविंदर की मौत हो गई. यादविंदर की मौत के बाद तीनों घबरा गए और इस हत्या से बचने के उपाय सोचने लगे.

अंत में तीनों ने मिल कर यादविंदर की हत्या को एक्सीडेंट का रूप देने की योजना बनाई और उस की लाश और मोटरसाइकिल अपनी ट्रौली पर लाद कर नाभा रोड पर चन्नो गांव के पास ला कर सड़क पर फेंक दिया. उस की लाश उधर से गुजरने वाले किसी वाहन से कुचल गई थी. फिर जस्सा ने ही किसी से यादविंदर का एक्सीडेंट होने की सूचना शेर सिंह के पास पहुंचा दी थी.

शेर सिंह चन्नो गांव के करीब गया तो बेटे की लहूलुहान लाश देख कर घबरा गया. फिर वह उसे एंबुलेंस से नाभा अस्पताल ले गया था. जस्सा से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने अन्य आरोपी मनदीप सिंह और सुखविंदर उर्फ काला को भी गिरफ्तार कर लिया. तीनों को अदालत में पेश कर उन्हें 2 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया गया.

रिमांड अवधि में उन की निशानदेही पर कुछ सबूत भी हासिल किए. बाद में उन्हें पुन: न्यायालय में पेश कर जिला जेल भेज दिया गया. पुलिस को यह मामला सुलझाने में भले ही 8 महीने लग गए, लेकिन साजिश का खुलासा कर के आरोपियों को जेल पहुंचा दिया.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में कल्पना परिवर्तित नाम है.

सरिता का प्रेम प्रवाह: सरिता और बलराम ने ऐसा क्या किया

उत्तर प्रदेश के मीरजापुर जिले में मीरजापुरइलाहाबाद मार्ग से सटा एक गांव है-महड़ौरा. विंध्यक्षेत्र की पहाड़ी से लगा यह गांव हरियाली के साथसाथ बहुत शांतिप्रिय गांवों में गिना जाता है. इसी गांव के रहने वाले बंसीलाल सरोज ने रेलवे की नौकरी से रिटायर होने के बाद बड़ा सा मकान बनवाया, जिस में वह अपने पूरे परिवार के साथ रहते थे.

उन के भरेपूरे परिवार में पत्नी, 2 बेटे, एक बेटी और बहू थी. गांव में बंसीलाल सरोज के पास खेती की जमीन थी, जिस पर उन का बड़ा बेटा रणजीत कुमार सरोज उर्फ बुलबुल सब्जी की खेती करता था. खेती के साथसाथ रणजीत अपने मामा के साथ मिल कर होटल भी चलाता था.

जबकि छोटा राकेश सरोज कानपुर में बिजली विभाग में नौकरी करता था. वह कानपुर में ही रहता था. महड़ौरा में 9-10 कमरों का अपना शानदार मकान होने के साथसाथ बंसीलाल के पास गांव से कुछ दूर सरोह भटेवरा में दूसरा मकान भी था.

रात में वह उसी मकान में सोया करते थे. बंसीलाल के परिवार की गाड़ी जिंदगी रूपी पटरी पर हंसीखुशी से चल रही थी. घर में किसी चीज की कमी नहीं थी. दोनों बेटे अपनेअपने पैरों पर खड़े हो चुके थे, जबकि वह खुद इतनी पेंशन पाते थे कि अकेले अपने दम पर पूरे परिवार का खर्च उठा सकते थे.

बड़ा बेटा रणजीत कुमार सुबह होने पर खेतों पर चला जाता था, फिर दोपहर में उसे वहां से होटल पर जाना होता था. जहां से वह रात में वापस लौटता था और खापी कर सो जाता था. यह उस की रोज की दिनचर्या थी. रणजीत की 3 बेटियां थीं. 10 साल की माया, 7 साल की क्षमा और 3 साल की स्वाति. वह अपनी बेटियों को दिलोजान से चाहता था और उन्हें बेटों की तरह प्यार करता था.

उस की बेटियां भी अपनी मां से ज्यादा पिता को चाहती थीं. व्यवहारकुशल रणजीत गांव में सभी को अच्छा लगता था. वह जिस से भी मिलता, हंस कर ही बोलता था. खेती और होटल के काम से उसे फुरसत ही नहीं मिलती थी. उसे थोड़ाबहुत जो समय मिलता था, उसे वह अपने बीवीबच्चों के साथ गुजारता था.

सोमवार 19 मार्च, 2018 का दिन था. रात होने पर रणजीत कुमार रोज की तरह होटल से घर आया तो उस की पत्नी सरिता उसे खाने का टिफिन पकड़ाते हुए बोली, ‘‘लो जी, दूसरे मकान पर बाबूजी को खाना दे आओ. आज काफी देर हो गई है, बाबूजी इंतजार कर रहे होंगे. आप खाना दे कर आओ तब तक मैं आप के लिए खाने की थाली लगा देती हूं.’’

पत्नी के हाथ से खाने का टिफिन ले कर रणजीत दूसरे मकान पर चला गया, जहां उस के पिता बंसीलाल रात में सोने जाया करते थे. उन का रात का खाना अकसर उसी मकान पर जाता था.

रणजीत उन्हें खाना दे कर जल्दी ही लौट आया और घर आ कर खाना खाने बैठ गया. खाना खाने के बाद वह अपने कमरे में सोने चला गया. रणजीत की मां, पत्नी सरिता, बहन सोनी और रणजीत की तीनों बेटियां बरांडे में सो गईं.

रणजीत सोते समय अपने कमरे का दरवाजा खुला रखता था. उस दिन भी वह अपने कमरे का दरवाजा खुला छोड़ कर सोया था. देर रात पीछे से चारदीवारी फांद कर किसी ने रणजीत के कमरे में प्रवेश किया और पेट पर धारदार हथियार से वार कर के उसे मौत की नींद सुला दिया. उस पर इतने वार किए गए थे कि उस की आंतें तक बाहर आ गई थीं. रणजीत की मौके पर ही मौत हो गई थी. आननफानन में घर वाले उसे अस्पताल ले कर भागे, लेकिन वहां डाक्टरों ने रणजीत को देखते ही मृत घोषित कर दिया.

भोर में जैसे ही इस घटना की सूचना पुलिस को मिली वैसे ही विंध्याचल कोतवाली प्रभारी अशोक कुमार सिंह पुलिस टीम के साथ गांव पहुंच गए. वहां गांव वालों का हुजूम लगा हुआ था. अशोक कुमार सिंह ने इस घटना की सूचना अपने उच्चाधिकारियों को भी दे दी.

इस के बाद उन्होंने घटनास्थल का निरीक्षण किया. घर के उस कमरे में जहां रणजीत सोया हुआ था, काफी मात्रा में खून पड़ा हुआ था. मौकाएवारदात को देखने से यह बात साफ हो गई कि जिस बेदर्दी के साथ रणजीत की हत्या की गई थी, संभवत: वारदात में कई लोग शामिल रहे होंगे.

यह भी लग रहा था कि या तो हत्यारों की रणजीत से कोई अदावत रही होगी या किसी बात को ले कर वह उस से खार खाए होंगे. इसी वजह से उसे बड़ी बेरहमी से किसी धारदार हथियार से गोदा गया था. खून के छींटे कमरे के साथसाथ बाहर सीढि़यों तक फैले थे.

इंसपेक्टर अशोक कुमार सिंह ने आसपास नजरें दौड़ा कर जायजा लिया तो देखा, जिस कमरे में वारदात को अंजाम  दिया गया था, वह कमरा घर के पीछे था. संभवत हत्यारे पीछे की दीवार फांद कर अंदर आए होंगे और हत्या कर के उसी तरह भाग गए होंगे.

इसी के साथ उन्हें एक बात यह भी खटक रही थी कि हो न हो इस वारदात में किसी करीबी का हाथ रहा हो. घटनास्थल की वस्तुस्थिति और हालात इसी ओर इशारा कर रहे थे. ताज्जुब की बात यह थी कि इतनी बड़ी घटना होने के बाद भी घर के किसी मेंबर को कानोंकान खबर नहीं हुई थी.

बहरहाल, अशोक कुमार सिंह ने लाश पोस्टमार्टम के लिए भिजवा कर मृतक रणजीत के बारे में जानकारी एकत्र की और थाने लौट आए. उन्होंने रणजीत के पिता बंसीलाल सरोज की लिखित तहरीर के आधार पर अज्ञात के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के तहत केस दर्ज कर के जांच शुरू कर दी.

रणजीत की हत्या होने की खबर आसपास के गांवों तक पहुंची तो तमाम लोग महड़ौरा में एकत्र हो गए. हत्या को ले कर लोगों में आक्रोश था. आक्रोश के साथसाथ भीड़ भी बढ़ती गई. महिलाएं और बच्चे भी भीड़ में शामिल थे.

आक्रोशित भीड़ ने गांव के बाहर मेन रोड पर पहुंच कर इलाहाबाद मीरजापुर मार्ग जाम कर दिया. दोनों तरफ का आवागमन पूरी तरह ठप्प हो गया. गुस्से के मारे लोग पुलिस के विरोध में नारे लगाने के साथ हत्यारों को गिरफ्तार करने और उस की बीवी को मुआवजा दिलाने की मांग कर रहे थे.

इस की जानकारी मिलने पर विंध्याचल कोतवाली पुलिस वहां पहुंच गई, जहां भीड़ जाम लगाए हुए थी. जाम के चलते इंसपेक्टर अशोक कुमार सिंह ने धरने पर बैठे गांव वालों को समझाने का प्रयास किया, लेकिन वे किसी भी सूरत में पीछे हटने को तैयार नहीं थे.

अपना प्रयास विफल होता देख उन्होंने अपने उच्चाधिकारियों को वहां की स्थिति बता कर पुलिस फोर्स भेजने को कहा, ताकि कोई अप्रिय घटना न घट सके.

वायरलैस पर सड़क जाम की सूचना प्रसारित होते ही पड़ोसी थानों जिगना, गैपुरा और अष्टभुजा पुलिस चौकी के अलावा जिला मुख्यालय से पहुंची पुलिस और पीएसी ने मौके पर पहुंच कर मोर्चा संभाल लिया. कुछ ही देर में पुलिस अधीक्षक आशीष तिवारी सहित अन्य पुलिस और प्रशासन के अधिकारी भी मौके पर पहुंच गए.

अधिकारियों ने ग्रामीणों को विश्वास दिलाया कि रणजीत के हत्यारों को जल्द से जल्द गिरफ्तार कर लिया जाएगा. काफी समझाने के बाद ग्रामीण मान गए और उन्होंने धरना समाप्त कर दिया. इस के साथ ही धीरेधीरे जाम भी खत्म हो गया.

जाम समाप्त होने के बाद विंध्याचल कोतवाली पहुंचे पुलिस अधीक्षक आशीष तिवारी ने रणजीत के हत्यारों को हर हाल में जल्द से जल्द गिरफ्तार कर के इस केस को खोलने का सख्त निर्देश दिए. पुलिस अधीक्षक के सख्त तेवरों को देख कोतवाली प्रभारी अशोक कुमार और उन के मातहत अफसर जीजान से जांच में जुट गए.

अशोक कुमार सिंह ने इस केस की नए सिरे से छानबीन करते हुए मृतक रणजीत के पिता बंसीलाल से पूछताछ करनी जरूरी समझी. इस के लिए वह महड़ौरा स्थित बंसीलाल के घर पहुंचे, जहां उन्होंने बंसीलाल से एकांत में बात की. इस बातचीत में उन्होंने रणजीत से जुड़ी छोटी से छोटी जानकारी जुटाई. बंसीलाल से हुई बातों में एक बात चौंकाने वाली थी जो रणजीत की पत्नी सरिता से संबंधित थी.

पता चला उस का चालचलन ठीक नहीं था. इस संबंध में रणजीत के पिता बंसीलाल ने इशारोंइशारों में काफी कुछ कह दिया था.

इस जानकारी से इंसपेक्टर अशोक कुमार सिंह की आंखों में चमक आ गई. उन्होंने पूछताछ के लिए मृतक रणजीत की पत्नी सरिता और उस के चचेरे भाई बलराम सरोज को थाने बुलाया. लेकिन इन दोनों ने कुछ खास नहीं बताया. दोनों बारबार खुद को बेगुनाह बताते रहे.

बलराम रणजीत का भाई होने का तो सरिता पति होने का वास्ता देती रही. दोनों के घडि़याली आंसुओं को देख कर इंसपेक्टर अशोक कुमार ने उस दिन उन्हें छोड़ दिया, लेकिन उन पर नजर रखने लगे. इसी बीच उन के एक खास मुखबिर ने सूचना दी कि सरिता और बलराम भागने के चक्कर में हैं.

मुखबिर की बात सुन कर अशोक कुमार सिंह ने बिना समय गंवाए 29 मार्च को महड़ौरा से सरिता को थाने बुलवा लिया. साथ ही उस के चचेरे देवर बलराम को भी उठवा लिया. थाने लाने के बाद दोनों से अलगअलग पूछताछ की गई.

पूछताछ के लिए पहला नंबर सरिता का आया. वह पुलिस को घुमाने का प्रयास करते हुए अपने सुहाग का वास्ता दे कर बोली, ‘‘साहब, आप कैसी बातें कर रहे हैं, भला कोई अपने ही हाथों से अपने सुहाग को उजाड़ेगा? साहब, जरूर किसी ने आप को बहकाया है. आखिरकार मुझे कमी क्या थी, जो मैं ऐसा करती?’’

उस की बात अभी पूरी भी नहीं हुई थी कि इंसपेक्टर अशोक कुमार सिंह बोले, ‘‘देखो सरिता, तुम ज्यादा सती सावित्री बनने की कोशिश मत करो, तुम्हारी भलाई इसी में है कि सब कुछ सचसच बता दो वरना मुझे दूसरा रास्ता अख्तियार करना पड़ेगा.’’ लेकिन सरिता पर उन की बातों का जरा भी असर नहीं पड़ा. वह अपनी ही रट लगाए हुई थी.

अशोक कुमार सिंह सरिता के बाद उस के चचेरे देवर बलराम से मुखातिब हुए, ‘‘हां तो बलराम, तुम कुछ बोलोगे या तुम से भी बुलवाना पड़ेगा.’’

‘‘म…मम…मतलब. मैं कुछ समझा नहीं साहब.’’

‘‘नहीं समझे तो समझ आओ. मुझे यह बताओ कि तुम ने रणजीत को क्यों मारा?’’

‘‘साहब, आप यह क्या कह रहे हैं, रणजीत मेरा भाई था, भला कोई अपने भाई की हत्या क्यों करेगा? मेरी उस से खूब पटती थी. उस के मरने का सब से ज्यादा गम मुझे ही है. और आप मुझे ही दोषी ठहराने पर तुले हैं.’’

उस की बात अभी पूरी भी नहीं हुई थी कि अचानक इंसपेक्टर अशोक कुमार का झन्नाटेदार थप्पड़ उस के बाएं गाल पर पड़ा. वह अपना चेहरा छिपा कर बैठ गया.

अभी वह कुछ सोच ही रहा था कि इंसपेक्टर अशोक कुमार सिंह बोले, ‘‘बलराम, भाई प्रेम को ले कर तुम्हारी जो सक्रियता थी, वह मैं देख रहा था. तुम्हारा प्रेम किस से और कितना था, यह सब भी मुझे पता चल चुका है. तुम ने रणजीत को क्यों और किस के लिए मारा, वह भी तुम्हारे सामने है.’’

उन्होंने सरिता की ओर इशारा करते हुए कहा तो बलराम की नजरें झुक गईं. उसे इस बात का जरा भी अंदाजा नहीं था कि उस की बनाई कहानी का अंत इतनी आसानी से हो जाएगा और पुलिस उस से सच उगलवा लेगी.

तीर निशाने पर लगता देख इंसपेक्टर अशोक कुमार सिह ने बिना देर किए तपाक से कहा, ‘‘अब तुम्हारी भलाई इसी में है, दोनों साफसाफ बता दो कि रणजीत की हत्या क्यों और किसलिए की, वरना मुझे दूसरा तरीका अपनाना पड़ेगा.’’

सरिता और बलराम ने खुद को चारों ओर से घिरा देख कर सच्चाई उगलने में ही भलाई समझी. पुलिस ने दोनों को विधिवत गिरफ्तार कर के पूछताछ की तो रणजीत के कत्ल की कहानी परत दर परत खुलती गई.

बलराम ने अपना जुर्म कबूल करते हुए बताया कि न जाने कैसे रणजीत को उस के और सरिता के प्रेम संबंधों की जानकारी मिल गई थी.

फलस्वरूप वह उन दोनों के संबंधों में बाधक बनने लगा. यहां तक कि उस ने बलराम को अपनी पत्नी से मिलने के लिए मना कर दिया था. इसी के मद्देनजर सरिता और बलराम ने योजनाबद्ध तरीके से रणजीत की हत्या की योजना बनाई. योजना के मुताबिक बलराम ने घर में घुस कर बरामदे में सोए रणजीत की चाकू घोंप कर हत्या कर दी.

बलराम की निशानदेही पर पुलिस ने हत्या में इस्तेमाल किया गया चाकू घर से 2 सौ मीटर दूर गेहूं के खेत से बरामद कर लिया. सरिता और बलराम ने स्वीकार किया कि जिस चाकू से रणजीत की हत्या की गई थी, उसे बलराम ने हत्या से एक दिन पहले ही गांव के एक लोहार से बनवाया था. पुलिस ने उस लोहार से भी पूछताछ की. उस ने इस की पुष्टि की.

पुलिस लाइन में आयोजित पत्रकार वार्ता के दौरान पुलिस अधीक्षक आशीष तिवारी ने खुलासा करते हुए बताया कि रणजीत सरोज की पत्नी के अवैध संबंध उस के चचेरे भाई बलराम से पिछले 5 वर्षों से थे. रणजीत ने दोनों को एक बार रंगेहाथों पकड़ा था. उस वक्त घर वालों ने गांव में परिवार की बदनामी की वजह से इस मामले को घर में ही दबा दिया था. साथ ही दोनों को डांटाफटकारा भी था.

रणजीत ने बलराम को घर में आने से मना भी कर दिया था. इस से सरिता अंदर ही अंदर जलने लगी थी. उसे चचेरे देवर से मिलने की कोई राह नहीं सूझी तो उस ने बलराम के साथ मिल कर पति की हत्या की योजना तैयार की ताकि पिछले 5 सालों से चल रहे प्रेम संबंध चलते रहें.

पकड़े जाने पर दोनों ने पुलिस और मीडिया के सामने अपना जुर्म कबूल करते हुए अवैध संबंधों में हत्या की बात मानी. दोनों ने पूरी घटना के बारे में विस्तार से बताया. रणजीत हत्याकांड की गुत्थी सुलझाने के बाद पुलिस ने पूर्व  में दर्ज मुकदमे में अज्ञात की जगह सरिता और बलराम का नाम शामिल कर के दोनों को जेल भेज दिया.

Crime Story: अनचाहा पति

घटना मध्य प्रदेश के बैतूल जिले की है. 16 मार्च, 2019 को थाना शाहपुरा के गांव सारकुंड के डैम के पास लोगों की भीड़ जमा थी. लोग डैम के पानी पर तैर रही बोरी को देख रहे थे. उस बोरी को देख कर लोग अनुमान लगा रहे थे कि उस में किसी की लाश हो सकती है. जितने लोग उतनी बातें.

सूचना मिलने पर गांव का चौकीदार गंगाराम भी वहां पहुंच गया. उस ने भी बोरी देखी तो उसे भी मामला संदिग्ध लगा. उस ने इस की सूचना थाना शाहपुरा के टीआई दीपक पाराशर को दे दी. आखिर बोरी में क्या है, जानने के लिए टीआई भी डैम के किनारे पहुंच गए.

उन्होंने 2 लोगों को डैम से वह बोरी निकलवाने के लिए भेजा. जब वे दोनों बोरी के पास पहुंचे तो पता चला बोरी वहां खड़े एक सूखे पेड़ के तने के निचले भाग से रस्सी से बंधी है. बोरी से तेज दुर्गंध आ रही थी. किसी तरह वे दोनों बोरी को डैम के बाहर ले आए. बोरी खुलवाई तो उस में एक जवान युवक की सड़ीगली लाश निकली. लाश की हालत देख कर लग रहा था कि युवक की हत्या एकडेढ़ हफ्ता पहले की गई होगी.

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हत्यारों ने लाश की बोरी को पानी में खड़े सूखे पेड़ के तने के निचले हिस्से से इसलिए बांध दिया था, ताकि वह पानी से ऊपर न आए और पानी में सड़ कर ही नष्ट हो जाए लेकिन डैम के पानी का स्तर कम होने की वजह से बोरी दिख गई. इस से पुलिस को आभास हो गया कि हत्यारे बेहद शातिर है. टीआई ने इस की सूचना उच्चाधिकारियों को दी तो एसपी कार्तिकेयन और डीएसपी महेंद्र मीणा भी मौके पर पहुंच गए.

एफएसएल टीम भी वहां आ चुकी थी. शव के क्षतिग्रस्त हो जाने की वजह से कोई भी उसे नहीं पहचान सका. बुरी तरह डैमेज हो चुके शव का पोस्टमार्टम जिला अस्पताल में होना संभव नहीं था, इसलिए टीआई दीपक पाराशर ने उसे पोस्टमार्टम के लिए मैडिको लीगल संस्थान भेज दिया.

टीआई पाराशर के लिए यह मामला किसी चुनौती से कम नहीं था. इस चुनौती से ने निपटने के लिए पहली जरूरत मृतक की शिनाख्त की थी. इसलिए टीआई ने बैतूल के अलावा आसपास के जिलों के थानों में भी युवक के शव की फोटो के साथ अज्ञात लाश मिलने की जानकारी भेज दी.

टीआई पाराशर को जल्द ही जिले के चिचौली थाने में दर्ज हुई एक गुमशुदगी के बारे में जानकारी मिली. पता चला कि चिचोली थाने में 21 फरवरी, 2019 को 22 वर्षीय राजकुमार की गुमशुदगी दर्ज थी, जिस का अभी तक पता नहीं चल पाया था.

बरामद लाश और राजकुमार का हुलिया मिलताजुलता था. इसलिए टीआई ने राजकुमार के परिवार वालों को शाहपुरा बुला कर शव के कपड़े और कलाई में पहना कड़ा दिखाया तो उन्होंने बताया कि कपड़े और कड़ा तो राजकुमार के ही हैं.

इन चीजों से उस अज्ञात लाश की शिनाख्त राजकुमार के रूप में हो गई. इस के बाद टीआई ने मृतक के परिवार वालों से पूछताछ की तो उन्होंने राजकुमार के ससुराल वालों पर हत्या का शक जाहिर किया.

राजकुमार की ससुराल चिचौली थाने के आमढाना गांव में थी. यह गांव लाश मिलने के स्थान से ज्यादा दूर नहीं था. राजकुमार के परिवार वालों ने यह भी बताया कि दीवाली के बाद से राजकुमार की पत्नी लक्ष्मी उर्फ गौरा अपने मायके में रह रही थी.

राजकुमार उसे लाने के लिए कई बार ससुराल जा चुका था. पर वह आने का नाम नहीं ले रही थी. इस बात को ले कर कई बार उस का ससुराल वालों से विवाद भी हुआ था. घर वालों ने बताया कि राजकुमार घर से नई साड़ी ले कर ससुराल से पत्नी को लाने की बात कह कर घर से निकला था जिस के बाद वह घर वापस नहीं लौटा.

इस जानकारी से टीआई दीपक पाराशर का शक राजकुमार की ससुराल वालों पर जा कर ठहर गया. लेकिन उन्होंने जल्दबाजी में सीधे हाथ डालने के बजाए पहले अपने मुखबिरों से जानकारी जुटाई कि जिस रोज राजकुमार घर से ससुराल के लिए निकला था. उस रोज उस की ससुराल की गतिविधियों में क्या कुछ नया था.

जल्द ही पता चल गया कि उस रोज राजकुमार की ससुराल में रात भर संदिग्ध गतिविधियां चलती रही थीं. उस का साला रामरतन और कुछ अन्य लोग रात को बाइक ले कर कहीं गए भी थे. इस जानकारी के बाद थानाप्रभारी ने एक टीम भेज कर राजकुमार की पत्नी लक्ष्मी और उस के साले रामरतन को पूछताछ के लिए उठवा लिया.

दोनों से पूछताछ की गई तो वे दोनों ही इस बारे में कुछ भी जानने से इंकार करते रहे. उन्होंने बताया कि फरवरी के तीसरे हफ्ते में राजकुमार ससुराल आया ही नहीं था. जबकि आमढाना के कुछ लोग उस रोज राजकुमार के आमढाना में देखे जाने की बात बता चुके थे. इस से लग रहा था कि भाईबहन दोनों झूठ बोल रहे थे.

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इस के बाद टीआई ने दोनों से सख्ती बरती तो जल्द ही लक्ष्मी और रामरतन टूट ही गए. उन्होंने स्वीकार किया कि राजकुमार की आए दिन मारपीट से तंग आ कर उस की हत्या की गई थी. दोनों ने अपने उन साथियों के नाम भी बता दिए जो हत्या में साथ थे. उन के द्वारा अन्य लोगों के नाम बताए जाने पर पाराशर ने त्वरित काररवाई करते हुए अन्य आरोपियों पप्पू निवासी शीतलझीरी और रिकेश निवासी नहरपुर, आमढाना को भी गिरफ्तार कर लिया.

साथ ही उन की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त लाठी, डंडे और 2 मोटरसाइकिलें बरामद कर लीं. इन्हीं मोटरसाइकिलों पर राजकुमार की लाश को लाद कर डैम तक ले जाया गया था. इस के बाद विस्तार से की गई पूछताछ में पूरी कहानी इस प्रकार सामने आई—

चिचोली थानाअंतर्गत गोधरा गांव में रहने वाला 22 वर्षीय राजकुमार मजदूरों की ठेकेदारी का काम करता था. वह इलाके के मजदूरों को ठेकेदार के तौर पर आसपास के इलाकों में मजदूरी के लिए ले जाता था. इस से राजकुमार की माली हालत दूसरे मजदूरों से अच्छी थी, साथ ही मजदूरों का मुखिया होने के कारण वह अपने आप को खास समझता था.

राजकुमार चढ़ती जवानी के जोश में था सो जिन युवतियों को वह मजदूरी करवाने ले जाता था. उन के यौवन पर पहला हक भी खुद का समझता था. मजदूर युवती की अपनी मजबूरी होती थी. राजकुमार इस का फायदा उठाता था.

इसी बीच सन 2017 के अंत में राजकुमार अपने साथ जिन मजदूरों की टोली को ले कर बैतूल में चीनी के क्रेशर पर काम करने गया था, उस टोली में आमढ़ाना इलाके में सब से खूबसूरत मानी जाने वाली 19 साल की लक्ष्मी उर्फ गौरा भी शामिल थी. लक्ष्मी राजकुमार की टोली में पहली बार मजदूरी करने के लिए शामिल हुई थी.

राजकुमार की नजरें ऐसी नई युवतियों की तलाश में रहती थीं, सो लक्ष्मी को देखते ही उस ने उस का शिकार करने की ठान ली. इतना ही नहीं जिस रोज वह टोली को ले कर बैतूल पहुंचा उसी रात उस ने जबरदस्ती कर लक्ष्मी के साथ संबंध बना भी लिए. राजकुमार कई मजदूर युवतियों को शिकार बना चुका था. लेकिन गौरा उर्फ लक्ष्मी की बात कुछ और थी. लक्ष्मी की खूबसूरती और मादकता में राजकुमार का ऐसा मन रमा की वह उसे भुला नहीं सका.

इतना ही नहीं, जब टोली काम खत्म कर वापस आई तो राजकुमार ने लक्ष्मी को अपने घर पर जबरन साथ रख लिया. आदिवासी समाज में यूं तो अवैध संबंधों का चलन कम नहीं है, लेकिन इस तरह बिना शादी किए किसी को साथ रखने को सामाजिक मान्यता नहीं थी.

इसलिए जब परिवार और समाज का दबाव बढ़ा तो राजकुमार ने लक्ष्मी की मरजी के बिना उस से शादी कर ली. क्योंकि वह उसे किसी भी कीमत पर छोड़ना नहीं चाहता था. गरीबी के कारण राजकुमार की वासना को चुपचाप सहन कर रही लक्ष्मी को भरोसा था कि कभी तो उस की देह से इस पापी का मन भरेगा और उसे छुटकारा मिल जाएगा.

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जबरन शादी करने के बाद लक्ष्मी के दिल में राजकुमार के प्रति नफरत का सैलाब उमड़ने लगा. इधर कुछ दिनों बाद वही हुआ जो लक्ष्मी ने सोचा था. राजकुमार को आए दिन लड़कियां बदलने की आदत थी. वह फिर दूसरी मजदूर युवती के संग रासलीला रचाने लगा.

राजकुमार लक्ष्मी को दूसरी मजदूर लड़कियों की तरह गुलाम समझता था. जब वह उस के साथ जबान लड़ाने लगी तो राजकुमार को यह सब बुरा लगने लगा. उस की बढ़ती हिम्मत देख राजकुमार ने सुबहशाम उस की पिटाई करनी शुरू कर दी. यह जानकारी जब लक्ष्मी के भाई रामरतन को पता लगी तो उस ने राजकुमार को समझाने की कोशिश की. लेकिन राजकुमार ने रामरतन की भी पिटाई कर दी.

साथ ही वह लक्ष्मी को भी रोजाना पीटने लगा. इस से तंग आ कर लक्ष्मी दीवाली के मौके पर राजकुमार को छोड़ कर अपने मायके चली गई.  लक्ष्मी के जाने के 2 दिन बाद राजकुमार ससुराल पहुंचा तो पता चला कि लक्ष्मी वहां से अपनी बहन के पास हरदा चली गई है. इस पर राजकुमार को शक हो गया कि लक्ष्मी के अपने बहनोई से अवैध संबंध हैं.

उस ने हरदा जा कर लक्ष्मी और उस की बहन के पति दोनों के साथ मारपीट की और वापस घर आ गया. लक्ष्मी अब राजकुमार के साथ हरगिज नहीं रहना चाहती थी. इसलिए वह हरदा से चुपचाप होशंगाबाद चली गई. वहां रह कर वह मजदूरी करने लगी.

वहीं दूसरी ओर राजकुमार आए दिन आमढ़ाना जा कर लक्ष्मी के लिए गालीगलौज करने लगा, वह उन्हे तंग कर के लक्ष्मी का पता मालूम करने की कोशिश करता. पता बताने के लिए कभी वह ससुर को पीट देता तो कभी साले को. और तो और कभी गुस्से में आ कर ससुराल के आंगन में घूम रहे मुरगामुरगी को पकड़ कर उन की गरदन मरोड़ देता. इस सब से ससुराल वाले उस से तंग आ चुके थे.

इसी बीच पास के एक गांव में लक्ष्मी के भाई रामरतन का रिश्ता पक्का हो गया. इस बात की खबर लगने पर राजकुमार समझ गया कि लक्ष्मी जहां भी होगी भाई की शादी में शामिल होने के लिए अपने घर जरूर आएगी.

इसलिए वह उस के मायके पर नजर रखने लगा. फरवरी में भाई की सगाई के मौके पर लक्ष्मी गांव आ गई. जिस दिन उस का पूरा घर सगाई करने पास के गांव गया, मौका देख कर राजकुमार अपनी ससुराल आमढ़ाना पहुंच गया और लक्ष्मी को खींच कर अपने साथ लाने लगा.

लक्ष्मी के विरोध करने पर वह उस के संबंध बनाने की जिद पर अड़ गया. इस पर लक्ष्मी ने योजना से काम किया. उस ने राजकुमार से कहा, ‘‘मैं साथ चलने को राजी हूं लेकिन घर वालों को आ जाने दो. फिर तुम दामाद की तरह आना और मैं पत्नी की तरह तुम्हारे साथ चलूंगी.’’

‘‘लेकिन नहीं चली तो याद रखना, तेरे घर वालों के सामने ही मैं तुझे जमीन पर गिरा कर क्या हाल करूंगा तूने सोचा भी नहीं होगा.’’ राजकुमार ने धमकी दी.

‘‘कर लेना बाबा, लेकिन तभी ना जब मैं साथ चलने को मना करूंगी. मैं ने घर वालों से बात कर ली है. वे सब तैयार हैं.’’ लक्ष्मी बोली.

राजकुमार पत्नी की बातों में आ कर वापस घर लौट गया और शाम को पत्नी के लिए नई साड़ी ले कर उसे लेने के लिए घर से निकल गया. दूसरी तरफ लक्ष्मी के परिवार वाले भाई की सगाई कर वापस आए तो उस ने उन्हें रोते हुए राजकुमार के वहां आने की बात बता दी.

घर वाले राजकुमार से पहले से ही तंग आ चुके थे. इसलिए उन्होंने उस का काम तमाम करने की ठान ली. शाम के समय राजकुमार जैसे ही गांव के पास पहुंचा तो लक्ष्मी के साथ उस के भाई रामरतन, शीतलझीरी निवासी पप्पू और नहरपुर आमढ़ाना निवासी रिकेश ने उसे घेर कर लाठियों से पीटपीट कर अधमरा कर दिया.

इस के बाद उस के गले में कपड़ा लपेट कर उस की हत्या कर दी. फिर उस की लाश को बोरे में भर कर डैम में खड़े एक पेड़ के तने के निचले भाग से बांध दिया. ताकि लाश पानी में ही गल कर तहसनहस हो गए.

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लेकिन गरमी बढ़ने से पानी का स्तर घटा तो लाश पानी से ऊपर आ गई. केस का खुलासा हो गया. शाहपुरा टीआई दीपक पाराशर ने लक्ष्मी, रामरतन, पप्पू और रिंकेश से पूछताछ के बाद उन्हें कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

(कहानी सौजन्य- मनोहर कहानियां) 

19 दिन 19 कहानियां: दो पाटों के बीच -भाग 1

जितेंद्र सरिसाम और राधा कहार पैसों से भले ही गरीब थे, लेकिन सैक्स के मामले में किसी रईस से कम नहीं थे. भोपाल के पौश इलाके बागमुगालिया की रिहायशी कालोनी डिवाइन सिटी के एक 2 मंजिला बंगले में रहने वाले 26 वर्षीय जितेंद्र को अकसर अमीरों जैसी फीलिंग आती थी. भले ही वह जानतासमझता था कि इस महंगे डुप्लेक्स मकान में वह कुछ दिनों का मेहमान है, इस के बाद तो फिर किसी झोपड़े में आशियाना बनाना है.

दरअसल, जितेंद्र पेशे से मजदूर था. चूंकि रहने का कोई ठिकाना नहीं था, इसलिए ठेकेदार ने उसे इस शानदार मकान में रहने की इजाजत दे दी थी, जो अभी बिका नहीं था. यह कोई नई बात नहीं है क्योंकि जहांजहां भी कालोनियां बनती हैं, वहांवहां ठेकेदार या कंस्ट्रक्शन कंपनी मजदूरों को बने अधबने मकानों में रहने को कह देती हैं. इस से मकान और सामान की देखभाल भी होती रहती है और मजदूरों के वक्तबेवक्त भागने का डर भी नहीं रहता.

मध्य प्रदेश के आदिवासी बाहुल्य जिले छिंदवाड़ा की तहसील जुन्नारदेव के गांव गुरोकला का रहने वाला जितेंद्र देखने में हैंडसम लगता था और उन लाखों कम पढ़ेलिखे नौजवानों में से एक था, जो काम और रोजगार की तलाश में शहर चले आते हैं.

इन नौजवानों के बाजुओं में दम, दिलों में जोश और आंखों में सपने रहते हैं कि खूब मेहनत कर वे ढेर सा पैसा कमा कर रईसों सी जिंदगी जिएंगे. यह अलग बात है कि अपनी ही हरकतों और व्यसनों की वजह से वे कभी रईस नहीं बन पाते.

जितेंद्र भोपाल आया तो उस के सामने भी पहली समस्या काम और ठिकाने की थी. जानपहचान के दम पर भागदौड़ की तो न केवल मजदूरी का काम मिल गया बल्कि ठेकेदार ने रहने के लिए एक अधबना मकान भी दे दिया.

यह कमरा जितेंद्र के लिए जन्नत से कम साबित नहीं हुआ. आने के 4 दिन बाद ही उसे पता चला कि बगल वाले कमरे में एक अकेली औरत रहती है, जिस का नाम राधा है. बातचीत हुई और पहचान बढ़ी तो उसे यह जान कर खुशी हुई कि राधा भी उस की तरह न केवल अकेली है, बल्कि उस के ही जिले यानी छिंदवाड़ा की रहने वाली है.

35 वर्षीय राधा को देख कर कोई नहीं कह सकता था कि वह 13 साल के एक बेटे की मां भी है. गठीले कसे बदन की सांवली छरहरी राधा जैसी पड़ोसन पा कर जितेंद्र खुद को धन्य समझने लगा. जल्द ही दोनों में दोस्ती हो गई.

इस इलाके के लोग जब बाहर निकलते हैं तो उन की बातें अपने इलाके के इदगिर्द घूमती रहती हैं. जितेंद्र को राधा ने बता दिया कि उस की शादी कोई 15 साल पहले मदन कहार से हुई थी, जिस ने उसे छोड़ दिया है.

बेटा उस के पिता यानी अपने नाना के घर रहता है और जिंदगी गुजारने की गरज से वह भी उस की तरह मजदूरी कर रही है. कुल मिला कर वह इस दुनिया में अकेली है.

ऐसी ही बातों के दौरान एक दिन जितेंद्र ने उस से कहा, ‘‘अकेली कहां हो, मैं जो हूं तुम्हारा.’’

इतना सुननेबाद रा के धा बहुत खुश हुई और उसी रात दोनों एकदूसरे के हो भी गए. आग और घी पास रखे जाएं तो नतीजा क्या होता है, यह जितेंद्र और राधा की हालत देख कर समझा जा सकता था. जितेंद्र ने पहली बार और राधा ने मुद्दत बाद देहसुख का आनंद लिया तो दोनों एकदूसरे की उम्मीदों पर पूरी तरह खरे उतरे.

दोनों दिन भर मजदूरी करते थे और शाम के बाद रात को एकदूसरे में समा जाते थे. धीरेधीरे दोनों पतिपत्नी की तरह रहने लगे चूल्हाचौका एक हो गया, गृहस्थी के लिए आने वाला राशनपानी एक हो गया, खर्चे एक हो गए. फिर देखते ही देखते बिस्तर भी एक हो गया. यानी दोनों लिवइन रिलेशन में रहने लगे. दूसरे नए मजदूर साथी इन्हें मियांबीवी ही समझते थे, लेकिन पुराने जानते थे कि हकीकत क्या है.

प्यार और शरीर सुख में डूबतेउतराते जितेंद्र और राधा को दुनिया जमाने की परवाह नहीं थी कि कौन क्या कहतासोचता है. वे तो अपनी दुनिया में मस्त थे, जहां तनहाई थी, सुकून था और प्यार के अलावा रोज तरहतरह से किया जाने वाला सैक्स था,जो मजे को दो गुना, चार गुना कर देता था.

देखा जाए तो दोनों वाकई स्वर्ग की सी जिंदगी जी रहे थे, जिस में कोई बाहरी दखल नहीं था. न तो कोई कुछ पूछने वाला था और न ही कोई रोकनेटोकने वाला. इन्हें और इन की जिंदगी देख कर कोई भी रश्क कर सकता था कि जिंदगी हो तो ऐसी, प्यार और शरीर सुख में डूबी हुई जिस में गरीबी या अभाव आड़े नहीं आते.

राधा पर भले ही कोई बंदिश नहीं थी, लेकिन जितेंद्र पर थी. इस साल की शुरुआत से ही उस के घर वाले उस पर शादी कर लेने का दबाव बना रहे थे, जिसे शुरू में तो वह तरहतरह के बहाने बना कर टरकाता रहा, लेकिन घर वालों खासतौर से गांव में रह रहे पिता भारत सिंह को उस की दलीलों और बहानों से कोई लेनादेना नहीं था.

उन की नजर में बेटा ठीकठाक कमाने लगा था, इसलिए अब उसे शादी के बंधन में बांधना जरूरी हो चला था, जिस से वह घरगृहस्थी बसाए और बहके नहीं.

लेकिन उन्हें क्या मालूम था कि बेटा 4 साल पहले भोपाल आने के तुरंत बाद ही बहक चुका था. घर वालों का दबाव जितेंद्र पर बढ़ा तो उस ने शादी के बाबत हां कर दी.

लेकिन उस ने जब यह बात राधा को बताई तो वह बिफर उठी. उस ने साफसाफ कह दिया कि वह उसे किसी दूसरी औरत, चाहे वह उस की ब्याहता ही क्यों न हो, से बंटते नहीं देख सकती.

राधा की बात सुन कर जितेंद्र सकपका उठा. घर वालों को वह शादी के लिए न कहता तो वे भोपाल आ टपकते और राधा उस की मजबूरी को समझने के लिए तैयार नहीं थी.

अब एक तरफ कुआं था तो दूसरी तरफ खाई थी. धर्मसंकट में पड़े जितेंद्र ने राधा को तरहतरह से समझाया. घर वालों की दुहाई दी और यह वादा भी कर डाला कि वह होने वाली पत्नी रिनिता को भोपाल नहीं लाएगा, बल्कि बहाने बना कर उसे गांव में ही रहने देगा. अपने आशिक की इस मजबूरी से समझौता करते हुए राधा को आखिर तैयार होना ही पड़ा.

मई के महीने में जितेंद्र अपने गांव गुरीकला गया और सलैया गांव की रिनिता से उस की शादी हो गई. रिनिता काफी खूबसूरत भी थी और मासूम और भोली भी, जो शादी तय होने के बाद से ही सपने देख रही थी कि शादी के बाद वह पति के साथ भोपाल जा कर रहेगी. जब वह काम से लौटेगा तो उस के लिए अच्छाअच्छा खाना बना कर खिलाएगी और दोनों भोपाल घूमेंगेफिरेंगे.

इधर राधा चिलचिलाती गरमी के अलावा ईर्ष्या की आग में भी जल रही थी कि कहीं ऐसा न हो कि नईनवेली पत्नी के चक्कर में फंस कर जितेंद्र उसे भूल जाए और 4 साल सुख भोगने के बाद वह फिर अकेली रह जाए.

रहरह कर उसे दिख रहा था कि जितेंद्र रिनिता की मांग में सिंदूर भर रहा है, उसे मंगलसूत्र पहना रहा है और उस के साथ सात फेरे लेने के बाद सुहागरात मना रहा है.

19 दिन 19 कहानियां: दो पाटों के बीच -भाग 2

दो पाटों के बीच : भाग 1

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वह जलभुन कर खाक हुई जा रही थी. राधा के पास सांत्वना देने वाली एकलौती बात यह और थी कि जितेंद्र पत्नी को साथ ले क र नहीं आएगा और फिर दोनों पहले की तरह मौजमस्ती में डूब जाएंगे.

ऐसा हुआ भी, जितेंद्र शादी के कुछ दिनों बाद जब भोपाल आया तो उस समय वह अकेला था. यह देख राधा खुशी से फूली न समाई और उस की बांहों में झूल गई.

दोनों फिर अपनी दुनिया में मशगूल हो गए. शादी के बाद रिनिता के साथ सैक्स में जितेंद्र को वह मजा कतई नहीं आया था, जो भोपाल में राधा के साथ आता था. रिनिता शर्मीली थी और सैक्स के बारे में ज्यादा कुछ नहीं जानती थी, जबकि जितेंद्र पक्का खिलाड़ी था, जिसे नाजनखरे, मनाना और देरी बिलकुल पसंद नहीं आती थी.

बहाने बना कर वह रिनिता को घर छोड़ आया. जब उस ने रिनिता की कोई खोजखबर नहीं ली तो पिता भारत को चिंता हुई. लिहाजा 3 महीने इंतजार करने के बाद उन्होंने रिनिता को भोपाल भेज दिया.

अपने पिता से डरने वाला और उन का लिहाज करने वाला जितेंद्र रिनिता को भोपाल आया देख सकते में आ गया. जबकि राधा के तो मानो तनबदन में आग लग गई. लेकिन अब कुछ नहीं हो सकता था, इसलिए वह कसमसा कर रह गई.

कुछ दिन तो दोनों सब्र का दामन थामे एकदूसरे से बेमन से दूर रहे, लेकिन अगस्त के महीने की बारिश राधा के तनमन को कुछ इस तरह सुलगा रही थी कि उस से जितेंद्र की दूरी बरदाश्त नहीं हो रही थी.

इधर रिनिता खुश थी. भीड़भाड़ वाले शहर की रौनक, मौसम और अपना घर इस नईनवेली को उत्साह और रोमांस से भर रहे थे लेकिन पति की बेरुखी की वजह से वह समझ नहीं पा रही थी. राधा को उस ने दूर से देखा भर था, जिस ने पड़ोसन होने का शिष्टाचार भी नहीं निभाया था. इसे वह शहर का दस्तूर मान कर चुप रही और रोज सजसंवर कर पति का दिल जीतने की कोशिश करती रही.

2 सितंबर को वह उस वक्त सन्न रह गई, जब उस ने दिनदहाड़े पति को राधा के साथ एकदम निर्वस्त्र हालत में रंगरलियां मनाते देख लिया. रिनिता पर बिजली सी गिरी. पति और पड़ोसन की बेशरमी और बेहयाई के दृश्य देख उस का सब कुछ लुट चुका था. पति की हकीकत उस के सामने थी कि क्यों वह पहले ही उस से खिंचाखिंचा रहता था.

जितेंद्र राधा के साथ रासलीला मना कर वापस आया तो भरी बैठी रिनिता ने उस से सवालजवाब करने के साथसाथ उस के नाजायज संबंधों पर पर भी सख्त ऐतराज जताया. पहले तो जितेंद्र ने सफाई दे कर उसे तरहतरह के बहाने और दलीलें दे कर बहलाने फुसलाने की कोशिश की, लेकिन कुछ देर पहले ही रिनिता ने जो देखा था, उस से कोई भी पत्नी समझौता नहीं कर सकती.

लिहाजा वह पति पर भड़क गई. बात बढ़ते देख रिनिता ने उसे धमकी दे दी कि सुबह होते ही वह ससुर को उस की सारी करतूत बता देगी.

इस पर जितेंद्र की रूह कांप उठी. उसे मालूम था कि सख्त और उसूलों के धनी उस के पिता को यह सब पता चलेगा तो वह उसे यहीं से छिंदवाड़ा तक घसीटते हुए ले जाएंगे और उस का जो हाल करेंगे, वह नाकाबिले बरदाश्त होगा.

पतिपत्नी में तूतू मैंमैं चल ही रही थी कि उसी समय राधा भी वहां आ पहुंची और जितेंद्र के पक्ष में बोलने लगी. राधा और रिनिता दोनों खूंखार बिल्लियों की तरह लड़ते हुए एकदूसरे को दोषी ठहराने लगीं.

इसी दौरान जितेंद्र ने फैसला ले लिया कि रिनिता उसे वह सुख नहीं दे सकती जोकि राधा देती है. लिहाजा उस ने उसी समय दोनों में से राधा को चुनने का फैसला ले लिया.

इस के बाद जितेंद्र ने पत्नी रिनिता की गरदन दबोच ली. राधा भी उस का साथ देने आ गई और दोनों ने उस का गला घोंट दिया. कुछ देर छटपटा कर रिनिता वहीं लुढ़क गई.

हत्या तो कर दी, लेकिन इस के बाद जितेंद्र और राधा दोनों घबरा उठे कि अब लाश का क्या करें, लेकिन कुछ तो करना ही था. उन्होंने उस की लाश बोरे में भर कर एक नाले में फेंक दी.

फिर 5 सितंबर को खुद को हैरानपरेशान दिखाता हुआ जितेंद्र बागमुगालिया थाने पहुंचा और अपनी पत्नी रिनिता की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई.

टीआई शैलेंद्र शर्मा को उस ने बताया कि उस की 22 वर्षीय पत्नी रिनिता 3 दिनों से गायब है, जिस की वह हर मुमकिन जगह तलाश कर चुका है लेकिन वह नहीं मिली. अनुभवी शैलेंद्र शर्मा ने जब सारी जानकारी ली तो उन्हें लगा कि आमतौर पर नवविवाहितों के नैतिकअनैतिक संबंध हादसे की वजह होते हैं.

उन्होंने जब और गहराई से जितेंद्र से सवालजवाब किए तो यह जान कर हैरान रह गए कि रिनिता तो भोपाल में एकदम नई थी. इसी पूछताछ में राधा का और जिक्र आया तो उन्हें कहानी कुछकुछ समझ आने लगी.

रिपोर्ट दर्ज कर टीआई ने जितेंद्र को जाने दिया, लेकन उस के पीछे अपने मुलाजिम लगा दिए, जो जल्द ही काम की यह जानकारी खोद कर ले आए कि जितेंद्र और राधा के कई सालों से नाजायज संबंध हैं और दोनों पतिपत्नी की तरह रह रहे हैं.

मामला जब भोपाल (साउथ) एसपी संपत उपाध्याय के पास पहुंचा तो उन्होंने एएसपी संजय साहू और एसडीपीओ अनिल त्रिपाठी को इस मामले की छानबीन के लिए लगा दिया.

पुलिस वालों को ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ी. 6 दिसंबर को इसी इलाके की एक और कालोनी रुचि लाइफस्केप के चौकीदार गोवर्धन साहू ने पुलिस को इत्तला दी कि कालोनी के पास बहने वाले नाले में एक बोरे में लाश तैर रही है.

लाश बरामद करने के लिए पुलिस टीम नाले के पास पहुंची तो लाश के बोरे के बाहर झांकते पैर साफ बता रहे थे कि वह किसी युवती की है. पुलिस बोरा खोल पाती, इस के पहले ही जितेंद्र वहां पहुंच गया और बिना लाश देखे ही कहने लगा कि यह उस की पत्नी रिनिता की लाश है.

बात अजीब थी लेकिन एक तरह से खुद जितेंद्र ने जल्दबाजी में अपने गुनाह की पोल खोल दी थी. फिर कहनेकरने को कुछ नहीं बचा था. अनिल त्रिपाठी ने जितेंद्र को बैठा कर पुलिसिया अंदाज में पूछताछ की तो उस ने सब कुछ उगल दिया, जिस की बिनाह पर राधा को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया.

दरअसल, सितंबर के पहले सप्ताह में भोपाल में जोरदार बारिश हो रही थी. हत्या के बाद जितेंद्र और राधा ने रिनिता की लाश को बोरे में बंद कर यह सोचते हुए घर से कुछ ही दूरी पर नाले में फेंक दी थी कि वह पानी में बह जाएगी और कुछ दिनों में सड़गल जाएगी. फिर किसी को हवा भी नहीं लगेगी कि रिनिता कहां गई. बाद में जितेंद्र घर वालों के सामने उस के गायब होने का कोई भी बहाना बना देगा. इस के बाद दोनों पहले जैसी ही जिंदगी जिएंगे.

पर लाश नहीं बही तो दोनों को चिंता हुई. जितेंद्र जिस ने 3 दिन बाद पत्नी की गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखाई थी, वह दरअसल बोरे की निगरानी कर रहा था कि बोरा वहां से बहे तो पिंड छूटे. 6 दिसंबर को जब चौकीदार ने पुलिस को नाले में लाश पड़ी होने की खबर दी तो वह पुलिस टीम के पीछेपीछे ही पहुंच गया और बोरा खुलने से पहले लाश की पहचान भी कर ली.

अब राधा और जितेंद्र जेल में बैठे अपने मौजमस्ती के दिन याद करते कलप रहे हैं. दोनों को सजा होनी तय है, लेकिन बड़ी गलती जितेंद्र की है, जिस ने अधेड़ प्रेमिका की हवस के लिए बेगुनाह बीवी को ठिकाने लगाना ज्यादा बेहतर समझा.

नाजायज संबंधों का ऐसा अंजाम नई बात नहीं है, लेकिन अगर जितेंद्र घर वालों से बगावत कर के और उन की परवाह न करते हुए राधा से ही शादी कर लेता तो दोनों शायद हत्या के गुनाह से भी बच जाते.

लगता नहीं कि दोनों यह सब सोच रहे होंगे, बल्कि वे सोच रहे होंगे कि रिनिता की लाश बह कर सड़गल जाती तो रास्ते का कांटा निकल जाता.

ज्यादा पगार फसाद हजार

बीती 10 नवंबर को देशभर के प्रमुख अखबारों में राष्ट्रीय परीक्षा बोर्ड का एक छोटा सा विज्ञापन प्रकाशित हुआ था जिस में कुछ रिक्तियों के लिए आवेदनपत्र मंगाए गए हैं. यह बोर्ड भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के तहत काम करता है.

इस विज्ञापन में 2 अहम पदों अपर निदेशक, चिकित्सा और निदेशक, गैरचिकित्सा का वेतनमान 1,23,100-2,15,800 था. पेबैंड 4 के बराबर इस पद के लिए ग्रेड पे 8,700 रुपए था. वेतन की इस सरकारी रामायण का सार इतना भर था कि डैपुटेशन यानी प्रतिनियुक्ति वाले इन पदों के लिए जो उम्मीदवार चुना जाएगा उसे लगभग 1 लाख 75 हजार रुपए पगार मिलेगी.

इतना आकर्षक और तगड़ा वेतन क्यों और काम कितना, इस बात का आकलन या तुलना किसी भी दूसरी सरकारी नौकरी से की जा सकती है कि सभी में बस मलाई ही मलाई है, जिस से जितना हो सके, चाट लो और पेटभरने के बाद चाहो तो लुढ़का भी दो.

क्या सरकार को इतना वेतन देना चाहिए, इस बात पर अलगअलग राय लोगों की हो सकती है, लेकिन इस बात पर शायद ही कोई इनकार में सिर हिलाएगा कि सरकारी नौकरी कोई भी हो, उस में पगार ज्यादा, सहूलियतें बेशुमार, मनमाफिक घूस, कम जिम्मेदारियों और उन से भी अहम बात कम काम होता है. इसलिए जहां भी सरकारी नौकरी दिखती है, लोग मधुमक्खियों की तरह टूट पड़ते हैं.

बात कहने की नहीं है, बल्कि सच भी है कि सरकारी नौकरी वाकई मुफ्त के लंगर की तरह होती है जिस में खाने का न तो कोई बिल आता है और न ही कोई रोकताटोकता है.

फायदे ही फायदे

हर कोई सरकारी नौकरी चाहता है ताकि इत्मीनान से जिंदगी गुजारी जा सके और नौकरी के बाद की जिंदगी यानी रिटायरमैंट के बाद मिलती पैंशन से बुढ़ापा भी सहूलियत से कटे.

यही वजह है कि सरकारी चपरासी या माली बनने के लिए भी पीएचडीधारक तक लाजशर्म छोड़ कतार में खड़े रहते हैं. यह देश की शिक्षा व्यवस्था की दुर्दशा या गिरता स्तर कम, बल्कि सरकारी नौकरी की मौज और लुत्फ उठाने का लालच ज्यादा है कि अगर सरकारी चपरासी, ड्राइवर या माली बनने से 30-40 हजार रुपए महीना पगार मिलती है, तो सौदा घाटे का नहीं.

देश के सभी शिक्षित युवा अगर स्वाभिमानी होते तो शायद यह नौबत न आती. लेकिन जहां शिक्षा का मकसद या पहली प्राथमिकता ही, जैसी भी हो सरकारी नौकरी हासिल करना हो, तो वहां किसी क्रांति की उम्मीद करना बेकार की बात है. हां, इस बात पर झींकने वालों को हल्ला मचाने वाले इफरात से मिल जाएंगे कि सरकारी नौकरी के लिए खूब घूस चलती है और बिना सिफारिश व दक्षिणा चढ़ाए तो आप चपरासी भी नहीं बन सकते. ऐसे में किसी परीक्षा बोर्ड के डायरैक्टर बनने या दूसरी किसी बड़ी नौकरी के लिए लोग क्या कुछ नहीं करते होंगे, इस का सहज अंदाजा लगाया जा सकता है.

यही लोग बेहतर जानतेसमझते हैं कि जिंदगीभर की गारंटी और काम न करने वाली सरकारी नौकरी के लिए अगर 2-4 लाख रुपए चढ़ाने भी पड़ें तो सौदा घाटे का नहीं, यह सोच कर तसल्ली कर लेंगे कि सालदोसाल नौकरी नहीं की या देर से शुरू की.

सरकारी नौकरी के फायदे किसी से छिपे नहीं हैं, जिस में पगार प्राइवेट सैक्टर के मुकाबले काफी ज्यादा है और काम न के बराबर है. घूस का प्रावधान तो हरेक सरकारी नौकरी में है ही, वहीं सहूलियतों की भरमार भी है. भविष्य सुनिश्चित करती पैंशन के अलावा चिकित्सा सुविधाएं, इफरात से मिलती छुट्टियां और हर साल कम से कम 8 फीसदी बढ़ती पगार भला किसे नहीं लुभाएगी.

इस सचाई को भोपाल के एक उदाहरण से आसानी से समझा जा सकता है जहां के 31 वर्षीय अविनाश ने एमटैक करने के बाद सरकारी हाईस्कूल में शिक्षक बनना पसंद किया और उस की सहपाठी व कजिन ज्योत्सना ने नामी प्राइवेट कंपनी टीसीएस में मुंबई में नौकरी की. इन दोनों का ही वेतन 40 हजार रुपए के लगभग है.

ज्योत्सना मुंबई के परेल में रहती है, नौकरी पर जाने के लिए उसे सुबह 6 बजे उठना पड़ता है और रात 8 से 10 बजे के बीच अपने फ्लैट में वापस आ पाती है, जिस का उस के हिस्से का किराया 10 हजार रुपए है. इस तरह लगभग 12 घंटे की नौकरी वह करती है और बमुश्किल 8 घंटे की नींद ले पाती है. बाकी के 4 घंटे ही उसे अपने लिए मिलते हैं, जिस से वह अपने दैनिक कामकाज निबटाती है और थोड़ाबहुत वक्त सोशल मीडिया पर गुजारती है.

उलट इस के, अविनाश घर से

25 किलोमीटर दूर सुबह 10 बजे खुलने वाले स्कूल में इत्मीनान से 12 बजे पहुंचता है और आमतौर पर 4 बजे घर के लिए चल देता है. इन 4 घंटों में कितना पढ़ाना है, यह वह खुद तय करता है, क्योंकि न तो प्रिंसिपल उस से कभी कुछ पूछता है और न ही शिक्षा विभाग का कोई अधिकारी कभी स्कूल में आता. अगर भूलेभटके कोई आ भी जाए तो चायनाश्ता कर और पंडों की तरह दक्षिणा अपनी झोली में डाल कर चलता बनता है.

ज्योत्सना और अविनाश की फोन पर अकसर बात होती है जिस में ज्योत्सना मुंबई की अपनी जिंदगी और नौकरी की दुश्वारियां बताती रहती है तो अविनाश उस की नादानी पर हंसता रहता है कि अगर वह भी उस की तरह सरकारी टीचर बनना कुबूल कर लेती तो आराम से घर में पड़ी रह कर अपने सेविंग अकाउंट में पैसा जमा कर रही होती. न तो यहां कोई टीम लीडर होता और न ही ही प्रोजैक्ट नाम की बला होती. यहां क्लाइंट विदेशों से नहीं आते, बल्कि देश के गरीब बच्चे होते हैं जो दिनभर हुड़दंग मचाते, मिडडे मील खा कर कूदतेफांदते घर लौट जाते हैं.

इन दोनों के बीच एकलौता फर्क इतना भर है कि ज्योत्सना मानती है कि उस के सामने अपार संभावनाएं हैं और अगर वह बेहतर काम का प्रदर्शन करेगी तो आज नहीं तो कल, कंपनी में ऊंचे पद पर होगी और अपनी पढ़ाई का सही इस्तेमाल करते योग्यता दिखा पाएगी, जबकि अविनाश के सामने ऐसी कोई चुनौती या लक्ष्य नहीं है. वह 6 घंटे सोशल मीडिया पर रहते टाइमपास यानी समय बरबाद करता है.

इन दिनों कौन बुद्धिमान है और कौन नादान, यह तय करने के हरेक के अपने पैमाने हो सकते हैं लेकिन व्यावहारिक तौर पर अविनाश ने बुद्धिमानीभरा रास्ता चुना था. इसी बात को दूसरे लफ्जों में कहें तो उस ने एक आसान और चुनौतीरहित जिंदगी चुनी थी जिस में कोई भागादौड़ी नहीं है, और न ही पैसों की कमी है. मम्मीपापा साथ हैं, उस के लिए हर सप्ताह एक नया रिश्ते वाला आता है. उस की खुद की कार है और नौकरी जाने की चिंता तो कतई नहीं है.

और मिलता बाजार भाव तो

अविनाश और ज्योत्सना के उदाहरण और तुलना का सरकार और बाजार से भी सीधा संबंध है. सरकार अपने कर्मचारियों को वेतन, वेतन आयोग की सिफारिशों और खुद के बनाए नियमकानूनों के तहत देती है जबकि इस रिवाज, जो अब रूढ़ी बनता जा रहा है, को बदलते वह अगर बाजार भाव से वेतन दे तो शायद ही कोई युवा सरकारी नौकरी प्राथमिकता में रखेगा.

खुद अविनाश मानता है कि प्राइवेट स्कूलों के टीचर उस से 5 गुना ज्यादा मेहनत और काम करते हैं और उन्हें उस से 5 गुना कम तनख्वाह मिलती है. यह एक शिक्षक का सही बाजार मूल्य है कि उसे प्रतिदिन 500 रुपए के लगभग दिए जाएं और काम या पढ़ाई ज्यादा से ज्यादा करवाई जाए.

हरेक सरकारी नौकरी पर यह पैमाना बराबरी से लागू होता है कि उस में काम कम और दाम ज्यादा है. घूस एक अतिरिक्त आमदनी है और सहूलियतों की भरमार है. इसीलिए सरकारी नौकरियों का आकर्षण बरकरार है. यह सब नहीं होता तो अविनाश भी किसी बड़े शहर में किसी सौफ्टवेयर कंपनी में हाड़तोड़ मेहनत कर नौकरी करते देश की तरक्की में अपना योगदान दे रहा होता.

केंद्र और राज्य सरकारों का एक बड़ा खर्च इन सफेद हाथियों को पालने का है, जिस के चलते देश की तरक्की में रोड़े पेश आते हैं. अगर वक्त पर सरकारी कर्मचारियों को तनख्वाह न मिले तो वे कामकाज ठप कर हायहाय करते सड़कों पर नारे लगाते नजर आते हैं. उलट इस के, प्राइवेट सैक्टर के कर्मचारियों को तनख्वाह देर से मिले तो भी वे अपना काम पहले की तरह करते रहते हैं. अब इसे उन की समझ कह लें, धैर्य या फिर मजबूरी, इस से कोई फर्क नहीं पड़ता सिवा यह साबित होने के कि  हालात जैसे भी हों, वे काम करते हैं.

ज्यादा सरकारी वेतन एक भीषण विसंगति है, जिस का अब दूर होना जरूरी हो चला है, जिस तरह सरकार ने मजदूरों के भाव तय कर रखे हैं, अगर इसी तरह कर्मचारियों को दिहाड़ी से पगार दे तो देश से निकम्मापन दूर होते देर नहीं लगने वाली. किसी निदेशक को बजाय इतने मूल वेतन, ग्रेड पे और जीपी के, सीधे उस के काम के मुताबिक 2 हजार रुपए रोज दिए जाएं तो यह उस के साथ कोई ज्यादती नहीं होगी और न ही यह भी ज्यादती होगी कि जिस दिन वह काम पर न आए उस दिन की तनख्वाह काट ली जाए.

ज्यादा वेतन का काम के स्तर या गुणवत्ता से भी कोई संबंध नहीं है. सरकारी कालेज के एक प्रोफैसर को 7वां वेतनमान लागू होने के बाद औसतन डेढ़ लाख रुपए महीने मिल रहे हैं जबकि प्राइवेट कालेजों में उन्हीं के बराबर शिक्षित और अनुभवी प्राध्यापक 30-40 हजार रुपए में महीनेभर पढ़ा रहे हैं. यह हर कोई मानता है कि प्राइवेट कालेजों की पढ़ाई की गुणवत्ता सरकारी कालेजों से कहीं बेहतर है और वहां कक्षाएं भी नियमित लगती हैं, इसलिए छात्र ज्यादा फीस दे कर वहां पढ़ने जाना पसंद करते हैं.

ठीक उसी तरह सरकारी अस्पतालों में एक लाख रुपए महीने से ज्यादा वेतन वाले डाक्टरों के वक्त पर न आनेजाने की शिकायतें और खबरें आम हैं जिस से मरीज परेशान होते रहते हैं. उलट इस के, प्राइवेट अस्पतालों के डाक्टर या प्रैक्टिशनर्स नियमित रहते हैं जबकि उन्हें सरकारी डाक्टरों से ज्यादा आमदनी अपवादस्वरूप ही होती है.

आरक्षण कनैक्शन

तो फिर ज्यादा वेतन क्यों, जिस से दूसरी कई परेशानियां भी जुड़ी हैं. इन में सब से बड़ी और संवेदनशील जातिगत आरक्षण की है. प्राइवेट सैक्टर में आरक्षण की चर्चा तक नहीं होती. फिर विवाद उठ खड़े होने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता, लेकिन सरकारी नौकरियों में आरक्षण को ले कर आएदिन तरहतरह के फसाद खड़े होते रहते हैं. लोग सड़कों पर उतर कर धरनाप्रदर्शन करते हैं.

जाहिर है वहां मुफ्त के पैसे हैं जिन्हें कोई नहीं छोड़ना चाहता. सवर्ण चाहते हैं कि आरक्षण खत्म हो जिस से सारी सरकारी मलाई उन के हिस्से में ही आए. वहीं, आरक्षित वर्र्ग अपनी संवैधानिक भागीदारी छोड़ने के लिए तैयार नहीं है.

यह लड़ाई सामाजिक वैमनस्यता की कम, ब्रैड ऐंड बटर वाली ज्यादा है. अगर सरकार वेतन का तरीका बाजार के मुताबिक कर दे तो शायद ही आरक्षण कोई मुद्दा रह जाएगा.

जानें, राष्ट्रीय आपराधिक रिकार्ड ब्यूरो

बाल अपराध – रिपोर्ट कहती हैं कि 2018 में 1 लाख 40 हजार से ज्यादा अपराध हुए हैं. अगर इसे प्रतिदिन के हिसाब से देखे 388 अपराध हर दिन हुए है जो कि बहुत अफसोस जनक है .

CRY ( Child Right and You) NRCB की रिपोर्ट पर अपने अध्ययन में कहती हैं कि बाल अपराध में सबसे ज्यादा मामले अपहरण और जोर ज़बरदस्ती के है जो पिछले साल की तुलना में लगभग 16% बढ़े हैं.  वही पास्को ( Protection of child from Sexual Offences) के अंतर्गत दूसरे सबसे ज्यादा अपराध 39,827 मामलें दर्ज हुए हैं जिसमें 9312 केस रेप के दर्ज हुए हैं.

पौलिसी रिसर्च की डायरेक्टर प्रीति मेहरा का कहना है कि “जहां एक तरफ बाल अपराध की संख्या में वृद्धि हुई है वही दूसरी इन मामलों में रिपोर्ट का दर्ज होना ये दर्शाता है कि खुद लोग और सरकार इन आपराधिक मामलों में सचेत हुई है.”

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बाल अपराध के मामलों में उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, दिल्ली, बिहार का नाम सबसे ऊपर है जहां 51% अपराध होते हैं और इन सभी प्रदेशों में उत्तर प्रदेश का नाम सबसे ऊपर आता है.

महिला अपराध – NCRB की रिपोर्ट के मुताबिक हर 15 मिनट में एक रेप का मामला देश में दर्ज हो रहा है. 2018 में लगभग 34,000 रेप के मामले सामने आए, पिछले वर्ष की तुलना में अपराध में वृद्धि हुई है.

महिला अपराध में बढ़ोतरी की एक वजह पुलिस और कानून का सख्त न होना भी है. जैसा कि पिछले साल कुलदीप सिंह सेंगर का रेप केस सामने आने पर पुलिस ने पीड़ित के ही परिवार के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया था.

किसानों की आत्महत्याएं.. रिपोर्ट के मुताबिक 10,349 किसानों ने आत्महत्या की है.. फसल खराब होने, बढ़ते कर्ज या अन्य कारणों के चलते

साम्प्रदायिक/ जातीय दंगे – पिछले कुछ महीनों में प्रोटेस्ट और उस दौरान हिंसा भी सामने आ रही है जो कि एक गलत शुरुआत है.  जातीय और साम्प्रदायिक दंगे पिछले वर्ष की तुलना में कम दर्ज हुए हैं.

मेट्रो शहरों में अपराध में बढ़ोतरी – रिपोर्ट के मुताबिक मेट्रो शहरों में अपराध के मामलों में दिल्ली सबसे ऊपर है जहां दिल्ली में 29.6 प्रतिशत है, जिसमें भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) और विशेष व स्थानीय कानून (एसएलएल) शामिल हैं.

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NCRB की रिपोर्ट के मुताबिक साल दर साल अपराध, हिंसा में बढ़ोतरी ही हो रही है. सरकार को इस पर अध्ययन कर अपराध के कारण और रोकथाम के उपाय को लागू की जरूरत है और साथ ही पुलिस प्रशासन को आपराधिक मामलों में सचेत रहने और संवेदनशील होने की जरूरत है.. ताकि हर अपराध record हो सकें और FastTrack कोर्ट के माध्यम से एक समय सीमा के अंदर न्याय मिलने से कहीं न कहीं अपराध में कमी आएगी. 2012 का दिल्ली का सबसे क्रूरतम अपराध गैंगरेप पर अब 7 साल बाद फांसी की सजा तय की गई.  न्याय में विलंब और अपराध को छुपाया/दबाया जाना भी अपराध होने की वजह है. हम सबको अपराधी का सामाजिक बहिष्कार करना चाहिए भले ही वो किसी भी परिवार या तबके से आता है.. राजनीति में भी आपराधिक व्यक्तियों का बहिष्कार जरूरी है.. वोट देते समय जांच पड़ताल जरूर करनी चाहिए ताकि अपराधी को भी अपराध करते समय सामाजिक बहिष्कार का डर सताये.

स्टेशन पर चलता था सेक्स रैकेट : भाग 2

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अब आगे पढ़ें- 

वह कई दशक पहले प्रयागराज में चोरीछिपे अनैतिक काम करता था. किंतु पुलिस के बढ़ते दबाव के कारण उस ने वहां से लखनऊ आ कर शरण ली थी. तब से वह खुद को उत्तर प्रदेश का मूल निवासी बताने लगा था.

लखनऊ में इस ने ठहरने के कई अड्डे बना रखे थे. पुलिस की सख्ती होने पर वह जगह बदलबदल कर गैरकानूनी गतिविधियां संचालित करता था. इन दोनों किशोरियों के द्वारा भीख मांगने को इनकार करने पर वह इन से जिस्मफरोशी का धंधा करने को मजबूर करता था.

पुलिस को पता चला कि विजय बद्री के चंगुल में एक दरजन से अधिक नाबालिग बच्चे थे, जो इस के बताए हुए अलगअलग जगहों पर भीख मांगने का धंधा किया करते थे.

इस से पहले गाजीपुर थानाप्रभारी राजदेव मिश्रा ने एक शिकायत के आधार पर विजय बद्री को 26 जुलाई, 2019 को गाजीपुर थाना क्षेत्र से पकड़ा था किंतु जमानत पर रिहा हो कर वह फिर से अपराध में मशगूल हो गया था.

पता चला कि वह युवतियों को बुरी तरह प्रताडि़त भी करता था और भीख मांगने के लिए विवश करने के लिए वह उन्हें भूखा रखता था तथा सिगरेट आदि से जलाता था.

अपने गैंग में शामिल करने के लिए वह बच्चों को खोजता रहता था. बच्चे खोजने के लिए वह खुद भी भीख मांगतेमांगते असम और बिहार तक चला जाता था. वहां कुछ दिन रुक कर कुछ सस्ते दामों में भोलीभाली गरीब बच्चियों को अपने अड्डे पर ले आता था.

वह किशोरियों से भीख ही नहीं मंगवाता था बल्कि उन से जिस्मफरोशी का धंधा भी करवाता था. वह उन्हें होटलों में भेजता था. इस से उसे अच्छी कमाई हो जाती थी. बताया जाता है कि उस के पास 30 किशोरियां थीं.

विजय बद्री के गैंग में जो भी लड़कियां आती थीं, सब से पहले वह उन्हें नशे की लत लगाता था. वह उन्हें अफीम, गांजा, भांग व दारू के नशे की आदत डालता था. जब वे नशे की आदी हो जाती थीं तो वह उन्हें जिस्मफरोशी के दलदल में ढकेल देता था.

मना करने पर रात को बेहोशी में सोने के दौरान नशे के इंजेक्शन दे कर उन्हें नशेड़ी बनाता. इतना ही नहीं ब्लेड से उन किशोरियों के शरीर पर गहरा चीरा लगा कर खून निकालता फिर उस खून से पट्टियां भिगो कर अपने कटे हुए दिव्यांग अंगों पर बांध लेता जिस से लोगों को लगे कि उस के जख्मों से खून निकल रहा है. इस से उसे भीख में ज्यादा पैसे मिलते थे.

विजय बद्री दाहिने पैर से विकलांग था. उस का घुटनों से ऊपर पैर कटा हुआ था और सुबह को यह खून से भीगी पट्टी पैर के कटे हुए भाग पर बांध कर नाटक बनाने के बाद भीख मांगने के लिए खुद भी ट्रेन में निकल जाता था.

भीख मांगते समय बद्री मौका मिलते ही यात्रियों का मोबाइल आदि भी चोरी कर लिया करता था. वह विकलांग जरूर था लेकिन दिमाग से बहुत शातिर था.

गुंजा व मंजुला ने बताया कि उन्होंने कई बार मुंशी पुलिया पुलिस चौकी पर जा कर मदद की गुहार लगाई थी, किंतु पुलिस ने उन्हें हर बार डपट कर भगा दिया था. विजय बद्री ने पुलिस को बताया कि नाबालिग किशोरियां जल्दी बड़ी दिखने लगें, इस के लिए वह उन्हें रात में हारमोंस के इंजेक्शन लगाता था.

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गाजीपुर पुलिस के द्वारा विजय बद्री द्वारा बताए स्थानों की सघन तलाशी कराई गई तो पुलिस को पता चला कि आरोपी विजय बद्री तो गैंग का एक मामूली मोहरा था. उस के पीछे जिस्मफरोशी का रैकेट चलाने वाले सफेदपोश लोगों का हाथ था.

गैंग को संचालित करने वाले 3 लोगों के नाम सामने आए, जिस में एक शर्मीला नाम की औरत बताई जाती है. उस महिला ने पुलिस को बताया कि वह केवल विजय बद्री के यहां रोटीपानी के लिए काम करती थी. ये सफेदपोश लोग बाहर से युवतियां खरीद कर विजय बद्री के हाथ अड्डे पर बेच जाया करते थे. उस के बदले उन्हें बद्री मोटी रकम दिया करता था.

गाजीपुर पुलिस को छानबीन में पता चला कि विजय बद्री उर्फ बंगाली ने अब तक अपने जीवन में 30 लड़कियों को जिस्मफरोशी के  लिए चारबाग रेलवे स्टेशन के बाहर 10 हजार से ले कर 40 हजार रुपए तक में बेचा था.

इस काले धंधे को पूर्ण अंजाम तक पहुंचाने के लिए सीतापुर रोड के कल्याणपुर निवासी सुमेर नाम के व्यक्ति का पूरा सहयोग रहता था. गाजीपुर पुलिस ने सुमेर को पकड़ कर 18 सितंबर, 2019 को जेल भेजा था. सुमेर ने पुलिस की गिरफ्त में आने के बाद शमीम नामक व्यक्ति के संपर्क में आ कर इस मानव तस्करी में लिप्त रहने की बात कबूली थी.

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सुमेर व विजय बद्री को न्यायालय में पेश किया गया जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया. वहीं दोनों युवतियां गुंजा व मंजुला खातून को मोहान रोड स्थित महिला सुधार गृह और दोनों बालकों को बाल सुधार गृह में दाखिल करा दिया गया.

5 अक्तूबर, 2019 को जांच पूरी करने के बाद थानाप्रभारी राजदेव मिश्रा आरोपियों के खिलाफ शीघ्र ही आरोप पत्र दाखिल करने की तैयारी में थे.

— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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