चिलचिलाती धूप में, बाहर नहीं भेजा

पढ़ाई में तुम्हारी, बहाया पानी सा पैसा

बिटिया तुम्हें हम ने, बड़े नाजों से पाला

फिक्र थी मां को, कहीं काली न पड़ जाओ

शादी के बाजार में, ‘रिजैक्ट’ की जाओ

तभी उस ‘इंजीनियर’ का, रिश्ता आया है

इक्कीसवीं सदी है, समय तेजी से बदला है

हर ओर तुम्हारी ही तरक्की की तो चर्चा है

मुबारक हो, बेटियो, तुम को ये भरम

मुबारक हो बेटियो तुम को ये भरम

इस बार न रस्सी है न कोई खूंटा है

प्यार का है कर्ज और सूद पक्का है.

              – स्वाति

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