Writer- साहिना टंडन
“चलो मम्मी, केक भी तो इंतजार कर रहा होगा. तू चल मैं आया,” राजन रितेश के कंधे पर हाथ रख कर गाता हुआ टेबल के पास पहुंच गया.
जैसे ही मोमबत्तियां बुझाने के लिए वो झुका, वैसे ही
सामने से एक खूबसूरत लड़की ने प्रवेश किया.
राजन की निगाहें जैसे उस पर थम गई हों. रितेश भी एकटक उसे ही देख रहा था. गुलाबी रंग के सूट में वह खिला हुआ गुलाबी प्रतीत हो रही थी. बड़ीबड़ी आंखें, नाजुक होंठ, कंधे पर बिखरे स्याहा काले बाल, सारी कायनात की खूबसूरती जैसे उस में समा गई थी.
“अरे देविका... आओ बेटा,”
देविका के साथ उस की मां आशा भी थी. पूनम ने उन का अभिवादन किया और उसे अपने पास ही बुला लिया.
“चलो बरखुरदार, मोमबत्तियां पिघल कर आधी हो चुकी हैं,” नवीन बोले.
“ओ हां,” राजन जैसे होश में आया हो. उस ने फूंक मार कर मोमबत्तियां बुझाईं, तो हाल तालियों की
गड़गड़ाहट से गूंज उठा.
केक काट कर सब से पहले उस ने पूनम और नवीन को खिलाया और फिर
रितेश को खिलाने लगा.
जवाब में रितेश ने भी केक का एक बड़ा सा टुकड़ा उस के मुंह में डाल दिया.
यह देख कर सभी जोर से हंस पड़े, पर राजन के कानों तक जो हंसी पहुंची, वह देविका की थी. चूड़ियों
की खनखनाहट जैसी हंसी उसे सीधे अपने दिल में उतरती लगी. जितनी देर पार्टी चलती रही, उतनी
देर राजन की निगाहें चोरीछुपे देविका को ही निहारती रहीं.
घर सामने ही होने की वजह से उस दिन के बाद से देविका कभीकभी राजन के घर आ जाती थी.।वहपाककला में काफी निपुण थी, तो अलगअलग तरह के व्यंजन पूनम को चखाने चली आती थी.