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रियो में महिला हौकी टीम

हौकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद के जन्मदिवस के मौके पर हौकी प्रेमियों के लिए अच्छी खबर आई. 36 वर्ष के लंबे अंतराल के बाद भारतीय महिला हौकी टीम को अगस्त 2016 में होने वाले ब्राजील के रियो ओलिंपिक में जगह मिल गई. महिला हौकी टीम को ओलिंपिक के लिए क्वालिफाई करने के लिए यूरो चैंपियनशिप के फाइनल में पहुंचने वाली टीमों के नाम का इंतजार था. ऐसा इसलिए क्योंकि भारत को ओलिंपिक का टिकट तभी मिलता जब यूरो हौकी चैंपियनशिप के फाइनल में पहुंचने वाली दोनों टीमें पहले ही ओलिंपिक के लिए क्वालिफाई कर चुकी हों, और ऐसा ही हुआ. भारतीय महिला टीम दूसरी बार ओलिंपिक खेलों में हौकी खेलने जाएगी. इस से पहले भारतीय महिला हौकी टीम को वर्ष 1980 मास्को ओलिंपिक में खेलने का अवसर प्राप्त हुआ था. तब भारतीय टीम चौथे स्थान पर रही थी.

अब हालात काफी बदल चुके हैं. अब हमारे देश में क्रिकेट को तवज्जुह दी जाती है. जबकि उस समय हौकी का दौर था. तब खिलाड़ी देश के लिए खेलते थे लेकिन आज के खिलाडि़यों को टीम में आने के लिए संघर्ष करना पड़ता है, चाटुकारिता करनी पड़ती है, आकाओं की बात सुननी पड़ती है, गलत होते हुए भी चुप रहना पड़ता है. रियो ओलिंपिक में भारतीय टीम के अलावा इंगलैंड, जरमनी, चीन, न्यूजीलैंड, नीदरलैंड, अर्जेंटीना, आस्ट्रेलिया, कोरिया और अमेरिका की महिला टीमें होंगी. इस में 2 टीमों का चयन अभी होना बाकी है. 36 साल बाद यह पहला मौका होगा जब भारत की महिला एवं पुरुष टीमें ओलिंपिक में हिस्सा लेंगी. मौजूदा भारतीय महिला हौकी टीम अभी उतनी तगड़ी नहीं है लेकिन अभी 1 साल का वक्त है, भारतीय टीम को कड़ी मेहनत करनी होगी. 48 भारतीय महिला खिलाड़ी पूरे दमखम के साथ अभ्यास में जुटी हुई हैं. इन में से ओलिंपिक के लिए 33 खिलाडि़यों का चयन होना है. जरूरत है फाइनल के लिए सभी जरूरी सुविधाएं, साजोसामान और व्यवस्थागत इंतजाम की कमी न रहे. मजबूत डिफैंस और पैनल्टी कौर्नर को मजबूत बनाना होगा. उम्मीद है कि ऋतु रानी की अगुआई में भारतीय महिला टीम इतिहास रचने में कामयाब हो. सालों बाद मिले इस मौके को गंवाने का मतलब है फिर से उसी जगह पर आ जाना जहां से हौकी टीम ने संघर्ष शुरू किया था.

पाठकों की समस्याएं

मैं एक विवाहित महिला हूं. पति की आयु 38 वर्ष और मेरी आयु 30 वर्ष है. हमारा विवाह 2013 में हुआ था. मेरी समस्या यह है कि मेरे पति चाहते हैं कि मैं नौकरी करूं जबकि मैं बच्चा चाहती हूं क्योंकि पति 38 वर्ष के हो चुके हैं. मुझे डर है कि कहीं अधिक उम्र हमारे बेबी प्लानिंग की राह में रोड़ा न बने. कृपया मुझे सलाह दीजिए कि मुझे क्या करना चाहिए. 

बेबी प्लानिंग का निर्णय पतिपत्नी की आपसी रजामंदी से होना चाहिए. आप ने यह नहीं बताया कि आप के पति क्यों चाहते हैं कि आप नौकरी करें, क्या कोई फाइनैंशियल समस्या है? अगर ऐसा है तो आप घर बैठे भी कोई काम कर सकती हैं, साथ ही बेबी प्लानिंग भी कर सकती हैं. जहां तक आप के बेबी प्लानिंग को ले कर बढ़ी उम्र का डर है वह काफी हद तक वाजिब है क्योंकि 35 वर्ष के बाद फर्टिलिटी यानी प्रजनन क्षमता में गिरावट आनी शुरू हो जाती है. चिकित्सकों के अनुसार पुरुषों के लिए पिता बनने की आदर्श आयु 25 से 39 वर्ष होती है और बड़ी उम्र में मातापिता बनने से होने वाला बच्चा शारीरिक व मानसिक रूप से कमजोर हो सकता है. अबौर्शन का खतरा ज्यादा होता है. बच्चे में औटिज्म का खतरा ज्यादा होता है और उच्च रक्तचाप व मधुमेह जैसी परेशानियों के बढ़ने से बच्चे को भी कई खतरे होते हैं. इसलिए आप अपने पति को किसी अच्छे गाइनीकोलौजिस्ट से मिलवाइए और बेबी प्लानिंग के लिए मनाइए.

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पिछले महीने ही मैं 18 वर्ष की हुई हूं. मैं यह जानना चाहती हूं कि क्या अब मैं कोर्टमैरिज कर सकती हूं और कोर्टमैरिज करने के लिए मुझे क्या करना होगा?

कानूनन कोई भी लड़की, जो 18 वर्ष की है, कोर्टमैरिज कर सकती है. कोर्टमैरिज विशेष विवाह अधिनियम के अंतर्गत होती है. कोर्टमैरिज जाति, धर्म के अंतर के बावजूद की जा सकती है. इस के लिए किसी खास धर्म का होना आवश्यक नहीं है. कोई दो वयस्क इस अधिनियम के अंतर्गत विवाह कर सकते हैं. कोर्टमैरिज के लिए लड़कालड़की दोनों को विवाह पंजीयक के समक्ष आवेदन करना होता है और आवेदन की जांच में यह पाए जाने पर कि लड़कालड़की दोनों विवाह के योग्य हैं. विवाह पंजीयक एक सूचना जारी करता है और सूचना जारी होने के 30 दिन के बाद वयस्क लड़कालड़की विवाह पंजीयक के समक्ष उपस्थित हो कर अपना विवाह दर्ज करा सकते हैं. आवेदन के समय युवकयुवती को फोटो पहचानपत्र प्रस्तुत करने होते हैं और सूचना जारी करने का नाममात्र शुल्क जमा करना होता है. साथ ही विवाह के समय युवकयुवती दोनों की तरफ से 2-2 गवाह भी प्रस्तुत करने होते हैं. विवाह के बाद युवकयुवती को विवाह का प्रमाणपत्र जारी हो जाता है.

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मैं 32 वर्षीय अविवाहित युवती हूं. मेरे पिता का देहांत हुए कुछ ही समय हुआ है. मेरी मां चाहती हैं कि मैं जल्द से जल्द विवाह कर लूं. जबकि मैं अभी विवाह नहीं करना चाहती. इस बात को ले कर मेरे व मेरी मां के बीच काफी बहस होती रहती है जिस से मुझे बहुत अकेलापन महसूस होता है और मन करता है आत्महत्या कर लूं. कृपया मेरी परेशानी को दूर करें.

आप ने यह नहीं बताया कि आप विवाह क्यों नहीं करना चाहतीं. विवाह न करने के पीछे क्या कारण है? क्या आप अपनी मां को अकेले नहीं छोड़ना चाहतीं? तो उस की चिंता छोड़ दीजिए. आप चाहें तो ऐसे लड़के से विवाह कर सकती हैं जो आप की मां को भी साथ रखने को तैयार हो. आप स्वयं को अपनी मां की जगह पर रख कर देखिए, वे चाहती हैं कि आप विवाह कर लें, जिंदगी में सैटल हो जाएं ताकि वे अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो जाएं. आप अपनी परेशानी अपनी मां के साथ बांटे, उन की परेशानी सुनें, समझें, एकदूसरे का सहारा बनें. आप का अकेलापन भी दूर होगा और आप के मन में नकारात्मक विचार भी नहीं आएंगे.

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मैं 16 वर्षीय युवक हूं. मैं अपने घर से बहुत परेशान हूं. मेरे पिता को शराब पीने की लत है. वे जो भी कमाते हैं नशे में उड़ा देते हैं. घर में खर्चे के लिए कुछ नहीं देते हैं. घर में हम 8 लोग हैं, 4 भाई, 1 बहन, मां, पिताजी व दादी. मैं थोड़ाबहुत जो भी कमाता हूं घर में दे देता हूं. मैं बहुत परेशान हूं. पिताजी अपनी जिम्मेदारियों को समझते नहीं जिस की वजह से सब परेशान हैं. मैं क्या करूं? सलाह दीजिए.

यह समय आप के पढ़लिख कर कैरियर बनाने का है. घर वालों के साथ आप की जिम्मेदारी आप के पिताजी की है जो वह नशे की लत के चलते पूरा नहीं कर रहे हैं. आप अपने पिताजी को नशामुक्त केंद्र ले जाइए और उन की यह लत छ़ड़ाने का प्रयास कीजिए. आप  पिताजी को सही राह पर लाने के लिए अपनी दादी व मां की मदद लीजिए. आप अकेले कुछ अधिक नहीं कर पाएंगे. व्यर्थ का तनाव ही हाथ लगेगा. जो भी करें मिलजुल कर करें.

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मैं 50 वर्षीय विवाहित पुरुष हूं. मेरी समस्या शीघ्रपतन और सेक्स में उत्साह की कमी को ले कर है जिस के कारण मेरी पत्नी नाराज रहती है. क्या इस के लिए मुझे किसी सैक्सोलौजिस्ट से मिलना चाहिए? मेरी समस्या का समाधान करें.

शीघ्रपतन या प्रीमैच्योर इजेक्यूलेशन एक आम समस्या है जिस के पीछे डाइबिटीज, तनाव, प्रोस्टैट में इन्फैक्शन आदि कारण हो सकते हैं. साथ ही आप अगर शराब, सिगरेट या तंबाकू का सेवन करते हैं तो बंद कर दें. क्योंकि इस के सेवन से चिंता बढ़ती है और शीघ्र पतन होता है. आप अपनी समस्या के समाधान के लिए सैक्सोलौजिस्ट से अवश्य मिलें.        

बच्चों के मुख से

मेरा बेटा बहुत हाजिरजवाब है. मेरे चचेरे भाई जब भी मेरे यहां आते हैं तो मिठाई, चौकलेट, खिलौने आदि बच्चे के लिए अवश्य लाते हैं. एक दिन वे आए तो फिर बेटे के लिए ढेर सी टौफियां, चौकलेट लाए. बेटा उन्हें देख कर बहुत खुश हुआ और उन से हाथ मिला कर थैंक्यू बोल कर चौकलेट ली. जब वे बेटे को चौकलेट देने लगे तो मैं ने कहा कि भैया, ऐसा कर के आप बच्चे की आदत बिगाड़ रहे हैं, हर बार क्यों यह सब लाते हैं. इतना सुन कर वहां उपस्थित मेरा बेटा तपाक से बोला, ‘‘मम्मी, हम बच्चे तो चौकलेट से ही अंकलमामा को पहचानते हैं. आप बड़े लोग तो बात कर के जी भर लेते हैं लेकिन मैं तो छोटा बच्चा हूं. मुझे बात नहीं चौकलेट की याद रहती है.’’ उस की बात सुन कर मुझे उस की मासूमियत पर बड़ा प्यार आया.

माया रानी श्रीवास्तव, मीरजापुर (उ.प्र.)

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बात मेरे 5 वर्षीय शरारती भतीजे की है. एक दिन मेरी भाभी उसे गुस्से से समझा रही थीं, मगर वह शरारती सुन नहीं रहा था. भाभी को गुस्सा आया और उन्होंने उसे एक थप्पड़ रसीद कर दिया. जैसे ही दूसरा थप्पड़ लगाने लगीं तो वह बोला, ‘‘मम्मी, इस में कुछ डिस्काउंट मिलेगा?’’ यह सुनते ही भाभी की हंसी छूट गई.

अनुजा गोयल, मुंबई (महा.)

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बात तब की है जब मेरी बेटी छोटी थी. एक दिन मैं रसोई में काफी देर से काम कर रही थी. मेरी बेटी भी वहीं बैठी थी. मैं ने उसे बड़े प्यार से बोला, ‘‘प्रीति, तुम इतनी देर से बैठी हो और मुझे देखे जा रही हो.’’ तो वह बोली, ‘‘मम्मी, आप तब से काम कर रही हो, जब तक आप काम करोगी मैं भी आप के साथ यहां रहूंगी.’’ मुझे उस का इतना प्यार से देखना व बोलना बहुत अच्छा लगा. इस में कोई शक नहीं कि बच्चों का प्यार पा कर मां को तो खुशी मिलती ही है, सारा अकेलापन व थकान भी दूर हो जाती है.

काशी चौहान, कोटा (राज.)

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मेरी सासूमां अपने बालों में तेल लगा रही थीं. पास ही मेरा 3 वर्षीय बेटा बैठा था. अपनी दादी को बालों में तेल लगाते देख कर वह बोला, ‘‘अम्मा, आप अपने बालों में इतना पाउडर क्यों लगा लेती हो?’’ उस की यह बात सुन कर अम्मा मुसकराए बिना न रह सकीं. दरअसल, मेरी सासूमां के अधिकतर बाल सफेद हो गए थे.

मंजु सिंघल, सिद्धार्थ नगर (न.दि.)

यादों के जंगल

होते हैं बहुत खूंखार

यादों के जंगल

छिपी होती है इन में

बेशुमार जहरभरी यादें

जिन्हें हम भूल नहीं पाते

लाख चाह कर भी.

          -हरीश कुमार ‘अमित’

हमारी बेडि़यां

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक भाजपा नेता के बेटे की शादी में आगरा आए थे. उन की सुरक्षा के तमाम इंतजाम किए गए. समारोह तक जाने वाले रास्ते पर पुलिस ही पुलिस दिखाई दे रही थी. बोर्ड परीक्षा देने वाले बच्चे पुलिस वालों से मिन्नतें कर रहे थे. बीमार लोग डाक्टर के पास जाने के लिए हाथ जोड़ रहे थे. पर संवेदनहीन पुलिस वाले केवल लाठी फटकार रहे थे. मेरा घर उसी रास्ते पर है. हमें घर से निकलने को मना कर दिया गया था. कैसी विडंबना है, हाथ जोड़ दरदर वोट की भीख मांगने वाले नेता सत्ता पाते ही जनता पर किस तरह अत्याचार करने लग जाते हैं. जब देश के शासक, जिसे सब से ताकतवर कहा जाता है, को ही इतनी सुरक्षा की जरूरत हो तो भला आम आदमी का सहारा कौन? आजाद भारत में अभी तक लोग अपने को असुरक्षित महसूस करते हैं और चुनाव में सत्ता में बदलाव कर नई सरकार की ओर आशा एवं उम्मीद से देखते हैं पर हर बार उन की उम्मीदें टूट जाती हैं. जब देश का आम नागरिक सुखी न हो तो शासक कैसे मजे में घूम सकता है? आजादी के बाद से आज तक सभी सरकारें जनता को निराश ही करती आई हैं. मोदी भी यही परंपरा निभाते दिखाई पड़ रहे हैं.

मणि शर्मा

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हमारी रिश्ते की एक चाची बहुत ही धार्मिक विचार वाली हैं. बेटी की शादी में उन्होंने अनेक प्रकार की धार्मिक विधि संपन्न कीं. शादी के तुरंत बाद धार्मिक विधि  के उस सामान को नदी में विसर्जित करना था. सो, कुछ लोगों का इस काम हेतु वाहन से जाना तय हुआ. हमारा गांव वर्धा नदी के उस पार होने से चाची के साथ हम भी उसी वाहन में बैठ गए. चोरी के डर से चाची ने घर के सोने के सभी गहनों को एक प्लास्टिक बैग में भर कर साथ में ले लिया. नदी में विसर्जित करने हेतु करीब उसी आकारवजन के दूसरी प्लास्टिक बैग में धार्मिक विधि का सामान लिया. नदी पार करते हुए चाची ने बातोंबातों में चलती गाड़ी से धार्मिक विधि के सामान का बैग विसर्जित करने हेतु नदी में फेंक दिया. लेकिन बैग बहती धार में न गिर कर नदी के कीचड़ में गिरा. घर पहुंचने पर चाची सोने के गहने वाला बैग अलमारी में रखने लगीं, तो सिर पीट लिया. उन्होंने धार्मिक विधि के सामान को विसर्जित करने के बजाय सोने के गहने वाले प्लास्टिक बैग को ही विसर्जित कर दिया था. चाची और कुछ रिश्तेदार गहने वाला प्लास्टिक बैग नदी में ढूंढ़ने हेतु रात में ही निकल पड़े. चाची की जान में जान तब आई जब नदी में गहने वाला बैग ढूंढ़ने में सफलता मिली.    

श्रीराम बनसोड, नागपुर (महा.) 

तेरे आंगन में…

जिस्म है तू तो मैं

परछाईं सा रहूंगा तेरी

फूल गर तू तो मैं

खुशबू सा संग आऊंगा

अपने बिगड़े हाल की

परवा नहीं है मुझ को

तुझ को परवा हो तो

पल में संवर जाऊंगा

तू चांद है मेरे आसमां का

तो मेरा भी हक है

धूप बन कर तेरे आंगन में

बिखर जाऊंगा

                         – डा. नीरजा श्रीवास्तव ‘नीरू’

दिन दहाड़े

मेरी मामी ने एक फेरी वाले से एक नामी कंपनी का जूसर मिक्सर लिया. फेरी वाला केवल 750 रुपए में उसे दे गया. मामी अपनी इस खरीदारी से बेहद खुश थीं. उन्होंने उस मशीन को चला कर देखा तो पहली बार तो वह ठीक चली पर जब दूसरी बार चलाई तो उस में कुछ खराबी लगी. उन्होंने उसे खोल कर चैक किया तो देखा कि उस के कुछ पार्ट्स खराब थे. इस तरह मामी को दिनदहाड़े 750 रुपए की चपत लग गई.  

आरती, भिवानी (राज.)

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मेरे 70 वर्षीय मौसाजी ने एटीएम से 5 हजार रुपए निकाले. एटीएम से बाहर आ कर अपने दामाद को फोन कर कहा कि वह स्कूटर से उन्हें ले जाए और रुपए एक छोटे बैग में डाल कर इत्मीनान से खड़े हो गए. उन की सारी बातें एक व्यक्ति सुन रहा था. कुछ देर बाद वह व्यक्ति बाइक ले कर उन के पास आया और बोला, ‘‘मैं आप के दामाद का पड़ोसी हूं. मैं इधर आ रहा था तो आप के दामाद ने मुझ से कहा कि बाबूजी को लेते आना.’’ मौसाजी उस की बाइक पर बैठ गए, रुपए का बैग उन के हाथ में था. थोड़ी दूर जाने के बाद उस व्यक्ति ने गाड़ी एक अनजाने रास्ते की ओर मोड़ी तो मौसाजी ने एतराज किया तो उस व्यक्ति ने मौसाजी से कहा कि मैं शौर्टकट से जा रहा हूं. कुछ दूर जाने के बाद गाड़ी को झटका लगा और मौसाजी नीचे गिर गए. वह व्यक्ति उन के हाथ से बैग छीन कर चंपत हो गया. वे सहायता के लिए चिल्लाए, पर वहां उन की पुकार सुनने वाला कोई न था.   

विद्यादेवी व्यास, रतलाम (म. प्र.)

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मेरे एक चचेरे भाई, जिन को घर पर सभी प्यार से ‘बुधवा’ कह कर पुकारते हैं, ट्रेन में सफर कर रहे थे. अचानक एक सज्जन सा दिखने वाला व्यक्ति आ कर बुधवा भैया के नजदीक बैठ गया और उन से बोला, ‘‘भैया, मेरी 15 हजार रुपए कीमत की सोने की गोली यहीं कहीं खो गई है. अगर आप उसे खोज देंगे तो मैं वह आप को सिर्फ 2 हजार रुपए में ही दे दूंगा. कृपया उसे खोजने में मेरी मदद कीजिए,’’ यह कह कर वह सोने की गोली को खोजने का नाटक करने लगा. बुधवा भैया ने इधरउधर देखा. संयोग से उन की नजरें पैर के पास गईं जहां वह गोली पड़ी मिली. उन्होंने उसे उठा कर उस व्यक्ति को दे दी. उस व्यक्ति ने कृतज्ञता जताते हुए कहा, ‘‘शर्त के मुताबिक मैं आप को यह 2 हजार रुपए में देने को तैयार हूं. अगर आप न रहते तो ये 2 हजार रुपए भी न होते.’’ मेरे बुधवा भैया ने खुशीखुशी 2 हजार रुपए में वह गोली ले ली. जब वे घर आए तो पता चला कि वह गोली सोने की नहीं, बल्कि तांबे की थी और उस पर सोने का पानी चढ़ाया गया था. इस तरह मेरे बुधवा भैया बुद्धू बना दिए गए.   

ओम प्रकाश झा, दरभंगा (बिहार)

प्यार का है कर्ज

चिलचिलाती धूप में, बाहर नहीं भेजा

पढ़ाई में तुम्हारी, बहाया पानी सा पैसा

बिटिया तुम्हें हम ने, बड़े नाजों से पाला

फिक्र थी मां को, कहीं काली न पड़ जाओ

शादी के बाजार में, ‘रिजैक्ट’ की जाओ

तभी उस ‘इंजीनियर’ का, रिश्ता आया है

इक्कीसवीं सदी है, समय तेजी से बदला है

हर ओर तुम्हारी ही तरक्की की तो चर्चा है

मुबारक हो, बेटियो, तुम को ये भरम

मुबारक हो बेटियो तुम को ये भरम

इस बार न रस्सी है न कोई खूंटा है

प्यार का है कर्ज और सूद पक्का है.

              – स्वाति

वेटिंग रूम- भाग 4: सिद्धार्थ और जानकी की जिंदगी में क्या नया मोड़ आया

पिछले अंक में आप ने पढ़ा : जानकी अनाथालय में पलीबढ़ी थी. मेहनत और प्रतिभा के बल पर पढ़ाई कर पुणे के एक कालेज में लैक्चरर के इंटरव्यू के लिए जा रही थी. ट्रेन के इंतजार में रेलवे प्रतीक्षालय में उस की मुलाकात सिद्धार्थ से होती है जो एक संपन्न व्यवसायी का बिगड़ैल बेटा था. समय काटने के लिए दोनों के बीच बातचीत का सिलसिला शुरू होता है. सबकुछ होते हुए भी जिंदगी से नाराज सिद्धार्थ को जानकी की बातें एक नया नजरिया देती हैं. सिद्धार्थ स्वयं को शांत और सुलझा हुआ महसूस करने लगता है. उस के मातापिता उस में हुए बदलाव से हैरान थे. अब आगे…

सिद्धार्थ की आंखों से नींद कोसों दूर थी. जब तक नींद ने उसे अपनी आगोश में नहीं ले लिया तब तक वह सिर्फ जानकी के बारे में ही सोचता रहा. उसे अफसोस हो रहा था कि काश, वह थोड़ी हिम्मत कर के जानकी का फोन नंबर ही पूछ लेता. न जाने अब वह जानकी को देख पाएगा भी या नहीं? अचानक उसे याद आया कि 15 दिन बाद वह पुणे ही तो आ रही है नौकरी जौइन करने. उसी समय उस ने निश्चय किया कि 15 दिन बाद वह कालेज में जा कर जानकी को खोजेगा.

सुबह 11 बजे से पहले कभी न जागने वाला सिद्धार्थ आज सुबह 8 बजे उठ गया. नहा कर नाश्ते की मेज पर ठीक 9 बजे पापा के साथ आ बैठा और बोला, ‘‘पापा, आज मैं भी आप के साथ औफिस चलूंगा.’’ पापा का चेहरा विस्मय से भर गया. मां, जो सिद्धार्थ की रगरग पहचानती थीं, नहीं समझ पाईं कि सिद्धार्थ को क्या हो गया है. बस, दोनों इसी बात से खुश हो रहे थे कि उन के बेटे में बदलाव आ रहा है. हालांकि वे आश्वस्त थे कि यह बदलाव ज्यादा दिन नहीं रहेगा. जल्द ही सिद्धार्थ काम से ऊब जाएगा. फिर उस की संगत भी तो ऐसी थी कि अगर सिद्धार्थ कोशिश करे भी, तो उस के दोस्त उसे वापस गर्त में ले जाएंगे. जानकी अनाथालय पहुंच चुकी थी. सब लोग उस के इंतजार में बैठे थे. जैसे ही जानकी पहुंची, सब उस पर टूट पड़े. जानकी, मानसी चाची को उस की कामयाबी के बारे में पहले ही फोन पर बता चुकी थी, इसलिए सब उस के स्वागत के लिए खड़े थे. आज वात्सल्य से पहली लड़की को नौकरी मिली थी. अनाथालय में उत्सव का माहौल था.

रात को जानकी ने मानसी चाची को साक्षात्कार से ले कर सारी यात्रा का वृत्तांत काफी विस्तार से सुनाया, सिवा प्रतीक्षालय में सिद्धार् से हुई मुलाकात के. यह बात छिपाने के पीछे कोई उद्देश्य नहीं था फिर भी जानकी को यह गैरजरूरी लगा. पिछली रात नींद न आने से जानकी काफी थक गई थी, इस कारण लेटते ही नींद लग गई. सुबह भी काफी देर से जागी. पिछले 8-10 दिनों से लगातार बारिश के कारण मौसम बहुत सुहाना हो गया था. सुबह ठंडक और बढ़ गई थी. नींद खुलने के बाद भी उस का उठने का मन नहीं हो रहा था. जानकी उठी और बाहर आंगन में आ कर बैठ गई. बारिश रुक चुकी थी और हलकी धूप खिली थी लेकिन गमलों की मिट्टी अभी भी गीली थी. ठंडी हवाएं अब भी चल रही थीं. लगा कि कोई शौल ओढ़ ली जाए. ऐसे में अचानक ही उसे सिद्धार्थ का खयाल आया, ‘अब तक तो वह भी अपने घर पहुंच गया होगा. क्या लड़का था, थोड़ा अजीब लेकिन काफी उलझा सा था. काफी नकारात्मक सोच थी, यदि सोच को सही दिशा दे देगा तो बहुत कुछ पा सकता है.’ जानकी की यादों की लड़ी तब टूटी जब मानसी चाची ने आ कर पूछा, ‘‘अरे जानकी बेटा, तू कब उठी?’’

‘‘बस, अभी उठी हूं, चाची,’’ थोड़ी हड़बड़ाहट में जानकी ने जवाब दिया, लगा जैसे उस की कोई चोरी पकड़ी गई हो और उठ कर रोजमर्रा के कामों में जुट गई. धीरेधीरे दिन बीतते गए और जानकी के पुणे जाने के दिन करीब आते गए. जानकी को काफी तैयारियां करनी थीं. पुणे जा कर सब से बड़ी दिक्कत उस के रहने की व्यवस्था थी. पुणे में वह किसी को नहीं जानती थी. इस बीच उसे कई बार ऐसा लगा कि उस ने सिद्धार्थ से उस का मोबाइल नंबर क्यों नहीं लिया. शायद, उस अनजान शहर में वह कुछ मदद करता उस की. अनाथालय को छोड़ कर मानसी चाची भी उस के साथ नहीं जा सकती थीं. इसी चिंता में वे आधी हुई जा रही थीं कि जानकी का क्या होगा वहां, अनजान शहर में बिलकुल अकेली, कैसे रहेगी. सिद्धार्थ में आया बदलाव बरकरार था. पहले वह काफी गुस्सैल था और अब काफी शांत हो चुका था, बोलता भी काफी कम था, लगभग गुमसुम सा रहने लगा था. कोई दोस्तीयारी नहीं, कोई नाइट पार्टीज और बाइक राइडिंग नहीं. मां ने कई बार पूछा इस बदलाव का कारण लेकिन सिद्धार्थ ने मां से सिर्फ इतना ही कहा, ‘‘मौम, जब जागो तभी सवेरा होता है और मुझे भी एक न एक दिन तो जागना ही था, अब मान लो कि वह दिन आ चुका है. बस, आप लोग जैसा सिद्धार्थ चाहते थे वैसा बनने की कोशिश कर रहा हूं.’’

सिद्धार्थ को अब उस दिन का इंतजार था जब जानकी पुणे आने वाली थी. निश्चित तारीख तो उसे पता नहीं थी लेकिन वह उस रात के बाद से हिसाब लगा रहा था. अब उसे एहसास हो रहा था कि जानकी उस के दिलोदिमाग पर छा चुकी है. वही लड़की है जो उस के लिए बनी है, अगर वह उस की जिंदगी में आ जाए तो सिद्धार्थ के लिए किसी से कुछ मांगने के लिए बचेगा ही नहीं. इस बीच, वह जा कर पुणे आर्ट्स कालेज का पता लगा कर आ चुका था और यह भी पता कर चुका था कि जानकी कब आने वाली है. 15 सितंबर वह तारीख थी जिस का अब सिद्धार्थ को बेसब्री से इंतजार था. आखिर वह दिन आ गया. 14 सितंबर को जानकी पुणे के लिए रवाना होने वाली थी. यहां अनाथालय में खुशी और दुख साथसाथ बिखर रहे थे. मानसी चाची की तो एक आंख रो रही थी तो दूसरी आंख हंस रही थी. एक ओर तो उन की बेटी आज नौकरी करने जा रही है लेकिन उसी बेटी से बिछड़ने का गम भी खुशी से कम नहीं था. आखिर जानकी पुणे के लिए रवाना हो गई.

सुबहसुबह पुणे पहुंच कर उस ने स्टेशन के पास ही एक ठीकठाक होटल खोज लिया. तैयार हो कर नियत समय पर कालेज पहुंच गई. सारी जरूरी कार्यवाही पूरी करने के बाद कालेज की एक प्रोफैसर ने उसे पूरा कालेज दिखाया और सारे स्टाफ व विद्यार्थियों से परिचय भी करवाया. इस बीच, उस ने उस प्रोफैसर से रहने की व्यवस्था के बारे में पूछा. उस प्रोफैसर ने कुछ एक जगह बताईं लेकिन पुणे बहुत महंगा शहर है, जानकी के लिए ज्यादा खर्चा करना मुमकिन नहीं था. इधर सिद्धार्थ ने पापा से एक दिन की छुट्टी ले ली थी. सुबह से काफी उत्साहपूर्ण लग रहा था. उस के तैयार होने का ढंग भी कुछ अलग ही था. मां सबकुछ देख रही थीं और समझने की कोशिश कर रही थीं. बेटा चाहे जितना भी बदल जाए, मां उस का मन फिर भी पढ़ लेती है. लेकिन मां खामोशी से सब देखती भर रहीं, कुछ बोली नहीं.

स्मार्ट टिप्स

  1. अगर घर का पालतू कुत्ता घर के फर्नीचर को अपने दांतों से रगड़ कर खराब कर रहा हो तो फर्नीचर पर यूकेलिप्टस या लौंग का तेल लगा दें. तेल की तेज गंध से वह दूर ही रहेगा.
  2. केक को लंबे समय तक ताजा रखने के लिए उसे हवाबंद डब्बे में डबलरोटी के टुकड़े के साथ रख दें. जब डबलरोटी का टुकड़ा सख्त हो जाए तो उसे हटा कर दूसरा टुकड़ा रख दें.
  3. बवासीर होने पर प्रतिदिन सुबह खाली पेट पपीता खाएं, इस से कब्ज दूर होगा, शौच साफ होगा और बवासीर से छुटकारा मिलेगा. क्योंकि बवासीर का मूल कारण कब्ज ही है.
  4. कपड़ों की अलमारी देवदार की लकड़ी की बनवाएं, उस में कीड़ा नहीं लगेगा. संभव न हो तो देवदार की लकड़ी का बुरादा पुरानी जुराब में भर कर लटका दें.
  5. बच्चों को दूध, दही, चावल, दलिया, केला, खीर आदि के साथ थोड़ी मात्रा में शहद दे दिया जाए तो पाचन आसानी से हो जाता है.
  6. जैतून का तेल और वैसलीन मिला कर दिन में 3-4 बार फटे होंठों पर लगाएं. 3-4 दिन नियमित उपचार करने पर होंठों की दरारें भरने लगेंगी.
  7. नारियल का छिलका आराम से निकालने के लिए उसे आधे घंटे तक पानी में डाल कर रखें
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