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Writer- साहिना टंडन

1996, अब से 25 साल पहले. सुबह के 9 बजने को थे. नाश्ते की मेज पर नवीन और पूनम मौजूद थे. नवीन

अखबार पढ़ रहे थे और पूनम चाय बना रही थी, तभी राजन वहां पहुंचा और तेजी से कुरसी खींच कर उस पर जम गया.

"गुड मौर्निंग मम्मीपापा," राजन ने कहा.

"गुड मौर्निंग बेटा," पूनम ने मुसकरा कर जवाब दिया और उस के लिए ब्रैड पर जैम लगाने लगी.

"मम्मी, सामने वाली कोठी में लोग आ गए क्या...? अभी मैं ने देखा कि लौन में एक अंकल कुरसीपर बैठे हैं."

"हां, कल ही वे लोग यहां आए हैं. तीन ही लोगों का परिवार है. माता, पिता और एक बेटी है, देविका नाम हैउस का. कल जब सामने सामान उतर चुका था, तब मैं वहां जाने ही वाली थी उन से चायपानी पूछने के लिए कि तभी वह बच्ची देविका आ गई. वह पानी लेने आई थी. बड़ी प्यारी है. दिखने में बहुत सुंदर और बहुत मीठा बोलती है. उस ने बताया कि वे लोग इंदौर से यहां शिफ्ट हुए हैं."

"ओके. अच्छा मम्मी मैं चलता हूं. रितेश मेरा इंतजार कर रहा होगा," सेब खाता हुआ राजन लगभग वहां से भागा.

"अरे, नाश्ता तो ठीक से करता जा," पूनम ने पीछे से आवाज दी.

"उस ने कभी सुनी है तुम्हारी कोई बात. उस के कानों तक पहुंचे तो बात ही क्या है," नवीन चाय का घूंट भरते हुए बोले.

"आप भी हमेशा उस के पीछे पड़े रहते हैं. यही तो उम्र है उस की मौजमस्ती करने की."

"कालेज खत्म हुए सालभर हो चला है और कितनी मौज करेगा. रितेश को देखो, आनंद के साथ अब उस ने उस का सारा काम संभाल लिया है."

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