सुबह का समय था. चारु जल्दीजल्दी अपना काम समेट रही थी. उसे आज एक नई जगह नौकरी जौइन करनी थी. इस कारण उस के मन में थोड़ी घबराहट थी. उस ने कई बार अपनेआप को शीशे में देखा. दुबली, पतली, लंबे कद की स्वामिनी चारु बड़ी स्मार्ट लग रही थी। आंखों पर काला चश्मा, सिर पर स्कार्फ और बैग लटका कर वह घर से निकल पड़ी. कुछ ही देर में वह वक्त से पहले औफिस पहुंच गई थी. वह सीधे बौस के केबिन में गई। बौस भी आज जल्दी औफिस आ कर उस का इंतजार कर रहे थे।
चारु ने पूरे आत्मविश्वास के साथ उन से हाथ मिलाया और अपना परिचय दिया,”सर, मैं चारु कुमार। इस कंपनी की नई मैनेजर.”
“मैं आप का ही इंतजार कर रहा था. मुझे अपनी कंपनी के लिए आप जैसी होनहार और काम के प्रति समर्पित मैनेजर की जरूरत थी.”
“थैंक यू सर. मैं पूरी कोशिश करूंगी कि आप की अपेक्षाओं पर खरी उतरूं. आप ने मेरा बायोडाटा और वर्क ऐक्सपीरियंस देख लिया होगा.”
“आप इतनी अच्छी कंपनी छोड़ कर यह छोटी कंपनी जौइन कर रही हैं, मेरे लिए इस से बढ़ कर अच्छी बात क्या होगी? आप का साथ मिलेगा तो यह कंपनी भी कुछ समय में बुलंदियों पर होगी.”
“मैं कंपनी की रेटिंग बढ़ाने की पूरी कोशिश करूंगी.”
थोड़ी देर वह बौस के साथ कंपनी के बारे में बात करने लगी। तब तक औफिस का समय भी हो गया था। कर्मचारी औफिस पहुंचने लगे. सुभाष बोले,”आइए, मैं आप का परिचय अपने स्टाफ से करा दूं.”
चारु उन के साथ कौन्फ्रैंस रूम में आ गई। पूरा स्टाफ वहां पर पहले से ही जमा हो गया था. मिस्टर सुभाष ने चारु की योग्यता का सब को परिचय दिया. कौन्फ्रैंस रूम में उस ने धीरे से स्कार्फ खोला और चश्मा उतार कर मेज पर रख दिया। सब की निगाहें उसी के चेहरे पर लगी थीं। स्कार्फ और चश्मे के पीछे उस के चेहरे का बड़ा राज छिपा हुआ था जो उन के हटते ही बेपरदा हो गया.
उस का चेहरा एक तरफ ऐसिड अटैक से बुरी तरह झुलसा हुआ था। स्मार्ट देह की स्वामिनी के चेहरे को देख कर अधिकांश कर्मचारी चौंक गए थे। चारु ने इस की परवाह नहीं की। वह जानती थी कि एक न एक दिन यह सचाई सब को पता लगनी ही है तो क्यों न पहले परिचय के साथ ही उसे सब के सामने उजागर कर दिया जाए। चारु ने अपना परिचय दिया लेकिन उस ने इस बात का जिक्र नहीं किया कि उस का एक तरफ का चेहरा किस ने बिगाड़ा। उस ने स्टाफ में सब का परिचय लिया और बहुत कम बोली।
असिस्टैंट मैनेजर सुमित उन से मिल कर बहुत अपसेट हो गया था. कहां तो वह एक सुंदर महिला सहकर्मी के साथ काम करने की कल्पना कर रहा था और हकीकत में उसे क्या देखने को मिला। उस का मन उस के चेहरे की तरफ देखने तक का नहीं कर रहा था। मजबूरी थी कि जितनी देर वह बोल रही थी उस की ओर देखना जरूरी था.
कुछ देर बाद सब अपनेअपने काम पर लग गए। सुमित अपनेआप को संतुलित नहीं कर पा रहा था। उसे समझ नहीं आ रहा था वह इतना समय ऐसी मैनेजर के साथ औफिस में कैसे गुजरेगा? चारु का पहला प्रभाव उस पर बहुत बुरा पड़ा था. वह उस से मिलने में कतरा रहा था. किसी तरह 5 बजे औफिस का काम खत्म हुआ। वह जल्दी से वहां से निकल कर घर की ओर चल पड़ा. ढेर सारे प्रश्न उस के जेहन में उभर रहे थे. पता नहीं किस कारण अच्छीखासी इंटैलिजेंट लड़की का यह हाल हो गया था. युवा कर्मचारियों की उस से बात करने की इच्छा तक नहीं हो रही थी. वह उस घड़ी को कोस रहा था जब सुभाष सर ने चारु को अपनी कंपनी में लेने का मन बनाया था. अपने आसपास अच्छीखासी ताजा चेहरे दिखाई देते रहे तो काम में मन लगा रहता है. चारु को देख कर उस का मन खिन्न हो गया था.
थोड़ी देर आराम कर वह लैपटौप पर बैठ गया. इन दिनों उस की एक औनलाइन फ्रैंड वाणी से अकसर चैटिंग हो जाती थी. घर पर उस का अधिकांश समय उसी के साथ चैटिंग करने में बीतता था. लैपटौप खोलते ही वाणी औनलाइन आ गई.
“कैसे हो?”
“मत पूछो. आज का दिन बहुत भारी बीता।”
“ऐसी क्या बात हो गई?”
“हमारे औफिस में नई मैनेजर आई है. दिमाग से बहुत तेज है लेकिन…”
“ऐसा क्या हुआ?”
“उस के चेहरे पर किसी ने ऐसिड अटैक किया है, जिस की वजह से एक तरफ का चेहरा बुरी तरह झुलस गया है. देखने में बड़ी अजीब लगती है। समझ नहीं आता उस के साथ काम कैसे करूंगा?”
“तुम्हें उस के चेहरे से क्या लेना? अपना ध्यान काम पर रखना. औफिस में शक्ल से ज्यादा अक्ल को अहमियत दी जाती है.”
“तुम ठीक कहती हो. तभी बौस ने उसे अपने यहां रख लिया। सुना है, काम के मामले में बहुत माहिर है. बौस सोच रहा है उस की मेहनत की बदौलत उन की कंपनी जल्दी बहुत ऊपर आ जाएगी.”
“इस में बुराई क्या है, अगर बौस उस के अक्ल का इस्तेमाल अपनी कंपनी की भलाई के लिए करना चाहते हैं?”
“बौस की बौस जानें. मुझे अपनी चिंता है. आसपास अच्छे चेहरे हों तो काम में मन लगता है। उसे देखते ही मेरा काम से मन उचट गया.”
“एक दिन में यह हाल है. आगे क्या करोगे?”
“अभी कुछ सोच नहीं पा रहा हूं. अगर ऐडजस्ट कर सका तो ठीक वरना किसी और जगह नौकरी ढूंढ़ लूंगा.”
“परिस्थिति से भागना कोई बुद्धिमानी नहीं है.”
“न चाहते हुए भी ऐसी जगह पर रुकना कहां की अक्लमंदी है?”
वे दोनों चैट करते हुए अपनी बात एकदूसरे तक पहुंचा रहे थे.
“अच्छा बताओ कब मिलोगी?”
“बहुत जल्दी.”
“मैं तुम्हें देखना चाहता हूं। तुम्हारी आवाज सुनना चाहता हूं। न तुम फोन नंबर देती हो और न बात करती हो. बस, तुम्हारेहमारे बीच में एक यही पुल है जिस से हम अपनी बात करते हैं.”
“इतने उतावले क्यों हो रहे हो सुमित? थोड़ा सब्र रखो सब ठीक हो जाएगा. अच्छा बाय,” कह कर उस ने चैट डिस्कनैक्ट कर दी थी.