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मैली चादर

ये चादर
बड़ी मैली है, भद्दी है, धुंधली है
गठीले रेशों से बनी है
कर्ज का बोझ समेटे
वक्त के साथ, सूरज उजाला करता है
मगर शाम में डूबी है, वही चादर
न गंगा के पानी ने, न यमुना की लहरों ने
न संगम की रेती ने उजली की ये चादर
आज भी हवेली की दरारों में
सड़कों के किनारों में
दिखाई देती है, डरी हुई सहमी सी
ये चादर
आंधियों में फटती है, उजाले में लुटती है
तमाशे की तरह
फिर गांठों में जुड़ती है
और सिमट जाती है चादर
दुनिया डूबती रहती है आंसुओं में
मगर चादर वही है
बेबस आंखों में, बोझ से लिपटी हुई
लाचारी और गरीबी से बंधी हुई
बदनामी का दामन थामे,
तन्हा सी ये चादर
बड़ी मैली है, भद्दी है, धुंधली है.
              – अंजू चौधरी
 

यह भी खूब रही

मेरा 5 वर्षीय बेटा अपार्टमैंट के सामने अपने हमउम्र दोस्तों के साथ खेल रहा था. हम पतिपत्नी कुछ दूर से बच्चों के खेल का आनंद ले रहे थे. अचानक मेरे बेटे की तेज आवाज सुन, हम दोनों चौंक गए. वह कह रहा था, ‘‘जानते हो न, तुम सब, मैं जगन का बेटा हूं. जगन न सुनना नहीं जानता, तुम सब को मेरी बात माननी ही पड़ेगी.’’ दरअसल, मेरे पति गुस्से में हमेशा इसी तरह बोलते थे. खैर, हम ने प्यार से समझाते हुए, बच्चों में सुलह करवा दी और वे सभी पूर्ववत खेल में मस्त हो गए. मेरे पति ने शर्मिंदा होते हुए कहा, ‘‘मैं वादा करता हूं, आज से ही अपनी इस तरह बोलने की गंदी आदत छोड़ दूंगा.’’ मैं ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘यह भी खूब रही, बेटे ने आप को सिखा ही दिया.’’

संध्या, बेंगलुरु (कर्नाटक)

*

एक बार हमारे धनाढ्य मित्र सिसोदियाजी ने सर्दी के मौसम में गरीब बेघरों के लिए रात में कंबल बांटने का कार्यक्रम बनाने के लिए कहा और कहा कि कंबल जयपुर से ले आते हैं, वहां सस्ते मिलेंगे. कंबल लाने के बाद उन के एक मित्र ने पूछा कि सिसोदियाजी, कंबल किस जगह पर बांटने हैं, यह तो तय कर लो ताकि रात में परेशानी न हो. सिसोदियाजी बहुत हाजिर- जवाब हैं, उन्होंने तपाक से कहा कि यह मैं अभी नहीं बताऊंगा, कहीं तुम ने पहले से अपने आदमी वहां पर सुला दिए तो. इस बात पर सभी बिना हंसे नहीं रह सके.

आशा शर्मा, बूंदी (राज.)

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मेरी कामवाली, जिन्हें मैं बूआ कहती थी, बहुत अच्छी थीं. मुझे चाय पीने का बहुत शौक था. दिन भर में 6-7 कप चाय पी जाती थी. बूआ अकसर इस बात पर मुझे टोकतीं, नाराज भी होतीं, ‘‘बिटिया, इत्ती चाह (चाय) न पिया करो, रंग काला पड़ जाएगा, कलेजा अलग जल जाएगा,’’ मैं उन्हें हंस कर टाल देती या प्यार से मना लेती. उस दिन छुट्टी थी. मैं टीवी पर गाने सुन रही थी कि फिर चाय पीने का मन हुआ. मैं ने बूआ को चाय बनाने को कहा. वे बड़बड़ाती हुई चाय बनाने चली गईं. जब वे चाय ले कर आईं तो एक गाना आ रहा था, ‘चाह बरबाद करेगी हमें मालूम न था…’ बूआ जल्दी से बोलीं, ‘‘हम कहत हैं तो मानती नहीं हो. अब इत्ता बड़ा आदमी कह रहा है ‘चाह बरबाद करेगी’ यही तो हम भी कहत हैं कि ‘चाह’ नुकसान करती है पर तुम सुनतीं नहीं.’’ उन की बात सुन कर मैं हंस पड़ी. उन्हें क्या समझाती कि यह उन की चाह (चाय) नहीं, यह मुहब्बत है जो आबाद भी करती है, बरबाद भी करती है.     

शकीला एस हुसैन, भोपाल (म.प्र.)

सैल्फमेड कामयाबियों का स्वर्णिम दौर

इतिहास हमेशा अपने बल पर ही रचा जाता है. विरासत में हासिल हैसियत भी इतिहास रचने में भूमिका निभाती है, खासकर जब बात आर्थिक कामयाबी के इतिहास की हो. शायद यही कारण है कि 19वीं और 20वीं शताब्दी में पारंपरिक उद्योग घराने ही ज्यादातर कामयाबी पाते रहे हैं. उस दौर में भी कामयाबी की चमत्कारिक कहानियां सुनने को मिलती रही हैं, लेकिन अपवाद के तौर पर. टैक्नोलौजी में जब पोर्टेबल रिवोल्यूशन आया तभी से कामयाबी की कहानियों के नायक बदल गए हैं. ग्लोबलाइजेशन और नैटवर्किंग टैक्नोलौजी के इस चरम दौर यानी 21वीं शताब्दी में तो अधिकांशतया कामयाब कहानियां सैल्फमेड ही हैं. भारत हो या चीन, रूस हो या ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका हो या मैक्सिको–ये सभी देश नए अरबपति पैदा कर रहे हैं और इन सभी देशों में ज्यादातर अरबपति नौजवान हैं व सैल्फमेड हैं. ऐसा नहीं है कि जो लोग मुंह में चांदी की चम्मच ले कर पैदा हुए हैं वे इस दौर में कामयाबी की कोई कहानी नहीं लिख रहे. मगर उन की कहानियां इन सैल्फमेड अरबपतियों के सामने फीकी हैं.

2014 को ही लें. उद्योगपतियों पर नजर रखने वाली वैश्विक कंपनी अल्ट्रा हाई नैटवर्थ (यूएचएनडब्लू) इंटैलिजैंस ऐंड प्रौस्पैक्टिंग फर्म वैल्थ एक्स की एक अध्ययन रिपोर्ट के मुताबिक, टैक्नोलौजी सैक्टर से जुड़े भारतीय अरबपति अरुण पुदुर एशिया में कामयाबी के इतिहास के नए सितारे बन कर उभरे हैं. पुदुर अभी महज 36 साल के हैं. वे अपने घरपरिवार में पहली पीढ़ी के अरबपति हैं. हालांकि अभी 15 साल पहले तक उन की गिनती करोड़पतियों में भी नहीं थी. अपने हुनर से कामयाबी हासिल करने वाली पीढ़ी के आज वे पोस्टर ब्वाय बन चुके हैं. पुदुर भारत के ही नहीं, पूरे एशिया के आज की तारीख में सब से अमीर नौजवान इंटरप्रेन्योर हैं. पुदुर 4 अरब डौलर की निजी संपत्ति के साथ इस किस्म की तैयार लिस्ट में टौप पर हैं. वे सौफ्टवेयर फर्म सेलफ्रेम के मालिक और प्रैसिडैंट हैं. चेन्नई के पुदुर ने यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन पूरा करने के बाद 1998 में सेलफ्रेम की शुरुआत की थी. उन की सौफ्टवेयर फर्म माइक्रोसौफ्ट के बाद दुनिया का दूसरा सब से पौपुलर वर्ड प्रोसैसर बनाती है. पुदुर के पास माइनिंग और रियल एस्टेट जैसे कारोबारों में भी संपत्ति है. वेल्थ-एक्स के मुताबिक, इस लिस्ट में पुदुर के बाद चीन के झाउ याहुई दूसरे नंबर पर हैं और पुदुर की तरह वे भी पहली पीढ़ी के अरबपति हैं. उन के पास 2.2 अरब डौलर की निजी संपत्ति है. वैसे कामयाब नौजवानों के मामले में दुनिया में चीन का दबदबा 2 दशकों से लगातार बना रहा है. इस समय भी टौप 10 में से 6 इंटरप्रेन्योर चीन के ही हैं.

इस लिस्ट में जापान के भी 3 उद्यमी हैं. यह भी गौर करने की बात है कि वेल्थ-एक्स की टौप 10 लिस्ट में शामिल 9 अरबपति टैक्नोलौजी सैक्टर से हैं जो दूसरे क्षेत्रों के मुकाबले बिलकुल नया है. इस श्रेणी के अरबपतियों की संख्या के मामले में भारत दुनिया के देशों के बीच छठे पायदान पर पिछले साल भी था, इस साल भी बना हुआ है. भारत में ऐसे 100 लोग हैं जिन के पास कुल 175 अरब डौलर की संपत्ति है. वहीं, ग्लोबल लेवल पर ऐसे अमीर लोगों की संख्या रिकौर्ड 2,325 पर पहुंच गई है. इस सूची में 53 प्रतिशत से ज्यादा नए और सैल्फमेड लोग हैं. अरबपतियों की एक दूसरी सूची में सन फार्मास्युटिकल्स इंडस्ट्रीज के दिलीप सांघवी को एशिया के ‘टौप टैन सैल्फमेड बिलियनर्स’ की लिस्ट में शामिल किया गया है. वेल्थ-एक्स के मुताबिक, इस लिस्ट में सब से ऊपर हौंगकौंग के बिजनैस टायकून ली का-श्ंिग हैं. इस कैटेगरी की सूची में जगह बनाने वाले सांघवी इकलौते भारतीय हैं. वे 7वें पायदान पर हैं. उन की नैटवर्थ 13.5 अरब डौलर है जबकि ली का-श्ंिग 29.4 अरब डौलर के साथ सूची में सब से ऊपर हैं. लेकिन हाल ही में चीन की संपत्ति और मनोरंजन कंपनी दालियान वांडा समूह के अध्यक्ष वांग जियानलिन दुनिया के सब से अमीर चीनी नागरिक बन गए हैं. उन की नैटवर्थ 40.6 अरब अमेरिकी डौलर है.

अरबपतियों की संख्या के लिहाज से भारत पहली बार दुनिया की टौप लिस्ट में तीसरा स्थान हासिल कर सका है. अरबपतियों की इस सूची को हुरन ग्लोबल रिच लिस्ट-2015 द्वारा तैयार किया गया है. इस सूची के मुताबिक, भारत के सब से धनी व्यक्तियों में रिलायंस इंडस्ट्रीज के प्रमुख मुकेश अंबानी को टौप पोजीशन मिली है. इस सूची में केवल उन्हीं को जगह मिली है जो कम से कम 6 हजार करोड़ रुपए की संपत्ति के मालिक हैं. इस सूची में मुकेश अंबानी पहले पायदान पर हैं जिन की संपत्ति 1.2 लाख करोड़ रुपए है. इस के बाद दूसरे नंबर पर सनफार्मा के दिलीप सांघवी हैं. सांघवी की संपत्ति 1.02 लाख करोड़ रुपए आंकी गई है. वहीं, 96000 करोड़ रुपए की संपत्ति के साथ पालोनजी मिस्त्री और उन का परिवार है. टाटा संस इस लिस्ट में तीसरे स्थान पर हैं. सर्वाधिक अरबपतियों के साथ अमेरिका हमेशा की तरह इस बार भी इस सूची में पहले पायदान पर है जबकि चीन दूसरे स्थान पर काबिज है. भारत ने रूस और ब्रिटेन को पीछे छोड़ते हुए इस लिस्ट में तीसरे पायदान पर जगह बनाई है तो अपने सैल्फमेड अरबपतियों की बदौलत. इस सूची में शामिल दुनिया के कुल 2,089 अरबपतियों में से 97 भारत से हैं. विप्रो के अजीम प्रेमजी (84 हजार करोड़ रुपए), एचसीएल टैक्नोलौजीज के शिव नडार (66 हजार करोड़ रुपए), आदित्य बिड़ला ग्रुप के कुमार बिड़ला (60 हजार करोड़ रुपए) और सुनील मित्तल एंड फैमिली (60 हजार करोड़ रुपए) भारत की लिस्ट में टौप 10 में शामिल हैं. टौप 10 की लिस्ट में अपने दम पर कामयाबी की कथा लिखने वाले ज्यादा हैं. लिस्ट के मुताबिक, 97 अरबपतियों में से 41 को संपत्ति विरासत में मिली है जबकि 56 ऐसे अरबपति हैं जिन्होंने अपनी मेहनत के दम पर इसे बनाया है. बायोकौन की किरण मजूमदार शा एकमात्र ऐसी महिला अरबपति हैं जिन्होंने अपने बूते पर बिजनैस खड़ा किया है. उन की संपत्ति 6 हजार करोड़ रुपए आंकी गई है.

चीनी कारोबारियों का दबदबा

हुरन की विस्तृत सूची के मुकाबले हैल्थ-एक्स की संक्षिप्त यानी टौप 10 लिस्ट में चीनी कारोबारियों का दबदबा है. 10 लोगों की इस लिस्ट में से 7 लोग हौंककौंग और मेनलैंड चीन के हैं. इन लोगों की टोटल वैल्थ का तकरीबन 70 फीसदी है. वैल्थ-एक्स के सीईओ  मायकोलास रामबुस के मुताबिक, ‘‘150 साल के वैल्थ क्रिएशन साइकल में एशिया अभी शुरुआती दौर में ही है, फिर भी आने वाले वर्षों में हम उम्मीद करते हैं कि इन इलाकों में तेजी से संपत्ति बढ़ेगी.’’ उन के मुताबिक, दबदबा चाहे चीन का रहे या भारत का, पर सूची में चमकेंगे सैल्फमेड अरबपति ही. वैसे उन के मुताबिक, चीन के अल्ट्रा हाई-नैटवर्थ पौपुलेशन की संपत्ति तेजी से बढ़ेगी. एशिया के टौप 10 ‘सैल्फमेड बिलियनर्स’ की टोटल वैल्थ 31 मार्च, 2014 तक 52 फीसदी बढ़ कर 169.9 अरब डौलर हो चुकी थी. वर्ष 2013 में यह 112 डौलर थी. लिस्ट में दूसरे नंबर पर 22.8 अरब डौलर नैटवर्थ के साथ हौंगकौंग के ली शा की हैं. इस के बाद 21.1 अरब डौलर के साथ हौंगकौंग के ही लुई चे वू का नंबर है. साल 2013 में भारत में अरबपतियों की संख्या 103 थी जोकि स्विट्जरलैंड, हौंगकौंग और फ्रांस के अरबपतियों की संख्या से ज्यादा थी.

भारत में सब से ज्यादा अरबपति देश की फाइनैंशल कैपिटल मुंबई में हैं. वहां इन की संख्या 28 है. मुंबई दुनिया के टौप 20 बिलियनेयर सिटीज में शामिल है. इस लिस्ट में सब से ऊपर न्यूयौर्क है. वहां 103 अरबपति हैं. टौप 40 बिलियनर्स देशों और इलाकों में अमेरिका सब से ऊपर बना हुआ है. वहां 2014 में अरबपतियों की संख्या 571 थी. इस के बाद 190 अरबपतियों के साथ चीन दूसरे नंबर पर था. तमाम मंदी के बावजूद दुनिया में अरबपतियों की संख्या बढ़ रही है. 2014 में इस लिस्ट में 155 नए अरबपति जुड़े और इन की तादाद रिकौर्ड 2,325 हो गई. 2013 के मुकाबले यह 7 पर्सेंट की बढ़ोतरी है. लेकिन असली और ध्यान खींचने वाली बात यह है कि इस दौरान पहली बार और सैल्फमेड अरबपतियों की संख्या में 28 प्रतिशत का इजाफा हुआ है. यह इस बात की तसदीक करता है कि अपने बल पर कामयाब कहानियों के लिखे जाने का यह स्वर्णिम दौर है.  

क्लिकिंग एडिक्शन में जकड़ी नई पीढ़ी

‘‘सैल्फी के इस दौर में साल 2013 में अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा व ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरन की साउथ अफ्रीका के पूर्व राष्ट्रपति नेल्सन मंडेला की मृत्यु के बाद एक स्मारक के उद्घाटन कार्यक्रम के दौरान यह सैल्फी ली गई थी. दिलचस्प बात यह है कि मौके की नजाकत से बेखबर ओबामा और कैमरन के खिलखिलाते चेहरों के बीच डेनमार्क की पीएम हैली श्मिट भी बिंदास अंदाज में सैल्फी में नजर आ रही हैं. लेकिन बराक की सैल्फी परिधि से उन की पत्नी मिशेल ओबामा बाहर हैं.’’ यह 18 दिसंबर, 2014 की बात है, भोपाल से 60 किलोमीटर दूर स्थित कसबे सुल्तानपुर के नजदीक विनेका के एक पैट्रोल पंप के टौयलेट में 18 वर्षीया लड़की गई तो उसे शक हुआ कि टौयलेट में कोई छिपा हुआ कैमरा है. युवती मोबाइल और कंप्यूटर की जानकार थी. उस के मोबाइल से नैटवर्क गायब हुआ तो उसे शक हुआ. उस ने बारीकी से टौयलेट का मुआयना किया तो कैमरा दिख गया जो टौयलेट की गतिविधियां और दृश्य कैद कर रहा था. इस जागरूक युवती ने हल्ला मचाया तो पता चला कि यह छिपा हुआ कैमरा पैट्रोल पंप मैनेजर के कंप्यूटर से जुड़ा हुआ था. उस की शिकायत पर कार्यवाही हुई तो पता चला कि ऐसी एक नहीं, कई लड़कियों और महिलाओं के वीडियो पैट्रोल पंप मालिक के बेटे अनवर ने बना रखे हैं. अनवर को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया. मामला अब अदालत में है. अनवर नाम के युवक की यौन कुंठा को उजागर करता व महिलाओं की प्राइवेसी को भंग करता यह गंभीर मामला था. अदालत में अनवर दोषी पाया गया तो उसे सजा होना तय है. इस घटना के लगभग 3 महीने बाद भोपाल मेंही कई ऐसे मामले उजागर हुए जिन में सोशल साइट्स यूजर्स ने खुद अपनी प्राइवेसी उजागर की. इन का क्या होगा और ऐसा क्यों है, इस पर आएदिन बहस होती रहती है लेकिन कोई निष्कर्ष नहीं निकलता सिवा इस के कि लोग, खासतौर से युवा, सोशल साइट्स के, दिमागी बीमारी की हद तक, आदी होते जा रहे हैं. वे इस बाबत कुछ सुननेसमझने को तैयार नहीं.

खुद उजागर करते प्राइवेसी

वे लोग अनवर से कम दोषी नहीं कहे जा सकते जो अपनी प्राइवेसी सोशल साइट्स पर शेयर कर रहे हैं. भोपाल के ही कुछ चर्चित मामलों पर नजर डालें तो लगता है कि यह जनून इसी तरह कायम रहा तो वह दिन दूर नहीं जब किसी को शौचालयों या दूसरी किसी जगह कैमरे छिपा कर अपनी कुंठा पूरी करने की जरूरत नहीं रह जाएगी. युवा खुद कुंठित हो कर ऐसी बातें, फोटो और अंतरंगता साइट्स व एप्स के जरिए साझा करेंगे. एक युवक ने अपनी पत्नी के प्रसव के फोटो शेयर किए और एकएक मिनट की जानकारी भी अपलोड की. ऐसा वह लगातार करता रहा. चूंकि औपरेशन थिएटर के अंदर के फोटो नहीं खींच सकता था, इसलिए मामला बाहर तक ही सीमित रहा लेकिन जनून के चलते जानेअनजाने में वह ऐसी बेवकूफी और बेहूदगी  कर बैठा जिस का खामियाजा पत्नी और घर वालों को शर्मिदगी की शक्ल में भुगतना पड़ा. इसी तरह एक नए जोड़े ने अपनी आलिंगनबद्ध और निजी पलों की तसवीरें अपलोड कर कौन सा समझदारी या बुद्धिमानी का काम किया, बात समझ से परे अब नहीं रही कि यह मानसिक बीमारी तेजी से युवाओं को अपनी गिरफ्त में ले रही है. इस की कई वजहें हैं. इन में से खास है फोटो खींचने की सहूलियत, अब हर हाथ में मोबाइल में जड़ा कैमरा है जिस का उपयोग कम दुरुपयोग ज्यादा किया जा रहा है.

बीमारी है फोटो खींचना

कहीं भी देख लें, लोग खासतौर से युवा बातबात में फोटो खींचते नजर आ जाएंगे. समारोहों में तो यह आम बात है कि मंच या स्टेज के पास खड़े कई युवा मोबाइल हाथ में लिए इस तरह फोटो खींचते हैं मानो एवरेस्ट चढ़ने का कठिन काम सहूलियत से कर रहे हों. लैपटौप, स्मार्टफोन अब हर किसी के पास हैं. इन के यूजर्स वाट्सऐप और फेसबुक जैसी सोशल साइट्स पर फोटो अपलोड करने के लिए जिस तेजी से आदी हो रहे हैं उस से लगता है एक नई दिमागी बीमारी समाज में पैर पसार रही है. इस बीमारी का नामकरण अभी मनोचिकित्सक भी नहीं कर पा रहे हैं, सिवा इस के कि यह एक खतरनाक एडिक्शन है. सफर में हैं तो फोटो, बाजार में तो फोटो, अकेले हैं तो फोटो और मित्र मंडली के साथ हैं तो भी फोटो खींचे जा रहे हैं. इन फोटो की कोई उपयोगिता नहीं है सिवा इस के कि इन्हें उन लोगों को सोशल साइट्स के जरिए दिखाया जाए जो कभी मिले ही नहीं. यह बीमारी द्विपक्षीय है जिस में लाइक और कमैंट्स का बड़ा महत्त्व है. जिसे जितने ज्यादा लाइक्स और कमैंट्स मिलते हैं उस की छाती उतनी ही चौड़ी हो जाती है, मानो पद्मश्री, ज्ञानपीठ या नोबेल जीत लिया हो. एक बेवकूफी और अनुपयोगी काम को उपलब्धि मानना वाकई युवा पीढ़ी की मानसिक विकलांगता ही है.

सैल्फी ने तो इस बीमारी में चारचांद लगा दिए हैं. अब हर कोई हर कहीं फोटो खींच रहा है जिसे दिखाने और कमैंट्स व लाइक्स की तादाद बढ़ाने के लिए सार्वजनिक किया जाता है. यहां से प्राइवेसी भंग होने की शुरुआत हो जाती है. दूसरे शब्दों  में कहें तो खुद अपनी प्राइवेसी उधेड़ी जाती है, जिस में गलतसही, व्यावहारिकअव्यावहारिक या जरूरीगैरजरूरी युवा नहीं देख पाते. वे केवल बुद्धिमानी और लोकप्रियता का पैमाना इसे मान बैठे हैं. भोपाल के एक मनोचिकित्सक विनय मिश्रा की मानें तो इस तरह के एडिक्ट यूजर्स अपने लिए कोई सीमाएं तय नहीं कर पाते. वे एक काल्पनिक दुनिया में जीते हैं जिस से डिप्रैशन आता है. ऐसे मरीजों की तादाद लगातार बढ़ रही है.

इस पूरे कुएं में भांग पड़ी है, एक बड़ा तबका फोटो खींचने की बीमारी की गिरफ्त में है, इसलिए लग नहीं रहा कि इस का कोई इलाज है. एक दफा मादक पदार्थों के सेवन के आदी इलाज और अपनी इच्छाशक्ति के चलते एडिक्शन से छुटकारा पा जाएं लेकिन इस क्लिकिंग एडिक्शन के मरीजों पर तो कोई दवा या थैरेपी भी असर नहीं करने वाली.

नुकसान ही नुकसान

दूसरों का ध्यान अपनी तरफ खींचना सहज मानव स्वभाव है. बुद्धिमान लोग अपनी बातों से किसी को भी आकर्षित कर लेते हैं पर सोशल मीडिया पर बात उलटी है. यहां बेवकूफों और बेहूदगियों पर ज्यादा ध्यान जाता है. इसलिए युवा हदें पार करते खुद अपनी प्राइवेसी भंग कर रहे हैं. मकसद, अपने जैसे दूसरे बेवकूफों को खुद की श्रेष्ठता बताना रहता है. फेसबुक पर उत्तेजक और आलिंगनबद्ध जोड़ों की फोटो की भरमार है. इन पर कमैंट्स भी खूब होते हैं और लाइक्स भी मिलते हैं. लड़कियां अपने उत्तेजक फोटो अपलोड कर  रही हैं जिस से ज्यादा से ज्यादा यूजर्स तवज्जुह दें और ऐसा होता भी है. जिन्हें संस्कारों या बंदिशों के चलते ऐसा करने की इजाजत नहीं, वे देवीदेवताओं के जरिए यह काम कर रहे हैं. जय मातादी, साईंबाबा, कृष्ण और शंकर की फोटो की भरमार सोशल साइट्स पर है जो युवाओं को अंधविश्वासी और परजीवी बना रही हैं. भगवान भी कहीं होता तो इन साइट्स पर अपनी तरहतरह की फोटो देख घबरा जाता. दरअसल, अब फोटो खींचना आसान और सहूलियत वाला काम हो चला है. पहले कैमरा मध्यवर्गीय लोगों को भी दुर्लभ था उस पर भी दिक्कत यह थी कि रील धुलवाने के लिए स्टूडियो भागना पड़ता था. टैक्नोलौजी ने यह परेशानी तो दूर कर दी लेकिन एवज में हजार परेशानियां खड़ी कर दीं.

वक्त की बरबादी तो इस से होती ही है, साथ ही गैरजरूरी और फालतू काम करने की आदत भी युवाओं में बढ़ रही है. हजारों की तादाद में एक युवा फोटो खींचता है, फिर कुछ दिन बाद मैमोरी कार्ड भर जाने पर उन्हें डिलीट कर देता है. यानी इन फोटो की अहमियत की तुलना घर की अलमारी में रखे एलबम से नहीं की जा सकती जिसे बड़े सहेज कर रखा जाता है और साल में एकदो बार देखने में जिस रोमांच का अनुभव होता है, स्मृतियां साकार हो जाती हैं वह नई पीढ़ी की बीमारी क्लिकिंग एडिक्शन में नहीं होती. फोटो खींचने की लत से युवाओं की रचनात्मकता और मौलिकता भी खत्म हो रही है. उन का दिमाग हमेशा फोटो खींचने के बारे में सोचता रहता है कि इन्हें कैसेकैसे खींचा जाए कि ज्यादा से ज्यादा लोग आकर्षित हों. इसीलिए वे ऐसेऐसे फोटो खींच डालते हैं जिन से कई दफा तरहतरह के फसाद भी हो जाते हैं. टीवी, कंप्यूटर, इंटरनैट और स्मार्ट फोन ने लोगों को जिस तेजी से दूर किया है उतना कभी कोई नहीं कर पाया. यूजर्स इन्हें संपर्कसूत्र समझते हैं. दरअसल, यह भ्रम है. एकदूसरे को जाननेसमझने के लिए सीधा परिचय व संवाद होना जरूरी है लेकिन सोशल साइट्स पर तो प्यार और शादियां तक होने लगी हैं. इस का बड़ा आधार फोटो हैं जो यह एहसास कराती हैं कि हम किसी काल्पनिक व्यक्ति से प्यार या बात नहीं कर रहे, जबकि फोटो कभी किसी की होती है और वास्तविक पर्सन कोई और होता है.

वक्त की बरबादी

यह कतई सुखद स्थिति नहीं है कि एक घर में 3-4 लोग हों और जब वक्त मिले तो बजाय आपस में बातें करने व दिनचर्या साझा करने के, अपने स्मार्ट फोन, लैपटौप या कंप्यूटर पर सोशल साइट्स खोल कर बैठ जाएं और उस पर फोटो डालने के साथ वक्त गुजारें बल्कि यह कहना बेहतर होगा कि वक्त बरबाद करें. 80-90 के दशक के युवा पढ़ने की लत के इस तरह के शिकार थे कि वे खानापीना भी भूल जाते थे. इस से फायदा यह था कि प्रतियोगी परीक्षाओं में वे आगे रहते थे और वे व्यावहारिक भी होते थे. उन के पास जानकारियां होती थीं. वे तार्किक भी होते थे. अब जब जानकारियों के साधन बढ़ गए हैं और सहज उपलब्ध हैं, तब 100 में से 5 युवा भी न बता पाएंगे कि देश का कृषि मंत्री कौन है. आज का युवा अमेरिका, क्यूबा के संबंधों जैसे विषयों पर बहस न करे यह हर्ज की बात नहीं, हर्ज की बात यह है कि वे बहस करने की स्थिति में नहीं रह गए हैं. इस तरह की अज्ञानताओं और बेचारगी की वजह सोशल साइट्स और उस से भी ज्यादा फोटो खींचने की लत है जिस के तहत यह मान लिया गया है कि कोई दूसरा करे तो बवाल मचाओ और खुद अपनी प्राइवेसी भंग करो तो बात हर्ज की नहीं. यानी दोष हमेशा दूसरों को देने की गलत प्रवृत्ति को भी बढ़ावा मिल रहा है.     

फोन से बैंक खाता खोलने की सुविधा

प्रधानमंत्री ने जनधन योजना शुरू की तो देश के करोड़ों लोगों को खाता खोलने का अवसर मिला. इस योजना से उन लोगों को बैंक खाता खोलने का जरूर मौका मिला जिन्होंने बैंक खाता खोलने की बात कभी सोची तक नहीं थी. उस की वजह थी बैंकों में खाता खोलने की जटिल औपचारिकताएं. बहरहाल, मुंबई में फैडरल बैंक ने मोबाइल से फोन करने वाले ग्राहकों के खाते खोलने शुरू कर दिए हैं. इस अनूठे काम के लिए बैंक ने एक ऐप बनाया है. यह ऐप ग्राहक को फोन से खाता खोलने की सुविधा, उस के संबंध में पूरी जांचपड़ताल करने के बाद देता है. फोन पर खाता खोलने के लिए ग्राहक को अपने स्मार्ट फोन से अपनी सैल्फी, अपना आधार कार्ड और पैनकार्ड को अपने हस्ताक्षर के साथ स्कैन कर के बैंक को भेजना है. बैंक का ऐप आप के द्वारा भेजे गए दस्तावेजों की सत्यता की पड़ताल करेगा और दस्तावेजों की सत्यता की पुष्टि होने के बाद ग्राहक को बचत बैंक खाता संख्या उपलब्ध करा देगा. खाता खुलते ही खाताधारक अपने खाते में अधिकतम 10 हजार रुपए की राशि जमा करा सकता है. बैंक का यह ऐप फिलहाल एंड्रौयड आईओएस औपरेटिंग सिस्टम वाले फोन में ही उपलब्ध है.

स्मार्टफोन का इस्तेमाल तेजी से बढ़ रहा है और बैंक को लगता है कि वह मोबाइल फोन के जरिए ज्यादा से ज्यादा ग्राहकों को जोड़ सकता है. ई-बैंकिंग की इस एडवांस योजना का लाभ लेने में ग्राहक रुचि ले रहे हैं. समय की बचत महानगरीय जीवन में सब से बड़ी बचत है और समय की यह बचत महानगरों में व्यक्ति के जीवन में बैंक बचत को बढ़ावा देगी और ई-बैंकिंग के क्षेत्र में फैडरल बैंक का यह कदम क्रांतिकारी साबित होगा.

दिल्ली को जाम से मुक्ति दिलाने की योजना

सड़कों पर वाहनों की संख्या जिस गति से बढ़ रही है, सड़क पर जाम का संकट उतना ही अधिक हो रहा है. सरकार और वाहन निर्माता कंपनियां निरंतर अपने वाहनों की बिक्री के आंकड़े पेश कर रहे हैं लेकिन कोई यह बताने को राजी नहीं है कि जाम लगने की वजह से कितने लोगों को आर्थिक संकट से और कितने लोगों को नौकरी से हाथ धोना पड़ रहा है. हर दिन जाम के कारण देर से दफ्तर नहीं पहुंचा जा सकता और न ही रोजरोज देर से आने की वजह बता कर कार्यालय में बौस के गुस्से से बचा जा सकता है. सड़क पर लगने वाले जाम से देश को ईंधन का भारी नुकसान हो रहा है. मुंबई, पुणे और कोलकाता दुनिया में जाम के कारण कुख्यात हो चुके हैं. दुनिया में सब से अधिक जाम वाले शहरों में भारत के ये 3 शहर शामिल हो गए हैं. उधर, दिल्ली की हालत भी पतली होती जा रही है. जाम के कारण दिल्ली के लोग पैसे और समय की मार से पीडि़त हो रहे हैं. किसी भी सड़क पर जाइए, जाम आप का पीछा नहीं छोड़ने वाला. इस महानगर की सड़कें समय की बरबादी, पैसे की बरबादी और मानसिक प्रताड़ना का प्रतीक बनती जा रही हैं.

एक अध्ययन के अनुसार, भारत में सालाना 60 हजार करोड़ रुपए का तेल जाम के कारण बरबाद हो रहा है. सड़कों पर जाम के दौरान फंसे वाहन हर माह 5 हजार करोड़ रुपए का तेल खड़ेखड़े पी रहे हैं. सरकार अब इस स्थिति से निबटने के लिए कदम उठा रही है. उस के लिए दिल्ली में ज्यादा से ज्यादा पार्किंग स्थल बनाए जा रहे हैं. नए फ्लाईओवर, सड़कें और सर्विस सड़कों का निर्माण किया जा रहा है. योजना पर सरकार का सिर्फ 34 हजार करोड़ रुपए खर्च करने का प्रस्ताव है जबकि जानकार कहते हैं कि यदि सचमुच दिल्ली में जाम से निबटना है तो 1 लाख हजार करोड़ रुपए खर्च करने पड़ेंगे. हर सड़क पर दिल्ली में नियमित जाम लगता है. ऐसे में जाम से छुटकारा पाने के लिए सड़क पर आ रहे वाहनों की संख्या सीमित करनी पड़ेगी, पुराने वाहन हटाने होंगे और लोगों को सार्वजनिक वाहनों के इस्तेमाल के लिए प्रेरित करना होगा लेकिन इस के लिए इस सेवा को सुधारना पड़ेगा.

मोबाइल उपभोक्ता उत्पीड़न के लिए कानून

सड़क पर, कार्यालयों में, बसों और रेलों में तथा मौल आदि में कुछ लोग अकसर कान पर मोबाइल लगा कर जोरजोर से बोलते सुनाई देते हैं. लगभग सभी लोग गुस्से में होते हैं और एक ही बात कहते सुने जाते हैं कि जब सर्विस ही नहीं ली तो मेरे पैसे कैसे काट दिए. इस तरह के संवाद ये लोग मोबाइल फोन सेवा प्रदाता कंपनी के सेवा केंद्र के अधिकारी से कहते सुने जाते हैं. वे चिल्लाते हैं, झल्लाते हैं, चीखचीख कर बोलते हैं लेकिन उन्हें एक ही जवाब मिलता है, आप ने ही सर्विस ली है. एक अन्य परेशान उपभोक्ता कहता है, ‘मेरे पैसे काटे जा रहे हैं जबकि मैं ने मोबाइल फोन का इस्तेमाल ही नहीं किया है.’ कुछ कंपनियों के ग्राहक सेवा अधिकारी को आप ढूंढ़ते रह जाएंगे लेकिन उन से आप बात नहीं कर पाएंगे. सबकुछ रिकौर्डेड सेवा है जो सिर्फ औपचारिकता के लिए तथा अपनी सेवा संबंधी जानकारी देने के लिए है.

शायद भविष्य में उपभोक्ताओं को अपनी शिकायत के लिए इस तरह से परेशान नहीं होना पड़ेगा. संचार मंत्रालय इस दिशा में सख्त कदम उठा रहा है. उपभोक्ता कानून में संशोधन किया जा रहा है जिस के तहत औपरेटर व उपभोक्ता के संबंध पर विशेष ध्यान दिया जाएगा. कानून का मकसद उपभोक्ता को टैलीफोन औपरेटरों के उत्पीड़न से सुरक्षा प्रदान करना है. कानून के तहत ग्राहक के पैसे बेवजह काटने वाले सेवा प्रदाताओं पर नकेल कसी जाएगी. बेवजह अथवा बिना सर्विस लिए पैसे काटने पर सेवा प्रदाता को कीमत चुकानी पड़ेगी. इस कानून में बड़ा संशोधन यह है कि जिस दुकान से उपभोक्ता मोबाइल खरीदेगा उस की सर्विस के लिए दुकानदार को जोड़ने का प्रस्ताव है. प्रस्ताव के अनुसार, मोबाइल यदि वारंटी अवधि से पहले खराब होता है तो यह जिम्मेदारी दुकानदार की होगी. उसे अपने ग्राहक को संतुष्ट करना पड़ेगा. मोबाइल उपकरण भी ग्राहक के लिए कई बार संकट खड़ा करता है, इसलिए इस बिंदु को कानून में रखा जा रहा है. सरकार का कहना है कि यह कार्य कठिन जरूर है लेकिन इस से ग्राहकों को फायदा होगा. सरकार को मोबाइल सेवा प्रदाताओं तथा मोबाइल उपकरणों की बिक्री से अच्छा राजस्व हासिल हो सकेगा.

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