किस तरह हो ये एतबार मुझे
कोई चाहे दीवानावार मुझे
सबकी नज़रों से बचा कर नज़रें
देखता है वो बार बार मुझे
तू मेरे नाम पे सजदा करके
क्यों बनाता है गुनहगार मुझे
उन निगाहों की कशिश मत पूछो
न रहा खुद पे इख़्तियार मुझे
वो मिला था क़रार-ए-जां की तरह
चल दिया करके बेक़रार मुझे….

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