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3 साल पहले हनीफ ने ही मुझे मेरी बड़ी बेटी के लिए अपनी रिश्तेदारी का रिश्ता बतलाया था. लड़का रेलवे में असिस्टैंट ड्राइवर था. मेरी बेटी गणित में एमएससी कर रही थी. हनीफ के मारफत बेटी का फोटो और बायोडाटा वरपक्ष के पास पहुंच गया था. लड़के के अब्बा ने हनीफ के साथ 3-4 और दाढ़ी वालों को बुला रखा था.

मैं भी बेटी का पैगाम ले कर उन के घर पहुंचा. मन में हजारों प्रश्न उठ रहे थे. कैसा रिवाज है जिन की आपस में शादी होनी है उन की रायमशवरा या रजामंदी लेना भी अपनी शान के खिलाफ समझते हैं. बुजुर्गवार और माअशरे के ठेकेदार रिश्ता पूरी तरह से व्यवसायिकता की खोल में लिपटा रहता है. लड़के की पोस्ट कामकाजी दरजे के हिसाब से उस की बोली लगाई जाती है मंसूरी समाज में.

‘‘कितने की शादी करेंगे आप?’’ अप्रत्यक्ष रूप से एक बुजुर्गवार पूछ रहे थे कि कतने में खरीदेंगे आप लड़के को?

‘‘मैं रेलवे कर्मचारी हूं. बेटी की पढ़ाई में आमदनी का आधे से ज्यादा हिस्सा खर्च किया है. 2 बेटियां और हैं पढ़ने वाली,’’ मैं ने अपनी स्थिति बतलाई तो काले चारखाने वाला बड़ा रूमाल पीठ पर डाले हुए दाढ़ी वाले शख्स बीच में बात काटते हुए बोले, ‘‘वह सब छोङिए, आप यह बतलाइए कि पक्यात में कितना कैश देंगे आप? बाकी मिलनी, घरेलू सामान, बाराम के इंतजाम वगैरा में कितना खर्च करेंगे आप?’’

अभी मैं खुद को जवाब देने के लिए तैयार कर ही रहा था कि मोटेताजे और लुंगीकुरता पहने हुए अधेड़ व्यक्ति ने जुमाला उछाला, ‘‘लड़का रेलवे में है. लोग तो ₹20 लाख शादी के लिए देने को तैयार हैं. हमें पढ़ीलिखी लड़की चाहिए, इसलिए आप अपनी हैसियत बताइए?’’

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