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‘‘मैं बहुत परेशान और फिक्रमंद हूं, अपनी बेटी और नवासी के मुस्तकबिल को ले कर. अभी मुझे अपनी और 2 जवान बेटियों की भी शादी करनी है. पहला ही रिश्ता नहीं निभा तो बाकी रिश्ते कैसे जोड़ सकूंगा, कामिल भाई. मेरी बेटी एमए कर रही थी. लड़का सरकारी नौकर है, खातापीता घर का है यही सोच कर फौरन शादी की तैयारियां कर बेटी की शादी करा दी. एक बात जानते हो, पढ़ने वाली बेटी पर काम का बोझ कभी उस की मां ने डाला नहीं.

"नातजुर्बेकार लड़की के ऊपर 6-7 लोगों के 3 वक्त के खाने का भार डाल कर सास पान की टोकरी ले कर दिनभर मोहल्ले वालों, रिश्तेदारों की गिबतें करती बैठी रहतीं. कभी खाने में कोई कमी रह जाती तो शौहर आसमान सिर पर उठा लेता. उस ने कुछ अच्छे शेरों को फ्रेम करा कर घर में टांग दिया तो सास कहने लगीं कि हमें तालिम दे रही है यह कल की लड़की,’’ सास के ताने सुनसुन कर बेटी रोती रहती थी. आप ही बताइए, क्या गलत किया मेरी बेटी ने?’’ हनीफ हताशाभरे स्वर में बोला.

मैं जानता हूं कि इस 21वीं सदी में भी मुसलमान शरियत के खिलाफ, उन बेबुनियाद रवायतों को पीढ़ी दर पीढ़ी मानते चले जा रहे हैं जिन का हदीसों में कहीं जिक्र तक नहीं है. कई मुसलमान मजारों पर सजदा कर के खुदावंदताला के वजूद को ही नकारने से बाज नहीं आते. इसलामी तौरतरीकों से अनजान जाहिल व अनपढ़ मुसलमान औरतें अपनी अधकचरी जानकारी बच्चों पर थोप कर उन्हें शिर्क और बिद्दत करने की सबक घुट्टी में पिला देती हैं. रहीसही कसर कठमुल्ला लोग अपनी रोटी सेंकने के लिए कौम की जाहिलियत का भरपूर फायदा उठा कर उन्हें इसलाम की सही बातें न बतला कर सदियों से चल रहे गैरइसलामी बातों की ही जानकारी दे कर गुमराही के अंधेरी खोहों में धकेल देते हैं.

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