क़िस्मत की लक़ीरों ने क्या क्या न सितम ढाया
शीशे का जिगर लेकर, पत्थर का सनम पाया
उसको गुरूर खुद पर होना तो लाजिमी है
सोने का महल उसने चांदी का बदन पाया
हर चीज़ निराली है इन ऊंचे मक़ानों में
काग़ज़ के फूल देखे, कांटों का चमन पाया
दुनिया-ए-अमीरा में मुफ़लिस की लाश देखो
दो गज़ ज़मी तो छोड़ो, दो गज़ न कफ़न पाया

शब्दार्थ :
दुनिया-ए-अमीरा  :  अमीरों की दुनिया
मुफ़लिस : ग़रीब

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...