रणजीत श्रीवास्तव हत्याकांड
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कानून व्यवस्था सुधारने के जितने प्रयास कर रहे हैं, प्रदेश की कानून व्यवस्था उतनी ही खराब होती जा रही है. पुलिस का कमीश्नरी सिस्टम भी काम नहीं आया. राजधानी लखनऊ में सुबह शहर के बीच ओ बीच रणजीत की हत्या हो जाती है. रणजीत हिन्दूवादी नेता थे. कुछ माह पहले ही शहर के बीच में एक और हिन्दूवादी नेता कमलेश तिवारी की हत्या कर दी जाती है. हिन्दूवादी मुख्यमंत्री के राज में एक के बाद एक हिन्दूवादी नेताओं की हत्या योगी सरकार पर सवालिया निशान लगा रहे है. रणजीत का महत्व इसलिये भी ज्यादा है क्योंकि वह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के जिले गोरखपुर का ही रहने वाला था. कमलेश तिवारी हत्याकांड के पुलिसिया खुलासे से उसका परिवार सहमत नहीं था. रणजीत श्रीवास्तव की हत्या में पुलिस के शक की सुई करीबी लोगों की ही तरफ घूम रही है.
रणजीत श्रीवास्तव गोरखपुर शहर के अहरौली गांव का रहने वाले था. 20 साल पहले रणजीत के पिता तारा लाल अपने परिवार के साथ गोरखपुर के भेडियाघाट पर रहने आये थे. इसके बाद तारा लाल के पतरका गांव में जमीन खरीदी. रणजीत खुद गोरखपुर में रहता था. रणजीत का पढ़ने लिखने में मन नहीं लगता था. ऐसे में वह अपनी बहुत पढ़ाई नहीं कर सका. उसकी माली हालत अच्छी नहीं थी. रणजीत श्रीवास्तव को एक्टिंग का शौक था. ऐसे में उसने अपना नाम रणजीत श्रीवास्तव से बदल कर रणजीत बच्चन कर लिया. वह फिल्म अभिनेता अमिताभ बच्चन से बहुत प्रेरित था. जब उसको एक्टिंग में सफलता नहीं मिली तो उसने नये लोगों को प्रशिक्षण देने का काम करने लगा. उसके पास इसके लिये कोई जगह नहीं थी. ऐसे में उसने टीनशेड के नीचे रंगमंच से जुड़े कलाकारों को प्रशिक्षण देने का काम शुरू किया.
रंगमंच से जुड़े होने के बाद भी जब वह सफल नहीं हो पाया तो उसने राजनीति और समाजसेवा को अपना रास्ता बनाया. रणजीत को सुर्खियों में रहने का शौक था. इसके लिये उसने कई सामाजिक संस्थाओं को बनाकर काम करना शुरू किया. सुर्खियों में रहने के लिये वह पत्रकार संगठन और जातीय संगठन भी बनाकर काम करने लगा. गोरखपुर में रणजीत ने जापनी इंसेफेलाइटिस, पल्स पोलियो, महापुरूषों की प्रतिमाओं को साफ सफाई करने का अभियान चलाया. इस बहाने वह राजनीति में भी खुद को रखना चाहता था. ऐसे में उसने गोरखपुर से दूर उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में अपना काम शुरू करने का फैसला किया.
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पारिवारिक विवादों से नाता
एक तरफ का सामाजिक और राजनीतिक चेहरा था. दूसरी तरफ पारिवारिक विवादों से उसका नाता था. रणजीत की शादी कालिंन्दी के साथ हुई थी. कालिन्दी भी भेडियाघाट स्थित रणजीत के घर के पास की रहने वाली थी. 2017 में रणजीत की साली ने शाहपुर थाने में रणजीत के खिलाफ ही छेडखानी, मारपीट और बलात्कार का मामला दर्ज कराया था. पुलिस की मिलीभगत से रणजीत कागजों पर फरार चल रहा था. पुलिस ने खानापूर्ति के लिये रणजीत के पतरका गांव स्थित टीनशेड वाले घर पर कुर्की का आदेश चस्पा करके अदालत में कागजों पर फरार दिखा दिया था. साली के द्वारा बलात्कार का मुकदमा लिखाने के बाद रणजीत ने ससुराल से अपने संबंध खत्म कर लिये थे. रणजीत की पत्नी कालिन्दी भी अपनी बहन पर मुकदमा वापस लेने का दबाव बना रही थी. इस कारण अब ससुराल से रणजीत के संबंध खत्म हो गये थे.
रणजीत की पहली पत्नी कालिंदी को भी उससे शिकायत थी. रणजीत के स्मृति नामक महिला से अवैध रिश्ते बन गये थे. अवैध रिश्तों का विरोध करने पर कालिंदी और रणजीत की लड़ाई होती रहती थी. कालिंदी ने पति रणजीत के खिलाफ महिला थाने में शिकायत भी दर्ज कराई थी. कालिंदी के विरोध के बाद भी रणजीत ने अपनी गलती नहीं सुधारी. काफी समय तक रणजीत पत्नी और प्रेमिका दोनो को एक ही घर में रख रखा था. रणजीत ने बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी से अपना रिश्ता बनाया. जिससे उसको राजनीतिक संरक्षण मिल सके. बसपा से उसको बहुत लाभ नहीं हुआ पर समाजवादी पार्टी के समय उसका राजनीति रसूख बढ़ गया जिसकी वजह से पुलिस उसको संरक्षण देने लगी थी.
साइकिल यात्रा का सफर
समाजवादी पार्टी की अखिलेश सरकार के समय रणजीत ने साइकिल से पूरे भारत भ्रमण का कार्यक्रम बनाया. जब भारत भूटान साइकिल यात्रा निकली तो दल के नायक के रूप में रणजीत ने ही दल की अगुवाई की थी. इसके बाद रणजीत का नाम लिम्का बुक औफ वल्र्ड रिकार्ड में जुड़ गया. अखिलेश सरकार के दौर में अपने राजनीतिक रसूख का लाभ लेने के लिये रणजीत ने अपनी मां कौशिल्या देवी के नाम पर गांव वाली जमीन में ही वृद्वाआश्रम और अनाथ आश्रम खोलने की याजना बनाई और इसका भूमि पूजन भी किया. जिसमें जिले के तमाम प्रशासनिक अफसर शामिल भी हुये थे. जब से अखिलेश यादव की सरकार सत्ता से हटी तो उसे नये आसरे की तलाश करनी पडी. रणजीत के गोरखपुर शहर के रहने वाले मंहत योगी आदित्यनाथ प्रदेश के मुख्यमंत्री बन गये. ऐसे में रणजीत ने भी समाजवादी रूप छोडकर योगी आदित्यनाथ ही तरह हिन्दूवादी रूप बनाने का काम शुरू किया.
प्रदेश मे हिन्दूत्व की राजनीति के चमकने के लिये रणजीत ने भी हिन्दूवादी नेता की छवि बनाने का काम शुरू किया. ऐसे में उसने विश्व हिन्दू महासभा के अन्तराष्ट्रीय प्रमुख के रूप में खुद को प्रस्तुत करना शुरू किया. अखिलेश सरकार के समय में दिये गये ओसीआर के सरकारी आवास में वह रहता था. यही उसने 1 फरवरी 2020 शनिवार के दिन अपने जन्मदिन की पार्टी भी मनाई थी. कई लोग उसको बधाई देने सरकारी प्लैट पर पहुंचे थे. यही ओसीआर स्थित मंदिर में उसने सुदंरकांड की पार्टी भी रखी थी. समाजवादी विचारधारा पर पर्दा डालने के लिये रणजीत सिंह ने पिछले कुछ दिनो से प्रखर हिन्दुत्व का चेहरा चमकाना शुरू कर दिया था.
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जन्मदिन के बाद हत्या
1 फरवरी को अपने जन्मदिन की पार्टी मनाने वाले रणजीत को यह नही पता था कि अगले दिन मौत उसका इंतजार कर रही है. 2 फरवरी को सुबह करीब 5 बजकर 30 मिनट पर रणजीत अपने ओसीआर स्थित आवास से बाहर मार्निग वाक के लिये निकला. रणजीत के साथ पत्नी कालिन्दी और रिश्तेदार आदित्य ही था. ओसीआर ने विधानसभा मार्ग स्थित भारतीय जनता पार्टी प्रदेश कार्यालय से लालबाग ग्राउड की तरफ मुड गई. जहां वह जौगिग करती थी. रणजीत और आदित्यनाथ आगे बढ गये और हजरतगंज चैराहे से परिर्वतन चैक होते हुये ग्लोब पार्क के पास पहंुच गये. ग्लोब पार्क के पास शौल लपेटे एक युवक रणजीत के पास पहुंचा और दोनो पर पिस्टल तान दी. इसके बाद रणजीत और आदित्य के मोबाइल फोन छीन लिये. इसके बाद रणजीत के सिर पर पिस्टल सटा कर गोली मार दी. हमलावर ने आदित्य पर भी गोली चलाई जो उसके हाथ में लगी. इसके बाद हमलावर वहां से भाग निकला.
राहगीरों ने आदित्य के शोर मचाने पर पुलिस को खबर की. पुलिस हत्या की जानकारी देने रणजीत के आवास पर पहुंची तो गोरखपुर से रणजीत के साथ आये अभिषेक की पत्नी ज्योति उसे घर पर मिली और ज्योति ने फोन करके रणजीत की पत्नी कालिंदी को हत्या की सूचना दी. पति की हत्या का पता चलते ही कालिंदी सिविल अस्पताल पहुंच गई. वहां से पुलिस ने कालिंदी को अपने साथ ले लिया. जिसे बाद में पूछताछ के बाद चिनहट निवासी चचेरे भाई के साथ भेज दिया गया. हिन्दूवादी नेता की हत्या से पूरी राजधानी सकते में आ गई. कुछ महीने पहले से कमलेश तिवारी नामक एक और हिन्दूवादी नेता की हत्या हो चुकी है.
पुलसिया कमीश्नर व्यवस्था पर सवाल
राजधानी में अपराध को रोकने के लिये पुलिस व्यवस्था में योगी सरकार ने बदलाव किया था. जिसके तहत लखनऊ में पुलिस कमीश्नर सिस्टम लागू किया गया है. लखनऊ पुलिस ने मार्निग वाक करने वालो की सुरक्षा के लिये विशेष इंतजाम की बात कही थी. इसके बाद मार्निग वाक के समय रणजीत की हत्या ने लखनऊ पुलिस और नये कमीश्नरी सिस्टम को कठघरे में खडा कर दिया. रणजीत की हत्या के बाद आननफानन में जौइंट कमीश्नर औफ पुलिस नवीन अरोरा, एसीपी हजरतगंज अभय कुमार मिश्रा, एसीपी कैसरबाग संजीवकांत सिन्हा सहित कई अफसर मामले की छानबीन में लग गये.
पुलिस पर सबसे बडा सवाल इसलिये भी है कि हुसैनगंज स्थित ओसीआर से लेकर ग्लोब पार्क के बीच 6 पुलिस चैकिया पडती है. इसमें पहली चैकी ओसीआर के बाहर, दूसरी दारूलशफा, तीसरी मल्टीलेवल पार्किग, इसके बाद हलवासिया और फिर केडी सिंह बाबू स्टेडिमय के पास की पुलिस चैकी पडती है. इसके बाद भी हत्यारों को पकडा नहीं जा सका. पुलिस कमीश्नर सुजीत पाडंेय ने इस मामले में 4 पुलिसकर्मियो केडी सिंह चैकी प्रभारी संदीप तिवारी, पीआवी पर तैनात अनिल गुप्ता, अरविंद और आशीष को ससपेंड कर दिया.
घरेलू विवाद में ही हत्यारा तलाश रही पुलिस
रणजीत की हत्या को लेकर उसकी पत्नी कालिंदी का कहना है कि रणजीत कुछ दिनों से प्रखर हिन्दुत्व को लेकर बहस कर रहा था. नागरिकता कानून का भी समर्थन कर रहा था. ऐसे में हिन्दू विरोधी लोग उसके दुश्मन बने हुये थे. कालिंदी ले 50 लाख रूपये का गुआवजा, मकान और सरकारी नौकरी की मांग सरकार के सामने रखी है. लखनऊ के डीसीपी मध्य दिनेश सिंह के जरीये यह मांग पत्र मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भेजा गया है. पुलिस हत्या की पडताल में पारिवारिक बातों को लेकर छानबीन कर रही है. घरवालों के बयानों में कई भ्रम पैदा हो रहे है.
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ऐसे में हत्या की वजह पारिवारिक हो सकती है. रणजीत ऐसा कोई चेहरा नहीे था जिससे उसकी कोई राजनीतिक या सामाजिक दुश्मनी हो. वह अपने स्वार्थ के लिये ही विचारधारा बदल रहा था. कई महिलाओं के साथ संबंधो को लेकर वह विवादो में था. इसके साथ ही साथ सरकार में अपनी पहुंच के नाम पर लोगों के काम कराने का झांसा भी देता रहता था. हिन्दू महासभा के अनिल सिंह ने सरकार की लापरवाही को जिम्मेेदार मानते हुये कहा कि प्रदेश में कानून व्यवस्था खराब है. 48 घंटे में अगर पुलिस ने कोई खुलासा नहीं किया तो सरकार के खिलाफ आन्दोलन शुरू किया जायेगा.