भारत को भावनाओं व आस्थावान लोगों का देश भी कहा जाता है. भावना और आस्था के चलते अधिकांश देशवासी स्वत: अंधविश्वास के शिकार बने हुए हैं. पाखंड की जद में आए कमजोर व गरीब तबके की गाढ़ी कमाई का खासा हिस्सा अंधविश्वास पर खर्च हो जाता है. यही नहीं, देश के पढ़ेलिखे तबके में भी अंधश्रद्धा भरी पड़ी है. इसी धर्मभीरुता का एक दृश्य मध्य प्रदेश में कभी भी देखा जा सकता है. मध्य प्रदेश के रतलाम जिले की आलोट तहसील के गांव बरखेड़ा कलां में जोगणिया माता का मंदिर स्थापित है. वहां हर रविवार सैकड़ों बकरों की बलि दी जाती है. यह मन्नत पूरी होने पर दी जाती है. पाखंड व अंधविश्वास का आलम यह है कि इस घृणित कार्य में स्थानीय प्रशासन भी मदद करता है. आलोट पुलिस थाने में पदस्थ एएसआई रणवीर सिंह भदौरिया भी स्वयं बकरों की खुलेआम बलि देते हुए दिखे. वहां जा कर पता चला कि बकरों की बलि देने के काम के लिए स्पैशलिस्ट होते हैं जिन का कार्य बकरों की मुंडियों को काटना होता है. रविवार, 10 मई का दिन था. हम साथियों के साथ दर्शन करने के लिए जोगणिया माता के मंदिर गए. वहां देख कर मन व्यथित हो उठा. पुलिस अधिकारी रणवीर सिंह भदौरिया हवा में नंगी तलवार लहराते हुए धड़ाधड़ बकरों की मुंडियां काटते हुए चंबल नदी में फेंक रहे थे. अंधविश्वासी लोग जयकारे लगा रहे थे. उन मूक पशुओं की पुकार किसी को भी सुनाई नहीं दे रही थी. सभी जानवरों की मौत का मंजर देख रहे थे. देखते ही देखते सैकड़ों बकरों की मुंडियां नदी के कुंड में फेंकी गईं. पुलिस की वरदी को कलंकित करने का कार्य पुलिस अधिकारी कर रहा था. कानून नाम की कोई चीज दूर तक नजर नहीं आ रही थी.
अंधविश्वास में जकड़ा समाज
ऐसा अंधविश्वास व पाखंड का नंगानाच धर्म के नाम पर हो रहा था. उसी जल से जिस में बकरों की मुंडियां डाली जा रही थीं, आम जनता नहा रही थी. उसी जल को पी कर अपने पूर्वजन्म के पापों को धो रही थी. भारत का संविधान समतामूलक, शोषणविहीन समाज की स्थापना के साथ ही हर जीवप्राणी को जीने का अधिकार देता है. ऐसे में खुलेआम बेजबान जानवरों का कत्लेआम कहां का न्याय है. इसी तरह कई जगह बलिप्रथा थी, जिसे बंद करवाया जा चुका है. यहां भी इस प्रथा को बंद किया जाना चाहिए. इस सिलसिले में कुछ जागरूक लोगों ने रतलाम के पुलिस अधीक्षक से शिकायत की है. लेकिन लगता नहीं है कि प्रशासन कोई पहल करेगा क्योंकि वह व उस के लोग भी तो अंधविश्वास के पुजारी हैं.