प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक भाजपा नेता के बेटे की शादी में आगरा आए थे. उन की सुरक्षा के तमाम इंतजाम किए गए. समारोह तक जाने वाले रास्ते पर पुलिस ही पुलिस दिखाई दे रही थी. बोर्ड परीक्षा देने वाले बच्चे पुलिस वालों से मिन्नतें कर रहे थे. बीमार लोग डाक्टर के पास जाने के लिए हाथ जोड़ रहे थे. पर संवेदनहीन पुलिस वाले केवल लाठी फटकार रहे थे. मेरा घर उसी रास्ते पर है. हमें घर से निकलने को मना कर दिया गया था. कैसी विडंबना है, हाथ जोड़ दरदर वोट की भीख मांगने वाले नेता सत्ता पाते ही जनता पर किस तरह अत्याचार करने लग जाते हैं. जब देश के शासक, जिसे सब से ताकतवर कहा जाता है, को ही इतनी सुरक्षा की जरूरत हो तो भला आम आदमी का सहारा कौन? आजाद भारत में अभी तक लोग अपने को असुरक्षित महसूस करते हैं और चुनाव में सत्ता में बदलाव कर नई सरकार की ओर आशा एवं उम्मीद से देखते हैं पर हर बार उन की उम्मीदें टूट जाती हैं. जब देश का आम नागरिक सुखी न हो तो शासक कैसे मजे में घूम सकता है? आजादी के बाद से आज तक सभी सरकारें जनता को निराश ही करती आई हैं. मोदी भी यही परंपरा निभाते दिखाई पड़ रहे हैं.

मणि शर्मा

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हमारी रिश्ते की एक चाची बहुत ही धार्मिक विचार वाली हैं. बेटी की शादी में उन्होंने अनेक प्रकार की धार्मिक विधि संपन्न कीं. शादी के तुरंत बाद धार्मिक विधि  के उस सामान को नदी में विसर्जित करना था. सो, कुछ लोगों का इस काम हेतु वाहन से जाना तय हुआ. हमारा गांव वर्धा नदी के उस पार होने से चाची के साथ हम भी उसी वाहन में बैठ गए. चोरी के डर से चाची ने घर के सोने के सभी गहनों को एक प्लास्टिक बैग में भर कर साथ में ले लिया. नदी में विसर्जित करने हेतु करीब उसी आकारवजन के दूसरी प्लास्टिक बैग में धार्मिक विधि का सामान लिया. नदी पार करते हुए चाची ने बातोंबातों में चलती गाड़ी से धार्मिक विधि के सामान का बैग विसर्जित करने हेतु नदी में फेंक दिया. लेकिन बैग बहती धार में न गिर कर नदी के कीचड़ में गिरा. घर पहुंचने पर चाची सोने के गहने वाला बैग अलमारी में रखने लगीं, तो सिर पीट लिया. उन्होंने धार्मिक विधि के सामान को विसर्जित करने के बजाय सोने के गहने वाले प्लास्टिक बैग को ही विसर्जित कर दिया था. चाची और कुछ रिश्तेदार गहने वाला प्लास्टिक बैग नदी में ढूंढ़ने हेतु रात में ही निकल पड़े. चाची की जान में जान तब आई जब नदी में गहने वाला बैग ढूंढ़ने में सफलता मिली.    

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