जिंदगियां रोज कई जीता हूं मैं,
इनमें कोई मेरी है पूछता हूं मैं.
एक रात जो टूट गई थी बेसबब
हर रात बिछड़ी नींद ढ़ूंढ़ता हूं मैं.
ख्वाबों का हश्र ऐसा भी देखा है
पलकें बंद करने से डरता हूं मैं.
अधूरेपन का अहसास हमेशा रहा
तुझसे खुद को पूरा करता हूं मैं.
उजड़ना, बिखरना नसीब मेरा
ए मरूधर, बस यूं ही संवरता हूं मैं…
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सरिता से और