चिलचिलाती धूप में, बाहर नहीं भेजा

पढ़ाई में तुम्हारी, बहाया पानी सा पैसा

बिटिया तुम्हें हम ने, बड़े नाजों से पाला

फिक्र थी मां को, कहीं काली न पड़ जाओ

शादी के बाजार में, ‘रिजैक्ट’ की जाओ

तभी उस ‘इंजीनियर’ का, रिश्ता आया है

इक्कीसवीं सदी है, समय तेजी से बदला है

हर ओर तुम्हारी ही तरक्की की तो चर्चा है

मुबारक हो, बेटियो, तुम को ये भरम

मुबारक हो बेटियो तुम को ये भरम

इस बार न रस्सी है न कोई खूंटा है

प्यार का है कर्ज और सूद पक्का है.

              - स्वाति

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD48USD10
 
सब्सक्राइब करें

सरिता सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं

  • सरिता मैगजीन का सारा कंटेंट
  • देश विदेश के राजनैतिक मुद्दे
  • 7000 से ज्यादा कहानियां
  • समाजिक समस्याओं पर चोट करते लेख
 

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD100USD79
 
सब्सक्राइब करें

सरिता सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं

  • सरिता मैगजीन का सारा कंटेंट
  • देश विदेश के राजनैतिक मुद्दे
  • 7000 से ज्यादा कहानियां
  • समाजिक समस्याओं पर चोट करते लेख
  • 24 प्रिंट मैगजीन
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...