“यह सही किया उन लोगों ने. लेकिन सोचो तो जरा, क्या होता जा रहा है आजकल के जैनरेशन को? रिश्तों को तो जैसे खेलतमाशा समझ लिया है इन्होंने। जितनी जल्दी इन पर प्रेम का ज्वर चढ़ता है, उतनी जल्दी उतर भी जाता है. बुरा मत मानना लेकिन इन का तथाकथित प्रेम जो दैहिक आकर्षण से इतर कुछ भी नहीं है. लेकिन इस बात की खुशी है मुझे कि हमारा आदर्श ऐसा नहीं है,” एक राहतभरी सांस लेते हुए मैं ने कहा,“वैसे साहबजादे हैं कहां? अभी तक सो रहे हैं क्या?”
“अरे नहीं, वह तो अपने कमरे में लैपटौप ले कर बैठा है,” मेरे हाथ से चाय का खाली कप लेते हुए शशि बोली.
“ओह अच्छा, तो सुबह से ही चीटिंग चालू हो गई तुम्हारी?”आदर्श के बगल में बैठते हुए मैं ने कहा तो मेरा 23 साल का पोता मेरे गले से लग कर झूल गया और बोला,”अरे दादू, कितनी बार समझाया है कि इसे चीटिंग नहीं चैटिंग कहते हैं.”
“अरे, एक ही बात है पुत्तर जी,” मैं ने प्यार से उस के गाल पर एक चपत लगाते हुए बोला,”तुम जैसे बच्चे भले ही इसे चैटिंग कहते हैं, पर मैं चीटिंग कहता हूं,” मेरी बात पर मेरे पोते ने मुझे प्रश्नवाचक नजरों से देखा, जैसे पूछ रहा हो ‘वह कैसे?’
“देखो, आज के लड़के लड़कियां लैपटौप और मोबाइल पर ही अपने प्यार का इजहार कर देते हैं और फिर शादी करने में जरा भी देर नहीं लगाते, भले ही परिवार की मरजी हो या न हो. फिर क्या होता है? मुश्किल से 2-4 साल भी शादी नहीं टिकती और तलाक हो जाता है. फिर इसे चीटिंग नहीं तो और क्या कहेंगे बताओ?” मेरी बात पर पीछे से मेरे बेटे, आदर्श के पापा ने टोकते हुए कहा कि सब एकजैसे नहीं होते हैं. और टिकने को तो अरैंज्ड मैरिज भी नहीं टिक पाता. शायद वह अपना उदाहरण दे रहा था. क्योंकि जब देखो मियांबीवी लड़ते ही रहते हैं. मैं ने उस की बात पर कोई जवाब न दे कर पोते से कहा,”अरे छोड़ो, तुम आजकल के बच्चे क्या जानो असली प्यार करना किसे कहते हैं? प्यार तो हमारे जमाने में होता था,” मैं रूमानी हो चला,“याद है, जब पहली बार मैं तुम्हारी दादी को देखने उन के घर गया था तब वो सुर्ख लाल रंग के सलवारकमीज में क्या खूब…” मैं बोल ही रहा था कि उधर से शशि ने अपनी आंखें तरेर कर मुझे चुप करा दिया.
लेकिन मेरा पोता आदर्श तो मेरे पीछे ही पड़ गया कि अब मुझे अपनी प्रेम कहानी सुनानी ही पड़ेगी. फिर मैं भी शुरू हो गया,”तो सुनो…” मैं ने सामने रखे टेबल पर एक जोर का हाथ मारते हुए कहना शुरू किया, “हमारी शादी के सालभर साल बाद, तुम्हारी दादी गौना करा कर मेरे घर यानी अपने ससुराल आई थीं. लेकिन वह 1 साल मेरे लिए कितना दर्दभरा था, मैं बयां नहीं कर सकता. तुम्हारी दादी की एक झलक पाने के लिए मैं रोज दोपहरिया इन के घर के पिछवाड़े जा कर खड़ा हो जाया करता था. दोपहर में इसलिए क्योंकि उस वक्त लोग अपने घर में सोएपटाए होते थे, तो किसी को कुछ पता नहीं चलता था. लेकिन एक बात कहूं, तुम्हारी यह दादी भी खिड़की पर बैठी मेरा इंतजार कर रही होती थीं और जैसे ही मुझे देखतीं, फूल सी खिल उठती थीं. अरे, देखो तो कैसे शर्म के मारे शशि के गाल लाल हो गए,” मेरी बात पर जहां आदर्श खिलखिला कर हंसने लगा, वहीं शशि गुर्राई कि बेटेबहू और पोते के सामने क्यों हमारी खिल्ली उड़वा रहे हो।
“अरे, तो इस में क्या है, आखिर हमारा पोता भी तो सुने कि हमारी प्रेम कहानी कितनी अनोखी थी. जानते हो पुत्तर…”आदर्श के पीठ पर एक हाथ मारते हुए मैं फिर फिर कहने लगा, “हमारा गांव आसपास ही था, तो बस साइकिल उठाता और दौड़ पड़ता तुम्हारी दादी से मिलने. हम दूर से ही एकदूसरे का दीदार कर खुश हो लेते थे. उस वक्त लगता जैसे हमें दुनिया की पूरी खुशियां मिल गई हों,” बोलते हुए मेरे चेहरे की झुर्रियों में ललाई आ गई और शशि के होंठों की कोर पर भी हलकी सी मुसकान बिखर आई।