वाणी को अपने पापा की हमेशा चिंता लगी रहती है कि कहीं उन का शुगर लैवल न बढ़ जाए, इसलिए डाक्टर की सलाह के बावजूद वह डायबिटीज़ के बारे में गूगल पर भी सर्च करती रहती थी. जानती थी उस के पापा खानेपीने के मामले में बहुत लापरवाह हैं. रेणु के डर से घर में तो नहीं, पर बाहर वे मिठाई खा ही लेते हैं, कंट्रोल ही नहीं होता उन से. वैसे, एक बात यह भी है कि जिस चीज के लिए इंसान को मना किया जाता है, उस का मन उसी ओर भगाता है. अरुण के डर से ही रेणु फ्रिज लौक कर के रखने लगी थी. बुरा लगता है पर क्या करे? अपने मम्मीपापा को विदा कर वाणी मन ही मन मुसकराती हुई घर आ ही रही थी कि मनोरमा मामी और अपनी सास की बातें सुन उस के कदम बाहर ही रुक गए.
“जरा भी शरम-लाज है इन्हें, देखो तो जरा. जब देखो मुंह उठाए चले आते हैं यहां. यह भी नहीं समझते कि यह उन की बेटी की ससुराल है,” मुंह बिचकाती हुई वाणी की सास मालती बोली थी.
“मैं ने तो पहली बार देखा है दीदी, बेटी की ससुराल में किसी मांबाप को गबागब खाते हुए. बड़े बेशर्म लोग हैं ये तो. एक हम हैं, बेटी के घर का पानी तक नहीं पीते हैं और एक ये लोग, हायहाय,” ज़ोर का ठहाका लगाती हुई मनोरमा मामी बोली. इस पर मालती कहने लगी कि हर 3 महीने पर डाक्टर को दिखाने के बहाने यहां पहुंच ही जाते हैं दोनों और खापी कर ही जाते हैं. मन तो करता है पूछूं कि वहां आप के शहर में डाक्टर नहीं है जो यहां दिखाने चले आते हैं. लेकिन बेटे को बुरा न लगे, इसलिए चुप लगा जाती हूं.