ब्याज दरों में कमी से नहीं आई बाजार में रौनक
बौंबे शेयर बाजार बीएसई के लिए जून की शुरुआत तबाही ले कर आई. बाजार में शुरू से ही गिरावट का रुख रहा जिस से पूरे माहौल में उदासी रही. इस दौरान बिकवाली का जोर रहा जिस के कारण सूचकांक 8 माह के निचले स्तर पर पहुंचा है. जून के पहले सप्ताह में बाजार में 4 प्रतिशत की गिरावट आई जिसे 2011 के बाद की सब से तेज गिरावट बताया जा रहा है. माह की शुरुआत में बीएसएई शुरू के लगातार 4 दिन और नैशनल स्टौक एक्सचेंज निफ्टी 5 दिन गिरावट पर बंद हुआ. इस के अगले सप्ताह भी बाजार में गिरावट का ही रुख रहा और निवेशक बाजार से दूर ही नजर आए. रिजर्व बैंक के रेपो दर घटाने और कंपनियों के तिमाही परिणाम अच्छे रहने का भी बाजार पर कोई सकारात्मक असर नहीं हुआ. जून माह के दूसरे पखवाडे़ की शुरुआत तक लगातार 3 सप्ताह तक बाजार में गिरावट देखने को मिली. बाजार के जानकारों का कहना है कि गिरावट की वजह यूनान में ऋण संकट का गहराना, अमेरिका में फैडरल रिजर्व की दरों में बदलाव करने की उम्मीद तथा मानसून के संकट की आशंका रही है. इस के अलावा रुपए में लगातार जारी गिरावट ने भी निवेशकों के भरोसे को कमजोर किया है. इस के बाद 15 जून को बाजार में पहली बार तेजी देखने को मिली. विश्लेषक इस की वजह औद्योगिक विकास के आंकड़ों में तेजी तथा स्थिर मुद्रास्फीति के सकारात्मक आंकड़ों को मान रहे हैं. अप्रैल में औद्योगिक विकास दर 4.1 प्रतिशत रही है जबकि मार्च में 2.5 प्रतिशत थी.
दूध के नए व्यापारी
दूध न सिर्फ मानव स्वास्थ्य बल्कि देश के औद्योगिक स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद साबित हो रहा है, इसलिए बड़े औद्योगिक घराने दूध के कारोबार में उतर कर अपनी सेहत सुधारने की योजना बना रहे हैं. दूध का देश में 3 लाख करोड़ रुपए का सालाना कारोबार है. दूध और दुग्ध उत्पादकों की मांग निरंतर बढ़ रही है. बाजार में मांग के मुकाबले गुणवत्ता वाले दूध की कमी है. मदरडेयरी तथा अमूल आदि का दूध हर जगह नहीं मिलता. इन कंपनियों ने ग्राहक की जेब के हिसाब से अलगअलग गुणवत्ता का दूध बाजार में उतारा है. छोटे शहरों और कसबों में दूध गांव से आ रहा है लेकिन वहां दूध के रूप में पानी बिक रहा है. इधर, मोटर वाहनों से ले कर हवाई जहाज तक के कलपुरजे बनाने वाली और किसानों के बीच अपने ट्रैक्टर के लिए मशहूर कंपनी महिंद्रा ऐंड महिंद्रा ने दूध बाजार के लाभकारी माहौल को देखते हुए दूध का कारोबार शुरू करने का निर्णय लिया है. कंपनी का कहना है कि वह सीधे किसान से दूध खरीदेगी और उस के दुग्ध उत्पाद ग्राहकों तक पहुंचाएगी. दूध और दही उस के कारोबार का मुख्य हिस्सा होगा. कंपनी दूध के बाजार में पिछले 5 साल से जारी 15 प्रतिशत सालाना बढ़ोतरी से उत्साहित है.कंपनी मध्य प्रदेश से अपना कारोबार शुरू करेगी और फिर अन्य क्षेत्रों में पांव जमाएगी. बड़ी कंपनियों के दूध के बाजार में आने की खबर अच्छी है. इस से देश में पशुधन का विकास होगा और दुग्ध उत्पादन से किसान को सीधा फायदा पहुंचेगा. बड़ी कंपनियां कारोबार करना जानती हैं और फिर उन के पास संसाधन जुटाने के लिए पैसे की कमी नहीं होती. इसलिए उम्मीद की जा सकती है कि महिंद्रा ने जो नाम कलपुरजों के निर्माण के क्षेत्र में कमाया है और उस के ट्रैक्टर जिस तरह से विकल्पहीन बने हुए हैं उस का दुग्ध उत्पादन भी वही मुकाम हासिल करेगा.
सरकारी संपत्तियों का भी होगा बीमा
सरकार ने इंश्योरैंस को महत्त्वपूर्ण क्षेत्र के रूप में विकसित करने की योजना बनाई है. योजना का मकसद आपदा के दौरान होने वाले नुकसान की आसानी से भरपाई करना है. सरकार ने इस के लिए सरकारी संपत्तियों का बीमा कराने का निर्णय लिया है. इस के तहत गृह मंत्रालय ने हाल ही में सभी मंत्रालयों को पत्र लिख कर कहा है कि वे अपनी संपत्तियों का बीमा कराएं. इस से आपदा की स्थिति में पुनर्निर्माण के लिए सरकार का बोझ कुछ कम किया जा सकेगा. सरकार की ज्यादातर संपत्तियां अभी बीमा के दायरे से बाहर हैं और ऐसे में किसी भी आपदा के समय उन संपत्तियों के नुकसान की भरपाई उस के लिए बड़ी चुनौती बन जाती है. साथ ही, राज्यों को भी कहा गया है कि वे गरीबी की रेखा से नीचे जीवनयापन करने वाले बीपीएल परिवारों के लिए बीमा पौलिसी खरीदें. सरकार का मानना है कि इस वर्ग को तत्काल आपदा राहत देने में भी इस योजना से मदद मिलेगी. औद्योगिक क्षेत्र के विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार यदि बड़े भवनों या अपनी महत्त्वपूर्ण संपत्ति का बीमा कराती है तो इस से जानमाल का नुकसान कम होने की संभावना है. इंश्योरैंस कंपनियों का बीमा कराने के लिए एक तय मानक है. मानक के तहत भवनों का निर्माण होता है तो उस से जानमाल को नुकसान का जोखिम बहुत कम हो जाएगा. जापान, अमेरिका आदि देशों में उन्हीं मानकों का मजबूती से पालन होता है, इसलिए वहां आपदा के समय अपेक्षाकृत कम हानि होती है.हमारे यहां भवन निर्माण में मानकों के पालन को ज्यादा महत्त्व नहीं दिया जाता है, इसलिए सिर्फ उन्हीं भवनों का बीमा संभव होगा जो मानकों का अनुपालन कर रहे हैं. सरकार की इस नीति से गुणवत्ता तो बढ़ेगी ही, साथ ही लोगों की सुरक्षा के साथ भी खिलवाड़ नहीं हो पाएगा. बीमा कारोबार भी बढ़ेगा और पुनर्निर्माण का काम भी आसान हो सकेगा.
ऐसे प्लास्टिक नोट का प्रचलन कैसे बढ़ेगा
वित्त मंत्री अरुण जेटली का कहना है कि देश में प्लास्टिक मुद्रा को बढ़ावा दिया जाना चाहिए और इस के लिए प्लास्टिक से बने नोटों का प्रचलन बढ़ाया जाना चाहिए. उन का यह भी कहना है कि ‘मेक इन इंडिया’ के तहत करैंसी का स्वदेशीकरण किया जाना आवश्यक है. करैंसी नोट के लिए हमें जापान और आस्ट्रेलिया पर निर्भर रहना पड़ता है. वहां से कागज का आयात होगा तो हमारा रुपया छप सकेगा. इस दिशा में सरकार विदेशों पर निर्भरता कम करने का प्रयास कर रही है और दावा कर रही है कि स्वदेशीकरण के तहत मध्य प्रदेश के होशंगाबाद और कर्नाटक के मैसूर के पेपर कारखानों को घरेलू स्तर पर करैंसी नोट को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है. रिजर्व बैंक के अधिकारियों की पिछले वर्ष अक्तूबर में एक बैठक भी हुई जिस में मैसूर की कागज फैक्टरी से करैंसी नोट के उत्पादन के लिए विशेषज्ञता प्रदान करने पर चर्चा हुई ताकि करैंसी की सुरक्षा को मजबूत किया जा सके. बैठक में इस संबंध के विभिन्न पक्षों पर काफी विचारविमर्श हुआ. अब साल होने जा रहा है लेकिन कोई ठोस कदम इस दिशा में नहीं उठाया गया.सवाल यह है कि हम दावा कर रहे हैं कि भारत दुनिया की तेजी से बढ़ रही तीसरी अर्थव्यवस्था है और हम चीन को टक्कर दे रहे हैं, लेकिन वास्तविक स्थिति यह है कि ‘मेक इन इंडिया’ की बात करने वाले हमारे नेता और हमारी सरकार मेक इन इं डिया का लोगो भी विदेश से खरीद रही है. उस के पास अपने मुद्रा के संचालन के लिए पर्याप्त तकनीक नहीं है. करैंसी नोट के उत्पादन जैसी बुनियादी जरूरत के लिए हमें विदेशों पर निर्भर रहना पड़ता है. इस स्थिति से हमारे नारे नकली लगते हैं. सरकार को मेक इन इंडिया के लिए सतही स्तर पर काम करना चाहिए.