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सुमित अभी उस से और ढेर सारी बातें करना चाहता था लेकिन वह कभी भी उसे बात करने के लिए ज्यादा समय नहीं देती। आज भी उस ने चारु के प्रति कोई नफरत नहीं दिखाई थी और अपनी बात कह कर चैट खत्म कर दी थी. सुमित और वाणी सोशल मीडिया प्लेटफौर्म पर 6 महीने पहले मिले थे। तब से उन के बीच लगातार चैटिंग हो रही थी. सुमित उस से मिलने को बहुत बेकरार था लेकिन वाणी ऐसा कोई मौका ही नहीं दे रही थी। वह उस के बारे में ज्यादा कुछ नहीं जानता था. बस, इतना ही कि वह भी उस की तरह एक कंपनी में अच्छाखासा जौब करती है। उस के पेरैंट्स साथ में नहीं रहते। वह अकेली रह कर अपनी जिंदगी मजे से गुजार रही है.

सुमित ने उसे अपनी फोटो भेज दी थी लेकिन वाणी ने उसे अपना इस प्रकार का कोई परिचयसूत्र नहीं दिया था। बस, चैटिंग के माध्यम से ही वह उस से बात करती और वह भी बहुत सधे हुए तरीके से। सुमित कई बार भावनाओं में बह कर अपने उद्दगार चैटिंग में लिख देता लेकिन वाणी की भाषा हमेशा मर्यादित और संयमित रहती. जब भी सुमित मिलने की बात कहता तो वह टाल जाती. उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह उस से मिलना क्यों नहीं चाहती?

अगले दिन सुबह उठा तो सुमित का मन उचाट था। औफिस जाने के नाम से ही उसे परेशानी हो रही थी। वह किसी भी हालत में चारु का चेहरा नहीं देखना चाहता था. वह जानता था कि औफिस पहुंचते ही सब से पहले वही दिखाई देगी. उस का काम ही ऐसा था कि उसे मैनेजर के साथ बैठ कर कंपनी के मसलों पर डिस्कशन करना होता था जिस से पूरे दिन की रणनीति तैयार हो सके। आज भी चारु का बुलावा आते ही वह उस के केबिन में चला गया.

सुमित ने औपचारिक तौर पर उस के साथ गुड मौर्निंग की और फिर अपने काम पर लग गया. वह महसूस कर रहा था कि चारु काम के अलावा व्यक्तिगत तौर पर भी उस में दिलचस्पी ले रही थी.

“आप यहां अकेले रहते हैं?”

“जी, मम्मीपापा दिल्ली रहते हैं. काम के सिलसिले में मैं यहां आ गया।”

“वैसे, मैं भी यहां अकेली ही रहती हूं,” चारु ने कहा तो सुमित ने पलट कर कोई जवाब नहीं दिया.

उसे उस की व्यक्तिगत बातों में कोई दिलचस्पी नहीं थी. वह यह भी नहीं जानना चाहता था कि उस के चेहरे की यह हालत किस ने की थी. यह बात चारु भी महसूस कर रही थी फिर भी वह थोड़ीथोड़ी देर बाद काम की बातों से हट कर उस के बारे में व्यक्तिगत बातें पूछने लगती. सुमित एक मंजे हुए खिलाड़ी की तरह कम से कम शब्दों में उस की बातों का जवाब दे कर चुप हो जाता. वह महसूस कर रहा था कि काम के मामले में चारु बहुत स्मार्ट थी. 2 हफ्ते में ही उस ने कंपनी की कई पौलिसीज बदल कर उसे आगे बढ़ाने में काम करना शुरू कर दिया था. सुभाष सर यह देख कर बहुत खुश थे. उन का अपना व्यक्तिगत अनुभव भी इस बात को महसूस कर रहा था कि अगर चारु उन की कंपनी में टिक गई तो वह उन के लिए बहुत बेहतर साबित होगी. वह सुमित को भी उस से कुछ सीखने को कहते.

दोपहर में लंच करते हुए एक दिन चारु ने सुमित को अपने केबिन में बुला लिया और बोली,”आज मैं तुम्हें अपने हाथ से बना खाना खिलाना चाहती हूं।”

“मैडम, मैं लंच कर चुका हूं.”

“मेरे हाथ से बना खाना चख तो लो. मुझे उम्मीद है तुम्हें निराशा नहीं होगी. मम्मी कहती हैं मैं खाना अच्छा बना लेती हूं.”

न चाहते हुए भी सुमित को उस का साथ देना पड़ा. खाना उस के गले से नीचे नहीं उतर रहा था. मजबूरी थी। किसी तरह से उस ने थोड़ा सा खाना लिया और उस की तारीफ कर वापस चला आया। उस की हालत देख कर चारु को हंसी आ रही थी। वह अकसर सुमित को इसी तरह परेशान करने का मौका ढूंढ़ने में लगी रहती. वह जानती थी कि सुमित उसे पसंद नहीं करता फिर भी वह उस के नजदीक आने की अपनी कोशिश करती रहती थी. चारु के साथ खाना खा कर सुमित का मन अजीब हो गया था. वह कुछ नहीं समझ पा रहा था कि ऐसा क्यों होता है? उस के हाथ एक सुंदर स्त्री की तरह बहुत खूबसूरत थे। केवल चेहरे की कमी की वजह से वह उस के साथ सामंजस्य नहीं बैठा पा रहा था.

शाम को वीणा से चैटिंग करते हुए उस ने लिखा,”अब मेरा इस कंपनी में काम करने का जरा भी मन नहीं करता.”

“ऐसा क्या हो गया?”

“पता नहीं वह क्यों मेरे पीछे हाथ धो कर पड़ी रहती है। किसी न किसी बहाने अपने पास बुला लेती है.”

“उसे तुम अच्छे लगते हो। तुम बहुत स्मार्ट और हंसमुख हो.”

“उस से क्या होता है? पार्टनर को भी  वैसा ही होना चाहिए. मुझे उस में जरा भी इंटरैस्ट नहीं है फिर भी वह किसी न किसी बहाने मेरे नजदीक आने की कोशिश करती है.”

“औफिस में यह सब लगा ही रहता है. मेरे भी कई पुरुष मित्र हैं जिन से मेरी बहुत अच्छी पटती है. मैं ने उन के चेहरे पर कभी कोई ध्यान नहीं दिया.”

“सब इंसान एकजैसे नहीं होते. तुम्हारे लिए चेहरा महत्त्वपूर्ण न हो लेकिन मेरे लिए है। जो इंसान हर समय सामने दिखाई दे उस का चेहरा खूबसूरत न सही सामान्य तो होना ही चाहिए.”

“जैसा तुम ने बताया ऐसा किसी के साथ शादी के बाद भी हो सकता है. तो क्या उस का पार्टनर उसे छोड़ देगा?”

“जो चीज हुई नहीं उस के बारे में क्या सोचना? जानबूझ कर मक्खी तो नहीं निगली जा सकती। मुझे उस का चेहरा बिलकुल पसंद नहीं है. यह बात वह भी महसूस करती है फिर भी मेरे नजदीक आने का कोई मौका नहीं छोड़ती.”

“औफिस में तुम अपना ध्यान उस के चेहरे के बजाय काम पर दिया करो. देखना, धीरेधीरे तुम्हें वह ठीक लगने लगेगी. चेहरा ही सबकुछ नहीं होता, सुमित.”

“यह सब किताबी बातें हैं. मैं अपनेआप को नहीं समझा पा रहा हूं. क्या करूं?” इस के बाद उन्होंने थोड़ी देर और इधरउधर की चैटिंग की। रोज की तरह वाणी निश्चित समय पर लैपटौप बंद कर अपने काम पर लग गई. उसे समझ नहीं आ रहा था कि सुमित को ऐसे चेहरे से इतनी ऐलर्जी क्यों होती है? कोई जानबूझ कर  अपना चेहरा खराब नहीं करता. परिस्थितियां बिगाड़ देती हैं तो उस में उस का क्या दोष है?”

चारु को औफिस में आए 1 महीने से ऊपर का समय हो गया था। उस के और सुमित के बीच की दूरी बनी हुई थी। सुमित उस से केवल काम की बात करता और उस से आंखें मिला कर कभी बात न करता। चारु ने यह बात अप्रत्यक्ष रूप से उसे बता भी दी थी.

“लगता है, तुम्हें मेरा चेहरा पसंद नहीं आया?”

“ऐसी बात नहीं है, मैडम.”

“बात करते समय आदमी को हमेशा आई कौंन्टैक्ट करना चाहिए। तुम तो बंगले झांकते रहते हो.”

“मुझे औरतों के चेहरे की ओर देखना अच्छा नहीं लगता।”

“औरत का या मेरा चेहरा देखना अच्छा नहीं लगता? मुझे पता है कि मैं बदसूरत हूं लेकिन उसे मैं हटा भी नहीं सकती। जितना मेरे बस में था उतना मैं ने ठीक करने की कोशिश की. इस से आगे डाक्टर ने भी हाथ खड़े कर दिए. मैं क्या करूं, कोई जानबूझ कर अपनी सूरत नहीं बिगाड़ता. हर औरत की इच्छा होती है कि वह सुंदर दिखे।”

“मैडम, अच्छा होगा हम इन बातों से हट कर औफिस की बातों पर अपना ध्यान दें,” सुमित बोला तो चारु मुद्दे की बात पर आ गई.

“आई एम सौरी, सुमित। कभीकभी मैं अपने चेहरे को ले कर कुछ ज्यादा ही भावुक हो जाती हूं और भूल जाती हूं कि यह मेरा घर नहीं औफिस है जहां हमें काम पर ध्यान देना चाहिए,” इतना कह कर वह उसे औफिस से संबंधित कुछ जरूरी बातें समझाने लगी.

थोड़ी देर बाद वह उस के केबिन से निकल कर बाहर आ गया। उसे लगा जैसे वह जेल से बाहर निकल आया हो। उस की मनोदशा वीरेंद्र से भी छिपी नहीं थी.

“क्या बात है सुमित? तुम्हें मैडम से बात करना अच्छा नहीं लगता?”

“क्या करूं… मैं अपनेआप को समझा ही नहीं पाता। लाख कोशिश करता हूं उस के बावजूद भी मेरा ध्यान उस के चेहरे की बदसूरती पर चला जाता है।”

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