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शब्द

एक शब्द रूप अनेक

मृदु हो

मन को छू जाए

कटु हो

मन को भेद जाए

भावों की धारा संग बहे

कविता बन जाए

प्रेम में लिप्त हो

रस की गागरी छलकाए

क्रोधित हो

अगन बरसाए

तीर की तरह निकले

दिल को तोड़ जाए

वेदना में पीडि़त हो

आंख नम हो जाए

हंसीखुशी में निकले

फूल की तरह खिल जाए

विचार कर वाणी से निकले

मानसम्मान दे जाए.

                          – अंजू

इन्हें भी आजमाइए

घर को कुछ अनोखा सा टेक्सचर दीजिए, ताकि वह औरों से अलग दिखे. इस के लिए जरूरी नहीं है कि आप सारी दीवारों पर कोई बनावट बनाएं या डिजाइन दें. सिर्फ एक दीवार पर भी हलका सा डिजाइन बना कर रूम या घर को अनोखा लुक दिया जा सकता है.

फ्रिज नहीं है या खराब है और आप चिकन या मटन स्टोर करना चाहते हैं तो इस में उपस्थित पानी को बाहर निकाल दें ताकि बैक्टीरिया न पनप सकें. इसे कुछ समय के लिए माइक्रोवेव में रखें या इसे तल लें. इस के बाद इसे एक कटोरे में रख कर सूती कपड़े से ढक दें.

आप के परदे गहरे रंग के हैं तो अपने पुराने फर्नीचर को सफेद रंग से पेंट करें जिस से आप के कमरे को एक अनोखा लुक मिलेगा. इस से फर्नीचर उत्तम दरजे का दिखेगा तथा रंग संतुलन भी सुरुचिपूर्ण ढंग से रखा जा सकेगा.

मेथीदाना को 7-8 घंटे भिगो लें, फिर पीस कर पेस्ट बना लें. यह पेस्ट सीधे सिर पर लगा लें और सूखने दें. बाद में माइल्ड शैंपू से धो लें, बालों का झड़ना रुकेगा.

मधुमेह के मरीज चाहें तो नीबू पानी समयसमय पर पी कर मीठा खाने की आदत से छुटकारा पा सकते हैं.

ऐसा भी होता है

हमारे सहयोगी शुक्लाजी अपनी बेटी के लिए सुयोग्य वर की तलाश में थे. एक अन्य सहयोगी मिश्राजी अपने बेटे के लिए सुंदर, सुशील वधू ढूंढ़ रहे थे. चर्चा चली तो किसी ने सुझाव दिया कि आप दोनों आपस में संबंध हेतु विचार क्यों नहीं करते? बात दोनों को जंच गई. संयोग से आयु, पढ़ाई, कद, रंग, रूप आदि सभी मेल खा रहे थे. तय हुआ कि लड़कालड़की एकदूसरे को देख लें और पसंद कर लें तो बात आगे बढ़े. तय कार्यक्रम के अनुसार, मिश्राजी अपने बेटे तथा पत्नी के साथ दोपहर के भोजन पर शुक्लाजी के यहां पहुंचे. औपचारिक नमस्कार आदि के आदानप्रदान के तुरंत बाद शुक्लाजी की पत्नी और बेटी भीतर चली गईं. कुछ देर बाद शुक्लाजी को भी भीतर बुला लिया गया.

काफी देर बाद तमतमाए हुए से शुक्लाजी अकेले बाहर आए. स्वयं को बमुश्किल संयत करते हुए उन्होंने मिश्रा परिवार को किसी होटल में खाने हेतु चलने के लिए अनुरोध किया जिसे मिश्राजी ने शिष्टतापूर्वक मना कर दिया तथा पत्नी और बेटे सहित घर लौट आए. बहुत बाद में बात खुली कि शुक्लाजी की पुत्री ने मिश्राजी की गंजी खोपड़ी को देखते ही कह दिया कि कल को इन का बेटा भी ऐसा ही हो गया तो…मुझे नहीं करनी ऐसे आदमी से शादी. इस पर उस की मां का कहना था कि जब हमें इन से रिश्ता ही नहीं करना तो खाना भी क्यों खिलाएं.

ओमप्रकाश बजाज, जबलपुर (म.प्र.)

*

मेरी एक सहेली है. उस के जेठजी ग्वालियर में रहते हैं. उन्हें भोपाल शहर बहुत पसंद है. इसलिए कुछ माह पहले एक बिल्डर का मकान बनाने का विज्ञापन देख कर वे सपरिवार भोपाल आए और एक प्लौट बुक कर दिया. बुकिंग राशि 50 हजार रुपए देने पर बिल्डर ने उन्हें स्टांप पेपर पर हस्ताक्षर दे कर कहा कि अगली बार पहली किस्त देने जब आप आओगे तो प्लौट की रजिस्ट्री आप को मिल जाएगी. उन्होंने विश्वास के साथ 50 हजार रुपए बिल्डर को दे दिए. 2 माह बाद उन्होंने भोपाल आ कर देखा तो न तो बिल्डर का औफिस मिला न जमीन पर कोई डेवलपमैंट हुआ था. बहुत कोशिश के बाद उन्हें समझ में आया कि बिल्डर फ्रौड था और उस के औफिस का पता भी गलत था. उस ने उन के जैसे कई और लोगों से बुकिंग राशि ले रखी थी जिसे ले कर वह फरार हो गया था.

अल्पिता घोंगे, भोपाल (म.प्र.)

प्रिय जैसा चाहा

प्रिय जैसा चाहा था मैं ने

दिल के पन्नों पर उकेर गया

दृष्टि वही, नयन वही

देह वही, छुअन वही

भवें वही, कमान वही

होंठ व मुसकान वही

मेरी हर कल्पना चितेरा

वो सच तुझ में कर गया

हृदय वही, विचार वही

मन का विस्तार वही

रुचियां, संस्कार वही

कविता संसार वही

कैसी यह कारीगरी

मैं अचरज से भर गया

हम न कभी जान सके

क्यों अपने कदम रुके

फिर क्यों तुम दूर चले

हम पर कब भेद खुले

कौन नयन अपलक

मेरी सूनी राहों पर धर गया.

           – आलोक यादव

अभिव्यक्ति पर कानूनी चाबुक

सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में महापुरुषों पर व्यंग्य करने पर आपत्ति जता कर विचारों की स्वतंत्रता के अधिकार को उस समय और संकुचित कर डाला जब दुनियाभर में स्वतंत्रताओं पर भारी दबाव डाला जा रहा है. आज विचारों की स्वतंत्रता एक आम निहत्थे, सीधे, साधनविहीन नागरिक का अधिकार नहीं है. यह तो केवल राजनीतिक दलों, धर्मों, सरकारों, दबंगों के चंगुल में है. पेरिस में एक कार्टून पत्रिका का मामला हो या इंटरनैट पर बाल ठाकरे के देहांत पर मुंबई बंद करने का मौका हो, जो संगठित है चाहे धर्म हो, दल हो या सरकार हो, वे विचारों की स्वतंत्रता को कुचलना संवैधानिक अधिकार से ऊपर मानते हैं. आंध्र प्रदेश के विद्रोही कवि गदर की एक कविता में महात्मा गांधी के मुंह से बुलवाए कुछ शब्दों पर सुप्रीम कोर्ट ने आपत्ति करते हुए साफ कर दिया है कि अदालतें इस अधिकार को प्रशंसा का अधिकार मानती हैं. यह तर्क कि इस अधिकार के अंतर्गत आप आलोचना कर सकते हैं, अपने भिन्न विचार प्रकट कर सकते हैं पर फिर भी सीमा नहीं लांघ सकते, अपनेआप में सरकार, पुलिस और संगठित धर्मों के हाथ में ऐसा हंटर देना है जिस से विचारों की स्वतंत्रता का इस्तेमाल करने वाले को सूली पर चढ़ाया जा सकता है.

जिस समाज में गतिशीलता होती है वही आगे बढ़ता है. नदी जो हर तरह की गंदगी को बहा ले जाए वही समाज के लिए उपयोगी, वह जोहड़ नहीं जहां समाज की गंद जमा हो जाए चाहे वह मंदिरमसजिद के प्रांगण में बना हो. विचारों की स्वतंत्रता ने राजशाही और तानाशाही के मुकाबले नए विचार दिए और लोकतंत्र को अपना रास्ता दिखाया. अगर सर्वोच्च न्यायालय के तर्क की तरह उस समय कहा जाता कि राजा या तानाशाह के विचारों से विभिन्नता तो व्यक्त की जा सकती है पर विचारों की स्वतंत्रता के नाम पर मजाक नहीं उड़ाया जा सकता तो शेक्सपीयर तक के कितने नाटक प्रतिबंधित हो जाते. सरकारें, तानाशाह, धर्म की दुकानें चलाने वाले हमेशा कहते रहते हैं कि वे अपने विचार थोपते नहीं हैं पर वहीं वे यह भी कहते रहते हैं कि उन पर विश्वास रखें तभी समाज स्थिर रहेगा. अगर मजाक नहीं उड़ाया जा सकता तो विचार व्यक्त करना औपचारिकता मात्र है. मजाक और कार्टून दूसरे की गलतियों का जिस तरह परदाफाश करते हैं वह 1 हजार पृष्ठों की किताब नहीं कर सकती.हमारे देश में तानाशाही फिर अपनी जमीन बना रही है. कौर्पोरेट घरानों से ले कर धर्मों के पुजारियों तक सब इस फेर में रहते हैं कि किसी तरह की आलोचना से बचा जाए. हमारे देश में कार्टून अब हलके हो गए हैं, व्यंग्य की विधा कमजोर हो गई है, लिखने वालों की कलम कांपने लगी है. जब तक संगठित समूह पीछे न हो, हरेक की हालत दिल्ली विश्वविद्यालय के सैंट स्टीफन कालेज के छात्र देवांश मेहता की तरह है जिस ने अपने कालेज के पिं्रसिपल वालसन थिंपू पर लिखा तो उसे सस्पैंड कर दिया गया. बजाय नागरिकों को सांत्वना देने के अदालतें, बड़ी आसानी से लेखकों, पत्रकारों को संयम बरतने की सलाह दे डालती हैं जिस का छिपा अर्थ होता है, शक्तिशाली की बात मान जाओ वरना कानूनी पंजे फौलादी हैं.

म्यांमार औपरेशन

म्यांमार में घुस कर उग्रवादियों पर हमला कर भारत सरकार ने उग्रवाद से निबटने में कड़ा रुख अपनाया है. मणिपुर में सक्रिय जिस गुट ने भारतीय सेना के 18 जवानों को मारा था और फिर म्यांमार में जा छिपे थे, उन पर म्यांमार में घुस कर हमला करना अपनेआप में नया काम था क्योंकि पड़ोसी देश में पनाह ले रहे आतंकवादियों पर हमला करने का कानूनी हक भारत को न था. बजाय इस के कि इस काम के लिए बाद में म्यांमार सरकार से समझौते का रुख अपनाने के नरेंद्र मोदी की सरकार के मंत्री और भक्त इसे बढ़ाचढ़ा कर पेश करने लगे, मानो उन्होंने एवरेस्ट पर कब्जा कर लिया हो या चांद पर सैनिक उतार दिए हों. इस से म्यांमार ही नहीं, पाकिस्तान ने भी चिंता जताई और भारत के रुख की सख्त आलोचना की. जहां तक बहादुरी का प्रश्न है, यह औपरेशन अपनेआप में कठिन न था क्योंकि मणिपुर और म्यांमार का यह इलाका भौगोलिक दृष्टि से एकजैसा है और म्यांमार ने भारत की सीमा के पास कोई टैंकों, तोपों की फौज जमा नहीं कर रखी. यह लगभग बिना निशानों वाली सीमा है जिस के आरपार आम स्थानीय नागरिक आतेजाते रहते हैं अगर वे अपना छोटामोटा कामकाज कर रहे हों. एकदूसरे देश में घुस कर औपरेशन करना आम बात है और छोटेमोटे अपराधियों का पीछा करते सभी सीमाओं के अंदर देशों की पुलिस आतीजाती रहती है और कोई अंतर्राष्ट्रीय होहल्ला नहीं मचता.

यहां होहल्ला हम ने खुद मचाया और पाकिस्तान को चेतावनी देने की कोशिश की जिस पर पाकिस्तान के नेताओं ने एटम बम तक की धमकी दे डाली है. पड़ोसियों के साथ हिलमिल कर रहना जरूरी होता है और एकदूसरे की थोड़ी ज्यादतियां सहनी भी होती हैं पर केवल तब तक जब तक प्रतिष्ठा का प्रश्न न बने. हमारे भगवाई बड़बोले नेताओं ने इसे हनुमान की लंकादहन का सा रूप दे दिया जिस का परिणाम यह रहा था कि सीता मिली, पर तब जब लंबा भीषण युद्ध लड़ना पड़ा. होना तो यह चाहिए था कि भारत सरकार के कड़े रुख से म्यांमार उग्रवादियों को पनाह देना ही बंद कर दे और उन्हें पकड़ कर भारत सरकार के हवाले कर दे. इस रेड के बाद म्यांमार अपनी सार्वभौमिकता दिखाते हुए भारत सरकार के साथ सहयोग बंद कर सकता है. यह न भूलें कि म्यांमार का चीन से भी सीमा विवाद है पर चीन अपनी भारीभरकम फौज और आर्थिक सुदृढ़ता के बावजूद म्यांमार से भिड़ता नहीं है क्योंकि यह भिड़ंत निरर्थक होगी और उस में चाहे गलती म्यांमार की हो, थूथू चीनकी ही होगी. हम चाहे कितने गाल बजा लें, इस मुठभेड़ से भारत को जो मिला उस से ज्यादा जवाब देने होंगे.

पूंजी बाजार

ब्याज दरों में कमी से नहीं आई बाजार में रौनक

बौंबे शेयर बाजार बीएसई के लिए जून की शुरुआत तबाही ले कर आई. बाजार में शुरू से ही गिरावट का रुख रहा जिस से पूरे माहौल में उदासी रही. इस दौरान बिकवाली का जोर रहा जिस के कारण सूचकांक 8 माह के निचले स्तर पर पहुंचा है. जून के पहले सप्ताह में बाजार में 4 प्रतिशत की गिरावट आई जिसे 2011 के बाद की सब से तेज गिरावट बताया जा रहा है. माह की शुरुआत में बीएसएई शुरू के लगातार 4 दिन और नैशनल स्टौक एक्सचेंज निफ्टी 5 दिन गिरावट पर बंद हुआ. इस के अगले सप्ताह भी बाजार में गिरावट का ही रुख रहा और निवेशक बाजार से दूर ही नजर आए. रिजर्व बैंक के रेपो दर घटाने और कंपनियों के तिमाही परिणाम अच्छे रहने का भी बाजार पर कोई सकारात्मक असर नहीं हुआ. जून माह के दूसरे पखवाडे़ की शुरुआत तक लगातार 3 सप्ताह तक बाजार में गिरावट देखने को मिली. बाजार के जानकारों का कहना है कि गिरावट की वजह यूनान में ऋण संकट का गहराना, अमेरिका में फैडरल रिजर्व की दरों में बदलाव करने की उम्मीद तथा मानसून के संकट की आशंका रही है. इस के अलावा रुपए में लगातार जारी गिरावट ने भी निवेशकों के भरोसे को कमजोर किया है. इस के बाद 15 जून को बाजार में पहली बार तेजी देखने को मिली. विश्लेषक इस की वजह औद्योगिक विकास के आंकड़ों में तेजी तथा स्थिर मुद्रास्फीति के सकारात्मक आंकड़ों को मान रहे हैं. अप्रैल में औद्योगिक विकास दर 4.1 प्रतिशत रही है जबकि मार्च में 2.5 प्रतिशत थी.

दूध के नए व्यापारी

दूध न सिर्फ मानव स्वास्थ्य बल्कि देश के औद्योगिक स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद साबित हो रहा है, इसलिए बड़े औद्योगिक घराने दूध के कारोबार में उतर कर अपनी सेहत सुधारने की योजना बना रहे हैं. दूध का देश में 3 लाख करोड़ रुपए का सालाना कारोबार है. दूध और दुग्ध उत्पादकों की मांग निरंतर बढ़ रही है. बाजार में मांग के मुकाबले गुणवत्ता वाले दूध की कमी है. मदरडेयरी तथा अमूल आदि का दूध हर जगह नहीं मिलता. इन कंपनियों ने ग्राहक की जेब के हिसाब से अलगअलग गुणवत्ता का दूध बाजार में उतारा है. छोटे शहरों और कसबों में दूध गांव से आ रहा है लेकिन वहां दूध के रूप में पानी बिक रहा है. इधर, मोटर वाहनों से ले कर हवाई जहाज तक के कलपुरजे बनाने वाली और किसानों के बीच अपने ट्रैक्टर के लिए मशहूर कंपनी महिंद्रा ऐंड महिंद्रा ने दूध बाजार के लाभकारी माहौल को देखते हुए दूध का कारोबार शुरू करने का निर्णय लिया है. कंपनी का कहना है कि वह सीधे किसान से दूध खरीदेगी और उस के दुग्ध उत्पाद ग्राहकों तक पहुंचाएगी. दूध और दही उस के कारोबार का मुख्य हिस्सा होगा. कंपनी दूध के बाजार में पिछले 5 साल से जारी 15 प्रतिशत सालाना बढ़ोतरी से उत्साहित है.कंपनी मध्य प्रदेश से अपना कारोबार शुरू करेगी और फिर अन्य क्षेत्रों में पांव जमाएगी. बड़ी कंपनियों के दूध के बाजार में आने की खबर अच्छी है. इस से देश में पशुधन का विकास होगा और दुग्ध उत्पादन से किसान को सीधा फायदा पहुंचेगा. बड़ी कंपनियां कारोबार करना जानती हैं और फिर उन के पास संसाधन जुटाने के लिए पैसे की कमी नहीं होती. इसलिए उम्मीद की जा सकती है कि महिंद्रा ने जो नाम कलपुरजों के निर्माण के क्षेत्र में कमाया है और उस के ट्रैक्टर जिस तरह से विकल्पहीन बने हुए हैं उस का दुग्ध उत्पादन भी वही मुकाम हासिल करेगा.

सरकारी संपत्तियों का भी होगा बीमा

सरकार ने इंश्योरैंस को महत्त्वपूर्ण क्षेत्र के रूप में विकसित करने की योजना बनाई है. योजना का मकसद आपदा के दौरान होने वाले नुकसान की आसानी से भरपाई करना है. सरकार ने इस के लिए सरकारी संपत्तियों का बीमा कराने का निर्णय लिया है. इस के तहत गृह मंत्रालय ने हाल ही में सभी मंत्रालयों को पत्र लिख कर कहा है कि वे अपनी संपत्तियों का बीमा कराएं. इस से आपदा की स्थिति में पुनर्निर्माण के लिए सरकार का बोझ कुछ कम किया जा सकेगा. सरकार की ज्यादातर संपत्तियां अभी बीमा के दायरे से बाहर हैं और ऐसे में किसी भी आपदा के समय उन संपत्तियों के नुकसान की भरपाई उस के लिए बड़ी चुनौती बन जाती है. साथ ही, राज्यों को भी कहा गया है कि वे गरीबी की रेखा से नीचे जीवनयापन करने वाले बीपीएल परिवारों के लिए बीमा पौलिसी खरीदें. सरकार का मानना है कि इस वर्ग को तत्काल आपदा राहत देने में भी इस योजना से मदद मिलेगी. औद्योगिक क्षेत्र के विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार यदि बड़े भवनों या अपनी महत्त्वपूर्ण संपत्ति का बीमा कराती है तो इस से जानमाल का नुकसान कम होने की संभावना है. इंश्योरैंस कंपनियों का बीमा कराने के लिए एक तय मानक है. मानक के तहत भवनों का निर्माण होता है तो उस से जानमाल को नुकसान का जोखिम बहुत कम हो जाएगा. जापान, अमेरिका आदि देशों में उन्हीं मानकों का मजबूती से पालन होता है, इसलिए वहां आपदा के समय अपेक्षाकृत कम हानि होती है.हमारे यहां भवन निर्माण में मानकों के पालन को ज्यादा महत्त्व नहीं दिया जाता है, इसलिए सिर्फ उन्हीं भवनों का बीमा संभव होगा जो मानकों का अनुपालन कर रहे हैं. सरकार की इस नीति से गुणवत्ता तो बढ़ेगी ही, साथ ही लोगों की सुरक्षा के  साथ भी खिलवाड़ नहीं हो पाएगा. बीमा कारोबार भी बढ़ेगा और पुनर्निर्माण का काम भी आसान हो सकेगा.

ऐसे प्लास्टिक नोट का प्रचलन कैसे बढ़ेगा

वित्त मंत्री अरुण जेटली का कहना है कि देश में प्लास्टिक मुद्रा को बढ़ावा दिया जाना चाहिए और इस के लिए प्लास्टिक से बने नोटों का प्रचलन बढ़ाया जाना चाहिए. उन का यह भी कहना है कि ‘मेक इन इंडिया’ के तहत करैंसी का स्वदेशीकरण किया जाना आवश्यक है. करैंसी नोट के लिए हमें जापान और आस्ट्रेलिया पर निर्भर रहना पड़ता है. वहां से कागज का आयात होगा तो हमारा रुपया छप सकेगा. इस दिशा में सरकार विदेशों पर निर्भरता कम करने का प्रयास कर रही है और दावा कर रही है कि स्वदेशीकरण के तहत मध्य प्रदेश के होशंगाबाद और कर्नाटक के मैसूर के पेपर कारखानों को घरेलू स्तर पर करैंसी नोट को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है. रिजर्व बैंक के अधिकारियों की पिछले वर्ष अक्तूबर में एक बैठक भी हुई जिस में मैसूर की कागज फैक्टरी से करैंसी नोट के उत्पादन के लिए विशेषज्ञता प्रदान करने पर चर्चा हुई ताकि करैंसी की सुरक्षा को मजबूत किया जा सके. बैठक में इस संबंध के विभिन्न पक्षों पर काफी विचारविमर्श हुआ. अब साल होने जा रहा है लेकिन कोई ठोस कदम इस दिशा में नहीं उठाया गया.सवाल यह है कि हम दावा कर रहे हैं कि भारत दुनिया की तेजी से बढ़ रही तीसरी अर्थव्यवस्था है और हम चीन को टक्कर दे रहे हैं, लेकिन वास्तविक स्थिति यह है कि ‘मेक इन इंडिया’ की बात करने वाले हमारे नेता और हमारी सरकार मेक इन इं डिया का लोगो भी विदेश से खरीद रही है. उस के पास अपने मुद्रा के संचालन के लिए पर्याप्त तकनीक नहीं है. करैंसी नोट के उत्पादन जैसी बुनियादी जरूरत के लिए हमें विदेशों पर निर्भर रहना पड़ता है. इस स्थिति से हमारे नारे नकली लगते हैं. सरकार को मेक इन इंडिया के लिए सतही स्तर पर काम करना चाहिए.

कंगना और लीगल नोटिस

फिल्म ‘तनु वेड्स मनु रिटर्न्स’ से सफलता के सातवें आसमान पर बैठी कंगना राणावत एक पीआर कंपनी यानी प्रचार संस्था से भिड़ गई हैं. यह कंपनी कुछ साल तक कंगना के लिए प्रचार का काम कर चुकी है. कंगना ने इस कंपनी से करार खत्म कर दिया है. ऐसे में कंगना को लगता है कंपनी उन को ले कर नकारात्मक खबरें फैला रही है. लिहाजा, उन्होंने पीआर कंपनी पर छवि खराब करने का आरोप लगा कर नोटिस भेज दिया है. पीआर कंपनी को लीगल नोटिस भेजने वाले कंगना के वकील रिजवान सिद्दीकी के मुताबिक पीआर कंपनी कंगना के बारे में पब्लिक प्लेटफौर्म और सोशल मीडिया पर गलत खबरें प्रमोट कर रही थी. बहरहाल, प्रचार कंपनी का काम फीस ले कर दूसरों का प्रचार करना होता है. अब कलाकार के चलते कंपनी का प्रचार हो रहा है, बेशक बहाना नोटिस है.

रिएलिटी शो के तमाशे

मशहूर गायिका सुनिधि चौहान इन दिनों संगीत आधारित गायकों को खोजते रिएलिटी शो में बतौर जज नजर आ रही हैं. वैसे इन दिनों ऐसे कार्यक्रमों की भरमार है. हर कोई शहरशहर जा कर औडिशन की दुकान खोल कर गलीगली की आवाज को देश का सब से बड़ा गायक बनाने का दम भरता है जबकि हकीकत यह है कि 10 साल पहले से अब तक इंडियन आइडल, जी सारेगामा समेत दर्जनभर रिएलिटी शो के विजेता बने तथाकथित देश के नंबर वन सिंगर न जाने असफलता की किस अंधेरी गली में गुम हो गए हैं. सुनिधि सरीखे कई स्थापित गायक व संगीतकार ऐसे कार्यक्रमों के जज बन कर दावे तो खूब करते हैं लेकिन सिर्फ जेबें भर कर निकल जाते हैं जबकि प्रतियोगी गायक स्टारडम के आधेअधूरे सपने को लिए तनावग्रस्त हो जाते हैं. सब से पहले बने इंडियन आइडल अभिजीत सावंत कहां हैं? शायद ही किसी को याद हो. बहरहाल सुनिधि चौहान अपनी कोच की भूमिका निभा कर बेहद खुश हैं.

4 वर्ष की आयु से गायन के क्षेत्र में कदम रखने वाली सुनिधि चौहान ने हिंदी गानों के अलावा मराठी, कन्नड़, तमिल, तेलुगू, बांग्ला, असमिया और गुजराती फिल्मों में 2 हजार से अधिक गीत गाए हैं. बौलीवुड में सुनिधि को प्रसिद्धि फिल्म ‘मस्त’ के गाने ‘रुकी रुकी थी जिंदगी…’ से मिली. इस के बाद उन के सिंगिंग कैरियर ने इतनी रफ्तार पकड़ी कि आज तक उन्होंने पीछे मुड़ कर नहीं देखा. लता मंगेशकर को आदर्श मानने वाली सुनिधि ने हर बड़े संगीतकार के साथ गाया है. स्टेज हो या स्टूडियो, सुनिधि हर जगह अपनी छाप छोड़ती हैं. उन के गानों की विविधता उन की कामयाबी का राज है.

जब इस प्रतिनिधि ने हालिया शो से जुड़ने की वजह जाननी चाही तो उन का कहना है, ‘‘आवाज पर आधारित कोई भी शो मुझे आकर्षित करता है. इस शो में जो भी अच्छी आवाज आएगी, उन्हें पौलिश करना मेरा काम है. कई बार ऐसा होता है कि आवाज तो अच्छी होती है पर गाने वाले में आत्मविश्वास की कमी होती है. ऐसे में अगर कोई प्रशिक्षित करे तो आवाज में निखार आता है. देश में प्रतिभाएं बहुत हैं लेकिन उन्हें सही राह दिखा कर आगे ले जाने वालों की आवश्यकता हमेशा रहती है. इस शो के जरिए सभी को आगे बढ़ने का मौका मिलेगा. हालांकि आगे बढ़ते कोई दिखता नहीं है.

संगीत के क्षेत्र में किस प्रकार की कमी है? इस पर सुनिधि बताती हैं, ‘‘समाज में सोच अभी खुली नहीं है. किसी का परिवार उसे इस क्षेत्र में आने नहीं देता. पति है तो पत्नी को भाग नहीं लेने देता. कुछ स्थानों पर लड़कियां हैं तो उन्हें गाने नहीं दिया जाता. कई घरों में अगर लड़के गाना गाएं तो लोग सोचते हैं कि क्या यह कोई काम है. ऐसे में मैं उन लोगों की तारीफ करती हूं जो इन सब समस्याओं से जूझ कर औडिशन देते हैं और आगे बढ़ने की कोशिश करते हैं. इस क्षेत्र में आने की प्रेरणा को ले कर उन का कहना है, ‘‘मेरे घर में सभी संगीत सुनना पसंद करते हैं. मेरे पापा थिएटर करते थे. 12 वर्ष तक उन्होंने रामलीला में राम की भूमिका निभाई है. उन की बुलंद आवाज सब को पसंद थी. अच्छे गाने सुनना मुझे बहुत पसंद है. गाने सुनतेसुनते स्वाभाविक तौर पर गाना गाने की प्रेरणा मिली.

‘‘हालांकि मैं ने बहुत संघर्ष किया पर मुझ से अधिक मेरे पिता को करना पड़ा. वे मेरे लिए अपना कैरियर छोड़ कर मुंबई चल पड़े. उन्हें लगा कि मुझ में वह बात है कि मैं इस क्षेत्र में कुछ कर पाऊंगी. मैं उस समय 12 साल की थी. संघर्ष क्या है पता नहीं था. मुश्किलें तो पिताजी ने झेलीं, मैं तो आराम से उन की छत्रछाया में थी. पहले तकनीक इतनी विकसित नहीं थी. अब तो अच्छा यह हो गया है कि औडिशन के लिए आप को कहीं जाने की भी आवश्यकता नहीं है. आप औनलाइन भी अपनी आवाज भेज सकते हैं. यह प्रक्रिया बहुत अच्छी है. अगर अच्छी आवाज है तो दुनिया के किसी भी क्षेत्र में वह दूर नहीं रह पाएगा.’’

वैसे आजकल सभी गा रहे हैं, संगीतकार भी और गायक भी. ऐसे में प्लेबैक सिंगर की भूमिका कितनी रह जाती है? इस पर वे कहती हैं, ‘‘तकनीक अधिक होने के बावजूद अगर प्रतिभा नहीं है तो आप टिक नहीं पाते. बदलाव है तो उसे भी देखने और सुनने की आवश्यकता है. आज नौन सिंगर भी सिंगर बन जाते हैं, यह बात सही है. लेकिन जब वह व्यक्ति ‘लाइव’ गाता है तो पता चल जाता है. मैं 19 साल से इस क्षेत्र में हूं. मुझे अपनेआप को सिद्ध करने की आवश्यकता नहीं होती. मेरी कोशिश यह रहती है कि मैं अपने प्रशंसकों को हमेशा कुछ नया दूं. इस के अलावा आज लोग भी स्मार्ट हो चुके हैं, उन्हें कुछ चीज अच्छी नहीं लगती तो जल्द ही वे उस से मुंह फेर लेते हैं.’’ बतौर गायिका सुनिधि की ‘तनु वैड्स मनु रिटर्न्स’, ‘पीकू’ व ‘दिल धड़कने दो’ फिल्में रिलीज हो चुकी हैं. कई और फिल्में आने वाली हैं जिन में उन्होंने गीत गाए हैं. आखिर में सवाल फिर वहीं खड़ा है कि जब एक रिएलिटी शो बनता है तो सीरियल निर्माता से ले कर तकनीशियन, सेलिब्रिटी जज, एंकर तमाम लोगों के नाम, शोहरत व कमाई में इजाफा होता है. लेकिन जिन नई प्रतिभाओं के लिए यह शोबाजी होती है, उन्हें बाद में कोई नहीं पूछता. 

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