बचपन में वाणी के मांपापा ने उस की हर जिद मानी. याद है, एक बार वाणी ने स्कूल की फीस जमा करने की जिद पकड़ ली, कहने लगी कि उस के सारे दोस्त खुद से स्कूल में फीस जमा करते हैं तो वह भी करेगी. हार कर अरुण को उस के हाथ में पैसे देने पड़े थे. लेकिन कई बार समझाया कि देखना, पैसे गिरे नहीं कहीं, तुम्हारे बैग से पैसे कोई निकाल न ले. लेकिन वाणी ने दोस्त के बहकावे में आ कर उन पैसों से सब को चाटपकौड़ी व आइसक्रीम खिला दिया था. घर आ कर रेणु से उसे खूब डांट पड़ी थी लेकिन अरुण ने उसे प्यार से समझाया था कि पैसे बहुत मेहनत से कमाए जाते हैं, इन्हें यों खर्च नहीं किए जाते. वह सीख आज भी वह नहीं भूली है. वाणी के पापा बैंक में कलर्क थे. बहुत ज्यादा तनख्वाह नहीं थी उन की. इतने कम पैसों में बड़ी मुश्किल से उन का घर चल पाता था, उस पर से शादी लायक बहन और बीमार बूढ़े मातापिता की ज़िम्मेदारी भी उन पर ही थी. अरुण के 2 बड़े भाई भी थे और दोनों अच्छी पोस्ट पर थे, पर उन्होंने अपने मांबाप और जवान बहन की ज़िम्मेदारी लेने से मना कर दिया था. याद है उसे तभी उस के घर में एक छोटा सा टीवी हुआ करता था. अपने दोस्तों के घर बड़ा टीवी देख वाणी ने भी जिद पकड़ ली थी कि उसे भी वैसा ही टीवी चाहिए. रेणु ने बहुत समझाया कि अभी वे बड़ा टीवी नहीं खरीद सकते हैं. खर्चे बहुत हैं घर में, बूआ की शादी भी करानी है. मगर जिद्दी वाणी कहां कुछ सुनने वाली थी. तब कहां से कैसे पैसे जुटा कर अरुण बड़ा टीवी खरीद लाए थे यह बोल कर कि पैसे तो बाद में बहुत आ जाएंगे. मगर यह बात हमेशा उन्हें खलेगी कि अपनी बेटी की एक छोटी सी इच्छा पूरी नहीं कर पाए थे. अरुण तो बस अपनी बेटी के चेहरे पर मुसकान देख कर ही जीते आए थे. वक़्त के साथ धीरेधीरे अरुण के ओहदे बढ़ते गए और जिम्मेदारियां कम होती गईं. लेकिन बापबेटी का प्यार दिनोंदिन और प्रगाढ़ होता गया. अरुण के लिए तो वही खुशी की बात होती थी जब वाणी खुश होती थी.