एक शब्द रूप अनेक
मृदु हो
मन को छू जाए
कटु हो
मन को भेद जाए
भावों की धारा संग बहे
कविता बन जाए
प्रेम में लिप्त हो
रस की गागरी छलकाए
क्रोधित हो
अगन बरसाए
तीर की तरह निकले
दिल को तोड़ जाए
वेदना में पीडि़त हो
आंख नम हो जाए
हंसीखुशी में निकले
फूल की तरह खिल जाए
विचार कर वाणी से निकले
मानसम्मान दे जाए.
- अंजू
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