उसकी बातों को कहीं प्यार न समझे कोई
है खिलाड़ी उसे दिलदार न समझे कोई
लोग पूछें तो बताऊं मैं हकीकत उसकी
इक लुटेरे को मददगार न समझे कोई
मैंने माना कि ज़माने की खबर है मुझको
हां, मगर सुबह का अखबार न समझे कोई
कुव्वत-ए-जंग नहीं है तो हूं खामोश मगर
मुझको दुनिया का तरफदार न समझे कोई
यूं तो बिकता है ज़माने में सभी कुछ लेकिन
जिन्स-ए-बाज़ार मेरा प्यार न समझे कोई

शब्दार्थ
कुव्वत-ए-जंग : लड़ाई की ताक़त
जिन्स-ए-बाज़ार : बाजार में बिकने की चीज़

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD48USD10
 
सब्सक्राइब करें

सरिता सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं

  • सरिता मैगजीन का सारा कंटेंट
  • देश विदेश के राजनैतिक मुद्दे
  • 7000 से ज्यादा कहानियां
  • समाजिक समस्याओं पर चोट करते लेख
 

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD100USD79
 
सब्सक्राइब करें

सरिता सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं

  • सरिता मैगजीन का सारा कंटेंट
  • देश विदेश के राजनैतिक मुद्दे
  • 7000 से ज्यादा कहानियां
  • समाजिक समस्याओं पर चोट करते लेख
  • 24 प्रिंट मैगजीन
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...